शनिवार, 29 दिसंबर 2012

तरकश, 30 दिसंबर

36 जिले

सियासी गलियारों में यह चर्चा गरम है कि 26 जनवरी को सरकार कुछ और जिलों का ऐलान कर सकती है। अभी 27 जिले हैं। राज्य जब बनें थे, तब 16 थे। रमन सरकार ने पहली पारी में बीजापुर और नारायणपुर को बनाकर 18 किया था। और पिछले साल जनवरी में 9 और बनाए। प्रशासन को आम आदमी के और नजदीक ले जाने के लिए सत्ता के भीतर, छत्तीसगढ़ में 36 जिले की भी बातें हो रही हंै। फिलहाल, सारंगढ़ और पत्थलगांव की चर्चा ज्यादा है। सियासी पे्रक्षकों का मानना है, ऐसा करके सरकार कांग्रेस बहुल इलाके में सेंध लगाने की कोशिश करेगी। वजह, 2013 का चुनाव कुछ अलग होगा। एक-एक सीट की लड़ाई होगी। सरकार कहीं कोई कोर कसर नहीं रखना चाह रही। बहरहाल, कुछ और नए जिले बनाए गए, तो एसपी और कलेक्टरों के चेंज 26 जनवरी के बाद ही मानकर चलिये। वरना, 10 जनवरी के पहले ट्रांसफर हो जाएंगे।

माटी पुत्र

बस्तर और सरगुजा के कुलपति चयन के लिए राजभवन ने चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार की अध्यक्षता में सर्च कमेटी बना दी है। और समझा जाता है, अगले महीने इस पर निर्णय हो जाएगा। हर बार की तरह, माटी पुत्रों को मौका देने के लिए फिर प्रेशर बनाने की मुहिम शुरू हो गई है। मगर सर्च कमेटी और राजभवन को यह ध्यान रखना होगा, जिन विश्वविद्यालयों को माटी पुत्र संभाल रहे हैं, वहां का हाल क्या है। राज्य के 80 फीसदी से अधिक विवि को वही लोग संभाल रहे हैं। वहां क्वालिटी तो भूल जाइये, एक भी ऐसा काम नहीं हुआ है, जिससे लगे कि वह विश्वविद्यालय है। इनमें से अधिकांश विवि सिर्फ डिग्री बांटने के केंद्र बनकर रह गए हैं। राजनीतिज्ञों को दबाव इस बात के लिए बनाना चाहिए कि विवि में योग्य आदमी की पोस्टिंग हो, जिससे अपना ह्यूमन रिसोर्स स्ट्रोंग हो सकें। आखिर, अमेरिका में ऐसी बातें क्यों नही होती। वहां के आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में भारतीय कुलपति हैं। और, इसी सूबे में बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वीसी लक्ष्मण चतुर्वेदी ने कैसे टाईट करके रख दिया है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी क्वालिटी में ही नहीं, बल्कि डिसिप्लीन में, एक नजीर बन सकता है। स्कूल से भी अधिक अनुशासन....पूरा विवि कांपता है। टीचर अगर 10 बजे की जगह 10.05 पर पहुंच गए, तो खैर नहीं। और कोई छात्र वीसी को एक एसएमएस कर दें, तो फटाक एक्शन। छेड़खानी हो जाए, तो निलंबन तय मानिये। सवाल योग्यता का है। माटी पुत्र ही सही, क्वालिटी तो होनी चाहिए।

चंेज

छत्तीसगढ़ के डीजीपी का चेम्बर देश में संभवतः अकेला होगा, जहां रिटायर एवं दिवंगत डीजीपी की बड़ी-बड़ी फोटुओं की लाइन लग गईं थीं। मोहन शुक्ला से लेकर अनिल नवानी तक। परंपरा बन गई थी, जो भी डीजीपी की कुसी पर आसीन होता, सबसे पहले फोटुओं की लाइन में अपनी एक फोटू टांग देता था। स्थिति यह हो गई थी, एक तरफ का पूरा दीवार भर गया था। शुक्र है, रामनिवास फोटू के मोह में नहीं पड़े। बल्कि, भूतपूर्व, अभूतपूर्व सबकी फोटुओं को निकलवा दिया। उन्होंने कार केट भी नहीं लिया है। उनकी सिंगल गाड़ी चलती है। विश्वरंजन के समय से पायलेटिंग और फालोगार्ड वाहन की व्यवस्था चालू हुई थी। डीजीपी अगर राजधानी से बाहर जाएं, तो समझ में आता है, लोकल में प्याव-प्याव का क्या मतलब। चलिये, रामनिवास ने आफिस और कार केट में तो चेंज कर लिया है, अब उम्मीद करनी चाहिए, पोलिसिंग भी कुछ चेंज आए। 

गर्व

न्यू रायपुर की समस्याओं को लेकर भले ही उंगलियां उठाई जा रही हो, मगर सरकार को संतोष होगा कि उसके डिजाइन को देश में सराहना हो रही है। याद होगा, राज्योत्सव के मौके पर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने नए मंत्रालय और न्यू रायपुर की ड्राइंग की खूब प्रशंसा की थी और उन्होंने कहा था कि इसे देखने के लिए गुजरात से अफसरों की टीम भेजेंगे। चुनाव के व्यस्त समय में भी वे इसे भूले नहीं। उनके प्रींसिपल सिकरेट्री यहां के अफसरों के संपर्क में रहे। और बुधवार को आधा दर्जन से अधिक अफसरों और आर्किटेक्ट की टीम न्यू रायपुर पहंुची और तीन दिन यहां रुककर बारिकी से एक-एक चीज को देखा। मोदी का नया सचिवालय अप्रैल तक तैयार हो जाएगा। अफसरों ने बताया, मंत्रालय के डिजाइन को मोदी के आफिस के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल किया जाएगा।

कठिनाई

नौकरशाह से मुख्य सूचना आयुक्त बनें सरजियस मिंज की कठिनाई बढ़ सकती है। उनके खिलाफ मिली दो दर्जन से अधिक शिकायतों को राजभवन ने जांच के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया है। जीएडी अब शिकायतकर्ताओं को प़त्र भेजकर शिकायत के सिलसिले में विस्तृत जानकारी मांग रहा है। मिंज के खिलाफ ताजा शिकायत हुई है, उनसे 14 लाख रुपए रिकवरी करने की। आरटीआई एसोसियेशन ने बकायदा साक्ष्य के साथ राज्यपाल से शिकायत की है कि फलां-फलां मामलों में मुख्य सूचना आयुक्त ने 25 हजार की जगह हजार-डेढ़ हजार रुपए जुर्माना लगाकर केस खतम कर दिया। और, इससे खजाने को 14 लाख से अधिक का नुकसान हुआ है। 

अंत में दो सवाल आपसे
1. रमन सरकार के किस मंत्री के दिल्ली के एक मंदिर में शादी की चर्चा है?
2. चरणदास महंत केंद्रीय मंत्री बन गए है, ऐसा न कांग्रेस को लग रहा और न जनता को, ऐसा क्यों?

रविवार, 23 दिसंबर 2012

तरकश, 23 दिसंबर

ब्रम्हास्त्र

खाददान्न सुरक्षा विधेयक कानून बनाकर डा0 रमन सिंह ने एक तरह से कहें, तो ब्रम्हास्त्र चला ही दिया। 32 लाख से बढ़कर अब 42 लाख बीपीएल और अतिगरीब इसके दायरे में आ गए हैं। उन्हें अब सस्ते चावल के साथ ही मुफत में नमक, 10 रुपए में दाल और आदिवासी इलाके में पांच रुपए में चना मिलेगा। सरकार ने वोट पौकेट बढ़ाने के लिए बड़ी चतुरार्इ से नार्इ, मोची, राजमिस्त्री जैसे सारे असंगठित क्षेत्रों को शामिल कर लिया है। 42 लाख परिवार मुफत का नमक खाएगा, तो उसका भी कुछ फर्ज बनेगा ही। सत्ताधारी पार्टी को और चाहिए क्या। और, एक अहम बात यह भी, रमन सिंह का कद और बढ़ गया। पता नहीं, लोकल मीडिया ने इसे कैसे अंडरस्टीमेेट कर लिया। नेशनल और अंग्रेजी मीडिया में शनिवार को यह खबर सुर्खियो में रही......खाध सुरक्षा कानून बनाकर छत्तीसगढ़ ने बाजी मारी.....केंद्र को भी पीछे छोड़ दिया। केंद्र पिछले पांच साल से इसके लिए कवायद कर रहा है। हालांकि, रमन इसे ब्रम्हास्त्र नहीं मानते। विधानसभा की लाबी में मीडिया ने जब उनसे पूछा कि क्या यही उनका ब्रम्हास्त्र है, उन्होेंने मुस्कराते हुए इंकार में सिर हिला दिया। लेकिन सियासी प्रेक्षकों की मानें, तो इससे बड़ा ब्रम्हास्त्र नहीं हो सकता। सदन में विपक्ष के चेहरे पर इसका असर पढ़ा जा सकता था।

गिव एंड टेक

कांग्रेस में भले ही महाभारत छिड़ा हो, एक-दूसरे पर भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य का आरोप लगाए जा रहे हों, इसके उलट सत्ताधारी पार्टी हंड्रेड परसेंट चुनावी मोड में आ गर्इ है। सरकार के रणनीतिकारों ने चुनाव तक के कार्यक्रमों का ब्लूपिं्रट तैयार कर लिया है। खाध सुरक्षा कानून बनाने के बाद सरकार अगले महीने नौ नए जिले में जिला उत्सव करने जा रही है। बिल्कुल राज्योत्सव की तरह। 10 जनवरी से इसका आगाज होगा। इसमें रमन का रोड शो होगा और लोगों को बताया जाएगा कि सरकार ने किस तरह आम लोगों का खयाल करके प्रशासन को उनके नजदीक पहुंचाया। इसके निहितार्थ यही हैं, नौ महीने बाद, बटन दबाते समय इसे याद रखना। राजनीति में गिव एंड टेक ही तो चलता है।   

मंत्रालय का बाबू


बाबू और उस पर मंत्रालय का, अच्छे-अच्छे लोग घबराते हैं। अगर इसमें कोर्इ  शक हो तो आप सीआर्इडी के आर्इजी पीएन तिवारी से कंफार्म कर लीजिए। मंत्रालय के गृह विभाग के बाबू ने अंड-बंड नोट लिखकर उनकी फाइल ही अटका दी। तिवारीजी का इसी महीने रिटायरमेंट है और संविदा नियुकित के लिए फाइल चल रही है। बाबू ने नोटिंग कर दी, आर्इजी सीआर्इडी कैडर पोस्ट है, इसलिए इस पर संविदा नियुकित नहीं दी जा सकती। फाइल देखकर पुलिस अफसर सन्न रह गए। वास्तविकता यह है कि आर्इजी सीआर्इडी, कैडर पोस्ट नहीं है। मगर बाबू को फाइल लटकानी थी, सो होशियारी दिखा दी। अब नोटशीट फिर से लिखी जा रही है। मगर इसमें टार्इम लग जाएगा। और पुलिस महकमे की दिक्कत यह है कि आर्इजी का टोटा है। अब बड़ा सवाल है, पंडितजी की फाइल किलयर नहीं हुर्इ, तो 31 दिसंबर के बाद सीआर्इडी कौन देखेगा। 


चुनावी टीम


विधानसभा सत्र खतम होने के साथ ही आर्इएएस, आर्इपीएस की एक बड़ी लिस्ट निकालने की तैयारी शुरू हो गर्इ है। सीएम के करीबी सूत्रों की मानें, तो आधा दर्जन से अधिक जिले के एसपी इसके लपेटे में आएंगे। कर्नाटक कैडर से डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ आइर्ं सोनल मिश्रा को रायपुर में मौका मिल सकता है। उनके आर्इएएस पति संतोष मिश्रा रायपुर में ही पर्यटन मंडल के एमडी हैं। वहीं, रायपुर के एसएसपी दिपांशु काबरा अब पीएचक्यू में फुलफलैश एसआर्इबी संभालेंगे। इसी तरह रायगढ़ के एसपी आनंद छाबड़ा जनवरी में डीआर्इजी बन रहे हैं। उन्हें पुलिस मुख्यालय में लाने की खबर है। कांकेर के एसपी राहुल भगत और नारायणपुर के मयंक श्रीवास्तव में से कोर्इ एक रायगढ़ जाएगा। एसपी बनने वालों में अंकित गर्ग, अजय यादव और शेख आरिफ का भी नाम शामिल है। यादव रायगढ़ जा सकते थे मगर बिलासपुर के एसपी रहते उन्होेंने दिलीप सिंह जूदेव को नाराज कर दिया था। सो, जशपुर के पड़ोस में उन्हें भेजना मुनासिब नहीं समझा जा रहा। अक्टूबर तक जिनका तीन साल पूरा हो जाएगा, उनका हटना या जिला चेंज होना, तो एकदम तय है। लिस्ट जल्द ही निकलेगी। एक बार याद होगा, 31 दिसंबर को निकल गर्इ थी। इसी तरह सरकार चौंका सकती है। बस, कलेक्टर और एसपी की लिस्ट में एकाध दिन का अंतर रहेगा। 


देर आए.....


न्यू रायपुर की चमचमाती सड़कों को देखकर हर आदमी के मन में यह सवाल कौंधता था कि राज्य की सड़कें ऐसी क्यों नहीं बनार्इ जा सकती। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार भी कर्इ मीटिंग में इस बात को उठा चुके हैं। और सीएम ने भी इसको लेकर झिड़का था। चलिये, देर आए, दुरुस्त आए....पीडब्लूडी ने विधानसभा रोड को माडल रोड के रूप में पेश किया है। बिल्कुल न्यू रायपुर के टक्कर का। बलिक उससे अधिक झम-झाएं। और प्लान है, बरसात के पहले शहरों की सड़कों को चकाचक कर दिया जाए, लंबी दूरी की सड़कों का पेच वर्क भी। बिलासपुर रोड का काम पहले से ही तेजी से चल रहा है। रायपुर और बिलासपुर, दोनों छोर पर 20-20 किलोमीटर फोर लेन होगा। प्लान रोमांचित करने वाला है। मगर साकार हो पाएगा, यह वक्त बताएगा। 


धक्का



शत्रुंजय की आकसिमक मौत ने भाजपा के मास लीडर दिलीप सिंह जूदेव को हिला दिया है। शत्रुंजय को उन्हाेंने न केवल अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, बलिक यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि बिलासपुर से उन्हें अगला लोकसभा चुनाव में उतारने की भी तैयारी कर रहे थे। शत्रुंजय के लिए बिलासपुर अनजान नहीं था। चुनाव के समय वे साये की तरह अपने पिता के साथ रहे, अलबत्ता, उनके सारथी भी रहे। उनकी प्रचार अभियान वाली सफारी गाड़ी को डेढ़ महीने तक शत्रुंजय ने ही ड्राइव किया था।
अंत में दो सवाल आपसे
1.    बालको मामले में विपक्ष से सवाल पूछवाने को लेकर किस आर्इएएस अफसर की भूमिका कटघरे में है?
2.    क्या अनिल नवानी को इसलिए पुलिस हाउसिंग बोर्ड में पुनर्वास नहीं दिया गया, क्योंकि मार्च में रिटायरमेंट के बाद डीजी होमगार्ड संतकुमार पासवान को वहां बिठाया जाएगा?

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

तरकश, 16 दिसंबर


जय हो

गर इरादे नेक हो और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश हो, तो सिस्टम को ठीक किया जा सकता है। भिलाई के आरटीआई कार्यकर्ता इंदरचंद सोनी ने युवा आईएएस और दुर्ग जिला पंचायत के सीईओ सेनापति को गाड़ी से बत्ती निकालने पर बाध्य कर दिया। इंदर ने लिखा-पढ़ी करके सितंबर में उनकी पीली बत्ती उतरवाई थी। मगर अन्य आईएएस-आईपीएस की तरह बत्ती सिंड्रोम के शिकार सेनापति ने इसके बाद एडीएम, एसडीएम के लिए निर्धारित लाल-नीली बत्ती लगा ली। सोनी ने फिर कलेक्टर से शिकायत की। बात नहीं बनी तो उन्होंने सोमवार को जनदर्शन में जाकर कलेक्टर को चेतावनी दे आई, आप बत्ती उतरवा दें वरना, मैं उसे पत्थर मारकर फोड़ दूंगा। भले ही इसके बाद मुझे जेल जाना पड़े, परवाह नहीं। कलेक्टर चमक गए। खामोख्वाह लफड़ा होगा। मंगलवार को उन्होंने सेनापति को निर्देश दिया और गुरूवार को उन्होंने बत्ती निकाल दी। इंदर ने अवैध बत्तीधारियों के खिलाफ अरसे से अभियान छेड़ा हुआ है। इससे पहले भी भिलाई, दुर्ग के अफसरों की गाड़ी से बत्ती निकलवा चुके हैं। काश, रायपुर में भी कोई इंदर सोनी होते। मंत्रालय से लेकर पीएचक्यू तक के अपात्र अफसर बेशर्मी के साथ पीली बत्ती लगाकर घूम रहे हैं। पीएचक्यू में तो एआईजी तक। जबकि, एडीजी को भी पीली बत्ती लगाने की पात्रता नहीं है। सिवाय रेंज आईजी के। मंत्रालय के सिकरेट्री को कौन कहें, विभागों के डायरेक्टर तक बत्ती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। इंडस्ट्री डायरेक्टर की भी गाड़ी में आप बड़ी-सी पीली बत्ती पाएंगे। ऐसे में इंदर की याद कैसे नहीं आएगी।

डीएम-एसपी

आईजी की लिस्ट निकलने के बाद अब कलेक्टर और एसपी के नम्बर हैं। इनमें पहला नम्बर तो उन अफसरों का लगेगा, जिनका अगले साल नवंबर में तीन साल या उससे अधिक हो जाएगा। आखिर, चुनाव आयोग उन्हें हटा ही देगा, सो, खुद ही उन्हें ठीक जगहों पर शिफ्थ करने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद आएगा, पारफारमेंस का नम्बर। इसके लपेटे में तो दर्जन भर कलेक्टर और लगभग इतने ही एसपी आ रहे हैं। सरकार के पास ऐसी रिपोर्ट है, जिसमें 27 में से 15 जिलों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और पोलिसिंग की स्थिति बेहद खराब है। प्रशासन की छबि बदलने के लिए उन्हें हटाना अनिवार्य हो गया है। जिलों में कहें तो रायपुर, रायगढ़, राजनांदगांव और कवर्धा और कुछ हद तक दंतेवाड़ा की स्थिति कुछ ठीक है। बाकी के भगवान ही मालिक हैं। ब्र्रजेश मिश्र दुर्ग जैसे जिले के कलेक्टर कैसे बन गए, लोग आज तक नहीं समझ पाए हैं। और तीसरा, जिन कलेक्टर और एसपी के विभिन्न जिलों में लगातार पांच साल हो गए हैं, फेरबदल में उनका भी नम्बर लग सकता है। ऐसे में अधिकांश कलेक्टरों और एसपी का ज्यादा समय अपने आकाओं को खुशामद करने में जा रहा है। ताकि, कोई ठीक-ठाक जिला मिल जाए।    

नहले पे....

छत्तीसगढ़ में पंचायत मंत्री चुनाव नहीं जीतते......कांग्रेस सरकार में अमितेष शुक्ल को चुनाव हारना पड़ा, तो रमन सिंह की पहली पारी में पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर को करारी शिकस्त मिली। 12 दिसंबर को शीतकालीन सत्र में पंचायत के तहत आने वाले शिक्षाकर्मियों के सवाल पर कांग्रेस के धर्मजीत सिंह ने पंचायत मंत्री हेमचंद यादव को निशाने पर लेते हुए कहा कि उन्हें ऐसा काम नहीं करना चाहिए कि पंचायत मंत्री के हारने की एक परंपरा बन जाए। इस पर पंचायत मंत्री कहां चूकने वाले थे। उन्होंने तपाक से कहा, नेता प्रतिपक्ष भी चुनाव नहीं जीतते। और आप ऐसा कहकर अपने नेता को क्यों डरा रहे हैं। जाहिर है, राज्य में जो भी नेता प्रतिपक्ष बना है, वह अपनी सीट नहीं बचा पाया है। भाजपा के नंदकुमार साय से लेकर कांग्रेस के महेंद्र कर्मा तक।

जोगी स्टाइल

विधानसभा में, मंत्रियों में अरबन एंड हेल्थ मिनिस्टर अमर अग्रवाल का पारफारमेंस बढि़यां रहता है। सबसे उम्दा भी कह सकते हैं। उनकी हाजिरजवाबी को विपक्ष भी मानता है। बुधवार को जब उन्होंने अजीत जोगी को उन्हीं के स्टाईल में पलटवार किया, तो सदन ठहाकों से गूंज गया। हुआ ऐसा, स्वास्थ्य विभाग के प्रश्न के दिन जोगीजी ने केंद्र की राशि से चल रही योजनाओं में राज्य के नेताओं की फोटो का मामला उठाया था। इस पर जरा अमर का जवाब सुनिये, अध्यक्ष महोदय, जब हमलोग विपक्ष में थे और जोगीजी हमारी ओर, उस समय के, उनके भाषण का एक अंश सुनाता हूं......एजेंसी हमारी तो फोटो किसकी छपेगी.....? अंदाज हू-ब-हू जोगीजी का, कांपते हुए....दांत पिसकर और दोनों हाथ से छाती ठोकते हुए। इस पर जोगीजी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। बाहर निकलने पर, लाबी में पक्ष-विपक्ष के विधायक जोगी स्टाईल के लिए अमर को बधाई देते नजर आए। 

प्रथम एसपी

बिलासपुर के एसपी रतनलाल डांगी देश के संभवतः पहले एसपी होंगे, जिन्हें शहर में रहना नहीं भाता। उन्होंने जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कोनी ग्राम पंचायत के आमतौर पर सूनसान रहने वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाया है। जाहिर है, एसपी का बंगला अपने-आप में कंट्रोल रुम से कम नहीं होता, और उस इलाके के दो-तीन किलोमीटर के सराउंडिंग के लोग अपने को सुरक्षित समझते हैं। अब, एसपी ही शहर से बाहर रहेगा, तो पोलिसिंग का अंदाजा आप लगा सकते हैं। लेकिन कप्तान को बोले कौन। आईजी अशोक जूनेजा ने उनको इशारा किया था। नए आईजी राजेश मिश्रा को पता चला तो वे भी आवाक रह गए। अब, ऐसे में लोगबाग चुटकी क्यों न लें। कह रहे हैं.....डांगी साब, लंबे समय तक कोरबा में एसपी रहे हैं और अब कोरबा नही ंतो कोरबा रोड ही सही। मगर इससे पोलिसिंग का तो बाजा बज रहा है। न्यायधानी, अपराधधानी में तब्दील होती जा रही है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. शिक्षाकर्मियों की भरती में क्या समान काम, समान वेतन के साथ संविलयन की शर्त थी और कांग्रेस अगर सत्ता में आएगी तो क्या इन मांगों को पूरा कर देगी?
2. प्रदेश के किस आईजी द्वारा नोट गिनने वाली मशीन लेने की चर्चा है?

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

तरकश, 10 दिसंबर


क्लास

मंत्रियों के पुअर पारफारमेंस पर मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह के तेवर अब तल्ख होते जा रहे हैं। मंगलवार को पीडब्लूडी की समीक्षा बैठक में तो उनके तेवर देखने लायक थे। सड़कों की दुर्दशा पर उन्होंने यहां तक कह डाला....सड़कें नहीं सुधरी तो जान लो, अफसर तो गाली खाएंगे ही, लोग मंत्री को भी गाली देंगे और सबसे अधिक मुझे। सीएम की भाव-भंगिमा को देखकर कांफ्रेंस हाल में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। बताते हैं, सीएम का लहजा सख्त और अलार्मिंग था। तभी पीडब्लूडी मिनिस्टर बृजमोहन अग्रवाल को तीन महीने के भीतर सड़कें दुरुस्त करने का भरोसा देना पड़ा। इसी दिन, कृषि विभाग की समीक्षा बैठक में डाक्टर साब विभागीय मंत्री चंद्रशेखर साहू को भी निशाने पर लेने से नहीं चूके। बात निकली दिल्ली से फंड लाने की। रमन ने कृषि मंत्री की ओर मुखातिब होते हुए कहा, दिल्ली जितनी बार जाना हो जाइये, मगर अब विदेश जाना बंद कीजिए। वे यही पर नहीं रुके, कहा.....आपका विदेश जाना एकदम बंद। चंद्रशेखर साहू ने बात संभालनी चाही.....इसीलिए तो मैं ंकांफे्रंस में दोहा नहीं गया। इस पर डाक्टर साब बोले, दस महीने बाद आपका दोहा होने वाला है। दोहा का आशय उनका चुनाव मैदान से था। रमन के बदले तेवर से बाकी मंत्री सहमे हुए हैं, न जाने कब किसका नम्बर लग जाए।

मजबूरी 

बुधवार को आर्इजी लेवल पर बड़ी उलटफेर हुर्इ, उसमें कुछ ऐसी पोसिटंग भी हैंं, जिन्हें मजबूरी ही कह सकते हैं। मसलन, एडीजी राजीव श्रीवास्तव। उन्हंें प्रशासन की कमान सौंपी गर्इ है। प्रशासन, पीएचक्यू का अहम पार्ट होता है और अभी तक यह विभाग संभालने वाले पवनदेव ने नेताओं को त्राहि माम कर दिया था। पुलिस भरती में ऐसे सख्त नियम बना डाले कि किसी की दाल नहीं गल पार्इ। इसलिए, ऐसे आदमी की दरकार थी, जिसके डिक्शनरी में नो शब्द ना हो। एडीजी में डीएम अवस्थी दुश्मन नम्बर-वन थे, सो उनका सवाल ही नहीं था। डब्लूएम अंसारी, एएन उपाध्याय से मनमाफिक काम कराने का सवाल ही नहीं उठता। आर्इजी में संजय पिल्ले, अरूणदेव गौतम जैसे अफसर भी फीट नहीं बैठ रहे थे। इस चक्कर में राजीव श्रीवास्तव के नाम पर मुहर लग गया। उधर, र्इओडब्लू की डिमांड अधिक थी मगर सरकार ने चुनाव को देखते इसे साफ-सुथरी छबि के आर्इपीएस संजय पिल्ले के हवाले कर दिया। फेरबदल में मुकेश गुप्ता एक बार फिर ताकतवर होकर उभरे हैं। अनिल नवानी के रिटायर होने के बाद उनको लेकर खूब सवाल हो रहे थे। मगर वे इंटेलिजेंस और एसआर्इबी रखने में कामयाब रहे ही, अपने विश्वस्त जीपी सिंह को राजधानी का आर्इजी बनवा दिया और साथ में फायनेंस और प्लानिंग जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी। फेरबदल में सबसे अधिक नुकसान डीएम अवस्थी को हुआ। रमन सिंह की पहली पारी मे ंतूती बोलने वाले इस अफसर को पुलिस हाउसिंग बोर्ड में भेजकर ठिकाना लगा दिया गया।

छप्पड़ फाड़ के

इसी साल मार्च में, बिलासपुर एसपी राहुल शर्मा की मौत के मामले में आर्इजी जीपी सिंह की खासी लानत हुर्इ थी और एक तरह से कहें तो बड़े बेआबरु होकर बिलासपुर से उन्हें रुखसत होना पड़ा था। मगर नौ महीने के भीतर वाहे गुरू ने उन्हें दिया, तो छप्पड़ फाड़कर। इसी साल आर्इजी बनें सिंह को राजधानी का आर्इजी और साथ में फायनेंस और प्लांनिंग भी। राज्य पुलिस के लिए पूरी परचेजिंग फायनेंस करता है। इससे पहले, इस पोस्ट पर एडीजी या सीनियर आर्इजी रहते आए हैं। दूसरे राज्यों में तो डीजी हेड रहते हैं। ठीक ही कहते हैं, सब समय का खेल है। राहुल शर्मा कांड के बाद लोग जीपी सिंह को दो-चार साल के लिए पिक्चर से बाहर मान रहे थे और अब मुकेश गुप्ता के बाद प्रदेश के दूसरे बड़े कददावर आर्इपीएस बन गए हैं।  

मजाक

आर्इएएस अफसरों की विदेश यात्रा पर पाबंदी लगी हुर्इ है। मगर अफसरों का विदेश जाना बदस्तूर जारी है। रोहित यादव जर्मनी हो आए, तो अलेक्स पाल मेनन दक्षिण कोरिया। अब प्रींसिपल सिकरेट्री अरबन एडमिनिस्ट्रेशन एंड हेल्थ अजय सिंह, अवनीश शरण जैसे नए आर्इएएस अफसरों को लेकर इस महीने 20 को आस्टे्रलिया के लिए उड़ान भरेंगे। बाकी लोगों के लिए पाबंदी और आर्इएएस को स्पेशल केस में इजाजत। पाबंदी का आखिर, यह मजाक नहीं तो क्या है। 

कुर्सी की जंग

2013 के चुनाव में उंट किस करवट बैठेगा, भविष्यवक्ता भी शायद ठीक से न बता पाएं। मगर, कांग्रेस में भावी सीएम की लड़ार्इ और तेज हो गर्इ है। आधा दर्जन से अधिक दावेदार जो हैं। विधानसभा सत्र के ठीक पहले नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे को घेरने की कोशिशों को भी कुछ ऐसा ही माना जा रहा है। चौबे के खिलाफ पत्र लिखना और फिर उसे सुनियोजित ढंग से लीक हो जाना, इसके अपने निहितार्थ हैं। असल मेंं, चौबे की एक अलग छबि है। गरिमा का ध्यान रखते हैं.....विलो स्टैंडर्ड वाला कोर्इ काम नहीं। आजादी के बाद से साजा सीट उनका परिवार जीतता आया है। देश में यह रिकार्ड है। गांधी परिवार भी चुनाव हारा है। पार्टी का ही एक धड़ा मानता है कि कांग्रेस की सत्ता में आने पर चौबे सीएम के मजबूत दावेदार हो सकते हैं। इसलिए, मकसद एक है, चौबे के खिलाफ पेपरबाजी करके विवादित कर दो, जिससे वे रेस से बाहर हो जाएं। कांग्रेस में जो कुछ चल रहा है, इस पर लगाम नहीं लगा तो पार्टी ही रेस से बाहर हो जाए, तो अचरज नहीं।  

झटका

राज्य मानवाधिकार आयोग ने हार्इ एप्रोच लगा कर राजधानी का फारेस्ट गेस्ट हाउस प्राप्त करने में तो कामयाब हो गया, मगर अब हासिल आया शून्य वाला मामला प्रतीत हो रहा है। दरअसल, गेस्ट हाउस के जिस साज-सज्जा को देखकर आयोग के लोगों का मन ललचा था, जब कब्जा लेने पहुंचे तो सब गायब था। गेस्ट हाउस को सजाने में साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। हर कमरे में एसी, 40 इंच की एलसीडी टीवी और फाइव स्टार जैसे पर्दे और मखमली कालीन। सो, आर्इएफएस अफसरों को अखरना स्वाभाविक था। लेकिन इस बीच आयोग के एक अफसर ने अति उत्साह में आकर गड़बड़ कर दी। पीसीसीएफ को फोन लगाकर फारमान दे दिया, दो दिन के भीतर गेस्ट हाउस का सामान खाली कर दें। और बात को पकड़कर फारेस्ट अफसरों ने पूरा खाली कर दिया। आयोग के लोग जब गेस्ट हाउस पहुंचे तो पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुर्इ। गेस्ट हाउस खंडहर की मानिंद लग रहा था।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. मुख्यमंत्री अपने किन दो वरिष्ठ मंत्रियों के ढील-ढाले कामकाज से नाराज हैं?
2. जीपी सिंह के आर्इजी बनने से रायपुर एसएसपी दीपांशु काबरा कैसा महसूस कर रहे होंगे?

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

तरकश, 2 दिसंबर


उगते सूरज

रिटायर चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन को आर्इएएस अफसरों ने 11 महीने बाद ही सही, आखिरकार फेयरवेल दिया। इसके लिए राजधानी के आफिसर्स क्लब में 27 नवंबर को जोरदार जलसा हुआ। फेयरवेल भी हो जाए और विलंब को लेकर कोर्इ उंगली न उठाए, इसलिए साथ में, 30 नवंबर को रिटायर हुए कुछ और अफसरों की बिदार्इ पार्टी भी रख ली गर्इ थी। खैर, इसमें कोर्इ दिक्कत नहीं है। जब जागे, तब सवेरा। आर्इएएस अफसरों को वैसे भी उगते सूरज को सलाम करने की ही तो टे्रनिंग दी जाती है। देखा ही होगा आपने, सरकार बदलने से पहले अफसरों की निष्ठा कैसे बदल जाती है। राज्य सरकार ने इस साल जनवरी में उम्मेन को हटाकर नौकरशाही की कमान सुनील कुमार को सौप दी थी। उम्मेन को यह नागवार गुजरा और उन्होंने वीआरएस लेकर सरकार कटघरे में खड़ा कर दिया था। ऐसे में उन्हें फेयरवेल देने का मतलब समझा जा सकता है। अब सरकार पसीज गर्इ है और राज्योत्सव में उम्मेन को आउट आफ वे जाकर राष्ट्रपति से सम्मान कराया गया तो अब फेयरवेल देने में कोर्इ खतरा नहीं था। और चतुर आर्इएएस अफसरों ने इसमें देर नहीं लगार्इ। 

चेंजेज

रामनिवास यादव को डीजीपी बनाने के बाद अब उनकी टीम बनाने की कसरत शुरू हो चुकी है। बताते हैं, रमन सरकार की दूसरी पारी का यह बड़ा और आखिरी फेरबदल होगा, जिसमें जिला और रेंज ही नहीं, बलिक पुलिस मुख्यालय के अधिकारी भी इधर-से-उधर किए जाएंगे। लिस्ट में उन आर्इपीएस अफसरों का नाम सबसे उपर है, जिनका चुनाव के समय तीन साल पूरा हो जाएगा। रायपुर आर्इजी और इंटेलिजेंस चीफ मुकेश गुप्ता भी मर्इ में तीन साल पूरे कर लेंगे। सो, रायपुर में अशोक जूनेजा और जीपी सिंह में से किसी एक को मौका मिल सकता है। आर्इजी में जूनेजा का टीआरपी ज्यादा है। इसलिए उनका चांस अधिक है। अरुणदेव गौतम पीएचक्यू से दुर्ग आर्इजी बन सकते हैं। बिलासपुर के लिए आदमी बचेगा नहीं, इसलिए राजेश मिश्रा के अलावा सरकार के सामने कोर्इ चारा नहीं दिख रहा। असल में, आर्इजी लेवल पर अफसरों का टोटा है। मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज अगले महीने पदोन्नत होकर एडीजी बन जाएंगे। जीपी सिंह बिलासपुर में इंज्योर्ड होकर पेवेलियन लौट गए हैं। और अरुणदेव गौतम एक बार बिलासपुर कर चुके हैं। और चुनाव के समय पवनदेव को आर्इजी बनाने का कोर्इ जोखिम नहीं उठाएगा। फरवरी में सरगुजा आर्इजी भारत सिंह भी रिटायर हो जाएंगे। तब समस्या और गहराएगी। इधर, होम सिकरेट्री एएन उपध्याय के भी मंत्रालय से पीएचक्यू लौटने की चर्चा है। चर्चा तो डीएम अवस्थी की भी है। जाहिर है, पीएचक्यू में व्यापक उठापटक होगी।

ह्रदय परिवर्तन

पीजाय उम्मेन को जब चीफ सिकरेट्री से हटाया था तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएसर्इबी का चेयरमैन बनाए रखने का आफर दिया था। यह कैबिनेट रैंक का पोस्ट है। वैसे भी, उन्हें सिर्फ चीफ सिकरेट्री से हटाया गया था, सीएसर्इबी और एनआरडीए के चेयरमैन तो वे थे ही। मगर गुस्साये उम्मेन केरल से ही वीआरएस का आवेदन भेज दिया था। मगर अब देखिए, उम्मेन का ज्यादा वक्त रायपुर में ही कट रहा है। राज्योत्सव के बाद 27 नवंबर को राजधानी में थे और अभी भी एनआरडीए के सेमिनार में हिस्सा ले रहे हैं। पता चला है, उम्मेन को गृह राज्य केरल में मन नहीं लग रहा है। सो, उम्मेन कैंप का प्रयास है, साब के लिए छत्तीसगढ़ में ही कोर्इ जुगाड़ हो जाए। इससे लाल बत्ती मिल जाएगी और गाड़ी-घोड़ा भी। उम्मेन के साथ सरकार वैसे भी दरियादिली दिखा रही है। सो, उन्हें प्रशासन अकादमी जैसी बिना काम की जगह पर कहीं पोसिटंग मिल जाए, तो अचरज की बात नहीं होगी। 

खेल

धान खरीदी के खेल के लिए मार्कफेड ऐसे ही नहीं जाना जाता है। लेकिन जरा, इस खेल को भी समझिए। साढ़े तीन करोड़ पुराने बोरों को बेचने के लिए मार्कफेड ने अप्रैल 2011 में टेंडर किया था। अलग-अलग छह जिलों में रेट आए थे एक रुपए से लेकर तीन रुपए तक। तब रेट कम होने का हवाला देकर मार्कफेड ने बोरों को बेचने से इंकार कर दिया था। अब, मार्केट में जूट के बोरों को जबर्दस्त शार्टेज चल रहा है। पुराने बोरों के रेट 20 से 24 रुपए तक पहुंच गए हैं। तो मार्कफेड ने पुराने टेंडर को फायनल करने की तैयारी शुरू कर दी है। कौडि़यों के मोल बोरों को बेचने पर एमडी के तैयार न होने पर बोर्ड से इसकी परमिशन ले ली गर्इ। साढ़े तीन करोड़ बोरों में से माना डेढ़ करोड़ बोरे खराब होंगे। दो करोड़ बोरे भी 20 रुपए के हिसाब से 40 करोड़ के होंगे। जबकि, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर का रुल है कि 45 दिन के भीतर टेंडर का निराकरण न होने पर री-टेंडर किया जाए। यहां तो डेढ़ साल से भी अधिक समय हो चुके हैं। और सुनिये। धान खरीदी के पिक पीरियड में ऐसे समय पर पुराने बोरे बेचे जा रहे हैं, जब नए बोरे खरीद कर आ चुके हैं। सूत्रों की मानें तो पुराने बोरे की दर पर लोकल बारदाना दलालों को नए बोरे थमा दिए जाएंगे। तभी तो 5 खोखा का सौदा हुआ है और 50 पेटी एडवांस मिल गया है। इसमें कोर्इ गलत नहीं है। मार्कफेड में बैठे एक राजनीतिज्ञ की चला-चली की बेला है। इसलिए उनका प्रयास है, ज्यादा-से-ज्यादा इकठठा हो जाए। जमार्इ बाबू भी अब पावर में रहे नहीं। सो, आगे की गुंजाइश भी नहीं है।
 
हेल्थ इज.....

आपको याद होगा, मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने पिछले साल अपने मोटे- थुलथुले कर्मचारियों को फिट रखने के लिए एक-एक लाख रुपए खर्च किया था। मगर रमन सरकार तो पैरेंटस स्टेट से होशियार निकली। एक ढेला खर्च किए बिना कर्मचारियों के तंदरुस्त रखने का इंतजाम कर दिया। इसे समझना हो, तो नए मंत्रालय घूम आर्इये। पार्किंग से चार नम्बर गेट तक पहुंचने में 10 मिनट तो लगता ही है, सेक्शन इतना लंबा-चौड़ा है कि कर्मचारियों को रोज तीन से चार किलोमीटर पैदल चलने के बराबर मंत्रालय में मूवमेंट हो जाता है। दो-चार बार सचिवालय और मंत्रालय ब्लाक जाना पड़ गया तो और अधिक भी हो सकता है। कर्मचारियों की नए मंत्रालय जाने की एकमात्र खुशी यही है कि उनका तोंद अब कम हो रहा है......अधिकारियों ने अब सुबह की वाकिंग बंद कर दी है। मंत्रियों और अधिकारियों के लिए हालांकि एक नम्बर गेट है। मगर पोर्च से लिफट की दूरी ही 300 मीटर से अधिक है। इसलिए मंत्री तो मंत्रालय जा ही नहीं रहे हैं, अफसर बेचारे हांफते पहुंच रहे हैं....पुराने दिनों को याद करते हुए। पुराने मंत्रालय में पोर्च से 10 कदम की दूरी पर लिफट था। और 10 मिनट में आदमी पूरा मंत्रालय छान देता था। चलिये, हेल्थ इज वेल्थ वाला काम तो हो रहा है। 

अंत में दो सवाल आपसे
1. किन-किन नेताओं और अफसरों के कीचन से लेकर मेहमानवाजी तक का खर्चा पीडब्लूडी वहन करता है?
2. पीडब्लूडी का 100 करोड़ रुपए का जो मिसलेनियस फंड है, उसका उपयोग किस चीज में होता है?

शनिवार, 24 नवंबर 2012

तरकश, 25 नवंबर


सुनील बाबू

चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार भारत सरकार में सिकरेट्री के लिए इम्पेनल हो गए हैं। 79 बैच के जिन 26 आईएएस को इसके लिए चुना गया है, उनमें उनका नम्बर पांचवां है। और 78 बैच के बचे लोगों को मिलाकर तेरहवां। जानकारों का कहना है, 13 रैंक ज्यादा नहीं है, इसलिए बहुत हुआ तो फरवरी तक उनका नम्बर लग जाएगा। तब तक छत्तीसगढ़ में चीफ सिकरेट्री के तौर पर उनका एक साल पूरा भी हो जाएगा। वैसे भी, अगर अच्छा विभाग मिल जाए, तो गवर्नमेंट आफ इंडिया का सिकरेट्री होना चीफ सिकरेट्री से अधिक प्रेसटीजियस माना जाता है। फिर, दिल्ली में उनकी फेमिली भी है। संकेत जो मिल रहे हैं, कुमार अब यहां ज्यादा दिन रुकेंगे नहीं। सो, यह मानकर चलिये, जनवरी में नए सीएस की कवायद शुरू हो जाएगी। सत्ता के गलियारों में नए सीएस के लिए अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है। सीनियरिटी में दूसरे नम्बर पर विवेक ढांड हैं। लेकिन आरपी बगाई के बाद से राज्य में सीनियरिटी की परंपरा खतम हो गई है। इसलिए, चर्चा डीएस मिश्रा और नारायण सिंह पर केंद्रित है। नारायण सिंह पर ज्यादा, क्योंकि आदिवासी होने के साथ ही सीनियर भी हैं। दूसरा, सुनील कुमार को सीएस बनाने पर उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे सरकार असहज महसूस की हो।
हाथ जलाया

चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन को राज्य सरकार ने भले ही समय से पहले हटा दिया मगर उनके सम्मान में कोई कमी नहीं की। नए मंत्रालय के ग्राउंड फ्लोर पर सबसे अधिक उन्हीं की फोटो लगी हैं। यहीं नहीं, सरकार ने आउट आफ वे जाकर अलंकर समारोह में राष्ट्रपति के हाथों उनका सम्मान कराया। मगर इसके बाद जो हुआ, उससे छोटापन ही झलका। मीडिया में उनके सम्मान का व्यापक कवरेज न होने पर उम्मेन ने कई अफसरों को फोन खड़खड़ा डाला। वे जानना चाहते थे आखिर उनकी खबर क्यों नहीं छपी। आलम यह हो गया कि जनसंपर्क विभाग को साक्ष्य के साथ सफाई देनी पड़ी कि हमने तो खबर रिलीज की थी....। जबकि, उम्मेन के सम्मान को परंपरा के विपरीत बताते हुए एक बड़े नौकरशाह ने आपत्ति जताई थी। अफसर का मत था कि अलंकर समारोह में उन्हीं को सम्मानित किया जाता है, जो प्रक्रिया के तहत चयनित किए जाते हैं। और राष्ट्रपति भवन ने भी, इसी आधार पर मिनट-टू-मिनट कार्यक्रम से उम्मेन का सम्मान को निकाल दिया था। बाद में, मुश्किल से इसे शामिल किया गया। और अब, सरकार का हाल, होम करने में हाथ जला, वाला हो गया है।
अच्छी खबर
रायपुर में हुए इंवेस्टर्स मीट से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इतने प्रभावित हुए कि अफसरों की टीम यहां भेज रहे हैं कि सरकार ने इसे कैसे आर्गेनाइज किया। मोदी गुजरात में कई साल से वायबें्रट गुजरात का आयोजन कर रहे हैं। वहां सिर्फ इंवेस्टर्स मीट होता है और उसमें पब्लिक नहीं जुटती। अपने रायपुर में राज्योत्सव, विभागों की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ इंवेस्टर्स मीट हुआ, वह मोदी को अलग और आकर्षक लगा। याद होगा, राज्योत्सव में जब वे रायपुर आए थे तो उन्होंने इसकी तारीफ की थी। और अहमदाबाद जाते ही अफसरों को रायपुर जाने का निर्देश दे डाला। अगले हफ्ते गुजरात से अफसरों की टीम यहां पहुंच रही हैं। 
चमत्कार

डीजीपी अनिल नवानी शुक्रवार को रिटायर हो जाएंगे.....महज चार दिन बाद। अगली ताजपोशी किसकी होगी, इस पर से धंूध छंटी नहीं है? सीनियरिटी में संतकुमार पासवान आते हैं, उसके बाद रामनिवास। पासवान के साथ पहला माईनस है चार महीने बाद रिटायरमेंट और दूसरा, सत्ता में पैठ की कमी। रामनिवास के साथ, दोनों प्लस है। भारत सरकार के ना-नुकूर के बाद आखिर, स्पेशल डीजी वे ऐसे थोड़े ही बन गए। सो, रामनिवास का पलड़ा भारी प्रतीत हो रहा है। लेकिन यह भी, पुलिस महकमे के कुछ लोग पासवान को दौड़ से अभी भी बाहर नहीं मान रहे हैं.....तरह-तरह के तर्क दिए रहे हंै। मसलन, चुनाव के साल मंे सरकार दलितों को और नाराज नहीं करेगी। फिर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से गिरौधपुरी जैतखंभ का उद्घाटन कराने का प्रयास किया जा रहा है। मीरा कुमार जैसे बिहार के कई नेता दिल्ली में खासा प्रभाव रखते हैं। और पासवान भी बिहार के। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक काम करने का अनुभव पासवान को है और राज्य बनने पर वे छत्तीसगढ़ कैडर मांगकर यहां आए थे। इन सबके बाद भी पासवान का डीजीपी बनना चमत्कार से कम नहीं होगा। 
रिकार्ड
अनिल नवानी भाजपा शासन काल के पहले डीजीपी होंगे, जो कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद 2004 में अशोक दरबारी को हटाकर ओपी राठौर को डीजीपी अपाइंट किया था। मगर असमय निधन हो जाने से राठौर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद, विश्वरंजन सर्वाधिक समय तक डीजीपी रहने का रिकार्ड तो अपने नाम किया, मगर आठ महीने पहले ही उन्हें रुखसत होना पड़ा। इसके बाद आए नवानी। रिटायर चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन के स्टाईल में काम करने के बाद भी नवानी कार्यकाल पूरा करने में कामयाब रहे। 
पुनर्वास
सरकार से नाराजगी मोल लेने की वजह से रिटायर डीजीपी विश्वरंजन भले ही पुनर्वास से वंचित रह गए मगर डीजीपी अनिल नवानी ने ऐसा कुछ नहीं किया है। हवा के साथ चलते रहे। गड़बड़ नहीं हैं, इसलिए दामन साफ तो रहना ही था। सो, उनकी व्यवस्थापन तय मानिये। पता चला है, नवानी को पुलिस हाउसिग बोर्ड का चेयरमैन बनाया जा रहा है। रिटायरमेंट के बाद नवानी ने सरकारी बंगले में रहने के लिए चार महीने का एक्सटेंशन मांगा है। सूत्रों की मानें तो 30 को नए डीजीपी के आदेश के साथ ही नवानी का पुनर्वास का मामला तय हो जाएगा।  
अंत में दो सवाल आपसे

1. न्यू रायपुर जैसी चमचमाती सड़कें राज्य में क्यों नहीं बनाई जा सकती?
2. संसदीय सचिवों को मंत्रालय में कमरा नहीं दिया जाता, इसके बावजूद जीएडी ने सभी नौ संसदीय सचिवों को मंत्रियों के बराबर कमरा कैसे अलाट कर दिया?

शनिवार, 3 नवंबर 2012

तरकश, 4 नवंबर



वीरानी

12 बरस तक सत्ता का केंद्र रहा डीकेएस मंत्रालय भवन की रौनक अब खतम हो गई है। चहल-पहल भी ना के बराबर ही है। नई राजधानी में मंत्रालय 7 नवंबर से चालू होगा। सो,  मंत्रालय की सारी फाइलें दशहरा के पहले ही वहां भेजी जा चुकी है। बची हैं, तो कुर्सी, टेबल और आलमारियां। काम नहीं होने से अफसरों ने भी मंत्रालय आना लगभग बंद कर दिया है। सोमवार इसका आखिरी दिन होगा। क्योंकि, 6 नवंबर को पूरी सरकार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के प्रवास में व्यस्त रहेगी। और 7 को नए मंत्रालय में बैठकी प्रारंभ हो जाएगी। याद होगा, नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ बनने पर डीएस अस्पताल को रातोरात खाली कराकर मंत्रालय भवन बनाया गया था। इसकी सबसे बड़ी खासियत थी, बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से 10 मिनट का फासला। आम आदमी के लिए तो और भी सुभिता था, आटो का मात्र पांच रुपए किराया। और अब...?

सबसे बड़ा

नए मंत्रालय में सबसे बड़ा कक्ष मुख्यमंत्री के प्रींसिपल सिकरेट्री बैजेंद्र कुमार का होगा। ऐसा इसलिए हुआ है कि पांचवें और सबसे आखिरी फ्लोर पर मुख्यमंत्री के लिए जो चेम्बर बना था, वो वास्तु के हिसाब से मुफिद नहीं माना गया। इसलिए, ऐन वक्त पर कमरे की अदला-बदली हो गई। जो कक्ष बैजेंद्र कुमार के लिए अलाट हुआ था, उसे सीएम चेम्बर बना दिया गया और सीएम वाला बैजेंद्र्र कुमार को। आमतौर पर हाई अथारिटी का चेम्बर सबसे आखिरी में होता है। मगर अब, फिफ्थ फ्लोर पर जाने पर सबसे पहले सीएम का कक्ष होगा। इसके बाद अमन सिंह और फिर, बैजेंद्र कुमार का। उस दिशा में न लिफ्ट है और ना ही सीढ़ी। सो, सीएम जब सचिवालय में होंगे, बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह से मिलना मुमकिन नहीं होगा। सीएम सिक्यूरिटी सामने से स्टाफ के अलावा किसी को जाने नहीं देगी। वैसे भी, सुरक्षा के हिसाब से ग्राउंड फ्लोर से एकमात्र लिफ्ट पांचवें फ्लोर पर जाएगी। जिसका सीएम और उनका स्टाफ इस्तेमाल करेगा। बाकी जनरल लिफ्ट चैथे फ्लोर तक रहेगी। वहां से सीएम सिकेटेरियेट जाने के लिए या तो लिफ्ट बदलना पड़ेगा या फिर सीढ़ी के जरिये जा सकते हैं।

अपने मंत्रीजी

शादी-ब्याह जैसे कार्यक्रम में अड़ोस-पड़ोस के लोग भी ढंग का कपड़ा पहन लेते हैं। लेकिन जरा गौर कीजिए.....2 नवंबर को राज्य का पहला इंवेस्टर्स मीट था और उसमें हिस्सा लेने मुल्क के उद्योगपति न्यू रायपुर पहंुचे थे। मंच पर प्रथम पंक्ति में सीएम के बायी ओर सूटेड-बूटेड उद्योगपति बैठे थे और दायी ओर मंत्रीगण। समारोह स्थल पर अपने मंत्रीजी लोगों के वेश-भूषा की चर्चा होती रही। अधिकांश मंत्रियों का पहनावा ऐसा था, जैसे ब्लाक स्तर के किसी पंचायत सम्मेलन में शिरकत करने आए हों। सबसे वरिष्ठ मंत्री ननकीराम कंवर संघ की काली टोपी लगाकर पहंुचे थे, तो पंचायत मंत्री हेमचंद यादव को तो मत पूछिए। बिना इन किए पैंट शर्ट और उपर से बेमेल, शरीर को कसा हुआ जैकेट। सादगी का मतलब ये तो नहीं होता कि कुछ भी पहन लो। अब, मंत्रियों की कोई नाराजगी होगी और इस वजह से ऐसा किए होंगे तब तो कुछ नहीं कहना। फिर भी, राज्य की मान का खयाल तो करना ही चाहिए। आखिर वे ढाई करोड़ लोगों को प्रतिनिधित्व करते हैं। फिर नौ साल हो गया है। डे्रस कोड तो अब समझ जाना चाहिए।

पंडितजी

इंवेस्टर्स मीट के उद्घाटन समारोह में सीएसआईडीसी के चेयरमैन बद्रीधर दीवान को आभार ज्ञापित करने की एकमात्र जवाबदेही सौंपी गई थी। पंडितजी ने कुर्ते की जेब से पुरजा निकाला और धड़धड़ाते हुए सत्यनारायण भगवान की कथा की तरह वाच दिया। इस दौरान उन्होंने सुब्रत राय सहारा जैसे दर्जन भर उद्योगपतियों और राजदूतों को भी तहे दिल से धन्यवाद दे डाला, जो इंवेस्टर मीट में आए ही नहीं थे। अब, ऐसे में ठहाके तो लगने ही थे।

वक्त की बात

वक्त-वक्त की बात होती है......कुछ दिन पहले तक मंत्रालय के दो आला आईएएस अधिकारी एक-दूसरे की सूरत देखना नहीं चाहते थे। एक-दूसरे के प्रमोशन में, दोनों ने अपने हिसाब से खूब रोड़े अटकाएं। मगर देश में हुए कोयला घोटाला और उसकी सीबीआई जांच ने दोनों को अब नजदीक ला दिया है। संचेती बंधुओं को जो कोल ब्लाक आबंटित हुआ है, दोनों आईएएस उस कमेटी के मेम्बर थे। आशंका है, सीबीआई कभी भी दबिश दे सकती है। या और कुछ हो या न हो, दस्तावेज तो मंगा ही सकती है। अब, दोनों अफसर मिलकर सिर खपा रहे हैं, ऐसे में क्या करना होगा। सीबीआई को क्या दबाव देना चाहिए। चिंता लाजिमी है। जरा सी भी कमेंट आ गई, तो अजय सिंह और एनके असवाल सुनील कुमार की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हो जाएंगे।

नाकाम

राजधानी का अपना रेस्ट हाउस बचाने की वन विभाग की तमाम कोशिश बेकार साबित हुई। सरकार ने दो टूक कह दिया, इस बारे में अब कोई बात नहीं होगी....आप कोई दूसरा भवन देख लीजिए। उसे राज्य मानवाधिकार आयोग के नए अध्यक्ष राजीव गुप्ता का आवास बनाने का आदेश एकाध दिन में जारी हो जाएगा़। लोकेशन के हिसाब से यह राजधानी का सबसे बढि़या रेस्ट हाउस होगा। इससे पहले, वन मंत्री गणेशराम भगत ने अपना आवास बना लिया था। भगत के पिछला चुनाव हारने पर वन विभाग ने राहत की सांस ली थी। रेस्ट हाउस को फर्नीश्ड करने पर साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किया गया था। और वन विभाग को यही अखर रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रायपुर में सिटी बसों के लोकार्पण के लिए नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल के साथ चर्चा कर महापौर किरणमयी नायक ने अतिथियों का नाम तय किया और कार्ड भी छपकर आ गए। इसके बाद वे कांग्रेस नेताओं की उपेक्षा की बात कर विरोध क्यों प्रारंभ कर दिया?
2. संस्कृति सचिव केडीपी राव की टीआरपी इन दिनों क्यों बढ़ गई है?

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

तरकश, 28 अक्टूबर

अल्बर्ट पिंटो

रमन इलेवन के एक वरिष्ठ खिलाड़ी को गुस्सा नाहक नहीं आ रहा.......उसके वाजिब कारण हैं। विभाग में निर्माण कार्य का 1800 करोड़ रुपए का टेंडर होना है। अपने लोगों को काम मिल गया तो एकमुश्त आठ-दस खोखा का इंतजाम हो जाएगा। सो, मंत्रीजी मैन्यूल टेंडर के लिए जोर डाल रहे हैं। जबकि, सरकार ने 20 लाख रुपए के अधिक के लिए ई-टेंडर का नियम बना रखा है। और, इसे अब 10 लाख करने पर विचार किया जा रहा है। बावजूद इसके, जल्दी काम करने का हवाला देकर मंत्रीजी ने सबको डीओ लेटर लिखा, मगर चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और एसीएस फायनेंस डीएस मिश्रा अड़ गए। मंत्रीजी ने फिर लिखा, लेट होगा तो दिल्ली की एजेंसी पैसा देने में टालमटोल कर सकती है। इस पर कुमार और मिश्रा ने कहा कि वे दिल्ली में बात करके पैसा रिलीज करा देंगे, मगर ई-टेंडर ही करना पड़ेगा.....हम लोगों को जेल नहीं जाना है। अब, अफसर ऐसे अड़ेंगे, तो कोई कैसे नहीं भड़केगा। अफसरों को इतना खयाल तो करना चाहिए, अगले साल चुनाव है। चुनाव में खरचा लगता ही है। फिर तीसरी बार का क्या भरोसा है। छह-आठ महीने ही बाकी है। उसके बाद अचार संहिता लग जाएगा। थोड़े दिन बचे हैं, कर लेने देना चाहिए।  

खफा

ब्यूरोक्रेट्स की एक खासियत होती है......पीठ पीछे एक-दूसरे की लाख बुराई कर लें, बिरादरी पर हमला हुआ, तो एक हो जाते हैं। बीएल अग्रवाल के यहां इंकम टैक्स छापे के समय भी लोगों ने इसे देखा और इस बार भी......। सोमवार को कैबिनेट की बैठक में एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार पर भड़ास निकालने पर मंत्रालय के आईएएस गुस्से मंे हैं। पता चला है, इस मामले में जल्द ही आईएएस एसोसियेशन की बैठक होगी। इसके बाद एसोसियेशन के लोग सीएम से मिलकर अपनी बात रखेंगे। अफसरों में गुस्सा इस बात का है कि गलत काम कराने के लिए प्रेशर बनाने की स्ट्रेटज्डी अपनाई जा रही है, वह ठीक नहीं है। अफसरों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि ऐसा ही रहा तो वे कैबिनेट की बैठक में जाना बंद कर देंगे।  

वक्त की बात

वक्त-वक्त की बात होती है......कुछ दिन पहले तक मंत्रालय के दो आला आईएएस अधिकारी एक-दूसरे की सूरत देखना नहीं चाहते थे। एक-दूसरे के प्रमोशन में, दोनों ने अपने हिसाब से खूब रोड़े अटकाएं। मगर देश में हुए कोयला घोटाला और उसकी सीबीआई जांच ने दोनों को अब नजदीक ला दिया है। संचेती बंधुओं को जो कोल ब्लाक आबंटित हुआ है, दोनों आईएएस उस कमेटी के मेम्बर थे। आशंका है, सीबीआई कभी भी दबिश दे सकती है। या और कुछ हो या न हो, दस्तावेज तो मंगा ही सकती है। अब, दोनों अफसर मिलकर सिर खपा रहे हैं, ऐसे में क्या करना होगा। सीबीआई को क्या दबाव देना चाहिए। चिंता लाजिमी है। जरा सी भी कमेंट आ गई, तो अजय सिंह और एनके असवाल सुनील कुमार की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हो जाएंगे।

मुक्ति

कौशलेंद्र सिंह को नागरिक आपूर्ति निगम से हटाने का एक मामला छोड़ दें, तो भाप्रसे और राप्रसे अफसरों के फेरबदल को अबकी बैलेंसिंग माना जा रहा है। चावल लाबी के प्रेशर के बाद कौशलेंद्र को नान से हटाकर स्वास्थ्य मिशन में भेज दिया गया। वे घटिया क्वालिटी का चावल लेने से मना कर रहे थे। और चावल लाबी का मतलब आप समझ सकते हैं। कहने के लिए ठाकुरों के हाथ में सत्ता है। सरकार और संगठन में हावी तो लक्ष्मीपुत्रों की बिरादरी ही है। बहरहाल, महिला बाल विकास से सुब्रत साहू को और मनोहर पाण्डेय को खेल से हटाकर सरकार ने इस विभाग को कसने की कोशिश की है। सुब्रत की जगह वहां उमेश अग्रवाल को भेजा गया है और मनोहर के स्थान पर सुब्रमण्यिम को। दोनों के बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं है। हालांकि, इससे लता उसेंडी को दिक्कतें बढ़ेंगी। ़अभी तक, इन दोनों विभागों पर लता के चंपु हावी थे। सिकरेट्री और कमिश्नर से अधिक उनकी चौकड़ी की चलती है। एडवांस में कमीशन पहुंचाए बगैर महिला बाल विकास के टेंडर नहीं होते और ना ही जिलों को खेल के प्रस्ताव स्वीकृत होते। उम्मीद है, दोनों विभागों को अब माफियाओं से मुक्ति मिलेगी।

नाराज

ऐश्वर्या का जन्मदिन होने की वजह से अमिताभ बच्चन ने एक नवंबर को राज्योत्सव के उद्घाटन में आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी मगर सात को कवि सम्मेलन के लिए वे तैयार थे। मगर पर्दे के पीछे पैसे की डीलिंग में जो खेल हो रहा था, उससे वे नाराज हो गए। रायपुर में बताया गया, बिग बी दो करोड़ लेंगे और उधर, बीच का आदमी उनसे 60-70 लाख में बात कर रहा था। और इस पर लगभग सहमति बन भी गई थी। लेकिन किसी ने राजधानी के अखबारों में छपी दो करोड़ की रिपोर्ट उन्हें फैक्स कर दिया। खबर है, इसके बाद ही, उन्होंने एकदम से ना कर दिया। 

नाकाम

राजधानी का अपना रेस्ट हाउस बचाने की वन विभाग की तमाम कोशिश बेकार साबित हुई। सरकार ने दो टूक कह दिया, इस बारे में अब कोई बात नहीं होगी....आप कोई दूसरा भवन देख लीजिए। उसे राज्य मानवाधिकार आयोग के नए अध्यक्ष राजीव गुप्ता का आवास बनाने का आदेश एकाध दिन में जारी हो जाएगा़। लोकेशन के हिसाब से यह राजधानी का सबसे बढ़िया रेस्ट हाउस होगा। इससे पहले, वन मंत्री गणेशराम भगत ने अपना आवास बना लिया था। भगत के पिछला चुनाव हारने पर वन विभाग ने राहत की सांस ली थी। रेस्ट हाउस को फर्नीश्ड करने पर साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किया गया था। और वन विभाग को यही अखर रहा है।
 
अंत में दो सवाल आपसे

1. राजधानी के किस अफसर की वजह से एक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के पारिवारिक जीवन में दरार पड़ने की नौबत आ गई है?
2. राज्योत्सव का श्रेय लेने के लिए किन दो मंत्रियों में शह-मात का खेल चल रहा है?

 

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

तरकश, 21 अक्टूबर



खींचतान


राज्योत्सव में कलाकारों को बुलाने को लेकर इस बार खींचतान कुछ ज्यादा बढ़ गई है। मंत्री कुछ चाहते हैं और सिकरेट्री कुछ और। इसकी एक झलक सीएम हाउस में समीक्षा के लिए बुलाई गई मीटिंग में भी दिखी। संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल चाह रहे थे कि वालीवूड के कलाकारों को बुलाया जाए। इसके पीछे उनका तर्क था कि इसमें भीड़ ज्यादा जुटती है। और विभाग के प्रमुख सचिव केडीपी राव का जोर था, लोगों को विभिन्न राज्यों के लोक संस्कृतियों की झलक दिखाने के लिए वहां के कलाकारों को बुलाया जाए। एक मौका ऐसा आया, जब दोनों एक-दूसरे की बात काटने लगे। इसे देखकर सीएम को बोलना पड़ गया, किन्हें बुलाना है, इसके लिए पहले आप दोनों बैठकर तय कर लें, फिर बताएं। अब भरी बैठक में इतना बड़ा वाकया हो जाए, तो खुसुर-पुसुर कैसे नहीं होगी। तमाम सिकरेट्री जानने की कोशिश कर रहे थे कि केडीपी ने इतनी साहस कैसे दिखा दी।

गुर्राहट


राज्योत्सव का आयोजन सीएसआईडीसी करता है। और संस्कृति विभाग की भूमिका सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित रहती है। मगर अबकी पीडब्लूडी की बढ़ती घुसपैठ ने उद्योग मंत्री राजेश मूणत को परेशान कर दिया है। गुरूवार को तैयारियों का जायजा लेने के दौरान अफसरों पर वे ऐसे ही नहीं बरस पड़े। बताते हैं, राज्योत्सव स्थल के लिए उन्होंने कुछ टिप्स दिए थे, वह नहीं हो पाया। और जब पीडब्लूडी मिनिस्टर बृजमोहन अग्रवाल ने कहा, तो अफसरों ने उसे फटाक से कर दिया। अब ऐसे में किसे गुस्सा नहीं आएगा। उधर, पूछपाछ न होने से सीएसआईडीसी चेयरमैन बद्रीधर दीवान अलग खफा हैं। कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू को नागवार गुजर रहा कि उनके अभनपुर में राज्योत्सव हो रहा है और उनका कोई नामलेवा नहीं है। शुक्रवार को न्यू रायपुर में टे्रड सेंटर के शिलान्यास स्थल पर इसकी खूब चर्चा थी और लोग चुटकी ले रहे थे, जंगल सफारी का शिलान्यास नहीं हुआ कि शेर गुर्राने लगे हैं।

चर्चा


सैफ-करीना की शादी से रमन कैबिनेट के एक सदस्य भी उत्साहित हैं और जल्दी ही कोई अच्छी खबर आ जाए, तो आश्चर्य नहीं। जोड़ीदार भी हमपेशा है और लाल बत्तीधारी है। दोनों रायपुर में रहते हैं और अलग-अलग कारणों से तन्हाइयों में हैं। नवरात्रि में राजधानी के लोगों ने दोनों को सार्वजनिक रूप से माता के मंदिरों में दर्शन करते देखा। हालांकि, उन्हंे सलाह दी जा रही है कि चुनाव के पहले ऐसा करना हितकर नहीं होगा। सो, देखना यह होगा कि शहनाई चुनाव के पहले बजती है या बाद में।

आशंका


स्पेशल डीजी बनने के बाद रामनिवास को अगला डीजीपी बनना लगभग तय माना जा रहा है। मगर रामनिवास कैंप आशंकाओं से उबर नहीं पा रहा है। असल में, कुछ घटनाएं ऐसी हुई भी है। याद कीजिए, मध्यप्रदेश के डंगवाल-जुगरान एपिसोड। राज्य बनने से दो साल पहले 98 में दिग्गी सरकार ने एसपी डंगवाल को डीजीपी बनाना तय कर लिया था। दिग्गी ने फोन पर बधाई भी दे डाली थी। तत्कालीन सीएस केएस शर्मा ने डंगवाल को अपने चेम्बर में बुलाकर मुंह भी मीठा करा दिया था। शनिवार को उनका आदेश निकलना था। इसके एक रोज पहले, डंगवाल ने पीएस होम से मिलकर अनुरोध किया, शनिवार उनके लिए ठीक नहीं रहता, सोमवार को आदेश निकाला जाए। और सोमवार को सुबह दिल्ली से कोई फोन आया और डंगवाल के बजाए दिनेश जुगरान का आर्डर निकल गया। बताते हैं, दिग्गी ने डंगवाल को दिल्ली के फोन का हवाला देकर सारी कह दिया था। और इससे आहत होकर डंगवाल ने तत्काल रेजिगनेशन दे दिया था। सो, रामनिवास कैंप की आशंका गलत नहीं है। अभी तो 40 दिन बचे हैं। उन्हें लगता है, संतों की पार्टी में संतकुमार ने जुगरान सरीखा कोई कमाल दिखा दिया तो पासा पलट भी सकता है।

बेरुखी

जो काम अच्छे-भले खिलाड़ी नहीं कर पा रहे हैं, वो निःशक्त खिलाडि़यों ने कर दिखाया...सिर उंचा कर दिया। महाराष्ट्र के सतारा में निःशक्तों की राष्ट्रीय तिरंदाजी में अपनी टीम ने तीन सिल्वर और तीन ब्रांज मैडल जीता। इनमें से तीन खिलाड़ी अगले साल अप्रैल में स्पेन में आयोजित इंटरनेशनल चैम्यिनशीप में पार्टिशिपेट करेंगे। ऐसे खिलाडि़यों को कंधे पर उठाना चाहिए था। मगर बेरुखी की पराकाष्ठा हो गई। गुरूवार को टीम जब समरसत्ता एक्सप्रेस से लौटी तो उनके स्वागत के लिए मुठ्ठी भर लोग थे। न खेल मंत्री ने उनसे मिलने की जहमत उठाई और ना ही खेल अधिकारियों ने। खिलाडि़यों का मन ना टूटे, इसलिए आर्चरी एसोसियेशन के लोग उन्हें लेकर खेल आयुक्त राजकुमार देवांगन से मिलाने यूनिवसिर्टी कैंपस गया। एक घंटा इंतजार के बाद देवांगन ने टाईम दिया और खिलाडि़यों ने जो माला पहना था, उसे ही उतार कर, फिर पहनाते हुए फोटो खिंचवाई गई। चाय-पानी का तो सवाल ही नहीं था। मीडिया का भी यही हाल रहा। एक-दो को छोड़कर बाकी ने तो सिंगल कालम की खबर देने की जरूरत नहीं समझी। और निःशक्त, इलेक्ट्रानिक चैनलों के दायरे में नहीं आते। सो, उन्होंने अपना टीआरपी खराब नहीं किया। इस तरह बेरुखी का दर्द लिए खिलाड़ी अपने घर लौट गए।  

बिग बी

सरकार की कोशिश थी, एक नवंबर को अमिताभ बच्चन से राज्योत्सव का आगाज कराया जाए। मगर उनकी बहू ऐश्वर्या का इसी दिन जन्मदिन होने के चलते कोशिश परवान नहीं चढ़ पाई। बिग बी ने एक नवंबर को आने से इंकार कर दिया है। बावजूद इसके, आयोजकों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। कई सोर्सों से अब भी प्रयास हो रहा, आधा घंटा के लिए ही आ जाएं। ऐसा न होने पर, बिग बी को सात नवंबर के कवि सम्मेलन का आप्सन दिया जाएगा। इधर, एक को अजय देवगन की आने की अटकलें है। मुंबई इंवेस्टर्स मीट में देवगन ने प्रामिस किया था कि वे राज्योत्सव में आएंगे।

अच्छी खबर

बस्तर में बनी बेल मेटल की कलाकृतियां मेट्रो सिटी के फाइव स्टार होटलों की शोभा बढ़ा रही हैं। मुंबई इंवेस्टर्स मीट में हिस्सा लेने गए अफसरों ने होटल में ताज में इसे देखा तो वे चकित रह गए.....बस्तर के अमर प्रेम के प्रतीक झिटकू-मिटकू की प्रतिमाएं तो अमूमन सभी कमरे में थीं। अफसर इसलिए हैरान थे कि ग्रामोद्योग विभाग की मार्केटिंग इतनी तगड़ी कैसे हो गई। बाद में भ्रम टूटा। होटल के अफसरों ने बताया, हम खुद ही आदमी भेजकर बस्तर से इन्हें मंगवाएं हैं। चलिए, है तो यह अच्छी खबर। बस्तर के शिल्प की धमक अब मेट्रो शहरों तक पहंुच रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रमन सरकार के एक मंत्री का नाम बताइये, जो पेट्रोल पंप लेने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री श्यामचरण शुक्ल परिवार से आगे निकलने की होड़ में है?
2. किस सिकरेट्री की आजकल अपने मंत्री से ज्यादा उनके विरोधी मंत्री से पट रही है?

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

तरकश, 14 अक्टूबर

दीया तले.....


अच्छी खबर है, अपने तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार सेवा गारंटी की स्थिति जानने संभाग मुख्यालयों में जाएंगे। उम्मीद है, उनके दौरे से हालात में कुछ फर्क आएगा। मगर इससे पहले, मंत्रालय का एक वाकया सुनिये और फिर अंदाज लगाइये, कैसी चल रही है, सेवा गारंटी। बिलासपुर के कोटा कालेज के युवा स्पोट्र्स टीचर नीलेश मिश्रा की इस साल मार्च में निधन हो गया। हायर एजुकेशन में आने से पहले पांच साल वे ट्रायबल में रहे थे। जाहिर है, सेवा में इस पांच साल के जुड़ जाने से पेंशन बढ़ जाएगी। इसके लिए सिर्फ दो लाइन लिखना है......हायर एजुकेशन डायरेक्टरेट से फाइल चली। डिस्पैच नम्बर 548 की फाइल 28 मई को मंत्रालय में आई। और 11 अक्टूबर तक धूल खाती रही। इस बीच तीन बार सिकरेट्री आरसी सिनहा से एप्रोच किया गया और पांच बार डिप्टी सिकरेट्री चैधरी से। दिखवाते हैं, में पौने पांच महीने निकल गए। लगातार तगादा और 11 को चौधरी के पास आधा धंटा बैठने के बाद फाइल मिली और तब जाकर उसे आगे की कार्यवाही के लिए सिकरेट्री के पास गई। और सुनिये, सीएम के गृह जिले कवर्धा के रिटायर प्रींसिपल आरपी श्रीवास्तव पिछले 20 बरसों से पेंशन, पीएफ और ग्रेच्यूटी के लिए जूझ रहे हैं। अब 81 साल के हो गए हैं। जोगी सरकार के समय स्कूल शिक्षा विभाग ने उनका सर्विस रिकार्ड गुमा दिया। 8 अक्टूबर को पेंशन के लिए हाईकोर्ट के बिहाफ मंे बनी हाईपावर कमेटी के सामने छड़ी के सहारे पहुंचे श्रीवास्तव रो पड़े.....पूछा, क्या मेरे मरने के बाद मेरे पैसे मिलेंगे। सरकार में काम कैसे होते हैं, इसकी ये सच्चाई है।   

अच्छी चूक


राज्य बंटवारे के समय कैडर आबंटन में जाने-अनजाने में की गई चूक से सूबे के दर्जन भर से अधिक आईपीएस अफसरों की किस्मत बदल गई। आलम यह है, छत्तीसगढ़ भेजने का विरोध करने वाले ही आईपीएस अफसरों की आज मौजा-ही-मौजा है। याद होगा, उस समय यहां से मध्यप्रदेश जाने के लिए यही अफसर कैसे तड़फड़ा रहेे थे। शायद उन्हें लगा था, गरीब, आदिवासी और नक्सली स्टेट में आकर, कहां फंस गए। तब, इनकी कई बैठकें हुई थी और तय किया गया, वे मघ्यप्रदेश जाकर रहेंगे। इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। इसके बाद, वे सुप्रीम कोर्ट गए। 2005 में शीर्ष कोर्ट ने तो इनके पक्ष में फैसला दिया था कि छत्तीसगढ और एमपी सरकार सहमत हो, तो कैडर चेंज कर दिया जाए। यहां की सरकार ने तो सहमति भी दे दी थी, लेकिन मध्यप्रदेश तैयार नहीं हुआ। और मामला अटक गया। कोर्ट जाने वालों में अनिल नवानी, रामनिवास, आरके विज, राजेश मिश्रा प्रमुख थे। कल्पना कीजिए, मध्यप्रदेश सरकार कहीं सहमत हो गई होती तो क्या होता? अनिल नवानी न डीजीपी बनते और ना ही रामनिवास को वहां स्पेशल डीजी बनने का चांस मिलता। और ना ही विज को लगातार इतना इम्पार्टेंस मिलता। आखिर, ठीक ही कहा गया है, जो होता है, अच्छा होता है। पर, लोग समझते कहां हैं।

राजनीति

राजनीतिक लाभ लेने के चक्कर में दुर्ग-जगदलपुर ट्रेन आठ दिन विलंब से प्रारंभ हो पाई। दरअसल, 3 अक्टूबर की जब तारीख तय हुई थी, तब टीएमसी के मुकुल राय रेल मंत्री थे। और टीएमसी को छत्तीसगढ़ से क्या वास्ता। इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने कह दिया था। मगर ऐन टाईम पर, उनकी पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापिस ले लिया। इसके बाद कांग्रेस के सीपी जोशी रेल मंत्री बनें तो तय हुआ कि रमन सिंह के साथ रेल राज्य मंत्री मुनिअप्पा हरी झंडी दिखाएंगे। मगर कर्नाटक के मुनिअप्पा को छत्त्तीसगढ़़ में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा। उन्होंने कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत को अधिकृत कर दिया। इस चक्कर में 3 के बजाए 11 अक्टूबर को ट्रेन चालू हो सकी।

पास का लफड़ा

पास के लफड़े में पाप सिंगर हनी सिंह का राजधानी में 12 अक्टूबर का प्रोग्राम रद्द हो गया। एक हजार से लेकर 25 सौ तक के हनी नाइट के टिकिट थे। इसके बाद भी युवाओं में इतना के्रज था कि पांच हजार टिकिट यूं ही बिक गए। नेट पर भी उसकी बुकिंग हो रही थी। मगर राजधानी के युवा नेताओं को पर्याप्त पास देने में आयोजकों ने आनाकानी कर दी। इसके बाद जिला प्रशासन से शिकायत हो गई। पिछले महीने बी डब्लू केनियान की पुल पार्टी में हाथ जला चुका प्रशासन ने प्रोग्राम केंसिल करने में जरा-सी भी देर नहीं की। हालांकि, रायपुर कलेक्टर सिद्धार्थ कोमल परदेशी का माथा इसलिए भी ठनका कि प्रोग्राम के लिए गल्र्स के लिए अलग से और रियायती दर पर टिकिट की बुकिंग हो रही थी। और इसमें बखेड़ा हो सकता था।

देखा-देखी

आईएफएस अफसरों के कैडर आबंटन का प्रोसेज शुरू होने के बाद आईएएस एसोसियेशन भी पिछले हफ्ते जागा और कैडर रिव्यू के लिए लेटर दिया। एसोसियेशन ने 18 से 27 जिले होने का हवाला देते हुए आबंटन बढ़ाने की मांग की है। चलिए, अब कोई आरोप नहीं लगाएगा कि आइ्र्रएएस एसोसियेशन क्लबबाजी के अलावा कोई काम नहीं करता।  

मुश्किलें

राज्य सूचना आयोग की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। आयोग के खिलाफ आरटीआई एसोसियेशन के मोर्चा खोलने के बाद राज्य उपभोक्ता फोरम ने भी अब तलवार लटका दिया है। एक प्रकरण की सुनवाई में फोरम ने माना है, राज्य सूचना आयोग से किसी को समय पर सूचना नही ंमिलती है, तो आवेदक उपभोक्ता की केटेगरी में आएगा और इस पर उपभोक्ता फोरम का प्रकरण चल सकता है। इसके तहत फोरम, आयोग को सूचना तो नहीं दिलवाएगा, मगर क्षतिपूर्ति देने का आदेश दे सकता है।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक सीनियर डीआईजी का नाम बताइये, जो डेपुटेशन पर दिल्ली गए, तो अपना कूक और अर्दली भी ले गए?
2. सूबे के सब कांग्रेस नेता मिलकर भी, अजीत जोगी को किनारे क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

तरकश


शामत

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता 9 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। सरकार उन्हें राज्य मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन बनाने जा रही है। 9 के बाद कभी भी इसका आदेश निकल जाएगा। राज्य बनने के बाद मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन बनने वाले वे पहले जस्टिस होंगे। बहुत पहले, एलजे सिंह एक्टिंग चेयरमैन रहे, पर वे भी डीजे रैंक के थे। उनके रिटायर होने के बाद आयोग का कोई माई-बाप नहीं रहा। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस होगा या फिर सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस। बहरहाल, जस्टिस गुप्ता के लिए राजधानी में आवास की तलाश शुरू हो गई है। पिछले हफ्ते अफसरों ने उन्हें जेल रोड स्थित वन विभाग का गेस्ट हाउस दिखाया। इसके बाद उन्होंने वन विभाग का माना गेस्ट हाउस भी देखा। हालांकि, जस्टिस गुप्ता के मानवाधिकार आयोग में आने के बाद राज्य के पुलिस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती है। आयोग का अधिकांश वास्ता पुलिस से रहता है। और अभी तक तो वे मानवाधिकार आयोग की चिठ्ठियों का रिप्लाई देने की भी जरूरत नहीं समझते थे। ऐसे में, उनकी दिक्कत समझी जा सकती है।
 
दूसरे ननकीराम

वन मंत्री विक्रम उसेंडी राज्य के दूसरे ननकीराम कंवर हो गए हैं, जिनकी अपने ही महकमे में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पता चला है, वन मुख्यालय-अरण्य तो उन्हें एकदम भाव नहीं दे रहा। आईएफएस अफसर मोरगन को प्रशासन और एके द्विवेदी को वाइल्ड लाइफ से हटाने के लिए उसेंडी दसियों नोटशीट भेज चुके होंगे। पर अफसर उसे कूड़ेदान में डाल दे रहे हैं। उसेंडी की स्थिति मार्च के बाद ज्यादा खराब हुई है, जब अरण्य और मंत्रालय के नौकरशाहों के बीच के डोर मजबूत हुए। कमोवेश, ऐसी ही हालत गृह मंत्री ननकीराम कंवर की भी है। फर्क इतना ही है, ननकीराम फट पड़ते हैं और उसेंडी में उतना डेसिंग नहीं है।   

सेफ गेम

रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाने की परमिशन भले ही भारत सरकार से मिल गई थी और कैबिनेट ने भी उसे एप्रूव्हल दे दिया था, इसके बाद भी उनकी ताजपोशी इतने आसानी से नहीं हुई। 22 सितंबर को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद भी 28 तक नोटशीट चीफ सिकरेट्री आफिस में पड़ी रही। फाइल ऐसे समय में मूव हुई, जब गृह मंत्री ननकीराम कंवर रायपुर में नहीं थे। 28 को पीएस होम एनके असवाल ने लिखा, गृह मंत्री राजधानी से बाहर हैं, सो, उनके अनुमोदन की प्रत्याशा में आदेश जारी किया जाए। इसके बाद तो नोटशीट में, मानों पंख लग गए। हफ्ते भर सीएस आफिस में पड़ी रही नोटशीट 29 को उड़ने लगी। इस दिन नोटशीट दो बार सीएम और दो बार सीएस के पास गई और लौट भी आई। 3 सितंबर को रामनिवास का आदेश हुआ और 2 को गृह मंत्री रायपुर में थे। सो, उनके रायपुर से बाहर रहने की बात हजम नहीं हो रही। विभाग चाहता तो 2 को दस्तखत करा सकता था। मगर आशंका थी, गृह मंत्री कहीं, नोटशीट पर ऐसे कोई कमेंट लिख दें, जिससे बात का बतंगड़ हो जाए।

बैजेंद्र सर

एन. बैजेंद्र कुमार सीएम के प्रींसिपल सिकरेट्री के साथ आवास पर्यावरण, जनसंपर्क और न्यू रायपुर तो देखहीरहे हैं इसके साथ, अपरोक्ष तौर पर आजकल एक नए रोल में भी हैं। किरदार है, राज्य के युवा आईएएसकोप्रशासन के गुर समझाने का। बैजेंद्र के सुझाव पर ही अब कलेक्टर बनने से पहले या एकाध जिला करचुकेअफसरों को राजधानी में पोस्ट किया जा रहा है। ताकि, वे सिस्टम को नजदीक से देखसकें.....उसकीपेचीदगियों से वाकिफ हो सकें......विधानसभा की अहमियत को जान सकें। अमित कटारियाबैजेंद्र के पहलेस्टूडेंट थे। आरडीए में सीईओ रहने के बाद वे अब रायगढ़ कलेक्टर हैं। इसके बाद एलेक्स पालमेनन, एसप्रकाश और हिमांशु गुप्ता को राजधानी बुलाया गया है। बैजेंद्र का मानना है, सिस्टम को समझ लेनेऔरराजधानी में तप जाने के बाद, आईएएस बढि़यां ढंग से जिले में काम कर सकेंगे। ठीक है, बैजेंद्र सर।      

पहला पीएचक्यू

छत्तीसगढ़ का पुलिस मुख्यालय, देश का पहला पुलिस मुख्यालय होगा, जहां आज की तारीख में एक भीएडिशनल डीजी नहीं है। इकलौते एडीजी रामनिवास थे, वे अब पदोन्नत होकर स्पेशल डीजी बन चुके हैं। बाकीजितने भी हैं, सबके सब पीएचक्यू सें बाहर हैं। या एक तरह से कहें तो किनारे कर दिए गए हैं। गिरधारी नायकसे लेकर डब्लूएम अंसारी, एएन उपध्याय, डीएम अवस्थी और राजीव श्रीवास्तव तक। हालांकि, पहले ऐसा नहींथा। कभी एक ही समय में संतकुमार पासवान, राजीव माथुर, अनिल नवानी और अशोक श्रीवास्तव पीएचक्यूमें एडीजी रहे। आमतौर पर पीएचक्यू में एडीजी ही विभाग के हेड होते हैं और आईजी उनके सपोर्ट के लिए होतेहैं। मगर विश्वरंजन के डीजीपी बनने के बाद आईजी बेस पीएचक्यू की जो परंपरा डली, वो आज भी जारी है।असल में, एडीजी सीनियर आईपीएस होते हैं, इस वजह से उन पर हद से अधिक बासिज्म नहीं झाड़ा जासकता। इसलिए, पीएचक्यू के अधिकांश सेक्शन की कमान आईजी के हाथ में सौंप दी गई। हालांकि, काका नेजब पीएचक्यू संभाला था, तो वे गिरधारी नायक को वापस लाए थे, मगर कुछ ही दिन में नायक को पीएचक्यूसे बाहर ट्रेनिंग में भेज दिया गया
 
आडियंस फ्री

राजधानी के संस्कृति संचालनालय के सभागार में साहित्यिक और पुस्तक विमोचन जैसे कार्यक्रम इसलिए ज्यादा होते हैं कि वहां हाल के साथ, आडियंस फ्री सुविधा है। छोटे से हाल की क्षमता मुश्किल से सवा सौ होगी। इनमें 60 से 70 रेडिमेड आडियंस होते हैं, जो वहीं के स्टाफ होते हैं। इसके लिए डायरेक्टरेट के अफसरों से बात भर करनी होती है। बस, कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यक्रम में बैठने का फारमान जारी हो जाता है। अलबत्ता, रसूख कुछ ज्यादा है, तो चाय-नाश्ता का प्रबंध भी वहीं से समझिए। मगर 29 सितंबर को संस्कृति संचालनालय का स्टाफ थैंक्स गाड्स बोल रहा था। उस दिन पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त डा0 सुशील त्रिवेदी के किताब का विमोचन था और लोग इतने जुट गए कि चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और डीजीपी अनिल नवानी के लिए आगे में अलग से कुर्सियां लगानी पड़ गई। अरसे बाद डायरेक्टरेट के कर्मियों ने ऐसा दिन देखा, उनके सभागार में कोई कार्यक्रम हुआ और उन्हें बैठना नहीं पड़ा।   

अंत में दो सवाल आपसे

1. वीआईपी रोड पर स्थित एक होटल में किस -सरदार पुलिस अधिकारी का पैसा लगा है?
2. 83 बैच के सीनियर आईएफएस अफसर आरके सिंह को प्रशासन अकादमी का आयुक्त बनाना था कि संचालक। यह सामान्य प्रशासन विभाग की लापरवाही है या आईएफएस को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया गया?