शनिवार, 18 मार्च 2017

प्रमोटी पर अंतर्द्वंद्व


19 मार्च
संजय दीक्षित
प्रमोटी आईएएस को जिलों में कलेक्टर बनाने के नाम पर सरकार के भीतर अंतर्द्वंद्व की स्थिति निर्मित हो गई है। कुछ लोग चाहते हैं पिछले दो चुनावों की भांति जिलों में अब प्रमोटी की संख्या बढ़ाई जाए। तो
कुछ यूपी और पंजाब का हवाला देते हुए रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस का ही प्रभुत्व कायम रखने की वकालत कर रहे हैं। यूपी और पंजाब में 60 फीसदी से अधिक जिलों में कलेक्टर और एसपी प्रमोटी थे। दोनों ही सूबों में सरकारें निबट गईं। छत्तीसगढ़ में भी एक वक्त था, जब एक समय में 12-13 प्रमोटी कलेक्टर हुआ करते थे। रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़ सरीखे जिलों में भी प्रमोटी कलेक्टर रहे। लेकिन, 2013 में बीजेपी की तीसरी बार सत्ता आने के बाद रेगुलर रिक्रूट आईएएस ने जिलों में कब्जा जमा लिया। अभी आलम यह है कि 27 में से महज पांच प्रमोटी कलेक्टर हैं। कवर्धा, बेमेतरा, महासमुंद, सूरजपुर और नारायणपुर। इनमें एक भी बड़ा जिला नहीं है। लोक समाधान शिविर के बाद सरकार प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या बढ़ाने का संकेत दे चुकी है। लेकिन, नए हालात में देखना दिलचस्प होगा कि सरकार चुनाव के समय प्रमोटी पर दांव लगाएगी या रेगुलर रिकू्रट की सत्ता कायम रखेगी।

आईएएस की बढ़ती तादात

छत्तीसगढ़ में आरआर और प्रमोटी की बात पहले इसलिए नहीं होती थी कि आरआर की संख्या में बेहद कम थी। पिछले कुछ साल से आईएएस के हर बैच में संख्या बढ़ती जा रही है। पांच-सात से कम आईएएस तो कभी आ नहीं रहे। यही वजह है, कलेक्टरी में भी छत्तीसगढ़ कैडर पिछड़ने लगा है। यूपी, बिहार, झारखंड में 2011 बैच कलेक्टर बन गया है। छत्तीसगढ़ में अभी 2010 बैच का नम्बर नहीं लगा है। एक दर्जन से अधिक आईएएस ऐसे हैं, जिन्होंने सिर्फ एक जिला किया है। इसको देखकर लगता है, आने वाले समय में आरआर ने दो-से-तीन जिला कर लिया तो बहुत होगा।

सिकरेट्री का भी संकट

संकट सिकरेट्री लेवल पर है। खासकर, अगला दो-तीन साल काफी क्रायसिस वाला रहेगा। अगले मार्च तक सीएस विवेक ढांड एसीएस एनके असवाल, एसीएस एमके राउत, सिकरेट्री गणेश शंकर मिश्रा सेवानिवृत्त हो जाएंगे। सिकरेट्री पीआर एन टूरिज्म संतोष मिश्रा का मई में डेपुटेशन खतम हो जाएगा। निधि छिब्बर दिल्ली जा रही हैं। जाहिर है, उनके पीछे-पीछे विकास शील भी जाएंगे ही। बीएल अग्रवाल हिट विकेट हेकर तिहाड़ पहुंच गए हैं। ज्वाइंट सिकरेट्री टू सीएम रजत कुमार हॉवर्ड जा रहे हैं। उनके पास एनआरडीए और एवियेशन भी है। सरकार को एनआरडीए में भी ज्वाइंट या स्पेशल सिकरेट्री रैंक के आईएएस को पोस्ट करना होगा।

पोल खुली

गृह विभाग और एसआईबी का इंफारमेशन कितना स्ट्रांग है, 11 मार्च को सुकमा नक्सली हमले में इसकी पोल खुल गई। घटना के बाद गृह और पुलिस विभाग के अफसर सीएम को ब्रीफ करने के लिए सीएम हाउस में जुटे। एक तरफ सीएम सचिवालय के अफसर बैठे, दूसरी ओर गृह और पुलिस के अफसरान। राज्य के मुखिया को घटना की जानकारी देने पहुंचे अफसरों के पास न तो इनपुट थे और ना ही आगे का प्लान। सीएम ने पूछा, केजुअल्टी का एगजेक्ट फिगर क्या है? अफसर लगे एक-दूसरे से कानाफूसी करने। एक ने कहा….सर! अभी पूछकर बताता हूं तो दूसरे… मोबाइल खोलकर सोशल मीडिया की खबर पढ़ने लगे। इसी दौरान प्रधानमंत्री का फोन आ गया। सीएम ने उन्हें शहीदों की संख्या 11 बताई। जबकि, दिल्ली में 14 जवानों के शहीद होने की खबर वायरल हो गई थी। गृह विभाग के अफसरों ने अगर ढंग से सरकार को ब्रीफ किया होता और संख्या को लेकर कंफ्यूज्ड नहीं होते तो सीएम भी दमदारी से बोलते, संख्या 11 ही है। ऐसे में, सीएम का दुखी होना लाजिमी है।

मुकेश सीएम सचिवालय में?

राजनांदगांव कलेक्टर मुकेश बंसल की कलेक्टर की पारी राजनांदगांव में खतम हो सकती है। हालांकि, वीवीआईपी जिले में रहने वाले अफसरों की एक अच्छी पोस्टिंग बोनस मे मिलती है। लेकिन, खबर है मुकेश अब कलेक्टरी करने के पक्ष में नहीं हैं। उपर में भी उन्होंने अपनी इच्छा से अवगत करा दिया है। पता चला है, मुकेश सीएम सचिवालय में अपनी नई पारी शुरू करेंगे। उन्हें ज्वाइंट सिकरेट्री बनाया जाएगा। सीएम के यहां अभी एक ज्वाइंट सिकरेट्री हैं रजत कुमार। वे भी हॉवर्ड जा रहे हैं। यद्यपि, रजत के जाने से मुकेश की पोस्टिंग का कोई सरोकार इसलिए नहीं है कि रजत के हॉवर्ड में सलेक्शन से पहिले ही मुकेश का नाम सीएम सचिवालय के लिए चर्चा में था। वैसे भी, सीएम सचिवालय में दो ज्वाइंट सिकरेट्री की जरूरत है। रजत और मुकेश न केवल एक बैच के हैं बल्कि उनके बैच में ट्यूनिंग भी गजब की है। लिहाजा, रजत के अगले साल मई में लौटने पर दोनों एक साथ होंगे।

सिद्धार्थ का रिकार्ड

मुकेश बंसल की अगर कलेक्टरी की पारी राजनांदगांव में खतम हो गई तो 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी का रिकार्ड टूटना मुश्किल हो जाएगा। परदेशी लगातार चार जिलों में कलेक्टरी करने वाले छत्तीसगढ़ के पहिले आरआर आईएएस हैं। परदेशी कवर्धा, राजनांदगांव, रायपुर और बिलासपुर में कलेक्टर रहे। मुकेश का भी लगातार तीन जिला हो गया है। कवर्धा, रायगढ़ और राजनांदगांव। चौथा जिला करते तो वे परदेशी की बराबरी कर लेते। यद्यपि, रायगढ़ कलेक्टर अलरमेल ममगई डी भी रायगढ़ में लगातार तीसरा जिला कर रही हैं। लेकिन, 2004 बैच अब काफी सीनियर हो गया है। मई एंड में यह बैच संभवतः क्लोज हो जाएगा। वरना, अलरमेल के लिए चौथे जिले का स्कोप था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भूपेश बघेल को पीसीसी चीफ से हटाया जा रहा है, इस अफवाह को पंख लगाने में क्या कांग्रेस नेताओं का भी हाथ था?
2. एक जुनूनी कलेक्टर का नाम बताइये, जो अर्ली मॉरनिंग घर से निकल जाते हैं। और, समय बचाने के लिए आफिस के बाथरुम में नहाकर 10.30 बजे चेम्बर में बैठ जाते हैं?

रविवार, 12 मार्च 2017

सीएम हाउस में पंगा

13 मार्च

संजय दीक्षित
विवेक ढांड चीफ सिकरेट्री से कब चेंज होंगे, अभी कुछ पता नहीं। लेकिन, सीएस बनने के लिए सूबे के तीन सीनियर आईएएस में तलवारें खींच गई है। अफसर हैं, अजय सिंह, एमके राउत और एन बैजेंद्र कुमार। पिछले रविवार को सीएम हाउस में तीनों में पंगा हो गया। अजय बोले, सबसे सीनियर मैं…माटी पुत्र भी, कोई दाग भी नहीं। और, सीएस बनने के लिए तुम लोग बेचैन हो। इस पर बैजेंद्र भड़क गए….सर, काहे का माटी पुत्र। जब आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा फंसते हैं तो हल्ला मैं करता हूं। कुजूर के लिए मैं सबसे पंगा लिया। फिर, आजकल सीनियर-विनियर नहीं चलता। नौ साल से सीएम सचिवालय मैं संभाल रहा हूं। अर्जुन सिंहजी के साथ काम किया, दिग्विजय सिंहजी के साथ काम किया हूं….भारत सरकार में तीन बार रहा हूं। अजय सिंह की आंखों में देखते हुए सर, प्लीज….आप सीधे-साधे आदमी है, काहे के लिए सीएस-वीएस के चक्कर में पड़ते हैं। इस पर राउत की भृकुटी चढ़ गई। बोले, ये सीनियर क्या होता है। काम करना चाहिए….काम। मेरा काम बोलता है। सन् 2000 में रायपुर को राजधानी बनाने से लेकर अभी तक हमाली मैं कर रहा हूं। आईएलएफएस में लोग फंसते हैं तो राउत को बुलाओ। गणेश शंकर मिश्रा ने हाथ खड़ा कर दिया तो शौचालय बनाने का काम मुझे सौंप दिया गया। मैंने उसमें भी स्टेट को नम्बर वन ला दिया। हमर छत्तीसगढ प्रोग्राम चलाना है़….. राउत को दे दो। सारे सिकरेट्री चार बजे भाग जाते हैं, मैं सात बजे से पहले कभी मंत्रालय से नहीं लौटता। क्या मैं सिर्फ हमाली करने के लिए इस कैडर में आया हूं। तभी अमन सिंह और उनके पीछे रजत कुमार हाउस से बाहर निकले। गेट पर अरुण बिसेन मिल गए। पूछे, ये शोर क्यों हो रहा है। बिसेन, सर…..वो सीएस बनने के लिए…..। अमन मुस्कराए…..ढांड साब का तो अभी एक साल है। अमन की बात तीनों ने सुनी ली……एक सूर में बोले-देखो अमन….एक साल है या एक महीना, तुम इतना मासूम मत बनों….क्लियर तो करों, बनेगा कौन? अमन-देखिए, आपलोग सीनियर आफिसर्स हैं…..भली-भांति जानते हैं, बड़े लेवल की पोस्टिंग सीएम साब ही तय करते हैं। उसी समय सुबोध सिंह हाथों में फाइल लेकर वहां से गुजरे। माजरा भांपकर बोले, सीएस कोई भी बनें, हमें क्या फर्क पड़ता है….हमें तो काम करना है। तब तक बात अंदर सीएम तक पहुंच गई थी। सीएम अपनी परमानेंट गंभीर मुद्रा में बाहर आए। हूं….क्या हो रहा है….? तुम लोग कुछ चिंतित दिख रहे हो। चिंता-विंता की कोई जरूरत नहीं है। मैं बोलता कम हूं, इसका मतलब ये नहीं…. ध्यान सबका रखता हूं। राजेश टोप्पो को बोल दिया हूं, अगले टेन्योर में पांच साल कलेक्टरी करना। और, हां….होली है, जाओ खूब रंग-अबीर खेलो। ! जोगीजी के साथ भी होली खेल सकते हो, कोई दिक्कत नहीं। वे भी कांग्रेस मुक्त भारत के लिए ही काम कर रहे हैं। तीनों आईएएस भांप गए, सीएम साब बात टर्न कर रहे हैं। ही..ही….ही करते हुए बोले, कोई बात नहीं सर….। हम ढांड साब से भी होली खेल आएंगे। ढांड सर, बढ़ियां आदमी हैं। ठीक है, सर! एडवांस में हैप्पी होली।

हाउस की होली

होली सीएम हाउस में भी जमकर खेली जाती है। मन में क्यूरोसिटी हुई….देखें, क्या तैयारी चल रही है। सिक्यूरिटी चेकिंग के बाद अंदर गया। देखा, विक्रम निराकार भाव से खड़े हैं। उनसे पूछ लिया, आपका गेम कैसा चल रहा है। विक्रम बोले, भर पाए गेम से। जितना खेलना था, 2008 तक कर लिया। अब मैं अपने ओरिजिनल खेल पर ध्यान केंद्रित कर दिया हूं। गेम के बारे में दूसरे लोगों से पूछो। इसी बीच ओपी गुप्ता दिखे। पूछा, गुप्ताजी इस बार होली किसके साथ खेलोगे। वे भड़क गए, आप पत्रकारों को हमेशा उल्टा-पुल्टा ही सूझता है। उनका गुस्सा शांत करते हुए मैं बोला, आप हर बात दिल से ले लेते हो….मेरा कोई दूसरा आशय नहीं था। कैम्पस की ओर बढ़ा….सीएम तेज वॉक करते नजर आए। मैं भी उनके साथ हो लिया। कुछ दूर चलने पर धीरे से पूछ लिया, डाक्टर साब सरोज कुछ ज्यादा ही सक्रिय नहीं हो गई है, श्री श्री पर चेन्नई से बयान जारी कर दी। सीएम-होली के समय मौसम ठीक हो गया है। मैं समझ गया, सवाल जमा नहीं। मूड हल्का करने के लिए पूछा, होली किसके साथ खेलेंगे? वीणा के साथ….शादी के बाद से होली मैं वीणा के साथ ही खेलता हूं। लेकिन, भूपेश बघेल का कहना है…..। सीएम का चेहरा तमतमा गया। बोले, क्या भूपेश से पूछकर मैं होली खेलूंगा? वो अपने समान समझ लिया है क्या। मैं सिर्फ स्पीकर महोदय से…..ओह! सॉरी, वीणा से ही पूछता हूं। डाक्टर साब, वो भूपेश…..। ये भूपेश…..भूपेश क्या। मैं डर गया। पास में ही सिकरेट्री पीआर संतोष मिश्रा और राजेश डीपीआर राजेश टोप्पो मुझ पर नजर गड़ाए थे। एक हल्का-सा इशारा मुझ पर भारी पड़ सकता था। मैंने बात चेंज किया, वो 45 लाख स्मार्ट फोन। रमन-हां…हां…..मोदीजी के सपनों को साकार….35 हजार परिवारों को उज्जवला योजना….24 हजार आदिवासियों को चना, 45 बिजली कनेक्शन….। मन में ही बोला, डाक्टर साब होली के मौके पर भी लगे आंकड़े बताने। उन्हें होली का विश करते हुए आगे बढ़ा। शायद अमन दिख जाएं….आखिर, रमन से मिलने का मतलब तभी है जब अमन भी हो जाएं। तभी, वीणा भाभी दिखी। छूटते ही पूछा, भाभी होली…..। अरे! होली। हमलोग खूब खेलते हैं। पूरे मायके वाले यही चले आते हैं…..मायका हमारा बहुत बड़ा है….अमन, विक्रम भी आ जाते हैं…..अमन और अभिषेक में मैं कोई फर्क नहीं समझती। मैंने पूछा, भाभी आपका स्वास्थ्य कैसा है। बहुत अच्छा….। लेकिन, अब यहां के डाक्टर पर मैं भरोसा नहीं करती। किसी पर भी…? हां, हां…आखिर, मुझसे ज्यादा कौन भुगता होगा। इसी दौरान संविदा पोस्टिंग की एज 75 साल करने की फाइल लिए शिवराज सिंह अंदर आते दिखे। मैंने सोचा, अब निकल जाना चाहिए….फिर, भाभी को विश कर रवाना हो गया।

उद्योग छोड़ेंगे अमर

मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह ने अमर अग्रवाल को जब दूसरी बार उद्योग विभाग दिया था तो इसे अमर के बढ़ते कद से जोड़ कर देखा गया था। मगर जीएसटी की बैठकों से अमर इतने उकता गए हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री से उद्योग विभाग छोड़ने की पेशकश कर दी है। जीएसटी के संबंध में हर तीसरे दिन दिल्ली जाना पड़ता है। मोदी सरकार मीटिंग बुलाए तो उसमें ना-नुकुर करने का सवाल भी पैदा नहीं होता। इससे अमर का परिवार भी परेशान है। शशि भाभी बोलती है, जीएसटी के बहाने कोई दूसरा चक्कर तो नहीं चला रहे हो। इस पर अमर को एक दिन गुस्सा आ गया। उन्होंने सीधे रुख किया सीएम हाउस का। बोले, भाई साब उद्योग ले लो, भले ही उसके बदले में कोई छोटा-मोटा विभाग दे दीजिए। बताते हैं, अमर इसलिए भी परेशां है कि दारु बेचने का फैसला किया है सरकार ने। और, गाली खानी पड़ रही अमर को। बहरहाल, सीएम ने अमर को समझाया, विधानसभा खतम हो जाने दो। फिर, तुम्हारे लिए कुछ करते हैं। शशि को भी मैं समझाउंगा….तुम पर एतबार करें।

पियो लेकिन रखो हिसाब….

ठेकेदारों द्वारा शराब बेचने में पीने वालों को फायदा था और पिलाने वालों को भी। दरअसल, बीयर-बारों को शराब दुकानों से 40 से 50 परसेंट तक रिबेट मिलता था। यही वजह है कि पिछले दस साल में बारों की संख्या तीस गुना बढ़ गई। एक अप्रैल से सरकार शराब बेचने लग जाएगी तो जाहिर है, रिबेट का कोई स्कोप नहीं बचेगा। ऐसे में, एक अप्रैल से होटलों, बारों में आप जाएं, तो हिसाब से पिएं। वरना, जेब ढिली हो जाएंगे। वैसे हिसाब तो अब नॉन मलाईदार अफसरों को भी रखना होगा। क्योंकि, नीली बत्ती वाले अफसरों को तो शराब कभी खरीदना नहीं पड़ता। ठेकेदार, सप्लायर उनके यहां विदेशी ब्रांड भिजवा देते हैं। चिंता उनकी बढ़ गई है, जिनके पास कोई मलाईदार विभाग नहीं है। इन्हें सरकारी कुर्सी के चलते दुकानों से 30-35 परसेंट तक छूट मिल जाती थी। उन्हें भी पूरे रेट में अब खरीदने पड़ेगे।

हॉवर्ड रिटर्न

आईएएस रजत कुमार का हावर्ड में सलेक्शन हो गया है। सुनिल कुमार के बाद वे दूसरे आईएएस होंगे, जो पीजी की पढ़ाई करने यूएस जा रहे हैं। उनके लिए खुद सीएम और उनके पीएस अमन सिंह ने रिकमांड किया था। वो भी ऐसे समय में जब रजत ने सीएम सचिवालय में अपना कारोबार ठीक-ठाक जमा लिया था। इसमें अंदर की बात यह है कि रजत हावर्ड से मंज कर आएंगे तो 2018 में इसका लाभ सरकार को ही मिलेगा। अगले साल मई में तब लौटेंगे जब विकास यात्रा शुरू होने वाली रहेगी। और, आपको ये भी याद होगा, 2013 के पहले चरण में सरकार जब पिछड़ने लगी थी तो सीएम के संकटमोचक अफसरों ने ही कमान संभालकर बालदास का हेलिकाप्टर दौड़ा डाला था। इससे बाजी पलट गई थी। अब तो हावर्ड रिटर्न भी रहेंगे।

मुलायम मॉडल

यूपी के मुलायम-अखिलेश एपीसोड की तरह राजधानी रायपुर में भी एक दुश्य देखने को मिला। जोगी कांग्रेस के कार्यक्रम में मंच पर ही पिता-पुत्र भिड़ गए। दरअसल, विधानसभा घेराव से पहले मंडी गेट पर सभा चल रही थी। जोगीजी अपने पारंपरिक अंदाज में भाषण दे रहे थे। इसी बीच छोटे जोगी ने भीड़ को विधानसभा की ओर कुच करने के लिए इशरा कर दिया। इस पर जोगी भड़क गए। बोले, पार्टी मैं बनाया हूं, मेरे हिसाब से चलेगी। कुछ दिन से यह चर्चा आम है कि पार्टी को छोटे जोगी ने हाईजैक कर लिया है। जोगीजी की अब कुछ चलती नहीं। इससे कार्यकर्ताओं में बैड मैसेज जा रहा था। आखिर, जोगी कांग्रेस में जोगीजी को अलग कर दें तो बचेगा क्या। सो, इस प्रसंग को लोग मुलायम मॉडल से जोड़ कर देख रहे हैं। ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि लोगों में यह संदेश देने के लिए मंच पर वह सब हुआ कि पता चले कि पार्टी पर जोगीजी का ही नियंत्रण है। लेकिन, यूपी में मुलायम मॉडल फेल हो गया। जोगीजी को यह ध्यान रखना होगा।

भाई-भाई

विधानसभा में पहली बार ऐसा हुआ कि बीजेपी और कांग्रेस साथ-साथ खड़ी नजर आई। मौका था अमित जोगी के खिलाफ कार्रवाई का। अमित ने शराब नीति के विरोध में विधानसभा में गंगाजल छिड़का था। सत्ता पक्ष ने आसंदी से कार्रवाई की मांग की। इस पर भूपेश बघेल के साथ पूरी कांग्रेस बीजेपी के साथ खड़ी हो गई। चलिये, भाईचारा बनी रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूबे के तीन आईएएस, दो आईपीएस, पांच आईएफएस के नाम बताइये, जो 2018 में पूर्ण शराबबंदी के बाद डेपुटेशन दीगर राज्यों में जाने का विचार कर रहे हैं?
2. मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी पर जिसके नाम का रुमाल रखा है, उसी की ताजपोशी होगी या रुमाल हटाकर कोई दूसरा भी बैठ सकता है?
नोट-होली के रंग में अगर स्तंभकार की कलम बहक गई हो तो बुरा न मानो होली है।

शनिवार, 4 मार्च 2017

हे राम!


5 मार्च
संजय दीक्षित
छत्तीसगढ़ के कलेक्टर्स इन दिनों शराब दुकानें बनाने में व्यस्त हैं। उन्हें कहीं लोगों को चमकाना पड़ रहा है तो कहीं मनुहार की मुद्रा में दिख रहे हैं। पिछले दिनों मंत्रालय से कलेक्टरों की वीडियोकांफ्रेंसिंग कर अपडेट मांगा गया। सवाल हुआ, फलां….तुमने कितनी बनवाई….और तुम……? एक महिला कलेक्टर ने बताया, मेरे यहां सात दुकानों का काम प्रारंभ हो गया है। साब बोले, वेरी गुड। दूसरी महिला कलेक्टर ने कहा, सर! हमारे यहां बड़ा विरोध हो रहा है। इस पर साब ने उन्हें ऐसे देखा कि पूछिए मत! इधर, कलेक्टरों की पत्नियां पूछ रही है, अजी! तुम तो कहते थे कि हमलोग देश चलाते हैं….तुम तो शराब दुकान बनवा रहे हो….मैं तो वैसे ही परेशां थी…..अब अपनी ही दुकान हो जाने पर तुम्हारा कहीं डोज न बढ़ जाएं….हे राम!
ये होना था-फटाफट कारपोरेशन बनाकर ठेका दे देना था। प्रायवेट पार्टी दुकानें बनाती तो कलेक्टरों की इस तरह छीछालेदर नहीं होती। लॉ एन आर्डर तो तहसीलदार भी देख लेता।

सुंदर का राज

बस्तर से आईजी एसआरपी कल्लूरी की बिदाई के बाद प्रभारी बनाकर भेजे गए सुंदरराज पी को एसपी सहयोग नहीं कर रहे थे। सरकार की नोटिस में भी ये बात लगातार आ रही थी कि उन्हें ओवरलुक किया जा रहा है। पिछले हफ्ते चीफ सिकरेट्री, डीजीपी, पीएस होम जगदलपुर गए थे। तीनों ने वहां लंबी बैठक लेकर इशारों में कह दिया था कि सुंदर को सपोर्ट करें। इसके बाद भी बस्तर के एसपी नहीं सुधरे तो सरकार ने चक्र चला दिया। चलिये, दो को बस्तर से बाहर और दो को इधर-से-उधर करने के बाद बस्तर में अब सुंदर का राज स्थापित हो गया है।

सजा या ताजपोशी?

बस्तर में कल्लूरी के हनुमान कहे जाने वाले आरएन दाश को सरकार ने हटा दिया है। पता चला है, आरएन दाश के उस बयान को सरकार ने गंभीरता से लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि कल्लूरी के जाने के बाद मिशन अधूरा रह गया। लेकिन, बलौदा बाजार भेज कर उन्हें सजा दी गई है या इनाम? यह सवाल चर्चा में है। जाहिर है, बलौदा बाजार बस्तर से कहीं अधिक मलाईदार जिला है। आधा दर्जन से अधिक सिमेंट प्लांट हैं। भाटापार जैसे कारोबारी जगह भी बलौदा बाजार में है। कसडोल जैसा वीआईपी विधानसभा क्षेत्र भी बलौदा बाजार में ही है। बताते हैं, बड़ी चतुराई के साथ बलौदा बाजार के लिए दाश का नाम बढ़ाया गया और सत्ता में बैठे लोग इस गेम को समझ नहीं पाए। दाश की तो लाटरी निकल आई।

अंधा बांटे रेवड़ी….

आईपीएस की कल की पोस्टिंग को देखकर सवाल उठता है पुलिस में पोस्टिंग का कोई फार्मूला है भी या अंधा बांटे रेवड़ी, चिन्ह-चिन्ह को दें…..वाला चल रहा है। अभिषेक मीणा कोंडागांव से नारायणपुर गए थे और वहां से उन्हें कल सुकमा भेज दिया गया। याने बस्तर में लगातार तीन जिला। संतोष सिंह की पूरी जवानी बस्तर में ही निकल जाएगी। वहीं, एडिशनल एसपी रहे। फिर, एसपी कोंडागांव। अब उन्हें नारायणपुर भेज दिया गया। पराकाष्ठा तो शेख आरिफ के साथ हो गई…..दाश को एडजस्ट करने के लिए चार महीने में ही बलौदा बाजार से छुट्टी हो गई। कुल मिलाकर यह स्थापित हो गया है कि जिसका उपर में कोई जैक नहीं है, वह बस्तर या सरगुजा, जशपुर में घूमता रह जाएगा। आखिर, मैदानी इलाके में कई ऐसे एसपी हैं, जिन्होंने कभी बस्तर नहीं देखा।

उल्टा-पुल्टा

यह पहला मौका होगा…जंगल विभाग के अधिकारी को सरकार ने राज्य के लोगों के स्वास्थ्य का जिम्मा सौंपा है। आईएफएस अनिल साहू सिकरेट्री हेल्थ बनाए गए हैं। हेल्थ में जब जंगल विभाग के अफसर नहीं थे तब कभी मलेरिया में, तो कभी नसबंदी जैसे मामूली आपरेशन में लोग जान गंवा रहे थे। लोगों को अब डर सता रहा, अब क्या होगा? इससे पहिले एक एमबीबीएस डाक्टर को सरकार ने रोड बनाने का काम दिया था। तीन साल में एक ढेला काम नहीं हुआ। तब जाकर उन्हें हटाया गया। सरकार अब इस तरह उल्टा-पुल्टा करेगी तो ऐसा ही होगा।

डीएम की ताजपोशी?

सत्ता के गलियारों से संकेत कुछ और निकलते हैं। और आर्डर कुछ और। पीएससी चेयरमैन की पोस्टिंग में सबने देखा ही। बात प्रदीप पंत की चल रही थी। और, नियुक्ति केएम पिस्दा की हो गई। जबकि, पिस्दा का कहीं कोई चर्चा नहीं थी। फिलहाल, विषय डीएम अवस्थी हैं। डीजीपी के लिए इन दिनों उनके नाम की चर्चा बड़ी तेज है। पीएचक्यू में हर दूसरा अफसर डीएम के बारे में पत्तासाजी कर रहा है। बहरहाल, लाख टके का सवाल यह है कि क्या पुलिस के मुखिया चेंज होंगे? बस्तर के कड़वे एपीसोड को छोड़ दें तो पुलिस से सरकार को कोई दिक्कत नहीं है। हां, दिल्ली से बीके सिंह छत्तीसगढ़ लौटकर समीकरण बिगाड़ दें तो कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि, दिल्ली में उनकी सीएम से मुलाकातों की खबरें आती रहती है।

माटी पुत्र का दम

पेंड्रावन डेम में भूपेश बघेल से पंगा लेकर इरीगेशन सिकरेट्री फंस गए। भूपेश ने उनके पिता का नाम लेकर उतार दिया। उपर से विशेषाधिकार हनन की नोटिस भी इश्यू हो गई। जबकि, जीएस का दर्द कौन समझे। उन्होंने अल्ट्रा टेक सीमेंट को एनओसी देने के विरोध में डेढ़ पन्ने की नोटशीट लिखी थी। मगर अल्ट्राटेक के सामने सिस्टम ने घूटना टेक दिया तो जीएस क्या करें। अलबत्ता, इस बात के लिए उन्हें दाद देनी होगी कि जिस भूपेश बघेल के खिलाफ बोलने में सरकार के मंत्रियों को सोचना पड़ता है। बड़े-बड़े आईएएस भूपेश का नाम आते ही हाथ जोड़ लेते हैं। उनसे जीएस भिड़ गए। माटी पुत्र में दम तो है। दम तो हालांकि, एसआरपी कल्लूरी में भी था। भूपेश के खिलाफ खम ठोक दिया था। जाहिर है, कल्लूरी की स्थिति इससे और मजबूत हुई थी। आखिर, भूपेश के आरोपों का मतलब होता है, सरकार का प्रिय होना। लेकिन, कल्लूरी खुद ही अपने को थ्री इडियेट में शामिल कर लिए तो सरकार क्या करें।

सरोज का चौका

सरकार के निमंत्रण पर छत्तीसगढ़ आए श्री श्री सुदर्शन पर जब पीसीसी चीफ भूपेश बघेल ने हमला बोला तो बीजेपी संगठन का कोई पदाधिकारी मुंह खोला और ना ही सरकार के कोई मंत्री। ऐसे में, पार्टी की राष्ट्रीय महामंत्री सरोज पाण्डेय ने शेरों-शायरी के जरिये भूपेश पर प्रहार कर पूरा क्रेडिट लूट ले गई। बताते हैंं, जब ये प्रसंग हुआ, सरोज चेन्नई में थी। वहीं से उन्होंने भूपेश पर तीर छोड़ा। लेकिन, मान गए भूपेश को भी। आमतौर पर वे आस्तिन चढ़ाते हुए आक्रमक अंदाज में जवाब देते हैं लेकिन बात सरोज पाण्डेय की थी और शेरों-शायरी के जरिये तो…..नेकियां खरीदी है हमने….शायरी के अंदाज में जवाब देकर भूपेश ने माहौल को शायराना बना दिया। बहरहाल, अशोक जुनेजा को ये पता करने के लिए लगाया गया है कि सरोज के खिलाफ भूपेश यकबयक शायर कैसे हो गए….जवाब देते समय उन्होंने महिला जानकर आस्तिन नहीं चढ़ाई या कोई और बात है।

पोस्टिंग गेम

दो सीनियर आईएफएस को पीसीसीएफ बनाने के लिए 21 फरवरी को डीपीसी हुई। मुदित कुमार और सुब्रमण्यिम। अभी तक उनका आर्डर नहीं निकला है। पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पद के लिए आर्डर क्यों अटका है, इसकी वजह हम आपको बताते हैं। एक सीनियर आईएफएस इतने ताकतवर हो गए हैं कि जिस पोस्ट पर हैं, वहां से वे हटना नहीं चाहते। कोशिश हो रही है कि उसी पोस्ट को पीसीसीएफ लेवल में अपग्रेड कर दिया जाए। इस पावर गेम के चलते पीसीसीएफ की पोस्टिंग रुकवा दी गई है। लिहाजा, वन विकास निगम और मेडिसिनल प्लांट बोर्ड की कुर्सी खाली पड़ी है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि इस साल रिटायरमेंट के बाद आईएएस जीएस मिश्रा को लाल बत्ती मिलना अब तय है?
2. तिहाड़ी आईएएस की सूची में छत्तीसगढ़ का नाम शुमार होने पर आपका क्या मानना है?