शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

अंधेर नगरी, खटराल अफसर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 23 अक्टूबर 2022

छत्तीसगढ़ के मेडिकल एजुकेशन में एक से बढ़कर एक कारनामे हुए हैं...चाहे डीएमई की बेटी के अपात्र होने के बाद भी एमबीबीएस में सलेक्शन का मामला हो या पूर्व स्वास्थ्य मंत्री की 12वीं फेल बेटी का पीएमटी में चुने जाने का। मगर अभी जो हुआ है...गजबे है। वर्ल्ड में ऐसा नहीं हुआ होगा....नीट पीजी के लिए जिस अभ्यर्थी को मेरिट लिस्ट में सौंवे नम्बर पर होना चाहिए था, वह टॉपर बन गया। दरअसल, एमबीबीएस के बाद तीन साल ग्रामीण इलाकों में सेवा देने वाले अभ्यर्थियों को नीट पीजी में 30 फीसदी बोनस अंक मिलते हैं। जिसे टॉपर बनाया गया है, उसे पीजी में कुल 291 अंक मिले। 30 फीसदी के हिसाब से उसे 87 बोनस मार्क्स मिलने थे। याने 291 और 87 मिलाकर 378 अंक। मगर डीएमई के खटराल अफसरों ने 291 में 87 जोड़ने की बजाए 378 जोड़ दिया। इस वजह से उसके 669 अंक हो गए और वह टॉपर बन गया। और डीएमई अधिकारियों की हेकड़ी देखिए, परिजनों को धमका रहे...हाई कोर्ट जाइये। ठीक भी है, उन्हें पता है कि मंत्री, अफसर वही करेंगे, जो वे कहेंगे।

अंधेर नगरी, खटराल अफसर-2

भले ही पीएमटी की जगह नीट परीक्षा हो गई। मगर छत्तीसगढ़ के डीएमई आफिस के रैकेट में शामिल लोग लिस्ट को उपर नीचे करके आज भी दो-तीन केस सेटल कर लेते हैं। पीजी की एक सीट भी मैनेज हो गई, तो समझिए दो से ढाई खोखा का इंतजाम हो गया। इसी तरह एमबीबीएस में भी। अब इससे समझ सकते हैं कि नीट यूजी की काउंसलिंग प्रारंभ हो गई है मगर अभी तक स्टेट मेरिट लिस्ट का अता-पता नहीं है। कोई कितना भी रसूखदार क्यों न हो, डीएमई आफिस के वाचाल अधिकारी बातों में घूमा फिराकर, इतना डिमरालाइज कर देंगे हैं कि आदमी किस्मत को कोसते घर लौट जाता है। उपर कांप्लेन करो तो कोई सुनवाई नहीं। वैसे भी, उपर वालों का अपना कोई विजन होता नहीं और न ही नियम कायदों को पढ़ना चाहते। डीएमई आफिस वाले जो पट्टी पढ़ा दें, वहीं भाषा वो भी बोलने लगते हैं। पिछले साल सरकार से लेकर राजभवन तक शिकायतें हुईं, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। अब प्रसन्ना आर सिकरेट्री हेल्थ हैं। सिस्टम को ठीक करने वे लगातार दौरे कर रहे हैं। देखना है कि डीएमई आफिस के धुरंधर खिलाड़ियों को वे ठीक कर पाते हैं या दीगर सिकरेट्री की तरह वे भी आंख मूंद लेंगे?

पहली बार नॉन आईएएस

समीर विश्नोई की गिरफ्तारी के बाद सरकार ने भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी मनोज सोनी को मार्कफेड का एमडी अपाइंट किया है। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब किसी आईटीएस अधिकारी को मार्कफेड की कमान सौंपी गई हो। इससे पहले हमेशा आईएएस एमडी रहे हैं। इनमें सीके खेतान, सुब्रत साहू से लेकर सुबोध सिंह जैसे आईएएस मार्कफेड में पोस्टेड रहे हैं। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार मध्यप्रदेश के दौरान मार्कफेड के एडिशनल एमडी रहे। इस तरह देखा जाए तो आईटीएस सर्विस के लिए अहम उपलब्धि है। छत्तीसगढ़ में इस तरह की पोस्टिंग के लिए चर्चित रहे आईएफएस अधिकारियों को भी मार्कफेड में एमडी रहने का अवसर नहीं मिला। बता दें, मार्कफेड का सलाना कारोबार करीब 22 हजार करोड़ का है। धान खरीदी के साथ ही किसानों को फर्टिलाईजर सप्लाई का काम भी मार्कफेड संभालता है। अलबत्ता, मनोज सोनी की पोस्टिंग के पीछे एक वजह यह हो सकती है कि मनोज सोनी फूड में स्पेशल सिकरेट्री हैं। मार्कफेड फूड में तो नहीं आता सहकारिता विभाग में आता है। मगर धान खरीदी की एजेंसी मार्कफेड है। याने धान खरीदी खाद्य विभाग के तहत होती है। सोनी फूड में स्पेशल सिकरेट्री रहेंगे और मार्कफेड एमडी भी। याने वर्मा और सोनी की जोड़ी अबकी धान खरीदेगी। वैसे वर्मा पिछले साल भी धान खरीदी के समय सिकरेट्री थे। इसलिए, सरकार ने फूड डिपार्टमेंट की टीम पर भरोसा किया।

30 सितंबर का मतलब

कैलेंडर की तावारीख भले ही बदल गई...आज 23 अक्टूबर हो गया है। मगर मंत्रालय के विभागों का कैलेंडर 30 सितंबर पर अटक गया है। इस पंक्ति को पढ़कर आप भी सोच में पड़ गए होंगे, तारीख की कैसे ठहर जाएगी। हम आपको इसका मर्म बताते हैं। दरअसल, कैबिनेट ने 30 सितंबर तक के लिए ट्रांसफर पर से बैन हटाया था। याने 30 सितंबर के बाद ट्रांसफर नहीं होंगे। चूकि, सूबे में बैक डेट से ट्रांसफर करने की एक परंपरा की बन गई है। पिछली सरकार में भी ये हुई और अभी बदस्तूर जारी है। सो, भले ही आधा से अधिक अक्टूबर गुजर गया मगर मंत्री से लेकर सचिव, अवर सचिव अभी 30 सितंबर के डेट में अटके हुए हैं। ट्रांसफर के जितने आदेश जारी हो रहे, सभी 30 सितंबर के डेट से। सबसे अधिक दिक्कत मीडिया वालों की हो रही है। एक विभाग में चार-चार, पांच-पांच आदेश निकल रहे और सभी 30 के डेट से। ऐसे में समझ में नहीं आता कि कौन आदेश नया है और कौन पुराना।

दिवाली खराब!

ईडी के छापों ने मंत्रियों और अधिकारियों की दिवाली खराब कर दिया। खासकर नौकरशाहों की वीबियां बड़ी दुखी हैं...दिवाली की बेसब्री से प्रतीक्षा रहती थी। मगर इस बार इस बार ईडी के अधिकारियों ने उम्मीदों पर कई घड़ा पानी उड़ेल दिया। जाहिर है, मुख्य तौर पर ठेकेदार और सप्लायर ही महंगे गिफ्ट देते हैं और वे अबकी ईडी की खौफ से सामान्य डिब्बे से काम चला लिए...क्या पता किसके गेट पर ईडी की रेकी चल रही हो...इसलिए गोल्ड वगैरह का रिस्क नहीं लिया। वैसे, कुछ नौकरषाहों ने ठेकेदारों को पहले से चेता दिया था कि राजधानी में ईडी है, इधर फटकना नहीं।

विदेशी शराब

11 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में एक साथ तीन आईएएस अफसरों के यहां ईडी के छापे की खबर बाहर आते ही ब्यूरोक्रेसी में खलबली मच गई। नौकरशाहों को इस खबर ने और हिला दिया कि राजधानी के देवेंद्र नगर आफिसर्स कालोनी में ईडी घुस गई है। बता दें, राज्य बनने के बाद ये पहला मौका है जहां सबसे सेफ समझे जाने वाले देवेंद्र नगर में किसी जांच एजेंसी की टीम घुसी होगी। इस कालोनी में चीफ सिकरेट्री से लेकर आला आईएएस, आईपीएस रहते हैं। दो-तीन आईएएस अफसर बाहर अपना घर होने के बाद भी इसीलिए देवेंद्र नगर में सरकारी मकान ले लिया था कि वहां सब कुछ ठीक रहेगा। मगर ये मिथक टूट गई। बताते हैं, छापे की खबर वायरल होते ही नौकरशाही में अफरातफरी मच गई। कोई सूटकेस बाहर भेजने लगा तो एक अफसर ने महंगे फर्नीचर को घर से हटवा दिया। खासकर, जिन अधिकारियों के घरों में छापे पड़े, उनके पड़ोसी लोग रात भर सो नहीं पाए...नींद में भी लगता रहा ईडी दरवाजा नॉक कर रही है। सूबे के एक पुलिस कप्तान विदेशी शराब के बड़े शौकीन हैं। बंगले में बीयर बार बनवा रखे हैं। छापे की खबर मिलते ही नजदीकी थानेदार को बुलवाकर पूरा अलमारी खाली कर दिए...थानेदार पूछा, सर इसका क्या करना है...साहब भड़क गए...जल्दी दफा हो जा यहां से, सवाल बाद में करना। अब थानेदार परेशान है...ईडी अभी गई नहीं है...सिपाही जब लपेटे में आ सकता है तो फिर मेरा कुछ हुआ तो कौन देखेगा।

त्राहि माम

आईएफएस संजय शुक्ला जब से हेड ऑफ फॉरेस्ट बने हैं, तब से वन विभाग के कामकाज में चमत्कारिक परिवर्तन आ गया है। संजय खुद दस बजे आफिस में बैठ जाते हैं...शाम को जाने का कोई टाईम नहीं। मॉनिटरिंग इतनी तगड़ी कि डीएफओ से लेकर सीसीएफ तक सकते में हैं। दरअसल, ऐसी वर्किंग कभी रही नहीं। रिजल्ट के बारे में कोई बात नहीं करता था। मगर अब टास्क मिला तो उसका रिजल्ट भी बताना पड़ रहा। उसका भी टाईम बाउंड। उपर से हार्ड स्पोकेन। जाहिर है, अफसरों को इससे परेशानी तो होगी ही।

अच्छी खबर

ईडी छापों के बीच देश के सबसे अधिक नक्सली हिंसा प्रभावित बस्तर से एक अच्छी खबर है...38 बरस बाद वहां ऐसे दुगर्म और धुर नक्सल प्रभावित इलाके में थाना खुल गया है, जिसकी घोषणा मध्यप्रदेश के समय की गई थी। दरअसल, मध्यप्रदेश सरकार ने 1984 में ने बस्तर जिले के कोहकामेटा में थाना खोलने का ऐलान किया था। मगर नक्सलियों का इस कदर वहां खौफ कि अमल नहीं हो पाया। इस दौरान बस्तर से कांकेर जिला अलग हुआ फिर नारायणपुर। कोहकामेटा अब नारायणपुर में आता है। नक्सलियों के बैकफुट पर जाने के बाद पुलिस ने वहां थाना खोल दिया है। यही नहीं, आदर्श थाने का अवार्ड भी मिल गया। एसपी कांफ्रेंस में नक्सली मामलों पर पुलिस महकमे को मुख्यमंत्री से एप्रीसियेशन मिला, उसमें कोहेमकोटा थाना भी शामिल था। जाहिर है, इससे डीजीपी अशोक जुनेजा, एडीजी नक्सल विवेकानंद और नारायणपुर एसपी सदानंद का नम्बर तो बढ़ा होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1 ईडी के छापे भले ही नहीं पड़ा मगर किस जिले के पुलिस कप्तान दो दिन तक घर में तांत्रिक को बुलाकर अनुष्ठान कराते रहे?

2. किस जिले के कलेक्टर की नजरों के चलते महिला कर्मचारी उनके आफिस में जाने से कतरा रही हैं?



शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

जब कलेक्टर, एसपी सकपकाए...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 9 अक्टूबर 2022

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ बातें इस अंदाज में कह दी कि अफसर सकपका गए। उन्होंने कलेक्टर-एसपी की तरफ मुखातिब होते हुए कहा कि अवार्ड लेना, मीडिया में लाइमलाइट लेना, सोशल मीडिया में बने रहने से ज़्यादा ज़रूरी है बेसिक एडमिनिस्ट्रेशन और बेसिक पोलिसिंग पर ध्यान देना। उन्होंने कहा...देखिए, प्रशंसा सबको अच्छी लगती है लेकिन आपका काम ये नहीं है कि अवार्ड बटोरकर सोशल मीडिया में वाहवाही लूटें। सीएम के इतना बोलते ही कई अधिकारी बग़ले झांकने लगे। दरअसल, सूबे के कुछ कलेक्टर एसपी को अवार्ड और सोशल मीडिया का ऐसा रोग लगा है कि वह दूर होने का नाम नहीं ले रहा। सीएम के बोलने के अंदाज से लगा इसको लेकर वे काफी नाराज हैं और अफसर न चेते तो कार्रवाई भी हो सकती है।

सीएम के तेवर

कलेक्टर-एसपी की क्लास में सीएम के तेवर शुरू से कड़े रहे। आलम यह रहा कि उनके सवालों के आगे पुलिस का होमवर्क लड़खड़ा गया। पुलिस ने आंकड़ों के जरिये उन्हें बतानी की कोशिश की...सूबे में अपराध काबू में है। इस पर सीएम ने नाखुशी जताते हुए कहा, अपराध कम हैं तो मीडिया, सोशल मीडिया अपराधों की खबरों से क्यों पटी रहती है। पुलिस ने शराब पीकर गाड़ी चलाने से एक फीसदी मौत बताया गया और 85 फीसदी लापरवाहीपूर्वक वाहन चलाने से। इस पर सीएम ने पूछा, ये लापरवाही क्या होती है, इसे ब्रीफ कीजिए। चाकूबाजी की बढ़ती घटनाओं पर मुख्यमंत्री खिन्न थे। उन्होंने कहा, आपलोग चाकू चलाने वाले को पकड़ते हो मगर चाकुओं की सप्लाई लाईन को काटने की कोशिश क्यों नहीं करते। अगर आमेजन और फ्लीपकॉर्ट से चाकू आ रहा, तो कार्रवाई कीजिए। सीएम ने रायपुर में एक लड़की ने चाकू से एक युवक की जान ले ली थी, इसका भी जिक्र करते हुए पूछा, लड़की ने कौन सी गोली खाई थी। अफसरों ने बताया, नाईट्रो-10। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस गोली की सप्लाई को रोकी क्यों नहीं जा रही। भिलाई में नौ घंटे तक चक्का जाम होने पर भी सीएम ने चिंता जताई तो बिलासपुर में बढ़ते अपराधों को भी रोकने के निर्देश दिए। नक्सल मोर्चे पर पुलिस की कार्रवाई से सीएम जरूर संतुष्ट लगे। कुल मिलाकर ये साफ हो गया कि सीएम अपडेटेड हैं। सीएम के आज के तेवर ने कलेक्टरों की बैचेनी बढ़ा दी है। कल सुबह से कलेक्टरों की क्लास होनी है। इसमें कलेक्टरों के साथ सभी विभागों के सिकरेट्री भी मौजूद रहेंगे।

बेचारे एसपी!

एसपी कांफ्रेंस में रायपुर, कोरबा और सुकमा के एसपी को बेस्ट पोलिसिंग का अवार्ड मिला। जाहिर है, ये उनका सम्मान है और वे खुश होंगे। मगर बाकी कप्तानों को कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद अपने जिले के लिए निकलना पड़ गया। दरअसल, ऐसे किसी आयोजन में दूरस्थ जिलों के अधिकारियों की कोशिश रहती है, इसी बहाने परिवार के साथ दो-एक दिन रायपुर में रह लेंगे। लेकिन, ईद के चलते ऐसा संभव नहीं था। डीजीपी का आदेश था...देर रात तक सभी कप्तान अपने जिला मुख्यालय पहुंच जाएं। सो, कई एसपी सर्किट हाउस से सीधे रवानगी डाल दिए।

कांग्रेस को नुकसान!

बिलासपुर में सत्ताधारी पार्टी के पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष ने चार अक्टूबर को सुसाइड कर लिया। इस मामले में कांग्रेस से जुड़े भूमाफियाओं की तरफ उंगलिया उठ रही है। परिजनों ने खुलकर आरोप लगाया कि उनकी जमीन हड़पने कुछ कांग्रेस नेताओं की नजरें गड़़ी थी। काफी दिनों से उन्हें धमकी-चमकी दी जा रही थी। वाकई अगर ऐसा है तो सरकार को संज्ञान लेना चाहिए। क्योंकि, बिलासपुर में भूमाफियाओं का आतंक दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस के अधिकांश नेता जमीन के काम में लिप्त हैं और सबका एक ही मोटो है गरीबों, बेसहारा लोगों की जमीन का पता लगाओ और फिर धौंस देकर उसे औने-पौने रेट में उसे अपने नाम करा लो। कांग्रेस के पुराने नेता दबी जुबां से मान रहे हैं कि कांग्रेस को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। भूपेश बघेल की बदौलत 20 साल बाद बिलासपुर की सीट कांग्रेस के खाते में आई थी। लेकिन, इसके बाद से जो शुरू हुआ, उसके बाद अमर अग्रवाल का ग्राफ बिना कुछ किए बढ़ता जा रहा है।

चुनावी राजनीति

मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा का राजनीति से कभी वास्ता नहीं रहा। मगर जब से उन्हें सरयूपारी ब्राम्हण समाज का संरक्षक बनाया गया है, तब से उनके सक्रिय राजनीति में आने की अटकलें तेज हो गई है। दावा करने वाले तो उनके बिलासपुर जिले की बेलतरा सीट से प्रत्याशी तक घोशित कर डाले हैं। दरअसल, बेलतरा ब्राम्हण बहुल क्षेत्र है। मध्यप्रदेश के समय वहां से लंबे समय तक कांग्रेस के विधायक रहे। मगर कांग्रेस की गुटीय लड़ाई और टिकिट वितरण में गड़बड़ियों के कारण कांग्रेस वहां से कई साल से चुनाव हार रही है। प्रदीप के नाम की चर्चाएं यकबयक शुरू होने के पीछे एक वजह यह भी है, बेलतरा विधानसभा इलाके के रावण दहन कार्यक्रम मे प्रदीप को गेस्ट बनाया गया। इन अटकलों से सबसे ज्यादा परेशान बेलतरा से टिकिट के दावेदार हैं। हालांकि, प्रदीप चुनावी राजनीति में आएंगे, इस पर संशय है। मगर बेलतरा के दावेदारों में डर तो बैठ गया है।

2016 बैच कंप्लीट

30 सितंबर को सरकार ने कुछ कलेक्टरों को चेंज किया। इनमें 2016 बैच के आईएएस रवि मित्तल को जशपुर और विनय कुमार लंगेह को कोरिया का कलेक्टर बनाया गया है। इसके साथ ही 2016 बैच कलेक्टरी में कंप्लीट हो गया है। इस बैच के राहुल देव को पहले ही कलेक्टर बनाया जा चुका है। बहरहाल, अब 2017 बैच के आईएएस अधिकारियों की धड़कनें तेज हो गई होगी...उनका नम्बर कब आता है। दरअसल, कलेक्टर बनना किसी भी आईएएस के लिए बड़ा क्रेजी होता है। 2017 बैच में आकाश छिकारा, चंद्रकांत वर्मा, कुणाल दुदावत, मयंक चतुर्वेदी और रोहित व्यास को मिलाकर पांच आईएएस हैं। इस बैच की खास बात यह है कि तीन आईएएस नगर निगम कमिश्नर हैं। मयंक पहले से रायपुर में और कुणाल तथा रोहित अभी-अभी बिलासपुर, भिलाई के कमिश्नर बने हैं। अफसरों के अभी तक के परफारमेंस के हिसाब से देखें तो ये अच्छा बैच हैं। देखना है, कलेक्टरी में इस बैच का खाता कब खुलता है।

सबसे कम कलेक्टरी

छत्तीसगढ़ में सबसे कम समय की कलेक्टरी में गौरव सिंह का नाम दूसरी बार दर्ज हो गया। गौरव पहले मुंगेली से चार महीने में चेंज किए गए तो बालोद में उनका कार्यकाल मुश्किल से तीन महीने रहा। उनसे पहिले विलास भोस्कर संदीपन और अभिजीत सिंह भी छह महीने के भीतर रायपुर बुला लिए गए थे। हालांकि, संदीपन बाद में बेमेतरा गए और करीब साल भर कलेक्टरी करके लौटे। वैसे, गौरव भी सूरजपुर में करीब डेढ़ साल रहे। लेकिन, उसके बाद पता नही ग्रह-नक्षत्र उनका साथ देना बंद कर दिया।

इकलौता कलेक्टर

छत्तीसगढ़ में इस वक्त कोई ऐसा कलेक्टर नहीं है, जो एक साल से अधिक समय से पिच पर जमा हुआ हो। सिवाय धमतरी कलेक्टर पदुम सिंह एल्मा के। एल्मा डेढ़ साल से धमतरी में पोस्टेड हैं। उनके अलावा छत्तीसगढ़ में जितने भी कलेक्टर हैं, उनका छह महीने, आठ महीने से ज्यादा नहीं हुआ है। जून में निकली लिस्ट में साल भर वाले सभी कलेक्टरों को बदल दिया गया था। वैसे भी, इस सरकार में एक जिले में दो साल की कलेक्टरी वाले आईएएस कम ही हैं। डॉ0 एस. भारतीदासन रायपुर, भीम सिंह रायगढ़, सारांश मित्तर बिलासपुर, संजीव झा अंबिकापुर, दीपक सोनी दंतेवाड़ा, रजत बंसल जगदलपुर करीब-करीब दो साल का कार्यकाल रहा है। वैसे, पंजाब, बिहार, यूपी में भी यही ट्रेंड है...ज्यादा-से-ज्यादा साल भर।

एसपी की लिस्ट!

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस से पहले एसपी की एक छोटी लिस्ट निकली थी मगर अब सुनने में आ रहा कांफ्रेंस के बाद एक लिस्ट और निकल सकती है। इनमें तीन-चार बड़े जिले भी शामिल हैं। कहने वाले तो ये भी कह रहे कि प्रशांत अग्रवाल रायपुर से एक बार फिर बिलासपुर जाएंगे तो पारुल माथुर बिलासपुर से राजधानी आएंगी। दुर्ग एसपी अभिषेक पल्लव को कोई दूसरा जिला मिल सकता है। हालांकि, अभी ये चर्चाओं में है। पुख्ता कुछ नहीं।

विष और अमृत

बीजेपी का दो दिन का गंगरेल मंथन चर्चा में है। बंद कमरे में हुई चर्चा पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तंज कसा तो खुद भाजपा के नेता भी मजे लेने में पीछे नहीं है। पार्टी के भीतर ही चुटकी ले रहे कि मंथन में अमृत के साथ विष भी निकलता है....अमृत पीना सभी चाह रहे लेकिन, विष पान करने कोई आगे नहीं आ रहा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूबे में पुलिस का इकबाल कम होने के पीछे मंत्री, विधायक और नेता जिम्मेदार नहीं हैं?

2. कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बाद क्या कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट और निकलेगी?



शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

नौकरशाहों का गोल्फ प्रेम

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 2 अक्टूबर 2022

सूबे में 6 अक्टूबर से छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन किया जा रहा है। इसमें कबड्डी और गिल्ली डंडा जैसे 14 परंपरागत खेलों को शामिल किया गया है। वैसे भी, लोकल चीजों को बढ़ावा देने सरकार काफी दिलचस्पी दिखा रही है। अलबत्ता, छत्तीसगढ़ में अभिजात्य वर्ग के गोल्फ जैसे खेल भी अब जोर पकड़ रहा है। खासकर, नौकरशाहों और अधिकारियों के बीच। दरअसल, अफसरों के पास न वर्कलोड है और न कोई बोलने वाला...सो आजकल मौका मिलते ही नया रायपुर के मेफेयर रिर्जाट की ओर गड्डी निकल पड़ती है। शनिवार, रविवार को तो घंटों बीतता है गोल्फ में। वैसे भी नया-नया कोई खेल आदमी सिखता तो है, उसके प्रति दीवानगी कुछ ज्यादा होती है। गोल्फ तो वैसे भी स्टे्टस सिंबल वाला खेल है। बताते हैं, खाने-पीने और घूमने के शौकीन कुछ आईएफएस अधिकारियों ने अफसरों में गोल्फ का शौक जगाया और अब ये अधिकारी बिरादरी में फैलने लगा है।

प्रशासनिक कमजोरी?

यूं तो राज्यों में अफसरशाही हावी होने के आरोप लगते रहते हैं... मगर छत्तीसगढ़ में इससे कुछ अलग हो रहा...नौकरशाही तो नियंत्रण में है मगर कामकाज के मामले में ढाक के तीन पात वाला मामला है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात में निकले तो रायगढ़ में उन्हें सड़कों की दुर्दशा की जानकारी मिली। उन्होंने दूसरे ही दिन ईएनसी की छुट्टी कर दी। अब सवाल उठता है, हर काम मुख्यमंत्री करेंगे तो फिर सिस्टम का क्या मतलब? ये वाकई चिंता की बात है। सबसे दुर्भाग्यजनक बात ये है कि अधिकारियों में आंखों की हया और खौफ खतम होते जा रहा है...बिना किसी लिहाज एक सूत्रीय काम काम चल रहा है। मध्यप्रदेश के समय देखते थे कि अफसर पैसा भी कमाते थे और काम भी करते थे। छत्तीसगढ़ में भी दो-तीन ऐसे आईएएस रहे हैं, जो खुद स्वीकार करते थे कि हां! हम पैसा कमाते हैं। लेकिन, काम इतना तगड़ा कि पूछिए मत! फिलवक्त दिक्कत यह है कि अफसर एक काम तो बखूबी कर रहे हैं, मगर दूसरा नहीं। 

पोस्ट रिटारमेंट पोस्टिंग

हेड ऑफ फॉरेस्ट के तौर पर तीन साल सात महीने की सबसे लंबी की पारी खेलकर राकेश चतुर्वेदी कल शाम पेवेलियन लौट आए। अब उनके पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता है। हालांकि, इसके पहले पौल्यूशन बोर्ड के चेयरमैन के लिए उनका नाम चला था। उस समय उनका कार्यकाल करीब छह महीने बाकी था। तब खबर थी....पीसीसीएफ से वीआरएस लेकर वे पौल्यूशन बोर्ड जाएंगे। मगर बाद में ये परवान नहीं चढ़ सका। अब चूकि राकेश रिटायर हो गए हैं, सो पौल्यूशन बोर्ड में पोस्ट रिटायरमेंट की चर्चा एक बार फिर तेज है। अब देखना है, चर्चा सही निकलेगी है या फिर उन्हें कहीं और पोस्टिंग मिलेगी।

बदलाव की बयार

फॉरेस्ट के बाहर वालों को शायद नहीं मालूम होगा कि अधिकांश आईएफएस नहीं चाहते थे कि संजय शुक्ला को हेड ऑफ फारेस्ट की कमान मिले। दरअसल, संजय काम करने में हार्ड हैं तो बोलने और टोकने में भी कोई मरौव्वत नहीं करते। खुद 12 घंटे की सीटिंग करते हैं और रिजल्ट की नियमित मानिटरिंग। जाहिर है, उन्होंने लघु वनोपज को कहां-से-कहां पहुंचा दिया। उनसे पहले राकेश चतुर्वेदी भी फॉरेस्ट में काफी काम किए मगर उनका अंदाज अलग था। साफ्ट स्पोकेन...यायावर मिजाज।

समधी का सवाल

हेड ऑफ फॉरेस्ट संजय शुक्ला नई पोस्टिंग के साथ ही लघु वनोपज संघ के एमडी भी रहेंगे। उनसे पहले और कई पीसीसीएफ के पास ये जिम्मेदारी रही। संजय ने चूकि संघ में काफी काम किया है...72 हजार लोगों के लिए रोजगार क्रियेट हुआ। इसलिए उन्हें वहां कंटीन्यू करना समझा जा सकता है। लेकिन, इसके साथ एक बात और...संजय के समधी जयसिंह महस्के भी आईएफएस अधिकारी हैं। महस्के की बेटी संजय शुक्ला के घर गई है। फिलहाल वे एडिशनल पीसीसीएफ। सरकार ने हाल ही में उन्हें पीसीसीएफ का स्केल दिया है। महस्के का इसी महीने रिटायरमेंट है। अगर पोस्ट नहीं होगा तो महस्के को बिना पीसीसीएफ बने ही रिटायर होना पड़ेगा।

बीजेपी का मंथन और सवाल

भाजपा में चेहरे तो बदल गए मगर विपक्ष में वो आग नजर नहीं आ रहा, जो जोगी सरकार के समय 2003 में दिखा था। लखीराम अग्रवाल, रमन सिंह और दिलीप सिंह जूदेव का चेहरा, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल की आक्रमकता। 2003 की जंगी प्रदर्शन। तब जाकर भाजपा पारफर्म कर पाई थी। अभी की बात करें...पार्टी ने जो चेहरे पेश किए हैं, उसके बारे में टिप्पणी करना जल्दीबाजी होगी। क्योंकि, अभी समय अभी ज्यादा नहीं हुआ है। फिर भी कुछ नाम तो ऐसे हैं, जिनका कोई मतलब नहीं। संभाग प्रभारियों में एकाध को छोड़ दें तो वे पार्षद का चुनाव नहीं निकाल सकते। अब देखना है, विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में 6 अक्टूबर को बीजेपी नेता गंगरेल में जुटेंगे। इसमें कोर ग्रुप के अलावा, प्रदेश के तीनों महामंत्रियों और संभाग प्रभारियों को बुलाया गया है। देखते हैं, इसमें क्या निकलता है।

कलेक्टरों का नुकसान

डीएमएफ से स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं में खरीदी पर रोक लगाकर भूपेश सरकार ने कलेक्टरों और सप्लायरों को बड़ा नुकसान कर दिया। डीएमएफ का 70 फीसदी से ज्यादा खेल इन्हीं दो विभागों में हो रहा था। 18 सितंबर के तरकश में इसको लेकर हमने कलेक्टर-सप्लायर भाई- भाई शीर्षक से लिखा था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रजिस्ट्री अधिकारियों को चमका धमकाकर कलेक्टर रात में जमीनों की रजिस्ट्री क्यों करवा रहे हैं?

2. जीएडी के किस बाबू की नाराजगी की वजह से सीके खेतान के रिटायरमेंट के सवा साल बाद भी उनका पेंशन, जीपीएफ क्लियर नहीं हो रहा?