शनिवार, 31 दिसंबर 2016

नए प्लेयर पर दांव


1 जनवरी
संजय दीक्षित
भिलाई-चरौदा एवं सारंगढ़ चुनाव में सीनियर एवं अनुभवी की बजाए नए खिलाड़ियों पर दांव लगाना लगता है, कांग्रेस को महंगा पड़ गया। दिग्गज नेताओं को छोड़ कांग्रेस ने चरौदा में रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे और भिलाई के महापौर देवेंद्र यादव को चुनाव संचालक बनाया था। तो सारंगढ़ में स्व0 नंदकुमार पटेल के एमएलए बेटे उमेश यादव को। जबकि, सत्ताधारी पार्टी ने अपने दोनों सीनियर मंत्रियों को मैदान में उतारा था। चरौदा में बृजमोहन अग्रवाल और सारंगढ़ में अमर अग्रवाल। दोनों मंत्री पिछले दो दशक से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। जाहिर है, इलेक्शन मैनेजमेंट में इनका कोई जोर नहीं है। वहीं, प्रमोद दुबे और देवेंद्र यादव पहली बार बार कोई बड़ा चुनाव जीतकर मेयर बनें हैं। यही स्थिति उमेश पटेल के साथ रही। दोनों जगह शुरू से ही कांग्रेस का चुनाव अभियान बिखरा-बिखरा रहा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में बृजमोहन और अमर के मुकाबिले कोई नेता नहीं हैं। फिर भी कांग्रेस ने प्रमोद और देवेंद्र को आगे किया तो कुछ तो लोग कहेंगे ही। लोग कह रहे हैं कि प्रमोद और देवेंद्र पार्टी में तेजी से उभर रहे हैं, इसलिए उन्हें चरौदा में निबटाया गया है। चलिये, कांग्रेस हारी है तो उसे इस तरह की बातों को फेस करने ही पड़ेंगे।

अहम चुनाव

चरौदा और सारंगढ़ महज नगर निगम और नगर पालिक के चुनाव नहीं थे। बीजेपी के लिए इन दोनों स्थानीय चुनाव के बड़े मायने थे। खासकर प्रदेश सरकार के लिए। दरअसल, नोटबंदी के बाद देश में छोटे-छोटे से चुनावों पर पीएमओ नजर रख रहा है। चंडीगढ़ के बाद छत्तीसगढ़ में दो सीटों पर चुनाव थे। इसमें अगर बीजेपी शिकस्त खाती तो मैसेज जाता, नोटबंदी के चलते भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। तभी तो पीएमओ रिजल्ट की पल-पल की खबर ले रहा था। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी ट्विट कर जीत के लिए बधाई दी।

अंत बुरा

कांग्रेस के लिए 2016 का अंत अच्छा नहीं रहा। साल खतम होने के एक दिन पहले डबल झटका मिल गया। चुनाव में पार्टी चारों खाने चित तो हुई ही नोटबंदी के लिए छत्तीसगढ़ बंद कराया, वो भी बुरी कदर फ्लाप हो गया। दरअसल, बंद का डेट भी कांग्रेस ने ठीक से नहीं चुना। 30 दिसंबर के सुबह से बीजेपी के पक्ष में रूझान आने शुरू हो गए थे। इससे व्यापारियों में मैसेज गया कि नोटबंदी के बाद जनता सत्ताधारी पार्टी पर विश्वास जता रही है तो वे बंद करके सरकार को नाराज क्यों करें। कांग्रेस अगर एक दिन पहले बंद का आयोजन की होती तो 30 दिसंबर से तो अच्छी स्थिति होती। अब तो राजनीतिक पार्टियां बंद कराने से पहिले दस बार सोचेंगी।

राजीव और दिनेश

स्टेट पुलिस सेवा से आईपीएस बनें राजीव श्रीवास्तव रिकार्ड बनाकर आज रिटायर हो गए। देश के वे तीसरे आईपीएस होंगे, जो स्टेट पुलिस से डीजी तक पहुंचे। इससे पहिले सिक्किम और हरियाणा में एक-एक बार ऐसा हो चुका है। राजीव के जज्बे को एप्रीसियेट करना होगा, ताकतवर आईएएस लॉबी से जुझकर वे डीजी बनने में कामयाब हो गए। एक तरह कहें तो साल 2016 राजीव को वो दे गया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी। हालांकि, आईएएस में दिनेश श्रीवास्तव का 2016 अच्छा नहीं कहा जा सकता। राजीव की तरह श्रीवास्तव होने के बाद भी वे अपना प्रमोशन नहीं करा सकें। मार्च में उन्हें सिकरेट्री से ही बिदा लेना पड़ा।

बड़ा फेरबदल

राजीव श्रीवास्तव के रिटायर होने के बाद पुलिस मुख्यालय में एक अहम फेरबदल होना तय हो गया है। राजीव के पास सीआईडी था। सीआईडी के साथ डीजीपी कुछ और विभागों में बदलाव के लिए सोच रहे हैं। यही वजह है कि पीएचक्यू के अफसरों ने डीजीपी के आगे-पीछे होना तेज कर दिया है।

2 को डीपीसी

आईजी अरूणदेव गौतम, पवनदेव समेत 10 आईपीएस अफसरों की डीपीसी 2 जनवरी को होगी। इनकी डीपीसी राजीव श्रीवास्तव के साथ ही 16 दिसंबर को होनी थी। मगर कुछ अफसरों के एसीआर नहीं होने के कारण मामला आगे बढ़ गया था। डीपीसी के बाद गौतम और पवनदेव एडीजी प्रमोट हो जाएंगे।

कलेक्टरों की क्लास

नए साल के नए महीने में अबकी पहली बार सीएम कलेक्टर्स, एसपी की क्लास लेने जा रहे हैं। वरना, पिछले 13 साल से मई, जून में रमन सर की कलेक्टर्स, एसपी की क्लास लगती थी। वजह, चुनाव का समय नजदीक आते जा रहा है। कायदे से कहें तो सरकार के पास काम करने के लिए नौ महीने शेष हैं। चुनावी साल में काम-धाम होते नहीं। घोषणाएं ज्यादा होती है। फिर तीन महीना आचार संहिता। बचा 2017। इसमें तीन महीने बरसात ले जाएगा। बचे नौ महीने में राज्योत्सव, क्रिसमस, होली, दिवाली सब है। लिहाजा, सरकार अब ट्वेन्टी-ट्वेंटी के स्टाईल में बैटिंग करने की रणनीति बना रही है। इसलिए, कलेक्टर, एसपी को तलब किया जा रहा है। 9 जनवरी को सीएम कलेक्टर्स और जिला पंचायतों के सीईओ से जवाब-तबल करेंगे और अगले दिन 10 जनवरी को कलेक्टर्स एवं एसपी से।

ट्रांसफर अब अप्रैल में?

कलेक्टरों के ट्रांसफर अब और आगे जा सकता है। हो सकता है, अप्रैल न पहुंच जाए। पहले, दिसंबर में होना था। लेकिन, कैशलेस के चलते टल गया। सरकार ने कैशलेस के लिए कलेक्टरों को 31 दिसंबर का टारगेट दे दिया था। अब, कलेक्टर्स, एसपी कांफ्रेंस के चलते फिर इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि अब बजट सत्र के बाद तबादले किए जाएं। तब तक कई कलेक्टरों के दो साल पूरे हो जाएंगे। या जिनका कम है उनका कम से कम डेढ़ साल तो हो ही जाएंगे। कलेक्टरों की सूची अप्रैल में निकालने के पीछे सरकार की रणनीति यह भी होगी कि जिन कलेक्टरों को जिले में भेजा जाएं, चुनाव तक वे लगभग डेढ़ साल कंप्लीट करें। अभी पोस्टिंग का मतलब होगा, नवंबर 2018 तक लगभग दो साल होने को आ जाएगा। ऐसे में, चुनाव आयोग की तलवार उन पर लटकी रहेगी। डेढ़ साल होने पर चुनाव आयोग के राडार से कलेक्टर बच जाएंगे। अलबत्ता, 9 एवं 10 जनवरी को जिन एक-दो कलेक्टरों का परफारमेंस एकदम पुअर दिखेगा, उनकी सेम डे छुट्टी कर सकती है सरकार।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीजी बनने के बाद राजीव श्रीवास्तव को पोस्ट रिटायरमेंंट पोस्टिंग मिलेगी?
2. दुधमुंहा बच्चे होने के बाद भी आईएएस रानू साहू को सरकार ने अंबिकापुर क्यों ट्रांसफर कर दिया?

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

आ बैल मुझे मार

25 दिसंबर

संजय दीक्षित
पीडब्लूडी की मानिटरिंग सरकार कुछ दिनों से खुद कर रही है। मंथ में एक बार रिव्यू होता है। इसमें सीएम से लेकर उनके सचिवालय के आफिसर मौजूद रहते हैं….बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह, सुबोध सिंह, रजत कुमार याने सभी। अबकी 20 दिसंबर को मीटिंग में कुछ इंजीनियरों ने एक संवेदनशील विभाग को टारगेट कर दिया। खासकर सीएम ने जब रायपुर-बिलासपुर फोर लेन पर सवाल किया। इंजीनियर बोले, सर, वो फलां विभाग क्लियरेंस नहीं दे रहा….अधिकारी काम नहीं होने दे रहे हैं। बैठक में उस विभाग के सिकरेट्री भी मौजूद थे। और, मंत्री तो खुद सीएम हैं ही। सरकार को यह नागवार गुजरा। लगा, अपनी नाकामी छिपाने…..। सो, तीसरे दिन पीडब्लूडी का निजाम ही बदल दिया। सुबोध सिंह सिकरेट्री अपाइंट हो गए। और, सुबोध के सिकरेट्री होने का मतलब समझ सकते हैं। एक तरह से कहा जाए तो पीडब्लूडी इंजीनियरों के लिए आ बैल मुझे मार वाला हाल हो गया।

न्यू ईयर गिफ्ट!

पीसीसी चीफ भूपेश बघेल रमन सिंह और अजीत जोगी के रिश्ते पर सवाल उठाने से नहीं चूकते। आज छोटे जोगी ने भूपेश के साथ सीएम को जोड़ कर एक नया टाईप का आरोप लगाया। भूपेश के जमीन मामले में क्लीन चिट पर मीडिया ने पूछा तो अमित बोले, सरकार ने भूपेश को न्यू ईयर गिफ्ट दिया है….हमने सीएम से इसकी शिकायत की थी…..मगर उल्टा हो गया….भूपेश पर नजरे इनायत कर दी सरकार ने। याने अगले चुनाव तक अब चलेगा, रमन का तू दोस्त….नहीं, तू दोस्त। चलिये, गिफ्ट का दांव सटीक निकला।

राम-राम

फायनेंस सिकरेट्री अमित अग्रवाल से सरकार खुश नहीं थी। खासकर उनके एटीट्यूड से। आखिर, सबसे विवाद। सरकार कुछ करना चाह रही थी। मगर विकल्प मिल नहीं रहा था। ऐसे में, अमित ने दिल्ली लौटने की इच्छा जताई तो सीएम के रणनीतिकारों ने उनकी फाइल मंगाकर हरी झंडी दिलाने में देर नहीं लगाई। 22 दिसंबर को जैसे ही उनकी दिल्ली में पोस्टिंग का आर्डर निकला, सरकार ने उन्हें राम-राम कर अमिताभ जैन को नया पीएस फायनेंस बना दिया।

प्रमोशन लिफाफे में

प्रिंसिपल सिकरेट्री सुनील कुजूर के साथ उनके बैचमेट डा0 आलोक शुक्ला का भी एसीएस पद पर प्रमोशन हो गया है। मगर फिलहाल नान घोटाले में उनके खिलाफ मामला चल रहा है, इसलिए डिपार्टमेंट प्रमोशन कमेटी ने नियमानुसार उनके प्रमोशन के रिकमांडेशन को लिफाफे में बंद कर दिया। याने मामले से वे बरी होने पर उनके लिए अलग से डीपीसी की जरूरत नहीं होगी। वे एसीएस प्रमोट हो जाएंगे। जीएडी को सिर्फ दो लाइन का आर्डर निकालना होगा। हालांकि, 86 बैच के ही आईएएस अजयपाल सिंह का नाम डीपीसी में पुटअप नहीं हुआ। अजयपाल का एसीआर इतना गड्मगड है कि ब्यूरोक्रेट्स भी हैरान हैं कि वे पिं्रसिपल सिकरेट्री कैसे बन गए। अलबत्ता, नान घोटाले से पहिले आलोक शुक्ला का एसीआर आउट स्टैंडिंग था।

जो जीता, वो सिकंदर

आईपीएस राजीव श्रीवास्तव को स्पेशल डीजी बनाने को लेकर आईएएस लॉबी में ज्वार आया था, वह कल शाम ठंडा हो गया। सरकार ने सुनील कुजूर की डीपीसी कर एसीएस का आर्डर भी निकाल दिया। वरना, राजीव की डीपीसी के दिन 16 दिसंबर को मंत्रालय में विकट स्थिति निर्मित हो गई थी। आईएएस लॉबी ने प्रमोशन से संबंधित विभाग के अफसरों से यहां तक कह डाला कि आप लोगों को शर्म आनी चाहिए…..कुछ तो शर्म कीजिए आपलोग। हालांकि, आईएएस के लिए राजीव श्रीवास्तव कोई इश्यू नहीं थे। राजीव का किसी से वैर लेने का स्वभाव भी नहीं है। इश्यू था आईएएस का 86 बैच। 86 बैच पोस्ट होने के बाद भी प्रमोशन का बाट जोह रहा था। और, 87 बैच के आईपीएस के लिए कैबिनेट से स्पेशल पोस्ट स्वीकृत करा कर आनन-फानन में डीपीसी भी हो गई। यही आग में घी का काम किया। बहरहाल, आईएएस-आईपीएस के बीच कड़वाहट पैदा हुई, इसके लिए जीएडी को जिम्मेदार माना जा रहा है। सीएम से अल्टीमेटम मिलने से पहिले ही जीएडी अगर सुनील कुजूर का प्रमोशन करा दिया होता तो आक्वड सिचुएशन क्र्रियेट नहीं होता। इस चक्कर में राजीव श्रीवास्तव का मामला भी अटक गया। चलिये, जो जीता, वो सिकंदर।

डीई धारी कलेक्टर

देश में संभवतः यह पहला केस होगा, जिसमें डिपार्टमेंटल इंक्वायरी वाले आईएएस कलेक्टरी कर रहे हां। बात कर रहे हैं, सूरजपुर और नारायणपुर कलेक्टर की। सूरजपुर कलेक्टर जी चुरेंद्र के खिलाफ गरियाबंद में पोस्टिंग के दौरान एक मामला बना था। और, नारायणपुर कलेक्टर टामन िंसंह सोनवाने के खिलाफ जांजगीर में मनरेगा के केस में विभागीय जांच चल रही है। दोनों के खिलाफ कलेक्टर बनने के बाद जांच शुरू हुई है। लेकिन, जातीय समीकरणों के चलते सरकार ने फौरन कोई एक्शन लेना मुनासिब नहीं समझा। अब, कुछ दिनों में कलेक्टरों की लिस्ट निकलने वाली है, इसमें दोनों का नम्बर लगना तय माना जा रहा है।

लंबी लिस्ट

कलेक्टरों के फेरबदल लिस्ट में सूरजपुर, नारायणपुर, सुकमा, कांकेर, कवर्धा, महासमुंद, दुर्ग, बेमेतरा के नाम प्रमुख बताएं जा रहे हैं। इनमें से कुछ अपग्रेड किए जाएंगे तो कुछ को शंट। हालांकि, नए आईएएस को मौका देने के लिए सरकार 2004 बैच को क्लोज करना चाहती है। लेकिन, कुछ अफसरों के परफारमेंस को देखते उलझन की स्थिति है। इस बैच में अमित कटारिया, अंबलगन पी, अलरमेल डी मंगई कलेक्टर हैं। अंबलगन बिलासपुर को संयत ढंग से चला रहे हैं तो उनकी पत्नी मंगई रायगढ़ में उनसे भी आगे हैं। अंबलगन का वैसे भी सवा साल ही हुआ है। वैसे, काम के मामले में दुर्ग कलेक्टर संगीत पी का भी रिपोर्ट कार्ड बढियां बता रही है सरकार। मगर उनका ढाई साल से अधिक वक्त हो गया है। लिहाजा, संगीत का चेंज अवश्यसंभावी है। सुकमा कलेक्टर नीरज बंसोड़ को सीएम अपने गृह जिले में ले जा सकते हैं। तो शम्मी आबिदी का महासमुंद के लिए चर्चा है। महासमुंद से बलौदा बाजार लगा है। बलौदा बाजार में उनके हसबैंड शेख आरिफ कप्तान हैं। वैसे, ज्यादा संभावना है कि लिस्ट एक फेज में ही निकले।

न्यू ईयर का जश्न

बस्तर के कलेक्टर, एसपी जश्न मनाने का कोई मौका नहीं चूकते। तभी तो न्यू ईयर की पार्टी आज से शुरू हो रही है। एक बड़े जिले के कलेक्टर कल एक ग्रेंड पार्टी देने जा रहे हैं। इसमें शिरकत करने के लिए बस्तर के सभी जिलों के कलेक्टर्स, एसपी और सीईओ को न्यौता भेजा गया है। साथ ही, दिल्ली के कुछ तीन दर्जन से अधिक मित्र भी आ रहे हैं। उनके लिए बस्तर के समूचे रिसार्ट एवं होटल बुक हैं। कल से शुरू हुई पार्टी 10 जनवरी तक चलेगी। छह जिलों के कलेक्टर, एसपी को इसके लिए सुविधा के अनुसार डेट बताने के लिए कहा गया है। कांकेर में चूकि महिला कलेक्टर हैं, इसलिए उन्हें इन सब से अलग रखा जाता है। इससे पहिले दिवाली मिलन के नाम पर भी बस्तर में खूब पार्टियां हुई थीं। खैर, इसमें कोई गलत नहीं है। बस्तर में काम-वाम तो है नहीं। पइसा बेहिसाब है। कागजों में उसे खर्च करने के पावर भी अधिक है। ऐसे में, कलेक्टर करें क्या? लोग पार्टीबाज कहते हैं तो कहें, क्या फर्क पड़ता है….अपनी सरकार तो कुछ नहीं कर रही है न।

सुकून की बात

बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह रायपुर विजिट के बाद दिल्ली लौटने पर बीजेपी मुख्यालय की लायब्रेरी की बड़ी तारीफ की है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है कि बीजेपी के प्रदेश कार्यालयों में रायपुर पहला कार्यालय होगा, जहां लायब्रेरी तैयार हो गई। वो भी दो महीने में। कलेक्शन भी उसमें गजब का है। शाह ने यह भी लिखा है कि लायब्रेरी के चलते छत्तीसगढ़ प्रवास विशिष्टता पूर्ण रहा। चलिये, पंचायत मिनिस्टर के लिए यह सुकून की बात होगी। क्योंकि, लायब्रेरी का जिम्मा सरकार ने चंद्राकर को सौंपा था। मगर तब शाह के दौरे में दूसरा ही एपीसोड हो गया था। इसके चलते लायब्रेरी को मीडिया में एक लाइन भी जगह नहीं मिली।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मुख्य सूचना आयुक्त का पद किसके लिए आरक्षित रखा गया है
2. धुर विरोधी नेता भूपेश बघेल को जमीन मामले में क्लीन चिट देने में सरकार ने देर नहीं लगाई। इसकी क्या वजह है?

शनिवार, 17 दिसंबर 2016

नींद से जागे, जब…..

18 दिसंबर

संजय दीक्षित
86 बैच के आईएएस सुनील कुजूर का प्रमोशन एक साल से ड्यू था। उन्हें पिछले साल दिसंबर में ही एसीएस बन जाना था। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। आईएएस लाॅबी 13 दिसंबर को नींद से तब जागी जब कैबिनेट में प्रमोटी आईपीएस आरसी श्रीवास्तव को स्पेशल डीजी बनाने का प्रस्ताव आ गया। खबर सुनते ही आईएएस नेता आंख मलते हुए सीएम के चेम्बर की ओर दौड़े। कैबिनेट खतम कर डाक्टर साब जैसे ही अपने चेम्बर में पहुंचे, आईएएस भीतर घुसे….मुंह लटकाए हुए। डाक्टर साब 13 साल के सीएम हो गए हैं…. माजरा समझ गए…..मुस्कराते हुए पूछे, कहो! क्या हुआ? आईएएस हाथ जोड़कर बोले, साब, घोर अन्याय हो गया। सही में कलयुग आ गया है….आईएएस का 86 बैच पोस्ट खाली होने के बाद भी टकटकी लगाए बैठा है और स्टेट पुलिस वाला डीजी बन जाए…..वो भी कैबिनेट में स्पेशल पोस्ट क्रियेट कर…कुछ कीजिए….वरना, इस प्रदेश में हमें पूछेगा कौन। डाक्टर साब हल्के मूड में थे, पूछे, क्या हुआ, साफ-साफ बताओ! आईएएस बोले, सरररर…वो सुनील कुजूर….। डाक्टर साब सिर हिलाकर बोले, हूं…., उसका भी हो जाएगा। तभी चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड जैकेट ठीक करते हुए कमरे में इंटर किए। डाक्टर साब ने ढांड से पूछ डाला, क्यों विवेक, कुजूर का क्यों नहीं हो रहा है। ढांड बोले, सर, हो जाएगा, एकदम हो जाएगा सर….मैं अभी बात करता हूं सर! इस पर सीएम बोले, इस महीने किसी भी तरह हो जाना चाहिए। इसके बाद अफसर थैंक्यू बोले, सिर उठाया और फिर चेम्बर से बाहर निकल गए। चलिये, एक साल बाद ही सही, बेचारे कुजूर के लिए आईएएस लाॅबी जागी तो सही।

क्रिसमस का तोहफा?

सीएम के भरोसा देने के बाद आईएएस सुनील कुजूर की फाइल तेजी से मूव हुई और अब उनका बहुप्रतीक्षित प्रमोशन अगले हफ्ते किसी भी दिन हो सकता है। वे अब एडिशनल डीजी बन जाएंगे। उनकी डीपीसी के लिए भारत सरकार ने लेटर जारी कर दिया है। डीओपीटी ने कमेटी के लिए अपना मेम्बर भी अपाइंट कर दिया है। इसलिए, 25 दिसंबर से पहिले कुजूर का प्रमोशन तय मानिये। याने क्रिसमस का तोहफा उन्हें मिलेगा। हालांकि, कुजूर को इस तोहफे की अनुभूति तब होगी, जब उन्हें कोई और विभाग मिले। ग्रामोद्योग में ही एसीएस कन्टीन्यू करने पर भला तोहफा का अहसास कैसे होगा।

लौटेंगे बीके

रमन सरकार ने 87 बैच के आईपीएस राजीव श्रीवास्तव को स्पेशल डीजी बनाया है। इसलिए, इसी बैच के रेगुलर रिक्रूट्ड आईपीएस बीके सिंह को भी प्रमोशन देना लाजिमी था। बीके बैच वाइज वैसे भी श्रीवास्तव से सीनियर हैं। फिलहाल वे डेपुटेशन पर आईबी में पोस्टेड हैं। छत्तीसगढ़ से बाहर होने के कारण उन्हें प्रोफार्मा प्रमोशन दिया गया है। अंदर की खबर है, बीके फरवरी, मार्च तक छत्तीसगढ़ लौट सकते हैं। बीके अब पावर गेम के तहत छत्तीसगढ़ लाए जा रहे हैं या अपनी इच्छा से, वक्त आने पर इसका पता चलेगा।

चेयरमैन को चपरासी

वेयर हाउस के चेयरमैन नीलू शर्मा और तब के एमडी राधाकृष्णन को अपवाद स्वरुप छोड़ दें तो अधिकांश बोर्डो के चेयरमैन और एमडी के बीच रिश्ते छत्तीस के ही होते है। एमडी से या तो लेनदेन को लेकर विवाद होता है या फिर इगो का टकराव। राजधानी में 10 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाली एक संस्था में चेयरमैन और एमडी के बीच तकरार चरम पर पहंुच गई है। दरअसल, एमडी ने सिस्टम को ऐसा कस दिया है कि चेयरमैन की हालत चपरासी से भी बदतर हो गई है। ट्रांसफर के सीजन में चेयरमैन साब हर साल चार से पांच खोखा अंदर कर लेेते थे। रुटीन में जो कमीशन था, वह अलग। लेकिन इस साल एक तो मोदी की नोटबंदी और उपर से एमडी के कड़े तेवर ने सब कबाड़ कर दिया। पता चला है, एमडी को उपर से भी इशारा है, चेयरमैन पर लगाम लगाओ। एमडी ने ऐसा लगाम लगाया है कि बेचारे फड़फड़ा भी नहीं पा रहे हैं। हो सकता है, इसमें फायदा एमडी को भी हो जाए। समीर विश्नोई ने बीज विकास निगम में सप्लायरों को ऐसा शिकंजा कसा कि कई लोग पहुंच गए सरकार के पास। ऐसे में हो सकता है, समीर की तरह एमडी को भी कलेक्टर का एक और मौका मिल जाए।

चंद्राकर का राहू

पंचायत एवं हेल्थ मिनिस्टर अजय चंद्राकर के धार्मिक स्थलों से होकर आने के बाद भी राहू ने उनका पीछा नहीं छोड़ा है। लौटते ही अमित शाह एपीसोड हो गया। मंत्रिमंडल के उनके मजबूत मित्रों ने खबर को वायरल करने में देर नहीं लगाई। चंद्राकर कैंप को इसलिए जोर का झटका लगा कि मंत्रीजी ने मेहनत करके हाईटेक लायब्रेरी बनवाई और यह गौण हो गया। हेडलाइन बन गया, मंत्री को फटकार। मंत्रीजी को एक बार त्रयंबकेश्वर हो आना चाहिए। वहां भांति-भांति के ग्रहों का निराकरण किया जाता है। वैसे भी, चंद्राकर के लोग बताते हैं, कुछ ज्यातिषियों ने सलाह दी है कि बीजेपी में ओबीसी के चंद्राकर सबसे तेज नेता हैं। इसलिए, मंत्रिमंडल के साथियों का उनके प्रति विशेष अनुराग है। इसके लिए उन्हें कुछ अनुष्ठान करना चाहिए।

जोगी का मित्र कौन?

संसाधनों में जोगी कांग्रेस ओरिजिनल कांग्रेस से कहीं आगे न निकल जाए। गुरू घासीदास जयंती में सतनामी इलाके में जोगी की तुफानी सभाओं के लिए मुंबई से हेलिकाप्टर पहंुच चुका है। हेलिकाप्टर से कल गिरौदपुरी से जोगी को दौरा शुरू होगा। एक दिन में वे तीन से चार सभा करेंगे। 30 दिसंबर को जांजगीर में इसका समापन करेंगे। मीडिया ने जोगी से जब पूछा कि नोटबंदी में हेलिकाप्टर का कैसे इंतजाम कर लिए, जोगी बोले, मित्रों ने मुहैया कराया है। अब भूपेश बघेल कहीं पूछ दें कि मित्र कौन? तो जोगी क्या जवाब देंगे।

ऐसी दुश्मनी देखी नहीं?

अजीत जोगी और भूपेश बघेल के बीच जुबानी जंग फिर तेज हो गई है। दोनों नेता कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के आरोप कि जोगी का दिमाग खराब हो गया है, शनिवार को मीडिया ने जब जोगी से पूछा तो उन्होंने छूटते ही कहा, भूपेश का क्या-क्या खराब हो गया है, मैं बताउं क्या। बहरहाल, दोनों के झगड़े पारिवारिक स्तर पर पहंुच गए हंै। पत्नी-बच्चे, बाप-दादाओं तक। अंदाज वहीं, तू चोर, नहीं तू हमसे बड़ा चोर। ये ठीक नहीं है। छत्तीसगढ़ में इस तरह की सियासी दुश्मनी का कभी टे्रंड नहीं रहा। सियासत अपनी जगह और रिश्ते अपनी जगह होते थे। पुराने लोगों को शायद याद होगा, इमरजेंसी के दिनों में लखीराम अग्रवाल जब जेल में थे, और उनकी पत्नी बीमार पड़ी तो कांग्रेसियों ने आगे आकर लखीराम को पेरोल पर छुड़वाया था। यह तो एक बानगी है, ढेरों उदाहरण आपको मिल जाएंगे। छत्तीसगढ़ के लोगों ने राघवेंद्र राव, रविशंकर शुक्ल, श्यामचरण, विद्याचरण, पुरूषोतम कौशिक, बृजलाल वर्मा के दौर को भी देखा है। इनमें कभी कटुता नहीं रही। ना कभी मर्यादा टूटी। पत्नी-बच्चों पर आक्षेप की तो कोई सोच ही नहीं सकता था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. 87 बैच के आईपीएस के प्रमोशन के लिए गृह विभाग बेताब क्यों था? 
2. कैबिनेट में आरसी श्रीवास्तव को डीजी प्रमोट करने का किस मंत्री ने विरोध किया और क्यों?

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

बंदूक की तरह

11 दिसंबर

संजय दीक्षित
13 साल में पहली बार ब्यूरोक्रेसी बंदूक की तरह काम करती दिख रही है। खास कर सीएम के अमेरिका से लौटने के बाद से। ऐसा क्यों, यह आपको बाद में बताएंगे। पहले इसे समझिए, मंत्रालय की मीटिंगों में जिन एसीएस, पीएस के मुंह से आवाज नहीं निकलती थी, वे खुद इनिसियेटिव लेकर बोल रहे हैं….लीड लेने की कोशिश कर रहे हैं….बताना चाह रहे हैं कि उनका सब कुछ सरकार के प्रति समर्पित है। यह भी पहली बार हुआ कि सीएम ने कैशलेस के लिए प्रभारी सचिवों की बैठक ली और उसी दिन प्रभारी सचिवों ने प्रभार वाले जिलों की ट्रेन पकड़ ली या अगले दिन सुबह ही गाड़ी से निकल पडे़। कलेक्टर कैशलेस के लिए सड़क पर उतर गए हैं….ठेलों पर चाय पी रहे हैं….किराना दुकान में जाकर ईपेमेंट कर रहे हैं। ऐसा तो जोगी के समय भी नहीं था। ब्यूरोक्रेसी के चार्ज होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। पहला, कैशलेस का टास्क मोदी ने दिया है। सो, मामला गड़बड़ाया तो सरकार अपनी सौम्यता नहीं दिखाने वाली। दूसरा, एसीएस अपना पारफरमेंस इसलिए दिखाना चाह रहे हैं क्योंकि मंत्रालय के गलियारों में चर्चा तेज है कि फरवरी, मार्च याने बजट सत्र तक नया चीफ सिकरेट्री तय होना है। तीसरा, कुछ अफसर रिटायर होने वाले हैं, उन्हें ठीक-ठाक पुनर्वास चाहिए। और चौथा, जिलों में कलेक्टरों से लेकर मंत्रालय में सचिवों के तबादले होने हैं। ऐसे में, आज्ञाकारी बच्चे की तरह गुरूजी को प्रसन्न नहीं रखे तो मतलब आप समझ सकते हैं। पूरा जुगाड़ और स्वार्थ का मामला है। इसके अलावा कुछ और नहीं। आखिर, अफसर ऑफ द रिकार्ड यह सवाल उठा ही रहे हैं, छत्तीसगढ़ में कैशलेस संभव है?

थ्री आईएएस…..

तीन प्रमोटी आईएएस अफसरों का आईएएस अवार्ड खतरे में पड़ गया है। भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग डीओपीटी ने उनका आईएएस कांफर्मेशन रोक दिया है। हालांकि, फिलहाल कोई कारण नहीं बताया गया है। मगर माना जा रहा है कि सीआर खराब होने के कारण डीओपीटी ने यह कदम उठाया है। बताते हैं, राज्य सरकार से प्रोबेशन क्लीयर करने के लिए डीओपीटी ने रिपोर्ट मांगी थी। जीएडी ने तीनों आईएएस अफसरों के खिलाफ चल रहे मामलों का पूरा ब्यौरा भेजा था। इसके बाद उनका प्रोबेशन लटक गया। जानकारों की मानें तो सीआर या केसेज के मामलों में डीओपीटी का रवैया बड़ा सख्त होता है। लिहाजा, तीनों आईएएस अफसरों पर डीओपीटी कोई बड़ी कार्रवाई कर दें तो अचरज नहीं।

और अपना जीएडी

जीएडी बोले तो सामान्य प्रशासन विभाग। अब नाम ही सामान्य तो काम भी तो नाम के अनुरुप ही होगा न! केंद्र के डीओपीटी को देखिए, सामान्य मामलों पर भी पैनी नजर रखता है। अपना जीएडी बड़े-बड़े प्रकरणों पर भी आंख मूंद लेता है। छत्तीसगढ़ में दर्जनों ऐसे प्रकरण हैं, जिसमें सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों के खिलाफ गंभीर अपराध दर्ज होने के बाद भी प्रमोशन मिल गया। बहुचर्चित 2005 पीएससी केस में डिप्टी कलेक्टर से लेकर सहकारिता निरीक्षक तक सभी 183 के खिलाफ एसीबी में चार सौ बीसी से लेकर कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज है। मगर किसी का न प्रोबेशन रुका, न प्रमोशन। यह तो एक बानगी है। ऐसे ढेरों प्रकरण हैं। और, इसीलिए वो डीओपीटी है और यह जीएडी।

 नए साल में

कैशलेस के चलते कुछ दिनों के लिए कलेक्टरों के ट्रांसफर टल गए हैं। दरअसल, सरकार ने कैशलेस के लिए अभियान छेड़ दिया है। कलेक्टरों को 31 दिसंबर तक अल्टीमेटम दिए गए हैं। ऐसे में, कलेक्टरों का बदलना मुनासिब नहीं समझा जा रहा। क्योंकि, नए कलेक्टरों को नए जिले को समझने-बूझने में भी वक्त निकल जाएगा। सो, मानकर चलिए अब नए साल में ही कलेक्टरों के तबादले होंगे।

अजय चंद्राकर का तीर्थाटन

पंचायत एवं हेल्थ मिनिस्टर अजय चंद्राकर दक्षिण के तमाम देवी-देवताओं से आर्शीवाद एवं ताकत लेकर छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। उन्होंने हफ्ता भर से ज्यादा समय साउथ में बिताया। बालाजी में मुंडन भी कराए। चलिये, नया साल उनका बढ़ियां जाए। 2015 तो बहुत बुरा रहा। जिसमें कोई मामला नहीं बनता, उसमें भी वे उलझ गए। उनको खुद नहीं समझ में आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। कई बार उनके जुबां फिसल गए। तो उन्हें जान से मारने की सुपारी वाली खबर भी चर्चा में रही। उनकी राजनीतिक निष्ठा पर भी सवाल उठते रहे। कभी लोग बोलते थे, वे सरकार के पाले में हैं तो कभी विरोधी मंत्रियों के गुट में।

बड़ा भीम

बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी बड़े भीम निकल गए। धमतरी कलेक्टर भीम सिंह को ब्रेन हैम्ब्रेज होने के बाद समझ लिया गया था कि वे कलेक्टर की ट्रेक से अब गए। मगर आश्चर्यजनक तौर पर रिकवरी करते हुए 15 दिन में धमतरी में प्रगट होकर काम संभाल लिया। बल्कि, प्रमोट होकर अंबिकापुर के कलेक्टर बन गए। वैसा ही कुछ कल्लूरी के मामले में हुआ है। कल्लूरी को जब विशाखापटनम शिफ्थ किया गया तो वे इतने तकलीफ में थे कि हेलिकाप्टर में उन्हें खड़े होकर जाना पड़ा। यूरिन नहीं होने से उनका यूरिन ब्लाडर भर गया था। इसके चलते वे बैठ नहीं पा रहे थे। इसीलिए, एयरफोर्स के एम-17 हेलिकाप्टर से उन्हें भेजा गया। उसकी उंचाई अधिक होती है। वहां किडनी के साथ ही मल्टीब्लॉकेज निकल गया। बाईपास के हफ्ते भर के भीतर वे बस्तर के अफसरों से फोन पर बात भी कर रहे हैं। आपरेशन के दो दिन बाद से कल्लूरी पेप्सी की फारमाइश शुरू कर दी थी। कोल्ड ड्रिंक उनका पंसदीदा पेय है। बहरहाल, कोई आश्चर्य नहीं कि दो-तीन दिन बाद वे जगदलपुर लौट आएं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्रालय में होने वाली बैठकों में कौन दो एडिशनल चीफ सिकरेट्रीज अतिसक्रिय हो गए हैं?
2. रमन सिंह ने मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना को खारिज कर दिया है। क्या ऐसा ही होगा?

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

दागी कलेक्टर

4 दिसंबर
संजय दीक्षित
अभी तक आपने दागी अफसर सुने होंगे, दागी कलेक्टर नहीं। मगर छत्तीसगढ़ में एक ऐसा कलेक्टर हैं, जिनके खिलाफ गंभीर मामला है। जीएडी में उनके खिलाफ विभागीय जांच की फाइल तैयार है। मगर उसे हरी झंडी नहीं मिल रही, क्योंकि मैसेज अच्छा नहीं जाएगा….लोग क्या कहेंगे….कलेक्टर के खिलाफ डीई! इसमें हिट यह भी है कि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय तत्कालीन बस्तर कमिश्नर विवेक ढांड ने आर्थिक अनियमितता के मामले में इस अफसर को सस्पेंड किया था। तब वे वहां डिप्टी कलेक्टर थे। वही ढांड आज चीफ सिकरेट्री हैं। और, उन्हीं के दस्तखत से उस अफसर को कलेक्टर बनाया गया। जाहिर है, ढांड की आत्मा भी कचोट रही होगी। मगर क्या करें, सरकार की अपनी राजनीतिक मजबूरिया होती हैं। जातीय समीकरण के चलते उन्हें कलेक्टर बनाया गया। और, इसी के चलते उन्हें हटाने में सरकार आगे-पीछे हो रही है।

बस्तर में नए आईजी?

बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी की बाईपास सर्जरी के बाद जाहिर है, उन्हें पूर्ण स्वस्थ्य होने में वक्त लगेगा। उनके हार्ट में मल्टीब्लॉकेज था। रविवार को वे आईसीयू से प्रायवेट रुम में शिफ्थ होंगे। याने वे जल्दी नहीं लौटने वाले। सरकार ने हालांकि, बिलासपुर आईजी विवेकानंद को बस्तर का एडिशनल चार्ज दिया है। लेकिन, बस्तर संवेदनशील रेंज है, इसलिए लंबे समय तक प्रभारी के भरोसे छोड़ा भी नहीं जा सकता। अलबत्ता, टीम रमन के 6 दिसंबर को अमेरिका से लौटने के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी। अगर बस्तर में नए आईजी की पोस्टिंग होगी तो दो-एक रेंज के आईजी और इधर-से-उधर हो सकते हैं। क्योंकि, आईपीएस अमित कुमार सीबीआई डेपुटेशन से कभी भी छत्तीसगढ़ लौट सकते हैं। उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के केसेज उनके पास हैं। इसलिए, अनुमति के लिए एपेक्स कोर्ट को लिखा गया है। अमित को मानकर चलिये, उन्हें ठीक-ठाक पोस्टिंग मिलेगी। याने बढ़ियां रेंज। सो, आईजी में बड़ी उठापटक हो जाए, तो आश्चर्य नहीं।

एमपी में 48, सीजी में 3 एडीजी

पुलिस मुख्यालय में सीनियर लेवल पर अफसरों का टोटा डीजीपी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। खासकर एडीजी और आईजी के मामले में। पीएचक्यू में फिलहाल पांच एडीजी हैं। संजय पिल्ले, आरके विज, अशोक जुनेजा, राजीव श्रीवास्तव और लांग कुमेर। राजीव श्रीवास्तव इस महीने रिटायर हो जाएंगे। लांग कुमेर भी नागालैंड जाने के लिए जोर मार रहे हैं। कभी भी उनका आदेश आ सकता है। ऐसे में, बचेंगे तीन। पिल्ले, विज और जुनेजा। इनके बाद 92 बैच में तीन आईपीएस हैं। पवनदेव, अरुणदेव गौतम और राजकुमार देवांगन। जनवरी में ये बैच एडीजी के लिए एलिजिबल हो जाएगा। लेकिन, इसमें लोचा यह है कि देवांगन का सीआर खराब है। वो तो विश्वरंजन ने आईजी बनवा दिया वरना….। पवनदेव के खिलाफ विशाखा कमेटी की जांच अभी पूरी नहीं हो पाई है। इस महीने कमेटी की रिपोर्ट नहीं आई तो सिर्फ गौतम एडीजी बन पाएंगे। लेकिन, इससे पीएचक्यू को कोई लाभ नहीं होगा। क्यांकि, वे मंत्रालय में सिकरेट्री होम हैं। सरकार वहीं उनको प्रमोट कर देगी। याने एडीजी की संख्या तीन पर टिकी रहेगी। जबकि, मध्यप्रदेश में 48 एडीजी हैं। आईजी में तो स्थिति और खराब है। रेंज के लिए भी ढंग के अफसर नहीं हैं। पीएचक्यू में गिन के चार आईजी हैं। पवनदेव, जीपी सिंह, एचके राठौर एवं बीपी पौषार्य। ऐसे में, आप समझ सकते हैं, पुलिस का काम कैसे चल रहा होगा। और, आगे क्या होगा?

बदलेंगे कलेक्टर्स

सीएम के अमेरिका से लौटने के बाद कुछ कलेक्टरों का बदलना तय माना जा रहा है। इनमें प्रमोटी में से पांच में से चार कलेक्टरों की छुट्टी होगी…..भले ही दो फेज में ही क्यों ना हो। तो कुछ जिले के कलेक्टरों को बड़ा जिला मिलेगा। जो कलेक्टर्स अपग्रेड होंगे, उनमें नीरज बंसोड़ सुकमा, उमेश अग्रवाल महासमुंद और शम्मी आबिदी कांकेर प्रमुख हैं। उमेश का दुर्ग के लिए चर्चा है। यशवंत कुमार के लिए भी खूब लॉबिंग हो रही है। सरकार पर जीएडी से लेकर बिहार, यूपी तक से प्रेशर है। प्रमोटी में अबकी टीपी वर्मा, नीलम एक्का, नरेंद्र दुग्गे का नम्बर लग सकतु है।

2010 बैच भी दावेदार

कई राज्यों में 2010 बैच के आईएएस कलेक्टर बन गए हैं। बिहार, यूपी में तो पिछले साल ही उनका नम्बर लग गया था। लेकिन, छत्तीसगढ़ में 2010 बैच पिछड़ गया है। इसमें चार आईएएस हैं। कार्तिकेय गोयल, सारांश मित्तर, जेपी मौर्य और रानू साहू। अगले कुछ महीनों में सरकार को इन सभी को कलेक्टर बनाना होगा। 2009 बैच के छह आईएएस पहिले से छह जिलों को आकोपाई किए हुए हैं। ये सभी बढियां काम कर रहे हैं। सो, लगता नहीं कि सरकार इनमें से किसी को डिस्टर्ब करेगी।

कलेक्टर की पत्नी

एक कलेक्टर की वाइफ का ओडीएफ पर भाषण इस हफ्ते सोशल मीडिया में वायरल हुआ। लोगों को झकझोड़ने वाला ऐसा ओजस्वी और बेलाग बोल कि साध्वी ऋतंभरा भी फेल हो जाए। यकीनन, कम-से-कम छत्तीसगढ़ में वैसा लच्छेदार बोलने वाला कोई पालीटिशियन नहीं है। न कांग्रेस, न भाजपा में। पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर और एसीएस पंचायत एमके राउत को यह भाषण सुनना चाहिए। शायद एक जिले की बजाए पूरे प्रदेश में उनका उपयोग किया जा सकें। वरना, कोई राजनीतिक दल उन्हें अपनी पार्टी में जोड़ने की पेशकश ना कर दे।

सतनामी वोट पर नजर

अजीत जोगी ने विधानसभा में डा0 आंबेडकर की प्रतिमा लगाने की मांग कर दलित कार्ड खेला। अब कांग्रेस भी इसी कार्ड को साधने के लिए राहुल गांधी को सतनामी बहुल इलाके में जंगी सभा कराने की तैयारी कर रही है। याद होगा, राहुल गांधी पिछली बार गिरौदपुरी गए थे। इस बार सतनामी बहुल मुंगेली के अमरटापू में राहुल की सभा कराने की तैयारी की जा रही है। राहुल इस महीने किसी तारीख को छत्तीसगढ़ आ सकते हैं।

प्रतिष्ठा दांव पर

आठ नगरीय निकायों के चुनाव में पीसीसी चीफ भूपेश बघेल की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। आमतौर पर उप चुनाव या निकाय चुनाव के नतीजे सरकार के खिलाफ जाते हैं। मगर आठ में से चार निकाय भी अगर कांग्रेस की झोली में आ गए तो ठीक वरना भूपेश की मुश्किलें बढ़ सकती है। क्योंकि, इसके बाद अब सीधे विधानसभा चुनाव होना है। वैसे, चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट होगा। क्योंकि, चुनौतियां सरकार के सामने भी हैं। नोटबंदी के बाद हो रहे इस स्थानीय चुनाव के नतीजों पर दिल्ली की भी नजर रहेगी। कि जनता ने नोटबंदी को किस तरह लिया। इसीलिए, भिलाई-चरौदा का प्रभारी बृजमोहन अग्रवाल को और सारंगढ़ का प्रभारी अमर अग्रवाल को बनाया गया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नगरीय निकाय कैडर के अफसर किस बात के लिए गर्वान्वित महसूस कर रहे हैं?
2. माइनिंग घोटाले में किस बड़े सीमेंट प्लांट की गर्दन फंस गई है?