शनिवार, 20 अगस्त 2016

हमसे का भूल हुई….जो ये सजा….


, 21 जनवरी
संजय दी़िक्षत
राजभवन ऐसी जगह है, जहां पोस्टेड अफसरों को वहां से निकलने पर कम-से-कम एक क्रीम पोस्टिंग तो मिलती ही है। याद कीजिए, छत्तीसगढ़ बनने के बाद सुशील त्रिवेदी राजभवन में फस्र्ट सिकरेट्री बनें। वहां से वे सिकरेट्री इरीगेशन एन पीएचई बनकर बाहर निकले। उनके बाद आईसीपी केसरी सिकरेट्री बनकर गए। वे भी सिकरेट्री पीडब्लूडी बनकर मंत्रालय लौटे। तीसरे, शैलेष पाठक राजभवन से अपनी इच्छा से दिल्ली चले गए। वरना, उनको भी ठीक-ठीक ही जगह मिली होती। चैथे नम्बर पर अमिताभ जैन राजभवन गए। वे भी सिकरेट्री पीडब्लूडी बनें। पीसी दलेई को देखिए, गए थे पीली बत्ती लगाकर। याने सिकरेट्री बनकर। लौटे लाल बत्ती के साथ। उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त का तोहफा मिल गया। जवाहर श्रीवास्तव लंबे समय तक राजभवन में रहे। उन्हें रिटायरमेंट के आखिरी दिन प्रिंसिपल सिकरेट्री का प्रमोशन दिया गया। मंत्रालय में जीएडी सिकरेट्री रहे। अभी वे सूचना आयुक्त हैं। एडीसी में भी विवेकानंद, दिपांशु काबरा, ओपी पाल, राहुल शर्मा जैसी लंबी फेहरिश्त है, जो जिलों में एसपी बनकर गए। बहरहाल, जवाहर के बाद सिकरेट्री बनकर राजभवन पहुंचे सुनील कुजूर की किस्मत मानों दगा दे गई। 86 बैच के आईएएस कुजूर राजभवन के अब तक के सबसे सीनियर सिकरेट्री रहे। स्टार और सरकार का सपोर्ट मिल जाता तो कब के एडिशनल चीफ सिकरेट्री बन गए होते। उल्टे, वे राजभवन से हटा दिए गए। सीएम पहुंचे राजभवन। और, वहां से लौटने के दो दिन बाद उनका आर्डर निकल गया। कुजूर के पास अब ये गुनगुनाने के अलावा कोई चारा नहीं, हमसे का भूल हुई….जो ये सजा…..।

एक अफसर, तीन आफिस

सुनील कुजूर के बाद अशोक अग्रवाल को राजभवन का नया सिकरेट्री पोस्ट किया गया है। वे पहले से आबकारी आयुक्त हैं। और इसी विभाग का सचिव भी। अब तीसरा राजभवन हो गया। तीनों के आफिस अलग-अलग हैं। सचिव के रूप में मंत्रालय, आबकारी का आफिस जीई रोड और राजभवन तो है ही। चलिये, अशोक अग्रवाल प्रतिभावान आईएएस हैं। कोरबा, रायगढ़ और राजनांदगांव जैसे तीन अहम जिले के कलेक्टर रहे हैं। रायपुर और दुर्ग के कमिश्नर भी। हालांकि,, एक्साइज में उतना काम होता नहीं। लेकिन, राजभवन में उन्हें टाईम देना पड़ेगा। वो भी तब, जब सरकार ने उन्हें विश्वास के साथ वहां भेजा है।

हरियर छत्तीसगढ़, हरियर आफिसर

सरकार के हरियर छत्तीसगढ़ अभियान से छत्तीसगढ़ कितना हरियर हुआ, इसका नहीं पता मगर ये जरूर है कि वन विभाग के अफसर हरियर होते जा रहे हैं। अपन इस साल की ही बात करते हैं। अभी तक इस अभियान में लगभग 10 करोड़ रुपए के पौधे लगे हैं। 60-70 रुपए के पौधों को 300 से 700 रुपए तक में खरीदा जा रहा है। आंध्र से पौधों की सप्लाई हो रही है। जबकि, दो साल पहले सीएम ने वन विभाग की मीटिंग में दो टूक कहा था कि पौधा दूसरे राज्यों से नहीं आनी चाहिए। मगर शर्म की बात है, देश का तीसरा बड़ा फारेस्ट स्टेट। जहां 44 फीसदी वन हैं। वनकर्मियों का बड़ा अमला। थोक में आईएफएस। वहां दीगर राज्यों से पौधा खरीदना पड़ रहा है। सिर्फ और सिर्फ कमीशनखोरी के लिए। पौधे खरीदी में तो गोलमाल है ही, सरकार के पास ये देखने का कोई सिस्टम भी नहीं है कि कितने पौधे जमीन में लगे और कितने कागजों में। सरकार को यूपी की तरह सेटेलाइट सिस्टम करना चाहिए। यूपी सरकार ने अपने आईएफएस अफसरों को तभी एडिशनल पीसीसीएफ बनाया, जब पौधारोपण के रिजल्ट आए। जबकि, वहां के अफसरों ने छत्तीसगढ़ में एक साथ 11 आईएफएस अफसरों को एडिशनल पीसीसीएफ बनाने का हवाला देकर प्रेशर बनाया था। किन्तु, सरकार टस-से-मस नहीं हुई। अपने यहां भी आईएफएफस के प्रमोशन में ऐसा पैमाना नहीं बनाया जा सकता? जब तक ऐसा नहीं होगा, अफसर हरियर होते रहेंगे। आखिर, पिछले महीने एक बैठक में सीएम भी बोेले ही थे कि छत्तीसगढ़ में वन अफसर बढ़ रहे हैं और वन सिमट रहा है।

नायक का इम्पेनलमेंट

गिरधारी नायक भले ही सूबे के डीजीपी नहीं बन पाए मगर भारत सरकार में वे डीजी इम्पेनल हो गए हैं। 83 बैच के 25 आईपीएस अफसरों में से केंद्र ने 10 का नाम फाइनल किया है। इनमें नायक भी हैं। एमपी से वहां के डीजीपी ऋषि शुक्ला और डीजी रीना मित्रा का नाम है। नायक से पहले विश्वरंजन डीजी इम्पेनल हुए थे। अनिल नवानी और रामनिवास को यह अवसर नहीं मिल पाया।

आईपीएस की लिस्ट

गरियाबंद एसपी अमित कांबले एसपीजी में एआईजी बनेंगे। एमएचए से उनका आर्डर निकल गया है। समझा जाता है, इस महीने के अंत तक वे यहां से रिलीव हो जाएंगे। अमित के दिल्ली जाने के बाद गरियाबंद में नए एसपी की पोस्टिंग की जाएगी। लिहाजा, एसपी लेवल पर हलचल शुरू हो गई है। खतरा यह है कि एक के चक्कर में दो-एक और जिलों का चेन न बन जाएं। जैसे, आईजी और महिला कांस्टेबल मामले में हुआ। बड़ा उलटफेर हो गया।

24 अगस्त पर नजर

नान घोटाले में दो आईएएस अफसरों के खिलाफ भारत सरकार से अभियोजन की अनुमति मिलने के बाद एसीबी की नजर अब 24 अगस्त को हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिकी है। दरअसल, सरकार भी नहीं चाहती कि ब्यूरोक्रेसी में कोई गलत मैसेज जाए। क्योंकि, हाईकोर्ट में डीबी बेंच में मामला है और इससे पहले कार्रवाई हो गई तो संदेश जाएगा कि छत्तीसगढ़ में आईएएस अफसरों को टांगा जा रहा है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार के पास कहने के लिए रहेगा कि भाई! हमने तो उन्हें पूरा मौका दिया। भारत सरकार के परमिशन के बिना भी अरेस्टिंग हो सकती थी। लेकिन, अभियोजन की स्वीकृति का इंतजार किया गया। कानूनविद्ों की मानें तो इस केस में पीटिशनर की बात सुनने का एकाध मौका मिल सकता है। बाकि, ऐसे केसों में क्या होता है, सबको पता है।

चैबे का बढ़ा कद!

लगता है, कांग्रेस की राजनीति में पुराने एवं कद्दावर नेता रविंद्र चैबे का कद बढ़ गया है। शुक्रवार को कांग्रेस कोर गु्रप की बैठक उनके घर पर हुई। बताते हैं, दिल्ली से नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने फोन करके चैबे को इसकी सूचना दे दी थी, महाराज, बैठक आपके घर पर ही होगी। अंदर की खबर यह है कि संगठन से खफा चल रहे चरणदास महंत भी इसीलिए पहंुचे कि बैठक चैबेजी के घर पर हो रही थी। कुछ और वरिष्ठ नेताओं के साथ भी यही स्थिति रही। खबर तो ये आ रही है कि पार्टी नेताआंें की नाराजगी दूर करने कोर ग्रुप बनाया गया है। और, चैबे इसके कोआर्डिनेटर होंगे।

हफ्ते का व्हाट्सएप

पहले दीपा कर्मकार और साक्षी मलिक की कामयाबी और फिर पीवी संधु का ऐतिहासिक प्रर्दशन। सलाम बेटियों! बेटों की चाहत में जान लेने वाले इस महान देश में तुम्हारा अल्ट्रा साउंड की मशीन से बच निकलना भी किसी चमत्कार से कम नहीं था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिला अध्यक्ष को हटाकर कांग्रेस ने चरणदास महंत को नाराज कर दिया है?
2. जमीन से जुड़े एक कलेक्टर का नाम बताइये, जो अपने बंगले में जमीन पर चटाई बिछाकर सोते हैं?

शनिवार, 13 अगस्त 2016

इंतेहां…..हो गई, इंतजार क


14 अगस्त
संजय दीक्षित
लगता है, रिटायर नौकरशाहों को लाल एवं नीली बत्ती के देने में सरकार उनके धैर्य की परीक्षा ले रही है। पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए सरकार ने दो महीने का नार्म रखा था। याने रिटायरमेंट के बाद दो महीना वेट करना होगा। लेकिन, ये टाईम लिमिट भी खतम हो गई। इसके बाद सरकार ने विधानसभा के मानसून सत्र के बाद का संकेत दिया था। सत्र खतम हुए भी महीना होने जा रहा है। अब तो अफसरों से लोगों ने पूछना भी बंद कर दिया है, साब कब हो रहा है…..। पत्नियां इंसल्ट के चलते किटी पार्टियों में जाना बंद कर दिया है, सो अलग। चिंता का विषय यह है कि रिटायर अफसरों की संख्या बढ़ती जा रही है। सीट लिमिटेड है। ठीक-ठाक में तो दो ही समझिए। मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य निर्वाचन आयुक्त। पीएससी मेम्बर भी है। मगर 62 साल आयु सीमा के कारण रिटायर अफसरों के लिए दो साल ही मिलता है। बहरहाल, पुनर्वास के दावेदारों के पास शराबी फिल्म का गाना गुनगुनाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है, इंतेहा हो गई….इंतजार की, आई ना कोई खबर, लाल बत्ती की….।

झंडा उंचा रहे हमारा

बात दंतेवाड़ा की है। 2008 के आसपास वहां एक महिला कलेक्टर थीं। पहला जिला था। सो, चूक हो गई थी। तिरंगा उल्टा फहर गया। मामला कोर्ट केस तक पहंुच गया। इस बार तो आधा दर्जन से अधिक नए कलेक्टर हैं। 2009 बैच के ही पांच आईएएस पहली बार कलेक्टर बने हैं। उनसे सीनियर बैच के दो कलेक्टरों का भी पहला स्वतंत्रता दिवस होगा। उपर से सोशल मीडिया का जमाना। गड़बड़ होने का मतलब आप समझ सकते हैं। सो, नए कलेक्टर सहमे हुए हैं, कोई चूक न हो जाएं। नए कलेक्टर वाले जिलों में फूंक-फंूककर तैयारी की जा रही है।

एसपी की सुनेगी सरकार

राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब सरकार सिर्फ एसपी की सुनेगी। इससे पहले, कलेक्टर और एसपी कांफ्रेंस एक साथ होती थी। कलेक्टर का पहले और सेकेंड हाफ मेें याने भोजन के बाद एसपी, आईजी की। चार सितारा होटल का जायकेदार भोजन करने के बाद न कोई सुनने के मूड में रहता था और ना ही सुनाने की स्थिति में। ओके और थैंक्स में मामला निबट जाता था। लेकिन, 24 अगस्त को एसपी कांफ्रेंस होने जा रही है, उनमें ऐसा नहीं होगा। अबकी वेन्यू भी मंत्रालय नहीं, पीएचक्यू होगा। इसमें सीएम दिन भर रहेंगे। सबसे पहिले, सात आईपीएस एसपी रायपुर संजीव शुक्ला, बिलासपुर एसपी मयंक श्रीवास्तव, दुर्ग एसपी अमरेश मिश्रा, महासमुंद एसपी नेहा चंपावत, राजनांदगांव एसपी प्रशांत अग्रवाल, ट्रेफिक एआईजी जीतेंद्र मीणा और एसपी एसआईटी दीपक झा अपना प्रेजेंटेशन देेंगे। सातों को टापिक दे दिया गया है। प्रेजेंटेशन के बाद सीएम एसपी से मुखातिब होंगे। उनकी दिक्कतों सुनेंगे। बहरहाल, पीएम की इच्छा का सम्मान कर सबसे पहिले एसपी कांफ्रेंस करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बन गया है। पीएम ने दिल्ली में डीजीपी कांफ्रेंस में अपने मन की बात कही थी कि डीजीपी कांफें्रस की तरह मुख्यमंत्रियों को क्यों नहीं एसपी कांफें्रस करना चाहिए।
खतरे की घंटी
आईपीएस अमित कुमार का सीबीआई डेपुटेशन 8 सितंबर को समाप्त हो जाएगा। उनके पास सुप्रीम कोर्ट के कुछ केसेज हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ लौटने के लिए शीर्ष कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ेगी। हालांकि, ये रुटीन प्रक्रिया है। इसलिए, अनुमति मिलने में दिक्कत नहीं होती। ऐसे में यह मानकर चला जा रहा है कि सितंबर के दूसरे पखवाड़े में वे कैडर राज्य में बैक हो जाएंगे। अमित 98 बैच के आईपीएस हैं। सरकार ने उन्हें पिछले साल आईजी का प्रोफार्मा प्रमोशन दिया था। बहरहाल, अमित के आने से आईजी लेवल पर एक और फेरबदल की अटकलें शुरू हो गई है। अमित को सरकार के गुडबुक में माना जाता है। उनके लिए गुजांइश बनाने के लिए जाहिर है, सरकार कुछ करेगी। और, खतरे की वजह आईजी यही मान रहे हंै।

खंडन और राहत

छत्तीसगढ़ की बेजेपी नेत्री सरोज पाण्डेय को गुजरात सीएम चुनने के लिए प्रभारी बनाने के बाद छत्तीसगढ़ के सत्ताधारी कैंप में सन्नाटा पसर गया था। सन्नाटे को और गहरा उस खबर ने कर दिया कि सरोज को तीन और राज्यों का प्रभारी बना दिया गया है। याने महाराष्ट्र को मिलाकर चार राज्य। इसका मतलब आप समझ सकते हैं। बीजेपी की सबसे प्रभावशाली महासचिव। मगर बीजपी आलाकमान ने अगले रोज ही तीन राज्यों के प्रभारी वाली खबर को खारिज कर दिया। तब जाकर सत्ताधारी कैंप को राहत मिली।

एक पटका, कई मैसेज

अजीत जोगी ने अपना पटका बदल लिया है। पहले वे कांग्रेस वाला तिरंगा पटका कंधे पर रखते थे। जोगी कांग्रेस बनाने के बाद जब मीडिया वालों ने इस पर सवाल किया कि तो उन्होंने कहा था कि ये कांग्रेस का नहीं, जोगी पटका है। मगर अब उन्हें सीजेसीजे के झंडे के कलर का गुलाबी पटका रखना शुरू कर दिया है। इस पर जोगीजी की सुनिये, बस्तर के एक विधायक ने मुझसे कहा कि आपके कंधे से अभी तक तिरंगा पटका उतरा नहीं है, इसका ये मतलब तो नहीं कि आपके कांग्रेस में लौटने का गुंजाइश है। इसलिए, मैंने पटका बदल लिया। वैसे, जोगी ने इससे कई मैसेज दिया है। एक तो पूरी तरह अपनी पार्टी के रंग में रंग गए। दूसरा, बस्तर के एमएलए का जिक्र कर लोगों को बताया कि वहां के कांग्रेस नेता आज भी उनके संपर्क में है। और, तीसरा, बस्तर के नेताओं की सलाह को वेटेज देते हैं। इससे बस्तर के लोग प्रभावित होंगे। याने एक पटका और कई मैसेज।

वीसी को माफ करना काकाजी

राज्य की संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा का रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी होती है। और, उससे उम्मीद की जाती है कि जो मर्यादा का पालन न करें, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। मगर दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं रहा है। ताजा केस पं0 रविशंकर शुक्ल विवि का है। सूबे के सबसे बड़े विवि और वहां के सबसे बड़े वाले कुलपति साब ने जो इमरजेंसी के टाईम नहीं हुआ, वो कर डाला। अपने संयोजकत्व में संघ के साथ कुलपतियों की बैठक करा डाली। और, साहसिक अंदाज में गर्वोक्ति भी, हां बैठक हमने कराई है। इसके बाद विवि में 10 अगस्त को जो हुआ, वह देश में इसके पहले कभी नहीं हुआ। बिना राज्यपाल के दीक्षांत समारोह का कारनामा। राज्यपाल विवि के कुलाधिपति होते हैं। यूजीसी के नार्म में साफ लिखा है कि कुलाधिपति की गैर मौजूदगी में दीक्षांत नहीं हो सकता। वीसी साब बिलासपुर के ओपन यूनिवर्सिटी की ओर ताक लेते। मई में राज्यपाल के कार्यक्रम बदलने के चलते वहां के वीसी ने एक दिन पहले दीक्षांत समारोह स्थगित कर दिया था। लेकिन, रविवि ने कमाल कर दिया। जबकि, केंद्र और राज्य में एक ही सरकार। राज्यपाल को भी कोई और नहीं, मोदी सरकार ने पोस्टिंग की है। ऐसे में, राजभवन की नाराजगी के बाद भी वीसी द्वारा दीक्षांत करा लेना। ऐसे साहसिक कुलपति को तो सैल्यूट करना चाहिए। साथ ही, उनके व्यक्तित्व पर पीएचडी भी। क्योंकि, ऐसा उच्च आचरण भला कहां देखने को मिलेगा। 90 के दशक में स्व0 विद्याचरण शुक्ल के करीबी कुलपति पाण्डेयजी तक ने भी विवि का ऐसा सिर नीचा नहीं किया। इससे पं0 रविशंकर शुक्ल की आत्मा भी कलप रही होगी। खैर, वीसी को माफ करना काकाजी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डीजीपी एएन उपध्याय को 15 अगस्त को लोग डबल बधाई क्यों देते हैं?
2. भिलाई के एक बिल्डर के यहां किन-किन नौकरशाहों ने पैसा रखवाया है?

रविवार, 7 अगस्त 2016

सूत न कपास और…..

7 अगस्त

संजय दीक्षित
अपने मंत्रालय याने महानदी भवन में फाइलें किस तरह मूव होती हंै, इसकी एक बानगी आपको बताते हैं। दुर्ग कलेक्टर आर संगीता को पिछले साल मई में दो महीने की ट्रेनिंग पर जाना था। सरकार ने दुर्ग के तत्कालीन सीईओ जिला पंचायत जीपी पाठक को प्रभारी कलेक्टर बनाने का आर्डर निकाला। लेकिन, संगीता ऐसा नहीं चाहती थी। उन्होंने रायपुर कमिश्नर को आपत्ति करते हुए लिखा कि पाठक ठीक नहीं हैं…..हार्टिकल्चर विभाग का पेमेंट रोक दिया है, इन्हें किसी भी सूरत में जिले का प्रभार न दिया जाए। कमिश्नर अशोक अग्रवाल ने इस लेटर को पोस्टमैन की तरह सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया। अब, इसके बाद का क्लास देखिए। इस एपीसोड के के दो महीने बाद पाठक का रायपुर ट्रांसफर हो गया। पिछले अगस्त से वे रजिस्ट्रार सहकारिता हैं। और, उधर मंत्रालय में दुर्ग के प्रभारी कलेक्टर की पोस्टिंग की फाइल मोटी होती जा रही है। जीएडी और हार्टिकल्चर के अफसर नियमों की किताबें खंगाल कर नोटिंग पर नोटिंग लिखे जा रहे हैं। दरअसल, जीएडी के अफसरों ने देखा कि संगीता ने हार्टिकल्चर का पेमेंट का जिक्र किया है, तो फाइल हार्टिकल्चर को भेज दिया। जबकि, हार्टिकल्चर याने एग्रीकल्चर विभाग के अफसरों का कहना है मेन इश्यू पाठक को प्रभारी कलेक्टर की पोस्टिंग है, सो जीएडी जाने। और, जीएडी का कहना है कि हार्टिकल्चर का पेमेंट रोकने के कारण संगीता ने प्रभारी कलेक्टर बनाने पर आपत्ति की है, इसलिए डिसाइड वो करें। इस चक्कर में फाइल 200 पेज से भी ज्यादा मोटी हो गई है। ये तो सूत न कपास, जुलाहों में लठ्मलठ्ठ वाला मामला हो गया है। संगीता ट्रेनिंग करके पिछले साल जुलाई में लौट आई। पाठक भी साल भर से रायपुर में हैं। और, जीएडी एवं एग्रीकल्चर विभाग गुत्थमगुत्था हो रहे हैं।
होना क्या था-जीएडी के अफसरों को संगीता और पाठक की बात सुनकर फाइल को नस्तीबद्ध कर देना चाहिए था।

अंदर की बात

भले ही भारत सरकार ने आईएएस डा0 आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा के खिलाफ अपराधिक मुकदमा चलाने की इजाजत दे दी हो मगर कम-से-कम टुटेजा को इससे राहत मिल सकती है। इसकी वजह यह है कि उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग की वह प्वाइंट पकड़ ली है, जिसे भारत सरकार को भेजने में चूक हो गई। 28 अगस्त 2014 के गाइडलाइन में भारत सरकार ने अभियोजन के लिए अनुशंसा करने के लिए चेक प्वाइंट निर्धारित किया था। जीएडी ने इसे ओवरलुक कर दिया। सो, सिंगल बेंच में मामला खारिज होने के बाद टुटेजा ने डबल बेंच में जो रिट दायर की है, उसमें इसी प्वाइंट को बेस बनाया है। उन्होंने तर्क दिया है कि अभियोजन की अनुमति के लिए जीएडी ने भारत सरकार के नार्म के अनुसार अनुशंसा नहीं की। कानून के जानकारों की मानें तो यह बड़ा ग्राउंड है। अब, आप ये मत पूछिए कि जीएडी ने यह चूक क्यों की। यह अंदर की बात है।

बेचारे कुजूर

छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह दूसरा मौका होगा कि कोई आईएएस प्रमोशन ड्यू होने के आठ महीने बाद भी टकटकी लगाए बैठा हो। इससे पहिले विवेक ढांड के साथ ऐसा हुआ था। उन्हें एक साल बाद एसीएस बनने का मौका तब मिला, जब डीएस मिश्रा एसीएस बनने के लिए एलीजेबल न हो गए। विवेक 81 बैच के और डीएस 82 बैच के आईएएस थे। लेकिन, विवेक और डीएस एक साथ प्रमोट हुए। इस स्थिति से 87 बैच के सुनील कुजूर भी दो-चार हो रहे हैं। वैसे तो इस बैच में उनके अलावे डा0 आलोक शुक्ला और अजयपाल सिंह भी हैं। लेकिन, शुक्ला नान केस में फंस गए हैं। लिहाजा, जीएडी ने कुजूर औैर अजयपाल का नाम भारत सरकार को भेजा है। अगर आईएएसवाद नहीं चला तो सीआर के कारण अजयपाल कट सकते हैं। अब, बचे कुजूर। उनकी हालत क्लास के पुअर विद्यार्थी की हो गई है। जनवरी में उन्हें कायदे से एडिशनल चीफ सिकरेट्री बन जाना था। मगर आठ महीने बाद भी कोई चर्चा नहीं है। जबकि, इससे पहले अधिकांश आईएएस ने जोर-जुगाड़ लगाकर छह महीने, साल भर पहिले प्रमोशन करा लिया। चीफ सिकरेट्री खैर इस दर्द को जानते हैं कि इसलिए 87 बैच को अब उन्हीं से उम्मीद है।

सरोज का बढ़ता कद!

बीजेपी नेत्री सरोज पाण्डेय भले ही लोकसभा चुनाव में शिकस्त खा गई पर, पार्टी के राष्ट्रीय कैनवास पर उनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले उन्हें महाराष्ट्र का प्रभारी महासचिव बनाया। इस बार गुजरात के सीएम चुनने के लिए अमित शाह और नीतिन गडगरी के साथ पर्यवेक्षक बना दी गईं। खबर है, वे अमित शाह की क्लोज होती जा रही हैं। जाहिर है, छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेताओं के लिए यह चिंता का सबब हो सकता है।

दो और दावेदार

इस महीने दो और आईएएस रिटायर हो जाएंगे। सिकरेट्री phe बीएल तिवारी और सिकरेट्री लोक सेवा आयोग डा0 बीएस अनंत। याने पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए दावेदारों की संख्या और बढ़ जाएगी। इस साल अभी तक पांच आईएएस रिटायर हो चुके हैं। दिनेश श्रीवास्तव, डीएस मिश्रा, एसएल रात्रे, ठाकुर राम सिंह और राधाकृष्णन। दो और मिलाकर अब सात हो जाएंगे। इनमें से रात्रे और अनंत को छोड़ दें तो सभी लाल और नीली बत्ती के प्रबल दावेदार हैं। सरकार जैसे-जैसे पोस्टिंग को लंबा खींच रही है, कांपीटिशन टफ होता जा रहा है। इस महीने रिटायर हो रहे बीएल तिवारी को भी कम मत आंकिएगा। कवर्धा में एसडीएम रहे हैं। सरकार से पुराना ताल्लुकात हैै। नान आईएएस में पीपी सोती और आईएएस में बीएल ऐसा फेस है कि दरबार में खड़े होने की देर है। पोस्टिंग की बाट जोह रहे अफसरों को यही तो चिंता खाए जा रही है। पुनर्वास क्भ् जगह सीमित है और विकल्प बढ़ता जा रहा है।

मंत्रियों का विरोध

9 अगस्त के आदिवासी सम्मेलन के लिए सरकार ने ट्राइबल मिनिस्टर्स रामसेवक पैकरा, केदार कश्यप और महेश गागड़ा को यह सोचकर जिम्मेदारी सौंपी है कि वे आदिवासी समाज की नुमाइंदगी करते हैं, तो इसमें घोखा भी हो सकता है। क्योंकि, तीनों मंत्रियों का समाज के भीतर स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। सीएम बोलते हैं, इलाके से आए कार्यकर्ताआंें को मंत्री चाय पिलाएं। मगर इन मत्रियों से मिलना भी टेढ़ा काम है। यही कारण है कि 9 अगस्त के कार्यक्रम में शरीक न होने के लिए बीजेपी के भीतर का एक धड़ा सामने आ गया है। यह खेमा लोगों पर जोार डाल रहा है कि वे रायपुर के सम्मेलन में न जाएं। सो, अगर सरकारी मदद न मिला तो कार्यक्रम फ्लाप भी हो सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस में मीडिया चेयरमैन पोस्ट को खतम करने के लिए पीसीसी पर प्रेशर क्यों बनाया जा रहा है और, क्या शिव डहरिया को जोगी पर बोलने के लिए प्रवक्ता बनाया जाएगा?
2. एक आईएफएस अफसर का नाम बताएं, जो सीएस आफिस के नजदीक तो हैं ही, सीएम सचिवालय के भी क्लोज हो गए हैं?