शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

वाह सेनापतिजी!

वाह सेनापतिजी!

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18 अक्टूबर

संजय दीक्षित
लाइवलीहूड कालेज और एजुकेशन सिटी की सफलतापूर्वक लांचिंग के बाद दंतेवाड़ा के तत्कालीन सेनापति ओपी चैधरी ने बस्तर के आदिवासी बच्चों में खेल प्रतिभा तलाशने के लिए स्पोट्र्स कांप्लेक्स का ब्लू प्रिंट बनाया था। मकसद था धुर नक्सल प्रभावित इलाके के बच्चों को पढ़ाई के साथ खेल से जोड़ा जाए। ताकि, रांची जैसे नेशनल, इंटरनेशनल लेवल के प्लेयर बस्तर में भी तैयार हो सकें। इसके लिए एस्सार ने सीएसआर फंड से छह करोड़ 10 लाख रुपए सेंक्शन कर दिया था। प्रोजेक्ट का भूमिपूजन भी हो गया था। मगर ओपी के बाद आए दंतेवाड़ा के नए सेनापति ने एरोगेंसी की पराकाष्ठा कर दी। उन्होंने स्पोट्र्स कांप्लेक्स की योजना बदलकर पांच सितारा ट्रांजिट हास्टल बनवा डाला। और, सीएम को डार्क में रखकर इस हफ्ते उनसे लोर्कापण भी करवा लिया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन है कि सीएसआर के पैसे से सिर्फ आम आदमी से जुड़े काम ही होने चाहिए। जरा सोचिए, बस्तर में नेशनल लेवल का स्पोट्र्स कांप्लेक्स बनता….एकाध बड़े खिलाड़ी निकल जाते तो कितनी बड़ी बात होती। उस बस्तर में जहां, नक्सली हिंसा में 2 हजार से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। राज्य के लोगों का भी इससे सीना चैैड़ा होता। क्योंकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोे बस्तर विजिट में सरकार की अगर किसी स्कीम ने सर्वाधिक प्रभावित किया तो वह एजुकेशन सिटी ने। हो सकता था, अगले बार स्पोट्र्स कांप्लेक्स का नम्बर आता। मगर दंतेवाड़ा के सेनापति ने गुड़-गोबर कर दिया। ये वही सेनापति हैं, जो संवैधानिक संस्था राज्य निर्वाचन अधिकारी को ठेंगा दिखाते हुए पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली चले गए थे। बिना सरकार से इजाजत लिए। इसके बाद भी बाल बांका नहीं हुआ। ऐसे सेनापतियों को बढ़ावा देने से सरकार को और क्या हासिल होगा? देश भर में बदनामी। हाईकोर्ट में पीआईएल लगने वाला है कि छत्तीसगढ़ में सीएसआर के पैसे का बेजा उपयोग हो रहा है।

राम-राम

दुर्ग, रायगढ़ और बिलासपुर जैसे जिलों को सफलतापूर्वक चलाकर राजधानी रायपुर आने वाले कलेक्ट्रेट के एक बड़े साब इन दिनों रायपुर के नाम पर राम-राम कर रहे हैं। शायद ही उनका कोई दिन गुजरता होगा, जब वे उपर वाले से शिकायत नहीं करते, भगवान तूने कहां फंसा दिया। उन्हें दिक्कत सरकार से नहीं है और ना ही कामकाज से। आजिज आ गए हैं तो राजधानी के आला नौकरशाहों के जमीनों के मामले से। मंत्रालय से लगभग हर दिन फोन, फलां लैंड का सीमांकन करा दो, फलां की नापी। फलां जमीन के सामने से रोड निकालना है। फलां एरिया का फलां पटवारी तुमसे मिलेगा। साब भी हैरान! कलेक्ट्रेट का इतना बड़ा अफसर होकर पटवारी को मैं नहंी जानता और मंत्रालय के साब लोग पटवारी को जानते हैं। ऐसे में, पटवारी भी रुआब झाड़ता है…..फलां साब ने भेजा है। दरअसल, मंत्रालय के कुछ आफिसर, अफसरी के साथ जमीन का पैरेलेल बिजनेस भी करते हैं। सस्ते में खरीदते हैं और महंगे में बेचते हैं। ये काम बिना कलेक्ट्रेट और पटवारी के संभव नहीं है। खैर, इसमें कोई गलत भी नहीं है। आखिर, सबसे बड़ा रुपैया। कुर्सी से हटने के बाद कोई काम नहीं आने वाला।

दोस्त, दोस्त ना रहा

कांग्रेस के जय-बीरु के संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे। कांग्रेस के लोग भी दबी जुबां से मान रहे हैं कि दोनों के रिश्तों में दरार आनी शुरू हो गई है। पहले गजब की ट्यूनिंग थी। आंदोलन हो या प्रदर्शन, दोनों साथ दिखते। दौरे भी साथ में होते। प्रेस कांफे्रेस भी साथ-साथ। दोनों एक साथ दिल्ली जाते थे और साथ ही आते। मगर अब दोनों अलग-अलग ही दिल्ली जा रहे हैं और अकेले ही लौट रहे हैं। याद नहीं आता कि पिछले एक महीने में दोनों ने साथ में कोई दौरा किया हो। एक बस्तर जा रहा है, तो दूसरा कोरिया। हाल में, कांग्रेस भवन में हुई एक प्रेस कांफे्रेंस मंे दोनों दिखे भी, मगर बाडी लैंग्वेज बता रहा था कि समथिंग इज रांग। कांग्रेस नेताओं की मानें तो राहुल गांधी के दौरे के बाद यह फर्क आया है। बताते हैं, राहुल के दौरे के रुट को लेकर दोनों में मतभेद उभरे और अब यह दरार का शक्ल ले लिया है। फिर, बीरु ने दिल्ली में अपनी फील्डिंग तेज कर दी है। जय को यह नागवार गुजर रहा है। सो, जय के लोग अब बीरु पर नजर रखने लगे हैं। याने दोस्त, दोस्त ना रहा……। नवरात्रि में सरकार और बीजेपी के लिए इससे गुड न्यूज और क्या हो सकता है।

या देवी….

नवरात्रि के प्रथम दिन ही सरकार ने दो महिला आईपीएस को जिले का कप्तान अपाइंट कर दिया। नेहा चंपावत को महासमुंद और नीतू कमल को मुंगेली। दोनों का यह दूसरा जिला है। नेहा धमतरी कर चुकी हैं और नीतू महासमुंद। फिलहाल, छत्तीसगढ़ के एक भी जिले में महिला कप्तान नहीं थीं। पारुल माथुर को सरकार ने हाल ही में एसपी बनाया है मगर रेलवे की। जबकि, छह जिलों में महिला कलेक्टर हैं। इनमें से तीन के काम तो आउटस्टैंडिंग है। अलबत्ता, एसपी के काम से सरकार खुश नहीं है। और ना ही डीजीपी। सूबे में अच्छे एसपी की गिनती करें तो तीन से चार पहुंचने में दिक्कत होगी। कहीं कोई जुआ खिला रहा है तो कहीं आरगेनाइज ढंग से वसूली। चोर, बदमाश से लेकर कबाड़ी तक एसपी साहबों की जय जयकार कर रहे हैं। ऐसे में, दो देवियों को कप्तान बनाने से सरकार ने सोचा होगा, इससे दोहरा लाभ होगा। नवरात में मां प्रसन्न होगी और दूसरा, महिला कप्तानों का भी ट्रायल हो जाएगा।

सीनियरिटी या प्रेशर?

सरकार ने आखिरकार बोर्ड, आयोगों के चेयरमैनों को लाल बत्ती की हसरत पूरी कर दी। हसरत इसलिए, क्योंकि चेयरमैन बनने के बाद बाकी चीजें पूरी हो जा रही थीं। घर-द्वार की चिंता तो उन्हें पहले भी नहीं थी। इनमें से शायद ही कोई होगा, जिसके पास राजधानी में दो-एक मकान नहीं होंगे। 12 साल से सत्ताधारी पार्टी में हैं, तो जाहिर है, रुपए पैसे का भी कोई टेंशन नहीं होगा। शान में बस, लाल बत्ती की कमी थी। वो भी पूरी हो गई। इस एपीसोड में लोगों को सिर्फ एक बात खटक रही है, कैबिनेट और राज्य मंत्री के दर्जे के लिए मापदंड क्या था। सीनियरिटी या प्रेशर? युद्धवीर सिंह जुदेव और शिवरतन शर्मा को कैबिनेट मिनिस्टर का रैंक मिला है। मंत्री न बनाने पर इन दोनों के इलाके में सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुए थे।

मंत्री से पंगा

रायपुर के तीन इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई के पीछे की जो बात निकल कर आ रही है, उसमें लब्बोलुआब यह है कि इंजीनियरों ने यंग्रीमैन मिनिस्टर से पंगा ले लिया। दरअसल, विभागीय मंत्री ने इंजीनियरों को अपने करीबी आदमी से डीपीआर याने डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने के लिए कहा था। काम बड़ा छोटा था। मगर मंत्रीजी के आदमी को दो पैसा बच जाता। दो फीसदी के हिसाब से यही कोई दो करोड़। मगर इंजीनियरों ने गलती कर दी। तो इसके अंजाम तो भुगतने पड़ेंगे ना।

अपनी मां

नवरात्रि में मां का व्रत रखने से पहले एक बार अपनी मां से पूछ लेना, मां क्या हाल है…..मां कुछ चाहिए तो नहीं…..?

हफ्ते का व्हाट्सएप

शिष्टाचार कहता है कि किसी स्त्री से कभी उसकी उम्र नहीं पूछनी चाहिए और पुरुष से उसकी आय। शायद इसके पीछे खूबसूरत अंर्तदृष्टि छुपी है कि कोई भी स्त्री कभी अपने लिए नहीं जीती और कोई पुरुष कभी अपने लिए नहीं कमाता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले में एसपी द्वारा जुआ खिलाने की शिकायत पुलिस मुख्यालय पहुंची है?
2. अमित जोगी के आउटसोर्सिंग से पल्ला झाड़ने वाली कांग्रेसी पार्टी ने बाद में उसे हाथोंहाथ क्यों ले लिया ?

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

भविष्य के संकेत

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11 अक्टूबर

संजय दीक्षित
कांग्रेस के कद्दावर नेता अजीत जोगी साल में दो-एक पार्टी अवश्य देते हैं। मगर 8 अक्टूबर की शादी की सालगिरह की पार्टी कुछ अलग रही। इसलिए नहीं कि 40वीं सालगिरह थी। खास इसलिए कि पहली बार पूरी सरकार सार्वजनिक तौर पर उनके साथ खड़ी दिखी। उनके अपनी पार्टी के पीसीसी चीफ, लीडर अपोजिशन जैसे कई बड़े नेता पार्टी में भले ही नहीं दिखे। मगर सीएम डा0 रमन सिंह के साथ आधा दर्जन से अधिक उनके मिनिस्टरों ने जोगी की पार्टी में अपनी हाजिरी दर्ज कराई। सीएम तो आधा घंटा से अधिक रहे। मंच पर जोगी के साथ उनकी गुफ्तगूं भी चर्चा में रही। दोनों के बीच जब वार्तालाप हो रही थी, सुरक्षाकर्मियों को वहां से हटा लिया गया था। राजधानी में विरोधी दल के किसी नेता की पर्सनल पार्टी में पहली बार नौकरशाहों का जमावड़ा दिखा। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी से लेकर खुफिया चीफ तक। आमतौर से पार्टियों से परहेज करने वाले डीजीपी एएन उपध्याय भी पूरे समय रहे। जाहिर है, सरकार की मौन स्वीकृति के बिना थोक की तादात में अफसर पार्टी में गए नहीं हांेगे। और जाते तो नजर चुराकर भागते। मगर पार्टी का नजारा कुछ और था। अफसरों ने स्टार्टर से लेकर सभी व्यंजनों का लुत्फ उठाया। सियासी प्रेक्षक रिश्तों की इस नुमाइश को 2018 के विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं। रिश्तों की गरमी अगर बरकरार रही तो जाहिर है, सूबे की सियासी स्थिति भी बरकरार रह सकती है।

जश्न के पीछे

अजीत जोगी 2014 के महासमुंद लोकसभा चुनाव में भले ही जीतते-जीतते हार गए। मगर परिस्थितियां जिस तरह उनके फेवर में होती जा रही है, उनके सांसद बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाए, तो हैरान मत होइयेगा। क्योंकि, 13 चंदुओं में से छह चंदुओ ने एक ही टाईम में पर्चा भरा है। बीजेपी के निर्वाचित चंदू भी। इन सभी का नामंकन और शपथ का टाईम एक है। जो कि निर्वाचन शून्य करने के लिए काफी है। जोगी ने इसके साक्ष्य हाईकोर्ट में जमा करा दिए हैं। किसी भी दिन इसका फैसला आ जाएगा। निर्वाचन के जानकारों का कहना है, साक्ष्य के आधार पर महासमुंद के चुनावी नतीजे निरस्त हो सकते हैं। इसमें एक तो दूसरे नम्बर के उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जा सकता है या फिर से चुनाव होंगे। ऐसे में, जोगी खेमे को उत्साहित होना स्वाभाविक है।

कद का सम्मान

हाईप्रोफाइल आईएफएस आलोक कटियार के आगे सरकार आखिर झुक गई। उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का सीईओ बना दिया। यही नहीं वे एमडी हैंडलुम बोर्ड भी रहेंगे। याने डबल पोस्टिंग। गवर्नमेंट ने पहले उन्हें एमडी हैंडलूम बोर्ड की पोस्टिंग दी थी। मगर आर्डर के महीने भर बाद भी उन्होंने ज्वाईन नहीं किया। तब जाकर सरकार को चूक का अहसास हुआ। फिर, उनके कद का सम्मान करते हुए पीएमजीएवाय की कुर्सी सौंप दी गई। पीएमजीएसवाय बोले तो मलाईदार विभाग। ऐसा विभाग, जिसमें ठेकेदारों की टाईम लिमिट बढ़ाने के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे हो जाते हैं। कटियार सूबे के वरिष्ठतम सांसद के दामाद के बड़े भाई हैं। तभी तो सरकार ने फौरन अपनी गलती सुधार ली।

अपमान का बदला अपमान

आईएएस वर्सेज आईपीएस के पंगे में अब आईपीएस को कीमत चुकानी पड़ रही है। कमिश्नर स्पोटर्स की पोस्ट उनसे छीन ही गई। अशोक जुनेजा के बाद सरकार ने आईएफएस अनिल राय को वहां पोस्ट कर दिया। जबकि, स्पोटर्स पुराने मध्यप्रदेश के समय से ही आईपीएस के लिए रिजर्व रहा है। राज्य बनने के बाद सिर्फ एक बार एडिशनल कलेक्टर रैंक के जितेंद्र शुक्ला डायरेक्टर रहे। वो भी तत्कालीन खेल आयुक्त आरपी मंडल के स्पेशल डिमांड पर। वरना, छत्तीसगढ़ बनने पर राजीव श्रीवास्तव, अशोक जुनेजा, संजय पिल्ले, राजेश मिश्रा, जीपी सिंह, राजकुमार देवांगन, दोबारा फिर अशोक जुनेजा कमिश्नर स्पोट्र्स रहे। मगर सुनते हैं, इस बार आईएएस लाबी अड़ गई…..आईपीएस वाले बहुत जख्म दिए हैं…..नान, फिर भानुप्रतापपुर में रिश्वत लेते हुए ट्रेप….. देश भर में हमारे कैडर की फजीहत करा दी। छोड़ेंगे नही! सरकार ने समझाया….आईएएस में डायरेक्टर लेवल के अफसरों की फौज है, इनमें से किसी को अपाइंट कर देते हैं। इसके बाद भी आईएएस लाबी टस-से-मस नहीं हुई तो सरकार ने तथास्तु कह दिया। असल में, आईपीएस में ढंग का कोई प्लेयर बचा नहीं। पुलिस महकमे के असली नायक गिरधारी नायक को खलनायक बनाकर जेल भेज दिया गया है। मुकेश गुप्ता ऐतिहासिक पारी खेलकर अभी-अभी आउट हुए हैंैै। डीएम अवस्थी को सरकार ने पांच साल पहले आउट आफ फार्म करार देकर बाहर कर दिया। ऐसे में, मानकर चलिये आईपीएस को सिचुएशन ठीक होने तक सरेंडर होकर ही काम करना होगा।

जै-जै आसाराम

सूबे में स्कूल एजुकेशन के हालात को लेकर रोना मचा है। सभी आंसू बहा रहे हैं। नेता से लेकर अधिकारी तक। शुक्र है…..15 साल बाद ही सही, चिंता तो झलकी। वरना, अभी तक तो एजुकेशन में प्रयोग ही होते रहे हैं। आपको याद होगा, 2012 में तो साल में चार सिकरेट्री बदल गए थे। आरपी मंडल, एमके राउत, सुनिल कुमार और इसके बाद केआर पिस्दा। पिस्दा तब स्पेशल सिकरेट्री थे। उनके प्रभार में एक साल निकल गया। अब तो अफसरों ने भी मान लिया है कि कोई चमत्कार ही शिक्षा विभाग की नैया पार लगा सकता है। भले ही वो आसाराम का चमत्कार ही क्यों ना हो। तभी तो एजुकेशन के सारे अफसर जै-जै आसाराम कर रहे हैं। मंत्रालय के एक अफसर तो अपने ब्रीफकेस में आसाराम की फोटू रखना नही भूलते।

रिश्तों की तल्खी

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक लखीराम अग्रवाल स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं। लखीराम ने ही उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाया बल्कि, पहली बार टिकिट दिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। तभी, लखी पुत्र अमर के साथ धरम के 2007 तक रिश्ते बेहद मधुर रहे। एकदम सहोदर भाई सरीखा। मगर राजनीति ऐसी चीज है, जिसमें पोस्ट और पावर के आगे रिश्तों के मायने बदल जाते हैं। वक्त ने अमर और धरम के बीच ऐसी दरारें पैदा कर दी है कि अब पटने की कोई गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। दोनों के कामन वेलविशर मानते हैं, कुछ अदृश्य शक्तियां भी दोनों के बीच की खाई को चैड़ी कर रही है। वे बिलासपुर के प्रशिक्षण शिविर की ओर इशारा करते हैं। उसमें अमर अग्रवाल के एक समर्थक भाषण दे रहे थे। घंटे भर सेे अधिक खींच देने पर धरम ने टोका, कोई भी कार्यकर्ता लंबा भाषण न दें। इस पर तमतमाते हुए अमर समर्थक ने बीच में भाषण रोक दिया। हालांकि, धरम का टोकना और अमर समर्थक का गुस्साना एक संयोग हो सकता है। मगर संदेश क्या गया, इसे आप समझ सकते हैं। ऐसे में, बेहतर रिश्ते की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री को उनके एमडी ने फारचुनर गाड़ी गिफ्ट किया है?
2. किस एडिशनल चीफ सिकरेट्री का फोन टेप हो रहा है और क्यों?

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

जरा बचके

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6 अक्टूबर

संजय दीक्षित
राजधानी रायपुर और उसके आसपास जिधर नजर डालों, उधर नौकरशाहों की जमीनें और फार्महाउसेज मिलेंगी आपको। मगर इनसे सौदा करना हो तो जरा बचके। क्योंकि, रायपुर के एक बिजनेसमैन ऐसा करके पछता रहे हैं। आईएएस ने बिजनेसमैन से 30 करोड़ में जमीन की डील की थी। 15 करोड़ रुपए एडवांस झटक लिया। मगर रजिस्ट्री के लिए बिजनेसमैन को पिछले तीन महीने से चक्कर काटना पड़ रहा है। आईएएस भी छोटे-मोटे आसामी नहीं हैं। इसलिए, बिजनेसमैन की उपर में शिकवा-शिकायत करने की हिम्मत नहीं पड़ रही हैं। यद्यपि, जमीन में कोई गडबड़ी नहीं है। नीयत में गड़बड़ी हुई है। जहां जमीन है, उसके जस्ट बगल में हाउसिंग बोर्ड का प्रोजेक्ट है। प्रोजेक्ट का ऐलान होने के चंद दिनों पहले औने-पौने दाम में जमीन खरीदी गई थी। जाहिर है, डर तो लगेगा ही। हालांकि, अब डरना नहीं चाहिए। जिस आईपीएस का खौफ था, सरकार ने उसके दांत निकाल लिए हैं। इसलिए, साब को बिजनेसमैन पर रहम करते हुए अब रजिस्ट्री कर देना चाहिए।

सीएम का गुस्सा

बजट 6800 करोड़ और खर्च सिर्फ 1100 करोड़। यह उपलब्धि है अपने पीडब्लूडी का। ऐसे में सीएम को भला गुस्सा कैसे नहीं आएगा। पिछले हफ्ते सीएम हाउस में हुई पीडब्लूडी की समीक्षा बैठक में विभाग का पारफारमेंस देखकर डाक्टर साब बिगड़ पड़े। पीडब्लूडी के अफसरों ने बताया कि एडिशनल पीसीसीएफ भूपं्रबधन मुदित कुमार फारेस्ट क्लियरेंस में रोड़ा अटका रहे हैं। तो सीएम ने कहा, बुलाओ। अमन सिंह ने मुदित को फोन लगाया, साब याद कर रहे हैं। 10 मिनट में मुदित सीएम के सामने थे। इसके बाद डाक्टर साब ने पूछा, 1100 करोड़ की ही क्यों खर्च हुआ है, तो मंत्री, अफसर सब बगले झांकने लगे। हालांकि, इस स्थिति के लिए सिस्टम को भी बरी नहीं किया जा सकता। सबसे अहम निर्माण विभाग में आखिर किस तरह के अफसरों को तैनात किया गया है। सबसे बड़ा क्लास है, उनसे रिजल्ट की अपेक्षा करना। पीडब्लूडी मंे ढाई अफसर हैं। दो आईएएस और आधा आईएफएस। आईएफएस बोले तो अनिल राय। कह सकते हैं पीडब्लूडी का बोझ उन्हीं पर है। उन्हें भी सरकार ने माध्यमिक शिक्षा मंडल में उलझा रखा है। आधे दिन बोर्ड में बैठते हैं और आधे दिन मंत्रालय में। और सुनिये। 2005 में ईएनसी से रिटायर हुए जीएस सोलंकी सड़क विकास प्राधिकरण में जीएम बनाए गए हैं। वे अभी करीब 70 साल के होंगे। डामर कांड उन्हीें के टाईम हुआ था। 9 साल पहले ईएनसी से ही रिटायर हुए पीएस क्षत्री को क्वालिटी कंट्रोल का जिम्मा सौंपा गया है। उनके ईएनसी रहते कितना क्वालिटी कंट्रोल हुआ? नहीं कर पाया, इस एज में अब वो क्या क्वालिटी देखेंगे। टेंडर सेल में भी रिटायर अफसर श्रीवास्तव। ऐसे में, उम्मीद बेमानी ही होगी।

वक्त का हर

रमन सिंह के दो मंत्री। एक लो प्रोफाइल, दूसरा हाईप्रोफाइल एन अग्रेसिव। महीने भर के भीतर दोनों गंभीर संकट में फंसे। मगर वक्त का फेर देखिए। लो प्रोफाइल मंत्री के खिलाफ गंभीर मामले थे। आखिर, अपराधिक कृत्य ही तो था। लुगाई को जेल हो जाती। मंत्री पद भी जा सकता था। मगर पुण्यायी कहिये या भरोसेमंद मिेेत्रों की मंडली। बाल बांका नहीं हुआ। बल्कि, मामला ही खतम हो गया। लेकिन, हाईप्रोफाइल मिनिस्टर की भद पिट गई। जबकि, उनके खिलाफ मामला क्या था, अभी भी लोगों को नहीं मालूम। वे किससे दुव्र्यवहार किये, इसकी किसने शिकायत की, मंत्री को भी नही पता। लेकिन, वक्त जब खराब होता है, तो उंट पर बैठने पर भी कुत्ता काट लेता है। इसलिए, आचरण ठीक रखना चाहिए, छबि दुरुस्त रखना चाहिए और संकट में काम आने वाले कुछ भरोसेमंद मित्र बनाने चाहिए।

सेहत भी, पोलिसिंग भी

बिलासपुर रेंज आईजी पवनदेव सेहत के लिए काफी कंशस रहते हैं। रायपुर में थे तो 12 से 14 किलोमीटर डेली का वाकिंग था। रायपुर में उनके पास चूकि काम कम थे, तो टाईम मिल जाता था। अब ऐसा नहीं है। सो, उन्होंने अब नई सायकिल खरीद ली हैं। टी शर्ट और लोवर पहनकर सायकिल पर सुबह-शाम निकल पड़ते हैं। न्यायधानी का एक चक्कर। सायकिल पर आईजी, कोई सोच भी नहीं सकता। इसी बहाने सभी प्वाइंट का इंस्पेक्शन हो जाता है। पुलिस वालों को पता भी नहीं चलता और अगले दिन थानेदार की पेशी हो जाती है। याने सेहत और पोलिसिंग साथ-साथ। गुड आइडिया।

छत्तीसगढि़यां सबले बढि़यां?

94 बैच की आईएएस रीचा शर्मा आखिरकार 12 साल बाद छत्तीसगढ़ लौट आईं। पढ़ाई-लिखाई की वजह से रीचा का डोमेसाइल दिल्ली हो गया है। मगर हैं मूलतः छत्तीसगढि़यां। ये अलग बात है, छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे रहीं बहुत कम समय तक। मुश्किल से ढाई साल। 2003 में वे सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गई थीं। वैसे, पिछले चार साल से नौकरी से गोल ही रहीं हैं। उन्होंने भांति-भांति की छुट्टियां ली। दो साल चाइल्ड केयर लीव, दो साल अवैतनिक अवकाश पर सिंगापुर में रहीं। अब, आईएएस जैसी नौकरी में इतनी छुट्टियां…..आप भी हैरान होंगे….सोच रहे होंगे, काहे के लिए आईएएस की एक सीट खराब करना। मगर यह उनका पर्सनल मामला है, इसलिए नो कमेंट। लेकिन, कुछ सवाल तो मौजूं हैं। रीचा छत्तीसगढ़ में कब तक रहेगी। छत्तीसगढ़ भवन में रेसिडेंट कमिश्नर का पोस्ट खाली हो रहा है। बीबीआर सुब्रमण्यिम के छत्तीसगढ़ आने के बाद उनकी पत्नी उमादेवी भी जल्द ही रायपुर लौटने वाली हैं। सो, रीचा का न्यू आर्डर कहीं छत्तीसगढ़ भवन के लिए निकल जाए, तो अचरज में मत पडि़येगा।

मिश्रा एसीएस और उपध्याय एडीजी

पाकिस्तानी ने पुलिस और टुरिज्म जैसे कई विभागों के वेबसाइट हैक कर ली। लेकिन, इसके लिए सरकारी विभाग भी कम जिम्मेदार नहीं है। वेबसाइट महीनों अपडेट नहीं होते। पुलिस के वेबसाइट में एएन उपध्याय अभी तक एडीजी प्रशासन थे। तो सिविल लिस्ट का हाल भी बुरा है। पुलिस का वेबसाइट हैक होने के बाद हमने छत्तीसगढ़ कैडर का सिविल लिस्ट देखा। इसे एनआइसी हैंडिल करता है। छह महीने से यह अपडेट नहीं हुआ है। 3 अक्टूबर को शाम चार बजे तक इसमें डीएस मिश्रा को एसीएस फायनेंस थे। एनके असवाल को एसीएस होम, मुकेश बंसल कलेक्टर रायगढ़, रीना कंगाले कलेक्टर कोरबा, रजत कुमार डीपीआर, विकास शील अमेरिका में। अब, आईएएस, आईपीएस की लिस्ट अपडेट नहीं हो पा रही है, तो छत्तीसगढ़ में डिजीटल इंडिया का भगवान ही मालिक है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पुलिस महकमे में व्यापक फेरबदल की चर्चाओं में दम है या महज अफवाह?
2. राजधानी के केनाल रोड में पीडब्लूडी के तीन अफसरों को नोटिस दी गई है, उसके पीछे असली वजह क्या है?