मंगलवार, 21 नवंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: परसेप्शन बदला तो क्यों?

 तरकश, 19 नवंबर 2023

संजय के. दीक्षित

परसेप्शन पर सवाल

15 सितंबर तक कांग्रेस एकतरफा जीत रही थी...महीने भर में बीजेपी के प्रति परसेप्शन अचानक बदला कैसे, ये सवाल सियासी समीक्षकों भी मथ रहा है। दरअसल, परसेप्शन चेंज होने की शुरुआत के पीछे दो अहम सियासी घटनाएं हैं। पहली अमित शाह द्वारा मनसुख मांडविया को चुनाव प्रभारी बनाकर रायपुर भेजना और दूसरा भूपेश है तो भरोसा है कि जगह कांग्रेस है तो भरोसा का स्लोगन देना। इसके बाद यकबयक चुनाव से जुड़ी सारी समितियों में कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं की इंट्री। कांग्रेस पार्टी ने इसके जरिए एकता और सामूहिक नेतृत्व का संदेश देना चाहा, मगर इसको लेकर कई तरह की बातें होने लगी। टिकिट वितरण में भी गुटबाजी साफ झलकी। सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं कि गुटों को खुश करने के चक्कर में कांग्रेस ने करीब 10 कमजोर चेहरों पर दांव लगा दिया। दूसरी ओर बीजेपी ने साधी हुई लिस्ट जारी की। एक सूत्रीय एजेंडा...जिताऊ कैंडिडेट। ईसाई समुदाय से दो-दो टिकिट, इसका मतलब समझा जा सकता है। फिर कांग्रेस की बराबरी करते हुए किसानों और मजदूरों को लेकर बड़ी घोषणाएं। प्लस में 70 लाख महिलाओं को 12 हजार सालाना भी। इन्हीं वजहों से परसेप्शन तेजी से टर्न हुआ...बीजेपी टक्कर में आ गई। परसेप्शन अब वोटों में कितना तब्दील हुआ या परसेपशन ही रह जाएगा, ये 3 दिसंबर को पता चलेगा।

टक्कर नहीं, स्पष्ट बहुमत

नेशनल मीडिया और सर्वे एजेंसियों के नुमाइंदे छत्तीसगढ़ में इस बात को लेकर परेशान रहते हैं कि यहां के लोग प्रत्याशियों को लेकर खुलकर बात नहीं करते। इससे वोटिंग के ट्रेंड का सही अनुमान लगा पाना कठिन हो जाता है। 2018 के इलेक्शन में आखिर किस एजेंसी ने बताया कि 15 साल सत्ता में रही भाजपा औंधे मुंह लुढ़क जाएगी। बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटीइकांबेंसी की बातें जाहिर थी मगर ये कोई नहीं भांप पाया कि बीजेपी की इतनी करारी पराजय होगी। इस बार भी सर्वे एजेंसियों के सामने यही कठिनाई सामने आई। अलबत्ता, इस बार स्थिति ये है कि राजनीतिक पंडित भी कोई फाइंडिंग नहीं दे रहे...सिर्फ ऐसा हुआ तो वैसा होगा और ये हुआ तो फलां भारी पड़ेगा और लास्ट में ये-ये सीटें फंस गईं हैं या टक्कर है...बोलकर कन्नी काट ले रहे। याने कोई भी ये बता पाने के पोजिशन में नहीं है कि फलां पार्टी का पलड़ा भारी है, और वह सरकार बना लेगी। कुछ लोगों का मानना है, इस बार 2013 के विस चुनाव की तरह भी मामला जा सकता है...जब कांउटिंग के दिन दोपहर एक बजे तक कांग्रेस सरकार बना रही थी और आधे घंटे के बाद यकबयक मामला ऐसा पलटा कि भाजपा आगे निकल गई। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने भी माना था, मुकाबला कठिन था...हमलोग पोहा खाते टीवी देखते रहे। बहरहाल, बात इस चुनाव की...तो इसकी भी संभावना कम नहीं कि किसी-न-किसी पार्टी के तरफ अंडर करंट है, जो सतह दिखाई नहीं पड़ रहा। अगर छत्तीसगढ़ियावाद, गांव-गंवई और किसान का अंडर करंट रहा तो रुलिंग पार्टी को रिपीट होने से रोका नहीं जा सकता। ठीक है, पहले फेज में कांग्रेस लूज कर रही है मगर ये भी सत्य है कि कांग्रेस का प्रभाव धान उत्पादन करने वाली 50 विस सीटों पर ज्यादा है। इन्हीं सीटों पर छत्तीसगढ़ अस्मिता भी है। दूसरी ओर अगर एंटीइंकांबेंसी, करप्शन, हिन्दुत्व और पीएससी घोटाले पर अगर बीजेपी के पक्ष में करंट चला तो फिर वो आगे निकल जाएगी। कुल मिलाकर टक्कर की बजाए बनेगी तो बहुमत की सरकार ही...किसी एक पार्टी को सीटें 50 से ऊपर जाएगी। क्योंकि, छत्तीसगढ़ में त्रिशंकु सरकार का कभी ट्रेंड नहीं रहा।

हिन्दुत्व का लिटमस टेस्ट

ये ठीक है कि छत्तीसगढ़ में जात-पात और धर्म कभी मुद्दा नहीं रहा। मगर इस चुनाव में हवाएं कुछ बदली-बदली सी दिखाई पड़ रही है। लोग हिन्दुत्व को लेकर सजग दिख रहे हैं। अपनी गाड़ियों में मैं हिन्दू...लिखा जा रहा...तो हिन्दुत्व के झंडे लगाने में भी अब कोई हिचक नहीं। नारायणपुर में हिंसा और बिरनपुर में सांप्रदायिक विवाद में हत्या की वारदात ने भी हिन्दुत्व को पर्याप्त खाद-पानी दिया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और असम के सीएम हेमंत विस्वा सरमा के जरिये बीजेपी इस फसल को काटने की कोशिश में पीछे नहीं रही। छत्तीसगढ़ हिन्दुत्व का प्रयोगशाला बनेगा या नहीं, तीन सीटें ये तय करेंगी। कवर्धा, साजा और बिलासपुर। कवर्धा में कई बार सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी है। इस सीट पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई है। वहां पिछले कुछ सालों में में कई बार हिंसक घटनाएं हुईं। इस सीट को लेकर परस्पर दावे किए जा रहे हैं। उधर, साजा में बिरनपुर कांड के पीड़ित पिता को बीजेपी ने चुनाव में उतारा है, इसके निहितार्थ समझे जा सकते हैं। और तीसरा, जो सबसे अहम है...बिलासपुर में महीने भर पहले तक वर्तमान विधायक को लेकर परसेप्शन कुछ और था। मगर मुस्लिम समाज के एक व्यक्ति का पैर धोते और अल्लाहु अकबर नारा लगाते वीडियो वायरल होते ही लोगों की विधायक के प्रति धारणा बदल गई। ये तीनों सीटें अभी कांग्रेस के पास है। अगर वहां उलटफेर हो गया तो फिर समझिए कि छत्तीसगढ़ में हिन्दुत्व की इंट्री हो गई। ऐसे में फिर चुनाव का सीन बदल जाएगा।

संवैधानिक कुर्सी खाली

चुनाव की आपाधापी में राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह पोस्टिंग का रिकार्ड बनाकर 10 नवंबर को विदा हो गए। रिकार्ड इसलिए क्योंकि छह साल का निर्वाचन आयुक्त का उनका कार्यकाल डेढ़ साल पहले ही खत्म हो चुका था। राज्य सरकार ने छह छह महीने करके तीन बार उन्हें एक्सटेंशन दिया। इस तरह साढ़े सात साल लंबा हो गया उनका टेन्योर। देश में ये अपने आप में रिकार्ड होगा। बहरहाल, राज्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पोस्ट है। इसे खाली नहीं रखा जा सकता। राम सिंह जब रिटायर हो रहे थे, उस समय पूर्व आईएएस डीडी सिंह का नाम चर्चा में आया था पर बात आगे बढ़ नहीं सकी। इस पद पर रिटायर आईएएस की पोस्टिंग की जाती है। वो भी सीनियर। राम सिंह पोस्टिंग के मामले में बेहद किस्मती रहे। चार सबसे बड़े जिले की दस साल कलेक्टरी किए। फिर जूनियर सचिव स्तर के अफसर होने के बाद भी निर्वाचन की रिकार्ड पोस्टिंग। खैर, अभी पद खाली है। अब नई सरकार में ही लगता है पोस्टिंग होगी।

भूपेश का कद बढ़ा!

इस बार का विधानसभा चुनाव कई मायनो में अलग रहा। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों की बजाए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुद्दा बनें और नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर प्रधानमंत्री के निशाने पर रहे। पीएम मोदी ही नहीं, दिल्ली से आने वाले केंद्रीय नेताओं समेत यूपी, असम के फायरब्रांड मुख्यमंत्रियों ने राहुल और प्रियंका की बजाए भूपेश को ही टारगेट करना मुनासिब समझा। ईडी ने भी महादेव ऑनलाइन सट्टा में 508 करोड़ वाला प्रेस नोट चुनाव प्रचार के दौरान ही जारी किया। पूरे चुनाव में सामूहिक नेतृत्व पर जोर देने वाली कांग्रेस को भी लास्ट में महसूस हुआ कि भूपेश पर भरोसा करना होगा। तभी वोटिंग से एक दिन पहले 16 नवंबर को अखबारों में उनकी सिंगल फोटो से कांग्रेस पार्टी का बड़ा इश्तेहार जारी हुआ। दरअसल, कांग्रेस के लगभग सभी नेताओं की सीटें फंसी हुई थी, लिहाजा अधिकांश बड़े नेता अपनी सीट पर सिमट कर रह गए। सीएम भूपेश अकेले पूरे प्रदेश के दौरे करते रहे। बीजेपी के रणनीतिकार भी इस बात को जानते थे कि कांग्रेस को हराने के लिए भूपेश को टारगेट करना होगा।

थैंक्स गॉड

17 नवंबर की शाम चुनाव निबटते ही सूबे के कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों ने ईश्वर को याद किया...तेरा लाख लाख शुक्र...खतरा खत्म हुआ। जाहिर है, इस चुनाव में कलेक्टर, एसपी सबसे ज्यादा टेंशन में थे। चुनाव का ऐलान होने के तीसरे दिन ही आयोग ने दो कलेक्टर और तीन एसपी बदल दिए थे। चुनाव आयोग ने ऐसा कौवा टांगा कि फिर किसी कलेक्टर, एसपी की इधर उधर करने की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि, कई चतुर कलेक्टर, एसपी ने इसे ही हथियार बना अपना तनाव खत्म कर लिया। कोई नेता अगर व्हाट्सएप कॉल पर भी उन्हें कुछ बोलता था तो उनका एक ही जवाब, देख लीजिए मेरा फोन सर्विलेंस पर है...इसके बाद सामने वाले की सिट्टी पिटी गुम।

55 सीटें कांग्रेस को!

भारतीय प्रशासनिक सेवा को देश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित सर्विस मानी जाती है। उन्हें ट्रेनिंग ऐसी दी जाती है कि वे सारे दायित्वों का निर्वहन कर सकें। ऐसी सेवा के अधिकारियों पर जनता गौर करती है। अब बात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर तो अधिकांश अफसरों का निजी सर्वे बता रहा कि सत्ताधारी पार्टी रिपीट हो रही है। कई अफसर 55 सीट तक कांग्रेस को दे रहे हैं। हालांकि, 2018 में ब्यूरोक्रेसी बीजेपी की सरकार भी बना रही थी। मगर तब वह मात्र 15 सीट पर सिमट गई। इससे पहले भी ब्यूरोक्रेसी का आंकलन कभी सही नहीं उतरा। देखना है, इस बार क्या होता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ईडी के छापे चुनाव में मुद्दा क्यों नहीं बन पाया?

2. क्या छत्तीसगढ़ में एकनाथ शिंदे एपिसोड की संभावना है?


शनिवार, 4 नवंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: नई सरकार...कठिनतम चुनौती

 तरकश, 5 नवंबर 2023

संजय के. दीक्षित

नई सरकार...कठिनतम चुनौती

3 दिसंबर को काउंटिंग के बाद हफ्ते-दस दिन में छत्तीसगढ़ में नई सरकार का गठन हो जाएगा। अब सरकार किसी की भी बने, उसके समक्ष बड़ी चुनौती होगी करीब 20 हजार करोड़ एक्सट्रा राजस्व जुटाने का। अगर ऐसा नहीं हुआ तो विकास कार्यो का बंटाधार हो जाएगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे में जिस तरह घोषणाएं की जा रही, उससे खजाने पर बड़ी चोट पड़ने वाली है। बीजेपी ने कल संकल्प पत्र में 3100 में धान खरीदने का वादा किया है। धान का समर्थन मूल्य 2300 है। इस हिसाब से 800 रुपए अलग से देना होगा। ये करीब 10 हजार करोड़ होता है। इसके अलावा महिलाओं को 12 हजार सलाना मिलेगा। छत्तीसगढ़ में करीब 70 लाख विवाहित महिलाएं हैं। इस योजना से खजाने पर करीब साढ़े नौ हजार करोड़ का व्यय आएगा। भाजपा ने अपने समय के दो साल का बोनस भी देगी, इस पर करीब चार हजार करोड़ खर्च होंगे। ये तो बीजेपी का है। जाहिर है, कांग्रेस भी कुछ अलग करने की कोशिश करेगी। 10 हजार करोड़ की कर्ज माफी ऐलान कांग्रेस पहले ही कर चुकी है। घोषणा पत्र में हो सकता है, धान का रेट 3200 हो जाए। अर्थशास्त्र को समझने वाले एक बड़ी सियासी पार्टी के एक बड़े नेता ने इस स्तंभकार से अपनी चिंता साझी की...अगर सलाना 20 हजार करोड़ अतिरिक्त राजस्व नहीं जुटाया गया तो छत्तीसगढ़ के विकास की लाइन, लेंग्थ इस कदर बिगड़ जाएगा कि इसे फिर संभालना मुश्किल हो जाएगा।

पति-पत्नी मंत्री

एक मंत्रिमंडल में पति, पत्नी दोनों मंत्री...! देश में ऐसा आपने कभी सुना नहीं होगा। मगर एक बार ऐसा हुआ है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1952 में। चूकि छत्तीसगढ़ से जुड़ा मामला है इसलिए इसकी प्रासंगिकता भी है। तब देश में पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ था। रविशंकर शुक्ल मंत्रिमंडल में वीरेन्द्र बहादुर सिंह और उनकी पत्नी पद्मावती देवी दोनों ही एक साथ मंत्री बने। वीरेन्द्र बहादुर सिंह खैरागढ़ से और उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी बोरी देवकर से जीतकर विधायक बने। इस तरह पद्मावती छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री भी रहीं। 1918 में यूपी के प्रतापगढ़ जन्मी पद्मावती प्रतापगढ़ के राजा प्रताप बहादुर सिंह की छोटी बेटी थीं। सोलह साल की उम्र में पद्मावती की शादी खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह के साथ हुई। वे 1952 से 1967 तक विधानसभा और 1967 से 1971 तक लोकसभा सांसद भी रहीं। पद्मावती देवी का इंदिरा गांधी से बहुत करीबी रिश्ता था। 1956 से 1967 तक मध्यप्रदेश शासन के लोक स्वास्थ्य, समाज कल्याण, यांत्रिकी और नगर निकाय आदि विभागों में मन्त्री पद पर रहीं थीं। पद्मावती देवी इतनी लोकप्रिय थीं कि 1957 के विधानसभा चुनाव में वे वीरेन्द्र नगर से निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं। खैरागढ़ के विश्व प्रसिद्ध इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना पद्मावती देवी ने ही की थीं।

अपवाद मंत्री

छत्तीसगढ़ बनने के बाद 23 साल में चार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से दो विभाग ऐसे हैं, जिनके मंत्री आमतौर पर चुनाव नहीं जीतते। विभाग हैं वन और कृषि। इन दोनों में सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल अपवाद रहे हैं। रमन सरकार के दौरान अलग-अलग पारियों में दोनों मंत्रालयों को उन्होंने संभाला और चुनाव भी जीते। उनके अलावा कोई भी मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाया। पहले कृषि की बात करते हैं....डॉ. प्रेमसाय सिंह अजीत जोगी मंत्रिमंडल में इस विभाग के मंत्री थे। 2003 के चुनाव में वे हार गए। इसके बाद 2008 में ननकीराम कंवर और 2013 में चंद्रशेखर साहू भी चुनाव हारे। 2013 में बृजमोहन अग्रवाल कृषि मंत्री बने और 2018 में जीतने में कामयाब रहे। इसी तरह डीपी धृतलहरे जोगी सरकार में वन मंत्री रहे, 2003 के चुनाव में वे अपनी सीट नहीं बचा पाए। उनके बाद गणेशराम भगत, विक्रम उसेंडी और महेश गागड़ा अलग-अलग समय में वन मंत्री रहे और हारे। बृजमोहन अग्रवाल जरूर चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

किस्मत ईवीएम में

पहले चरण की 20 विधानसभा सीटों की 7 नवंबर को मतदान होंगे, वहां आज पांच नवंबर की शाम प्रचार खतम हो जाएगा। इन 20 सीटों पर भाजपा से सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह का है। वे राजनांदगांव सीट से चौथी बार चुनावी मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का चुनाव भी पहले चरण में है। उनके अलावा मंत्रियों में कवर्धा से मोहम्मद अकबर, कोंडागांव से मोहन मरकाम और कोंटा से कवासी लखमा शामिल हैं। तो पूर्व मंत्रियों में केदार कश्यप नारायणुपर से और लता उसेंडी कोंडागांव से किस्मत आजमा रही हैं। इनमें बीजेपी के सबसे बड़े नेता रमन सिंह हैं...आज प्रचार समाप्त होने के बाद वे अपनी सीट से फ्री हो जाएंगे। जाहिर है, दूसरे चरण वाले चुनाव के 70 प्रत्याशियों में सबसे अधिक डिमांड रमन सिंह की है। वे अब फ्री होकर चुनाव प्रचार कर सकेंगे तो पीसीसी चीफ दीपक बैज भी दीगर सीटों पर अपना फोकस बढ़ाएंगे।

थैंक्स गॉड!

पहले चरण वाले 11 जिलों के कलेक्टर, एसपी दिन गिन रहे कि कैसे तीन दिन निकल जाए। इसके अलावा दो रेंजों के आईजी भी तनाव में हैं। इन 11 जिलों में 20 सीटें आती हैं। इनमें बस्तर में सात जिले हैं और 12 विस सीटें। बस्तर में अभी चुनाव आयोग की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। राजनांदगांव एसपी का विकेट चुनाव का ऐलान होते ही गिर गया था। वहां के कलेक्टर पहले से चुनाव आयोग के राडार पर हैं। कवर्धा भी कम संवेदनशील नहीं है। वहां धर्म का भी तड़का है। ऐसे में, इलेक्शन खतम होने की इन अधिकारियों की खुशी समझी जा सकती है।

ओबीसी कार्ड

कांग्रेस के जवाब में बीजेपी भी अब छत्तीसगढ़ में ओबीसी कार्ड चलने लगी है। इसकी शुरूआत कल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पंडरिया की सभा में की। उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में ओबीसी से कितने मंत्री हैं। उसके अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्ग की सभा में कहा, मैं ओबीसी से हूं, इसलिए कांग्रेस के लोग मुझे बर्दाश्त नहीं करते। उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस साहू समाज को गाली देती है। पिछले चुनाव के दौरान भी पीएम मोदी ने साहू कार्ड चला था, जब उन्होंने कहा था कि मैं तेली हूं और मेरे समाज के बड़ी संख्या में लोग छत्तीसगढ़ में रहते हैं।

हफ्ते भर शेष

दूसरे चरण की 70 सीटों पर वोटिंग भले ही 17 नवंबर को है मगर बीच में दिवाली, भाईदुज और गोवर्द्धन पूजा है। याने अगले हफ्ते गुरूवार तक ही कैम्पेनिंग स्मूथली चलेगा। इसके बाद शुक्रवार याने 10 नवंबर को धनतेरस है और 12 को दिवाली। इसके बाद दो दिन भाईदुज और गोवर्द्धन पूजा। धनतेरस से लोग दिवाली की तैयारियों में जुट जाते हैं और दिवाली के अगले दिन फिर छुट्टी जैसा आलम। धनतेरस से लेकर भाईदुज तक किसी बड़े नेता की सभा हुई तो उसमें भीड़ नहीं जुट पाएगी। उसके बाद सिर्फ दो दिन बचेंगे प्रचार के लिए। 14 और 15 को। 15 नवंबर की शाम पांच बजे के बाद प्रचार समाप्त हो जाएगा। कुल मिलाकर प्रत्याशियों के पास अब हफ्ते भर का समय बचा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ अस्मिता की बात करते-करते कांग्रेस ने एक ही जिले में किन दो बाहरी नेताओं को टिकिट दे दिया?

2. छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल को छोड़कर कोई भी कृषि और वन मंत्री चुनाव नहीं जीता है...रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर क्या इस मिथक को अबकी तोड़ पाएंगे?