रविवार, 25 जुलाई 2021

लॉयल्टी टेस्ट?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 25 जुलाई 2021
राज्य सरकार ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह के खिलाफ तीन पुराने मामलों की जांच के लिए आईपीएस अधिकारियों की तीन अलग-अलग कमेटियां गठित कर दी है। इनमें स्पेशल डीजी नक्सल अशोक जुनेजा, दुर्ग आईजी विवेकानंद सिनहा और रायपुर आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा शामिल हैं। जाहिर है, राजद्रोह और एसीबी केस का सामना कर रहे जीपी की मुश्किलें और बढ़ जाएगी। हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह है कि इससे एसीबी चीफ आरिफ शेख को ताकत मिलेगी। आरिफ अभी अकेले सीनियर अफसर से लोहा ले रहे थे। आरिफ डीआईजी हैं और जीपी एडीजी। यानी उनसे दो रैंक सीनियर। आरिफ के साथ अब जुनेजा, विवेकानंद और छाबड़ा जैसे तीन सीनियर अफसर होंगे। एसीबी की कार्रवाई के बाद राजधानी पुलिस ने भी जीपी के घर छापा मारकर बहुत सारी चीजें जप्त की है। ऐसे में, रायपुर के एसएसपी अजय यादव भी इस केस में इनवाल्व हो गए हैं। पुलिस महकमे में इसको लेकर चुटकी ली जा रही….जांच के साथ इन अफसरों का लॉयल्टी टेस्ट भी होगा। जुनेजा डीजीपी के दावेदार हैं तो विवेकानंद एडीजी बनने वाले हैं। छाबड़ा खुफिया चीफ हैं ही। इससे पहिले आईपीएस राहुल शर्मा केस की जांच करने के लिए सरकार ने डीजी जेल संजय पिल्ले की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। लेकिन, इस मामले में कोर्ट ने स्टे दे दिया। इससे पिल्ले धर्मसंकट से बच गए। लेकिन, ये बाकी चार…?

लाल बत्ती पर ग्रहण

मोहला की पूर्व महिला विधायक तेज कुंवर नेताम को सरकार ने छत्तीसगढ़ बाल संरक्षण आयोग का चेयरमैन मनोनित किया। मगर विधिवत आदेश निकालने के लिए फाइल जब महिला बाल विकास विभाग गई तो अफसरों के पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई। दरअसल, बाल संरक्षण आयोग में चेयरमैन और मेम्बर की पोस्टिंग मनोनयन के जरिये नहीं, सलेक्शन से होती है। इसके लिए समाचार पत्रों में बकायदा विज्ञापन निकाले जाते हैं। पता चला है, इस बार भी चेयरमैन के सलेक्शन के लिए महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बना दी गई थी। भेड़िया कमेटी विज्ञापन निकालने की प्रक्रिया प्रारंभ करती, इससे पहिले तेजकुंवर की नियुक्ति हो गई। जबकि, ऐसा होना नहीं था। अभी तक ये होता था कि सरकार अफसरों को इशारा कर देती थी और वे विज्ञापन की औपचारिकता पूरी कर सरकार की इच्छा के अनुरुप कमेटी से मुहर लगवा लेते थे। शताब्दी पाण्डेय और प्रभा दुबे की नियुक्ति इसी तरह हुई थी। इस चूक की वजह से तेजकुंवर की नियुक्ति गड़बड़ा सकती है। अब प्रक्रिया पूरी करते हुए विज्ञापन भी निकाला जाएगा तो तेजकुंवर का चयन सवालों के घेरे में आ जाएगा। बहरहाल, महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी लीगल ओपीनियन ले रहे हैं। अब देखना है, क्या रास्ता निकलता है।

नो वैकेंसी

लाल बत्ती में वैसे तो अभी आधा दर्जन से अधिक निगम-मंडल बच गए हैं। लेकिन, महत्वपूर्ण तीन-चार ही हैं। सीएसआईडीसी, ब्रेवरेज कारपोरेशन, एक्साइज कारपोरेशन और मार्कफेड। चारों को मलाईदार बोर्ड माना जाता है। एक्साइज और ब्रेवरेज के बारे में बताने की जरूरत नहीं। सीएसआईडीसी इंडस्ट्री को डील करने के साथ ही रेट कंट्रेक्ट फायनल करती हैं। तो मार्कफेड का सलाना कारोबार 15 हजार करोड़ से अधिक का है। इनमें से सीएसआईडीसी और ब्रेवरेज या एक्साइज में पॉलिटीशियन की नियुक्ति नहीं भी जी जा सकती है। क्योंकि, संकेत कुछ ऐसे ही मिल रहे हैं। इन दोनों में अगर नियुक्ति नहीं हो पाई तो जाहिर है विभाग ही इन दोनों बोर्डों को चलाएगा।

चूक गए…

सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ताओं में शैलेष नीतिन त्रिवेदी किस्मती रहे…उन्हें पाठ्य पुस्तक निगम की चेयरमैनशिप मिल गई। उनके बाद दूसरी, तीसरी सूची में आरपी सिंह और सुशील आनंद शुक्ला का नाम लाल बत्ती के दावेदारों में प्रमुख था। टीवी डिबेट में दमदारी से बात रखते आरपी को ब्रेवरेज कारपोरेशन मिलने की चर्चा थी। लेकिन, उनका मामला इस बार जमा नहीं। सुशील तो दुग्ध संघ के लिए बेहद आशन्वित थे। कुछ दिन पहले रसिक परमार ने दुग्ध संघ से इस्तीफा दिया था तो समझा गया सुशील आनंद की लाटरी निकल जाएगी। लेकिन, लिस्ट जब आई तो मायूस होने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। वैसे, पूर्व विधायक गुरमुख सिंह ने भी खूब जोर लगाया था…कोई भी निगम मिल जाए। लेकिन, उन्हें भी झटका लगा। वैसे, झटका तो कई विधायकों और नेताओं को लगा है, लेकिन कोई मुंह खोलने की हिमाकत नहीं कर रहा।

करिश्माई नेता?

निगम-मंडलों में बड़े पद हासिल करने से चूके कांग्रेस नेता अब उपाध्यक्ष और मेम्बर बनने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं…आखिर कुछ तो मिल जाए। दरअसल, कांग्रेस में पोस्ट का ऐसा प्रभाव होता है कि मेम्बर जैसे पदों से भी कई लोग अपना करतब दिखा देते हैं। बीजेपी शासन काल में भी कांग्रेस के ऐसे प्लेयरों का कारोबार निर्बाध गति से चलता रहा… अब तो अपनी सरकार है। सो, कोशिश है…रौब झाड़ने के लिए कुछ भी मिल जाए।

एमडी को पावर

लाल बत्ती मिलने से सत्ताधारी पार्टी के नेता चाहे जितना खुश हो लें मगर हकीकत यह है कि चेयरमैन को कागजों में कोई खास पावर नहीं है। निगम-मंडल में साइनिंग अथारिटी एमडी या सीईओ होता है। उसके दस्तखत से ही चेयरमैन का गाड़ी-घोड़ा, हवाई जहाज का टिकिट आदि पास होता है। इन निगमों में अधिकांश एमडी आईएएस हैं या फिर आईएफएस, जिसकी चाबी सरकार के पास होती है। चेयरमैन अपना जलवा तभी दिखा पाएंगे जब सरकार लाल बत्ती देने के साथ ही उनके कंधे पर हाथ भी रखे। वरना, एमडी कुछ करने देंगे नहीं। और फिर दोनों में टकराव होगा। बीजेपी सरकार में ये समस्या इसलिए नहीं आती थी कि उसमें नौकरशाही हॉवी थी। चेयरमैन उनके सामने कुछ बोल नहीं पाते थे। अभी ब्यूरोक्रेसी कमजोर है मगर नियमों की कैंची उनके पास है। लिहाजा, सरकार के पास अब ये डिमांड आएगी…हमरा एमडी बदलिए….ये कुछ करने नहीं दे रहा।

खेतान होंगे रिटायर

छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईएएस सीके खेतान अगले हफ्ते रिटायर हो जाएंगे। 87 बैच के आईएएस खेतान रायपुर कलेक्टर रहने के साथ ही तीन बार डीपीआर, सीपीआर रहे। सिकरेट्री के रूप में उन्होंने सिंचाई, स्कूल एजुकेशन, अरबन एडमिनिस्ट्रेशन, फॉरेस्ट जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभाला। फिलहाल, वे रेवन्यू बोर्ड के चेयरमैन हैं। इसके साथ ही आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी। खेतान के बाद छत्तीसगढ़ में बड़ा विकेट दिसंबर में गिरेगा, जब डीजी आरके विज रिटायर होंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ड्यू डेट सात महीने पार हो जाने के बाद भी किस वजह से आईपीएस के प्रमोशन अटके हुए हैं?
2. छत्तीसगढ़ राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन कौन बनेगा?

रविवार, 11 जुलाई 2021

समरथ को नहीं दोष गोसाई

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 11 जुलाई 2021
पिछले महीने एक आईएएस ने बेमेतरा जिले के बेरला में 45 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री कराई। जिस जमीन का सौदा हुआ, वो सिंचित था और मेन रोड के किनारे। इसके कारण रजिस्ट्री खर्च 30 लाख बैठ रहा था। आईएएस चाहते थे, कम में मामला निबट जाए। राशि कम करने का उपाय एक ही था, जैसा कि वीआईपी या भूमाफियाओं के मामलों में होता है…जमीन को असिंचित घोषित कर दिया जाए और रोड से दूर। किन्तु बेरला का पटवारी ऐसा करने के लिए तैयार नहीं था। आईएएस ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। बेमेतरा के रजिस्ट्री अधिकारियों पर प्रेशर बनाया गया। उपर से पटवारी को फोन हुआ। पटवारी अगर असिंचित और रोड से दूर जमीन लिखकर नहीं देता, तो फिर आईएएस को 30 लाख खर्चा करना पड़ता। बड़ी मुश्किल से अफसर के लिए कागजों में जमीन को असिंचित और रोड से दूर दिखाया गया। तब जाकर रजिस्ट्री हुई। तुलसीदासजी ने ठीक ही लिखा है…समरथ को नहीं, दोष गोसाई।

94 बैच की खुशी

उड़ीसा कैडर के आईएएस रहे आश्विनी वैष्णव केंद्र में मंत्री बन गए है। पहली बार के हिसाब से पोर्टफोलियो भी उन्हें बढ़िया मिला है। रेलवे। उपर से कैबिनेट भी। 94 बैच के आईएएस रहे आश्विनी ने दो-एक जिले की कलेक्टरी करने के बाद आईएएस से त्यागपत्र दे दिया था। उसके बाद कुछ साल प्रायवेट सेक्टर में नौकरी की। फिर अपना कारोबार। इस दौरान राजनीति में उनका झुकाव बढ़ता गया। विजन और इनोवेशन तो उनका था ही, लिहाजा धीरे-धीरे प्रधानमंत्री के सलाहकारों के कोर ग्रुप में वे शामिल होते गए। आश्विनी की प्रतिभा को देखते प्रधानमंत्री ने पहले राज्य सभा में मनोनित कराया और अब अपने मत्रिमंडल का हिस्सा। बहरहाल, आश्विनी के रेलवे मंत्री बनने से 94 बैच के आईएएस बड़े प्रफुल्लित हैं। छत्तीसगढ़ में ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकास शील और मनोज पिंगुआ…94 बैच के आईएएस हैं। इनमें से तीन दिल्ली में ही डेपुटेशन पर हैं। मनोज पिंगुआ छत्तीसगढ़ में हैं। बैचमेट मंत्री बन जाए तो अफसरों की खुशी समझी जा सकती है। चूकि रेल मंत्री के चार-चार बैचमेट्स छत्तीसगढ़ से हैं, इसलिए यहां के लोगों को भी खुश होना चाहिए, कुछ तो इसका लाभ राज्य को मिलेगा। ़

क्लोज अफसर

नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में इस विस्तार के बाद रिटायर नौकरशाहों की संख्या बढ़कर सात हो गई है। इनमें पांच रिटायर आईएएस और दो रिटायर भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं। ये सभी सर्विस के दौरान किसी-न-किसी राजनेता के बेहद करीब रहे। कैबिनेट मंत्री बने आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के साथ काम करने के लिए 2010 में आईएएस की नौकरी से बॉय-बॉय कर दिया था। 84 बैच के आईएएस रहे आरसीपी करीब ढाई दशक से नीतीश कुमार से जुड़े हैं। नीतीश जब अटलबिहारी बाजपेयी सरकार में कृषि और रेल मंत्री रहे तब वे उनके पीएस होते थे। बाद में नीतीश जब बिहार के मुख्यमंत्री बनें तो वे उनके सिकरेट्री बन गए। इसके बाद आईएएस छोड़ दिया। यही राजनीतिक निष्ठा उन्हें कैबिनेट मंत्री के पद तक पहुंचाने में मदद की। कुल मिलाकर नौकरशाहों का भी अब राजनीति में भी संभावनाएं बढ़ रही है। खासकर उनके लिए जो आईएएस का माया-मोह छोड़कर राजनीति में आ गए हो। रिटायरमेंट के बाद राजनीति ज्वाईन करने वालों के लिए नहीं। जैसे, छत्तीसगढ़ में सरजियस मिंज और राजीव श्रावास्तव। सरजियस आईएएस से और राजीव आईपीएस से रिटायर होने के बाद कांग्रेस और भाजपा ज्वाईन किए। पूर्व आईएएस राघवन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इसलिए, गुंजाइश नहीं बन पाई। वहीं, अजीत जोगी को देखिए….वे कलेक्टरी के तुरंत बाद आईएएस छोड़ दिए थे तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे।

ओपी का भविष्य

छत्तीसगढ़ में नौकरशाहों में शैलेष पाठक, अमन सिंह और ओपी चौधरी ने नौकरी छोड़ी थी। इनमें से ओपी रायपुर कलेक्टर से सीधे राजनीति मे ंआ गए। शैलेश को विदेश में कोई बड़ा आफर मिला था और अमन सिंह का डेपुटेशन भारत सरकार बढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ। मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के साथ काम करने के लिए मजबूरन उन्हें आईआरएस की नौकरी त्याजना पड़ा। रमन सिंह ने तुरंत उन्हें अपना सिकरेट्री अपाइंट कर लिया था। शैलेष हालांकि, बाद में फिर नौकरी ज्वाईन करने की कोशिश की थी। भारत सरकार के अफसर इसके लिए तैयार हो गए थे। लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके लिए अनुमोदन नहीं दिया। बहरहाल, शीर्षक है…ओपी का भविष्य…अफसरी के बीच में नौकरी छोड़कर राजनीति में कूदने वालों की उड़ान को देखते लगता है ओपी का आने वाला टाईम ठीक-ठाक ही रहेगा। वैसे भी, सूबे में जिस तरह की सोशल इंजीनियरिंग चल रही, उसमें ओपी एकदम फीट बैठते हैं।

कप्तानों को टाइट

28 में से 21 एसपी बदलने के बाद डीजीपी डीएम अवस्थी वीडियोकांफें्रसिंग के जरिये पुलिस अधीक्षकों की बैठक ली। उसमें एसपी को लताड़ते हुए एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो को जिसने भी देखा, सुना वो हैरान हुआ। जुआ, सट्टा समेत बढ़ते क्राइम पर उन्होंने कप्तानों ने क्या नहीं बोला। जैसे एसपी, आईजी थानेदारों से बात करते हैं कुछ उसी अंदाज में। डीएम ने दो टूक कहा, एसपी मुझे मुर्ख न समझें….तंबुओं में जुआ चल रहा है, टीआईओ की बदमाशियों को अनदेखा मत कीजिए। खबर है, सरकार के ढाई बरस गुजरने के बाद डीजीपी को कहीं से प्वाइंट मिला था…कप्तानों को जरा टाईट करो। और उन्होंने कर दिया।

अफसर नहीं, पावर बड़ा

अफसर तेज-तर्रार हो सकता है, पर यह जरूरी नहीं कि वो पावरफुल भी हो। पावरफुल तभी होगा, जब चीफ मिनिस्टर से उसे सीधे पावर मिले। दरअसल, सरकार जिसके कंधे पर हाथ रख दें वह ताकतवर हो जाता है। विश्वरंजन छत्तीसगढ़ के सबसे पावरफुल डीजीपी इसलिए रहे क्योंकि उन्हें सरकार से फ्री हैंड मिला। विश्वरंजन का जलजला लोगों ने देखा है….वे कभी सीएम सचिवालय आते थे तो अमन सिंह जैसे शक्तिमान अफसर उन्हें लिफ्ट तक छोड़ने जाते थे। लेकिन, सरकार ने जब पावर खींच लिया, तो उन्हें जमीन पर आते देर नहीं लगी। उन्हें जब डीजीपी से हटाया गया तो वे अहमदाबाद एयरपोर्ट पर थे। चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन ने उन्हें फोन कर बताया कि सरकार ने आपको हटा कर अनिल नवानी को नया डीजीपी बनाया है। राज्य बनने से डेढ़ साल पहले दिग्विजय सिंह ने शैलेंद्र सिंह को बिलासपुर का कलेक्टर बनाकर भेजा था। बिलासपुर इलाके से तब चार से पांच सीनियर मंत्री होते थे। समझ सकते हैं, वहा काम करना कितना कठिन होता होगा। मगर शैलेंद्र सिंह ने ऐसा कसा कि लोग आज भी याद करते हैं। कलेक्टर सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष को जेल भेज दें, ऐसा कोई सोच सकता है। लेकिन, शैलेंद्र सिंह ने बिलासपुर के युवा कांग्रेस अध्यक्ष समेत पूरी टीम को जेल भिजवा दिया था। शराब ठेकेदार भी कलेक्टर से मिलने के लिए लाईन में खड़े होते थे। ये इसलिए संभव हुआ कि सरकार ने उन्हें पावर देकर भेजा था।

चार आईएएस

छत्तीसगढ़़ बनने के बाद सस्पेंड होने वाले जीपी सिंह तीसरे आईपीएस अफसर हैं। आईएएस में इससे एक अधिक अफसर सस्पेंड हुए हैं। याने चार। सबसे पहले अजय पाल सिंह। 2004 में। फिर पी राघवन, राधाकृष्णन और बीएल अग्रवाल। अजय पाल तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के साथ पंगा करके निलंबित हुए थे। तथा राघवन और राधाकृष्णन करप्शन के केस में। बीएल का भी कुछ ऐसा ही था। चारों आईएएस भाजपा सरकार में सस्पेंड हुए थे तो आईपीएस कांग्रेस राज में। हालांकि, आईपीएस में राजकुमार देवांगन भी निलंबित हुए थे, लेकिन अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. बिलासपुर में ऐसा क्यों कहा जा रहा, पहले साहूजी का राज था और अब शाहजी का?
2. सारी चीजें तय हो जाने के बाद भी लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट कहां और कैसे अटक गई है?

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रविवार, 4 जुलाई 2021

सरकार की मुश्किल

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 4 जुलाई 2021
छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईएएस और राजस्व बोर्ड के चेयरमैन सीके खेतान इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। खेतान के बाद इस पद पर किसे बिठाया जाए, सरकार को इसको लेकर अबकी किंचित परेशानी तो होगी। वजह है रेवन्यू बोर्ड चेयरमैन लायक अफसरों का बेहद कमी। यह पद चीफ सिकरेट्री के समकक्ष कैडर पोस्ट है। यानी एसीएस स्तर का। ये अलग बात है, पिछली सरकार में कई प्रमुख सचिवों को भी ये दायित्व सौंपा गया। बीएल अग्रवाल, केडीपी राव, अजयपाल सिंह, सभी प्रमुख सचिव थे। बहरहाल, सीनियर अफसर सरकार के पास हैं नहीं। एसीएस लेवल पर सिर्फ दो अफसर हैं। रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू। सुब्रत चूकि सीएम के एडिशनल चीफ सिकरेट्री हैं इसलिए, उनका संभव नहीं। बचीं रेणु पिल्ले। उनके पास पंचायत विभाग है। प्रमुख सचिव में भी ज्यादा आप्शन नहीं है। मनोज पिंगुआ, गौरव द्विवेदी और मनिंदर कौर द्विवेदी। ये तीन ही पीएस हैं। सरकार अगर सिकरेट्री लेवल पर जाएगी तो एक नाम बिलासपुर कमिश्नर डाॅ0 संजय अलंग का हो सकता है। राजस्व बोर्ड का मुख्यालय भी बिलासपुर में ही है। वैसे, सरकार संविदा में भी किसी आईएएस की पोस्टिंग करने पर विचार कर सकती है। इसके लिए डायरेक्ट आईएएस से रिटायर में केवल एक नाम है…केडीपी राव। वहीं, प्रमोटी में कई हैं। वैसे, एक आप्शन रिटायर होने जा रहे सीके खेतान भी हो सकते हैं। हालांकि, रेवन्यू बोर्ड जमीन मामलों में फैसला देता है…उसका अपना कोर्ट होता है, लिहाजा संविदा का लोचा आ सकता है। फिर भी, सरकार कुछ भी कर सकती है। कुल मिलाकर शासन इन्हीं विकल्पों में से किसी नाम पर टिक लगाएगा।

किस्मत के धनी

सरकार ने बिलासपुर के प्रभारी आईजी रतनलाल डांगी को सरगुजा आईजी का एडिशनल प्रभार दिया है। वाकई इसे किस्मत ही कहना चाहिए। दीगर राज्यों में आईपीएस एक बार आईजी बनने के लिए टकटकी रहती है। और छत्तीसगढ ऐसा स्टेट बन गया है कि बिना आईजी बने डांगी अभी तक दुर्ग, सरगुजा, बिलासपुर के बाद अब बिलासपुर तथा सरगुजा की आईजीगिरी एक साथ। दरअसल, सरगुजा आईजी आरपी साय को हटाना था। और आईजी लेवल पर अफसरों का काफी टोटा है। ऐसे में, सरकार के पास कोई चारा नहीं था। अब अगले साल जनवरी में 2004 बैच जब आईजी प्रमोट हो जाएगा तब आईजी की काफी कुछ कमी दूर हो जाएगी। इस बैच में अजय यादव, नेहा चंपावत और संजीव शुक्ला हैं। बद्री मीणा और अभिषेक पाठक डेपुटेशन पर हैं। यदि ये दोनों लौट आए तो पांच आईजी हो जाएंगे। डाॅ0 आनंद छाबड़ा, सुंदरराज और रतनलाल डांगी हैं ही। तब ठीक-ठाक स्थिति बन जाएगी।

ट्रेक पर होना महत्वपूर्ण

कुछ दिन पहले कलेक्टर और एसपी के व्यापक तबादले हुए। इसमें कुछ अधिकारियों को बड़ा जिला मिला तो कुछ को बहुत छोटा। ब्यूरोक्रेसी में माना जाता है, छोटा, बड़ा जिला की बजाए ट्रेक पर बने रहना ज्यादा इम्पाॅर्टेंट होता है। कई ऐसे उदाहरण हैं कि बड़े जिले के बाद छोटे में पोस्टिंग हुई और फिर बड़ा जिला मिल गया। मुंगेली और अंबिकापुर जिले की कलेक्टर रहने के बाद किरण कौशल को पिछली सरकार में बालोद भेज दिया गया था। लेकिन, फिर वे कोरबा की कलेक्टर बनीं। दुर्ग कलेक्टर डाॅ0 सर्वेश भूरे का पहला जिला मुंगेली था। मंुगेली से सीधे वे वीवीआईपी जिले में आ गए। सर्वेश की डिमांड बिलासपुर के लिए भी हो रही थी। आरिफ शेख जांजगीर और धमतरी के एसपी रहने के बाद बालोद के कप्तान बनाए गए। उसके बाद वे एरोप्लेन के टेकआॅफ के समान उन्हीं पोस्टिंग मिली। बालोद के बाद बलौदा बाजार, बस्तर, बिलासपुर और फिर रायपुर के एसएसपी बनें। वेटिंग डीआईजी जीतेंद्र मीणा ने भी बालोद से सीधे बस्तर का जंप लगाया। इस तरह कह सकते हैं, जिन्हें छोटा जिला मिला है, वे मायूस न हों। जाहिर है, पारुल माथुर को बेमेतरा, मुंगेली और जांजगीर जिला करने के बाद गरियाबंद भेजा गया है। वहीं सदानंद को बलरामपुर और सरगुजा के बाद बालोद। संतोष सिंह भी कोंडागांव, महासमुंद के बाद रायगढ़ गए थे। और अब कोरिया के एसपी बनाए गए हैं।

अब नम्बर आईएएस का?

ढाई बरस होने के बाद सरकार अब एक्शन में है। सीनियर आईपीएस जीपी सिंह के यहां रेड के बाद अब एक आईएएस अफसर भी एसीबी के निशाने पर हैं। सूत्रों की मानें तो एसीबी ने साक्ष्य जुटाने शुरू कर दिए हैं। वैसे, जीपी के यहां छापे के बाद आईएएस, आईपीएस सकते में हैं। छत्तीसगढ़ में किसी आईएएस, आईपीएस के यहां एसीबी रेड नहीं पडा था। अब आईपीएस का खाता खुल गया है। ऐसे में जाहिर है, आईएएस का खौफ। सूबे के ईमानदार से ईमानदार आईएएस, आईपीएस के यहां छापा पड़ जाए, तो शामत आ जाएगी। ये बात छिपी नहीं है कि नया रायपुर, बिलासपुर रोड, धमतरी रोड, आरंग रोड पर 80 फीसदी से अधिक आईएएस, आईपीएस के फार्म हाउसेज हैं। राजधानी के कई हाउसिंग प्रोजेक्ट में अफसरों के पैसे इंवेस्ट हुए हैं। पिछली सरकार में एसीबी ने इस पर काफी होम वर्क किया था। वो सारा रिकार्ड एसीबी में सुरक्षित है।

कमजोर अफसर

राज्य पुलिस सेवा के लाख विरोध के बाद बीएसएफ से आए वायपी सिंह को आईपीएस अवार्ड हो गया। असल में, रापुसे का विरोध जुबानी जमा खर्च ज्यादा था। उन्हें 2005 बैच के राप्रसे अफसरों से टिप्स लेनी थी, किस तरह छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का आर्डर पर वे सुप्रीम कोर्ट में रोक लगवा लिए। हरीश साल्वे जैसे देश के नामी वकील खड़े हुए। हरीश साल्वे के बारे में कहा जाता है, करोड़ से नीचे का वे कोई केस उनके पास जाता नहीं। राप्रसे अधिकारियों ने पिछले 10 साल में 10 करोड़ से ज्यादा फंड जुटाया। रायपुर से लेकर दिल्ली तक पैसा बहाया। रापुसे के अधिकारी यहीं पर गुटुर-पुटुर करते रह गए और धमंेंद्र छवई और वायपी सिंह दो सीट ले उड़े। अब पछताने से क्या होगा….?

व्हाट्सएप पर तलवारें

धमेंद्र और वायपी सिंह को डीपीसी में आईपीएस के लिए हरी झंडी मिलने की खबर जैसे ही बाहर आई, व्हाट्सएप ग्रुप में रापुसे अधिकारियों का गुस्सा फट पड़ा। वही….जुबानी जमा खर्च…मोबाइल पर कोई तलवार भांज रहा था तो कोई ग्रेनेड फेंक रहा था। उस दिन ऐसा लगा जैसे सारे रापुसे अधिकारी अब किसी को छोड़ेंगे नहीं, यूं दिल्ली गए और सुप्रीम कोर्ट से आर्डर ले आएंगे। अगले दिन सारा गुस्सा टांय-टांय फुस्स हो गया। मगर इसका एक फायदा अवश्य हुआ कि रापुसे के गुस्से की खबर उपर पहंुची और गृह विभाग ने अगले दिन डीएसपी से एडिशनल एसपी प्रमोशन की लिस्ट जारी कर दी।

लाल बत्ती फिर अटकी?

लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट का ऐसा ग्रहण लगा है कि निकलते-निकलते अटक जा रही है। पिछले हफ्ते प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के दौरे में लिस्ट फायनल होकर दिल्ली गई। लेकिन, एक बार कांग्रेस के लोग फिर आवाक हैं…आखिर ये हो कैसे जा रहा। सरकार के ढाई बरस निकल गए हैं। आचार संहिता के तीन महीने को छोड़ दें तो लगभग दो साल ही अब बचे हंै। लाल बत्ती के प्रबल दावेदारों की यह चिंता खाए जा रही है कि एक-एक दिन निकलता जा रहा है। जितना टाईम कम मिलेगा, कुछ कर गुजरने की संभावनाएं उतनी ही कम होती जाएंगी।

सस्पेंड क्यों नहीं?

डीजीपी डीएम अवस्थी के बेटे की शादी में 40 लोग जुटे। पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी की बेटी में गिनकर 15। विधानासभाध्यक्ष चरणदास महंत की बेटी की शादी कब हो गई, लोगों को पता भी नहीं चला। लेकिन, सूबे में कुछ ऐसे धनपशु हैं कि जिन्हें कोरोना गाइडलाइन से कोई वास्ता नहीं। बानगी है अंबिकापुर में शुक्रवार को हुई एक शादी। रिसेप्शन में गाड़ियों की एक किलोमीटर से ज्यादा लंबी कतार थी….दो हजार से अधिक लोगों की भीड़। सरगुजा में आज भी कोरोना के केस लगातार आ रहे है। ऐसे लोगों को मनमानी करने की छूट देने वाले अंबिकापुर के जिम्मेदार अफसरों को इसके लिए सस्पेंड क्यों नहीं कर देना चाहिए। तीसरी लहर से सूबे को बचाने कड़ा रुख अपनाना होगा, दरकार हो तो कौंवा मारकर भी टांगे। क्योंकि, जान बड़ी है….लोग बचेंगे तो वोट भी डालेंगे और सरकारें भी बनेंगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लाल बत्ती की लिस्ट अटकने के पीछे क्या वजह है?
2. एसपी के ट्रांसफर में सबसे अधिक फायदे में कौन आईपीएस रहा?

गुस्से में सरकार?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 27 जून 2021
राज्य सरकार ने 2018 बैच के 23 प्रोबेशनर डीएसपी को बहुप्रतीक्षित पोस्टिंग दे दी। सभी को एकमुश्त बस्तर रवाना कर दिया गया। अब सबको बस्तर भेजा गया है तो सवाल उठते ही हैं। सभी अफसरों की बस्तर रवानगी के पीछे एक बड़ी वजह अच्छी पोस्टिंग के लिए हद से ज्यादा सिफारिश बताई जा रही है। इस बैच के कई डीएसपी रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग रेंज में पोस्टिंग के लिए सरकार पर भांति-भांति के लोगों से फोन करवा रहे थे। इससे सरकार का मूड भन्नाया और आदेश हुआ कि भेजो सबको बस्तर। गृह विभाग ने पुलिस मुख्यालय से डीजीपी को जो प्रपोजल आया था, उसे तुरंत हरी झंडी देते हुए आदेश निकाल दिया। दरअसल, पीएचक्यू हर बार प्रोबेशनर अफसरों को पहली पोस्टिंग के रूप में बस्तर भेजने का प्रस्ताव भेजता है। लेकिन, अफसर उपर में जोड़-तोड़ लगाकर प्रस्ताव में तब्दीली करा लेते थे। मगर इस बार मामला गड़बड़ा गया। बहरहाल, सरकार के गुस्से के लपेटे में पारुल अग्रवाल और प्रशांत खांडे भी आ गए। दोनों ने तीन महीने पहिले तगड़ा जैक़ लगाकर बिलासपुर और सूरजपुर में अपनी पोस्टिंग करा ली थी। उन्हें भी बस्तर जाने का आदेश थमा दिया गया। पारुल को सुकमा भेजा गया है और प्रशांत को नारायणपुर। अब ये अलग बात है कि 23 में से कई डीएसपी बस्तर न जाना पड़ा, इसका रास्ता तलाशने में जुट गए हैं।

डीडी की पोस्टिंग


आदिवासी कल्याण, जीएडी और जनसंपर्क विभाग के सिकरेट्री डीडी ंिसंह 30 जून को रिटायर हो जाएंगे। पता चला है, अफसरों की दिक्कतों के चलते डीडी की सेवाओं को सरकार कंटीन्यू रखना चाहती है। लिहाजा, रिटायरमेंट के बाद उन्हें संविदा नियुक्ति दी जा रही है। हो सकता है आजकल में उनका आदेश निकल जाए। संविदा नियुक्ति में उनके विभाग यथावत रहेंगे। प्रमोटी आईएएस में डीडी की गिनती बैलेंस अधिकारी के रूप में होती है। वे सूबे के दूसरे प्रमोटी आईएएस हैं, जो भारत सरकार में ज्वाइंट सिकरेट्री के रूप में इम्पेनल हुए हैं। उनसे पहिले दिनेश श्रीवास्तव को यह मौका मिला था। संविदा में सिकरेट्री बनने वाले डीडी सिंह छठवें अफसर होंगे। उनसे पहिले सूबे में अमन सिंह, मुनिश कुमार त्यागी, एसके जायसवाल, हेमंत पहाड़े और आलोक शुक्ला को सचिव के तौर पर संविदा नियुक्ति मिल चुकी है।

आईपीएस अवार्ड

राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस अवार्ड के लिए 28 जून को डीपीसी होने जा रही है। दो पदो ंके लिए होने वाली डीपीसी के लिए छह नामों का पेनल बनाया गया है। इनमें 96 बैच के धर्मेंद्र छवई और 97 बैच के डीएस मरावी का नाम सबसे उपर है। पिछली डीपीसी में सीआर क्लियर नहीं होने के कारण इनका प्रमोशन नहीं हो पाया था। उसके बाद उमेश चैधरी, मनोज खिलाड़ी, रवि कुर्रे और सीडी टंडन का नाम है। हालांकि बीएसएफ से छत्तीसगढ़ पुलिस में मर्ज हुए वायपी सिंह का लिफाफा भी बंद है। छवई और मरावी में से किसी का नाम अगर कटा तो कमेटी वायपी सिंह के बंद लिफाफे पर विचार कर सकती है। उधर, वायपी के खिलाफ बिलासपुर के एडिशनल एसपी रोहित झा ने एहतियातन यूपीएससी को शिकायत भेजी है कि उन्हें आईपीएस अवार्ड न किया जाए। असल में, रापुसे अधिकारी नहीं चाहते कि ऐसी कोई परंपरा बनें, जिससे दूसरे कैडर के अफसर आईपीएस बनने लगे। इससे खतरा यह होगा कि केंद्रीय आम्र्स फोर्स के अधिकारियों में राज्य पुलिस में संविलयन कराके आईपीएस बनने की होड़ मच जाएगी। रापुसे अधिकरी इसको लेकर कोर्ट-कचहरी सब कर चुके हैं। मगर कहीं से भी राहत नहीं मिली।

वेटिंग क्लियर

2013 बैच के सात में से पांच आईएएस कलेक्टर बन गए हैं। पिछली सूची में अजीत बसंत और इंद्रनील च्रदवाल का नम्बर लगा था। अब दो बच गए हैं। डाॅ0 जगदीश सोनकर और राजेंद्र कटारा। चूकि यह बैच कलेक्टर बनने में काफी लेट हो गया है। लिहाजा, सरकार की कोशिश है कि किसी तरह इस बैच की वेटिंग क्लियर की जाए। भले ही बाद पारफारमेंस ठीक न होने पर छह महीने में वापिस बुला लिया जाए, मगर कलेक्टर बनने का एक मौका दिया जाएगा। इसके लिए कुछ प्रमोटी कलेक्टरों को वापिस रायपुर बुलाने की खबर है। इस तारतम्य में अगली लिस्ट तीन-चार कलेक्टरों की निकल सकती है।

एसपी भी…

एसपी की लिस्ट अब ऐसी हो गई है कि लोग बीरबल को याद करने लगे हैं। छह महीने से ज्यादा हो गया, कई अफसर एसपी बनने की खुशी में दोस्तो को पार्टी-वार्टी भी दे डाली। लेकिन, खाए पीये कुछ नहीं, गिलास फोड़े बारह आना हो गया। अब सुनते हैं छोटी लिस्ट आ सकती है बाकी दिवाली के बाद देखा जाएगा।

गोल्डन पीरियड

राज्य वन सेवा के छह अफसरों को आईएफएस अवार्ड करने के लिए 28 जून को डीपीसी होने जा रही है। ये अफसर नौ-दस साल में एसीएफ से आईएफएस बन जाएंगे। जबकि, पहले 15 साल से ज्यादा लग जाता था। राप्रसे और रापुस अधिकारियों को आज भी इतना वक्त लग जाता है आईएएस और आईपीएस अवार्ड होने में। मगर आईएफएस में पोस्ट काफी वैकेंट हैं, इसलिए उन्हें आईएफएस बनने समय से पहले असवर मिल जा रहा।

मरवाही का इनाम या…?

जय सिंह अग्रवाल को सरकार ने दंतेवाड़ा, सुकमा से चेंज कर बिलासपुर, जांजगीर और जीपीएम जिले का प्रभारी मंत्री बना दिया। उनसे पहिले ताम्रध्वज साहू बिलासपुर और टीएस सिंहदेव जांजगीर के प्रभारी मंत्री थे। दोनों को अपेक्षाकृत बेहद छोटे जिले का प्रभार देकर उनकी जगह पर जयसिंह को बिठाया गया है। अब इसे मारवाही इलेक्शन में जीत का ईनाम माना जाए या कुछ और….?

पांचवें आईएएस

रायपुर कलेक्टर रहे एस भारतीदास ने मुख्यमंत्री सचिवालय में अपना कामकाज संभाल लिया है। वे सूबे के सबसे ताकतवर सचिवालय का हिस्सा बनने वाले रायपुर के पांचवे कलेक्टर हैं। उनसे पहिले सुनिल कुमार मुख्यमंत्री स्व0 अजीत जोगी के सिकरेट्री रहे। याद होगा, जोगी के शपथ लेने के बाद पहली नियुक्ति सुनिल कुमार की हुई थी। उनके बाद सुबोध सिंह रमन सिंह की दूसरी पारी में सिकरेट्री अपाइंट हुए। फिर डाॅ0 रोहित यादव को रमन सिंह ने अपना स्पेशल नियुक्त किया। कांग्रेस की सरकार आई तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले साल सिद्धार्थ कोमल परदेसी सिकरेट्री को अपना सचिव बनाया और अब भारतीदासन को। हालांकि, इन पांचों में अंतर यह है कि सुबोध और भारतीदासन रायपुर कलेक्टर से सीधे सीएम सचिवालय में जंप लगाए। बाकी कुछ समय बाद। दरअसल, राजधानी के कलेक्टर का फायदा यह होता है कि रिलेशन सबसे अच्छे बन जाते हैं….सीएम हाउस आना जाना लगा रहता है। इस दौरान मुख्यमंत्री भी परख लेते हैं, कौन उनके काम का है।

गैर आईएएस चेयरमैन

हेमंत वर्मा बिजली नियामक आयोग के नए चेयरमैन होंगे। इसी स्तंभ में हमने बताया था कि अबकी नाॅन आईएएस नियामक आयोग के प्रमुख बन सकते हैं। और ऐसा ही हुआ। रिटायर आईएएस डीएस मिश्रा इस पद से 2 अप्रैल को रिटायर हुए थे। उसके बाद से यह पद खाली था। हेमंत वर्मा से पहले मनोज डे गैर आईएएस के तौर पर इस आयोग को संभाल चुके हैं। आईएएस से एसके मिश्रा, नारायण सिंह और डीएस मिश्रा इस आयोग के चेयरमैन रह चुके हैं।

शोे मैन नहीं

किसी भी पार्टी में उपाध्यक्ष शोभा का पद माना जाता है…उसके पास कोई खास दायित्व नहीं होते। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात साल में पहली बार बीजेपी के उपाध्यक्षों की बैठक बुलाकर इस पद की अहमियत बढ़़ा दी। हालांकि, इस चक्कर में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह को रायपुर की एक अहम बैठक छोड़कर दिल्ली जाना पड़ा। उनकी गैर मौजूदगी में राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने यहां पार्टी की बैठक ली। रमन सिंह अलबत्ता जूम के जरिये दिल्ली से इस बैठक में कनेक्ट हुए।

लाल बत्ती

लाल बत्ती की लिस्ट सुप्रीम अनुमोदन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास पहुंच गई है। रायपुर से गहन मंथन के बाद चूकि प्रदेश प्रभारी महासचिव पीएल पुलिया, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का हस्ताक्षर हो चुका है, इसलिए दिल्ली में सूची रुकने की कोई आशंका नहीं है। इसमें अभी तक जो जानकारी आ रही है, उसमें बिलासपुर से अटल श्रीवास्तव को पर्यटन बोर्ड, प्रवक्ता आरपी सिंह को व्रेबरेज कारपोरेशन और उत्तम वासुदेव को युवा आयोग की कमान मिल सकती है।

अच्छी बात

डीजीपी डीएम अवस्थी के बेटे की पिछले हफ्ते शादी हुई। उसमें मुख्यमंत्री आए और गिनकर चार मंत्री। आईएएस से दो, आईएफएस से एक और अपने कैडर आईपीएस से तीन अफसरों को उन्होंने आमंत्रित किया था। कोरोना प्रोटोकाॅल के तहत 50 लोगों को बुलाया जा सकता है। उनके यहां बमुश्किल 40 लोग जुटे। बढ़ियां है। जब तक कोरोना का खतरा है, लोगों को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बिलासपुर और कोरबा एसपी एक्सचेंज होंगे, इस खबर में कितनी सत्यता है?
2. आईएएस की आने वाली लिस्ट में किस बड़े जिले के कलेक्टर पर खतरा मंडरा रहा है?

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