शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

तरकश, 28 अक्टूबर

अल्बर्ट पिंटो

रमन इलेवन के एक वरिष्ठ खिलाड़ी को गुस्सा नाहक नहीं आ रहा.......उसके वाजिब कारण हैं। विभाग में निर्माण कार्य का 1800 करोड़ रुपए का टेंडर होना है। अपने लोगों को काम मिल गया तो एकमुश्त आठ-दस खोखा का इंतजाम हो जाएगा। सो, मंत्रीजी मैन्यूल टेंडर के लिए जोर डाल रहे हैं। जबकि, सरकार ने 20 लाख रुपए के अधिक के लिए ई-टेंडर का नियम बना रखा है। और, इसे अब 10 लाख करने पर विचार किया जा रहा है। बावजूद इसके, जल्दी काम करने का हवाला देकर मंत्रीजी ने सबको डीओ लेटर लिखा, मगर चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और एसीएस फायनेंस डीएस मिश्रा अड़ गए। मंत्रीजी ने फिर लिखा, लेट होगा तो दिल्ली की एजेंसी पैसा देने में टालमटोल कर सकती है। इस पर कुमार और मिश्रा ने कहा कि वे दिल्ली में बात करके पैसा रिलीज करा देंगे, मगर ई-टेंडर ही करना पड़ेगा.....हम लोगों को जेल नहीं जाना है। अब, अफसर ऐसे अड़ेंगे, तो कोई कैसे नहीं भड़केगा। अफसरों को इतना खयाल तो करना चाहिए, अगले साल चुनाव है। चुनाव में खरचा लगता ही है। फिर तीसरी बार का क्या भरोसा है। छह-आठ महीने ही बाकी है। उसके बाद अचार संहिता लग जाएगा। थोड़े दिन बचे हैं, कर लेने देना चाहिए।  

खफा

ब्यूरोक्रेट्स की एक खासियत होती है......पीठ पीछे एक-दूसरे की लाख बुराई कर लें, बिरादरी पर हमला हुआ, तो एक हो जाते हैं। बीएल अग्रवाल के यहां इंकम टैक्स छापे के समय भी लोगों ने इसे देखा और इस बार भी......। सोमवार को कैबिनेट की बैठक में एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार पर भड़ास निकालने पर मंत्रालय के आईएएस गुस्से मंे हैं। पता चला है, इस मामले में जल्द ही आईएएस एसोसियेशन की बैठक होगी। इसके बाद एसोसियेशन के लोग सीएम से मिलकर अपनी बात रखेंगे। अफसरों में गुस्सा इस बात का है कि गलत काम कराने के लिए प्रेशर बनाने की स्ट्रेटज्डी अपनाई जा रही है, वह ठीक नहीं है। अफसरों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि ऐसा ही रहा तो वे कैबिनेट की बैठक में जाना बंद कर देंगे।  

वक्त की बात

वक्त-वक्त की बात होती है......कुछ दिन पहले तक मंत्रालय के दो आला आईएएस अधिकारी एक-दूसरे की सूरत देखना नहीं चाहते थे। एक-दूसरे के प्रमोशन में, दोनों ने अपने हिसाब से खूब रोड़े अटकाएं। मगर देश में हुए कोयला घोटाला और उसकी सीबीआई जांच ने दोनों को अब नजदीक ला दिया है। संचेती बंधुओं को जो कोल ब्लाक आबंटित हुआ है, दोनों आईएएस उस कमेटी के मेम्बर थे। आशंका है, सीबीआई कभी भी दबिश दे सकती है। या और कुछ हो या न हो, दस्तावेज तो मंगा ही सकती है। अब, दोनों अफसर मिलकर सिर खपा रहे हैं, ऐसे में क्या करना होगा। सीबीआई को क्या दबाव देना चाहिए। चिंता लाजिमी है। जरा सी भी कमेंट आ गई, तो अजय सिंह और एनके असवाल सुनील कुमार की कुर्सी के स्वाभाविक दावेदार हो जाएंगे।

मुक्ति

कौशलेंद्र सिंह को नागरिक आपूर्ति निगम से हटाने का एक मामला छोड़ दें, तो भाप्रसे और राप्रसे अफसरों के फेरबदल को अबकी बैलेंसिंग माना जा रहा है। चावल लाबी के प्रेशर के बाद कौशलेंद्र को नान से हटाकर स्वास्थ्य मिशन में भेज दिया गया। वे घटिया क्वालिटी का चावल लेने से मना कर रहे थे। और चावल लाबी का मतलब आप समझ सकते हैं। कहने के लिए ठाकुरों के हाथ में सत्ता है। सरकार और संगठन में हावी तो लक्ष्मीपुत्रों की बिरादरी ही है। बहरहाल, महिला बाल विकास से सुब्रत साहू को और मनोहर पाण्डेय को खेल से हटाकर सरकार ने इस विभाग को कसने की कोशिश की है। सुब्रत की जगह वहां उमेश अग्रवाल को भेजा गया है और मनोहर के स्थान पर सुब्रमण्यिम को। दोनों के बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं है। हालांकि, इससे लता उसेंडी को दिक्कतें बढ़ेंगी। ़अभी तक, इन दोनों विभागों पर लता के चंपु हावी थे। सिकरेट्री और कमिश्नर से अधिक उनकी चौकड़ी की चलती है। एडवांस में कमीशन पहुंचाए बगैर महिला बाल विकास के टेंडर नहीं होते और ना ही जिलों को खेल के प्रस्ताव स्वीकृत होते। उम्मीद है, दोनों विभागों को अब माफियाओं से मुक्ति मिलेगी।

नाराज

ऐश्वर्या का जन्मदिन होने की वजह से अमिताभ बच्चन ने एक नवंबर को राज्योत्सव के उद्घाटन में आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी मगर सात को कवि सम्मेलन के लिए वे तैयार थे। मगर पर्दे के पीछे पैसे की डीलिंग में जो खेल हो रहा था, उससे वे नाराज हो गए। रायपुर में बताया गया, बिग बी दो करोड़ लेंगे और उधर, बीच का आदमी उनसे 60-70 लाख में बात कर रहा था। और इस पर लगभग सहमति बन भी गई थी। लेकिन किसी ने राजधानी के अखबारों में छपी दो करोड़ की रिपोर्ट उन्हें फैक्स कर दिया। खबर है, इसके बाद ही, उन्होंने एकदम से ना कर दिया। 

नाकाम

राजधानी का अपना रेस्ट हाउस बचाने की वन विभाग की तमाम कोशिश बेकार साबित हुई। सरकार ने दो टूक कह दिया, इस बारे में अब कोई बात नहीं होगी....आप कोई दूसरा भवन देख लीजिए। उसे राज्य मानवाधिकार आयोग के नए अध्यक्ष राजीव गुप्ता का आवास बनाने का आदेश एकाध दिन में जारी हो जाएगा़। लोकेशन के हिसाब से यह राजधानी का सबसे बढ़िया रेस्ट हाउस होगा। इससे पहले, वन मंत्री गणेशराम भगत ने अपना आवास बना लिया था। भगत के पिछला चुनाव हारने पर वन विभाग ने राहत की सांस ली थी। रेस्ट हाउस को फर्नीश्ड करने पर साल भर में एक करोड़ रुपए खर्च किया गया था। और वन विभाग को यही अखर रहा है।
 
अंत में दो सवाल आपसे

1. राजधानी के किस अफसर की वजह से एक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के पारिवारिक जीवन में दरार पड़ने की नौबत आ गई है?
2. राज्योत्सव का श्रेय लेने के लिए किन दो मंत्रियों में शह-मात का खेल चल रहा है?

 

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

तरकश, 21 अक्टूबर



खींचतान


राज्योत्सव में कलाकारों को बुलाने को लेकर इस बार खींचतान कुछ ज्यादा बढ़ गई है। मंत्री कुछ चाहते हैं और सिकरेट्री कुछ और। इसकी एक झलक सीएम हाउस में समीक्षा के लिए बुलाई गई मीटिंग में भी दिखी। संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल चाह रहे थे कि वालीवूड के कलाकारों को बुलाया जाए। इसके पीछे उनका तर्क था कि इसमें भीड़ ज्यादा जुटती है। और विभाग के प्रमुख सचिव केडीपी राव का जोर था, लोगों को विभिन्न राज्यों के लोक संस्कृतियों की झलक दिखाने के लिए वहां के कलाकारों को बुलाया जाए। एक मौका ऐसा आया, जब दोनों एक-दूसरे की बात काटने लगे। इसे देखकर सीएम को बोलना पड़ गया, किन्हें बुलाना है, इसके लिए पहले आप दोनों बैठकर तय कर लें, फिर बताएं। अब भरी बैठक में इतना बड़ा वाकया हो जाए, तो खुसुर-पुसुर कैसे नहीं होगी। तमाम सिकरेट्री जानने की कोशिश कर रहे थे कि केडीपी ने इतनी साहस कैसे दिखा दी।

गुर्राहट


राज्योत्सव का आयोजन सीएसआईडीसी करता है। और संस्कृति विभाग की भूमिका सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित रहती है। मगर अबकी पीडब्लूडी की बढ़ती घुसपैठ ने उद्योग मंत्री राजेश मूणत को परेशान कर दिया है। गुरूवार को तैयारियों का जायजा लेने के दौरान अफसरों पर वे ऐसे ही नहीं बरस पड़े। बताते हैं, राज्योत्सव स्थल के लिए उन्होंने कुछ टिप्स दिए थे, वह नहीं हो पाया। और जब पीडब्लूडी मिनिस्टर बृजमोहन अग्रवाल ने कहा, तो अफसरों ने उसे फटाक से कर दिया। अब ऐसे में किसे गुस्सा नहीं आएगा। उधर, पूछपाछ न होने से सीएसआईडीसी चेयरमैन बद्रीधर दीवान अलग खफा हैं। कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू को नागवार गुजर रहा कि उनके अभनपुर में राज्योत्सव हो रहा है और उनका कोई नामलेवा नहीं है। शुक्रवार को न्यू रायपुर में टे्रड सेंटर के शिलान्यास स्थल पर इसकी खूब चर्चा थी और लोग चुटकी ले रहे थे, जंगल सफारी का शिलान्यास नहीं हुआ कि शेर गुर्राने लगे हैं।

चर्चा


सैफ-करीना की शादी से रमन कैबिनेट के एक सदस्य भी उत्साहित हैं और जल्दी ही कोई अच्छी खबर आ जाए, तो आश्चर्य नहीं। जोड़ीदार भी हमपेशा है और लाल बत्तीधारी है। दोनों रायपुर में रहते हैं और अलग-अलग कारणों से तन्हाइयों में हैं। नवरात्रि में राजधानी के लोगों ने दोनों को सार्वजनिक रूप से माता के मंदिरों में दर्शन करते देखा। हालांकि, उन्हंे सलाह दी जा रही है कि चुनाव के पहले ऐसा करना हितकर नहीं होगा। सो, देखना यह होगा कि शहनाई चुनाव के पहले बजती है या बाद में।

आशंका


स्पेशल डीजी बनने के बाद रामनिवास को अगला डीजीपी बनना लगभग तय माना जा रहा है। मगर रामनिवास कैंप आशंकाओं से उबर नहीं पा रहा है। असल में, कुछ घटनाएं ऐसी हुई भी है। याद कीजिए, मध्यप्रदेश के डंगवाल-जुगरान एपिसोड। राज्य बनने से दो साल पहले 98 में दिग्गी सरकार ने एसपी डंगवाल को डीजीपी बनाना तय कर लिया था। दिग्गी ने फोन पर बधाई भी दे डाली थी। तत्कालीन सीएस केएस शर्मा ने डंगवाल को अपने चेम्बर में बुलाकर मुंह भी मीठा करा दिया था। शनिवार को उनका आदेश निकलना था। इसके एक रोज पहले, डंगवाल ने पीएस होम से मिलकर अनुरोध किया, शनिवार उनके लिए ठीक नहीं रहता, सोमवार को आदेश निकाला जाए। और सोमवार को सुबह दिल्ली से कोई फोन आया और डंगवाल के बजाए दिनेश जुगरान का आर्डर निकल गया। बताते हैं, दिग्गी ने डंगवाल को दिल्ली के फोन का हवाला देकर सारी कह दिया था। और इससे आहत होकर डंगवाल ने तत्काल रेजिगनेशन दे दिया था। सो, रामनिवास कैंप की आशंका गलत नहीं है। अभी तो 40 दिन बचे हैं। उन्हें लगता है, संतों की पार्टी में संतकुमार ने जुगरान सरीखा कोई कमाल दिखा दिया तो पासा पलट भी सकता है।

बेरुखी

जो काम अच्छे-भले खिलाड़ी नहीं कर पा रहे हैं, वो निःशक्त खिलाडि़यों ने कर दिखाया...सिर उंचा कर दिया। महाराष्ट्र के सतारा में निःशक्तों की राष्ट्रीय तिरंदाजी में अपनी टीम ने तीन सिल्वर और तीन ब्रांज मैडल जीता। इनमें से तीन खिलाड़ी अगले साल अप्रैल में स्पेन में आयोजित इंटरनेशनल चैम्यिनशीप में पार्टिशिपेट करेंगे। ऐसे खिलाडि़यों को कंधे पर उठाना चाहिए था। मगर बेरुखी की पराकाष्ठा हो गई। गुरूवार को टीम जब समरसत्ता एक्सप्रेस से लौटी तो उनके स्वागत के लिए मुठ्ठी भर लोग थे। न खेल मंत्री ने उनसे मिलने की जहमत उठाई और ना ही खेल अधिकारियों ने। खिलाडि़यों का मन ना टूटे, इसलिए आर्चरी एसोसियेशन के लोग उन्हें लेकर खेल आयुक्त राजकुमार देवांगन से मिलाने यूनिवसिर्टी कैंपस गया। एक घंटा इंतजार के बाद देवांगन ने टाईम दिया और खिलाडि़यों ने जो माला पहना था, उसे ही उतार कर, फिर पहनाते हुए फोटो खिंचवाई गई। चाय-पानी का तो सवाल ही नहीं था। मीडिया का भी यही हाल रहा। एक-दो को छोड़कर बाकी ने तो सिंगल कालम की खबर देने की जरूरत नहीं समझी। और निःशक्त, इलेक्ट्रानिक चैनलों के दायरे में नहीं आते। सो, उन्होंने अपना टीआरपी खराब नहीं किया। इस तरह बेरुखी का दर्द लिए खिलाड़ी अपने घर लौट गए।  

बिग बी

सरकार की कोशिश थी, एक नवंबर को अमिताभ बच्चन से राज्योत्सव का आगाज कराया जाए। मगर उनकी बहू ऐश्वर्या का इसी दिन जन्मदिन होने के चलते कोशिश परवान नहीं चढ़ पाई। बिग बी ने एक नवंबर को आने से इंकार कर दिया है। बावजूद इसके, आयोजकों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। कई सोर्सों से अब भी प्रयास हो रहा, आधा घंटा के लिए ही आ जाएं। ऐसा न होने पर, बिग बी को सात नवंबर के कवि सम्मेलन का आप्सन दिया जाएगा। इधर, एक को अजय देवगन की आने की अटकलें है। मुंबई इंवेस्टर्स मीट में देवगन ने प्रामिस किया था कि वे राज्योत्सव में आएंगे।

अच्छी खबर

बस्तर में बनी बेल मेटल की कलाकृतियां मेट्रो सिटी के फाइव स्टार होटलों की शोभा बढ़ा रही हैं। मुंबई इंवेस्टर्स मीट में हिस्सा लेने गए अफसरों ने होटल में ताज में इसे देखा तो वे चकित रह गए.....बस्तर के अमर प्रेम के प्रतीक झिटकू-मिटकू की प्रतिमाएं तो अमूमन सभी कमरे में थीं। अफसर इसलिए हैरान थे कि ग्रामोद्योग विभाग की मार्केटिंग इतनी तगड़ी कैसे हो गई। बाद में भ्रम टूटा। होटल के अफसरों ने बताया, हम खुद ही आदमी भेजकर बस्तर से इन्हें मंगवाएं हैं। चलिए, है तो यह अच्छी खबर। बस्तर के शिल्प की धमक अब मेट्रो शहरों तक पहंुच रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रमन सरकार के एक मंत्री का नाम बताइये, जो पेट्रोल पंप लेने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री श्यामचरण शुक्ल परिवार से आगे निकलने की होड़ में है?
2. किस सिकरेट्री की आजकल अपने मंत्री से ज्यादा उनके विरोधी मंत्री से पट रही है?

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

तरकश, 14 अक्टूबर

दीया तले.....


अच्छी खबर है, अपने तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार सेवा गारंटी की स्थिति जानने संभाग मुख्यालयों में जाएंगे। उम्मीद है, उनके दौरे से हालात में कुछ फर्क आएगा। मगर इससे पहले, मंत्रालय का एक वाकया सुनिये और फिर अंदाज लगाइये, कैसी चल रही है, सेवा गारंटी। बिलासपुर के कोटा कालेज के युवा स्पोट्र्स टीचर नीलेश मिश्रा की इस साल मार्च में निधन हो गया। हायर एजुकेशन में आने से पहले पांच साल वे ट्रायबल में रहे थे। जाहिर है, सेवा में इस पांच साल के जुड़ जाने से पेंशन बढ़ जाएगी। इसके लिए सिर्फ दो लाइन लिखना है......हायर एजुकेशन डायरेक्टरेट से फाइल चली। डिस्पैच नम्बर 548 की फाइल 28 मई को मंत्रालय में आई। और 11 अक्टूबर तक धूल खाती रही। इस बीच तीन बार सिकरेट्री आरसी सिनहा से एप्रोच किया गया और पांच बार डिप्टी सिकरेट्री चैधरी से। दिखवाते हैं, में पौने पांच महीने निकल गए। लगातार तगादा और 11 को चौधरी के पास आधा धंटा बैठने के बाद फाइल मिली और तब जाकर उसे आगे की कार्यवाही के लिए सिकरेट्री के पास गई। और सुनिये, सीएम के गृह जिले कवर्धा के रिटायर प्रींसिपल आरपी श्रीवास्तव पिछले 20 बरसों से पेंशन, पीएफ और ग्रेच्यूटी के लिए जूझ रहे हैं। अब 81 साल के हो गए हैं। जोगी सरकार के समय स्कूल शिक्षा विभाग ने उनका सर्विस रिकार्ड गुमा दिया। 8 अक्टूबर को पेंशन के लिए हाईकोर्ट के बिहाफ मंे बनी हाईपावर कमेटी के सामने छड़ी के सहारे पहुंचे श्रीवास्तव रो पड़े.....पूछा, क्या मेरे मरने के बाद मेरे पैसे मिलेंगे। सरकार में काम कैसे होते हैं, इसकी ये सच्चाई है।   

अच्छी चूक


राज्य बंटवारे के समय कैडर आबंटन में जाने-अनजाने में की गई चूक से सूबे के दर्जन भर से अधिक आईपीएस अफसरों की किस्मत बदल गई। आलम यह है, छत्तीसगढ़ भेजने का विरोध करने वाले ही आईपीएस अफसरों की आज मौजा-ही-मौजा है। याद होगा, उस समय यहां से मध्यप्रदेश जाने के लिए यही अफसर कैसे तड़फड़ा रहेे थे। शायद उन्हें लगा था, गरीब, आदिवासी और नक्सली स्टेट में आकर, कहां फंस गए। तब, इनकी कई बैठकें हुई थी और तय किया गया, वे मघ्यप्रदेश जाकर रहेंगे। इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। इसके बाद, वे सुप्रीम कोर्ट गए। 2005 में शीर्ष कोर्ट ने तो इनके पक्ष में फैसला दिया था कि छत्तीसगढ और एमपी सरकार सहमत हो, तो कैडर चेंज कर दिया जाए। यहां की सरकार ने तो सहमति भी दे दी थी, लेकिन मध्यप्रदेश तैयार नहीं हुआ। और मामला अटक गया। कोर्ट जाने वालों में अनिल नवानी, रामनिवास, आरके विज, राजेश मिश्रा प्रमुख थे। कल्पना कीजिए, मध्यप्रदेश सरकार कहीं सहमत हो गई होती तो क्या होता? अनिल नवानी न डीजीपी बनते और ना ही रामनिवास को वहां स्पेशल डीजी बनने का चांस मिलता। और ना ही विज को लगातार इतना इम्पार्टेंस मिलता। आखिर, ठीक ही कहा गया है, जो होता है, अच्छा होता है। पर, लोग समझते कहां हैं।

राजनीति

राजनीतिक लाभ लेने के चक्कर में दुर्ग-जगदलपुर ट्रेन आठ दिन विलंब से प्रारंभ हो पाई। दरअसल, 3 अक्टूबर की जब तारीख तय हुई थी, तब टीएमसी के मुकुल राय रेल मंत्री थे। और टीएमसी को छत्तीसगढ़ से क्या वास्ता। इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने कह दिया था। मगर ऐन टाईम पर, उनकी पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापिस ले लिया। इसके बाद कांग्रेस के सीपी जोशी रेल मंत्री बनें तो तय हुआ कि रमन सिंह के साथ रेल राज्य मंत्री मुनिअप्पा हरी झंडी दिखाएंगे। मगर कर्नाटक के मुनिअप्पा को छत्त्तीसगढ़़ में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा। उन्होंने कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत को अधिकृत कर दिया। इस चक्कर में 3 के बजाए 11 अक्टूबर को ट्रेन चालू हो सकी।

पास का लफड़ा

पास के लफड़े में पाप सिंगर हनी सिंह का राजधानी में 12 अक्टूबर का प्रोग्राम रद्द हो गया। एक हजार से लेकर 25 सौ तक के हनी नाइट के टिकिट थे। इसके बाद भी युवाओं में इतना के्रज था कि पांच हजार टिकिट यूं ही बिक गए। नेट पर भी उसकी बुकिंग हो रही थी। मगर राजधानी के युवा नेताओं को पर्याप्त पास देने में आयोजकों ने आनाकानी कर दी। इसके बाद जिला प्रशासन से शिकायत हो गई। पिछले महीने बी डब्लू केनियान की पुल पार्टी में हाथ जला चुका प्रशासन ने प्रोग्राम केंसिल करने में जरा-सी भी देर नहीं की। हालांकि, रायपुर कलेक्टर सिद्धार्थ कोमल परदेशी का माथा इसलिए भी ठनका कि प्रोग्राम के लिए गल्र्स के लिए अलग से और रियायती दर पर टिकिट की बुकिंग हो रही थी। और इसमें बखेड़ा हो सकता था।

देखा-देखी

आईएफएस अफसरों के कैडर आबंटन का प्रोसेज शुरू होने के बाद आईएएस एसोसियेशन भी पिछले हफ्ते जागा और कैडर रिव्यू के लिए लेटर दिया। एसोसियेशन ने 18 से 27 जिले होने का हवाला देते हुए आबंटन बढ़ाने की मांग की है। चलिए, अब कोई आरोप नहीं लगाएगा कि आइ्र्रएएस एसोसियेशन क्लबबाजी के अलावा कोई काम नहीं करता।  

मुश्किलें

राज्य सूचना आयोग की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। आयोग के खिलाफ आरटीआई एसोसियेशन के मोर्चा खोलने के बाद राज्य उपभोक्ता फोरम ने भी अब तलवार लटका दिया है। एक प्रकरण की सुनवाई में फोरम ने माना है, राज्य सूचना आयोग से किसी को समय पर सूचना नही ंमिलती है, तो आवेदक उपभोक्ता की केटेगरी में आएगा और इस पर उपभोक्ता फोरम का प्रकरण चल सकता है। इसके तहत फोरम, आयोग को सूचना तो नहीं दिलवाएगा, मगर क्षतिपूर्ति देने का आदेश दे सकता है।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक सीनियर डीआईजी का नाम बताइये, जो डेपुटेशन पर दिल्ली गए, तो अपना कूक और अर्दली भी ले गए?
2. सूबे के सब कांग्रेस नेता मिलकर भी, अजीत जोगी को किनारे क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

तरकश


शामत

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता 9 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। सरकार उन्हें राज्य मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन बनाने जा रही है। 9 के बाद कभी भी इसका आदेश निकल जाएगा। राज्य बनने के बाद मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन बनने वाले वे पहले जस्टिस होंगे। बहुत पहले, एलजे सिंह एक्टिंग चेयरमैन रहे, पर वे भी डीजे रैंक के थे। उनके रिटायर होने के बाद आयोग का कोई माई-बाप नहीं रहा। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस होगा या फिर सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस। बहरहाल, जस्टिस गुप्ता के लिए राजधानी में आवास की तलाश शुरू हो गई है। पिछले हफ्ते अफसरों ने उन्हें जेल रोड स्थित वन विभाग का गेस्ट हाउस दिखाया। इसके बाद उन्होंने वन विभाग का माना गेस्ट हाउस भी देखा। हालांकि, जस्टिस गुप्ता के मानवाधिकार आयोग में आने के बाद राज्य के पुलिस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती है। आयोग का अधिकांश वास्ता पुलिस से रहता है। और अभी तक तो वे मानवाधिकार आयोग की चिठ्ठियों का रिप्लाई देने की भी जरूरत नहीं समझते थे। ऐसे में, उनकी दिक्कत समझी जा सकती है।
 
दूसरे ननकीराम

वन मंत्री विक्रम उसेंडी राज्य के दूसरे ननकीराम कंवर हो गए हैं, जिनकी अपने ही महकमे में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पता चला है, वन मुख्यालय-अरण्य तो उन्हें एकदम भाव नहीं दे रहा। आईएफएस अफसर मोरगन को प्रशासन और एके द्विवेदी को वाइल्ड लाइफ से हटाने के लिए उसेंडी दसियों नोटशीट भेज चुके होंगे। पर अफसर उसे कूड़ेदान में डाल दे रहे हैं। उसेंडी की स्थिति मार्च के बाद ज्यादा खराब हुई है, जब अरण्य और मंत्रालय के नौकरशाहों के बीच के डोर मजबूत हुए। कमोवेश, ऐसी ही हालत गृह मंत्री ननकीराम कंवर की भी है। फर्क इतना ही है, ननकीराम फट पड़ते हैं और उसेंडी में उतना डेसिंग नहीं है।   

सेफ गेम

रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाने की परमिशन भले ही भारत सरकार से मिल गई थी और कैबिनेट ने भी उसे एप्रूव्हल दे दिया था, इसके बाद भी उनकी ताजपोशी इतने आसानी से नहीं हुई। 22 सितंबर को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद भी 28 तक नोटशीट चीफ सिकरेट्री आफिस में पड़ी रही। फाइल ऐसे समय में मूव हुई, जब गृह मंत्री ननकीराम कंवर रायपुर में नहीं थे। 28 को पीएस होम एनके असवाल ने लिखा, गृह मंत्री राजधानी से बाहर हैं, सो, उनके अनुमोदन की प्रत्याशा में आदेश जारी किया जाए। इसके बाद तो नोटशीट में, मानों पंख लग गए। हफ्ते भर सीएस आफिस में पड़ी रही नोटशीट 29 को उड़ने लगी। इस दिन नोटशीट दो बार सीएम और दो बार सीएस के पास गई और लौट भी आई। 3 सितंबर को रामनिवास का आदेश हुआ और 2 को गृह मंत्री रायपुर में थे। सो, उनके रायपुर से बाहर रहने की बात हजम नहीं हो रही। विभाग चाहता तो 2 को दस्तखत करा सकता था। मगर आशंका थी, गृह मंत्री कहीं, नोटशीट पर ऐसे कोई कमेंट लिख दें, जिससे बात का बतंगड़ हो जाए।

बैजेंद्र सर

एन. बैजेंद्र कुमार सीएम के प्रींसिपल सिकरेट्री के साथ आवास पर्यावरण, जनसंपर्क और न्यू रायपुर तो देखहीरहे हैं इसके साथ, अपरोक्ष तौर पर आजकल एक नए रोल में भी हैं। किरदार है, राज्य के युवा आईएएसकोप्रशासन के गुर समझाने का। बैजेंद्र के सुझाव पर ही अब कलेक्टर बनने से पहले या एकाध जिला करचुकेअफसरों को राजधानी में पोस्ट किया जा रहा है। ताकि, वे सिस्टम को नजदीक से देखसकें.....उसकीपेचीदगियों से वाकिफ हो सकें......विधानसभा की अहमियत को जान सकें। अमित कटारियाबैजेंद्र के पहलेस्टूडेंट थे। आरडीए में सीईओ रहने के बाद वे अब रायगढ़ कलेक्टर हैं। इसके बाद एलेक्स पालमेनन, एसप्रकाश और हिमांशु गुप्ता को राजधानी बुलाया गया है। बैजेंद्र का मानना है, सिस्टम को समझ लेनेऔरराजधानी में तप जाने के बाद, आईएएस बढि़यां ढंग से जिले में काम कर सकेंगे। ठीक है, बैजेंद्र सर।      

पहला पीएचक्यू

छत्तीसगढ़ का पुलिस मुख्यालय, देश का पहला पुलिस मुख्यालय होगा, जहां आज की तारीख में एक भीएडिशनल डीजी नहीं है। इकलौते एडीजी रामनिवास थे, वे अब पदोन्नत होकर स्पेशल डीजी बन चुके हैं। बाकीजितने भी हैं, सबके सब पीएचक्यू सें बाहर हैं। या एक तरह से कहें तो किनारे कर दिए गए हैं। गिरधारी नायकसे लेकर डब्लूएम अंसारी, एएन उपध्याय, डीएम अवस्थी और राजीव श्रीवास्तव तक। हालांकि, पहले ऐसा नहींथा। कभी एक ही समय में संतकुमार पासवान, राजीव माथुर, अनिल नवानी और अशोक श्रीवास्तव पीएचक्यूमें एडीजी रहे। आमतौर पर पीएचक्यू में एडीजी ही विभाग के हेड होते हैं और आईजी उनके सपोर्ट के लिए होतेहैं। मगर विश्वरंजन के डीजीपी बनने के बाद आईजी बेस पीएचक्यू की जो परंपरा डली, वो आज भी जारी है।असल में, एडीजी सीनियर आईपीएस होते हैं, इस वजह से उन पर हद से अधिक बासिज्म नहीं झाड़ा जासकता। इसलिए, पीएचक्यू के अधिकांश सेक्शन की कमान आईजी के हाथ में सौंप दी गई। हालांकि, काका नेजब पीएचक्यू संभाला था, तो वे गिरधारी नायक को वापस लाए थे, मगर कुछ ही दिन में नायक को पीएचक्यूसे बाहर ट्रेनिंग में भेज दिया गया
 
आडियंस फ्री

राजधानी के संस्कृति संचालनालय के सभागार में साहित्यिक और पुस्तक विमोचन जैसे कार्यक्रम इसलिए ज्यादा होते हैं कि वहां हाल के साथ, आडियंस फ्री सुविधा है। छोटे से हाल की क्षमता मुश्किल से सवा सौ होगी। इनमें 60 से 70 रेडिमेड आडियंस होते हैं, जो वहीं के स्टाफ होते हैं। इसके लिए डायरेक्टरेट के अफसरों से बात भर करनी होती है। बस, कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यक्रम में बैठने का फारमान जारी हो जाता है। अलबत्ता, रसूख कुछ ज्यादा है, तो चाय-नाश्ता का प्रबंध भी वहीं से समझिए। मगर 29 सितंबर को संस्कृति संचालनालय का स्टाफ थैंक्स गाड्स बोल रहा था। उस दिन पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त डा0 सुशील त्रिवेदी के किताब का विमोचन था और लोग इतने जुट गए कि चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और डीजीपी अनिल नवानी के लिए आगे में अलग से कुर्सियां लगानी पड़ गई। अरसे बाद डायरेक्टरेट के कर्मियों ने ऐसा दिन देखा, उनके सभागार में कोई कार्यक्रम हुआ और उन्हें बैठना नहीं पड़ा।   

अंत में दो सवाल आपसे

1. वीआईपी रोड पर स्थित एक होटल में किस -सरदार पुलिस अधिकारी का पैसा लगा है?
2. 83 बैच के सीनियर आईएफएस अफसर आरके सिंह को प्रशासन अकादमी का आयुक्त बनाना था कि संचालक। यह सामान्य प्रशासन विभाग की लापरवाही है या आईएफएस को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया गया?