शनिवार, 27 जनवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash: अफसरों का ड्रेस कोड

 तरकश, 28 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों का ड्रेस कोड

राजस्थान के चीफ सिकरेट्री ड्रेस को लेकर बेहद सख्त हैं। एक बार जिंस पहनकर मीटिंग में आने वाले तीन अफसरों को उन्होंने पैंट बदलने घर भेज दिया था। इस वाकये से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की याद आ गई। सरकार बनने के दो ही महीने हुए थे कि पुराने मंत्रालय की एक बैठक में प्रमुख सचिव स्तर के एक आईएएस फुल टीशर्ट नुमा कुछ पहनकर आ गए थे। जोगी जी इस पर बेहद नाराज हुए। उन्होंने उस अफसर को मीटिंग से उठाया तो नहीं मगर यह कहते हुए क्लास जमकर ली थी कि ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों को पहनावे का ध्यान रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से ठीक इसका उलट हो रहा है। मुख्यमंत्री की बैठकों में कोई हाफ शर्ट पहनकर पहुंच जाता है तो कोई आस्तिन चढ़ाकर। पहले के अफसर ड्रेस को लेकर बड़ा संजीदा रहते थे। खासकर सीएम की जिस दिन मीटिंग है, उस दिन हाफ शर्ट बिल्कुल नहीं। पहनावा भी गरिमापूर्ण। एक तरह से ये सिस्टम और सीएम का सम्मान होता है। राजभवन के कार्यक्रमों में भी आज कल लोग ड्रेस का ध्यान नहीं रख रहे। चीफ सिकरेट्री को इसके लिए अपने अधिकारियों को ताकीद करना चाहिए...कम-से-कम सीएम की मीटिंग और राजभवन के कार्यक्रमों में ड्रेस की मर्यादा का ध्यान रखा जाए।

मीटिंग से GO...GO

चूकि बात मीटिंग से अफसरों को उठाने और अजीत जोगी की निकली है तो एक पुराना वाकया याद हो आया। 2001 की बात होगी। यही धान खरीदी का कोई समय था। नवंबर या दिसंबर का। तब बारदाना का शार्टेज हो गया था, किसान हलाकान थे। जोगी जी ने पुराने मंत्रालय में फूड, नॉन, और मार्कफेड के अफसरों की बैठक बुलाई। अब जोगी जी जोगी जी थे, उन्हें कोई मिसगाइड कहां कर सकता था। अफसरों ने यह कहते हुए उन्हें भटकाने की कोशिश की कोलकाता की कंपनी बारदाना भेज नहीं रही है...इस पर वे बिगड़ उठे। उन्होंने दो आईएएस को भरी मीटिंग से उठा दिया। बोले...अभी कोलकाता जाओ। अफसर इसे समझ नहीं पाए। लगा कि जाने को बोल रहे तो कल चल देंगे। पुराने लोगों को याद होगा, जोगीजी को जब गुस्सा आता था तो वे कांपने लगते थे। ऐसा ही कुछ उस मीटिंग में हुआ। बोले...उठ क्यों नहीं रहे हो, चलो अभी जाओ...गो...गो। जोगीजी के चेहरे की भाव भंगिमा देख दोनों अफसर तुरंत मीटिंग छोड़ कोलकाता भागे। उस समय फ्लाइट नहीं थी और न सरकार के पास इतने पैसे होते थे कि अफसर यहां से दिल्ली जाए और वहां से फिर कोलकाता। रामचंद सिंहदेव जैसे सख्त वित्त मंत्री थे। किसी सप्लायर या ठेकेदार से टिकिट करा लें, ऐसा भी उस समय नहीं होता था। लिहाजा, दोनों आईएएस अफसरों ने शाम की मुंबई-हावड़ा मेल में इमरजेंसी कोटे से दो बर्थ कराया और कोलकाता रवाना हुए।

वक्त की दोहरी मार

ब्यूरोक्रेसी में हमेशा दिन एक बराबर नहीं होते। वैसे भी नौकरशाही में माना जाता है, आईएएस की लगभग 30 साल की सर्विस में 20 साल कमाल के होते हैं तो पांच साल मीडियम और पांच साल मुश्किल के। छत्तीसगढ़ में भी सरकार बदलने के बाद कुछ अफसरों का अच्छा नहीं चल रहा। खासकर, सात आईएएस अधिकारियों पर वक्त की दोहरी मार बोल सकते हैं। कुछ कलेक्टरों को चुनाव आयोग ने आचार संहिता लगते ही हटा दिया था, और कुछ को नई सरकार ने। इसके बाद सरकार ने सात अफसरों को मिड टर्म ट्रेनिंग के लिए महीने भर के लिए मसूरी भेज दिया। अब बेचारे छत्तीसगढ़ के आईएएस, मसूरी के एक डिग्री टेम्परेचर में कैसे रह रहे होंगे, आप समझ सकते हैं। रात में हीटर ऑन करते हैं तो बेचैनी होती है और न जलाएं तो डबल रजाई भी असर नहीं कर रहा। उसमें भी सुबह उठ जाना...मुंह से भाप निकलते कभी देखा नहीं। सात में एक माताजी भी हैं। सातों आईएएस देवों के देव विष्णुदेव से प्रार्थना कर रहे...भगवान तकलीफ दे रहे हो तो मसूरी से लौटने के बाद कुछ काम धाम भी दे देना।

छुट्टियों में याद रखना

पिछली सरकार ने डीए, एचआर देने में भले ही विलंब किया मगर छुट्टियां इतनी दे डाली कि छत्तीसगढ़ के कर्मचारी मौज काट रहे हैं। साल में कई हफ्ते ऐसे निकल जा रहे कि दो-एक दिन की अर्जी लगा दिए तो दसेक दिन का सैर-सपाटा। हालांकि, एक पहलू यह भी है कि कर्मचारियों, अधिकारियों के घरों में पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़े हैं। पहले हफ्ता में एकाध दिन छुट्टी होती थी तो उसका ब़ड़ा चार्म होता था। अब तीन-तीन, चार-चार दिन घर में रहेंगे तो दिक्कतें तो होगी ही। बहरहाल, तीज-त्यौहारों की छुट्टियां इतनी ज्यादा हो गई है कि छुट्टी घोषित करने वाला जीएडी भी कंफ्यूज्ड हो जा रहा। पिछली सरकार ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया हुआ है, जीएडी ने इसी दिन नागपंचमी का लोकल अवकाश दे दिया। जीएडी भी आखिर क्या करें...इतनी छुट्टियों से भ्रमित होना स्वाभाविक है। फिर भी, छुट्टियों को लेकर शिक्षक और कर्मचारी पिछली सरकार को जरूर याद रखेंगे।

मगर वोट नहीं...

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक रिटायर चीफ सिकरेट्री शिक्षाकर्मियों का संविलियन न करने पर अड़ गए थे। जबकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह इस पक्ष में थे कि पुराना वादा है, इसे पूरा कर दिया जाए। फिर सवाल चौथी बार सरकार बनाने का भी था। रिटायर सीएस तब एक कमीशन में पोस्टेड थे और अघोषित तौर पर सरकार के सलाहकार का काम भी देख रहे थे। वे इस बात से काफी नाराज थे कि शिक्षाकर्मी मर्यादा को ताक पर रखकर रायपुर के बूढ़ापारा तालाब में अधनंगे प्रर्दशन कर दिए थे। उनका ये भी तर्क था कि बिना किसी भर्ती प्रक्रिया के लोकल लेवल पर चुने गए इन शिक्षकों से छत्तीसगढ़ का ह्यूमन रिसोर्स चरमरा जाएगा। मगर रमन सिंह उनकी दलीलों को न मानते हुए शिक्षाकर्मियों को रेगुलर करने का फैसला ले लिया। बावजूद इसके शिक्षकों के वोट एकतरफा कांग्रेस को पड़े। उसके बाद आई कांग्रेस सरकार ने रमन सरकार की शर्तो को शिथिल करते हुए सबको एकमुश्त संविलियन कर दिया। इसके बाद छुट्टियों की मौज। फिर भी शिक्षकों और कर्मचारियों का वोट कांग्रेस को नहीं मिला। ऐसे में, पीसी सेठी की चर्चा यहां मौजूं लगता है। मध्यप्रदेश के एक पुराने मुख्यमंत्री थे प्रकाशचंद सेठी...बेहद सख्त और अनुशासन के पक्के...ब्यूरोक्रेसी से लेकर कर्मचारी संगठन उनसे घबराता था। वे अक्सर कहा करते थे, सरकार की प्राथमिकता आम आदमी होना चाहिए, कर्मचारी, अधिकारी नहीं। बाद में वे इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में देश के गृह मंत्री बनाए गए थे।

मजबूत आईएएस?

एसीएस फॉरेस्ट मनोज पिंगुआ के पास पहले तीन हैंड थे। सिकरेट्री बसव राजू, स्पेशल सिकरेट्री देवेंद्र भारद्धाज और ज्वाइंट सिकरेट्री पुष्पा साहू। सरकार ने पहले बसव को वहां से सीएम सचिवालय भेजा, फिर देवेंद्र और पुष्पा को भी शिफ्थ कर दिया। वन विभाग में अब वन मैन आर्मी वाली स्थिति है। याने पिंगुआ ही सब कुछ। उनके पास गृह विभाग है और माध्यमिक शिक्षा मंडल के साथ व्यापम चेयरमैन का चार्ज भी। उपर से ठीक परीक्षा के टाईम माशिमं सचिव को खो कर दिया गया। चलिये, पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी हैं...भारत सरकार में काम भी किए हैं। जाहिर है, उनका कंधा मजबूत तो होगा ही।

बड़ी चूक?

तीन दिन पहले पुराने पुलिस मुख्यालय में सड़क सुरक्षा का कार्यक्रम था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय उसके चीफ गेस्ट थे। बताते हैं, पीएचक्यू के एक बड़े अफसर को इसकी जानकारी नहीं दी गई। वे रुटीन में नए पीएचक्यू पहुंच गए। वहां पता चला कि सीएम साहब ओल्ड पीएचक्यू में आए हुए हैं। वे भागते हुए वहां पहुंचे तब तक काफी लेट हो चुका था। खबर है, उन्होंने अफसरों की जमकर क्लास ली। खैर जो भी है, सिस्टम के लिए ये ठीक नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इसमें कितनी सत्यता है कि विष्णुदेव सरकार के दो मंत्रियों को पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है?

2. क्या ये सही है कि पुराने मंत्री अपने विभागों से खुश नहीं हैं तो कुछ नए मंत्रियों पर सत्ता का अहंकार हॉवी होने लगा है?



शनिवार, 20 जनवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash: अपमानजनक विदाई

 Chhattisgarh Tarkash: 21 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

अपमानजनक विदाई 

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के इन 23 बरसों में र्शीष पदों से दो अफसरों की विदाई बड़ी अपमानजक रही। इनमें पहला है छत्तीसगढ़ के सबसे हाई प्रोफाइल डीजीपी रहे विश्वरंजन की। डीजीपी ओपी राठौर के देहावसान के बाद रमन सरकार ने आईबी में पोस्टेड विश्वरंजन को मनुहार करके लाया था। विश्वरंजन चार साल पुलिस प्रमुख रहे। जुलाई 2007 से जुलाई 2011 तक। इनमें तीन साल उनका एकतरफा जलजला रहा। औरा ऐसा था कि सीएस, एसीएस उनके सामने जाने में हिचकते थे...विधानसभा के अधिकारिक दीर्घा में प्रथम पंक्ति में सीएस के बगल में उनकी कुर्सी सुरक्षित रहती थी। तब के एसीएस होम एनके असवाल उनके लिए कुर्सी छोड़ देते थे। अमन सिंह जैसे ताकतवर ब्यूरोक्रेट्स पुराने मंत्रालय में विश्वरंजन को लिफ्ट तक छोड़ने जाते थे। मगर आखिरी साल में उनका ग्रह-नक्षत्र ऐसा बिगड़ा कि सरकार से दूरियां बढ़ती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए उनकी छुट्टी कर दी। वो भी ऐसे समय जब वे अपनी बेटी से मिलने अहमदाबाद रवाना हुए थे। वे जैसे ही अहमदाबाद एयरपोर्ट पर लैंड किए, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री पी. जाय उम्मेन ने उन्हें फोन किया...सरकार ने आपकी जगह अनिल नवानी को डीजीपी बना दिया है। विश्वरंजन सन्न रह गए। उम्मेन ने तब कुछ लोगों से शेयर किया था...मेरे फोन पर विश्वरंजन कुछ देर तक कुछ बोल नहीं पाए...फिर बोले...ओके और फोन डिसकनेक्ट कर दिए। हालांकि, बाद में पी जॉय उम्मेन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उम्मेन को सीएस बने करीब साढ़े तीन साल हो गए थे। सरकार ने प्रशासनिक कड़ाई के लिए तय कर लिया था कि सुनिल कुमार को सेंट्रल डेपुटेशन से बुलाया जाए। पीएस टू सीएम बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह ने दिल्ली जाकर सुनिल कुमार को इसके लिए तैयार किया। सुनिल छत्तीसगढ़ लौटे तो उन्हें स्कूल शिक्षा दिया गया। उसके दो महीने बाद उम्मेन जब छुट्टी पर केरल गए थे, प्रशासनिक सत्ता पलट हो गया। दिन याद नहीं, मगर पुराने मंत्रालय में शाम पांच, छह बजे का समय होगा। सुनिल कुमार के पास उस समय मैं मौजूद था। इसी बीच बैजेंद्र और अमन आए। दोनों का यकबयक...एक साथ आना खटका...कोई बात अवश्य है। सो, वक्त की नजाकत को समझते दुआ-सलाम के बाद मैं वहां से निकल गया। इसके ठीक आधे घंटे बाद किसी का फोन आया...एसीएस नारायण सिंह को मंत्रालय से हटाकर माध्यमिक शिक्षा मंडल का चेयरमैन बना दिया गया है। जाहिर सी बात थी...सुनिल कुमार के लिए रास्ता बनाया जा रहा था। और नारायण सिंह के आदेश के 15 मिनट बाद पता चला उम्मेन की जगह सुनिल कुमार को सूबे का प्रशासनिक मुखिया बना दिया गया है। याने पी0 जा उम्मेन की विदाई भी सम्मानजनक नहीं रही। हालांकि, उम्मेन को चेयरमैन बिजली कंपनी कंटीन्यू करने कहा गया। मगर वे स्वाभिमान अफसर थे। उन्हांंने सरकार के इस ऑफर को न केवल ठुकरा दिया बल्कि आईएएस से वीआरएस ले लिया। कुल मिलाकर विश्वरंजन और उम्मेन के कैरियर का एंड अच्छा नहीं रहा।

पुरुषस्य भाग्यमं...

छत्तीसगढ़ में डीजीपी को लेकर अटकलों का दौर जारी है। स्वागत दास से लेकर राजेश मिश्रा, अरुणदेव गौतम और पवनदेव के नामों की चर्चाएं गर्म है। हालांकि, स्वागत दास की भारत सरकार से रिलीव करने की फाइल मूवमेंट में है। मगर जब तक आदेश निकल नहीं जाता, तब तक उम्मीदें खतम नहीं होती। राजेश मिश्रा का तो इसी महीने रिटारमेंट है। अगर उन्हें पोस्टिंग के साथ एक्सटेंशन मिल जाए तो बोनस के तौर पर उन्हें करीब सवा दो साल एक्स्ट्रा मिल जाएगा। इसको ऐसा समझिए कि सरकार अगर उन्हें प्रभारी डीजी बना दें तो प्रॉसेज कंप्लीट होने में बहुत फास्ट हुआ, तब भी दो-एक महीने का टाईम लगेगा। क्योंकि, पूर्णकालिक पोस्टिंग के लिए एमएचए को पेनल भेजा जाएगा। एमएचए फिर यूपीएससी को भेजेगा यूपीएससी डीपीसी के लिए डेट डिसाइड करेगा। यूपीएससी से हरी झंडी मिलने के बाद फिर उसे डेट से दो साल के लिए उनका आदेश निकलेगा। याने इस प्रॉसिजर के लिए राजेश को पहले एक्सटेंशन दिलाना होगा। क्योंकि, उनके पास टाईम अब सिर्फ 9 दिन बच गए हैं। इसलिए उनकी उम्मीदें लगभग नहीं की स्थिति में पहुंच गई है। फिर भी...पुरूषस्य भाग्यम। यूपी के चीफ सिकरेट्री दुर्गाशंकर मिश्रा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारत सरकार ने सिकरेट्री मिश्रा को रिटायरमेंट के दो दिन पहले दो साल का एक्सटेंशन दिया और यूपी सरकार ने प्लानिंग के तहत उन्हें चीफ सिकरेट्री बनाने में एक मिनट भी देर नहीं लगाई। सो, उम्मीद पर पूरी दुनिया टिकी हुई है। स्वागत, राजेश, पवन, गौतम से लेकर प्रदीप गुप्ता तक उम्मीद से होंगे।

जो होता है, अच्छे के लिए...

इंटर स्टेट डेपुटेशन पर गए एक आईएएस ऑफिसर ने एक्सटेंशन के लिए बड़ा प्रयास किया कि सरकार से एनओसी मिल जाए। पर ऐसा हुआ नहीं। आखिरकार, चुनाव से छह महीने पहले उन्हें छत्तीसगढ़ लौटना पड़ा। हालांकि, उन्होंने कोशिशें छोड़ी नहीं। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने अपना पीएस बनाने के लिए खुद सरकार को फोन लगाया। मगर फाइल इधर उधर होती तब तक चुनाव का ऐलान हो गया। इसके बाद सरकार बदल गई। आईएएस को अब ऐसी पावरफुल जगह सेक्रेटरी की पोस्टिंग मिल गई है, जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। लॉबिंग से दूर रहने वाले इस अफसर को पिछली बीजेपी सरकार में भी खास पोस्टिंग नहीं मिली थी। चुनाव आयोग के चक्कर में जरूर उन्हें एक बड़े जिले की कलेक्टरी मिल गई थी। बहरहाल, इसे मानकर चलना चाहिए कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है।

प्रमोशन में पीछे

पिछले साल आश्चर्यजनक तौर पर जनवरी फर्स्ट वीक में आईपीएस अफसरों का प्रमोशन हो गया था। मगर इस बार आईएएस आगे निकल गए। आईएएस में इस बार नीचे से लेकर ऊपर तक, एक साथ सभी का प्रमोशन हो गया। अलबत्ता, आईपीएस का बुरा हाल यह है कि 2011 बैच को सलेक्शन ग्रेड भी नहीं मिला है। जबकि, इसमें डीपीसी का भी झंझट नहीं। इसके अलावा डीआईजी से आईजी और एडीजी से डीजी का भी प्रमोशन होना है। 92 बैच के बेचारे पवन देव और अरुण देव पिछले साल से डीजी प्रमोट होने की बाट जोह रहे हैं। जनवरी 2022 से उनका प्रमोशन ड्यू है। दोनों डीजी पुलिस के दावेदार हैं। अब जरा समझिए, साल भर से ये डीजी बनने टकटकी लगाए बैठे हैं, और कोई पैराशूट डीजीपी बैठ जाएगा, तो इन दोनों पर क्या गुजरेगा।

पत्नी का सहारा

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐसी लहर थी कि जो पार्षद का चुनाव नहीं जीत सकता था वो विधायक बन गया। इन एक्सीडेंटल विधायकों ने पांच साल बढ़िया जलवा भी काटा। इनोवा में हूटर, बड़ी-बड़ी लाइटें...और इतने लार्ज प्वाइंट में आगे पीछे विधायक लिखा कि एक किलोमीटर दूर से दिख जाए कि माननीय की गाड़ी आ रही है। मगर पांच साल में ही इनमें से कई बेचारे पूर्व हो गए। दूर से पहचानी जानी वाली इनकी गाड़ियां वैधव्य गति की हो गई है। टोल नाकों में पहले सायरन बजाते हुए निकल जाती थी, अब कोई वेटेज नहीं मिल रहा। ऐसे में कुछ पूर्व विधायकों ने रास्ता निकाला है...गाड़ियों के नेम प्लेट पर विधायक के ऊपर इतना छोटा पूर्व लिखवाए हैं कि एक बरगी नजर नहीं आए, तो कुछ की पत्नी किसी पद पर है तो पत्नी के पदनाम गाड़ियों में लिखवा लिए हैं। चलिए, आइडिया अच्छा है।

जीत का मैनेजमेंट

बिलासपुर संभाग में अभी तक चुनाव के मैनेजमेंट गुरु अमर अग्रवाल माने जाते थे। 77 में जहां कांग्रेस नहीं हारी, ऐसे गढ़ में वे लगातार चार चुनाव जीते। हालांकि, 2018 में ओवर कांफिडेंस में वे झटका खा गए। मगर इस बार ताकत इतना जोर का लगा दिए कि लीड का रिकार्ड बन गया। बहरहाल, इस बार सरकार पलटने की खबरों की वजह से बिलासपुर से लगी एक यूनिक मैनेजमेंट वाली कोटा सीट की चर्चा दब गई। कोटा कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। मगर पिछले साल जोगी कांग्रेस के खाते में ये सीट गई थी। और अजीत जोगी के निधन के बाद यह पहला चुनाव हो रहा था, सो सहानुभूति वोटों की गुंजाइश पर्याप्त थी। मगर कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव ने ऐसी चकरी घुमाई कि रेणु जोगी को मात्र आठ हजार वोट से संतोष करना पड़ा। रेणु जोगी के नामंकन के दौरान जो चेहरे थे, प्रचार शुरू होने पर वे अटल के लिए काम करते नजर आए। सो, कह सकते हैं कांग्रेस से ज्यादा ये अटल की जीत रही। जिसने ओम माथुर से लेकर बीजेपी के बड़े रणनीतिकारों को भी हैरान कर दिया। बीजेपी का दीगर सीटों पर जोगी कांग्रेस वाला दांव प्लस रहा मगर कोटा में पार्टी गच्चा खा गई।

खुफिया चीफ का औरा

सीएम विष्णुदेव ने भले ही खुफिया चीफ अपाइंट करने में टाईम लिया मगर इस सलेक्शन पर कोई उंगली उठाने की गुंजाइश नजर नहीं आती। अमित कुमार छत्तीसगढ़ में बीजापुर के साथ ही सबसे बड़े जिले रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग की कप्तानी किए हैं। उधर, जांजगीर और इधर बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट राजनांदगांव के भी एसपी रहे। उपर से सीबीआई में 12 साल। उसमें भी ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी के पोस्ट पर करीब चार साल। जेडी पॉलिसी मतलब बड़े-बड़े राजनेताओं और नौकरशाहों के यहां रेड का काम इसी विभाग से होता है। इसीलिए, जेडी पॉलिसी हमेशा पीएमओ के कंटेक्ट में रहता है। सो, खुफिया चीफ के तौर पर उनका प्रभाव तो रहेगा। मुकेश गुप्ता का भी एक समय जलजला रहा...ब्यूरोक्रेट्स भी उनसे घबराते थे। हालांकि, अमित कुमार की वर्किंग स्टाईल अलग है, मगर औरा तो इनका रहेगा। सीबीआई के नाम से लोग वैसे भी घबराते हैं। ये तो एक दशक से अधिक वहां गुजारे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एसपी और आईजी की लिस्ट अब 26 जनवरी के बाद निकलेगी?

2. पिछली सरकार की तरह विष्णुदेव सरकार भी देर रात ट्रांसफर, पोस्टिंग क्यों कर रही है?



शनिवार, 13 जनवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash: CM विष्णुदेव के सारथी?

 तरकश, 14 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

CM विष्णुदेव के सारथी?

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल गठन में एक प्रयोग किया है...विभिन्न वर्गों को इसमें प्रतिनिधित्व दिया गया है। कुछ पुराने हैं, तो कुछ नए भी। पहली बार दो डिप्टी सीएम भी। पुराने लोगों को याद होगा...मध्यप्रदेश के दौर में 90 के दशक में दिग्विजय सिंह के साथ दो डिप्टी सीएम बनाए गए थे...एमपी से सुभाष यादव और छत्तीसगढ़ से प्यारेलाल कंवर। इसके करीब 30 साल बाद कांग्रेस सरकार ने डिप्टी सीएम का फार्मूला अजमाया और टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, इसका रिजल्ट अच्छा नहीं रहा। पूरे समय खींचतान चलती रही। बहरहाल, विष्णुदेव कैबिनेट की खासियत यह है कि इसमें अनुभवी के साथ ही नए फ्रेश चेहरे भी हैं। बेशक, इनकी क्रियेटिव सोच का लाभ छत्तीसगढ़ को मिलेगा। मगर इसके साथ यह भी...सबको स्वयं अपनी सीमाओं का ध्यान रखना पड़ेगा। वरना, घर के भीतर से बर्तन गिरने की आवाजें बाहर आएंगी तो उसके संदेश अच्छे नहीं जाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के पास सौदान सिंह जैसे सारथी थे। उस समय उनके बारे में बड़ी चर्चाएं होती थी, सौदान भाई साब ने चाबुक चलाई तो कभी डंडा चलाया। सौदान सिंह की भूमिका उस समय इसलिए महत्वपूर्ण रही कि रमन का चाबुक और डंडा वाला स्वभाव नहीं था। शिवराज सिंह, बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह...ये सभी 2010 के बाद फुल फर्म में आए। तब तक सौदान ही कृष्ण की भूमिका में रहे। रमन सिंह जैसे विष्णुदेव साय भी हैं। बीजेपी को लंबे समय तक क्रीज पर टिके रहने के लिए मोदीजी को एक सौदान सिंह भी नियुक्त करना होगा। वरना, मंत्रियों की महत्वकंक्षाएं बढ़ेंगी तो बीजेपी के साथ छत्तीसगढ़ का भी नुकसान होगा।

चूके तो चौहान कैसा

आईएएस को आज भी देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस माना जाता है। आईटी और ईडी की छाया पड़ने से पहले तो उन्हें रहनूमा ही समझा जाता था...प्रमोशन से लेकर डीए आदि सब टाईम पर। मगर छत्तीसगढ़ में उनकी ग्रह दशा कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया था। कर्मचारियों का डीए बढ़ता रहा और वे बेचारे आह भी नहीं भर पा रहे थे। यह पहला मौका था कि डीए के मामले मे ंहमेशा पीछे रहने वाले छत्तीसगढ़ के कर्मचारी ऑल इंडिया सर्विस वालों से आठ परसेंट आगे हो गए। हालांकि, ऐसा नहीं कि नौकरशाहों ने इसके लिए प्रयास नहीं किया। किसी जगह पर उन्होंने बात रखने की कोशिश की थी, मगर तल्खी से पूछ दिया गया...आईएएस को महंगाई भत्ते की क्या जरूरत? इसके बाद फिर किसकी मजाल...वे डीए का ड बोलना भूल गए। फिर भी ठहरे आईएएस। सबसे बड़ा कंपीटिशन क्लियर करके आए हैं...सो मौके का इंतजार था। विधानसभा इलेक्शन के दौरान उन्हें अवसर मिल भी गया। दरअसल, चुनाव के दौरान कर्मचारियों पर डोरे डालने के लिए सरकार ने चुनाव आयोग से डीए बढ़ाने का परमिशन मांगा था। जीएडी के अफसरों ने मौके का फायदा उठाते हुए कर्मचारियों के साथ ऑल इंडिया सर्विस को भी जोड़ दिया। अब आयोग भी कम थोड़े है...इजाजत दिया भी वोटिंग के बाद। तब आचार संहिता प्रभावशील था ही। जीएडी को किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी। सो, चुनाव आयोग का हवाला देते हुए ऑल इंडिया सर्विस वालों के लिए डीए वृद्धि का आदेश निकाल दिया। सरकार ने जिन कर्मचारियों को लिए आयोग को लिखा था, वह कर्मचारी वर्ग ताकता रह गया, आज तक उनका आदेश नहीं निकला। ठीक भी है...ऑल इंडिया सर्विस के अफसर हैं...महंगा लाइफस्टाईल...महंगाई भत्ते में उन्हें आगे रहना ही चाहिए।

नाम VVIP पुलिस और...

वीवीआईपी जिले की पुलिस गजबे कर रही है...जशपुर जिले के सन्ना में एक फॉरेस्ट कर्मी दंपति की घर घुसकर विधायक के रिश्तेदार और उसके लोगों ने जमकर पिटाई कर डाली। मगर यह जानते हुए कि पीड़ित दंपति एक बेहद महत्वपूर्ण व्यक्ति के करीबी रिश्तेदार हैं...पहले एफआईआर दर्ज करने में हीलाहवाला करती रही और बाद में अपराध दर्ज हुआ भी तो जमानती। ये वही जशपुर पुलिस है, जो विधानसभा चुनाव के दौरान मामूली बात पर पार्टी प्रत्याशी विष्णुदेव साय के खिलाफ अपराध दर्ज करने में देर नहीं लगाई थी। वीवीआईपी जिले की पुलिस महत्वपूर्ण लोगों के रिश्तेदारों को भी न्याय नहीं दिला पाएगी तो फिर किसके लिए क्या करेगी...इस घटना से समझा जा सकता है। बहरहाल, जशपुर का मजबूत कंवर समाज इस घटना से काफी नाराज है।

मंत्री, सिकरेट्री की जोड़ी

सभी मंत्रियों को मन मुताबिक सिकरेट्री नहीं मिलते। सबसे बढ़ियां वालों को मुख्यमंत्री अपने सचिवालय और विभागों के लिए छांट लेते हैं। उनके बाद कोई मापदंड नहीं होता। सरकार जैसा चाहे, वैसा सिकरेट्री टिकाया जाता है। वैसे सिकरेट्री के मामले में दोनों डिप्टी सीएम की स्थिति ठीक है। अरुण साव के पास कमलप्रीत सिंह और बसव राजू हैं तो विजय शर्मा के पास एसीएस मनोज पिंगुआ और निहारिका बारिक। वित्त और आवास पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी चूकि खुद ब्यूरोक्रेसी से रहे हैं इसलिए आर, संगीता और अंकित आनंद को छांट लिया। बाकी दो मंत्री अपने सिकरेट्री से बहुत खुश नहीं हैं। इनमें से एक की लेडी सिकरेट्री हैं। लखनलाल देवांगन जरूर किस्मती रहे, उन्हें कोरबा कलेक्टर रहे मो0 कैसर हक मिल गए। कैसर कोरबा के काफी पॉपुलर कलेक्टर रहे, तब लखनलाल कटघोरा से विधायक थे। काफी लो प्रोफाइल के लखनलाल लोगों के विभिन्न कामों को लेकर कलेक्टर के पास अक्सर जाते रहते थे। अब लखनलाल मंत्री हैं और कैसर उनके सिकरेट्री।

ऐसे मंत्री भी...

बात मंत्री लखनलाल देवांगन की चली तो बता दें, विष्णुदेव साय कैबिनेट के वे संभवतः पहले मंत्री होंगे, जो रायपुर के सवा तीन लाख वाले मकान में रहते हैं। आप यह पढ़कर चौंकेंगे...मगर यह सच है कि राज्य निर्माण के समय कर्मचारियों के लिए बनाए गए कचना रेलवे क्रॉसिंग के बाद हाउसिंग बोर्ड के 600 वर्गफुट के दो कमरे वाले फ्लैट में वे रहते थे। बुकिंग के दौरान इसकी कीमत सवा लीन लाख रुपए थी। लखनलाल जब भी रायपुर आते, इसी फ्लैट में रुकते थे। मंत्री पद की शपथ के लिए जब उनका लाव लश्कर हाउसिंग बोर्ड के अपार्टमेंट पहुंचा तो आसपास के लोग भौंचक रह गए। शाम होते-होते वहां पुलिस की तैनाती करनी पड़ गई क्योंकि पास पड़ोस के लोग यह देखने पहुंचने लगे कि राज्य का मंत्री इतने छोटे से फ्लैट में कैसे रहता होगा। हालांकि, वे मेयर भी रहे हैं। मगर न तो उस समय उतना बजट होता था और न ही वे उस तरह के लूटपाट वाले नेता हैं...वरना कमाने वाले लहर गिनकर पैसे कमा लेते हैं।

7 और आईएएस

छत्तीसगढ़ को जल्द ही सात और आईएएस मिल जाएंगे। सीएम विष्णुदेव साय ने डीपीसी की फाइल को अनुमोदन दे दी है। चूकि ये फाइल अब बुलेट ट्रेन की रफ्तार से दौड़ रही है, इसलिए समझा जाता है कि अगले महीने के फर्स्ट वीक तक यूपीएससी में डीपीसी कॉल हो जाए। इस समय राप्रसे से आईएएस अवार्ड के सात पोस्ट खाली हैं। इनमें संतोष देवांगन और हीना नेताम पुराने बैच के छूटे हुए हैं। इन दोनों का केस अब क्लियर है, इसलिए इनका नाम लिस्ट में उपर होगा। इसके बाद 2008 बैच में सात अफसर हैं। अश्वनी देवांगन, रेणुका श्रीवास्तव, आशुतोष पाण्डेय, सौम्या चौरसिया, रीता यादव, लोकेश चंद्राकर, आरती वासनिक और प्रकाश सर्वे। इनमें से मेरिट कम सीनियरिटी के आधार पर पांच को आईएएस अवार्ड होगा। मेरिट याने सीआर क होना चाहिए। हालांकि, सीआर ख भी है तो भी यूपीएससी सूक्ष्म परीक्षण करती है कि कहीं किसी विद्धेष से किसी का सीआर खराब तो नहीं किया गया है।

रापुसे का दुर्भाग्य

राज्य प्रशासनिक सेवा वालों को तो दो साल ही लेट हुआ, पुलिस सेवा वाले तो किस्मत के मारे हैं। 2008 बैच के डिप्टी कलेक्टर आईएएस बनने जा रहे मगर पुलिस में अभी 98 बैच को आईपीएस अवार्ड नहीं हुआ है। इस बैच के प्रफुल्ल ठाकुर चार-पांच जिलों की कप्तानी करके कई साल से सीएम सिक्यूरिटी में हैं। इसके बाद भी नॉन आईपीएस बनकर बैठे हैं। दरअसल, पुलिस में दिक्कत यह है कि आईपीएस भिड़-भाड़कर अपना प्रमोशन करा लेते हैं मगर जिन रापुसे अधिकारियों से वे दिन रात काम कराते हैं, उन्हें कोई पूछता नहीं। इसकी एक बड़ी वजह सरकार में रापुसे की फील्डिंग नहीं सही नहीं है। पीएचक्यू का रोल भी इस मामले मे उनके प्रति बहुत अच्छा नहीं रहा। वरना, पुलिस सेवा वाले डिप्टी कलेक्टरों से प्रमोशन में एक दशक पीछे थोड़े होते।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक आईएएस का नाम बताएं, जिसे सरकार किसी की भी हो, पोस्टिंग हमेशा दमदार मिल जाती है?

2. एसपी और आईजी की वीसी में डीजीपी अशोक जुनेजा ने जिस तरह नशे पर कार्रवाइयों को लेकर तेवर दिखाया...क्या उससे पीएचक्यू में होने वाले बदलाव पर संशय नहीं गहराता?


शनिवार, 6 जनवरी 2024

Chhattisgarh tarkash: पुलिस में मेजर सर्जरी

 Chhattisgarh tarkash: तरकश, 7 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

पुलिस में मेजर सर्जरी

विष्णुदेव सरकार की पहली प्रशासनिक सर्जरी की सूबे में बड़ी चर्चा है। सरकार ने सिंगल लिस्ट में 88 अफसरों को बदल डाला। मगर सीएम साहब...इससे भी खराब हालत पोलिसिंग की है। बिहार, यूपी की तरह आए दिन गोलियां चल रही, चाकूबाजी आम हो गई है। प्रदेश की गलियों में नशे की सामग्री धड़ल्ले से बिक रही। राजधानी रायपुर में नशे की हालत में एक युवती ने चाकू से गोदकर युवक की हत्या कर दी। दरअसल, छत्तीसगढ़ में वर्दी का खौफ अब पुरानी बात हो गई। हो भी क्यों न...जिनके उपर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी है, वे अपराधियों और भूमाफियाओं से गलबहिया कर धन-व्यवस्था में लग गए हैं...पुलिस के सिस्टम में अब भूमिकाएं बदल गई हैं...एसपी वसूली अधिकारी हो गए हैं और दरोगा वसूली एजेंट। पहले के जमाने में एसपी का औरा ऐसा होता था कि उसके सामने जाने के नाम से दरोगा की कंपकंपी छुटने लगती थी। किन्तु एसपी जब दरोगा से महीना लेने लगे तो फिर वो एसपी का क्या लिहाज करेगा। सूबा में कुछ ऐसे एसपी भी हैं, जो अपने खास टीआई के साथ रोज शाम को महफिले जमाते हैं। पहले एसपी लोग टीआई से ट्रेन या फ्लाइट की टिकिट, मोबाइल, बच्चों के लिए गिफ्ट जैसी चीजें मंगवा लेते थे। और अब...? सब तो नहीं... अधिकांश एसपी ज्वाईन करते ही दरोगा को बुलाकर थाने का एमाउंट फिक्स कर दे रहे। ऐसे में, सीएम साहब पोलिसिंग में आमूल चूल बदलाव कर कौंवा टांगने जैसा कुछ कीजिए, ताकि वर्दी पर आम आदमी का भरोसा बहाल हो सके।

सीएम साब ये भी...

सीएम विष्णुदेव साय के खिलाफ विधानसभा चुनाव के दौरान कुनकुरी थाना ने अपराध दर्ज करने में कोई देरी नहीं की। सीएम साब...इसका मतलब ये नहीं कि छत्तीसगढ़ की पुलिस एफआईआर दर्ज करने में बड़ी मुस्तैद है। उस समय की बात अलग रही, सो पुलिस अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में गच्चा खा गई। खैर बात बेहद अहम, आपके संज्ञान लेने लायक। आमतौर पर पुलिस सिर्फ इसलिए एफआईआर दर्ज नहीं करती कि उनके जिले का आंकड़ा बढ़ जाएगा। इसका नुकसान यह होता है कि छोटे-मोटे अपराध करते-करते अपराधियों का हौसला बढ़ जाता है और फिर बाद में वे बड़े क्राईम करने लगते हैं। दिल्ली पुलिस के एक सीनियर आईपीएस अफसर का कहना है, हर मामले में अपराध दर्ज होने लगे तो उसे झक मारकर कार्रवाई करनी पड़ेगी और कार्रवाई होगी तो अपराधियों का हौसला टूटेगा। सो, सीएम साहब आपकी सरकार नई है। आप कड़ाई से एफआईआर करने का निर्देश दीजिए...यह छूट देते हुए कि दो-एक साल आकंड़े बढ़ता है, तो बढ़ने दें मगर किसी भी केस में ढिलाई न करें, भले ही वह मोबाइल और पर्स लूट का ही क्यों न हो। मगर बात फिर वहीं...यह संभव तभी है, जब एकाध कौंवा मारकर....।

सिकरेट्री की फौज

2008 बैच के आईएएस अधिकारियों के स्पेशल सिकरेट्री से सिकरेट्री प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में सचिवों की अब फौज खड़ी हो गई है। 1999 बैच के सोनमणि बोरा प्रमुख सचिव प्रमोट हुए हैं। उनके बाद 2000 से लेकर 2008 बैच तक कुल 48 सिकरेट्री इस समय छत्तीसगढ़ में हैं। इनमें से आठ डेपुटेशन पर। फिर भी 40 का फिगर बड़ा होता है। वो भी उस छत्तीसगढ़ जैसे स्टेट में, जहां एक दशक पहले तक सिकरेट्री लेवल पर बड़ा टोटा था। खासकर रमन सिंह की तीसरी पारी के दौरान सचिवों की कमी की वजह से स्पेशल सिकरेट्री को कई महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व सौंपा पड़ा था। हालांकि, प्रमुख सचिव इस समय सिर्फ एक हैं...निहारिका बारिक। मनोज पिंगुआ एक समय तक अकेले पीएस थे, वे भी इस महीने एसीएस हो गए। प्रमुख सचिव की कमी अभी चार-पांच साल बनी रहेगी। जब तक 2005 बैच का पीएस में प्रमोशन नहीं हो जाता, जो कि 2030 से पहले संभव नहीं।

आईजी भी अब पर्याप्त

जो स्थिति आईएएस में सिकरेट्री की रही, कमोवेश वही हालत आईपीएस में आईजी की थी। एक समय तो पांच रेंज के लिए मुश्किल से पांच आईजी होते थे। उस समय के आईजी का बड़ा जलवा होता था क्योंकि सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था। यही वजह है कि लांग कुमेर जैसे आईजी कई साल बस्तर में रह गए। बहरहाल, इस समय आईजी की संख्या नौ हो गई है। अमरेश मिश्रा और धु्रव गुप्ता डेपुटेशन पर हैं। वरना, 13। उपर से 2006 बैच क डीआईजी मयंक श्रीवास्तव और आरएन दास का इसी महीने प्रमोशन होना है। उनके बाद यह संख्या दो और बढ़ जाएगी। हालांकि, मयंक अब जनसंपर्क आयुक्त बन गए हैं। फिर भी संख्या एक दर्जन रहेगी ही।

बिना नाम के बधाई

प्रशासनिक फेरबदल में अगर पोस्टिंग अच्छी मिली हो तो अफसरों को खूब बधाइयां मिलती है। मगर इस दफा विष्णुदेव सरकार ने जब 89 अधिकारियों की लिस्ट निकाली तो उसमें दो कलेक्टरों का नाम नहीं था, उसके बाद भी उन्हें बधाइयों की झड़ी लग गई। कलेक्टर हैं बिलासपुर के अवनीश शरण और रायगढ़ के कार्तिकेय गोयल। दोनों 2009 और 2010 बैच के आईएएस हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान इन दोनों को आयोग ने वहां पोस्ट किया था। बधाई इसलिए इन्हें मिल रही थी कि चुनाव आयोग ने टेंपोरेरी पोस्टिंग की थी। आमतौर पर चुनाव के बाद सरकार फिर नए सिरे से लिस्ट निकालती है। मगर राज्य सरकार ने इन दोनों कलेक्टरों को कंटीन्यू करने का निर्णय लिया। लिहाजा, लिस्ट में उनका नाम होने का सवाल पैदा नहीं होता। लोगों की बधाइयों पर ये दोनों अफसर इस बात को लेकर चुटकी लेते रहे कि लिस्ट में बिना नाम के फिर बधाई क्यों...?

पोस्टिंग की मंडी

89 अफसरों की प्रशासनिक सर्जरी को भले ही एक युवा आईएएस और एक युवा मंत्री ने अंतिम रुप दिया मगर सब कुछ सीएम की नोटिस में रहा। बताते हैं, लिस्ट निकलने में विलंब इसलिए हुआ कि मुख्यमंत्री अफसरों के बारे में कंप्लीट फीडबैक ले रहे थे। एक-एक अफसर के बारे में उन्होंने तीन-तीन, चार-चार लोगों से क्रॉस चेक किया। जनसंपर्क आयुक्त के लिए मयंक श्रीवास्तव और कोरबा कलेक्टर सौरभ कुमार का नाम था। मगर मुख्यमंत्री ने मयंक के नाम पर मुहर लगा दिया। और नया रायपुर चूकि सरकार का प्राइम प्रोजेक्ट है, उसमें सौरभ कुमार को बिठा दिया। सरकार से जुड़े अफसरों का कहना है, पोस्टिंग के लिए एक लाईन का फार्मूला तय किया गया था...पिछली सरकार से जुडे़ अधिकारियों को कुछ दिन के लिए सही...किनारे कर ब्यूरोक्रेसी को संदेश दिया जाए कि अब पोस्टिंग की मंडी नहीं चलने वाली।

मंडल, कल्लूरी और राजू

सुनामी में कई अच्छे और मजबूत घर भी बिखर जाते हैं। उसी तरह 88 आईएएस के प्रशासनिक फेरबदल में ऐसा नहीं कि सभी नॉन पारफर्मिंग अफसरों को ही किनारे किया गया है। ऐसा पहले भी होता रहा है। आरपी मंडल, एसआरपी कल्लूरी और डॉ0 एसके राजू इसके सबसे बढ़ियां उदाहरण हैं। ये तीनों अफसर अजीत जोगी सरकार में बेहद पावरफुल थे, सीएम के करीबी भी। 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान इलेक्शन कमीशन ने इन तीनों की छुट्टी कर दी थी। तब समझा गया कि पांच साल के लिए ये गए। सरकार बनने के बाद मंडल को राजस्व सिकरेट्री बनाया गया, कल्लूरी को बिना विभाग पीएचक्य और राजू को हेल्थ में डिप्टी सिकरेट्री। मंडल और कल्लूरी बिलासपुर के कलेक्टर, एसपी थे और राजू सरगुजा जैसे जिले के कलेक्टर, जब सूरजपुर, बलरामपुर जिला नहीं बना था। आपको जानकर हैरत होगी कि मंडल छह महीने के भीतर सिकरेट्री से रायपुर के कलेक्टर हो गए। कल्लूरी को भले ही बलरामपुर जैसे पुलिस जिले का एसपी बनाया गया मगर वहां उन्होंने नक्सलियों का ऐसा पांव उखाड़ा कि ईनाम स्वरूप उन्हें बस्तर का आईजी बना गया। राजू को साल भर के भीतर पहले कांकेर का कलेक्टर और उसके बाद रायगढ़ की कमान सौंपी गई। यही नहीं, राजू यहां से डेपुटेशन पर गए तो पंजाब में उन्होंन न केवल तीन जिले की कलेक्टरी की बल्कि वहां मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहते पंजाब का चुनाव भी कराया। याने जिस अफसर को चुनाव आयोग ने हटाया, उससे पंजाब का चुनाव कराया। कहने का मतलब कि प्रशासन में कोई चीजे स्थायी नहीं होती। सभी जानते हैं कि जिसका झंडा होता है, उसके अफसर होते हैं। कुछ ब्यूरोक्रेट्स चूक यही करते हैं कि वे सत्ता के पार्ट बन जाते हैं...लिमिट से ज्यादा सरेंडर हो जाते हैं। फिलवक्त, संकेत ऐसे हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद रिजल्ट देने वाले अफसरों की मुख्य धारा में वापसी की जाएगी। क्योंकि, सरकार को आखिरकार रिजल्ट चाहिए। ऐसा पिछली सरकार में भी हुआ था...शुरूआत में सारे डिफेक्टेड आईएएस रमन सरकार को कोस कर बढ़ियां पोस्टिंग पा लिए थे। बाद में इनमें से कुछ को किनारे किया गया, कुछ अपनी बाजीगरी से बच गए।

भाई का बंगला

वित्त और आवास पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी को राजधानी के शंकर नगर स्थित बी5 बंगला मिला है। यह बंगला इसलिए खास है कि पांच बरस पहले तक यह चीफ सिकरेट्री का ईयर मार्क बंगला रहा। पी जाय उम्मेन से लेकर सुनील कुमार, विवेक ढांड और अजय सिंंह तक इस बंगले में रहे। 2018 में जब सरकार बदली तो ब्यूरोक्रेसी को हतप्रभ करते हुए ईयर मार्क बंगले को मंत्री जय सिंह अग्रवाल को आबंटित कर दिया गया। उस बंगले के गेट पर मंत्री का नाम देख वहां से गुजरने वाले नौकरशाहों की आत्मा कलप उठती थी। क्योंकि, चीफ सिकरेट्री सिर्फ प्रशासनिक मुखिया नहीं होता बल्कि एक संस्था होता है...ब्यूरोक्रेट्स का गुरूर। अब किसी का गुरूर छीन जाए तो आप समझ सकते हैं। चलिये, ओपी के इस बंगले में जाने से नौकरशाहों का कलेजा ठंडा हुआ होगा। क्योंकि, भाई ही रहेगा अब इस बंगले में...भले ही वह मंत्री क्यों न बन गया हो। लास्ट में, ओपी को सुझाव...ठीक-ठाक पंडित को बुलाकर बंगले की पूजा-पाठ करवा लें...क्योंकि भांति-भांति की शख्सियतें वहां रही हैं...उनके कुछ अनोखे, शौकीन मिजाज के पूर्वज भी।

कैडर का मान

छत्तीसगढ़ कैडर के 1994 बैच के आईएएस विकास शील एशियाई बैंक के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनाए गए हैं। ब्यूरोक्रेसी में ये बड़ी अहम पोस्टिंग मानी जाती है। वो भी तब, जब उन्होंने इस पद के लिए अप्लाई भी नहीं किया था और उन्हें सलेक्ट कर लिया गया। फिलिपिंस की राजधानी मनीला में एशिआई बैंक का हेडक्वार्टर है। ईडी का वेतन सुनकर भी आप चौंक जाएंगे। विकास शील एसीएस रैंक से करीब छह गुना। महीने का 15 लाख के लगभग। ईडी, आईटी और जेल के झंझावत से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के आईएएस कैडर का इस पोस्टिंग से मान बढ़ा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पीएससी के किस रिटायर पदाधिकारी के साढ़ू भाई ने डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी के सलेक्शन में कैशियर की भूमिका निभाई?

2. लोकसभा चुनाव से पहले लाल बत्ती बांटने की बातें क्यों उड़ाई जा रही है?