शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

सीएम-सीएम का खेल!

21 अक्टूबर
बसपा के साथ गठबंधन करने से चूकी कांग्रेस पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी तालमेल करने में नाकाम हो गई। गोंगपा ने समाजवादी पार्टी से समझौता कर लिया। इससे कम-से-कम चार सीटों पर कांग्रेस के समीकरण गड़बड़ाएंगे। उधर, सीपीआई ने भी बस्तर खास कर कोंटा में प्रत्याशी का ऐलान कर वहां के कांग्रेस के विनिंग कंडिडेट कवासी लखमा की मुश्किलें बढ़ा दी है। कांग्रेस के एक और विनिंग कंडिडेट रामदयाल उईके को पार्टी पहले ही गंवा चुकी है। सूबे के सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं, कांग्रेस डे-टू-डे राजनीतिक चूक कर रही है। बसपा को लेकर पार्टी कोई भी तर्क या आरोप लगा लें, ये तो सभी को मालूम है कि पार्टी नेता उसे पांच से अधिक सीटें देने सहमत नहीं थे। आखिर, कांग्रेस 90 की 90 सीट तो जीतेगी नहीं। बसपा को अगर 10 सीट दे दी होती तो कांग्रेस की आज स्थिति कुछ और होती। आज से एक महीने पहिले याने 19 सितंबर तक बीजेपी और कांग्रेस में नेक-टू-नेक फाइट की स्थिति थी। दोनों पार्टियों के सर्वे में 19-20 का फर्क था। लेकिन, 20 सितंबर को जोगी कांग्रेस से बसपा का गठबंधन होने के बाद से कांग्रेस के सामने चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। इसकी मुख्य वजह सीएम की कुर्सी मानी जा रही। सीएम-सीएम के खेल में कांग्रेस के बड़े लीडर इतने लीन हो गए हैं कि बसपा, गोंगपा कब उनके हाथ से निकल गई, पता ही नहीं चला। चुनाव की बेला में पीसीसी चीफ भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव पिछले एक महीने से साथ नजर नहीं आए हैं। जनघोषणा पत्र को लेकर सिंहदेव राजधानी के एक होटल में प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे तो बघेल भाजपा कार्यालय में अटलजी की अस्थि कलश को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। इसी हफ्ते कांग्रेस के सिंहदेव समेत कई नेता जब राजनांदगांव में थे तो भूपेश रायपुर में पत्रकार से नेता बने रुचिर गर्ग को प्रेस से इंट्रोड्यूज करा रहे थे। चरणदास महंत ताम्रध्वज साहू को रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से लड़ाने के लिए अलग प्रेशर बनाने में जुटे हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इसके अच्छे संदेश नहीं जा रहे। कांग्रेस नेताओं को इसे समझना चाहिए….छोटी-छोटी चूक उन्हें कहीं भारी न पड़ जाए।

इंटेलिजेंस फेल्योरनेस

विधानसभा चुनाव के दौरान खुफिया पुलिस की भूमिका अहम हो जाती है। लेकिन, पीसीसी चीफ भूपेश बघेल और महिला नेत्री करुणा शुक्ला के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता जिस तरह बीजेपी मुख्यालय के गेट तक पहुंच गए, उससे राज्य की इस खुफिया एजेंसी की पोल खुल गई। खुफिया पुलिस को पता ही नहीं चला कि कांग्रेस इस तरह प्रदर्शन की कोई योजना बना रही है। जबकि, एनएसजी सुरक्षा प्राप्त मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य मुख्यालय में मौजूद थें। चीफ मिनिस्टर आफिस ने इसे बेहद गंभीरता से लिया है। चुनाव के दौरान सीएम को राज्य भर में दौरे करने होते हैं। इंटेलिजेंस के इस पारफारमेंस को देखते सीएमओ की चिंता लाजिमी है। ये तो कांग्र्रेस नेता थे, कहीं नक्सली या आतंकवादी पहुंच जाएं तो….? इंटेलिजेंस का ये हाल तब है, जब मुख्यमंत्री ने खुफिया तंत्र को मजबूत करने के लिए सिक्रेट मनी को 45 लाख से बढ़ाकर नौ करोड़ रुपए कर दिया है। वास्तव में स्थिति चिंताजनक है।

ब्यूरोक्रेसी का खाता

कांग्रेस ने आखिरकार पूर्व आईएएस एसएस सोरी को कांकेर से मैदान में उतार दिया। सोरी ने 2013 के विधानसभा चुनाव से पहिले टिकिट की आस में आईएएस से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन, तब उन्हें मौका नहीं मिल पाया। लेकिन, इस बार कांग्र्रेस ने सोरी के साथ दरियादिली दिखाकर राजनीति में आए रिटायर नौकरशाहों की उम्मीदें जवां कर दी है। जाहिर है, अबकी बड़ी संख्या में रिटायर ब्यूरोक्रेट्स ने भाजपा और कांग्रेस ज्वाईन किया है। लेकिन, पहला खाता सोरी का खुला है। हालांकि, बीजेपी ने भी देर रात ओपी चौधरी की टिकिट दे दिया। लेकिन पहला खाता खुलने का क्रेडिट तो सोरी को मिलेगा ही।

एक परिवार, तीन पार्टी

एक घर में तीन पार्टी….तीनों की अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ने की तैयारी…..ऐसा आपने पहले नहीं सुना होगा। ग्वालियर में विजय राजे सिंधिया जरूर बीजेपी से चुनाव लड़ती थीं और उनके बेटे माधव राव सिंधिया कांग्रेस से। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी कुछ साल तक बीजेपी में रहे। साउथ में भी कुछ वाकये ऐसे मिलते हैं। लेकिन, देश के किसी राजनीतिक परिवार में तीन अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ने का दृष्टांत नहीं मिलता। लेकिन, छत्तीसगढ़ में अबकी ऐसा होने जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बहू ़ऋचा जोगी बसपा से प्रत्याशी घोषित हो गई हैं। अमित जोगी अपनी पार्टी से किस्मत आजमाएंगे तो उनकी मां रेणु जोगी कोटा से कांग्रेस टिकिट की प्रबल दावेदार हैं। हालांकि, ये सर्वविदित है, इसके पीछे कोई पारिवारिक विवाद नहीं है। विशुद्ध तौर पर सियासी नफा-नुकसान वाला यह मामला है।

बसपा में विलय?

अजीत जोगी की बहू ऋचा जोगी और जोगी कांग्रेस की गीतांजलि पटेल को बसपा से चुनाव लड़ाने की सियासी कलाबाजी के बीच सूबे में ये अटकलें तेज हो गई है कि विधानसभा चुनाव के बाद जोगी कांग्रेस का बसपा में विलय हो जाएगा। इसके पीछे तर्क यह दिए जा रहे कि जोगी कांग्रेस को अभी सियासी वजूद बनाने में वक्त लगेगा। इस पार्टी का फिलवक्त जो भी वजन है, वह सिर्फ और सिर्फ अजीत जोगी के कारण है। आपने देखा ही, जोगीजी की तबियत बिगड़ने पर किस तरह उनके लोग लगे थे छोड़-छोड़कर भागने। जबकि, बसपा सालों पहले से अपनी सियासी जमीन बना चुकी है। उसके सिम्बॉल पर वोट मिलते हैं। बिना किसी मशक्कत के उसके हमेशा दो-एक विधायक जीतते आए हैं। अब, जोगीजी का साथ मिल जाएगा तो जाहिर है, उसकी स्थिति और सुदृढ़ होगी। ऐसे में, इन अटकलों को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता। जोगीजी और मायावती की राहें भी जुदा हैं। लिहाजा, टकराव की आशंका भी नहीं होगी। मायावती को यूपी की राजनीति करनी है या फिर केंद्र की। छत्तीसगढ़ से उन्हें क्या मतलब?

शराब लॉबी एक

शराब ठेके का सरकारीकरण करके शराब ठेकेदारों को बेरोजगार कर देने वाले आबकारी मंत्री अमर अग्र्रवाल की मुश्किलें इस बार बढ़ सकती है। पता चला है, बिलासपुर से उन्हें पराजित करने के लिए शराब ठेकेदारों ने हाथ मिला लिया है। अमर बिलासपुर से लगातार चार बार विधायक हैं। पांचवी बार वे मैदान में होंगे। शराब ठेकेदारों ने उन्हें निबटाने के लिए पिटारा खोल दिया है।

राजनांदगांव पेंडिंग

कांग्रेस ने पहले चरण की 18 में से बस्तर की 12 सीटों के प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया। लेकिन, राजनांदगांव की छह सीटों को पेंडिंग कर दिया। राजनांदगांव की छह में से चार सीटें अभी कांग्रेस के पास है। इन चार में से दो सीटों पर वह चेहरा बदलने वाली है। जिन दो विधायकों की टिकिट कटेगी उस पर जाहिर है, विरोधी पार्टियां डोरे डालेंगी। इसी वजह से कांग्रेस ने राजनांदगांव की सूची को पेंडिंग रखने में ही भलाई समझी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बस्तर के विधायक दीपक बैज को फिर टिकिट देकर कांग्रेस अपने को धन्य क्यों समझ रही है?
2. चुनाव से पहिले किस जिले के कलेक्टर को बदलने पर आयोग विचार कर रहा है?

सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

ब्यूरोक्रेट्स के सीएम

14 अक्टूबर
नौकरशाही के लिए वैसे तो डा0 रमन सिंह से बेहतर कोई सीएम नहीं हो सकता। डाक्टर साब से 15 साल में अफसरों को कोई दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने किसी का कोई नुकसान नहीं किया। वरना, अजीत जोगी का कार्यकाल अफसरों को अभी भी याद है। वे मीटिंग से अफसरों को उठा देते थे। बहरहाल, चुनाव के बाद इन केस स्थिति बदली तो स्वाभाविक सा प्रश्न है, नौकरशाह सीएम के रूप में किसे देखना पसंद करेंगे? रमन सिंह के विकल्प के रूप में अफसर टीएस सिंहदेव को देख रहे हैं। टीएस रमन सिंह से विनम्रता और सौम्यता में इक्कीस नहीं है तो उन्नीस भी नहीं बोल सकते। ब्यूरोक्रेट्स को सबसे अधिक भय भूपेश बघेल से था। भूपेश के नाम से ही अफसरों में बेचैनी थी। लेकिन, सीडी कांड के बाद अफसर बेहद राहत महसूस कर रहे हैं।

आचार संहिता के मजे

आचार संहिता प्रभावशील होने के बाद सबसे अधिक कोई पावरफुल हुआ है तो वह हैं सीईओ सुब्रत साहू। सूबे का सारा सिस्टम सूब्रत साहू के ईर्द-गिर्द घूम रहा है। मामूली सा आदेश या टेंडर निकालना है तो सुब्रत के दरबार में दौड़ लगानी पड़ेगी। और, आचार संहिता से मजे में कोई है, तो वह है अफसरशाही। निर्वाचन से जुड़े अफसरों के पावर बेहिसाब बढ़ जाते हैं। मंत्री, मिनिस्टर, सरकार सब गौण। जो इलेक्शन से नहीं जुड़े हैं, वे भी फुली आराम के मोड में हैं। कुछ भी काम लेकर जाइये, जवाब मिलेगा मालूम नहीं….आचार संहिता लगी है। मंत्रालय के अधिकांश अफसरों की आजकल अघोषित छुट्टियां चल रही हैं। नहीं भी गए तो कौन पूछने वाला है।

वार्म अप-1

आचार संहिता लगने के बाद चुनाव आयोग दो-एक कलेक्टर, एसपी को जरूर नापता है। आयोग इन अफसरांं की छुट्टी इसलिए भी करता है कि चुनाव को लेकर बाकी अफसर गंभीर हो जाएं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद हुए तीनों चुनावों में कलेक्टर, एसपी को आयोग ने हटाया है। इस बार आचार संहिता लगने के बाद सात दिन गुजर गए हैं। लेकिन, किसी भी कलेक्टर, एसपी का नम्बर नहीं लगा है। लिहाजा, सताईसां जिले के कलेक्टर, एसपी यह सोचकर सहमे हुए हैं…अबकी आखिर किसका नम्बर लगता है। चुनाव आयोग ने इस बार चार एक्सट्रा प्लेयर भी रखा है। वे भी वार्मअप हो रहे हैं। कलेक्टर, एसपी के हिट विकेट होने पर ही एक्सट्रा प्लेयर को मौका मिलेगा। अब देखते हैं, बेचारों को कब तक अवसर मिलता है।

वार्म अप-2

वार्म अप तो बीजेपी-कांग्रेस ज्वाईन करने वाले अफसर भी हो रहे हैं। जाहिर है, इस बार थोक में रिटायर अफसरों ने दोनों पार्टियों को ज्वाईन किया है। लेकिन, चुनाव में कितनों के नम्बर लगेंगे, उनके राजनीतिक आका भी ठीक से बता पाने की स्थिति में नहीं हैं। यह सोचकर रिटायर अफसरों का मन तड़प रहा है। दोनों ही पार्टियों में अब तक जितने भी अफसर ज्वाईन किए हैं, उनमें टिकिट का फायनल इशारा सिर्फ ओपी चौधरी को हुआ है। बाकी अभी टकटकी लगाए बैठे हैं।

बस्तर से भी एक

रामदयाल उईके के बीजेपी प्रवेश के बाद बस्तर से भी एक कांग्रेस विधायक के भाजपा में शामिल होने की काफी चर्चा है। हालांकि, बस्तर के आदिवासी विधायक के कांग्रेस छोड़ने की बातें उईके से पहले शुरू हुई थी। लेकिन, उईके के पास कार्यकारी अध्यक्ष जैसा अहम पद था। इसलिए, पहले आपरेशन उईको को अंजाम दिया गया। सूत्रों की मानें तो अब बस्तर विधायक का नम्बर लगेगा।

तीन सीटों की चुनौती

कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयादल उईके के बीजेपी में शामिल होने से सत्ताधारी पार्टी की एक सीट सुनिश्चित हो गई। पाली तानाखार सीट से उन्हें कोई हरा नहीं सकता। लेकिन, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कारण बीजेपी की अब तीन सीटों पर चुनौती बढ़ गई है। कांग्रेस अब गोंगपा से हाथ मिलाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस-गोंगपा का तालमेल होने पर कोटा, कटघोरा और मरवाही में बीजेपी की चुनौती और बढ़ जाएगी। इन तीनों सीटों पर गोंगपा का खासा प्रभाव है। 15 से 20 हजार वोट गोंगपा को मिलते हैं। हालांकि, तीन में दो सीटें अभी कांग्रेस के पास है। कोटा से रेणु जोगी, कटघोरा से बीजेपी से लखनलाल देवांगन और मरवाही से अमित जोगी भी कांग्रेस की टिकिट पर चुनाव जीते थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रामदयाल उईके की घर वापसी में सरकार के किस मंत्री ने मध्यस्थता अहम रही?
2 अबकी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कितने मंत्रियों की टिकिट कटने वाली है?

जरा बच के…!

30 सितंबर
नौकर-चाकर के नाम पर इंवेस्ट करने वाले नेताओं और अफसरों के लिए ये घटना चेतावनी हो सकती है। कुछ साल पहिले पीडब्लूडी के एक ईई ने अपने ड्राईवर के नाम 80 लाख रुपए में दस एकड़ जमीन खरीदकर कागज अपने पास रख ली थी। ड्राईवर को लगा इस काले-पीले में उसका भी कुछ हिस्सा बनता है। इसी महीने उसने ईई से 50 हजार रुपए उधारी मांगा। ईई कुछ दिन टरकाते रहे। एक दिन ड्राईवर ने बंगले में बवाल कर दिया….पैसा दो नहीं तो ंकाला चिठ्ठा खोल दूंगा। दूसरे रोज नशे में धुत होकर फिर पहुंच गया और एमाउंट पांच लाख बढ़ाते हुए धमकी दे दी कि होशियारी की तो अपनी पत्नी के साथ अनाचार की रिपोर्ट लिखवा दूंगा। इस पर ईई ने ड्राईवर के हाथ-पैर जोड़कर दो लाख रुपए में समझौता किया। दरअसल, राजधानी बनने के बाद रायपुर में बड़ी संख्या में नेताओं और अफसरों ने नौकर-चाकरों, साले-सालियों के नाम पर जमीन और मकानों में पैसा लगाया है। एक नौकरशाह ने 2005 में नया रायपुर से लगे एरिया में अपने साले के नाम पर 60 एकड़ जमीन खरीदी थी। राजधानी बनने के बाद जमीन का रेट करोड़ों हुआ तो साले की नीयत डोल गई। अत्यधिक लोभ के चक्कर में अफसर की जमीन चली गई और ससुराल भी। ससुराल से उनका संबंध खतम हो गया। इन घटनाओं से नेताओं और अफसरों को सबक लेना चाहिए।

जीएडी का ये कैसा तराजू?

आईएएस अमिताभ जैन को पीएस से एसीएस बनाने कल मंत्रालय में डीपीसी हुई और जीएडी ने तुरंत उनका आदेश निकाल दिया। डीपीसी के बाद ऐसी तत्परता होनी भी चाहिए। आखिर, टकटकी क्यों लगवाना। लेकिन, मंत्रालय में खासकर आईएफएस के साथ ऐसा हो रहा है। पीसीसीएफ केसी यादव के डीपीसी के साढ़े तीन महीने बाद पोस्टिंग का आदेश निकला। इसी तरह डीएफओ से सीएफ और सीएफ से सीसीएफ बनाने एक दर्जन से अधिक आईएफएस की 20 जुलाई को डीपीसी हुई थी। दो महीने से अधिक हो गए, आदेश के लिए फाइल घूम रही है। आखिर, जीएडी के न्याय का ये कैसा तराजू है। आईएएस, आईपीएस का आर्डर डीपीसी के सेम डे और, आईएफएस को महीनों चक्कर लगाना पड़े। जीएडी पर अफसरों का विश्वास कायम रहे, सरकार को कुछ करना चाहिए।

कलेक्टरों पर खतरा

मतदाता पुनरीक्षण का काम खतम होने के बाद अफसरों के ट्रांसफर पर से चुनाव आयोग का प्रतिबंध समाप्त हो गया है। आयोग ने 27 सितंबर तक पांच विभागों के अफसरों और कर्मचारियों के ट्रांसफर पर रोक लगा रखी थी। इनमें कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर प्रमुख थे। बैन हटते ही अफसरों पर अब ट्रांसफर की तलवार लटक गई है। खास तौर से कलेक्टरों पर। आचार संहिता प्रभावशील होते तक सरकार अब इन अफसरों का तबादला करने के लिए फ्री है। अब कलेक्टरों को बदलने के लिए तीन नामों की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैसे, रायपुर कलेक्टर का मामला पेनल के चक्कर में गड़बड़या था। ओपी चौधरी ने जब इस्तीफा दिया था तक चुनाव आयोग का प्रतिबंध लगा था। लिहाजा, चौधरी की जगह पर सरकार अंकित आनंद को कलेक्टर बनाना चाहती थी। लेकिन, पेनल के चक्कर में सरकार को अंकित के साथ दो नाम और भेजने पड़े। और, आयोग ने बसव राजू के नाम पर टिक लगा दिया था। मगर अब सरकार के हाथ खुल गए हैं। ऐसे में, ट्रांसफर हो या न हो….कलेक्टरों में खौफ तो रहेगा ही।

मुदित जीत

मुदित कुमार आखिरकार हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनने में कामयाब हो गए। आरके सिंह के आज रिटायर होने के बाद वे पदभार ग्रहण करेंगे। पिछले साल जब सिंह की नियुक्ति हो रही थी, उस दौरान मुदित भी इस पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन, एक बड़े नौकरशाह ने ऐसा रोड़ा लगाया कि सरकार को हाथ पीछे खींच लेना पड़ा। लेकिन, वक्त बलवान होता है। इस बार सिंह के रिटायरमेंट के महीने भर पहले ही सरकार ने मुदित का नाम डिसाइड कर दिया था। हालांकि, सीनियरिटी में शिरीष अग्रवाल उपर थे। लेकिन, डीपीसी ने मुदित का नाम ओके कर दिया। बहरहाल, मुदित की ताजपोशी के बाद जाहिर है, माटी पुत्र राकेश चतुर्वेदी को अभी वेट करना पड़ेगा। राकेश को एडिशनल पीसीसीएफ से पीसीसीएफ प्रमोट करने 3 अक्टूबर को डीपीसी होने जा रही है।

रात वाली का कमाल

अपने ही एक विधायक से सरकार इन दिनों बड़ा परेशान है। वे सोशल मीडिया में ऐसा पोस्ट डाल दे रहे हैं कि पार्टी को जवाब देते नहीं सूझ रहा। हाल ही में उन्होंने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को बेहतर सीएम होने की भविष्यवाणी कर डाली। मीडियावालों ने इस पर सीएम डा0 रमन सिंह से सवाल कर डाला। सीएम भी क्या बोलते, जिसकी जैसी सोच…बोलकर आगे बढ़ गए। विधायकजी चूकि शौकीन तबीयत के हैं….फिर, विवादित पोस्ट वे रात 11 से 1 बजे के बीच करते हैं। सो, पार्टी नेताओं को यह समझने में देर नहीं लगी कि ये गड़बड़ कहां से हो रहा है।

जोगी फायदे में

जोगी कांग्रेस और बीएसपी के गठबंधन से दोनों पार्टियों को कितना फायदा होता है, ये तो वक्त बताएगा। लेकिन, ये जरूर है कि सीटों के गुणाभाग में जोगीजी बसपा पर भारी पड़े। छजपा ने बीएसपी को 35 सीटें दी है। लेकिन, उसे कई आधा दर्जन से अधिक ऐसी सीटें टिका दी, जहां पिछले चुनाव में उसे दो से ढाई हजार वोट मिले। यही नहीं, आधा दर्जन से अधिक आदिवासी सीटें भी बसपा के खाते में चली गई। उन सीटों पर बीएसपी का कोई वजूद नहीं है। अलबत्ता, छजपा कुछ ऐसी सीटें लेने में कामयाब रही, जहां पिछले चुनाव में बीएसपी को 15 हजार से अधिक वोट मिले थे। जाहिर है, सीटों के तालमेल में भी जोगीजी ने जादू दिखा दी।

10 के बाद

छत्तीसगढ़ बनने के बाद वैसे तो तीनों विधानसभा चुनावों के लिए अक्टूबर के फर्स्ट वीक में आचार संहिता लगी है। लेकिन, इस बार तेलांगना का चुनाव आ जाने के कारण बताते हैं, टाईम कुछ आगे बढ़ सकता है। जिस तरह से संकेत मिल रहे हैं, 10 से पहिले तो आचार संहिता नहीं ही लगेगी। 9 अक्टूबर को सरकार ने भी बहुत सारे शिलान्यास और लोकार्पण के कार्यक्रम रख डाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम भी हो सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिटायर आईएएस डीएस मिश्रा और आईएफएस मुदित कुमार की धमाकेदार वापसी के पीछे का समीकरण क्या हैं?
2. प्रधानमंत्री के जांजगीर आने के बाद भी जांजगीर में स्थापित साढ़े नौ हजार करोड़ के मड़वा पावर प्लांट का लोकार्पण क्यों नहीं कराया गया?

भाजपाई ब्यूरोक्रेट्स?

23 सितंबर
चुनाव के दौरान नौकरशाहों पर सरकार के लिए काम करने के आरोप लगते रहे हैं। इस बार भी कुछ अफसरों के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायतें की गई हैं। अफसर अब सत्ताधारी पार्टी के लिए किस तरह काम कर रहे, ये जांच का विषय हो सकता है। लेकिन, फैक्ट है…..इंटरेस्टिंग भी कि छत्तीसगढ़ के 95 फीसदी से अधिक ब्यूरोक्रेट्स न कांग्रेस गवर्नमेंट को देखे हैं और न ही उनके कामकाज को। 2002 बैच के आईएएस भी जोगी सरकार के आखिरी दौर में एज ए प्रोबेशनर छत्तीसगढ़ आए थे। 2003 से लेकर 2016 तक के आईएएस अफसरों ने सिर्फ भाजपा सरकार को देखा है। छत्तीसगढ़ में इस समय पोस्टेड अफसरों में सिर्फ अजय सिंह, सुनील कुजूर, सीके खेतान, आरपी मंडल, अमिताभ जैन, रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, रीचा शर्मा, सुबोध सिंह, गौरव द्विवेदी, निहारिका बारिक, एम गीता और शहला निगार को ही कांग्रेस शासन काल में काम करने का मौका मिला है। बाकी ब्यूरोक्रेट्स अपने आईएएस कैरियर की शुरूआत बीजेपी सरकार से की और 15 साल से इसी को कंटीन्यू कर रहे हैं। ऐसे में, परिवेश का फर्क तो पड़ता ही है। फिर भी, अफसरों को दोष नहीं देना चाहिए। जिसका झंडा होता है, उसके अफसर होते हैं। अफसरों को पाला बदलने में कितना वक्त लगता है। 2003 में लोगों ने आखिर देखा ही।

ये संस्कृति नहीं!

बिलासपुर के एसपी आरिफ शेख कम्यूनिटी पोलिसिंग के जरिये पुलिस की इमेज बिल्डअप करने की कोशिश कर रहे थे। मगर लाठी चार्ज करके पुलिस ने उसे धो दिया। न्यायधानी की पुलिस ऐसी अराजक हो जाएगी, लोग हतप्रभ हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस की कभी ऐसी संस्कृति रही भी नहीं। वो भी बिना किसी उपर के अफसर के आदेश के लाठी चला दें। ये वास्तव में राज्य के लिए गंभीर है। हालांकि, राजनीतिक पार्टियों को ये भी सोचना चाहिए नेताओं के घरों में कचरा और जूता फेंकना कितना जायज है। मंत्री अमर अग्रवाल का तो निजी घर है। अगर सरकारी भी होता तो भी घर का मतलब पूरा परिवार होता है। हो सकता है, उस समय उनके नाते-रिश्तेदार आए हों। सीडी कांड के समय बीजेपी ने भी हालांकि, कुछ ऐसा ही किया। पीसीसी चीफ भूपेश बघेल के घर के घेराव के दौरान उनके कैंपस में जूता फेंका…दीवारों पर अभद्र बातें लिख डाली, गालियां भी दी। छत्तीसगढ़ की ये संस्कृति नहीं है। राजनीति में यहां के लोगों ने कभी ऐसी कटुता नहीं देखी। कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं को लोगों ने सुख-दुख में साथ खड़े होते देखा है। दोनों राजनीतिक पार्टियों को इस पर विचार करना चाहिए कि वे राजनीति़ को किस ओर ले जा रहे हैं।

कांग्रेस की टिकिट

कांग्रेस ने 15 सितंबर तक टिकिट तय करने का ऐलान जरूर किया था लेकिन, अब जैसे हालात दिख रहे हैं, आचार संहिता लगने के बाद ही कांग्र्रेस कुछ कर पाने की स्थिति में होगी। आखिर, सबसे पहिले के फायदे हैं तो खतरे भी हैं। कांग्रेस को सबसे अधिक डर सता रहा है, टिकिट न मिलने से नाराज दावेदार जोगी कांग्रेस की ओर न शिफ्थ कर जाए। दूसरा, जोगी काग्रेस और बसपा में गठबंधन होने के बाद अब नए समीकरण को देखते टिकिट वितरण करना पड़ेगा और तीसरा, चंदा वसूली। पार्टी के एक बड़े नेता ने बताया कि सिंगल नाम वाली सीटों का पार्टी घोषणा कर सकती है। मगर वसूली से घबरा रही है। जितना पहले टिकिट दिया जाएगा, उतना ही जेब भी ढीला करना होगा। चंदा-चकोरी से टिकिट के दावेदार वैसे ही परेशान हैं। टिकिट मिलने पर तो लोग टूट पड़ेंगे।

मोदी का मंच

मंत्री राजेश मूणत के हड़काने और भड़कने का भी जांजगीर के अफसरों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। प्रधानमंत्री का मंच ऐसा बना डाला कि पीएम, सीएम, गडगरी समेत मंच पर बैठे सभी गेस्ट पूरे समय पसीना पोंछते रहे। दरअसल, मंच की प्लानिंग के समय किसी का ध्यान इस पर नहीं गया कि तीन बजे सूर्य की तीखी किरणें सीधे मंच पर आएंगी। अफसरों ने सूर्य की दिशा में मंच बनवा डाला। इससे वहां पहुंचते ही प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री को परेशानी होने लगी। सीएम कई बार चेहरे के उपर हाथ से सूर्य की किरणों से बचने की कोशिश करते नजर आए। तो पीएम को आधा दर्जन से अधिक बार रुमाल से चेहरा पोंछना पड़ा।

वक्त बलवान

रिटायर आईएएस डीएस मिश्रा ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें बिजली विनियामक आयोग का चेयरमैन बनने का मौका मिल जाएगा। विवेक ढांड के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद डीएस को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। लोक आयोग में उन्हें उलझाने की कोशिश की गई। 9 साल सीएम के विभाग में काम करने के बाद भी रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग के लिए रिरियाना पड़ा। कुछ नहीं मिला तो आखिरकार उन्हें सहकारिता चुनाव प्रमुख के पद से संतोष करना पड़ा। लेकिन, उपर वाला देता है तो छप्पड़ फाड़ कर। उन्हें ऐसे आयोग की चेयरमैनशिप मिल गई है, जहां बिल्डरों से भी बड़ी-बड़ी बिजली कंपनियां उनके आगे-पीछे चक्कर लगाएंगी।

सीईओ या चना-मुर्रा

गरियाबंद जिला पंचायत सीईओ की नियुक्ति में सरकार कुछ ज्यादा ही प्रयोग कर रही है। चार साल में अब तक आधा दर्जन सीईओ की नियुक्ति हो चुकी है। 2014 में राजकुमार खूंटे को हटाकर रीतेश अग्रवाल को भेजा गया था। इसके बाद जगदीश सोनकर, फिर विनीत नंदनवार और पिछले हफ्ते नंदनवार को हटाकर फिर आरके खूंटे। याद होगा, इस साल लोक सुराज में सीएम गरियाबंद जिले के पुअर पारफरमेंस पर बेहद नाराज हुए थे। अब, सरकार यूं ही चना-मुर्रा की तरह सीईओ बदलते रहेगी तो उस जिले के विकास का तो भगवान ही मालिक हैं।

नो वैकेंसी

बिजली विनियामक आयोग का चेयरमैन की नियुक्ति करके सरकार ने रिटायर होने वाले नौकरशाहों के लिए अब नो वैकेंसी कर दी है। रेरा, सूचना आयोग, बिजली विनियामक आयोग, राज्य निर्वाचन रिटायर नौकरशाहों का पसंदीदा ठौर रहा है। हालांकि, पीएससी में भी रिटायर ब्यूरोक्रेट्स को चेयरमैन बनाया जाता है। लेकिन, दो साल का कार्यकाल होने के कारण अफसरों की इसमें खास दिलचस्पी होती नहीं। लिहाजा, अगले दो-एक साल में सेवानिवृत्त होने वाले अफसरों के लिए ढंग की जगह नहीं मिलेगी। रेरा, मुख्य सूचना आयुक्त और बिजली विनियामक आयोग, तीनों जगहों पर इसी साल पोस्टिंग हुई है।

पहली बार

छत्तीसगढ़ के दो आईएफएस अफसरों को सरकार ने प्रिंसिपल सिकरेट्री बना दिया। देश में ऐसा कभी नहीं हुआ। आईएफएस को सिकरेट्री से उपर प्रमोट नहीं किया गया। लेकिन, मोबाइल योजना में रिजल्ट देने के एवज में संजय शुक्ला को सरकार ने प्रमोशन दे दिया। तो उनके सीनियर पीसी मिश्रा भी प्रमुख सचिव बन गए। अहम यह है कि संजय रिटायर चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड के बेहद करीबी माने जाते हैं। लेकिन, ढांड के चार साल सीएस रहने के बाद भी संजय प्रमुख सचिव नहीं बन पाए। चलिये, आवास एवं पर्यावरण विभाग में अमन िंसंह के साथ काम करने का लाभ हुआ।

अंत में दो सवाल आपसे

1. टिकिट के लिए सौदा करते किस नेता की सीडी बाजार में आने की चर्चा है?
2. बीजेपी में जिस तरह अधिकारियों का प्रवेश हो रहा है, उनके लिए पार्टी क्या अधिकारिक प्रकोष्ठ बनाएगी??