शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

तरकश, 27 अक्टूबर

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समझौते की चर्चा

कांग्रेस के भीतरखाने में अजीत जोगी और चरणदास महंत के समझौते की चर्चा सरगर्म है। याद होगा, जीरम हमले के बाद जोगी को जिस तरह हांसिये पर धकेला गया, उससे नाराज होकर उन्होंने बगावत की राह पकड़ ली थी। मगर कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन सीपी जोशी ने महंत और जोगी के लिए फामर्ूला तैयार किया। उसमें कांग्रेस के आने पर चरणदास सीएम, रेणू जोगी डिप्टी सीएम बनेंगे। इसके बाद मरवाही से अमित जोगी की टिकिट पार्टी ने किलयर कर दी। जाहिर है, ऐसी खबरों की पुषिट होती नहीं। मगर महंत और जोगी जिस तरह साथ मिलकर लड़ने की बात कर रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कोर्इ खिचड़ी जरूर पकी है।

अंगूर की बेटी पर नजर

चुनाव आयोग की सख्ती से अबकी चुनाव में पहले जैसी शराब नहीं बंट सकेंगी। आयोग ने इसके लिए पहली बार बकायदा एक स्पेशल आब्जर्बर को तैनात किया है। इसके अलावा सूबे की तीनों शराब फैकिट्रयों में कैमरा लगा दिया गए हैं। आबकारी विभाग ने वहां एक-एक डीओ को बिठा दिया है। यहीं नहीं, इस बार सीमार्इ राज्यों से भी जुगाड़ नहंी हो सकेगा। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे छह राज्यों के 29 जिलों में भी शराबबंदी के लिए उन राज्यों के राज्य निर्वाचन अधिकारियों को लेटर भेजा जा चुका है। याने आंध्रप्रदेश, उडीसा, झारखंड, यूपी, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 29 जिलों में भी चुनाव के 48 घंटे पहले शराब की बिक्री बंद हो जाएगी।

जोगी इज जोगी

अजीत जोगी ने दिखा दिया कि मुषिकल हालात में भी वक्त को कैसे अपने पक्ष में किया जा सकता है। वरना, अक्टूबर के पहले सप्ताह तक यह दावा करने वालों की कमी नहीं थी कि जोगी के दिन अब लद गए………वे पार्टी से बाहर हो रहे हैं…….राहुल गांधी उन्हें नापसंद कर रहे हैं। मगर जोगी की पत्नी और बेटे, दोनों को टिकिट मिल गर्इ। यहीं नहीं, उनके कर्इ समर्थक भी टिकिट पाने में कामयाब हो गए। यह अलग बात है कि अमित को बेलतरा से मौका नहीं मिला। मगर चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाकर कांग्रेस आलाकमान ने जोगी की कसक पूरी कर दी। अब, साजा और पाटन में जोगी की सभा का विरोध करने वाले रविंद्र चौबे और भूपेष बघेल को बयान देना पड़ रहा है, जोगी वरिश्ठ नेता हैं और सभी सीटों पर प्रचार करेंगे। दरअसल, राजनीति की बिसात पर जोगी ने सूझ-बूझ से गोटियां चली। प्रेषर बनाने के लिए बीके हरिप्रसाद को मंच पर सुना दिया तो, राहुल गांधी के बारे में यह कहने से नहीं चूकि कि उम्र के फासले की वजह से राहुल उनकी बातों को नहीं समझ रहे हैं। जोगी ने जुलार्इ और अगस्त में जातीय सम्मेलन और धुंआधार दौरे कर कांग्रेस को न केवल हिला दिया बलिक यह मानने पर मजबूर कर दिया कि छत्तीसगढ़ में उन्हें नजरअंदाज करना आसान नहीं है। इससे पहले, 2003 में विधायकों की खरीद-फरोख्त के केस में जोगी जब सस्पेंड हुए थे, तब भी उन्हें खतम समझा गया था। मगर उन्होंने महासमुंद लोकसभा चुनाव जीतकर वापसी की थी। तभी उनके कटटर विरोधी भी मानते हैं, जोगी के विल पावर का कोर्इ जवाब नहीं है।

लीड का टक्कर

अमित को मारवाही से टिकिट मिलने के बाद जोगी खेमा चुनाव बाद की रणनीति बनाने में जुट गया है। जोगी गुट की कोषिष है, मारवाही में लीड का नया कीर्तिमान बनें। ताकि, अमित को स्थापित करने में आसानी हो। अभी अजीत जोगी नम्बर वन हैं। उन्होंने 42 हजार से अधिक मतों से पिछला चुनाव जीता था। जोगी कैैम्प चाहता है अमित को इससे भी अधिक लीड मिले। लीड के मामले में मारवाही के बाद खरसिया से नंदकुमार पटेल दूसरे और राजनांदगांव से डा0 रमन सिंह तीसरे नम्बर पर थे। पटेल को 32428 और रमन को 32389 वोट मिले थे। याने दूसरे और तीसरे में 39 वोट का अंतर था। बहरहाल, पटेल के निधन के बाद इस सीट पर उनके बेट उमेश पटेल चुनाव लड़ रहे हैं। जाहिर है, सहानुभूति वोटों की वजह से उनकी लीड इस बार बढ़गी। यह देखना दिलचस्प होगा कि लीड में अमित आगे निकलते हैं या उमेश।

पदश्री की प्रतीक्षा

पिछले साल मंत्रालय के अफसर पदश्री और पदमविभूषण के लिए नाम भेजना भूल गए थे, इस बार चुनावी व्यस्तता के चलते नाम नहंी जा सका। जबकि, चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने सूबे से चार नामों को ओके कर दिया था। मगर उसके बाद फाइल आगे नहीं बढ़ सकी। 25 अक्टूबर तक भारत सरकार के पास नाम चला जाना था। सो, पदश्री के दावेदारों को अब अगले साल की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा से इस्तीफा देेने वाली करुणा षुक्ला के साथ सूबे में कितने कार्यकर्ता होंगे?
2. कांकेर में बगावत के पीछे किस भाजपा सांसद की भूमिका है?

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

तरकश, 13 अक्टूबर


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सीएस के लिए अनुष्ठान

टिकिट के लिए यज्ञ, हवन और अनुष्ठान सिर्फ पालीटिशियन नहीं कर रहे। बल्कि, बड़ा ओहदा पाने के लिए आला नौकरशाह भी इसमें पीछे नहीं हैं। खबर है, चीफ सिकरेट्री बनने के लिए एक एडिशनल चीफ सिकरेट्री ने भिलाई में विशेष अनुष्ठान कराया है। उन्हें किसी तांत्रिक ने नवरात्रि में अनुष्ठान कराने की सलाह दी थी। असल में, जब से सीएस के दावेदारों में अजय सिंह और एनके असवाल शामिल हुए हैं, दावेदारों की मुश्किलें बढ़ गई है। विवेक ढांड और डीएस मिश्रा सीनियर तो हैं ही, अजय सिंह भी एप्रोच में कम नहीं हैं। फिर, असवाल भी साढ़े छह साल से होम संभाल रहे हैं। जाहिर है, सरकार का भरोसा तो उन पर है ही। सो, असवाल को भी लोग कमजोर नहीं मान रहे। ऐसे में अनुष्ठान से ही शायद कोई रास्ता निकल आए।

नहीं चली मठ्ठाधीशों की

राहुल गांधी के फार्मूले की वजह से कांग्रेस के कई छत्रप पहले चरण की सीटों पर अपने लोगों को टिकिट नही ंदिला पाए। फूलोदेवी नेताम, शंकर सोढ़ी और शिव नेताम जैसे नेताओं के लिस्ट में नाम न देखकर कांग्रेस नेता भी चकित हैं। अगर मठ्ठाधीशों की चली होती तो राजधानी के एक नेता को जगदलपुर से टिकिट मिल गई होती। राहुल गांधी के बस्तर दौरे का पूरा खर्चा उन्होंने इसी भरोसे पर उठाया था कि जगदलपुर की टिकिट अबकी पक्की है। मगर सब गड़बड़ हो गया। मापदंड सिर्फ यह था कि जीतने वाला होना चाहिए। इसी लिए महेंद्र कर्मा के बेटों के बजाए उनकी पत्नी को टिकिट दी गई। कहा तो यह भी जा रहा है कि सर्वे के साथ ही राहुल ने खुफिया तंत्र से भी प्रत्याशी चयन में मदद ली।

खतरे की घंटी

मोहला मानपुर के विधायक की टिकिट कटने के बाद खराब परफारमेंस वाले कई विधायको की रात की नींद उड़ गई है, तो कांग्रेस की लिस्ट के बाद बस्तर के कई भाजपा विधायकों की खतरे की घंटी बज रही है। कोंडागांव में महिला बाल विकास मंत्री लता उसेंडी के खिलाफ कांग्रेस ने मोहन मरकाम को उतारा है। मरकाम एलआईसी एजेंट हैं, और पिछले दो साल से सायकिल पर घूमकर क्षेत्र में काम कर रहे हैं। सो, भाजपा में यह मानने वालों की कमी नहीं कि कोंडागांव सीट अगर जीतनी है तो भाजपा को कुछ करना पड़ेगा। जगदलपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए शामू कश्यप महार जाति से ताल्लुकात रखते हैं। महार जाति के 45 हजार वोट हैं। और आदिवासी वर्ग में शामिल न करने को लेकर महार जाति के लोग सरकार से खफा हैं। भानुप्रतापपुर से मनोज मंडावी की जीत अभी से तय बताई जाने लगी है। कुल मिलाकर भाजपा को अब रणनीति बदलनी पड़ेगी।

रास्ता साफ

मनोज मंडावी को भानुप्रतातपुर से टिकिट मिलने के बाद अब, अकलतरा से सौरभ सिंह और चंद्रपुर से नोबेल वर्मा को टिकिट मिलना तय हो गया है। सौरभ बसपा से और नोबेल राकंपा से कांग्रेस में आए हैं। राहुल फार्मूले की आड़ में दोनों को टिकिट देने का अजीत जोगी विरोध कर रहे थे। मगर उन्हीं के खेमे के मंडावी को टिकिट देने से सौरभ और नोबेल का रास्ता साफ हो गया है। मंडावी भी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में लौटे हैं। संगठन खेमे के नेताओं ने भी केशकाल नगर पंचायत के खट्टे अनुभवों को देखते मंडावी के रास्ते में रोड़ा अटकाने की कोशिश नहीं की।

सोढ़ी को झटका

चुनाव लड़ने के लिए आईएएस अफसर एसएस सोढ़ी ने वीआरएस लिया था। कांकेर से वे कांग्रेस की टिकिट के लिए आशान्वित थे। उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी। मगर पार्टी ने उन्हें झटका दे दिया। बताते हैं, कांग्रेस ने सर्वे कराया था। उसमें सोढ़ी की रिपोटर््स अनुकूल नहीं थी। अब, सोढ़ी के सामने पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं है। हालांकि, चुनाव लड़ने वाले रिटायर नौकरशाहों में सरजियस मिंज और एसके तिवारी के नाम की भी चर्चा है। मिंज का कुनकुरी से और तिवारी का बेमेतरा से।

युद्धवीर की जिद

चंद्रपुर के विधायक युद्धवीर सिंह जूदेव ने इस बार भी वहीं से किस्मत आजमाने का फैसला किया है। अधिकारिक तौर पर यद्यपि अभी टिकिट का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन उपर से इशारा ओके होने के बाद उन्होंने प्रचार भी प्रारंभ कर दिया है। युद्धवीर इस आधार पर लोगों से दोबारा मौका देने की मांग कर रहे हैं कि पिता के इलाज के सिलसिले में लंबे समय तक बाहर रहे। इसके कारण वे चंद्रपुर पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाए। हालांकि, युद्धवीर सिंह को चंद्रपुर से न लड़ने की सलाह दी गई थी। खुद मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएम हाउस बुलाकर उन्हें रायगढ़ से लडने के फायदे गिनाए थे। रायगढ़ में टिकिट को लेकर दो नेताओं में जंग छिड़ी हुई है। युद्धवीर के वहां जाने से भाजपा को भी राहत मिलती। मगर, युद्धवीर नहीं माने।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    अमिताभ जैन को प्रींसिपल सिकरेट्री के लिए डीपीसी हो जाने के बाद भी उनका आर्डर क्यों नहंी निकाला जा रहा?
2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो राजनांदगांव की अलका मुदलियार के संपर्क में हैं?

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

तरकश, 6 अक्टूबर

तरकश, 6 अक्टूबर

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जो होता है……

कहते हैं, जो होता है, अच्छा होता है। कम-से-कम प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह और एनके असवाल के मामले में तो यह सही उतर रहा है। दोनों को एडिशनल चीफ सिकरेट्री बनाने के लिए 5 अक्टूबर को रायपुर में डीपीसी होनी थी। मगर दो रोज पहले डीओपीटी सिकरेट्री ने उस दिन रायपुर आने से असमर्थता व्यक्त कर दी। आईएएस लाबी को लगा, अब देरी हुई तो मामला लटक जाएगा। सो, उच्च स्तर पर प्रयास हुआ और एक दिन पहले याने चार अक्टूबर को रायपुर के बजाए दिल्ली में डीपीसी करने का फैसला लिया गया। और डीपीसी के घंटे भर बाद चुनावा आयोग ने बिगुल बजा दिया। जाहिर है, कम-से-कम पांच अक्टूबर को डीपीसी कतई नहीं हो पाती। चुनाव आयोग को लेटर भेज कर इजाजत ली जाती। तब डीओपीटी सिकरेट्री की सुविधा के हिसाब से नया डेट तय होता। मान कर चलिए एकाध महीने तो इसमें निकल ही जाता। कहने का आशय यह है, जो होता है…..।

माटी पुत्रों में जंग

अजय सिंह और एनके असवाल के एसीएस बन जाने के बाद अब चीफ सिकरेट्री की कुर्सी पाने की जंग दिलचस्प हो जाएगी। अगले साल फरवरी में सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद स्वभाविक तौर पर इसके पांच दावेदार हो गए हैं। हालांकि, इनमें एक को तो आउट आफ रेस ही मानिये। एक को फिलहाल इस तरह के सपने नहीं आते। बचें तीन में दो माटी पुत्र हैं। और जबर्दस्त रिसोर्सफुल भी। एक रायपुरिया तो दूसरा बिलासपुरिया। एक जरूरत से ज्यादा धाकड़ तो दूसरे की पत्नी भी तगड़ा एप्रोच वाली है। सो, एक और एक मिलकर ग्यारह हो गया तो छोटे मियां भी सिकंदर बन सकते हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह ने आखिर, सीनियरटी में 12 वें नम्बर के राकेश साहनी को सीएस नहीं बना दिया था।

कौंवा मार कर

हर बार ऐसा होता है, निर्वाचन आयोग चुनाव की तिथियों का ऐलान करने के साथ ही दो-एक आईएएस, आईपीएस को झटका देकर कड़े रुख का मैसेज देता है। बिल्कुल, कौंवा मारकर टांगने जैसा। उसके बाद अफसर ऐसा सहमते हैं कि चूं से चांए नही होता। ब्यूरोके्रसी में इस बार भी बडी उत्सुकता है कि चुनाव आयोग इस बार किसे कौंवा बनाता है। याद होगा, 2003 के चुनाव में बीएस अनंत जोगी के हेलीकाप्टर पर सवार हो गए थे। इस चक्कर में वे निबटे थे। ऐसे कई नाम हैं, जिनका मामला गंभीर ना होने के बाद भी वे कौंवा बन गए। हालांकि, बिलासपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह का केस कुछ अलग होगा। उनके निकटतम रिश्तेदार आशीष सिंह को तखतपुर से टिकिट लगभग तय दिख रहा है। सो, इस आधार पर बिलासपुर में नया कलेक्टर पोस्ट हो सकता है। वरना, राम सिंह बनें रहंेगे।

हम हैं राजकुमार…..

चार अक्टूबर को चुनाव का ऐलान होते ही अफसरों ने ठंडी आहें भरी। अब ढाई महीने तक मंत्रियों और नेताओं की खुशामद करने का कोई लफड़ा नहंी। न यस सर कहने की बाध्यता। न जी-हुजूरी। याने एकदम आजाद। मंत्री प्रायवेट गाड़ी में और अफसर ठसके से पीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी में। यहां के हम हैं राजकुमार…..जैसे। राजधानी में पोस्टेड एक युवा आईएएस की सुनिये, परीक्षा खतम होने के बाद जिस तरह राहत महसूस होती है, कुछ वैसा ही कल भी लगा।

कांग्रेस फस्र्ट?

सताधारी पार्टी चुनावी तैयारियों में भले ही प्लस होने का दावा करें मगर कांग्रेस की टिकिट पहले धोषित होगी। पता चला है, कांग्रेस की लिस्ट तैयार है। कल सीईसी में अनुमोदन होगा। इसके बाद सुची कभी भी प्रेस को जारी हो सकती है। सियासी सूत्रों की मानंे तो लिस्ट अबकी कुछ चैंकाने वाली होगी। कई बड़े नेताओं को इसमें झटका लगा सकता है। एक आला नेता के परिजन को पार्टी ने कहीं से भी टिकिट देने से दो टूक इंकार कर दिया है।

महिला महापौर

विधानसभा चुनाव में अबकी सूबे के दोनों बड़े नगर रायपुर और बिलासपुर की महिला महापौरों को कांग्रेस ने मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। सूत्रों का कहना है, दोनों की टिकिट लगभग फायनल है। रायपुर दक्षिण से किरणमयी नायक और बिलासपुर से वाणी राव। हालांकि, बिलासपुर में अमर अग्रवाल को जीताने के लिए कांग्रेस के एक प्रभावी गुट ने कमर कस लिया है। मगर रायपुर में मोहन भैया को किरण से परेशानी हो सकती है। किरण जुझारु नेत्री है। सो, उनके समझौता करना भी मुश्किल है। लगता है, रायपुर दक्षिण में अबकी लोगों को रीयल कुश्ती देखने को मिलेगी, नुरा कुश्ती नहीं।

बस्तर में कांग्रेस

बस्तर को लेकर कांग्रेस लाख दावा कर लें, मगर सीनियर कांग्रेसी भी मानते हैं कि वहां स्थिति बहुत ठीक नहीं है। आलम यह है कि 12 सीटों में से पांच पर टिकिट देने के लिए उसे ठीक-ठीक आदमी नहीं मिल रहे। गुटीय लड़ाइयों की वजह से पार्टी जीरम नक्सली हमले को कैश करने में नाकाम रही। उसके पास बस्तर टाईगर महेंद्र कर्मा अब रहे नहीं। उनके परिजनों में कर्मा जैसी बात नहीं है। उल्टे, 2008 में जीती एकमात्र कोंटा सीट भी अबकी हाथ से निकल जाए, तो आश्चर्य नहीं। कांेटा में अबकी मनीष कुंजाम की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस को भानुप्रतापपुर में मनोज मंडावी की एक सीट मिलना निश्चित लग रहा है। ऐसे में, बस्तर में कांग्रेस के दावे गड़बड़ाते दिख रहे हैं। और इसको लेकर कांग्रेस के सीनियर लीडर भी चिंतित दिख रहे हैं। और तभी रमन सिंह भी इतने कांफिडेंट दिख रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर मुदित कुमार ने प्रोबेशनर आईएएस के मामले में ऐसा क्या किया कि आईएएस बिरादरी उनसे नाराज हो गया है?
2.    बिलासपुर रेंज के आईजी ने पिछले तीन महीने में कुछ अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की और पुलिस मुख्यालय में उसे पलट दिया। इसके पीछे वजह क्या है?