tag:blogger.com,1999:blog-74628662264119814872024-03-16T23:48:27.125-07:00तरकशसंजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.comBlogger552125tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-34317810968859808792024-03-16T23:47:00.000-07:002024-03-16T23:47:33.173-07:00Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 17 मार्च 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHUSWuNuoJdyPPkovURhsLDt9VUvuBbLK2C-rcwx1Vwfi-WQF7n9KRu-ppu5xRhGgvxlmSTKs64sotToRRKlM30Q_xc3Y1g0Ii74c5qSNv6YPpYQHYQPsSvQiTyiF3XsxDjeM8ksO3s6oF_WpdeafzA2PEOCv34y3IQuL0HTJTGjUVynPnS7apAAoV5g4/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHUSWuNuoJdyPPkovURhsLDt9VUvuBbLK2C-rcwx1Vwfi-WQF7n9KRu-ppu5xRhGgvxlmSTKs64sotToRRKlM30Q_xc3Y1g0Ii74c5qSNv6YPpYQHYQPsSvQiTyiF3XsxDjeM8ksO3s6oF_WpdeafzA2PEOCv34y3IQuL0HTJTGjUVynPnS7apAAoV5g4/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br />मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?<p></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले छत्तीगसढ़ में ऐसे ट्रांसफर हुए कि लगा जैसे तबादलों पर से बैन हट गया हो। जाहिर है, बैन जब हटता है तो आखिरी दिनों में ऐसे ही आर्डर निकलते हैं। डेढ़ दिन वैसा ही कुछ रहा। इलेक्शन कमीशन के प्रेस कांफ्रेंस की खबर आते ही आदेशों की झ़ड़ी लग गई। सीईसी राजीव कुमार की पीसी होती रही और आदेश निकलते रहे। आखिर, दो महीने की बात थी। अप्रैल और मई तक ही तो वेट करना है। 4 जून को काउंटिंग हो जाएगी। पर मंत्रीजी लोग धीरज नहीं रख पाए। बृजमोहन जी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, मगर बाकी मंत्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं। मंत्रिमंडल में सर्जरी की कोई आशंका भी नहीं। इतनी जल्दी सर्जरी होती भी नहीं। फिर मंत्रियों की हड़बड़ी लोगों को समझ में नहीं आई। अरे भाई, दो महीने बाद सरकार भी रहेगी और आप भी मंत्री रहेंगे, फिर ट्रांसफर को लेकर इतनी बेचैनी क्यों? सरकार की साख को इससे धक्का पहुंचता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">छत्तीसगढ़ के सियासी योद्धा</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में तीन ऐसे सियासी योद्धा रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि पार्टी ने उन्हें सीट बदल-बदलकर लोकसभा चुनाव लड़ाया और वे जीते भी। नेता थे विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी और दिलीप सिंह जूदेव। हालांकि, विद्याचरण शुक्ल के चलते महासमुंद संसदीय सीट को देश में पहचान मिली...इस सीट से वे पांच बार सांसद चुने गए। मगर वे रायपुर और उससे बहुत पहले बलौदा बाजार से भी चुनाव लड़े और जीते थे। इसी तरह अजीत जोगी मरवाही से चार बार विधायक रहे ही शहडोल, रायगढ़ से एक-एक बार और महासमुंद सीट से दो बार चुनाव लड़े। रायगढ़ और महासमुद लोकसभा सीट से एक-एक बार जीते भी। इसके बाद अब दिलीप सिंह जूदेव। जूदेव की लोकप्रियता का ग्राफ छत्तीसगढ़ में सबसे उपर रहा। वे ऐसे लीडर थे, जो जशपुर से 300 किलोमीटर दूर जांजगीर और बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनावी रण में उतरे और अच्छे-खासे मतों से विजयी हुए। मगर अब छत्तीसगढ़ में इस कद के न नेता बचे और न उनकी लोकप्रियता है और न वैसा सियासी इच्छाशक्ति। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के जरिये भूपेश बघेल ने जरूर इस ट्रेक पर चलने की कोशिश की, मगर वे डिरेल्ड हो गए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अभी मैं कलेक्टर...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ बनने से दो साल पहले 1998 की बात है। तब लोकसभा का चुनाव हुआ था और अटलजी की 13 महीने की सरकार बनी थी। उस दौरान रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस से अजीत जोगी मैदान में थे और उनके सामने बीजेपी से नंदकुमार साय। रायगढ़ के कलेक्टर थे शैलेंद्र सिंह। चुनाव प्रचार के दौरान शैलेंद्र ने कांग्रेस की कुछ गाड़ियों को जब्त करवा दिया। बताते हैं, अजीत जोगी ने उन्हें फोन किया। कलेक्टर ने नियमों का हवाला दिया तो जोगीजी भड़क गए। उन्होंने कहा, नियम-कायदा मैं भी जानता हूं, मैं भी कलेक्टर रहा हूं। शैलेंद्र काफी तेज-तर्रार आईएएस थे। उन्होंने यह कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया कि आप कलेक्टर रहे हैं और मैं अभी हूं। हालांकि, जोगीजी बेहद कम मार्जिन, यही कोई पांचेक हजार मतों से चुनाव जीत गए। मगर छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शैलेंद्र सिंह को पहले आर्डर में ही बिलासपुर कलेक्टर से मंत्रालय में बिना विभाग का डिप्टी सिकरेट्री बना दिया गया था। बहरहाल, अब ऐसे दम वाले कलेक्टरों का नस्ल विलुप्त हो गया। खासकर, छत्तीसगढ़ में।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">लिफाफे में 300</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एक सांसद से उनके संसदीय क्षेत्र के मतदाता इसलिए नाराज हैं कि वे शादी, छठी, बरही में जाते हैं तो उनके लिफाफे से 300 रुपए से ज्यादा निकलता नहीं। कभी-कभार ही 500 होता है, जब सांसद जी किसी बड़े आदमी के यहां जाते हैं। अब इस जमाने में तीन सौ का क्या मोल? सामान्य आदमी बड़े नेताओं को अपने घरेलू कार्यक्रमों में बुलाता है तो उसका उद्देश्य रुतबा बढ़ाना तो होता ही है मगर एक उम्मीद भी होती है कि नेताजी ने कुछ ठीक-ठाक ही किया होगा। बहरहाल, 300 वाले मुद्दे ने नेताजी का ग्राफ काफी गिरा दिया है। चूकि पार्टी ने उन्हें टिकिट दे दिया है तो उसे सीट निकालने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी। वरना, खतरा मुंह बाये खड़ा है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2005 बैच हुआ ताकतवर!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">हर दौर में ब्यूरोक्रेसी का एक-दो बैच हमेशा प्रभावशाली रहा है। जैसे अभी विष्णुदेव साय सरकार में आईएएस, आईपीएस के 2005 बैच का जादू चल रहा है। अधिकांश महत्वपूर्ण जगहों पर इस बैच के अफसर विराजमान हैं। सीएम सचिवालय में 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत सिकरेट्री हैं तो अब उन्हें सुशासन विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। 2005 बैच के आईएएस मुकेश बंसल फायनेंस सिकरेट्री के साथ ही जीएसटी और जीएडी संभाल रहे हैं। पिछले दो सालों को छोड़ दें फायनेंस में डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन जैसे एसीएस लेवल के आईएएस रहे हैं। 2005 बैच की संगीता आर. आवास और पर्यावरण विभाग की सिकरेट्री के साथ ही पौल्यूशन बोर्ड की चेयरमैन का दायित्व संभाल रही हैं। इन पदों पर कभी बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह जैसे अफसर रहे हैं। इसी बैच के आईएएस एस, प्रकाश के पास ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ सिकरेट्री की भी जिम्मेदारी हैं। तो राजेश टोप्पो सिंचाई संभाल रहे हैं। 2005 बैच के आईपीएस अमरेश मिश्रा रायपुर पुलिस रेंज के आईजी के साथ ही ईओडब्लू, एसीबी के आईजी हैं। कुछ दिनों में वे इन दोनों जांच एजेंसियों के चीफ बन जाएंगे। वैसे, ये बैच कांग्रेस शासन काल में जरूर हांसिये पर रहा मगर बीजेपी के समय इन सभी अफसरों के पास अच्छे पोर्टफोलियो रहे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ऋचा को फारेस्ट या हेल्थ?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">1994 बैच की एसीएस रैंक की आईएएस अफसर ऋचा शर्मा का सेंट्रल डेपुटेशन समाप्त हो गया है। रिलीव होने के बाद वे अभी अवकाश पर हैं। अप्रैल के फर्स्ट वीक में वे लौटेंगी। ऋचा भारत सरकार में वन और जलवायु परिवर्तन में ज्वाइंट सिकरेट्री रह चुकी हैं। सो, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि उन्हें फारेस्ट सिकरेट्री बनाया जाएगा या फिर हेल्थ सौंपा जाएगा। रेणु पिल्ले के हटने के बाद मनोज पिंगुआ को सरकार ने अभी हेल्थ की जिम्मेदारी सौंपी है। गृह, जेल के साथ वन तथा स्वास्थ्य। जाहिर है, ये तीनों काफी बड़े विभाग हैं...एक सिकरेट्री के लिए ये कतई संभव नहीं। सो, समझा जा रहा है, मनोज को टेम्पोरेरी तौर पर हेल्थ दिया गया है। ऋचा के लौटने पर मनोज का वर्क लोड कम किया जाएगा। अब देखना है कि ऋचा को हेल्थ का दायित्व मिलता है या फिर फॉरेस्ट का।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आईएएस का वर्चस्व</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पिछला पांच साल डिप्टी कलेक्टरों और प्रमोटी आईएएस के लिए स्वर्णिम युग रहा। पहली बार ऐसा हुआ कि डीए में हमेशा आगे रहने वाले स्टेट वालों से आठ परसेंट पीछे हो गए थे। मगर अब स्टेट वाले पीछे हो गए और ऑल इंडिया सर्विस वाले केंद्र के बराबर पहुंच गए हैं। यहीं नहीं, पोस्टिंग में भी यह झलक रहा है। बड़े-बड़े विभागों में बैठे राज्य प्रशासनिक सेवा या प्रमोटी आईएएस की जगह अब आरआर वाले ले रहे हैं। मंत्रालय में तीन महीने पहले तक पांच प्रमोटी आईएएस सिकरेट्री थे, अब सिर्फ एक नरेंद्र दुग्गे बचे हैं। पिछली सरकार में अच्छी पोस्टिंग की वजह से साइडलाइन किए गए आईएएस भी वापिस लौट रहे हैं। सारांश मित्तर, पुष्पेद्र मीणा, विनीत नंदनवार को स्वतंत्र प्रभार मिल गए हैं। विनीत एपीओ याने अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर से सीधे ब्रेवरेज कारपोरेशन के एमडी बन गए हैं। हालांकि, उनके विरोधियों ने दंतेवाड़ा कलेक्टर रहने के दौरान मां दंतेश्वरी मंदिर कारिडोर में घपले घोटाले की मुहिम चलवाकर उन्हें दंतेवाड़ा से हटवाया था मगर जांच में ऐसा कुछ मिला नहीं। लगता है, दंतेश्वरी माई की कृपा विनीत पर हुई है। वरना, एपीओ से सीधे...।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नॉट प्रमोटी आईएएस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सामान्य प्रशासन विभाग के राज्य प्रशासनिक सेवा शाखा में 2013 में शहला निगार स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार रहीं। उसके बाद इस विभाग में कभी आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस नहीं रहे। शहला के बाद करीब तीन साल रीता शांडिल्य इस विभाग की सिकरेट्री रहीं और उनके बाद पिछले सात साल से डीडी सिंह। राप्रेस संघ के विरोध के बाद सरकार ने डीडी सिंह को हटाकर 11 साल बाद डायरेक्ट आईएएस अंबलगन पी को एसएएस शाखा की जिम्मेदारी सौंपी है। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि महत्वपूर्ण प्रशासनिक ढांचे को ठीक करने के लिए आरआर को वहां बिठाया गया है। बता दें, छत्तीसगढ़ में चार सौ से अधिक एसएएस अफसर हैं। और ये सरकार और जनता के बीच के असली सेतु होते हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कलेक्टरों के लिए शर्मनाक</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">जब छत्तीसगढ़ में बड़े जिले होते थे, तब भी कलेक्टर आफिस में मिल जाते थे। मगर अब दो-दो ब्लॉक के जिले हो गए, उसके बाद कलेक्टर आफिस नहीं आते और आते भी हैं तो अपने हिसाब से कभी वीसी हुआ तो आ गए या फिर मन पड़ा तो दो-एक घंटा बैठ लिए। आलम यह है कि सूबे के मुखिया को कहना पड़ रहा है कि कलेक्टर टाईम से आएं। कलेक्टर, एसपी कांफें्रस में सीएम ने कलेक्टरों से दो टूक कहा कि जब पांच दिन का सप्ताह हो गया है, तो पांच दिन अच्छे से काम करें, 10 बजे आफिस पहुंचे। वाकई! ये कलेक्टरों के लिए शर्मनाक है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">डीएमएफ दोषी?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कलेक्टर कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने डीएमएफ को लेकर कलेक्टरों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि मुझे पता है कि पहले के कुछ कलेक्टर डीएमएफ में खूब भ्रष्टाचार किए हैं। उन्होंने कलेक्टरों को वार्निंग दी कि अब डीएमएफ में गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे। दरअसल, भारत सरकार ने नेताओं की बजाए कलेक्टरों को माइनिंग फंड की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी कि कलेक्टर एक अथॉरिटी होते हैं...जिलों में न्यायपूर्ण काम होंगे। मगर छत्तीसगढ़ में डीएमएफ ने कलेक्टरांं को भ्रष्ट बना दिया। पैसा आदमी का दिमाग खराब कर देता है...छत्तीसगढ़ के कई जिलों में कई-कई सौ करोड़ डीएमएफ फंड है। कलेक्टर उसके मालिक होते हैं। कलेक्टरों का एक सूत्रीय कार्य हो गया है कि डीएमएफ के पैसे को कैसे खर्च किया जाए। कलेक्टरों के कंपीटिशन में एसपी भी शुरू हो गए। कलेक्टर जिले का काम इसी गुनतारे में लगे रहते हैं कि डीएमएफ के करोड़ों रुपए को किस मद में खर्च किया जाए कि ज्यादा-से-ज्यादा कमीशन मिल जाए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. ट्रांसफर के प्रेशर से घबराए किस-किस विभाग के सिकरेट्री भगवान से गुहार लगा रहे थे, प्रभु जल्दी आचार संहिता लगवा दें?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. गृह विभाग ने दमदारी से बड़े-बड़े ट्रांसफर किए मगर हफ्ते-दस दिन में ही उसे कई को निरस्त क्यों करना पड़ गया?</span></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-10195561548857815412024-03-09T22:04:00.000-08:002024-03-09T22:04:05.563-08:00Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ में 4000 करोड़ की GST चोरी<p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">तरकश, 10 मार्च 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">छत्तीसगढ़ में 4000 करोड़ की GST चोरी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">इस हेडिंग को पढ़कर आप हतप्रभ होंगे...चोरी वो भी चार हजार करोड़ की। जी, हम जीएसटी की बात कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 20 हजार करोड़ रुपए जीएसटी से आता है। इसमें पांच हजार करोड़ पेट्रोल, डीजल से। 15 हजार करोड़ अदर बिजनेस से। चोरी अदर बिजनेस में ही होती है। जीएसटी के अफसर मानते हैं कि मोटे तौर पर 25 से 30 फीसदी चोरी होती है। 15 हजार करोड़ के 25 परसेंट के हिसाब से करीब चार हजार करोड़ बैठता है। ये चार हजार करोड़ में से तीन हजार करोड़ छत्तीसगढ़ के करीब 200 बड़े कारोबारियों की जेब में जा रहा है। ठीक ही कहा जाता है, ईमानदारी से ऐसा प्रोग्रेस नहीं होता, जैसा रायपुर में चल रहा। बहरहाल, इस तीन हजार करोड़ से छत्तीसगढ़ में हर साल मैकाहारा जैसे 10 अस्पताल बनाए जा सकते हैं पूरे सेटअप के साथ।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">GST में 3 आईएएस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">23 साल में पहली बार जीएसटी चोरी करने वाले बड़े लोगों के खिलाफ सरकार ने मुहिम छेड़ी है। छत्तीसगढ़ में रोज छापे पड़ रहे हैं। दो-से- चार करोड़ रुपए रोज सरेंडर किए जा रहे हैं। दुर्ग के एक गुटखा व्यापारी ने कल चार करोड़ मौके पर जमा कराया। इससे समझा जा सकता है कि किस स्तर पर चोरियां हो रही कि उनके लिए चार करोड़ रुपए कुछ भी नहीं। जीएसटी को मजबूत करने के लिए मंत्री ओपी चौधरी ने दिल्ली से मुकेश बंसल को बुलाकर सिकरेट्री बनाया है। रजत बंसल कमिश्नर हैं ही। फर्स्ट टाईम आईएएस प्रतीक जैन को ज्वाइंट कमिश्नर बनाया गया है। प्रतीक आईएएस में आने से पहले इंकम टैक्स में रहे हैं। सो, उन्हें टैक्स चोरी की बारीकियां की जानकारी है। कुल मिलाकर अब जीएसटी चौरी करने वाले बड़े लोगों की खैर नहीं। ओपी के पास खजाने की चाबी है। वे चाहेंगे भी कि ऐसे जीएसटी चोरों पर कार्रवाई कर खजाने के लोड को कम किया जाए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">उदार मंत्री, कलाकार पीएस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ के विष्णुदेव सरकार के एक मंत्रीजी बेचारे सहज और लो प्रोफाइल के हैं। मगर उनके डिप्टी कलेक्टर ओएसडी उतने ही बड़े कलाकार। मंत्री के यहां पोस्टिंग का जुम्मा-जुम्मा महीना गुजरा होगा कि खेल प्रारंभ कर दिया। करीब दसेक दिन से वे अफसरों को फोन लगाकर पूछ रहे...ट्रांफसर होने वाला है, तुमको कहां जाना है...आपको बस्तर भेजा जा रहा है...फलां जिले के लिए 20 पेटी लगेगा, वहां के लिए 15। मगर आचार संहिता की हडबड़ी में ओएसडी से एक रांग नंबर डायल हो गया। उन्होंने एक ऐसे अफसर को फोन लगा डाला, जो संघ से जुड़े हुए हैं। अफसर ने अपने पृष्ठभूमि के बारे में बताया तो ओएसडी लगे हाथ-पांव जोड़ने...अरे, मैं तो मजाक कर रहा था, पता करने की कोशिश कर रहा था कि मार्केट में कोई गड़बड़ी तो नही हो रही। बताते हैं, सात अधिकारियों से ओएसडी ने एडवांस में 70 पेटी पेशगी ले ली है। मंत्रियों के स्टाफ को लेकर इसी स्तंभ में हमने आगाह किया था कि ठोक बजाकर मंत्रियों के सहायक नियुक्त किए जाएं। सरकार को एकाध कौवा मारकर टांगना चाहिए। वरना, मंत्रियों के ऐसे खटराल सहायकों से नाहक सिस्टम बदनाम होगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">वो तीन मंत्री</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">रमन सरकार के 15 बरसों में ऐसा नहीं हुआ कि मंत्रियों के पीए लोगों ने करामात नहीं दिखाया। कई मंत्री ट्रांफसर, पोस्टिंग के चक्कर में काफी बदनाम हुए। मगर तब भी तीन मंत्री अपवाद थे। वह एआई का जमाना नहीं था लेकिन उन मंत्रियों का खुद का इंटेलिजेंस और कमांड इतना तगड़ा था कि उनके इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था। तीनों मंत्री स्टाफ सलेक्शन में बड़ा सतर्क रहते थे। उन्हें उतने ही फ्रीडम दिया, जितना आवश्यक है। तीन में से दो मंत्री रायपुर और उसके आसपास के थे और तीसरे बिलासपुर संभाग के। इनमें से एक मंत्री ऐसे थे कि दौरे के समय पीए के मोबाइल लेकर चेक कर लेते थे कि किन लोगों के फोन आ रहे हैं और वे किनके संपर्क में हैं। तभी ये तीनों मंत्री ट्रांसफर, पोस्टिंग को लेकर कभी चर्चा में नहीं आए। बहरहाल, जब लहर गिनकर पैसा कमाने वाले पीए और पीएस हैं तो मंत्रियों को अतिरिक्त सजग रहना चाहिए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ईओडब्लू के नए बॉस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राज्य सरकार ने पहली बार ईओडब्लू टीम की कंप्लीट सर्जरी की है। सरकार ने एक झटके में ढाई दर्जन अधिकारियों और इंस्पेक्टरों को सिंगल आदेश से वापिस बुलाकर करीब उतने ही पोस्टिंग कर दी। जाहिर है, सरकार ईओडब्लू में कुछ नया करने जा रही है। डीएम अवस्थी की जगह नए चीफ की नियुक्ति की चर्चा बड़ी तेज है। डीएम को ईओडब्लू के चीफ बने करीब सवा साल हो गए हैं। इस दौरान शराब घोटाले से रिलेटेड सिर्फ एक छापा पड़ा, जिसमें न कुछ मिलना था और न मिला। हालांकि, पहले टेन्योर में यही डीएम अवस्थी एक साल में 100 करोड़ की अनुपातहीन संपत्तियों को उजाकर किया था। मगर इस बार उनकी जरूर कोई मजबूरियां रही होगी, वरना...। खैर, सरकार अब जिसे ईओडब्लू का चीफ बनाने जा रही, वे निरपेक्ष भाव से काम करने वाले अफसर हैं। उन्हें इसका कोई मतलब नहीं कि फलां बड़ा तोप है, तो फलां बड़ा प्रभावशाली। पोस्टिंग से पहले ही उन्हें बता दिया गया है कि करप्शन का कोई टॉलरेंस नहीं रहेगा...भ्रष्टाचार के मामले में छत्तीसगढ़ की खराब हो गई छबि को दुरूस्त करना है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आईएएस को एपीओ</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राज्य सरकार ने 8 मार्च को सचिव लेवल के आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग की। इनमें राजस्व सचिव भुवनेश यादव से राजस्व, आपदा प्रबंधन और पुनर्वास लेकर उन्हें एपीओ कर दिया। एपीओ मतलब अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर। भुवनेश को पोस्टिंग के लिए इंतजार करना होगा। चूकि सामने लोकसभा चुनाव है, सो उसके बाद ही उन्हें कोई विभाग मिलने की संभावना बनेगी। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी में भुवनेश को एपीओ करने की बड़ी चर्चा है। हर आदमी कारण टटोल रहा है। एपीओ करने की एक वजह तो यह बताई जा रही कि निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पिछले हफ्ते राजस्व विभाग ने बड़ी संख्या में तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को ट्रांसफर किया। इसकी फाइल समन्वय में नहीं भेजी गई। राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा के अनुमोदन के बाद आदेश जारी हो गया। दरअसल, ट्रांसफर पर बैन है। समन्वय के अनुमोदन के बाद ही ट्रांफसर होते हैं। दूसरा, बड़ी संख्या में उठापटक होने से कनिष्ठ प्रशासनिक संघ ने सिस्टम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। चीफ सिकरेट्री से लेकर उपर तक इसकी शिकायत की गई। अब कलेक्टर से बड़ा पटवारी होता है तो फिर तहसीलदारों की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. एक्स सीएम भूपेश बघेल के राजनांदगांव से चुनाव मैदान में उतरने से क्या वाकई वहां मुकाबल कड़ा हो गया है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. सिर्फ जीएडी और गृह विभाग में ही दबाकर क्यों ट्रांसफर हो रहे, बाकी विभागों के गड़बड़ अधिकारी कैसे बच जा रहे?</span></p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEoKZHXNsUWrWlQ4E6Vvt4N-c9V8jBvmPRzIjXrZ_g79cFqg_S_FUhuz3GC4GqJwcJUrFObH1psZtbtLrs9_fNouHm-o7NX2JNmiBbQSKCrCZJVHFy1U6_BjKIv7TgIm1UjoHJtcRCsDqu7ZP4QTAK2jxHuVG4ln_CPivLnjhuKv3cRvZtfr0APB6Gt4g/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEoKZHXNsUWrWlQ4E6Vvt4N-c9V8jBvmPRzIjXrZ_g79cFqg_S_FUhuz3GC4GqJwcJUrFObH1psZtbtLrs9_fNouHm-o7NX2JNmiBbQSKCrCZJVHFy1U6_BjKIv7TgIm1UjoHJtcRCsDqu7ZP4QTAK2jxHuVG4ln_CPivLnjhuKv3cRvZtfr0APB6Gt4g/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /> <p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-41185535442786243472024-03-02T22:18:00.000-08:002024-03-02T22:18:20.455-08:00Chhattisgarh Tarkash: बंटी, बबली और छत्तीसगढ़ पीएससी<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 3 मार्च 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बंटी, बबली और पीएससी</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पीएससी घोटाले की एक और एफआईआर हो गई है। उस स्कैम से जुड़े कई अफसर फरार बताए जा रहे हैं। मगर जांच एजेंसियों को इसे भी नोटिस में लेना चाहिए...पीएससी स्कैम में जिस बंटी-बबली की जोड़ी ने खेला किया, उसमें उनके नाते-रिश्तेदारों की भूमिका भी अहम रही। बताते हैं, लेनदेन का काम बंटी के साढ़ू भाई ने किया। जांच एजेंयियां अगर बंटी के साढ़ू भाई का कॉल डिटेल निकलवा ले, तो उसमें कई बड़े सफेदपोश लोग एक्सपोज होंगे। उस मोबाइल से ही डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी के लिए 75 लाख से लेकर एक करोड़ तक के सौदे हुए। जिन्होंने एक पद लिया, उन्हें एक करोड़ और जिन लोगों ने एक साथ दो पद की डील की, उन्हें डिस्काउंट दिया गया। पीएससी के तीन साल में हुई परीक्षाओं में बताते हैं, बंटी ने करीब 50 खोखा तो बबली को मिला 15 खोखा। बंटी ने दो बड़े फार्म हाउस खरीदे तो बबली ने रायपुर के एक बड़े बिल्डर के प्रोजेक्ट में लगाया पैसा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">200 करोड़ की डायरी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पिछली सरकार में स्कूल शिक्षा विभाग की 200 करोड़ की डायरी आई थी। उस डायरी में चौंकाने वाले खुलासे थे। बीजेपी तब 15 सीटों पर सिमटने से गमजदा थी। और तब के अफसरों ने मामले को रफा-दफा करने के लिए एक कांग्रेस के नेता को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। मैसेज ये दिया गया कि डायरी फर्जी थी, अफसरों को बदनाम करने के लिए। बीजेपी अब सत्ता में है, इसकी जांच कराना चाहिए। क्योंकि, उसकी घोषणा पत्र में, बेहतर शिक्षा और उज्जवल भविष्य का नारा है, वह स्कूल शिक्षा के खटराल अधिकारियों के रहते संभव नहीं। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, सिकरेट्री सिद्धार्थ परदेशी और डीपीआई दिव्या मिश्रा रिफर्म के कई काम शुरू किए हैं, मगर वो केबीसी के होते अंजाम तक पहुंचना कठिन है। केबीसी मतलब स्कूल शिक्षा संचालनालय के तीन चर्चित तिकड़ी। ये तिकड़ी किसी और को डीपीआई में टिकने नहीं देती। सरकार ने दो डिप्टी कलेक्टरों का पद क्रियेट किया। दो अफसर पोस्ट भी हुए। मगर उन्हें काम ही नहीं सौंपने दिया। ज्वाइंट कलेक्टर लेवल के राजेंद्र गुप्ता आठ महीने वहां खाली बैठे रहे। किसी तरह वे डीपीआई से बाहर निकले हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">खाली हाथ, खाली डब्बा</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">शराब घोटाले में छत्तीसगढ़ की ईओडब्लू ने 13 पूर्व आईएएस, आबकारी अधिकारी और शराब ठेकेदारों के 14 ठिकानों पर छापा मारकर सनसनी फैला दी थी। राज्य बनने के बाद यह पहली हाईप्रोफाइल कार्रवाई होगी, जो मुकेश गुप्ता जैसे ईओडब्लू चीफ के टेन्योर में भी नहीं हो पाई। मगर इस छापे में कुछ मिला नहीं। सभी ठिकानों से ईओडब्लू की टीम खाली हाथ लौट आई। दरअसल, ईओडब्लू छापे से पहले इनमें से अधिकांश ठिकानों पर ईडी दबिश दे चुकी है। सो, सारे दस्तावेज ईडी जब्त कर ले गई है। ईओडब्लू अफसरों को सभी लोगों ने टका सा जवाब दे दिया...कोई कागज हमारे पास नहीं है। ऐसे में, ईओडब्लू क्या करती। मायूसी के अलावा कोई चारा नहीं था।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पहुना की सुरक्षा</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">मुख्यमंत्री के अस्थाई निवास पहुना में गए सप्ताह पिस्तौल के साथ एक युवक के घुस जाने से खलबली मच गई। सीएम जेड प्लस सिक्यूरिटी केटेगरी में आते हैं। उन तक पहुंचने के लिए कई लेवल पर चेकिंग होती है। ऐसे में, पिस्तौल वाली घटना से कोहराम मचना ही था। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि इस मामले में आठ सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया गया है। अगर ये दावा गलत भी है तो कोई बुराई नहीं। क्योंकि, संघ के नेता का ठेकेदार पोता हाउस में रोज जाने वाली सरकारी गाड़ी में भीतर चला गया तो सिपाहियों का इसमें कोई कसूर कैसे? दरअसल, स्थायी सीएम हाउस में शिफ्थ होते तक इस तरह के प्राब्लम पुलिस अधिकारियों को फेस करना ही होगा। सीएम हाउस में एक बार सीएम चले गए तो उसके बाद वहां पहुंचना सबके लिए मुमकिन नहीं होगा। पीडब्लूडी को जल्द-से-जल्द सीएम हाउस को तैयार कर देना चाहिए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंत्री की वैकेंसी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर विधायक और मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को बीजेपी ने रायपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया है। बृजमोहन कई लोकसभा चुनावों में चुनाव संचालक रहे और पार्टी प्रत्याशी को जीताया भी। सो, रायपुर से बृजमोहन की जीत में कोई संशय नहीं है। ऐसे में, न केवल रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट खाली होगी बल्कि मंत्री की एक वैकेंसी भी बढ़ेगी। इस समय एक सीट खाली है। बृजमोहन के केंद्र की राजनीति में जाने के बाद अब दो हो जाएगी। जाहिर है, लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रियों के खाली पद भरे जाएंगे। अब देखना है, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक और राजेश मूणत में से किन दो को मौका मिलता है। वैसे, वर्तमान सियासी समीकरणों को देखते बिलासपुर से एक मंत्री की संभावना प्रबल प्रतीत हो रही है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">महतारी जिला</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ सरकार महिलाओं के लिए सिर्फ महतारी वंदन नहीं कर रही बल्कि जिलों में प्रशासनिक पोस्टिंग में भी महिला अफसरों का ध्यान रख रही है। इस समय दो जिले ऐसे हैं, जिनमें कलेक्टर, एसपी दोनों महतारी हैं। सक्ती में नुपूर राशि पन्ना पहले से कलेक्टर थीं, वहां अब अंकिता शर्मा को एसपी बनाकर भेजा गया है। जीपीएम जिले में भी यही सीन है। कमलेश लीना मंडावी कलेक्टर और भावना गुप्ता एसपी हैं। हालांकि, महतारी योजना में भावना गुप्ता के साथ थोड़ी डंडी मारी गई है। भावना सूरजपुर, अंबिकापुर, बेमेतरा की एसपी रह चुकी हैं। इसके बाद उन्हें जीपीएम टिकाया गया है। वहीं, प्रमोटी आईएएस लीना मंडावी का यह पहला जिला है। जाहिर है, भावना को इसका मलाल तो रहेगा। बहरहाल, ये दोनों जिला महतारी जिला हो गए हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">महतारी विभाग</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में महतारी जिला के साथ ही महतारी विभाग भी बन गए हैं। नाम के अनुरूप महिला बाल विकास विभाग में इस समय उपर में सभी महिलाएं हैं। इस विभाग की मंत्री प्रारंभ से महिला रहती आई हैं। मगर इस समय सिकरेट्री शम्मी आबिदी और डायरेक्टर तुलिका प्रजापति हैं। ऐसा संयोग कभी नहीं हुआ। डीपीआई जब दिव्या मिश्रा रहीं तो सिकरेट्री जेंस रहे और दिवंगत आईएएस एम गीता जब इस विभाग की सिकरेट्री रहीं तो डायरेक्टर जेंस आईएएस। इस समय मंत्री, सिकरेट्री और डायरेक्टर, तीनों महतारी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">महीने भर में प्रमोशन</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सारंगढ़ छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा, जहां दो महीने के भीतर तीन कलेक्टर बदल गए। पहली बार 3 जनवरी को फरिया आलम को हटाकर कुमार चौहान को कलेक्टर बनाया गया। और अब कुमार को हटाकर धर्मेश साहू को। कुमार चौहान किस्मती निकले, उनका दो महीने में ही प्रमोशन हो गया। उन्हें सारंगढ़ से सीधे बलौदा बाजार का कलेक्टर बना दिया गया। दरअसल, चौहान लैलूंगा के रहने वाले हैं। याने रायगढ़ संसदीय क्षेत्र। सारंगढ़ भी रायगढ़ लोकसभा इलाके में आता है। सो, चुनाव आयोग के नए फारमान के बाद सरकार के पास चौहान को हटाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। बलौदा बाजार के कलेक्टर बदले जा रहे थे। लिहाजा, चौहान की लाटरी खुल गई। चौहान वही कलेक्टर हैं, जो सारंगढ़ में आत्मानंद स्कूल के गुरूजी को जनपद पंचायत का सीईओ बना डाले थे। बाद में मीडिया में मामला उछला तो उन्होंने तुरंत आर्डर निरस्त कर दिया था।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">डेपुटेशन की हरी झंडी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">भारत सरकार में पोस्टेड आईएएस अफसर सिर्फ आ ही नहीं रहे बल्कि यहां से भी जा रहे हैं। 2009 बैच के एक आईएएस ने राज्य सरकार से सेंट्रल डेपुटेशन के लिए एनओसी मांगा था। सीएम से उनके एनओसी को मंजूरी मिल गई है। आईएएस को अगर केंद्र में पोस्टिंग मिल गई तो वे चले जाएंगे। आईएएस चूकि यहां हेल्थ, समाज कल्याण, हाउसिंग जैसे सेक्टर में काम कर चुके हैं, इस आधार पर उन्हें भारत सरकार में अच्छी पोस्टिंग मिल सकती है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. पिछली सरकार में एक मंत्री को मोहपाश में बांध करोड़ों का काम हथियाने वाली किस रुप की मल्लिका को फिर उपकृत करने की तैयारी की जा रही?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. दो साल से ड्यू होने के बाद भी पिछली सरकार ने 92 बैच के आईपीएस अफसरों को डीजी प्रमोट नहीं किया और इस सरकार में भी कोई चर्चा नहीं। इसकी क्या वजह है?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqB03xa4sqoM8KL_5xTEyScukFgTEpiR6zUVB5GuRxm9JgzyTDvPOt7RbmXbKL1xbu0xHLd9kumi_Q7Vi8QHcb9PlL3hsfLKGSHbjmbYw3_82iL8lI8wax2gjFTYSi2gLT-TzKrjB_7f2SrKaGoL0xb7iqgHz9f7BHGLaNN3uc7j0Bb_lAq8BF0p3hpaw/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqB03xa4sqoM8KL_5xTEyScukFgTEpiR6zUVB5GuRxm9JgzyTDvPOt7RbmXbKL1xbu0xHLd9kumi_Q7Vi8QHcb9PlL3hsfLKGSHbjmbYw3_82iL8lI8wax2gjFTYSi2gLT-TzKrjB_7f2SrKaGoL0xb7iqgHz9f7BHGLaNN3uc7j0Bb_lAq8BF0p3hpaw/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-64883036775700461082024-02-17T23:55:00.000-08:002024-02-17T23:55:43.587-08:00Chhattisgarh Tarkash 2024: सीएम विष्णुदेव से अफसरों की मुलाकात और संयोग<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 18 फरवरी 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सीएम से मुलाकात और संयोग</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन के सिलसिले में दिल्ली में हैं। वहां सेंट्रल डेपुटेशन पर पोस्टेड कई आईएएस अफसरों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय मांगा था। संयोग से 16 फरवरी को रात नौ से दस बजे के बीच का टाईम भी मिल गया। चूकि टाईम सभी का लगभग एक ही था। सो, एक साथ आधा दर्जन से अधिक आईएएस पहुंच गए छत्तीसगढ़ सदन। ऋचा शर्मा, विकास शील, निधि छिब्बर, सोनमणि बोरा, मुकेश बंसल...और भी कई। सदन में सब एक-दूसरे को देखकर आवाक थे...ओह! आप, अरे वाह...आप भी। इससे पहले कभी ऐसा संयोग बना नहीं। चलिए, ये अच्छी परंपरा शुरू हुई है। दीगर राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली जाते हैं तो भारत सरकार में पोस्टेड अपने अफसरों से मुलाकात करते हैं। साल में दो-एक बार डिनर भी हो जाता है। उसका फायदा राज्य को मिलता है। स्टेट कैडर के अफसरों को लगता है, उन्हें रिस्पांस मिल रहा तो वे भी राज्य के हितों का ध्यान रखते हैं। इस वक्त अच्छी बात यह है कि छत्तीसगढ़ से गए लगभग सभी आईएएस ठीक-ठाक पोजिशन में हैं। सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अनुदान का अनोखा खेला</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में अनुदान के नाम पर भ्रष्टाचार का ऐसा खेला किया गया कि किसानों को फोकट में चाइनिज पावर वीडर मशीन मिल गई और व्यापारी और अफसर करोड़ों रुपए भीतर कर लिए। इस खेल में हार्टिकल्चर के अफसर, कलेक्टरों का डीएमएफ और सप्लायर का भूमिका अहम रही। हम बात कर रहे हैं हार्टिकल्चर द्वारा किसानों को पावर वीडर मशीन के लिए अनुदान की। हार्टिकल्चर को सिर्फ इसमें अनुदान देना था और व्यापारी को मशीन सप्लाई करनी थी। मगर हार्टिकल्चर के अफसर एक ऐसे व्यापारी से गठजोड़ कर खुद ही सप्लायर बन गए, जो एमपी में ब्लैलिस्टेड है और वहां लोकायुक्त की जांच चल रही है। पावर वीडर मशीन निंदाई के काम आती है। बैटरी ऑपरेटेड यह यंत्र बाजार में 25 हजार में मिल जाता है। मगर बीज विकास निगम से इसका 1.26 लाख रेट तय कराया गया। और चाइनिज मशीनों को हार्टिकल्चर की नर्सरी में एसेंबल कर जिलों में किसानों को सप्लाई कर दिया गया। नियमानुसार निगम से निर्धारित रेट पर मशीन खरीदेंगे तो उस पर 60 हजार अनुदान मिलेगा। मगर इसमें किसानों को हार्टिकल्चर के एजेंटों ने कंविंस कर लिया कि आपको एक पैसे नहीं देना है, बस अनुदान मिलेगा उसे लौटाना होगा। कायदे से किसान 1.26 लाख जमा करता, उसके बाद मशीन मिलती और फिर 60 हजार अनुदान। मगर एजेंटों ने किसानों से ब्लैंक चेक में दस्तखत करा लिया और हार्टिकल्चर से जैसे ही किसानों को अनुदान जारी हुआ, चेक को लगाकर पैसा निकाल लिया। यानी 25 हजार का यंत्र 1.26 लाख में टिकाया गया। और उपर से अनुदान भी हड़प लिया गया। विस चुनाव से जस्ट पहले पूर्व सीएम डॉ0 रमन सिंह ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से इसकी शिकायत कर जांच कर मांग की थी। केंद्रीय मंत्री से इसलिए क्योंकि अनुदान भारत सरकार से मिलता है। अब सरकार बदल गई है। लिहाजा, प्रतीत होता है कि कृषि मंत्री रामविचार नेताम इसे संज्ञान लेंगे और हार्टिकल्चर में सालों से जमे अधिकारियों पर कार्रवाई करेंगे। क्योंकि, रमन सिंह ने बड़ा दुखी होकर केंद्रीय मंत्र को पत्र लिखा था।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मोदीजी का 360 डिग्री</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राज्यसभा सदस्य के लिए बीजेपी के संगठन मंत्री रहे रामप्रताप सिंह की काफी चर्चा रही। पार्टी के लोग इसको लेकर आशान्वित तो थे ही, सोशल मीडिया से लेकर बड़े मीडिया घराने भी रामप्रताप की ताजपोशी तय होने का ऐलान कर रहे थे। मगर मोदी मैजिक ने फिर सबको चौंका दिया। रामप्रताप की जगह रायगढ़ के देवेंद्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया गया। देवेंद्र प्रताप इतने सूबे के लिए ऐसे अल्पज्ञात थे कि गूगल पर भी कुछ नहीं मिल पा रहा था। देवेंद्र प्रताप टाईप करने पर गोरखपुर आ रहा था। बीजेपी नेताओं ने भी सिर पकड़ लिया कि कांग्रेस पर बाहरी नेताओं को राज्यसभा में भेजने का आरोप लगा रहे थे, मोदीजी ने ये क्या कर डाला...अब क्या जवाब देंगे। बहरहाल, नाम ऐलान होने के बाद करीब 20 मिनट बाद कंफर्म हुआ कि ये रायगढ़ वाले देवेंद्र प्रताप हैं। तब जाकर बीजेपी नेताओं की सांसें लौटी। चलिये, ये कम थोड़े ही है कि रामप्रताप न सही, किसी प्रताप को ही राज्य सभा भेजा गया है। ये मोदीजी के 360 डिग्री मूल्यांकन प्रणाली का कमाल है। 15 साल सरकार रहते माल-मलाई खाने और शाही सुख-सुविधा भोगने वाले बीजेपी और संघ के नेताओं को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनका समय अब खतम हो गया है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आईएएस पोस्टिंग</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">आने वाले दिनों में आईएएस में एक छोटी लिस्ट और निकलेगी। सोनमणि बोरा और मुकेश बंसल सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। बोरा प्रमुख सचिव रैंक के अफसर हैं। इस लेवल पर सिर्फ एक ही आईएएस हैं। निहारिका बारिक। अब दो हो जाएंगे। कई अहम विभागों में प्रमुख सचिव पोस्ट करने की परिपाटी रही है। सो, बोरा को ठीकठाक विभाग मिल सकता है। वहीं, मुकेश बंसल सिकरेट्री रैंक के हैं। मुकेश उस समय रायगढ़ कलेक्टर थे, जब सीएम विष्णुदेव साय वहां से सांसद होते थे। सो, सीएम मुकेश की वर्किंग जानते हैं। आखिर, फायनेंस में इंश्योरेंस जैसे विभाग संभाल रहे मुकेश को सरकार ने पत्र लिखकर वापिस बुलाया है तो जाहिर तौर पर पोस्टिंग अच्छी मिलनी चाहिए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">विधायकों का ड्रेस सेंस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ की छठवीं विधानसभा का रौनक कुछ अलग है। डॉ0 रमन सिंह जैसे हैंडसम, आकर्षक डील डौल वाले स्पीकर। 15 साल के सीएम का औरा...। आसंदी पर उनके बैठने से विधानसभा की रौनक बढ़ी है। बाकी में के ड्रेस सेंस को लेकर भी कौतूकता है। बेशक, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ड्रेस को लेकर शौकीन माने जाते हैं। मगर सीएम विष्णुदेव साय भी पीछे नहीं। उनके यूनिक कलर वाले जैकेट पर नजर ठहर जाती है। बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर जैसे पहनावे को लेकर बेफिक्र रहने वाले विधायक भी सदन में टाइडी नजर आ रहे हैं। दरअसल, इस बार बड़ी संख्या में युवा विधायक चुन कर आए हैं। युवाओं में ड्रेस सेंस को लेकर एवरनेस रहता ही है। कई युवा विधायकों के चमक-धमक को देखकर लगता है कि सत्र के लिए ड्रेस की खास तैयारी की है। जाहिर है, इससे सदन का नजारा खुशगवार होगा ही।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">महिला विधायकों का प्रदर्शन</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विधानसभा में इस बार 19 महिला विधायक पहुंची हैं। इनमें 8 बीजेपी की और 11 कांग्रेस की। पहले के विधानसभाओं से उलट महिला विधायक इस बार अच्छा परफर्म कर रही हैं। सवाल पूछने के ढंग से लगता है कि होम वर्क बढ़ियां किया है। भावना बोथरा, संगीता सिनहा, शेषराज हरबंश, चतुरी नंद जैसी विधायकों के सवालों से मंत्री किंचित परेशानी भी फिल कर रहे हैं। खासकर, सराईपाली अनुसूचित सीट से प्रतिनिधित्व करने वाली चतुरी नंद की प्रतिभा की स्पीकर रमन सिंह ने तारीफ की। उन्होंने कहा कि बाकी विधायकों को भी ऐसा प्रदर्शन करना चाहिए। शिक्षिका से विधायक बनीं चतुरी ने 15 फरवरी के प्रश्नकाल में पुलिसकर्मियों के वेतन-भत्ते से संबंधित ऐसा सवाल पूछा कि विजय शर्मा जैसे मुखर और दबंग गृह मंत्री को जवाब देने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। चतुरी के पूरक सवाल ऐसे थे कि रमन सिंह को उन्हें 20 मिनट देना पड़ा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कलेक्टर की सतर्कता</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एक युवा कलेक्टर कैरियर को लेकर इतने सजग और सतर्क हैं कि कमरे में कोई महिला अधिकारी, कर्मचारी या मुलाकाती आ गई तो अर्दली दरवाजा खोल देता है। अर्दली को इसके लिए स्पष्ट निर्देष दिए गए हैं। दरअसल, वह जिला ऐसा है कि अफसर अगर बच कर निकल गए तो ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। एक कलेक्टर वहां दुष्कर्म के केस में फंस चुके हैं। अब कोई लाख दुहाई देता रहे कि आम सहमति का मामला था मगर पुलिस में जो शिकायत है, कानूनन वही मान्य किया जाता है। इस चक्कर में उनका प्रमोशन रुक गया। केस चल रहा सो अलग।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गूगल की पत्रकारिता</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर के कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ला गूगल पत्रकारिता का ऐसे शिकार हुए हैं कि वे मोबाइल की घंटी ने उनका चैन छिन लिया है। दरअसल, राजेंद्र के ही हमनाम रीवा से विधायक हैं और एमपी के डिप्टी सीएम। एक अंग्रेजी वेबसाइट ने डिप्टी सीएम का प्रोफाइल किया और उसमें मोबाइल नंबर दे डाला बिलसपुरिया राजेंद्र शुक्ला का। हेडिंग भी नाम और मोबाइल नंबर के साथ। गूगल ने इस खबर को पिक किया और इसका नतीजा यह हुआ कि डिप्टी सीएम समझ मध्यप्रदेश से लोग धड़ाधड़ फोन लगा रहे हैं बिलासपुर वाले राजेंद्र को। राजेंद्र 2018 का विस चुनाव जोगी कांग्रेस के चलते जीतते-जीतते हार गए थे। और इस बार टिकिट नहीं मिली। चलिये, राजेंद्र यहां विधायक, मंत्री नहीं बने, गूगल ने उन्हें सीधे डिप्टी सीएम बना दिया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. सूरजपुर के आईएएस एसडीएम को डेढ़ महीने के भीतर सीधे सुकमा क्यों भेज दिया गया?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. क्या ये सही है कि लोकसभा की 11 में से आठ सीटों पर बीजेपी नए चेहरों को उतारेगी?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEY3I2Ak-lX5-Nm81sp2ITkmuOdd58wvCv_tc9dJR8S7cr-oUekFdfvO7a6JaY-BUJNuAzEBllmyzFbOdv9qoBKR4iEnQip-GY778JRMvIwhsYGxhBcmlfJ49loOYDzDFvdQOfnuBTYqICHrhEAWoDXoS41ylOumIBAFVTUpak8rnYa7uzkzEagu0qyk8/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEY3I2Ak-lX5-Nm81sp2ITkmuOdd58wvCv_tc9dJR8S7cr-oUekFdfvO7a6JaY-BUJNuAzEBllmyzFbOdv9qoBKR4iEnQip-GY778JRMvIwhsYGxhBcmlfJ49loOYDzDFvdQOfnuBTYqICHrhEAWoDXoS41ylOumIBAFVTUpak8rnYa7uzkzEagu0qyk8/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-55604359714759018142024-02-11T00:16:00.000-08:002024-02-11T00:16:21.429-08:00Chhattisgrah Tarkash 2024: फिल्म अंधा कानून और पीएससी<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 11 फरवरी 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">फिल्म अंधा कानून और पीएससी</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">80</span> के दशक में अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म आई थी अंधा कानून। इस फिल्म के नायक अमिताभ को देश के सिस्टम पर भरोसा नहीं रहता और वे अपने हिसाब से विरोधियों से निबटते हैं। इस पिक्चर में उस समय का एक बेहद हिट गाना भी था, ये अंधा कानून है...।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब</span>हरहाल, बात छत्तीसगढ़ पीएससी की। वर्षा डोंगरे की लंबी लड़ाई के बाद बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए पीएससी 2003 परीक्षा परिणाम को निरस्त कर दिया था। और नए सिरे से स्केलिंग कर रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया था। मगर क्या करें...इस देश में आरोपियों के हाथ भी लंबे हो गए हैं। काली कमाई वाले अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में करोड़ी वकील को खड़ा कर स्टे हासिल कर लिया। जबकि, ईओडब्लू की जांच में दस्तावेजी प्रमाण मिले थे कि किस तरह पीएससी ने खेला किया। आरटीआई में पीएससी ने खुद जो जानकारियों दी, उसके बाद कुछ कहने के लिए बच नहीं जाता। बावजूद इसके, 2003 पीएससी के अफसरों को सर्विस करते करीब 18 साल हो गए हैं। जब तक स्टे हटेगा या फैसला आएगा, तब तक लाखों, करोड़ों का वारा-न्यारा कर सभी अधिकारी रिटायर हो चुके होंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अ</span>ब बात 2021 और 2022 पीएससी की। सीएम विष्णुदेव साय ने बड़ा स्टैंड लेते हुए सीबीआई जांच का ऐलान किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हमारे बच्चों के कैरियर से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम की मंशा नेक हैं। तभी सीबीआई जांच की घोषणा हुई। मगर सूबे के युवाओं को पीएससी 2003 बार-बार याद आ जा रहा। जो लोग बेटे-बेटी, बेटी-दामाद को डिप्टी कलेक्टर बनाने एक-एक खोखा दे सकते हैं, समझा जा सकता है...ऐसे बड़े लोगों के हाथ कितने बड़े होंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंत्रियों को मौका</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">स्टेट में काम करने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सीधे मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होते हैं। सीआर से लेकर ट्रांसफर, पोस्टिंग, डीई, कार्रवाई...सब सीएम लेवल पर होता है। मंत्रियों का इसमें कोई रोल नहीं होता। इसके अलावा कलेक्टर कांफ्रेंस हो या एसपी, आईजी कांफ्रेंस... मुख्यमंत्री ही इसे मलेते हैं। मगर अपने सीएम विष्णुदेव साय मंत्रियों को काम करने और दिखाने का भरपूर मौका दे रहे हैं। उनकी सरकार की पहली एसपी, आईजी कांफें्रस 10 फरवरी को रायपुर में हुई। मुख्यमंत्री इसमें पहुंचे और शुरूआती एड्रेस कर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से जशपुर रवाना हो गए। उनकी जगह गृह मंत्री विजय शर्मा एसपी, आईजी साहबों की क्लास लिए। वाकई, विजय के लिए बड़ा दिन रहा। क्योंकि, किसी राज्य के गृह मंत्री को यह मौका नहीं मिलता कि वो ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों की क्लास ले। विजय तेज और दबंग तो हैं ही, लगता है सरकार से उन्हें पावर भी भरपूर मिल रहा है। वरना, कोई सीएम शीर्ष अफसरों की लगाम मंत्रियों को नहीं सौंपता।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">उलझन में सिस्टम?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">अभी तक राजभवन में सिकरेट्री हो या फिर एडीसी, वहां से सभी ठीकठाक पोस्टिंग लेकर ही निकलते हैं। सिकरेट्री में आईसीपी केसरी पीडब्लूडी सिकरेट्री बनकर राजभवन से मंत्रालय आए थे तो सुशील त्रिवेदी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए गए थे। पीसी दलेई से लेकर जवाहर श्रीवास्तव, एसके जायसवाल सभी को रिटायर होने के बाद भी कोई-न-कोई पोस्टिंग मिली थी। इस समय अमृत खलको राजभवन में सिकरेट्री हैं। उन्होंने राज्य सूचना आयोग में बतौर सिकरेट्री के लिए अप्लाई किया है। खलको फिलवक्त संविदा में राजभवन में पोस्टेड है। पीएससी 2021 की परीक्षा में उनका बेटा और बेटी दोनों डिप्टी कलेक्टर में सलेक्ट हो गए। जाहिर है, इसको लेकर काफी बवाल मचा था। पीएससी स्कैम को लेकर विष्णुदेव सरकार अब सख्ती के मूड में है। सीबीआई जांच की घोषणा भी हो गई है। ऐसे में, हो सकता है खलको को राजभवन से खाली हाथ निकलना पड़े।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कलेक्टरों का चेक और सूटकेस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">नई सरकार ने स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल योजना को समाप्त कर कलेक्टरों की प्रबंध समिति को भंग कर दिया। बता दें, कलेक्टरों की ये प्रबंध समिति नहीं, पैसा निकासी समिति थी। सरकार ने कलेक्टरों को डीएमएफ से इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा सौंपा और कलेक्टरों ने दोनों हाथांं से डीएमएफ उड़ाने का माध्यम बना लिया। कई गुना रेट पर फनीर्चर से लेकर ब्लैक बोर्ड, प्रोजेक्टर जैसे समान खरीद डाले। चूकि डीएमएफ के मालिक कलेक्टर होते हैं, सो उनसे कोई पूछ नहीं सकता कि वे इस राशि को किस मद में खर्च कर रहे हैं। इससे हुआ यह कि जिन स्कूलों में बिजली नहीं, वहां पांच गुने रेट पर टीवी और प्रोजेक्टर, इलेक्ट्रानिक ब्लैक बोर्ड खरीदे गए। कलेक्टरों ने जिन शिक्षकों को नोडल अधिकारी बनाया, वे पोस्टिंग में खेला कर दिए। डे़ढ़ लाख से लेकर ढाई लाख तक लेकर ग्रामीण इलाकों के हिंदी टीचरों को शहरों के अंग्रेजी स्कूलों में पोस्टिंग दे दी। शिक्षकों भी लगा कि पैसा लेकर रायपुर में दलालों का चक्कर काटने से अच्छा है, अंग्रेजी स्कूलों में डेपुटेशन लेकर शहर आ जाओ। कुल मिलाकर कलेक्टर्स अंग्रेजी स्कूल को कमाउ पूत बना डाले थे। एक हाथ से डीएमएफ का चेक काटो, और दूसरे हाथ से सप्लायरों से सूटकेस ले लो।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">युवा मंत्री, युवा सिकरेट्री</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">वित्त मंत्री अमर अग्रवाल को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ सरकार का बजट पेश करने वाले सभी मंत्री या सीएम 60 प्लस रहे। छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने तीन बार बजट पेश किया। वे 60 प्लस रहे। इसके बाद तीन बजट पेश करने वाले अमर अग्रवाल अंडर 45 थे। इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 12 और भूपेश बघेल ने पांच बजट पेश किया। इस बार बजट पेश करने वाले ओपी चौधरी न केवल अंडर 45 हैं बल्कि पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंचे हैं। हिन्दी से यूपीएससी क्लियर करने वाले माटी पुत्र ओपी ने खुद से बजट भाषण तैयार किया था। ओपी ने जब लच्छेदार बोलना शुरू किया तो सदन इस युवा मंत्री के भाषण को सिर्फ देखता और सुनता रहा। 1.24 घंटे के संबोधन में कोई टोकाटोकी नहीं। मंत्री के साथ बजट को मूर्तरूप देने वाले फायनेंस सिकरेट्री भी कोई पके बाल वाले नहीं हैं। आईएएस में ओपी से जस्ट जूनियर हैं। 2006 बैच के। दो साल पहले ही सिकरेट्री बने हैं। वरना, पहले एसीएस या पीएस लेवल के अफसर ही फायनेंस सिकरेट्री होते थे। डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन ने काफी सालों तक वित्त विभाग संभाला। उसके बाद कुछ दो बार अलरमेल मंगई डी वित्त सचिव रहीं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">प्रेशर में नहीं सरकार</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">89 अफसरों की पहली प्रशासनिक सर्जरी करने के बाद कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया था कि बड़ी लिस्ट निकालकर सरकार ने कुछ ब्लंडर कर दिया। मीडिया में खबरें भी वायरल कराई गई कि पीएमओ तक में शिकायत हो गई है...अब खैर नहीं। मगर सरकार गीदड़भभकी से प्रेशर में नहीं आई। प्रशासनिक लिस्ट में 19 जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर किया गया था। पुलिस की लिस्ट में भी कम नहीं हुआ। चार रेंज के आईजी हटाए गए तो 25 जिलों के एसपी बदल दिए गए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">रणछोड़दास एसपी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एसपी की लिस्ट देर से आई मगर ठीकठाक रही। सरकार ने मेरिट को वेटेज देते हुए पिछली सरकार में कुछ अच्छे पुलिस अधीक्षकों को फिर से कंटीन्यू किया करने से परहेज नहीं किया। कुल मिलाकर अधिकांश बड़े जिलों में इस बार रिजल्ट देने वाले तेज-तर्रार अफसरों को बिठाया गया है। मगर मजबूरी में ही सही...एक रणछोड़दास अफसर को जिला मिल गया। 12 जुलाई 2009 को मोहला मानपुर में हुई नक्सली हिंसा में राजनांदगांव के एसपी विनोद चौबे शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद इस अफसर को मोहला मानपुर का एसडीओपी बनाया गया। मगर पुलिस अधिकारी ने नक्सलियों की खौफ के डर से वहां ज्वाईन करने से साफ इंकार कर दिया था। तब रमन सरकार ने बस्तरिया आईपीएस सरयू राम सलाम को वहां भेजा। चलिए, ठीक है...डेमोक्रेसी में वर्गवाद की वजह से कई बार ऐसे फैसले सरकार को लेने पड़ते हैं। मगर विडंबना यह है कि सलाम मोहला मानपुर में ढाई साल रहे, जब उस इलाके के नाम से पुलिस वाले कांप जाते थे। आखिर, पहली बार नक्सली हिंसा में देश में कोई एसपी शहीद हुआ था। उससे पहिले सलाम बस्तर में भी बारुदी विस्फोट में बाल-बाल बचे थे। मगर इस अफसर को अभी तक एक बार भी एसपी बनने का मौका नहीं मिला।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">राजस्व बोर्ड चेयरमैन</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ब्यूरोक्रेसी में राजस्व बोर्ड को शंटिंग स्टेशन माना जाता है। यानी लूपलाईन वाली पोस्टिंग। सरकार जिस अफसर से नाराज होती है, उसे राजस्व बोर्ड का चेयरमैन बना दिया जाता है। चूकि यह चीफ सिकरेट्री रैंक की कुर्सी है, इसलिए किसी सीएस को हटाना होता है या फिर इस रैंक के किसी अफसर को मंत्रालय से हटाना होता है या किसी बैच का अफसर अगर चीफ सिकरेट्री बन गया तो उस बैच के दीगर अफसर को राजस्व बोर्ड एडजस्ट किया जाता है। मसलन, 87 बैच के आईएएस आरपी मंडल चीफ सिकरेट्री बनें तो सीके खेतान को राजस्व बोर्ड भेज दिया गया। जाहिर है, पिछली सरकार खेतान से किसी बात से नाराज थी, इसलिए बैचवाइज सीनियर होने के बाद भी उन्हें सीएस बनने का मौका नहीं मिला। मंडल के बाद अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री बने। अब लगता है, अमिताभ अगले साल मई में रिटायर होंगे, तो कोई बड़ा अफसर राजस्व बोर्ड जाएगा। अमिताभ के बाद अगर सुब्रत सीएस बन गए तो ठीक वरना, 94 बैच का कोई आईएएस जाएगा राजस्व बोर्ड। क्योंकि, इस बैच में कई चार आईएएस हैं। और सीएस एक ही बनेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सीएस का मिथक</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ब्यूरोक्रेसी में मिथक है कि जो अफसर प्रशासन अकादमी में पोस्टिंग पाता है, वह चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाता। बीकेएस रे से लेकर सरजियस मिंज, डीएस मिश्रा तक कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो ठीकठाक अफसर होने के बाद भी चीफ सिकरेट्री की कुर्सी तक नहीं पहुंंच पाए। और जो सीएस बने हैं, वे कभी प्रशासन अकादमी में नहीं रहे। ऐसे में, एसीएस सुब्रत साहू को कुछ पूजा-पाठ करा लेना चाहिए। क्योंकि, वे इस समय प्रशासन अकादमी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. इन चर्चाओं में कितनी सत्यता है कि सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड सीनियर आईएएस अमित अग्रवाल क्या छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों में अभी सबसे प्रभावशाली कौन हैं?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9mCO-DGTbdSWcHJtd8nhFqLSfzzncC9sI3FhMMM_f6logE7yML2MD_Du2MK7Qy8bYfDlGX01Dw7AYa8urjwxSWTlkZ2VYSzIJYivnW4WpXjs065-w3V5h6bdQ1gg6qCIy0smKf98-hxhUyiw5vLfxtJxuHG-G_aqxWuGFgInX6hNMw6Wx5f-WEKPLNj0/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9mCO-DGTbdSWcHJtd8nhFqLSfzzncC9sI3FhMMM_f6logE7yML2MD_Du2MK7Qy8bYfDlGX01Dw7AYa8urjwxSWTlkZ2VYSzIJYivnW4WpXjs065-w3V5h6bdQ1gg6qCIy0smKf98-hxhUyiw5vLfxtJxuHG-G_aqxWuGFgInX6hNMw6Wx5f-WEKPLNj0/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-1446473339438092812024-02-03T22:19:00.000-08:002024-02-03T22:19:55.591-08:00Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024: मंत्रियों के खटराल पीए<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंत्रियों के खटराल पीए</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों का पीए बनाने में बड़ी कड़ाई बरती जा रही है। 360 डिग्री से टेस्टिंग के बाद ही मंत्रियों के पीए की नियुक्ति हो पा रही। मगर छत्तीसगढ़ में जीएडी ऐसे खटराल डिप्टी कलेक्टरों को पीए अपाइंट कर रहा है कि पूछिए मत! छत्तीसगढ़ में एक ज्वाइंट कलेक्टर का मंत्री का विशेष सहायक बनाया गया है, जिसने एसडीएम रहते एनटीपीसी को 500 करोड़ रुपए की चपत लगाई थी। वाकया 2014 का है...रायगढ़ के पास लारा में एनटीपीसी के प्लांट निर्माण को देखते तत्कालीन एसडीएम ने जमीनों की खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। मगर उनके ट्रांसफर के बाद आए इस एसडीएम ने चुपके से प्रतिबंध हटाकर बड़ा खेला कर डाला। भूअर्जन में जमीन के टुकड़ों का खेल खेलते हुए 300 प्लाट के 1300 टुकड़े कर दिए गए। दरअसल, छोटे टुकड़ों का मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। एनटीपीसी के अफसरों ने कलेक्टर से इसकी शिकायत की...छोटे टुकड़ों के खेल की वजह से उन्हें 500 करोड़ अधिक मुआवजा देना पड़ा है। मुकेश बंसल उस समय कलेक्टर रायगढ़ थे। उन्होंने पुलिस में न केवल नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी बल्कि 1300 पेज की जांच रिपोर्ट भेज सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह किया था। उस समय की बीजेपी सरकार ने एसडीएम को न केवल सस्पेंड किया बल्कि विभागीय जांच भी बिठा दी थी। एसडीएम के खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। मगर बाद में हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई। बहरहाल, डीई अभी चल रही है। इस वजह से अफसर का प्रमोशन नहीं हो पाया। दाग इतना बड़ा है कि आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। अब ऐसे अफसरों को मंत्रियों का विशेष सहायक बनाया जाएगा तो आप समझ सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की मुहिम का क्या होगा। वैसे ये तो एक बानगी है...अधिकांश मंत्रियों के पीए किसी-न-किसी मामले में चर्चित रहे हैं। अधिकांश मंत्री अपने-अपने हिसाब से पीए की नियुक्ति कराए जा रहे हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">एक करोड़ की माशूका</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ऑल इंडिया सर्विस के डायरेक्टर लेवल के एक अफसर की इन दिनों राजधानी रायपुर में बड़ी चर्चाएं हैं। वे जब जिले में पोस्टेड रहे तो पहली के होते दूसरी शादी रचा लिए थे। और अब राजधानी में डायरेक्टर बने तो तीसरी के चक्कर में फंस गए। दरअसल, विभागीय कामकाज के सिलसिले में उन्हें एक जिले में दो चार बार जाना हुआ। वहां अपने ही विभाग की एक मुलाजिम से दिल लगा बैठे। दोनों पहले खूब मिले-जुले, घूमे-फिरे। किन्तु कुछ दिन बाद डायरेक्टर साहब लगे हाथ खींचने। फिर माशूका ने अपना रंग दिखाया...मय सबूत अंतरंग क्षणों के वीडियो के साथ पुलिस में कंप्लेन करने की धमकी दे डाली। डायरेक्टर लगे हाथ-पैर जोड़ने। युवती भी निचले क्रम की अफसर थीं, उसे पता था कि साहब का क्या लेवल है, उसने उसी के अनुरूप डील पक्का किया। चार किश्तों में एक करोड़। समझौता इस बात पर हुआ कि पेमेंट कंप्लीट होने के बाद ओरिजनल वीडियो सुपुर्द कर देगी। मगर पैसा मिलने के बाद उसने गच्चा दे दिया। माशूका का कहना है, विश्वास रखो, मैं अब कुछ नहीं करूंगी। लेकिन डायरेक्टर साब को डर सता रहा, कहीं मैं एटीएम न बन जाऊं। लंगोट के ढीले अफसरों के साथ ऐसा ही होता है। वरना, मालूम है उस जिले में एक कलेक्टर साब इसी तरह के शौक में निबट गए...बावजूद डायरेक्टर ने लंगोट टाईट करके नहीं रखा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">फायदे में डिप्टी सीएम</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सरकार ने जिलों के प्रभारी मंत्रियों का ऐलान कर दिया है। चूकि जिलों की संख्या अब 33 हो गई है सो अधिकांश मंत्रियों के हिस्से में तीन-तीन जिले आए हैं। जिलों के बंटवारे में प्रमुख पैरामीटर यह था कि गृह जिला नहीं होना चाहिए। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है...आमतौर पर ऐसा ही होता आया है। मगर डिप्टी सीएम अरुण साव को इसमें अपवाद बोल सकते हैं। उन्हें तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है, उनमें एक बिलासपुर भी है। हालांकि, अरुण का गृह जिला मुंगेली है। उनका विधानसभा इलाका लोरमी इसी मुंगेली में आता है। मगर अब गृह जिला नाम का रह गया है। प्रारंभ से उनका कार्य और निवास क्षेत्र बिलासपुर रहा है। बिलासपुर में वे जनता दरबार भी लगाते हैं। ऐसे में, बिलासपुर के प्रभारी मंत्री बनने का मतलब समझा जा सकता है। कुल मिलाकर मंत्रियों में अरुण साव नफे में रहे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बेशर्म सिस्टम</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार कितनी गहरी जड़े जमा चुका है कि सत्ताधारी पार्टी का नेता हो या पूर्व विधायक इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात रायपुर की विधायक रह चुकी रजनी ताई उपासने की। रजनी ताई का पूरा परिवार जनसंघ के समय से पार्टी के लिए समर्पित रहा है। उनके दो बेटे इमरजेंसी के दौरान रायपुर जेल में बंद रहे। बड़ा बेटा जगदीश उपासने देश की प्रतिष्ठित न्यूज मैगजीन के सालों तक संपादक रहे हैं। बावजूद इसके उनका परिवार को भी दो-चार होना पड़ रहा है। असल में, रजनी ताई राजधानी की एक सोसाइटी का मकान बेचना चाहती हैं। सोसाइटी चूकि भंग है इसलिए वहां से एनओसी का कोई तुक नहीं। मगर सहकारिता विभाग की एक महिला अफसर को एनओसी देने के लिए चाहिए 35 हजार। महिला अफसर को बताया गया...रजनी ताई सत्ताधारी पार्टी की पूर्व विधायक हैं। महिला अफसर ने कहा, कोई नहीं, पैसा देना पड़ेगा। जगदीश उपासने इस स्तंभकार से बात करते हुए हतप्रभ थे। बोले, छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल ये हो गया है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अगला मुख्य सचिव?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में वैसे तो अभी एक साल से ज्यादा वक्त बचा है। अगले साल मई तक उनकी सर्विस है। लेकिन ब्यूरोकेसी में उनके बाद यानी भावी प्रशासनिक मुखिया की चर्चाएं शुरू हो गई है। अमिताभ के बाद सीनियरटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। रेणु के बारे में कहा जाता है वे अपनी भी नहीं सुनती। ऐसे में सीएस जैसा अहम दायित्व देना किसी सरकार के लिए संभव नहीं। बचे सुब्रत तो एसीएस टू सीएम होने की वजह से उन पर पिछली सरकार का लेवल लग चुका है। अब भगवान जगन्नाथ का कोई चमत्कार हो गया तो बात अलग है। सुब्रत के बाद 93 बैच के अमित अग्रवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। अमित लंबे समय से दिल्ली में हैं। वैसे भी, अमित की सवारी कर पाना संभव नहीं। ऐसे में पूरी संभावनाएं 1994 बैच के दो अफसरों पर आकर ठहर जाती है। खासकर मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा। इस बैच के विकास शील एडीबीआई के डायरेक्टर बनकर मनीला चले गए हैं और उनकी बैचमेट पत्नी बदली परिस्थिति में दिल्ली डेपुटेशन में ही रहना बेहतर समझेंगी। ऐसे में यह निश्चित है कि मनोज और ऋचा में से ही कोई छत्तीसगढ़ का अगला चीफ सेक्रेटरी बनेगा। यह कब होगा? लोकसभा चुनाव के बाद या अगले साल मई में? यह सीएम विष्णुदेव साय बता पाएंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मुझे ओपी कहिये</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">जूनियर जब बॉस बन जाए तो उस दर्द और पीड़ा को समझा जा सकता है। ब्यूरोक्रेसी में 2005 बैच से उपर के लगभग सभी अफसरों को इसी स्थिति से साबका पड़ रहा है। दरअसल, 2005 बैच के आईएएस रहे ओपी चौधरी अब फायनेंस मिनिस्टर बन गए हैं। अक्टूबर 2018 में ओपी जब रायपुर जैसे बड़े जिले की कलेक्टरी छोड़ चुनाव में उतरे और पहली बॉल पर अपना विकेट गंवा बैठे तो ब्यूरोक्रेसी में यह राय व्यक्त करने वालों की कमी नहीं थी कि ओपी ने खामोख्वाह कुल्हाड़ी पर पैर मार बैठा...सरकार बदल गई तो क्या हुआ, धीरे से ठीकठाक पोस्टिंग भी मिल जाती। मगर अब बड़े-बड़े नौकरशाहों को ओपी सर कहना पड़ रहा है, सम्मान में खड़ा होने की मजबूरी भी। जाहिर है, उन्हें पीड़ा तो होती होगी। हालांकि, भारी भरकम विभागों के मंत्री बनने के बाद भी ओपी सीनियर अफसरों को ऐसा अहसास नहीं होने दे रहे। हाल में एक महिला सिकरेटी को उन्होंने फोन लगावाया, उधर से आवाज आई...नमस्कार सर मैं फलां...। ओपी ने विनम्रता से कहा, मैडम! आप मुझे ओपी ही कहिये।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">फास्ट पोस्टिंग</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">आईपीएस राजेश मिश्रा डीजीपी नहीं बन पाए मगर संविदा पोस्टिंग में उन्हें ज्यादा वेट नहीं करना पड़ा। 31 जनवरी को रिटायर हुए और दो फरवरी को उन्हें संविदा नियुक्ति मिल गई। याने 48 घंटे के भीतर। और इसके घंटे भर के भीतर जेल डीजी का दायित्व भी। उनसे पहले संजय पिल्ले को रिटायरमेंट के बाद करीब महीने भर तक वेट करना पड़ा था, तब जाकर फिर डीजी जेल बन पाए थे। हालांकि, 15 साल वाली बीजेपी सरकार भी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए वेट कराती थी। करीब महीने भर तक। उस सरकार में सबसे अच्छी पोस्टिंग होल्ड करने वाले ठाकुर राम सिंह को भी रिटायरमेंट के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए एक महीना प्रतीक्षा करना पड़ा था। विवेक ढांड और एमके राउत अवश्य अपवाद रहे। ढांड का वीआरएस एक्सेप्ट के आदेश के साथ ही रेरा चेयरमेन की पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को भी करीब 10 दिन लगा था। सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड आरपी मंडल के नाम दर्ज है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के 15 मिनट के भीतर उनका एनआरडीए चेयरमेन का आदेश जारी हो गया था। ढांड और राउत का रिकार्ड इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि उन दोनों पदों के लिए सलेक्शन का अपना प्रॉसेज है। दोनों का प्रॉसेज पहले ही पूरा कर लिया गया था। पोस्टिंग के लिए उचित समय का इंतजार किया जा रहा था। इसलिए, सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड मंडल के नाम रहेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. क्या ये सही है कि एसीएस मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा में से कोई एक मुख्यमंत्री विष्णुदेव का एसीएस बनेगा और दूसरा अगला चीफ सिकरेट्री?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्तर की घोषणाएं मंत्री कैसे कर रहे हैं?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp3weLyFCJRc33bcGOiwgiJf9TBHwyE0SQredcgAE2mQ6olxXi_49rqkfnOq2LdpFvxMi_35aB8dK9DKcqySdZ48RKMei5AcWJJwQUdApxUbVAlNHkzbZO5_GlcsFVf-YV80Jp3xxXHlmg_RA-MAChdd8nXh7ZKqK5HzelZguIdYkYoXvPsCBHMu4Gdgg/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp3weLyFCJRc33bcGOiwgiJf9TBHwyE0SQredcgAE2mQ6olxXi_49rqkfnOq2LdpFvxMi_35aB8dK9DKcqySdZ48RKMei5AcWJJwQUdApxUbVAlNHkzbZO5_GlcsFVf-YV80Jp3xxXHlmg_RA-MAChdd8nXh7ZKqK5HzelZguIdYkYoXvPsCBHMu4Gdgg/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-59523246355828654072024-01-27T23:10:00.000-08:002024-01-27T23:10:02.667-08:00Chhattisgarh Tarkash: अफसरों का ड्रेस कोड<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 28 जनवरी 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अफसरों का ड्रेस कोड</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राजस्थान के चीफ सिकरेट्री ड्रेस को लेकर बेहद सख्त हैं। एक बार जिंस पहनकर मीटिंग में आने वाले तीन अफसरों को उन्होंने पैंट बदलने घर भेज दिया था। इस वाकये से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की याद आ गई। सरकार बनने के दो ही महीने हुए थे कि पुराने मंत्रालय की एक बैठक में प्रमुख सचिव स्तर के एक आईएएस फुल टीशर्ट नुमा कुछ पहनकर आ गए थे। जोगी जी इस पर बेहद नाराज हुए। उन्होंने उस अफसर को मीटिंग से उठाया तो नहीं मगर यह कहते हुए क्लास जमकर ली थी कि ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों को पहनावे का ध्यान रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से ठीक इसका उलट हो रहा है। मुख्यमंत्री की बैठकों में कोई हाफ शर्ट पहनकर पहुंच जाता है तो कोई आस्तिन चढ़ाकर। पहले के अफसर ड्रेस को लेकर बड़ा संजीदा रहते थे। खासकर सीएम की जिस दिन मीटिंग है, उस दिन हाफ शर्ट बिल्कुल नहीं। पहनावा भी गरिमापूर्ण। एक तरह से ये सिस्टम और सीएम का सम्मान होता है। राजभवन के कार्यक्रमों में भी आज कल लोग ड्रेस का ध्यान नहीं रख रहे। चीफ सिकरेट्री को इसके लिए अपने अधिकारियों को ताकीद करना चाहिए...कम-से-कम सीएम की मीटिंग और राजभवन के कार्यक्रमों में ड्रेस की मर्यादा का ध्यान रखा जाए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मीटिंग से GO...GO</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">चूकि बात मीटिंग से अफसरों को उठाने और अजीत जोगी की निकली है तो एक पुराना वाकया याद हो आया। 2001 की बात होगी। यही धान खरीदी का कोई समय था। नवंबर या दिसंबर का। तब बारदाना का शार्टेज हो गया था, किसान हलाकान थे। जोगी जी ने पुराने मंत्रालय में फूड, नॉन, और मार्कफेड के अफसरों की बैठक बुलाई। अब जोगी जी जोगी जी थे, उन्हें कोई मिसगाइड कहां कर सकता था। अफसरों ने यह कहते हुए उन्हें भटकाने की कोशिश की कोलकाता की कंपनी बारदाना भेज नहीं रही है...इस पर वे बिगड़ उठे। उन्होंने दो आईएएस को भरी मीटिंग से उठा दिया। बोले...अभी कोलकाता जाओ। अफसर इसे समझ नहीं पाए। लगा कि जाने को बोल रहे तो कल चल देंगे। पुराने लोगों को याद होगा, जोगीजी को जब गुस्सा आता था तो वे कांपने लगते थे। ऐसा ही कुछ उस मीटिंग में हुआ। बोले...उठ क्यों नहीं रहे हो, चलो अभी जाओ...गो...गो। जोगीजी के चेहरे की भाव भंगिमा देख दोनों अफसर तुरंत मीटिंग छोड़ कोलकाता भागे। उस समय फ्लाइट नहीं थी और न सरकार के पास इतने पैसे होते थे कि अफसर यहां से दिल्ली जाए और वहां से फिर कोलकाता। रामचंद सिंहदेव जैसे सख्त वित्त मंत्री थे। किसी सप्लायर या ठेकेदार से टिकिट करा लें, ऐसा भी उस समय नहीं होता था। लिहाजा, दोनों आईएएस अफसरों ने शाम की मुंबई-हावड़ा मेल में इमरजेंसी कोटे से दो बर्थ कराया और कोलकाता रवाना हुए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">वक्त की दोहरी मार</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ब्यूरोक्रेसी में हमेशा दिन एक बराबर नहीं होते। वैसे भी नौकरशाही में माना जाता है, आईएएस की लगभग 30 साल की सर्विस में 20 साल कमाल के होते हैं तो पांच साल मीडियम और पांच साल मुश्किल के। छत्तीसगढ़ में भी सरकार बदलने के बाद कुछ अफसरों का अच्छा नहीं चल रहा। खासकर, सात आईएएस अधिकारियों पर वक्त की दोहरी मार बोल सकते हैं। कुछ कलेक्टरों को चुनाव आयोग ने आचार संहिता लगते ही हटा दिया था, और कुछ को नई सरकार ने। इसके बाद सरकार ने सात अफसरों को मिड टर्म ट्रेनिंग के लिए महीने भर के लिए मसूरी भेज दिया। अब बेचारे छत्तीसगढ़ के आईएएस, मसूरी के एक डिग्री टेम्परेचर में कैसे रह रहे होंगे, आप समझ सकते हैं। रात में हीटर ऑन करते हैं तो बेचैनी होती है और न जलाएं तो डबल रजाई भी असर नहीं कर रहा। उसमें भी सुबह उठ जाना...मुंह से भाप निकलते कभी देखा नहीं। सात में एक माताजी भी हैं। सातों आईएएस देवों के देव विष्णुदेव से प्रार्थना कर रहे...भगवान तकलीफ दे रहे हो तो मसूरी से लौटने के बाद कुछ काम धाम भी दे देना।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">छुट्टियों में याद रखना</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पिछली सरकार ने डीए, एचआर देने में भले ही विलंब किया मगर छुट्टियां इतनी दे डाली कि छत्तीसगढ़ के कर्मचारी मौज काट रहे हैं। साल में कई हफ्ते ऐसे निकल जा रहे कि दो-एक दिन की अर्जी लगा दिए तो दसेक दिन का सैर-सपाटा। हालांकि, एक पहलू यह भी है कि कर्मचारियों, अधिकारियों के घरों में पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़े हैं। पहले हफ्ता में एकाध दिन छुट्टी होती थी तो उसका ब़ड़ा चार्म होता था। अब तीन-तीन, चार-चार दिन घर में रहेंगे तो दिक्कतें तो होगी ही। बहरहाल, तीज-त्यौहारों की छुट्टियां इतनी ज्यादा हो गई है कि छुट्टी घोषित करने वाला जीएडी भी कंफ्यूज्ड हो जा रहा। पिछली सरकार ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया हुआ है, जीएडी ने इसी दिन नागपंचमी का लोकल अवकाश दे दिया। जीएडी भी आखिर क्या करें...इतनी छुट्टियों से भ्रमित होना स्वाभाविक है। फिर भी, छुट्टियों को लेकर शिक्षक और कर्मचारी पिछली सरकार को जरूर याद रखेंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मगर वोट नहीं...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक रिटायर चीफ सिकरेट्री शिक्षाकर्मियों का संविलियन न करने पर अड़ गए थे। जबकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह इस पक्ष में थे कि पुराना वादा है, इसे पूरा कर दिया जाए। फिर सवाल चौथी बार सरकार बनाने का भी था। रिटायर सीएस तब एक कमीशन में पोस्टेड थे और अघोषित तौर पर सरकार के सलाहकार का काम भी देख रहे थे। वे इस बात से काफी नाराज थे कि शिक्षाकर्मी मर्यादा को ताक पर रखकर रायपुर के बूढ़ापारा तालाब में अधनंगे प्रर्दशन कर दिए थे। उनका ये भी तर्क था कि बिना किसी भर्ती प्रक्रिया के लोकल लेवल पर चुने गए इन शिक्षकों से छत्तीसगढ़ का ह्यूमन रिसोर्स चरमरा जाएगा। मगर रमन सिंह उनकी दलीलों को न मानते हुए शिक्षाकर्मियों को रेगुलर करने का फैसला ले लिया। बावजूद इसके शिक्षकों के वोट एकतरफा कांग्रेस को पड़े। उसके बाद आई कांग्रेस सरकार ने रमन सरकार की शर्तो को शिथिल करते हुए सबको एकमुश्त संविलियन कर दिया। इसके बाद छुट्टियों की मौज। फिर भी शिक्षकों और कर्मचारियों का वोट कांग्रेस को नहीं मिला। ऐसे में, पीसी सेठी की चर्चा यहां मौजूं लगता है। मध्यप्रदेश के एक पुराने मुख्यमंत्री थे प्रकाशचंद सेठी...बेहद सख्त और अनुशासन के पक्के...ब्यूरोक्रेसी से लेकर कर्मचारी संगठन उनसे घबराता था। वे अक्सर कहा करते थे, सरकार की प्राथमिकता आम आदमी होना चाहिए, कर्मचारी, अधिकारी नहीं। बाद में वे इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में देश के गृह मंत्री बनाए गए थे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मजबूत आईएएस?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एसीएस फॉरेस्ट मनोज पिंगुआ के पास पहले तीन हैंड थे। सिकरेट्री बसव राजू, स्पेशल सिकरेट्री देवेंद्र भारद्धाज और ज्वाइंट सिकरेट्री पुष्पा साहू। सरकार ने पहले बसव को वहां से सीएम सचिवालय भेजा, फिर देवेंद्र और पुष्पा को भी शिफ्थ कर दिया। वन विभाग में अब वन मैन आर्मी वाली स्थिति है। याने पिंगुआ ही सब कुछ। उनके पास गृह विभाग है और माध्यमिक शिक्षा मंडल के साथ व्यापम चेयरमैन का चार्ज भी। उपर से ठीक परीक्षा के टाईम माशिमं सचिव को खो कर दिया गया। चलिये, पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी हैं...भारत सरकार में काम भी किए हैं। जाहिर है, उनका कंधा मजबूत तो होगा ही।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बड़ी चूक?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">तीन दिन पहले पुराने पुलिस मुख्यालय में सड़क सुरक्षा का कार्यक्रम था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय उसके चीफ गेस्ट थे। बताते हैं, पीएचक्यू के एक बड़े अफसर को इसकी जानकारी नहीं दी गई। वे रुटीन में नए पीएचक्यू पहुंच गए। वहां पता चला कि सीएम साहब ओल्ड पीएचक्यू में आए हुए हैं। वे भागते हुए वहां पहुंचे तब तक काफी लेट हो चुका था। खबर है, उन्होंने अफसरों की जमकर क्लास ली। खैर जो भी है, सिस्टम के लिए ये ठीक नहीं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. इसमें कितनी सत्यता है कि विष्णुदेव सरकार के दो मंत्रियों को पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. क्या ये सही है कि पुराने मंत्री अपने विभागों से खुश नहीं हैं तो कुछ नए मंत्रियों पर सत्ता का अहंकार हॉवी होने लगा है?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4NFE620LRehCn9oqUEbK3L683JCR7FtG-M6nCnpp7-Dv3cfoJY8bEht-F6kAP_bPjG-Dpi92L34trvHdP6T3N0q0XA-CaI1XBrN9WdRC9oBEvRzKIddK80b8wymGs_u7pjF4N8677u5dMjGuCYJr1lJEjf-NZ4NBXEaw4xo5bDGK93wzmvRwrXMVuQHw/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4NFE620LRehCn9oqUEbK3L683JCR7FtG-M6nCnpp7-Dv3cfoJY8bEht-F6kAP_bPjG-Dpi92L34trvHdP6T3N0q0XA-CaI1XBrN9WdRC9oBEvRzKIddK80b8wymGs_u7pjF4N8677u5dMjGuCYJr1lJEjf-NZ4NBXEaw4xo5bDGK93wzmvRwrXMVuQHw/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-70420452004972822852024-01-20T22:46:00.000-08:002024-01-20T22:46:09.096-08:00Chhattisgarh Tarkash: अपमानजनक विदाई<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">Chhattisgarh Tarkash: 21 जनवरी 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अपमानजनक विदाई </span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ राज्य बनने के इन 23 बरसों में र्शीष पदों से दो अफसरों की विदाई बड़ी अपमानजक रही। इनमें पहला है छत्तीसगढ़ के सबसे हाई प्रोफाइल डीजीपी रहे विश्वरंजन की। डीजीपी ओपी राठौर के देहावसान के बाद रमन सरकार ने आईबी में पोस्टेड विश्वरंजन को मनुहार करके लाया था। विश्वरंजन चार साल पुलिस प्रमुख रहे। जुलाई 2007 से जुलाई 2011 तक। इनमें तीन साल उनका एकतरफा जलजला रहा। औरा ऐसा था कि सीएस, एसीएस उनके सामने जाने में हिचकते थे...विधानसभा के अधिकारिक दीर्घा में प्रथम पंक्ति में सीएस के बगल में उनकी कुर्सी सुरक्षित रहती थी। तब के एसीएस होम एनके असवाल उनके लिए कुर्सी छोड़ देते थे। अमन सिंह जैसे ताकतवर ब्यूरोक्रेट्स पुराने मंत्रालय में विश्वरंजन को लिफ्ट तक छोड़ने जाते थे। मगर आखिरी साल में उनका ग्रह-नक्षत्र ऐसा बिगड़ा कि सरकार से दूरियां बढ़ती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए उनकी छुट्टी कर दी। वो भी ऐसे समय जब वे अपनी बेटी से मिलने अहमदाबाद रवाना हुए थे। वे जैसे ही अहमदाबाद एयरपोर्ट पर लैंड किए, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री पी. जाय उम्मेन ने उन्हें फोन किया...सरकार ने आपकी जगह अनिल नवानी को डीजीपी बना दिया है। विश्वरंजन सन्न रह गए। उम्मेन ने तब कुछ लोगों से शेयर किया था...मेरे फोन पर विश्वरंजन कुछ देर तक कुछ बोल नहीं पाए...फिर बोले...ओके और फोन डिसकनेक्ट कर दिए। हालांकि, बाद में पी जॉय उम्मेन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उम्मेन को सीएस बने करीब साढ़े तीन साल हो गए थे। सरकार ने प्रशासनिक कड़ाई के लिए तय कर लिया था कि सुनिल कुमार को सेंट्रल डेपुटेशन से बुलाया जाए। पीएस टू सीएम बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह ने दिल्ली जाकर सुनिल कुमार को इसके लिए तैयार किया। सुनिल छत्तीसगढ़ लौटे तो उन्हें स्कूल शिक्षा दिया गया। उसके दो महीने बाद उम्मेन जब छुट्टी पर केरल गए थे, प्रशासनिक सत्ता पलट हो गया। दिन याद नहीं, मगर पुराने मंत्रालय में शाम पांच, छह बजे का समय होगा। सुनिल कुमार के पास उस समय मैं मौजूद था। इसी बीच बैजेंद्र और अमन आए। दोनों का यकबयक...एक साथ आना खटका...कोई बात अवश्य है। सो, वक्त की नजाकत को समझते दुआ-सलाम के बाद मैं वहां से निकल गया। इसके ठीक आधे घंटे बाद किसी का फोन आया...एसीएस नारायण सिंह को मंत्रालय से हटाकर माध्यमिक शिक्षा मंडल का चेयरमैन बना दिया गया है। जाहिर सी बात थी...सुनिल कुमार के लिए रास्ता बनाया जा रहा था। और नारायण सिंह के आदेश के 15 मिनट बाद पता चला उम्मेन की जगह सुनिल कुमार को सूबे का प्रशासनिक मुखिया बना दिया गया है। याने पी0 जा उम्मेन की विदाई भी सम्मानजनक नहीं रही। हालांकि, उम्मेन को चेयरमैन बिजली कंपनी कंटीन्यू करने कहा गया। मगर वे स्वाभिमान अफसर थे। उन्हांंने सरकार के इस ऑफर को न केवल ठुकरा दिया बल्कि आईएएस से वीआरएस ले लिया। कुल मिलाकर विश्वरंजन और उम्मेन के कैरियर का एंड अच्छा नहीं रहा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पुरुषस्य भाग्यमं...</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में डीजीपी को लेकर अटकलों का दौर जारी है। स्वागत दास से लेकर राजेश मिश्रा, अरुणदेव गौतम और पवनदेव के नामों की चर्चाएं गर्म है। हालांकि, स्वागत दास की भारत सरकार से रिलीव करने की फाइल मूवमेंट में है। मगर जब तक आदेश निकल नहीं जाता, तब तक उम्मीदें खतम नहीं होती। राजेश मिश्रा का तो इसी महीने रिटारमेंट है। अगर उन्हें पोस्टिंग के साथ एक्सटेंशन मिल जाए तो बोनस के तौर पर उन्हें करीब सवा दो साल एक्स्ट्रा मिल जाएगा। इसको ऐसा समझिए कि सरकार अगर उन्हें प्रभारी डीजी बना दें तो प्रॉसेज कंप्लीट होने में बहुत फास्ट हुआ, तब भी दो-एक महीने का टाईम लगेगा। क्योंकि, पूर्णकालिक पोस्टिंग के लिए एमएचए को पेनल भेजा जाएगा। एमएचए फिर यूपीएससी को भेजेगा यूपीएससी डीपीसी के लिए डेट डिसाइड करेगा। यूपीएससी से हरी झंडी मिलने के बाद फिर उसे डेट से दो साल के लिए उनका आदेश निकलेगा। याने इस प्रॉसिजर के लिए राजेश को पहले एक्सटेंशन दिलाना होगा। क्योंकि, उनके पास टाईम अब सिर्फ 9 दिन बच गए हैं। इसलिए उनकी उम्मीदें लगभग नहीं की स्थिति में पहुंच गई है। फिर भी...पुरूषस्य भाग्यम। यूपी के चीफ सिकरेट्री दुर्गाशंकर मिश्रा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारत सरकार ने सिकरेट्री मिश्रा को रिटायरमेंट के दो दिन पहले दो साल का एक्सटेंशन दिया और यूपी सरकार ने प्लानिंग के तहत उन्हें चीफ सिकरेट्री बनाने में एक मिनट भी देर नहीं लगाई। सो, उम्मीद पर पूरी दुनिया टिकी हुई है। स्वागत, राजेश, पवन, गौतम से लेकर प्रदीप गुप्ता तक उम्मीद से होंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">जो होता है, अच्छे के लिए...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">इंटर स्टेट डेपुटेशन पर गए एक आईएएस ऑफिसर ने एक्सटेंशन के लिए बड़ा प्रयास किया कि सरकार से एनओसी मिल जाए। पर ऐसा हुआ नहीं। आखिरकार, चुनाव से छह महीने पहले उन्हें छत्तीसगढ़ लौटना पड़ा। हालांकि, उन्होंने कोशिशें छोड़ी नहीं। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने अपना पीएस बनाने के लिए खुद सरकार को फोन लगाया। मगर फाइल इधर उधर होती तब तक चुनाव का ऐलान हो गया। इसके बाद सरकार बदल गई। आईएएस को अब ऐसी पावरफुल जगह सेक्रेटरी की पोस्टिंग मिल गई है, जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। लॉबिंग से दूर रहने वाले इस अफसर को पिछली बीजेपी सरकार में भी खास पोस्टिंग नहीं मिली थी। चुनाव आयोग के चक्कर में जरूर उन्हें एक बड़े जिले की कलेक्टरी मिल गई थी। बहरहाल, इसे मानकर चलना चाहिए कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">प्रमोशन में पीछे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पिछले साल आश्चर्यजनक तौर पर जनवरी फर्स्ट वीक में आईपीएस अफसरों का प्रमोशन हो गया था। मगर इस बार आईएएस आगे निकल गए। आईएएस में इस बार नीचे से लेकर ऊपर तक, एक साथ सभी का प्रमोशन हो गया। अलबत्ता, आईपीएस का बुरा हाल यह है कि 2011 बैच को सलेक्शन ग्रेड भी नहीं मिला है। जबकि, इसमें डीपीसी का भी झंझट नहीं। इसके अलावा डीआईजी से आईजी और एडीजी से डीजी का भी प्रमोशन होना है। 92 बैच के बेचारे पवन देव और अरुण देव पिछले साल से डीजी प्रमोट होने की बाट जोह रहे हैं। जनवरी 2022 से उनका प्रमोशन ड्यू है। दोनों डीजी पुलिस के दावेदार हैं। अब जरा समझिए, साल भर से ये डीजी बनने टकटकी लगाए बैठे हैं, और कोई पैराशूट डीजीपी बैठ जाएगा, तो इन दोनों पर क्या गुजरेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पत्नी का सहारा</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐसी लहर थी कि जो पार्षद का चुनाव नहीं जीत सकता था वो विधायक बन गया। इन एक्सीडेंटल विधायकों ने पांच साल बढ़िया जलवा भी काटा। इनोवा में हूटर, बड़ी-बड़ी लाइटें...और इतने लार्ज प्वाइंट में आगे पीछे विधायक लिखा कि एक किलोमीटर दूर से दिख जाए कि माननीय की गाड़ी आ रही है। मगर पांच साल में ही इनमें से कई बेचारे पूर्व हो गए। दूर से पहचानी जानी वाली इनकी गाड़ियां वैधव्य गति की हो गई है। टोल नाकों में पहले सायरन बजाते हुए निकल जाती थी, अब कोई वेटेज नहीं मिल रहा। ऐसे में कुछ पूर्व विधायकों ने रास्ता निकाला है...गाड़ियों के नेम प्लेट पर विधायक के ऊपर इतना छोटा पूर्व लिखवाए हैं कि एक बरगी नजर नहीं आए, तो कुछ की पत्नी किसी पद पर है तो पत्नी के पदनाम गाड़ियों में लिखवा लिए हैं। चलिए, आइडिया अच्छा है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">जीत का मैनेजमेंट</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर संभाग में अभी तक चुनाव के मैनेजमेंट गुरु अमर अग्रवाल माने जाते थे। 77 में जहां कांग्रेस नहीं हारी, ऐसे गढ़ में वे लगातार चार चुनाव जीते। हालांकि, 2018 में ओवर कांफिडेंस में वे झटका खा गए। मगर इस बार ताकत इतना जोर का लगा दिए कि लीड का रिकार्ड बन गया। बहरहाल, इस बार सरकार पलटने की खबरों की वजह से बिलासपुर से लगी एक यूनिक मैनेजमेंट वाली कोटा सीट की चर्चा दब गई। कोटा कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। मगर पिछले साल जोगी कांग्रेस के खाते में ये सीट गई थी। और अजीत जोगी के निधन के बाद यह पहला चुनाव हो रहा था, सो सहानुभूति वोटों की गुंजाइश पर्याप्त थी। मगर कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव ने ऐसी चकरी घुमाई कि रेणु जोगी को मात्र आठ हजार वोट से संतोष करना पड़ा। रेणु जोगी के नामंकन के दौरान जो चेहरे थे, प्रचार शुरू होने पर वे अटल के लिए काम करते नजर आए। सो, कह सकते हैं कांग्रेस से ज्यादा ये अटल की जीत रही। जिसने ओम माथुर से लेकर बीजेपी के बड़े रणनीतिकारों को भी हैरान कर दिया। बीजेपी का दीगर सीटों पर जोगी कांग्रेस वाला दांव प्लस रहा मगर कोटा में पार्टी गच्चा खा गई।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">खुफिया चीफ का औरा</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सीएम विष्णुदेव ने भले ही खुफिया चीफ अपाइंट करने में टाईम लिया मगर इस सलेक्शन पर कोई उंगली उठाने की गुंजाइश नजर नहीं आती। अमित कुमार छत्तीसगढ़ में बीजापुर के साथ ही सबसे बड़े जिले रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग की कप्तानी किए हैं। उधर, जांजगीर और इधर बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट राजनांदगांव के भी एसपी रहे। उपर से सीबीआई में 12 साल। उसमें भी ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी के पोस्ट पर करीब चार साल। जेडी पॉलिसी मतलब बड़े-बड़े राजनेताओं और नौकरशाहों के यहां रेड का काम इसी विभाग से होता है। इसीलिए, जेडी पॉलिसी हमेशा पीएमओ के कंटेक्ट में रहता है। सो, खुफिया चीफ के तौर पर उनका प्रभाव तो रहेगा। मुकेश गुप्ता का भी एक समय जलजला रहा...ब्यूरोक्रेट्स भी उनसे घबराते थे। हालांकि, अमित कुमार की वर्किंग स्टाईल अलग है, मगर औरा तो इनका रहेगा। सीबीआई के नाम से लोग वैसे भी घबराते हैं। ये तो एक दशक से अधिक वहां गुजारे हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. क्या एसपी और आईजी की लिस्ट अब 26 जनवरी के बाद निकलेगी?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. पिछली सरकार की तरह विष्णुदेव सरकार भी देर रात ट्रांसफर, पोस्टिंग क्यों कर रही है?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGKOIRJ9LN138wvT1kaBL6TuyClf2TVpAUKh3S3ndtlZlO7MtCR-L_C43G5_ePX69E3B0_GTRuT2ec2CvIVLML6GjSkqFtr_K5XMhQlAT6hqKKxegaLO9jwyI3CsbMEjXl-4xjzKX4DyQRi032dqa3_NUaFyH-0FFOZTqYtP_geUxvc5kNV1YnzSfEOQc/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGKOIRJ9LN138wvT1kaBL6TuyClf2TVpAUKh3S3ndtlZlO7MtCR-L_C43G5_ePX69E3B0_GTRuT2ec2CvIVLML6GjSkqFtr_K5XMhQlAT6hqKKxegaLO9jwyI3CsbMEjXl-4xjzKX4DyQRi032dqa3_NUaFyH-0FFOZTqYtP_geUxvc5kNV1YnzSfEOQc/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-21392007617111928152024-01-13T23:39:00.000-08:002024-01-13T23:39:47.016-08:00Chhattisgarh Tarkash: CM विष्णुदेव के सारथी?<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 14 जनवरी 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">CM विष्णुदेव के सारथी?</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल गठन में एक प्रयोग किया है...विभिन्न वर्गों को इसमें प्रतिनिधित्व दिया गया है। कुछ पुराने हैं, तो कुछ नए भी। पहली बार दो डिप्टी सीएम भी। पुराने लोगों को याद होगा...मध्यप्रदेश के दौर में 90 के दशक में दिग्विजय सिंह के साथ दो डिप्टी सीएम बनाए गए थे...एमपी से सुभाष यादव और छत्तीसगढ़ से प्यारेलाल कंवर। इसके करीब 30 साल बाद कांग्रेस सरकार ने डिप्टी सीएम का फार्मूला अजमाया और टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, इसका रिजल्ट अच्छा नहीं रहा। पूरे समय खींचतान चलती रही। बहरहाल, विष्णुदेव कैबिनेट की खासियत यह है कि इसमें अनुभवी के साथ ही नए फ्रेश चेहरे भी हैं। बेशक, इनकी क्रियेटिव सोच का लाभ छत्तीसगढ़ को मिलेगा। मगर इसके साथ यह भी...सबको स्वयं अपनी सीमाओं का ध्यान रखना पड़ेगा। वरना, घर के भीतर से बर्तन गिरने की आवाजें बाहर आएंगी तो उसके संदेश अच्छे नहीं जाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के पास सौदान सिंह जैसे सारथी थे। उस समय उनके बारे में बड़ी चर्चाएं होती थी, सौदान भाई साब ने चाबुक चलाई तो कभी डंडा चलाया। सौदान सिंह की भूमिका उस समय इसलिए महत्वपूर्ण रही कि रमन का चाबुक और डंडा वाला स्वभाव नहीं था। शिवराज सिंह, बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह...ये सभी 2010 के बाद फुल फर्म में आए। तब तक सौदान ही कृष्ण की भूमिका में रहे। रमन सिंह जैसे विष्णुदेव साय भी हैं। बीजेपी को लंबे समय तक क्रीज पर टिके रहने के लिए मोदीजी को एक सौदान सिंह भी नियुक्त करना होगा। वरना, मंत्रियों की महत्वकंक्षाएं बढ़ेंगी तो बीजेपी के साथ छत्तीसगढ़ का भी नुकसान होगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">चूके तो चौहान कैसा</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">आईएएस को आज भी देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस माना जाता है। आईटी और ईडी की छाया पड़ने से पहले तो उन्हें रहनूमा ही समझा जाता था...प्रमोशन से लेकर डीए आदि सब टाईम पर। मगर छत्तीसगढ़ में उनकी ग्रह दशा कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया था। कर्मचारियों का डीए बढ़ता रहा और वे बेचारे आह भी नहीं भर पा रहे थे। यह पहला मौका था कि डीए के मामले मे ंहमेशा पीछे रहने वाले छत्तीसगढ़ के कर्मचारी ऑल इंडिया सर्विस वालों से आठ परसेंट आगे हो गए। हालांकि, ऐसा नहीं कि नौकरशाहों ने इसके लिए प्रयास नहीं किया। किसी जगह पर उन्होंने बात रखने की कोशिश की थी, मगर तल्खी से पूछ दिया गया...आईएएस को महंगाई भत्ते की क्या जरूरत? इसके बाद फिर किसकी मजाल...वे डीए का ड बोलना भूल गए। फिर भी ठहरे आईएएस। सबसे बड़ा कंपीटिशन क्लियर करके आए हैं...सो मौके का इंतजार था। विधानसभा इलेक्शन के दौरान उन्हें अवसर मिल भी गया। दरअसल, चुनाव के दौरान कर्मचारियों पर डोरे डालने के लिए सरकार ने चुनाव आयोग से डीए बढ़ाने का परमिशन मांगा था। जीएडी के अफसरों ने मौके का फायदा उठाते हुए कर्मचारियों के साथ ऑल इंडिया सर्विस को भी जोड़ दिया। अब आयोग भी कम थोड़े है...इजाजत दिया भी वोटिंग के बाद। तब आचार संहिता प्रभावशील था ही। जीएडी को किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी। सो, चुनाव आयोग का हवाला देते हुए ऑल इंडिया सर्विस वालों के लिए डीए वृद्धि का आदेश निकाल दिया। सरकार ने जिन कर्मचारियों को लिए आयोग को लिखा था, वह कर्मचारी वर्ग ताकता रह गया, आज तक उनका आदेश नहीं निकला। ठीक भी है...ऑल इंडिया सर्विस के अफसर हैं...महंगा लाइफस्टाईल...महंगाई भत्ते में उन्हें आगे रहना ही चाहिए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नाम VVIP पुलिस और...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">वीवीआईपी जिले की पुलिस गजबे कर रही है...जशपुर जिले के सन्ना में एक फॉरेस्ट कर्मी दंपति की घर घुसकर विधायक के रिश्तेदार और उसके लोगों ने जमकर पिटाई कर डाली। मगर यह जानते हुए कि पीड़ित दंपति एक बेहद महत्वपूर्ण व्यक्ति के करीबी रिश्तेदार हैं...पहले एफआईआर दर्ज करने में हीलाहवाला करती रही और बाद में अपराध दर्ज हुआ भी तो जमानती। ये वही जशपुर पुलिस है, जो विधानसभा चुनाव के दौरान मामूली बात पर पार्टी प्रत्याशी विष्णुदेव साय के खिलाफ अपराध दर्ज करने में देर नहीं लगाई थी। वीवीआईपी जिले की पुलिस महत्वपूर्ण लोगों के रिश्तेदारों को भी न्याय नहीं दिला पाएगी तो फिर किसके लिए क्या करेगी...इस घटना से समझा जा सकता है। बहरहाल, जशपुर का मजबूत कंवर समाज इस घटना से काफी नाराज है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंत्री, सिकरेट्री की जोड़ी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सभी मंत्रियों को मन मुताबिक सिकरेट्री नहीं मिलते। सबसे बढ़ियां वालों को मुख्यमंत्री अपने सचिवालय और विभागों के लिए छांट लेते हैं। उनके बाद कोई मापदंड नहीं होता। सरकार जैसा चाहे, वैसा सिकरेट्री टिकाया जाता है। वैसे सिकरेट्री के मामले में दोनों डिप्टी सीएम की स्थिति ठीक है। अरुण साव के पास कमलप्रीत सिंह और बसव राजू हैं तो विजय शर्मा के पास एसीएस मनोज पिंगुआ और निहारिका बारिक। वित्त और आवास पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी चूकि खुद ब्यूरोक्रेसी से रहे हैं इसलिए आर, संगीता और अंकित आनंद को छांट लिया। बाकी दो मंत्री अपने सिकरेट्री से बहुत खुश नहीं हैं। इनमें से एक की लेडी सिकरेट्री हैं। लखनलाल देवांगन जरूर किस्मती रहे, उन्हें कोरबा कलेक्टर रहे मो0 कैसर हक मिल गए। कैसर कोरबा के काफी पॉपुलर कलेक्टर रहे, तब लखनलाल कटघोरा से विधायक थे। काफी लो प्रोफाइल के लखनलाल लोगों के विभिन्न कामों को लेकर कलेक्टर के पास अक्सर जाते रहते थे। अब लखनलाल मंत्री हैं और कैसर उनके सिकरेट्री।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ऐसे मंत्री भी...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बात मंत्री लखनलाल देवांगन की चली तो बता दें, विष्णुदेव साय कैबिनेट के वे संभवतः पहले मंत्री होंगे, जो रायपुर के सवा तीन लाख वाले मकान में रहते हैं। आप यह पढ़कर चौंकेंगे...मगर यह सच है कि राज्य निर्माण के समय कर्मचारियों के लिए बनाए गए कचना रेलवे क्रॉसिंग के बाद हाउसिंग बोर्ड के 600 वर्गफुट के दो कमरे वाले फ्लैट में वे रहते थे। बुकिंग के दौरान इसकी कीमत सवा लीन लाख रुपए थी। लखनलाल जब भी रायपुर आते, इसी फ्लैट में रुकते थे। मंत्री पद की शपथ के लिए जब उनका लाव लश्कर हाउसिंग बोर्ड के अपार्टमेंट पहुंचा तो आसपास के लोग भौंचक रह गए। शाम होते-होते वहां पुलिस की तैनाती करनी पड़ गई क्योंकि पास पड़ोस के लोग यह देखने पहुंचने लगे कि राज्य का मंत्री इतने छोटे से फ्लैट में कैसे रहता होगा। हालांकि, वे मेयर भी रहे हैं। मगर न तो उस समय उतना बजट होता था और न ही वे उस तरह के लूटपाट वाले नेता हैं...वरना कमाने वाले लहर गिनकर पैसे कमा लेते हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">7 और आईएएस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ को जल्द ही सात और आईएएस मिल जाएंगे। सीएम विष्णुदेव साय ने डीपीसी की फाइल को अनुमोदन दे दी है। चूकि ये फाइल अब बुलेट ट्रेन की रफ्तार से दौड़ रही है, इसलिए समझा जाता है कि अगले महीने के फर्स्ट वीक तक यूपीएससी में डीपीसी कॉल हो जाए। इस समय राप्रसे से आईएएस अवार्ड के सात पोस्ट खाली हैं। इनमें संतोष देवांगन और हीना नेताम पुराने बैच के छूटे हुए हैं। इन दोनों का केस अब क्लियर है, इसलिए इनका नाम लिस्ट में उपर होगा। इसके बाद 2008 बैच में सात अफसर हैं। अश्वनी देवांगन, रेणुका श्रीवास्तव, आशुतोष पाण्डेय, सौम्या चौरसिया, रीता यादव, लोकेश चंद्राकर, आरती वासनिक और प्रकाश सर्वे। इनमें से मेरिट कम सीनियरिटी के आधार पर पांच को आईएएस अवार्ड होगा। मेरिट याने सीआर क होना चाहिए। हालांकि, सीआर ख भी है तो भी यूपीएससी सूक्ष्म परीक्षण करती है कि कहीं किसी विद्धेष से किसी का सीआर खराब तो नहीं किया गया है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">रापुसे का दुर्भाग्य</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राज्य प्रशासनिक सेवा वालों को तो दो साल ही लेट हुआ, पुलिस सेवा वाले तो किस्मत के मारे हैं। 2008 बैच के डिप्टी कलेक्टर आईएएस बनने जा रहे मगर पुलिस में अभी 98 बैच को आईपीएस अवार्ड नहीं हुआ है। इस बैच के प्रफुल्ल ठाकुर चार-पांच जिलों की कप्तानी करके कई साल से सीएम सिक्यूरिटी में हैं। इसके बाद भी नॉन आईपीएस बनकर बैठे हैं। दरअसल, पुलिस में दिक्कत यह है कि आईपीएस भिड़-भाड़कर अपना प्रमोशन करा लेते हैं मगर जिन रापुसे अधिकारियों से वे दिन रात काम कराते हैं, उन्हें कोई पूछता नहीं। इसकी एक बड़ी वजह सरकार में रापुसे की फील्डिंग नहीं सही नहीं है। पीएचक्यू का रोल भी इस मामले मे उनके प्रति बहुत अच्छा नहीं रहा। वरना, पुलिस सेवा वाले डिप्टी कलेक्टरों से प्रमोशन में एक दशक पीछे थोड़े होते।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. एक आईएएस का नाम बताएं, जिसे सरकार किसी की भी हो, पोस्टिंग हमेशा दमदार मिल जाती है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. एसपी और आईजी की वीसी में डीजीपी अशोक जुनेजा ने जिस तरह नशे पर कार्रवाइयों को लेकर तेवर दिखाया...क्या उससे पीएचक्यू में होने वाले बदलाव पर संशय नहीं गहराता?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhk5z3IMqQc-zfQZwMGPPJumFTRtFpxTNrqr2qne8CtAiPrA8-LpemlDY3E49GAtexD8AHitQquCSy64uwtKkFrRuy-utxFtBalwQaa0Lmb8Lf_BIM6moKAL23hJ6B42roE-VDJaK40fpd1AmZ_Hj38Q-qJjrSbumZRmsHCxRfs9mxML_yQeGG9L7eYANQ/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhk5z3IMqQc-zfQZwMGPPJumFTRtFpxTNrqr2qne8CtAiPrA8-LpemlDY3E49GAtexD8AHitQquCSy64uwtKkFrRuy-utxFtBalwQaa0Lmb8Lf_BIM6moKAL23hJ6B42roE-VDJaK40fpd1AmZ_Hj38Q-qJjrSbumZRmsHCxRfs9mxML_yQeGG9L7eYANQ/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-12428838385049094152024-01-06T23:03:00.000-08:002024-01-06T23:03:28.673-08:00Chhattisgarh tarkash: पुलिस में मेजर सर्जरी<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">Chhattisgarh tarkash: तरकश, 7 जनवरी 2024</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पुलिस में मेजर सर्जरी</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विष्णुदेव सरकार की पहली प्रशासनिक सर्जरी की सूबे में बड़ी चर्चा है। सरकार ने सिंगल लिस्ट में 88 अफसरों को बदल डाला। मगर सीएम साहब...इससे भी खराब हालत पोलिसिंग की है। बिहार, यूपी की तरह आए दिन गोलियां चल रही, चाकूबाजी आम हो गई है। प्रदेश की गलियों में नशे की सामग्री धड़ल्ले से बिक रही। राजधानी रायपुर में नशे की हालत में एक युवती ने चाकू से गोदकर युवक की हत्या कर दी। दरअसल, छत्तीसगढ़ में वर्दी का खौफ अब पुरानी बात हो गई। हो भी क्यों न...जिनके उपर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी है, वे अपराधियों और भूमाफियाओं से गलबहिया कर धन-व्यवस्था में लग गए हैं...पुलिस के सिस्टम में अब भूमिकाएं बदल गई हैं...एसपी वसूली अधिकारी हो गए हैं और दरोगा वसूली एजेंट। पहले के जमाने में एसपी का औरा ऐसा होता था कि उसके सामने जाने के नाम से दरोगा की कंपकंपी छुटने लगती थी। किन्तु एसपी जब दरोगा से महीना लेने लगे तो फिर वो एसपी का क्या लिहाज करेगा। सूबा में कुछ ऐसे एसपी भी हैं, जो अपने खास टीआई के साथ रोज शाम को महफिले जमाते हैं। पहले एसपी लोग टीआई से ट्रेन या फ्लाइट की टिकिट, मोबाइल, बच्चों के लिए गिफ्ट जैसी चीजें मंगवा लेते थे। और अब...? सब तो नहीं... अधिकांश एसपी ज्वाईन करते ही दरोगा को बुलाकर थाने का एमाउंट फिक्स कर दे रहे। ऐसे में, सीएम साहब पोलिसिंग में आमूल चूल बदलाव कर कौंवा टांगने जैसा कुछ कीजिए, ताकि वर्दी पर आम आदमी का भरोसा बहाल हो सके।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सीएम साब ये भी...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सीएम विष्णुदेव साय के खिलाफ विधानसभा चुनाव के दौरान कुनकुरी थाना ने अपराध दर्ज करने में कोई देरी नहीं की। सीएम साब...इसका मतलब ये नहीं कि छत्तीसगढ़ की पुलिस एफआईआर दर्ज करने में बड़ी मुस्तैद है। उस समय की बात अलग रही, सो पुलिस अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में गच्चा खा गई। खैर बात बेहद अहम, आपके संज्ञान लेने लायक। आमतौर पर पुलिस सिर्फ इसलिए एफआईआर दर्ज नहीं करती कि उनके जिले का आंकड़ा बढ़ जाएगा। इसका नुकसान यह होता है कि छोटे-मोटे अपराध करते-करते अपराधियों का हौसला बढ़ जाता है और फिर बाद में वे बड़े क्राईम करने लगते हैं। दिल्ली पुलिस के एक सीनियर आईपीएस अफसर का कहना है, हर मामले में अपराध दर्ज होने लगे तो उसे झक मारकर कार्रवाई करनी पड़ेगी और कार्रवाई होगी तो अपराधियों का हौसला टूटेगा। सो, सीएम साहब आपकी सरकार नई है। आप कड़ाई से एफआईआर करने का निर्देश दीजिए...यह छूट देते हुए कि दो-एक साल आकंड़े बढ़ता है, तो बढ़ने दें मगर किसी भी केस में ढिलाई न करें, भले ही वह मोबाइल और पर्स लूट का ही क्यों न हो। मगर बात फिर वहीं...यह संभव तभी है, जब एकाध कौंवा मारकर....।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सिकरेट्री की फौज</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2008 बैच के आईएएस अधिकारियों के स्पेशल सिकरेट्री से सिकरेट्री प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में सचिवों की अब फौज खड़ी हो गई है। 1999 बैच के सोनमणि बोरा प्रमुख सचिव प्रमोट हुए हैं। उनके बाद 2000 से लेकर 2008 बैच तक कुल 48 सिकरेट्री इस समय छत्तीसगढ़ में हैं। इनमें से आठ डेपुटेशन पर। फिर भी 40 का फिगर बड़ा होता है। वो भी उस छत्तीसगढ़ जैसे स्टेट में, जहां एक दशक पहले तक सिकरेट्री लेवल पर बड़ा टोटा था। खासकर रमन सिंह की तीसरी पारी के दौरान सचिवों की कमी की वजह से स्पेशल सिकरेट्री को कई महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व सौंपा पड़ा था। हालांकि, प्रमुख सचिव इस समय सिर्फ एक हैं...निहारिका बारिक। मनोज पिंगुआ एक समय तक अकेले पीएस थे, वे भी इस महीने एसीएस हो गए। प्रमुख सचिव की कमी अभी चार-पांच साल बनी रहेगी। जब तक 2005 बैच का पीएस में प्रमोशन नहीं हो जाता, जो कि 2030 से पहले संभव नहीं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आईजी भी अब पर्याप्त</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">जो स्थिति आईएएस में सिकरेट्री की रही, कमोवेश वही हालत आईपीएस में आईजी की थी। एक समय तो पांच रेंज के लिए मुश्किल से पांच आईजी होते थे। उस समय के आईजी का बड़ा जलवा होता था क्योंकि सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था। यही वजह है कि लांग कुमेर जैसे आईजी कई साल बस्तर में रह गए। बहरहाल, इस समय आईजी की संख्या नौ हो गई है। अमरेश मिश्रा और धु्रव गुप्ता डेपुटेशन पर हैं। वरना, 13। उपर से 2006 बैच क डीआईजी मयंक श्रीवास्तव और आरएन दास का इसी महीने प्रमोशन होना है। उनके बाद यह संख्या दो और बढ़ जाएगी। हालांकि, मयंक अब जनसंपर्क आयुक्त बन गए हैं। फिर भी संख्या एक दर्जन रहेगी ही।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बिना नाम के बधाई</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">प्रशासनिक फेरबदल में अगर पोस्टिंग अच्छी मिली हो तो अफसरों को खूब बधाइयां मिलती है। मगर इस दफा विष्णुदेव सरकार ने जब 89 अधिकारियों की लिस्ट निकाली तो उसमें दो कलेक्टरों का नाम नहीं था, उसके बाद भी उन्हें बधाइयों की झड़ी लग गई। कलेक्टर हैं बिलासपुर के अवनीश शरण और रायगढ़ के कार्तिकेय गोयल। दोनों 2009 और 2010 बैच के आईएएस हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान इन दोनों को आयोग ने वहां पोस्ट किया था। बधाई इसलिए इन्हें मिल रही थी कि चुनाव आयोग ने टेंपोरेरी पोस्टिंग की थी। आमतौर पर चुनाव के बाद सरकार फिर नए सिरे से लिस्ट निकालती है। मगर राज्य सरकार ने इन दोनों कलेक्टरों को कंटीन्यू करने का निर्णय लिया। लिहाजा, लिस्ट में उनका नाम होने का सवाल पैदा नहीं होता। लोगों की बधाइयों पर ये दोनों अफसर इस बात को लेकर चुटकी लेते रहे कि लिस्ट में बिना नाम के फिर बधाई क्यों...?</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पोस्टिंग की मंडी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">89 अफसरों की प्रशासनिक सर्जरी को भले ही एक युवा आईएएस और एक युवा मंत्री ने अंतिम रुप दिया मगर सब कुछ सीएम की नोटिस में रहा। बताते हैं, लिस्ट निकलने में विलंब इसलिए हुआ कि मुख्यमंत्री अफसरों के बारे में कंप्लीट फीडबैक ले रहे थे। एक-एक अफसर के बारे में उन्होंने तीन-तीन, चार-चार लोगों से क्रॉस चेक किया। जनसंपर्क आयुक्त के लिए मयंक श्रीवास्तव और कोरबा कलेक्टर सौरभ कुमार का नाम था। मगर मुख्यमंत्री ने मयंक के नाम पर मुहर लगा दिया। और नया रायपुर चूकि सरकार का प्राइम प्रोजेक्ट है, उसमें सौरभ कुमार को बिठा दिया। सरकार से जुड़े अफसरों का कहना है, पोस्टिंग के लिए एक लाईन का फार्मूला तय किया गया था...पिछली सरकार से जुडे़ अधिकारियों को कुछ दिन के लिए सही...किनारे कर ब्यूरोक्रेसी को संदेश दिया जाए कि अब पोस्टिंग की मंडी नहीं चलने वाली।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंडल, कल्लूरी और राजू</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सुनामी में कई अच्छे और मजबूत घर भी बिखर जाते हैं। उसी तरह 88 आईएएस के प्रशासनिक फेरबदल में ऐसा नहीं कि सभी नॉन पारफर्मिंग अफसरों को ही किनारे किया गया है। ऐसा पहले भी होता रहा है। आरपी मंडल, एसआरपी कल्लूरी और डॉ0 एसके राजू इसके सबसे बढ़ियां उदाहरण हैं। ये तीनों अफसर अजीत जोगी सरकार में बेहद पावरफुल थे, सीएम के करीबी भी। 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान इलेक्शन कमीशन ने इन तीनों की छुट्टी कर दी थी। तब समझा गया कि पांच साल के लिए ये गए। सरकार बनने के बाद मंडल को राजस्व सिकरेट्री बनाया गया, कल्लूरी को बिना विभाग पीएचक्य और राजू को हेल्थ में डिप्टी सिकरेट्री। मंडल और कल्लूरी बिलासपुर के कलेक्टर, एसपी थे और राजू सरगुजा जैसे जिले के कलेक्टर, जब सूरजपुर, बलरामपुर जिला नहीं बना था। आपको जानकर हैरत होगी कि मंडल छह महीने के भीतर सिकरेट्री से रायपुर के कलेक्टर हो गए। कल्लूरी को भले ही बलरामपुर जैसे पुलिस जिले का एसपी बनाया गया मगर वहां उन्होंने नक्सलियों का ऐसा पांव उखाड़ा कि ईनाम स्वरूप उन्हें बस्तर का आईजी बना गया। राजू को साल भर के भीतर पहले कांकेर का कलेक्टर और उसके बाद रायगढ़ की कमान सौंपी गई। यही नहीं, राजू यहां से डेपुटेशन पर गए तो पंजाब में उन्होंन न केवल तीन जिले की कलेक्टरी की बल्कि वहां मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहते पंजाब का चुनाव भी कराया। याने जिस अफसर को चुनाव आयोग ने हटाया, उससे पंजाब का चुनाव कराया। कहने का मतलब कि प्रशासन में कोई चीजे स्थायी नहीं होती। सभी जानते हैं कि जिसका झंडा होता है, उसके अफसर होते हैं। कुछ ब्यूरोक्रेट्स चूक यही करते हैं कि वे सत्ता के पार्ट बन जाते हैं...लिमिट से ज्यादा सरेंडर हो जाते हैं। फिलवक्त, संकेत ऐसे हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद रिजल्ट देने वाले अफसरों की मुख्य धारा में वापसी की जाएगी। क्योंकि, सरकार को आखिरकार रिजल्ट चाहिए। ऐसा पिछली सरकार में भी हुआ था...शुरूआत में सारे डिफेक्टेड आईएएस रमन सरकार को कोस कर बढ़ियां पोस्टिंग पा लिए थे। बाद में इनमें से कुछ को किनारे किया गया, कुछ अपनी बाजीगरी से बच गए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">भाई का बंगला</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">वित्त और आवास पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी को राजधानी के शंकर नगर स्थित बी5 बंगला मिला है। यह बंगला इसलिए खास है कि पांच बरस पहले तक यह चीफ सिकरेट्री का ईयर मार्क बंगला रहा। पी जाय उम्मेन से लेकर सुनील कुमार, विवेक ढांड और अजय सिंंह तक इस बंगले में रहे। 2018 में जब सरकार बदली तो ब्यूरोक्रेसी को हतप्रभ करते हुए ईयर मार्क बंगले को मंत्री जय सिंह अग्रवाल को आबंटित कर दिया गया। उस बंगले के गेट पर मंत्री का नाम देख वहां से गुजरने वाले नौकरशाहों की आत्मा कलप उठती थी। क्योंकि, चीफ सिकरेट्री सिर्फ प्रशासनिक मुखिया नहीं होता बल्कि एक संस्था होता है...ब्यूरोक्रेट्स का गुरूर। अब किसी का गुरूर छीन जाए तो आप समझ सकते हैं। चलिये, ओपी के इस बंगले में जाने से नौकरशाहों का कलेजा ठंडा हुआ होगा। क्योंकि, भाई ही रहेगा अब इस बंगले में...भले ही वह मंत्री क्यों न बन गया हो। लास्ट में, ओपी को सुझाव...ठीक-ठाक पंडित को बुलाकर बंगले की पूजा-पाठ करवा लें...क्योंकि भांति-भांति की शख्सियतें वहां रही हैं...उनके कुछ अनोखे, शौकीन मिजाज के पूर्वज भी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कैडर का मान</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ कैडर के 1994 बैच के आईएएस विकास शील एशियाई बैंक के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनाए गए हैं। ब्यूरोक्रेसी में ये बड़ी अहम पोस्टिंग मानी जाती है। वो भी तब, जब उन्होंने इस पद के लिए अप्लाई भी नहीं किया था और उन्हें सलेक्ट कर लिया गया। फिलिपिंस की राजधानी मनीला में एशिआई बैंक का हेडक्वार्टर है। ईडी का वेतन सुनकर भी आप चौंक जाएंगे। विकास शील एसीएस रैंक से करीब छह गुना। महीने का 15 लाख के लगभग। ईडी, आईटी और जेल के झंझावत से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के आईएएस कैडर का इस पोस्टिंग से मान बढ़ा है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. पीएससी के किस रिटायर पदाधिकारी के साढ़ू भाई ने डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी के सलेक्शन में कैशियर की भूमिका निभाई?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. लोकसभा चुनाव से पहले लाल बत्ती बांटने की बातें क्यों उड़ाई जा रही है?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2p_n4uRTAGmnv8C49iW5gmScCF2O9TSYkq6DZ5-cbqelyTo9SFVgbXKrdPqovATQLgJregdK2q9HDXzF6B59qiQN-oVywRCcdmwmZzZzlrxRHerrWo0SlqadkgJCIjj4WjbV580jRmcYlFn8iIa3cDYgu0O8eZTYg55R_K3peqW2gjyT_cilRUwbiYlo/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2p_n4uRTAGmnv8C49iW5gmScCF2O9TSYkq6DZ5-cbqelyTo9SFVgbXKrdPqovATQLgJregdK2q9HDXzF6B59qiQN-oVywRCcdmwmZzZzlrxRHerrWo0SlqadkgJCIjj4WjbV580jRmcYlFn8iIa3cDYgu0O8eZTYg55R_K3peqW2gjyT_cilRUwbiYlo/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-73285199980210163702023-12-23T23:24:00.000-08:002023-12-23T23:24:30.187-08:00Chhattisgarh Tarkash: मंत्रिमंडल में भगवान<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 24 दिसंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंत्रिमंडल में भगवान</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">इसे संयोग कहें या सरकार का अच्छा योग...छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से लेकर लगभग सभी मंत्रियों के नाम भगवान से जुड़े हुए हैं। राज्य के मुखिया खुद विष्णुदेव। विष्णु को जगत का पालनहार माना जाता है। विष्णु के बाद बृजमोहन। विष्णु के ही रुप हैं मोहन। फिर लक्ष्मी...। लक्ष्मी की कृपा के बिना कुछ संभव नहीं। विष्णु, मोहन और लक्ष्मी के बाद श्यामबिहारी, लखन और केदार भी। श्याम बिहारी भगवान कृष्ण, वहीं लखन याने भगवान राम के सबसे प्रिय छोटे भाई। केदार माने देवों के देव महादेव। टंक में भी राम...रामविचार में राम। ओपी में ओम। अरुण का मतलब प्रातःकालीन सूर्य और बचे विजय...तो जिस मंत्रिमंडल में इतने सारे भगवान हों तो समझा जाना चाहिए कि उसकी विजय होगी ही। अलबत्ता, इन मंत्रियों के समक्ष दोहरी चुनौती होगी...मोदी की गारंटी पर खरा उतरने और नाम के अनुरूप आचरण की भी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">किस्मत की बात</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कांग्रेस सरकार के लिए घोषणा पत्र बनाने वाले टीएस सिंहदेव भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके मगर मंत्री के बाद डिप्टी सीएम बन गए। मगर बीजेपी का घोषणा पत्र बनाने वाले तीनों नेताओं का ग्रह दशाओं ने साथ नहीं दिया। घोषणा पत्र कमेटी के संयोजक विजय बघेल और सह संयोजक शिवरतन शर्मा चुनाव नहीं जीत पाए। दूसरे सह संयोजक अमर अग्रवाल पहले की तुलना में दुगुने से ज्यादा मार्जिन से चुनाव जीतने के बाद भी मंत्री नहीं बन सके। अमर ने यहां तक कैलकुलेशन बता दिया था कि लोकलुभावन घोषणाओं से कितने हजार करोड़ का रेवेन्यू जुटाना होगा। खैर किस्मत अजय चंद्राकर की भी अच्छी नहीं कही जा सकती। विधानसभा में पांच साल तक सरकार को अकेला घेरने के बाद भी मंत्री की दौड़ में पिछड़ गए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">एक अनार...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">मंत्रिमंडल में एक सीट सुरक्षित रखी गई है। लोकसभा चुनाव में जिसका पारफारमेंस अच्छा रहेगा, उसे ईनाम के तौर पर मंत्री पद मिलेगा। हालांकि, अंदरखाने की खबर ये भी है कि दो-एक मंत्रियों को भी लोकसभा चुनाव में उतारा जा सकता है। सो, हो सकता है कि इलेक्शन के बाद कुछ और मंत्री पद खाली हो जाए। उसके बाद फिर कंप्लीट विष्णुदेव मंत्रिमंडल बनेगा। खैर, एक पद खाली है उसके लिए कतार लंबी है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">देखन में सीधन लगै</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">तीन दिन के सत्र में एक दिन विधायकों के शपथ में निकल गया और दूसरे दिन राज्यपाल के अभिभाषण में। तीसरे दिन अनुपूरक बजट पर चर्चा हुई। नेता प्रतिपक्ष ने इस अवसर पर आंकड़ों से भरा लंबा-चौड़ा भाषण न देकर नपे-तुले शब्दों में प्वाइंटेड और चुटकी लेते हुए सदन के माहौल का हल्का रखा। उन्होंने साफगोई से कह दिया...इस सरकार को अभी जुम्मा-जुम्मा सात दिन हुए हैं, इनके खिलाफ में क्या बोलूं। बड़ी शालीनता से उन्होंने सरकार पर कटाक्ष की तो चुटकी भी लेने से नहीं चूके। दरअसल, महंत जी 40 साल से संसदीय राजनीति में हैं। अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह के साथ काम करने का तजुर्बा है। तरकश में सियासी तीर भी। सो, सत्ताधारी दल को सतर्क रहना होगा, क्योंकि, सदन में नेता प्रतिपक्ष का टीजर बिहारी के दोहे को चरितार्थ कर रहा है...देखन में सीधन लगै, घाव करे गंभीर।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नाम का चक्कर</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">लोग बोलते हैं, नाम में क्या रखा है। मगर नाम के फेर में लोग रिटायर आईएएस उमेश अग्रवाल को सीएम विष्णुदेव साय के सचिवालय में पोस्टिंग करा दिए। दरअसल, तीन ओएसडी के साथ एक निज सहायक की पोस्टिंग सीएम सचिवालय में हुई, उसमें एक नाम उमेश अग्रवाल का भी है। ये वाले उमेश पत्थलगांव के रहने वाले हैं। विष्णुदेव साय जब दिल्ली में इस्पात राज्य मंत्री थे, तब निज सहायक बनाकर उन्हें दिल्ली ले गए थे। दिल्ली में वे मंत्रीजी के सियासी और निजी कार्यों को संभालते थे। दिल्ली में रहे हैं, पढ़े-लिखे हैं, अंग्रेजी भी जानते हैं, सो ठीक च्वाइस हो सकता है। बहरहाल, उमेश अग्रवाल का नाम देखते ही लोग एक्स आईएएस समझ बैठे। बता दें, उमेश 2004 बैच के राप्रसे से आईएएस बनें थे। आखिरी पोस्टिंग उनकी राजस्व बोर्ड चेयरमैन की रही। उमेश अग्रवाल को संविदा पोस्टिंग मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। बाकी आईएएस अधिकारियों के विपरीत उनकी रीढ़ की हड्डी बची हुई थी। जाहिर है, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग उन्हें ही मिलती है, बैठने बोला जाए तो लेट जाएं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दिल्ली से आईएएस!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सीएम सचिवालय में पी. दयानंद की बतौर सिकरेट्री फर्स्ट पोस्टिंग हुई है। उनके साथ तीन ओएसडी भी। मगर इससे से काम नहीं चलेगा। सीएम के सचिवालय के पास वर्कलोड काफी रहता है। वैसे भी सीएम सचिवालय में तीन से चार आईएएस होते हैं। रमन सिंह के सचिवालय में एसीएस से लेकर स्पेशल सिकरेट्री तक रहे। बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह, सुबोध सिंह, रजत कुमार, मुकेश बंसल, एमके त्यागी। इनके अलावे बतौर एडवाइजर एक्स चीफ सिकरेट्री शिवराज सिंह भी। भूपेश बघेल सचिवालय में भी एसीएस के साथ तीन आईएएस सिकरेट्री रहे। एक रिटायर आईएएस भी। ऐसे में संकेत हैं, विष्णुदेव सचिवालय में आजकल में दो-तीन नियुक्तियां और होंगी। बताते हैं, विष्णुदेव के पिछले दिल्ली दौरे में छत्तीसगढ़ कैडर के एक आईएएस की करीब घंटा भर मुलाकात हुई। हो सकता है कि सीएम सचिवालय में उनकी नियुक्ति हो जाए। उनके अलावे भी दो और आईएएस पोस्ट होंगे और जल्दी होंगे क्योंकि, सीएम के शपथ लिए दसेक दिन से ज्यादा हो गए हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सिकरेट्री बैच</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">भूपेश बघेल सचिवालय में 2006 बैच के दो आईएएस रहे। अंकित आनंद और डॉ. एस भारतीदासन। इसी बैच के पी दयानंद नए सीएम विष्णुदेव साय के सिकरेट्री बनाए गए हैं। कहने का आशय यह कि पावरफुल सीएम सचिवालय के लिए यह लकी बैच है। इससे पहले 2005 बैच के दो आईएएस रमन सिंह सचिवालय में स्पेशल सिकरेट्री रहे। रजत कुमार और मुकेश बंसल। इसी बैच के राजेश टोप्पो भी सचिवालय के हिस्सा टाईप ही रहे। बहरहाल, 2006 बैच में छह आईएएस हैं। अंकित आनंद, श्रुति सिंह, पी दयानंद, डॉ. एस भारतीदासन, डॉ. सीआर प्रसन्ना, भूवनेश यादव और एलेक्स पाल मेनन। बहरहाल, इस बैच में तीन ही दक्षिण भारतीय अफसर हैं...पी. दयानंद नाम से आप कंफ्यूज मत होइयेगा। वे ठेठ गंगा किनारे वाले हैं। अंदाज भी गंगा किनारे वाला ही।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अफसरों के साथ पूर्वाग्रह?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ के नए सीएम विष्णुदेव साय ने स्पष्ट किया है कि पूर्वाग्रह से हमारी सरकार कोई फैसला नहीं करेगी। भूपेश बघेल के सचिवालय के अफसरों को हटाने के फैसले में यह बात झलकी। किसी को भी अतिरिक्त प्रभार से नहीं हटाया गया है। हालांकि, ये फाइनल सर्जरी नहीं...टेम्पोरेरी है। मगर फायनल में भी एकाध को ही मुख्य धारा से हटाया जाएगा। बाकी कुछ तो रमन सिंह के सचिवालय में रहे हैं और उपर से काम करने वाले अफसर माने जाते हैं। ऐसे में नहीं लगता कि नई सरकार उन्हें साइडलाइन करेगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">फंस गई नियुक्ति</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कांग्रेस सरकार ने आखिरी दिनों में मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्त का पद भरने का प्रयास किया मगर सरकार बदल जाने की वजह से फाइल राजभवन में रखी रह गई। दरअसल, मुख्यमंत्री की सिफारिश से राजभवन को फाइल भेजी गई थी। राजभवन ने इसमें कुछ क्वेरी निकाली। मगर मंत्रालय से क्वेरी पूरी करने में देरी हो गई। कुछ दिन पहले क्वेरी पूरी कर फाइल राजभवन भेजी गई। तब तक सरकार बदल गई। रिटायर आईएएस एमके राउत और अशोक अग्रवाल के मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के रिटायर होने से ये दोनों पद 2022 में खाली हुए थे। मगर मंत्रालय को प्रॉसेज करने में लेट हो गया। बरहाल, रिटायर आईएएस टीएस महावर को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया जाना था और राजधानी रायपुर के एक मीडियाकर्मी को सूचना आयुक्त। उधर, सहकारी निर्वाचन में एक एक्स चीफ सिकरेट्री को नियुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री ने ओके कर दिया था। इस पद के लिए सीएम का अनुमोदन अंतिम होता है। मगर सामान्य प्रशासन विभाग में फाइल दबी रह गई। तब तक चुनाव का ऐलान हो गया। इन दोनों आयोगों में नई सरकार को अपने लोगों को बिठाने का मौका मिल गया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सबके भईया, मोहन भईया</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राजभवन में मंत्रियों के शपथ ग्रहण में रायपुर के बड़े लोग बृजमोहन अग्रवाल को लेकर चुटकी लेते रहे...अपना भईया, मोहन भैया। मोहन भैया को अब सबको ढोना पड़ेगा। दरअसल, मंत्रिमंडल में अधिकांश नए चेहरे हैं, जिनका रायपुर से खास नाता नहीं रहा। रमन सिंह के समय रमन खुद रायपुरिया हो गए थे, उनके अलावा बृजमोहन, राजेश मूणत, गौरीशंकर अग्रवाल जैसे कई पावर सेंटर थे। इनके अलावा कुछ अफसर भी प्रभावशाली थे। सो, कहीं-न-कहीं से काम हो जाता था। इस बार सीएम जशपुर से हैं। दोनों डिप्टी सीएम मुंगेली और कवर्धा से। दयालदास बघेल के बारे में बताने की जरूरत नहीं। रामविचार नेताम पहले मंत्री रहे हैं मगर उनसे वैसी केमेस्ट्री नहीं। नए मंत्रियों में ओपी चौधरी जरूर रायपुर नगर निगम कमिश्नर, डीपीआर और रायपुर कलेक्टर रहे हैं। मगर पहली बार मंत्री बने हैं जाहिर तौर पर उनकी अपनी लक्ष्मण रेखा होगी। ऐसे में, फिर बचते हैं मोहन भैया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. कितने ऐसे आईएएस हैं, जो सरकार रिपीट होने की आस में न्यू ईयर में बाहर जाने के लिए अवकाश स्वीकृत करा लिए थे, मगर सरकार पलटते ही अर्जी देकर छुट्टी निरस्त करा लिए?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पद से सैलजा के हटने से क्या चरणदास महंत की स्थिति कमजोर होगी?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUO46cW52c07FADWRhi5vKbTLdcUJuElc1a44tP7-YQVMp94RW0zr1kwcxqpCjWtVx2-ciBsw1Pz4d3U8HAR7PgX0h9j2nTPdwlSCw5Fxkl5gNRGP3yrHHdc0_SKvz8LzAJ-tazhyphenhyphenoGAmHIXgyRd4pz-eTY4cZK2Cejaf8YNvNm0OwPM5dJo4eyzwtInY/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUO46cW52c07FADWRhi5vKbTLdcUJuElc1a44tP7-YQVMp94RW0zr1kwcxqpCjWtVx2-ciBsw1Pz4d3U8HAR7PgX0h9j2nTPdwlSCw5Fxkl5gNRGP3yrHHdc0_SKvz8LzAJ-tazhyphenhyphenoGAmHIXgyRd4pz-eTY4cZK2Cejaf8YNvNm0OwPM5dJo4eyzwtInY/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-38898660723220271532023-12-16T23:00:00.000-08:002023-12-16T23:00:15.313-08:00Chhattisgarh Tarkash: नई सरकार, 18 लाख मकान और अफसर<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 17 दिसंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नई सरकार, 18 लाख मकान और अफसर</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विष्णुदेव साय कैबिनेट ने पहली ही बैठक में सूबे में गरीबों के लिए 18 लाख नए मकान बनाने के फैसले पर मुहर लगा दी। जाहिर है, बीजेपी के संकल्प पत्र का यह अहम बिंदु तो था ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सभी सभाओं में आवास बनाने का ऐलान प्रमुखता से किया था। मगर बड़ा सवाल यह है कि वर्तमान सिस्टम में 18 लाख आवास का मेगा प्रोजेक्ट पूरा हो पाएगा? वो भी जब दो महीने बाद लोकसभा चुनाव है। खैर, दो महीने में कदापि संभव नहीं मगर इस दिशा में क्या प्रॉग्रेस है...ये तो जनता को बताना होगा। अफसरशाही को इस योजना में रुचि नहीं होगी क्योंकि, इसमें ज्यादा कुछ मिलना नहीं। वैसे भी, अधिकांश अफसरों का संतुष्टि लेवल काफी हाई हो गया है। पहले से करीब डबल। ऐसे में, जो काम उनके सेचुरेशन लेवल के नीचे का होगा, उसमें उनकी दिलचस्पी नहीं होगी। ब्यूरोक्रेसी में अब जनरल ट्रेंड बन गया है...योजना लागू करने से पहले पतासाजी कर लेना कि उसमें मिलेगा क्या? तभी फाइल खिसकती है। सो, नए सीएम को इस योजना के लिए किसी दमदार और रिजल्ट देने वाले अधिकारी को चुनकर बिठाना होगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सियासत और किस्मत-1</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सियासत में काम के साथ ही किस्मत की बड़ी भूमिका होती है...जिसके माथे पर राजयोग लिखा होता है...उसे ही कुर्सी मिलती है। विष्णुदेव साय को सीएम बनना लिखा था तो बन गए वरना, एक दूसरे वाले सायजी को बुढ़ापा खराब करनी थी तो चुनाव के ऐन पहले पाला बदल कर बचा-खुचा अपना सम्मान भी गंवा डाले। खैर, र्शीर्षक...अरुण साव जस्टिस होते...आपको चौंकाएगा। मगर यह सही है कि अरुण साव को सूबे की दूसरी बड़ी कुर्सी तक पहुंचाने में भाग्य का प्रबल योग रहा है। बताते हैं, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान टिकिट के लिए अरुण साव को बुलाया गया मगर उन्हें आभास नहीं था कि मुझे टिकिट मिल सकती है, वे पुरी में थे। वहां उनका फोन लग नहीं पाया। ऐसे में, पार्टी ने लखनराम साहू को टिकिट दिया और वे जीते भी। 2019 में चूकि पार्टी को चेहरा बदलना था, सो अरुण को मैदान में उतारा गया और वे सांसद बन गए। उससे पहले रमन सरकार की दूसरी पारी में अरुण साव उप महाधिवक्ता रहे थे। 2018 में जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू के साथ अरुण का भी नाम था। मगर वक्त ने अरुण साव के लिए कुछ और सोच रखा था। सो, पार्थ प्रीतम जस्टिस बन गए। सोचिए अरुण अगर 2014 में सांसद बन गए होते तो जरूरी नहीं था कि 2019 में उन्हें कंटीन्यू किया जाता। क्योंकि, 2018 में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। और अगर जस्टिस बन गए होते तो सियासत से उनका नाता हमेशा के लिए जुदा हो गया होता।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सियासत और किस्मत-2</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ के सियासत में किस्मत का बड़ा रोल रहा है। वरना, दिसंबर 2018 में सबसे अधिक नाम उछलने और ढाई-ढाई साल के एपीसोड के बाद भी टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा। वहीं, भूपेश बघेल पूरे पांच साल सीएम रहे और अपने हिसाब से काम किए। डॉ0 रमन सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा। 2003 में वे सीएम जरूर बन गए थे मगर काफी दिनों तक चर्चा रही कि रमन कुछ दिनों के लिए सीएम बनाए गए हैं, सुषमा स्वराज फाइनली रमेश बैस को सीएम बनवा देगी। मगर उसके बाद क्या हुआ सभी को मालूम है। रमन 15 साल मुख्यमंत्री रहे। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नेता रहे विद्याचरण शुक्ल की मुख्यमंत्री बनने की बड़ी इच्छा रही। मगर ऐन वक्त पर अजीत जोगी उनकी कुर्सी ले उड़े। दिलीप सिंह जूदेव जैसे नेता के साथ भी किस्मत वाला ही मामला रहा। वरना, 2003 का विधानसभा चुनाव उनके नाम पर लड़ा गया था और वे ट्रेप नहीं हुए होते तो अत्यधिक संभावना थी कि वे मुख्यमंत्री बनते। उन्हें ट्रेप भी इसलिए किया गया ताकि, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने की राह आसान हो सके। जूदेव परिवार के लिए यह चुनाव भी अच्छा नहीं रहा। जूदेव का बेटा और बहू चुनाव हार गए मगर किस्मत देखिए कि उनसे जुड़कर राजनीति में पहचान बनाने वाले यूथ लीडर सुशांत शुक्ला अच्छी लीड से चुनाव जीत गए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">खरवास का मिथक</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के एक लीडर से टिकिट वितरण में देरी को लेकर सवाल पूछा गया तो जवाब मिला...पितृ पक्ष निकल जाए, फिर देखते हैं। वहीं, बीजेपी जैसी धर्म से जुड़ी पार्टी ने पितृ पक्ष के बावजूद टिकिट बांटा और चुनाव निकाला भी। ऐसे में, जो लोग खरवास में मंत्रियों के शपथ लेने पर संशय व्यक्त कर रहे हैं...उनके जिज्ञासा का समाधान हो जाएगा। दरअसल, बीजेपी के सीनियर नेता भी मानते हैं...सरकार खरवास के पहले बन गई है। मंत्रियों के शपथ में खरवास का कोई इश्यू नहीं है। क्योंकि, महत्वपूर्ण होता है मुख्यमंत्री। मंत्री मुख्यमंत्री में समाहित होते हैं। राजकाज में मुख्यमंत्री का हाथ बंटाने...सुचारु संचालन के लिए मंत्रियों की व्यवस्था की गई है। जाहिर है, खरवास मंत्रियों के शपथ में रोड़ा नहीं बनेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">व्हाट एन आइडिया!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ये बीजेपी है...जहां विधानसभा चुनाव के बाद बड़े-बड़ों को किनारे कर दिया गया मगर कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही। मंत्रिमडल गठन को लेकर भी कोई सुगबुगाहट नहीं। मुख्मयंत्री के शपथ ग्रहण के दिन छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान...तीनों राज्यों में बड़ी उत्सुकता रही...मंत्री में किसका नंबर लग रहा। मगर जैसे-जैसे वक्त निकलता जा रहा, चर्चाएं भी क्षीण पड़ती जा रही हैं। पुराने नेताओं की मंत्री बनने की स्वाभाविक दावा भी कमजोर पड़ता जा रहा है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी यही चाह रहा है। बड़े नेता मानसिक तौर पर तैयार हो जाएं...नए लोगों का समय आ गया है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दो-से-तीन पुराने मंत्री?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में सीएम समेत 13 मंत्री बन सकते हैं। इनमें से सीएम और दो डिप्टी सीएम शपथ ले चुके हैं। बचे 10। इनमें से दो सीटें लोकसभा चुनाव के बाद के लिए रिजर्व रखी जाएगी ताकि जो बढ़ियां काम करेगा, उसे पारितोषिक दिया जा सके। याने आठ मंत्री और बनेंगे। इनमें से अगर सबके सब नए हो जाएंगे, जैसा कि बीजेपी के अंदरखाने में चर्चाएं हैं, तो थोड़े दिनों तक सरकार चलाने में दिक्कत तो जाएगी। खासतौर से फरवरी में बजट सत्र होगा। संसदीय कार्य मंत्री को सदन की पूरी व्यवस्था देखनी होती है। संसदीय परंपराओं की उन्हें जानकारी होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में रविंद्र चौबे और अजय चंद्राकर जैसे संसदीय कार्य मंत्री रहे हैं। ठीक है...विपक्ष कमजोर है, बावजूद उसके पास भूपेश बघेल और चरणदास महंत जैसे अनुभवी नेता हैं। सदन में अगर सभी नए रहेंगे तो उन्हें छह महीने से ज्यादा ट्रेक पर आने में लग जाएगा। वो भी तब जब तगड़ी स्टडी करेंगे। लिहाजा, दो-तीन ऐसे पुराने मंत्रियों को मौका मिलने की अटकलें चल रही हैं, जिनका प्रदर्शन बढ़ियां और रिजल्ट देने वाला रहा है। वैसे भी पुराने मंत्री अब सिर्फ पावर चाहते हैं...पैसा कमाना उनका ध्येय नहीं। क्योंकि, 15 साल वाले को ही संभालने में वे परेशान होंगे...नया झमेला कर मोदी और ईडी के राडार पर क्यों आएंगे?</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नौकरशाहों की कुंडली</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">डीओपीटी ने भले ही कई मौकों पर आईएएस, आईपीएस के मूल्यांकन के लिए 360 डिग्री सिस्टम से इंकार किया है। मगर ये तो जाहिर है भारत सरकार में पोस्टिंग पाने वाले अफसरों पर निगरानी करने वाला कोई सिस्टम अवश्य है। बिना क्रॉस चेक किए वहां किसी अफसर को नियुक्ति नहीं मिलती। छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद अफसरों की पोस्टिंग में हो रही देरी के पीछे इसी 360 डिग्री सिस्टम की बात आ रही है। पता चला है, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की पूरी कुंडली खंगाली जा रही है...किसका क्या बैकग्राउंड रहा...पिछली सरकार में उसकी क्या भूमिका रही...पारफारमेंस कैसा है...अभी तक की सर्विस में क्या कोई उल्लेखनीय काम रहा है...उसका लाइफस्टाईल। इसके आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी। सूत्रों का कहना है कि उपर वालों को सबसे अधिक दिक्कत छत्तीसगढ़ में जा रही है। क्योंकि, आईटी, और ईडी के छापों से छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी दो साल से चर्चा में है। आखिर, दो आईएएस जेल में हैं ही। बहरहाल, सरकार बदलने पर सबसे पहले सीएम सचिवालय में नियुक्तियां होती हैं। मगर ये भी अभी प्रॉसेज में है। ब्यूरोक्रेसी में सवाल बहुतेरे हैं...कौन बनेगा सबसे ताकतवर सीएम सचिवालय का मुखिया। दिल्ली से आएगा या यहीं से होगा अपाइंट। देखना है, अफसरों की उत्सुकता कब तक शांत होती है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अमित लौटे छत्तीसगढ़</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">98 बैच के आईपीएस सीबीआई डेपुटेशन से लंबे समय बाद छत्तीसगढ़ लौटे हैं। पुलिस मुख्यालय में उन्होंने ज्वाईनिंग दे दी है। अब उन्हें पोस्टिंग का इंतजार है। दिल्ली से आए अमित को नई सरकार कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है। इनमें एसीबी और खुफिया चीफ भी शामिल हैं। अमित सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी जैसे प्रतिष्ठित पोस्टिंग कर चुके हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. नए सीएम विष्णुदेव साय का सचिवालय कोई एसीएस संभालेगा या प्रिंसिपिल सिकरेट्री?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. चरणदास महंत को किस्मत का धनी नेता क्यों कहा जाता है?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjosTFxKkeHmVIrtUeUOH3FdT5CO0Fswj1psMKmgEOYa9hHbUomn7Bbr5Sf0HalITiteEF6za3zCfhLZjZqM-AA5KecjQVljdS9gqhiHlzfdZ8Y75mcKn45LYXGEhhuP63VhTvpNucmwVvXWiO8wK0Pm_bRSktKEsFKnW59nqV39uQyiZYrq-lezPsrep0/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjosTFxKkeHmVIrtUeUOH3FdT5CO0Fswj1psMKmgEOYa9hHbUomn7Bbr5Sf0HalITiteEF6za3zCfhLZjZqM-AA5KecjQVljdS9gqhiHlzfdZ8Y75mcKn45LYXGEhhuP63VhTvpNucmwVvXWiO8wK0Pm_bRSktKEsFKnW59nqV39uQyiZYrq-lezPsrep0/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-37986371189119118032023-12-09T23:08:00.000-08:002023-12-09T23:08:38.324-08:00Chhattisgarh Tarkash: नए सीएम की चुनौती!<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 10 दिसंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नए सीएम की चुनौती!</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">मुख्यमंत्री के चयन के साथ ही कल छत्तीसगढ़ की दशा और दिशा तय हो जाएगी। सूबे के डेवलपमेंट को लेकर उनकी प्रायरिटी क्या रहेगी, ये भी स्पष्ट हो जाएगा। नए सीएम के सामने सबसे बड़ी चुनौती 20 हजार करोड़ का एक्सट्रा रेवेन्यू जुटाने का होगा। रमन सिंह चूकि 13 साल तक वित्त संभाले हुए हैं। वे अगर नहीं बने तो दीगर मुख्यमंत्री को वित्त के मोर्चे पर कई कड़े फैसले लेने होंगे। घोषणा पत्र में भाजपा ने किसानों, महिलाओं को लेकर वायदे किए हैं, उसके लिए 20 हजार करोड़ जुटाने वित्त मंत्री की जरूरत पड़ेगी। राज्य बनने के बाद अजीत जोगी सरकार में रामचंद्र सिंहदेव ने खजाना संभाला। उसके बाद बीजेपी के सरकार में दो साल अमर अग्रवाल वित्त रहे, उनके इस्तीफे के बाद फिर रमन सिंह ने वित्त संभाला। दो महीने बाद लोकसभा चुनाव है इसलिए कोई भी नया सीएम नए करों से बचना चाहेगा मगर टैक्स अगर ना बढ़ाएं तो राज्य के खजाने का बुरा हाल हो जाएगा। बीजेपी ने 25 दिसंबर तक दो साल का बोनस देने का वादा किया है। 15 दिन बाद ही 900 करोड़ बोनस के लिए सरकार को लोन लेना होगा। क्योंकि, खजाने की स्थिति ऐसी है कि कर्मचारियों को चार परसेंट डीए बढ़ाने का चुनाव आयोग ने परमिशन दे दिया था मगर सरकार आदेश नहीं निकाल पाई। लॉ एंड आर्डर कोई बड़ा मसला नहीं है। एसपी चाह लें तो 12 घंटे में अपराधियों की त्राहि माम हो सकती है। डेवलपमेंट के लिए नए सीएम को चुनिंदा काबिल अफसरों पर भरोसा कर उनके पीठ पर हाथ रखना होगा। अफसर तभी रिस्क लेकर काम करते हैं, जब उन्हें प्रोटेक्शन मिले। दो महीने बाद लोकसभा चुनाव है...नए सीएम के सियासी कौशल की परीक्षा भी होगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ओपी नहीं, ओपी सर!</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ओपी चौधरी विधायक निर्वाचित हो गए हैं और अब निश्चित तौर पर कुछ-न-कुछ बनेंगे ही। उनकी जीत से नौकरशाही का एक वर्ग खुश है तो एक वर्ग का चेहरे पर मायूसी है। ओपी 13 साल आईएएस रहने के बाद सियासत में आए हैं, सो अफसरों की कुंडली से वाकिफ हैं। जाहिर है, ऐसे में कुछ अफसर घबराएंगे ही। बहरहाल, बात नॉट ओपी...नाउ ओपी सर की....ब्यूरोक्रेसी में अधिकांश अफसरों का एक निक नेम है। ओपी चौधरी का भी ओपी। मगर अब चीफ सिकरेट्री से लेकर 2004 बैच के अफसरों को दिक्कत जाएगी। ओपी 2005 बैच के आईएएस रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 1989 बैच के सीएस से लेकर 2004 बैच तक 33 आईएएस हैं। इनके अलावा 2005 बैच के मुकेश बंसल, रजत कुमार, राजेश टोप्पो, आर संगीता और एस. प्रकाश भी। अब उन्हें ओपी सर बोलने की प्रैक्टिस करनी होगी...धोखे से कहीं मुंह से वही ओपी निकल निकल गया तो...!</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">डीजी की डीपीसी</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पुलिस महकमे में 92 बैच के आईपीएस अधिकारियों का डीजी प्रमोशन से दो साल से ड्यू है। इस बैच के पवनदेव और अरुणदेव गौतम जनवरी 2022 में एलिजिबल हो गए थे। अगले महीने 94 बैच के आईपीएस का डीजी प्रमोशन भी ड्यू हो जाएगा। इस बैच में तीन आईपीएस हैं...जीपी सिंह, हिमांशु गुप्ता और एसआरपी कल्लूरी। जीपी की सेवा समाप्त हो गई है इसलिए बचे हिमांशु और कल्लूरी। नई सरकार अगर जनवरी में डीपीसी कर दी तो छत्तीसगढ़ में डीजीपी अशोक जुनेजा को मिलाकर पांच डीजी हो जाएंगे। हालांकि, सूबे में डीजी के चार ही पद हैं। दो कैडर पोस्ट और दो एक्स कैडर। अशोक जुनेजा अगर कंटीन्यू किए तो फिर सितंबर तक एक को एमएचए से परमिशन लेकर स्पेशल डीजी बनाना होगा। 94 बैच से जस्ट नीचे 95 बैच में प्रदीप गुप्ता भी हैं। प्रदीप गुप्ता लोकल हैं। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग के आईजी रहने के अलावा कई जिलों के एसपी रह चुके हैं। कुल मिलाकर नई सरकार के पास डीजीपी के लिए च्वाइस की कमी नहीं है। इनमें से किसी को भी डीजीपी बना सकती है। डीजीपी के लिए अब 30 साल कंडिशन वाला रोड़ा भी नहीं रहा। वरना, 29 साल में एएन उपध्याय को डीजीपी बनाने तब के चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार को तगड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वाकया उस समय का है, जब सुनिल के रिटायरमेंट में हफ्ता भर बच गया था। उनके बैचमेट एमएचए सिकरेट्री थे। सुनिल ने बैचमेट के नाम लेटर लिख एडीजी अशोक जुनेजा को दूत बनाकर दिल्ली भेजा और हाथोहाथ परमिशन मंगवाए, तब जाकर उपध्याय डीजी पुलिस बने थे। बहरहाल, 25 साल वाले केटेगरी से डीजीपी का पेनल बड़ा हो जाए। अब तो 97 बैच तक के अधिकारियों का नाम डीजीपी के पेनल में आ जाएगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अमन की भूमिका</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ये बताने की आवश्यकता नहीं कि डॉ. रमन सिंह के 10 बरस के टेन्योर में पूर्व आईआरएस अफसर अमन सिंह की भूमिका कैसी रही। मगर बहुतों को ये नहीं मालूम होगा कि अबकी चुनाव में पर्दे के पीछे उनका कैसा रोल रहा। याद होगा, 2013 के विधानसभा चुनाव में बस्तर में बीजेपी पिछड़ रही थी तो उन्होंने सेकेंड फेज में गुरू बालदास को हेलिकाप्टर लेकर दौड़ा दिया था। नतीजा रहा आरक्षण कम करने के बाद भी अनुसूचित जाति की 10 में से नौ सीटें बीजेपी की झोली में आ गई थी। सियासी सूत्र बताते हैं, दिल्ली के नेताओं ने अमन के चुनावी तजुर्बो का इस बार भी बखूबी इस्तेमाल किया। अहमदाबाद में अमन सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक अदानी के लिए काम करते तो सुबह आठ से 10 बजे और रात 10 से एक बजे तक छत्तीसगढ़ पर वर्क करते। बीजेपी कोर कमेटी के एक मेम्बर ने बताया, चुनाव के प्रारंभ में हुई हाई प्रोफाइल मीटिंग में अमन की भूमिका तय कर दी थी। पता चला है, चुनाव जीताने वाले बीजेपी के रणनीतिकारों को अमन ने छत्तीसगढ़ का ब्लूप्रिंट बनाकर दे दिया था कि सरकार बनाने के लिए पार्टी को किस तरह का वर्क करना चाहिए। अमन को बीजेपी इस बात का क्रेडिट मानती है कि 15 साल सरकार में रहने के बाद भी कांग्रेस सरकार कागजों में रमन सिंह को घेर नहीं पाई। न किसी अफसर को जेल जाना पड़ा और न किसी नेता को।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सरगुजा चौंकाया</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सात नवंबर को पहले फेज की वोटिंग के बाद बस्तर में बीजेपी को सात से आठ सीटों के दावे किए जा रहे थे...रिजल्ट आए नौ। इसलिए बस्तर के नतीजे खास हैरान नहीं किए। मगर सरगुजा में कांग्रेस जीरो हो जाएगी, इसकी कल्पना बीजेपी के ओम माथुर और मनसुख मांडविया ने भी नहीं की होगी। बीजेपी की तरफ झुकाव रखने वाले सियासी पंडित भी मान रहे थे...कितनी भी बुरी स्थिति होगी 14 में से सात-से-आठ सीट बीजेपी को मिलेगी और इसी के आसपास सत्ताधारी पार्टी को। मगर सरगुजा का मेंडेट लोगों को सकते में डाल दिया। आखिर कौन ऐसा सोचा था...डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव तक को हार का मुंह देखना पड़ेगा। निश्चित तौर पर जितना नौ मंत्रियों की हार ने नहीं चौंकाया, उससे अधिक सरगुजा का अप्रत्याशित परिणाम ने चौंका दिया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कांग्रेस की टिकिट</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अमित शाह और मनसुख मांडविया बीजेपी को सत्ता में लाने में कामयाब रहे वहीं कांग्रेस की हार में कांग्रेस नेताओं ने ईमानदारी के साथ अपना-अपना योगदान दिया। पार्टी के चार बड़े नेता...चारों ने टिकिटों का बंटवारा किया ही, दूसरे के कोटे की सीटों पर भी प्रत्याशियों का नाम जोड़ने-काटने की कोशिश में कोई कमी नहीं की। बात उत्तर रायपुर की...डॉ. राकेश गुप्ता को टिकिट दिया जाने लगभग फायनल हो गया था। इसी रणनीति के तहत कुलदीप जूनेजा को हाउसिंग बोर्ड का चेयरमैन का कार्यकाल बढ़ाया गया कि विधायक के बदले उनके पास चेयरमैनशिप रहेगा। राकेश गुप्ता ने टिकिट क्लियर समझ युद्ध स्तर पर प्रचार शुरू कर दिया था...सोशल मीडिया पर आप सबने देखा भी होगा, उनकी सक्रियता। मगर बीजेपी ने जैसे ही पुरंदर मिश्रा को मैदान में उतारा...कांग्रेस के कुछ नेताओं ने फिर से एक सर्वे करा दिल्ली मैसेज करा दिया...पुरंदर के खिलाफ कुलदीप चुनाव निकाल सकते हैं। और, राकेश गुप्ता को खिसकाकर कुलदीप का टिकिट फायनल करा दिया। कांग्रेस में इस तरह का खेला करीब दर्जन भर सीटों पर हुआ। जगदलपुर में जतीन जायसवाल को टिकिट मिली तो वे उनके लोग भी चौंक गए...उन्हें टिकिट की कभी उम्मीद नहीं रही। आलम यह हुआ कि कांग्रेस परस्त हो गई।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बसपा का टूटा तिलिस्म</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता गंवा बैठी तो बहुजन समाज पार्टी को ऐसा धक्का लगा कि उसके संस्थापक कांशीराम की आत्मा भी कलप रही होगी। पिछले 40 साल से बसपा का छत्तीसगढ़ में एक से दो सीटें झोली में जाती रही है। खासकर, जांजगीर और बिलासपुर का ग्रामीण इलाके में बीएसपी का अच्छा वोट बैंक था। पिछले चुनाव में भी पामगढ़ और जैजैपुर, बीएसपी को दो सीटें मिली थी। इस बार भी दो सीटें तय मानी जा रही थी मगर बसपा पहली बार जीरो हो गई। इसका फायदा अविभाजित जांजगीर में कांग्रेस को मिला। जांजगीर और सक्ती की सभी छह सीटें कांग्रेस जीतने में इसलिए कामयाब हो गई कि बसपा के वोट बैंक कांग्रेस में शिफ्थ हो गए। यहां तक कि चंद्रपुर में संयोगिता सिंह जूदेव के जीत तय मानी जा रही थी मगर वहां के बसपा प्रत्याशी आखिरी तक एक्टिवेट नहीं हुए। इसका खामियाजा हुआ कि बसपा का वोट रामकुमार यादव को मिल गया। संयोगिता पराजित हो गईं। अब सवाल है, बसपा खतम क्यों हुई...? दरअसल, कांशीराम ने जांजगीर जिले से बसपा की चुनावी पारी की शुरूआत की थी। वे खुद 85 का लोकसभा इलेक्शन जांजगीर सीट से लड़े थे। मगर यूपी में जिस तरह बसपा सवर्णां और पिछड़ो के तरफ मूव हुई और इस कारण उसका अस्तित्व खतम हुआ, वैसा ही कुछ छत्तीसगढ़ में हुआ। बसपा में दलितों की बजाए ओबीसी और सवर्ण नेताओं को वेटेज मिलने लगा था। यही कारण है कि बसपा का परंपरागत वोट खिसक गया। और इस चुनाव में जीरो पर सफर समाप्त हो गया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आयोग का ऐसा खौफ</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">भले ही आचार संहिता के दौरान भी अफसर बीजेपी नेताओं से मिलते रहे मगर काउंटिंग के दिन तेलागंना के डीजीपी को आयोग ने सस्पेंड कर दिया। डीजीपी अपनी कुर्सी सुरक्षित करने कांग्रेस प्रेसिडेंट से मिलने उनके बंगले चले गए थे। तेलांगना में हालांकि कांग्रेस की सरकार बनने वाली थी मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं था। इसके बाद भी किसी भी अफसर की हिम्मत नहीं पड़ी पूर्व सीएम डॉ0 रमन सिंह को बधाई दे आएं। 5 दिसंबर शाम को आचार संहिता समाप्ति का ऐलान होने के अगले दिन अफसरों का रेला उमड़ पड़ा मौलश्री विहार तरफ। इस दिन 50 से 60 आईएएस और 40 से 50 आईपीएस अफसरों ने रमन सिंह को बुके भेंट कर फोटो खिंचवाई।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">न घर के, न घाट के</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">इस चुनाव में बीजेपी से कांग्रेस ज्वाईन किए नंदकुमार साय की स्थिति न घर की रही और न घाट की। शायद पार्टी नहीं छोड़ी होती तो कोई भूमिका मिल जाती। मगर इस उम्र में साय जी गुलाटी मारकर फंस गए। साय से कांग्रेस को भी कोई लाभ नहीं हुआ। आदिवासी क्षेत्रों में चकरी उल्टी घूम गई। वैसे भी सायजी ने सियासत में कभी वफादारी नहीं निभाई। छत्तीसगढ़ बीजेपी के पितृ पुरुष लखीराम अग्रवाल को उन्होंने कैसा झटका दिया, उनके करीबी बता देंगे। लखीराम ने ही नवंबर 2000 में नंदकुमार को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। इसको लेकर एकात्म परिसर में आगजनी और तोड़फोड़ हो गई थी। वही, सायजी नेता प्रतिपक्ष रहते लखीराम का साथ नहीं दिए, जब अजीत जोगी उनके व्यवसाय पर चोट करने का प्रयास किया। लिहाजा, अब उनके लिए न बीजेपी में लौटने का कोई चांस रहेगा और न ही कांग्रेस में कोई खास स्पेस मिलेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे<br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. इस बात से आप कितना सहमत हैं कि डॉ0 रमन सिंह को छत्तीसगढ़ का सबसे बड़े नेता बनाए रखने में भूपेश बघेल की बड़ी भूमिका रही?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. जिन जिलों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली, क्या उन जिलों के कलेक्टरों को नई सरकार को ईनाम देना चाहिए?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLCYIdMaz5p1wRmcrrWNCz1My0ETFHqbxFyuLkM59MSL5C_dADVvvuEUNdkClfnRhi4LKJBsDMPuqMBC7P7xmo5hsbIOUKbecfU22tChfE_XnjC1ALVUtTlB9lBgwb3ESkgxF9Y3hLwtPoGLz1-dLNz3WbchtQBeXsiiGJ0rgadnooTP5HfUedklQJdpE/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLCYIdMaz5p1wRmcrrWNCz1My0ETFHqbxFyuLkM59MSL5C_dADVvvuEUNdkClfnRhi4LKJBsDMPuqMBC7P7xmo5hsbIOUKbecfU22tChfE_XnjC1ALVUtTlB9lBgwb3ESkgxF9Y3hLwtPoGLz1-dLNz3WbchtQBeXsiiGJ0rgadnooTP5HfUedklQJdpE/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-12866587567865707642023-12-02T20:13:00.000-08:002023-12-02T20:13:22.342-08:00Chhattisgarh Tarkash: आपकी भी जय-जय, आपकी भी...<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 3 दिसंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आपकी भी जय-जय, आपकी भी...</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सर्वे एजेंसियों ने अबकी गजब का कमाल किया है। सिर्फ एक अल्पज्ञात एजेंसी ने एक फिक्स संख्या कोट किया। बाकी में 10-10 सीटों का मार्जिन। मसलन कांग्रेस 45 से 55, तो बीजेपी 35 से 45। किसी ने बीजेपी को दिया 33 से 46 तो किसी ने कांग्रेस को 47 से 57। 90 विधानसभा सीटों के सर्वे में अगर 10-10 सीटों का अंतर आ रहा तो समझ सकते हैं कि सर्वे किस अंदाज और फर्मेट में हुआ होगा। सर्वे देखकर लगता है, आपकी भी जय-जय, आपकी भी जय-जय। तभी सीएम भूपेश बघेल ने भी कहा कि सर्वे से कहीं अधिक सीटें हमारी आएगी तो पूर्व सीएम रमन सिंह ने भी यही दावे किए। हमने इसी तरकश में लिखा था कि सर्वे एजेंसियां वोटरों के साइलेंट रहने से परेशान हैं। सर्वे में यह कंफ्यूजन साफ झलक रहा। जिस तरह अंडर करंट रहा, उससे प्रतीत होता है कि जिस पार्टी की भी सरकार आएगी, उसे ठीकठाक बहुमत मिलेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">5 गुलदस्ते की कहानी</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान परिवर्तन की हवा तो थी मगर छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी समेत नामचीन लोगों को लगता था कि बीजेपी किसी तरह सरकार बना लेगी। बावजूद इसके, अधिकांश अधिकारियों ने काउंटिंग के रोज पांच बड़ा गुलदस्ता तैयार करवाया था। एक वर्तमान मुख्यमंत्री के लिए और कहीं बाजी पलटी तो फिर कांग्रेस के चार नेताओं के लिए। दरअसल, उस समय तक तय नहीं था कि कांग्रेस में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। सो, भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू...चारों खेमों के अपने दावे थे...संभावनाएं थीं। पीसीसी चीफ के नाते भूपेश की तगड़ी दावेदारी थी तो टीएस सिंहदेव का भी अपना दावा था। ताम्रध्वज पार्टी के इकलौते सांसद थे, सो संभावनाएं उनकी भी कम न थी। महंत की किस्मत पर अत्यधिक भरोसा करने वाले लोगों में परसेप्शन था कि कका और बाबा में कुर्सी को लेकर कोई झंझट हुआ तो सिकहर टूट सकता है। यही वजह रही कि काउंटिंग का रुझान समझ में आते ही इन चारों नेताओं के बंगलों पर भीड़ उमड़ पड़ी। आलम यह था कि राजधानी के वही अफसर, वही चंद चेहरे इन चारों बंगले पर बार-बार टकरा रहे थे। हालांकि, इस बार रुलिंग पार्टी के साथ ये दिक्कत नहीं है। कांग्रेस अगर जीती तो सीएम हाउस। और अगर बीजेपी जीती तो...? एक ब्यूरोक्रेट्स ने चुटकी ली...बीजेपी में कोई फेस है नहीं...रमन सिंह को प्रतिकात्मक मान उन्हें ही गुलदस्ता दे आएंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ताम्रध्वज की चूक</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">याद कीजिए...2018 का दिसंबर महीना। 13 दिसंबर को नतीजे आने के बाद सीएम की कुर्सी को लेकर दिल्ली में सियासत कैसी गरमाई थी। सबसे लास्ट में छत्तीसगढ़ का फैसला हो पाया। बताते हैं, सांसद होने की वजह से राहुल गांधी ने सीएम के लिए ताम्रध्वज के नाम को ओके कर दिया था। मगर उन्हें कहा गया कि अधिकारिक ऐलान तक इस बारे में कोई बात नहीं करनी है। मगर किसी तरह ताम्रध्वज के परिजनों तक भिलाई बात पहुंच गई और लगे फटाके फूटने। इसी के बाद मामला यूटर्न ले लिया। उसी के बाद भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव खुलकर सामने आए। फिर बंद कमरे में बातें शुरू हुई और फिर भूपेश बघेल के नाम का ऐलान हो गया। सियासी प्रेक्षक मानते हैं कि ताम्रध्वज को सीएम बनाने की बात अगर लीक नहीं हुई होती तो मामला कुछ और होता।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब्यूरोक्रेसी में बदलाव</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">किसी भी स्टेट में नई सरकार के गठन के साथ नौकरशाही में बड़ा बदलाव होता है। मगर सरकारें अगर रिपीट होती हैं तो फिर लिस्ट की साइज छोटी हो जाती है। ऐसा इसलिए कि समझा जाता है उन्हीं अफसरों के बदौलत पार्टी को कामयाबी मिली है। ये अवश्य होता है कि चुनावी आचार संहिता के दौरान अगर-मगर करने वाले अधिकारियों को सरकार बदलते ही उनकी हैसियत का अहसास करा दिया जाता है। ऐसे में, भूपेश बघेल सरकार अगर रिपीट हुई तो जाहिर है, लिस्ट बहुत लंबी नहीं होगी। सबसे पहले उन पांच कलेक्टर, एसपी की फिर से उन्हीं जिलों में पोस्टिंग का आदेश निकलेगा। हालांकि, इसमें एक रिस्क यह भी है कि लोकसभा का ऐलान होते ही फरवरी एंड या मार्च फर्स्ट वीक में फिर से इन अधिकारियों को हटा दिया जाएगा। मगर सरकारें आमतौर पर मैसेज देने के लिए फिर से पोस्टिंग देती है। पिछली सरकार में भी एक कलेक्टर को फिर से लोकसभा चुनाव में हटा दिया गया था। बहरहाल, इन पांच अफसरों के आदेश के बाद फिर, राडार पर आने वाले अधिकारियों का नंबर आएगा। और बीजेपी आई तो...तब तो ब्यूरोक्रेसी का पूरा सीन बदल जाएगा। दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस सरकार आई थी, उस समय 28 में से 23 जिलों के कलेक्टर बदल गए थे। पहली लिस्ट में ही 58 अफसरों के नाम थे। सो, ब्यूरोक्रेसी भी दम रोककर 3 तारीख का इंतजार कर रही है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">CS, DGP, PCCF चेंज?</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">किसी भी प्रदेश में सबसे बड़े स्केल वाले तीन पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजी पुलिस और पीसीसीएफ याने हेड ऑफ फॉरेस्ट। सरकार बदलने पर इन तीनों को आमतौर पर सबसे पहले बदला जाता है। खासतौर से सीएस और डीजीपी को। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो उसके तीसरे दिन डीजीपी एएन उपध्याय हटा दिए गए। उसके महीने भर बाद चीफ सिकरेट्री अजय सिंह की भी कुर्सी चली गई थी। हालांकि, 2003 में जब बीजेपी की सरकार बनी थी, उस समय एसके मिश्रा सीएस थे और अशोक दरबारी डीजीपी। सरकार ने सीएस को कंटिन्यू किया। दरबारी को बदलना चाहा मगर कोई विकल्प नहीं था। ओपी राठौर जब डेपुटेशन से लौटे तो छह महीने बाद दरबारी को हटाया गया। अब बात इस चुनाव की....इस समय सीएस अमिताभ जैन और डीजीपी अशोक जुनेजा एकदम सेफ मोड में हैं। कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्हें हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता और बीजेपी आई तब भी दोनों को कोई खतरा नहीं। क्योंकि, दोनों पर कोई लेवल नहीं चस्पा है और न ही फिलहाल कोई अल्टरनेटिव है। सीएस में अमिताभ के बाद रेणू पिल्ले हैं, और उनसे एक बैच नीचे सुब्रत साहू। दोनों का रिटायरमेंट में चार से पांच साल बचे हैं। अमिताभ का रिटायरमेंट भी 2025 में है। डीजीपी में विकल्प का और टोटा है। जुनेजा 60 साल के हिसाब से इस साल जून में रिटायर हो जाते। मगर पूर्णकालिक डीजी का आदेश उनका सितंबर 2022 में निकला। दो साल के नियम के अनुसार वे अगले साल सितंबर में रिटायर होंगे। हालांकि, सरकार चाहे तो उन्हें हटा सकती है मगर सवाल वहीं, क्यों? जुनेजा से नीचे 90 बैच के राजेश मिश्रा हैं, वे अगले महीने जनवरी में रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद पवनदेव और अरुणदेव का नंबर है। मगर दोनों अभी डीजी प्रमोट नहीं हुए हैं। लिहाजा, सीएस, डीजीपी बदलने की कोई संभावनाएं नजर नहीं आती। रही बात पीसीसीएफ श्रीनिवास राव की तो वे बीजेपी में भी ठीक-ठाक पोजिशन में रहे और इस सरकार में भी। सात आईएफएस अफसरों को सुपरसीड करके उन्हें हेड ऑफ फारेस्ट बनाया गया है। इससे उनके रसूख का अंदाजा आप लगा सकते हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे<br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. काउंटिंग को लेकर सरकार के कितने मंत्रियों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. क्या ये सही है कि बीजेपी के एक युवा नेता सर्वाधिक वोटों से जीत दर्ज करने वाले हैं?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0BvCCaNpJEeQtLX-swSLkjmc35jMGhO7ubCxdBNtj9xcSqWBuW4IlC3QNmHbQPvOGh0zIswImHAW07pPxOupoxHq3TNuxAvZdtZqvIzu2_aXLIDW-1zVzWxJQnHhH19El8fwne21JAS4GFHTEywrfTVg6hYkRS9gq0hXVeOzI6r3SQK46_65KSPPz17A/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0BvCCaNpJEeQtLX-swSLkjmc35jMGhO7ubCxdBNtj9xcSqWBuW4IlC3QNmHbQPvOGh0zIswImHAW07pPxOupoxHq3TNuxAvZdtZqvIzu2_aXLIDW-1zVzWxJQnHhH19El8fwne21JAS4GFHTEywrfTVg6hYkRS9gq0hXVeOzI6r3SQK46_65KSPPz17A/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-4926985140944567632023-11-21T05:13:00.000-08:002023-11-21T05:13:47.595-08:00Chhattisgarh Tarkash: परसेप्शन बदला तो क्यों?<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 19 नवंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">परसेप्शन पर सवाल</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">15 सितंबर तक कांग्रेस एकतरफा जीत रही थी...महीने भर में बीजेपी के प्रति परसेप्शन अचानक बदला कैसे, ये सवाल सियासी समीक्षकों भी मथ रहा है। दरअसल, परसेप्शन चेंज होने की शुरुआत के पीछे दो अहम सियासी घटनाएं हैं। पहली अमित शाह द्वारा मनसुख मांडविया को चुनाव प्रभारी बनाकर रायपुर भेजना और दूसरा भूपेश है तो भरोसा है कि जगह कांग्रेस है तो भरोसा का स्लोगन देना। इसके बाद यकबयक चुनाव से जुड़ी सारी समितियों में कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं की इंट्री। कांग्रेस पार्टी ने इसके जरिए एकता और सामूहिक नेतृत्व का संदेश देना चाहा, मगर इसको लेकर कई तरह की बातें होने लगी। टिकिट वितरण में भी गुटबाजी साफ झलकी। सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं कि गुटों को खुश करने के चक्कर में कांग्रेस ने करीब 10 कमजोर चेहरों पर दांव लगा दिया। दूसरी ओर बीजेपी ने साधी हुई लिस्ट जारी की। एक सूत्रीय एजेंडा...जिताऊ कैंडिडेट। ईसाई समुदाय से दो-दो टिकिट, इसका मतलब समझा जा सकता है। फिर कांग्रेस की बराबरी करते हुए किसानों और मजदूरों को लेकर बड़ी घोषणाएं। प्लस में 70 लाख महिलाओं को 12 हजार सालाना भी। इन्हीं वजहों से परसेप्शन तेजी से टर्न हुआ...बीजेपी टक्कर में आ गई। परसेप्शन अब वोटों में कितना तब्दील हुआ या परसेपशन ही रह जाएगा, ये 3 दिसंबर को पता चलेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">टक्कर नहीं, स्पष्ट बहुमत</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">नेशनल मीडिया और सर्वे एजेंसियों के नुमाइंदे छत्तीसगढ़ में इस बात को लेकर परेशान रहते हैं कि यहां के लोग प्रत्याशियों को लेकर खुलकर बात नहीं करते। इससे वोटिंग के ट्रेंड का सही अनुमान लगा पाना कठिन हो जाता है। 2018 के इलेक्शन में आखिर किस एजेंसी ने बताया कि 15 साल सत्ता में रही भाजपा औंधे मुंह लुढ़क जाएगी। बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटीइकांबेंसी की बातें जाहिर थी मगर ये कोई नहीं भांप पाया कि बीजेपी की इतनी करारी पराजय होगी। इस बार भी सर्वे एजेंसियों के सामने यही कठिनाई सामने आई। अलबत्ता, इस बार स्थिति ये है कि राजनीतिक पंडित भी कोई फाइंडिंग नहीं दे रहे...सिर्फ ऐसा हुआ तो वैसा होगा और ये हुआ तो फलां भारी पड़ेगा और लास्ट में ये-ये सीटें फंस गईं हैं या टक्कर है...बोलकर कन्नी काट ले रहे। याने कोई भी ये बता पाने के पोजिशन में नहीं है कि फलां पार्टी का पलड़ा भारी है, और वह सरकार बना लेगी। कुछ लोगों का मानना है, इस बार 2013 के विस चुनाव की तरह भी मामला जा सकता है...जब कांउटिंग के दिन दोपहर एक बजे तक कांग्रेस सरकार बना रही थी और आधे घंटे के बाद यकबयक मामला ऐसा पलटा कि भाजपा आगे निकल गई। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने भी माना था, मुकाबला कठिन था...हमलोग पोहा खाते टीवी देखते रहे। बहरहाल, बात इस चुनाव की...तो इसकी भी संभावना कम नहीं कि किसी-न-किसी पार्टी के तरफ अंडर करंट है, जो सतह दिखाई नहीं पड़ रहा। अगर छत्तीसगढ़ियावाद, गांव-गंवई और किसान का अंडर करंट रहा तो रुलिंग पार्टी को रिपीट होने से रोका नहीं जा सकता। ठीक है, पहले फेज में कांग्रेस लूज कर रही है मगर ये भी सत्य है कि कांग्रेस का प्रभाव धान उत्पादन करने वाली 50 विस सीटों पर ज्यादा है। इन्हीं सीटों पर छत्तीसगढ़ अस्मिता भी है। दूसरी ओर अगर एंटीइंकांबेंसी, करप्शन, हिन्दुत्व और पीएससी घोटाले पर अगर बीजेपी के पक्ष में करंट चला तो फिर वो आगे निकल जाएगी। कुल मिलाकर टक्कर की बजाए बनेगी तो बहुमत की सरकार ही...किसी एक पार्टी को सीटें 50 से ऊपर जाएगी। क्योंकि, छत्तीसगढ़ में त्रिशंकु सरकार का कभी ट्रेंड नहीं रहा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">हिन्दुत्व का लिटमस टेस्ट</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">ये ठीक है कि छत्तीसगढ़ में जात-पात और धर्म कभी मुद्दा नहीं रहा। मगर इस चुनाव में हवाएं कुछ बदली-बदली सी दिखाई पड़ रही है। लोग हिन्दुत्व को लेकर सजग दिख रहे हैं। अपनी गाड़ियों में मैं हिन्दू...लिखा जा रहा...तो हिन्दुत्व के झंडे लगाने में भी अब कोई हिचक नहीं। नारायणपुर में हिंसा और बिरनपुर में सांप्रदायिक विवाद में हत्या की वारदात ने भी हिन्दुत्व को पर्याप्त खाद-पानी दिया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और असम के सीएम हेमंत विस्वा सरमा के जरिये बीजेपी इस फसल को काटने की कोशिश में पीछे नहीं रही। छत्तीसगढ़ हिन्दुत्व का प्रयोगशाला बनेगा या नहीं, तीन सीटें ये तय करेंगी। कवर्धा, साजा और बिलासपुर। कवर्धा में कई बार सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी है। इस सीट पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई है। वहां पिछले कुछ सालों में में कई बार हिंसक घटनाएं हुईं। इस सीट को लेकर परस्पर दावे किए जा रहे हैं। उधर, साजा में बिरनपुर कांड के पीड़ित पिता को बीजेपी ने चुनाव में उतारा है, इसके निहितार्थ समझे जा सकते हैं। और तीसरा, जो सबसे अहम है...बिलासपुर में महीने भर पहले तक वर्तमान विधायक को लेकर परसेप्शन कुछ और था। मगर मुस्लिम समाज के एक व्यक्ति का पैर धोते और अल्लाहु अकबर नारा लगाते वीडियो वायरल होते ही लोगों की विधायक के प्रति धारणा बदल गई। ये तीनों सीटें अभी कांग्रेस के पास है। अगर वहां उलटफेर हो गया तो फिर समझिए कि छत्तीसगढ़ में हिन्दुत्व की इंट्री हो गई। ऐसे में फिर चुनाव का सीन बदल जाएगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">संवैधानिक कुर्सी खाली</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">चुनाव की आपाधापी में राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह पोस्टिंग का रिकार्ड बनाकर 10 नवंबर को विदा हो गए। रिकार्ड इसलिए क्योंकि छह साल का निर्वाचन आयुक्त का उनका कार्यकाल डेढ़ साल पहले ही खत्म हो चुका था। राज्य सरकार ने छह छह महीने करके तीन बार उन्हें एक्सटेंशन दिया। इस तरह साढ़े सात साल लंबा हो गया उनका टेन्योर। देश में ये अपने आप में रिकार्ड होगा। बहरहाल, राज्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पोस्ट है। इसे खाली नहीं रखा जा सकता। राम सिंह जब रिटायर हो रहे थे, उस समय पूर्व आईएएस डीडी सिंह का नाम चर्चा में आया था पर बात आगे बढ़ नहीं सकी। इस पद पर रिटायर आईएएस की पोस्टिंग की जाती है। वो भी सीनियर। राम सिंह पोस्टिंग के मामले में बेहद किस्मती रहे। चार सबसे बड़े जिले की दस साल कलेक्टरी किए। फिर जूनियर सचिव स्तर के अफसर होने के बाद भी निर्वाचन की रिकार्ड पोस्टिंग। खैर, अभी पद खाली है। अब नई सरकार में ही लगता है पोस्टिंग होगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">भूपेश का कद बढ़ा!</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">इस बार का विधानसभा चुनाव कई मायनो में अलग रहा। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों की बजाए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुद्दा बनें और नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर प्रधानमंत्री के निशाने पर रहे। पीएम मोदी ही नहीं, दिल्ली से आने वाले केंद्रीय नेताओं समेत यूपी, असम के फायरब्रांड मुख्यमंत्रियों ने राहुल और प्रियंका की बजाए भूपेश को ही टारगेट करना मुनासिब समझा। ईडी ने भी महादेव ऑनलाइन सट्टा में 508 करोड़ वाला प्रेस नोट चुनाव प्रचार के दौरान ही जारी किया। पूरे चुनाव में सामूहिक नेतृत्व पर जोर देने वाली कांग्रेस को भी लास्ट में महसूस हुआ कि भूपेश पर भरोसा करना होगा। तभी वोटिंग से एक दिन पहले 16 नवंबर को अखबारों में उनकी सिंगल फोटो से कांग्रेस पार्टी का बड़ा इश्तेहार जारी हुआ। दरअसल, कांग्रेस के लगभग सभी नेताओं की सीटें फंसी हुई थी, लिहाजा अधिकांश बड़े नेता अपनी सीट पर सिमट कर रह गए। सीएम भूपेश अकेले पूरे प्रदेश के दौरे करते रहे। बीजेपी के रणनीतिकार भी इस बात को जानते थे कि कांग्रेस को हराने के लिए भूपेश को टारगेट करना होगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">थैंक्स गॉड</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">17 नवंबर की शाम चुनाव निबटते ही सूबे के कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों ने ईश्वर को याद किया...तेरा लाख लाख शुक्र...खतरा खत्म हुआ। जाहिर है, इस चुनाव में कलेक्टर, एसपी सबसे ज्यादा टेंशन में थे। चुनाव का ऐलान होने के तीसरे दिन ही आयोग ने दो कलेक्टर और तीन एसपी बदल दिए थे। चुनाव आयोग ने ऐसा कौवा टांगा कि फिर किसी कलेक्टर, एसपी की इधर उधर करने की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि, कई चतुर कलेक्टर, एसपी ने इसे ही हथियार बना अपना तनाव खत्म कर लिया। कोई नेता अगर व्हाट्सएप कॉल पर भी उन्हें कुछ बोलता था तो उनका एक ही जवाब, देख लीजिए मेरा फोन सर्विलेंस पर है...इसके बाद सामने वाले की सिट्टी पिटी गुम।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">55 सीटें कांग्रेस को!</span></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">भारतीय प्रशासनिक सेवा को देश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित सर्विस मानी जाती है। उन्हें ट्रेनिंग ऐसी दी जाती है कि वे सारे दायित्वों का निर्वहन कर सकें। ऐसी सेवा के अधिकारियों पर जनता गौर करती है। अब बात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर तो अधिकांश अफसरों का निजी सर्वे बता रहा कि सत्ताधारी पार्टी रिपीट हो रही है। कई अफसर 55 सीट तक कांग्रेस को दे रहे हैं। हालांकि, 2018 में ब्यूरोक्रेसी बीजेपी की सरकार भी बना रही थी। मगर तब वह मात्र 15 सीट पर सिमट गई। इससे पहले भी ब्यूरोक्रेसी का आंकलन कभी सही नहीं उतरा। देखना है, इस बार क्या होता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">1. ईडी के छापे चुनाव में मुद्दा क्यों नहीं बन पाया?</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2. क्या छत्तीसगढ़ में एकनाथ शिंदे एपिसोड की संभावना है?</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhm2uBbHHZ8r9Cf3ld98itWqCgUqFPwCpVE39gsgVRyGebVCd8vllgIKoNfE6cpTorWAQBxoRy7dNxRzWA4k5TC-RXQek79XHRqaCDr3OlNU4QYKMYqfBfk9CxK0cv_f6yo7LTbM5Y_P8clP1EO9ZxQGkW6jTqosa8_c_PTcAWTv3zevEy8qW9Mt0Qar84/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhm2uBbHHZ8r9Cf3ld98itWqCgUqFPwCpVE39gsgVRyGebVCd8vllgIKoNfE6cpTorWAQBxoRy7dNxRzWA4k5TC-RXQek79XHRqaCDr3OlNU4QYKMYqfBfk9CxK0cv_f6yo7LTbM5Y_P8clP1EO9ZxQGkW6jTqosa8_c_PTcAWTv3zevEy8qW9Mt0Qar84/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-43937482665107363582023-11-04T23:45:00.003-07:002023-11-04T23:45:49.946-07:00Chhattisgarh Tarkash: नई सरकार...कठिनतम चुनौती<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 5 नवंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नई सरकार...कठिनतम चुनौती</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">3 दिसंबर को काउंटिंग के बाद हफ्ते-दस दिन में छत्तीसगढ़ में नई सरकार का गठन हो जाएगा। अब सरकार किसी की भी बने, उसके समक्ष बड़ी चुनौती होगी करीब 20 हजार करोड़ एक्सट्रा राजस्व जुटाने का। अगर ऐसा नहीं हुआ तो विकास कार्यो का बंटाधार हो जाएगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे में जिस तरह घोषणाएं की जा रही, उससे खजाने पर बड़ी चोट पड़ने वाली है। बीजेपी ने कल संकल्प पत्र में 3100 में धान खरीदने का वादा किया है। धान का समर्थन मूल्य 2300 है। इस हिसाब से 800 रुपए अलग से देना होगा। ये करीब 10 हजार करोड़ होता है। इसके अलावा महिलाओं को 12 हजार सलाना मिलेगा। छत्तीसगढ़ में करीब 70 लाख विवाहित महिलाएं हैं। इस योजना से खजाने पर करीब साढ़े नौ हजार करोड़ का व्यय आएगा। भाजपा ने अपने समय के दो साल का बोनस भी देगी, इस पर करीब चार हजार करोड़ खर्च होंगे। ये तो बीजेपी का है। जाहिर है, कांग्रेस भी कुछ अलग करने की कोशिश करेगी। 10 हजार करोड़ की कर्ज माफी ऐलान कांग्रेस पहले ही कर चुकी है। घोषणा पत्र में हो सकता है, धान का रेट 3200 हो जाए। अर्थशास्त्र को समझने वाले एक बड़ी सियासी पार्टी के एक बड़े नेता ने इस स्तंभकार से अपनी चिंता साझी की...अगर सलाना 20 हजार करोड़ अतिरिक्त राजस्व नहीं जुटाया गया तो छत्तीसगढ़ के विकास की लाइन, लेंग्थ इस कदर बिगड़ जाएगा कि इसे फिर संभालना मुश्किल हो जाएगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पति-पत्नी मंत्री</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एक मंत्रिमंडल में पति, पत्नी दोनों मंत्री...! देश में ऐसा आपने कभी सुना नहीं होगा। मगर एक बार ऐसा हुआ है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1952 में। चूकि छत्तीसगढ़ से जुड़ा मामला है इसलिए इसकी प्रासंगिकता भी है। तब देश में पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ था। रविशंकर शुक्ल मंत्रिमंडल में वीरेन्द्र बहादुर सिंह और उनकी पत्नी पद्मावती देवी दोनों ही एक साथ मंत्री बने। वीरेन्द्र बहादुर सिंह खैरागढ़ से और उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी बोरी देवकर से जीतकर विधायक बने। इस तरह पद्मावती छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री भी रहीं। 1918 में यूपी के प्रतापगढ़ जन्मी पद्मावती प्रतापगढ़ के राजा प्रताप बहादुर सिंह की छोटी बेटी थीं। सोलह साल की उम्र में पद्मावती की शादी खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह के साथ हुई। वे 1952 से 1967 तक विधानसभा और 1967 से 1971 तक लोकसभा सांसद भी रहीं। पद्मावती देवी का इंदिरा गांधी से बहुत करीबी रिश्ता था। 1956 से 1967 तक मध्यप्रदेश शासन के लोक स्वास्थ्य, समाज कल्याण, यांत्रिकी और नगर निकाय आदि विभागों में मन्त्री पद पर रहीं थीं। पद्मावती देवी इतनी लोकप्रिय थीं कि 1957 के विधानसभा चुनाव में वे वीरेन्द्र नगर से निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं। खैरागढ़ के विश्व प्रसिद्ध इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना पद्मावती देवी ने ही की थीं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अपवाद मंत्री</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ बनने के बाद 23 साल में चार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से दो विभाग ऐसे हैं, जिनके मंत्री आमतौर पर चुनाव नहीं जीतते। विभाग हैं वन और कृषि। इन दोनों में सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल अपवाद रहे हैं। रमन सरकार के दौरान अलग-अलग पारियों में दोनों मंत्रालयों को उन्होंने संभाला और चुनाव भी जीते। उनके अलावा कोई भी मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाया। पहले कृषि की बात करते हैं....डॉ. प्रेमसाय सिंह अजीत जोगी मंत्रिमंडल में इस विभाग के मंत्री थे। 2003 के चुनाव में वे हार गए। इसके बाद 2008 में ननकीराम कंवर और 2013 में चंद्रशेखर साहू भी चुनाव हारे। 2013 में बृजमोहन अग्रवाल कृषि मंत्री बने और 2018 में जीतने में कामयाब रहे। इसी तरह डीपी धृतलहरे जोगी सरकार में वन मंत्री रहे, 2003 के चुनाव में वे अपनी सीट नहीं बचा पाए। उनके बाद गणेशराम भगत, विक्रम उसेंडी और महेश गागड़ा अलग-अलग समय में वन मंत्री रहे और हारे। बृजमोहन अग्रवाल जरूर चुनाव जीतने में कामयाब रहे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">किस्मत ईवीएम में</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पहले चरण की 20 विधानसभा सीटों की 7 नवंबर को मतदान होंगे, वहां आज पांच नवंबर की शाम प्रचार खतम हो जाएगा। इन 20 सीटों पर भाजपा से सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह का है। वे राजनांदगांव सीट से चौथी बार चुनावी मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का चुनाव भी पहले चरण में है। उनके अलावा मंत्रियों में कवर्धा से मोहम्मद अकबर, कोंडागांव से मोहन मरकाम और कोंटा से कवासी लखमा शामिल हैं। तो पूर्व मंत्रियों में केदार कश्यप नारायणुपर से और लता उसेंडी कोंडागांव से किस्मत आजमा रही हैं। इनमें बीजेपी के सबसे बड़े नेता रमन सिंह हैं...आज प्रचार समाप्त होने के बाद वे अपनी सीट से फ्री हो जाएंगे। जाहिर है, दूसरे चरण वाले चुनाव के 70 प्रत्याशियों में सबसे अधिक डिमांड रमन सिंह की है। वे अब फ्री होकर चुनाव प्रचार कर सकेंगे तो पीसीसी चीफ दीपक बैज भी दीगर सीटों पर अपना फोकस बढ़ाएंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">थैंक्स गॉड!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पहले चरण वाले 11 जिलों के कलेक्टर, एसपी दिन गिन रहे कि कैसे तीन दिन निकल जाए। इसके अलावा दो रेंजों के आईजी भी तनाव में हैं। इन 11 जिलों में 20 सीटें आती हैं। इनमें बस्तर में सात जिले हैं और 12 विस सीटें। बस्तर में अभी चुनाव आयोग की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। राजनांदगांव एसपी का विकेट चुनाव का ऐलान होते ही गिर गया था। वहां के कलेक्टर पहले से चुनाव आयोग के राडार पर हैं। कवर्धा भी कम संवेदनशील नहीं है। वहां धर्म का भी तड़का है। ऐसे में, इलेक्शन खतम होने की इन अधिकारियों की खुशी समझी जा सकती है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ओबीसी कार्ड</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कांग्रेस के जवाब में बीजेपी भी अब छत्तीसगढ़ में ओबीसी कार्ड चलने लगी है। इसकी शुरूआत कल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पंडरिया की सभा में की। उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में ओबीसी से कितने मंत्री हैं। उसके अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्ग की सभा में कहा, मैं ओबीसी से हूं, इसलिए कांग्रेस के लोग मुझे बर्दाश्त नहीं करते। उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस साहू समाज को गाली देती है। पिछले चुनाव के दौरान भी पीएम मोदी ने साहू कार्ड चला था, जब उन्होंने कहा था कि मैं तेली हूं और मेरे समाज के बड़ी संख्या में लोग छत्तीसगढ़ में रहते हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">हफ्ते भर शेष</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">दूसरे चरण की 70 सीटों पर वोटिंग भले ही 17 नवंबर को है मगर बीच में दिवाली, भाईदुज और गोवर्द्धन पूजा है। याने अगले हफ्ते गुरूवार तक ही कैम्पेनिंग स्मूथली चलेगा। इसके बाद शुक्रवार याने 10 नवंबर को धनतेरस है और 12 को दिवाली। इसके बाद दो दिन भाईदुज और गोवर्द्धन पूजा। धनतेरस से लोग दिवाली की तैयारियों में जुट जाते हैं और दिवाली के अगले दिन फिर छुट्टी जैसा आलम। धनतेरस से लेकर भाईदुज तक किसी बड़े नेता की सभा हुई तो उसमें भीड़ नहीं जुट पाएगी। उसके बाद सिर्फ दो दिन बचेंगे प्रचार के लिए। 14 और 15 को। 15 नवंबर की शाम पांच बजे के बाद प्रचार समाप्त हो जाएगा। कुल मिलाकर प्रत्याशियों के पास अब हफ्ते भर का समय बचा है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. छत्तीसगढ़ अस्मिता की बात करते-करते कांग्रेस ने एक ही जिले में किन दो बाहरी नेताओं को टिकिट दे दिया?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल को छोड़कर कोई भी कृषि और वन मंत्री चुनाव नहीं जीता है...रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर क्या इस मिथक को अबकी तोड़ पाएंगे?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyIGTOZ0cvQ9mEMqXYYrWvVMEk2NMeMiHuXxsTVx_bvOd2rLnZfNmiq_EWLiHq2-i4UPyqjSXJrYtkN8OzrtCELmokLQ6zbzgIQuCNhyHBWue2nn5QbV-2hlJatDreMvbDKqtiEq1rhMgRjcsrxmskZFqHA5y2vuPffn5lc7Bo57mVpUO4ijyr-L1ECyE/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyIGTOZ0cvQ9mEMqXYYrWvVMEk2NMeMiHuXxsTVx_bvOd2rLnZfNmiq_EWLiHq2-i4UPyqjSXJrYtkN8OzrtCELmokLQ6zbzgIQuCNhyHBWue2nn5QbV-2hlJatDreMvbDKqtiEq1rhMgRjcsrxmskZFqHA5y2vuPffn5lc7Bo57mVpUO4ijyr-L1ECyE/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-61952645554916564962023-10-29T00:37:00.000-07:002023-10-29T00:37:05.773-07:0010 हजार करोड़ की माफ़ी<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 29 अक्टूबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">10 हजार करोड़ की माफ़ी </span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सीएम भूपेश बघेल ने सरकार लौटने पर किसानों का फिर कर्जा माफ करने का बड़ा दांव चल दिया है। भूपेश का छोड़ा गया ये मिसाइल इतना खतरनाक है कि भाजपा को उसका काट ढूंढ पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा होगा। बीजेपी के सामने अब मजबूरी आ गई है कि उसे मुकाबले में अगर टिके रहना है तो जाहिर तौर पर इससे कोई बड़ा गोला दागना पड़ेगा। बता दें, कर्ज माफी से किसानों की जेब में करीब 10 हजार करोड़ रुपए जाएगा। इसे ऐसे समझते हैं। 2018 में सरकार बनने पर 19.75 लाख किसानों का कर्ज माफ किया गया था। इस पर करीब 10 हजार करोड़ रुपए खर्च हुआ था। इस बार 24.87 लाख किसान रजिस्टर्ड हैं। इनमें से मोटे अनुमान के अनुसार करीब 70 फीसदी किसानों ने 10 हजार से लेकर तीन लाख तक का लोन लिया है। से संख्या करीब 17 लाख के करीब जा रही है। अफसरों का कहना है, इस बार चूकि राजीव न्याय योजना के तहत लगातार उनके खाते में पैसा जाता रहा, इसलिए 2018 की तुलना में इस बार कम किसानों ने लोन लिया है। इसीलिए संख्या में करीब दो लाख की कमी आई है। याने इस बार भी कर्ज माफी का एमाउंट करीब 10 हजार करोड़ ही रहेगा। बहरहाल, कर्ज माफी की घोषणा के बाद लोन नहीं लेने वाले किसान अब पछता रहे हैं...काश! हम भी कर्ज ले लिए होते।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">भाजपा का राकेट...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">जाहिर है, सीएम भूपेश बघेल की कर्ज माफी की घोषणा ने भाजपा के हथियार कुंद तो किए ही, चुनाव की दिशा और दशा बदल दिया है। भाजपा अभी तक ईडी, आईटी, भ्रष्टाचार से लेकर हिन्दुत्व कार्ड के जरिये हवा का रुख अपने पक्ष मे ंकरने की कोशिश कर रही थी। बिरनपुर कांड के पीड़ित पिता को साजा से टिकिट दिया गया तो हिन्दुत्व को लेकर मुखर विजय शर्मा को कवर्धा से उतारा गया। मगर छत्तीसगढ़ में अब ये स्थापित हो गया है कि धान और किसान ही इस चुनाव के मुद्दे होंगे और आगे भी इसी पर चुनाव लड़े जाएंगे। 2018 का विधानसभा चुनाव भी इसी इश्यू पड़ा लड़ा गया। तब कांग्रेस ने बोनस के साथ 25 सौ रुपए धान खरीदने का वादा किया और यही टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना और इसका नतीजा हुआ कि बीजेपी 15 सीटों पर सिमट गई। हालांकि, बीजेपी की लोकल बॉडी ने धान पर लचीला रुख अपनाने के लिए दिल्ली के नेताओं से आग्रह किया था। मगर बात बनी नहीं। चूकि इस बार भी धान और किसान चुनाव के केंद्र बिन्दु बनते जा रहे हैं तो लगता है भाजपा भी इस बार मुठ्ठी खोलेगी। पार्टी ने अभी एक वीडियो भी जारी किया है। इसमें बताया गया है कि कांग्रेस का बम फुस्स हो गया...उनका राकेट आने वाला है। देखने की उत्सुकता होगी, बीजेपी का राकेट कांग्रेस के मिसाइल पर क्या असर डालता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पुलिस से चुनाव</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद ये पहला मौका होगा, जब पहले चरण का प्रचार खतम होने में हफ्ते भर बच गए हैं मगर चुनाव जैसा माहौल कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा। न प्रत्याशियों में जोश और गरमी नजर आ रही और न ही प्रचार अभियान में तेजी। गनीमत है, चौक-चौराहे पर पुलिस वाले चेकिंग कर चुनाव जैसा अहसास करा दे रहे। वरना, बाहर से आए नेता और मीडियाकर्मी भी छत्तीसगढ़ की चुनावी स्थिति को देखकर आवाक हैं। चुनाव प्रचार का लय न पकड़ने का एक बड़ा कारण घोषणा पत्र माना जा रहा है। पिछले बार की तरह यह चुनाव भी घोषणा पत्र के आधार पर लड़ा जाना है। इसलिए, सबकी निगाहें इस बात पर टिकी है कि दोनों पार्टियों किसानों को क्या दे रही है। किसान भी अब चतुर हो गए हैं...जो ज्यादा देगा उसे वोट देंगे। दरअसल, छत्तीसगढ़ में करीब 37 लाख किसान हैं। इसमें से 30 लाख भी अगर वास्तविक किसान होंगे तब भी एक परिवार में चार वोट के आधार पर एक करोड़ से उपर मतदाता होते हैं। चुनावी उलटफेर करने के लिए ये एक बड़ा फिगर है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब्यूरोक्रेट्स पर प्रेशर</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, अफसरों के खिलाफ शिकायतों की फाइल मोटी होती जा रहीं। पता चला है, अभी तक डेढ़ दर्जन से अधिक आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ आयोग में कंप्लेन हो चुके हैं। एक्साइज के खिलाफ भी काफी शिकायतें की जा रही। पुलिस में एसपी, आईजी से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों के नाम हैं तो लगभग आधे दर्जन जिले के कलेक्टरों के नाम शिकायतों की लिस्ट में शामिल हैं। हालांकि, ये शिकायतें चुनावी होती हैं। अफसरों पर प्रेशर टेकनीक भी। सियासी नेताओं को भी पता होता है, ब्यूरोक्रेट्स किसी के नहीं होते...जिसका झंडा, उनके अफसर। 2003 के विधानसभा चुनाव में दो जिले ऐसा रहा, जहां के कलेक्टर, एसपी दोनों को आयोग ने बदल दिया था। सरकार बदलने पर उन्हें ट्रेक पर आने में चार-पांच महीना लगा। मगर उसके बाद फिर उन्हें महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो मिल गया। एक को तो राजधानी रायपुर कलेक्टर की कमान मिल गई। तो दूसरे ने तीन जिले की कलेक्टरी की।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अफसरों पर तलवार?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">आचार संहिता लागू होने के पहिले माना जा रहा था कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी जिस तरह ईडी और आईटी के राडार पर है, उसमें बड़ी संख्या में अफसरों की छुट्टी होगी। इलेक्शन कमीशन के फुल बोर्ड ने कलेक्टर, एसपी की मीटिंग में तीखे तेवर दिखाए ही थे। मगर छत्तीसगढ़ में दो कलेक्टर और तीन एसपी को हटाने के बाद कार्रवाई ठहर गई। जबकि, राजस्थान और तेलांगना में कई अफसर निबट गए। तेलांगना में तीन पुलिस कमिश्नर समेत 13 आईपीएस अफसर हटा दिए गए। छत्तीसगढ़ को लेकर चुनाव आयोग अगर उदार है तो इसकी एक वजह डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर आरके गुप्ता भी हैं। गुप्ता केंद्रीय मंत्रालय कैडर के अफसर हैं। काफी मैच्योर भी। उन्हीं के पास छत्तीसगढ़ का प्रभार है। ब्यूरोक्रेसी के लोग भी मानते हैं कि गुप्ता की जगह अगर कोई आईएएस अफसर छत्तीसगढ़ का इंचार्ज होता तो अभी तक कई की लाईन लग गई होती। वैसे मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा कंगाले भी अफसरों को लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं है। अफसरों के कार्रवाई से बचने ये भी एक बड़ा कारण है। हालांकि, सेकेंड फेज के इलेक्शन में बीसेक दिन का समय है...कोई खुद से हिट विकेट हो जाए तो इसमें आयोग और सीईसी क्या करेंगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">30 पर नजर</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">30 अक्टूबर का दिन खासकर कांग्रेस के लिए बड़ा महत्वपूर्ण रहेगा। इस दिन दूसरे और अंतिम चरण के नामंकन का अंतिम दिन है। कांग्रेस की सियासत में इस बात की हलचलें तेज हैं कि इस दिन जिन नेताओं को टिकिट नहीं मिला है वे निर्दलीय या किसी और पार्टी से अपना पर्चा दाखिल कर सकते हैं। हालांकि, कांग्रेस पार्टी द्वारा उन्हें समझाने की कोशिशें भरपूर की जा रही मगर इसके बाद भी दो-से-तीन नेता अपना सूर नहीं बदल रहे। उल्टे प्रचारित किया जा रहा कि कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदले जा सकते हैं, जो कि अब होना नहीं है। धमतरी से गुरमुख सिंह होरा के तेवर कायम हैं तो मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल और रायपुर उत्तर से अजीत कुकरेजा के बारे में भी कई तरह की बातें सुनाई पड़ रही है। हालांकि, कांग्रेस को दोनों स्थितियों में नुकसान था। इनमें से कुछ को पार्टी अगर टिकिट देती तो वे जीतते नहीं। और अगर बगावत कर खड़े हो गए तो भी वे अधिकृत प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाएंगे। अंतागढ़, पामगढ़ और सराईपाली में पार्टी के तीन नेता पाला बदलकर अलग मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में, अब कांग्रेस भी नहीं चाहेगी कि कोई और नेता बगावत करें। जाहिर है, 30 अक्टूबर पर सबकी निगाहें रहेंगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. विधानसभा अध्यक्ष कभी चुनाव नहीं जीतते...चरणदास महंत क्या अबकी इस मिथक को तोड़ देंगे?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. टिकिट न मिलने से नाराज एक भाजपा नेता अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ एक महिला को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं...नाम?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6k388GHt2ykLIi1gpOkRAwqMcbGwIXbfaXFgiXIeJut_w1KLbUaXzMxhYVWpYIhmXlIgk4EkWXmgAw4vNPiGzEYQKNKcLDChZA8CQC6QR6KhrRzr-UYMYP41YM1YvCQs6kpqo0iSrIIhpvOjLrv0aAB4OLw0JQaMAV7AXXjJ5_Y4whZxnkNgvQ2e81GI/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6k388GHt2ykLIi1gpOkRAwqMcbGwIXbfaXFgiXIeJut_w1KLbUaXzMxhYVWpYIhmXlIgk4EkWXmgAw4vNPiGzEYQKNKcLDChZA8CQC6QR6KhrRzr-UYMYP41YM1YvCQs6kpqo0iSrIIhpvOjLrv0aAB4OLw0JQaMAV7AXXjJ5_Y4whZxnkNgvQ2e81GI/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-67140099815659484512023-10-21T23:25:00.001-07:002023-10-21T23:25:28.377-07:00Chhattisgarh Tarkash: विधायक जी का एमएमएस<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 22 अक्टूबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">विधायक जी का एमएमएस</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एक बड़ी पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ रहे युवा विधायकजी के प्रायवेट एमएमएस की चर्चा इन दिनों बड़ी तेज है। हालांकि, विधायकजी मैनेज करने की कोशिशें तो खूब कर रहे हैं मगर दिक्कत यह है कि एमएमएस इतने सारे लोगों के पास पहुंच गया है कि बेचारे कितनों को साध पाएंगे। एमएमएस में विधायकजी मुंबई के मरीन ड्राईव में एक महिला मित्र का हाथ पकड़े समुद्र की लहरों को निहारते...रोमांटिक अंदाज में बात करते नजर आ रहे हैं, तो दूसरा वाला कुछ ज्यादा है, उसे यहां कोट नहीं किया जा सकता। बताते हैं, विरोधी पार्टी विधायकजी के नामंकन की प्रतीक्षा कर रही है। उसके बाद किसी रोज उसे वायरल किया जाएगा। एमएमएस अगर पब्लिक डोमेन में आ गया तो निश्चित तौर पर विधायक की मुश्किलें बढ़ जाएगी। क्योंकि, मौसम चुनावी है। और, ऐसे चटपटे आडियो, एमएमएस को पंख लगते देर नहीं लगते।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दोनों हाथ में लड्डू</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कांग्रेस ने पहली सूची में 30 प्रत्याशियों की घोषणा की, उनमें सबसे अधिक गिरीश देवांगन का नाम चौंकाया। उन्हें राजनांदगांव में एक्स सीएम डॉ0 रमन सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा गया है। लोग आज भी इसका राज जानने उत्सुक हैं। हालांकि, कांग्रेसी खेमे की तरफ से कहा गया कि रमन सिंह को गिरीश के अलावा कोई टक्कर नहीं दे सकता था। मगर यह भी सही है कि बड़े चेहरों के मुकाबले चुनाव लड़ने के भी अपने फायदे हैं। इसमें दोनों हाथ में लड्डू होते हैं। एक तो आदमी पहचान का मोहताज नहीं रहता। माइनिंग कारपोरेशन के चेयरमैन के तौर पर कुछ परसेंट लोग उन्हें जानते होंगे। अब गिरीश सुखिर्यो में रहेंगे। फिर बड़े व्यक्ति से हारने के बाद सहानुभूति वेटेज भी मिलता है। कई बार राज्यसभा की टिकिट मिल जाती है। अगर गिरीश जीत जाएंगे, तो सोचिए क्या होगा। वे बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो जाएंगे, जो 15 साल के सीएम को परास्त कर दिया। देश भर के मीडिया में वे चर्चाओं में रहेंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">19-1 का स्कोर</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ के फर्स्ट फेज में जिन 20 सीटों पर इलेक्शन होने जा रहे हैं, उनमें भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। उसे सिर्फ पाना ही है। जाहिर है, इन 20 में से सिर्फ एक सीट बीजेपी के पास है। एक्स सीएम डॉ. रमन सिंह की। यद्यपि, 2018 के विस चुनाव में दंतेवाड़ा से भीमा मंडावी भी जीते थे। मगर नक्सली घटना में उनकी मौत के बाद उपचुनाव में बस्तर की इकलौती सीट भी बीजेपी के हाथ से फिसल गई। इन 20 सीटों में बस्तर की 12 और राजनांदगांव, मोहला मानपुर, खैरागढ़ और कवर्धा जिले की आठ सीटें शामिल हैं। सियासी पंडितों की मानें तो इन 20 में से अभी के हालात में आठ सीटें बीजेपी को मिलती दिख रही हैं। आगे चलकर यह फिगर अप हो जाए या डाउन कहा नहीं जा सकता।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">धान वाली 50 सीटें</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बस्तर और ओल्ड राजनांदगांव जिले में पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस की सीटें कम हो रही हैं, उधर सरगुजा की स्थिति भी जुदा नहीं है। सरगुजा की 14 में से अभी की स्थिति में बीजेपी को पांच से छह सीटें आती दिखाई पड़ रही हैं। सरगुजा में बीजेपी अभी जीरो पर है। बहरहाल, ऐसे सिचुएशन में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां धान उत्पादन करने वाली 50 मैदानी सीटों पर पूरा जोर लगाने की कोशिश करेंगी। इन्हीं सीटों पर कांग्रेस का धान, किसान और लोगों को टच करने वाला छत्तीसगढ़ी अस्मिता है तो बीजेपी का एंटी इंकांबेंसी के साथ हिन्दुत्व और भ्रष्टाचार का मुद्दा। इन्हीं इलाकों में बसपा का हाथी भी है। बिलासपुर और जांजगीर जिले की कई सीटों पर बीएसपी जीत हार में अहम फैक्टर बनती है। अभी भी पामगढ़ और जैजैपुर बसपा के पास है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं 50 में बीजेपी की 12, जोगी कांग्रेस की पांच और बसपा की दो सीटें आईं थीं। वहीं कांग्रेस को एकतरफा 31 सीटें मिली थीं। कुल मिलाकर इन्हीं 50 सीटों पर रोचक फाइट देखने का मिलेगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गुटीय आधार पर टिकिट</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा, जहां सत्ताधारी पार्टी ने योग्यता और जीतने वाले कंडिडेट की बजाए गुटीय आधार पर सीटें बांटी हैं। केंद्रीय चुनाव समिति ने इस बार किसी भी नेता को निराश नहीं किया...बल्कि सभी गुटों को बराबरी से संतुष्ट किया। ये मेरा, ये आपका, ये तुम्हारा...जब टिकिट वितरण का आधार बनेगा तो फिर क्वालिटी की उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए। बिलासपुर की छह में से इस समय कांग्रेस के पास दो सीटें हैं और इस चुनाव में भी इसी के आसपास फिगर रहना है। वो भी इसलिए क्योंकि एक टिकिट काम के आधार पर दिया गया है। कांग्रेस के लोगों का भी मानना है कि इस बार बिलासपुर में कांग्रेस पार्टी को सीटें बढ़ाने का मौका था। इसी तरह जांजगीर में भी कांग्रेस को और अच्छा पारफार्मेंस करने का अवसर था। गुटीय सियासत में वहां भी सीटें प्रभावित होती दिख रही हैं। कोरबा में अवश्य कांग्रेस फिर पुरानी स्थिति दोहराने के करीब लग रही है। कोरबा में इस समय तीन कांग्रेस और एक बीजेपी है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बीजेपी की स्ट्रेटजी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बीजेपी ने जिन 86 सीटों पर टिकिटों का ऐलान किया है उनमें कुछ प्रत्याशियों को देखकर प्रतीत होता है कि जीतने वाला कंडिडेट के साथ ही उसने इस फार्मूले पर टिकिट बांटा है कि हम नहीं तो कांग्रेस भी नहीं। जिन सीटों पर भाजपा को लगा कि उसकी वहां दाल नहीं गल सकती तो उसने ऐसा प्रत्याशी उतार दिया कि गैर कांग्रेस को वहां फायदा मिल जाए। वैसे भी कांग्रेस के लोग बसपा और जोगी कांग्रेस को भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाते ही हैं। जाहिर है, भाजपा ने एक सीट पर ऐसे प्रत्याशी को उतार दिया है, जहां बसपा की सीट सुरक्षित हो गई है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">एडिशनल बोझ</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">टिकिट के लिए आवेदन करने का फार्मूला लगा कर कांग्रेस नेताओं को रिचार्ज करने में सफल रही मगर उसका खामियाजा अब प्रत्याशियों को उठाना पड़ रहा है। टिकिट डिक्लेयर होने के बाद प्रत्याशियों ने सबसे पहले उनकी लिस्ट निकाली, जिन्होंने टिकिट के लिए अप्लाई किया। चूकि कांग्रेस को भीतरघात का सबसे बड़ा खतरा है इसलिए जो जिस लेवल का है, उस लेवल से उसे संतुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐेसे में प्रत्याशियों की जेब पर यह एडिशनल बोझ पड़ जा रहा है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">30 फीसदी नए चेहरे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कांग्रेस पार्टी ने अपनी दो लिस्ट में 83 उम्मीदवारों का ऐलान किया है, इनमें 17 नए चेहरे हैं। याने इन 17 सीटिंग विधायकों की टिकिट कट गई है। पता चला है, आजकल में घोषित होने वाली तीसरी लिस्ट में सभी सात नए प्रत्याशी होंगे। इनमें धमतरी में पहले से भाजपा की रंजना साहू विधायक हैं। बची छह। इन सभी छह सीटों पर पार्टी नए चेहरों को उतारेगी। इस तरह 72 में से 24 विधायकों की टिकिट कांग्रेस ने काट डाली। ये 30 फीसदी होते हैं। इसकी तुलना में भाजपा ने 13 में से सिर्फ एक विधायक को बदला है। डमरुधर पुजारी को। वहीं बसपा ने अपने दोनों विधायकों पर फिर से दांव लगाया है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. चुनावी सियासत में बीजेपी के प्लान बी की बड़ी चर्चा है...क्या है ये प्लान बी?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. फूड मिनिस्टर अमरजीत भगत के सीतापुर में घिर जाने की असली वजह क्या है?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9_dAm6odmzfc2Rkt9A2t2j9G_Yx-3067CJPrbexp5MxNFjzsjmBS8pded4q_wubpfYYAXN68XL4QD8vLDWHZVYA-EWcBp6M2N2g9RBHK_XyqQ-v84QA6yPXHW151XlrIpYcGZ2ZxlaqdjyfxKWwh0jKEJZvApPCNx9oMNsatwvhI93nen8towQhyoeus/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9_dAm6odmzfc2Rkt9A2t2j9G_Yx-3067CJPrbexp5MxNFjzsjmBS8pded4q_wubpfYYAXN68XL4QD8vLDWHZVYA-EWcBp6M2N2g9RBHK_XyqQ-v84QA6yPXHW151XlrIpYcGZ2ZxlaqdjyfxKWwh0jKEJZvApPCNx9oMNsatwvhI93nen8towQhyoeus/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-27528190110903131702023-10-15T01:07:00.001-07:002023-10-15T01:07:03.942-07:00Chhattisgarh Tarkash: चुनाव आयोग ने पैनल पलटा<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmi9ziOfwxgJ3DOjGeG9ja4y1GbnzFTtZecu6wric2hhKD4lYOSUl-C0U-XhmkMvsMkfB05mX8ZfVFgF3pCtbiQse8p8z0cx6oz5go2rM-BRJKpuiuc-VJt7O4oso4AienuwUp3PBl08gZwiV5YCk3uZpl_GAJD-LgcVvKeZDtCiLZxEAuUIFu2M5WapA/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmi9ziOfwxgJ3DOjGeG9ja4y1GbnzFTtZecu6wric2hhKD4lYOSUl-C0U-XhmkMvsMkfB05mX8ZfVFgF3pCtbiQse8p8z0cx6oz5go2rM-BRJKpuiuc-VJt7O4oso4AienuwUp3PBl08gZwiV5YCk3uZpl_GAJD-LgcVvKeZDtCiLZxEAuUIFu2M5WapA/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 15 अक्टूबर 2023</span><p></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">चुनाव आयोग ने पैनल पलटा</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">चुनाव आयोग ने दो कलेक्टर और तीन पुलिस अधीक्षकों को नियुक्त करने भेजे गए सामान्य प्रशासन विभाग के पैनल को पलट दिया। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में ऐसा पहली बार हुआ कि आयोग ने एक पैनल के नामों को खारिज करते हुए दूसरे पैनल के दो अफसरों को दो जिले का कलेक्टर बना दिया। बता दें, जीएडी ने बिलासपुर के लिए भीम सिंह, यशवंत कुमार और रीतेश अग्रवाल तथा रायगढ़ के लिए सारांश मित्तर, अवनीश शरण और कार्तिकेय गोयल का नाम आयोग को भेजा था। हालांकि, ये भी समझ से परे है कि अवनीश और कार्तिकेय का नाम जब आब्जर्बर के लिए भेजा जा चुका है तो फिर रायगढ़ कलेक्टर के लिए क्यों प्रस्तावित किया गया। बताते हैं, अवनीश का मिजोरम के आब्जर्बर लिए आदेश भी हो गया था। बहरहाल, आयोग ने रायगढ़ पैनल से नीचे के दोनों नामों को हरी झंडी देते हुए अवनीश को बिलासपुर और कार्तिकेय को रायगढ़ का कलेक्टर नियुक्त कर दिया। दोनों अधिकारियों ने आज ज्वाईन भी कर लिया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">तेलांगना से कम</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में चुनाव आयोग ने दो कलेक्टर और तीन एसपी बदले...यह फिगर तेलांगना के सामने कुछ भी नहीं। तेलांगना में हैदराबाद के पुलिस कमिश्नर समेत तीन पुलिस कमिश्नर और 10 एसपी को बदल दिया। याने पूरे 13 आईपीएस। उपर से एक कलेक्टर भी। बताते हैं, छत्तीसगढ़ की सूची भी लंबी थी। मगर राहत की बात यह कि सूची में पांच कलेक्टर, एसपी समेत आठ ही नाम आ पाए। हालांकि, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा दूसरी सूची की भी है। उसके अनुसार कुछ और कलेक्टर, एसपी और आईजी बदले जाएंगे। लेकिन, यह भी सही है कि आयोग को चुनाव भी तो कराने हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कलेक्टर का एग्जिट पोल</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में एक ऐसे कलेक्टर भी रहे हैं, जिन पर एग्जिट पोल कराने का आरोप लगा और आयोग ने उनकी छुट्टी भी कर दी। ये बात 2004 के लोकसभा चुनाव की है। तब महासमुंद से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी चुनाव लड़ रहे थे और उनके सामने थे दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल। तब विद्या भैया बीजेपी की टिकिट पर मैदान में उतरे थे। चुनाव के बाद आयोग को शिकायत हुई कि कलेक्टर शैलेष पाठक ने कोई एग्जिट पोल कराया है, जिसमें कांग्रेस की जीत बताई गई है। आयोग ने एक सीनियर अफसर को महासमुंद भेजकर इसकी जांच कराई और उसके अगले दिन शैलेष को हटा दिया। बता दें, यह देश का पहला चुनाव रहा, जिसमें दो कलेक्टर हटाए गए। एक ने नामंकन भरवाया, दूसरे ने चुनाव कराया और तीसरे ने काउंटिंग कराई। जब चुनाव का ऐलान हुआ तब रेगुलर कलेक्टर थे मनोहर पाण्डेय। उन पर आरोप लगा कि जोगी के नामंकन में कोई त्रुटि हो गई थी। मनोहर ने उसे सर्किट हाउस में जाकर सुधरवाया। इसके बाद पाठक आए और हिट विकेट हो गए। फिर गौरव द्विवेदी तीसरे कलेक्टर बन गए, जिन्होंने काउंटिंग कराया।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आईजी से आ गए एसपी पर</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सीबीआई से डेपुटेशन से लौटे 2007 बैच के आईपीएस रामगोपाल गर्ग को अंबिकापुर का प्रभारी आईजी अपाइंट किया गया था। मगर कुछ दिनों से उनकी पोस्टिंग की चकरी उल्टी घूमनी शुरू हो गई है। रेंज के पुनर्गठन में सरकार ने उन्हें सरगुजा से हटाकर रायगढ़ का डीआईजी बनाया था और अब चुनाव आयोग ने दुर्ग का एसपी अपाइंट कर दिया है। चुनाव आयोग ने शलभ सिनहा की जगह उनकी पोस्टिंग की है। ठीक है सरगुजा में वे प्रभारी आईजी ही थे लेकिन एक बार रेंज में रहने के बाद डीआईजी तक चलता था...उनका रैंक भी यही है। मगर अब फिर से कप्तान...रामगोपाल को खटक तो रहा ही होगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">इसलिए पुराने चेहरों पर दांव</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बीजेपी ने 43 लोगों को पहली बार टिकिट दिया है मगर इसके साथ ही रमन सरकार के सभी 12 मंत्रियों समेत बड़ी संख्या में पुराने चेहरों पर भी दांव लगाया है। पुराने लोगों को फिर से भरोसा जताने पर पार्टी शिकवे-शिकायतों का दौर जारी है। मगर ये भी सही है कि बीजेपी के पास और कोई चारा नहीं था। जाहिर है, 60 फीसदी से ज्यादा नए चेहरों को टिकिट देने का खामियाजा पार्टी कर्नाटक में भुगत चुकी है। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के खिलाफ वो भाव भी नहीं कि लोग सरकार को उखाड़ फेंकने पर अमादा हो। उपर से भूपेश बघेल जैसा 18 घंटा काम करने वाला सियासी योद्धा। पार्टी के लोगों का मानना है, महत्वपूर्ण सीटों पर अगर मजबूत लोगों को टिकिट नहीं दी गई तो नए लोग भूपेश बघेल के सामने कहां टिक पाएंगे। लोकसभा की बात अलग थी...उसमें पीएम नरेंद्र मोदी का फेस था...इसीलिए नए चेहरे को मैदान में उतारकर बीजेपी 11 में नौ सीटें झटक ली। बहरहाल, 15 साल मंत्री रहे प्रत्याशियों के पास धन-बल के साथ ही चुनाव जीतने का तजुर्बा है। फिर कोई बड़ा नेता चुनाव में उतरता है तो उसके आसपास की सीटों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। सियासी पंडितों का भी मानना है कि 12 पूर्व मंत्रियों में से कम-से-कम 10 मंत्री टक्कर देने की स्थिति में हैं। वैसे भी इस चुनाव में बीजेपी दिल मांगे मोर के फार्मूले पर काम कर रही है। परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टी जशपुर राजपरिवार के दो सदस्यों को चुनावी रण में उतार दिया। प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा से खड़े हुए हैं तो चंद्रपुर में उनकी भाभी संयोगिता सिंह जूदेव को पार्टी ने दूसरी बार प्रत्याशी बनाया है। हिन्दुत्व कार्ड के फेर में साजा से ईश्वर साहू को भी उतारने में पार्टी ने कोई अगर-मगर नहीं किया। ईश्वर के बेटे भूवेनश की एक सांप्रदाय के लोगों ने हत्या कर दी थी। कुल मिलाकर भाजपा का पूरा जोर सिर्फ और सिर्फ इस बात पर है कि प्रत्याशी जीतने वाला हो। और उसे अब सत्ताधारी पार्टी के मुकाबले में अगर माना जाने लगा है तो उसकी बड़ी वजह टिकिट वितरण है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">टिकिट पर दारोमदार</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">पिछले हफ्ते तक कांग्रेस को 51 और भाजपा को 38 सीटें देने वाले राजनीतिक प्रेक्षक अब कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। सभी को कांग्रेस की टिकिट का इंतजार है। जाहिर है, कांग्रेस जितने चेहरे बदलेगी, पार्टी का पलड़ा उतना भी भारी होगा। क्योंकि, विरोधी भी मानते हैं कि सरकार के खिलाफ उतना एंटी इंकाम्बेंसी नहीं, जितना विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ। पार्टी के लोगों का ही कहना है कि बड़ी संख्या में चेहरे बदलने होंगे, जीतने वाले प्रत्याशियों पर ही दांव लगाना चाहिए। हालांकि, दिल्ली से टिकिट पर मंत्रणा कर लौटे सीएम भूपेश बघेल ने भी यही कहा, जीतने वाले नेताओं के फार्मूले पर टिकिट दिए जाएंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सियासी सबक</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर इलाके के एक बड़े नेता के चेला ने उन्हें ऐसा सबक दिया कि नेताजी अब शायद ही किसी पर भरोसा करें। हुआ यूं कि पार्टी में टिकट को लेकर पैनल बनाते समय नेताजी ने सोचा कि सिंगल नाम देने से बेहतर है कि अपने पुराने शागिर्द का नाम जोड़ दिया जाए। चूंकि शागिर्द काफ़ी पुराना और मददगार है। लिहाजा, उन्हे इसमें उन्हें कोई ख़तरा नज़र नहीं आया। इसी बीच उम्मीदवारों के मामले में रायशुमारी को लेकर पार्टी के एक केन्द्रीय स्तर के नेता का दौरा उनके इलाक़े में हुआ। चेला ने अपने घर में लंच देने की पेशकश की तो सामान्य सी बात समझकर नेताजी ने हामी भर दी। लेकिन जब वे केन्द्रीय नेता को लेकर लंच के लिए चेले के घर पहुंचे तो वहां का आलम देखकर सकते में आ गए। वहां पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगा था...महिला नेत्रियां केंद्रीय नेता पर पुष्पवर्षा कर रही थीं। यानी गुरू को डॉज देकर टिकिट के लिए पूरा शक्ति प्रदर्शन। काफ़िला पहुंचते ही नेताजी ने अपने पार्टी के लोगों से पूछ लिया कि “तुम लोगों को यहां किसने बुलाया....।” लेकिन जवाब मिलने से पहले ही पूरा माज़रा उन्हें समझ में आ गया कि...टिकट के इस मौसम में शागिर्द की भी आत्मा जाग गई है। नेताजी को अब पैनल में नाम जोड़वाने की भूल समझ में आ गई। मगर इस भूल के बदले उन्हे जो कुछ भी मिला, उसे सबक समझकर सीने से लगाने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं। क्य़ोंकि आगे चुनाव है। व्यवस्था आखिर चेले को ही करनी है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1</span>. <span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्या चुनाव में उल्टा पड़ने की वजह से ईडी के छापों पर ब्रेक लग गया है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. भाजपा द्वारा जशपुर में पैलेस विरोधी पुअर प्रत्याशी उतारने के पीछे क्या समीकरण है?</span></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-33538479759831931382023-10-07T22:38:00.002-07:002023-10-07T22:38:53.777-07:00Chhattisgarh Tarkash: बीजेपी को 38 सीट<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSESFyntuJWvlNPHINnTAG_3PbE9k5n20qLh1k9bipXDyUxy-g-pDxMPtmW0eVuVGjUxIrCUKnQH1Lw0gj9yI0qbzYLqjfAznDh2eh0wVtt1EdT2GZMCWt1lzNJRiV5WjeDlgRagKwX_F5_kBv2sXObTNjGu-ks1-Kd3cvEVx1Ewsgz635A7Dg1AqCnbI/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSESFyntuJWvlNPHINnTAG_3PbE9k5n20qLh1k9bipXDyUxy-g-pDxMPtmW0eVuVGjUxIrCUKnQH1Lw0gj9yI0qbzYLqjfAznDh2eh0wVtt1EdT2GZMCWt1lzNJRiV5WjeDlgRagKwX_F5_kBv2sXObTNjGu-ks1-Kd3cvEVx1Ewsgz635A7Dg1AqCnbI/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 8 अक्टूबर 2023</span><p></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बीजेपी को 38 सीटें!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, रोमांच और बढ़ता जा रहा है। सभी चौक-चौराहों पर यही सवाल है...क्या होगा, कांग्रेस की जीत का परसेप्शन कायम रहेगा या फिर बीजेपी आखिरी समय में कुछ कर डालेगी। वैसे, विभिन्न सर्वे में बीजेपी की सीटें बढ़ी हैं। दो-तीन महीने पहिले लोग पार्टी को 30 पर समेट दे रहे थे मगर अब सीटों की संख्या बढ़कर 38 पर पहुंच गई है। सीटों की संख्या बढ़ने में बड़ी वजह जीतने वाले प्रत्याशियों को टिकिट देना है। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बीजेपी ने जीत के लिए पुरानी मिथकों को तोड़ते या यों कहें कि सीमाओं को नजरअंदाज करते हुए ऐसे प्रत्याशियों को चुन-चुनकर टिकिट दे रही है, जो जीत सकता है। मसलन, लुंड्रा से प्रबोध मिंज ईसाई समुदाय से आते हैं। जशपुर इलाके में बीजेपी और मिशनरी का द्वंद्व सर्वविदित है। इसके बावजूद प्रबोध जीतने वाले कंडिडेट हैं, तो पार्टी ने उन्हें टिकिट देने में कोई किन्तु-परन्तु नहीं किया। बताते हैं, अमित शाह रायपुर के दो दौरों में पूरा कंसेप्ट दे गए कि किस तरह जीतने वाले प्रत्याशियों को छांट कर मैदान में उतारना है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और सह प्रभारी नीतिन नबीन उसे फॉलो करवा रहे हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि सर्वे में आ रही बीजेपी की 38 सीटें और बढ़कर सरकार बनाने की स्थिति में पहुंचती है या इसी के आसपास सिमट जाएगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सीईसी और जोखिम</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">चुनाव के दौरान राज्यों के चीफ इलेक्शन आफिसर को असीमित पावर मिल जाते हैं मगर इसके साथ ही उनकी भूमिका जोखिमपूर्ण हो जाती है...बिल्कुल तलवार की धार पर चलने जैसा। एक्शन न लिए तो चुनाव आयोग हड़काएगा और कुछ कर दिए तो फिर सत्ताधारी पार्टी की नाराजगी। सबसे बड़ा खतरा होता है सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ कोई एक्शन लिए और सरकार रिपीट हो गई तो समझो कि पांच साल फिर वनवास में ही गुजरेगा। छत्तीसगढ़ में अभी चार विधानसभा, लोकसभा चुनाव हुए हैं, इनमें दो सीईसी से सरकार नाराज हो गई और उन्हें डेपुटेशन पर जाना पड़ गया। 2003 के पहले चुनाव में केके चक्रवर्ती हाई प्रोफाइल आईएएस थे। एसीएस रैंक के। वे राज्य सरकार के प्रेशर में नहीं आए। चुनाव के जस्ट बाद वे सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए। इसके बाद 2008 के चुनाव में डॉ0 आलोक शुक्ला सीईसी और गौरव ि़द्ववेदी एडिशनल सीईओ रहे। उस समय डीजीपी विश्वरंजन समेत कई अफसरों को हटाने को लेकर सरकार दोनों से नाराज हो गई थी। स्थिति यह हो गई कि दोनों सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए। गौरव द्विवदी को तो एनओसी भी नहीं मिल रही थी। मुश्किल से वे जा पाए। हालांकि, आलोक शुक्ला के डेपुटेशन से लौटने से पहले सरकार की नाराजगी खतम हो गई थी। तभी दिल्ली से रिलीव होने से पहले ही रमन सरकार ने 2017 में उन्हें हेल्थ और फूड विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया था। बहरहाल, 2014 के विधानसभा चुनाव के समय सुनील कुजूर सीईसी थे। उनसे ऐसी नाराजगी हुई कि आईएएस एसोसियेशन के अध्यक्ष बैजेंद्र कुमार को उन्हें प्रमुख सचिव बनाने के लिए हल्ला करना पड़ा। तब जाकर कुजुर पीएस प्रमोट हो पाए। फिर भी 2013 से लेकर 2018 तक वे बियाबान में रहे। 2018 के चुनाव में सीईओ सुब्रत साहू थे। चूकि तब सरकार बदल गई इसलिए सत्ताधारी पार्टी नाराज थी या खुश, इसका कोई मतलब नहीं रहा। हां, इतना जरूर रहा कि उन्होंने विपक्ष को नाराज भी नहीं किया। इसका फायदा उन्हें यह मिला कि पिछले चार साल से वे सत्ता के सबसे पावरफुल गलियारा सीएम सचिवालय को वे संभाल रहे हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दलित और आदिवासी कार्ड</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राज्य सरकार ने चुनाव के ऐन पहले नकली आदिवासी को लेकर अजीत जोगी से लंबी लड़ाई लड़ने वाले संतकुमार नेताम को पीएससी का मेम्बर बना दिया। तो उधर नौ महीने के ब्रेक के बाद पूर्व डीजी गिरधारी नायक को फिर से मानवाधिकार आयोग का प्रमुख बनने का रास्ता साफ कर दिया। जाहिर है, नेताम आदिवासी वर्ग से आते हैं तो नायक अनुसूचित जाति से। याने इस पोस्टिंग में दोनों वगों को संतुष्ट किया गया है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दूसरे अफसर, दूसरी पोस्टिंग</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">दूसरी बार पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का सौभाग्य हासिल करने वाले गिरधारी नायक सूबे के दूसरे अफसर होंगे। उनसे पहिले एक्स चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड को यह मौका मिल चुका है। सीएस से वीआरएस लेने के बाद उन्हें पिछली सरकार ने रेरा का चेयरमैन बनाया था और इस साल वहां से कार्यकाल खतम होने पर उन्हें नवाचार आयोग का प्रमुख बनाया गया है। इसी तरह डीजी से रिटायर होने पर भूपेश सरकार ने नायक को मानवाधिकार आयोग का सदस्य सह प्रभारी चेयरमैन बनाया और अब फिर से इसी पद पर। इन दोनों के अलावा किसी और अफसर को दूसरी बार पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का दृष्टांत याद नहीं आता।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">जय बजरंग बली</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">आचार संहिता में जैसे-जैसे देर हो रही है अधिकारियों की स्थिति विकट होती जा रही...सभी बजरंग बली की दुहाई दे रहे...हे संकटमोचक...जल्दी चुनाव का ऐलान करवा दो। दरअसल, आखिरी समय में अफसर अपना कलम फंसाना नहीं चाहते और मंत्री चाहते हैं, सारा काला-पीला जो हुआ है, उसे वे कागजों में दुरूस्त कर दें। कई मंत्री टेंडर, ठेका की फाइलें इधर-से-उधर करा रहे हैं तो कुछ की कोशिश है आचार संहिता के पहले लंबित और पेचिदा मामलों का निबटारा कर दें। अफसरों के सामने दिक्कत है कि ना किए तो मंत्री नाराज और कर दिए तो फंसे। जिन अफसरों का पेट गले तक भर गया है, वे भी अब अपना कलम नहीं फंसाना चाह रहे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. छत्तीसगढ़ में दोनों बड़ी पार्टियों की टिकिट फंस क्यों गई है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. आचार संहिता से पूर्व कुछ कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को घबराहट क्यों हो रही है?</span></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-74276190352443834152023-10-01T00:17:00.001-07:002023-10-01T00:17:47.505-07:00Chhattisgarh Tarkash: सबसे छोटी जीत<p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">Chhattisgarh तरकश, 1 अक्टूबर 2023</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सबसे छोटी जीत</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">आजादी के बाद छत्तीसगढ़ की कोटा और खरसिया ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस पार्टी अपराजेय रही है। इन सीटों पर कभी भी किसी और पार्टी को जीत का मौका नहीं मिला। फिलहाल बात कोटा की। कोटा से मथुरा प्रसाद दुबे लगातार चार बार विधायक चुने गए। सबसे कम मतों से जीत दर्ज करने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम है। 1977 के विधानसभा चुनाव में कोटा में मात्र 74 वोट से उन्होंने जीत दर्ज की थी। हालांकि, विधायक वे चार बार ही रहे मगर सियासत में ख्याति उन्होंने खूब कमाई। मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रहे। विधायिकी ज्ञान के कारण उन्हें विधान पुरूष की उपाधि दी गई थी। मथुरा दुबे के सियासी विरासत को उनके भांजे राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने आगे बढ़ाया। उनके बाद 1985 के चुनाव में कोटा सीट से राजेंद्र प्रसाद को टिकिट दी गई और लगातार पांच बार उन्होंने जीत दर्ज की...मृत्यु पर्यंत उन्होंने इस सीट की नुमाइंदगी की।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सिंहदेव की तारीफ के मायने</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">ये बात पुरानी हो गई थी कि पीएम नरेंद्र मोदी के रायगढ़ के सरकारी कार्यक्रम में मंत्री टीएस सिंहदेव ने उनकी तारीफ की...सिंहदेव को इसके लिए पार्टी के हैदराबाद सम्मेलन में खेद प्रगट करना पड़ा। मगर पीएम मोदी ने आज बिलासपुर में सिंहदेव की तारीफ और कांग्रेस पार्टी पर तंज कस मामले को फिर से ताजा कर दिया। मोदी के इस कटाक्ष के निहितार्थ समझे जा सकते हैं। दरअसल, ढाई-ढाई साल के इश्यू को लेकर सिंहदेव पार्टी से खफा थे। चुनाव से ऐन पहिले डिप्टी सीएम की कुर्सी देकर कांग्रेस द्वारा उन्हें साधने की कोशिश की गई थी। मगर मोदी और सिंहदेव की एक-दूसरे की तारीफ ने उनकी स्थिति विचित्र कर दी है। जाहिर है, कांग्रेस पार्टी ने सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाकर कार्यकर्ताओं को एकजुटता का संदेश दिया था। मगर इस तारीफ एपीसोड ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल सिंहदेव के सियासी भविष्य को लेकर है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है, मोदी ने सिंहदेव की तारीफ कर उन्हें साधने की कोशिश की है तो कांग्रेस की एकजुटता में सेंध भी लगा दिया। अब देखना होगा, मोदी के तरकश के इस तीर से कांग्रेस पार्टी कैसे निबटती है?</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कांग्रेस की टिकिट</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">टिकिट वितरण में बीजेपी जरूर आगे निकल रही है मगर सत्ताधारी पार्टी होने के नाते कांग्रेस के लिए टिकिट फायनल करना आसान नहीं है। खासकर ऐसे में और मामला और पेचीदा हो जाता है, जब 90 सीटों के लिए 2200 से अधिक दावेदार हों। पता चला है, सिंगल या कम दावेदारी वाली दो दर्जन सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान जल्द ही कर दिया जाएगा मगर करीब 50 से 60 सीटें नामंकन के आखिरी दिनों में क्लियर होने के संकेत मिल रहे हैं। कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि पार्टी में नेताओं की संख्या काफी है। याद कीजिए, 2018 में कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब भी टिकिट का क्रेज कम नहीं था। आलम यह रहा कि नामंकन शुरू हो गया था और दिल्ली में मशक्कत जारी रही। अब तो पार्टी सरकार में है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी इस बार बड़ी संख्या में चेहरे बदलने जा रही है। पार्टी के सर्वेक्षणों में यह बात आई है कि विधायकों के एंटी इंकाम्बेंसी ज्यादा है...71 में से करीब दो दर्जन से अधिक विधायकों की टिकिट काटनी पड़ेगी। ये ऐसे विधायक हैं, जो कांग्रेस की लहर में वैतरणी पार हो गए और उसके बाद अपनी छबि भी नहीं बना पाए। टिकिट कटने पर असंतुष्टों को डैमेज करने का मौका नहीं मिल पाए, इसलिए दूसरी और बड़ी लिस्ट नामंकन के दौरान ही निकल पाएगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आखिरी चुनाव</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">81 की उम्र में रामपुकार सिंह पत्थलगांव से टिकिट की दावेदारी कर रहे हैं और उम्मीद भी है कि कांग्रेस पार्टी इस वरिष्ठ नेता का सम्मान करते हुए उन्हें टिकिट दे दें। उम्र के मद्देनजर ये उनका आखिरी चुनाव होगा। जाहिर तौर पर इसके बाद वे चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं होंगे। उम्र और स्वास्थ्य के हिसाब से देखें तो कृषि मंत्री रविंद्र चौबे और रामपुर के विधायक और पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर का भी ये आखिरी चुनाव है। कंवर को इसी नजरिये से टिकिट देने पर विचार किया जा रहा है कि मेरा आखिरी चुनाव...के दांव पर उनकी सीट निकल जाए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नॉट आउट एसपी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">पिछले पांच साल में लगातार हुए ट्रांसफर के बीच छत्तीसगढ़ में दो ऐसे एसपी हैं, जो छह साल से ज्यादा समय से नॉट आउट क्रीज पर टिके हुए हैं, और उनकी वर्किंग से समझा जाता है, आगे भी बैटिंग करते रहेंगे। इनमें पहला नाम है बिलासपुर एसपी संतोष सिंह और दूसरा कबीरधाम के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव। दोनों पिछली सरकार में एसपी अपाइंट हुए थे और आज भी जिला संभाल रहे हैं। संतोष का ये आठवां जिला है और अभिषेक का चौथा। संतोष कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, कोरिया, राजनांदगांव, रायगढ़, कोरबा के बाद बिलासपुर में कप्तानी कर रहे हैं। संतोष इतना बैलेंस काम कर रहे हैं कि पिछली सरकार में भी उनका ठीक ठाक था और इस सरकार में भी। बिलासपुर के बाद बहुत संभावना है कि वे रायपुर जिले का एसपी बन बद्री मीणा का नौ जिले का रिकार्ड ब्रेक करें। उधर, अभिषेक दंतेवाड़ा, जांजगीर, दुर्ग जिले के बाद अब कबीरधाम के एसपी हैं। दंतेवाड़ा में करीब चार साल एसपी रहने का उन्होंने रिकार्ड बनाया। सोशल मीडिया सक्रियता की वजह से वे अपने ही आईपीएस बिरादरी के निशाने पर आ गए वरना कामकाज और साफ-सुथरी छबि के मामले मे वे चुनिंदा पुलिस अफसरों में उनका नाम शुमार किया जाता है। फिर भी अच्छी बात यह है कि एसपी के ट्रेक पर बने हुए हैं। सबसे जरूरी भी है...ट्रेक पर बने रहना। संतोष सिंह को इसी सरकार ने जब रायगढ़ से हटाकर कोरिया भेजा था, तब कहा गया था संतोष की पारी अब खतम है। मगर उसके बाद वे राजनांदगांव, कोरबा के बाद बिलासपुर के एसपी हैं। इन दोनों के अलावा 2018 के चुनाव वाले तीन एसपी और हैं, जो इस समय भी जिला संभाल रहे हैं। मगर ये तीनों बीच में कुछ समय के लिए ट्रेक से बाहर रहे। इनमें दीपक झा, जीतेंद्र मीणा, अभिषेक मीणा और लाल उम्मेद सिंह शामिल हैं। दीपक इस समय बलौदा बाजार, जीतेंद्र बस्तर, अभिषेक राजनांदगांव और लाल उम्मेद बलरामपुर के एसपी हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">स्पीकर की चुनौती</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">छत्तीसगढ़ में मिथक था...नेता प्रतिपक्ष और विधानसभा अध्यक्ष चुनाव नहीं जीतते। प्रथम नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय से लेकर महेद्र कर्मा और रविंद्र चौबे तक चुनाव हार गए। इनमें से सबसे अधिक धक्का चौबे को लगा। साजा सीट पर तीन दशक से उनके परिवार का कब्जा रहा। मगर 2013 के चुनाव में उन्हें भाजपा के अल्पज्ञात व्यापारी नेता से पराजय का सामना करना पड़ा। चौबे की हार के बाद टीएस सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष बनें। उन्हांंने 2018 के चुनाव में जीत दर्ज कर नेता प्रतिपक्ष के चुनाव न जीतने के मिथक को तोड़ दिया। रही बात स्पीकर की, तो यह मिथक अभी कायम है। राज्य बनने के बाद राजेंद्र शुक्ल स्पीकर बने और 2003 का चुनाव जीते। मगर उनके बाद कोई भी स्पीकर चुनाव नहीं जीत पाया। प्रेमप्रकाश पाण्डेय से लेकर धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल अपनी सीट नहीं बचा पाए। ऐसे में, स्पीकर डॉ. चरणदास महंत के सामने इस मिथक को तोड़ने की बड़ी चुनौती होगी। खासकर ऐसे में, जब सक्ती में प्रायोजित ही सही...राजपरिवार द्वारा उनका विरोध किया जा रहा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;">आचार संहिता लागू होने से पहिले कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकल सकती है। इनमें ऐसे अफसरों का नाम हो सकता है, जो चुनाव आयोग के राडार पर हैं। वैसे, चार अक्टूबर तक वोटर लिस्ट का काम चलेगा, उसके बाद ही कलेक्टरों का ट्रांसफर हो सकता है। किन्तु एसपी का सरकार जब चाहे तब कर सकती है। एसपी की इस हफ्ते चर्चा भी उड़ी थी, मगर लिस्ट निकल नहीं पाई।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. क्या राज्य सरकार पीएससी केस में कोई बड़ा एक्शन लेने की तैयारी कर रही है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px; text-align: start;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. आसन्न विधानसभा चुनाव में बसपा दो-एक सीट निकालेगी या वोट प्रभावित करेगी?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKlo1ijLz08-NUR9k4mYBlrrxoZ80pGmvJB2sYyPGi-zUB34HFBWjKsR0wicljnkRloZBtkDD16cDzuDohE34f5nV7jRbmpZNUWyKPVgRqioIQIXRqYCMsCXgRN-oJqM7RLmuM8H_1Ui9hxhlMtFr_AL31derOjLdv3FEuiha1YVsHBfWgqSq5cRuR_0s/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKlo1ijLz08-NUR9k4mYBlrrxoZ80pGmvJB2sYyPGi-zUB34HFBWjKsR0wicljnkRloZBtkDD16cDzuDohE34f5nV7jRbmpZNUWyKPVgRqioIQIXRqYCMsCXgRN-oJqM7RLmuM8H_1Ui9hxhlMtFr_AL31derOjLdv3FEuiha1YVsHBfWgqSq5cRuR_0s/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-79764391411050737472023-09-23T23:07:00.001-07:002023-09-23T23:07:22.593-07:00Chhattisgarh Tarkash: आचार संहिता 15 अक्टूबर तक?<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 24 सितंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आचार संहिता 15 अक्टूबर तक?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2018 के विधानसभा चुनाव के समय 6 अक्टूबर को चुनाव का ऐलान हुआ था...इसी दिन से आचार संहिता भी प्रभावशील हो गई थी। तब नवंबर मे पहले हफ्ते में 7 को दिवाली थी। इसलिए फर्स्ट फेज में 18 सीटों की पोलिंग 12 नवंबर को हुई और सेकेंड फेज की 72 सीटों पर वोटिंग 20 नवंबर को हुई थी। इस बार दिक्कत यह हो रही कि लगभग 12 नवंबर को दिवाली है और छठ पूजा 19 को। इस चक्कर में हो सकता है, दिवाली, गोवर्द्धन पूजा, भाई दूज और छठ के बाद याने 20 और 25 के बीच दो फेज में वोटिंग हो। चुनाव आयोग से जुड़े अफसरों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो इस बार आचार संहिता अक्टूबर के पहिले हफ्ता की बजाए 12 से 15 अक्टूबर तक जा सकती है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">टिकिट पर घमासान</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">भाजपा ने अगस्त एंड में 21 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान करके सबसे पहिले टिकिट वितरण कर सियासी पंडितों को चौंकाया तो कांग्रेस भी एक्साइटेड होकर 6 सितंबर को पहली सूची जारी करने की घोषणा की थी। मगर इस डेट को निकले पखवाड़ा भर से अधिक हो गया, कांग्रेस का कोई नेता पुख्ता कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं है। राहुल जी आएंगे...खड़गे जी आएंगे उसके बाद...। यानी 28 सितंबर को बाद ही कोई उम्मीद की जानी चाहिए। पता चला है, 30 सितंबर के आसपास 12 मंत्रियों समेत सिंगल नाम वाले दो-तीन सीटों पर पार्टी ऐलान कर सकती है। बची सीटों पर आचार संहिता लगने के बाद ही कुछ हो पाएगा। सूबे के 90 सीटों के लिए 2200 से अधिक कांग्रेस नेताओं ने दावेदारी की है। जाहिर है, कांग्रेस के रणनीतिकारों को लग रहा कि पहले टिकिट वितरण में नुकसान हो सकता है। हालांकि, भाजपा का हाल भी जुदा नहीं है। 21 प्रत्याशियों की घोषणा कर बाजी मारने वाली बीजेपी अब फूंक-फूंककर कदम रख रही है। 12 सितंबर के आसपास भाजपा की एक लिस्ट आने की चर्चा थी...पार्टी के कई नेताओं ने इशारों में इसकी पुष्टि भी की। किन्तु भाजपा भी अब वेट एंड वॉच की मुद्रा में दिखाई पड़ रही है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सीएम का सपना</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">2005 में जब पीएससी घोटाला हुआ था, तब कांग्रेस ने ऐसा आंदोलन खड़ा किया कि तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल केएम सेठ को कड़ा एक्शन लेने विवश होना पड़ा था। उन्होंने डीजीपी रहे पीएससी के हाई प्रोफाइल चेयरमैन अशोक दरबारी को सस्पेंड कर दिया था। राज्य सरकार ने भी ईओडब्लू जांच का ऐलान करना पड़ा। बहरहाल, 2005 की तरह इस समय भी पीएससी सुर्खियों में है। बेटे-बेटियों, रिश्तेदारों को डिप्टी कलेक्टर बनाने की खबरें पब्लिक डोमेन में घूम रही हैं। मगर ताज्जुब की बात यह है कि चुनाव के दो महीने पहले युवाओं से जुड़े इसे मसले पर भी 15 साल सत्ता में रही बीजेपी के बड़े नेता उज्जवल दीपक जैसे तीसरी पंक्ति के नेता को आगे कर सीएम के सपने देखने में व्यस्त हैं। वैसे, उज्जवल कई महीनों से सरकार के फैसलों को ट्वीटर के जरिये उठाए पड़े हैं। लेकिन सवाल उठता है छत्तीसगढ़ के कितने परसेंट लोग ट्वीटर से ताल्लुक रखते हैं। भाजपा के ही एक पूर्व मंत्री ने अपने नेताओ ंपर तंज किया...हमारे नेताजी लोग सीएम की शपथ लेने का सपना देखने में बिजी हैं...किस कलर का कुर्ता पहनूंगा, किस कलर का जैकेट। बाकी ओम माथुर, अनिल जामवाल और नीतिन नबीन मेहनत कर ही रहे हैं...बचेगा वो मोदीजी और अमितशाह जी देख लेंगे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पूर्व मंत्रियों को डर</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर बिना किसी हो-हंगामे के साइलेंटली काम कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में जाकर कार्यकर्ताओं से संपर्क कर रहे हैं। यही वजह है कि सूबे में चुनाव को लेकर परसेप्शन बदला है। लोग कहना शुरू कर दिए हैं कि सत्ताधारी पार्टी के लिए 2018 जैसा नहीं रहेगा। बीजेपी के सामने दिक्कत यह है कि लोकल नेता उस तरह सक्रिय नहीं हैं, जैसा होना चाहिए। सूबे में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरा डॉ0 रमन सिंह हैं...उनको छोड़ मीडिया में किसी को इम्पॉर्टेंस नहीं मिलता। पार्टी रमन सिंह को सम्मान बराबर दे रही है मगर फैसलों में ये नजर नहीं आता। हाल यह है कि लता उसेंडी को उनके समकक्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव साफ-सुथरी छबि के नेता हैं...अच्छे वक्ता भी मगर उन्हें वैसा फ्री हैंड नहीं है, जैसा होना चाहिए। पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का काम रमन सरकार के 12 मंत्री कर सकते थे। लेकिन, वे किन्हीं कारणों से सहमे, डरे प्रतीत होते हैं...वे सड़क पर उतरना नहीं चाहते। मंत्री तो मंत्री बीजेपी के समय के महापौर, आयोग और निगमों के नेता भी मुंह सिले हुए हैं...पता नहीं उसका क्या साइड इफेक्ट आ जाए। केद्रीय नेताओं के दौरे जरूर तेज हो गए हैं। लेकिन बीजेपी नेताओं को कर्नाटक चुनाव सनद होगा। पीएम मोदी और अमित शाह ने वहां क्या नहीं किया। मगर लोकल फेस नहीं होने की वजह से कर्नाटक में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। जाहिर है, ऐसे में ओम माथुर की चुनौती और बढ़ जाएगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पहली महिला मंत्री</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">महिला आरक्षण के वक्त में यह सवाल मौजूं हैं कि महिलाएं राजनीति में अपनी ठोस जगह क्यों नहीं बना पाती। देश की सियासत में वही गिने-चुने चेहरे...। छत्तीसगढ़ भी इससे जुदा नहीं है। रेणू जोगी को छोड़ दें तो सूबे में किसी भी महिला विधायक दो बार से अधिक चुनाव नहीं जीत पाई। या तो उन्हें टिकिट नहीं मिला और मिला तो वे सीट निकाल नहीं पाईं। कोटा उपचुनाव से चुनावी राजनीति में कदम रखने वाले रेणू जोगी इसी सीट से लगातार चौथी बार विधायक हैं। हालांकि, मध्यप्रदेश के दौर में मिनी माता पांच बार लोकसभा का चुनाव जीती। मिनी माता का जन्म स्थान असम रहा मगर छत्तीसगढ़ को उन्होंने कर्मभूमि बनाया। छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री गीता देवी सिंह रहीं। खैरागढ़ राजपरिवार से जुड़ी गीता देवी को प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने महिला बाल विकास मंत्री बनाया था।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. महादेव ऐप से आईएएस अफसरों में राहत के भाव और पुलिस वालों में घबराहट क्यों है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. लोकसभा में महिला आरक्षण का क्रेडिट लेने सभी पार्टियों में होड़ रही तो क्या छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा नैतिक तौर पर 33 परसेंट आरक्षण का पालन करेगी?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbyM2LyLv-5btPa2EhTXDXVAwVhLT-9F-XVUB4TXJm2qejDHxycSErnLZHX0rw7b-DLXClg2D-GKIHuExvu-iuh-kOT2OKJxzp4-bdDs32e76U9lgT2QEXYsiT9PXikzqEnswe3-FACUlxxfFZURcfQs8YzAxlQiJaGpc0eqsciT0QnGd_B0JaWidp1v8/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbyM2LyLv-5btPa2EhTXDXVAwVhLT-9F-XVUB4TXJm2qejDHxycSErnLZHX0rw7b-DLXClg2D-GKIHuExvu-iuh-kOT2OKJxzp4-bdDs32e76U9lgT2QEXYsiT9PXikzqEnswe3-FACUlxxfFZURcfQs8YzAxlQiJaGpc0eqsciT0QnGd_B0JaWidp1v8/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-37643966832835405052023-09-16T22:28:00.001-07:002023-09-16T22:28:20.160-07:00Chhattisgar Tarkash: 7 दिन के सीएम<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 17 सितंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">7 दिन के सीएम</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ से एक ऐसे मुख्यमंत्री भी हुए, जो महज सात दिन अपनी कुर्सी पर बैठ पाए। मध्यप्रदेश के दौर का यह वाकया पुराना है। छत्तीसगढ़ के पुराने लोगों को याद होगा...1967 में संविद सरकार के समय विधायकों की नाराजगी के चलते गोविंद नारायण सिंह की सरकार गिर गई थी। ऐसे में, प्रश्न उठा कि गोविंद की जगह किसे सीएम बनाया जाए। कई दिन की सियासी जोर आजमाइश के बाद सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र सिंह का नाम फायनल हुआ। नरेशचंद्र आदिवासी राजा थे। सारंगढ़ रियासत का मध्यप्रदेश की सियासत में काफी दखल था। उनकी बेटी पुष्पा सिंह 80 और 90 के दशक में कई बार रायगढ़ से सांसद चुनी गईं। बहरहाल, नरेशचंद्र के शपथ लेने के तीसरे दिन विधायकों ने बगावत कर दी। विधायकों का विरोध इतना व्यापक हुआ कि उन्हें सातवें दिन ही कुर्सी छोड़नी पड़ गई। बता दें, 10 दिन के भीतर सीएम की कुर्सी गंवाने वाले मध्यप्रदेश में दो सीएम रहे हैं। नरेशचंद्र के अलावा अर्जुन सिंह। 1985 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बम्पर बहुमत से जीताने के बाद भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को पंजाब का गवर्नर बनाकर चंडीगढ़ भेज दिया था। दूसरी बार शपथ लेने के तीसरे दिन ही उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ गई। आज भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अर्जुन सिंह के बढ़ते राजनीतिक कद को कम करने के लिए ऐसा किया गया। चलिए बात छत्तीसगढ़ से सीएम की...तो बहुतों को यही मालूम है कि एमपी के समय छत्तीसगढ़ से श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा ही सीएम रहे हैं। मगर ऐसा नहीं...इस लिस्ट में नरेशचंद्र का नाम भी शामिल करना चाहिए।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">देश भक्ति कार्ड</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ में आधा दर्जन से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी को कभी सफलता नहीं मिल पाई। उनमें सरगुजा संभाग की सीतापुर सीट भी शामिल हैं। इस सीट से खाद्य मंत्री अमरजीत भगत लगातार चार बार से जीत रहे हैं। उससे पहिले भी कांग्रेस ही इस सीट से जीतते रही है। मगर इस सीट पर बीजेपी ने देशभक्ति का दांव चल दिया है। इस बार बीएसएफ के जवान रामकुमार टोप्पो को वहां से मैदान में उतारने जा रही है। रामकुमार को वीरता के लिए राष्ट्रपति से मैडल मिल चुका है। जाहिर है, बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर इस बार ऐसी सीटों पर खासतौर से फोकस कर रहे हैं, जिस पर बीजेपी कभी जीत नहीं पाई। बीएसएफ जवान की स्क्रिप्ट उनकी प्लानिंग के तहत ही लिखी गई है। बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। सीतापुर के सैकड़ों युवा रामकुमार को चुनाव लड़ने के लिए पत्र लिखते हैं। पत्र मिलते ही इस्तीफा और आनन-फानन में स्वीकार भी। नौकरी छोड़कर रामकुमार सीतापुर पहुंचे तो पांच हजार से अधिक युवाओं ने उनकी अगुवानी की। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा के समक्ष पार्टी ज्वाईन करने कल बीएसएफ के पूर्व जवान सीतापुर से निकले तो उनके काफिले में 100 से अधिक गाड़ियां रहीं। हालांकि, अमरजीत भगत ने भी सीतापुर में अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली हैं। मगर देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के देशभक्ति कार्ड को अमरजीत कैसे फेस करते हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नो एडिशनल सीईओ</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">अभी तक छत्तीसगढ़ में हुए तीनों विधानसभा और लोकसभा चुनावों में चीफ इलेक्शन आफिसर के साथ ही एक एडिशनल सीईओ के साथ एक-एक ज्वाइंट सीईओ, डिप्टी सीईओ की व्यवस्था रही है। 2013 के समय डीडी सिंह ज्वाइंट सीईओ रहे तो 2018 के विधानसभा चुनाव के समय डॉ. एस भारतीदासन। मगर फर्स्ट टाईम अबकी एडिशनल सीईओ की पोस्टिंग नहीं होगी। पता चला है, जीएडी से इसके लिए नामों का पेनल भेजा गया था। मगर सीईओ आफिस ने बता दिया कि एडिशनल सीईओ की जरूरत नहीं। इस समय सीईओ रीना बाबा कंगाले के नीचे नीलेश श्रीरसागर और विपिन मांझी ज्वाइंट सीईओ हैं। यही तीन अफसरों की टीम पर चुनाव का दारोमदार रहेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मौज-मस्ती का बंगला</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीसगढ़ के कई नौकरशाह इन दिनों रहते हैं अपने प्रायवेट बंगलो में मगर सरकारी मकान भी अलाट करा रखा है। इसका इस्तेमाल वे मौज-मस्ती या फिर भांति-भांति के मेल-मुलाकात के लिए कर रहे हैं। एक यंग अफसर का रायपुर के सबसे पॉश कालोनी में निवास है मगर देर रात तक उनकी महफिल सजी रहती है सरकारी बंगले में। ईडी के दौर में आजकल अफसरों ने काम करने का अपना तरीका बदल दिया है। ठेकेदारों और सप्लायरों को पीए बता देते हैं साब के सरकारी बंगले में इतने बजे पहुंच जाइयेगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">भगवान मिल जाए, मगर...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कांग्रेस की टिकिट का पेंच फंसता जा रहा है। भाजपा की पहली लिस्ट से उत्साहित प्रदेश प्रभारी सैलजा ने छह सितंबर को पहली लिस्ट जारी करने का ऐलान किया था। पर 16 तारीख निकल गई, टिकिट तय करने वाले भी नहीं जानते कि सूची कब और कैसे जारी होगी। टिकिट के लिए नेताओं की बैठकें हो रही, उससे बात बन नहीं पा रही। सबकी अपनी लिस्ट है। सीएम तो राज्य के मुखिया होते हैं, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत स्क्रीनिंग कमिटी में हैं ही, पता चला है पीसीसी के नए चीफ दीपक बैज भी अपने पद और पावर को लेकर संजीदा हो गए हैं। बहरहाल, ऐसी खींचतान में कोई हल निकलेगा नहीं। जाहिर है, फाइनल दिल्ली से होगा। वैसे भी कांग्रेस की टिकिट के बारे में कहा जाता है भगवान मिल जाएंगे मगर कांग्रेस की टिकिट नहीं। कांग्रेस पार्टी में नामंकन भरने के आखिरी दिन तक मशक्कत चलती रहती है। सत्ता में रहने के दौरान तो और भी मत पूछिए। कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता टिकिट का दावेदार है। वैसे, दावेदारी के भी अपने फायदे हैं। नाम चर्चा में आने पर कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ मिल जाते हैं। ठेका, सप्लाई, और तोरी का लेवल बढ़ जाता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">एजी वर्सेज 50 वकील</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर हाई कोर्ट में शिक्षक पोस्टिंग स्कैम पर बहस की बड़ी चर्चा है। शिक्षकों के तरफ से 50 से अधिक वकील खड़े थे और सरकार की तरफ से महाधिवक्ता सतीश चंद्र। एजी उस दिन रोज पूरे रौ में थे। बचाव पक्ष के वकीलों की उनके सामने एक नहीं चल पाई। जब ये कहा गया कि जब इतना बड़ा मामला था तो ज्वाइंट डायरेक्टरों को सिर्फ सस्पेंड क्यों किया गया। इस पर किंचित तमतमाते हुए एजी ने कहा, आप देखते जाइए... हम एफआईआर भी करने जा रहे हैं। उनकी तार्किक दलील का ही नतीजा था कि कोर्ट ने शिक्षकों के वकीलों की एक न सुनी। वकील आग्रह करते रह गए। जस्टिस अरविंद चंदेल बोले... नो... नो। आप अपील कर सकते हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब्राम्हणों का शक्ति प्रदर्शन</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर में 17 सितंबर को छत्तीसगढ़ ब्राम्हण परिषद का एक बड़ा सम्मेलन होने जा रहा है। इसमें सूबे के मुखिया भूपेश बघेल मुख्य अभ्यागत होंगे। उनके सलाहकार प्रदीप शर्मा इस ताकत नुमाइश के मुख्य सूत्रधार बताए जाते हैं। उन्होंने ही परिषद को भवन बनाने दो एकड़ जमीन दिलाई है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य है चुनाव के समय विप्रजनों की एकजुटता को प्रदर्शित करना। इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रदेश भर से ब्राम्हण बिलासपुर पहुंचेंगे। ब्राम्हणों का पूरा जोर ब्राम्हण डोमिनेटिंग बेलतरा की टिकिट को लेकर है। कांग्रेस ने जब तक ब्राम्हणों को टिकिट दिया, उसे जीत हासिल होती रही। उसके बाद न ब्राम्हण को टिकिट मिली और न कांग्रेस को सीट। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है जातीय राजनीति के दौर में एक जिले में आखिर कितने ब्राम्हण को टिकिट मिलेगी। बिलासपुर में ऑलरेडी कांग्रेस के विधायक हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">एक्साइज के अगले त्रिपाठी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">एक्साइज में महादेव कांवड़े को सचिव और कमिश्नर बनाया गया है। मगर उनके नीचे एपी त्रिपाठी मॉडल का कोई अफसर नहीं है, जो शराब की खरीदी-बिक्री की सिस्टम को आपरेट कर सके। ऐसे में, डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग में आए एक अफसर की चर्चा है कि वे अपना प्रताप दिखाने रायपुर हेड क्वार्टर लाए जा रहे हैं। अगले हफ्ते उनका आदेश निकल सकता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत और मंत्री जय सिंह को एक-दूसरे की मजबूरी क्यों कहा जाता है?<br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. मंत्री टीएस सिंहदेव ने शिष्टाचारवश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच से केंद्र सरकार की तारीफ की...इससे कांग्रेस पार्टी को फायदा होगा या नुकसान?</span></p><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFtPACGWDwSWcUC8CcyJuwKMhYV2GOV2S-19JPyuvpe73qXsU3S02xRHa7Qj1HJeLpOvQ_XVgrOgCMtOp3W6Wvs-JERKlkBpB3t42LiisBs1yNy6wYTHnB4labe_kdVhmvq5tlxyppv8ke4bXIOXRzpic0iL5OG91zyW0N_sCukqCGyCAI1XcM-Pltlto/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFtPACGWDwSWcUC8CcyJuwKMhYV2GOV2S-19JPyuvpe73qXsU3S02xRHa7Qj1HJeLpOvQ_XVgrOgCMtOp3W6Wvs-JERKlkBpB3t42LiisBs1yNy6wYTHnB4labe_kdVhmvq5tlxyppv8ke4bXIOXRzpic0iL5OG91zyW0N_sCukqCGyCAI1XcM-Pltlto/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></div>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-47007035484965714112023-09-10T00:33:00.001-07:002023-09-10T00:33:14.436-07:00Chhattisgarh Tarkash: निर्वाचन आयोग की तलवार<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 10 सितंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">निर्वाचन आयोग की तलवार</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">विभागों और जिम्मेदारियों के मामले में छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी जनकराम पाठक को सरकार ने यकबयक हटाकर लोगों को चौंका दिया। चरित्र को तार-तार करने वाले गंभीर किसिम के केस दर्ज होने के बाद पाठकजी सिकरेट्री नहीं बन पाए। लेकिन, छत्तीसगढ़ में उनकी तरक्की वैसी ही रही, जैसे हवाई जहाज टेकआफ करता है। पाठक जी इस तरह सस्ते में क्यों निबट गए...इस पर फिर कभी। मगर उनके पांचों मलाईदार विभाग महादेव कांवरे को सौंप दिए गए हैं। याने कावरे साब ही हैसियत भी बढ़ गई है। उन्हें इसका कभी सपना भी नहीं आया होगा कि आवास पर्यावरण सिकरेट्री, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग कमिश्नर, एक्साइज सिकरेट्री, एक्साइज कमिश्नर, एमडी ब्रेवरेज कारपोरेशन, शराब खरीदी करने वाली कंपनी के एमडी में से कभी एक के भी वे मुखिया बन पाएंगे। मगर वक्त है...बन गए। हालांकि, चुनाव के समय कावरे पर कुर्सी बचाने के खतरे भी होंगे। शराब जब्ती को लेकर निर्वाचन आयोग बेहद सख्त है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जब राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार थी तो आयोग ने एक्साइज सिकरेट्री और एक्साइज कमिश्नर डीडी सिंह को हटा दिया था। सो, कावरे को सतर्कता से काम करना होगा।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आप के मिशनरी प्रत्याशी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">आम आदमी पार्टी ने अपने 10 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। इनमें पत्थलगांव और कुनकुरी से दो ईसाई उम्मीदवार शामिल हैं। इन दोनों विधानसभा सीटों पर मिशनरीज का अच्छा प्रभाव है...बल्कि जीत-हार तय करने में भी इनकी अहम भूमिका होती है। कुनकुरी में यूडी मिंज 2018 के कांग्रेस की लहर में 4500 वोट से जीत पाए थे। किंतु, पत्थलगांव में रामपुकार सिंह की मार्जिन अच्छी रही। फिर भी आप के इन मिशनरी उम्मीदवारों से इन दोनों सीटों पर सत्ताधारी पार्टी की चुनौतियां बढ़ सकती है। आम आदमी पार्टी का अकलतरा का कंडिडेट भी ठीक-ठाक है। इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के आनंद प्रकाश मिरी की दलित समुदाय में अच्छी पैठ है। वैसे सूबे में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा। पूर्व की तरह बसपा को दो-एक सीटें मिल जाएंगी। आप के लिए जरूर इस बार कोई स्कोप नहीं दिख रहा...सिवाय वोट परसेंटेज बढ़ाने के। हां...ये जरूर होगा कि कुछ सीटों पर नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में वह रहेगी। ऐसे में, आप को बीजेपी का बी टीम बोलना है तो लोग बोलते रहे...आखिर, बसपा को तो लोग बोल ही रहे हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मंत्री, पूर्व मंत्री फायनल</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">रुलिंग पार्टी किसी भी मंत्री का टिकिट नहीं काट रही...सभी 12 मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने पर सहमति बन गई है। इसी तरह रमन सरकार के 12 में से 9 मंत्रियों की टिकिट निश्चित समझी जा रही हैं। इनमें सीनियर मंत्री तो लगभग सभी हैं। रामविचार नेताम को मिल ही गई है...बचे बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, पुन्नूराम मोहले, केदार कश्यप। हालांकि, पहले ये संदेश दिए गए थे कि पुराने नेताओं की बजाए अब नए चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा। मगर ओम माथुर के प्रभारी बनने के बाद क्रायटेरिया में बदलाव हुआ है। माथुर से जुड़े लोगों का मानना है कि 15 साल मंत्री रहे नेताओं का अपना एक प्रभाव है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कलेक्टर की छुट्टी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बात 2003 के विधानसभा इलेक्शन की है। चुनाव की रणभेड़ी बज चुकी थी। आचार संहिता लागू होने के बावजूद सूबे के एक कलेक्टर ने ऐसी गलती कर डाली कि चुनाव आयोग ने उनका विकेट उड़ा दिया। दरअसल, 19 नवंबर 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जशपुर में सभा थी। इसके बाद उन्हें लोदाम जाना था। प्रमोटी आईएएस डॉ. बीएस अनंत तब जशपुर के कलेक्टर थे। आचार संहिता में कलेक्टर ने न केवल सीएम की हेलीपैड पर अगुवानी की बल्कि जशपुर से लोदाम जाने के लिए सीएम के हेलिकाप्टर पर सवार हो गए। सोशल मीडिया का वो युग नहीं था। 20 नवंबर को अखबारों में सीएम के हेलिकाप्टर में बैठते-उतरते कलेक्टर की फोटो छपी। बीजेपी ने चुनाव आयोग को फैक्स के जरिये पेपरों की कटिंग भेज दी। फैक्स मिलते ही चुनाव आयोग ने कलेक्टर की छुट्टी कर दी। केके चक्रवर्ती उस समय राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी थे। उनके पास दिल्ली से फोन आया...चीफ सिकरेर्टी से बात करके दो घंटे के भीतर तीन नामों का पेनल भेजिए। चक्रवर्ती ने पेनल भेजा और उसी दिन शाम को आयोग ने गौरव ि़द्ववेदी को कलेक्टर अपाइंट कर दिया। उस समय भी जशपुर पहुंचना कठिन काम था...रायपुर से सुबह निकलिए तो देर शाम से पहले संभव नहीं...20 साल बाद भी स्थिति वही है...रायपुर से उड़ीसा होकर जाएं तब भी 10 से 11 घंटा लगेगा ही। बहरहाल, कनेक्टिविटी के प्राब्लम को देखते आयोग ने चीफ सिकरेट्री को आदेश दिया कि गौरव को जशपुर जाने के लिए हेलिकाप्टर मुहैया कराई जाए। गौरव द्विवेदी 21 नबवंर को हेलिकाप्टर से ज्वाईन करने जशपुर पहुंचे और 19 दिसंबर को चुनाव संपन्न कराकर रायपुर लौटे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सबसे अधिक चुनाव</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">कलेक्टर के रूप में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक आम चुनाव कराने का रिकार्ड ठाकुर राम सिंह के नाम दर्ज है। राम सिंह लगातार नौ साल कलेक्टर रहे। इनमें रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और रायपुर जैसे जिले शामिल हैं। उन्होंने 2008 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा तथा 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव कराया। दूसरे नंबर पर दयानंद हैं। वे दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव कराए हैं। बिलासपुर कलेक्टर रहते उन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव कराया मगर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हट गए। अभी 33 जिलों में से सिर्फ दो ही ऐसे कलेक्टर हैं, जो 2018 का विधानसभा चुनाव कराए हैं। प्रियंका शुक्ला और डोमन सिंह। तब प्रियंका जशपुर में कलेक्टर थीं और डोमन कांकेर में। ये अलग बात है कि निर्वाचन आयोग ने डोमन सिंह के सीनियरिटी और काबिलियत का सम्मान नहीं किया। यूपी के एक्स सीएस और निर्वाचन आयुक्त अनूप पाण्डेय तो लगभग टूट ही पड़े।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">चार यार...</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">इस समय 33 में से चार कलेक्टर ऐसे हैं, जिन्हें 2019 का लोकसभा चुनाव कराने का अनुभव है। इनमें रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश भूरे, बिलासपुर कलेक्टर संजीव झा, बलौदा बाजार कलेक्टर चंदन कुमार और कोंडागांव कलेक्टर दीपक सोनी। दिलचस्प यह है कि चारों सेम बैच के आईएएस हैं...2011 के। 2019 के जनवरी में चारों एक ही लिस्ट में पहली बार कलेक्टर बनें और अभी भी क्रीज पर जमे हुए हैं। इस दौर में पौने पांच साल से कलेक्टरी की पिच पर जमा रहना आसान काम नहीं है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">फरवरी में चुनाव!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">यद्यपि, ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि पांच राज्यों के इलेक्शन नीयत समय याने नवंबर में होंगे...क्योंकि, वन नेशन, वन इलेक्शन इतना आसान नहीं है। मगर पीएम नरेंद्र मोदी हमेशा चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते हैं। इसलिए छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों के पालिटिशियन सांस रोक कर 18 तारीख के विशेष सत्र का इंतजार कर रहे हैं। राजनेताओं को डर सता रहा...कुछ भी हो सकता है। वैसे भी, पीएम नरेंद्र मोदी जी-20 में बड़े-बडे राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी कर अपना विल और स्ट्रांग कर लिए हैं। भारत सरकार में बैठे अफसर भी इस बात से इंकार नही ंकर रहे कि इलेक्शन फरवरी तक जा सकता है। लोकसभा चुनाव के साथ उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के भी चुनाव होते हैं। सरकार एक फार्मूला बना सकती है कि जिन सरकारों का चार साल हो गया है, वहां लोकसभा के साथ ही इलेक्शन करा दिया जाए। ऐसे में, दो-चार राज्य और शामिल हो सकते हैं। बहरहाल, क्लियर अभी कुछ भी नहीं। 18 सितंबर को ही स्पष्ट हो पाएगा कि विशेष सत्र के बिल में क्या है। जाहिर है, तब तक राजनेताओं की धड़कनें बढ़ीं रहेंगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ताकतवर अफसर!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">सात सीनियर अफसरों को सुपरसीट करके राज्य सरकार ने एडिशनल पीसीसीएफ श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ बनाया था। अब तीन महीने के भीतर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स याने हॉफ बन गए। ऐसा प्रभाव पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी और संजय शुक्ला का भी नहीं रहा। उन्हें भी हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने में वक्त लगा था और मशक्कत भी। राज्य में तीन शीर्ष स्केल वाले पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ। श्रीनिवास राव अब सूबे के तीन सबसे बड़े अफसरों में शामिल हो गए हैं।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. जीएडी द्वारा कुछ अधिकारियों को शंट किया जा रहा है, इसकी क्या वजह है?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी में मंत्री जय सिंह अग्रवाल के लोगों को सबसे अधिक जगह कैसे मिल गई?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUJPQtb8gLlR2MynU-_i4Z5Qt1ucWqo2Bbk_ZYnmR5JSMQI_6Bski98_3YkoHUbY1kkNRemgm6t-JwCda3ieeMHzV4RqYvXmKY6rw5iRGPZ2ql2vohsXHPxE-GVk8fbK5hZqa86EQIvsNVodQBy6BBCnp1kjVa5e4dbOfBzZQEPqidnxVX1CcYpiqIgMI/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUJPQtb8gLlR2MynU-_i4Z5Qt1ucWqo2Bbk_ZYnmR5JSMQI_6Bski98_3YkoHUbY1kkNRemgm6t-JwCda3ieeMHzV4RqYvXmKY6rw5iRGPZ2ql2vohsXHPxE-GVk8fbK5hZqa86EQIvsNVodQBy6BBCnp1kjVa5e4dbOfBzZQEPqidnxVX1CcYpiqIgMI/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7462866226411981487.post-46983273361028564822023-09-02T23:53:00.002-07:002023-09-02T23:53:41.696-07:00Chhattisgarh Tarkash: सबसे अधिक लड़ैया<p> <span style="background-color: #f9f9f9; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; font-weight: 700;">तरकश, 3 सितंबर 2023</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">संजय के. दीक्षित</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सबसे अधिक लड़ैया</span><br style="background: rgb(248, 248, 248); box-sizing: border-box;" /></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">बिलासपुर जिले की बेलतरा विधानसभा सीट से सीएम के एडवाइजर प्रदीप शर्मा के चुनाव लड़ने की माउथ पब्लिसिटी हुई मगर दावेदारी जताने का मौका आया तो प्रदीप को छोड़ 99 दावेदार मैदान में कूद पड़े। बता दें, सूबे की 90 सीटों पर 1900 नेताओं ने दावेदारी की है, उनमें सर्वाधिक संख्या बेलतरा की है। दरअसल, 15 साल मंत्री रहे अमर अग्रवाल की वजह से बिलासपुर हाई प्रोफाइल सीट हो गई है, लिहाजा, बिलासपुर के अधिकांश नेता बिलासपुर से लड़ना नहीं चाहते। इसके बनिस्पत बेलतरा उन्हें ज्यादा मुफीद लगता है। ये अलग बात है कि, तीन दशक से इस सीट से कांग्रेस जीती नहीं है। आखिरी जीत 1993 में मिली थी, जब चंद्रप्रकाश बाजेपेयी विधायक बने थे। ब्राम्हण बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने बाजपेयी के बाद किसी ब्राम्हण को टिकिट दिया भी नहीं। अब देखना है, सबसे अधिक दावेदारों वाली इस सीट पर कांग्रेस अबकी किसे प्रत्याशी बनाती है...ब्राम्हण को या किसी गैर ब्राम्हण को?</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ठाकुरों में जंग</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">जोगी कांग्रेस से विधायक रहे धर्मजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। और जैसी चर्चाएं है...तखतपुर से उन्हें चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो वहां दो ठाकुरों में दिलचस्प मुकाबला होगा। इस समय रश्मि सिंह बाजपेयी कांग्रेस से विधायक हैं। और सुनने में आ रहा इस बार उनके पति आशीष सिंह तखतपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी हो सकते हैं। रश्मि के साथ आशीष ने भी दावेदारी की है। जाहिर तौर पर धर्मजीत सिंह बिलासपुर जिले का एक बड़ा नाम है। विद्याचरण शुक्ल के सियासी स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं...बात रखने का अपना प्रभावशाली अंदाज है। तो 18 साल की उम्र में यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट बन गए आशीष भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके पिता बलराम सिंह तखतपुर से विधायक रहे हैं। और, सबसे बड़ी बात...प्रदेश का कोई विधायक जितना अपने इलाके का दौरा या संपर्क नहीं बनाकर रखा होगा, उससे कहीं ज्यादा विधायक पति आशीष अपने इलाके में सक्रिय रहे। कुल मिलाकर चुनावी रण में दो बड़े ठाकुरों की लड़ाई देखने लायक होगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">छत्तीसगढ़ के अजातशत्रु</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">छत्तीगसढ़ में पांच बार से अधिक कोई ऐसा विधायक जो लगातार चुनाव जीत रहा है तो वह नाम है बृजमोहन अग्रवाल का। प्रदेश के कांग्रेस और भाजपा के सारे दिग्गज एक या एक से अधिक बार पराजित हो चुके हैं मगर बृजमोहन अजातशत्रु बने हुए हैं। पहली बार वे 1990 में कांग्रेस के स्वरूपचंद जैन को हरा कर विजयी हुए थे। तब रायपुर में दो सीट होती थी। एक रायपुर शहर और दूसरा रायपुर ग्रामीण। रायपुर शहर से स्वरुपचंद जैसे नेता को हराने का उन्हें ईनाम मिला और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। इसके बाद वे इस समय सातवी बार विधायक हैं। भाजपा के ही पुन्नूराम मोहले अभी तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। वे चार बार लोकसभा और चार बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। तीसरे नंबर पर कांग्रेस के कवासी लखमा आएंगे। वे भी पिछले पांच बार से लगातार जीत दर्ज करा रहे हैं। रविंद्र चौबे अगर 2013 का चुनाव नहीं हारे होते तो वे इस समय बृजमोहन से आगे होते। बृजमोहन का प्लस यह है कि उन्होंने अपना ऐसा औरा बनाया है कि टिकिट मिलेगी, तब तक वे जीतेंगे। हालांकि, कांग्रेस के प्रमोद दुबे बृजमोहन को टक्कर देने का एक मौका गंवा दिए। 2018 के चुनाव में प्रमोद को टिकिट मिल रही थी मगर उन्होंने ठुकरा दिया। तब कांग्रेस की आंधी में प्रमोद कुछ भी कर भी सकते थे।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">चिंता का विषय!</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राष्ट्रपति के विजिट की वजह से राजधानी रायपुर हाई सिक्यूरिटी मोड पर रही। बाहर से एक आईजी, दो डीआईजी समेत कई आईपीएस, एसपीएस अधिकारियों को बुलाया गया...दीगर जिलों से आए दो हजार से अधिक जवान भी रहे तैनात। बावजूद इसके रायपुर में नए अंदाज में लूट की घटना हो गई...राखी बांधकर लौट रहीं दो बहनों से अनाचार की शर्मनाक घटना भी। पुलिस महकमे को इस पर चिंतन-मनन करना चाहिए...अपराधियों में पुलिस की बर्दी का खौफ क्यों खतम होते जा रहा है। राजधानी में क्राइम बढ़ने का एक बड़ा कारण नशीले पदार्थों की बिक्री है। पिछले साल हुई एसपी कांफ्रें्रस में भी नशे में युवती द्वारा चाकू मारकर एक युवक की हत्या का हवाला देते पुलिस अधिकारियों से सवाल-जवाब किया गया था। मगर नशे का कारोबार का ये हाल है कि पान ठेलों में धड़ल्ले से चल रहा है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नशे का ठेला</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">राजधानी के खम्हारडीह थाने से महज 500 मीटर दूर स्थित पान दुकान। एक रात, यही कोई 10 बजे...एक गेस्ट के साथ टहलते हुए पहुंच गए पान ठेला कि बहुत दिनों से चमन चटनी पान नहीं खाए हैं। मगर वहां का नजारा देखकर हिल गया। ग्रीन नेट से पान ठेला ढका हुआ...अंदर में धुंआ उड़ाते हुए लाल...डरावने आंखों वाले लंपट टाईप युवक...मदहोशी में धुंए के छल्ले उड़ा रहे थे। परिस्थितियों को देखते वहां से लौट जाना ही मुनासिब समझा। बता दें, ये पान दुकान उस रोड पर स्थित है, जहां से रोज कई आईपीएस और सीनियर एसपीएस अधिकारी गुजरते हैं। ऐसे में, राखी के दिन दो सगी बहनों के साथ दुष्कर्म की घटना के लिए मंदिर हसौद थाने को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बेचारे थानेदार क्या-क्या करें...। मंदिर हसौद रायपुर के टॉप थ्री थानों में से एक जो माना जाता है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पहले आईपीएस</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">जुलाई में रिटायर हुए 1988 बैच के रिटायर आईपीएस संजय पिल्ले को राज्य सरकार ने उसी जेल विभाग में बतौर डीजी संविदा पोस्टिंग दी है, जहां से वे रिटायर हुए थे। सरकार ने कुछ आईपीएस अधिकारियों को सुपरसीड करके अशोक जुनेजा को डीजी पुलिस बनाया था, उनमें संजय पिल्ले भी शामिल थे। इस बात का ध्यान में रखते हुए रिटायरमेंट के अगले महीने सरकार ने उन्हेंं पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दे दी। संजय इस मामले में किस्मती हैं कि राज्य बनने के 23 साल में अभी तक डीजी लेवल पर सुपरसीड होने वाले किसी आईपीएस को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग नहीं मिली। वासुदेव दुबे, राजीव माथुर, संत कुमार पासवान, गिरधारी नायक, डब्लूएम अंसारी ऐसे नाम हैं, जो डीजीपी की दौड़ में पिछड़ गए। इन अफसरों को कोई पोस्टिंग नहीं मिली। नायक को रिटायमेंट के कुछ समय बाद मानवाधिकार आयोग में अपाइंट किया गया मगर उसमें संजय पिल्ले जैसी बात नहीं। जिस विभाग से रिटायर हो रहे, उसी कुर्सी पर पोस्टिंग मिलना ऑनर की बात है।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">राडार पर कलेक्टर, एसपी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">मतदाता सूची के पुनरीक्षण के बाद कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकलना तय है। इसमें खासतौर से उन कलेक्टर, एसपी के नाम होंगे, जो निर्वाचन आयोग की बैठक में निशाने पर रहे। जाहिर सी बात है, आचार संहिता लगने के बाद आयोग द्वारा अफसरों को हटाने पर मामला पेचीदा हो जाता है। आयोग को तीन नामों का पेनल भेजना पड़ता है। चुनाव आयोग जिस नाम पर टिक लगाएगा, उसे कलेक्टर अपाइंट करना होगा। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय ऐसा ही हुआ था। सरकार जिसे रायपुर का कलेक्टर बनाना चाहती थी, आयोग उसके लिए तैयार नहीं हुआ। सरकार को दोबारा पेनल भेजना पड़ा। इसके लिए चतुराई पूरी की गई...तीन में से नीचे के दो ऐसे अफसरों का नाम डाला गया, जिस पर आयोग कतई राजी नहीं होता। मगर आयोग ने दूसरा पेनल मंगा लिया। और, इसमें से आयोग ने बसव राजू का नाम फायनल किया। बहरहाल, ऐसी स्थिति से बचने सरकार चाहेगी कि आचार संहिता लगने से पहले ही उन अधिकारियों को शिफ्थ कर दिया जाए, जिन पर गाज गिरने की आशंका है। ऐसे में, कलेक्टरों की संख्या आधा दर्जन से उपर जा सकती है। लगभग इसी तरह की संख्या एसपी में होगी।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">28 दिन के आईजी</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;">दूसरी बार खुफिया चीफ बनकर रायपुर आ रहे आईजी आनंद छाबड़ा बिलासपुर में 28 दिन आईजी रह पाए। सरकार ने उन्हें दुर्ग से बिलासपुर ट्रांसफर किया था। वे एक अगस्त को बिलासपुर रेंज ज्वाईन किए और 28 अगस्त को उनका एज ए इंटेलिजेंस चीफ रायपुर ट्रांसफर हो गया। सबसे कम दिनों की आईजी पोस्टिंग वालों में दिपांशु काबरा का भी नाम शामिल हैं। पिछली सरकार में सरगुजा से उनका एक महीने चार दिन में दुर्ग ट्रांसफर हो गया था।</p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अंत में दो सवाल आपसे</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">1. अगला पीएससी चेयरमैन कोई आईएएस होगा या शिक्षाविद?</span></p><p style="background: rgb(249, 249, 249); box-sizing: border-box; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 1.4em; margin: 0px 0px 15px; min-height: 15px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">2. वन नेशन, वन इलेक्शन का बिल पारित हो गया तो विधानसभा चुनाव कब तक के लिए टल जाएगा?</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnSpVM8fNLRClHn2FyyiDfKTX7K18deLfdTex0Z_kcWatc93Ef90F9iqkVUfG1TlQXnPoDTOV01h4yrr-k5Jz-LOjXLtgfrm4z0NjNYNCg7lEpop3Lbfoao96WIA5hMcKEKUuiEhRq0EDO5tzAZOcrtVmqX_0VxDpavl4rL305OTcz_Bga7m7cRs9b2q8/s500/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="500" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnSpVM8fNLRClHn2FyyiDfKTX7K18deLfdTex0Z_kcWatc93Ef90F9iqkVUfG1TlQXnPoDTOV01h4yrr-k5Jz-LOjXLtgfrm4z0NjNYNCg7lEpop3Lbfoao96WIA5hMcKEKUuiEhRq0EDO5tzAZOcrtVmqX_0VxDpavl4rL305OTcz_Bga7m7cRs9b2q8/s320/sanjay%20k.%20dixit%20tarkash%20raipur.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p>संजय दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/01630795059960863077noreply@blogger.com0