शनिवार, 30 मार्च 2013

तरकश, 31 मार्च


दुर्भाग्य


31 को रविवार होने के चलते डीजी होमगार्ड संतकुमार पासवान एक दिन पहले शनिवार को रिटायर हो गए। राज्य बनने के बाद पासवान तीसरे आईपीएस रहे, जो डीजी बनने के बाद भी डीजीपी न बन सकें। उनके पहले वासुदेव दुबे, राजीव माथुर के साथ भी ऐसा ही हुआ। सालने वाली बात यह रही कि राज्य के बंटवारे के समय तीनों ने मांगकर छत्तीसगढ़ कैडर लिया था। और तीनों पुलिस की शीर्ष कुर्सी तक नहंीं पहंुच पाए। अलबत्ता, माथुर को छोड़कर दुबे और पासवान होमगार्ड से रिटायर हुए। माथुर डेपुटेशन पर चले गए थे, वरना वे भी....। बहरहाल, मध्यप्रदेश के समय भी पासवान की ज्यादा सेवा छत्तीसगढ़ में ही रही। रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव के एसपी। फिर, बस्तर के आईजी। एडीजी इंटेलिजेंस। मगर सब भाग्य का खेल है।

झटका


कलेक्टरों की लिस्ट में एक वीवीआईपी जिले के कलेक्टर का नाम भी चर्चा में है। चर्चा इसलिए, क्योंकि उन्हें पोस्ट हुए साल भर भी नहीं हुआ है। मगर वीवीआईपी को उनका काम नहीं भा रहा है। सो, वहां किसी डायरेक्ट आईएएस को भेजने की बात चल रही है। दंतेवाड़ा कलेक्टर ओपी चैधरी की ताजपोशी भी वहां हो जाए, तो चैंकिएगा मत। दंतेवाड़ा में चल रहे काम सरकार की नोटिस में है। आखिर, सीएम ने अपने पसंद से उन्हें दंतेवाड़ा भेजा था। वैसे, अंदर से जो खबरें निकलकर आ रही हैं, उसके अनुसार काफी हैरतनाक लिस्ट होगी। जिनकी कोई चर्चा नहीं, उनकी कुर्सी भी खिसक जाए, तो अचरज नहीं। हालांकि, शनिवार को लिस्ट को लेकर काफी उत्सुकता रही। कई कलेक्टर पता कराते रहे, उनका नाम भी है क्या? मगर लिस्ट की खबर हवा-हवाई रही।


आब्लीगेशन


आईपीएल के पास किसी को नहीं मिलेंगे। इसमें कोई गलत नहीं है। आईपीएल में पास के प्रावधान होते भी नहीं। मगर कई राज्यों में ऐसा होता है कि वहां के क्रिकेट संघ को विकेट के दोनों ओर के हजार, दो हजार टिकिट दे दिए जाते हैं। नागपुर स्टेडियम विदर्भ क्रिकेट एसोसियेशन का है और वहां ऐसा ही होता है। अपने स्टेडियम को सरकार ने बनाया है। 125 करोड़ से अधिक खर्च आया है। मगर पास किसी को नहीं। असल में, रायपुर में होने वाले दोनों मैच पहले दिल्ली में होने वाले थे। सरकार के कहने पर जीएमआर ने आईपीएल बोर्ड से बात कर दोनों मैच रायपुर शिफ्थ कराया। सो, सरकार आब्लाइज है। यही वजह है, फ्री टिकिट के लिए कड़ाई नहीं हो पा रही है।


आईपीएल गिफ्ट


आईपीएल के पास नहीं मिलने से सबसे अधिक कोई हलाकान है, तो वे हैं ठेकेदार और सप्लायर्स। पता चला है, 60 हजार कुर्सियों की क्षमता वाले स्टेडियम की आठ हजार से अधिक टिकिट ठेकेदारों ने खरीदा है। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार अफसरों को पास न मांगने के लिए कितना भी हड़का लें, असलियत यह है कि आईएएस, आईपीएस के पास थोक में टिकिट पहुंचाए जा रहे हैं। उनके परिजनों से लेकर मित्रों तक के लिए। आलम यह हो गया है कि जिसका कोई काम अटका है, वह आईपीएल का टिकिट लेकर अफसर या जनप्रतिनिधि से मिलने जा रहा है। इस बार होली में रंग-गुलाल के आकर्षक पैकेट के साथ आईपीएल टिकिट के लिफाफे भी खूब बंटे हैं।  

कंधे पर


अपनी पुलिस भी आजकल दूसरों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने लगी है। मामला है, सब इंस्पेक्टरों की भरती का। दरअसल, पीएचक्यू ने इंटरव्यू के लिए यूपीएससी के पैटर्न पर पांच बोर्ड बनाने का प्रपोजल गृह विभाग को भेजा था। इधर, गृह से कोई जवाब आए बिना इंटरव्यू भी चालू कर दिया। याने, हमने तो प्रस्ताव भेजा था, वहां से जवाब नहीं आया तो क्या करें। फिलहाल, एक ही बोर्ड है। उसी के पास लिखित परीक्षा के नम्बर भी हैं। बोर्ड के सदस्यों को पता है कि इंटरव्यू में कितना नम्बर देने से फलां कंडीडेट का चयन हो जाएगा। ऐसे में पारदर्शिता और गोपनीयता कहां रही। तभी तो आठ से दस लाख पेटी की चर्चा है। हाईकोर्ट के भरती निरस्त करने वाले फैसले से पुलिस अफसरों के प्राण सूख गए थे। मगर डबल बेंच से इजाजत मिल जाने के बाद अब जान में जान आई है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. असंतुष्ट गतिविधियों को लेकर कांग्रेस के किस नेता पर कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है?
2. राज्य की एक महिला नेत्री ने विवि में पीएचडी की थीसिस जमा की है, उनकी थीसिस किसने लिखी है?

शनिवार, 23 मार्च 2013

तरकश, 24 मार्च

रोड़ा के पीछे

टूरिज्म बोर्ड ने दर्जन भर से अधिक मोटलों को भले ही प्रायवेट हाथों में दे दिया मगर राजधानी के छत्तीसगढ़ होटल को टाटा जैसे गु्रप को देने से इंकार कर रहा है, तो इसके अपने कारण है। मध्यप्रदेश के समय बनें इस होटल के वे दिन भी थे कि लोग वहां रुकने में फख्र महसूस करते थे। मगर अब.....? होटल को संचालित करने के लिए को टाटा समूह ने सरकार को आफर दिया था। वहां वह टाटा जिंजर के नाम से होटल संचालित करेगा। देश के कई जगहों पर वह इसी नाम से रेस्टोरेंट चलाता है। पिछले दिनों टाटा के अफसर रायपुर आए थे। मगर बात बनीं नहीं। टूरिज्म के लोग ही रोड़ा अटका दिए। दरअसल, होटल को टाटा ले लेगा, तो बाकी चीजें नहीं हो सकेगी। यह होटल प्रायवेट लिमिटेड की तरह हो गया है। प्राइम लोकेशन पर स्थित इस होटल में रात में महफिलें सजती हैं। जाम टकराता है, ताश के पत्ते फेंटे जाते हैं। और भी बहुत कुछ। ऐसे में रोड़ा अटकाना लाजिमी है। 

विकास के सूचक

वैसे तो जीडीपी, औद्योगिक ग्रोथ और प्रति व्यक्ति आमदनी राज्य की प्रगति के पैमाने होते हैं। मगर, विधानसभा परिसर में मंगलवार रात हुए कवि सम्मेलन में कुछ कवियों ने राज्य के एक सीनियर मिनिस्टर को विकास का सूचक बताया, तो जमकर ठहाके लगे। कवियों ने कहा, जिस राज्य के मंत्री के 11 बच्चे हो, उससे समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ कितना तेज गति से आगे बढ़ रहा है। 

मेजर चेंज

जनवरी में डेढ़ दर्जन से अधिक जिलों के एसपी और एडीजी की पोस्टिंग के बाद पुलिस महकमे में फिर, एक बड़े चेंज की तैयारी चल रही है। डीजी जेल एसके पासवान 31 मार्च को रिटायर हो रहे हैं। उनके साथ सरगुजा के आईजी भारत सिंह भी। पासवान की जगह कौन लेगा, इसको लेकर कयासों का बाजार गर्म है। आमतौर पर होमगार्ड की कमान डीजी के पास रहती है। प्रदेश में अभी गिरधारी नायक एकमात्र डीजी हैं, जो जेल संभाल रहे हैं। खबरें, जो चल रही है, उसके अनुसार नायक को होमगार्ड में भेजकर एडीजी एएन उपध्याय या डीएम अवस्थी को जेल की कमान सौंपी जाएगी या नायक को वहीं यथावत रखते हुए उपध्याय या अवस्थी को होमगार्ड में भेजा जा सकता है। जेल के लिए आरके विज का नाम भी चल रहा है। उपध्याय पिछले चार साल से होम में हैं। उपध्याय की जगह पर पीएचक्यू से किसी आईजी या एडीजी लेवल के आईपीएस को होम सिकरेट्री बनाने की चर्चा है। पहले, लांग कुमेर को सरगुजा का आईजी बनना तय माना जा रहा था मगर अब पवनदेव और एसआरपी कल्लूरी का नाम भी आ गया है। 

साइबर आईपीएस

जनशताब्दी एक्सप्रेस को हाईजैक कर फरार हुए कुख्यात अपराधी उपेंद्र की गिरफ्तारी से दुर्ग आईजी अशोेक जुनेजा की साइबर पोलिसिंग में सिक्का जम गया है। जुनेजा ने झारखंड पुलिस के साथ मिलकर ऐसा जाल बिछाया कि वह बच नहीं सका। खबर है, झारखंड के एक विधायक भी उपेंद्र को पनाह देने के मामले में लपेटे में आ रहे थे। मगर वहां की सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए हरी झंडी नहीं दी। बहरहाल, उपेंद्र की गिरफ्तारी कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि गृह मंत्री ननकीराम कंवर ने सदन में इस पर वक्तव्य दिया, वहीं पिछले नौ साल में पहली बार कांगे्रस ने पुलिस की जमकर प्रशंसा की। जुनेजा ने इससे पहले भी मोबाइल टे्रस करके राजधानी के स्टेट बैंक आफ इंदौर में दिनदहाड़े ढाई करोड़ के लूट के आरोपियों को पटना से पकड़ा था। चलिये, जुनेजा का नम्बर बढ़ गया।

तसल्ली

राज्य के दूसरे बड़़े शहर बिलासपुर में दो ओवरब्रिज बनें है। दोनों, चूहा की तरह। उसे देखकर पीडब्लूडी को भले ही शर्म न आए, मगर बिलासपुर के लोग शरमाते हैं। इतना घटिया? मगर उन्हें अब तसल्ली हो सकती है कि बिलासपुर में ना सही रायपुर में विधानसभा के पास बिलासपुर रोड को नए रायपुर से जोड़ने वाला बना फ्लाई ओवर स्टेट का पहला पर्यावरण फे्रंडली फ्लाई ओवर होगा। दीवारों पर बस्तर आर्ट है, तो नीचे में गार्डन। बेजा-कब्जा न हो, इसके लिए दोनों ओर ग्रिल लगाए गए हैं। आईपीएल और विधानसभा की व्यस्तता के बाद भी अपनी निगरानी में फ्लाईओवर को बनवाया। ग्रेट। 
 

नीलामी

वन मुख्यालय का प्रशासन संभालने के बाद संजय शुक्ला ने सालों से अटकी रेंजर, डिप्टी रेंजरों की थोक में डीपीसी तो कर दी मगर दो महीने निकल जाने के बाद भी पोस्टिंग का आदेश नहीं निकल पा रहा है। रेंजर और एसडीओ बने 60 से अधिक अधिकारी आदेश के लिए भटक रहे हैं। पता चला है, राजधानी के एक बंगले में इसके लिए मोल-तोल चल रहा है। जो ज्यादा ढीला करेगा, उसे अच्छा रेंज मिलेगा। याने खुली नीलामी।

छोलाई

विधानसभा में बस, मौका मिलना चाहिए, बड़े-बड़ांे की छोलाई हो जाती है। बुधवार को विनियोग विधयेक पर सीएम ने भाषण के दौरान महानदी को छत्तीसगढ़ की गंगा बताते हुए कहा, आप लोग देखे ही होंगे, अबकी राजिम कुंभ में बृजमोहनजी कैसे डूबकी लगाए हैं। इस पर नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे ने तपाक से कहा, अध्यक्ष महोदय इस बार बृजमोहनजी को किसी ने डूबकी लगाते नहीं देखा। भंजनसिंह निरंकारी बोले, दरअसल, नागा बाबाओं के साथ नहाए, इसलिए लोग पहचान नहीं पाए। सदन में चुटकी लेने में माहिर रामविचार नेताम अब कहां चूकने वाले थे। उन्होंने कहा, बृजमोहनजी इस तरह नहाते हैं कि कोई देखने की हिम्मत नहीं कर सकता। वैसे तो बृजमोहन हाजिरजवाब मंत्री हैं मगर इसका वे क्या जवाब देते। वे मुस्कराते बैठे रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. प्रशासनिक हलको में चल रही किस खबर से उत्साहित होकर सूबे के ब्यूरोके्रट्स होली के साथ दिवाली मनाने की तैयारी कर रहे हैं?
2. रविंद्र चैबे और नंदकुमार पटेल को हराने के लिए किस कांग्रेस नेता ने फतवा जारी किया है?

शनिवार, 16 मार्च 2013

तरकश, 17 मार्च

जीडीपी पर सवाल

आईपीएस अफसरों ने अपनी संपत्ति की घोषणा करके रमन सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कुछ ने शून्य संपत्ति बताई है। तो कई ने 20 लाख से भी कम। याने शिक्षाकर्मियों से भी बदतर हालत है अपने आईपीएस की। 80 फीसदी से अधिक शिक्षाकर्मियों के पास मकान और जमीन मिलाकर 25 लाख से अधिक की संपत्ति है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के जीडीपी पर सवाल उठना लाजिमी है। जीडीपी है, सबसे अधिक। 11 फीसद से भी ज्यादा। और आईपीएस मुफलिसी में।

डबल विकेट

ट्रांसपोर्ट विभाग में पिछले हफ्ते डबल विकेट ऐसे ही नहीं गिरा। मामला ब्लंडर था। परिवहन मंत्री राजेश मूणत ने नोट बरसने वाले बैरियर के लिए 150 लोगों का नाम ओके किया था, उसमें से रातोंरात 43 नाम कटकर दूसरे कर्मियों के नाम जोड़ दिए गए। घंटे भर में दो खोखा का खेल हो गया। मूणत के पास शिकायत हुई, तो मामले का खुलासा हुआ। बताते हैं, मंत्री ने सीएम से शिकायत की। और डाक्टर साब ने देर नहीं लगाई। बड़े मियां निबटे ही, छोटे भी नप गए। रीवा निवासी छोटे मियां का नपना सरप्राइजिंग रहा। सत्ता में सीधी पैठ के चलते उनकी तूती बोलती थी। मगर सरकार ने उन्हें बता दिया, हर चीज की सीमा होती है।

नो कमेंट्स

सिस्टम की कमजोरी की वजह से अच्छी योजनाएं फाइलों में किस तरह दफन हो जाती है, इसका एक केस आपको बताते हैं। पिछले साल जनवरी में एसीएस स्कूल शिक्षा रहने के दौरान एक सीनियर आईएएस अफसर ने 10वीं, 11वीं और 12वीं में 70 फीसदी नम्बर लाने वाले छात्रों को प्रति महीने दो सौ रुपए स्कालरशिप देने की योजना बनाई थी। इससे राज्य के करीब सात से आठ हजार छात्र लाभान्वित होते। इसके साथ ही ब्लाक लेवल पर साइंस की कोचिंग की भी योजना थी। ताकि, स्कूलों में साइंस टीचर ना होने से पढ़ाई की भरपाई की जा सकें। इतनी अच्छी योजना थी कि उसे भला मंजूरी कैसे नहीं मिलती। सरकार ने पिछले साल के बजट में पांच करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया था। इस बीच आईएएस पदोन्नत होकर शीर्ष पर पहुंच गए। और उनकी योजना गर्त में। 13 महीने निकल गए, फाइल का कोई अता-पता नहीं है। आलम यह है कि फाइल है या गुम गई, यह भी कोई बताने के लिए तैयार नहीं है। स्तंभकार द्वारा क्वेरी करने पर स्कालरशीप वाली फाइल पिछले ह्फ्ते मूव हुई है। बड़े अफसरों की योजनाओं का ये हाल है, तो बाकी का आप अंदाज लगा लीजिए।

मनरेगा और तेल

मंगलवार को विधानसभा के मुख्यमंत्री कक्ष में हुई मनरेगा की बैठक में कुछ दिलनचस्प प्रसंगों पर खूब चुटकी ली गई। मनरेगा की रिपोर्ट पेश करने के दौरान जब तालाब खुदाई का जिक्र आया, तो एक आला आईएएस अफसर ने हास-परिहास के लहजे में टिप्पणी कर दी कि मनरेगा के तहत कागजों में जितने तालाबों की खुदाई की गई है, वास्तव में अगर ऐसा किया गया होता, तो छत्तीसगढ़ में तेल का भंडार निकल गया होता। इस पर सरकार में रसूख रखने वाले एक रिटायर नौकरशाह ने यह कहते हुए उनका समर्थन किया कि राज्य में जितने वृक्षारोपण हुए हैं, वास्तव में अगर उतने पेड़ लगाए गए होते तो आज हम जंगल के बीच बैठे होते। बैठक में मुख्यमंत्री समेत आधा दर्जन से अधिक मंत्री थे। चलिये, इससे ये पता चल गया कि राज्य मंे जो कुछ चल रहा है, उससे उपर बैठे लोग नावाकिफ नहीं हैं। 

विधायक का बीपी

दिल का उम्र से कोई रिश्ता नहीं होता। तभी तो मंगलवार को विधानसभा में जब सरकारी कन्यादान योजना की गड़बडि़यों पर शिव डहरिया ने सवाल उठाया और उस पर हंसी मजाक हुआ, उससे एक विधायक का ब्लडप्रेशर इतना बढ़ गया कि चेकअप कराने के लिए उन्हें विधानसभा के डाक्टर के पास जाना पड़ गया। असल में, शादी पर युवा विधायक जब अविवाहित देवजी भाई को छेड़ रहे थे, उस दौरान एक 60 वर्ष से अधिक वाले विधायक भी खड़े होकर देवजी भाई की शादी क्यों नहीं हो रही, इसकी जांच कराने की मांग करने लगे। स्पीकर धरमलाल कौशिक ने उन्हें यह कहकर बिठा दिया कि शादी विवाह के मसले पर आप क्यों खड़े हो रहे हो। इसके बाद उनकी शादी को लेकर कई विधायकों ने उनसे खूब ठिठोली की। बताते हैं, इससे उनकी हर्ट बीट बढ़ गई। डाक्टर ने उनसे कहा, आप कुछ सोच रहे हैं, अब विधायकजी क्या बोलते।

उलझन

आईपीएल जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, मुश्किलें वैसे-वैसे बढ़ती जा रही है। सिक्यूरिटी के लिए पांच करोड़ रुपए मांगकर पुलिस ने खेल अधिकारियों के होश उड़ा दिए हैं। इस्टीमेट में इसके लिए 50 लाख रुपए का ही प्रावधान है। असल में, कैबिनेट में 2008 का इस्टीमेट पास कर अफसर फंस गए हैं। राशि बढ़ाई जाती है, तो गलत मैसेज जाएगा। इसलिए एक-एक चीज में उन्हें मोल-तोल करना पड़ रहा है। युद्ध स्तर पर काम चल रहा है मगर समय कम है। 60 हजार कुर्सियों को गैलरी में डी्रल करके नट-बोल्ट से कसना है। अभी यह शुरू भी नहीं हुआ है। 40 कारपोरेट बाक्स बनना है। इनमें से ले देकर एक बन पाया है। अलबत्ता, सुबह 5 बजे से लेकर देर रात तक काम करने की वजह से स्पोट्र्स सिकरेट्री आरपी मंडल की सेहत जवाब देने लगी है। पीठ के दर्द कम करने के लिए उन्हें स्टेडियम से लौटकर फिजियोथेरेपी करानी पड़ रही है। उधर, स्पोट्र्स डायरेक्टर जीतेंद्र शुक्ला के हाथ में मोच आ गया है। याने आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। आईपीएल के अफसर तैयारियों को लेकर अलग भौंहे तरेर रहे हैं।

ट्वेंटी-ट्वेंटी

विधानसभा का सत्र जैसे-जैसे अंतिम दिन की ओर बढ़ रहा है, कलेक्टरों का बीपी वैसे-वैसे तेज हो रहा है। जाहिर है, सत्र के जस्ट बाद कलेक्टरों का बड़ा फेरबदल होगा। चुनावी बरस है। इसलिए ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच वाले प्लेयर चुने जाएंगे। खूब ठोक-बजा कर अफसरों की पोस्टिंग की जाएगी। 2008 के चुनाव के समय शिवराज सिंह सीएस थे। तब उन्होंने अनुभवी आईएएस को जिलों की कमान सौंपी गई थी और रिजल्ट सरकार के पक्ष में आया था। इस बार भी कुछ इसी तरह करने पर विचार किया जा रहा है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1.    राजधानी में हाल ही में तैयार हुए एक सरकारी बिल्डिंग का नाम बताइये, जिसे टेंडर हो जाने के बाद उसका डिजाइन बदलकर सिर्फ इसलिए विहंगम बनाया गया, क्योंकि उसके महिला आर्किटेक्ट को सिर्फ डेढ़ लाख रुपए मिल रहे थे और इस्टीमेट बढ़ाने पर उसे पांच लाख मिले?
2.    सब इंस्पेक्टरों की भरती रद्द होने से पीएचक्यू के अफसरों को कितना नुकसान हुआ होगा?

शनिवार, 9 मार्च 2013

तरकश, 10 मार्च

आमने-सामने

टूरिज्म बोर्ड में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। अफसर अलग दिख रहे और सरकार द्वारा बिठाए गए पदाधिकारी अलग। पिछले हफ्ते बोर्ड की बैठक में इसकी एक झलक देखने को मिली। विभाग का प्रचार-प्रसार करने के लिए अफसरों ने आईपीएल मैच में खिलाडि़यों के हेलमेट पर टूरिज्म का मोनो लगाने के लिए बड़े जोश के साथ प्रस्ताव रखा था। कहा गया, डेयर डेविल्स टीम के मालिक जीएमआर से बात हो गई है। दो करोड़ रुपए लगेंगे। मगर बोर्ड ने इसे फालतू की कवायद करार देते हुए खारिज कर दिया। यहीं नहीं, रिटायर आईएएस अफसर केके चक्रवर्ती को राज्य का टूरिज्म सलाहकार बनाने का अफसरों का प्रोपोजल भी बोर्ड ने हवा में उड़ा दिया। अलबत्ता, चक्रवर्ती के मामले पर एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने तीखी टिप्पणी कर डाली। जाहिर है, बोर्ड में आमने-सामने वाली स्थिति बनती जा रही है।

नदियों पर

शहीद वीर नारायण सिंह क्रिकेट स्टेडियम में अगले महीने होेने वाले आईपीएल मैच के लिए दर्शकों के लिए 12 स्टंैड बनाए जा रहे हैं। राज्य की नदियों के नाम पर इनका नामकरण किया जाएगा। मसलन्, महानदी, शिवनाथ, अरपा, लीलागर, इंद्रावती, खारून, ईब। स्टेडियम मेें बैठने पर लोगों को अपनापन का आभास हो, इसलिए पीएस स्पोर्ट्स आरपी मंडल ने नदियों के नाम पर स्टैंड बनाने का सुझाव दिया था और सरकार ने इसे ओके कर दिया। स्टेडियम में कुर्सियां लगाने का काम अगले हफ्ते से प्रारंभ हो जाएगा। इसके सेम्पल पीडब्लूडी के ईएनसी आफिस में रखे हैं। वैसे, बैठने में कुर्सियां काफी आरामदायक हैं। सामान्य कुर्सी 980 रुपए की है और कारपोरेट बाक्स में लगने वाली वीआईपी साढ़े तीन हजार की। 

सीएस की कुर्सी

कुर्सी की बात चली, तो चीफ सिकरेट्री की कुर्सी का मामला जेहन में आ गया। असल में, विधानसभा के आफिसर्स दीर्घा की पहली पंक्ति की पहली कुर्सी चीफ सिकरेट्री के लिए रिजर्व रहती है। सीएस के राजधानी में ना होने पर भी उस पर कोई बैठता नहीं। सीनियर के पहुंचने पर उठना न पड़े, इसलिए कुछ सिकरेट्री तो दूसरे पंक्ति मंे ही बैठना सुरक्षित समझते हैं। मगर बुधवार को पहली बार हुआ, जब ध्यानाकर्षण के समय तकनीकी शिक्षा सचिव निधि छिब्बर सीएस सुनील कुमार की कुर्सी पर बैठ र्गइं। हालांकि, तीसरी पंक्ति में जगह थी। यहीं नहीं, उन्हें लगा कि सीएस विधानसभा नहीं आएंगे, इसलिए प्रश्नकाल के बाद कुर्सियां खाली होने के बाद भी जगह नहीं बदली। लेकिन, अब सकपकाने की बारी निधि की थी। सीएस धड़धड़ाते हुए सदन में पहंुच गए। उनको देखकर निधि ने कुर्सी से उठने की कोशिश की, मगर सीएस ने उन्हें वही बैठे रहने का इशारा किया। इस पर, विधानसभा की लाबी में अफसर चुटकी लेते रहे।   

संशय के बादल

आईपीएल की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई है। इसके बाद भी, संशय के बादल छंटने के नाम नहीं ले रहे हैं। आईपीलएल के लिए 33 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। इसका इस्टीमेट पूर्व कंसलटेंट रूपल सिंघवी ने बनाया था। 2008 में जो उद्घाटन मैच हुआ था, वह तब के हिसाब से था। याने पांच साल पुराना। अफसरों ने उसे ही कैबिनेट में पास करा दिया। और इसके बाद रूपल को हटा दिया। अब, अफसरों को लग रहा है, बजट कम पड़ सकता है। दूसरे, अभी तक आईपीएल के साथ एमओयू भी नहीं हुआ हैं। इसके लिए आईपीएल के अफसर कब रायपुर आएंगे, कोई पता नहीं है। न वेन्यू आफिसर तय हुआ है और ना ही वेन्यू सिक्यूरिटी आफिसर ही डिसाइड हो पाया है। सबकी उम्मीदें खेल सिकरेट्री आरपी मंडल पर टिकी हुई है। सरकार की भी। मंडल है, करा देगा। जाहिर है, मंडल फील्ड में रिलल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। आईपीएल के लिए उन्होंने सर्वस्व लगा भी दिया है। सूर्योदय से पहले लाव-लश्कर के साथ स्टेडियम पहंुच जा रहे हैं। इस चक्कर में सुबह 8 बजे उठने वाले पीडब्लूडी और खेल विभाग के अधिकारी, कर्मचारियों को 5 बजे का अलार्म लगाना पड़ रहा है। 

रामकली और रामदास

संस्कृति विभाग में किस तरह काम चल रहा है, विधानसभा में विभागीय चर्चा के दौरान कांग्रेस के धर्मजीत सिंह ने एक किस्सा के जरिये खूब बयां किया। उन्होंने विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, एक सेठ ने गांव के रामदास पंडित को बुलाकर पूजा कराया और उन्हें दक्षिणा में एक नारियल और 30 रुपए दिया। उसी दिन रात में गांव में नृत्य का प्रोग्राम था। सेठ ने नर्तकी पर मोहित होते हुए सौ-सौ रुपए के सात नोट उछाल दिए। इस पर पंडित को रहा नहीं गया। और नाराज होते हुए सेठ से कहा, रामकली को 700 और रामदास को 30 रुपए। यही हाल, संस्कृति विभाग का है। करीना कपूर को एक करोड़ 40 लाख और भारती बंधु को 30 हजार। इस पर सदन ठहाकों से गूंज गया।

वकील की सेवा

वैसे तो सूचना आयोग का काम लोगों को सूचना दिलाना है मगर छत्तीसगढ़ का सूचना आयोग, देश का पहला आयोग होगा, जो अपने विभाग की जानकारियों को छिपाने के लिए अब वकीलों की सेवा लेने लगा है। वकीलों को हायर करने के लिए बकायदा आदेश निकाला गया है। हालांकि, गलती इसमें आरटीआई कार्यकर्ताओं की भी है। डायन भी एक घर छोड़कर चलती है। मगर आरटीआई वाले सूचना आयोग में बैठे लोगों को ही लगे निशाना बनाने। साब ने अगर आफिस के लिए एसी खरीदकर घर में लगा लिया है, तो इसमें ऐसा क्या है। जमाना ऐसा है कि मौका मत चूको। आरटीआई वालों को समझना चाहिए।   

पहली बार

ट्रेनों के बाथरुम में किस तरह की इबारतें लिखी होती हंैं, इस बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं। मगर पिछले दिनों आजाद हिन्द एक्सप्रेस से बिलासपुर से रायपुर आते वक्त स्तंभकार को बाथरुम में पहली बार कुछ अलग देखने को मिला। लिक्खा था, शादी से पहले लड़के-लड़की की कुंडली मिलाने के बजाए सास-बहू की कंुडली मिलानी चाहिए। इससे घर में शांति रहेगी। और जैसे सरकारी नोटशीट में काटकर दूसरा, फिर तीसरा अपना टीप लिखता है, उसी तरह काटते हुए नीचे लिखा था, मैं इसका समर्थन करता हूं।

हफ्ते का एसएमएस

ए क्यूश्चन टू आल हसबैंड्स एंड वाइफ्स, विच डे इज नाट वीमेंस डे। सभी पतियों और पत्नियों से एक सवाल, कौन सा दिन महिलाओं का नहीं रहता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सब इंस्पेक्टरों की भरती के लिए पांच बोर्ड बनाने का प्रस्ताव था, मगर गृह विभाग की मंजूरी मिलने के पहले पीएचक्यू का सिंगल बोर्ड ने ही इंटरव्यू लेना क्यों चालू कर दिया?
2. केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत के रमन सरकार के खिलाफ आक्रमक होने से सरकार से ज्यादा कांग्रेस में क्यों बेचैनी है?

शनिवार, 2 मार्च 2013

तरकश, 3 मार्च

कुर्सी का खेल

आईपीएल हो और उसमें खेल की कोशिश न हो, यह भला हो सकता है। आईपीएल का ऐलान होते ही नेताओं से जुड़े कई सप्लायरों के लार टपकने शुरू हो गए थे। खास कर कुर्सी सप्लाई के लिए। कुर्सी सप्लाई बोले तो माल चोखा। 50,000 कुर्सी में एक पर, गिरे हालत में 200 रुपए भी बचा, तो एक करोड़ अंदर। फिलहाल, आरटीआई एक्टिविस्ट यह जानने के लिए एक्टिव हो गए हैं कि 1200 रुपए में कुर्सी का टेंडर हुआ है, उसमें किस नेता की कितनी चली है और कितना अंदर होगा। वजह, नागपुर स्टेडियम में बीसीसीआई ने पिछले साल 450 रुपए में कुर्सी लगवाई है। नागपुर स्टेडियम बीसीसीआई का है और वह हल्की चीज तो खरीदेगा नहीं। फिर, साल में दो-एक मैच वहां होते ही हैं। और यहां 1200, तो आरटीआई वालों का माथा ठनकना स्वाभाविक है।   

बुरे फंसे

रेलवे एसपी केसी अग्रवाल के सामने, मिलकर भी ना मिलने वाली स्थिति निर्मित हो गई है। दरअसल, सरकार ने पिछले दिनों आईपीएस की मेजर सर्जरी की थी, उसमें उन्हें मुंगेली का एसपी बनाया गया था। मगर पोस्टिंग के समय चूक हो गई। मुंगेली उनका गृह जिला है, इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। वे उसी जिले के पथरिया के रहने वाले हैं। सो, चुनाव आयोग उन्हें छोड़ेगा नहीं। अब, अग्रवाल ने सरकार से आग्रह किया है कि उन्हें दूसरा कोई जिला दे दिया जाए। और सरकार के सामने असमंजस यह है कि जिन 18 जिलों के एसपी बदले गए थे, उनमें से सभी ज्वाईन कर लिए हैं। अब, अग्रवाल को कहां एडजस्ट किया जाए, कठिन प्रश्न हो गया है। इस चक्कर में पखवाड़े भर से मुंगेली जिला भी खाली है। वहां के एसपी कोटवानी रिलीव होकर चले गए हैं। अब खबर आ रही है, मुंगेली में अब नया एसपी पोस्ट किया जाएगा और संभवतः अग्रवाल को रेलवे एसपी यथावत रखा जाए।

पुअर पारफारमेंस

चुनावी साल होने की वजह से बजट सत्र में अबकी कांगे्रस से अग्रेसिव पारफारमेंस की उम्मीद की जा रही थी। मगर दिख उल्टा रहा है। आठ दिन की कार्रवाइयों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जब विपक्ष, सरकार को बगले झांकने पर मजबूर किया हो। कुछ गंभीर मुद्दे भी आए, तो आक्रमण करने वाला दस्ता सदन से नदारत था। राज्य बनने के 12 साल में गुरूवार को पहली बार लोगों ने देखा, गृह विभाग की अनुदान पर चर्चा ढाई घंटे में सिमट गई। सत्ता पक्ष की ओर सीएम और मंत्रियों को मिलाकर 24 सदस्य थे, वहीं विपक्ष के मात्र आठ। नेता प्रतिपक्ष से लेकर नंदकुमार पटेल, अजीत जोगी जैसे सभी गैर हाजिर। ऐसे में संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कटाक्ष करने का मौका मिल गया, गृह विभाग का काम इतना बढि़यां चल रहा है कि पहले इस पर आठ-आठ घंटा चर्चा होती थी, इस बार ढाई घंटे में ही गृह मंत्री की बोलने की बारी आ गई। आश्चर्य तो तब हुआ, जब राज्यपाल के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष के भाषण के समय सदन में एक चैथाई से भी कम सदस्य बच गए थे। कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है।

मौजा-ही-मौजा

विधानसभा के समय अधिकांश अफसरों के मजे हो जाते हैं। साब, भले ही बंगले में आराम फरमा रहे हों, आफिस में जवाब मिलेगा, विधानसभा गए हैं। मगर इस बार, तो मत पूछिए, मंत्रालय के नया रायपुर में शिफ्थ होने के बाद, मौजा-ही-मौजा है। एक तो विपक्ष के तेवर अबकी हमलावर नहीं हैं, इसलिए बेफिक्री है। उपर से, 10 मिनट के लिए भी विधानसभा आए तो उसके बाद 30 किलोमीटर बियाबान में क्यों जाना, अफसर घर का रुख कर ले रहे हैं। बुधवार को दो-तीन बड़े अफसर ही मंत्रालय में थे। बाकी, बताया गया विधानसभा। स्तंभकार ने मंत्रालय से विधानसभा का रुख किया, तो वहां चार-पांच अफसर ही दिखे। बाकी आप समझ जाइये।

एसएमएस का असर

राज्य सरकार ने पिछले साल 108 एंबूलेंस योजना चालू की थी, तब एक एसएमएस खूब फारवर्ड हुआ था। यमराज, यमदूत से पूछता है, आजकल मौतंे क्यों नहीं हो रही है, यमदूत कहता है, क्या करें सरकार, हमारे पहुंचने से पहले 108 पहुंच जाता है। इस एसएमएस की थीम पर जनसंपर्क विभाग ने एक लधु फिल्म बनवाया है, जो काफी अपील कर रहा है। इसमें सड़क हादसा होने पर यमदूत मौके पर पहंुचता है, उससे पहले 108 पहंुच जाता है। निराश होकर लौटते वक्त यमदूत दूसरे वाहन से खुद जख्मी हो जाता है और उसे अस्पताल ले जाने के लिए 108 पहुंच जाता है। और वह थैंक्स 108 बोलता है। इसे देखकर होठों पर मुस्कुराहट तैर जाती है।

पहली बार

वैसे तो सूबे के कई नौकरशाहों ने किताबें लिखी है मगर फायनेंस सिकरेट्री आरएस विश्वकर्मा की हाल में आई प्रशासनिक संवदेनशीलता, किताब हीट हो गई है। रोचक और सहज शैली की वजह से किताब खूब पढ़ी जा रही है। इसमें उन्होंने अपने अनुभवों को बांटा है। और बताया है कि विपरीत हालात और विभिन्न हस्तक्षेपों के बावजूद अफसर चाहे, तो जनहित के काम किए जा सकते हंै। किताब की खासियत है, घटना से लेकर पात्र तक वास्तविक है। जब वे बस्तर के कमिश्नर थे, तो एक डेम में ईई की गड़बड़ी उन्होंने पकड़ी थी और और जेल जाने के भय से ईई ने अपने जेब से 16 लाख रुपए का डेम कैसे बनाया, जैसी कई घटनाआंे का विवरण है और साथ में सलाह भी। जबलपुर ननि कमिश्नर रहने के दौरान उन पर बम फेंका गया, इसके बाद भी वे पीछे नहीं हटे। अपना इगो छोड़ते हुए उन अफसरों को यह किताब पढ़ना चाहिए, जिनमें सिर्फ और सिर्फ लाल-हरे कागज के प्रति संवेदनशीलता बच गई है।   

हफ्ते का एसएमएस

एक आदमी ने फिश पकड़ी। घर आया तो देखा न गैस है, न आयल, न अनाज, न सब्जी। आदमी वापिस जाकर फिश को नदी में फेंक आया। फिश चिल्लाई, कांग्रेस पार्टी जिंदाबाद, जिंदाबाज।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    आईपीएल के लिए स्टेडियम तैयार करने का बजट सरकार ने पीडल्लूडी के बजाए खेल विभाग को क्यों दिया गया, जबकि, स्टेडियम पीडब्लूडी के अंतर्गत आता है?
2.    किस मंत्री को रमन भक्त हनुमान कहा जाता है?