शनिवार, 27 अगस्त 2022

कलेक्टरों से पंगा नहीं

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 28 अगस्त 2022

कहते हैं, जिनके घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारना चाहिए। वरना....। एक मंत्रीजी के साथ ऐसा ही हुआ है। मंत्रीजी ने प्रस्तावित भारत माला प्रोजेक्ट के अंतर्गत फोरलेन के अगल-बगल की कई एकड़ जमीन खरीद ली। किसानों को भी पता होता है कि सामने वाले गरजू है, लिहाजा रेट भी अनाप-शनाप लगाया। मंत्रीजी को भी मालूम था कि कितनी भी महंगी जमीन है, उसे टुकड़े करने पर लागत की तुलना में कई गुना निकल जाएगा। मगर कलेक्टर ने मंत्रीजी का पूरा गुड़ गोबर कर दिया। ट्रांसफर होने से पहले फोर लेन का एरिया बदलने का प्रस्ताव एनएचए को भेजा दिया और वह एप्रूव भी हो गया। अब मंत्रीजी ने जिस जगह पर जमीनें खरीद ली थी, वहा रोड नहीं बन रहा। ऐसे में मंत्रीजी के पास हाथ मलने और कलेक्टर को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं है।

सिकरेट्री कौन?

छत्तीसगढ़ में महिला बाल विकास का फिलवक्त सिकरेट्री कौन है, यह यक्ष प्रश्न बन गया है। कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं है। दरअसल, रीना बाबा कंगाले के पास यह विभाग था। मगर जब वे लंबी छुट्टी पर गईं तो महिला बाल विकास का प्रभार भुवनेश यादव को दिया गया। आदेश में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि रीना बाबा के अवकाश से लौटते तक भुवनेश महिला बाल विकास संभालेंगे। रीना अब छुट्टी से लौट आई हैं। उन्होंने जीएडी में ज्वाइनिंग देकर निर्वाचन का कार्यभार संभाल लिया। मगर महिला बाल विकास का प्रभार ग्रहण नहीं कीं। उधर, रीना के आते ही भुवनेश ने महिला बाल विकास की फाइले करनी बंद कर दी। सही भी है...जीएडी के आदेश में था कि रीना के लौटते तक...। उधर, रीना ने महिला बाल विकास में ज्वाइंनिंग दी नहीं। बताते हैं, महिला बाल विकास में इतना बलंडर हो रहा कि रीना जाकर अपना हाथ जलाना नहीं चाह रहीं। उधर, जीएडी के एक लेटर से मामला और पेचीदा हो गया। जीएडी ने रीना से महिला बाल विकास वापस लेने की अनुमति लेने के लिए भारत निर्वाचन आयोग को पत्र भेज दिया, जो कि व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को अगर राज्य सरकार कोई विभाग देना चाहती है तो उसके लिए निर्वाचन आयोग की अनुमति आवश्यक है। मगर विभाग लेने के लिए इजाजत मांगने का कोई तुक समझ से बाहर है। इस चक्कर मे महिला बाल विकास हफ्ते भर से बिना सिकरेट्री का हो गया है। विभाग में फाइलों का अंबार लगता जा रहा है।

बीजेपी में कश्मकश

प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के बाद बीजेपी में जिला अध्यक्ष के साथ अन्य पदाधिकारियों को भी बदला जाना है। इसको लेकर पार्टी के नेता कश्मकश में हैं...पद लें या विधायक की टिकिट के लिए दावेदारी करें। असल में, नेताओं को दोहरा डर है। अगर पार्टी कहीं जिला अध्यक्ष बना दी या प्रदेश संगठन में कोई अहम पद दे दिया तो विधायक की टिकिट से पृथक न कर दें। और, संगठन में कोई पद नहीं लिया और विधायक की टिकिट भी नहीं मिली तो न घर के रहे न घाट के। भाजपा नेताओं की उलझन समझी जा सकती है। अभी जो जिला अध्यक्ष हैं, वे विधायकी के मोह में पद छोड़ना तो चाहते हैं मगर ये भी तो नहीं कि उन्हें टिकिट मिल ही जाए।

मंत्री ने पंचायत छोड़ा और...

मंत्री टीएस सिंहदेव के पास दो बड़े विभाग थे। पंचायत और स्वास्थ्य। सिंहदेव ने पंचायत से इस्तीफा दे दिया। और अधिकारियों ने स्वास्थ्य विभाग छोड़ दिया। मंत्रालय में इसको लेकर खूब चुटकी ली जा रही है। जाहिर है, स्वास्थ्य विभाग के दोनों जिम्मेदार अधिकारी डेपुटेशन के लिए रिलीव हो गए हैं। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी और डायरेक्टर हेल्थ नीरज बंसोड़ को भारत सरकार में पोस्टिंग मिल गई है। स्वास्थ्य विभाग भी पिछले तीन दिन से खाली है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि आम आदमी के जानमाल से जुड़े विभाग के सिकरेट्री और डायरेक्टर दोनों एक साथ डेपुटेशन पर चले गए। अब दिक्कत यह है कि नए अधिकारियों को लाया जाएगा तो उन्हें हेल्थ के सिस्टम को समझने में टाईम लग जाएगा।

एक और आईएएस!

45 हजार करोड़ के सम्राज्य के मालिक राकेश झुनझुनवाला को इस बात को लेकर बड़ा मलाल था कि उन्होंने अपने हेल्थ में सबसे कम इंवेस्ट किया। और शायद यही कारण रहा कि स्वास्थ्यगत समस्याओं से जूझते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। ये सिर्फ झुनझुनवाला के साथ नहीं है....अनेक ऐसे दृष्टांत मिल जाएंगे। एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि 90 फीसदी लोग स्वास्थ्य के प्रति बेहद लापरवाह होते हैं। खासकर भारत में...जो लोग नियमित जीम और कसरत करते हैं, उनका ओवर कांफिडेंस तो और ज्यादा होता है। बॉडी अलार्म करती है, मगर वही....नजरअंदाज। छत्तीसगढ़ की आईएएस एम गीता बड़े कम समय में चली गईं। सुना है, एक और आईएएस को गंभीर बीमारी हो गई है...ईश्वर से प्रार्थना है, उन्हें शीघ्र स्वस्थ्य करें...लंबी आयु दे।

उम्र 65 का, और...

छत्तीसगढ़ के नौकरशाहों के लिए रिटायर्ड आईएएस दिनेश श्रीवास्तव नजीर बन सकते हैं। दिनेष 65 के होने जा रहे होंगे, मगर लुक पचपन का है। याद होगा, मैराथन दौड़ में युवा अधिकाकारियों को उन्होंने पीछे छोड़ दिया था। पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए भी दिनेश ने राजनेताओं के आगे-पीछे नहीं किया। चुपचाप एनएमडीसी में एडवाइजर ज्वाईन कर लिए। और, बढ़ियां सम्मान पूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं। वरना, आईएएस अधिकारियों को 55 के होते ही गाड़ी, बंगला, रुतबा छिन जाने का भय सताने लगता है। तब तक रीढ़ की उनकी हड्डी बची भी नहीं होती। 33 साल की नौकरी में राजनेताओं के सामने झुकते-झुकते रीढ़ की सभी 33 हड्डी टूट चुकी होती है। रिटायरमेंट के आखिरी साल में आईएएस अधिकारी चाटुकारिता की इतनी पराकाष्ठा कर देते हैं कि सरकारें धर्मसंकट में पड़ जाती हैं...बैठने कहा जाता है तो सो जा रहा...इसे क्या दिया जाए। कहने का आशय यह है कि पोस्टिंग के मायाजाल में फंसकर अफसर जबरिया टेंशन मोल लेते हैं।

पुलक हुए पुलकित

पुलक भटाचार्य रायपुर में एसडीएम रहे हैं। नगर निगम में एडिशनल कमिश्नर। और अभी जीएडी और स्कूल षिक्षा में अंडर सिकरेट्री। पुलक का यहां उल्लेख इसलिए खास है कि भोपाल में आयोजित मध्य क्षेत्रीय परिषद की बैठक में खराब मौसम की वजह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का प्लेन टेकअप नहीं हो पाया। उनके साथ चीफ सिकरेट्री, पीएस होम समेत कई शीर्ष अधिकारी भी प्लेन से जाने वाले थे, वे भी यहीं फंस गए। ऐसे में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मीटिंग में छत्तीसगढ़ से कोई मौजूद था तो पुलक थे। वे एक दिन पहले भोपाल चले गए थे। अब इतनी बड़ी मीटिंग में शिरकत करने का अवसर मिल गया, पुलकित होना लाजिमी है।

अच्छा काम

अक्सर देखने में यह आता है कि थानों में बड़ी संख्या में लावारिस गाड़ियां यूं ही पड़े-पड़े कंउम हो जाती हैं, मगर उस पर पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती। जांजगीर पुलिस ने इस दिशा में आज अच्छा काम किया। एसपी विजय अग्रवाल ने लावारिस गाड़ियों की नीलामी की और सरकार के खजाने में एकमुश्त 64 लाख रुपए आ गए। इससे पहले विजय ने जशपुर में किया था। बलौदा बाजार के कप्तान दीपक झा भी गाड़ियों की नीलामी से हैंडसम अमाउंट राजकोष में जमा करा चुके हैं। गृह मंत्री या डीजीपी को बाकी कप्तानों को भी इस बारे में ताकीद करना चाहिए। उससे फायदा यह होगा कि गाड़ियां यूज में आ जाएंगी और सरकार के खजाने में कुछ पैसे भी।

गृह मंत्री का आईना

गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू दिखते हैं शांत और संतुलित। लेकिन बड़ी चतुराई से उन्होंने रायपुर पुलिस को आईना दिखा दिया। एक तो बिना किसी हो-हंगामे के पुलिस कंट्रोल पहुंच गए बैठक लेने। फिर पूरा डिटेल ले गए थे...किस इलाके में कौन सट्टा खिला रहा है...नाम सहित बता दिया। किस इलाके में रहजनी हो रही है और उसकी वजह क्या है। गृह मंत्री ने एक तरह से कहें तो अपना दामन सफाई से बचा लिया। उनके बोलने का हो गया, मैंने तो पुलिस अधिकारियों को पूरा बता दिया...उस पर अमल नहीं करते तो अब क्या किया जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डॉ0 रमन सिंह को पार्टी नेताओं से जिस तरह वेटेज मिल रहा, उससे क्या आपको लगता है कि अगले विधानसभा चुनाव में वे सीएम फेस होंगे?

2. केंद्रीय गृह मंत्री अमित षाह के कार्यक्रम के संचालन का दायित्व मिलने से समझा जाए कि पूर्व आईएएस ओपी चौधरी का पार्टी में प्रभाव बढ़ा है?


रविवार, 21 अगस्त 2022

फर्स्ट कलेक्टर, फर्स्ट डीएफओ

संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 अगस्त 2022

समें फोटो ही खबर है...चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी राजधानी में नव निर्मित श्रीकृष्ण कुंज के मुख्य द्वार के सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं। दोनों की जोड़ी पुरानी है। राज्य बनने के बाद नवबंर 2000 में अमिताभ को अजीत जोगी सरकार ने रायपुर का कलेक्टर बनाया था और राकेश को डीएफओ। तब दोनों ने वीआईपी रोड पर राजीव स्मृति वन बनवाया था। उस समय रायपुर में कुछ था नहीं...कोई गेस्ट आए तो लोग राजीव स्मृति घूमाने ले जाते थे। संयोग से अमिताभ अब चीफ सिकरेट्री हैं और राकेश पीसीसीएफ। यानी एक सूबे का प्रशासनिक मुखिया तो दूसरा वन विभाग का। ऐसे में, देखना चाहिए कि दोनों षीर्श अधिकारियों की जोड़ी ने श्रीकृष्ण कुंज में क्या कमाल किया है।

गौरव को एनओसी

प्रिंसिपल सिकरेट्री गौरव द्विवेदी को सेंट्रल डेपुटेशन के लिए राज्य सरकार ने एनओसी दे दिया है। गौरव चूकि पहले भी सेंट्रल डेपुटेशन कर चुके हैं इसलिए उन्हें भारत सरकार की पोस्टिंग में दिक्कत नहीं जाएगी। सुनने में आ रहा...किसी भी दिन उनका आदेश आ सकता है। बता दें, गौरव से पहले उनकी पत्नी डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी को भारत सरकार में पोस्टिंग मिल गई है। कृषि विभाग की एक बोर्ड की वे एमडी बनाई गईं हैं। फिलवक्त मनिंदर यहां सिकरेट्री हेल्थ हैं और जल्द ही रिलीव होने वाली हैं।

हार्ड लक!

प्रिंसिपल सिकरेट्री गौरव द्विवेदी और उनकी पत्नी डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी...95 बैच के अफसर हैं। दोनों केंद्र में एडिशनल सिकरेट्री के लिए इम्पेनल हो चुके हैं। जाहिर है, डेपुटेशन पर जाने पर केंद्र में उन्हें इसी पोस्ट के समकक्ष पोस्टिंग मिलेगी। द्विवेदी दंपति वैसे काम में कमजोर नहीं माने जाते, मगर छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ दशक से उनका ग्रह-योग ठीक नहीं बैठ रहा है। रमन सरकार के दौरान भी उन्हें छत्तीसगढ़ छोड़कर डेपुटेशन पर जाना पड़ा था। हालांकि, तब स्थिति ये थी कि सरकार डेपुटेशन के लिए एनओसी नहीं दे रही थी। काफी जोर-आजमाइश के बाद सरकार से उन्हें दिल्ली जाने की हरी झंडी मिली। इस बार कम-से-कम एनओसी मिल गया है।

10 फीसदी डेपुटेशन

डीओपीटी के नियमों के अनुसार कुल कैडर के 40 फीसदी ब्यूरोक्रेट्स डेपुटेशन पर जा सकते हैं। इस दृष्टि से छत्तीसगढ़ के आईएएस डेपुटेशन में काफी पीछे हैं। छत्तीसगढ़ में आईएएस में 163 का कैडर है। इनमें सिर्फ 18 अफसर केंद्र में हैं। गौरव द्विवेदी, मनिंदर कौर और नीरज बंसोड़ अभी जाने वाले हैं। इन तीनों को मिला दें, तब भी यह फिगर 21 पहुंचता है। याने 13 प्रतिशत। वैसे, पहले तो स्थिति और खराब थी। बहुत हुए तो एक या दो। अभी तो अफसर प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं और उन्हें पोस्टिंग भी अच्छी मिल रही है। भारत सरकार में छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसरों की कमी की एक वजह केंद्र में मंत्रियों का नहीं होना भी है। छत्तीसगढ़ को मुश्किल से एक राज्य मंत्री से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। वो भी नुमाइशी वाले और कुछ होते नहीं। समझा जा सकता है...रेणुका सिंह की कितनी चलती होगी...वे यहां से अफसरों को दिल्ली ले जाएंगी। दूसरे राज्यों के केंद्रीय मंत्रियों की संख्या अधिक होती है। उनके साथ उनके राज्य के अफसर भी दिल्ली चले जाते हैं।

प्रसन्ना और कैसर की जोड़ी?

हेल्थ सिकरेट्री मनिंदर कौर द्विवेदी और हेल्थ डायरेक्टर नीरज बंसोड़ डेपुटेशन पर जा रहे हैं। उनकी रिलीविंग की फाइल चल गई है। सवाल है उनकी जगह पर नया स्वास्थ्य सचिव और संचालक कौन होगा? सरकार के पास सीनियर लेवल पर अफसर हैं नहीं। आलोक शुक्ला तीन बार हेल्थ सिकरेट्री रह चुके हैं। ऐसे में, प्रसन्ना आर. मतलब बड़े प्रसन्ना को हेल्थ विभाग की कमान सौंपने की चर्चा है। वहीं मनरेगा आयुक्त अब्दुल कैसर हक का नाम हेल्थ डायरेक्टर के लिए सुना जा रहा है। प्रसन्ना पहले डायरेक्टर हेल्थ रह चुके हैं। कुछ दिनों तक सिकरेट्री भी रहे, जब एसीएस रेणु पिल्ले हेल्थ संभाल रही थीं। प्रसन्ना को हेल्थ की अच्छी समझ है तो कैसर भी काम करने वाले अधिकारी माने जाते हैं। हालांकि, हेल्थ में एक प्रसन्ना और हैं। सी.आर. प्रसन्ना याने छोटे प्रसन्ना। अगर कैसर हक डायरेक्टर हेल्थ बनें तो हो सकता है कि सरकार छोटे प्रसन्ना को मनरेगा कमिश्नर की जिम्मेदारी सौंप दें। हालांकि, अभी अटकलों के लेवल में है यह। सरकार उधेड़बून में है...किसी भी नाम पर मुहर लग सकता है। पता चला है, आजकल में सचिव और डायरेक्टर लेवल पर एक लिस्ट निकलेगी। हो सकता है कि सिकरेट्री पंचायत भी बदल जाएं। बड़े प्रसन्ना की जगह पर षहला निगार को पंचायत की जिम्मेदारी सरकार सौंप दे। यह स्पश्ट कर दें, बड़े प्रसन्ना 2004 बैच के आईएएस हैं और छोटे प्रसन्ना 2006 बैच के।

रमन का कद!

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ प्रदेष अध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटा दिया तो उसके बाद नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को। जाहिर है, दोनों पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के समर्थक माने जाते थे और यह भी सही है कि दोनों की नियुक्ति में रमन सिंह की भूमिका रही। चूकि दोनों अब पूर्व हो गए हैं, ऐसे में जाहिर है भाजपा के अंदरखाने में रमन सिंह के कद पर सवाल उठने लगे हैं। नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति के दिन भी बीजेपी मुख्यालय में ये चर्चा तेज रही कि रमन सिंह को राज्यपाल बनाया जा रहा है। ये ठीक है कि रमन सिंह के दोनों समर्थक शीर्ष पद से हटाए जा चुके हैं लेकिन इससे उनका कद कम हो गया...इसमें पूरी सच्चाई नहीं है। सूबे के बड़े भाजपा नेताओं को पता है कि पार्टी नेतृत्व का छत्तीसगढ़ में भरोसेमंद कोई चेहरा है तो वे रमन हैं। इसीलिए, कोई नेता लक्ष्मण रेखा से इधर-उधर होने की कोशिश नहीं कर रहा। आखिर, राजनीति में कोई भी चीज नामुमकिन नहीं होती। क्या पता, प्रबल भाग्यशाली रमन के दिन फिर...फिर जाए।

ओबीसी कार्ड कंप्लीट

आदिवासी वर्ग से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के बाद भाजपा को छत्तीसगढ़ के आदिवासी अध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटाने में कोई जोखिम नहीं लगा। उनकी जगह पर अरुण साव को बिठाया गया। और इसके बाद बीजेपी ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को हटाकर कुर्मी समाज के ही नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंप दिया। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में बीजेपी का ओबीसी कार्ड कंप्लीट हो गया है। अब जो नियुक्तियां होंगी, उसमें जनरल क्लास और दलितों को प्राथमिकता दी जाएगी। प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के बाद सूबे में ग्लेरमस पद कोई बचा है तो वह है चुनाव अभियान समिति के प्रमुख का। सुना है, किसी सामान्य वर्ग से आने वाले नेता को यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बीजेपी में अभी काफी नियुक्तियां होनी है। बीजेपी अध्यक्ष और भाजयुमो अध्यक्ष दोनों साहू हो गए हैं। ऐसे में, भाजयुमो के प्रमुख बदले जाएंगे तो नारायण चंदेल के नेता प्रतिपक्ष बनने से महामंत्री का एक पद भी खाली हुआ है, इन पर जल्द ही नियुक्ति होगी।

स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष

छत्तीसगढ़ की सियासत में न केवल बिलासपुर का कद बढ़ा है बल्कि जांजगीर को भी अहमियत मिली है। कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और स्पीकर चरणदास महंत जांजगीर से आते हैं और उन्हीं के जिले से अब नारायण चंदेल नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं। इससे पहले ये कभी नहीं हुआ कि एक ही जिले से स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष बना हो। यही नहीं, विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा भी जांजगीर जिले से हैं। उधर, बिलासपुर से अरुण साव को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जाहिर है, इससे बिलासपुर का वजन भी बढ़ा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नेता प्रतिपक्ष के लिए मजबूत दावेदारी होने के बाद भी अजय चंद्राकर को पार्टी ने ये जवाबदेही क्यों नहीं दी?

2. भूपेश बघेल जैसे सियासी योद्धा के सामने बीजेपी के अरुण साव और नारायण चंदेल की जोड़ी कितनी कारगर होगी?


 

रविवार, 14 अगस्त 2022

मुझको भी लिफ्ट करा दे...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 14 अगस्त 2022

अदनान सामी का एक बड़ा हिट सांग है...तेरी उंची शान मौला...मेरी अर्जी मान मौला...मैं हूं तेरा मान मौला...मुझको भी लिफ्ट करा दे....कैसे-कैसो को दिया है...ऐसे-वैसो को दिया है...बंगला, मोटर, कार दिला दें...मुझको भी...। छत्तीसगढ़ के जिला पंचायतों के पदाधिकारियों पर अदनान सामी का ये गाना फिट बैठता है। उनका दर्द भी कुछ वैसा ही है...निगमों, मंडलों में मनोनित हुए नेताओं को राज्य और कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल गया और उनकी...निर्वाचित होने के बाद हैसियत कुछ नहीं। खटारी गाड़ी, महीने में 200 लीटर तेल की लिमिट। कहने के लिए पंचायती राज, मगर सीईओ के इशारे के बिना पत्ता नहीं खड़कता। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के समय जिपं अध्यक्षों का जो शानो-शौकत रहा, राज्य बनने के बाद एक-एक कर सब छीनता गया। पहले अजीत जोगी सरकार ने कद कम किया फिर बाद की बीजेपी सरकार ने। हालांकि, इस सरकार ने जिपं पदाधिकारियों को सीईओ का सीआर लिखने के साथ ही वित्तीय अधिकार देने का ऐलान किया था। उनका वेतन तो बढ़ गया मगर पावर नहीं मिला। अगर चेक पर दस्तखत करने का अधिकार मिल जाता तो, खुरचन पानी का बंदोबस्त हो जाता। तभी तो वे लिफ्ट कराने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

प्रमुख सचिव का टोटा

छत्तीसगढ़ में सिकरेट्री तो तीन दर्जन के करीब हो गए हैं मगर प्रमुख सचिव लेवल पर आईएएस अधिकारियों का बड़ा टोटा हो गया है। कुल जमा चार प्रमुख सचिव हैं। डॉ0 आलोक शुक्ला, मनोज पिंगुआ, गौरव द्विवेदी और डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी। इनमें से मनिंदर सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली जा रही हैं। भारत सरकार ने उन्हें पोस्टिंग दे दी है। जाहिर है, उनके पति गौरव द्विवेदी भी देर-सबेर दिल्ली जाएंगे ही। बचेंगे सिर्फ आलोक शुक्ला और मनोज पिंगुआ। दरअसल, राज्य बनने के दौरान जूनियर लेवल पर आईएएस बडे़ कम मिले थे...एक बैच में एक। किसी में वो भी नहीं। मसलन, 88 बैच में सिर्फ केडीपी राव थे। वे रिटायर हो चुके हैं। 89 बैच में भी सिर्फ अमिताभ जैन। वे सीएस हैं। उसके बाद 90 बैच जीरो। 91 में रेणु पिल्ले, 92 में सुब्रत साहू, 93 में अमित अग्रवाल। अमित डेपुटेशन पर हैं। रेणु और सुब्रत एसीएस प्रमोट हो चुके हैं। 94 बैच में जरूर चार आईएएस हैं। मगर मनोज पिंगुआ को छोड़ ऋचा शर्मा, विकासशील और निधि छिब्बर प्र्रतिनियुक्ति पर। 95 बैच के द्विवेदी दंपति यहां से जाने ही वाले हैं। इसके बाद 96 बैच जीरो है। 97 में तीन आईएएस हैं। इनमें से सुबोध और एम गीता डेपुटेशन पर हैं और निहारिका बारिक दो साल से छुट्टी पर। 98 बैच में डॉ0 एसके राजू थे, वे कैडर चेंज करा पंजाब चले गए। 99 बैच में सोनमणि बोरा इसी साल दिल्ली गए हैं। 2000 बैच में शहला निगार हैं। 2002 बैच में रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह। इनमें रोहित पीएमओ में पोस्टेड हैं। 2003 से आईएएस अधिकारियों की संख्या जरूर थोड़ी ठीक-ठाक होनी शुरू हुई। इस बैच में चार आईएएस हैं। सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, ऋतु सेन, रीना बाबा कंगाले और अविनाश चंपावत।

मिडिल आर्डर

क्रिकेट में पारी को संवारने के लिए जो भूमिका मध्य क्रम के बल्लेबाजों की होती है, वहीं रोल मंत्रालय में प्रमुख सचिवों की होती हैं। चूकि 25 साल की सेवा के बाद आईएएस अधिकारी प्रमुख सचिव प्रमोट होते हैं, लिहाजा उनके पास फील्ड के साथ ही मंत्रालय का भी खासा तर्जुबा हो जाता है। बड़े राज्यों में आज भी अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव को ही विभाग का हेड बनाया जाता है। स्पेशल सिकरेट्री को तो कतई नहीं। सचिवों को अगर विभाग दिया भी गया तो पशुपालन टाईप के। याद होगा, आईसीपी केसरी यहां पीडब्लूडी सिकरेट्री थे। मध्यप्रदेश वापिस लौटे तो उन्हें दुग्ध जैसा कोई विभाग मिला था। वैसे, छत्तीसगढ़ में भी पंचायत, हेल्थ, फायनेंस, उर्जा, होम, पीडब्लूडी, फॉरेस्ट जैसे अहम विभागों में प्रमुख सचिव या एसीएस बिठाए जाते थे। सिर्फ एक बार अपवाद को छोड़कर...रमन सिंह की तीसरी पारी के आखिरी समय में जूनियर अफसरों को स्पेशल सिकरेट्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार दिया गया था। बहरहाल, अब सीनियर आईएएस के नाम पर एसीएस में रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू तथा प्रमुख सचिव में मनोज पिंगुआ बचेंगे। कमोवेश यही स्थिति 2028 तक रहेगी। 28 में 2003 बैच के चार आईएएस प्रमुख सचिव प्रमोट होंगे। उसके बाद फिर दिक्कत नहीं होगी। क्योंकि, फिर सभी बैचों में अधिकारियों की संख्या बढ़ती चली गई हैं।

अच्छी बात...मगर

एक समय था, जब छत्तीसगढ़ के दो-एक से अधिक आईएएस अधिकारी दिल्ली में नहीं होते थे। तब डेपुटेशन की अनुमति मिलनी भी थोड़ी कठिन थी। निधि छिब्बर को एनओसी देने के बाद भारत सरकार ने डिफेंस में पोस्टिंग दे दी। लेकिन, स्टेट का अचानक मन बदल गया...रिलीव करने से नो कर दिया गया। सेंट्रल डेपुटेशन से डिबार होने के खतरे को देखते निधि कैट की शरण ली। कैट के आदेश पर राज्य सरकार ने उन्हें रिलीव किया। मनिंदर कौर जब 2009 में जब पहली बार डेपुटेशन पर गई थीं तो बहुत कम लोगों को पता है कि एनओसी मिलने में उन्हें कितनी कठिनाई हुई थीं। अब स्थिति बदली है। डेपुटेशन के लिए एनओसी मिलने में अब कोई दिक्कत नहीं। कांग्रेस की सरकार आने के बाद पौने चार साल में 12 आईएएस अधिकारियों को केंद्र और इंटर स्टेट डेपुटेशन की अनुमति मिली। इनमें मनिंदर कौर और नीरज बंसोड़ भी शामिल हैं। इन 12 में से सिर्फ तीन आईएएस इंटर स्टेट डेपुटशन पर हैं। अलेक्स पाल मेनन, श्रुति सिंह और संगीता पी0। बाकी इस समय 15 आईएएस केंद्र में हैं और सभी ठीक-ठाक पोजिशन में हैं। मगर ये अवश्य है कि नीरज जैसे काम करने वाले अच्छे अधिकारियों की जरूरत यहां भी है।

राइट टाईम

पहले सेंट्रल डेपुटेशन बड़ा आसान था। ज्वाइंट सिक्रेट्री याने जेएस लेवल तक बिना किसी किंतु परंतु के केंद्र में पोस्टिंग मिल जाती थी। मगर मोदी सरकार ने अब सलेक्शन प्रकिया में काफी कसावट कर दिया है। चौतरफा छानबीन के बाद ही केंद्र में पोस्टिंग मिल रही। ऊपर से नया नियम आ गया है...ज्वाइंट सिक्रेट्री वही इंपेनल हो पाएगा, जो डायरेक्टर के रूप में दो साल केंद्र में सेवा देगा। 2007 बैच से ये नियम प्रभावशील हुआ है। इसे आप ऐसे समझिए...17 साल की सर्विस के बाद आईएएस अफसर केंद्र में जेएस इंपेनल होते हैं। 2005 बैच के मुकेश और रजत पिछले महीने जेएस बने हैं। नए नियम के तहत अब जेएस के पहले दो साल डायरेक्टर के रूप में काम करना होगा। इस दृष्टि से 2007 बैच को अगर 2024 में जेएस इंपेनल होना है, तो ये राइट टाइम है। कह सकते हैं, नीरज ने सही वक्त पर सही डिसिजन लिया।

पहली बार

यह पहला ऐसा मौका होगा, जब सरकार को सिकरेट्र्री हेल्थ और डायरेक्टर हेल्थ एक साथ पोस्ट करना पड़ेगा। सिकरेट्री हेल्थ डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी और डायरेक्टर नीरज बंसोड़ प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। दोनों जिम्मेदार अधिकारियों के एक साथ जाने से हेल्थ के कामकाज में परेशानी तो आएगी। वैसे भी, खब्बू बैट्समैन की तरह नीरज तीन साल से क्रीज पर जमे हुए थे। उनके डायरेक्टर रहते चार सिकरेट्री बदल गए...निहारिका बारिक, आलोक शुक्ला, रेणु पिल्ले। मनिंदर कौर द्विवेदी नीरज की चौथी सिकरेट्री थीं। अब डायरेक्टर भी नए होंगे और सिकरेट्री भी। तो क्या ये समझा जाए कि सरकार अनुभवी अफसर डॉ0 आलोक को हेल्थ की कमान सौंपेगी। आलोक तीन बार हेल्थ की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। दो बार पिछली सरकार में और एक बार इस सरकार में। वो इसलिए कि सरकार के पास विकल्प सीमित हैं। सुब्रत साहू का विभाग अभी हाल में चेंज हुआ है। हालांकि, वे भी एक बार हेल्थ में रह चुके हैं। दूसरी एसीएस ह,ैं रेणु पिल्ले। रेणु के पास कोई बड़ा विभाग नहीं है। रेणु पिल्ले कोविड के दूसरे दौर के दौरान हेल्थ सिकरेट्री रहीं। इसी साल सरकार ने उनके स्थान पर मनिंदर को बिठाया था। मनोज पिंगुआ पहले से ओवर लोडेड हैं। अब देखना है, सरकार आलोक को जिम्मा सौंपती है या किसी और नाम पर टिक लगाती है।

अरुण की चुनौती

बीजेपी ने सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष अपाइंट किया है। अरुण साफ-सुथरी छबि के...जमीनी नेता हैं। पढ़े-लिखे भी। बीजेपी सरकार में 15 साल तक डिप्टी एजी रहे। मुगेली के रहने वाले अरुण पार्टी के कई नेताओं के कांटे रहे हैं। 2013 के लोस चुनाव में भी उनका नाम टिकिट के लिए चला था। मगर कुछ नेताओं ने खतरे को देखते विरोध कर दिया था। 2019 में बिलासपुर संसदीय सीट से टिकिट मिली भी तो उन्हें हराने की कम कोशिशें नहीं हुई। बहरहाल, उनके अच्छे समय आने की चर्चा तो लंबे समय से चल रही थी। मगर अध्यक्ष नियुक्ति की खबर कई बड़े नेताओं को रास नहीं आई। आज एयरपोर्ट पर अरुण का स्वागत करने जरूर बड़े नेताओं का जमावड़ा लगा। लेकिन, 9 अगस्त को तो नियुक्ति की खबर आते ही सन्नाटे जैसी स्थिति रही। बीजेपी के प्रदेश कार्यालय में कैसा उत्साह था, आप इससे समझ सकते हैं कि अरुण के लिए प्रोफाइल तक जारी नहीं किया गया। कहने का आशय यह है कि अरुण भले ही प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं मगर उनके समक्ष खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश में 15 साल वाले मुख्यमंत्री हैं तो 15 साल वाले दर्जन भर मंत्री भी। इन सबसे बीच उन्हें अपनी जगह बनानी होगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या मुख्यमंत्री के 15 अगस्त के भाषण में पत्थलगांव, सराईपाली और कटघोरा में से किसी जिले का ऐलान हो सकता है?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि 15 अगस्त के बाद किसी पुलिस अधीक्षक की छुट्टी होगी?


शनिवार, 6 अगस्त 2022

कमिश्नर की छुट्टी और सवाल

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 7 अगस्त 2022

राज्य सरकार ने सरगुजा कमिश्नर जीआर चुरेंद्र को हटा दिया। उन्हें मंत्रालय में बिना विभाग का ज्वाइंट सिकरेट्री बनाया गया है। सवाल यह नहीं है कि उन्हें कोई विभाग क्यों नहीं दिया गया। रमन सरकार से लेकर भूपेश बघेल सरकार तक कई बार ऐसा हुआ है...किसी अफसर से गर नाराजगी है, तो छुट्टी करने के बाद कुछ दिनों तक उन्हें बे-विभाग रखा गया। इसमें बड़ा प्रश्न यह है कि चुरेंद्र अभी तक ज्वाइंट सिकरेट्री क्यों हैं? जबकि, वे 2003 बैच के आईएएस हैं...छत्तीसगढ़ में 2006 बैच के आईएएस सिकरेट्री बन चुके हैं। वैसे भी, 16 साल की सर्विस के बाद आईएएस अधिकारियों का सचिव पद पर प्रमोशन हो जाता है। चुरेंद्र का 19 साल हो गया। छत्तीसगढ़ में भी चुरेद्र से जूनियर 23 अधिकारी सिकरेट्री बन चुके हैं। बताते हैं, चुरेंद्र का कोई पुराना मामला है...गरियाबंद में पोस्टिंग के दौरान जमीन की व्यापक गड़बड़ियां हुई थीं। उसमें डीई का आदेश हुआ था। इस वजह से प्रमोशन की उनकी फाइल आगे नहीं बढ़ पाई। अब ये अलग बात है कि वक्त जब बलवान होता है तो...। चुरेंद्र सूरजपुर के कलेक्टर के बाद रायपुर, दुर्ग, बस्तर और सरगुजा के कमिश्नर रह लिए। देश में ये भी एक रिकार्ड होगा...ज्वाइंट सिकरेट्री लेवल का प्रमोटी आईएएस चार डिवीजन का कमिश्नर रह लिया।

डबल प्रभार

दुर्ग रेंज के आईजी बद्री नारायण मीणा को पिछले हफ्ते सरकार ने रायपुर रेंज की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी। और इस हफ्ते बिलासपुर डिविजनल कमिश्नर डॉ0 संजय अलंग को सरगुजा संभाग की। यह दूसरा मौका है, जब अलंग को सरगुजा का प्रभार दिया गया है। इससे पहले भी उन्हें एक बार सरगुजा का चार्ज दिया गया था। बता दें, 2020 में जब शिकायतों की वजह से सरकार ने ईमिल लकड़ा को सरगुजा से हटाया था, तब अलंग को वहां की कमान सौंपी गई थी।

झंडा उंचा रहे..., लेकिन

आजादी के अमृत महोत्सव पर अबकी 15 अगस्त को हर घर में झंडा फहराया जाएगा। इसके लिए हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा...व्यापक स्तर पर झंडों का वितरण किया जा रहा है। अमृत महोत्सव पर इससे अच्छी बात नहीं हो सकती। मगर शासन, प्रशासन को यह ध्यान रखना होगा कि झंडे का अपमान न हो। कई बार देखा गया है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी के अगले दिन सड़कों पर झंडे गिरे होते हैं। इस बार तो हर घर में, हर हाथ में तिरंगा होगा। लिहाजा, प्रशासन को लोगों को अभी से जागरुक करने का प्रयास शुरू कर देना चाहिए कि झंडों का अपमान न हो।

पहली बार

यूपीएससी सलेक्ट हुए छत्तीसगढ़ के अभ्यर्थियों को सर्विस एलॉट कर दिया गया है। इसमें चार को आईएएस और चार को आईपीएस मिला है। यह पहला मौका होगा, जब एक साथ छत्तीसगढ़ के चार-चार युवाओं को आईएएस, आईपीएस बनने का अवसर मिला है। 45 रैंक वाली श्रद्धा शुक्ला, 51 रैंक वाले अक्षय पिल्ले, 102 रैंक वाले प्रखर चंद्राकर व 199 रैंक वाली पूजा साहू को आईएएस अलॉट हुआ है। वहीं 81 रैंक वाली ईशु अग्रवाल, 147 रैंक वाले मयंक दुबे, 156 रैंक वाले प्रतीक अग्रवाल व 216 वी रैंक वाली दिव्यांजली जायसवाल को आईपीएस अलॉट हुआ है। बता दें, पहले छत्तीसगढ़ से एक या दो से ज्यादा कभी आईएएस, आईपीएस में सलेक्शन नहीं होता था। बहरहाल, इन आठ में से देखना है कितनों को होम कैडर याने छत्तीसगढ़ अलॉट होता है।

आईएएस की सायकिल

वैसे तो सायकिल चलाना सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। मगर सूबे में एक ऐसे नौकरशाह हैं, जो सायकिल के और भी कई फायदे उठा रहे थे। दरअसलं, एक युवा आईएएस को एक युवती से दिल लग गया। अब वे सरकारी गाड़ी में मिलने तो जा नहीं सकते। सो, गजब का आइडिया निकाला। सायकिल से माशुका के घर। हेलमेट, टीशर्ट, हाफ पैंट...इसमें अफसर को भला कौन पहचान पाएगा। बताते हैं, कुछ दिन उनका ठीक ठाक चलता रहा। मगर पत्नी आखिर पत्नी होती है...भांप गई कि सुबह शाम परफ्यूम लगाकर जनाब कहां जाते हैं। एक दिन पीछे-पीछे गाड़ी लेकर वे भी निकल गई। बाद में जो कुछ हुआ, वो बड़ा भयानक था। प्रेमिका के घर में ही अफसर की लानत-मलानत हो गई।

केदार की ताजपोशी?

छत्तीसगढ़ में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बदलने की अटकलें एक बार फिर तेज हो गई है। कल प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी को घर में गमी होने के बाद भी दिल्ली बुलाया गया, उसके बाद सूबे में चर्चाओ को और बल मिल गया। पता चला है, पार्टी ने अब प्रदेश के संगठन में बदलाव का रोड मैप तैयार कर लिया है। पार्टी पहले ओबीसी को अध्यक्ष बनाना चाह रही थी। लेकिन, अब आदिवासी नेता को ही फिर से कमान सौंपने पर विचार किया जा रहा है। इसमें बस्तर से केदार कश्यप का नाम सबसे उपर बताया जा रहा है। केदार से फायदा यह है युवा होने के साथ ही वे स्व0 बलीराम कश्यप के बेटे हैं। और, खासतौर से बस्तर के आदिवासियों में स्व0 कश्यप के प्रति बड़ा आदर है। इसका स्वाभाविक लाभ केदार और बीजेपी को मिलेगा, ऐसा बीजेपी के लीडरों का मानना है। हालांकि, अभी कुछ फायनल नहीं हुआ है मगर ये भी सही है कि बहुत जल्द फायनल होने वाला है।

डीजीपी रिटायर

छत्तीसगढ़ कैडर के 91 बैच के आईपीएस अधिकारी लांग कुमेर इस महीने 30 अगस्त को रिटायर हो जाएंगे। बस्तर और सरगुजा के आईजी रह चुके कुमेर इस वक्त डेपुटेशन पर नागालैंड में डीजीपी हैं। नागालैंड कुमेर का गृह राज्य है। पॉलिटिकल बैकग्राउंड होने की वजह से नागालैंड जाने पर वहां की सरकार ने उन्हें नागालैंड जाते ही डीजीपी बना दिया था। कुमार यहां से 2017 में नागालैंड गए थे। करीब-करीब वे चार साल डीजीपी रह लिए। लांग कुमेर वही अफसर हैं, जिनका नाम पिछली सरकार ने निगरानी वाली सूची में रखने के लिए भारत सरकार को भेज दिया था। मगर तकदीर की बात है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बीजेपी कार्यकर्ता क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री अजय जामवाल को बीजेपी का जामवंत क्यों कह रहे?

2. क्या पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं?


महिला प्रेमी नेता

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 31 जुलाई 2022

छत्तीसगढ़ के कुछ भाजपा नेताओं का महिला प्रेम छुपा नहीं है... सत्ता गंवाने के बाद भी इस माया-मोह से उनका पीछा छूटा नहीं है। आलम तो यह हो गया कि भाजपा का प्रशिक्षण शिविर भी इस चर्चा से अछूता नहीं रहा। संघ के प्रांत प्रचारक प्रेम सिंह सिदार ने अपने उद्बोधन में ऐसे नेताओं को तल्खी के साथ निशाने पर लिया। स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट के सामने जैनम भवन में चल रहे प्रशिक्षण शिविर में सिदार ने ऐसा कुछ कहा कि महिला प्रेमी बीजेपी नेता बगलें झांकने लगे। बोले...दूसरी पार्टियों का मैं नहीं जानता...भाजपा दीनदयाल उपाध्याय जैसे तपस्वियों की पार्टी है...उनकी पार्टी में ये ठीक नहीं...महिलाओं के कार्यक्रम में पुरुष नेता पहुंच जाएं...उनके साथ फोटो खिंचवाएं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मैं संघ के बारे में कुछ बताने आया था...मगर कड़वी बात कह दी...लेकिन, मुझे इसकी भी कोई परवाह नहीं। सिदार की खरी-खरी से लंगोट के ढीले नेताओं के चेहरे लटक गए...क्योंकि, सिदार का इशारा किधर था, इसे लोग समझ गए। बता दें, शिविर में पूर्व सीएम रमन सिंह को छोड़ बीजेपी के सारे नेता मौजूद थे। प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी भी। रमन सिंह को कोविड हुआ है, इसलिए वे क्वारेंटाइन हैं।

ताकतवर आईपीएस!

सरकार ने आज आईपीएस अधिकारियों की पोस्टिंग की एक छोटी लिस्ट निकाली। इसमें सर्वाधिक चौंकाने वाला नाम दुर्ग आईजी बद्री नारायण मीणा का रहा। बद्री पहले से वीवीआईपी रेंज के आईजी हैं। अब उन्हें राजधानी जैसे रायपुर रेंज आईजी का प्रभार मिल गया है। यानी अब नांदघाट से लेकर महाराष्ट्र बॉर्डर तक बद्री का इलाका रहेगा। हालांकि, इससे पहले रतन लाल डांगी को बिलासपुर रेंज के साथ ही सरगुजा रेंज का प्रभार था। मगर बिलासपुर, सरगुजा और रायपुर, दुर्ग में बड़ा फर्क है। रायपुर, दुर्ग का राजनीतिक महत्व ज्यादा है। फिर, चुनावी साल में बद्री को रायपुर का दायित्व सौंपा गया है तो इसके निहितार्थ समझे जा सकते हैं। ये अलग बात है कि यह पॉवर गेम कई अफसरों को खटका होगा।

दो महीने 10 दिन

2003 बैच के आईपीएस ओपी पाल को मई में रायपुर रेंज का आईजी बनाया गया था। याने करीब तीन महीने पहिले। इन तीन महीने में से 20 दिन छुट्टी में रहे। कुल मिलाकर दो महीने 20 दिन वे आईजी रहे। ठीक तीसरे महीने याने जुलाई खत्म होने से एक दिन पहले ही सरकार ने उन्हें पीएचक्यू भेज दिया। रायपुर आईजी के रूप में उनका सबसे कम समय तक रहने का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।

सारांश का कद बढ़ा

बिलासपुर की कलेक्टरी करके रायपुर लौटे सारांश मित्तर को पहले रोड विकास निगम का एमडी बनाया गया और आज आईएएस की फेरबदल में उन्हें सीएसआईडीसी की भी कमान सौंप दी गई। अभी के समय में पीडब्ल्यूडी में कुछ धरा नहीं है। रोड का जो काम दिख रहा, वो विकास निगम से हो रहा। 2000 करोड़ का लोन भी निगम को मिला है। ऊपर से अब सीएसआईडीसी भी। याने उद्योग का जिम्मा भी सारांश के मजबूत कंधे पर आ गया है।

किसी का कद बढ़ा, किसी का...

सुब्रत साहू शायद सीएम सचिवालय के पहले ऐसे अफसर होंगे, जिनका विभाग लगभग हर फेरबदल में बदल जाता है। दो महीने पहले मनोज पिंगुआ का फॉरेस्ट सुब्रत को मिला था और सुब्रत का गृह पिंगुआ को। अब फिर वन पिंगुआ के पास आ गया है। सुब्रत को पंचायत की जिम्मेदारी दी गई है। चुनावी साल में पंचायत विभाग की अपनी अहमियत होती है। सो, सरकार ने उन पर भरोसा किया। हिमशिखर गुप्ता के लिए भी लिस्ट ठीक रही। उन्हें उद्योग का स्वतंत्र प्रभार मिला। धनंजय देवांगन को आवास पर्यावरण, भारतीदासन को पीएचई और अय्याज तंबोली को कृषि का दायित्व सौंपा गया। सालों बाद आवास पर्यावरण विभाग डायरेक्ट आईएएस के बजाय प्रमोटी को मिला है। धनंजय साफ सुथरी छवि के अफसर हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ओपी पाल को रायपुर रेंज आईजी से तीन महीने के भीतर क्यों हटा दिया गया?

2. आईएएस, आईपीएस के बाद क्या अब मंत्रिमंडल सर्जरी की बारी है?


मंत्रिमंडल में सर्जरी!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 24 जुलाई 2022

छत्तीसगढ़ में ताजा सियासी विवाद अब मंत्रिमंडल की सर्जरी तरफ बढ़ता दिख रहा है। हालांकि, सरकार ने सिंहदेव का पंचायत विभाग मुख्यमंत्री ने मंत्री रविंद्र चौबे को सौंप दिया है। मगर सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की भी है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के जरिये विवाद का रास्ता निकालने की कोशिश की जा सकती है। दरअसल, इसकी दो वजहें मानी जा रहीं। पहला, अभी तक भूपेश मंत्रिमंडल में एक बार भी फेरबदल नहीं हुआ है। अमरजीत भगत जब मंत्री बने थे, तब 13 में से एक जगह खाली थी। सो, अमरजीत भूपेश कैबिनेट के तेरहवें मंत्री बने थे। पिछले साल सत्ता के गलियारों में कुछेक बार मंत्रिमंडल में परिवर्तन करने की चर्चा अवश्य चली मगर बात अंजाम तक नहीं पहुंची। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी एकाधिक बार यह कहते हुए फेरबदल की चर्चाओं की तस्दीक कि जो भी होगा हाईकमान की अनुमति के बाद किया जाएगा। मंत्रिमंडल में फेरबदल की दूसरी वजह सिंहदेव हो सकते हैं। उन्होंने चार पन्नों में आरोप लगाते हुए पंचायत विभाग छोड़ने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। इस पत्र को लेकर छत्तीसगढ़ की सियासत में खलबली मची। वैसे, कांग्रेस हाईकमान को भी कोई दिक्कत नहीं होगी कि विधानसभा चुनाव के पहिले भूपेश बघेल अपनी टीम की कसवाट कर लें।

बेचारे मंत्री परेशान

मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबर से भूपेश मंत्रिमंडल के दो मंत्री सबसे अधिक परेशान हैं। वो हैं खाद्य मंत्री अमरजीत भगत और महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया। हालांकि, खतरा पीएचई मिनिस्टर रुद्र गुरू पर भी मंडरा रहा है मगर अमरजीत और अनिला भेड़िया पर ज्यादा है। उसकी वजह यह है कि सरगुजा से तीन-तीन मंत्री हो गए हैं। टीएस सिंहदेव, डॉ0 प्रेमसाय सिंह और अमरजीत भगत। इसके उलट बस्तर का प्रतिनिधित्व कम है। बस्तर से सिर्फ कवासी लखमा हैं। अनिल भेड़िया आदिवासी मंत्री जरूर हैं, मगर बालोद बस्तर में नहीं आता। राज्य बनने के बाद हमेशा बस्तर से दो मंत्री रहे हैं। पहली बार कांग्रेस सरकार में बस्तर से सिर्फ एक को मंत्री बनने का मौका मिला। अनिला भेड़िया की जगह बस्तर टाईगर कहे जाने वाले स्व0 महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा को मंत्री बनाकर सरकार बड़ा मैसेज देना चाहेगी। हालाकि, अमरजीत के साथ दोनों बातें हैं...या तो आउट हो जाएंगे या फिर और ताकतवर। सियासत को समझने वाले इस बात को बेहतर समझ रहे हैं।

अधिकारियों के मजे

विधानसभा शुरू होने पर खासकर बड़े अधिकारियों के लिए मौज लेने का मौका होता है। मंत्री को ब्रिफिंग के अलावा और कुछ काम होते नहीं। ऑफिस का काम ठप्प....किसी काम के लिए गए तो जवाब मिलेगा...मालूम नहीं, विधानसभा चल रहा है। स्टाफ का भी रटा-रटाया जवाब...साब विधानसभा गए हैं। मगर साब न विधानसभा में होते और न आफिस में। वे घर में बेव सीरीज देखते रहते हैं।

शराब दुकान में झंडा

मनसून सत्र के दूसरे दिन का प्रश्नकाल बड़ा गुदगुदाने वाला रहा। सूबे में मिलावटी शराब की बिक्री को लेकर दोनों पक्षों के विधायकों द्वारा खूब चुटकी ली गई...तो इशारे-इशारे में तंज भी कसे गए। एक विधायक ने यह पूछकर स्पीकर और मंत्री को उलझन में डाल दिया कि सरकार शराब बेच रही तो क्या शराब दुकानें सरकारी संपत्ति हुई और सरकारी संपत्ति है तो 15 अगस्त को वहां झंडा फहराया जाएगा। जाहिर है, इस सवाल का कोई जवाब दे नहीं सकता। सदन में इस पर जमकर ठहाके लगे। हालांकि, स्पीकर भी पूरे मूड में थे। उन्होंने सवाल पूछने वाले नारायण चंदेल से पूछ डाला मिलावटी शराब की बातें सुनी-सुनाई है या आपका व्यक्तिगत अनुभव है? तो धर्मजीत सिंह ने भी चुटकी ली, मंत्रियों द्वारा कॉकटेल जवाब क्यों दिया जा रहा है। दरअसल, कवासी लखमा सवालों में उलझने लगे तो बगल में बैठे मोहम्मद अकबर ने मोर्चा संभाला। इसी पर धर्मजीत ने चुटकी ली।

ट्रांसफर पर मुश्किलें

ट्रांसफर पर बैन के बावजूद हजारों की संख्या में किए गए ट्रांसफर की वजह से छत्तीसगढ़ के मंत्रियों और सचिवों की मुश्किलें बढ़ सकती है। इसको लेकर आम आदमी पार्टी हाईकोर्ट में रिट दायर करने डिटेल जुटा रही है। जाहिर है, इससे मंत्रियों और सचिवों की परेशानी तो बढ़ेगी। दरअसल, मंत्रियों के निर्देश पर करीब आधा दर्जन विभागों ने बिना समन्वय के अनुमोदन के ट्रांसफर का बड़ा खेल कर डाला। ताज्जुब इस बात का है कि आखिर किस मजबूरियों के चलते सचिवों ने आंख मूद लिया, जबकि उन्हें पता है कि बिना समन्वय ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। सरकार को इनकी मजबूरियों की जांच करनी चाहिए।

ऐसे हुआ खेल!

बैन के बावजूद धड़ल्ले से ट्रांसफर करने के लिए पता चला है, अधिकारियों ने फर्जीवाड़े का सहारा लिया। बताते हैं, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के समन्वय से दो-एक ट्रासफर की स्वीकृति मिली, उसमें विभागीय अधिकारियों ने नीचे में कई और नाम जोड़ डाले। और ये बताते हुए कि समन्वय से अनुमोदन मिल गया है, आदेश निकाल दिया। यदि ऐसा है तो यह चार सौ बीसी है।

नियुक्ति के मायने

भाजपा ने अजय जामवाल को क्षेत्रीय संगठन मंत्री नियुक्त किया है। खास बात यह है कि उनका मुख्यालय रायपुर रहेगा। जाहिर सी बात है, अगले साल विधानसभा चुनाव को देखते बीजेपी ने छत्तीसगढ़ पर ध्यान देना शुरू किया है। वैसे भी संगठन की दृष्टि से देखें तो सूबे में पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है। जो हाल केंद्र में भाजपा और कांग्रेस का है, सेम स्थिति छत्तीसगढ़ में है। कांग्रेस यहां एकतरफा मजबूत है तो भाजपा उतना ही कमजोर। अगले चुनाव की चर्चा होती है तो एक ही जवाब सुनने को मिलता है, भाजपा यहां है ही नहीं तो टक्कर क्या देगी। अलबत्ता, जामवाल की नियुक्ति बड़े नेताओं को रास नहीं आएगी। संगठन महामंत्री पवन साय के ऊपर अब जामवाल बैठ गए हैं। पवन हैं सज्जन व्यक्ति। लेकिन, कुछ खटराल टाइप लोगों से वे घिर गए थे। जामवाल विद्यार्थी परिषद बैकग्राउंड से रहे हैं, इसलिए चीजों को समझते हैं। इससे महत्वपूर्ण यह कि थोड़ा तेज भी हैं। तभी कार्यकर्ताओं में अच्छे की उम्मीद जगी है।

सरकारें बदनाम हुई...

सरकार तीन साल बाद ट्रांसफर पर से बैन खोलने राजी हो गई है। संकेत हैं, एक अगस्त से बैन हट सकता है। लेकिन, सवाल ये भी है कि सरकारें बैन लगाना क्यों शुरू की। उसकी बड़ी वजह बदनामी है। मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा सरकार के समय सरकार की बड़ी छीछालेदर हुई थी। उसके बाद दिग्विजय सिंह की सरकार में भी। दिग्गी सरकार में एक मंत्री इतने बदनाम हुए कि उनकी कुर्सी चली गई। इसके बाद ही दिग्गी राजा ने बैन प्रारंभ किया। राज्य सरकार अब बैन खोलने जा रही तो उसे अलर्ट रहना पड़ेगा...पानी सिर के ऊपर न बहे। क्योंकि, मंत्री और कार्यकर्ता तीन साल से खखुवाये बैठे हैं।

सीएम के तेवर

मुख्यमंत्री के निर्देश पर जीएडी ने पिछले साल दिसंबर में मंत्रियों के निजी सहायकों को दोहरे, तिहरे दायित्वों से मुक्त करने पत्र लिखा था। मगर, मंत्रियों ने तब अनसुना कर दिया। इस बार सीएम ने कड़े तेवर दिखाए। जीएडी ने एक दिन का अल्टीमेटम दिया और मंत्री लोग बेचारे निजी सचिवों को दूसरी जिम्मेदारियों से मुक्त करने विवश हो गए। सारे निजी सहायकों के मुंह अब लटके हुए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा के अविश्वाश प्रस्ताव के पीछे क्या कोई कहानी है?

2. छत्तीसगढ़ में कौन-कौन मंत्री भाई और भतीजावाद से ग्रसित हैं?



सिकरेट्री जिम्मेदार क्यों नहीं?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 17 जुलाई 2022

छत्तीसगढ़ में ट्रांसफर पर बैन के बावजूद तीन साल में हजारों की संख्या में तबादले हो गए। बिना समन्वय की मंजूरी के। जबकि, नियमानुसार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समन्वय समिति के अनुमोदन के बाद ही ट्रांसफर होने चाहिए। लेकिन, अगर बाड़ ही खेत खा जाए तो क्या किया जा सकता है। कई विभागों के मंत्रियों और सचिवों ने नियमों को दरकिनार करते हुए बड़ा खेल कर डाला। एक विभाग में हजार से अधिक ट्रांसफर हो गए। ठीक है, समन्वय के बिना अनुमोदन ट्रांफसर हुए तो क्या विभागों के सचिवों को नहीं पता था कि ट्रांसफर पर बैन लगा है। आखिर, आदेश तो सिकरेट्री की हरी झंडी देने पर ही अंडर सिकरेट्री निकालते हैं। ऐसे में, सिकरेट्री की जिम्मेदारी नहीं बनती? सरकार ने अब तीन साल में हुए ट्रांसफर की जानकारी मंगाई है। कुछ विभागों की रिपोर्ट देखकर सरकार के अफसर दंग रह गए। तो क्या ऐसे सचिवों पर कार्रवाई होगी? सवाल तो उठते ही हैं।

खटराल पीए

सरकार पिछले दिसंबर से बोल रही कि मंत्रियों के निजी स्थापना में पोस्टेड अधिकारियों को दीगर दायित्वों से हटाया जाए। आठ महीने में जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो इस हफ्ते जीएडी सिकरेट्री डीडी सिंह ने सचिवों को फिर पत्र लिख 24 घटे के भीतर कार्रवाई कर अवगत कराने कहा। इसके बावजूद कई मंत्री अपने निजी सहायकों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं। एक डिप्टी कलेक्टर मंत्री के पीएस के साथ ही मलाईदार बोर्ड में बैठे हैं। मंत्रीजी ने उन्हें कह दिया है, कोई चिंता नहीं। एक आदिवासी मंत्री के निजी स्थापना में कार्यरत अधिकारी के पास चार-चार विभाग है। वे भी अपने प्रिय पीए को छोड़ने तैयार नहीं। यही स्थिति अमूमन मंत्रियों के साथ हैं।

3.1 फीसदी कमीशन का राज

एक मंत्री अपने डिप्टी कलेक्टर पीएस को इसलिए छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहे कि उसका मुंह काफी छोटा है। मुंह छोटा का मतलब बेहद कम कमीशन लेना। उसने विभाग में होने वाले निर्माण कार्यो या सप्लायरों से 3.1 प्रतिशत कमीषन तय कर दिया है। तीन परसेंट मंत्रीजी को और प्वाइंट वन परसेंट खुद। मंत्रीजी के पास ईमानदारी से तीन परसेंट पहुंचा दिया जाता है। अब ऐसा पीएस कहां मिलेगा। कई पीएस एक परसेंट तक झटक लेते हैं।

बेचारा कलेक्टर!

हेडिंग पर आपत्ति हो सकती है...कलेक्टर बेचारा कैसे? मगर मुंगेली जैसे जिले के लिए ये शब्द एप्रोपियेट लगता है। एक तो छोटा-सा जिला...हंड्रेड परसेंट सूखा, न्यूसेंस उतने ही ज्यादा। डीएमएफ भी मात्र पांच करोड़। अब पांच करोड़ में कलेक्टर क्या खाएगा, क्या निचोड़ेगा। जिले के एक हिस्से में अचानकमार का टाईगर रिजर्व। तो एक बडा़ इलाका बेहद संवेदनशील। वहां कभी भी, कुछ भी हो सकता है। देखा ही आपने...जिला पंचायत के आईएएस सीईओ के साथ क्या हुआ। उपर से जिले के तीन विधायक...तीनों विपक्ष के और अनुभवी तथा सीनियर। एक तो नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक। दूसरे चार बार के सांसद और चार बार से अधिक के विधायक पूर्व मंत्री पुन्नूराम मोहिले। तीसरे तो और बड़े वाले...धाकड़ नेता धरमजीत सिंह। इनके उपर कलेक्टरी नहीं झाड़ी जा सकती। अब आपही बताइये, ऐसे जिले के कलेक्टर को और क्या कहा जाएगा?

पंगा नहीं

बात मुंगेली कलेक्टर राहुल देव की निकली है तो ये बताना लाजिमी होगा कि ब्यूरोक्रेसी में अगर पति-पत्नी दोनों आईएएस, आईपीएस हैं तो लोग पंगा लेने से बचते हैं। क्योंकि, एक नाराज हुआ तो फिर जाहिर है, उसके पति या पत्नी से दुष्मनी मोल लेनी पड़ेगी। ब्यूरोक्रेसी में ऐसे कपल काफी ताकतवर माने जाते हैं। मुंगेली कलेक्टर राहुल देव की पत्नी आईपीएस हैं। अंबिकापुर जैसे ब़ड़े जिले की एसपी। इसके बाद भी सूरजपुर के कांग्रेसियों ने गलत शिकायत करके जिला पंचायत पद से राहुल को निबटवा दिया। ठीक है...वक्त सबका आता है।

डीएमएफ से रैकिंग

छत्तीसगढ़ में डीएमएफ की मीनिंग बदल गई है। डीएमएफ मतलब डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड नहीं डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फंड हो गया है। और इसी फंड से आजकल जिले की रैंकिंग तय की जा रही है। जिस जिले में डीएमएफ ज्यादा, वह सबसे बड़ा जिला। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक कोरबा में डीएमएफ है, उसके बाद दंतेवाड़ा। और फिर रायगढ़। पहले बताया जाता था इतने ब्लाक का जिला है। अब पूछा जाता है, डीएमएफ कितना है। कलेक्टर भी यह बोलकर गर्वान्वित होते हैं कि हमारे जिले में इतना डीएमएफ है।

ब्यूरोक्रेसी का हफ्ता

पिछला हफ्ता छत्तीसगढ़ की नौकरशाही के लिए अच्छा रहा। डीजीपी अशोक जुनेजा केंद्र में डीजी इम्पेनल किए गए। विश्वरंजन के बाद डीजी इम्पेनल होने वाले वे छत्तीसगढ़ के दूसरे आईपीएस होंगे। उधर, आईएएस में एडिशनल चीफ सिकेरट्री रेणु पिल्ले भारत सरकार में सिकरेट्री इम्पेनल हुईं। वहीं, 2005 बैच के दो आईएएस ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल किए गए। इस बैच की संगीता आर और एस प्रकाश पहले ही ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल हो चुके हैं। हालांकि, 2005 बैच में कुछ प्रमोटी आईएएस भी हैं लेकिन, उनका नम्बर नहीं लगा। वैसे भी प्रमोटी आईएएस में केंद्र में ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल होने वालो में दो ही अफसर रहे हैं। एक दिनेश श्रीवास्तव और दूसरे डीडी सिंह।

राज्यपाल सहमत नहीं

राज्य सरकार ने रोजगार मिशन और मितान क्लब के संचालन के लिए स्टाम्प ड्यूटी पर एक फीसदी उपकर लगाने के लिए अध्यादेश लाया था। इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी। लेकिन, राज्यपाल अनसुईया उइके इस पर सहमत नहीं हुई। उन्होंने अध्यादेश को लौटा दिया। हो सकता है सरकार अब इसे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश करें। विधानसभा में सरकार के पास बहुमत भी है, पास कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

मंत्री की मीटिंग

एक मंत्री अपने जिले में अधिकारियों की मीटिंग लेनी चाही। इसके लिए उनका स्टाफ जिला प्रशासन से संपर्क किया। मीटिंग का टाईम तय हो गया और आदेश भी निकल गया। इसके कुछ देर बार अपर कलेक्टर ने दूसरा आदेश निकालकर मीटिंग केंसिल कर दी। इससे ये सवाल पैदा नहीं होता कि जिला प्रशासन मंत्री को खामोख्वाह सहानुभूति अर्जित करने का मौका नहीं दे रहा है। मंत्री भी कम चतुर थोड़े ही हैं, अभी से जनता के बीच माहौल बनाना शुरू कर दिए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्री टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग का त्याग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है, सरकार ने अगर इसे स्वीकार नहीं किया तो संवैधानिक प्रक्रिया क्या होगी?

2. किस विभाग में मंत्री के भाई को पूरा काम मिल रहा है?