शनिवार, 29 जून 2013

तरकश, 30 जून

नायक युग

तीन महीने लेट से ही सही गिरधारी नायक डीजी बन गए। डीओपीटी ने शुक्र्रवार को उनके प्रपोजल को ओके करके भेजा और राज्य सरकार ने उन्हें प्रमोट कर दिया। उनकी पदास्थापना पुरानी ही रहेगी। डीजी होमगार्ड और डीजी जेल। 83 बैच के आईपीएस अफसर नायक 2019 में रिटायर होंगे। और सब कुछ फेवरेवल रहा तो वे डीजीपी रहने का रिकार्ड बनाएंगे। रामनिवास के अगले साल फरवरी में रिटायर होने के बाद नायक को मौका मिलेगा। और फिर शुरू होगा नायक युग। नायक अलग मिजाज के अफसर हैं। सो, सुनील कुमार सीएस बनने के बाद जिस दौर से अभी सूबे के आईएएस गुजर रहे हैं, समझा जाता है, नायक के समय वही हाल आईपीएस अफसरों का भी होगा। 

हम नहीं सुधरेंगे

परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमले के बाद, कहां कांग्रेसी नेताओं को वाकओवर के हालात नजर आ रहे थे मगर केशकाल नगर पंचायत चुनाव में पार्टी की गुटीय लड़ाई ने सब गुड़ गोबर कर दिया। नंदकुमार पटेल ने दिन-रात मेहनत करके पार्टी में जान फूंकी थी, उनके दिवंगत होते ही फिर वह दो साल पहले वाली स्थिति में पहुंच गई है। पार्टी स्पष्ट तौर पर दो फाड़ में बंट गई है। ठीक वही हालात  हैं,, जो 2008 से 10 के बीच थे। वैसे, अबकी मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने का काम संगठन खेमा ने ही किया। जीतने वाले प्रत्याशी की टिकिट सिर्फ इस आधार पर काट दी गई कि वे विरोधी खेमे से जुड़ी थीं। और, यह पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला फैसला साबित हुआ। संगठन ने जानबूझकर विरोधियों को हीरो बनने का मौका दिया। वरना, नगर पंचायत चुनाव की कोई खास अहमियत होती नहीं। विरोधी खेमे का आदमी नगर पंचायत अध्यक्ष बन भी जाता तो संगठन खेमे की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। पर सिपहसालारों ने गलत निर्णय करवा दिया। बहरहाल, केशकाल में शह-मात का जो खेल हुआ, उससे कांग्रेस के कार्यकर्ता हताश हो गए हैं। जरा उनकी सुनिये, पार्टी का अब कुछ नहीं हो सकता, रमन सिंह हैट्रिक बनाएंगे।

खिले चेहरे

दरभा नक्सली हमले के बाद शुक्रवार को हुई कैबिनेट में पहली बार सरकार और उसके मंत्रियों के चेहरे खिले दिखे। बैठक में ठहाके भी लगे। कारण केशकाल और बागबाहरा नगर पंचायत चुनाव था। दरभा के बाद भी बागबाहरा भाजपा के पाले में गया तो केशकाल में पार्टी दूसरे नम्बर पर रही। कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। केशकाल में भाजपा तो दर्शक मुद्रा में थी। उसकी दिलचस्पी सिर्फ इस बात में थी कि कांग्रेस की गुटीय लड़ाई क्या रंग दिखाती है। केशकाल में उसे 2013 चुनाव का ट्रेलर दिखा। सियासी प्रेक्षकों की मानें तो जो केशकाल में हुआ, वही विधानसभा चुनाव में होना है। कांग्रेस के दोनों खेमे में कटुता इतनी बढ़ गई है कि उनके एक होने की रंच मात्र भी संभावना नहीं बची है। पटेल जरूर इसमें कामयाब हुए थे, मगर वे असमय चले गए। विरोधी खेमे को टक्कर देने का माद्दा एक वीसी में था। वे रहे नहीं। दोनों नेताओं के नहीं रहने से संगठन खेमा कमजोर हो गया है। इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को मिलेगा ही। 

लटकी तलवार

सरकार के पक्ष में जबलपुर कैट का फैसला आने के बाद प्रींसिपल सिकरेट्री केडीपी राव पर कार्रवाई की तलवार लटक गई है। कभी भी उनके खिलाफ आदेश हो सकता है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में केवियेट लगा रखा है। इसलिए, सरकार का पक्ष सुने बगैर हाईकोर्ट से उन्हें स्टे भी नहीं मिल पाएगा। अब, सरकार के सामने कार्रवाई को लेकर कोई बाध्यता नहीं है। कार्रवाई भी बड़ी होगी। हालांकि, राव इससे विचलित नहीं हैं। उनके करीबी सूत्रों की मानें तो वे हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।  

संविदा में सविदा

मध्यप्रदेश के समय मंडी बोर्ड और एमपी एग्रो याने बीज विकास निगम में प्रींसिपल सिकरेट्री लेवल के आईएएस पोस्टेड रहे। विवेक अग्रवाल, एमपी वशिष्ठ, एसके सूद और गोपाल रेड्डी जैसे। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद किसानों से जुड़े इन अहम विभागों में कभी भी ढंग की पोस्टिंग नहीं हुई। अब तो और बुरा हाल है। एक रिटायर एडिशनल डायरेक्टर को संविदा पर संविदा मिल रहा है। जरा गौर कीजिए, मंडी बोर्ड से रिटायर होने के बाद एएन मिश्रा को इस साल सरकार ने अपर संचालक के पद पर संविदा में पोस्टिंग दी थी। बाद में मंडी बोर्ड एमडी का भी चार्ज मिल गया। और अब, संविदा मंे बीज विकास निगम के एमडी भी बन गए हैं। याने आदमी एक, वो भी संविदा पर, और पोस्टिंग तीन। ये चमत्कार छत्तीसगढ़ में ही संभव है। इसके पीछे असल वजह यह है कि आमतौर पर आईएएस सीमा से अधिक सुनते नहीं। विभागीय और खासकर संविदा वाले को जैसा चाहे वैसा झूका लो। ऐसे में, एक को तीन-तीन चार्ज मिल जाए, क्या फर्क पड़ता है।

रियल मैनेजमेंट गुरू

सिकरेट्री टू सीएम एवं सूबे के ताकतवर अफसर अमन सिंह अब मैनेजमेंट गुरू बनते जा रहे हैं। बंेगलोर, अहमदाबाद जैसे देश के रिनाउंड आईआईएम में वे कई साल से लेक्चर दे रहे हैं, और अब दूसरे कई आईआईएम से उनके पास आफर आ रहे हैं। इंदौर आईआईटी के बोर्ड आफ डायरेक्टर में पहले से हैं। रायपुर आईआईएम में सेशन ओपनिंग लेक्चर उन्हीं का होता है। ठीक भी है, अमन सिंह से बढि़यां मैनेजमेंट का गुर भला कौन दे सकता है। देश के बड़े-बड़े मैनेजमेंट गुरूओं का ज्ञान तो किताबी है। अमन तो साढ़े नौ साल से सरकार के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं। जाहिर है, उनके मैनेजमेंट के फंडे व्यवहारिक होंगे।  

असर प्रिया का

पांच महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी प्रचार-प्रसार के लिए सिर्फ प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर निर्भर नहीं रहेगी। सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ सोशल मीडिया में भी मुहिम छेड़ी जाएगी। इसके लिए तैयारियां शुरू हो गई है। कांग्रेस के मीडिया सेल की प्रभारी सचिव प्रिया दत्ता से टिप्स मिलने के बाद मीडिया सेल रिचार्ज हो गया है। प्रिया के टिप्स का असर यह हुआ कि मीटिंग के पांच घंटे बाद शैलेष नीतिन त्रिवेदी फेसबुक पर थे। उन्होंने भाजपा महासचिव जगतप्रकाश नड्डा को जमकर निशाने पर लिया। शैलेष आमतौर पर फेसबुक पर कम आते हैं। मगर टिप्स प्रिया की थी।      

अंत में दो सवाल आपसे

0 किस जिले के कप्तान किराये में गाड़ी चलाने का भी काम करते हैं?

0 केशकाल नगर पंचायत प्रत्याशी को नक्सलियों का समर्थन था, यह कहकर चरणदास महंत आखिर क्या इशारा करना चाह रहे हैं?

तरकश, 23 जून

वन प्वाइंट फार्मूला


कांग्रेस नेता अगर यह सोच रहे होंगे कि बड़े नेताओं की परिक्रमा या गुटीय समीकरण की बदौलत अबकी विधानसभा की टिकिट हासिल कर लेंगे, तो यह उनका भ्रम हो सकता है। कांग्रेस आलाकमान ने इसके लिए सिंगल फार्मूला तय किया है। वह यह कि सर्वे में जिन नेताओं के नाम आएंगे, उन्हीं में से प्रत्याशी तय किए जाएंगे। याने सर्वे में नाम आना अनिवार्य होगा। सर्वे के लिए जल्द ही दिल्ली से टीम यहां आने वाली है। बताते हैं, सर्वे की रिपोर्ट पार्टी के पर्यवेक्षकों को सौंपी जाएगी, जो गोपनीय रहेगी। पीसीसी के आला पदाधिकारियों को भी तभी पता चलेगा, जब टिकिट वितरण की मीटिंग होगी। मीटिंग में सर्वे में आए नाम रखे जाएंगे और फिर सबकी सहमति से जीतने वाले प्रत्याशी तय किए जाएंगे।

कट एन पेस्ट


दरभा नक्सली हमले के बाद बस्तर में बिलासपुर की 2011 की टीम पहुंच गई है। तब बिलासपुर में अजय यादव एसपी थे और अरुणदेव गौतम आईजी। आरपी जैन कमिश्नर थे। तीनों जगदलपुर पहुंच गए हैं। हालांकि, उस समय बिलासपुर के कलेक्टर रहे सोनमणि बोरा का नाम भी जगदलपुर के लिए चला था। मगर ऐन वक्त अंकित आनंद को बस्तर की कमान सौंप दी गई। वरना, बस्तर के एसपी, कलेक्टर से लेकर आईजी, कमिश्नर, सभी बिलासपुरी होते। ऐसे में इस पर भला चुटकी क्यों न ली जाए। कहा जा रहा है, सरकार ने मगजमारी करने के बजाए पुराना पोस्टिंग चार्ट निकालकर कट एंड पेस्ट कर दिया।

तीन ओवर और...


डीजीपी रामनिवास की हालत उसी तरह की हो गई है, जब तीन ओवर में 20 रन का टारगेट होने पर कप्तान की हो जाती है। कुल जमा 13 महीने टाईम मिला। उसमें एक महीना बधाई और शुभकामनाओं में निकल गया। 15 दिन न्यू ईयर में। डेढ़ महीना बजट सत्र में गया। महीना भर दरभा मंे निकल गया। और इसके बाद चुनावी माहौल शुरू हो जाएगा। नई सरकार की ताजपोशी होने के बाद चलाचली की बेला आ जाएगी। फरवरी में रिटायरमेंट है। ऐसे में क्या करें। समय से पहले कुछ मिलता नहीं। वरना, कोशिश तो की थी। अलबत्ता, 16 महीना काका ने यूं ही निकाल दिया। ओपी राठौर की मौत के बाद से सूबे की पोलिसिंग जो पटरी से उतरी है, किसी को समझ में नहीं आ रहा कि उसे लाइन पर लाई कैसे जाए। रामनिवास को कुछ कर दिखाने का समय मिला नहीं। राहत की बात यह है कि रामनिवास के बाद गिरधारी नायक का नम्बर है। और उनके पास पांच साल से अधिक समय रहेगा। 

शर्मनाक


कैंसर का भय दिखाकर युवा महिलाओं की बच्चेदानी निकालने वाले डाक्टरों के खिलाफ कहां अपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए था, उल्टे लीपापोती कर दी गई। 9 में से मात्र 4 के खिलाफ कार्रवाई हुई। हाईपावर कमेटी ने पांच डाक्टरों को चतुराई के साथ बचा लिया। उनके खिलाफ जांच की कडि़यों को इतना कमजोर कर दिया गया है कि सरकार चाह कर भी उन डाक्टरों का कुछ नहीं कर सकती। पता चला है, जांच के दौरान एक पालीटिशियन का फोन आया था। तब इशारा सिर्फ एक डाक्टर के लिए था। मगर जांच कमेटी ने बहती गंगा में हाथ धोते हुए पांच को बड़ी सफाई से बचा लिया। इसमें बडे़ खेल की भी खबर आ रही है। दिलचस्प यह है कि घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने ही 9 डाक्टरों को प्रथम दृष्टतया दोषी पाया था और इसके बाद उनके रजिस्ट्रेशन सस्पेंड किए गए थे।

मुश्किलें


दरभा नक्सली हमले के शिकार हुए बस्तर के निलंबित एसपी मयंक श्रीवास्तव की मुश्किलें और बढ़ सकती है। बताते हैं, हमले की जांच कर रहे जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग ने मयंक से प्रश्नावली भेजकर जानकारी मांगी थी। उसमें एक बिंदू यह भी था कि वारदात से पहले उन्हें कोई इंटेलिजेंस नोट्स मिले थे क्या। मयंक ने जवाब दिया है कि उन्हें खुफिया विभाग से इस तरह के कोई नोट्स नहीं मिले थे। जबकि, खुफिया विभाग का कहना था कि घटना के पहले नक्सली हलचल के बारे में एसपी को आगाह किया गया था। ऐसे में जाहिर है, मयंक की परेशानियां तो बढ़ेगी ही।

सुनिल कुमार चैक


आमतौर पर जीते जी किसी के नाम पर सड़क या चैक-चैराहा का नाम नहीं रखा जाता। मगर कई बार, आसपास कोई नामी शख्सियत रहती हो, तो सड़क या चैक का नामकरण स्वयमेव हो जाता है। राजधानी रायपुर में कुछ ऐसा ही हो रहा है। 25 साल में पहली बार, रायपुर शहर के बीचोबीच बस स्टैंड से लेकर एमएमआई अस्पताल तक कोई सड़क बन रही है। शंकर नगर रोड को जिस जगह पर यह फोर लेन सड़क क्रास कर रही है, उसके ठीक बगल में चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार का सरकारी बंगला है। सो, लोग उसे सुनिल कुमार चैक कहने लगे हैं। खास कर पीडब्लूडी के इंजीनियर। हालांकि, इसके पीछे उनका खौफ भी एक वजह हो सकती है। आखिर, उनके कार्यकाल में सबसे अधिक इंजीनियर सस्पेंड जो हुए हैं। चीफ इंजीनियर से लेकर नीचे तक। 

अंत में दो सवाल आपसे

1.     स्वरुपचंद जैन को हराकर बृजमोहन अग्रवाल पहली बार रायपुर के विधायक बने थे। तब किस कांग्रेस नेता ने उनकी खूब मदद की थी?
2.     30 जून को पैकरा के रिटायर होने के बाद सरगुजा के कमिश्नर केआर पिस्दा बनेंगे या बीएस अनंत?

शनिवार, 15 जून 2013

तरकश, 16 जून

थर्ड फ्रंट 

छत्तीसगढ में अभी तक दो दलीय संसदीय व्यवस्था रही है। 2003 के चुनाव में एनसीपी ने विद्या भैया की वजह से जरूर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी मगर चुनाव बाद वह भी खतम हो गई। बसपा भी यहां दो-तीन सीट से उपर नहीं जा पाई। मगर अब, सूबे में कुछ इस तरह के राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं कि इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में तीसरी पार्टी भी मजबूती के साथ मैदान में आ जाए, तो अचरज नहीं। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता को पार्टी जिस तरह से किनारा कर रही है कि उससे सियासी प्रेक्षकों को नहीं लगता कि अब ज्यादा दिन तक वे पार्टी में रह पाएंगे। हालांकि, खुद से होकर वे कांग्रेस नहीं छोड़ने वाले। उनकी कोशिश होगी कि पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करें। ताकि, उसकी सहानुभूति मिल सकें। असल में, नेताजी ने हमेशा फ्रंट पर रहकर राजनीति की है। बैकफुट पर रहना उन्हें गवारा नहीं। फिर, साथ में फौज-फटाके भी हैं। महत्वकांक्षाएं भी कम नहीं है। सो, सीटों का गुणा-भाग शुरू हो गया है। साब की कोशिश रहेगी कि पहली बार में कम-से-कम पांच सीट आ जाए। इतने से भी काम बन जाएगा। दोनों ही पार्टियां सरकार बनाने के लिए उनसे मोल-तोल करने पर मजबूर होगी। 

सीएस बड़ा या....

छोटे राज्य होने की वजह से अदने अफसर भी इस कदर पावरफुल हो गए हैं कि चीफ सिकरेट्री के निर्देश पर अमल नहीं होने दे रहे हैं। 16 अप्रैल को कलेक्टर्स की वीडियोकांफ्रेंसिंग में नए जिलों के कलेक्टरों ने मुख्यमंत्री से डीएफओ की पोस्टिंग न होने की शिकायत की थी। इस पर चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार बेहद नाराज हुए थे। उन्होंने वन विभाग के अफसरों को तत्काल नए जिलों में डीएफओं की तैनाती करने के निर्देश दिए थे। आनन-फानन में वन विभाग ने तीन डीएफओ की पोस्टिंग कर दी, मगर इसके बाद उनके हाथ कांप रहे हैं। नौ नए जिले में सबसे बड़ा और मलाईदार डिवीजन गरियाबंद है। एक एसडीओ वहां का प्रभारी डीएफओ है। सरकार चाह कर भी वहां डीएफओ पोस्ट नहीं कर पा रही है। यही नहीं, सरकार ने हड़बडी में जिन तीन नए जिले में डीएफओ पोस्ट किया है, उन्हें न तो डीडीओ पावर दिए हैं और ना ही आफिस और स्टाफ। समझा जा सकता है, जंगल महकमे में क्या चल रहा है।   

कार्रवाई के पीछे

 मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एन बैजेंद्र कुमार की वजह से पुलिस ने न्यू स्वागत विहार के मामले में बिल्डर संजय बाजपेयी के खिलाफ न केवल अपराध पंजीबद्ध करने में तेजी दिखाई बल्कि, उनकी गिरफ्तारी की कोशिशें भी शुरू कर दी थी। वरना, इस तरह के केसेज में पुलिस का रवैया ढाक के तीन पात वाला ही रहता है। इसकी एक बानगी देखिए, राज्य बनने के बाद पहली बार पिछले साल राज्य सरकार ने एक्जीक्यूटिव इंजीनियर जैसे अफसर के खिलाफ चार सौ बीसी का प्रकरण दर्ज कराया था। केस था, बिलासपुर के पीएचई अफसरों द्वारा 15 करोड़ रुपए गबन का। इसके लिए पीएचई मिनिस्टर केदार कश्यप ने नोटशीट में ईई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हरी झंडी दी थी। पुलिस ने बड़ी मुश्किल के बाद रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, मगर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। अलबत्ता, पुलिस ने मामले को क्लोज करने की तैयारी प्रारंभ कर दी है।

पुलिसिया एरियर्स

 गवर्नमेंट एवं पब्लिक सेक्टर में वेतन या डीए का एरियर्स तो आपने सुना होगा, मगर पुलिसिया एरियर्स के बारे मंे शायद नहीं। राज्य के एक जिले के कप्तान एक कंपनी से कारोबार चलाने के लिए महीने का दो लाख रुपए मांग रहे हैं, साथ ही फरवरी में उनके ज्वाईन करने से लेकर जून तक के पांच महीने का एरियर्स भी। याने अलग से 10 लाख। राज्य की पोलिसिंग कैसी चल रही है, अंदाज लगाने के लिए यह काफी है। अधिकांश जिलों में यही सब चल रहा है। ढूंढ-ढूंढकर उगाही की जा रही है। कप्तानांे का पोलिसिंग से वास्ता नहीं रह गया है। प्रभावशाली लोगों का एकाध काम करके खुश कर दो और उसके बाद सिर्फ पैसा...पैसा और पैसा। ऐसे में, इस साल विधानसभा चुनाव में कानून-व्यवस्था भला मुद्दा कैसे नहीं बनेगी।

राहत

 नसबंदी का आपरेशन करने वाले डाक्टरों को राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम के फैसले से राहत मिली होगी। मुरादाबाद के एक केस में राष्ट्रीय फोरम ने राज्य उपभोक्ता फोरम के फैसले को उलटते हुए कहा है कि नसबंदी के आपरेशन में 100 फीसदी सफलता की गारंटी नहीं होती। और फिर गर्भ ठहरने की जानकारी मिली तो उसे एबार्ड क्यों नहीं कराया गया। इसलिए डाक्टर को दंडित नहीं किया जा सकता और ना ही मुआवजा बनता है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिला उपभोक्ता फोरम में ऐसे दो दर्जन से अधिक केस चल रहे हैं, जिसमें नसबंदी के आपरेशन के बाद भी बच्चा हो गया। और पीडि़तों ने डाक्टरों के खिलाफ केस दायर किया है।

अंत में दो सवाल आपसे

 1.    एडीजी जेल गिरधारी नायक को डीजी प्रमोट करने के लिए डीपीसी क्यों नहीं हो पा रही है?
2.    किस आईपीएस अफसर की पत्नी दरभा नक्सली हमले पर प्रेस कांफ्रेंस करने की तैयारी कर रही हैं?
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शनिवार, 8 जून 2013

तरकश, 9 जून

सलवा-जुडूम

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बस्तर में भले ही सलवा-जुडूम बंद हो गया मगर आईएएस अफसरों के बीच इंटरनेटी सलवा-जुडूम चालू हो गया है। और इसमें खूब ज्ञान बघारे जा रहे हैं और भड़ास भी। दरअसल, छत्तीसगढ से जुड़े आईएएस अफसरों ने दरभा हमले के बाद बस्तर को लेकर पर्सनल मेल ग्रुप  बनाया है। इनमें रिटायर्ड आईएएस से लेकर प्रोबेशनर तक शमिल हैं। इसका इतना नशा हो गया है कि एक सीनियर आईएएस रात के तीन-तीन बजे तक नेट पर बैठ रहे है। सिंगापुर में छुट्टियां मना रही आईएएस रिचा शर्मा भी वहीं से कमेंट दे रही हैं कि बस्तर में विकास के लिए क्या-क्या नहीं हुआ। दिलचस्प यह कि रिचा पिछले 10 साल से छत्तीसगढ़ से बाहर हैं। राज्य के एडिशनल चीफ सिकरेट्री डीएस मिश्रा और सीके खेतान के बीच तो नेट पर जंग के हालात बनते जा रहे हैं। खेतान डेपुटेशन पर दिल्ली में हैं। उन्होंने बस्तर में हुए विकास पर कमेंट करते हुए उसे कंट्रोवर्सी डेवलपमेंट लिख दिया। इससे नाराज होकर मिश्रा ने खेतान को एक के बाद एक कई मेल कर डाला। अंत में यह भी कि मैं आपको हर्ट नहीं करना चाहता। खेतान ने जवाब दिया, ये तो एक बहस है, विचारों का आदान-प्रदान है, इसमें हर्ट की बात कहां से आ गई। एक प्रोबेशनर आईएएस की सुनिये, सीनियर अफसरों के सलवा-जुडूम का हमलोग खूब आनंद ले रहे हैं। 

तू डाल-डाल.....

सरकार के साथ लड़ाई में प्रींसिपल सिकरेट्री केडीपी राव जिस तरह से भारी पड़ रहे हैं, उससे आईएएस अफसर अब महसूस कर रहे हैं कि ला की पढ़ाई अब जरूरी हो गई है। राव ने सिकरेट्री रहने के दौरान 2010 में एलएलबी किया था। वो अब उनके ही काम आ रहा है। 31 मई को राव को कैट से राहत न मिलने पर राज्य सरकार को लगा था कि वे अब स्टे के लिए बिलासपुर हाईकोर्ट जाएंगे। सो, वहां केवियट लगाया था। मगर राव ने सरकार को गच्चा दे दिया। कैट जबलपुर में है, इसलिए उन्होंने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कैट के फैसले को चुनौती दे दी। और उन्हें राहत भी मिल गई। हाईकोर्ट ने कैट को मामले का जल्द निबटारा करने के साथ ही, तब तक सरकार को राव के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने के लिए कहा है। जबकि, हाईकोर्ट में केवियट लगाने के बाद सरकार बेफिकर थी कि अब राव को स्टे नहीं मिलेगा। अब, सरकार के समक्ष संकट पैदा हो गया है कि केडीपी से किस तरह निबटा जाए।

बड़ा सवाल

केडीपी राव के इंकार कर दिए जाने के बाद बिलासपुर कमिश्नर का पोस्ट 40 दिनों से खाली है। कैट में 31 जुलाई को अगली सुनवाई है। कैट कितना भी जल्दी करेगा, तो भी दो-तीन महीने लग जाएगा। तब तक अचार संहित लग जाएगी। ऐसे में, सरकार को किसी दूसरे आईएएस को बिलासपुर कमिश्नर पोस्ट करना पड़ेगा। अलबत्ता, कमिश्नर लेवल के अफसरों की भारी कमी है। डायरेक्ट आईएएस में कोई कमिश्नर बनने लायक नहीं है। कमिश्नर बोले तो, जो कहंी चल नहीं पा रहा हो। इन दिनों प्रमोटी आईएएस को ही डिवीजन में पोस्ट किया जा रहा है। उधर, सरगुजा कमिश्नर एमएस पैकरा भी इसी महीने रिटायर हो रहे हैं। सो, संकट और गहराएगा। प्रमोटी आईएएस में केआर पिस्दा और बीएस अनंत सिकरेट्री हैं। अनंत रायपुर से बाहर पोस्टिंग के इच्छुक नहीं हैं। पिस्दा को सरगुजा भेजने की खबर है। ऐसे में सरकार के सामने बड़ा सवाल है कि बिलासपुर किसे भेजा जाए। 

सिंहों के सिंह

सिंहों के साथ काम करने की वजह से पीएस टू सीएम बैजेंद्र कुमार का उनके मित्रों ने सरनेम ही बदल दिया है। मजाक में ही सही, उन्हें बैजेंद्र सिंह कहा करते हैं। जाहिर है, दिग्विजय सिंह, अर्जुन सिंह के बाद अब वे रमन सिंह के साथ काम कर रहे हैं। सो, डेसिंग के मामले में भी वे सिंह सरीखे ही हो गए है। मंत्रालय के एकमात्र आईएएस होंगे, जो किसी से हेठा नहीं खाते और मुंह पर ना बोलने का साहस रखते हैं। इसीलिए, सीएम भी उन्हें पसंद करते हैं। और अब, दरभा हमले के बाद ब्यूरोक्रेसी में उन्हें विबियन रिचर्ड कहा जाने लगा है। विब ने सही समय पर क्र्रिकेट से सन्यास ले लिया था। उसी तरह छह साल से पब्लिक रिलेशंस संभाल रहे बैजेंद्र ने अप्रैल में सीएम से बोलकर जनसंपर्क को बाय-बाय कर दिया था। अगर दो महीने और इस पद पर रह गए होते तो सोचिए क्या होता। पुलिस ने उन्हें शून्य पर ला दिया होता। दरभा हमले के बाद सरकार की छबि को पटरी पर लाने के लिए सिकरेट्री पीआर अमन सिंह को आखिर, कौन-कौन से जतन करने पड़ रहे हैं। हमले की रात चार बजे तक वे मीडिया को अपडेट देते रहे। उनका आखिरी एसएमएस विद्याचरण को मेदांता के लिए एयर एंबुलेंस से उड़ान भरने का था।

वल्र्ड हेरिटेज

सिरपुर की स्मृतियों का छत्तीसगढ़ में भले ही कोई मोल न हो, मगर दलाई लामा को वहां खुदाई में निकली बौद्ध की निशानियां इतना प्रभावित किया कि जनवरी में वे तीन दिन के दौरे पर फिर छत्तीसगढ़ आएंगे। उनके दौरे की तैयारियां शुरू हो गई है। तीनों दिन वे सिरपुर में ही कैम्प करेंगे। जाहिर है, वल्र्ड के मैप पर सिरपुर आ जाएगा। मार्च में दलाई लामा के आधा घंटे के विजिट के बाद गूगल पर सिरपुर का सर्च बढ़ गया है। हालांकि, दलाई लामा को सिरपुर लाने का लाभ टूरिज्म बोर्ड के एमडी संतोष मिश्रा का नम्बर बढ़ गया। तमिलनाडू से डेपुटेशन पर आए मिश्रा को सरकार ने फिलहाल टूरिज्म बोर्ड में बनाए रखने का फैसला किया है। वरना, राजनीतिक दबावों की वजह से उनको हटाने की चर्चा चल पड़ी थी। 

बुरी खबर

कैडर रिव्यू के बाद प्रमोशन के सपने देख रहे आईएफएस अफसरों को यह खबर परेशान कर सकता है कि केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने उनके प्रपोजल को मानने से इंकार कर दिया है। काफी विरोध के बाद भी राज्य सरकार ने कैडर रिव्यू का प्रस्ताव दिल्ली भेजा था। मगर वहां अड़ंगा लग गया है। बताते हैं, पीसीसीएफ धीरेंद्र मिश्रा को डीओपीटी के एक अफसर ने दो टू कह दिया कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के लिए इतने बड़े सेटअप की कोई जरूरत नहीं है। इससे पहले, आईएफएस एसोसियेशन जब चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार से इस मामले में मिलने गया था तो उन्होंने कड़ी टिप्पणी की थी, आपलोग पद बड़ा और काम छोटा करना चाहते हैं। असल में, आईएफएस एसोसियेशन सर्किल में सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट करना चाहता है। कैडर रिव्यू में मेन प्वाइंट यही था।      

अंत में दो सवाल आपसे

1.    दिग्विजय सिंह ने कहा है, वे गुटबाजी कम करने छत्तीसगढ़ आए थे, इससे आप कितना सहमत हैं?
2.    एक ऐसे आईएएस का नाम बताइये, जो किसानों के पैसे से आला अफसरों को ब्लैकबेरी मोबाइल बांट दिया?

शनिवार, 1 जून 2013

तरकश, 2 जून

पैसा इतना और काम....

खुफिया पुलिस बढि़यां से काम करें, इसलिए रमन सरकार ने गोपनीय सूचनाओं की राशि बढ़ाकर साढ़े छह करोड़ कर दी मगर वह काम किस तरह कर रही है, दरभा हमले में इसकी पोल खुल गई। इससे कम राशि में आंध्रप्रदेश ने नक्सलियों का सफाया कर दिया। बस्तर में कोई घटना होती है, तो आंध्र को पहले खबर मिलती है, अपने को बाद में। आंध्र के मुखबिर बस्तर में जगह-जगह फैले हुए हैं। मगर जरा छत्तीसगढ़ का हाल देखिए, कांग्रेस काफिले पर हमले के दो दिन पहले से दरभा इलाके में नक्सलियों का मूवमेंट था। मगर खुफिया पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लग सकी। आपको बता दें, गोपनीय सेवा राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं होता और ना ही आडिट। सूचना देने वालों को पुलिस अपने हिसाब से भुगतान करती है। छत्तीसगढ़ जब बना था, तब इसका बजट मात्र 5 लाख रुपए था। 2005 में सलवा-जुडूम प्रारंभ हुआ, तब तक यह बढ़कर 40 लाख पहुंचा था। और अब ये बढ़कर साढ़े छह करोड़ हो गया है। याने राज्य बनने के बाद इसमें 130 फीसदी का इजाफा हुआ है। और इसी हिसाब से नक्सली हिंसा भी बढ़ी है। 

होइहे सोई जो....

डीजीपी की कुर्सी संभालने के बाद रामनिवास ने आखिर क्या नहीं किया था। अवधूत शिवानंद महाराज ने रायपुर आकर य़ज्ञ किया। अभिषेक का जल पुलिस मुख्यालय में छिड़का गया। अवधूत बाबा खुद डीजीपी के कमरे में गए। वास्तु के हिसाब से डीजीपी के चेम्बर का दरवाजा से लेकर पीए रुम तक का नक्शा बदला गया। मगर कुछ काम नहीं आया। नक्सल इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना छत्तीसगढ़ में हो गई। पूरा देश हिल गया। ट्रेन को हाईजैक कर कुख्यात अपराधी को भगा ले जाने की वारदात भी छत्तीसगढ़ में ही हुई। इस मामले में पूर्व डीजीपी अनिल नवानी किस्मती रहे। उनके 17 महीने के कार्यकाल में कोई बड़ी घटना नहीं हुई। पीएचक्यू के लोग अब काका को याद कर रहे हैं। 

दीया तले अंधेरा

राज्य की लालफीताशाही से पुलिस के आला अधिकारी भी नहीं बच पा रहे। आठ महीने बाद डीजीपी की कुर्सी संभालने वाले गिरधारी नायक भी इससे जूझ रहे हैं। नायक डीजी के लिए 30 साल की सेवा की अर्हता पूरी कर लिए हैं और संतकुमार पासवान के रिटायरमेंट के बाद डीजी की एक पोस्ट भी खाली है। इसके बाद भी उन्हें दो महीने से झुलाया जा रहा है। जबकि, आईएएस का प्रमोशन टाईम से दो-चार महीने पहले हो जाता है। टाईम से पहले नहीं हुआ तो उनके लिए यह प्रेस्टिज इश्यू बन जाता है। खैर, नायक तो एक बानगी हैं। ऐसे ढेरों केस हैं। ऐसे में पुलिस नक्सलियों से किस उत्साह से लडेंगी, समझा जा सकता है।

अलग-थलग

दरभा नक्सली हमले के बाद सबसे बड़ा खतरा बस्तर का अलग-थलग पड़ने का दिख रहा है। डेढ़ दशक में 2 हजार से अधिक नागरिकों और सुरक्षा बलों को मारने पर भी माओवादी आम लोगों में भय पैदा करने में कामयाब नहीं हो पाए थे। लोगों में धारणा थी कि माओवादी आम आदमी और जनप्रतिनिधियों को आमतौर पर निशाना नहीं बनाते। मगर दरभा के बाद यह धारणा टूट गई है। अब तो लोग बस्तर जाने की सोच कर कांप जा रहे। भय अफसरों में भी है। एक सीनियर आईएएस ने दो टूक कहा, अब तो कांकेर के आगे जाना ही नहीं है। जान है तो जहां है। सरकार हेलीकाप्टर देगी तब ही बस्तर जाया जाएंगे। मगर इस ओर किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान नहीं है। सभी आरोपी-प्रत्यारोप में लगी हुई हैं।  

सेंसेटिव मंथ

नक्सली हमले के हिसाब से फरवरी से मई तक का समय काफी संवेदनशील माना जाता है। अप्रैल और मई तो और भी ज्यादा। नक्सलियों ने बस्तर में पहला ब्लास्ट राजीव गांधी की मौत के दो दिन पहले 19 मई 1990 को किया था। तब आठ जवान शहीद हुए थे। देश को दहला देने वाली ताड़मेटला की घटना में 6 अप्रैल को हुई। दरभा हमला भी 25 मई को हुआ। आंकड़ों पर गौर करें तो बस्तर में 70 फीसदी से अधिक घटनाएं मार्च से मई के बीच हुई हैं। इसके बाद भी अगर खुफिया तंत्र सजग नहीं था तो फिर राज्य का भगवान ही मालिक हैं।

ब्लैक आपरेशन

आपरेशन ग्रीन हंट छत्तीसगढ़ के लिए ब्लैक आपरेशन बन गया। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को मार डाला था, तब बस्तर में आपरेशन ग्रीन हंट चालू करने की तैयारी थी। घटना के बाद आपरेशन बंद कर दिया गया। चुनावी साल में नक्सलियों को मारने से सरकार को लाभ होगा, इस अंदेशे से पुलिस महकमा फिर आपरेशन ग्रीन हंट शुरू करने जा रहा था। हालांकि, मीडिया को इससे अनभिज्ञ रखा गया, लेकिन यह सौ फीसदी सही है कि ताड़मेटला कांड के तीन साल बाद फोर्स को जंगल में मूव किया जा रहा था। फोर्स कोई कार्रवाई करती, इससे पहले नक्सलियों ने खूनी हमले को अंजाम दे दिया।

खाता खुला

दरभा नक्सली हमले में रमन सरकार ने जगदलपुर एसपी मयंक श्रीवास्तव को सस्पेंड कर दिया। सस्पेंड होने वाले वे छत्तीसगढ़ के पहले आईपीएस होंगे। इससे पहले, राज्य बनने के बाद 12 साल में कोई आईपीएस निलंबित नहीं हुआ था। जबकि, तीन आईएएस सस्पेंड हो चुके हैं। और चैथा भी आजकल में सस्पेंड हो सकता है। बहरहाल, आईपीएस अफसरों का खाता खुल गया है। आगे देखिए, चुनावी साल में और किसका-किसका नम्बर लगता है। 

संकट में सौरभ

पीसीसी अघ्यक्ष नंदकुमार पटेल के नहीं रहने से अकलतरा विधायक सौरभ सिंह का कांग्रेस प्रवेश अटक सकता है। सौरभ का न केवल कांग्रेस प्रवेश पक्का हो गया था  बल्कि टिकिट मिलना भी तय था। सौरभ ने भी मन बना लिया था और इसकी जानकारी बताते हैं, उन्होंने बसपा को भी दे दी थी। बस, अब उन्हें कांग्रेस से हरी झंडी का इंतजार था। दरअसल, पटेल ने ही उन्हें अश्वस्त किया था और इसके लिए दिल्ली के नेताओं को राजी भी कर लिए थे। जबकि, अजीत जोगी खेमा सौरभ के कांग्रेस प्रवेश का लगातार विरोध कर रहा है। अब, चूकि जोगी खेमा प्रभावशाली हो गया है, जाहिर है, सौरभ की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    सरगुजा और बस्तर में आईजी रहे एएन उपध्याय के अनुभवों का लाभ नक्सली आपरेशन में क्यों नहीं लिया जा रहा है?
2.    प्रशासन और पुलिस के दो शीर्ष अधिकारी राज्यपाल से किसलिए मिलने गए थे?

















तरकश, 26 मई


झूला घर

मंत्रालय दूर बनने का खामियाजा यह हुआ कि उसका झूला घर का स्वरूप बनता जा रहा है। महिला कर्मियों को दुधमुंहा बच्चों के लिए लांच आवर में 30 किलोमीटर दूर रायपुर आना मुमकिन नहीं है। सो, कुछ महिला अफसर अपने बच्चों को लेकर मंत्रालय आ रही हैं। उनके साथ कार से बच्चे को लेकर आया आती है। और शाम को साथ ही घर लौटती है। यही वजह है कि आजकल मंत्रालय के कुछ कमरों से बच्चों की किलकारियां सुनाई पड़ती है। खैर, उंचे ओहदे पर बैठी महिला अफसरों को ज्यादा परेशानी इसलिए नहीं है, क्योंकि, उन्हें दो कमरे वाला चेम्बर मिला हुआ है। एक में वे बैठती हैं, और दूसरे में आया और उनका बच्चा। मगर छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों को परेशानी है। न उनके पास कार है, न आया है और ना ही एक्सट्रा कमरा। पता चला है, मंत्रालय कर्मचारी संघ अब चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार से मंत्रालय में झूला घर बनवाने के लिए मिलने वाला है।

बड़े घर में

सूबे के दो कुंवारे आईएएस में से एक, बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर अवनिश शरण की शादी पक्की हो गई है। शादी देर से हो रही है मगर बड़े घर में हो रही है। सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिनहा की बेटी स्मिता से। छत्तीसगढ़ के लिए इससे अच्छी बात क्या होगी। देश के शीर्ष जांच एजेंसी के चीफ की बेटी छत्तीसगढ़ की बहू बनकर आ रही हैं। 21 मई को दिल्ली में अवनिश की सगाई हुई और जुलाई में शादी होगी। उनकी होने वाली पत्नी आईबी में पोस्टेड हैं। और शादी के बाद घूमने-फिरने के लिए स्विटजरलैंड की टिकिट भी हो चुकी है। उधर, दूसरे आईएएस ओपी चैधरी की भी सगाई हो चुकी है। मगर शादी कब होगी, यह तय नहीं है। उनकी मंगेतर एमबीबीएस करने के बाद दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रही हैं। 

मोदी और रमन

राजनांदगांव की सभा में नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ को सबसे तेज प्रगति करने वाला राज्य बताकर रमन को स्वाभाविक तौर पर अपने करीब कर लिया है। चुनाव के पहले विकास यात्रा के जरिये लोगों से सीधे संवाद करने निकले रमन की 18 मई को राजनांदगांव सभा में पहुंचे मोदी ने रमन के तारीफ की झड़ी लगा दी, बल्कि यहां तक कह डाला कि रमन सिंह देश के पहले सीएम होंगे, जो अपने कार्यों का हिसाबा देने जनता के बीच जा रहे हैं और मुझे गर्व होता है कि मैं रमन का मित्र हूं। मोदी यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा, छत्तीसगढ़ का जिस तरह विकास हो रहा, आने वाले पांच बरसों में वह गुजरात से भी आगे निकल जाएगा। तो रमन ने भी गुजरात को विकास का माडल बताया। गौरतलब है, भाजपा में प्रधानमंत्री के प्रत्याशी के मसले पर मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह आडवानी की वकालत कर रहे हैं। तो आडवानी भी विभिन्न मंचों से शिवराज की तारीफ करते नहीं थकते। ऐसे में, रमन सिंह अब नरेंद्र मोदी के साथ खड़े दिखाई दें, तो अचरज नहीं।
वोट फार्मूला
विधानसभा चुनाव को देखते राज्य के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने मतदाताओं से सीधा संपर्क करने के लिए अलग तरीका निकाला है। विकास यात्रा के सिलसिले में वे हफ्ते भर से अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर हैं, और इस दौरान जिस गांव में शाम हो जाती है, वहां किसी किसान के घर या खलिहान में रात्रि विश्राम कर रहे हैं। और उसी घर में भोजन भी। हालांकि, उनका अभनपुर विधानसभा रायपुर से बहुत दूर नहीं है। कहीं से भी वे अधिकतम घंटे भर में राजधानी लौट सकते हैं। लेकिन मतदाताओं को रिझाने के लिए तकलीफ तो सहनी पड़ेंगी न।

लकी मुख्यालय

बीजेपी का भव्य और हाईटेक मुख्यालय बन कर तैयार हो जाने के बाद भी पुराना आफिस याने एकात्म परिसर का मोह पार्टी नहीं छोड़ पा रही है। भाजपा की समूची गतिविधियां यहीं से संचालित हो रही है। पता चला है, विधानसभा चुनाव के बाद ही वहां के बारे में सोचा जाएगा। इसकी वजह यह है कि एकात्म परिसर बीजेपी के लिए काफी लकी रहा है। इस बिल्डिंग के बनने के बाद सूबे में न केवल भाजपा की सीटें बढ़ीं बल्कि दो-दो बार सरकार बनाने मे ंकामयाब रही। तो ऐसे लकी मुख्यालय को भला कौन छोड़ना चाहेगा। वो भी चुनाव के समय में।

सबसे पहले

अटलबिहारी सरकार ने देश में छह नए एम्स बनाने की घोषणा की थी, उनमें से रायपुर एम्स का ओपीडी सबसे पहले प्रारंभ होने जा रहा है। 3 जून इसकी तारीख मुकर्रर हो गई है। बाकी पांच, 1 जुलाई से शुरू होंगे। एम्स को जिस तरह से तैयार किया जा रहा है, वह छत्तीसगढ़ के लिए वारदान साबित होगा। वारदान इसलिए, कि अस्पताल खुलने से पहले ही वहां राज्य की सिकलसेल, फल्सीफेरम मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों पर काम चालू हो गया है, जिससे हर साल सैकड़ों लोग असमय काल के ग्रास बन जाते हैं। सिकलसेल पर डाटा कलेक्ट किया जा रहा है और शुक्रवार को इस पर एम्स में कांफें्रस हुई। साल के अंत तक एम्स में ट्रामा सेंटर खुल जाएगा और अगले साल तक सेंट्रल इंडिया का यह सबसे बड़ा अस्पताल पूर्ण स्वरूप में आ जाएगा। फिलहाल, 67 डाक्टरों की नियुक्ति हो गई है। रायपुर एम्स इस मामले में भी लकी है कि उसे डा0 नागरकर जैसे डायरेक्टर मिले हैं। लंबे समय तक इंगलैंड में रहने के बाद नागरकर पीजीआई चंडीगढ़ में मेडिकल सुपरिंटेंडेंट बनकर लौटे। और अब उन्होंने एम्स ज्वाईन किया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर अवनिश शरण से बड़े-बड़े आईएएस, आईपीएस और मिनिस्टर क्यों चमकने लगे हैं?
2.  विकास यात्रा के बाद रायपुर और बिलासपुर संभाग के किन दो कलेक्टरों की छुट्टी तय मानी जा रही है?