मंगलवार, 29 मार्च 2016

होइये सोई, जो….

FB_IMG_1441516484068विधानसभा का बजट सेशन जैसे-जैसे समापन की ओर बढ़ रहा है, कलेक्टरों की दिल की धड़कनें तेज होती जा रही है। सत्र 31 मार्च को खतम होगा। इसके बाद कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित सूची कभी भी…
जारी हो सकती है। दो दिन के भीतर भी। या फिर अप्रैल फस्र्ट वीक में तो पक्का समझिए। ऐसे में, टेंशन कैसे नहीं होगा। छोटे जिले वाले कलेक्टर अब सीनियर हो गए हैं। उन्हें बड़ा जिला चाहिए। बड़े वाले को और बड़ा। दो जिले वाले को तीसरा चाहिए। तो तीसरा वाले, चैथे की चिंता में दुबले हो रहे हंै। जिन्हें पारी खतम कर राजधानी लौटना है, वे माल-मसालेदार पोस्टिंग के जुगत में लगे हैं। 2009 बैच वाले सरकार से अलग मुंह फुलाए बैठा है। बहुत इंतजार करा दिया। चलिये, अब ज्यादा दिन नहीं बचे हंै। होइहे सोई जो र-अ-मन रचि राखै।

2003 बैच को विराम

कलेक्टरों की आने वाली लिस्ट में 2003 बैच को विराम लग सकता है। इस बैच की एकमात्र आईएएस रीतू सेन अंबिकापुर की कलेक्टर हैं। उनके बैच के सिद्धार्थ कोमल परदेशी और रीना बाबा कंगाले, राजधानी लौट चुके हैं। रीतू के बाद 2004 बैच के तीन कलेक्टर मैदान में बचेंगे। अंबलगन पी, अलरमेल ममगई डी एवं अमित कटारिया। इनमें से एक का विकेट तो गिरना तय माना जा रहा है। बचे दो। इनकी बैटिंग से सरकार संतुष्ट है, सो वे अभी टीम कलेक्टर बनें रहेंगे।

दिनेश की ताजपोशी

महिला बाल विकास विभाग सिकरेट्री दिनेश श्रीवास्तव 31 मार्च को रिटायर हो जाएंगे। प्रमोटी में श्रीवास्तव को हाई प्रोफाइल आईएएस में गिना जाता है। फील्डिंग अच्छी होने के चलते उन्हें पोस्टिंग भी अच्छी मिलती रही हैं। मगर आखिरी साल में इस तेज और चतुर आईएएस का मामला गड़बड़ा गया। सो, पोस्ट रिटायरमेंट उन्हें ठीक-ठाक जगह ताजपोशी मिल जाए, इसकी संभावना धूमिल है। फिर भी मानवाधिकार आयोग में पोस्टिंग की चर्चा तो चल रही है। वहां वे मेम्बर बन सकते हैं। वैसे बन जाएं, तो यह भी बुरा नहीं है। पांच साल का मामला है।

निहारिका लौटेंगी

97 बैच की आईएएस निहारिका बारिक अप्रैल फस्र्ट वीक में छत्तीसगढ़ लौट सकती हैं। पांच साल का उनका डेपुटेशन इसी साल जनवरी में खतम हुआ। इसके बाद वे दो महीने के अवकाश पर चली गई थीं। 31 मार्च को उनकी छुटटी पूरी हो जाएगी। हो सकता है, दिनेश श्रीवास्तव का महिला एवं बाल विकास विभाग निहारिका के हवाले कर दिया जाए। मगर यह तभी संभव हो पाएगा, जब वे यहां आ जाएं। क्योंकि, निहारिका की गिनती, छत्तीसगढ़ के चंद आईएएस में होती हैं, जिन्हें मूल कैडर रास नहीं आता। छत्तीसगढ़ बनने के बाद निहारिका कुछ ही समय यहां रहीं। भारत सरकार में पांच साल डेपुटेशन करके वे 2010 में छत्तीसगढ़ आई थी। वो भी पूछिए क्यों? कलेक्टर बनने के लिए। ताकि, प्रोफाइल में कलेक्टरी दर्ज हो जाए। याद होगा, सरकार ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए महासमंुद का कलेक्टर बनाया भी। लेकिन, साल भर कलेक्टरी कर वे फिर पांच साल के प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चली गई थी। छत्तीसगढ़ में 97 बैच में तीन आईएएस हैं। सुबोध सिंह, एम गीता और निहारिका बारिक। इनमें सुबोध सिंह को छोड़कर दोनों देवियों को छत्तीसगढ़ रास नहीं आया। गीता भी राज्य बनने के बाद दो साल पहले ही छत्तीसगढ़ लौटी हैं।

जैसा विभाग, वैसा कानून

जंगल विभाग ने राज्य वनौषधि बोर्ड और राज्य वन अनुसंधान परिषद के पोस्ट को अपग्रेड करके पीसीसीएफ कर दिया। मगर बोर्ड के सीईओ एके द्विवेदी और परिषद के डायरेक्टर आरके डे को डायलेमा में छोड़ दिया। पहले वे जिस संस्थान के सुप्रीमो थे। पीसीसीएफ के आर्डर में विभाग ने उनकी स्थिति ही स्पष्ट नहीं की है। बेचारे वे बीच में  झूल रहे हैं। ऐसा ही, बीके सिनहा के केस में भी हुआ है। सिनहा पीसीसीएफ बन गए हैं। लेकिन, उन्हें भी पीसीसीएफ के अंदर में कैम्पा का इंचार्ज बनाकर रखा गया है। ये अलग बात है कि सिनहा काबिल अफसर हैं मगर उन्हें कैम्पा में ही रखना था, तो चार लाइन का आर्डर निकालकर कैम्पा के पोस्ट को पीसीसीएफ का कर देना था। जैसे, राधाकृष्णन के लिए सरकार ने वेयर हाउस के जूनियर आईएएस के पोस्ट को चीफ सिकरेट्री लेवल का कर दिया। ऐसे में, कम-से-कम पोस्ट का अपमान तो नहीं होता। किंतु विभाग का जैसा नाम, वैसा काम।

होली में दिवाली

पुलिस की होली तो इस बार जबर्दस्त रही। चार महीने में दूसरी दिवाली मन गई। अवसर मुहैया कराया हेलमेट ने। हिंग लगे ना, फिटकिरी वाला मामला था। इसलिए, थानों की सारी पुलिस सड़कों पर उतर आई। शायद ही किसी को बख्शा गया। पांच सौ की रसीद कटवाओ या तीन सौ देकर दो सौ बचा लो। जाहिर है, लोगों को दो सौ बचाने का आइडिया ज्यादा भाया। जाहिर है, पुलिस की लूट से आरटीओ वाले शरमा गए। राजधानी में एक वीवीआईपी हाउस से एकदम सटे चैक पर पुलिस वाले थैले में पैसे भरते रहे। एकदम डंके की चोट पर। विधानसभा में जितना हल्ला करना है, कर लो। वैसे, हेलमेट को लेकर पुलिस की कड़ाई की मंशा पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। रायपुर आईजी जीपी सिंह ने तो अच्छी पहल करते हुए अपने रेंज के पांचों कलेक्टरों को पत्र लिखकर बिना हेटमेट का पेट्रोल पंप पर तेल ना देने का आग्रह किया। मगर, अपनी पुलिस तो अनाचार का मुकदमा दर्ज करने के लिए पैसे ले लेती है। उसके लिए हेलमेट इश्यू वारदान साबित हो गया।

होली को वाट

भद्रा और पूर्णिमा का हवाला देकर पोथी-पतरा वाले अपने पंडितों ने अबकी होली को वाट लगा दिया। पहली बार दो दिन होली खेली गई। कंफ्यूजन ऐसा रहा कि 23 मार्च की सुबह तक लोग पशोपेश में रहे कि होली आज खेले या कल। दोपहर तक लोग फोन करके एक-दूसरे से पूछते रहे, आपके यहां होली कब हो रही है? रायपुर को छोड़ दें सूबे में दो दिन होली हो गई। ऐसे में, फर्क तो पडना ही था। लगा ही नहीं कि होली कब निकल गई। जाहिर है, होली से चूकि बड़ा व्यापार नहीं जुड़ा है, इसलिए सबके निशाने पर वही है। कोई तिलक होली का अभियान चलाता है, तो कहीं पानी बचाने के नाम पर होली की रंगत को फीकी करने की कोशिश। बहरहाल, नेशन और नेशनलिटी की बड़ी-बड़ी बात करने वाले लोग होली जैसे त्यौहार किस दिन मनाना है, इसे तय नहीं कर सकते, तो बाकी आप समझ सकते हैं।

शनिवार, 19 मार्च 2016

जय गंगाजल


तरकश, 20 मार्च


संजय दीक्षित
गुरूवार को कैबिनेट ने एक ऐसे विधेयक के ड्राफ्ट को हरी झंडी दे दी, जिसके विधानसभा में पारित होने के बाद 250 एकड़ तक की जमीनों को आपसी सहमति से सौदा किया जा सकेगा। याने जिस किसान के पास 250 एकड़ तक जमीन है, उसे लेने के लिए उद्योगपतियों को अब एसडीएम, कलेक्टर का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। ना ही जनसुनवाई होगी। ना ही एक सदस्य को नौकरी देने का झमेला। और ना ही इलाके के विकास का कोई जिम्मेदारी। 100 हेक्टेयर से अधिक जमीन होने पर ही पुनर्वास और व्यवस्थापन के रुल लागू होंगे। इस विधेयक के पास हो जाने पर उद्योगपति सीधे किसानों से चर्चा कर जमीन का सौदा करेंगे। प्रकाश झा के नया जय गंगाजल में आपने देखा ही कि किसानों को जमीन का सौदा करने के लिए झुकाने के लिए किन-किन तरह के हथकंडे अपनाए गए….बेटियों की अस्मत भी लूटी गई। हो सकता है, यहां भी ऐसा ही हो। जैसे भी किसान तैयार हो जाएं। और, इसे आपसी सहमति का नाम दिया जाएगा। कैबिनेट में राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय ने इस बिल का विरोध कर अपना धर्म निभाया। लेकिन, बाकी? आखिर सबके अपने हित हैं। किसानों के लिए चिंता की बात यह है कि मंत्री, विधायक समर्थित माफियाओं को ठीक करने के लिए छत्तीसगढ़ में अजय देवगन या प्रियंका चोपड़ा टाईप के पुलिस आफिसर भी तो नहीं है। 27 में से कम-से-कम 25 एसपी तो प्रकाश झा के इंटरवल के पहले वाले रोल में हैं। ऐसे में, कौन बचाएगा किसानों को? पेड़ भी कटते जा रहे हैं। जय गंगाजल।

सहिष्णुता की मिसाल

इसे सहिष्णुता की मिसाल कह सकते हैं। आखिर, देशद्रोह के आरोपी कन्हैया के समर्थन में पोस्ट करने वाले बलरामपुर कलेक्टर अलेक्स पाल मेनन के खिलाफ कोई कार्रवाई कहां हुई। डंके की चोट पर वे कलेक्टरी कर रहे हैं। इससे, देश में इनटालरेंस की बात करने वालों को बड़ा मैसेज दिया है अपनी सरकार ने। देख लो, कन्हैया भले ही भारत सरकार को गालियां बके…..हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री का भद्दे ढंग से मजाक उड़ाए, संघवाद से आजादी मांगे, उसके समर्थकों के साथ भी हमारी पूरी सहानुभूति है। अलेक्स कलेक्टरी करता रहेगा। उसे तभी हटाएंगे, जब कलेक्टरों का फेरबदल हो। सिंगल आर्डर निकालकर अगर अलेक्स को हटाएंगे तो बेचारे पर क्या गुजरेगी। फेसबुक पर आखिर, छत्तीसगढ़ का कितना नाम रोशन कर रहा है।

असवाल भी चर्चा में

सरजियस मिंज के रिटायर होने के बाद मुख्य सूचना आयुक्त का पद 16 मार्च को खाली हो गया। अभी तक राजस्व बोर्ड के चेयरमैन डीएस मिश्रा को इस पोस्ट का प्रबल दावेदार समझा जा रहा था। मिश्रा 30 अप्रैल को रिटायर होंगे। याद होगा, पिछले साल उन्हें बड़ी बेरहमी के साथ मंत्रालय से बाहर कर दिया गया था। तब लोगों ने हैरानी जताई थी कि 12 साल तक सीएम के साथ काम करने वाले अफसर के साथ यह कैसे हो गया। और, यही प्वाइंट डीएस के लिए प्लस जा रहा था। मगर सरकार में फैसले के पीछे कई सारे फैक्टर काम करते हैं। सो, सीआईसी के लिए एक नया नाम एनके असवाल का भी इन दिनों चर्चा में है। असवाल 83 बैच के आईएएस है। अगले साल मई में उनका रिटायरमेंट है। सवाल यह है कि एक साल पहले वीआरएस लेने के लिए असवाल तैयार होंगे। हालांकि, ऐसे उदाहरण हैं कि अशोक विजयवर्गीय ने सीआईसी बनने के लिए चीफ सिकरेट्री की कुर्सी चार महीने पहिले छोड़ दी थी। असवाल तो एसीएस ही हैं। आखिर, पांच साल तक लाल बत्ती का मामला है। असवाल का नाम के पीछे एक वजह यह भी है कि सीआईसी और राज्य निर्वाचन आयोग, दोनों में रिजर्व वर्ग के अफसर पोस्ट थे या हैं। सीआईसी में मिंज एसटी और निर्वाचन में दलेई एससी। निर्वाचन में संभवतः ठाकुर राम सिंह की पोस्टिंग हो। ऐसे में, जातीय समीकरण के हिसाब से सीआईसी में रिजर्व वर्ग के ब्यूरोक्रेट्स को पोस्ट करना सरकार के लिए फायदेमंद होगा। असवाल का नाम के पीछे यह भी एक वजह बताई जा रही है। मगर अभी यह चर्चा ही है। 30 अप्रैल को डीएस के रिटायर होने के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी।

एक भालू, 40 गोलियां

एक आदमखोर भालू को मारने के लिए महासमंुद पुलिस ने 40 गोलियां उतार दी। कुछ लोग तो 100 भी कहते हैं। भालू के मारने की जो वीडिया वायरल हुई है, उसे देखकर शर्म आती है कि यही अपनी पुलिस है। ऐसा लग रहा, जैसे किसी आतंकवादी का एनकाउंटर कर रहे हो। आधा दर्जन जवान 100 मीटर दूर से भालू को पोजिशन पर लेकर चिल्ला रहे हैं, अरे! पीछे हटो, आगे मत जाना, अभी मरा नहीं है, नहीं-नहीं गोली लग गई है, चलाओ, चलाओ गोली, फिर धाएं-धाएं। वाह रे, हमारे बहादुर जवान। घटना के दिन बलरामपुर के 15 साल के आदिवासी छात्र संतोष की याद ताजी हो गई। उसने टंगिया से भालू को मार डाला था। डीजीपी साब, ऐसे जवानों और उनके अफसरों को नक्सल मोर्चे पर मत भेजिएगा, वरना मुसीबत आपकी बढ़ेगी।

नहीं बच पाए जितेन

राज्य के लेबर कमिश्नर जितेन कुमार को बचाने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने आखिर क्या-क्या नहीं किया। कितनी दिलचस्पी दिखाई। जीएडी सिकरेट्री खुद हाईकोर्ट पहुंची। लेकिन, जस्टिस संजय अग्रवाल ने सारे तर्काें को खारिज करते हुए जितेन कुमार की पोस्टिंग आर्डर को निरस्त करने का आदेश दे दिया। हाईकोर्ट ने 28 पन्नों के आर्डर में जीएडी की समूची दलीलों को रिजेक्ट कर दिया।

विधायकों का परिवार नियोजन

छत्तीसगढ़ विधानसभा में 34 विधायकों ने परिवार नियोजन का पूरा खयाल किया है। छह को एक और 28 को दो बच्चे हैं। वरना, 48 विधायकों के तीन से लेकर 12 तक बच्चे हैं। सबसे अधिक 12 बच्चे का रिकार्ड बिलासपुर जिले के एक मंत्री के नाम दर्ज है। वैसे, छह बच्चे वाले चार और नौ बच्चे वाले भी एक विधायक हैं। अधिक बच्चे वालों में बीजेपी के विधायक अधिक हैं। इसके पीछे वजह भी है। सरकार में कांग्रेस रही है। बीजेपी वाले 12 साल पहले तक तो आखिर, खाली ही थे।

शिफ्थ होगा पीएचक्यू?

पुराना पुलिस मुख्यालय फिर से गुलजार हो गया है। खुफिया चीफ अशोक जुनेजा के बाद अब स्पेशल डीजी डीएम अवस्थी भी पुराने पीएचक्यू में बैठने लगे हैं। इसकी देखादेखी नया रायपुर स्थित नए पीएचक्यू के आईपीएस भी अब लामबंद होने लगे हैं। पिछले दिनों एक एडीजी की अगुवाई में अफसरों की बैठक हुई। इसमें नए पीएचक्यू को शिफ्थ कराने का जिम्मा एक रसूखदार आईजी को देने का फैसला हुआ। असल में, महीने भर के भीतर अपना ट्रांसफर चेंज कराने के बाद आईजी को रसूखदार अफसरों में गिना जाने लगा है। अब, देखना दिलचस्प होगा कि पीएचक्यू शिफ्थ हो पाता है या नहीं।

हफ्ते का एसएमएस

कांग्रेस अब सीबीआई जांच की मांग करने वाली है कि जीरम नक्सल हमले की सीबीआई जांच का ऐलान के पीछे वजह क्या है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक एडीजी का नाम बताइये, जिनकी एक सरकारी कंपनी में चीफ विजिलेंस आफिसर बनने की चर्चा है?
2. रायपुर के एक मंत्रीजी अबकी होली कहां और किसके साथ खेलेंगे?
(नोट-होली के शुरूर में अगर एकाध तीर इधर-से-उधर चले गए हों तो बुरा न मानो……होली है।)
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शनिवार, 5 मार्च 2016

ट्रेनिंग की दरकार


तरकश, 6 मार्च
संजय दीक्षित
दुर्ग संभाग के एक यंग कलेक्टर ने तो कमाल कर दिया। कांग्रेस विधायकों के आचरण के खिलाफ सीधे नेता प्रतिपक्ष़्ा टीएस सिंहदेव से गुहार लगा डाली। उन्होंने सिंहदेव को लेटर लिखा है कि वे विधायकों को निर्देशित करें कि प्रशासनिक कामों में वे दखलअंदाजी ना करें और अपना आचरण ठीक ठाक रखें। बताते हैं, कलेक्टर की गुस्ताखी से नेता प्रतिपक्ष काफी गुस्से में हैं। मंगलवार को वे विशेषाधिकार हनन की नोटिस देंगे। जाहिर है, मंगलवार को सत्र प्रारंभ होने पर इसको लेकर हंगामा होगा। इससे पहले, बस्तर इलाके के एक कलेक्टर ने एक केस में जमानत न देने के लिए सीजेएम को सीधे फोन लगा डाला था। बस्तर संभाग के ही एक कलेक्टर पर इन दिनों लेखक बनने का धुन सवार हो गया है। वह भी नक्सल और सोनी सोढ़ी जैसे संवेदनशील इश्यू पर। लगता है, इन कलेक्टरों की ट्रेनिंग ठीक नहीं हुई है। सरकार को पता लगाना चाहिए कि ये अफसर किनके प्रोबेशनर रहे हैं।

मानिटरिंग नहीं

वैसे, सूबे में डिफेक्टेड कलेक्टरों की तादात थोड़े ही है। बल्कि, कह सकते हैं कि कंपीटेंट कलेक्टरों की संख्या पहले से कहीं ज्यादा है। खासकर, बिलासपुर इस मामले में सबसे आगे हैं। बिलासपुर संभाग के 90 फीसदी कलेक्टरों की गिनती अच्छे अफसरों में होती है। वहां के कमिश्नर भी तो डायरेक्ट आईएएस हैं। रायपुर, दुर्ग संभाग में भी कुछ कलेक्टर्स काफी अच्छे हैं। सरगुजा और बस्तर में भी। बावजूद इसके रिजल्ट नहीं आ रहे हैं, तो इसके लिए सिस्टम जिम्मेदार हो सकता है। रिजल्ट के लिए मैटर करता है कि उनकी मानिटरिंग किस तरह से हो रही है। किस तरह उनसे काम लिया जा रहा है। अब, राजधानी में आईएएस, आईपीएस, आईएफएस आपस में लड़ने में बिजी रहेंगे तो मानिटरिंग कैसे होगी?

पहली बार

बजट सत्र में शुक्रवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा इसलिए शुरू नहीं हो सकी क्योंकि, कांग्रेस सदन में नहीं थी। आसंदी ने इसके कारण चर्चा मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब राज्यपाल के अभिभाषण के समय विपक्ष नदारत रहा। अब, इसमें कांग्रेस का भी क्या कसूर। आपस में ही लड़-भिड़कर बेचारे थक जा रहे हैं। उपर से कोई इश्यू उठाने की कोशिश करते भी हैं तो प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अजय चंद्राकर और राजेश मूणत अमित जोगी का राग छेड़कर दुखती रग पर हाथ रख देते हैं। जाहिर है, ऐसे में विधानसभा की परंपराओं का भी कहां ध्यान रह पाएगा।

धमाकेदार वापसी

आईजी दिपांशु काबरा महीने भर में सरगुजा से रायपुर लौटने में कामयाब हो गए। पुलिस मुख्यालय के इंटरनल पालिटिक्स में उनका सरगुजा ट्रांसफर हो गया था। वे यहां से जाने के लिए तैयार नहीं थे। मगर मन मारकर उन्हें वहां ज्वाईन करना पड़ा था। लेकिन, मान गए दिपांशु को। ट्रांसफर के बाद महीने भर में वापसी करने वाले वे पहले आईपीएस बन गए। वो भी आरके विज के साथ ही। जब वे यहां से गए थे, विज के साथ एसआईबी में आईजी थे। और, लौटे तो विज के साथ ही योजना एवं प्रबंध में आईजी बनकर। कौन कहता है, आसमां मे सुराख नहीं हो सकता…। आईएएस केडीपी राव ने तबियत से पत्थर नहीं उछाली। उनके लिए किसने सिफारिश नहीं की। कैट से लेकर हाईकोर्ट तक गए। मगर सरकार यही है। आर्डर टस-से-मस नहीं हुआ। और, अब?

लाइन से रिटायरमेंट

राज्य बनने के बाद इस बरस सबसे ज्यादा आईएएस रिटायर होंगे। पूरे सात। इस महीने से लाइन लग जाएगी। 31 मार्च को दिनेश श्रीवास्तव। 30 अप्रैल को डीएस मिश्रा। 31 मई को ठाकुर राम सिंह। फिर बीएल तिवारी, बीएस अनंत, एसएल रात्रे, राधाकृष्णन। इनमें से डीएस मिश्रा और ठाकुर राम सिंह की पोस्ट रिटारयमेंट पोस्टिंग तय समझिए। दिनेश श्रीवास्तव भी मानवाधिकार आयोग में मेम्बर बन सकते हैं। बट, उन्हें थोड़ा परिश्रम करना होगा।

राम-राम….

सूबे के सबसे हाईप्रोफाइल कलेक्टर ठाकुर राम सिंह के साथ भी अजीब विडंबना है। ओहदा है, सिकरेट्री का और दो महीने बाद रिटायर होंगे कलेक्टर से। रिटायरमेंट के बाद लिखना पड़ेगा सेवानिव्त कलेक्टर। या फिर सिकरेट्री के समकक्ष रिटायर कलेक्टर। ये जरा अटपटा लगेगा। सो, बजट सत्र के बाद अप्रैल फस्र्ट वीक में होने वाले फेरबदल में सरकार का इस ओर कहीं ध्यान चला जाए, तो हो सकता है कि डेढ़-दो महीने के लिए उन्हें कमिश्नर या सिकरेट्री पोस्ट कर दे। कमिशनर के लिए कोई दिक्कत भी नहीं है। अशोक अग्रवाल के पास दो-दो कमिश्नरी है। रायपुर और दुर्ग। सरकार चाहे तो इनमें से काई एक राम सिंह को दे सकती है। इससे सरकार को भी फायदा होगा। अप्रैल में इकठ्ठे सभी कलेक्टरों का आर्डर निकल जाएगा। रायपुर के लिए मई का लफड़ा नहीं रहेगा।

एक थे विश्वरंजन, अब सुब्रमण्यिम

आपको याद होगा, विश्वरंजन जब डीजीपी बनकर आए थे तो उन्होंने माओवादियों को ललकारा था, हम उनके घरों में घुस कर मारेंगे। तब वे नक्सलियों का कुछ बिगाड़ नहीं पाए। उल्टे, लाल लड़ाकों ने खूनी खेल से दंतेवाड़ा की धरती को लाल कर दिया। देश की अब तक की सबसे बड़ी नक्सली वारदात उनके समय ही हुई। ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान मारे गए। तब, बढ़-चढ़ कर की गई बातों के लिए विश्वरंजन की आलोचना हुई थी। और अब देखिए। पीएस होम सुब्रमण्यिम ने 3 मार्च को आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। बस्तर में उपलब्ध्यिां गिनाने में एक घंटा निकाल दिए। दावा किया, अबूझमाड़ को छोड़कर पूरे बस्तर में पुलिस का नियंत्रण स्थापित हो रहा है। यही नहीं, उन्होंने यह भी ठोक दिया, आधं्र्रप्रदेश के ग्रेहाउंड ने हमारे घर में घुसकर आठ नक्सलियों को ऐसे ही थोड़े मार दिया। उन्हें इनपुट्स तो हमने ही उपलब्ध कराए थे। जिस समय पीएस होम की पीसी चल रही थी, उस समय किस्टाराम में मुठभेड़ चल रही थी। पीसी के बाद नक्सलियों ने एक के बाद एक छह एंबुश लगाकर फोर्स को चारों ओर से घेर लिया। तीन जवान शहीद हो गए। विश्वरंजन दिल्ली से आए थे। अब तक के सबसे शक्तिशाली डीजीपी रहे। सुब्रमण्यिम भी दिल्ली से आए हैं। अब तक के सबसे पावरफुल होम सिकरेट्री हैं। अब, बड़े-बड़े लोग, तो बड़ी-बड़ी बातें होंगी ना। इसके आगे नो कमेंट्स।

गुड न्यूज

इंवेस्टमेंट के मामले में छत्तीसगढ़ देश का दूसरे नम्बर का स्टेट बन गया है। अपने से सिर्फ गुजरात उपर है। महाराष्ट्र और कर्नाटक भी पीछे छूट गए हैं। इंडस्ट्रीज डिपार्टमेंट ने पांच सूत्रीय एजेंडा बनाया है। पारदर्शिता के लिए सिस्टम आनलाइन हो गया है। लागत कास्ट कम किया गया है। जिलों तक में कैम्प लगाकर पूछा जा रहा है, आप क्या हेल्प चाहते हैं। सरकार खुद इंडस्ट्रीलीज के पास जा रही है। लगता है, यह उसका असर है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मार्च के किस एजेंडे के तहत आईएफएस जेएससी राव को कांकेर के साथ ही जगदलपुर सीएफ का चार्ज दिया गया है?
2. किन दो आईएफएस अफसरों के यहां छापे की एसीबी को हरी झंडी नहीं मिल रही है?