शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सीएम विष्णुदेव से अफसरों की मुलाकात और संयोग

 तरकश, 18 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

सीएम से मुलाकात और संयोग

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन के सिलसिले में दिल्ली में हैं। वहां सेंट्रल डेपुटेशन पर पोस्टेड कई आईएएस अफसरों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय मांगा था। संयोग से 16 फरवरी को रात नौ से दस बजे के बीच का टाईम भी मिल गया। चूकि टाईम सभी का लगभग एक ही था। सो, एक साथ आधा दर्जन से अधिक आईएएस पहुंच गए छत्तीसगढ़ सदन। ऋचा शर्मा, विकास शील, निधि छिब्बर, सोनमणि बोरा, मुकेश बंसल...और भी कई। सदन में सब एक-दूसरे को देखकर आवाक थे...ओह! आप, अरे वाह...आप भी। इससे पहले कभी ऐसा संयोग बना नहीं। चलिए, ये अच्छी परंपरा शुरू हुई है। दीगर राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली जाते हैं तो भारत सरकार में पोस्टेड अपने अफसरों से मुलाकात करते हैं। साल में दो-एक बार डिनर भी हो जाता है। उसका फायदा राज्य को मिलता है। स्टेट कैडर के अफसरों को लगता है, उन्हें रिस्पांस मिल रहा तो वे भी राज्य के हितों का ध्यान रखते हैं। इस वक्त अच्छी बात यह है कि छत्तीसगढ़ से गए लगभग सभी आईएएस ठीक-ठाक पोजिशन में हैं। सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए।

अनुदान का अनोखा खेला

छत्तीसगढ़ में अनुदान के नाम पर भ्रष्टाचार का ऐसा खेला किया गया कि किसानों को फोकट में चाइनिज पावर वीडर मशीन मिल गई और व्यापारी और अफसर करोड़ों रुपए भीतर कर लिए। इस खेल में हार्टिकल्चर के अफसर, कलेक्टरों का डीएमएफ और सप्लायर का भूमिका अहम रही। हम बात कर रहे हैं हार्टिकल्चर द्वारा किसानों को पावर वीडर मशीन के लिए अनुदान की। हार्टिकल्चर को सिर्फ इसमें अनुदान देना था और व्यापारी को मशीन सप्लाई करनी थी। मगर हार्टिकल्चर के अफसर एक ऐसे व्यापारी से गठजोड़ कर खुद ही सप्लायर बन गए, जो एमपी में ब्लैलिस्टेड है और वहां लोकायुक्त की जांच चल रही है। पावर वीडर मशीन निंदाई के काम आती है। बैटरी ऑपरेटेड यह यंत्र बाजार में 25 हजार में मिल जाता है। मगर बीज विकास निगम से इसका 1.26 लाख रेट तय कराया गया। और चाइनिज मशीनों को हार्टिकल्चर की नर्सरी में एसेंबल कर जिलों में किसानों को सप्लाई कर दिया गया। नियमानुसार निगम से निर्धारित रेट पर मशीन खरीदेंगे तो उस पर 60 हजार अनुदान मिलेगा। मगर इसमें किसानों को हार्टिकल्चर के एजेंटों ने कंविंस कर लिया कि आपको एक पैसे नहीं देना है, बस अनुदान मिलेगा उसे लौटाना होगा। कायदे से किसान 1.26 लाख जमा करता, उसके बाद मशीन मिलती और फिर 60 हजार अनुदान। मगर एजेंटों ने किसानों से ब्लैंक चेक में दस्तखत करा लिया और हार्टिकल्चर से जैसे ही किसानों को अनुदान जारी हुआ, चेक को लगाकर पैसा निकाल लिया। यानी 25 हजार का यंत्र 1.26 लाख में टिकाया गया। और उपर से अनुदान भी हड़प लिया गया। विस चुनाव से जस्ट पहले पूर्व सीएम डॉ0 रमन सिंह ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से इसकी शिकायत कर जांच कर मांग की थी। केंद्रीय मंत्री से इसलिए क्योंकि अनुदान भारत सरकार से मिलता है। अब सरकार बदल गई है। लिहाजा, प्रतीत होता है कि कृषि मंत्री रामविचार नेताम इसे संज्ञान लेंगे और हार्टिकल्चर में सालों से जमे अधिकारियों पर कार्रवाई करेंगे। क्योंकि, रमन सिंह ने बड़ा दुखी होकर केंद्रीय मंत्र को पत्र लिखा था।

मोदीजी का 360 डिग्री

राज्यसभा सदस्य के लिए बीजेपी के संगठन मंत्री रहे रामप्रताप सिंह की काफी चर्चा रही। पार्टी के लोग इसको लेकर आशान्वित तो थे ही, सोशल मीडिया से लेकर बड़े मीडिया घराने भी रामप्रताप की ताजपोशी तय होने का ऐलान कर रहे थे। मगर मोदी मैजिक ने फिर सबको चौंका दिया। रामप्रताप की जगह रायगढ़ के देवेंद्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया गया। देवेंद्र प्रताप इतने सूबे के लिए ऐसे अल्पज्ञात थे कि गूगल पर भी कुछ नहीं मिल पा रहा था। देवेंद्र प्रताप टाईप करने पर गोरखपुर आ रहा था। बीजेपी नेताओं ने भी सिर पकड़ लिया कि कांग्रेस पर बाहरी नेताओं को राज्यसभा में भेजने का आरोप लगा रहे थे, मोदीजी ने ये क्या कर डाला...अब क्या जवाब देंगे। बहरहाल, नाम ऐलान होने के बाद करीब 20 मिनट बाद कंफर्म हुआ कि ये रायगढ़ वाले देवेंद्र प्रताप हैं। तब जाकर बीजेपी नेताओं की सांसें लौटी। चलिये, ये कम थोड़े ही है कि रामप्रताप न सही, किसी प्रताप को ही राज्य सभा भेजा गया है। ये मोदीजी के 360 डिग्री मूल्यांकन प्रणाली का कमाल है। 15 साल सरकार रहते माल-मलाई खाने और शाही सुख-सुविधा भोगने वाले बीजेपी और संघ के नेताओं को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनका समय अब खतम हो गया है।

आईएएस पोस्टिंग

आने वाले दिनों में आईएएस में एक छोटी लिस्ट और निकलेगी। सोनमणि बोरा और मुकेश बंसल सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। बोरा प्रमुख सचिव रैंक के अफसर हैं। इस लेवल पर सिर्फ एक ही आईएएस हैं। निहारिका बारिक। अब दो हो जाएंगे। कई अहम विभागों में प्रमुख सचिव पोस्ट करने की परिपाटी रही है। सो, बोरा को ठीकठाक विभाग मिल सकता है। वहीं, मुकेश बंसल सिकरेट्री रैंक के हैं। मुकेश उस समय रायगढ़ कलेक्टर थे, जब सीएम विष्णुदेव साय वहां से सांसद होते थे। सो, सीएम मुकेश की वर्किंग जानते हैं। आखिर, फायनेंस में इंश्योरेंस जैसे विभाग संभाल रहे मुकेश को सरकार ने पत्र लिखकर वापिस बुलाया है तो जाहिर तौर पर पोस्टिंग अच्छी मिलनी चाहिए।

विधायकों का ड्रेस सेंस

छत्तीसगढ़ की छठवीं विधानसभा का रौनक कुछ अलग है। डॉ0 रमन सिंह जैसे हैंडसम, आकर्षक डील डौल वाले स्पीकर। 15 साल के सीएम का औरा...। आसंदी पर उनके बैठने से विधानसभा की रौनक बढ़ी है। बाकी में के ड्रेस सेंस को लेकर भी कौतूकता है। बेशक, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ड्रेस को लेकर शौकीन माने जाते हैं। मगर सीएम विष्णुदेव साय भी पीछे नहीं। उनके यूनिक कलर वाले जैकेट पर नजर ठहर जाती है। बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर जैसे पहनावे को लेकर बेफिक्र रहने वाले विधायक भी सदन में टाइडी नजर आ रहे हैं। दरअसल, इस बार बड़ी संख्या में युवा विधायक चुन कर आए हैं। युवाओं में ड्रेस सेंस को लेकर एवरनेस रहता ही है। कई युवा विधायकों के चमक-धमक को देखकर लगता है कि सत्र के लिए ड्रेस की खास तैयारी की है। जाहिर है, इससे सदन का नजारा खुशगवार होगा ही।

महिला विधायकों का प्रदर्शन

विधानसभा में इस बार 19 महिला विधायक पहुंची हैं। इनमें 8 बीजेपी की और 11 कांग्रेस की। पहले के विधानसभाओं से उलट महिला विधायक इस बार अच्छा परफर्म कर रही हैं। सवाल पूछने के ढंग से लगता है कि होम वर्क बढ़ियां किया है। भावना बोथरा, संगीता सिनहा, शेषराज हरबंश, चतुरी नंद जैसी विधायकों के सवालों से मंत्री किंचित परेशानी भी फिल कर रहे हैं। खासकर, सराईपाली अनुसूचित सीट से प्रतिनिधित्व करने वाली चतुरी नंद की प्रतिभा की स्पीकर रमन सिंह ने तारीफ की। उन्होंने कहा कि बाकी विधायकों को भी ऐसा प्रदर्शन करना चाहिए। शिक्षिका से विधायक बनीं चतुरी ने 15 फरवरी के प्रश्नकाल में पुलिसकर्मियों के वेतन-भत्ते से संबंधित ऐसा सवाल पूछा कि विजय शर्मा जैसे मुखर और दबंग गृह मंत्री को जवाब देने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। चतुरी के पूरक सवाल ऐसे थे कि रमन सिंह को उन्हें 20 मिनट देना पड़ा।

कलेक्टर की सतर्कता

एक युवा कलेक्टर कैरियर को लेकर इतने सजग और सतर्क हैं कि कमरे में कोई महिला अधिकारी, कर्मचारी या मुलाकाती आ गई तो अर्दली दरवाजा खोल देता है। अर्दली को इसके लिए स्पष्ट निर्देष दिए गए हैं। दरअसल, वह जिला ऐसा है कि अफसर अगर बच कर निकल गए तो ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। एक कलेक्टर वहां दुष्कर्म के केस में फंस चुके हैं। अब कोई लाख दुहाई देता रहे कि आम सहमति का मामला था मगर पुलिस में जो शिकायत है, कानूनन वही मान्य किया जाता है। इस चक्कर में उनका प्रमोशन रुक गया। केस चल रहा सो अलग।

गूगल की पत्रकारिता

बिलासपुर के कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ला गूगल पत्रकारिता का ऐसे शिकार हुए हैं कि वे मोबाइल की घंटी ने उनका चैन छिन लिया है। दरअसल, राजेंद्र के ही हमनाम रीवा से विधायक हैं और एमपी के डिप्टी सीएम। एक अंग्रेजी वेबसाइट ने डिप्टी सीएम का प्रोफाइल किया और उसमें मोबाइल नंबर दे डाला बिलसपुरिया राजेंद्र शुक्ला का। हेडिंग भी नाम और मोबाइल नंबर के साथ। गूगल ने इस खबर को पिक किया और इसका नतीजा यह हुआ कि डिप्टी सीएम समझ मध्यप्रदेश से लोग धड़ाधड़ फोन लगा रहे हैं बिलासपुर वाले राजेंद्र को। राजेंद्र 2018 का विस चुनाव जोगी कांग्रेस के चलते जीतते-जीतते हार गए थे। और इस बार टिकिट नहीं मिली। चलिये, राजेंद्र यहां विधायक, मंत्री नहीं बने, गूगल ने उन्हें सीधे डिप्टी सीएम बना दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूरजपुर के आईएएस एसडीएम को डेढ़ महीने के भीतर सीधे सुकमा क्यों भेज दिया गया?

2. क्या ये सही है कि लोकसभा की 11 में से आठ सीटों पर बीजेपी नए चेहरों को उतारेगी?



रविवार, 11 फ़रवरी 2024

Chhattisgrah Tarkash 2024: फिल्म अंधा कानून और पीएससी

 तरकश, 11 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

फिल्म अंधा कानून और पीएससी

80 के दशक में अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म आई थी अंधा कानून। इस फिल्म के नायक अमिताभ को देश के सिस्टम पर भरोसा नहीं रहता और वे अपने हिसाब से विरोधियों से निबटते हैं। इस पिक्चर में उस समय का एक बेहद हिट गाना भी था, ये अंधा कानून है...।

हरहाल, बात छत्तीसगढ़ पीएससी की। वर्षा डोंगरे की लंबी लड़ाई के बाद बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए पीएससी 2003 परीक्षा परिणाम को निरस्त कर दिया था। और नए सिरे से स्केलिंग कर रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया था। मगर क्या करें...इस देश में आरोपियों के हाथ भी लंबे हो गए हैं। काली कमाई वाले अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में करोड़ी वकील को खड़ा कर स्टे हासिल कर लिया। जबकि, ईओडब्लू की जांच में दस्तावेजी प्रमाण मिले थे कि किस तरह पीएससी ने खेला किया। आरटीआई में पीएससी ने खुद जो जानकारियों दी, उसके बाद कुछ कहने के लिए बच नहीं जाता। बावजूद इसके, 2003 पीएससी के अफसरों को सर्विस करते करीब 18 साल हो गए हैं। जब तक स्टे हटेगा या फैसला आएगा, तब तक लाखों, करोड़ों का वारा-न्यारा कर सभी अधिकारी रिटायर हो चुके होंगे।

ब बात 2021 और 2022 पीएससी की। सीएम विष्णुदेव साय ने बड़ा स्टैंड लेते हुए सीबीआई जांच का ऐलान किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हमारे बच्चों के कैरियर से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम की मंशा नेक हैं। तभी सीबीआई जांच की घोषणा हुई। मगर सूबे के युवाओं को पीएससी 2003 बार-बार याद आ जा रहा। जो लोग बेटे-बेटी, बेटी-दामाद को डिप्टी कलेक्टर बनाने एक-एक खोखा दे सकते हैं, समझा जा सकता है...ऐसे बड़े लोगों के हाथ कितने बड़े होंगे।

मंत्रियों को मौका

स्टेट में काम करने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सीधे मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होते हैं। सीआर से लेकर ट्रांसफर, पोस्टिंग, डीई, कार्रवाई...सब सीएम लेवल पर होता है। मंत्रियों का इसमें कोई रोल नहीं होता। इसके अलावा कलेक्टर कांफ्रेंस हो या एसपी, आईजी कांफ्रेंस... मुख्यमंत्री ही इसे मलेते हैं। मगर अपने सीएम विष्णुदेव साय मंत्रियों को काम करने और दिखाने का भरपूर मौका दे रहे हैं। उनकी सरकार की पहली एसपी, आईजी कांफें्रस 10 फरवरी को रायपुर में हुई। मुख्यमंत्री इसमें पहुंचे और शुरूआती एड्रेस कर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से जशपुर रवाना हो गए। उनकी जगह गृह मंत्री विजय शर्मा एसपी, आईजी साहबों की क्लास लिए। वाकई, विजय के लिए बड़ा दिन रहा। क्योंकि, किसी राज्य के गृह मंत्री को यह मौका नहीं मिलता कि वो ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों की क्लास ले। विजय तेज और दबंग तो हैं ही, लगता है सरकार से उन्हें पावर भी भरपूर मिल रहा है। वरना, कोई सीएम शीर्ष अफसरों की लगाम मंत्रियों को नहीं सौंपता।

उलझन में सिस्टम?

अभी तक राजभवन में सिकरेट्री हो या फिर एडीसी, वहां से सभी ठीकठाक पोस्टिंग लेकर ही निकलते हैं। सिकरेट्री में आईसीपी केसरी पीडब्लूडी सिकरेट्री बनकर राजभवन से मंत्रालय आए थे तो सुशील त्रिवेदी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए गए थे। पीसी दलेई से लेकर जवाहर श्रीवास्तव, एसके जायसवाल सभी को रिटायर होने के बाद भी कोई-न-कोई पोस्टिंग मिली थी। इस समय अमृत खलको राजभवन में सिकरेट्री हैं। उन्होंने राज्य सूचना आयोग में बतौर सिकरेट्री के लिए अप्लाई किया है। खलको फिलवक्त संविदा में राजभवन में पोस्टेड है। पीएससी 2021 की परीक्षा में उनका बेटा और बेटी दोनों डिप्टी कलेक्टर में सलेक्ट हो गए। जाहिर है, इसको लेकर काफी बवाल मचा था। पीएससी स्कैम को लेकर विष्णुदेव सरकार अब सख्ती के मूड में है। सीबीआई जांच की घोषणा भी हो गई है। ऐसे में, हो सकता है खलको को राजभवन से खाली हाथ निकलना पड़े।

कलेक्टरों का चेक और सूटकेस

नई सरकार ने स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल योजना को समाप्त कर कलेक्टरों की प्रबंध समिति को भंग कर दिया। बता दें, कलेक्टरों की ये प्रबंध समिति नहीं, पैसा निकासी समिति थी। सरकार ने कलेक्टरों को डीएमएफ से इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा सौंपा और कलेक्टरों ने दोनों हाथांं से डीएमएफ उड़ाने का माध्यम बना लिया। कई गुना रेट पर फनीर्चर से लेकर ब्लैक बोर्ड, प्रोजेक्टर जैसे समान खरीद डाले। चूकि डीएमएफ के मालिक कलेक्टर होते हैं, सो उनसे कोई पूछ नहीं सकता कि वे इस राशि को किस मद में खर्च कर रहे हैं। इससे हुआ यह कि जिन स्कूलों में बिजली नहीं, वहां पांच गुने रेट पर टीवी और प्रोजेक्टर, इलेक्ट्रानिक ब्लैक बोर्ड खरीदे गए। कलेक्टरों ने जिन शिक्षकों को नोडल अधिकारी बनाया, वे पोस्टिंग में खेला कर दिए। डे़ढ़ लाख से लेकर ढाई लाख तक लेकर ग्रामीण इलाकों के हिंदी टीचरों को शहरों के अंग्रेजी स्कूलों में पोस्टिंग दे दी। शिक्षकों भी लगा कि पैसा लेकर रायपुर में दलालों का चक्कर काटने से अच्छा है, अंग्रेजी स्कूलों में डेपुटेशन लेकर शहर आ जाओ। कुल मिलाकर कलेक्टर्स अंग्रेजी स्कूल को कमाउ पूत बना डाले थे। एक हाथ से डीएमएफ का चेक काटो, और दूसरे हाथ से सप्लायरों से सूटकेस ले लो।

युवा मंत्री, युवा सिकरेट्री

वित्त मंत्री अमर अग्रवाल को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ सरकार का बजट पेश करने वाले सभी मंत्री या सीएम 60 प्लस रहे। छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने तीन बार बजट पेश किया। वे 60 प्लस रहे। इसके बाद तीन बजट पेश करने वाले अमर अग्रवाल अंडर 45 थे। इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 12 और भूपेश बघेल ने पांच बजट पेश किया। इस बार बजट पेश करने वाले ओपी चौधरी न केवल अंडर 45 हैं बल्कि पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंचे हैं। हिन्दी से यूपीएससी क्लियर करने वाले माटी पुत्र ओपी ने खुद से बजट भाषण तैयार किया था। ओपी ने जब लच्छेदार बोलना शुरू किया तो सदन इस युवा मंत्री के भाषण को सिर्फ देखता और सुनता रहा। 1.24 घंटे के संबोधन में कोई टोकाटोकी नहीं। मंत्री के साथ बजट को मूर्तरूप देने वाले फायनेंस सिकरेट्री भी कोई पके बाल वाले नहीं हैं। आईएएस में ओपी से जस्ट जूनियर हैं। 2006 बैच के। दो साल पहले ही सिकरेट्री बने हैं। वरना, पहले एसीएस या पीएस लेवल के अफसर ही फायनेंस सिकरेट्री होते थे। डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन ने काफी सालों तक वित्त विभाग संभाला। उसके बाद कुछ दो बार अलरमेल मंगई डी वित्त सचिव रहीं।

प्रेशर में नहीं सरकार

89 अफसरों की पहली प्रशासनिक सर्जरी करने के बाद कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया था कि बड़ी लिस्ट निकालकर सरकार ने कुछ ब्लंडर कर दिया। मीडिया में खबरें भी वायरल कराई गई कि पीएमओ तक में शिकायत हो गई है...अब खैर नहीं। मगर सरकार गीदड़भभकी से प्रेशर में नहीं आई। प्रशासनिक लिस्ट में 19 जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर किया गया था। पुलिस की लिस्ट में भी कम नहीं हुआ। चार रेंज के आईजी हटाए गए तो 25 जिलों के एसपी बदल दिए गए।

रणछोड़दास एसपी

एसपी की लिस्ट देर से आई मगर ठीकठाक रही। सरकार ने मेरिट को वेटेज देते हुए पिछली सरकार में कुछ अच्छे पुलिस अधीक्षकों को फिर से कंटीन्यू किया करने से परहेज नहीं किया। कुल मिलाकर अधिकांश बड़े जिलों में इस बार रिजल्ट देने वाले तेज-तर्रार अफसरों को बिठाया गया है। मगर मजबूरी में ही सही...एक रणछोड़दास अफसर को जिला मिल गया। 12 जुलाई 2009 को मोहला मानपुर में हुई नक्सली हिंसा में राजनांदगांव के एसपी विनोद चौबे शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद इस अफसर को मोहला मानपुर का एसडीओपी बनाया गया। मगर पुलिस अधिकारी ने नक्सलियों की खौफ के डर से वहां ज्वाईन करने से साफ इंकार कर दिया था। तब रमन सरकार ने बस्तरिया आईपीएस सरयू राम सलाम को वहां भेजा। चलिए, ठीक है...डेमोक्रेसी में वर्गवाद की वजह से कई बार ऐसे फैसले सरकार को लेने पड़ते हैं। मगर विडंबना यह है कि सलाम मोहला मानपुर में ढाई साल रहे, जब उस इलाके के नाम से पुलिस वाले कांप जाते थे। आखिर, पहली बार नक्सली हिंसा में देश में कोई एसपी शहीद हुआ था। उससे पहिले सलाम बस्तर में भी बारुदी विस्फोट में बाल-बाल बचे थे। मगर इस अफसर को अभी तक एक बार भी एसपी बनने का मौका नहीं मिला।

राजस्व बोर्ड चेयरमैन

ब्यूरोक्रेसी में राजस्व बोर्ड को शंटिंग स्टेशन माना जाता है। यानी लूपलाईन वाली पोस्टिंग। सरकार जिस अफसर से नाराज होती है, उसे राजस्व बोर्ड का चेयरमैन बना दिया जाता है। चूकि यह चीफ सिकरेट्री रैंक की कुर्सी है, इसलिए किसी सीएस को हटाना होता है या फिर इस रैंक के किसी अफसर को मंत्रालय से हटाना होता है या किसी बैच का अफसर अगर चीफ सिकरेट्री बन गया तो उस बैच के दीगर अफसर को राजस्व बोर्ड एडजस्ट किया जाता है। मसलन, 87 बैच के आईएएस आरपी मंडल चीफ सिकरेट्री बनें तो सीके खेतान को राजस्व बोर्ड भेज दिया गया। जाहिर है, पिछली सरकार खेतान से किसी बात से नाराज थी, इसलिए बैचवाइज सीनियर होने के बाद भी उन्हें सीएस बनने का मौका नहीं मिला। मंडल के बाद अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री बने। अब लगता है, अमिताभ अगले साल मई में रिटायर होंगे, तो कोई बड़ा अफसर राजस्व बोर्ड जाएगा। अमिताभ के बाद अगर सुब्रत सीएस बन गए तो ठीक वरना, 94 बैच का कोई आईएएस जाएगा राजस्व बोर्ड। क्योंकि, इस बैच में कई चार आईएएस हैं। और सीएस एक ही बनेगा।

सीएस का मिथक

ब्यूरोक्रेसी में मिथक है कि जो अफसर प्रशासन अकादमी में पोस्टिंग पाता है, वह चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाता। बीकेएस रे से लेकर सरजियस मिंज, डीएस मिश्रा तक कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो ठीकठाक अफसर होने के बाद भी चीफ सिकरेट्री की कुर्सी तक नहीं पहुंंच पाए। और जो सीएस बने हैं, वे कभी प्रशासन अकादमी में नहीं रहे। ऐसे में, एसीएस सुब्रत साहू को कुछ पूजा-पाठ करा लेना चाहिए। क्योंकि, वे इस समय प्रशासन अकादमी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इन चर्चाओं में कितनी सत्यता है कि सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड सीनियर आईएएस अमित अग्रवाल क्या छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?

2. छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों में अभी सबसे प्रभावशाली कौन हैं?


शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024: मंत्रियों के खटराल पीए

 Chhattisgarh Tarkash 4 February 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्रियों के खटराल पीए

दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों का पीए बनाने में बड़ी कड़ाई बरती जा रही है। 360 डिग्री से टेस्टिंग के बाद ही मंत्रियों के पीए की नियुक्ति हो पा रही। मगर छत्तीसगढ़ में जीएडी ऐसे खटराल डिप्टी कलेक्टरों को पीए अपाइंट कर रहा है कि पूछिए मत! छत्तीसगढ़ में एक ज्वाइंट कलेक्टर का मंत्री का विशेष सहायक बनाया गया है, जिसने एसडीएम रहते एनटीपीसी को 500 करोड़ रुपए की चपत लगाई थी। वाकया 2014 का है...रायगढ़ के पास लारा में एनटीपीसी के प्लांट निर्माण को देखते तत्कालीन एसडीएम ने जमीनों की खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। मगर उनके ट्रांसफर के बाद आए इस एसडीएम ने चुपके से प्रतिबंध हटाकर बड़ा खेला कर डाला। भूअर्जन में जमीन के टुकड़ों का खेल खेलते हुए 300 प्लाट के 1300 टुकड़े कर दिए गए। दरअसल, छोटे टुकड़ों का मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। एनटीपीसी के अफसरों ने कलेक्टर से इसकी शिकायत की...छोटे टुकड़ों के खेल की वजह से उन्हें 500 करोड़ अधिक मुआवजा देना पड़ा है। मुकेश बंसल उस समय कलेक्टर रायगढ़ थे। उन्होंने पुलिस में न केवल नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी बल्कि 1300 पेज की जांच रिपोर्ट भेज सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह किया था। उस समय की बीजेपी सरकार ने एसडीएम को न केवल सस्पेंड किया बल्कि विभागीय जांच भी बिठा दी थी। एसडीएम के खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। मगर बाद में हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई। बहरहाल, डीई अभी चल रही है। इस वजह से अफसर का प्रमोशन नहीं हो पाया। दाग इतना बड़ा है कि आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। अब ऐसे अफसरों को मंत्रियों का विशेष सहायक बनाया जाएगा तो आप समझ सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की मुहिम का क्या होगा। वैसे ये तो एक बानगी है...अधिकांश मंत्रियों के पीए किसी-न-किसी मामले में चर्चित रहे हैं। अधिकांश मंत्री अपने-अपने हिसाब से पीए की नियुक्ति कराए जा रहे हैं।

एक करोड़ की माशूका

ऑल इंडिया सर्विस के डायरेक्टर लेवल के एक अफसर की इन दिनों राजधानी रायपुर में बड़ी चर्चाएं हैं। वे जब जिले में पोस्टेड रहे तो पहली के होते दूसरी शादी रचा लिए थे। और अब राजधानी में डायरेक्टर बने तो तीसरी के चक्कर में फंस गए। दरअसल, विभागीय कामकाज के सिलसिले में उन्हें एक जिले में दो चार बार जाना हुआ। वहां अपने ही विभाग की एक मुलाजिम से दिल लगा बैठे। दोनों पहले खूब मिले-जुले, घूमे-फिरे। किन्तु कुछ दिन बाद डायरेक्टर साहब लगे हाथ खींचने। फिर माशूका ने अपना रंग दिखाया...मय सबूत अंतरंग क्षणों के वीडियो के साथ पुलिस में कंप्लेन करने की धमकी दे डाली। डायरेक्टर लगे हाथ-पैर जोड़ने। युवती भी निचले क्रम की अफसर थीं, उसे पता था कि साहब का क्या लेवल है, उसने उसी के अनुरूप डील पक्का किया। चार किश्तों में एक करोड़। समझौता इस बात पर हुआ कि पेमेंट कंप्लीट होने के बाद ओरिजनल वीडियो सुपुर्द कर देगी। मगर पैसा मिलने के बाद उसने गच्चा दे दिया। माशूका का कहना है, विश्वास रखो, मैं अब कुछ नहीं करूंगी। लेकिन डायरेक्टर साब को डर सता रहा, कहीं मैं एटीएम न बन जाऊं। लंगोट के ढीले अफसरों के साथ ऐसा ही होता है। वरना, मालूम है उस जिले में एक कलेक्टर साब इसी तरह के शौक में निबट गए...बावजूद डायरेक्टर ने लंगोट टाईट करके नहीं रखा।

फायदे में डिप्टी सीएम

सरकार ने जिलों के प्रभारी मंत्रियों का ऐलान कर दिया है। चूकि जिलों की संख्या अब 33 हो गई है सो अधिकांश मंत्रियों के हिस्से में तीन-तीन जिले आए हैं। जिलों के बंटवारे में प्रमुख पैरामीटर यह था कि गृह जिला नहीं होना चाहिए। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है...आमतौर पर ऐसा ही होता आया है। मगर डिप्टी सीएम अरुण साव को इसमें अपवाद बोल सकते हैं। उन्हें तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है, उनमें एक बिलासपुर भी है। हालांकि, अरुण का गृह जिला मुंगेली है। उनका विधानसभा इलाका लोरमी इसी मुंगेली में आता है। मगर अब गृह जिला नाम का रह गया है। प्रारंभ से उनका कार्य और निवास क्षेत्र बिलासपुर रहा है। बिलासपुर में वे जनता दरबार भी लगाते हैं। ऐसे में, बिलासपुर के प्रभारी मंत्री बनने का मतलब समझा जा सकता है। कुल मिलाकर मंत्रियों में अरुण साव नफे में रहे।

बेशर्म सिस्टम

छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार कितनी गहरी जड़े जमा चुका है कि सत्ताधारी पार्टी का नेता हो या पूर्व विधायक इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात रायपुर की विधायक रह चुकी रजनी ताई उपासने की। रजनी ताई का पूरा परिवार जनसंघ के समय से पार्टी के लिए समर्पित रहा है। उनके दो बेटे इमरजेंसी के दौरान रायपुर जेल में बंद रहे। बड़ा बेटा जगदीश उपासने देश की प्रतिष्ठित न्यूज मैगजीन के सालों तक संपादक रहे हैं। बावजूद इसके उनका परिवार को भी दो-चार होना पड़ रहा है। असल में, रजनी ताई राजधानी की एक सोसाइटी का मकान बेचना चाहती हैं। सोसाइटी चूकि भंग है इसलिए वहां से एनओसी का कोई तुक नहीं। मगर सहकारिता विभाग की एक महिला अफसर को एनओसी देने के लिए चाहिए 35 हजार। महिला अफसर को बताया गया...रजनी ताई सत्ताधारी पार्टी की पूर्व विधायक हैं। महिला अफसर ने कहा, कोई नहीं, पैसा देना पड़ेगा। जगदीश उपासने इस स्तंभकार से बात करते हुए हतप्रभ थे। बोले, छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल ये हो गया है।

अगला मुख्य सचिव?

चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में वैसे तो अभी एक साल से ज्यादा वक्त बचा है। अगले साल मई तक उनकी सर्विस है। लेकिन ब्यूरोकेसी में उनके बाद यानी भावी प्रशासनिक मुखिया की चर्चाएं शुरू हो गई है। अमिताभ के बाद सीनियरटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। रेणु के बारे में कहा जाता है वे अपनी भी नहीं सुनती। ऐसे में सीएस जैसा अहम दायित्व देना किसी सरकार के लिए संभव नहीं। बचे सुब्रत तो एसीएस टू सीएम होने की वजह से उन पर पिछली सरकार का लेवल लग चुका है। अब भगवान जगन्नाथ का कोई चमत्कार हो गया तो बात अलग है। सुब्रत के बाद 93 बैच के अमित अग्रवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। अमित लंबे समय से दिल्ली में हैं। वैसे भी, अमित की सवारी कर पाना संभव नहीं। ऐसे में पूरी संभावनाएं 1994 बैच के दो अफसरों पर आकर ठहर जाती है। खासकर मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा। इस बैच के विकास शील एडीबीआई के डायरेक्टर बनकर मनीला चले गए हैं और उनकी बैचमेट पत्नी बदली परिस्थिति में दिल्ली डेपुटेशन में ही रहना बेहतर समझेंगी। ऐसे में यह निश्चित है कि मनोज और ऋचा में से ही कोई छत्तीसगढ़ का अगला चीफ सेक्रेटरी बनेगा। यह कब होगा? लोकसभा चुनाव के बाद या अगले साल मई में? यह सीएम विष्णुदेव साय बता पाएंगे।

मुझे ओपी कहिये

जूनियर जब बॉस बन जाए तो उस दर्द और पीड़ा को समझा जा सकता है। ब्यूरोक्रेसी में 2005 बैच से उपर के लगभग सभी अफसरों को इसी स्थिति से साबका पड़ रहा है। दरअसल, 2005 बैच के आईएएस रहे ओपी चौधरी अब फायनेंस मिनिस्टर बन गए हैं। अक्टूबर 2018 में ओपी जब रायपुर जैसे बड़े जिले की कलेक्टरी छोड़ चुनाव में उतरे और पहली बॉल पर अपना विकेट गंवा बैठे तो ब्यूरोक्रेसी में यह राय व्यक्त करने वालों की कमी नहीं थी कि ओपी ने खामोख्वाह कुल्हाड़ी पर पैर मार बैठा...सरकार बदल गई तो क्या हुआ, धीरे से ठीकठाक पोस्टिंग भी मिल जाती। मगर अब बड़े-बड़े नौकरशाहों को ओपी सर कहना पड़ रहा है, सम्मान में खड़ा होने की मजबूरी भी। जाहिर है, उन्हें पीड़ा तो होती होगी। हालांकि, भारी भरकम विभागों के मंत्री बनने के बाद भी ओपी सीनियर अफसरों को ऐसा अहसास नहीं होने दे रहे। हाल में एक महिला सिकरेटी को उन्होंने फोन लगावाया, उधर से आवाज आई...नमस्कार सर मैं फलां...। ओपी ने विनम्रता से कहा, मैडम! आप मुझे ओपी ही कहिये।

फास्ट पोस्टिंग

आईपीएस राजेश मिश्रा डीजीपी नहीं बन पाए मगर संविदा पोस्टिंग में उन्हें ज्यादा वेट नहीं करना पड़ा। 31 जनवरी को रिटायर हुए और दो फरवरी को उन्हें संविदा नियुक्ति मिल गई। याने 48 घंटे के भीतर। और इसके घंटे भर के भीतर जेल डीजी का दायित्व भी। उनसे पहले संजय पिल्ले को रिटायरमेंट के बाद करीब महीने भर तक वेट करना पड़ा था, तब जाकर फिर डीजी जेल बन पाए थे। हालांकि, 15 साल वाली बीजेपी सरकार भी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए वेट कराती थी। करीब महीने भर तक। उस सरकार में सबसे अच्छी पोस्टिंग होल्ड करने वाले ठाकुर राम सिंह को भी रिटायरमेंट के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए एक महीना प्रतीक्षा करना पड़ा था। विवेक ढांड और एमके राउत अवश्य अपवाद रहे। ढांड का वीआरएस एक्सेप्ट के आदेश के साथ ही रेरा चेयरमेन की पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को भी करीब 10 दिन लगा था। सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड आरपी मंडल के नाम दर्ज है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के 15 मिनट के भीतर उनका एनआरडीए चेयरमेन का आदेश जारी हो गया था। ढांड और राउत का रिकार्ड इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि उन दोनों पदों के लिए सलेक्शन का अपना प्रॉसेज है। दोनों का प्रॉसेज पहले ही पूरा कर लिया गया था। पोस्टिंग के लिए उचित समय का इंतजार किया जा रहा था। इसलिए, सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का रिकार्ड मंडल के नाम रहेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि एसीएस मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा में से कोई एक मुख्यमंत्री विष्णुदेव का एसीएस बनेगा और दूसरा अगला चीफ सिकरेट्री?

2. छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्तर की घोषणाएं मंत्री कैसे कर रहे हैं?