शनिवार, 19 जनवरी 2013

तरकश, 20 जनवरी




शिवानंद की जय


जब से छत्तीसगढ़ बना है, पुलिस के ग्रह-नक्षत्र खराब ही चल रहे हैं। 2002 में आईपीएस अफसर मूलचंद बजाज की डेथ हुई, इसके बाद एक-एक कर आठ आईपीएस गुजर गए। डीजीपी से लेकर एसपी, आईजी तक। 2012 तो और खराब रहा। बिलासपुर एसपी ने गोली मार ली। 20 दिन बाद वहां के आईजी भी हर्ट अटैक में नहीं रहे। ग्रह-दशा के चलते ही बिलासपुर आईजी जीपी सिंह को बे-आबरु होकर बिदा होना पड़ा, तो धमतरी एसपी को पनिशमेंट के तौर पर रायपुर वापिस बुला लिया गया। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे कैडर में आठ आईपीएस के स्वर्गवास को दूसरे राज्य के आईपीएस भी विश्वास नहीं करते। यही नहीं, 10 साल में नक्सली हमले में 500 से अधिक जवान भी शहीद हुए। अब अपने नए डीजीपी रामनिवास साब अवधूत बाबा शिवानंदजी के शिष्य हैं और उनकी ताजपोशी के अवसर पर वे आर्शीवाद देने उनके घर और कार्यालय भी पधारे थे। बाबा के निर्देश पर डीजीपी ने हाल ही में, दुर्गा सप्तशती यज्ञ कराया है। सो, पुलिस महकमा उम्मीद कर रहा है, 2013 कम-से-कम ठीक जाएगा। आखिर, नक्सली हमले में एयरफोर्स का हेलीकाप्टर बाल-बाल बच गया। डेढ़ महीने में कोई बड़ी वारदात भी नहीं हुई है। फिर, इसे यज्ञ का असर मानने में क्या दिक्कत है। पुलिस वालों को अब, शिवानंद महाराज की जय बोलना चाहिए। बाबा भी प्रसन्न और बास भी। 

तेवर

हाल के कुछ मामलों में सरकार ने जो तीखे तेवर दिखाए हैं, उससे आईएएस, आईपीएस ही नहीं, बल्कि मंत्री लोग भी सहम गए हैं। चावल की क्वालिटी को लेकर एफसीआई के खिलाफ प्रदर्शन और उसमें जबरिया ताला लगा देने पर वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई योगेश के खिलाफ पंडरी थाने में मुकदमा दर्ज हो गया। इससे पहले, आप कभी सोच सकते थे। यहीं नहीं, डाक्टर साब ने शिक्षाकर्मियों के मामले में दो टूक कह दिया, बर्खास्त लोगों को बहाल नहीं किया जाएगा। सरकार के तेवर देखकर ही लिपिक संघ ने, उल्टे धन्यवाद देकर आंदोलन खतम कर दिया। मुंगेली के जिला उत्सव में सीएम को जब पता चला कि बिल्हा में खराब सड़क बनाने वाला ठेकेदार उल्टे पीडब्लूडी के ईई को सस्पेंड कराने की धमकी दे रहा है, तो उन्होंने फौरन आदेश दिया, तीन दिन के अंदर जांच कर उन्हें इंफार्म करें। ब्यूरेके्रट्स भी मान रहे हैं, बदले-बदले नजर आ रहे हैं सरकार। कुछ गड़बड़ हो गया, तो बचना मुश्किल है। कैसे भी छह महीने निकाल लो। 

राहत

कांकेर पुलिस ने अतिउत्साह में झलियामारी दुष्कर्म कांड के सभी आरोपियों के खिलाफ आदिवासी प्रताड़ना की धारा भी लगा दी थी। जबकि, यह धारा सिर्फ गैर आदिवासियों पर ही लगाई जा सकती है। इस गलती को सराकर ने पकड़ा और राजधानी से निर्देश जारी होने पर कांकेर पुलिस ने यह धारा हटाई। ज्ञातव्य है, आरोपियों में शिक्षाकर्मी से लेकर चैकीदार, आश्रम अधीक्षिक, बीईओ, एबीईओ तक सभी आदिवासी हैं। शिक्षाकर्मी और चैकीदार में से एक भी गैर आदिवासी होता तो स्थिति कुछ और होती और सरकार के लिए उसे संभालना आसान नहीं होता। और, शायद यही वजह भी है कि सत्ताधारी पार्टी के रणनीतिकार इसमें राजनीतिक नुकसान नहीं देख रहे।

मेला के नाम पर 

मेला और महोत्सव के नाम पर पर्यटन और संस्कृति विभाग से लेकर कलेक्टर तक खजाने को चूना लगा रहे हैं। अभी तक, सिरपुर, राजिम, ताला जैसे आयोजन होते थे। अब तो जिसको देखो, वही लगा हुआ है। दंतेवाड़ा के कलेक्टर ने दो दिन पहले बारसूर महोत्सव कराए। इसके लिए 50 रुपए से भी अधिक के, महंगे कार्ड छपवाए गए। मुंबई के कलाकारों को बुलाकर नाच-गाना कराया गया। बारसूर की गणेश प्रतिमा को दूनिया का तीसरी बड़ी प्रतिमा बताई गई। मगर एक हकीकत यह भी है कि बारसूर में दिन में भी जाने से लोग घबराते हैं। वहां चाय की एक झोपड़ी तक नहीं है। रुकने के लिए ठौर-ठिकाने की तो बात ही अलग है। कुछ दिन पहले मैनपाट में महोत्सव के नाम पर ही सरगुजा के कलेक्टर ने रुसी बालाओं को बुलाकर अधनंगी नाच कराई गई। ऐसा नाच कि परिवार के साथ बैठे लोगों को आंखे फेरनी पड़ गई। अब, पड़ोसी जिला कोरिया के तातापानी में महोत्सव कराने खााितर बजट स्वीकृत करने के लिए सरकार के पास पत्र आया है।  

कुलपति चयन

बस्तर और सरगुजा विश्वविद्यालय के नए कुलपति का सलेक्शन करने के लिए 24 जनवरी को मंत्रालय में बैठक होने जा रही है। इसमें आवेदनों की छंटनी करके योग्यता के आधार पर तीन-तीन नाम के पैनल बनाए जाएंगे। और कुलपति चयन कमेटी इसी दिन बंद लिफाफा राज्यपाल को भेज देगी। राज्यपाल इनमें से किसी एक नाम पर टिक लगाकर वीसी अपाइंट कर देंगे। यद्यपि, दोनों विश्वविद्यालय दूरस्थ और आदिवासी इलाके में हैं, इसके बावजूद दावेदारांे में उत्साह की कमी नहीं है। हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। मगर जिस तरह कमेटी बनी है, लगता है, ठीक-ठाक ही होगा। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार कमेटी के चेयरमैन हैं और यूजीसी ने दोनों विवि के लिए अपना प्रतिनिधि नामित किया हैं, वे भी कम नहीं हैं। एक सीएसआईआर के एक्स चेयरमैन हैं और दूसरे, इलाहाबाद विवि के कुलपति रह चुके हैं। मुख्यमंत्री भी इस साल को गुणवता वर्ष के रूप में मनाने का ऐलान किया है। वैसे भी, डाक्टर साब आजकल छोटी-मोटी बातों में रुचि नहीं लेते। और ना ही प्रेशर में आते। सो, उम्मीद कीजिए दोनों विवि की कमान ठीक-ठाक लोगों के हाथ में ही सौंपी जाएगी। 

अंत में दो सवाल आपसे

1.            एक सीनियर आईएएस से पंगा लेने के कारण किस मंत्री को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है?
2.            राईस मिलर एफसीआई के खिलाफ इसलिए मुहिम छेड़े हुए हैं कि दबाव में आकर सरकार नागरिक आपूर्ति निगम को चावल खरीदने का निर्देश दे दे?

शनिवार, 12 जनवरी 2013

तरकश, 13 जनवरी

मनहर के चलते
एसपी की सर्जरी अभी और आगे टल सकती थी। मगर बालोद में सीएम के रोड शो में काला झंडा की वजह से एसपी के लिस्ट पर विचार शुरू हो गया है। और खबर, तो यहां तक है, 14-15 को आदेश निकल सकते हैं या फिर 20-21 को लगभग तय मानिये। सिर्फ सीएम की अति व्यस्तता की वजह से इस पर अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा है। जाहिर है, सूची में बालोद एसपी डीएल मनहर का नाम, एक नम्बर पर रहेगा। उसके बाद, रायपुर, रायगढ़, जांजगीर जैसे दर्जन भर से अधिक जिले होंगे। दावा ऐसा भी है कि रमन सरकार के नौ साल में एसपी लेवल पर यह सबसे बड़ा फेरबदल होगा। 27 में से आधे से अधिक जिले के एसपी बदल जाएंगे। इसकी वजह यह है कि मुख्यमंत्री एसपी के पारफारमेंस से खुश नहीं हैं। दूसरा, इस साल चुनाव भी है। रही राजधानी रायपुर की बात, तो किसी मैच्योर परसन को यहां की कमान सौंपी जाएगी। या तो रायगढ़ के एसपी आनंद छाबड़ा प्रोन्नत होकर एसएसपी बनेंगे या फिर बिलासपुर के रतनलाल डांगी को मौका दिया जाएगा। एसपी के रूप में डांगी का बिलासपुर चैथा जिला है। इसके अलावा रायपुर के लायक कोई आईपीएस सरकार को नहीं दिख रहा। तमिलनाडू कैडर से डेपुटेशन पर आई सोनल मिश्रा का नाम जरूर उछला था, मगर सरकार को नया चेहरा हजम नहीं हो रहा है।   

 
तोड़ी की चक्कर
कांकेर के झलियामारी आश्रम में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म का मामला ऐसे ही सामने नहीं आया। दरअसल, तोड़ी के चक्कर में यह सब हुआ। पता चला है, नरहरपुर के एक व्यक्ति को सबसे पहले घटना की जानकारी मिली थी और उसने कांकेर के एक युवक को खबर दी और तय हुआ था, जो मिलेगा, उसमें होगा आधा-आधा। प्लान के मुताबिक कांकेर का युवक झलियामारी आश्रम जाकर आरोपी शिक्षाकर्मी को चमकाया और 25 हजार रुपए ऐंठ भी लाया। किन्तु उसकी नीयत में खोट आ गई और बंटवारा करने में आनाकानी करने लगा। इस पर दोनों में विवाद हुआ और बात फैल गई। वरना, मासूम बच्चियों से अनाचार का मामला झलियामारी आश्रम में ही दफन हो गया होता। 


कलेक्टर की जिम्मेदारी?
झलियामारी आश्रम की आदिवासी बच्चियां जिस स्थिति को जी रही थी, उससे कांकेर कलेक्टर और आदिवासी विभाग के अफसरों को कैसे बरी किया जा सकता है। खपरे वाले कच्चे मकान के तीन कमरे में 42 बच्चियां। नहाने के लिए बाथरुम नहीं, टायलेट नहीं। दरवाजे की कुंडी टूटी हुई। रात में लड़कियां दरवाजा भिड़ा देती हंै। इसी का फायदा उठाया, आरोपियों ने। रात में किसी भी वक्त घुस जाते थे, कमरे में। नरहरपुर नक्सली इलाका भी नहीं है। विशुद्ध मैदानी क्षेत्र है। जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर। कलेक्टर जिले का मुखिया होता है और सरकार की योजनाओं का क्रियान्वन हो रहा है या नहीं, देखना उसका प्रमुख काम है। आश्रमों की बेहतरी के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपए का फंड जारी करती है। काश! कलेक्टर एक बार झलियामारी आश्रम का विजिट की होती, तो कई बच्चियों का भविष्य खराब होने से बच जाता। लेकिन जब उनकी पोस्टिंग इसलिए हुई है कि बगल के जगदलपुर में उनके पति कलेक्टर हैं और फ्रिक्विेंटली उनका मिलना-जुलना हो सकेगा, तो फिर कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। बहरहाल, झलियामारी आश्रम, तो एक बानगी है। अधिकांश जिलों में आदिवासी आश्रमों और कलेक्टरों की यही स्थिति है। कलेक्टरों की रुचि सिर्फ इस बात में होती है कि हमारे एनजीओ को काम मिला या नहीं और खरीदी और टेंडर होता है, उसका हिस्सा आ जाए। जिस तरह काले झंडे दिखाने पर या हंगामा करने पर एसपी के ट्रांसफर हो जाते हैं, उसी तरह बड़ी घटनाओं पर एकाध कलेक्टर-एसपी को उल्टा टांगिये डाक्टर साब, देखियेगा, फिर कलेक्टर-एसपी कैसे चार्ज होते हैं। 


आईएएस बुद्धि
छह महीने का मातृत्व अवकाश पूरे हो जाने के बाद भी एक महिला आईएएस मंत्रालय में ज्वाईन नहीं दे रही हैं। पता चला है, उन्होंने एक महीने का और अवकाश ले लिया है। महिला अफसर को आशंका है कि एक बार मंत्रालय में फंस गई, तो इस महीने के अंत या अगले महीने होने वाले कलेक्टरों के फेरबदल में उनका नम्बर नहीं लग पाएगा। चूकने का मतलब समझा जा सकता है, सुनील कुमार जैसे सीएस के साथ साल भर और काम करना। सुबह 10 बजे आफिस पहुंचना और रिजल्ट ओरियेंटेड वर्क। मगर नए आईएएस रिजल्ट-विजल्ट में विश्वास कहां करते हैं। ज्वाईन करते ही मनीराम के चक्कर में पड़ जा रहे हैं। और मनीराम से मिलने के लिए कलेक्ट्रेट से बढि़यां जगह और क्या हो सकती है। बहरहाल, महिला अफसर के आईएएस पति पावर सेंटर में पहुंच गए हैं, सो उनकी योजना परवान चढ़ जाए, तो अचरज नहीं। 


मीर जाफर
कैडर रिव्यू का प्रस्ताव सबसे पहले वन विभाग ने भारत सरकार को भेजा था। और आईएफएस अफसरों को उम्मीद थी कि जल्द ही वह ओके होकर आ जाएगा। मगर पता चला है, कैडर रिव्यू से प्रभावित होने वाले कुछ आईएफएस अफसरों ने ही दिल्ली में जुगाड़ लगाकर फाइल डंप करवा दिया है। कैडर रिव्यू हो जाने के बाद सर्किल में सीएफ की जगह सीसीएफ पोस्ट किए जाएंगे। प्रशासनिक सुधार इसलिए किया जा रहा है कि कमिश्नरी में कमिश्नर, रेंज में आईजी होते हैं, उसी तरह वन विभाग के सर्किल में सीसीएफ बैठे। ताकि, सीसीएफ का कमिश्नर और आईजी से समन्वय ठीक रहे। दरअसल, तीनों का रैंक सेम होता है। लेेकिन कैडर रिव्यू हो गया, तो वर्तमान सीएफ लोगों को कमाई वाली कुर्सी छोड़कर वन मुख्यालय की रवानगी डालनी पड़ जाएगी। वहां उन्हें बैठने के लिए कुर्सी-टेबल का भी खुद ही इंतजाम करना होगा। सो, सीएफ क्यों चाहेंगे, कैडर रिव्यू हो। बहरहाल, वन महकमे के लोगों ने मीर जाफरों की तलाश तेज कर दी हैं। 


अंत में दो सवाल आपसे
1.    दुष्कर्म के मामले में कड़े कानून बनाने पर पुलिस को ज्यादा लाभ होगा या महिलाओं को?
2.    एक आईएएस अफसर का नाम बताइये, जिन्होंने मोटे कमीशन के फेर में एक कंपनी से 75 लाख रुपए के मोबाइल खरीदकर मातहतों को टिका दिया?

शनिवार, 5 जनवरी 2013

तरकश, 6 जनवरी

शर्मनाक
 
छेड़छाड़ और रेप के मामले में कार्रवार्इ करने में छत्तीसगढ़ पुलिस का रवैया भी आहत करने वाला रहा है। रायपुर के उरला इलाके में 16 दिसंबर की रात हुए पांच साल की बच्ची से रेप हो या इसके एक हफते बाद पेंड्रा इलाके में आटो चालक द्वारा महिला की अस्मत लूटने के मामले में। पुलिस का व्यवहार शर्मनाम रहा। उरला घटना में दुष्कर्म की रिपोर्ट तब लिखी गर्इ, जब इलाज के लिए बच्ची को आंबेडकर अस्पताल में भरती किया गया। पुलिस को डर था कि दिल्ली की तरह रायपुर में भी बवाल न हो जाए। ऐसा तब हुआ, जब उरला में महिला थानेदार हैं। शुरू में, तो थानेदार ने घटना से ही अनभिज्ञता जता दी थी। बाद में, मीडिया को यह कहकर गुमराह किया गया कि बच्ची स्वास्थ्य होकर घर जा चुकी है। जबकि, वह अस्पताल में बिस्तर पर थी। महिला अफसर ने यह साबित किया कि पुलिस में आने के बाद महिला, महिला नहीं बलिक पुलिस सिस्टम का हिस्सा बन जाती है। और थानों में भले ही महिला इंस्पेक्टरों की पोसिटंग कर दो, होना-जाना कुछ नहीं है। बहरहाल, यह सब हुआ, सरकार की नाक के नीचे। जहां, राज्यपाल से लेकर चीफ मिनिस्टर, गृह मंत्री, चीफ सिकरेट्री, डीजीपी सरीखे अफसर बैठते हैं। आरोपी गया था, विधवा महिला की इज्जत लूटने, वह नहीं मिली तो मासूम बच्ची को हवश का शिकार बना डाला। और पुलिस हीलाहवाला करती रही। ऐसे अफसरों पर अब तक कार्रवार्इ कुछ भी नहीं। पेंड्रा इलाके में, तो थानेदार आरोपियों के साथ समझौता कराने लगा। ऐसे में पुलिस से क्या उम्मीद की जा सकती है। 


पटनायक स्टाइल
उड़ीसा में चुनाव के पहले नवीन पटनायक सरकार गड़बड़ कर्मचारियों और अधिकारियों पर डंडा चलाकर या जेल भेजकर चुनाव जीत जाती है। पटनायक इस थ्योरी पर काम करते हैं कि सरकारी लोगों पर कड़ार्इ से आम आदमी खुश होता है। आदमी आखिर, उन्हीं से, तो सबसे अधिक त्रस्त रहता है। सो, छत्तीसगढ़ में भी कुछ ऐसा ही हो जाए, तो हैरान मत होइयेगा। इसकी शुरूआत शिक्षाकर्मियों और लिपिकों के साथ हो सकती है। सरकार किस तरह सख्त है, आप समझ सकते हैं, शिक्षाकर्मियों ने शुक्रवार को जेल भरो आंदोलन को सांकेतिक गिरफतारी में क्यों तब्दील कर दिया। सरकार ने दो टूक कह दिया है, फिलहाल न छठा वेतनमान मिलेगा और संविलयन, तो नामुमकिन है। वेतन कुछ बढ़ाए जाएंगे, मगर वो भी अभी नहीं। दो-एक महीने बाद ही कुछ होगा। अंदर की खबर है, सरकार को आशंका है, एक बार झुकने पर आंदोलनों की बाढ़ आ जाएगी। काम-धाम छोड़कर सितंबर तक इसी से दो-चार होना पड़ेगा। शिक्षाकर्मियों को छठा वेतनमान देने से पहले साल करीब 800 करोड़ रुपए खर्च आएगा। और दो साल बाद यह 1800 करोड़ रुपए पहुंच जाएगा। उधर, 42 लाख गरीब परिवारों को चावल-दाल देने में 1200 करोड़ खर्च बैठ रहा है। अब, सरकार या तो गरीबों को चावल दें या शिक्षाकर्मियों को छठा वेतनमान। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है, चुनावी समीकरण में 42 लाख परिवार ज्यादा महत्वपूर्ण है, न कि डेढ़ लाख। वैसे भी, 50 फीसदी से अधिक शिक्षाकर्मी काम पर लौट चुके हैं। व्यापम से चयनित 40 हजार शिक्षाकर्मियों को तुरंत अपाइंटमेंट आर्डर देने पर भी विचार कर रही है।  


दलित कार्ड
पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन बनने के लिए निवर्तमान डीजीपी अनिल नवानी ट्रार्इ कर रहे हैं, मगर यकीन मानिये, उनकी ताजपोशी नहीं होने वाली। मार्च में डीजी होमगार्ड से रिटायर होने वाले संतकुमार पासवान के लिए यह कुर्सी सुरक्षित रखी गर्इ है। समझने की बात है, नवानी को अगर चेयरमैन बनाना होता, तो रामनिवास को डीजी बनाते समय ही कारपोरेशन का आदेश भी हो गया होता। रामनिवास को आखिर अकारण कारपोरेशन का चार्ज थोड़े ही दिया गया। जाहिर है, समय काम होने की वजह से पासवान डीजीपी न बन सकें। सो, सरकार चाहती है, कारपोरेशन में चेयरमैन बनाकर पुलिस महकमे से मार्च में उनकी सम्मानजनक बिदार्इ हो। इसका लाभ आखिर सरकार को भी तो मिलेगा। अनुसूचित जाति की उपेक्षा के आरोप का जवाब देने के लिए सरकार के तरकश में एक पासवान का भी वाण होगा। 


26 के बाद
ट्रांसफर से घबराए सूबे के कुछ कलेक्टर और एसपी को इस खबर से कुछ राहत मिल सकती है कि सरकार ने सर्जरी को फिलहाल टाल दिया है। और अब 26 जनवरी के बाद ही कुछ होगा। सरकार अपना पूरा ध्यान अभी 9 नए जिले में होने वाले रोड शो और उसके उत्सव पर केंदि्रत करने जा रही है। शीतकालीन सत्र के बाद से ही आर्इएएस, आर्इपीएस की बड़ी लिस्ट निकलने की चर्चा थी। आखिरी साल में चुनावी हिसाब से सरकार बड़े स्तर पर फेरबदल करने की तैयारी भी कर रही थी। मगर अपरिहार्य कारणों से इसे स्थगित करना ही मुनासिब समझा है। 


बेहाल
जीएडी बोले तो समान्य प्रशासन विभाग। मंत्रालय का महत्वपूर्ण महकमा। इसलिए तीन-तीन सिकरेट्री हैं। मगर काम देखिए कि गृह मंत्री और चीफ सिकरेट्री के मार्क किए गए पत्रों पर भी कार्रवार्इ नहीं हो रही है। नए मंत्रालय में गलत जगह राष्ट्रध्वज लगाने को लेकर गृह मंत्री ननकीराम कंवर ने आपतित करते हुए 4 दिसंबर को चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार को पत्र लिखा था। कार्रवार्इ के लिए कुमार ने इसे जीएडी को भेज दिया। कुछ नहीं हुआ तो कंवर ने जीएडी को फिर रिमाइंडर भेजा। 4 जनवरी को जीएडी के डिप्टी सिकरेट्री ने राष्ट्रध्वज ठीक करने के लिए एनआरडीए को पत्र लिख पल्ला झाड़ लिया। मंत्रालय में राष्ट्रध्वज ठीक जगह पर लगे, यह काम जीएडी का है न कि एनआरडीए का। राष्ट्रध्वज के साथ ऐसा मजाक, लिंटर के छड़ में राष्ट्रध्वज को लटका दिया है, वह भी कोने में। और गृह मंत्री और चीफ सिकरेट्री के पत्र के बाद भी हीलाहवाला। समझ सकते हैं, कैसा चल रहा है जीएडी।   


 अंत में दो सवाल आपसे
1.    शिक्षाकर्मियों और लिपिकों के आंदोलन को आम आदमी की सहानुभूति क्यों नहीं मिल रही है?
2.    कितने परसेंट मां-बाप अपने बेटियों को शालीन कपड़े पहनने की सीख देते हैं और बेटों को यह संस्कार कि बहन-बेटियों के साथ बदतमीजी कर हमारी नाक मत कटवाना?