शनिवार, 16 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?

 तरकश, 17 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित


मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?

लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले छत्तीगसढ़ में ऐसे ट्रांसफर हुए कि लगा जैसे तबादलों पर से बैन हट गया हो। जाहिर है, बैन जब हटता है तो आखिरी दिनों में ऐसे ही आर्डर निकलते हैं। डेढ़ दिन वैसा ही कुछ रहा। इलेक्शन कमीशन के प्रेस कांफ्रेंस की खबर आते ही आदेशों की झ़ड़ी लग गई। सीईसी राजीव कुमार की पीसी होती रही और आदेश निकलते रहे। आखिर, दो महीने की बात थी। अप्रैल और मई तक ही तो वेट करना है। 4 जून को काउंटिंग हो जाएगी। पर मंत्रीजी लोग धीरज नहीं रख पाए। बृजमोहन जी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, मगर बाकी मंत्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं। मंत्रिमंडल में सर्जरी की कोई आशंका भी नहीं। इतनी जल्दी सर्जरी होती भी नहीं। फिर मंत्रियों की हड़बड़ी लोगों को समझ में नहीं आई। अरे भाई, दो महीने बाद सरकार भी रहेगी और आप भी मंत्री रहेंगे, फिर ट्रांसफर को लेकर इतनी बेचैनी क्यों? सरकार की साख को इससे धक्का पहुंचता है।

छत्तीसगढ़ के सियासी योद्धा

छत्तीसगढ़ में तीन ऐसे सियासी योद्धा रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि पार्टी ने उन्हें सीट बदल-बदलकर लोकसभा चुनाव लड़ाया और वे जीते भी। नेता थे विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी और दिलीप सिंह जूदेव। हालांकि, विद्याचरण शुक्ल के चलते महासमुंद संसदीय सीट को देश में पहचान मिली...इस सीट से वे पांच बार सांसद चुने गए। मगर वे रायपुर और उससे बहुत पहले बलौदा बाजार से भी चुनाव लड़े और जीते थे। इसी तरह अजीत जोगी मरवाही से चार बार विधायक रहे ही शहडोल, रायगढ़ से एक-एक बार और महासमुंद सीट से दो बार चुनाव लड़े। रायगढ़ और महासमुद लोकसभा सीट से एक-एक बार जीते भी। इसके बाद अब दिलीप सिंह जूदेव। जूदेव की लोकप्रियता का ग्राफ छत्तीसगढ़ में सबसे उपर रहा। वे ऐसे लीडर थे, जो जशपुर से 300 किलोमीटर दूर जांजगीर और बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनावी रण में उतरे और अच्छे-खासे मतों से विजयी हुए। मगर अब छत्तीसगढ़ में इस कद के न नेता बचे और न उनकी लोकप्रियता है और न वैसा सियासी इच्छाशक्ति। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के जरिये भूपेश बघेल ने जरूर इस ट्रेक पर चलने की कोशिश की, मगर वे डिरेल्ड हो गए।

अभी मैं कलेक्टर...

छत्तीसगढ़ बनने से दो साल पहले 1998 की बात है। तब लोकसभा का चुनाव हुआ था और अटलजी की 13 महीने की सरकार बनी थी। उस दौरान रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस से अजीत जोगी मैदान में थे और उनके सामने बीजेपी से नंदकुमार साय। रायगढ़ के कलेक्टर थे शैलेंद्र सिंह। चुनाव प्रचार के दौरान शैलेंद्र ने कांग्रेस की कुछ गाड़ियों को जब्त करवा दिया। बताते हैं, अजीत जोगी ने उन्हें फोन किया। कलेक्टर ने नियमों का हवाला दिया तो जोगीजी भड़क गए। उन्होंने कहा, नियम-कायदा मैं भी जानता हूं, मैं भी कलेक्टर रहा हूं। शैलेंद्र काफी तेज-तर्रार आईएएस थे। उन्होंने यह कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया कि आप कलेक्टर रहे हैं और मैं अभी हूं। हालांकि, जोगीजी बेहद कम मार्जिन, यही कोई पांचेक हजार मतों से चुनाव जीत गए। मगर छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शैलेंद्र सिंह को पहले आर्डर में ही बिलासपुर कलेक्टर से मंत्रालय में बिना विभाग का डिप्टी सिकरेट्री बना दिया गया था। बहरहाल, अब ऐसे दम वाले कलेक्टरों का नस्ल विलुप्त हो गया। खासकर, छत्तीसगढ़ में।

लिफाफे में 300

एक सांसद से उनके संसदीय क्षेत्र के मतदाता इसलिए नाराज हैं कि वे शादी, छठी, बरही में जाते हैं तो उनके लिफाफे से 300 रुपए से ज्यादा निकलता नहीं। कभी-कभार ही 500 होता है, जब सांसद जी किसी बड़े आदमी के यहां जाते हैं। अब इस जमाने में तीन सौ का क्या मोल? सामान्य आदमी बड़े नेताओं को अपने घरेलू कार्यक्रमों में बुलाता है तो उसका उद्देश्य रुतबा बढ़ाना तो होता ही है मगर एक उम्मीद भी होती है कि नेताजी ने कुछ ठीक-ठाक ही किया होगा। बहरहाल, 300 वाले मुद्दे ने नेताजी का ग्राफ काफी गिरा दिया है। चूकि पार्टी ने उन्हें टिकिट दे दिया है तो उसे सीट निकालने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी। वरना, खतरा मुंह बाये खड़ा है।

2005 बैच हुआ ताकतवर!

हर दौर में ब्यूरोक्रेसी का एक-दो बैच हमेशा प्रभावशाली रहा है। जैसे अभी विष्णुदेव साय सरकार में आईएएस, आईपीएस के 2005 बैच का जादू चल रहा है। अधिकांश महत्वपूर्ण जगहों पर इस बैच के अफसर विराजमान हैं। सीएम सचिवालय में 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत सिकरेट्री हैं तो अब उन्हें सुशासन विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। 2005 बैच के आईएएस मुकेश बंसल फायनेंस सिकरेट्री के साथ ही जीएसटी और जीएडी संभाल रहे हैं। पिछले दो सालों को छोड़ दें फायनेंस में डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन जैसे एसीएस लेवल के आईएएस रहे हैं। 2005 बैच की संगीता आर. आवास और पर्यावरण विभाग की सिकरेट्री के साथ ही पौल्यूशन बोर्ड की चेयरमैन का दायित्व संभाल रही हैं। इन पदों पर कभी बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह जैसे अफसर रहे हैं। इसी बैच के आईएएस एस, प्रकाश के पास ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ सिकरेट्री की भी जिम्मेदारी हैं। तो राजेश टोप्पो सिंचाई संभाल रहे हैं। 2005 बैच के आईपीएस अमरेश मिश्रा रायपुर पुलिस रेंज के आईजी के साथ ही ईओडब्लू, एसीबी के आईजी हैं। कुछ दिनों में वे इन दोनों जांच एजेंसियों के चीफ बन जाएंगे। वैसे, ये बैच कांग्रेस शासन काल में जरूर हांसिये पर रहा मगर बीजेपी के समय इन सभी अफसरों के पास अच्छे पोर्टफोलियो रहे।

ऋचा को फारेस्ट या हेल्थ?

1994 बैच की एसीएस रैंक की आईएएस अफसर ऋचा शर्मा का सेंट्रल डेपुटेशन समाप्त हो गया है। रिलीव होने के बाद वे अभी अवकाश पर हैं। अप्रैल के फर्स्ट वीक में वे लौटेंगी। ऋचा भारत सरकार में वन और जलवायु परिवर्तन में ज्वाइंट सिकरेट्री रह चुकी हैं। सो, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि उन्हें फारेस्ट सिकरेट्री बनाया जाएगा या फिर हेल्थ सौंपा जाएगा। रेणु पिल्ले के हटने के बाद मनोज पिंगुआ को सरकार ने अभी हेल्थ की जिम्मेदारी सौंपी है। गृह, जेल के साथ वन तथा स्वास्थ्य। जाहिर है, ये तीनों काफी बड़े विभाग हैं...एक सिकरेट्री के लिए ये कतई संभव नहीं। सो, समझा जा रहा है, मनोज को टेम्पोरेरी तौर पर हेल्थ दिया गया है। ऋचा के लौटने पर मनोज का वर्क लोड कम किया जाएगा। अब देखना है कि ऋचा को हेल्थ का दायित्व मिलता है या फिर फॉरेस्ट का।

आईएएस का वर्चस्व

पिछला पांच साल डिप्टी कलेक्टरों और प्रमोटी आईएएस के लिए स्वर्णिम युग रहा। पहली बार ऐसा हुआ कि डीए में हमेशा आगे रहने वाले स्टेट वालों से आठ परसेंट पीछे हो गए थे। मगर अब स्टेट वाले पीछे हो गए और ऑल इंडिया सर्विस वाले केंद्र के बराबर पहुंच गए हैं। यहीं नहीं, पोस्टिंग में भी यह झलक रहा है। बड़े-बड़े विभागों में बैठे राज्य प्रशासनिक सेवा या प्रमोटी आईएएस की जगह अब आरआर वाले ले रहे हैं। मंत्रालय में तीन महीने पहले तक पांच प्रमोटी आईएएस सिकरेट्री थे, अब सिर्फ एक नरेंद्र दुग्गे बचे हैं। पिछली सरकार में अच्छी पोस्टिंग की वजह से साइडलाइन किए गए आईएएस भी वापिस लौट रहे हैं। सारांश मित्तर, पुष्पेद्र मीणा, विनीत नंदनवार को स्वतंत्र प्रभार मिल गए हैं। विनीत एपीओ याने अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर से सीधे ब्रेवरेज कारपोरेशन के एमडी बन गए हैं। हालांकि, उनके विरोधियों ने दंतेवाड़ा कलेक्टर रहने के दौरान मां दंतेश्वरी मंदिर कारिडोर में घपले घोटाले की मुहिम चलवाकर उन्हें दंतेवाड़ा से हटवाया था मगर जांच में ऐसा कुछ मिला नहीं। लगता है, दंतेश्वरी माई की कृपा विनीत पर हुई है। वरना, एपीओ से सीधे...।

नॉट प्रमोटी आईएएस

सामान्य प्रशासन विभाग के राज्य प्रशासनिक सेवा शाखा में 2013 में शहला निगार स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार रहीं। उसके बाद इस विभाग में कभी आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस नहीं रहे। शहला के बाद करीब तीन साल रीता शांडिल्य इस विभाग की सिकरेट्री रहीं और उनके बाद पिछले सात साल से डीडी सिंह। राप्रेस संघ के विरोध के बाद सरकार ने डीडी सिंह को हटाकर 11 साल बाद डायरेक्ट आईएएस अंबलगन पी को एसएएस शाखा की जिम्मेदारी सौंपी है। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि महत्वपूर्ण प्रशासनिक ढांचे को ठीक करने के लिए आरआर को वहां बिठाया गया है। बता दें, छत्तीसगढ़ में चार सौ से अधिक एसएएस अफसर हैं। और ये सरकार और जनता के बीच के असली सेतु होते हैं।

कलेक्टरों के लिए शर्मनाक

जब छत्तीसगढ़ में बड़े जिले होते थे, तब भी कलेक्टर आफिस में मिल जाते थे। मगर अब दो-दो ब्लॉक के जिले हो गए, उसके बाद कलेक्टर आफिस नहीं आते और आते भी हैं तो अपने हिसाब से कभी वीसी हुआ तो आ गए या फिर मन पड़ा तो दो-एक घंटा बैठ लिए। आलम यह है कि सूबे के मुखिया को कहना पड़ रहा है कि कलेक्टर टाईम से आएं। कलेक्टर, एसपी कांफें्रस में सीएम ने कलेक्टरों से दो टूक कहा कि जब पांच दिन का सप्ताह हो गया है, तो पांच दिन अच्छे से काम करें, 10 बजे आफिस पहुंचे। वाकई! ये कलेक्टरों के लिए शर्मनाक है।

डीएमएफ दोषी?

कलेक्टर कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने डीएमएफ को लेकर कलेक्टरों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि मुझे पता है कि पहले के कुछ कलेक्टर डीएमएफ में खूब भ्रष्टाचार किए हैं। उन्होंने कलेक्टरों को वार्निंग दी कि अब डीएमएफ में गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे। दरअसल, भारत सरकार ने नेताओं की बजाए कलेक्टरों को माइनिंग फंड की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी कि कलेक्टर एक अथॉरिटी होते हैं...जिलों में न्यायपूर्ण काम होंगे। मगर छत्तीसगढ़ में डीएमएफ ने कलेक्टरांं को भ्रष्ट बना दिया। पैसा आदमी का दिमाग खराब कर देता है...छत्तीसगढ़ के कई जिलों में कई-कई सौ करोड़ डीएमएफ फंड है। कलेक्टर उसके मालिक होते हैं। कलेक्टरों का एक सूत्रीय कार्य हो गया है कि डीएमएफ के पैसे को कैसे खर्च किया जाए। कलेक्टरों के कंपीटिशन में एसपी भी शुरू हो गए। कलेक्टर जिले का काम इसी गुनतारे में लगे रहते हैं कि डीएमएफ के करोड़ों रुपए को किस मद में खर्च किया जाए कि ज्यादा-से-ज्यादा कमीशन मिल जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ट्रांसफर के प्रेशर से घबराए किस-किस विभाग के सिकरेट्री भगवान से गुहार लगा रहे थे, प्रभु जल्दी आचार संहिता लगवा दें?

2. गृह विभाग ने दमदारी से बड़े-बड़े ट्रांसफर किए मगर हफ्ते-दस दिन में ही उसे कई को निरस्त क्यों करना पड़ गया?

शनिवार, 9 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ में 4000 करोड़ की GST चोरी

तरकश, 10 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ में 4000 करोड़ की GST चोरी

इस हेडिंग को पढ़कर आप हतप्रभ होंगे...चोरी वो भी चार हजार करोड़ की। जी, हम जीएसटी की बात कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 20 हजार करोड़ रुपए जीएसटी से आता है। इसमें पांच हजार करोड़ पेट्रोल, डीजल से। 15 हजार करोड़ अदर बिजनेस से। चोरी अदर बिजनेस में ही होती है। जीएसटी के अफसर मानते हैं कि मोटे तौर पर 25 से 30 फीसदी चोरी होती है। 15 हजार करोड़ के 25 परसेंट के हिसाब से करीब चार हजार करोड़ बैठता है। ये चार हजार करोड़ में से तीन हजार करोड़ छत्तीसगढ़ के करीब 200 बड़े कारोबारियों की जेब में जा रहा है। ठीक ही कहा जाता है, ईमानदारी से ऐसा प्रोग्रेस नहीं होता, जैसा रायपुर में चल रहा। बहरहाल, इस तीन हजार करोड़ से छत्तीसगढ़ में हर साल मैकाहारा जैसे 10 अस्पताल बनाए जा सकते हैं पूरे सेटअप के साथ।

GST में 3 आईएएस

23 साल में पहली बार जीएसटी चोरी करने वाले बड़े लोगों के खिलाफ सरकार ने मुहिम छेड़ी है। छत्तीसगढ़ में रोज छापे पड़ रहे हैं। दो-से- चार करोड़ रुपए रोज सरेंडर किए जा रहे हैं। दुर्ग के एक गुटखा व्यापारी ने कल चार करोड़ मौके पर जमा कराया। इससे समझा जा सकता है कि किस स्तर पर चोरियां हो रही कि उनके लिए चार करोड़ रुपए कुछ भी नहीं। जीएसटी को मजबूत करने के लिए मंत्री ओपी चौधरी ने दिल्ली से मुकेश बंसल को बुलाकर सिकरेट्री बनाया है। रजत बंसल कमिश्नर हैं ही। फर्स्ट टाईम आईएएस प्रतीक जैन को ज्वाइंट कमिश्नर बनाया गया है। प्रतीक आईएएस में आने से पहले इंकम टैक्स में रहे हैं। सो, उन्हें टैक्स चोरी की बारीकियां की जानकारी है। कुल मिलाकर अब जीएसटी चौरी करने वाले बड़े लोगों की खैर नहीं। ओपी के पास खजाने की चाबी है। वे चाहेंगे भी कि ऐसे जीएसटी चोरों पर कार्रवाई कर खजाने के लोड को कम किया जाए।

उदार मंत्री, कलाकार पीएस

छत्तीसगढ़ के विष्णुदेव सरकार के एक मंत्रीजी बेचारे सहज और लो प्रोफाइल के हैं। मगर उनके डिप्टी कलेक्टर ओएसडी उतने ही बड़े कलाकार। मंत्री के यहां पोस्टिंग का जुम्मा-जुम्मा महीना गुजरा होगा कि खेल प्रारंभ कर दिया। करीब दसेक दिन से वे अफसरों को फोन लगाकर पूछ रहे...ट्रांफसर होने वाला है, तुमको कहां जाना है...आपको बस्तर भेजा जा रहा है...फलां जिले के लिए 20 पेटी लगेगा, वहां के लिए 15। मगर आचार संहिता की हडबड़ी में ओएसडी से एक रांग नंबर डायल हो गया। उन्होंने एक ऐसे अफसर को फोन लगा डाला, जो संघ से जुड़े हुए हैं। अफसर ने अपने पृष्ठभूमि के बारे में बताया तो ओएसडी लगे हाथ-पांव जोड़ने...अरे, मैं तो मजाक कर रहा था, पता करने की कोशिश कर रहा था कि मार्केट में कोई गड़बड़ी तो नही हो रही। बताते हैं, सात अधिकारियों से ओएसडी ने एडवांस में 70 पेटी पेशगी ले ली है। मंत्रियों के स्टाफ को लेकर इसी स्तंभ में हमने आगाह किया था कि ठोक बजाकर मंत्रियों के सहायक नियुक्त किए जाएं। सरकार को एकाध कौवा मारकर टांगना चाहिए। वरना, मंत्रियों के ऐसे खटराल सहायकों से नाहक सिस्टम बदनाम होगा।

वो तीन मंत्री

रमन सरकार के 15 बरसों में ऐसा नहीं हुआ कि मंत्रियों के पीए लोगों ने करामात नहीं दिखाया। कई मंत्री ट्रांफसर, पोस्टिंग के चक्कर में काफी बदनाम हुए। मगर तब भी तीन मंत्री अपवाद थे। वह एआई का जमाना नहीं था लेकिन उन मंत्रियों का खुद का इंटेलिजेंस और कमांड इतना तगड़ा था कि उनके इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था। तीनों मंत्री स्टाफ सलेक्शन में बड़ा सतर्क रहते थे। उन्हें उतने ही फ्रीडम दिया, जितना आवश्यक है। तीन में से दो मंत्री रायपुर और उसके आसपास के थे और तीसरे बिलासपुर संभाग के। इनमें से एक मंत्री ऐसे थे कि दौरे के समय पीए के मोबाइल लेकर चेक कर लेते थे कि किन लोगों के फोन आ रहे हैं और वे किनके संपर्क में हैं। तभी ये तीनों मंत्री ट्रांसफर, पोस्टिंग को लेकर कभी चर्चा में नहीं आए। बहरहाल, जब लहर गिनकर पैसा कमाने वाले पीए और पीएस हैं तो मंत्रियों को अतिरिक्त सजग रहना चाहिए।

ईओडब्लू के नए बॉस

राज्य सरकार ने पहली बार ईओडब्लू टीम की कंप्लीट सर्जरी की है। सरकार ने एक झटके में ढाई दर्जन अधिकारियों और इंस्पेक्टरों को सिंगल आदेश से वापिस बुलाकर करीब उतने ही पोस्टिंग कर दी। जाहिर है, सरकार ईओडब्लू में कुछ नया करने जा रही है। डीएम अवस्थी की जगह नए चीफ की नियुक्ति की चर्चा बड़ी तेज है। डीएम को ईओडब्लू के चीफ बने करीब सवा साल हो गए हैं। इस दौरान शराब घोटाले से रिलेटेड सिर्फ एक छापा पड़ा, जिसमें न कुछ मिलना था और न मिला। हालांकि, पहले टेन्योर में यही डीएम अवस्थी एक साल में 100 करोड़ की अनुपातहीन संपत्तियों को उजाकर किया था। मगर इस बार उनकी जरूर कोई मजबूरियां रही होगी, वरना...। खैर, सरकार अब जिसे ईओडब्लू का चीफ बनाने जा रही, वे निरपेक्ष भाव से काम करने वाले अफसर हैं। उन्हें इसका कोई मतलब नहीं कि फलां बड़ा तोप है, तो फलां बड़ा प्रभावशाली। पोस्टिंग से पहले ही उन्हें बता दिया गया है कि करप्शन का कोई टॉलरेंस नहीं रहेगा...भ्रष्टाचार के मामले में छत्तीसगढ़ की खराब हो गई छबि को दुरूस्त करना है।

आईएएस को एपीओ

राज्य सरकार ने 8 मार्च को सचिव लेवल के आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग की। इनमें राजस्व सचिव भुवनेश यादव से राजस्व, आपदा प्रबंधन और पुनर्वास लेकर उन्हें एपीओ कर दिया। एपीओ मतलब अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर। भुवनेश को पोस्टिंग के लिए इंतजार करना होगा। चूकि सामने लोकसभा चुनाव है, सो उसके बाद ही उन्हें कोई विभाग मिलने की संभावना बनेगी। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी में भुवनेश को एपीओ करने की बड़ी चर्चा है। हर आदमी कारण टटोल रहा है। एपीओ करने की एक वजह तो यह बताई जा रही कि निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पिछले हफ्ते राजस्व विभाग ने बड़ी संख्या में तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को ट्रांसफर किया। इसकी फाइल समन्वय में नहीं भेजी गई। राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा के अनुमोदन के बाद आदेश जारी हो गया। दरअसल, ट्रांसफर पर बैन है। समन्वय के अनुमोदन के बाद ही ट्रांफसर होते हैं। दूसरा, बड़ी संख्या में उठापटक होने से कनिष्ठ प्रशासनिक संघ ने सिस्टम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। चीफ सिकरेट्री से लेकर उपर तक इसकी शिकायत की गई। अब कलेक्टर से बड़ा पटवारी होता है तो फिर तहसीलदारों की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक्स सीएम भूपेश बघेल के राजनांदगांव से चुनाव मैदान में उतरने से क्या वाकई वहां मुकाबल कड़ा हो गया है?

2. सिर्फ जीएडी और गृह विभाग में ही दबाकर क्यों ट्रांसफर हो रहे, बाकी विभागों के गड़बड़ अधिकारी कैसे बच जा रहे?


 

शनिवार, 2 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash: बंटी, बबली और छत्तीसगढ़ पीएससी

 तरकश, 3 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित

बंटी, बबली और पीएससी

पीएससी घोटाले की एक और एफआईआर हो गई है। उस स्कैम से जुड़े कई अफसर फरार बताए जा रहे हैं। मगर जांच एजेंसियों को इसे भी नोटिस में लेना चाहिए...पीएससी स्कैम में जिस बंटी-बबली की जोड़ी ने खेला किया, उसमें उनके नाते-रिश्तेदारों की भूमिका भी अहम रही। बताते हैं, लेनदेन का काम बंटी के साढ़ू भाई ने किया। जांच एजेंयियां अगर बंटी के साढ़ू भाई का कॉल डिटेल निकलवा ले, तो उसमें कई बड़े सफेदपोश लोग एक्सपोज होंगे। उस मोबाइल से ही डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी के लिए 75 लाख से लेकर एक करोड़ तक के सौदे हुए। जिन्होंने एक पद लिया, उन्हें एक करोड़ और जिन लोगों ने एक साथ दो पद की डील की, उन्हें डिस्काउंट दिया गया। पीएससी के तीन साल में हुई परीक्षाओं में बताते हैं, बंटी ने करीब 50 खोखा तो बबली को मिला 15 खोखा। बंटी ने दो बड़े फार्म हाउस खरीदे तो बबली ने रायपुर के एक बड़े बिल्डर के प्रोजेक्ट में लगाया पैसा।

200 करोड़ की डायरी

पिछली सरकार में स्कूल शिक्षा विभाग की 200 करोड़ की डायरी आई थी। उस डायरी में चौंकाने वाले खुलासे थे। बीजेपी तब 15 सीटों पर सिमटने से गमजदा थी। और तब के अफसरों ने मामले को रफा-दफा करने के लिए एक कांग्रेस के नेता को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। मैसेज ये दिया गया कि डायरी फर्जी थी, अफसरों को बदनाम करने के लिए। बीजेपी अब सत्ता में है, इसकी जांच कराना चाहिए। क्योंकि, उसकी घोषणा पत्र में, बेहतर शिक्षा और उज्जवल भविष्य का नारा है, वह स्कूल शिक्षा के खटराल अधिकारियों के रहते संभव नहीं। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, सिकरेट्री सिद्धार्थ परदेशी और डीपीआई दिव्या मिश्रा रिफर्म के कई काम शुरू किए हैं, मगर वो केबीसी के होते अंजाम तक पहुंचना कठिन है। केबीसी मतलब स्कूल शिक्षा संचालनालय के तीन चर्चित तिकड़ी। ये तिकड़ी किसी और को डीपीआई में टिकने नहीं देती। सरकार ने दो डिप्टी कलेक्टरों का पद क्रियेट किया। दो अफसर पोस्ट भी हुए। मगर उन्हें काम ही नहीं सौंपने दिया। ज्वाइंट कलेक्टर लेवल के राजेंद्र गुप्ता आठ महीने वहां खाली बैठे रहे। किसी तरह वे डीपीआई से बाहर निकले हैं।

खाली हाथ, खाली डब्बा

शराब घोटाले में छत्तीसगढ़ की ईओडब्लू ने 13 पूर्व आईएएस, आबकारी अधिकारी और शराब ठेकेदारों के 14 ठिकानों पर छापा मारकर सनसनी फैला दी थी। राज्य बनने के बाद यह पहली हाईप्रोफाइल कार्रवाई होगी, जो मुकेश गुप्ता जैसे ईओडब्लू चीफ के टेन्योर में भी नहीं हो पाई। मगर इस छापे में कुछ मिला नहीं। सभी ठिकानों से ईओडब्लू की टीम खाली हाथ लौट आई। दरअसल, ईओडब्लू छापे से पहले इनमें से अधिकांश ठिकानों पर ईडी दबिश दे चुकी है। सो, सारे दस्तावेज ईडी जब्त कर ले गई है। ईओडब्लू अफसरों को सभी लोगों ने टका सा जवाब दे दिया...कोई कागज हमारे पास नहीं है। ऐसे में, ईओडब्लू क्या करती। मायूसी के अलावा कोई चारा नहीं था।

पहुना की सुरक्षा

मुख्यमंत्री के अस्थाई निवास पहुना में गए सप्ताह पिस्तौल के साथ एक युवक के घुस जाने से खलबली मच गई। सीएम जेड प्लस सिक्यूरिटी केटेगरी में आते हैं। उन तक पहुंचने के लिए कई लेवल पर चेकिंग होती है। ऐसे में, पिस्तौल वाली घटना से कोहराम मचना ही था। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि इस मामले में आठ सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया गया है। अगर ये दावा गलत भी है तो कोई बुराई नहीं। क्योंकि, संघ के नेता का ठेकेदार पोता हाउस में रोज जाने वाली सरकारी गाड़ी में भीतर चला गया तो सिपाहियों का इसमें कोई कसूर कैसे? दरअसल, स्थायी सीएम हाउस में शिफ्थ होते तक इस तरह के प्राब्लम पुलिस अधिकारियों को फेस करना ही होगा। सीएम हाउस में एक बार सीएम चले गए तो उसके बाद वहां पहुंचना सबके लिए मुमकिन नहीं होगा। पीडब्लूडी को जल्द-से-जल्द सीएम हाउस को तैयार कर देना चाहिए।

मंत्री की वैकेंसी

छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर विधायक और मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को बीजेपी ने रायपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया है। बृजमोहन कई लोकसभा चुनावों में चुनाव संचालक रहे और पार्टी प्रत्याशी को जीताया भी। सो, रायपुर से बृजमोहन की जीत में कोई संशय नहीं है। ऐसे में, न केवल रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट खाली होगी बल्कि मंत्री की एक वैकेंसी भी बढ़ेगी। इस समय एक सीट खाली है। बृजमोहन के केंद्र की राजनीति में जाने के बाद अब दो हो जाएगी। जाहिर है, लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रियों के खाली पद भरे जाएंगे। अब देखना है, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक और राजेश मूणत में से किन दो को मौका मिलता है। वैसे, वर्तमान सियासी समीकरणों को देखते बिलासपुर से एक मंत्री की संभावना प्रबल प्रतीत हो रही है।

महतारी जिला

छत्तीसगढ़ सरकार महिलाओं के लिए सिर्फ महतारी वंदन नहीं कर रही बल्कि जिलों में प्रशासनिक पोस्टिंग में भी महिला अफसरों का ध्यान रख रही है। इस समय दो जिले ऐसे हैं, जिनमें कलेक्टर, एसपी दोनों महतारी हैं। सक्ती में नुपूर राशि पन्ना पहले से कलेक्टर थीं, वहां अब अंकिता शर्मा को एसपी बनाकर भेजा गया है। जीपीएम जिले में भी यही सीन है। कमलेश लीना मंडावी कलेक्टर और भावना गुप्ता एसपी हैं। हालांकि, महतारी योजना में भावना गुप्ता के साथ थोड़ी डंडी मारी गई है। भावना सूरजपुर, अंबिकापुर, बेमेतरा की एसपी रह चुकी हैं। इसके बाद उन्हें जीपीएम टिकाया गया है। वहीं, प्रमोटी आईएएस लीना मंडावी का यह पहला जिला है। जाहिर है, भावना को इसका मलाल तो रहेगा। बहरहाल, ये दोनों जिला महतारी जिला हो गए हैं।

महतारी विभाग

छत्तीसगढ़ में महतारी जिला के साथ ही महतारी विभाग भी बन गए हैं। नाम के अनुरूप महिला बाल विकास विभाग में इस समय उपर में सभी महिलाएं हैं। इस विभाग की मंत्री प्रारंभ से महिला रहती आई हैं। मगर इस समय सिकरेट्री शम्मी आबिदी और डायरेक्टर तुलिका प्रजापति हैं। ऐसा संयोग कभी नहीं हुआ। डीपीआई जब दिव्या मिश्रा रहीं तो सिकरेट्री जेंस रहे और दिवंगत आईएएस एम गीता जब इस विभाग की सिकरेट्री रहीं तो डायरेक्टर जेंस आईएएस। इस समय मंत्री, सिकरेट्री और डायरेक्टर, तीनों महतारी।

महीने भर में प्रमोशन

सारंगढ़ छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा, जहां दो महीने के भीतर तीन कलेक्टर बदल गए। पहली बार 3 जनवरी को फरिया आलम को हटाकर कुमार चौहान को कलेक्टर बनाया गया। और अब कुमार को हटाकर धर्मेश साहू को। कुमार चौहान किस्मती निकले, उनका दो महीने में ही प्रमोशन हो गया। उन्हें सारंगढ़ से सीधे बलौदा बाजार का कलेक्टर बना दिया गया। दरअसल, चौहान लैलूंगा के रहने वाले हैं। याने रायगढ़ संसदीय क्षेत्र। सारंगढ़ भी रायगढ़ लोकसभा इलाके में आता है। सो, चुनाव आयोग के नए फारमान के बाद सरकार के पास चौहान को हटाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। बलौदा बाजार के कलेक्टर बदले जा रहे थे। लिहाजा, चौहान की लाटरी खुल गई। चौहान वही कलेक्टर हैं, जो सारंगढ़ में आत्मानंद स्कूल के गुरूजी को जनपद पंचायत का सीईओ बना डाले थे। बाद में मीडिया में मामला उछला तो उन्होंने तुरंत आर्डर निरस्त कर दिया था।

डेपुटेशन की हरी झंडी

भारत सरकार में पोस्टेड आईएएस अफसर सिर्फ आ ही नहीं रहे बल्कि यहां से भी जा रहे हैं। 2009 बैच के एक आईएएस ने राज्य सरकार से सेंट्रल डेपुटेशन के लिए एनओसी मांगा था। सीएम से उनके एनओसी को मंजूरी मिल गई है। आईएएस को अगर केंद्र में पोस्टिंग मिल गई तो वे चले जाएंगे। आईएएस चूकि यहां हेल्थ, समाज कल्याण, हाउसिंग जैसे सेक्टर में काम कर चुके हैं, इस आधार पर उन्हें भारत सरकार में अच्छी पोस्टिंग मिल सकती है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पिछली सरकार में एक मंत्री को मोहपाश में बांध करोड़ों का काम हथियाने वाली किस रुप की मल्लिका को फिर उपकृत करने की तैयारी की जा रही?

2. दो साल से ड्यू होने के बाद भी पिछली सरकार ने 92 बैच के आईपीएस अफसरों को डीजी प्रमोट नहीं किया और इस सरकार में भी कोई चर्चा नहीं। इसकी क्या वजह है?


शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सीएम विष्णुदेव से अफसरों की मुलाकात और संयोग

 तरकश, 18 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

सीएम से मुलाकात और संयोग

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन के सिलसिले में दिल्ली में हैं। वहां सेंट्रल डेपुटेशन पर पोस्टेड कई आईएएस अफसरों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय मांगा था। संयोग से 16 फरवरी को रात नौ से दस बजे के बीच का टाईम भी मिल गया। चूकि टाईम सभी का लगभग एक ही था। सो, एक साथ आधा दर्जन से अधिक आईएएस पहुंच गए छत्तीसगढ़ सदन। ऋचा शर्मा, विकास शील, निधि छिब्बर, सोनमणि बोरा, मुकेश बंसल...और भी कई। सदन में सब एक-दूसरे को देखकर आवाक थे...ओह! आप, अरे वाह...आप भी। इससे पहले कभी ऐसा संयोग बना नहीं। चलिए, ये अच्छी परंपरा शुरू हुई है। दीगर राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली जाते हैं तो भारत सरकार में पोस्टेड अपने अफसरों से मुलाकात करते हैं। साल में दो-एक बार डिनर भी हो जाता है। उसका फायदा राज्य को मिलता है। स्टेट कैडर के अफसरों को लगता है, उन्हें रिस्पांस मिल रहा तो वे भी राज्य के हितों का ध्यान रखते हैं। इस वक्त अच्छी बात यह है कि छत्तीसगढ़ से गए लगभग सभी आईएएस ठीक-ठाक पोजिशन में हैं। सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए।

अनुदान का अनोखा खेला

छत्तीसगढ़ में अनुदान के नाम पर भ्रष्टाचार का ऐसा खेला किया गया कि किसानों को फोकट में चाइनिज पावर वीडर मशीन मिल गई और व्यापारी और अफसर करोड़ों रुपए भीतर कर लिए। इस खेल में हार्टिकल्चर के अफसर, कलेक्टरों का डीएमएफ और सप्लायर का भूमिका अहम रही। हम बात कर रहे हैं हार्टिकल्चर द्वारा किसानों को पावर वीडर मशीन के लिए अनुदान की। हार्टिकल्चर को सिर्फ इसमें अनुदान देना था और व्यापारी को मशीन सप्लाई करनी थी। मगर हार्टिकल्चर के अफसर एक ऐसे व्यापारी से गठजोड़ कर खुद ही सप्लायर बन गए, जो एमपी में ब्लैलिस्टेड है और वहां लोकायुक्त की जांच चल रही है। पावर वीडर मशीन निंदाई के काम आती है। बैटरी ऑपरेटेड यह यंत्र बाजार में 25 हजार में मिल जाता है। मगर बीज विकास निगम से इसका 1.26 लाख रेट तय कराया गया। और चाइनिज मशीनों को हार्टिकल्चर की नर्सरी में एसेंबल कर जिलों में किसानों को सप्लाई कर दिया गया। नियमानुसार निगम से निर्धारित रेट पर मशीन खरीदेंगे तो उस पर 60 हजार अनुदान मिलेगा। मगर इसमें किसानों को हार्टिकल्चर के एजेंटों ने कंविंस कर लिया कि आपको एक पैसे नहीं देना है, बस अनुदान मिलेगा उसे लौटाना होगा। कायदे से किसान 1.26 लाख जमा करता, उसके बाद मशीन मिलती और फिर 60 हजार अनुदान। मगर एजेंटों ने किसानों से ब्लैंक चेक में दस्तखत करा लिया और हार्टिकल्चर से जैसे ही किसानों को अनुदान जारी हुआ, चेक को लगाकर पैसा निकाल लिया। यानी 25 हजार का यंत्र 1.26 लाख में टिकाया गया। और उपर से अनुदान भी हड़प लिया गया। विस चुनाव से जस्ट पहले पूर्व सीएम डॉ0 रमन सिंह ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से इसकी शिकायत कर जांच कर मांग की थी। केंद्रीय मंत्री से इसलिए क्योंकि अनुदान भारत सरकार से मिलता है। अब सरकार बदल गई है। लिहाजा, प्रतीत होता है कि कृषि मंत्री रामविचार नेताम इसे संज्ञान लेंगे और हार्टिकल्चर में सालों से जमे अधिकारियों पर कार्रवाई करेंगे। क्योंकि, रमन सिंह ने बड़ा दुखी होकर केंद्रीय मंत्र को पत्र लिखा था।

मोदीजी का 360 डिग्री

राज्यसभा सदस्य के लिए बीजेपी के संगठन मंत्री रहे रामप्रताप सिंह की काफी चर्चा रही। पार्टी के लोग इसको लेकर आशान्वित तो थे ही, सोशल मीडिया से लेकर बड़े मीडिया घराने भी रामप्रताप की ताजपोशी तय होने का ऐलान कर रहे थे। मगर मोदी मैजिक ने फिर सबको चौंका दिया। रामप्रताप की जगह रायगढ़ के देवेंद्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया गया। देवेंद्र प्रताप इतने सूबे के लिए ऐसे अल्पज्ञात थे कि गूगल पर भी कुछ नहीं मिल पा रहा था। देवेंद्र प्रताप टाईप करने पर गोरखपुर आ रहा था। बीजेपी नेताओं ने भी सिर पकड़ लिया कि कांग्रेस पर बाहरी नेताओं को राज्यसभा में भेजने का आरोप लगा रहे थे, मोदीजी ने ये क्या कर डाला...अब क्या जवाब देंगे। बहरहाल, नाम ऐलान होने के बाद करीब 20 मिनट बाद कंफर्म हुआ कि ये रायगढ़ वाले देवेंद्र प्रताप हैं। तब जाकर बीजेपी नेताओं की सांसें लौटी। चलिये, ये कम थोड़े ही है कि रामप्रताप न सही, किसी प्रताप को ही राज्य सभा भेजा गया है। ये मोदीजी के 360 डिग्री मूल्यांकन प्रणाली का कमाल है। 15 साल सरकार रहते माल-मलाई खाने और शाही सुख-सुविधा भोगने वाले बीजेपी और संघ के नेताओं को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनका समय अब खतम हो गया है।

आईएएस पोस्टिंग

आने वाले दिनों में आईएएस में एक छोटी लिस्ट और निकलेगी। सोनमणि बोरा और मुकेश बंसल सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। बोरा प्रमुख सचिव रैंक के अफसर हैं। इस लेवल पर सिर्फ एक ही आईएएस हैं। निहारिका बारिक। अब दो हो जाएंगे। कई अहम विभागों में प्रमुख सचिव पोस्ट करने की परिपाटी रही है। सो, बोरा को ठीकठाक विभाग मिल सकता है। वहीं, मुकेश बंसल सिकरेट्री रैंक के हैं। मुकेश उस समय रायगढ़ कलेक्टर थे, जब सीएम विष्णुदेव साय वहां से सांसद होते थे। सो, सीएम मुकेश की वर्किंग जानते हैं। आखिर, फायनेंस में इंश्योरेंस जैसे विभाग संभाल रहे मुकेश को सरकार ने पत्र लिखकर वापिस बुलाया है तो जाहिर तौर पर पोस्टिंग अच्छी मिलनी चाहिए।

विधायकों का ड्रेस सेंस

छत्तीसगढ़ की छठवीं विधानसभा का रौनक कुछ अलग है। डॉ0 रमन सिंह जैसे हैंडसम, आकर्षक डील डौल वाले स्पीकर। 15 साल के सीएम का औरा...। आसंदी पर उनके बैठने से विधानसभा की रौनक बढ़ी है। बाकी में के ड्रेस सेंस को लेकर भी कौतूकता है। बेशक, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ड्रेस को लेकर शौकीन माने जाते हैं। मगर सीएम विष्णुदेव साय भी पीछे नहीं। उनके यूनिक कलर वाले जैकेट पर नजर ठहर जाती है। बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर जैसे पहनावे को लेकर बेफिक्र रहने वाले विधायक भी सदन में टाइडी नजर आ रहे हैं। दरअसल, इस बार बड़ी संख्या में युवा विधायक चुन कर आए हैं। युवाओं में ड्रेस सेंस को लेकर एवरनेस रहता ही है। कई युवा विधायकों के चमक-धमक को देखकर लगता है कि सत्र के लिए ड्रेस की खास तैयारी की है। जाहिर है, इससे सदन का नजारा खुशगवार होगा ही।

महिला विधायकों का प्रदर्शन

विधानसभा में इस बार 19 महिला विधायक पहुंची हैं। इनमें 8 बीजेपी की और 11 कांग्रेस की। पहले के विधानसभाओं से उलट महिला विधायक इस बार अच्छा परफर्म कर रही हैं। सवाल पूछने के ढंग से लगता है कि होम वर्क बढ़ियां किया है। भावना बोथरा, संगीता सिनहा, शेषराज हरबंश, चतुरी नंद जैसी विधायकों के सवालों से मंत्री किंचित परेशानी भी फिल कर रहे हैं। खासकर, सराईपाली अनुसूचित सीट से प्रतिनिधित्व करने वाली चतुरी नंद की प्रतिभा की स्पीकर रमन सिंह ने तारीफ की। उन्होंने कहा कि बाकी विधायकों को भी ऐसा प्रदर्शन करना चाहिए। शिक्षिका से विधायक बनीं चतुरी ने 15 फरवरी के प्रश्नकाल में पुलिसकर्मियों के वेतन-भत्ते से संबंधित ऐसा सवाल पूछा कि विजय शर्मा जैसे मुखर और दबंग गृह मंत्री को जवाब देने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। चतुरी के पूरक सवाल ऐसे थे कि रमन सिंह को उन्हें 20 मिनट देना पड़ा।

कलेक्टर की सतर्कता

एक युवा कलेक्टर कैरियर को लेकर इतने सजग और सतर्क हैं कि कमरे में कोई महिला अधिकारी, कर्मचारी या मुलाकाती आ गई तो अर्दली दरवाजा खोल देता है। अर्दली को इसके लिए स्पष्ट निर्देष दिए गए हैं। दरअसल, वह जिला ऐसा है कि अफसर अगर बच कर निकल गए तो ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। एक कलेक्टर वहां दुष्कर्म के केस में फंस चुके हैं। अब कोई लाख दुहाई देता रहे कि आम सहमति का मामला था मगर पुलिस में जो शिकायत है, कानूनन वही मान्य किया जाता है। इस चक्कर में उनका प्रमोशन रुक गया। केस चल रहा सो अलग।

गूगल की पत्रकारिता

बिलासपुर के कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ला गूगल पत्रकारिता का ऐसे शिकार हुए हैं कि वे मोबाइल की घंटी ने उनका चैन छिन लिया है। दरअसल, राजेंद्र के ही हमनाम रीवा से विधायक हैं और एमपी के डिप्टी सीएम। एक अंग्रेजी वेबसाइट ने डिप्टी सीएम का प्रोफाइल किया और उसमें मोबाइल नंबर दे डाला बिलसपुरिया राजेंद्र शुक्ला का। हेडिंग भी नाम और मोबाइल नंबर के साथ। गूगल ने इस खबर को पिक किया और इसका नतीजा यह हुआ कि डिप्टी सीएम समझ मध्यप्रदेश से लोग धड़ाधड़ फोन लगा रहे हैं बिलासपुर वाले राजेंद्र को। राजेंद्र 2018 का विस चुनाव जोगी कांग्रेस के चलते जीतते-जीतते हार गए थे। और इस बार टिकिट नहीं मिली। चलिये, राजेंद्र यहां विधायक, मंत्री नहीं बने, गूगल ने उन्हें सीधे डिप्टी सीएम बना दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूरजपुर के आईएएस एसडीएम को डेढ़ महीने के भीतर सीधे सुकमा क्यों भेज दिया गया?

2. क्या ये सही है कि लोकसभा की 11 में से आठ सीटों पर बीजेपी नए चेहरों को उतारेगी?



रविवार, 11 फ़रवरी 2024

Chhattisgrah Tarkash 2024: फिल्म अंधा कानून और पीएससी

 तरकश, 11 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

फिल्म अंधा कानून और पीएससी

80 के दशक में अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म आई थी अंधा कानून। इस फिल्म के नायक अमिताभ को देश के सिस्टम पर भरोसा नहीं रहता और वे अपने हिसाब से विरोधियों से निबटते हैं। इस पिक्चर में उस समय का एक बेहद हिट गाना भी था, ये अंधा कानून है...।

हरहाल, बात छत्तीसगढ़ पीएससी की। वर्षा डोंगरे की लंबी लड़ाई के बाद बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए पीएससी 2003 परीक्षा परिणाम को निरस्त कर दिया था। और नए सिरे से स्केलिंग कर रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया था। मगर क्या करें...इस देश में आरोपियों के हाथ भी लंबे हो गए हैं। काली कमाई वाले अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में करोड़ी वकील को खड़ा कर स्टे हासिल कर लिया। जबकि, ईओडब्लू की जांच में दस्तावेजी प्रमाण मिले थे कि किस तरह पीएससी ने खेला किया। आरटीआई में पीएससी ने खुद जो जानकारियों दी, उसके बाद कुछ कहने के लिए बच नहीं जाता। बावजूद इसके, 2003 पीएससी के अफसरों को सर्विस करते करीब 18 साल हो गए हैं। जब तक स्टे हटेगा या फैसला आएगा, तब तक लाखों, करोड़ों का वारा-न्यारा कर सभी अधिकारी रिटायर हो चुके होंगे।

ब बात 2021 और 2022 पीएससी की। सीएम विष्णुदेव साय ने बड़ा स्टैंड लेते हुए सीबीआई जांच का ऐलान किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हमारे बच्चों के कैरियर से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम की मंशा नेक हैं। तभी सीबीआई जांच की घोषणा हुई। मगर सूबे के युवाओं को पीएससी 2003 बार-बार याद आ जा रहा। जो लोग बेटे-बेटी, बेटी-दामाद को डिप्टी कलेक्टर बनाने एक-एक खोखा दे सकते हैं, समझा जा सकता है...ऐसे बड़े लोगों के हाथ कितने बड़े होंगे।

मंत्रियों को मौका

स्टेट में काम करने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सीधे मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होते हैं। सीआर से लेकर ट्रांसफर, पोस्टिंग, डीई, कार्रवाई...सब सीएम लेवल पर होता है। मंत्रियों का इसमें कोई रोल नहीं होता। इसके अलावा कलेक्टर कांफ्रेंस हो या एसपी, आईजी कांफ्रेंस... मुख्यमंत्री ही इसे मलेते हैं। मगर अपने सीएम विष्णुदेव साय मंत्रियों को काम करने और दिखाने का भरपूर मौका दे रहे हैं। उनकी सरकार की पहली एसपी, आईजी कांफें्रस 10 फरवरी को रायपुर में हुई। मुख्यमंत्री इसमें पहुंचे और शुरूआती एड्रेस कर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से जशपुर रवाना हो गए। उनकी जगह गृह मंत्री विजय शर्मा एसपी, आईजी साहबों की क्लास लिए। वाकई, विजय के लिए बड़ा दिन रहा। क्योंकि, किसी राज्य के गृह मंत्री को यह मौका नहीं मिलता कि वो ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों की क्लास ले। विजय तेज और दबंग तो हैं ही, लगता है सरकार से उन्हें पावर भी भरपूर मिल रहा है। वरना, कोई सीएम शीर्ष अफसरों की लगाम मंत्रियों को नहीं सौंपता।

उलझन में सिस्टम?

अभी तक राजभवन में सिकरेट्री हो या फिर एडीसी, वहां से सभी ठीकठाक पोस्टिंग लेकर ही निकलते हैं। सिकरेट्री में आईसीपी केसरी पीडब्लूडी सिकरेट्री बनकर राजभवन से मंत्रालय आए थे तो सुशील त्रिवेदी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए गए थे। पीसी दलेई से लेकर जवाहर श्रीवास्तव, एसके जायसवाल सभी को रिटायर होने के बाद भी कोई-न-कोई पोस्टिंग मिली थी। इस समय अमृत खलको राजभवन में सिकरेट्री हैं। उन्होंने राज्य सूचना आयोग में बतौर सिकरेट्री के लिए अप्लाई किया है। खलको फिलवक्त संविदा में राजभवन में पोस्टेड है। पीएससी 2021 की परीक्षा में उनका बेटा और बेटी दोनों डिप्टी कलेक्टर में सलेक्ट हो गए। जाहिर है, इसको लेकर काफी बवाल मचा था। पीएससी स्कैम को लेकर विष्णुदेव सरकार अब सख्ती के मूड में है। सीबीआई जांच की घोषणा भी हो गई है। ऐसे में, हो सकता है खलको को राजभवन से खाली हाथ निकलना पड़े।

कलेक्टरों का चेक और सूटकेस

नई सरकार ने स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल योजना को समाप्त कर कलेक्टरों की प्रबंध समिति को भंग कर दिया। बता दें, कलेक्टरों की ये प्रबंध समिति नहीं, पैसा निकासी समिति थी। सरकार ने कलेक्टरों को डीएमएफ से इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा सौंपा और कलेक्टरों ने दोनों हाथांं से डीएमएफ उड़ाने का माध्यम बना लिया। कई गुना रेट पर फनीर्चर से लेकर ब्लैक बोर्ड, प्रोजेक्टर जैसे समान खरीद डाले। चूकि डीएमएफ के मालिक कलेक्टर होते हैं, सो उनसे कोई पूछ नहीं सकता कि वे इस राशि को किस मद में खर्च कर रहे हैं। इससे हुआ यह कि जिन स्कूलों में बिजली नहीं, वहां पांच गुने रेट पर टीवी और प्रोजेक्टर, इलेक्ट्रानिक ब्लैक बोर्ड खरीदे गए। कलेक्टरों ने जिन शिक्षकों को नोडल अधिकारी बनाया, वे पोस्टिंग में खेला कर दिए। डे़ढ़ लाख से लेकर ढाई लाख तक लेकर ग्रामीण इलाकों के हिंदी टीचरों को शहरों के अंग्रेजी स्कूलों में पोस्टिंग दे दी। शिक्षकों भी लगा कि पैसा लेकर रायपुर में दलालों का चक्कर काटने से अच्छा है, अंग्रेजी स्कूलों में डेपुटेशन लेकर शहर आ जाओ। कुल मिलाकर कलेक्टर्स अंग्रेजी स्कूल को कमाउ पूत बना डाले थे। एक हाथ से डीएमएफ का चेक काटो, और दूसरे हाथ से सप्लायरों से सूटकेस ले लो।

युवा मंत्री, युवा सिकरेट्री

वित्त मंत्री अमर अग्रवाल को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ सरकार का बजट पेश करने वाले सभी मंत्री या सीएम 60 प्लस रहे। छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने तीन बार बजट पेश किया। वे 60 प्लस रहे। इसके बाद तीन बजट पेश करने वाले अमर अग्रवाल अंडर 45 थे। इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 12 और भूपेश बघेल ने पांच बजट पेश किया। इस बार बजट पेश करने वाले ओपी चौधरी न केवल अंडर 45 हैं बल्कि पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंचे हैं। हिन्दी से यूपीएससी क्लियर करने वाले माटी पुत्र ओपी ने खुद से बजट भाषण तैयार किया था। ओपी ने जब लच्छेदार बोलना शुरू किया तो सदन इस युवा मंत्री के भाषण को सिर्फ देखता और सुनता रहा। 1.24 घंटे के संबोधन में कोई टोकाटोकी नहीं। मंत्री के साथ बजट को मूर्तरूप देने वाले फायनेंस सिकरेट्री भी कोई पके बाल वाले नहीं हैं। आईएएस में ओपी से जस्ट जूनियर हैं। 2006 बैच के। दो साल पहले ही सिकरेट्री बने हैं। वरना, पहले एसीएस या पीएस लेवल के अफसर ही फायनेंस सिकरेट्री होते थे। डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन ने काफी सालों तक वित्त विभाग संभाला। उसके बाद कुछ दो बार अलरमेल मंगई डी वित्त सचिव रहीं।

प्रेशर में नहीं सरकार

89 अफसरों की पहली प्रशासनिक सर्जरी करने के बाद कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया था कि बड़ी लिस्ट निकालकर सरकार ने कुछ ब्लंडर कर दिया। मीडिया में खबरें भी वायरल कराई गई कि पीएमओ तक में शिकायत हो गई है...अब खैर नहीं। मगर सरकार गीदड़भभकी से प्रेशर में नहीं आई। प्रशासनिक लिस्ट में 19 जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर किया गया था। पुलिस की लिस्ट में भी कम नहीं हुआ। चार रेंज के आईजी हटाए गए तो 25 जिलों के एसपी बदल दिए गए।

रणछोड़दास एसपी

एसपी की लिस्ट देर से आई मगर ठीकठाक रही। सरकार ने मेरिट को वेटेज देते हुए पिछली सरकार में कुछ अच्छे पुलिस अधीक्षकों को फिर से कंटीन्यू किया करने से परहेज नहीं किया। कुल मिलाकर अधिकांश बड़े जिलों में इस बार रिजल्ट देने वाले तेज-तर्रार अफसरों को बिठाया गया है। मगर मजबूरी में ही सही...एक रणछोड़दास अफसर को जिला मिल गया। 12 जुलाई 2009 को मोहला मानपुर में हुई नक्सली हिंसा में राजनांदगांव के एसपी विनोद चौबे शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद इस अफसर को मोहला मानपुर का एसडीओपी बनाया गया। मगर पुलिस अधिकारी ने नक्सलियों की खौफ के डर से वहां ज्वाईन करने से साफ इंकार कर दिया था। तब रमन सरकार ने बस्तरिया आईपीएस सरयू राम सलाम को वहां भेजा। चलिए, ठीक है...डेमोक्रेसी में वर्गवाद की वजह से कई बार ऐसे फैसले सरकार को लेने पड़ते हैं। मगर विडंबना यह है कि सलाम मोहला मानपुर में ढाई साल रहे, जब उस इलाके के नाम से पुलिस वाले कांप जाते थे। आखिर, पहली बार नक्सली हिंसा में देश में कोई एसपी शहीद हुआ था। उससे पहिले सलाम बस्तर में भी बारुदी विस्फोट में बाल-बाल बचे थे। मगर इस अफसर को अभी तक एक बार भी एसपी बनने का मौका नहीं मिला।

राजस्व बोर्ड चेयरमैन

ब्यूरोक्रेसी में राजस्व बोर्ड को शंटिंग स्टेशन माना जाता है। यानी लूपलाईन वाली पोस्टिंग। सरकार जिस अफसर से नाराज होती है, उसे राजस्व बोर्ड का चेयरमैन बना दिया जाता है। चूकि यह चीफ सिकरेट्री रैंक की कुर्सी है, इसलिए किसी सीएस को हटाना होता है या फिर इस रैंक के किसी अफसर को मंत्रालय से हटाना होता है या किसी बैच का अफसर अगर चीफ सिकरेट्री बन गया तो उस बैच के दीगर अफसर को राजस्व बोर्ड एडजस्ट किया जाता है। मसलन, 87 बैच के आईएएस आरपी मंडल चीफ सिकरेट्री बनें तो सीके खेतान को राजस्व बोर्ड भेज दिया गया। जाहिर है, पिछली सरकार खेतान से किसी बात से नाराज थी, इसलिए बैचवाइज सीनियर होने के बाद भी उन्हें सीएस बनने का मौका नहीं मिला। मंडल के बाद अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री बने। अब लगता है, अमिताभ अगले साल मई में रिटायर होंगे, तो कोई बड़ा अफसर राजस्व बोर्ड जाएगा। अमिताभ के बाद अगर सुब्रत सीएस बन गए तो ठीक वरना, 94 बैच का कोई आईएएस जाएगा राजस्व बोर्ड। क्योंकि, इस बैच में कई चार आईएएस हैं। और सीएस एक ही बनेगा।

सीएस का मिथक

ब्यूरोक्रेसी में मिथक है कि जो अफसर प्रशासन अकादमी में पोस्टिंग पाता है, वह चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाता। बीकेएस रे से लेकर सरजियस मिंज, डीएस मिश्रा तक कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो ठीकठाक अफसर होने के बाद भी चीफ सिकरेट्री की कुर्सी तक नहीं पहुंंच पाए। और जो सीएस बने हैं, वे कभी प्रशासन अकादमी में नहीं रहे। ऐसे में, एसीएस सुब्रत साहू को कुछ पूजा-पाठ करा लेना चाहिए। क्योंकि, वे इस समय प्रशासन अकादमी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इन चर्चाओं में कितनी सत्यता है कि सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड सीनियर आईएएस अमित अग्रवाल क्या छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?

2. छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों में अभी सबसे प्रभावशाली कौन हैं?


शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024: मंत्रियों के खटराल पीए

 Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्रियों के खटराल पीए

दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों का पीए बनाने में बड़ी कड़ाई बरती जा रही है। 360 डिग्री से टेस्टिंग के बाद ही मंत्रियों के पीए की नियुक्ति हो पा रही। मगर छत्तीसगढ़ में जीएडी ऐसे खटराल डिप्टी कलेक्टरों को पीए अपाइंट कर रहा है कि पूछिए मत! छत्तीसगढ़ में एक ज्वाइंट कलेक्टर का मंत्री का विशेष सहायक बनाया गया है, जिसने एसडीएम रहते एनटीपीसी को 500 करोड़ रुपए की चपत लगाई थी। वाकया 2014 का है...रायगढ़ के पास लारा में एनटीपीसी के प्लांट निर्माण को देखते तत्कालीन एसडीएम ने जमीनों की खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। मगर उनके ट्रांसफर के बाद आए इस एसडीएम ने चुपके से प्रतिबंध हटाकर बड़ा खेला कर डाला। भूअर्जन में जमीन के टुकड़ों का खेल खेलते हुए 300 प्लाट के 1300 टुकड़े कर दिए गए। दरअसल, छोटे टुकड़ों का मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। एनटीपीसी के अफसरों ने कलेक्टर से इसकी शिकायत की...छोटे टुकड़ों के खेल की वजह से उन्हें 500 करोड़ अधिक मुआवजा देना पड़ा है। मुकेश बंसल उस समय कलेक्टर रायगढ़ थे। उन्होंने पुलिस में न केवल नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी बल्कि 1300 पेज की जांच रिपोर्ट भेज सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह किया था। उस समय की बीजेपी सरकार ने एसडीएम को न केवल सस्पेंड किया बल्कि विभागीय जांच भी बिठा दी थी। एसडीएम के खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। मगर बाद में हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई। बहरहाल, डीई अभी चल रही है। इस वजह से अफसर का प्रमोशन नहीं हो पाया। दाग इतना बड़ा है कि आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। अब ऐसे अफसरों को मंत्रियों का विशेष सहायक बनाया जाएगा तो आप समझ सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की मुहिम का क्या होगा। वैसे ये तो एक बानगी है...अधिकांश मंत्रियों के पीए किसी-न-किसी मामले में चर्चित रहे हैं। अधिकांश मंत्री अपने-अपने हिसाब से पीए की नियुक्ति कराए जा रहे हैं।

एक करोड़ की माशूका

ऑल इंडिया सर्विस के डायरेक्टर लेवल के एक अफसर की इन दिनों राजधानी रायपुर में बड़ी चर्चाएं हैं। वे जब जिले में पोस्टेड रहे तो पहली के होते दूसरी शादी रचा लिए थे। और अब राजधानी में डायरेक्टर बने तो तीसरी के चक्कर में फंस गए। दरअसल, विभागीय कामकाज के सिलसिले में उन्हें एक जिले में दो चार बार जाना हुआ। वहां अपने ही विभाग की एक मुलाजिम से दिल लगा बैठे। दोनों पहले खूब मिले-जुले, घूमे-फिरे। किन्तु कुछ दिन बाद डायरेक्टर साहब लगे हाथ खींचने। फिर माशूका ने अपना रंग दिखाया...मय सबूत अंतरंग क्षणों के वीडियो के साथ पुलिस में कंप्लेन करने की धमकी दे डाली। डायरेक्टर लगे हाथ-पैर जोड़ने। युवती भी निचले क्रम की अफसर थीं, उसे पता था कि साहब का क्या लेवल है, उसने उसी के अनुरूप डील पक्का किया। चार किश्तों में एक करोड़। समझौता इस बात पर हुआ कि पेमेंट कंप्लीट होने के बाद ओरिजनल वीडियो सुपुर्द कर देगी। मगर पैसा मिलने के बाद उसने गच्चा दे दिया। माशूका का कहना है, विश्वास रखो, मैं अब कुछ नहीं करूंगी। लेकिन डायरेक्टर साब को डर सता रहा, कहीं मैं एटीएम न बन जाऊं। लंगोट के ढीले अफसरों के साथ ऐसा ही होता है। वरना, मालूम है उस जिले में एक कलेक्टर साब इसी तरह के शौक में निबट गए...बावजूद डायरेक्टर ने लंगोट टाईट करके नहीं रखा।

फायदे में डिप्टी सीएम

सरकार ने जिलों के प्रभारी मंत्रियों का ऐलान कर दिया है। चूकि जिलों की संख्या अब 33 हो गई है सो अधिकांश मंत्रियों के हिस्से में तीन-तीन जिले आए हैं। जिलों के बंटवारे में प्रमुख पैरामीटर यह था कि गृह जिला नहीं होना चाहिए। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है...आमतौर पर ऐसा ही होता आया है। मगर डिप्टी सीएम अरुण साव को इसमें अपवाद बोल सकते हैं। उन्हें तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है, उनमें एक बिलासपुर भी है। हालांकि, अरुण का गृह जिला मुंगेली है। उनका विधानसभा इलाका लोरमी इसी मुंगेली में आता है। मगर अब गृह जिला नाम का रह गया है। प्रारंभ से उनका कार्य और निवास क्षेत्र बिलासपुर रहा है। बिलासपुर में वे जनता दरबार भी लगाते हैं। ऐसे में, बिलासपुर के प्रभारी मंत्री बनने का मतलब समझा जा सकता है। कुल मिलाकर मंत्रियों में अरुण साव नफे में रहे।

बेशर्म सिस्टम

छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार कितनी गहरी जड़े जमा चुका है कि सत्ताधारी पार्टी का नेता हो या पूर्व विधायक इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात रायपुर की विधायक रह चुकी रजनी ताई उपासने की। रजनी ताई का पूरा परिवार जनसंघ के समय से पार्टी के लिए समर्पित रहा है। उनके दो बेटे इमरजेंसी के दौरान रायपुर जेल में बंद रहे। बड़ा बेटा जगदीश उपासने देश की प्रतिष्ठित न्यूज मैगजीन के सालों तक संपादक रहे हैं। बावजूद इसके उनका परिवार को भी दो-चार होना पड़ रहा है। असल में, रजनी ताई राजधानी की एक सोसाइटी का मकान बेचना चाहती हैं। सोसाइटी चूकि भंग है इसलिए वहां से एनओसी का कोई तुक नहीं। मगर सहकारिता विभाग की एक महिला अफसर को एनओसी देने के लिए चाहिए 35 हजार। महिला अफसर को बताया गया...रजनी ताई सत्ताधारी पार्टी की पूर्व विधायक हैं। महिला अफसर ने कहा, कोई नहीं, पैसा देना पड़ेगा। जगदीश उपासने इस स्तंभकार से बात करते हुए हतप्रभ थे। बोले, छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल ये हो गया है।

अगला मुख्य सचिव?

चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में वैसे तो अभी एक साल से ज्यादा वक्त बचा है। अगले साल मई तक उनकी सर्विस है। लेकिन ब्यूरोकेसी में उनके बाद यानी भावी प्रशासनिक मुखिया की चर्चाएं शुरू हो गई है। अमिताभ के बाद सीनियरटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। रेणु के बारे में कहा जाता है वे अपनी भी नहीं सुनती। ऐसे में सीएस जैसा अहम दायित्व देना किसी सरकार के लिए संभव नहीं। बचे सुब्रत तो एसीएस टू सीएम होने की वजह से उन पर पिछली सरकार का लेवल लग चुका है। अब भगवान जगन्नाथ का कोई चमत्कार हो गया तो बात अलग है। सुब्रत के बाद 93 बैच के अमित अग्रवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। अमित लंबे समय से दिल्ली में हैं। वैसे भी, अमित की सवारी कर पाना संभव नहीं। ऐसे में पूरी संभावनाएं 1994 बैच के दो अफसरों पर आकर ठहर जाती है। खासकर मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा। इस बैच के विकास शील एडीबीआई के डायरेक्टर बनकर मनीला चले गए हैं और उनकी बैचमेट पत्नी बदली परिस्थिति में दिल्ली डेपुटेशन में ही रहना बेहतर समझेंगी। ऐसे में यह निश्चित है कि मनोज और ऋचा में से ही कोई छत्तीसगढ़ का अगला चीफ सेक्रेटरी बनेगा। यह कब होगा? लोकसभा चुनाव के बाद या अगले साल मई में? यह सीएम विष्णुदेव साय बता पाएंगे।

मुझे ओपी कहिये

जूनियर जब बॉस बन जाए तो उस दर्द और पीड़ा को समझा जा सकता है। ब्यूरोक्रेसी में 2005 बैच से उपर के लगभग सभी अफसरों को इसी स्थिति से साबका पड़ रहा है। दरअसल, 2005 बैच के आईएएस रहे ओपी चौधरी अब फायनेंस मिनिस्टर बन गए हैं। अक्टूबर 2018 में ओपी जब रायपुर जैसे बड़े जिले की कलेक्टरी छोड़ चुनाव में उतरे और पहली बॉल पर अपना विकेट गंवा बैठे तो ब्यूरोक्रेसी में यह राय व्यक्त करने वालों की कमी नहीं थी कि ओपी ने खामोख्वाह कुल्हाड़ी पर पैर मार बैठा...सरकार बदल गई तो क्या हुआ, धीरे से ठीकठाक पोस्टिंग भी मिल जाती। मगर अब बड़े-बड़े नौकरशाहों को ओपी सर कहना पड़ रहा है, सम्मान में खड़ा होने की मजबूरी भी। जाहिर है, उन्हें पीड़ा तो होती होगी। हालांकि, भारी भरकम विभागों के मंत्री बनने के बाद भी ओपी सीनियर अफसरों को ऐसा अहसास नहीं होने दे रहे। हाल में एक महिला सिकरेटी को उन्होंने फोन लगावाया, उधर से आवाज आई...नमस्कार सर मैं फलां...। ओपी ने विनम्रता से कहा, मैडम! आप मुझे ओपी ही कहिये।

फास्ट पोस्टिंग

आईपीएस राजेश मिश्रा डीजीपी नहीं बन पाए मगर संविदा पोस्टिंग में उन्हें ज्यादा वेट नहीं करना पड़ा। 31 जनवरी को रिटायर हुए और दो फरवरी को उन्हें संविदा नियुक्ति मिल गई। याने 48 घंटे के भीतर। और इसके घंटे भर के भीतर जेल डीजी का दायित्व भी। उनसे पहले संजय पिल्ले को रिटायरमेंट के बाद करीब महीने भर तक वेट करना पड़ा था, तब जाकर फिर डीजी जेल बन पाए थे। हालांकि, 15 साल वाली बीजेपी सरकार भी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए वेट कराती थी। करीब महीने भर तक। उस सरकार में सबसे अच्छी पोस्टिंग होल्ड करने वाले ठाकुर राम सिंह को भी रिटायरमेंट के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए एक महीना प्रतीक्षा करना पड़ा था। विवेक ढांड और एमके राउत अवश्य अपवाद रहे। ढांड का वीआरएस एक्सेप्ट के आदेश के साथ ही रेरा चेयरमेन की पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को भी करीब 10 दिन लगा था। सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड आरपी मंडल के नाम दर्ज है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के 15 मिनट के भीतर उनका एनआरडीए चेयरमेन का आदेश जारी हो गया था। ढांड और राउत का रिकार्ड इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि उन दोनों पदों के लिए सलेक्शन का अपना प्रॉसेज है। दोनों का प्रॉसेज पहले ही पूरा कर लिया गया था। पोस्टिंग के लिए उचित समय का इंतजार किया जा रहा था। इसलिए, सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड मंडल के नाम रहेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि एसीएस मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा में से कोई एक मुख्यमंत्री विष्णुदेव का एसीएस बनेगा और दूसरा अगला चीफ सिकरेट्री?

2. छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्तर की घोषणाएं मंत्री कैसे कर रहे हैं?


शनिवार, 27 जनवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash: अफसरों का ड्रेस कोड

 तरकश, 28 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों का ड्रेस कोड

राजस्थान के चीफ सिकरेट्री ड्रेस को लेकर बेहद सख्त हैं। एक बार जिंस पहनकर मीटिंग में आने वाले तीन अफसरों को उन्होंने पैंट बदलने घर भेज दिया था। इस वाकये से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की याद आ गई। सरकार बनने के दो ही महीने हुए थे कि पुराने मंत्रालय की एक बैठक में प्रमुख सचिव स्तर के एक आईएएस फुल टीशर्ट नुमा कुछ पहनकर आ गए थे। जोगी जी इस पर बेहद नाराज हुए। उन्होंने उस अफसर को मीटिंग से उठाया तो नहीं मगर यह कहते हुए क्लास जमकर ली थी कि ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों को पहनावे का ध्यान रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से ठीक इसका उलट हो रहा है। मुख्यमंत्री की बैठकों में कोई हाफ शर्ट पहनकर पहुंच जाता है तो कोई आस्तिन चढ़ाकर। पहले के अफसर ड्रेस को लेकर बड़ा संजीदा रहते थे। खासकर सीएम की जिस दिन मीटिंग है, उस दिन हाफ शर्ट बिल्कुल नहीं। पहनावा भी गरिमापूर्ण। एक तरह से ये सिस्टम और सीएम का सम्मान होता है। राजभवन के कार्यक्रमों में भी आज कल लोग ड्रेस का ध्यान नहीं रख रहे। चीफ सिकरेट्री को इसके लिए अपने अधिकारियों को ताकीद करना चाहिए...कम-से-कम सीएम की मीटिंग और राजभवन के कार्यक्रमों में ड्रेस की मर्यादा का ध्यान रखा जाए।

मीटिंग से GO...GO

चूकि बात मीटिंग से अफसरों को उठाने और अजीत जोगी की निकली है तो एक पुराना वाकया याद हो आया। 2001 की बात होगी। यही धान खरीदी का कोई समय था। नवंबर या दिसंबर का। तब बारदाना का शार्टेज हो गया था, किसान हलाकान थे। जोगी जी ने पुराने मंत्रालय में फूड, नॉन, और मार्कफेड के अफसरों की बैठक बुलाई। अब जोगी जी जोगी जी थे, उन्हें कोई मिसगाइड कहां कर सकता था। अफसरों ने यह कहते हुए उन्हें भटकाने की कोशिश की कोलकाता की कंपनी बारदाना भेज नहीं रही है...इस पर वे बिगड़ उठे। उन्होंने दो आईएएस को भरी मीटिंग से उठा दिया। बोले...अभी कोलकाता जाओ। अफसर इसे समझ नहीं पाए। लगा कि जाने को बोल रहे तो कल चल देंगे। पुराने लोगों को याद होगा, जोगीजी को जब गुस्सा आता था तो वे कांपने लगते थे। ऐसा ही कुछ उस मीटिंग में हुआ। बोले...उठ क्यों नहीं रहे हो, चलो अभी जाओ...गो...गो। जोगीजी के चेहरे की भाव भंगिमा देख दोनों अफसर तुरंत मीटिंग छोड़ कोलकाता भागे। उस समय फ्लाइट नहीं थी और न सरकार के पास इतने पैसे होते थे कि अफसर यहां से दिल्ली जाए और वहां से फिर कोलकाता। रामचंद सिंहदेव जैसे सख्त वित्त मंत्री थे। किसी सप्लायर या ठेकेदार से टिकिट करा लें, ऐसा भी उस समय नहीं होता था। लिहाजा, दोनों आईएएस अफसरों ने शाम की मुंबई-हावड़ा मेल में इमरजेंसी कोटे से दो बर्थ कराया और कोलकाता रवाना हुए।

वक्त की दोहरी मार

ब्यूरोक्रेसी में हमेशा दिन एक बराबर नहीं होते। वैसे भी नौकरशाही में माना जाता है, आईएएस की लगभग 30 साल की सर्विस में 20 साल कमाल के होते हैं तो पांच साल मीडियम और पांच साल मुश्किल के। छत्तीसगढ़ में भी सरकार बदलने के बाद कुछ अफसरों का अच्छा नहीं चल रहा। खासकर, सात आईएएस अधिकारियों पर वक्त की दोहरी मार बोल सकते हैं। कुछ कलेक्टरों को चुनाव आयोग ने आचार संहिता लगते ही हटा दिया था, और कुछ को नई सरकार ने। इसके बाद सरकार ने सात अफसरों को मिड टर्म ट्रेनिंग के लिए महीने भर के लिए मसूरी भेज दिया। अब बेचारे छत्तीसगढ़ के आईएएस, मसूरी के एक डिग्री टेम्परेचर में कैसे रह रहे होंगे, आप समझ सकते हैं। रात में हीटर ऑन करते हैं तो बेचैनी होती है और न जलाएं तो डबल रजाई भी असर नहीं कर रहा। उसमें भी सुबह उठ जाना...मुंह से भाप निकलते कभी देखा नहीं। सात में एक माताजी भी हैं। सातों आईएएस देवों के देव विष्णुदेव से प्रार्थना कर रहे...भगवान तकलीफ दे रहे हो तो मसूरी से लौटने के बाद कुछ काम धाम भी दे देना।

छुट्टियों में याद रखना

पिछली सरकार ने डीए, एचआर देने में भले ही विलंब किया मगर छुट्टियां इतनी दे डाली कि छत्तीसगढ़ के कर्मचारी मौज काट रहे हैं। साल में कई हफ्ते ऐसे निकल जा रहे कि दो-एक दिन की अर्जी लगा दिए तो दसेक दिन का सैर-सपाटा। हालांकि, एक पहलू यह भी है कि कर्मचारियों, अधिकारियों के घरों में पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़े हैं। पहले हफ्ता में एकाध दिन छुट्टी होती थी तो उसका ब़ड़ा चार्म होता था। अब तीन-तीन, चार-चार दिन घर में रहेंगे तो दिक्कतें तो होगी ही। बहरहाल, तीज-त्यौहारों की छुट्टियां इतनी ज्यादा हो गई है कि छुट्टी घोषित करने वाला जीएडी भी कंफ्यूज्ड हो जा रहा। पिछली सरकार ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया हुआ है, जीएडी ने इसी दिन नागपंचमी का लोकल अवकाश दे दिया। जीएडी भी आखिर क्या करें...इतनी छुट्टियों से भ्रमित होना स्वाभाविक है। फिर भी, छुट्टियों को लेकर शिक्षक और कर्मचारी पिछली सरकार को जरूर याद रखेंगे।

मगर वोट नहीं...

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक रिटायर चीफ सिकरेट्री शिक्षाकर्मियों का संविलियन न करने पर अड़ गए थे। जबकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह इस पक्ष में थे कि पुराना वादा है, इसे पूरा कर दिया जाए। फिर सवाल चौथी बार सरकार बनाने का भी था। रिटायर सीएस तब एक कमीशन में पोस्टेड थे और अघोषित तौर पर सरकार के सलाहकार का काम भी देख रहे थे। वे इस बात से काफी नाराज थे कि शिक्षाकर्मी मर्यादा को ताक पर रखकर रायपुर के बूढ़ापारा तालाब में अधनंगे प्रर्दशन कर दिए थे। उनका ये भी तर्क था कि बिना किसी भर्ती प्रक्रिया के लोकल लेवल पर चुने गए इन शिक्षकों से छत्तीसगढ़ का ह्यूमन रिसोर्स चरमरा जाएगा। मगर रमन सिंह उनकी दलीलों को न मानते हुए शिक्षाकर्मियों को रेगुलर करने का फैसला ले लिया। बावजूद इसके शिक्षकों के वोट एकतरफा कांग्रेस को पड़े। उसके बाद आई कांग्रेस सरकार ने रमन सरकार की शर्तो को शिथिल करते हुए सबको एकमुश्त संविलियन कर दिया। इसके बाद छुट्टियों की मौज। फिर भी शिक्षकों और कर्मचारियों का वोट कांग्रेस को नहीं मिला। ऐसे में, पीसी सेठी की चर्चा यहां मौजूं लगता है। मध्यप्रदेश के एक पुराने मुख्यमंत्री थे प्रकाशचंद सेठी...बेहद सख्त और अनुशासन के पक्के...ब्यूरोक्रेसी से लेकर कर्मचारी संगठन उनसे घबराता था। वे अक्सर कहा करते थे, सरकार की प्राथमिकता आम आदमी होना चाहिए, कर्मचारी, अधिकारी नहीं। बाद में वे इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में देश के गृह मंत्री बनाए गए थे।

मजबूत आईएएस?

एसीएस फॉरेस्ट मनोज पिंगुआ के पास पहले तीन हैंड थे। सिकरेट्री बसव राजू, स्पेशल सिकरेट्री देवेंद्र भारद्धाज और ज्वाइंट सिकरेट्री पुष्पा साहू। सरकार ने पहले बसव को वहां से सीएम सचिवालय भेजा, फिर देवेंद्र और पुष्पा को भी शिफ्थ कर दिया। वन विभाग में अब वन मैन आर्मी वाली स्थिति है। याने पिंगुआ ही सब कुछ। उनके पास गृह विभाग है और माध्यमिक शिक्षा मंडल के साथ व्यापम चेयरमैन का चार्ज भी। उपर से ठीक परीक्षा के टाईम माशिमं सचिव को खो कर दिया गया। चलिये, पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी हैं...भारत सरकार में काम भी किए हैं। जाहिर है, उनका कंधा मजबूत तो होगा ही।

बड़ी चूक?

तीन दिन पहले पुराने पुलिस मुख्यालय में सड़क सुरक्षा का कार्यक्रम था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय उसके चीफ गेस्ट थे। बताते हैं, पीएचक्यू के एक बड़े अफसर को इसकी जानकारी नहीं दी गई। वे रुटीन में नए पीएचक्यू पहुंच गए। वहां पता चला कि सीएम साहब ओल्ड पीएचक्यू में आए हुए हैं। वे भागते हुए वहां पहुंचे तब तक काफी लेट हो चुका था। खबर है, उन्होंने अफसरों की जमकर क्लास ली। खैर जो भी है, सिस्टम के लिए ये ठीक नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इसमें कितनी सत्यता है कि विष्णुदेव सरकार के दो मंत्रियों को पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है?

2. क्या ये सही है कि पुराने मंत्री अपने विभागों से खुश नहीं हैं तो कुछ नए मंत्रियों पर सत्ता का अहंकार हॉवी होने लगा है?