रविवार, 25 मार्च 2012

तरकश, 25 मार्च



अब आगे
पूर्व मुख्यमंत्री होने के बाद भी अजीत जोगी को विधानसभा में पीछे जगह मिली थी.....एकदम कोने में। पहली बार विधायक बनें कुलदीप सलूजा के बगल में उनका व्हील चेयर लगता था। हालांकि, आगे बिठाने के लिए स्पीकर से कई बार मांग की गई मगर सदन का अपना कायदा होता है, सो व्हील चेयर आगे लाने की इजाजत नहीं मिली। मगर जुलाई के मानसून सत्र में जोगीजी विधानसभा में सबसे आगे याने नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे के बगल में बैठें नजर आएंगे तो चैंकिएगा मत। जोगीजी का रोबेटिक पैरों का ट्रायल पूरा हो गया है। और करीब एक करोड़ की लागत वाले ई-लेग्स पर जोगीजी मई से चलने-फिरने लगेंगे। जाहिर है, विधानसभा की बैठक व्यवस्था बदलनी पड़ेगी। चैबे के बगल में अभी सदन के सबसे वरिष्ठ विधायक बोधराम कंवर की सीट है। उनके बगल की बेंच पर नंदकुमार पटेल और रामपुकार सिंह बैठते हैं। खबर है, सीनियरिटी के हिसाब से नंदकुमार पटेल की सीट अब बोधराम कंवर को आबंटित होगी। अब जोगीजी आगे बैठेंगे तो सता पक्ष को परेशानी तो होगी ही, कांग्रेसी खेमा भी कांफर्ट फील नहीं करेेगा। विपक्ष की ओर से अभी तक रविंद्र चैबे, नंदकुमार पटेल और मोहम्मद अकबर ही मोर्चा संभालते थे। अब जोगीजी भी शामिल हो जाएंगे। जोगी इन तीनों के गुरू रहे हैं। इसलिए असहजता की स्थिति तो निर्मित होगी ही।
अंतर्विरोध
कांग्रेस का अंतर्विरोध विधानसभा के भीतर भी दिख रहा है। गुरूवार को कृत्रिम कुंभ के मसले पर अमितेष शुक्ल ने संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जमकर घेरा मगर उन्हें साथ देने कोई विधायक खड़ा नहीं हुआ। नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे आखिरी में उठे मगर समय अधिक निकल जाने की वजह से आसंदी से उन्हें अनुमति नहीं मिली। आदिवासियों पर लाठी चार्ज पर जो हुआ, उसे सबने देखा। मंगलवार को गृह मंत्री ननकीराम कंवर के वक्तव्य पर रविंद्र चैबे करीब 15 मिनट बोले। और यह कहते हुए उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया कि मामला गंभीर है और सरकार चाहे तो सदन के अंदर या बाहर इसकी दंडाधिकारी जांच का ऐलान कर दें। इसके बाद चैबे बैठ गए और स्पीकर धरमलाल कौशिक ने आगे की कार्रवाई के लिए नाम पुकारा। मगर इससे पहले कवासी लकमा और अमरजीत भगत खड़़े होकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। जाहिर है, यह नेता प्रतिपक्ष की लाइन से असहमति जताना ही हुआ। आखिर, नेता प्रतिपक्ष का भाषण अंतिम माना जाता है। लेकिन कवासी और भगत के हंगामे में बाकी विधायकों को भी शामिल होना पड़ा। और गर्भगृह में जाकर सभी निलंबित हो गए। चैबे का चेहरा साफ पढ़ा जा सकता था कि वे इससे खुश नहीं हैं। 
नहीं बदलेंगे
प्रश्नकाल को छोड़ दे ंतो विधानसभा की कई अहम चर्चा के समय अफसर गायब रहते हैं। अधिकारी दीर्घा की कुर्सियां खाली रहती है। विपक्ष को नौकरशाही को निरंकुश ठहराने का मौका न मिले, इसलिए चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार ने अबकी रोस्टर के आधार पर विधानसभा में बैठने के लिए सिकरेट्रीज की ड्यूटी लगाई है। पहले हाफ में चार और दूसरे में भी चार। मगर लगता है, अफसरों को सुनील कुमार सरीखे सीएस की भी अब कोई परवाह नहीं रह गया है। आलम यह है, चार की जगह मुश्किल से एक या दो अफसर बैठ रहे हैं। सोमवार को सुनील कुमार जब दिल्ली मंें थे तो अधिकारी दीर्घा में सिर्फ संस्कृति एवं पयर्टन सचिव केडीपी राव बैठे नजर आए। याने चीफ सिकरेट्री कोई भी हो जाएं हम नहीं बदलेंगे।
ना बाबा, ना
दूसरे राज्यों में आईएएस एसोसियेशन के अध्यक्ष का बड़ा सम्मान होता है। मगर अपने सूबे में मिथक बन गया है, अध्यक्ष बनें मतलब चीफ सिकरेट्री बनने का मौका नहीं मिलेगा। पहले बीकेएस रे के साथ ऐसा ही हुआ। इसके बाद सरजियस मिंज और अब नारायण सिंह। नारायण को तो अध्यक्ष बनें पखवाड़ा भी नहीं हुआ था, वे सीएस की दौड़ से बाहर तो हुए ही, उन्हें मंत्रालय से भी रुखसत होना पड़ा। ऐसे में एसोसियेशन का अध्यक्ष बनने के लिए अब शायद ही कोई आईएएस तैयार हो। 
जंगल राज
स्वास्थ्य विभाग कहीं जंगल विभाग न बन जाए। आईएफएस अधिकारी आनंद बाबू को पहले स्वास्थ्य मिशन का डायरेक्टर बनाया गया और अब प्रताप सिंह को हेल्थ कमिश्नर। आनंद बाबू को हाउसिंग बोर्ड से क्यों हटाया गया, कहने की जरूरत नहीं। वैसे भी अमर अग्रवाल के विभाग में इसी तरह के खास नस्ल के अधिकारियों की फौज खड़ी होती जा रही है। एक अफसर जब जिले के कलेक्टर थे तो वहां के लोग उनके नाम को शार्ट करके खाओ, पिओ और सोओ बोलने लगे थे। दूसरे, शाही मिजाज के अफसर के बारे में मंत्रालय में कौन नहीं जानता। महंगी गाड़ियों के शौकीन....काम एक ढेले का नहीं। मुख्यमंत्री और उनका सचिवालय उकता गया था। इसलिए ढकेल दिया गया अमर के विभाग में। अमर तेज हैं और किसी भी अधिकारी से काम करा लेते हैं, काम करा लेंगे। और तीसरे आईएएस, सरकार के इतने नजदीक है कि उन्हें और किसी से शायद ही मतलब होगा। इन छंटे हुए अधिकारियों के भरोसे स्वास्थ्य और नगरीय प्रशासन में अमर क्या कर पाते हैं, देखना दिलचस्प होगा।   

अंत में दो सवाल आपसे
1. देवजी भाई पटेल के तेवर ढीले क्यों पड़ गए हैं?
2. अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा आने लगा है, कहकर मुख्यमंत्री पर कटाक्ष करने वाले कांग्रेस विधायक धरमजीत     सिंह को आजकल विधानसभा में गुस्सा क्यों आने लगा है?

शनिवार, 10 मार्च 2012

तरकश, 11 मार्च




दुआओं का असर
लोग कहते हैं, हिंजड़ों की दुआओं में बड़ा असर होता है। अपने जोगीजी के लिए तो यह एकदम सही उतरता दिख रहा है। पिछले महीने बिलासपुर में हुए हिंजड़ों के राष्ट्रीय सम्मेलन में जोगीजी भी पहंुचे। उन्होंने झोली फैलाई.....आपकी दुआओं में बड़ा असर होता है और ऐसी दुआएं दीजिए कि अगली बार अपने पैरों पर चलकर आपसे आर्शीवाद मांगने आउं। और लगता है, यह कबूल हो गई। यह खबर खूब चर्चा में है, न्यूजीलैंड की चिकित्सकों की टीम 16 मार्च से जोगीजी को पैरों पर खड़ा करने के लिए एक बड़ा आपरेशन शुरू करने जा रही है। उनके पैरों में इलेक्ट्रानिक्स रोबोट की तरह इलेक्स सिस्टम लगाया जाएगा। डाक्टरों का दावा है, इसके बाद व्हील चेयर से निजात मिल जाएगी। और तेजी से तो नहीं मगर अपने काम के हिसाब से चल-फिर सकेंगे। जोगीजी खड़े होंगे....इस खबर से जाहिर है, कांग्रेस के उनके भाई-बंधुओं का दिल तो बैठ ही रहा होगा। व्हील चेयर पर ही साब तूफान मचाए रखते हैं, तो अब आगे का आलम क्या होगा....। 


लोकल धु्रव
मध्यप्रदेश की आरटीआई कार्यकर्ता शहला मसूद हत्याकांड में सीबीआई को अहम सूत्र हाथ लगने के बाद छत्तीसगढ़ के ध्रुवों की हालत खराब हो रही है। असल में, अपने यहां भी कई धु्रव हैं। पक्ष-विपक्ष दोनों में। बस, भाग्य का अंतर है। मध्यप्रदेश के धु्रव की किस्मत खराब थी। डबल गेम खेलने केे चक्कर में मारे गए। अपने यहां सिंगल वाला मामला है। और समय ठीक है। सो, कई का मामला सार्वजनिक होने के बाद भी कुछ बिगड़ नहंी रहा है। मगर नेताजी के जानने वालों का कहना है, शहला मामले के बाद भैयाजी लोग अब सतर्कता बरतने लगे हैं।  


बुरा हाल
अपने यहां जिस सेक्टर में सबसे अधिक सुधार की दरकार है, वही सबसे अधिक चलताउ अरेंजेमेंट का शिकार है। बात उच्च शिक्षा की हो रही है। इस विभाग की स्थिति क्या है, यह समझने के लिए इतना काफी है कि पिछले पांच साल में पांच सिकरेट्री बदल गए और अब छठवें की तैयारी है। केडीपी राव से शुरू हुआ, इसके बाद पी रमेश कुमार, फिर केडीपी राव, एमके राउत, सीके खेतान। खेतान डेपुटेशन पर दिल्ली जा रहे हैं और सारी औपचारिकताएं लगभग पूरी हो गई है। अगले हफ्ते किसी भी दिन वे रिलीव हो जाएंगे। खबर है, अब आरसी सिनहा, केडीपी राव या निधि छिब्बर में किसी का नम्बर लग सकता है। सिनहा की मंत्रालय में वापसी तो हो गई है मगर उनके पास काम कोई खास नहीं है। और छिब्बर की भी लगभग यही स्थिति है। बहरहाल, सब जगह यही सवाल है, अगले सिकरेट्री कितने महीने टिकेंगे। 


बड़ा खेल
किसी को हवा नहीं लगी और वन विभाग में कई पेटी का खेल हो गया। कुछ डीएफओ को मिड टर्म ट्रेनिंग में विदेश जाना था। मगर सीजन में कैसे जाएं.....मार्च चल रहा है और 40 फीसदी बजट को इधर-उधर करने का खेल इसी महीने में होता है, सो विदेश जाने का मतलब था, बड़ा नुकसान कराना। सो, एकराय होकर पेटियों का बंदोबस्त किया गया। और जब पेटी और खोखा हो जाए तो टे्रनिंग की परवाह किसे। आदेश हो गया, बजट सत्र की वजह से अधिकारियों को टे्रनिंग पर नहीं भेजा जा रहा है। जबकि, आल इंडिया सर्विसेज के अफसरों के लिए मिड टर्म ट्रेनिंग आवश्यक होता है। स्पेशल केस में इसकी इजाजत मिलती है। और इससे पहले भी विधानसभा के समय अधिकारी ट्रेनिंग में गए हैं। लेकिन मनीराम के सामने काहे का नियम-कायदा। 

संकट
वन विभाग छोड़कर डेपुटेशन पर जमे आईएफएस अधिकारियों के लिए बुरी खबर है। खास कर उनके लिए, जो बरसों से बाहर हैं और भूल भी चुके हैं कि वे वन विभाग के अधिकारी हैं। ऐसे अधिकारियों को वन मुख्यालय भेजने की तैयारी की जा रही है। इनमें नगरीय आयुक्त संजय शुक्ला, माइनिंग कारपोरेशन के एमडी राजेश गोवर्धन जैसे दर्जन भर अधिकारी हैं। एसएस बजाज चूकि न्यू रायपुर बना रहे हैं और उनकी छबि अलग टाईप की है, इसलिए वे अपवाद रहेंगे। मुख्यमंत्री के एक करीबी अधिकारी की मानें तो अब फ्रेश आईएफएस अधिकारियों को मौका दिया जाएगा। याने जो डेपुटेशन में राज्य शासन में नहीं आए हैं।


भाई-भाई
भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियों के नेताओं को यूपी चुनाव से बड़ी उम्मीदें थीं। कांग्रेसी नेताओं को तो और भी ज्यादा। 6 मार्च को सुबह से ही टीवी के सामने बैठ गए थे......युवराज का कोई चमत्कार हुआ कि हम यहां चढ़ाई कर दें। सामने ही विधानसभा का बजट सत्र था। सो, माहौल बनाने के लिए इससे बढ़ियां अवसर भी भला कहां मिलता। इधर, सत्ताधारी पार्टी को भी शिद्दत से इंतजार था, कुछ ठीक-ठाक हो जाए तो यूपी में मंदिर बनें-न-बनें हम तीसरी बार सरकार जरूर बना लेंगे। लेकिन दोनों की स्थिति भाई-भाई वाली रही। न युवराज चले और न साध्वी। इसलिए बजट सत्र के हंगामेदार रहने की उम्मीद तो कांगे्रेस नेताओं को भी नहीं है। 


अंत में दो सवाल आपसे
1. राजनांदगांव में लेंको को पानी देने के मसले को सीएसआईडीसी के चेयरमैन बद्रीधर दीवान ने पहले बोर्ड की बैठक में लाने से मना कर दिया और बाद में कैसे ओके कर दिया?
2. 19 मार्च को निवर्तमान चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन रायपुर आ रहे हैं, उनकी अगुवानी कौन करेंगा?

शनिवार, 3 मार्च 2012

तरकश, 4 मार्च


बैड न्यूज
पिछले फेरबदल में अछूते रहे रमन सरकार के कुछ मंत्रियों की खुशी लगता है, ज्यादा दिनों कायम नहीं रह पाएगी। उनके लिए एक बैड न्यूज है......बजट सत्र के बाद रमन सिंह कुछ और मंत्रियों के विभाग बदलेंगे और वह फिर आखिरी फेरबदल होगा। दूसरी सूची में बृजमोहन अ्रग्रवाल, ननकीराम कंवर, चंद्रशेखर साहू, केदार कश्यप और लता उसेंडी का नम्बर लग सकता है। केदार के पास पिछले आठ साल से पीएचई है। लता उसेंडी और केदार के बीच खेल और युवक कल्याण तथा पीएचई की अदला बदली हो सकती है। विक्रम उसेंडी का कद और बढ़ सकता है। उसेंडी को गृह भी मिल जाए तो अचरज नहीं। पिछले चेंज में बृजमोहन और ननकीराम का विभाग बदलना तय माना जा रहा था......लोगों को लग रहा था, डाक्टर साब कोई बड़ा धमाका करेंगे। और यही वजह थी कि फेरबदल के बाद तरह-तरह के कमेंट सुनने को मिले, खोदा पहाड़, निकली चुहिया... चुहिया भी नहीं, चुहिया की पूंछ निकली। मगर सत्ता के करीबी लोगों की मानें तो अबकी चैंकाने वाला मामला रहेगा। दो-एक संसदीय सचिव भी निबटेंगे। सरकार उन्हें माटी की मूरत बनकर नहीं रहने देना चाहती। 


नारायण....
राजस्व बोर्ड के नाम पर सीनियर आईएएस अधिकारियों की भी धड़कनें बढ़ी हुई है। आईएएस  एसोसियेशन के अध्यक्ष नारायण सिंह को पिछले महीने जब करंट लगा तो किसी आईएएस ने मिजाजपुर्सी के लिए घर जाने की जरूरत नहीं समझी मगर अब वही लोग प्रार्थना कर रहे हैं, नारायण राजस्व बोर्ड में चले जाएं। असल में, बोर्ड में अजयपाल सिंह और दुर्गेश मिश्रा के बीच जंग छिड़ी हुई हई है। और यह निश्चित है, उन्हें वहां से हटाया जाएगा। नारायण को माशिमं के अलावा बोर्ड की कमान सौंप दी गई तो ठीक है, वरना मंत्रालय से प्रींसिपल सिकरेट्री लेवल के किसी अफसर को वहां शिफ्थ करना पडे़गा। और राजस्व बोर्ड भला कौन जाना चाहेगा। बोर्ड का नाम सुनकर ही आईएएस अधिकारी रमन और अमन की परिक्रमा करने लगते हैं। यह अलग बात है कि अभी नारायण....नारायण....कर रहे हैं। 
   
बाम्बरा माडल
31 मार्च को डीजी होमगार्ड विश्वरंजन और एडीजी टे्रनिंग आनंद तिवारी रिटायर हो जाएंगे। इनमें से विश्वरंजन का अभी कुछ पुख्ता नहीं है मगर तिवारीजी का तय मानिये, सरकार अभी उन्हें बिदा नहीं करेगी। खबर है, पंडितजी दो साल का संविदा मिल रहा है। फिलहाल वे पुलिस प्रशिक्षण देख रहे हैं और 31 मार्च के बाद भी वे वहीं सेवा देते रहेंगे। इससे पहले ट्रांसपोर्ट के लिए उनका नाम खूब चला था और भरपूर जैक होने के बाद भी पता नहीं क्यों डाक्टर साब पसीजे नहीं। लेकिन अब बताते हैं, भोले बाबा ने उन्हें तथास्तु कह दिया है। वैसे स्टेट पुलिस सर्विसेज में पिछले कई साल से बाम्बरा माडल चल रहा है। जीएस बाम्बरा 65 साल की उम्र में भी बर्दी पहनकर सीएसपीगिरी कर रहे हैं। सुना है, बाम्बरा माडल को हाल ही में झारखंड सरकार ने भी लागू किया है। नोटशीट में छत्तीसगढ़ के बाम्बरा माडल का हवाला देकर वहां भी एक अधिकारी को संविदा में रखा गया है। तो बाम्बरा की तुलना में तिवारी महाराज तो चुस्त और हैंडसम हैं। टे्रनिंग में कोई जाना भी नहीं चाहता। सो, तिवारीजी का चलेगा। 

तीसरा डीजी़
विश्वरंजन के रिटायरमेंट में अभी 28 दिन बाकी है मगर इससे पहले ही तीसरे डीजी के लिए पुलिस मुख्यालय में जोर-तोड़ शुरू हो गई है। दरअसल, राज्य में डीजी के दो पोस्ट है, एक कैडर और दूसरा एक्स कैडर। पोस्ट न होने की वजह से ही आपको याद होगा, केंद्र के निर्देश पर संतकुमार पासवान को डीजी से रिवर्ट किया गया था। बाद में मिनिस्ट्री आफ होम अफेयर से पासवान स्पेशल केस में तीसरे डीजी का आदेश लाने में कामयाब हो गए। विश्वरंजन की सेवानिवृत्ति को देखते एमएचए ने अप्रैल तक स्पेशल डीजी की इजाजत दी थी। ताकि, विश्वरंजन के बाद खाली पद पर पासवान डीजी बन जाएं। मगर एमएचए के आदेश में त्रुटि हो गई। कायदे से 31 मार्च लिखना था या फिर एक अप्रैल। चूकि कागज में अप्रैल तक तीसरे डीजी की अनुमति है और रामनिवास इसके स्वाभाविक  दावेदार हैं, इसलिए एक संभावना यह है कि रामनिवास डीजी बनकर पासवान की तरह फिर आदेश ले आएं। लेकिन पूरा गेम सरकार के हाथ में है। अप्रैल वाले आदेश को सरकार विश्वरंजन के रिटायरमेंट के संदर्भ में 31 मार्च तक देखेगी तो रामनिवास को अनिल नवानी के रिटायर होने तक याने नवंबर तक इंतजार करना पड़ेगा और कहीं सहानुभूति बरती तो एक अप्रैल को वे डीजी बन जाएंगे। बहरहाल, पीएचक्यू में उपर से सब कुछ ठीक-ठाक दिख रहा किन्तु अंदर में खूब गुणा-भाग चल रहा है। नवानी नवंबर में रिटायर होंगे। इसके बाद चार महीने पासवान रहेंगे। अगले साल अप्रैल मे रामनिवास का नम्बर आएगा। रामनिवास जनवरी 14 तक याने 10 महीने डीजीपी रहेंगे। सत्ता के गलियारों की खबरों पर अगर गौर करें तो रामनिवास के चाहने वाले अगले साल अप्रैल का इंतजार करने के पक्ष में नहीं है। सो, उसी हिसाब से गोटियां बिछाई जा रही है। 


सख्त
राज्य के नए विश्ववि़द्यालयों की हालत को देखते सरकार ने तय किया है कि कुलपतियों की नियुक्ति अब ठोंक बजाकर की जाएगी। बिलासपुर विवि में देरी के पीछे यही वजह है। कामधेनु विवि के लिए मध्यप्रदेश के पशुधन विभाग के डिप्टी सिकरेट्री भदौरिया का नाम सीएम के पास भेजा गया था। मगर उन्होंने आपत्ति करते हुए सीएस सुनील कुमार के पास परीक्षण के लिए भेज दिया। भदौरिया का नाम अब कटा ही समझिए। वैसे कामधेनु में दो-एक दिन में वीसी की नियुक्ति हो जाएगी और संभवतः डा. यूके मिश्रा, डा. केसीसी सिंह और एसएस गहरवार में से किसी को मौका मिल जाए। 


अंत में दो सवाल आपसे
1. बस्तर के आईजी लांग कुमेर ने नागालैंड डेपुटेशन पर जाने का मन क्यों बदल दियाघ्
2. पौने चार साल तक नौकरशाही का मुखिया रहने के बाद हटाए जाने पर पीजाय उम्मेन को             नाराज होने का हक बनता है क्याघ्