रविवार, 29 अप्रैल 2018

आपरेशन वापसी!

29 अप्रैल
गृह विभाग ने एकमुश्त 47 पुलिस इंस्पेक्टरों को नौकरी से बाहर कर दिया था, कैबिनेट ने उनकी वापसी की गुंजाइश बनाने की कोशिशें की है। निकाले गए लोगों के लिए अब सरकार एक अपील कमेटी बनाएगी। कमेटी क्या करेगी, यह अंडरस्टूड है। असल में, अतिउत्साह में गृह विभाग के अफसरों ने पुअर पारफारमेंस के आधार पर कार्रवाई करते हुए यह ध्यान नहीं दिया कि उसमें किस वर्ग के अफसर शामिल हैं और इससे सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ेगा। जाहिर है, 47 में से 40 से अधिक अनुसूचित जाति, जनजाति के पुलिस अधिकारी थे। ऐसे में, बवाल तो मचना ही था। सरगुजा से लेकर बस्तर तक से सरकार पर सामाजिक प्रेशर था। कैट ने आईएएस, आईपीएस के पक्ष़्ा में कुछ फैसले देकर सरकार की उलझन और बढ़ा दी। लिहाजा, अपील कमेटी बनाने के सिवा कोई चारा नहीं था सरकार के पास।

2011 बैच का दुर्भाग्य

देश के कई राज्यों में 2011 बैच के आईएएस दो-दो जिले की कलेक्टरी कर चुके हैं। लेकिन, छत्तीसगढ़ में इस बैच का खाता भी नहीं खुला है। पिछले साल से आईएएस का यह बैच टकटकी लगाए बैठा है, शायद कुछ हो जाए। लेकिन, अभी 2010 बैच ही कंप्लीट नहीं हुआ है तो फिर 2011 को कौन पूछे। 2010 बैच की रानू साहू का अभी नम्बर नहीं लगा है। और, अब चुनाव का वक्त आ गया है। जाहिर तौर पर सरकार अब कलेक्टरी में प्रमोटी आईएएस की संख्या बढ़ाएगी। क्योंकि, चुनाव में काम तो वे ही आते हैं। ऐसे में, 2011 बैच का दुर्भाग्य ही कहा जाए कि 2019 से पहिले उनके लिए कोई मौका नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति इसलिए भी आई है कि सूबे में कैडर की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कहां पहले हर साल दो-तीन आईएएस मिलते थे। अब पांच-पांच, छह-छह आ रहे हैं। कलेक्टरी का मौका मिलने में देरी से छत्तीसगढ़ कैडर का जो क्रेज बढ़ा था, वो भी ऐसे में गड़बड़ाएगा।

बिदाई

डिप्टी कलेक्टरों के ट्रांसफर में सीएम सचिवालय से ओएसडी संदीप अग्रवाल की बिदाई हो गई। डा0 रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद साढ़े चौदह साल में अग्रवाल दूसरे अफसर होंगे, जिन्हें वहां से शिफ्थ किया गया है। इससे पहिले स्पेशल सिकरेट्री टू सीएम रोहित यादव को चेंज किया गया था। रोहित और संदीप के अलावा साढ़े चौहद साल में सीएम सचिवालय में जो भी अफसर पोस्ट हुए, काम करके उन्होंने अपनी जगह मुकम्मल कर ली। सीएम सचिवालय से अध्ययन अवकाश पर हावर्ड गए रजत कुमार लौटने वाले हैं। तय है उनकी पोस्टिंग भी सीएम सचिवालय में ही होगी।

पोस्टिंग के लाभ

राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुब्रत साहू 10 मई से 25 दिन की छुट्टी में अमेरिका जा रहे हैं। वे अब फर्स्ट वीक ऑफ जून में लौटेंगे। निर्वाचन में पोस्टिंग के ये ही फायदे हैं। अगर वे राज्य सरकार में होते तो किसी भी सूरत में विदेश जाने के लिए उन्हें इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिलती। विकास यात्रा के दौरान तो दो दिन की छुट्टी मिलनी मुश्किल होती है। वैसे भी, विदेश जाने के लिए अनुमति लेने के लिए नौकरशाहों को काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। भले ही पर्सनल ट्रिप क्यों न हो। बिना हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाए काम बनता नहीं। यह इसलिए करना पड़ता है, क्योंकि सरकारें जानती हैं कि विदेश दौरे का कोई तुक नहीं….सैर-सपाटे के लिए दौरा क्रियेट किया गया है। उपर से घरवालों को भी ले जाना है साथ में। विदेश जाने की फाइल जीएडी से चलकर कई जगहां से होते हुए उपर तक पहुंचती है। चुनाव आयोग में ऐसा नहीं है। इलेक्शन कमिश्नर ही वहां सब कुछ होते हैं। तभी तो सुब्रत को दिक्कत नहीं हुई। चलिये, निर्वाचन में पोस्टिंग का अब क्रेज बढ़ेगा…कम-से-कम वहां लंबे विदेश प्रवास की इजाजत तो मिल जाती है।

ब्यूरोक्रेसी में शादियां

ब्यूरोक्रेसी में यह महीना शादियों का रहा। 15 दिन के भीतर तीन शादिया हुई। ट्राईबल सिकरेट्री रीना बाबा कंगाले यूके बेस्ड इंजीनियर के संग सात फेरे ली। तो कवर्धा जिला पंचायत के सीईओ कुंदन कुमार राजस्थान की पारुल के साथ परिणय सूत्र में बंधे। प्रोबेशनर आईएएस गौर का विवाह भी इसी महीने हुआ है।

मंत्री की मुश्किलें?

सरकार के एक कद्दावर मंत्री ने कुछ दिन पहले अपने विधानसभा इलाके के 85 से अधिक समाजों के पदाधिकारियों को भोजन पर बुलाकर विधायक निधि से 25-25 हजार रुपए दिया था। विरोधी पार्टियों को जब इसका पता चला तो उनके कान खड़े हो गए। पता चला है, कुछ नेता इसे इश्यू बनाने की तैयारी कर रहे हैं। मंत्री के खिलाफ चुनाव आयोग में कांप्लेन करने पर विचार किया जा रहा हैं। विपक्ष का सवाल है, मंत्रीजी को आखिर चुनावी वर्ष में समाज प्रमुखों को खयाल कैसे आया? आपको बता दें, मंत्रीजी रायपुर से बाहर के हैं।

कलेक्टर, एसपी की जोड़ी

गिरिजाशंकर जायसवाल को सरकार ने सूरजपुर का एसपी बनाया है। गिरिजा जशपुर के एसपी रह चुके हैं। सूरजपुर जशपुर से छोटा भी है। जशपुर पांच ब्लॉक का जिला है, सूरजपुर चार ब्लाक का। सूरजपुर अभी तक एसपी के रूप में आईपीएस का पहला जिला रहा है। लेकिन, सरकार ने कलेक्टर की तरह एसपी का भी सूरजपुर दूसरा जिला बना दिया। दंतेवाड़ा कलेक्टर रह चुके देव सेनापति को पहले सूरजपुर का कलेक्टर बनाकर भेजा और अब गिरिजा को एसपी। सरकार के इस फैसले से कलेक्टर, एसपी का वजन बढ़ा कि कम हुआ नहीं पता, लेकिन इससे सूरजपुर जिले का कद अवश्य बढ़ गया।

दोनों हाथ में लड्डू

अंबिकापुर से विमान सेवा शुरू करने से सत्ताधारी पार्टी को फायदा मिलेगा या कांग्रेस को, दावे के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि, विमान सेवा के लिए सरकार जितना भी पसीना बहा ले, जो कंपनी रायपुर से अंबिकापुर को विमान सेवा से जोड़ने वाली है, उसमें अंबिकापुर के एक कांग्रेस नेता के परिवार की भागीदारी है। सरगुजा में यह बात आम हो गई है कि फलां साब हवाई जहाज चलवाने वाले हैं। इससे कांग्रेस के दोनों हाथ में लड्डू है। एयर सर्विसेज चालू हो गई तो कांग्रेस नेता को क्रेडिट मिलेगा और ना हुआ तो सरकार को कोसने का बढ़ियां मौका।

अंत में दो सवाल आपसे



1. सूरजपुर के एसपी डीआर आचला की सरकार ने छुट्टी क्यों कर दी?
2. किस जिले के कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ बिहार से हो गए हैं और वो भी पड़ोसी जिले के?

रविवार, 15 अप्रैल 2018

नो कंडिडेट!

15 अप्रैल
दो महीने बाद बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन नारायण सिंह रिटायर हो जाएंगे। चीफ सिकरेट्री लेवल के इस पोस्ट के लिए राज्य में कोई नौकरशाह खाली नहीं है। जो थे, वे सभी इंगेज हो चुके हैं। एमके राउत मुख्य सूचना आयुक्त, विवेक ढांड रेरा चेयरमैन, डीएस मिश्रा सहकारिता आयोग चेयरमैन, एनके असवाल रेरा मेम्बर। इनके अलावा इस साल कोई आईएएस रिटायर नहीं हो रहे। हालांकि, प्रिंसिपल सिकरेट्री लेवल में जीएस मिश्रा खाली हैं। वे अगर दम लगा दिए तो ठीक है वरना, मुख्य सूचना आयुक्त की तरह बिजली विनियामक आयोग की कुर्सी भी किसी नौकरशाह के रिटायर होने की प्रतीक्षा में साल, डेढ़ साल तक खाली रह जाए, तो आश्चर्य नहीं।

मोदी की मेमेरी

आमतौर पर राजनेता भाषण से पूर्व नामों को नोट कर लेते हैं। लेकिन, जांगला के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को अहसास कराया कि उनकी याददश्त गजब की है। पूरे भाषण में उन्होंने छत्तीसगढ़ से जुड़े दो दर्जन से अधिक नामों को लिया। और, वो भी बिना देखे। आटो चलाने वाली सविता की तो ड्रोन बनाने वाली लक्ष्मी की भी। भोपालपटनम से लेकर भद्राचलम, कांकेर, दंतेश्वरी माई, भैरमगढ़ के भैरम बाबा, भानुप्रताप, राजनांदगांव आदि के वे नाम ऐसे ले रहे थे, जैसे छत्तीसगढ़ में उन्होंने लंबा समय बिताया हो। 58 मिनट का संबोधन समाप्त होने के बाद लोग उनकी मेमोरी को दादा दे रहे थे।

अफसर की मुश्किलें

सूबे के एक अफसर की मुश्किलें बढ़ सकती है। एक आरटीआई कार्यकर्ता ने अफसर के दोस्त की संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई मौत को त्रिकोणीय प्रेम संबंध का अंजाम बताते हुए जांच के लिए सीबीआई को लेटर लिखा है। सीबीआई ने अगर केस ले लिया तो बवाल मच सकता है।

कलेक्टरों की सूची

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बस्तर दौरे की वजह से कलेक्टरों की पूरी लिस्ट नहीं आ पाई थी। सरकार ने सिर्फ छह कलेक्टरों का ही ट्रांसफर किया था। बलरामपुर, बेमेतरा, मुंगेली, बलौदाबाजार, जांजगीर और कवर्धा। पीएम के लौटने के बाद बचे जिलों के कलेक्टरों की धड़कनें फिर तेज हो गई है। वजह यह है कि विधानसभा चुनाव सामने होने के कारण अब रिश्ते-नाते नहीं निभाए जा रहे। देखा नहीं आपने, जांजगीर जिले को सौरभ कुमार के लिए रिजर्व रखने की बात चल रही थी और पोस्टिंग हो गई नीरज बंसोड़ की। इसी तरह अवनीश शरण को किसी दीगर जिले में भेजने की बजाए सरकार ने कवर्धा में उनकी उपयोगिता ज्यादा समझी। दूसरी लिस्ट में जिन कलेक्टरों के नम्बर लग सकते हैं, उनमें मध्य और दक्षिण छत्तीसगढ़ के आधा दर्जन जिले हैं। इनमें से कई को चुनावी दृष्टि से दूसरे जिलों में बिठाया जाएगा। वहीं, एक-दो रायपुर बुलाए जाएंगे।

लक्की जिला

बलरामपुर कलेक्टर अवनीश शरण को कवर्धा का कलेक्टर बनाया गया है। बलरामपुर पांच ब्लॉक का जिला था और कवर्धा चार का। अवनीश अपनी नई पोस्टिंग से कितना खुश होंगे यह तो नहीं पता। लेकिन, सीएम के गृह जिला का इम्पॉर्टेंस के साथ ही कवर्धा कलेक्टरों के लिए काफी लक्की रहा है। मसलन, सोनमणि बोरा का कवर्धा दूसरा जिला रहा। लेकिन, इसके बाद वे रायपुर और बिलासपुर जैसे सूबे के दोनों बड़े जिले के कलेक्टर रहे। सिद्धार्थ कोमल परदेशी का कवर्धा पहला जिला रहा। उसके बाद वे लगातार तीन जिले के कलेक्टर रहे। वीवीआईपी जिला राजनांदगांव के साथ ही राजधानी रायपुर और न्यायधानी बिलासपुर के भी। मुकेश बंसल भी कवर्धा के बाद रायगढ़ और राजनांदगांव के कलेक्टर रहे। मुकेश अगर कलेक्टरी से अरुचि नहीं दिखाए होते तो संभव था कि अभी कोई और जिले के वे कलेक्टर होते। दयानंद पी भी कवर्धा के बाद कोरबा और अब बिलासपुर की कलेक्टरी कर रहे हैं। धनंजय देवांगन कवर्धा से ही जगदलपुर गए। नीरज बंसोड़ भी रवि शास्त्री जैसी बैटिंग करने के बाद भी जांजगीर जैसा जिला पाने में कामयाब हो गए। कहने का आशय यह है कि कवर्धा जिला कलेक्टरों के कैरियर की दृष्टि से काफी बढ़ियां रहा है।

हार्ड लक

बड़े जद्दोजहद और गुणा-भाग के बाद एसीएस होम बीवीआर सुब्रमण्यिम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीजापुर कार्यक्रम का प्रभारी बनाया गया था। मगर पीएम का बीजापुर दौरा निरस्त हो गया। जाहिर है, प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों का प्रभारी बनने से अफसरों को एक्सपोजर मिलता है। कार्यक्रम अगर बढ़ियां हो गया तो सीएम से शाबासी भी। सुब्रमण्यिम को वास्तव में इसकी दरकार भी है। बेचारे जब से दिल्ली से आए हैं, गृह विभाग से पीछा नहीं छूट रहा है।

गाइडलाइन पर सवाल

कुछ महीने पहिले सीएम की राजनांदगांव सभा में कुछ व्यवधान पहुंचा था तो सरकार से कलेक्टरों को गाइडलाइन जारी हुई थी। कलेक्टर सीएम के कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी सरकार को भेजेंगे। यही नहीं, कार्यक्रम में कुछ भी गड़बड़ हुआ, तो उसके लिए वे जिम्मेदार होंगे। लेकिन, पिछले हफ्ते कोरिया में माता कर्मा जयंती के कार्यक्रम में गाइडलाइल को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। आयोजकों ने कार्यक्रम को राज्य स्तरीय बताकर सीएम से टाईम ले लिया। लेकिन, जब सीएम समरोह में पहंचे तो पता चला जिला स्तरीय आयोजन था। भीड़ भी जिला स्तरीय के हिसाब से ही आई थी। ऐसे में, कोरिया के बीजेपी नेताओं को बगले झांकने के अलावा कोई चारा नहीं था।

पुनिया का प्रयास

कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया के एका के प्रयासों पर पार्टी के नेता ही पलिते लगा रहे हैं। चुनाव अभियान समिति की बैठक में तो पुनिया के सामने ही आपस की कलह खुलकर सामने आ गई। वो भी इस कदर कि घर-परिवार के लोगों पर भी हमले किए जाने लगे। पुनिया भी आवाक थे कि ये हो क्या रहा है। चलिये, बीजेपी और जोगी कांग्रेस के लिए इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है।

एक और आदिवासी नेता

छत्तीसगढ़ की राजनीति ने एक और आदिवासी नेता को सुनियोजित तौर पर निबटाने की कोशिशें हुई हैं। बताते हैं, अंबिकापुर में टीएस सिंहदेव जैसे प्रभावशाली नेता के सामने खड़े होने के लिए भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है। चर्चा थी कि सरगुजा सांसद कमलभान को बीजेपी वहां उतार सकती है। लेकिन, कमलभान का अश्लील गालियों का ऐसा आडियो टेप वायरल किया गया कि वे अब सफाई दे पाने की स्थिति में भी नहीं हैं। हालांकि, टेप सुनने से लगता है, उन्हें ट्रेप किया गया है। चलिये, कांग्रेस के लिए अब अंबिकापुर सीट और मजबूत हो जाएगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार ने बेमेतरा कलेक्टर कार्तिकेय गोयल और कवर्धा कलेक्टर नीरज बंसोड़ को 10 महीने में ही क्यों बदल दिया?
2. आखिर ऐसा क्या हुआ कि सरकार ने आलोक अवस्थी का आर्डर निकाला कमिश्नर एग्रीकल्चर का और तीसरे दिन उन्हें ग्रामोद्योग में भेज दिया?

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

जीएडी का कमाल

8 अप्रैल
तीन महीने के भीतर यह दूसरा मौका होगा, जब सरकार को आईएएस, आईपीएस पोस्टिंग के अपने फैसले बदलने पड़े। याद होगा, एसपी के ट्रांसफर में एमआर अहिरे को बीजापुर और मोहित गर्ग को गरियाबंद का एसपी बनाया गया था। लेकिन, 15 दिन के भीतर अहिरे को हटाकर गर्ग को बीजापुर का एसपी बनाना पड़ा। बीजापुर में जब नक्सली घटनाएं यकबयक बढ़ने लगी तो सरकार को लगा अहिरे को वहा पोस्ट करके भूल हो गई। पिछले हफ्ते आईएएस की लिस्ट में भी कुछ ऐसा ही हुआ। अंबलगन पी को पहले मार्कफेड से हटाकर सिकरेट्री पीएचई का प्रभार दिया गया। और, राजभवन के डिप्टी सिकरेट्री जन्मजय मोहबे को एमडी मार्कफेड का। लेकिन, चौथे दिन अचानक आर्डर में संशोधन करते हुए जीएडी ने अंबलगन को पीएचई के साथ फिर से मार्कफेड और मोहबे को बीज विकास निगम भेज दिया। याने चार दिन के भीतर मोहबे का दो ट्रांसफर। उपर से ट्रांसफर के 12 दिन बाद भी मोहबे राजभवन से रिलीव नहीं हुए हैं। कारण, उनकी रिलीवर रोक्तिमा राय रायगढ़ से अभी तक आई नहीं हैं। रोक्तिमा के आए बिना राजभवन मोहबे को रिलीव करेगा नहीं। और, मोहबे रिलीव नहीं होंगे तो आलोक अवस्थी बीज विकास निगम का चार्ज किसे देंगे। सब जीएडी का कमाल है।

पी का अंतर

आईएएस के ट्रांसफर में बीज विकास निगम के एमडी आलोक अवस्थी को सरकार ने कमिश्नर एग्रीकल्चर बनाया है। यह कैडर पोस्ट तो है, मगर राज्य में इसका कोई अस्तित्व नहीं है। 13 साल पहिले बीएस प्रजापति कमिश्नर रहे। उनके हटने के बाद इस पोस्ट को लोग भूल गए थे। 4 अप्रैल को सरकार ने आलोक के लिए झाड़-पोंछकर जब कमिश्नर के पद को आलमारी से बाहर निकाला तो लोगों को चौंकना स्वाभाविक था। क्योंकि, आलोक को गाड़ी-घोड़ा के साथ ही बैठने की व्यवस्था खुद करनी होगी। हालांकि, सात अप्रैल की शाम सरकार ने आदेश में संशोधन करते हुए आलोक को कमिश्नर के साथ डायरेक्टर का भी प्रभार दे दिया। मगर आश्चर्यजनक सत्य यह है कि कृषि प्रधान राज्य में कृषि विभाग का ये हाल है कि उसके पास कोई पूर्णकालिक डायरेक्टर नहीं है। और जो प्रभारी डायरेक्टर हैं, उनके पास बैठने के लिए अपना कोई आफिस नहीं है। कृषि विश्वविद्यालय के कैम्पस में उधारी में कमरा लेकर प्रभारी डायरेक्टर बैठते हैं। उधर, इस पोस्टिंग पर मंत्रालय में लोग चुटकी ले रहे हैं….कृषि विभाग में अब दो-दो कमिश्नर होंगे। सुनील कुजूर एग्रीकल्चर प्रोडक्शन कमिश्नर याने एपीसी। और आलोक एग्रीकल्चर कमिश्नर। दोनों में सिर्फ पी का अंतर रहेगा। अंग्रेजी वर्णमाला का पी। वो वाला पी नहीं….आप इसका कुछ और मतलब मत निकालियेगा।

इलेक्शन रिकार्ड

पिछले चार साल में अगर किसी आईएएस का सबसे अधिक ट्रांफसर हुआ होगा, तो उनमें आलोक अवस्थी का नाम शायद सबसे उपर होगा। चार साल में उनके चार विभाग बदले। आलोक सिर्फ ट्रांसफर का रिकार्ड नहीं बना रहे हैं, बल्कि चुनाव कराने में भी नए कीर्तिमान की ओर बढ़ रहे हैं। कर्नाटक चुनाव को मिलाकर उनकी बारहवीं इलेक्शन ड्यूटी होगी। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक इलेक्शन ड्यूटी का रिकार्ड एसीएस सुनील कुजूर के नाम दर्ज था। लेकिन, आलोक ने पिछले साल उनका रिकार्ड तोड़ दिया। अगले साल रिटायरमेंट से पहिले वे राजस्थान विधानसभा और उसके बाद लोकसभा का चुनाव कराएंगे। याने चौदह चुनाव। हालांकि, आलोक का रिकार्ड दो-एक साल से ज्यादा नहीं टिकने वाला। भूवनेश यादव तेजी से उनका पीछा कर रहे हैं। जल्द ही वे आठवां चुनाव कराने कर्नाटक रवाना होंगे। याने आलोक से सिर्फ चार पीछे। लेकिन, अभी उनकी नौकरी 18 साल बाकी है। जाहिर है, भूवनेश काफी आगे निकल जाएंगे।

संपत्ति का सवाल

वन विभाग से बाहर स्टेट डेपुटेशन पर पोस्टेड आईएफएस अफसर अभी तक विभागीय सचिव को कोई भाव नहीं देते थे। उनको लगता था कि वे तो सरकार में हैं….उनका कोई क्या कर लेगा….जब वन विभाग लौटेंगे तो देखा जाएगा। लेकिन, एसीएस फॉरेस्ट सीके खेतान ने जरा-सी चाबी क्या घुमाई, उन्हें दुआ-सलाम करने वाले अफसरों की लाइन लग गई है। दरअसल, खेतान ने आईएफएस की संपत्ति को लेकर क्वेरी चालू कर दी है। कुछ अफसरों ने जायदाद छुपाने के चक्कर में गल्तियां खूब की है। एक आईएफएस ने किसी साल कोई जमीन अपनी मां के नाम दिखाया है तो अगले साल वही जमीन पत्नी के नाम। तो तीसरे साल उसे ससुर से दान में मिलना बता दिया। ऐसे में, आईएफएस की परेशानी बढ़नी लाजिमी है।

बस्तर कलेक्टर कौन?

पीएम विजिट की वजह से भले ही कलेक्टरों का ट्रांसफर आगे-पीछे हो रहा है। लेकिन, महत्वपूर्ण यह भी है कि कुछ जिलों में कलेक्टर के लिए सरकार को विकल्प भी नहीं मिल रहे। मसलन, जगदलपुर। 5 अप्रैल को हाई लेवल पर एक घंटा चर्चा के बाद भी नाम फायनल नहीं हो पाया। खासकर, बस्तर के लिए सरकार को कोई नाम नहीं सूझ रहा है। लिस्ट बनती है, फिर कट जाती है। कवर्धा को लेकर भी उलझन की स्थिति है। वहां के लिए दो नाम सबसे उपर हैं, अवनीश शरण और सौरभ कुमार। इसी तरह प्रियंका शुक्ला का अगर जांजगीर हुआ तो अवनीश और सौरभ में से किसी एक को धमतरी भेजा जाएगा। ब्राम्हण बहुल बेमेतरा में जितेंद्र शुक्ला को भेजा जा सकता है। फिर पीएम विजिट कराने के बाद बीजापुर कलेक्टर अयाज तंबोली के लिए भी ठीक-ठाक जिला ढूंढना होगा। लिस्ट बनने में दिक्कत इसलिए जा रही है, क्योंकि, बड़े जिलों में सिर्फ बस्तर और दुर्ग कलेक्टर ही चेंज हो सकते हैं। दुर्ग का चांस थोड़ा कम ही है। रायपुर, बिलासपुर, अंबिकापुर, कोरबा और रायगढ़ में से एक को छोड़कर बाकी जिलों के कलेक्टरों को सरकार फिलहाल टच करने के मूड में नहीं है। बहरहाल, अभी फायनल कुछ भी नहीं हुआ है। जो भी है, वह सिर्फ चर्चा में है।

अब जुरी की बारी

अग्रवाल अफसरों के अब अच्छे दिन आ गए हैं। पहले आईपीएस केसी अग्रवाल को कैट ने राहत देते हुए भारत सरकार के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें उन्हें फोर्सली रिटायर किया गया था। और, अब आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के मामले में ऐसा ही आदेश आया है। बाबूलाल का आदेश तो वास्तव में चमत्कारिक है। और, सरकारी मशीनरी के लिए आंख खोलने वाला भी कि जल्दीबाजी और उतावलेपन की बजाए ठोक-बजाकर कार्रवाई करनी चाहिए। ताकि, वह स्टैंड कर सकें। बहरहाल, दोनों अग्रवालों के बाद अब दो पत्नी वाले एएम जुरी को भी कैट से राहत मिलना तय दिख रहा है। जुरी की सुनवाई अब अंतिम चरण में है।

राउत की कमी

प्रधानमंत्री विजिट के मौके पर सरकार को एमके राउत की कमी खल रही है। राउत ऐसे अफसर थे, जिन्हें पीएम के प्रवास की व्यवस्था की जिम्मेदारी देकर सरकार भूल जाती थी। उपर वालो को भरोसा रहता था कि राउत के रहते भीड़ से लेकर सब इंतजाम हो जाएगा। लेकिन, इस बार जिम्मेदारी तय करने को लेकर सरकार काफी उलझन में रही। काफी विचार-विमर्श के बाद बीजापुर का जिम्मा एसीएस होम बीवीआर सुब्रमण्यिम और जांगला, जहां ग्रामीण विकास की प्रदर्शनी होनी है, की जिम्मेदारी एसीएस पंचायत आरपी मंडल को सौंपी गई है।

इतिहास दुहाराता है

अजीत जोगी के हेलिकाप्टर को लैंड करने की इजाजत देने से बीजापुर प्रशासन ने मना कर दिया है। वजह, पीएम विजिट के कारण हेलीपैड का रिपेयरिंग किया जा रहा है। इस खबर से 2003 विस चुनाव के समय की घटना बरबस याद आ गई। बिलासपुर मेंं विद्याचरण शुक्ल की सभा थी। तय कार्यक्रम के अनुसार राजा रघुराज सिंह स्टेडियम में उनका हेलिकाप्टर उतरता। लेकिन, एक दिन पहिले डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने वीसी का हेलिकाप्टर उतरने से मना कर दिया। वो भी बिना किसी वजह। वीसी तब अंबिकापुर में थे। उन्हें सड़क मार्ग से रातोरात बिलासपुर के लिए निकलना पड़ा था।

अंत में दो सवाल आपसे



1. आईएएस के ट्रांसफर में अपने विभाग में एक अफसर को बिठाना किस मंत्री को नागवार गुजरा?
2. पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के पिता की सक्रियता से भूपेश को लाभ होगा या नुकसान?