सोमवार, 23 अगस्त 2021

व्हाट एन आइडिया!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 22 अगस्त 2021
मनेंद्रगढ़ में ठेका कंपनी के कंप्यूटर ऑपरेटर ने भूमाफियाओं से सांठ-गांठ करके ऐसा गुल खिलाया कि पूरा सिस्टम आवाक रह गया। ऑपरेटर ने ई-रजिस्ट्री में सेंध डालके डिप्टी रजिस्ट्रार के आईडी, पासवर्ड से दर्जनों रजिस्ट्री कर डाला। लेकिन, इस मामले में कार्रवाई क्या हुई…कुछ नहीं। जबकि, इस घटना ने रजिस्ट्री सिस्टम पर लोगों का भरोसा ही नहीं तोड़ा बल्कि पहले से बदनाम इस विभाग को और कलंकित किया है। कायदे से विभाग को इस केस में फौरन एफआईआर दर्ज कराना था। मगर मामला पुलिस में जाएगा तो बात दूर तलक जाएगी…अतिप्रिय कंपनी को नुकसान पहुंचेगा…पुलिस वाले भी दस-बीस पेटी ऐंठ लेंगे। उपर से कंपनी की मुश्किलें बढ़ेगी तो महीने का हैंडसम खुरचन पानी से मरहूम होने का खतरा! लिहाजा, अफसरों ने तय किया है कि कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाएगी…घर की बात घर में ही रहने दिया जाए..मीडिया में दो-चार रोज छपेगा, फिर मामला ठंडा पड़ जाएगा। इस मामले की शिकायत करने वाले डिप्टी कलेक्टर को भी समझा दिया गया है…अब आगे कोई लिखा-पढ़ी न करें। व्हाट एन आइडिया!

ऐसी मेहरबानी…

झारखंड की जिस ठेका कंपनी के आपरेटर ने ई-रजिस्ट्री सिस्टम में सेंध लगाया, उस कंपनी को कुछ दिन पहले एक्सटेंशन दिया गया है। रेट भी वहीं पुराना। जबकि, इस शर्त के साथ बीओटी में कंपनी को रजिस्ट्री का काम दिया गया था पांच साल बाद कंपनी का सारा सेटअप सरकार का हो जाएगा। लिहाजा, अब ई-रजिस्ट्री का सेटअप सरकार का है कंपनी का नहीं। फिर पुराने दर पर रजिस्ट्री का ठेका क्यों? अफसरों से इसके पीछे का राज पूछना चाहिए। और यह भी कि जिस कंपनी से झारखंड की सरकार ने काम वापिस ले लिया, उस पर छत्तीसगढ़ में इतनी मेहरबानी क्यों? हकीकत यह है कि कंपनी की छत्तीसगढ़ में जितनी एक महीने की कमाई है, विभाग चाहे तो उससे कम में अपना सिस्टम बनवा सकता है। इससे एक तो रजिस्ट्री में जो चूना लगाने का खेल नहीं होगा, दूसरा सरकारी खजाने में रेवन्यू आएगा। तीसरा छत्तीसगढ़ के लोगों को रोजगार मिलेंगे। झारखंड की कंपनी में 90 फीसदी लोग बाहरी हैं।

छूट गए पल्लव

23 जिलों के एसपी बदल गए। लेकिन, दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव का नाम फिर छूट गया। अभिषेक पहले ऐसे पुलिस कप्तान हैं, जो बीजेपी सरकार के समय दंतेवाड़ा के एसपी बने थे और तीन साल बाद भी कंटीन्यू कर रहे हैं। जबकि, बाकी जिलों में दो से तीन बार एसपी बदल चुके हैं। जाहिर है, अभिषेक का काम बढ़ियां है मगर इसका मतलब ये भी तो नहीं कि उन्हें मैदानी एरिया में पोस्टिंग पाने की इच्छा नहीं होगी। डीजीपी और स्पेशल डीजी नक्सल को दंतेवाड़ा में अभिषेक का विकल्प तैयार करना चाहिए। किसी एक अफसर पर सिस्टम डिपेंडेंट हो जाए, ये भी तो ठीक नहीं।

सेकेंड लांग कुमेर?

छत्तीसगढ़ में अगर किसी अपराधी को ठोका गया तो वह कोरबा जिला था। और सुंदरराज वहां के कप्तान थे। एक जवान की मौत के बाद पुलिस ने अलसुबह गैंगस्टर को गोलियों से शूट कर डाला था। हालाकि, अपराधियों के प्रति ऐसा कठोर तेवर दिखाने वाले नस्ल के एसपी छत्तीसगढ़ में पाए नहीं जाते। लेकिन, तब ऐसा हुआ, जो सच्चाई है। हालांकि, उसके बाद सुंदरराज राजनांदगांव गए मगर वहां पता नहीं क्यों पीच पर जम नहीं पाए और सरकार ने उन्हें हटा दिया। तब से सुंदरराज नक्सल एरिया में काम कर रहे हैं। एक बार कुछ दिनों के लिए वे पुलिस मुख्यालय आए भी तो विभाग नक्सल था। पहले वे बस्तर में डीआईजी रहे और अब प्रभारी आईजी। दूसरा कोई अफसर बस्तर जाना नहीं चाहता इसलिए इससे भी इंकार नहीं कि आईजी के रूप में पता नहीं कब तक वे बस्तर में रहेंगे। बस्तर में लंबे समय तक पूर्व डीआईजी, आईजी रहे लांग कुमेर से सुंदरराज की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि, सुंदरराज काम करने वाले अफसर माने जाते हैं लेकिन, पोस्टिंग के मामले में दूसरे लांग कुमेर बन जाएं तो आश्चर्य नहीं।

कलेक्टर-एसपी की वैकेंसी

चार नए जिले बनने से अब कलेक्टर, एसपी की वेटिंग कुछ हद तक क्लियर हो जाएगी। नए जिलों में पहले ओएसडी की तैनाती होगी। एकाध हफ्ते में सरकार ओएसडी का पोस्टिंग आर्डर जारी कर सकती है। फिर जिस डेट से नए जिला अस्तित्व में आता है, उसके एक दिन पहले सरकार ओएसडी को ही कलेक्टर और एसपी अपग्रेड कर देती है। कलेक्टरों में अभी 2013 बैच क्लियर नहीं हुआ है। 2014 बैच में भी आधा दर्जन आईएएस हैं। हो सकता है, इस बैच के भी दो-एक अधिकारियों का मौका मिल जाए। हालांकि, नए जिले में आमतौर पर एकाध जिले की कलेक्टरी किए अफसरों को भेजा जाता है ताकि वहां नए जिले की दृष्टि से ठीक-ठाक इंतजाम कर सकें। लेकिन, ये आवश्यक नहीं है। बलौदा बाजार जैसे कई जिलों में नए आईएएस को भेजा गया था।

मोहला कष्टदायक

पोस्टिंग के क्रेज के मामले में नए चार जिलों में मनेंदगढ़ टॉप पर रहेगा। सक्ती दूसरे नम्बर पर। सक्ती हावड़ा-मुंबई मेन लाइन पर है। वहां मेल जैसी ट्रेन राज्य बनने के पहले से रुकती है। इसके बाद सारंगढ़ आएगा। सबसे आखिरी में आएगा मोहला-मानपुर। राजनांदगांव के इस धुर नक्सल इलाके में पोस्टिंग मिलने से अधिकारी भी कतराएंगे। दरअसल, मोहला अभी नगर पंचायत भी नहीं है। ग्राम पंचायत है। सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं। अधिकारी, कर्मचारी शाम को राजनांदगांव लौट आते हैं। पुलिस के शीर्ष अधिकारी महीनों से मानपुर नहीं गए हैं। मानपुर राजनांदगांव से 100 किलोमीटर दूर रिमोट इलाका है। नक्सलियों की पैठ को कमजोर करने इसे जिला बनाना आवश्यक था। जिला बनाने के बाद सरकार को सबसे अधिक मोहला-मानपुर को प्रायरिटी पर रखना होगा नहीं तो जिला बनाने का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा। अफसर वहां टिक कर तभी काम कर पाएंगे जब उनके रहने और उठने-बैठने के लिए ढंग का इंतजाम हो।

दिग्गी की चूक

मनेंद्रगढ़ को जिला बनाकर भूपेश बघेल ने दिग्विजय सिंह की चूक को दुरुस्त कर दिया। छत्तीसगढ़ बनने से पहिले तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय ने जब कोरिया को जिला और वैकुंठपुर को उसका मुख्यालय बनाया था तो मनेंद्रगढ़ में जबर्दस्त तोड़फोड़ और आगजनी की घटना हुई थी। मनेंद्रगढ़ में गुस्साई भीड़ ने कई बसें फूंक डाली थी। सरकारी बसों को जब आग के हवाले किया जा रहा था तब दिग्गी के इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया कि हमारे पास कई कंडम बसें हैं। वाकई तब वैकुंठपुर में कुछ भी नहीं था सिवाय रामचंद्र सिंहदेव के महल के। रोजमर्रा का सामान मिल जाए, उसके लिए हॉट-बाजार भी नहीं। मनेंद्रगढ़ को देखकर लगता था, उसके साथ नाइंसाफी हुई है। जिले का नाम भी कोरिया इसलिए पड़ा क्योंकि राजवाड़े का नाम कोरिया था। और सिंहदेव कोरिया कुमार थे। हालांकि, पूर्व मंत्री स्व0 सिंहदेव छत्तीसगढ़ के ऐसे शख्सियत थे, जो दिग्विजय सिंह के करीबी थे और उनके बाद मुख्यमंत्री बने अजीत जोगी के भी। जोगी अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को अदब करते थे तो वे सिंहदेव थे। सिंहदेव नेता जरूर कांग्रेस के थे लेकिन प्रगाढ़ता उनकी सबसे थी। लेकिन, कई बार बड़े-बड़ों से भी अपना और पराया की चूक हो जाती है। यह मानने में किसी को इंकार नहीं होगा कि सिंहदेव के जिद के कारण तब मनेंद्रगढ़ जिला बनने से वंचित हो गया था। चलिये, देर से ही सही उसे इंसाफ तो मिला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीएमएफ के प्रभुत्व से बेदखल होने पर जिलों के प्रभारी मंत्रियों को कितने वोल्ट का करंट लगा होगा?
2. क्या वाकई अगले साल तक छत्तीसगढ़ में छत्तीस जिले हो जाएंगे?

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कलेक्टरों का सूट

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 15 अगस्त 2021
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में कलेक्टर झंडा फहराते हैं और सलामी भी लेते हैं। लेकिन, मध्यप्रदेश के समय से ही यहां यह परिपाटी चलती आ रही कि प्रभारी मंत्री झंडारोहन करते हैं। सिर्फ एक बार राष्ट्रपति शासन के दौरान कलेक्टरों को यह मौका मिला था। बहरहाल, कलेक्टर्स और एसपी को साल में ये ही दो अवसर मिलता है, जब सरकारी कार्यक्रम के लिए वे सजते हैं। खासकर, हर कलेक्टर के पास एक ब्लैक प्रिंस सूट जरूर होता है। नए कलेक्टर पदभार ग्रहण करते ही इन दो मौकों के लिए सबसे पहले सूट का इंतजाम करते हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी के अलावा गिने-चुने कलेक्टर किस्मती निकलते हैं, जब उनके इलाके में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का विजिट हो जाता है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के विजिट में भी कलेक्टरों का बंद गला का सूट ड्रेस कोड होता है।

सीएस सचिवालय में ओएसडी?

वैसे तो चीफ सिकरेट्री सचिवालय के डिप्टी सिकरेट्री आईएएस होते हैं। छत्तीसगढ़ में भी इशिता राय, शहला निगार और रीतू सेन इस पद पर रहीं हैं। लेकिन कुछेक बार डिप्टी कलेक्टरों को भी मौका मिला है। श्रद्धा तिवारी, तारन सिनहा और जयश्री जैन राज्य सेवा के अधिकारी रहे। तारन और जयश्री इतने सीनियर थे कि सीएम सचिवालय में रहने के दौरान ही उन्हें आईएएस अवार्ड हुआ। मगर अबकी प्रमोटी डिप्टी कलेक्टर पूनम सोनी को सीएस सचिवालय में पदस्थ किया गया है। पूनम नायब तहसीलदार कैडर की हैं। रैंक छोटा है, इसलिए उन्हें डिप्टी सिकरेट्री की जगह ओएसडी का दर्जा दिया गया है। हालांकि, इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि आईएएस बनने के बाद भी जयश्री बिलासपुर की अपर कलेक्टर बनीं। जयश्री सीएस सचिवालय में सबसे लंबी पोस्टिंग का रिकार्ड बनाई है। वे पहली स्टाफ आफिसर रहीं, जो विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल और अमिताभ जैन के साथ काम की। याने पांच मुख्य सचिवों के साथ। फिर भी बिलासपुर…? अमिताभ जैन को चाहिए था कि कम-से-कम जयश्री को किसी जिला पंचायत का सीईओ बनवा देते। बहरहाल, सीएस आफिस को रोज भारत सरकार के विभागों के साथ ही कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय से संवाद करना होता है। वहां से 80 परसेंट लेटर अंग्रेजी में आते हैं। सीएस की मीटिंग और वीडियोकांफें्रसिंग सुबह से देर शाम तक चलती रहती है। रोज ढेरों पत्र आते हैं। सीएस सचिवालय का काम सीएम सचिवालय की तरह लाइमलाइट वाला नहीं होता। लेकिन, काम जमकर करना होता है। मगर ये भी सही है कि सीएस को कैसा आफिसर चाहिए ये मीडिया थोड़े तय करेगा….।

दो-दो पूर्व आईएएस

रिटायर आईएएस गणेश शंकर मिश्रा ने दिल्ली में भाजपा का दामन थाम कर सबको चौंका दिया। संकेत हैं, सूबे की ब्राम्हण बहुल सीट बेमेतरा से उन्हें विधानसभा की टिकिट मिल सकती है। गणेश शंकर से पहले रायपुर कलेक्टरी छोड़कर ओपी चौधरी ने बीजेपी ज्वाईन किया था। पिछले विधानसभा चुनाव में ओपी खरसिया से मैदान में उतरे थे, लेकिन कांग्रेस की अभूतपूर्व लहर और संवेदनशील सीट होने की वजह से उन्हें कामयाबी नहीं मिली। उधर, कांग्रेस में पूर्व आईएएस सरजियस मिंज को सरकार ने हाल ही में वित आयोग का प्रमुख बनाया है। सरजियस ने विधानसभा चुनाव के ऐन पहिले कांग्रेस ज्वाईन किया था। इसलिए, पिछली बार उन्हें टिकिट नहीं मिल पाई थी। वहीं, पूर्व आईएएस एसएस सोढ़ी कांग्रेस से विधायक हैं। यानि कांग्रेस और बीजेपी में अब दो-दो पूर्व आईएएस हो गए। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो 2023 के विधानसभा चुनाव में ये चारो पूर्व आईएएस विरोधी प्रत्याशी के साथ दो-दो हाथ करते नजर आएंगे। इनके अलावा भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी भी अगले साल कांग्रेस ज्वाईन करेंगे। वे बिलासपुर जिले के बेलतरा से कांग्रेस के दावेदार होंगे, जहां से कांग्रेस लंबे समय से पराजित होते आ रही है।

सिस्टम पर सवाल

मनेंद्रगढ़ में ई-रजिस्ट्री में सेंधमारी कर फर्जी रजिस्ट्री की घटना ने पूरे रजिस्ट्री सिस्टम को कलंकित कर दिया है। सवाल उठते हैं, सीएजी की गंभीर आपत्ति के बाद भी झारखंड की कंपनी को अफसरों ने फिर एक्सटेंशन क्यों दे दिया। वो भी ऐसी कंपनी, जिसे झारखंड सरकार ने ठेका देने के बाद उसे निरस्त कर दिया। उस पर अपने पंजीयन विभाग की इतनी मेहरबानी क्यों…? इसका जवाब इस वाकये से मिल जाएगा। एक बार तत्कालीन सीएस विवेक ढांड ने पंजीयन आफिस का मुआयना किया था। उन्होंने कंपनी के लोगों से पूछा, छत्तीसगढ़ के रजिस्ट्री आफिसों में कंप्यूटर की नेटवर्किंग का सेटअप लगाने में कितना खर्च आया। तो उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया आठ करोड़। और पहले साल में रजिस्ट्री से इनकम कितना जेनरेट होगा तो 20 करोड़। तब ढांड बोले थे, दुनिया का यह पहला प्रोजेक्ट होगा, जिसमें एक साल में पूंजी से तीगुनी आमदनी होगी। ढांड ने कहा था, इतनी कमाई है तो फिर रेट कम करो। ताकि आम आदमी को लाभ मिले। लेकिन, तब तक वे सीएस से हट गए। और रजिस्ट्री की संख्या जैसे-जैसे बढती गई, कंपनी की कमाई दुगुनी होती गई। जब कंपनी छत्तीसग़़ढ़ के लोगों की जेब काट रही है तो जाहिर है, उसी हिसाब से उसका हिस्सा अफसरों की जेब में जाता होगा। ऐसे में, फिर कंपनी पर कौन अंकुश लगा सकता है।

फर्जीवाड़े में इनाम

मनेंद्रगढ़ के तहसीलदार उत्तम रजक के कार्यकाल में रजिस्ट्री घोटाला हुआ। रजक के पास ही रजिस्ट्री आफिस का एडिशनल चार्ज था। भले ही कार्यवाही करने के लिए रजक ने ही पंजीयन विभाग को पत्र लिखा लेकिन उन्हें अपने पदीय दायित्वों की लापरवाही से कैसे मुक्त किया जा सकता है। अगर वे ध्यान से अपना काम करते तो उनका प्रायवेट कंपनी का ऑपरेटर उनका आईडी, पासवर्ड से इतना बड़ा खेल कैसे कर देता। बावजूद इसके तहसीलदार को राज्य सरकार ने प्रमोट कर डिप्टी कलेक्टर बना दिया। ताज्जुब है न!

कलेक्टरों के नीचे अंधेरा

कलेक्टर टाईम लिमिट की बैठक में सारे विभागों की समीक्षा करते हैं और अफसरों को फटकार लगाते हैं ये काम इतने समय में क्यों नहीं हुआ। लेकिन, काश! एक बार अपने राजस्व विभाग का रिव्यू भी कर लेते तो जमीन, संपत्ति जैसे 80 फीसदी विवादों का निबटारा हो जाता। पटवारी की प्रताड़ना से सूबे मेंं पिछले दिनों एक किसान ने आत्महत्या कर लिया, उस किसान की जान बच जाती। किसान पटवारी को पांच हजार रुपए दिया था ऋण पुस्तिका के लिए। लेकिन, पटवारी को इससे ज्यादा चाहिए था। कलेक्टर अगर टीएल की बैठक में तहसीलदार से पूछ लेते कि किसान की ऋण पुस्तिक क्यों रोकी गई है तो उसे जानलेवा कदम उठाने की भला जरूरत क्यों पड़ती। दरअसल, कलेक्टर कभी अपने तहसीलदार, एसडीएम से जमीन की रजिस्ट्री, ऋण पुस्तिका और नामंतरण के बारे में पता ही नहीं करते कि कितने मामले पेंडिंग हैं और क्यों हैं। कलेक्टर अगर महीने में एक बार राजस्व की मीटिंग ले लें तो लोगों को पटवारी और तहसीदार राज से मुक्ति मिल जाएगी।

सरकार, प्लीज कुछ कीजिए

मध्यप्रदेश सरकार ने नामंतरण का लफड़ा खतम कर दिया है। वहां अब जमीन की रजिस्ट्री के साथ आटोमेटिक नामंतरण हो जाएगा। इसके लिए पटवारी और तहसीलदार का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं। इसी तरह पड़ोसी राज्य तेलांगना ने राजस्व कोर्ट समाप्त कर दिया है। राजस्व कोर्ट अंग्रेजों के समय की व्यवस्था थी। वो भी इसलिए कि उस समय राजस्व प्राप्ति का और कोई जरिया नहीं था। लेकिन, नौकरशाही इस कोर्ट को समाप्त नहीं करना चाहती। इसकी आड़ में उन्हें मनमानी करने के असिमित मौके मिल जाते हैं। आखिर, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर और कमिश्नर का कोर्ट क्यों होना चाहिए। इसीलिए वे गलत फैसले के बाद भी जिम्मेदारी से बच जाते हैं कि कोर्ट का आदेश है, आप उपर में अपील कीजिए। अगर कोर्ट नही होगा तो उन्हें उपर मे जवाब देना पड़ जाएगा। इसलिए, अफसर चाहते हैं कि कोर्ट सिस्टम बना रहे। छत्तीसगढ़ में अनेक अधिकारी इसी कारण गलत फैसला देने के बाद भी हाईकोर्ट में बच गए कि यह अफसर का नहीं, कोर्ट का आदेश था। ऑनलाइन रजिस्ट्री के दौर में ऋण पुस्तिका का भी कोई मतलब नहीं है। फिर भी पटवारियों की कमाई का यह बड़ा जरिया बना हुआ है। चूकि प्रदेश में भूपेश बघेल जैसे निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री हैं, इसलिए एक फैसले से लाखों लोगों को प्रताड़ना से बचा सकते हैं। ऋण पुस्तिका, नामंतरण से हर आदमी का पाला पड़ता है। राजस्व की पेचीदगियां अगर सरकार ने दूर कर दी तो शरीफ लोग भी जमीन में पैसा इंवेस्ट करना शुरू कर देंगे। औद्योगिक निवेश भी बढ़ेगा। अभी धनाढ्य और मसल्स पावर का राजस्व में दबदबा है। आखिर, पटवारी को कलेक्टर से बड़ा क्यों कहा जाता है…सिस्टम का फेल्योरनेस ही तो है ये।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जुआ, सट्टा को संरक्षण देने वाले एसपी साहब लोग आजकल इन पर लगातार छापे क्यों डाल रहे हैं?
2. डीजीपी डीएम अवस्थी की कुंडली में कौन-सा ऐसा ग्रह प्रबल है, जो उनके विरोधियों की चलने नहीं दे रहा है?

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रविवार, 8 अगस्त 2021

मंत्रियों का जिला नहीं, पट्टा

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 8 अगस्त 2021

छत्तीसगढ़ के एक जिले में 40 करोड़ की खरीदी कागजों में हो गई। कुछ का खुलासा हुआ है, कुछ की अभी जांच चल रही है। पता चला है, इसमें जिले के प्रभारी मंत्री के बेटे की भूमिका अहम रही। उन्होंने अफसरों पर प्रेशर बनाकर ऐसे दुकानों से लाखों की खरीदी का बिल बनवा लिया, जिस दुकान की कुल पूंजी लाख रुपए की नहीं होगी। याने पूरा खेल कागजों में हुआ। हालांकि, कतिपय शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ प्रभारी मंत्रियों के प्रभार में फेरबदल किया था। ताकि, जिलों में विकास कार्यों का कोआर्डिनेशन स्मूथली चल सकें। मगर दिक्कत यह है कि प्रभारी मंत्री जिलों को जिला नहीं, अपना पट्टा समझ ले रहे हैं। जिले में जो भी काम हो रहा, उसमें आलपिन भी खरीदा रहा तो कमीशन चाहिए। डीएमएफ में तो 40 परसेंट का रेट चल रहा है। डीएमएफ में अगर प्रभारी मंत्री की कलेक्टर से हिस्सेदारी को लेकर सेटिंग हो गई तो ठीक। वरना, कलेक्टर पर भांति-भांति का प्रेशर। अब कलेक्टर अपना काम करे या प्रभारी मंत्रियों के कुनबों को झेले? कुछ अच्छे कलेक्टरों की परेशानियों को सरकार को नोटिस में लेना चाहिए। 

मंत्रीजी का बेटा!

अभी तक मंत्री पुत्रों की ट्रांसफर, पोस्टिंग के साथ कामकाज में हस्तक्षेप की खबरें आती थीं। लेकिन, अब कुछ ज्यादा ही हो जा रहा...मंत्री की जगह उनके बेटे चीफ गेस्ट बन कार्यक्रमों में पहुंचने लगे हैं। यहां जिस वाकये की चर्चा कर रहे हैं, वह दुर्ग के एक सरकारी स्कूल का है। कोरोना के बाद स्कूल खुलने पर बच्चों को वेलकम करने के लिए शाला में जलसा रखा गया था। इलाके के एक वरिष्ठ मंत्री उसके मुख्य अतिथि थे। चूकि मंत्रीजी का मामला था, लिहाजा स्कूल शिक्षा विभाग ने तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्कूल सज-धजकर तैयार था। किन्तु ऐन समय मंत्रीजी के बेटे को कार से उतरते देख स्कूल वाले हैरान रह गए। मंत्री पुत्र बोले, पापा जरूरी मीटिंग में हैं, इसलिए मैं आ गया। स्कूल वालों को अब काटो तो खून नहीं। किसी तरह जल-भूनकर कार्यक्र्र्रम निबटाया गया। स्कूल विभाग में इसकी खासी चर्चा है।      

सबको राम-राम

31 जुलाई को रिटायरमेंट से पहिले आईएएस सीके खेतान ने एक को छोड़कर सारे पूर्व मुख्य सचिवों को पत्र लिखा। अरुण कुमार से लेकर सुनील कुमार, विवेक ढांड, अजय िंसह, सुनील कुजूर...सभी से मिले मार्गदर्शन को लेकर उन्होंने उन्हें आभार जताया। खेतान ने जिन मंत्रियों और विधायकों के साथ काम करने का अवसर मिला, उन्हें भी शुक्रिया कहा। अजीत जोगी, नंदकुमार पटेल और शक्राजीत नायक अब नहीं रहे। उन्होंने अमित, उमेश और प्रकाश नायक को भी उनके पिता के साथ बिताए वाकये को याद किया। यानी सबको राम-राम। 

प्रायवेट सेक्टर में?

रिटायरमेंट के बाद सीके खेतान क्या करेंगे...ब्यूरोक्रेसी में यह सवाल मौजूं है। पता चला है, खेतान प्रायवेट सेक्टर में जाना चाहते हैं। इसके लिए परमिशन लेने के लिए उन्होंने राज्य सरकार को आवेदन दिया है। आईएएस में नियम है कि रिटायरमेंट के एक साल के भीतर किसी प्रायवेट सेक्टर ज्वाईन करना है तो उसके लिए जिस कैडर से रिटायर हुए हैं, उस राज्य सरकार से इजाजत लेनी होगी। अनुमति मिलने के बाद खेतान फिर कोई कंपनी ज्वाईन करेंगे। हालांकि, उनके पास तीन साल पहले भी एक मल्टीनेशनल कंपनी का बड़ा ऑफर आया था। लेकिन, चीफ सिकरेट्री बनने के चक्कर में उन्होंने उसे ठुकरा दिया था। फिलहाल, खेतान ने अशोका रतन में अपना कार्यालय कम लायब्रेरी बनाया है। वहीं, लोगों से पूरे से मिल रहे हैं। दरअसल, 34 साल तक सुबह 10 बजे आफिस निकलने का ऐसा रुटीन सेट हो जाता है कि अफसरों के लिए रिटायरमेंट के बाद डिप्रेशन की स्थिति बन जाती है। रिटायरमेंट के दिन शाम पांच बजे के बाद सब कुछ खतम। कहां देश चलाते हैं, उसके बाद घर में सिमट जाना। यही वजह है कि अमूमन ब्यूरोक्रेट्स चाहते हैं कि छोटा-मोटा पद ही क्यों न हो, पोस्ट रिटायरमेंट कुछ मिल जाए। इससे होता यह है कि धीरे-धीरे अफसरों की फिर कम पावर, कम सुविधाओं की आदत पड़ जाती है। खेतान की पत्नी ने जरूर इसमें पहल करके पति के लिए रिटायरमेंट से पहले ही आफिस खोलवा दी थी। पति का हौसला अफजाई करने वनिता कहती हैं, पहले ये अकेले काम करते थे, अब हम दोनों काम करेंगे।    

थैंक्स गॉड!

सिकरेट्री सोनमणि बोरा को राज्य सरकार ने सेंट्रल डेपुटेशन के लिए रिलीव कर दिया। बोरा की गए मई में भारत सरकार के भूमि प्रबंधन विभाग में पोस्टिंग मिली थी। तीन महीने निकल जाने के बाद उनके मन में आशंकाएं घूमड़ रही होंगी कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। लेकिन, कामख्या देवी की कृपा रही कि इस असमिया अफसर का सब कुछ ठीक-ठाक हो गया। वरना, निधि छिब्बर का केस सबके जेहन में है ही। निधि को डिफेंस में पोस्टिंग का आर्डर निकलने के बाद भी राज्य सरकार ने रिलीव करने से मना कर दिया था। इस पर केंद्र ने उन्हें सेंट्रल डेपुटेशन से पांच साल के लिए डिबार कर दिया था। निधि फिर कैट की शरण ली। कैट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने उन्हें रिलीव किया। इसके बाद वे दिल्ली में ज्वाईन की। लिहाजा, बोरा के हाथ में जब आदेश मिला होगा....तो जाहिर है उनके मुंह से थैंक्स गॉड निकला होगा। 

सिकरेट्री की फौज़

छत्तीसगढ़ कैडर में कभी सिकरेट्री लेवल पर भारी कमी रही। आलम यह था कि एक अफसर को दो-दो, तीन-तीन विभाग मिल जाता था। इसका लाभ उठाते हुए अफसरों ने खूब मलाई काटी। लेकिन, अब वो स्थिति रही नहीं। 97 बैच से लेकर 2005 बैच तक छत्तीसगढ़ में सचिवों की संख्या 35 हो गई है। सबसे सीनियर सचिव सुबोध सिंह हैं और सबसे जूनियर में 2005 बैच के नीलम एक्का। इन 35 में से 9 डेपुटेशन पर हैं। फिर भी बचे 26। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के लिए ये बहुत होते हैं। प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव लेवल पर जरूर स्थिति ठीक नहीं है। एसीएस में तो दो ही बचे हैं। रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू। कहां पहले छह-छह, सात-सात एसीएस होते थे। प्रमुख सचिव में भी गिनती के तीन। मनोज पिंगुआ, गौरव द्विवेदी और मनिंदर द्विवेदी। गृह, वन और पंचायत तीन ऐसे विभाग हैं, जिसमें आमतौर पर सीनियर अफसरों का बिठाया जाता है। इसमें सचिव नहीं चलते। उपर लेवल में पांच-छह साल तक यही स्थिति रहेगी, जब 2002, 03 बैच के आईएएस प्रमुख सचिव नहीं बन जाते। उसके बाद फिर उपर लेवल में भी अफसरों की संख्या ठीक-ठाक हो जाएगी।  

हेलिकाप्टर की सवारी

छत्तीसगढ़ में कुछ खास टूरिस्ट केंद्रों के लिए जल्द ही प्रायवेट हेलिकाप्टर की सेवाएं चालू हो सकती है। खासकर, कोरबा के सतरेंगा के लिए। उसके बाद सीजन और जरूरत के हिसाब से मैनपाट के लिए भी। टूरिज्म बोर्ड के नए अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने पदभार संभालते ही इसकी पहल शुरू कर दी है। एक हेलिकाप्टर कंपनी से बात प्रारंभ भी हो गई है। सतरेंगा बन तो अल्टीमेट गया है। 40 किलोमीटर की लंबी झील है। प्रकृति ने सतरेंगा को भरपूर दिया है। लेकिन, सिस्टम ने सड़क नहीं दिया। आप रायपुर से बिलासपुर तक बढ़ियां से पहुंच जाएंगे। मगर उसके बाद रतनपुर से कटघोरा तक सड़क की स्थिति ऐसी है कि एक बार सफर कर लिए तो आप कांप जाएंगे। बहरहाल, सतरेंगा के लिए रायपुर से हेलिकाप्टर सेवा रहेगी। रायपुर में लोगों के पास पईसा की कमी नहीं है। लोग छत्तीसगढ़ को देखना चाहते हैं। मगर सुविधाएं नहीं हैं। घूम-फिरकर वही बारनवापारा। बारनवापारा में उजाड़ का जंगल के अलावा कुछ है भी नहीं। हेलिकाप्टर सर्विसेज अगर प्रारंभ हो गई, तो सूबे के टूरिज्म व्यवसाय को पंख लग जाएगा। 

तीन छुट्टी कील

सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए ये बड़ा पेनफुल होगा, संडे ने उनकी तीन छुट्टियां खराब कर दिया। हरेली, 15 अगस्त और राखी, तीनों रविवार को पड़ रहा है। कल 8 अगस्त को हरेली है। छत्तीसगढ़ में हरेली की छुट्टी रहती है। उसके बाद दो और रविवार ऐसे ही जाएगा। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. जोर-तोड़ वाले आईपीएस को झटका देते हुए सरकार ने एसपी लेवल पर फिल्टर कर दिया, कलेक्टरों का फिल्टर कब किया जाएगा?

2. किस सिकरेट्री के चिड़चिड़ापन से कलेक्टर परेशानी महसूस कर रहे हैं?

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

पनिशमेंट पोस्टिंग?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 1 अगस्त 2021
राजस्व बोर्ड के चेयरमैन सीके खेतान के रिटायरमेंट ने छत्तीसगढ़ के कम-से-कम तीन सीनियर आईएएस अधिकारियों की रातों की नींद छीन ली…खासकर 30 जुलाई की रात…पता नहीं कल मेरा ही आदेश निकल जाए। दरअसल, राजस्व बोर्ड की पोस्टिंग पनिशमेंट पोस्टिंग मानी जाती है। मध्यप्रदेश के समय भी ऐसा होता था और अब छत्तीसगढ़ में भी…राजस्व बोर्ड में उसी अफसर को भेजा गया, जिससे सरकार खुश नहीं। केडीपी राव, बीएल अग्रवाल, डीएस मिश्रा, रेणु पिल्ले, सीके खेतान। पिछली सरकार ने तो रेणु पिल्ले के आदेश में लिख दिया था…मुख्यालय बिलासपुर रहेगा। मध्यप्रदेश में भी जब कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तो शिवराज सिंह के सिकरेट्री इकबाल सिंह को राजस्व बोर्ड भेज दिया था। मगर शिवराज सिंह आए तो उन्होंने इकबाल को चीफ सिकरेट्री बना दिया और कमलनाथ ने गोपाल रेड्डी को मुख्य सचिव बनाया था, उन्हें राजस्व बोर्ड भेज दिया।

लहर गिनकर पैसा

राजस्व बोर्ड का चेयरमैन चीफ सिकरेट्री रैंक का कैडर पोस्ट है। यानी आईएएस ही इस पद पर बैठ सकता है। इसे पनिशमेंट इसलिए माना जाता है कि अगर लहर गिनकर पैसा कमाने वाला आदमी हो, तभी कुछ कर पाएगा। वरना, घर के लिए सब्जी, राशन और प्लेन का टिकिट भी जेब से कराना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ में एक सीनियर आईएएस ने इस पद पर रहते हुए जरूर कयामत ढा दिया था। इतना कि कलेक्टर, कमिश्नर त्राहि माम करने लगे थे। कलेक्टरों के सारे आदेश उन्होंने पलट डाला। सरकार ने हालांकि, लूप लाईन समझकर आईएएस को वहां भेजा था। मगर बाद में उनकी धमाचौकड़े देखते रमन सरकार को उन्हें बिलासपुर से वापिस बुलाना पड़ गया।

बिना सीएस बने

87 बैच के आईएएस चितरंजन कुमार खेतान 34 साल की सर्विस पूरी कर 31 जुलाई को रिटायर हो गए। छत्तीसगढ़ में रिकार्ड तीन बार डीपीआर, सीपीआर रहने वाले खेतान रायपुर के कलेक्टर भी रहे। सिकरेट्री के तौर पर गृह, सिंचाई, अरबन, स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, फॉरेस्ट जैसे विभाग संभालने वाले खेतान को ताउम्र मलाल रहेगा कि छत्तीसगढ के उन तीन अफसरों में शामिल हो गए, जिन्हें सुपरशीट करके जूनियर को चीफ सिकरेट्री बनाया गया। छत्तीसगढ़ में सुपरशीट होने वालों में बीकेएस रे, पी राघवन, बीके कपूर और नारायण सिंह का नाम आता है। रमन सरकार ने बीकेएस, राघवन और कपूर को सुपरशीट करके शिवराज सिंह को चीफ सिकरेट्री बनाया था। इनमें राघवन के खिलाफ भोपाल में कोई जांच थी और कपूर डायरेक्ट आईएएस जरूर थे लेकिन अपने पारफारमेंस की वजह से कभी सीएस की दौड़ में नहीं रहे। सही मायने में कहा जाए तो बीकेएस रे सुपरशीट हुए। उसके बाद जब सुनिल कुमार को मुख्य सचिव बनाया गया तो नारायण सिंह उनके सीनियर थे। नारायण को तब बिजली नियामक आयोग में भेजा गया। खेतान को तकलीफ कुछ ज्यादा हुई होगी कि उन्हीं के बैच और उन्हीं के स्टेट के आरपी मंडल चीफ सिकरेट्री बन गए…उन्हें सुपरशीट करके। हालांकि, ये बात भी सही है कि चीफ सिकरेट्री और डीजीपी वही बनता है, जिसके माथे पर लिखा होता है। इन दोनों पदों का आमतौर से पारफारमेंस से कोई रिश्ता नहीं होता। वरना, गिरधारी नायक जैसे आईपीएस डीजीपी बनने से वंचित नहीं हो जाते। आप लिस्ट देख लीजिए…छत्तीसगढ़ में कैसे-कैसे सीएस और डीजीपी हुए हैं। इससे आप सब समझ जाएंगे।

पहली बार….

राज्य बनने के बाद से राजस्व बोर्ड में अभी तक डायरेक्ट आईएएस ही चेयरमैन बनते आए थे। अलबत्ता, यह पहला अवसर होगा, जब राप्रसे से आईएएस बने उमेश अग्रवाल को सरकार ने मेम्बर बनाया है। और अभी तक के संकेतों के अनुसार वे ही रेवन्यू बोर्ड को संभालेंगे। उमेश के आदेश ने ब्यूरोक्रेसी को चौंका दिया। क्योंकि, इस पोस्ट के लिए एक जेंस और दो लेडी अधिकारियों के नाम की अटकलें चल रही थी। लेकिन, बताते हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद उमेश के नाम को फायनल किया। उमेश की छबि तेज और साफ-सुथरी अफसर की रही है। उन्हें काफी नॉलेजेबल अधिकारी माना जाता है। खासकर रेवन्यू के बारे में। उमेश दुर्ग के कलेक्टर रहे हैं। लिहाजा, उनके कामधाम से मुख्यमंत्री भी नावाकिफ नहीं थे। कह सकते हैं, पहली बार रेवन्यू बोर्ड में काम के आधार पर पोस्टिंग हुई है। यानी अब…..नो पनिशमेंट पोस्टिंग।

बदलेगा रुल

एसीबी, ईओडब्लू में मध्यप्रदेश के समय से चला आ रहा है कि कोई भी व्यक्ति अगर किसी अफसर के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत करता है, तो अफसर के नाम से रजिस्टर में मामला दर्ज कर लिया जाता है। बिना किसी पड़ताल किए। फिर विधानसभा का बजट सत्र हो या मानसून और शीत…एक सवाल ईओडब्लू और एसीबी के दागी अफसरों पर जरूर पूछा जाता है। इस बार यह प्रश्न धर्मजीत सिंह ने लगाया था। जवाब में 40 से अधिक आईएएस, रिटायर आईएएस, आईपीएस के नाम आए। ईओडब्लू चूकि जीएडी में आता है। जीएडी मुख्यमंत्री के पास है। मुख्यमंत्री ही इसका जवाब देते हैं, इसलिए और इस पर मुहर लग जाता है। बहरहाल, अब पता चला है कि एसीबी इस नियम को बदलने पर विचार कर रहा है। कोई शिकायत आएगी तो उसे जांच उपरांत रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा। इससे भ्रष्ट अफसरों को तो फायदा होगा…लेकिन चंद अच्छे अफसर नाम खराब होने से बच जाएंगे।

विवेकानंद की प्रमोशन

सात महीने देर से सही, विवेकानंद सिनहा का एडीजी प्रमोशन हो गया। प्रमोशन के बाद उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है, वे दुर्ग आईजी बने रहेंगे। आईबी में तीन साल का डेपुटेशन पूरा कर डीआईजी बद्री मीणा भी छत्तीसगढ़़ लौट आए हैं। समझा जाता है कि विवेकानंद के साथ ब्रदी की पोस्टिंग की फाइल भी अगले हफ्ते मूव होगी। मुख्यमंत्री तय करेंगे कि विवेकानंद और बद्री को कहां पोस्ट किया जाए। अगर विवेकानंद को रायपुर बुलाया जाएगा तो सरगुजा के बाद दुर्ग में भी नए आईजी की पोस्टिंग करनी होगी। सरगुजा को एडिशनल तौर पर बिलासपुर आईजी संभाल रहे हैं। सुना है, ओपी पाल का नाम वहां के लिए चल रहा है। सरकार अगर विवेकानंद को पुलिस मुख्यालय लाए, तो दुर्ग में हो सकता है 2004 बैच के किसी आईपीएस को प्रभारी आईजी बना दिया जाए। वैसे कोई जरूरी नहीं कि एडीजी बनने के बाद रेंज में नहीं रहा जा सकता। हिमांशु गुप्ता काफी समय तक एडीजी के रूप में दुर्ग संभाले थे।

एक महल, दो गेट

राजमहलों की उंची दिवारों के भीतर क्या-क्या होते हैं….हैरान करता है। एक महल की सूबे की सियासत में कभी तूती बोलती थी। मगर समय बदला…दो भाइयों का झगड़ा इस लेवल पर पहुंच गया कि अब एक-दूसरे को देखना गवारा नहीं। गुस्से में कहीं कोई अनर्थ न हो जाए, इसलिए दोनों का आमना-सामना न हो…महल में एक अलग से ़द्वार बनाया जा रहा है। दोनों भाई अब अलग-अलग गेट से महल में प्रवेश करेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईजी से एडीजी प्रमोट हुए विवेकानंद सिनहा को क्या पुलिस मुख्यालय में नक्सल प्रभारी बनाया जाएगा?
2. किस जिले के एसपी को डीजल चोरी कराने की एवज में हर महीने 10 लाख रुपए बंधा है?

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