शनिवार, 28 जनवरी 2023

गंगा किनारे वाले एसपी

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 29 जनवरी 2023

गंगा किनारे वाले एसपी

राज्य सरकार ने देर रात छह जिलों के एसपी बदल दिए। एकाध नाम जरूर चौंकाया। फिर भी इस बार लिस्ट ठीक निकली है। सरकार ने संतोष सिंह को बिलासपुर और सदानंद को रायगढ़ का एसपी बनाया है। गंगा किनारे वाले दोनों आईपीएस ठीक-ठाक अफसर माने जाते हैं। बिलासपुर में संतोष जैसे बैलेंस अफसर की ही जरूरत थी। राजनेताओं के वर्चस्व की लड़ाई में बिलासपुर की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि उसे चलाना सबके बूते की बात नहीं। सदानंद भी रिजल्ट देने वाले आईपीएस हैं। मगर मैदानी इलाके में उन्हें कभी काम दिखाने का मौका मिला नहीं। नारायणपुर में जख्मी होने के बाद भी उन्होंने स्थिति बिगड़ने नहीं दी। इसका उन्हें ईनाम मिला...रायगढ़ जैसा बड़े जिले की जिम्मेदारी मिली। साथ में जयपुर के पिंक महल जैसी सुविधाओं से लैस एसपी बंगला भी। इसके अलावा उदय किरण को सरकार ने कोरबा भेजा है। वहां अब ट्वेंटी-20 मैच देखने को मिलेगा। इस लिस्ट के नामों को देखकर प्रतीत होता है कि पीएचक्यू को वेटेज मिला है।

छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष-1

भाजपा ने 17 अगस्त को धरमलाल कौशिक को हटाकर उन्हीं के बिरादरी के नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया था...तब किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि चुनावी साल में पार्टी को ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ जाएगा। आलम यह है कि पांच महीने के भीतर चंदेल की कुर्सी डोलती प्रतीत हो रही है। उनका बेटा दुष्कर्म केस में फंस गया है। और गिरफ्तारी के लिए पुलिस लगातार छापे मार रही है। चंदेल इस्तीफा देंगे या कंटीन्यू करेंगे, ये पार्टी का मामला है। ये जरूर है कि इसी तरह का एक मामला बस्तर से जुड़े एक नेता प्रतिपक्ष के साथ भी 2007 में हुआ था। नेता प्रतिपक्ष का बेटा सामान्य परिवार की लड़की को लेकर फरार हो गया था। इस पर बड़ा बवाल हुआ। चूकि नेता प्रतिपक्ष का अपना सम्मान था। सो, जवानी की भूल मानते हुए इसे संजीदगी से हैंडिल किया गया। तब के एसपी स्व0 राहुल शर्मा ने इस केस में स्मार्टली काम किया। हालांकि, वह आम सहमति का मामला था। तब भी नेताजी 2008 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। चंदेल का मामला थोड़ा अलग है कि इसमें पीड़िता खुद रिपोर्ट दर्ज करवा गंभीर आरोप लगा रही है। सो, लगता है मामला और तूल पकड़ेगा।

छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष-2

प्रोटोकॉल और गाड़ी, घोड़ा, बंगला के तामझाम के चलने नेता प्रतिपक्ष पद का बड़ा क्रेज रहता है। विरोधी पक्ष का हर विधायक चाहता है कि उसे भी सदन के भीतर लीड करने का मौका मिले। मगर उन्हें यह भी जान लेनी चाहिए कि छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी के साथ एक अजीब मिथक जुड़ गई है। नेता प्रतिपक्ष या तो चुनाव हार जाता है या फिर उसकी राजनीति खतम हो जाती है। याद कीजिए, राज्य बनने के बाद नंदकुमार साय नेता प्रतिपक्ष बनाए गए थे। 2003 में वे लाठी खाकर अपना पैर ही नहीं तोड़वाए बल्कि मरवाही से अगला चुनाव भी हार गए। उनके बाद 2008 में महेंद्र कर्मा नेता प्रतिपक्ष बनें। 2008 में वे भी अपनी कुर्सी नहीं बचा सके। इसके बाद उनका सियासी कैरियर लगभग अस्त होता गया। कांग्रेस के लोग ही सल्वा जुडूम आंदोलन को लेकर उन पर सवाल खड़े करने लगे थे। कर्मा के बाद रविंद्र चौबे नेता प्रतिपक्ष बनें। चौबे भी 2013 का चुनाव हार गए। भाजपा का सामान्य सा नेता ने उन्हें पटखनी दे दी। करीब 30 साल से उनके परिवार का साजा विधानसभा सीट पर वर्चस्व था। रविंद्र चौबे जितना अनुभवी आदमी आज बेहद लो प्रोफाइल में काम रहे हैं। चौबे के बाद टीएस सिंहदेव ने जरूर नेता प्रतिपक्ष के चुनाव हारने के मिथक को ब्रेक किया। अंबिकापुर से वे फिर निर्वाचित हुए। लेकिन, उसके बाद उनकी स्थिति आप देख ही रहे हैं। धरमलाल कौशिक को जब हटाया गया और बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा को मौका नहीं मिला तो निश्चित तौर पर ये चारों नेता दुखित हुए होंगे। लेकिन, कौशिक, बृजमोहन, अजय, शिवरतन को ईश्वर को थैंक्स बोलना चाहिए। और, सीएम भूपेश बघेल से गुरू मंत्र लेनी चाहिए। वे पीसीसी अध्यक्ष बनना पसंद किए न कि नेता प्रतिपक्ष। और देखिए आज वे कहां हैं।

बड़ा ब्रेक

राज्य सरकार ने एसीएस सुब्रत साहू का वर्क लोड कम करते हुए उनकी जगह जनकराम पाठक को आवास और पर्यावरण सचिव बनाया है। पाठक के लिए यह बड़ा ब्रेक होगा, क्योंकि उनका 2007 बैच अभी सिकरेट्री प्रमोट नहीं हुआ और उन्हें आवास और पर्यावरण जैसे विभाग का चार्ज मिल गया। किसी भी राज्य में आवास और पर्यावरण टॉप फाइव का क्रीम विभाग माना जाता है। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब स्पेशल सिकरेट्री रैंक के प्रमोटी आईएएस को यह जिम्मेदारी मिली हो। पाठक को सरकार ने नवंबर में रजिस्ट्रार पद पर पोस्टिंग देकर अगले दिन काम करने से रोक दिया था। वे एक दिन भी बतौर रजिस्ट्रार काम नहीं कर पाए। क्योंकि, रजिस्ट्रार रहते उन्होंने सहकारी बैंकों के अधिकारियों, कर्मचारियों का वेतन तीन गुना बढ़ा दिया था। सहकारी बैंक के सीईओ का वेतन चीफ सिकरेट्री से ज्यादा मिलता है। रिव्यू मीटिंग में जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पता चला तो वे बेहद नाराज हुए। उनके सख्त निर्देश पर सहकारिता विभाग ने जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है। बहरहाल, आवास, पर्यावरण विभाग के सचिव बनने से पाठक का कद काफी बढ़ गया है।

तारण और तंबोली

आईएएस के ट्रांसफर में जिन अधिकारियों को महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिली, उनमें तारण सिनहा, अय्याज तंबोली और जनकराम पाठक शामिल हैं। पाठक का जिक्र उपर हो चुका है। तारण सिनहा जांजगीर के बाद अब रायगढ़ जैसे महत्वपूर्ण जिले के कलेक्टर बन गए हैं। राजनांदगांव और जांजगीर के बाद उनका यह तीसरा जिला होगा। तंबोली को सरकार ने इस बार नगरीय प्रशासन विभाग के स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार का दायित्व सौंपा है। याने नगरीय प्रशासन का प्रमुख। उनके दो बैचमेट...सौरभ और प्रियंका शुक्ला फिलवक्त कलेक्टर हैं। हालांकि, जगदलपुर कलेक्टर से हटने के बाद तंबोली को ढंग की पोस्टिंग नहीं मिली थी। उनके पास ऐसे-ऐसे पद थे, जिसका नाम उन्हें भी ध्यान नहीं रहता होगा। सरकार ने पहली बार मेडिकल एजुकेशन में आईएएस को बिठाया है। अभी तक डायरेक्टर हेल्थ या कमिश्नर हेल्थ ही मेडिकल एजुकेशन देखता था। मगर अब नम्रता गांधी को मेडिकल एजुकेशन का कमिश्नर अपाइंट किया है। राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ती जा रही....डॉक्टर बैकग्राउंड के डीएमई याने डायरेक्टर से कॉलेज और अस्पताल संभल नहीं पा रहा है। डॉक्टर डीएमई ने 22 साल में एक ही काम किया है अपने बेटे-बेटियों को जालसाजी करके एमबीबीएस और पीजी में दाखिला करा लिया।

पहली महिला एसीबी चीफ?

आईपीएस पारुल माथुर एसपी की रिकार्ड पारी खेलकर रायपुर लौट रही हैं। राज्य सरकार ने उन्हें डीआईजी एसीबी बनाया है। छत्तीसगढ़ की वे पहली महिला एसपी होंगी, जिन्हें पांच जिले के एसपी रहने का मौका मिला। पारुल जिन जिलों की एसपी रहीं, उनमें बेमेतरा, मुंगेली, जांजगीर, गरियाबंद और बिलासपुर शामिल है। इसके अलावा रेलवे एसपी भी। चूकि मार्च में एसीबी चीफ डीएम अवस्थी रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में समझा जाता है कि डीआईजी के तौर पर पारुल ही एसीबी की कमान संभालेंगी।

एसपी का रिकार्ड

छत्तीसगढ़ में नौ जिले का एसपी रहने का रिकार्ड 2004 बैच के आईपीएस बद्री नारायण मीणा के नाम है। वे कुल नौ जिले के एसपी रहे। मगर उनका रिकार्ड ब्रेक करने 2011 बैच के आईपीएस संतोष सिंह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। संतोष को कल सरकार ने बिलासपुर का एसपी अपाइंट किया। उनका ये आठवां जिला है। इससे पहले वे कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, राजनांदगांव और कोरबा के कप्तान रह चुके हैं। हालांकि, बद्री 2014 में डेपुटेशन पर आईबी में चले गए थे। वहां से आने के बाद उन्होंने जांजगीर और दुर्ग जिला किया। संतोष बिना आउट हुए पिच पर टिके हुए हैं। याने बिलासपुर में ज्वाईन करते ही वे लगातार आठ जिले का रिकार्ड बनाएंगे। और ताज्जुब नहीं...जिस सधे अंदाज में खेल रहे हैं, दो-एक जिला वे और कर लें।

सिकरेट्री प्रमोशन

डीपीसी ने 2007 बैच के आईएएस अधिकारियों को सिकरेट्री प्रमोट करने हरी झंडी दे दी है। डीपीसी की मंजूरी के बाद फाइल अनुमोदन के लिए सीएम हाउस भेजी गई है। सीएम के हस्ताक्षर के बाद समझा जाता है, जल्द आदेश निकल जाएगा। इस बैच में सात आईएएस हैं। इनमें से छह अफसरों के प्रमोशन के लिए डीपीसी ने ओके कर दिया है। जनकराम पाठक के खिलाफ केस दर्ज होने की वजह से कमेटी ने उनका प्रमोशन रोक दिया। जिन नामों को डीपीसी में हरी झंडी मिली है, उनमें शम्मी आबिदी डायरेक्टर ट्राईबल, हिमशिखर गुप्ता स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार सहकारिता और वाणिज्यिक कर, मोहम्मद कैसर हक मनरेगा आयुक्त और यशवंत कुमार रायपुर डिवीजनल कमिश्नर शामिल हैं।

किस्मत हो तो

राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने अशोक अग्रवाल पोस्टिंग के मामले में गजब के किस्मती हैं। रायगढ़ और कोरबा, राजनांदगांव जैसे जिले के कलेक्टरी किए। सचिव बने तो आबकारी से नीचे कभी विभाग नहीं मिला। रिटायर होते ही सरकार ने सूचना आयुक्त बना दिया और सूचना आयुक्त से रिटायर हुए तो अब रेड क्रॉस सोसाइटी का चेयरमैन। जिलों में कलेक्टर रेड क्रॉस के चेयरमैन होते हैं। और राज्य में अब अशोक अग्रवाल।

अंत में दो सवाल आपसे

1. 31 जनवरी को रिटायर होने जा रहे आबकारी और पंजीयन सचिव निरंजन दास क्या संविदा में सेवा देने के लिए आवेदन किए है?

2. पीएस एल्मा ने कौन सी जादुई छड़ी घुमाई कि महीने भर में वे फिर से कलेक्टर बन गए?


शनिवार, 21 जनवरी 2023

प्रोटोकॉल की सीमाएं

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 22 जनवरी 2023

प्रोटोकॉल की सीमाएं

आईएफएस अफसर आलोक कटियार को सरकार ने जब 25 हजार करोड़ का जल जीवन मिशन का दायित्व सौंपा तो उन्हें इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि उन्हें इस मिशन का काम किस कदर पटरी से उतर चुका है और वहां कैसे-कैसे खटराल अधिकारियों से साबका पड़ेगा। जाहिर है, सियासी पृष्ठभूमि वाले कटियार आईएफएस बिरादरी में दबंग अधिकारी माने जाते हैं। मगर जल जीवन मिशन का शुरूआती अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा। विधानसभा में जब बिलासपुर के 100 करोड़ से अधिक के टेंडर घोटाले में हंगामा हुआ, तो वहां के ईई को सरकार ने सस्पेंड कर दिया। पीएचई के विभागीय वेबसाइट में कटियार ने सस्पेंशन का आर्डर अपलोड करते हुए लिखा...रेड अलर्ट। इस पर ईई ने न केवल थैंक्यू लिखा बल्कि पूरा प्रदेश का ब्योरा लिख लिख डाला... किस जिले में जल जीवन मिशन में क्या खेल हो रहा है। राज्य बनने के बाद अब तक मुझे इस तरह का वाकया याद नहीं कि जिले स्तर का कोई अधिकारी विभाग के सुप्रीमों की कमेंट पर कभी ऐसा पलटवार किया होगा। सिस्टम को इसे देखना चाहिए, अफसरों में इतना साहस कहां से आ रहा है...मर्यादा और प्रोटोकॉल की सीमाएं टूट क्यों रही हैं।

क्रिकेट की टिकिट या...

भारत-न्यूजीलैंड वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट मैच की टिकिट ने रेलवे के तत्काल टिकिट को पीछे छोड़ दिया। रेलवे के तत्काल के लिए आप सुबह कंप्यूटर खोल कर बैठ जाएं या रेलवे के काउंटर पर खड़े हो जाएं तो सबको नहीं फिर भी दस-बारह लोगों को मिल ही जाती है। मगर क्रिकेट की जादुई टिकिट ने लोगों को ऐसा छकाया कि पूछिए मत! मैच के आखिरी दिन तक लोग पैसा लिए टिकिट की जुगाड़ में लगे रहे...ठेकेदार, सप्लायर नोटों की गड्डी लेकर भटकते रहे...किसी भी रेट में मिल जाए...वरना, साहब नाराज और साहब नाराज तो रोजी-रोटी का सवाल। दरअसल, बड़े अफसरों का ये अपना स्टाईल होता है...ये सदियों से चला आ रहा है...कोई भी पैसे लगने वाला काम हो, विभागों के ठेकेदारों का यह परम कर्तव्य है।

सिरदर्द

रायपुर में बैठकर वनडे क्रिकेट मैच देखना लोगों के लिए बड़ा रोमांचकारी रहा मगर उनसे पूछिए, जो सिस्टम में थोड़ा-बहुत प्रभाव रखते हैं। लास्ट तीन दिन उनका इतना हैट्रिक रहा कि लोग फोन उठाने में घबराने लगे। कॉल रिसीव भी किए तो एक ही रोना क्या बताएं...बड़ा बुरा हाल है, लोग पास के लिए तंग कर डाले हैं। पास मांगने वालों की भी जरा सुनिये। किसी को भी एक पास नहीं, दो चाहिए। एक उनके लिए, दूसरा उनके दोस्त के लिए। क्या है कि वे मैच देखने अकेले नहीं जाएंगे...अकेल जाएंगे तो मैच देखने का मजा नहीं आएगा। अगर गैलरी की टिकिट मिली तो उपर गोल्ड का नहीं मिल पाएगा क्या? और गोल्ड का मिल गया तो उपर में मेरे चिंटु को मजा नहीं आता, मुझे लोवर का दे दीजिए। आलम यह हो गया था कि लगा कैसे 21 जनवरी का दिन निकले।

2 करोड़ का काम, 40 का बिल

प्रदेश भर के टेंट वालों का करीब ढाई सौ करोड़ रुपए पिछले चार साल से फंसा हुआ है। आलम यह हो गया है कि टेंट वाले अब 26 जनवरी का काम करने में भी हीलाहवाला कर रहे हैं। जिलों में कलेक्टर टेंट वालों को हड़काकर सरकारी काम करवा लेते हैं और पेमेंट के लिए पीडब्लूडी पर डाल देते हैं। एक नेताजी की बेटे की शादी हो रही है, उनका भी प्रेशर...टेंट लगा दो, फलां महोत्सव के आयोजन में बिल जोड़कर कलेक्टर को भेज देना। दरअसल, जो हाल अधिकारियों का है, वहीं नेताओं का भी। अधिकारी खुद के पैसे से अपने मोबाइल का रिचार्ज तक नहीं कराना चाहते, बाकी चीजें तो अलग है। अब नेताजी लोग दोनो हाथ से बटोर रहे हैं, फिर भी टेंट भी मुफ्त का चाहिए। नेताओं और अफसरों का सम्मान कम हो रहा, ये भी एक वजह है। ये दोनों कौम जेब से एक पैसा नहीं निकालना चाहता। जो कैश घर पहुंच गया, उससे इतना मोह माया कि छूना नहीं। इसका फायदा नीचे वाले भी उठाते हैं। एक टेंट वाले ने दो करोड़ का सरकारी काम किया और 40 करोड़ बिल भेज दिया। उस चक्कर में बाकी टेंट वाले फंस गए हैं।

ऐसा भी हुआ है 

भारत-न्यूजीलैंड मैच से छत्तीसगढ़ में क्रिकेट का खुमार चढ़ा हुआ है। ऐसे में, क्रिकेट स्टेडियम से जुड़े रोचक तथ्य भी आपको जानना चाहिए। बात 2013 की है...स्टेडियम के उद्घाटन के पांच बरस बाद पहली बार आईपीएल की मेजबानी मिली थी। मगर स्टेडियम की कोई तैयारी थी नहीं। टाईम भी नहीं था। यही कोई डेढ़-एक महीने बचे होंगे। जल्दीबाजी के सरकारी काम कैसे होते हैं, ये बताने की जरूरत नहीं। उस समय आईपीएस राजकुमार देवांगन स्पोर्ट्स कमिष्नर थे। उन्होंने स्टेडियम में कुसिर्यो से लेकर तमाम इंतजामात के लिए 65 लाख का बजट सरकार को दिया। खर्च का ब्यौरा देख तब के चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार भड़क गए। सबसे पहले उन्होंने सीएम से बात कर राजकुमार को हटवाकर आरपी मंडल को खेल सचिव और खेल आयुक्त बनवाया। इसके बाद काट-छांट करके स्टेडियम के लिए 34 लाख का बजट फायनल हुआ। सीएस ने खुद दो बार स्टेडियम का विजिट किया। और टीम मंडल ने आईपीएल से हफ्ते भर पहले स्टेडियम को तैयार कर सरकार को सौंप दिया। इसमें सबसे बड़ी बात यह हुई कि 34 लाख की बजाए 29 लाख में पूरा काम कंप्लीट हो गया। छत्तीसगढ़ के 22 साल में यह पहला और आखिरी काम होगा, जो बजट से कम में कंप्लीट हुआ।

सचिवों का रात्रि विश्राम

पिछले दो दशकों से यह सुनते आ रहे....जो भी सरकार बनती है प्रभारी सचिवों को निर्देश जारी करती है कि सभी को अपने प्रभार वाले जिलों में एक रात गुजारनी होगी। जीएडी से इसका आदेश जारी होता है मगर वह कभी इसकी सुध नहीं लेता कि कोई सिकरेट्री किसी जिले में रात गुजारी क्या? अभी हाल ही में एक अफसर ने इस पर चुटकी ली...सिकरेट्री मंत्रालय में नहीं बैठ रहे तो जिलों में रात्रि विश्राम...ये तो जोक हैं।

दीया तले अंधेरा

पुलिस मुख्यालय के वित्त और प्रबंध विभाग का क्लर्क अधिकारियों के आंखों में धूल झोंककर जिलों को निर्माण और मरम्मत मद का फंड ट्रांसफर करता रहा। नोटशीट पर एडीजी का खुद ही दस्तखत कर एप्रूवल दे देता था और ट्रांसफर भी। असल में, जिले वाले पीएचक्यू के बाबुओं से सेटिंग रखते हैं, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा पैसा मिल जाए। पैसा मिलेगा तभी तो ठेकेदारों से उन्हें कमीशन मिलेगा। वो तो सुकमा के एक पुलिस अधिकारी के फोन से मामले का भंडाफोड़ हो गया...वरना यह खेल बदस्तूर जारी रहता। सुकमा के पुलिस अधिकारी ने एडीजी को फोन लगाकर आग्रह किया...सर थोड़ा और अधिक फंड बढ़ा देते। एडीजी हक्के-बक्के रह गए...बोले, मैंने तो ऐसा कोई फंड जारी नहीं किया है। इसके बाद क्लर्क को निलंबित कर दिया गया। मगर पता नहीं किधर से क्या चकरी चली कि फिर बहाल भी।

पांच कमिश्नर

हाउसिंग बोर्ड में पता नहीं किस ग्रह की दशा खराब है कि कोई कमिश्नर टिक नहीं पा रहा है। सरकार बनने के बाद पहली बार शम्मी आबिदी को कमिश्नर अपाइंट किया गया था। उनके बाद फिर भीम सिंह आए। भीम के बाद अय्याज तंबोली, फिर धर्मेंद्र साहू और अब सत्यनारायण राठौर। अब देखना है, सत्यनारायण कब तक क्रीज पर टिक पाते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति के बाद छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल की सर्जरी होगी?

2. नेता प्रतिपक्ष बेटे के मामले में मुश्किलों मे घिर गए हैं और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव का काफिल बार-बार हादसे का शिकार हो जा रहा, बीजेपी के साथ ये अपशकुन क्यों हो रहा है?



रविवार, 15 जनवरी 2023

एसपी का रिपोर्ट कार्ड

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 15 जनवरी 2023

एसपी का रिपोर्ट कार्ड

भानुप्रतापपुर बाइ इलेक्शन के पहले से एसपी की लिस्ट निकलने की चर्चा चल रही है। अब चुनाव हो गया और विधानसभा सत्र समाप्त हुए भी 10 दिन निकल गए। अटकलों का दौर फिर चल पड़ा है...कप्तान साब लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई है। फिर भी, कोई क्लियरिटी नहीं है कि लिस्ट कब निकलेगी। मगर ये जरूर है कि इस बार बड़े-बड़े विकेट चटकेंगे। कई बड़े जिलों के एसपी को इस बार सरकार उनकी कप्तानी वापिस लेगी। तो रिजल्ट देने वाले कुछ अच्छे कप्तानों को और बड़े जिलों में उतारेगी। पता चला है, डीजीपी अशोक जुनेजा और नए खुफिया चीफ अजय यादव इससे पहले सभी पुलिस अधीक्षकों के पारफारमेंस का एक डेटा तैयार करवा रहे हैं। इसमें इंटेलिजेंस से भी इनपुट्स लिए जा रहे हैं। इससे परखा जाएगा कि कौन कप्तान मैदान में रहने लायक है और कौन विश्राम देने लायक। परफारमेंस का आंकलन करने में लगता है, 26 जनवरी निकल जाएगा। याने जनवरी लास्ट या फरवरी फर्स्ट वीक तक लिस्ट की उम्मीदें की जा सकती है। तब तक एसपी साब लोग नाहक परेशां न हों।

पुलिस या...?

यूं तो पुलिस पर अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगते हैं...मगर राजधानी से सटे एक ऐसा जिला है, जहां पुलिस की भूमिका क्या होती है, यहां लिखना मुनासिब नहीं होगा। और ये आज से नहीं, राज्य बनने के पहले से चल रहा है। कबिलाइ्र्र पोलिसिंग। दरअसल, ये ऐसा जिला है, जहां सूबे के अधिकांश आईपीएस अधिकारी एसपी या आईजी के तौर पर पोस्टेड रह चुके हैं। और, सबके दो-चार मुंहलगे सिपाही हैं। इसके अलावा बीजेपी के कई बड़े नेता हैं तो कांग्रेस तो सत्ताधारी पार्टी ही है। थानों के 100 से अधिक पुलिस वालों का सुबह का पहला काम होता है कांग्रेस और भाजपा नेताओं के घर जाकर उनका पैर छू आना और आईपीएस अफसरों को सैल्यूट मार पूछ लेना...साब कोई आदेश। ऐसे सिपाहियों का कौन है, जो बाल बांका कर ले। इसकी आड़ में फिर पुलिस वाले अपना खेला करते हैं। कई सिपाही अपने थानेदार और इलाके के सीएसपी की नही सुनते। ऐसे में भला क्या कर लेगा एसपी।

रेरा का पेड़ा-1

रेरा याने रियल इस्टेट रेगुलरटी अथॉरिटी के फर्स्ट चेयरमैन विवेक ढांड रिटायमेंट के दो दिन पहले रिटायर हो गए। असल में, 15 जनवरी को उनका पांच साल पूरा होता मगर इस दिन रविवार है और उससे पहले शनिवार। दोनों दिन अवकाश। लिहाजा, 13 जनवरी को उनकी विदाई हो गई। ढांड के जाने के साथ ही ब्यूरोक्रेसी के गलियारों में ये चर्चाएं शुरू हो गई कि रेरा का अगला चेयरमैन कौन होगा। इसमें पहला नाम पीसीसीएफ संजय शुक्ला का लिया जा रहा है। उनका पलड़ा भारी होने की एक बड़ी वजह यह है कि वे हाउसिंग सेक्टर में काम कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर के साथ ही लंबे समय तक आवास और पर्यावरण विभाग के सिकरेट्री रहे। यद्यपि उनके रिटायरमेंट में अभी चार महीने बाकी है। मई तक उनका कार्यकाल है। मगर तब तक खाली भी रखा जा सकता है। इससे पहले विवेक ढांड के लिए मुख्य सूचना आयुक्त का पद डेढ़ साल से अधिक समय तक खाली रखा गया। ये अलग बात है कि बाद में वे रेरा के चेयरमैन बन गए। वैसे, संजय के अलावा और किसी बड़े अफसर का रिटायरमेंट भी नहीं हो रहा। सो, ब्यूरोक्रेसी से कोई ऐसा नाम नहीं दिख रहा, जिसे रेरा चेयरमैन की कमान सौंपी जा सकें।

रेरा का पेड़ा-2

रेरा चेयरमैन का पद हाईकोर्ट के जस्टिस के बराबर है। हालांकि, ये रेरा के एक्ट में नहीं है। मगर पिछली सरकार ने चेयरमैन की पोस्टिंग से पहले इस पद को हाईकोर्ट के सीटिंग जज के समतुल्य कर दिया था। रेरा का ट्रिब्यूनल जब तक आब्जेक्शन नहीं करें तब तक यह व्यवस्था चलती रहेगी। ट्रिब्यूनल के चेयरमैन हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस हैं। ऐसे में, सीटिंग जज के बराबर आदमी रेरा का चेयरमैन कैसे होगा? खैर ये तकनीकी विषय है। लोगों की दिलचस्पी इसमें है कि सलेक्शन कमेटी किस नाम पर मुहर लगाती है। सलेक्शन कमेटी में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या उनका कोई नामिनी जस्टिस अध्यक्ष होते हैं और चीफ सिकरेट्री तथा एक सीनियर सिकरेट्री मेम्बर। हालांकि, होता वही है, जिसे सरकार चाहती है। सरकार जिसे चाहेगी, उसे ही रेरा का पेड़ा मिलेगा।

राहत

रेरा चेयरमैन विवेक ढांड के रिटायरमेंट से रेरा ट्रिब्यूनल के मेम्बर धनंजय देवांगन का कांफर्टनेस लेवल बढ़ा होगा। वो ऐसे कि विवेक ढांड तेज आईएएस रहे हैं। पौने चार साल तक चीफ सिकरेट्री। जब वे सीएस थे, तब धनंजय सिकरेट्री भी प्रमोट नहीं हो पाए थे। सरकार ने पिछले महीने धनंजय को रेरा ट्रिब्यूनल का सदस्य नियुक्त कर दिया। इस पर ब्यूरोक्रेसी में चुटकी ली जा रही थी...ढांड साब के फैसले के खिलाफ अपील की धनंजय सुनवाई करेंगे। भले ही ये मजाक था मगर धनंजय के लिए ये सुनना थोड़ा मुश्किल तो होता होगा। जाहिर है, पुराने बॉस का खौफ जल्दी जाता कहां है।

सीएस का दस्तखत क्यों नहीं?

छत्तीसगढ़ देश का पहला स्टेट होगा, जहां आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर आदेश चीफ सिकरेट्री के दस्तखत से नहीं, जीएडी सिकरेट्री के दस्तखत से निकलता है। बाकी सभी राज्यों में आईएएस से संबंधित कोई भी आदेश चीफ सिकरेट्री के साइन से निकलता है। यहां भी अजय सिंह तक यही परिपाटी रही। उनके बाद पता नहीं कैसे मामला बदल गया। अब चीफ सिकरेट्री नोटशीट पर हस्ताक्षर करते हैं। उसके बाद आदेश निकालने के लिए फाइल जीएडी में भेज दी जाती है। हालांकि, वैधानिक और तकनीकी तौर पर इसमें कुछ गलत नहीं है। मगर मर्यादा और प्रोटोकॉल की दृष्टि से ठीक नहीं है। अब एसीएस और प्रिंसिपल सिकरेट्री का ट्रांसफर या सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करें तो उसका आदेश जीएडी सिकरेट्री निकाले तो ये प्रोटोकॉल के हिसाब से ठीक नहीं है। एक सीनियर अफसर को लूप लाईन में भेजा गया था, तो उसका यह दर्द छलक आया था। दरअसल, नोटषीट में आप राष्ट्रपति से साइन करवा कर रख लीजिए, उसे कौन देखता है। मार्केट में तो आदेश की कॉपी मूव होती है।

जनसंपर्क की उम्मीदें

राज्य सरकार ने दिन-रात एक कर बजट तैयार करने वाले वित्त विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को एक महीने का वेतन दिया है। इससे जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की भी उम्मीदें बढ़ गई है। सरकार की छबि बनाने वाला जनसंपर्क ऐसा विभाग है, जो होली हो या दिवाली, शैटर्डे हो या संडे, गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस...पूरा देश जश्न मनाता रहता है...जनसंपर्क अधिकारी ड्यूटी बजा रहे होते हैं। कोविड में कंप्लीट लॉकडाउन था। तब भी जनसंपर्क अधिकारी मुस्तैदी से अपने काम में लगे हुए थे। दूसरी लहर में अपना कर्तव्य निभाते हुए एक अधिकारी और एक कर्मचारी कोविड के शिकार होकर जान गंवा बैठे। बावजूद इसके जनसंपर्क अधिकारियों का हौसला नहीं डिगा। ऐसे में, उनकी उम्मीदों को जायज कहा जा सकता।

उदार मंत्री

एक प्लॉट की तीन रजिस्ट्री करने वाले रायपुर के डिप्टी रजिस्ट्रार को निलंबित करने के डेढ़ महीने के भीतर ही उन्हें बहाल कर धमतरी जिले की जिम्मेदारी सौंप दी गई। पता चला है, इसके लिए मंत्री जय सिंह अग्रवाल की सहमति भी नहीं ली गई। जबकि, क्लास टू के अफसर का रिस्टेट बिना मंत्री के एप्रूवल के नहीं होना चाहिए। विभाग के लोग मानते हैं, मंत्रीजी का पूरा फोकस अपने गृह जिले पर होता है...वहां के लिए बेहद संजीदा माने जाते हैं। इससे उलट बाकी जगहों के लिए बेहद उदार। वरना, दूसरा मंत्री इसे कहां बर्दाश्त करेगा।

तीन केंद्रीय मंत्री?

केंद्रीय मंत्री के लिए वैसे नाम तो कई चल रहे हैं मगर जातीय समीकरणों की दृष्टि से गुहाराम अजगले का पलड़ा भारी दिख रहा है। दरअसल, बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि आदिवासी वर्ग से रेणुका सिंह केंद्र में पहले से मंत्री हैं। ओबीसी में कुर्मी और साहू सबसे प्रभावशाली हैं और इन दोनों से अरुण साव अध्यक्ष और नारायण चंदेल नेता प्रतिपक्ष हैं। झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस भी इसी वर्ग से हैं। दलित वर्ग से जरूर प्रतिनिघित्व नहीं है। पुन्नूराम मोहले के भरोसे पार्टी आखिर कब तक रहेगी। सो, इसके लिए गुहाराम अजगले का नाम आगे बढ़ाया गया है। इससे बीजेपी को सियासी लाभ दिखाई दे रहा है। हालांकि, सीएम भूपेश बघेल ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करके सियासी बढ़त ले ली है। इसको देखते बीजेपी इस पर भी विचार कर रही है कि क्यों न दो मंत्री बना दिया जाए। एक अनुसूचित जाति से और दूसरा ओबीसी से। पहले भी अटल जी की सरकार के समय केंद्र में तीन राज्य मंत्री रहे हैं। डॉ0 रमन सिंह, रमेश बैस और दिलीप सिंह जूदेव। भाजपा को इसका लाभ भी मिला था। ऐसे में, गुहराम का नाम लगभग फायनल बताया जा रहा है, उनके साथ ओबीसी से विजय बघेल का नाम जुड़ जाए, तो आश्चर्य नहीं।

वीसी शुक्ला लास्ट मिनिस्टर

छत्तीसगढ़ बनने के बाद केंद्र में बीजेपी की सरकार हो या कांग्रेस की, राज्य को कभी कैबिनेट मंत्री नही मिला। मनमोहन सिंह सरकार की दूसरी पारी में चरणदास महंत को मंत्री बनाया गया। और बीजेपी में अटल बिहारी सरकार हो या फिर नरेंद्र मोदी की, छत्तीसगढ़ को राज्यमंत्री से ही संतोष करना पड़ा। और राज्य मंत्री को कितना पावर रहता है, इससे आप समझ सकते हैं कि इनमें से कोई मंत्री अपना एक काम नहीं बता सकता। याने सिर्फ काउंटिंग के लिए। रेणुका सिंह अभी केंद्रीय राज्य मंत्री हैं, अचानक किसी से पूछ दिया जाए, तो आदमी हड़बड़ा जाएगा। केंद्र में या तो कैबिनेट हो या स्वतंत्र प्रभार, तभी जलवा-जलाल होगा। छत्तीसगढ़ से आखिरी कैबिनेट मंत्री मध्यप्रदेश के समय वीसी शुक्ला रहे। नरसिम्हाराव ने उन्हें जल संसाधन जैसा मंत्रालय दिया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्रियों के कार्यक्र्रम में कांग्रेस नेताओं को सम्मानपूर्वक बुलाने के लिए पत्र जारी हुआ है...तो सवाल उठते हैं...मंत्री अपने विस क्षेत्रों के अलावा किसी और जिले का दौरा कर रहे हैं क्या?

2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि बसपा की विधानसभा सीटें इस बार बढ़ सकती हैं?


शनिवार, 7 जनवरी 2023

छत्तीसगढ़ में आईपीएस आगे, आईएएस पीछे

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 8 जनवरी 2023

आईपीएस आगे, आईएएस पीछे

2008 के बाद यह पहला मौका होगा, जब प्रमोशन के मामले में आइ्र्रपीएस अधिकारी आईएएस से आगे निकल गए हैं। 2008 में रमन सरकार ने 31 दिसंबर की रात आईपीएस अधिकारियों को प्रमोशन देने के साथ ही नई पोस्टिंग आदेश निकाल दिया था। चूकि तब सोशल मीडिया का दौर नहीं था लिहाजा अफसरों को अगले दिन अखबारों से प्रमोशन और ट्रांसफर की जानकारी मिली। उसके बाद आईपीएस के प्रमोशन लगातार लेट होते गया। 2021 में तो कुछ ज्यादा ही हो गया....नवंबर में जाकर उनका प्रमोशन हो पाया था। सुंदरराज, रतन डांगी और ओपी पाल तब आईजी बने थे। पिछले साल भी डीपीसी फरवरी में हो गई थी मगर आदेश अप्रैल लास्ट में निकल पाया। इसमें दीपांशु काबरा एडीजी बने थे और 2004 बैच आईजी बना था। आश्चर्यजनक ढंग से इस बार सब तड़-फड़ हुआ। 2 जनवरी को डीपीसी हुई और पांच जनवरी को प्रमोशन का आदेश निकल गया। 98 बैच के आईपीएस अमित कुमार का एडीजी प्रमोशन और पहले हो गया था...दिसंबर में ही। अमित सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर हैं। आईएएस इस बार जरूर पिछड़ गए। 2007 बैच को सिकरेट्री बनना है। डीओपीटी से क्लियरेंस नहीं मिलने की वजह से उनका मामला लटका हुआ है। जीएडी के अधिकारी उसी का वेट कर रहे हैं। हालांकि, वहां से अनुमति आने के बाद किसी भी दिन डीपीसी के बाद आदेश निकल सकता है। फिर भी आईपीएस से पीछे होने का मलाल तो मन में होगा ही। दरअसल, कई बार आईएएस को टाईम से पहले प्रमोशन मिल जाता था। 87 बैच के सीके खेतान, आरपी मंडल और वीबीआर सुब्रमणियम ड्यू डेट से छह महीने पहले प्रमोशन पाकर प्रमुख सचिव बन गए थे। इस सरकार में भी सुब्रत साहू को ड्यू डेट से एक साल पहले एसीएस का प्रमोशन मिल गया था।

आईपीएस की कोई बॉडी नहीं

प्रमोशन के मामले में आईपीएस अबकी भले ही बाजी मार ले गए हो मगर कैडर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। आपसी खींचतान में कैडर का बड़ा नुकसान हो रहा है। कई साल से आईपीएस का कांक्लेव नहीं हुआ है। आईएफएस वाले कंक्लेव कराके सीएम को बुला लेते हैं। आईएएस एसोसियेशन फिर इस महीने 13 और 14 जनवरी को कंक्लेव कराने जा रहा है। और, आईपीएस की स्थिति यह है कि उसकी बॉडी तक नहीं बन पाई है। आरके विज के बाद अशोक जुनेजा प्रेसिडेंट बने थे। लेकिन, वे 2021 में डीजीपी बन गए। उसके बाद से आईपीएस एसोसियेशन अपना प्रेसिडेंट चुन नहीं पाया है। एडीजी प्रदीप गुप्ता को प्रेसिडेंट बनाने की तैयारी भी हो गई थी मगर किसी बात को लेकर मामला अटक गया।

आईएफएस से आईएफएस का काम-1

विधानसभा सत्र के आखिरी दिन मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने सदन में मिलेट लंच किया। रागी के पकोड़े, कोदो का वेज पुलाव, बाजरे की रोटी और रागी का हलवा खाकर सीएम से लेकर सभी मंत्री वाह-वाह कर उठे। मिलेट लंच का पूरा क्रेडिट पीसीसीएफ संजय शुक्ला को मिला। दरअसल, ये उन्हीं का आइडिया था और आयोजन भी उन्होंने ही कराया था। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में विपक्ष के नेताओं के साथ मिलेट लंच किया था। सीएम भूपेश बघेल जब पीएम मोदी से दिल्ली में मिले तो मिलेट पर भी बात हुई। प्रधानमंत्री को सीएम भूपेश बघेल से पता चला कि छत्तीसगढ़ में मिलेट पर काफी काम हो रहा है तो उन्होंने कहा, आप रायपुर में मिलेट कैफे चालू करवाइये...मैं देखने के लिए रायपुर आउंगा। इसी से संजय शुक्ला को आइडिया सूझा और विधानसभा में वीवीआईपीज को मिलेट लंच करवा दिया। लजीज लंच लेने के बाद सीएम ने सबके सामने संजय शुक्ला की जमकर तारीफ की...और पिछली सरकार पर तंज भी...हम आईएफएस से आईएफएस का काम करवा रहे हैं...इसलिए अब फॉरेस्ट का काम अच्छा हो रहा है।

आईएफएस से आईएफएस का काम-2

दरअसल, मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सिंह ने आईएफएस अधिकारियों को जिला पंचायतों के सीईओ के साथ ही अन्य विभागों में पोस्टिंग देनी शुरू की थी। बाद में ये छत्तीसगढ़ में भी शुरू हो गया। बीजेपी सरकार में एक समय ऐसा भी था, जब दो दर्जन से अधिक आईएफएस वन विभाग छोड़कर सरकार के दूसरे विभागों में अहम पद संभाल रहे थे। मगर अब इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं। हाल ही में रिजल्ट देने वाले अधिकारी अनिल राय को लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी बनाया गया है। अनिल राय लंबे समय से वन विभाग से बाहर थे। उनकी सेवाएं अब वन विभाग को लौटा दी गई है। बहरहाल, अब चार-पांच आईएफएस अधिकारी ही बचे हैं, जो काफी समय से वन विभाग से बाहर हैं। इनमें पहला नाम आलोक कटियार का है। वे रमन सरकार के समय क्रेडा के सीईओ बनें और आज भी इसे संभाल रहे हैं। हाल ही में उन्हें 25 हजार करोड़ के बजट वाले जल जीवन मिशन का दायित्व सौंपा गया है। दूसरे हैं अनिल साहू। अनिल पिछले दस साल से लगभग वन विभाग से बाहर ही हैं। पिछली सरकार में वे लंबे समय तक स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ रहे। उसके बाद संस्कृति, बीज विकास निगम, मंडी बोर्ड और फिलहाल पर्यटन बोर्ड के एमडी हैं। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के एमडी अरुण प्रसाद भी पिछली सरकार में पौल्यूशन बोर्ड के मेम्बर सिकरेट्री बने थे, उसके बाद सीएसआईडीसी के एमडी और अभी खादी बोर्ड में हैं।

आईएफएस की लिस्ट

पीसीसीएफ के दो पदों के लिए भारत सरकार से क्लियरेंस मिल गया है। किसी भी दिन इसके लिए डीपीसी हो सकती है। सब कुछ ठीक रहा तो अगले हफ्ते पीसीसीएफ प्रमोशन के साथ पोस्टिंग की एक लिस्ट निकल सकती है। पीसीसीएफ बनने वालों में 89 बैच के तपेश झा का नाम सबसे उपर है, उनके बाद 90 बैच के अनिल राय का नम्बर है। तपेश वाईल्ड लाइफ में काम कर चुके हैं। वे अचानकमार टाईगर रिजर्व के डायरेक्टर रहे हैं...काम भी उनका अच्छा रहा। विभाग में चर्चा है, प्रमोशन के बाद उन्हें वाईल्डलाइफ की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इसी तरह अनिल राय को सरकार लघु वनोपज संघ की कमान सौंप सकती है। समझा जाता है इसी मकसद से उन्हें संघ में एडिशनल एमडी बनाया गया है। संघ के एमडी का चार्ज अभी पीसीसीएफ संजय शुक्ला के पास है।

जुआ पर कानून मगर...

सरकार ने जुआ पर सख्ती के लिए विधानसभा में बिल पास कर दिया। अब ऑनलाइन जुआ खिलाने पर पांच साल तक सजा हो सकती है। मगर मिलियन डॉलर का प्रश्न यह है कि इस पर अमल कैसे होगा। असल में, सरकार की मंषा अच्छी है...इससे पहले हुक्का बार कानून भी बनाया गया...मगर रिजल्ट? आज भी सूबे के होटलों में बेरोकटोक हुक्का बार चल रहे हैं। उस पर ये भी....जब कई एसपी ही टेंट-तंबू लगवाकर सट्टा और जुआ खेलवा रहे हों तो फिर सरकार का कानून जुआ को कैसे रोक पाएगा। पिछले हफ्ते ही बेमेतरा के किसी गांव से एक युवक का फोन आया, सर...हमारे गांव में जुआ की वजह से चोरियां बढ़ गई है...जुआ खेलने वाले हारने के बाद धान के बोरे तक उठाकर ले जा रहे हैं। कमोवेश यही हालात लगभग सभी जिलों के हैं। सीएम साहब को एसपी साहब लोगों की एक क्लास और लेनी चाहिए। क्योंकि, पुलिस अगर चाह लें तो इलाके में चोरी, चाकूबाजी और मर्डर तो छोड़ दीजिए, पत्ता नहीं खड़क सकता।

डीजीपी की सख्ती

सुनने में आ रहा...अपराधों और अपराधियों को संरक्षण देने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ पुलिस महकमा अब सख्त कदम उठाने वाला है। सरकार की नोटिस में है और डीजीपी के पास इसके इनपुट्स भी हैं कि कई जिलों में कानून-व्यवस्था की स्थिति लड़खडा रही है...इसका असर चुनाव में पड़ सकता है। कहने के लिए बिलासपुर को न्यायधानी कहा जाता है। डीजीपी अशोक जुनेजा वहां एसपी रह चुके हैं और खुफिया चीफ अजय यादव भी। दोनों न्यायधानी की स्थिति से अनभिज्ञ नहीं हैं। सूबे के दूसरे बडे़ इस शहर में पोलिसिंग का आलम यह है कि वहां का हर दूसरा टीआई पोलिसिंग छोड़ जमीन के धंधा में इंवाल्व हो गया है। आए दिन वहां मर्डर हो रहे, गोलियां चल रही हैं....कानून-व्यवस्था शीर्षासन कर रहा है। जानकारी मिली है, सिस्टम इसको लेकर गंभीर है और जल्द ही आपको इसका प्रभाव दिखेगा।

टाईगर अभी...

भले ही बीजेपी के संगठन प्रभारी से लेकर अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदल गए मगर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का रुतबा अभी बरकरार है। अभी भी उनके बगैर पार्टी का कोई कार्यक्रम नहीं होता। कल का दिन तो रमन सिंह के लिए और खास रहा। कोरबा दौरे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रमन की तारीफों के पुल बांध दिए। तो कोरबा जाने के लिए रमन ने राज्य सरकार से हेलीकॉप्टर मांगा तो सरकार ने तुरंत उन्हें मुहैया करा दिया। दरअसल, शाह को पहले रायपुर आना था। यहां से हेलीकॉप्टर से रमन भी उनके साथ कोरबा जाते। लेकिन, सुबह अचानक कार्यक्रम बदल गया। शाह दिल्ली से सीधे कोरबा आ गए। ऐसे में, रमन वहां नहीं पहुंच पाते। किराए के हेलीकॉप्टर के लिए टाइम नहीं था। सो, सरकार के यहां पैगाम भेजा गया। अफसरों ने सीएम भूपेश बघेल से बात की। सीएम ने फौरन सहमति दे दी। सरकारी हेलीकॉप्टर से रमन कोरबा गए और वहां से लौटे भी। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या छत्तीसगढ़ में बीजेपी इस उम्मीद में हाथ-पर-हाथ धरे बैठी है कि मोदी और अमित शाह हैं न...वे चुनाव जीतवाएंगे?

2. इस यक्ष प्रश्न का उत्तर लोगों को अभी तक क्यों नहीं मिल पाया है कि सबसे सीनियर आईपीएस डीएम अवस्थी को रिटायरमेंट के समय एसीबी चीफ क्यों बनाया गया?


सोमवार, 2 जनवरी 2023

नो हार्ड न्यूज...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 1 जनवरी 2023

आज साल का पहला दिन है...1 जनवरी 2023। इतेफाक से संडे है और तरकश डे भी। 2022 में 52 संडे आया। और इनमें सिर्फ एक को छोड़ दें तो तरकश का कभी गैप नहीं हुआ...हर हफ्ते तीर चले। किन्तु, साल का पहला दिन है, लिहाजा आज कोई हार्ड न्यूज नहीं। न कोई तंज, न कोई तीर। अंत में दो सवाल भी नहीं। सिर्फ लाइट मूड और इंफारमेटिव....। साथ में, तरकश के सभी पाठकों को न्यू ईयर की शुभकामनाएं...आप सभी का नया साल खुशगवार रहे।

डबल न्यू ईयर गिफ्ट

ऐसे मौके बहुत कम आते हैं, जब पति-पत्नी को साथ-साथ प्रमोशन मिले। वो भी जब दोनों अलग-अलग सर्विस के हों। छत्तीसगढ़ में इस बार ऐसा होने जा रहा है। 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी आरिफ शेख और 2007 बैच की आईएएस अधिकारी शम्मी आबिदी के घर सरकार की तरफ से न्यू ईयर का डबल गिफ्ट आने वाला है। जाहिर है, आरिफ को डीआईजी से आईजी बनाने डीपीसी ने हरी झंडी दे दी है। और उधर शम्मी को सिकरेट्री प्रमोशन देने फाइल सरकार के पास पहुंच गई है। याने आरिफ और शम्मी का साथ-साथ प्रमोशन। पति आईजी तो पत्नी सिकरेट्री। 2023 का इससे बढ़िया गिफ्ट और भला क्या हो सकता है।

छत्तीसगढ़ मॉडल

माइनर फॉरेस्ट के प्रोक्योरमेंट और वैल्यू एडिशन में छत्तीसगढ़ पूरे देश में प्रथम आया है। लघु वनोपजों में वैल्यू एडिशन के जो चमत्कारिक काम हुए, उससे पिछले दो साल में 75 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। इसको देखते लाल लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी मसूरी में पीसीसीएफ संजय शुक्ला को लेक्चर के लिए आमंत्रित किया गया था। 26 दिसंबर को संजय ने मसूरी में आईएएस अधिकारियों को संबोधित किया। इनमें 15 साल की सेवा वाले आईएएस शामिल थे। पीसीसीएफ ने आईएएस अफसरों को विस्तार से समझाया कि किस तरह छत्तीसगढ़ में माइनर फॉरेस्ट को वैल्यू एडिषन कर उसे रोजगारोन्मुखी बनाया गया। और उससे कितना मुनाफा हो रहा है।

पोस्टिंग के स्कोप

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार और पूर्व सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह एनडी टीवी बोर्ड में शामिल किए गए हैं। दोनों एडिशनल डायरेक्टर होंगे। सुनिल कुमार मध्यप्रदेश के डीपीआर रहे तो जोगी सरकार में सिकरेट्री पीआर। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने सुनिल को रायपुर कलेक्टर से बुलाकर डीपीआर पद पर बिठाया था। इसी तरह अमन सिंह भी सिकरेट्री पीआर रह चुके हैं। मतलब यह कि जनसंपर्क में काम किए अधिकारियों के लिए अब मीडिया के फील्ड में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के रास्ते खुल रहे हैं। बता दें, जनसंपर्क में काम करने वाले अधिकारी मीडिया वालों के संपर्क में रहते-रहते आधा मीडिया वाले हो जाते हैं।

दो और आईजी

नए साल में छत्तीसगढ़ में आईजी की संख्या दो और बढ़ जाएंगी। 2004 बैच के आईपीएस अंकित गर्ग और 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत का अप्रैल में सेंट्रल डेपुटेशन का सात साल पूरा हो जाएगा। अंकित एनआईए में हैं तो राहुल डायरेक्टर सोशल सेक्टर है। राहुल के पास लेबर से जुड़े आधा दर्जन से अधिक प्रभार हैं। मगर सात साल के बाद रेयर केस में...यदि प्रधानमंत्री लेवल पर कुछ हुआ तभी डेपुटेशन बढ़ता है। वैसे, पता चला है दोनों आईपीएस अधिकारी मूल कैडर में लौटने के इच्छुक हैं। सो, दो आईजी और बढ़ेंगे छत्तीसगढ़ में। वैसे भी, 2004 बैच और 2005 बैच के प्रमोशन के बाद सूबे में पहले जैसी स्थिति नहीं है। 2015 से 2020 तक ऐसी स्थिति थी कि जितने पुलिस रेंज, उतने आईजी हो गए थे। याने कोई च्वाईस नहीं। सरकार के पास अब ठीक-ठाक च्वाइस होगा।

आईएएस की लिस्ट

राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बनें निरंजन दास इस महीने 31 जनवरी को रिटायर हो जाएंगे। उनके पास इस समय आबकारी आयुक्त, आबकारी सचिव, पंजीयन सचिव से लेकर नॉन डायरेक्टर जैसी अहम जिम्मेदारियां हैं। निरंजन के रिटायर होने पर राज्य सरकार को इनकी जगह पर नई पोस्टिंग करनी होगी। याने इस महीने के लास्ट में आईएएस की एक लिस्ट निकलेगी। इसमें हो सकता है, कुछ और आईएएस अधिकारियों का एक चेन बन जाए। वैसे भी 2007 बैच के छह आईएएस अधिकारी प्रमोट होकर सिकरेट्री बनने जा रहे हैं। इनमें से फिलवक्त चार अफसर छत्तीसगढ़ में हैं...शम्मी आबिदी, हिमशिखर गुप्ता, मोहम्मद कैसर हक और यशवंत कुमार शामिल हैं। सिकरेट्री प्रमोट होने के बाद इनमें से सरकार कुछ को नई पोस्टिंग दे सकती है।

पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग

निरंजन दास को रिटायर होने पर पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल सकती है। इस समय राज्य निर्वाचन आयुक्त के साथ रेरा में मेम्बर का एक पद खाली है। रेरा में एनके असवाल के रिटायर होने के बाद उनके पद किसी की नियुक्ति अभी नहीं हुई हैं। वैसे, निरंजन के बारे में चल रहीं अटकलों को मानें तो राज्य निर्वाचन आयुक्त पद के लिए उनका पलड़ा भारी लग रहा है। कुल मिलाकर उन्हें ठीक-ठाक ही कोई पोस्टिंग मिलेगी।

नए सूचना आयुक्त

खबर है, राज्य सूचना आयुक्त में मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के पदों पर जल्द ही नियुक्ति हो जाएगी। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान नेता प्रतिपक्ष भी रायपुर में रहेंगे। परिस्थितियां अगर अनुकूल रही तो सत्र के समय किसी दिन चयन कमेटी की बैठक विधानसभा में हो जाएगी। और इसके बाद आदेश निकल जाएगा। आयोग में दो पद खाली हैं। एक सीआईसी और दूसरा आयुक्त का।