शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

ब्यूरोक्रेसी में हलचल

17 सितंबर

एनएमडीसी के चेयरमैन बनने के बाद आईएएस एसोसियेशन ने जिस अंदाज में बैजेंद्र कुमार को ग्रेंड फेयरवेल दिया, उससे ऐसा मैसेज गया.... बैजेंद्र अब हमेशा के लिए जा रहे हैं.....आखिर, डेपुटेशन पर तो हर साल एक-दो अफसर जाते ही हैं....बिदाई कहां होती है। वैसे, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा भी शुरू हो गई थी....बैजेंद्र अब शायद ही लौटे। लेकिन, सीएम ने नपे-तुले एक लाईन में नौकरशाही में हलचल मचा दी। सीएम ने बिदाई भाषण में कहा, बैजेंद्र जैसे अफसर का हम फिर स्वागत करना चाहेंगे। इससे पहिले बैजेंद्र बोले, छत्तीसगढ़ लौटकर उन्हें प्रसन्नता होगी। बैजेंद्र का जुलाई 2020 में रिटायरमेंट है। याने लगभग तीन साल। टाईम कम है, इसलिए अटकलें शुरू हो गई थी। लेकिन, सीएम ने साफ कर दिया है, बैजेंद्र के लिए चांस खतम नहीं हुआ है। अब बैजेंद्र लौटते हैं या नहीं.....ये तो वक्त बताएगा। मगर चीफ सिकरेट्री के दावेदारों को डाक्टर साब की ये बात अच्छी नहीं लगी होगी....ये तो जाहिर है।

जीएसटी और अमर 

जीएसटी से आम व्यापारी हलाकान हैं.....सरकार को कोस रहे हैं। लेकिन, यही जीएसटी एक मंत्री के प्रोफाइल को कहां से कहां पहुंचा दिया। बात कर रहे हैं, इंडस्ट्री मिनिस्टर अमर अग्रवाल की। भारत सरकार ने उन्हें जीएसटी की समस्याओं का समाधान करने वाली सुप्रीम कमेटी का सदस्य बनाया है, जिसमें देश से सिर्फ पांच लोग हैं। यूपी, मध्यप्रदेश जैसे सूबों से एक भी नहीं। यही नहीं, केंद्र में दूसरे नम्बर के कद्दावर मंत्री अरुण जेटली के क्लोज होने का मौका मिला, सो अलग। वो भी ऐसे वक्त में, जब रमन सिंह के मंत्री एक के बाद एक विवादों में घिरते जा रहे हैं, अमर का बढ़ता कद....खबर तो बनती ही है।

फुटबॉल की तरह

मंत्रालय में आईएफएस अफसर आशीष भट्ट की हालत फुटबॉल की तरह हो गई है। तब से और, जब सरकार ने जूनियर आईएएस को विभाग प्रमुख बनाना शुरू किया है। भट्ट 1984 बैच के आईएफएस हैं। इस साल के शुरू में वे ट्राईबल सिकरेट्री थे। 2003 बैच की आईएएस रीना बाबा कंगाले जब ट्राईबल में आई तो सरकार को उन्हें एनर्जी में शिफ्थ करना पड़ा। वहां सीनियर आईएएस बैजेंद्र कुमार थे, इसलिए चल गए। बैजेंद्र के जाने 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ परदेशी एनर्जी सिकरेट्री बनें तो भट्ट को अब हायर एजुकेशन में भेजा गया है। पता नहीं, नवंबर में होने वाले फेरबदल में अब उन्हें कौन से विभाग टिकाया जाएगा।

एसपी के लिए सिरदर्द

छत्तीसगढ़ में एक तो पीएससी से थोक में डीएसपी अपाइंट होते जा रहे हैं। उपर से तुष्टिकरण के लिए सरकार 72 और स्पेशल डीएसपी नियुक्त करने जा रही है। डीएसपी की बढ़ती संख्या एसपी के लिए पहले से ही सिरदर्द बन गई है। आलम यह है कि जिन छोटे जिलों में मुश्किल से दो-तीन डीएसपी होते थे, अब पांच-पांच, छह-छह हो गए हैं। न उन्हें बिठाने की जगह है और न ही गाड़ी की व्यवस्था। अब और 72 को झेलना पड़ेगा।

मैडम ये क्या...?

राज्य महिला आयोग की चेयरमैन हर्षिता पाण्डेय का पिछले हफ्ते बर्थडे था। जलसा भी अच्छा हुआ....जाहिर है, अगले साल चुनाव है।  लेकिन, इंटरेस्टिंग यह रहा कि हर्षिता को जो भी बुके देता, बुदबुदाते हुए पूछता मैम ये क्या....इतना वजन कैसे कम कर लिया.....। लोगों के सवालों से लगा जैसे हर्षिता वजन कम करने की पार्टी दे रही हैं। दरअसल, उन्होंने दो महीने में 16 किलो वजन कम किया है। ऐसे में, लोगों की उत्सुकता स्वाभाविक है....वजन को लेकर कौर कंसस नहीं है।

साय की हैसियत

नंदकुमार साय का दर्जा भले ही केंद्रीय मंत्री का है। मगर बिलासपुर के छत्तीसगढ़ भवन के अटेंडर ने उनके कद को ऐसा नापा कि पूछिए मत! साय कल पहुंचे छत्तीसगढ़ भवन तो उन्हें दो नम्बर का कमरा दिया गया। साय ने पूछा, एक नम्बर क्यों नहीं? तो जवाब मिला, वो मंत्रियों के लिए है। सायजी के पीए ने बताया, साब केंद्रीय मंत्री लेवल के हैं। अटेंडर बोल, हमलोग लेवल वाले को मंत्री नहीं मानते। प्रोटाकॉल वाले साब ने कहा है, सिर्फ मंत्रियों के लिए खुलेगा एक नम्बर कमरा।  

रामदयाल के पीछे

आदिवासी सीएम पर कांग्रेस के ट्राईबल लीडर्स के एक होते सूर पीसीसी नेताओं के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है। सबसे पहिले पाली-तानाखार के विधायक रामदयाल उईके ने मोर्चा संभाला। मनोज मंडावी और कवासी लकमा ने हां में हां मिला दिया। चार बार के विधायक उईके इतने अग्रेसिव हो गए हैं कि प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया की बंद कमरे में समझाइस पर भी नहीं रुके। दो दिन बाद फिर आदिवासी सीएम पर उनकी मुखरता सामने आ गई। पीसीसी नेताओं को ये तो मालूम है कि उईके बेहद महत्वकांक्षी हैं पर उनमें इतना कांफिडेंस कहां से आ गया....इसको लेकर हैरान हैं। पार्टी के लोग इस पता करने में जुट गए हैं....उईको को चाबी कहां से ऐंठी जा रही है।          

अत में दो सवाल आपसे

1. आदिवासी सीएम की मांग पर कांग्रेस विधायक रामदयाल उईके को सबसे पहिले बीजेपी के किस सीनियर ट्राईबल लीडर ने फोन कर बधाई दी?
2. मंत्रालय में गृह मंत्री की रिव्यू मीटिंग में अफसरों ने ऐसा क्या बताया कि मंत्रीजी बगले झांकने लगे?

 

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

त्रिफला का नया ब्रांड

10 सितंबर

त्रिफला का नया ब्रांड


पीएल पुनिया के छत्तीसगढ़ दौरे में सबसे हिट रहा त्रिफला का नया ब्रांड। नए में चरणदास महंत, रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर शामिल हैं। तीनों ने कांग्रेस भवन में नए त्रिफला को लांच करते हुए बकायदा फोटो भी खिंचवाई। नया वाला त्रिफला कई मायने में पुराने से जुदा है। सबसे पहले 2012 में त्रिफला सामने आया था। उसमें प्योर संगठन के लोग थे.....तत्कालीन पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष। नए में दोनों गायब हैं। लिहाजा, भूपेश बघेल को सर्तक हो जाना चाहिए.....त्रिफला उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, संगठन खेमा कम थोड़े ही हैं। त्रिफला का असर कम करने के लिए अगले दिन पुनिया से मिलाने कवर्धा से योगेश्वर राज सिंह को बुलवा लिया। योगेश्वर और अकबर के रिश्ते कैसे हैं, बताने की जरूरत नहीं। अब अकबर को तय करना है, त्रिफला का हिस्सा रहे या फिर अगले चुनाव के लिए टिकिट सुनिश्चित करें।

कांग्रेस का चौथा विकेट


कांग्रेस विधायक रामदयाल उईके के आदिवासी सीएम पर बागी बोल ने पार्टी को उलझन में डाल दिया है। पहली बार सीएम पद को लेकर कोई आदिवासी विधायक ने तीखे तेवर दिखाए हैं। कांग्र्रेस की चिंता इसलिए भी बढ़ गई है कि जोगी कांग्रेस बनने के बाद उसके तीन विधायक पहले ही छिटक चुके हैं। अमित जोगी के अलावा सियाराम कौशिक और आरके राय। अब उईके जिस तरह की भाषा बोल रहें हैं, उससे पार्टी के नेताओं को खटका हो रहा है....उईके कहीं पुराने गुरू की शरण में तो नहीं जा रहे हैं। यही वजह है, पीएल पुनिया ने उईके को तलब कर बंद कमरे में उनसे चर्चा की।  

बिना प्रभार के मंत्री


भैयालाल राजवाड़े, महेश गागड़ा और दयालदास बघेल को मंत्री बने करीब दो साल होने जा रहे हैं। लेकिन, अब तक उन्हें किसी जिले का प्रभार नहीं मिला है। जबकि, कुछ मंत्रियों के पास दो-दो, तीन-तीन जिले का चार्ज है। पार्टी सुप्रीमो अमित शाह ने छत्तीसगढ़ दौरे में जब प्रभारी मंत्रियों को रात बिताने का फरमान जारी किया था तो भैयालाल राजवाड़े ने सीएम के सामने दुखड़ा रोया था....भाई साब! हम तीनों के पास जिला नहीं है। तब सीएम ने कहा था, बहुत जल्द उन्हें जिला मिल जाएगा। लेकिन, तीनों मंत्रियों का इंतजार खतम नहीं हो रहा।


कमजोर हुई आईएएस लॉबी?


बैजेंद्र कुमार के रिलीव होने के बाद ब्यूरोक्रेसी में माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की आईएएस लॉबी कमजोर होगी। एसीएस बनने के बाद बैजेंद्र ने 2014 में आईएएस एसोसियेशन की कमान संभाली थी। इसके बाद एसोसियेशन को उन्होंने चार्ज कर दिया था। हालांकि, साल के शुरूआत में उन्होंने एसोसियेशन की कमान छोड़ दी थी। अजय सिंह को नया अध्यक्ष बनाया गया। बावजूद इसके, एसोसियेशन बैजेंद्र पर निर्भर थी। जीएस मिश्रा-भूपेश बघेल एपीसोड में एसोसियेशन को जब सीएम से मुलाकात का टाईम नहीं मिल रहा था, तब भी बैजेंद्र कुमार का दरवाजा खटखटाया था अफसरों ने। सुनील कुजूर को एसीएस बनाने के लिए हल्ला बैजेंद्र ने ही किया था।
 

यूथ टीम

राज्य सचिवालय की जिम्मेदारी अब धीरे-धीरे यूथ टीम के हाथ में आती जा रही है। जिन विभागों को कभी दिग्गज अफसर संभालते थे, उन विभागों को अब स्पेशल सिकरेट्री देख रहे हैं। ताजा फेरबदल में 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी को पावर दिया गया है। इस विभाग को विवेक ढांड से लेकर अजय सिंह, अमन सिंह, बैजेंद्र कुमार जैसे अफसर संभाल चुके हैं। परदेशी अब स्पेशल सिकरेट्री के रूप में उर्जा विभाग के प्रमुख होंगे। वहीं, 2002 बैच के आईएएस डा0 कमलप्रीत को सरकार ने इंडस्ट्री का जिम्मा दिया है। कमलप्रीत भी अभी सिकरेट्री नहीं बनें हैं। इससे पहिले रीना बाबा कंगाले ट्राईबल, मुकेश बंसल एवियेशन, राजेश सुकुमार टोप्पो जनसंपर्क और आर संगीता जीएडी में आईएएस विंग संभाल रही हैं। ये सभी स्पेशल सिकरेट्री लेवल के अफसर हैं। जाहिर है, इससे सीनियर आफिसरों को पीड़ा तो हो रही होगी।   
फ्यूचर का सिनेरिया
बैजेंद्र कुमार के जाने के बाद जरूरी फेरबदल कर दिए गए। लेकिन, सत्ता के गलियारों में जिस तरह की खबरें निकल कर आ रही हैं, नवंबर में बड़े लेवल पर एक चेंजेस और होंगे। 30 नवंबर को एसीएस एमके राउत रिटायर होंगे। राउत का ग्रामीण और पंचायत विभाग आरपी मंडल को सौंपा जा सकता है। मंडल सरकार के फर्स्ट इनिंग में भी इस विभाग को संभाल चुके हैं। तब भी अजय चंद्राकर उनके मंत्री थे। और, अब भी होंगे। जाहिर है, समन्वय का कोई लफड़ा नहीं होगा। दोनों एक-दूसरे को बखूबी जानते हैं। मंडल के पंचायत में जाने के बाद उनका फारेस्ट और लेबर चित्तरंजन खेतान को मिल सकता है। इस बीच सरकार के साथ खेतान के तालमेल का सेतु मजबूत़ हो जाए, तो ऐसा भी हो सकता है कि नवंबर में उन्हें कोई और अहम विभाग मिल जाए।  
समय की मार
नॉन घोटाले में आईएफएस कौशलेंद्र सिंह बाल-बाल बच गए थे। मगर नान के दूसरे मामले में वे आरोपी बन गए। उन्होंने नियम-कायदों की परवाह किए बिना प्रमोशन दे दिया था। सिस्टम उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करता नहीं। मगर कानून ने उनकी गर्दन पकड़ ली। अदालत के निर्देश पर ईओडब्लू ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया है। आपको याद होगा, एसीबी ने जब फारेस्ट अफसरों के यहां ताबड़तोड़ छापा मारा था, तब मंत्री महेश गागड़ा विरोध दर्ज कराने सीएम हाउस पहुंच गए थे। तब इसके पीछे कौशलेंद का ब्रेन माना गया था। अब उसी ईओडब्लू में कौशलेंद्र को चक्कर लगाना पड़ेगा। इसे ही कहते हैं समय की मार।
हफ्ते का व्हाट्सऐप
एमएसजी-मुझे माफ कर दीजिए जब साब!
जज-ठीक है, मगर तुम्हें खुद की मुवी दो बार देखनी होगी।
एमएसजी-ठीक है, जज साब। मुझे तुरंत फांसी दे दीजिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. पुरस्कार को लेकर एक ही बैच के दो आईएएस में खटास पैदा हो गई है....दोनों के नाम बताइये? 
2. सिकरेट्री लेवल के अफसर संजय शुक्ला को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का डायरेक्टर क्यों बना दिया गया?

बुधवार, 6 सितंबर 2017

मैदान खाली…

3 सितंबर

संजय दीक्षित
एन बैजेंद्र कुमार के एनएमडीसी के चेयरमैन बनने से छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक समीकरण बदल गए हैं। 83 बैच के आईएएस अजय सिंह का चीफ सिकरेट्री बनने का रास्ता साफ समझिए। मौजूदा सीएस विवेक ढांड अगर मार्च में रिटायर होंगे तो एक अप्रैल को अजय सिंह सीएस बन जाएंगे। या कहीं, सरकार ने अगर ढांड को केंद्र से एक्सटेंशन दिला दिया तो ताजपोशी कुछ आगे-पीछे खिसक सकती है। वैसे, छह महीने एक्सटेंशन के प्रावधान हैं। चुनावी साल में कम-से-कम तीनेक महीने का एक्सटेंशन मिल ही सकता है। वैसे, रास्ता को 87 बैच के लिए क्लियर हो गया है। इस बैच में तीन आईएएस हैं। बीबीआर सुब्रमण्यिम, सीके खेतान और आरपी मंडल। एनके असवाल के रिटायर होने से सिर्फ एक पोस्ट खाली था। दावेदार थे तीन। अब नवंबर में एसीएस एमके राउत रिटायर हो जाएंगे। बैजेंद्र एनएमडीसी जा रहे हैं। याने अब तीनों एसीएस बन जाएंगे। यही नहीं, ढांड के रिटायर होने के बाद अब पीएस केडीपी राव भी अगले साल एसीएस प्रमोट हो जाएंगे। वरना, राव के लिए खतरा था।

बुलेट स्पीड

बैजेंद्र कुमार की एनएमडीसी में पोस्टिंग की चकरी 31 अगस्त को इतनी तेजी से घूमी कि राज्य सरकार से एनओसी लेकर भारत सरकार ने महज चार घंटे में नोटशीट क्लियर कर दी। दोपहर 12 बजे कैबिनेट सिकरेट्री ने सीएस को फोन करके बैजेंद्र के नाम पर सहमति मांगी और चार बजे नोटशीट पर प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर कर दिया। और, रात आठ बजे आदेश भी जारी हो गया। बैजेंद्र ने देर रात कहीं लिखा भी…इट जस्ट हैपेन्ड इन बुलेट स्पीड….मे बी इट इज गॉड्स विश! बिन मांगे 80 हजार करोड़ की नवरत्न कंपनी मिल गई तो ईश्वर का शुक्रगुजार तो रहना ही चाहिए। वैसे भी, भारत सरकार ने जिन 15 आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग दी, उस लिस्ट पर आप अगर गौर करें तो सबसे दमदार पोस्टिंग बैजेंद्र की ही होगी।

मौके पर न्याय

मानवाधिकार संगठन भले ही इस पर कोहराम मचा सकते हैं। लेकिन, इस मौके पर न्याय की इन दिनों खूब चर्चा है। माजरा दुर्ग का है….एडिशनल एसपी अजाक्स का रीडर बेहद सामान्य मामले को खतम करने के लिए दो लाख का डिमांड किया था। इसकी जानकारी एक आईपीएस को हो गई। उन्होंने आव देखा, न ताव, पहुंच गए एडिशनल एसपी के दफ्तर। पकड़ लिया रंगे हाथ रीडर को। इसके बाद रीडर की तो लात-घूसों से ऐसी सोटाई की, पूछिए मत! जी नहीं भरा तो पास खड़े पुलिस वाले से डंडा भी ले लिया। मीडिया वालों ने पूछा, साब आपको जांच कराना चाहिए था। आईपीएस ने जवाब भी उसी अंदाज में दिया….जेब में पैसा नहीं मिलता तो जांच कराता….पैसा बरामद होने के बाद जांच काहे का। जनाब कोरबा में भी पुलिस वालों की खूब ठुकाई की थी। आलम यह हुआ कि ट्रांसफर के बाद पुलिस वाले बजरंग बलि को लड्डू चढ़ाए थे। लेकिन, जरा बचके…. पवनदेव ने भी बिलासपुर में पुलिस वालों की खूब निलंबन और बर्खास्तगी की थी। जाल बिछाकर पवनदेव को पुलिस वालों ने ही ठिकाने लगा दिया।

निगरानी…. आईपीएस

अभी तक आपने निगरानीशुदा बदमाश सुना होगा….निगरानीशुदा आईपीएस नहीं। लेकिन, छत्तीसगढ़ में एक निगरानी आईपीएस हैं। दरअसल, आईपीएस की रिव्यू कमेटी ने तीन अफसरों के नाम भारत सरकार को भेजा था। इनमें से दो की भारत सरकार ने छुट्टी कर दी। एएम जुरी और केसी अग्रवाल को। मगर एडीजी महोदय को इस नोटिंग के साथ बख्श दिया….फिलहाल, पुलिस महकमा इन पर निगरानी रखें। अब, एडीजी पर नजर कौन रखेगा? बराबर या नीचे के अफसर तो नहीं ना। जाहिर तौर पर, डीजीपी को एडीजी की निगरानी करनी पड़ रही होगी। लेकिन, क्लास यह है कि जिस रिव्यू कमेटी ने एडीजी को निकाल बाहर करने की अनुशंसा की थी, डीजीपी भी उसके हिस्सा थे। याने उनकी कमिटी पहिले ही रिकमांड कर चुकी हैं…..एडीजी गड़बड़ है….निकाला जाए। तो अब वे निगरानी क्या करेंगे। लेकिन, मिनिस्ट्री आफ होम का आर्डर को क्या किया जा सकता है।

नई पोस्टिंग

बैजेंद्र कुमार के एनएमडीसी चेयरमैन बनने के घटनाक्रम के बाद प्रिंसिपल सिकरेट्री चित्तरंजन खेतान को ठीक-ठाक पोस्टिंग की संभवनाएं बढ़ गई है। भारत सरकार से लौटने के बाद सरकार ने उन्हें प्रशासन अकादमी का डीजी पोस्ट किया था। जाहिर है, बैजेंद्र के पास सीएम सचिवालय के साथ उर्जा और उद्योग विभाग था। ये दोनों विभाग पीएस अमन सिंह और सिकरेट्री सुबोध सिंह संभाल चुके हैं। मगर अब दोनों के पास इतना वर्क लोड है कि फिर से इन विभागों को चलाना उनके लिए संभव नहीं होगा। इसमें दो बातें सामने आ रही है। या तो दो महीने के लिए टेम्पोरेरी तौर पर अमन और सुबोध को इन विभागों को सरकार सौंप दें। और, नवंबर में होने वाले मेगा फेरबदल में विभागों का पुनर्गठन किया जाए। या फिर, किसी स्पेशल सिकरेट्री को उर्जा और सीएम सचिवालय के लिए पोस्ट किया जाए। अगर ऐसा हुआ तो साफ-सुथरी छबि के सिद्धार्थ कोमल परदेशी को सरकार मंत्रालय बुला सकती है। परदेशी कवर्धा और राजनांदगांव के कलेक्टर रह चुके हैं। जाहिर है, सरकार के लिए वे टेस्टेड अफसर होंगे। लेकिन, ये सिर्फ अटकलें हैं।

गो माता कहां हो?

गायों को लेकर कांग्रेस की सियासत तो सफल रही मगर इसके लिए उन्हें रायपुर में कितने पापड़ बेलने पड़े पूछिए मत! असल में, कांग्रेस को लगा था कि गाये ंतो यूं ही रोड चलते मिल जाएंगी….पकड़ लेंगे। मगर हुआ ऐसा कि नगर निगम के अमले ने सुबह चार बजे से ही सड़क पर छुट्टा घूमने वाली गायों को उठाना चालू कर दिया था। सात बजते तक सारी गायें गायब थीं। पार्टी ने गायों के लिए महापौर को लगाया। दिलचस्प दृश्य था….मेयर और उनकी टीम गायों के लिए मशक्कत कर रही थीं और निगम कर्मी गायों को गायब कर रहे थे। ले देकर लाखे नगर चौक पर कुछ गायें मिलीं तो पकड़ लाए। कांग्रेस को अफसोस इसलिए भी रहा कि पुलिस के चलते प्रदर्शन भी आधा-अधूरा रहा, उपर से गायों के चारा-चोकर पर भी जेब से हजारों रुपए निकल गए। चलिये, गायों को लेकर ऐसे प्रदर्शन होते रहने चाहिए….उन्हें सड़कों पर कागज और झिल्ली की बजाए एकाध दिन चारा-चोकर खाने को मिल जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विभाग बदलने की आशंका से किन दो मंत्रियों की रात की नींद उड़ी हुई है?
2. किस महिला कलेक्टर ने एक कंपनी से तीन लाख रुपए महीना फिक्स करवा लिया है?  

शनिवार, 2 सितंबर 2017

सीएम का जन्मदिन गिफ्ट


27 अगस्त
संजय दीक्षित
क्रवार को सीएम डा0 रमन सिंह राजधानी के आंबेडकर हास्पिटल में डायबिटिक पीड़ित बच्चों को डायबिटिक किट बांटने पहुंचे थे। एक बच्ची किट लेने के बाद कुछ कदम चलकर पीछे पल्टी….सीएम से बोली, सर, आज मेरा बर्थडे है….डायबिटिक पीड़ित बच्ची….खुद बता रही है…मेरा जन्मदिन है….कुछ क्षण के लिए माहौल भावमय हो गया….सीएम भी ठिठके….क्या दें। जेब की ओर हाथ गया….लेकिन, पाकिट में वे पैसा रखते नहीं। फिर, ध्यान आया उपर की जेब में पेन तो है। झट से उन्होंने पार्कर पेन निकाल कर बच्ची के हाथ में दे दिया….लो तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट।

विदेश…ना बाबा

मंत्री अमर अग्रवाल ने जर्मनी जाने का प्लान स्थगित कर दिया है। मंत्री के साथ अफसरों की टीम जाने वाली थी…..स्पेशल सिकरेट्री अरबन रोहित यादव, डायरेक्टर इंडस्ट्री अलरमेल मंगई, एमडी सीएसआईडीसी सुनील मिश्रा। इन्हें कांफ्रेंस में हिस्सा लेने 18 सितंबर को जर्मनी रवाना था। बताते हैं, अमर अग्रवाल ने कल सुनील मिश्रा को बोलकर जीएडी से फाइल वापस मंगा ली। अमर चतुर पालीटिशियन हैं….जानते हैं, एक मंत्री के विदेश घूमने पर किरकिरी हो रही है…विधायकों का विदेश दौरा निरस्त हो गया है। सूखे से किसानों में मचे हाहाकार के बीच विदेश जाने का मैसेज अच्छा नहीं जाएगा।
संवैधानिक संकटराज्य सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल के शपथ में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। सूचना आयोग के नार्म के मुताबिक राज्यपाल मुख्य सूचना आयुक्त को शपथ दिलाते हैं और मुख्य सूचना आयुक्त फिर सूचना आयुक्त को। लेकिन, छत्तीसगढ़ सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद पिछले डेढ़ साल से खाली है। सरमियस मिंज अप्रैल 2016 में रिटायर हुए थे। इसके बाद से मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी खाली पड़ी है। खाली क्यों रखी गई है, सरकार बता सकती है। फिलहाल लाख टके का सवाल अशोक अग्रवाल को शपथ कौन दिलाएगा….सूचना आयोग के अफसर किताबें खंगाल रहे हैं।

13 साल से एक ही व्यक्ति

राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल आंबेडकर चिकित्सालय में चार बच्चों की मौत हो गई। मौत की वजह को लेकर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है। मगर एक सवाल मौजूं है….एक ही व्यक्ति पिछले 13 साल से क्यों? हम बात कर रहे हैं, डा0 विवेक चौधरी की। आंबेडकर के सुपरिटेंडेंट। 2004 से इस पोस्ट पर बैठे हैं। चौधरी जब अस्पताल की कमान संभाले थे…उसी समय आरपी मंडल रायपुर के कलेक्टर पोस्ट हुए थे। मंडल के बाद आठ कलेक्टर बदल चुके हैं। लेकिन, आंबेडकर का अधीक्षक नहीं बदला। हम चौधरी की काबिलियत पर सवाल नहीं कर रहे हैं। वे कैंसर के एक्सपर्ट बताए जाते हैं। लेकिन, प्रशासन का अपना नार्म होता है। एक ही पद पर लंबे समय तक काबिज रहने पर जाहिर है, प्रशासन में जड़ता आ जाती है। पिछले तीन-चार साल मेंं आंबेडकर की घटनाएं विचलित कर रही है। सरकार और उसके हेल्थ मिनिस्टर को इस पर सोचना चाहिए।

गृह विभाग ने फंसवाया

एक झटके में 47 पुलिस वालों को फोर्सली रिटायर कर गृह विभाग ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। वजह है, सूची में 35 से अधिक पुलिस वालों का रिजर्व केटेगरी का होना। प्रदेश में वैसे ही आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ाने की कोशिश हो रही है….गृह विभाग ने उसे ईंधन-पानी मुहैया करा दिया। पता चला है, अफसरों ने सरकार को विश्वास में नहीं लिया। गृह विभाग ने डीजीपी एएन उपध्याय, डीजी नक्सल डीएम अवस्थी और गृह विभाग के उप सचिव डीके माथुर की कमेटी बनाई थी। कमेटी ने रिकमांड किया और गृह विभाग ने यह कहते हुए उसे मंत्री रामसेवक पैकरा से दस्तखत करा लिया कि मोदी आईएएस, आईपीएस की छुट्टी कर रहे हैं, इसे रोकना ठीक नहीं होगा। बताते हैं, मोदीजी का नाम सुनते ही गृह मंत्री ने चिड़िया बिठा दिया। जबकि, ऐसे फैसले सरकार की बिना सहमति के होते नहीं। और बात बहुत साफ है, सरकार की नोटिस में आती तो यह लिस्ट नहीं निकलती। क्योंकि, सरकारें राजनीतिक नफा-नुकसान को दृष्टिगत रखते हुए फैसले लेती हैं। वो भी जब विधानसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है। हालांकि, लिस्ट गलत नहीं है। सूरजपुर के एक टीआई कुकर्म करके फरार है। अंबिकापुर के एक टीआई को वहां के आईजी पहले ही बर्खास्त कर चुके हैं। हल्ला मचाने वाली एक महिला टीआई को सिर्फ बर्खास्त आईजी राजकुमार देवांगन ने ईमानदार अफसर बताते हुए सीआर में टॉप ग्रेड दिया है। उनके अलावा 17 आईपीएस अफसरों ने सीआर में सबसे खराब कोडिंग की है…ग और घ। उनमें से 14 एससी और एसटी केटेगरी के आईपीएस हैं। लेकिन, गृह विभाग के अफसरों को वोट बैंक की संवदेनशीलता तो समझना चाहिए।

सरकार का ब्रेक

47 इंस्पेक्टर्स, सब इंस्पेक्टर्स की छुट्टी करने के बाद गृह विभाग इतना उतावला था कि डीएसपी की छंटनी के लिए मीटिंग कर डाली। यही नहीं, पांच डीएसपी को रिटायर करने की अनुशंसा भी। लेकिन, इंस्पेक्टरों की छुट्टी पर चौतरफा हमले से घबराए सरकार ने फिलहाल इस पर ब्रेक लगा दिया है। सो, राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को घबराने की जरूरत नहीं है।

किस्मत हो तो….

आईएएस अशोक अग्रवाल की सूचना आयुक्त बनाने के बाद ब्युरोक्रेसी चकित है….सिरे से मान रहे हैं…किस्मत हो तो अशोक अग्रवाल जैसा। अधिकांश पोस्टिंग रायपुर में की। इसके बाद कोरबा, रायगढ़ और बाद में वीवीआईपी जिला राजनांदगांव की कलेक्टरी। फिर, रायपुर और दुर्ग का कमिश्नर। वहां से फिर आबकारी में ताजपोशी….आबकारी कमिश्नर का मतलब बताने की जरूरत नहीं है। और अब सूचना आयुक्त। पूरे पांच साल के लिए। वो भी अभी आबकारी से रिलीव नहीं होंगे। अभी लगेंगे दो-एक महीने। सरकार ने सिर्फ सूचना आयोग की सीट बुक की है। ऐसी किस्मत आखिर कितनों को मिलती है। डायरेक्ट आईएएस डीएस मिश्रा डेढ़ साल चक्कर काटने के बाद सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बन पाए हैं, जहां उन्हें बैठने के लिए कुर्सी-टेबल का बंदोबस्त करना होगा।

ननकीराम की याद

सरकार को पुराने मंत्री ननकीराम कंवर की बहुत याद आ रही है….वे हर साल बारिश के लिए यज्ञ कराते थे। इतेफाक कहें या….अकाल भी कभी नहीं पड़ा। मगर पिछले तीन साल से सूबे में बारिश कम होती जा रही है। इस साल तो इंतेहा हो गई….गंगरेल में मात्र 10 परसेंट पानी है। ऐसे में, रमन सिंह को ननकी की कमी खलना स्वाभाविक है।

आखिरी बात हौले से

अनाचारी बाबा राम रहीम को जेल भेजकर सिस्टम ने देश को कड़ा संदेश दिया है…अब लोगों में अंध श्रद्धा पैदा कर साम्राज्य चलाने और फतवा जारी करने वालों की अब खैर नहीं। हरियाण पंजाब में भले ही िंहंसा भड़क उठी, मगर अब बाबाओं और इमामों की सिट्टी-पिटी गुम हो गई है….बढ़ियां है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भारत सरकार ने गैर हिन्दी भाषी आईपीएस को रिव्यू कमेटी की सिफारिश के बाद भी क्यों नहीं हटाया?
2. भूपेश बघेल नेता प्रतिपक्ष बनेंगे और टीएस सिंहदेव पीसीसी चीफ…इसमें कोई सच्चाई है या विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही महज अफवाह?

विधवा गाड़ी और झंडा

20 अगस्त

संजय दीक्षित
गाड़ियों से बत्ती उतरने से न तो मंत्रियों को कोई फर्क पड़ा है और न ही आईपीएस अफसरों को। मंत्रियों के आगे सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियां दौड़ती हैं…..तो कैबिनेट और राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त बोर्ड और आयोगों के चेयरमैनों ने भी जोर-जुगाड़ लगाकर पायलेटिंग की व्यवस्था करा ली हैं। आईपीएस को दिक्कत इसलिए नहीं है कि उनकी गाड़ियों में पुलिस का झंडा के साथ ही उसमें स्टार लगे होते हैं…..एआईजी में एक, आईजी में दो और एडीजी, डीजी में तीन। झंका-मंका के लिए इतना काफी है। सबसे अधिक परेशानी आईएएस अफसरों को हो रही है। खासकर जो बोर्ड या आयोगों में पोस्टेड हैं…..उन्हें सीजी 02 नम्बर की जगह सीजी 04 नम्बर की वाहन मिलती हैं। वैसे भी, मंत्रालय के अधिकांश सीनियर अफसरों ने बोर्ड और आयोगों के मद से लग्जरी गाड़ियां ले रखी हैं। जाहिर है, वे सभी 04 नम्बर वाली हैं। पहले उसमें नीली बत्ती होती थी, तो पुलिस वाले सैल्यूट ठोकते थे। अब, तीस मार खां अफसर बगल से निकल जाते हैं, पुलिस वाले देखते तक नहीं। उपर से जगह-जगह रोक देते हैं। गाड़ियों के असमय विधवा हो जाने का नौकरशाहों का दर्द समझा जा सकता है। अलबत्ता, उन्हें पश्चिम बंगाल के आईएएस अफसरों से उम्मीद जगी है। वहां आईएएस एसोसियेशन ने सरकार से गाड़ियों में झंडा लगाने की अनुमति मांगी है। पश्चिम बंगाल में अगर झंडा लगाने की इजाजत मिल गई तो जाहिर है, छत्तीसगढ़ के आईएएस भी इसके लिए अवाज बुलंद करेंगे।

नारी सशक्तिकरण

स्कूल शिक्षा विभाग से संबंद्ध बोर्ड में पोस्टेड आल इंडिया सर्विसेज के एक अफसर मुश्किल में फंस गए हैं। उन्होंने हाल ही में एक लेडी स्टाफ का ट्रांसफर किया था। इसकी वजह थी, लेडी का शिक्षकों के साथ बुरा बर्ताव। इससे टीचर्स सड़क पर उतर आए थे। लिहाजा, लेडी को वहां से हटा दिया गया। लेकिन, उसे यह नागवार गुजर गया। उसने अफसर के खिलाफ यौन प्रताड़ना की शिकायत कर दी है। शिकायत मंत्री के यहां पहुंच गई है। अफसर की अब सिट्टी-पिटी गुम है। जाहिर है, यह मामला ही ऐसा है कि जो भी सुनेगा, कहेगा…. आग लगी होगी, तभी धुंआ उठा है।

जांच का संकट

सरकार ने आईएएस रेणु पिल्ले का बिलासपुर ट्रांसफर कर दिया है। पिल्ले के बिलासपुर जाने से इस बात का संकट खड़ा हो गया है कि बड़े अफसरों के खिलाफ अब सेक्सुअल ह्रासमेंट की जांच कौन करेगा। खासकर सिकरेट्री लेवल के आईएएस और आईजी, एडीजी स्तर के आईपीएस की। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार विशाखा कमेटी की चेयरमैन महिला होनी चाहिए….आरोपी अफसर से एक रैंक उपर। लेकिन, पीएचक्यू में डीआईजी लेवल से उपर कोई महिला नहीं हैं। तभी रेणु पिल्ले की मदद ली जाती है। सिकरेट्री लेवल पर भी यही प्राब्लम है। प्रिंसिपल सिकरेट्री स्तर पर रेणु पिल्ले अकेली आईएएस थीं। इनके उपर कोई महिला आईएएस है नहीं। इंदिरा मिश्रा 11 साल पहले रिटायर हुई थीं। इसके बाद महिला आईएएस में लंबा गैप हो गया। ऐसे में कोई सिकरेट्री फंसेगा तो….? हालांकि, आईएएस चतुराई से सब काम करते हैं…..फंसते हैं, आईपीएस। हाल-फिलहाल धमतरी की महिला और आईजी का मामला सामने है। अगर यह 180 डिग्री में टर्न ले लिया तो….फिर, खबर आ रही है…..एक एडीजी के भी जल्द कुछ खुलासे होने वाले हैं। प्रश्न उठता है, इसकी तहकीकात कौन करेगा?

बृजमोहन की मुश्किलें

कृषि एवं पशुपालन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जलकी जमीन विवाद अभी ठंडा ही हुआ था कि धमधा में बीजेपी नेता के गोशाले में ढाई सौ गायों की मौत हो गई। यहीं नहीं, गोशाला संचालक की क्रूरता ने तो पार्टी नेताओं को मुंह छुपाने को मजबूर कर दिया है। इसमें इम्पोर्टेंट यह है कि गोशाला संचालकों को पशुपालन विभाग ने आंख मूंदकर लाखों रुपए का अनुदान दिया था। अनुदान बांटने में दरियादिली क्यों दिखाई गई, जांच में इसका खुलासा होगा। बहरहाल, उन्होंने दो डिप्टी डायरेक्टरों समेत नौ वेटनरी डाक्टरों को सस्पेंड कर दिया है।

अजब-गजब

छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग के कारनामों के किस्से तो अनेक हैं। मगर इस बार जो हुआ है, वह सबको पीछे छोड़ दिया। बताते हैं, सत्ताधारी पार्टी के मंडल अध्यक्ष ने एक शिक्षक के ट्रांसफर का रिकमांडेशन किया था। मगर लिस्ट निकली तो विभाग के अफसरों ने शिक्षक की जगह मंडल अध्यक्ष का ही ट्रांसफर कर दिया। शिक्षकों ने मंडल अध्यक्ष को जब लिस्ट दिखाई तो कुछ देर के लिए वे शून्य से हो गए। पता चला है,  उन्हांने सीएम से इसका कांप्लेन किया है। शुक्र है, एजुकेशन डिपार्टमेंट ने मंडल अध्यक्ष का ही ट्रांसफर किया है। कहीं मंत्री, विधायक का ही ट्रांसफर कर दें, तो अचरज नहीं। क्योंकि, ट्रांसफर के लिए रिकमांड तो सभी करते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जलकी के बाद अब कौन-सा जमीन घोटाला उजागर होने वाला है, जिसमें बड़ी संख्या में ब्यूरोक्रेट्स एक्सपोज होंगे?
2. जिलों के प्रभारी मंत्रियों के पुनर्गठन की फाइल क्यों लटक गई है?