शनिवार, 19 दिसंबर 2015

अब अप्रैल में


तरकश20 दिसंबर

संजय दीक्षित
कलेक्टरों की लिस्ट अब जनवरी में नहीं, अगले साल अप्रैल में निकलेगी। याने बजट सत्र के बाद। तब रायपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह रिटायर होंगे। तब तक तीन-चार कलेक्टरों का दो साल पूरा हो जाएगा। कोई हिट विकेट हो गया तो बात अलग है। अप्रैल में 2003 बैच भी अब क्लोज्ड हो जाएगा। इस बैच की लास्ट बैट्समैन रीतू सेन सरगुजा कलेक्टर हैं। इस बैच के सिद्धार्थ कोमल परदेशी, रीना बाबा कंगाले हाल ही में पारी खतम कर राजधानी लौटे हैं। हालांकि, रीतू के रायपुर कलेक्टर बनने की चर्चाएं भी खूब थीं। मगर नए बैच को मौका देने के लिए सरकार ने अब इस बैच को क्लोज्ड करना लगभग तय कर लिया है। दरअसल, सरकार की चिंता 2009 बैच है। दीगर राज्यों में 2010 बैच के आईएएस कलेक्टर बन गए हैं। छत्तीसगढ़ में 09 बैच का अभी चालू नहीं हुआ है। हालांकि, अगले फेरबदल में तय मानिये। मगर छह में से तीन-चार के ही नम्बर लग पाएंगे। जाहिर है, कलेक्टर बनने के लिए कंपीटिशन अब टफ हो गया है।
टू माइनस टू….
जनवरी में दो नए आईजी प्रमोट होंगे। हेमकृष्ण राठौर और बीपी पौषार्य। मगर इसके साथ ही दो आईजी माइनस भी होंगे। रविंद्र भेडि़या 31 जनवरी को रिटायर होंगे। उधर, सरगुजा आईजी लांग कुमेर एडीजी बन जाएंगे। याने दो आईजी बढ़ेंगे तो दो घट जाएंगे। टू माइनस टू एजकल्टु जीरो। याने आईजी की कमी बनी रहेगी। ये हो सकता है कि लांग कुमेर के बाद राठौर को सरगुजा का आईजी बना दिया जाए। क्योंकि, वे ट्रांसपोर्ट में रह चुके हैं। जाहिर है, ट्रांसपोर्ट में काम किए आईपीएस का सरकार से बढि़यां तालमेल बन जाता है।
डिमोशन मुबारक
राधाकृष्णन बोले तो देश के सबसे सीनियर चार में से एक आईएएस। 79 बैच के। याने चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड से भी दो साल सीनियर। शायद यही वजह है कि सरकार ने जब उन्हें वेयरहाउस में एमडी पोस्ट किया तो नौकरशाही भी चैंक गई। एमडी जूनियर आईएएस का पोस्ट है। अभी 2009 बैच के समीर विश्नोई एमडी थे। जाहिर है, ये राधाकृष्णन का डिमोशन था। दूसरा कोई पानी वाला आईएएस होता तो वीआरएस ले लेता। आखिर, पी जाय उम्मेन ने लिया ही। मगर जो पता चला है, आप भी हैरत में पड़ जाएंगे। राधाकृष्णन पिछले छह महीने से सीएम से चिरौरी कर रहे थे, आठ महीने बचा है रिटायरमेंट में। आखिरी वक्त में कुछ तो दे दीजिए। आदिवासी अनुसंधान परिषद में कुछ था नहीं। वेयरहाउस में कुछ तो है। वैसे भी आदत कुछ वाली है। सो, राधाकृष्णन को डिमोशन मुबारक।
एक नम्बर…..
रमन सरकार के 12 बरस पूरे होने पर टीवी चैनलों पर चल रहा विज्ञापन छत्तीसगढ़ एक नम्बर…..हिट हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे भी गुनगुना रहे हैं…..छत्तीसगढ़……। वैसे भी, 12 दिसंबर को पिं्रट एन इलेक्ट्रानिक मीडिया रमनमय रहा। आलम यह था कि मीडिया के जो लोग सालों तक राशन-पानी लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रहे, वे भी 12 बरस सेलिब्रेट करने में कोई कमी नहीं की। बल्कि, वे आगे ही रहे। लिहाजा, सीएम ने जनसंपर्क विभाग की पीठ ठोकी तो जाहिर है, इतना तो बनता है।
गच्चा खा गई कांग्रेस
शीतकालीन सत्र की लाख तैयारी के बाद भी कांग्रेस सदन में सत्ताधारी पार्टी से गच्चा खा गई। किसानों की आत्महत्या के इश्यू को कांग्रेस जोर-शोर से उठाने की तैयारी की थी। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। असल में, रविवार को कैबिनेट में ही सरकार ने व्यूह तैयार कर ली थी। कांग्रेस 2018 में सीएम कौन बनेगा, वार-पलटवार में लगी रही और उधर, कैबिनेट में किसानों के लिए की जाने वाली घोषणओं का ड्राफ्ट तैयार हो रहा था। बताते हैं, सभी मंत्रियों को स्पष्ट हिदायत दी गई थी कि किसी भी सूरत में लीक नहीं होना चाहिए। गुरूवार को कांग्रेस विधायक बांह चढ़ाते हुए सदन में पहुंचे थे कि आज तो…..। मगर जैसे ही प्रश्नकाल खतम हुआ, मुख्यमंत्री किसानों के बारे में पहले से तैयार वक्तव्य पढ़ने लगे। कांग्रेस के पास अनुभवी विधायकों का टोटा है। इसलिए, कोई समझ नहीं पाया, क्या हो रहा है। कांग्रेसी क्लास के सुग्घड़ विद्यार्थी की तरह सीएम का वक्तव्य सुनते रहे। जरा सा, चु-चुपड़ भी नहीं। और, सीएम ने किसानों के लिए राहत की झड़ी लगा दी। विपक्ष इसे भांपता, तब तक देर हो चुकी थी। इसके बाद हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं था। जाहिर है, इसकी अगर भनक मिल गई होती तो कांग्रेसी शोर-शराबा करके सीएम को वक्तव्य नहीं पढ़ने दिए होते। कम-से-कम विरोध तो दर्ज हो जाता। सो, चूक गए।
तल्खी और बढ़ी
अमित जोगी के घर टीएस सिंहदेव के चाय पर जाने के बाद लगा था कि जोगी परिवार से सिंहदेव के संबंध सुधरेंगे। मगर सीएम की दावेदारी वाले बाबा के बयान ने दोनों के बीच तल्खी और बढ़ा दी है। कोरबा में शुक्रवार को जब जोगी से सिंहदेव के नेता प्रतिपक्ष से इस्तीफा पर सवाल हुआ तो जोगी इतना ही बोले, भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे। इसका आशय आप समझ सकते हैं। हालांकि, सीएम की दावेदारी वाले बयान देकर सिंहदेव भी घिर ही गए हैं। सदन के भीतर या बाहर, हर जगह इसी पर सवाल। लोग चुटकी भी खूब ले रहे हैं। विस में शुरूआत प्रेमप्रकाश पाण्डेय से हुई। पाण्डेय ने पूछा, जोगीजी को आप क्यों भूल गए? सिंहदेव बोले, जोगीजी बुद्धिमान और ब्रिलियेंट लीडर हैं। इस पर पाण्डेय ने कहा, ऐसा है, तो जोगीजी का नाम सबसे उपर होना चाहिए। बाहर निकले तो इसी पर मीडिया ने भी बाबा को घेरा।
गेहूं के साथ घून भी
विधानसभा में जिस तरह सरकार का बयान आया, छत्तीसगढ़ के 45 आईएएस के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो में कोई-न-कोई कंप्लेन हैं। सूबे में करीब 135 आईएएस पोस्टेड हैं। याने इनमें से लगभग एक तिहाई़। ठीक है, छत्तीसगढ़ में गड़बड़ नस्ल वाले आईएएस आ गए हैं। मगर इतना भी नहीं है। अखबारों में कुछ अफसरों का नाम देखकर आम आदमी भी चैंक गया….अरे! ये तो ऐसा नहीं है। दरअसल, ये सिस्टम की चूक है। एसीबी के पास ढेरों शिकायतें आती हैं। मगर उसकी जांच करके डिस्पोजल नहीं किया जाता। ये राज्य बनने के समय से चल रहा है। कोई शिकायत कर दिया तो उसका परीक्षण नहीं हो पाता। कायदे से परीक्षण करके मामला अगर सही है तो जुर्म दर्ज करना चाहिए या फिर उसे खारिज। मगर ऐसा होता नहीं। गेहंू के साथ घून भी पीस रहे हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक महिला कलेक्टर का नाम बताइये, जो मंत्रालय में सबको अश्वस्त करके र्गइं कि अपनी इमेज ठीक करके वे दिखा देगी, मगर मनीराम से उनका पुराना प्रेम फिर जागृत हो गया है?
2. सीएम की दावेदारी वाला बयान टीएस सिंहदेव ने खुद दिया था या फिर ये सब संगठन की सहमति से हुई?
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शनिवार, 12 दिसंबर 2015

ना-ना करके….

तरकश 13 दिसंबर

संजय दीक्षित
12 दिसंबर को लगातार 12 साल पूरे करने वाले छत्तीसगढ़ के सीएम डा0 रमन सिंह के संदर्भ में बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे राजनीति में आना नहीं चाहते थे। उनकी इच्छा मिलिट्री में जाने की थी। वहां डाक्टर बनने की। उधर, पिता चाहते थे, बेटा वकालत करे। मगर 80 के दशक की एक घटना ने उनके कैरियर की दिशा ही बदल दी। असल में, उनके पिता स्व0 विघ्नहरण सिंह वकालत के साथ जनसंघ से जुड़े थे। जनसंघ का कवर्धा में कोई आफिस नहीं था। इसलिए, अधिकांश बैठकें सिंह के घर पर ही होती थीं। ऐसी ही एक बैठक में पार्टी के लोग परेशान थे। युवा इकाई का अध्यक्ष बनने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था। मीटिंग के दौरान रमन सिंह घर पर थे। पार्टी नेताओं ने सोचा कि फिलहाल टेम्पोरेरी तौर पर रमन को ही अध्यक्ष क्यों ना बना दिया जाए। पद कम-से-कम खाली तो नहीं रहेगा। इस बारे में रमन से पूछा गया। लेकिन, वे एकदम से बिदक गए। सबने उन्हें समझाया। अश्वस्त किया कि उन्हें अस्थायी अध्यक्ष बनाया जा रहा है। जैसे ही कोई तैयार होगा, तुम्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाएगा। इसके बाद वे अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हुए। लेकिन, वक्त ने उन्हें टेम्पोरेरी से रेगुलर पालीटिशियन बना दिया। यही नहीं, बल्कि मंजे हुए। आखिर, कांग्रेस को उन्होंने कम-से-कम 15 साल के लिए वनवास पर भेज ही डाला है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ और कठोर

अगले तीन साल में भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ कार्रवाइयां और तेज होगी। शुक्रवार को एक मुलाकात में सीएम इस पर बेबाकी से बोले। उनसे जब पूछा गया कि नान घोटाले के बाद जीरों टालरेंस और छापे की कार्रवाइयां जारी रहेंगी? उन्होंने दो टूक कहा कि और मजबूती से यह अभियान चलता रहेगा। भ्रष्ट लोगों को कठोरता से कुचला जाएगा।

85 लाख का गेट

वन विभाग का गेट कांड इन दिनों सुर्खियों में है। अफसरों ने बिना किसी नियम-कायदों का पालन किए, न्यू रायपुर के जंगल सफारी में 85 लाख का गेट बनवा डाला। इतना बड़ा काम बिना टेंडर का। बताते हैं, वन मुख्यालय के अफसरों ने नागपुर के अपने खास ठेकेदार से यह काम करवाया। लेकिन, अब उसका भुगतान पचड़े में पड़ गया है। वन मंत्री महेश गागड़ा ने उसका पेमेंट करने से इंकार कर दिया है।

दो करोड़ गड्ढे में

संस्कृति विभाग की समीक्षा बैठक में सीएम ने जब राजधानी में बन रहे बहुआयामी संस्कृति भवन का प्रोग्रेस पूछा तो पीडब्लूडी के अफसर बगले झांकने लगे। बाद में, अफसरों ने बताया कि पांच करोड़ मिला था। दो करोड़ खर्च हुआ है। क्या किया? सर! गड्ढा खोदा गया है। इस पर सीएम ने कटाक्ष किया, दो करोड़ गड्ढे में गया! इस पर पीडब्लूडी के अफसर बुरी कदर झेंप गए।

नौकरशाही भी जिम्मेदार

संजय बाजपेयी की असामयिक मौत के बाद स्वागत विहार का मामला भी अब खतम समझिए। मगर यह कहने में कोई हिचक नहीं कि इस एपीसोड में नौकरशाही भी बराबरी की दोषी रही। एक रिटायर आईएएस, जो उस समय टाउन एन कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर थे, उनसे पूछिए कि स्वागत विहार का लेआउट पास करने के लिए उन पर कितना प्रेशर था। इसके लिए उन्हें बड़े अफसरों की कितनी झाड़ खानी पड़ी। इस कांड का खुलासा होने के बाद उसकी जांच में रोड़े अटकाने में भी नौकरशाही ने कोई कमी नहीं की। और-तो-और जांच में विभिन्न विभागों द्वारा सपोर्ट न करने पर रायपुर पुलिस ने जब सरकार से एसीबी जांच की सिफारिश की तो उसे भी अटका दिया। अलबत्ता, अपना एक दूत भेजकर सरकार को डराया गया कि अगर एसीबी जांच हो गई तो नान घोटाले की तरह सरकार की छिछालेदर होगी। जबकि, वास्तविकता यह है कि स्वागत विहार केस में एक भी पालीटिशियन का नाम नहीं है। सीधी सी बात है, जमीन के चंद टुकड़ों के लिए नौकरशाहों ने अगर आंख पर पर्दा नहीं डाला होता, तो स्वागत विहार कांड नहीं होता।

किस्मत कोस रही महिला सिकरेट्री

सरकार का एक अहम महकमा संभाल रही एक महिला सिकरेट्री इन दिनों सिस्टम से बेहद खफा हैं। सरकार ने उन्हें बड़े विभाग की कमान तो सौंप दी मगर उन्हें ना तो उपर से सपोर्ट मिल रहा और न नीचे से। मंत्री तो मंत्री, मंत्री का भाई भी मंत्रिगिरी झाड़ जाता है। जरा सा तेवर दिखाया नहीं कि व्यापारी आकर चेम्बर में धमक जाते हैं। इसी के चलते दाल की कालाबाजारी के खिलाफ छापेमारी बंद करनी पड़ गई। उल्टे, जब्त दाल भी व्यापारियों को लौटाना पड़ा। लिहाजा, महिला सिकरेट्री अब किस्मत को कोस रही है, सरकार ने मुझे कहां फंसा दिया। ऐसा ही रहा, तो ताज्जुब नहीं कि वे फिर से डेपुटेशन पर निकल जाएं।

शहीद को बधाई

नारायणपुर में गुरूवार को शहीद जवान की़ डोंगरगढ़ में अंत्येष्टि के दौरान ए़क महिला विधायक ने जवान को श्रद्धांजलि की बजाए शहादत के लिए बधाई दे डाली। वो भी दो बार। काश! विधायक और सांसद बनने के लिए कोई मिनिमम क्वालिफिकेशन निर्धारित हो जाता।

नो किच-किच

कांग्रेस की चुनाव समिति की दिल्ली में हुई बैठक बिना किसी किच-किच के निबट गई। इधर-उधर की बातें ना जोगी बोले और ना ही भूपेश एवं सिंहदेव। सिर्फ काम की बातें हुई। सभी सुग्धड़ नेता बनकर चुपचाप बैठे रहे। कांग्रेस को अब इस पर शिद्दत से विचार करना चाहिए कि क्यों न पार्टी की सारी बैठकें दिल्ली में की जाए।

फर्जी जाति नहीं

भिलाई नगर निगम समेत 11 निकायों के चुनावों में कांग्रेस ने तय किया है कि विवादित जाति वालों को टिकिट ना दिया जाए। इससे बाद में पार्टी की फजीहत होती है। रायपुर और बिलासपर में एक-एक पार्षद जाति के चक्कर में फंस चुके हैं। लेकिन, इस चक्कर में कांग्रेस के करीब आधा दर्जन मजबूत प्रत्याशी फंस गए हैं। पार्टी के सर्वे में उन्हें जीतने वाला उम्मीदवार बताया गया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. स्वागत विहार में किस आईएएस ने अपने साथ ही नाते-रिश्तेदारों को भी उपकृत किया?
2. आईपीएस डीएम अवस्थी को क्या डीजी होमगार्ड बनाने की तैयारी चल रही है?

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

मंत्री के द्वार पहुंचे नौकरशाह


 तरकश6 दिसंबर
संजय दीक्षित
पिछले कैबिनेट में पंचायत मिनिस्टर अजय चंद्राकर वर्सेज सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के इश्यू पर बवाल मचने के बाद जाहिर है, कुछ तो होना ही था। दूसरे रोज नौकरशाह ने चंद्राकर से मिलने का टाईम मांगा। शाम का समय मिला। अफसर बिना किसी हो-हल्ला के मंत्री के सिविल लाइन वाले बंगले पहुंचे। दोनों बंद कमरे में 40 मिनट रहे। अफसर ने सफाई दी। मंत्री ने भी अपने मन की बात अपने अंदाज में की। इसके बाद दोनों के गिले-शिकवे कितने दूर हूए, ये नहीें कहा जा सकता। मगर इसे शरणम् गच्छामि भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि,, अफसर खुद से थोड़े ही पहुंचे मंत्री के घर। कैबिनेट के बाद सीएम ने बंद कमरे में 20 मिनट तक चंद्राकर से बात की थी, उसका ये असर हुआ। याद होगा, कैबिनेट के बाद चंद्राकर मायूसी लेकर सीएम से मिलने उनके कमरे में घुसे और मुस्कराते हुए निकले थे। तब से सत्ता के गलियारों में चंद्राकर के मुस्कराहट का राज जानने के लिए लोग उत्सुक थे। सो, ट्रेलर तो देखने को मिल गया है। बाकी पिक्चर विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद सामने आ सकता है।

पब्लिसिटी स्टंट

सरगुजा संभाग के एक कलेक्टर ने जनप्रतिनिधि से मोबाइल पर हुई बातचीत को फेसबुक पर अपलोड कर सरकार को सकते में डाल दिया। जनप्रतिनिधि ने किसी के ट्रांसफर के सिलसिले में बात की थी। कलेक्टर ने नेताजी को न केवल गंदा सा जवाब दिया। बल्कि हाट टाक को रिकार्ड कर लिया। यह बात पुरानी हो गई। पिछले हफ्ते हरियाणा की आईपीएस संगीता कालिया नेशनल मीडिया की सुर्खियो में रही। अपने कलेक्टर को लगा यही राइट टाईम है। उन्हें उसे फेसबुक पर डाल दिया। हालांकि, उन्हें न तो सोशल मीडिया में ज्यादा तरजीह मिली और ना ही नेशनल मीडिया में। मगर अब मंत्री तक उनसे मोबाइल पर बातचीत करने में कतराने लगे हैं। हालांकि, कलेक्टर का ग्राउंड लेवल पर काम अच्छा है। मगर उनकी कई बचकानी हरकतों से सरकार पर बन आती है। बस्तर में जब वे कलेक्टर थे, तब सरकार पर कैसी आफत आई थी, सबको पता है। मगर वे नेशनल लेवल पर चर्चित हो गए थे। वही चाह उनकी बार-बार मचल जाती है।

पेरिस में चिंतन

हिम्मती मंत्री हो तो महेश गागड़ा जैसे। कैबिनेट ने पीसीसीएफ का दो पोस्ट सृजित किया था। उसकी डीपीसी भी हो गई। अब, पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पद के लिए डीपीसी बिना सीएम के हरी झंडी के होती नहीं। मगर वन मंत्री को नागवार गुजरा, उनकी राय नहीं ली गई। सो, आर्डर के लिए जब फाइल पहुंची तो उन्होंने उसे ओपिनियन के लिए विधि विभाग भेज दिया। महीना भर हो गया डीपीसी की फाइल धूम रही है। गागड़ा शुक्रवार को चले गए हैं, पेरिस। क्लाइमेट पर चिंतन के लिए। बीके सिनहा को पीसीसीएफ बनने से रोकने के लिए शायद वहीं पर अब चिंतन हो। आखिर, सिनहा की राह में रोड़े बोने वाले अफसर भी साथ में ही हैं।

तुम जिओ हजारों साल, मगर—-

नक्सल प्रभावित जिले के एक कलेक्टर ने धूमधाम से अपने बच्चे का बर्थडे मनाया। मगर यह खबर इसलिए बन गई कि भिलाई और नागपुर से टेंट और केटरिंग बुलाया गया। इसका भुगतान मनरेगा से हुआ। रांची, भागलपुर से रिश्तेदारों को लाने के लिए किराये की लग्जरी गाडि़यां गई, उसका सवा दो लाख रुपए का पेमेंट एजुकेशन डिपार्टमेंट ने किया। अमूमन सारे मलाईदारा विभागों को कोई-न-कोई जिम्मा दिया गया था। पूरा खर्चा लगभग 15 लाख बैठा। कलेक्टर के पीए ने पहले ही सबको बुलाकर इशारा कर दिया था। साब के बच्चे का मामला है, मातहतों को कम-से-कम 10 हजार का लिफाफा और ठेकेदारों एवं सप्लायरों का 50 हजार देना ही चाहिए। सो, चढ़ावे में खासी रकम आ गईं। साल भर के भीतर साब के घर दूसरा बर्थडे था। लोगों की बेबसी समझी जा सकती है। इसलिए, पार्टी से निकलने के बाद लोगों ने अपना मन हल्का किया…..तुम जिओ हजारों साल, मगर अब इस जिले में नहीं…।

मंत्री का लेवल

एक मंत्री द्वारा उद्योगपति से पांच लाख रुपए मांगने के पीछे की कहानी कुछ और निकली है। दरअसल, रायपुर के एक बीजेपी नेता और बड़े कारपोरेशन के चेयरमैन का सिलतरा की स्टील प्लांट में 51 लाख रुपए लगाए थे। फैक्ट्री मालिक हो गए दिवालिया। लिहाजा, स्टेट बैंक ने उसे नीलाम किया। भिलाई के एक उद्यमी ने उसे खरीदा। पैसा चूकि दो नम्बर का था इसलिए, नेताजी को कुछ मिला नहीं। नेताजी लगे उद्यमी पर प्रेशर बनाने। सीएसआईडीसी से प्लांट की बची जमीन सीज करवा ली। उद्यमी 25 लाख तक देने के लिए तैयार भी था। मगर नेताजी को चाहिए था पूरा। सो, नेताजी ने मंत्री के कंधे पर बंदूक रख दिया। मंत्री ठहरे बुरबक। खुद ही पहंुच गए। लेकिन, गलती उद्योगपति ने कर दी। ज्यादा एमाउंट का आरोप लगा दिया। मंत्रीजी का लेवल अभी उस लायक हुआ नहीं है। सो, पकड़ में आ गया। 50 हजार से एक लाख का आरोप होता तो बात हजम हो जाती।

बाबा ने किए कई शिकार

मुख्यमंत्री के दावेदारों को लेकर बयान देने के बाद कांग्रेस में टीएस भले ही घिर गए हों मगर उन्होंने एक तीर से कई शिकार कर डाले। पहला, अमित जोगी के घर चाय पीने के बाद उन पर जोगी से निकटता के आरोप लगे थे। वह एक झटके में खतम हो गया। दूसरा, जो राजनीतिक तौर पर अहम है, वे यह मैसेज देने में कामयाब रहे हैं कि सिर्फ भूपेश बघेल ही नहीं, वे भी, और भी…. सीएम के दावेदार हैं। याने सूबे में नेता और भी हैं। सिर्फ भूपेश नहीं। वरना, भूपेश का वर्चस्व पार्टी पर जिस तरह से बढ़ा था, उससे एक से 10 तक वही वे नजर आ रहे थे। तीसरा, पिछले चार-पांच दिन से टीएस मीडिया में छाये रहे। इतनी सुर्खिया तो उन्हें राजनीतिक जीवन में कभी नहीं मिली।

मंतूरामों से डरी कांग्रेस

बिरगांव में हार के बाद कांग्रेस मंतूरामों से बुरी कदर सहम गई है। बिरगांव में आखिर 29 पार्षद जीतने के बाद भी मेयर बीजेपी का बन गया। नगरीय निकाय के आगामी चुनावों के लिए पीसीसी की मीटिंग में यह बात गंभीरता से उठी। सभी ने एक स्वर से माना कि कांग्रेस के मंतूरामों को अगर ठीक नहीं किया गया तो बीजेपी एक चुनाव जीतने नहीं देगी। इसी पर मंथन करने के लिए अबकी नौ दिसंबर को पीसीसी की दिल्ली में बैठक होने जा रही है। आला नेताओं की मौजूदगी में हार की समीक्षा होगी।

सुनिल एसईसीएल के न्यू डायरेक्टर

छत्तीसगढ़ के एक्स चीफ सिकरेट्री और स्टेट प्लानिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन सुनिल कुमार को भारत सरकार ने एसईसीएल का इंडिविजिअल डायरेक्टर अपाइंट किया है। भारत सरकार एसईसीएल का प्रोडक्शन बढ़ाकर 2019 में डबल करना चाहती है। याने 250 मीलियन टन। अभी 138 मीलियन टन है। सो, डिफरेंट फील्ड से डायरेक्टर अपाइंट किए जा रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एडीजी आरके विज और बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी के बीच विवाद की असली वजह क्या है?
2. कांग्रेस की बैठक में अमितेष शुक्ल सत्यनारायण शर्मा से क्यों भिड़ गए?

शनिवार, 28 नवंबर 2015

करीना और मंत्रियों की आहें



tarkash photo

 

29 नवंबर
संजय दीक्षित
कैबिनेट की बैठक में सिर्फ गरमागरमी ही नहीं हुई, कुछ मंत्रियों ने करीना कपूर को लेकर ठंडी आहें भी भरीं। इसकी शुरूआत रायपुर के एक यंग मिनिस्टर की इस मिठी शिकायत से हुई कि डाक्टर साब! सरकारी कार्यक्रमों में मंत्रियों को आमंत्रित नहीं किया जाता। उनका इशारा राजधानी में हुए करीना कपूर के कार्यक्रम की ओर था। इसमें समाज कल्याण मंत्री रमशीला साहू ने सिर्फ सीएम को बुलाया था। बताते हैं, रमशीला ने दीगर मंत्रियों को इसलिए नहीं न्यौता कि लगभग सब धमक जाते। बहरहाल, कैबिनेट में करीना प्रसंग छिड़ते ही एक अन्य मंत्री का दर्द छलक आया। वे अपने आप को यह कहने से रोक नहीं पाए कि डाक्टर साब, हमें भी निमंत्रण मिला होता तो हम भी आपकी तरह करीना के साथ एक सेल्फी ले लेते। इस पर सीएम समेत सारे मंत्रियों ने जमकर ठहाके लगाए।

बंद कमरा और 20 मिनट

मंगलवार को सीएम हाउस में हुई कैबिनेट में ऐसा कुछ हुआ, जो राज्य बनने के 15 साल में नहीं हुआ। अब तक नेताओं के शिकार अफसर होते थे। अफसरों को लोगों ने थप्पड़ खाते भी देखा है। बैठकों में अफसरों का गला भरते भी। लेकिन, मंगलवार को उल्टा हुआ। एक नौकरशाह की शिकायत करते-करते पंचायत मिनिस्टर अजय चंद्राकर जैसे रफ-टफ मंत्री का गला रुंध गया। सीनियर मंत्री की पीड़ा सुन सीएम, मंत्री, अफसर, सब सकपका गए। कैबिनेट में ऐसा सीन….किसी ने सोचा भी नहीं था। अफसरों के सामने सीएम ने कुछ नहीं बोला, सिर्फ यह कि देखते हैं। बैठक के बाद सीएम ने इशारा किया और एक-एक कर सारे अफसर कैबिनेट हाल से बाहर निकल गए। बच गए सीएम और मंत्री। मंत्रियों से कुछ देर चर्चा के बाद बैठक खतम हो गई। सीएम भीतर चले गए और मंत्री सीएम हाउस से निकलने लगे। अजय चंद्राकर भी कार में बैठने ही वाले थे कि भीतर से संदेशा आया सीएम साब याद कर रहे हैं। चंद्राकर फौरन पलटे। सीएम अपने कक्ष में उनका इंतजार कर रहे थे। बंद कमरे में दोनों के बीच 20 मिनट तक गुफ्तगू हुई इसके बाद चंद्राकर जब बाहर निकले तो उनका चेहरा खिला हुआ था। सत्ता के गलियारे में यह जानने की बड़ी उत्सुकता है कि बंद कमरे में 20 मिनट में आखिर ऐसा क्या हुआ कि मायूसी लेकर चंद्राकर भीतर गए और मुस्कराते हुए बाहर आए।

पंगे के पीछे

पंचायत मंत्री और सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के बीच पंगा बहुत पुराना नहीं है। याद होगा, इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बस्तर विजिट में सेलिबिट्री कलेक्टर का गागल और कलरफुल ड्रेस एपीसोड सुर्खियो में रहा। इतना ज्यादा कि इस खबर के सामने बस्तर का दौरा तो भूल जाइये, इसके दो दिन बाद हुआ पीएम का चीन दौरा फीका पड़ गया। नेशनल मीडिया में सिर्फ यही था। इसके बाद नए मंत्रालय में हुई कैबिनेट की बैठक में पंचायत मंत्री एक आला नौकरशाह पर परंपरागत स्टाईल में चढ़ बैठे थे…..आपके चलते ये हुआ…..कलेक्टर को नोटिस भेजने की जरूरत क्या थी। और दी भी, तो मीडिया को लीक क्यों की गई….आपने हमारे प्रधानमंत्री के दौरे की ऐसी-तैसी कर दी। अब, इसे संयोग कहें या…….कि इसके बाद मंत्रीजी को घेरने वाली चीजें चालू हो गईं। एक के बाद एक खुलासे। जाहिर है, मंत्री समर्थक इसे अफसर से जोड़कर देखेंगे ही।

मैं भी दुखी, मैं भी….

कैबिनेट की बैठक में अजय चंद्राकर एपीसोड पर बवाल मचने पर कुछ और मंत्रियों ने गरम तवे पर रोटी सेंकने में देर नहीं लगाई। फौरन चालू हो गए…. अफसरों से मैं भी दुखी हूं….मैं भी, मैं भी….मेरा भी नहीं सुनते…..। दरअसल, अफसरों पर प्रेशर बनाने का मौका बढि़यां था। सो, लगे हाथ कुछ खबरें मीडिया में भी प्लांट करा दी गई। लेकिन, नान घोटाले में हाथ जलाने के बाद अफसर अब प्रेशर में नहीं आने वाले। आखिर, विभागीय जांच कभी मंत्रियों की नहीं होती। भुगतते हैं अफसर ही।

सत्र के बाद धमाका?

विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद ब्यूरोक्रेसी में बड़ी उठापटक हो सकती है। सरकार कोई एटम बम भी दाग दें तो अचरज नहीं। हालांकि, रुटीन में फेरबदल अगले साल बजट सत्र के बाद समझा जा रहा था। मगर ब्यूरोक्रेसी में एक के बाद एक परिस्थितियां कुछ ऐसी निर्मित होती जा रही हंै कि सरकार सोचने पर मजबूर हो गई है। सूबे में ब्यूरोक्रेसी की लगातार भद पिट रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। लिहाजा, बीजेपी कोर ग्रुप में भी इस पर चिंता जाहिर की गई। ऐसे में, 10 फीसदी भाग्य पर छोड़ दीजिए, तो 90 परसेंट मानकर चलिए कि सत्र के बाद कोई बड़ा धमाका होगा। धमाके का खौफ तो पुलिस महकमे पर भी साफ पढ़ा जा सकता है। सबकी यही चिंता है, दो-एक महीने में जब दुर्गेश माधव अवस्थी वैसे ही डीजी प्रमोट हो जाते तो टाईम से पहले उनके लिए डीजी का पोस्ट सृजित करने के पीछे सरकार की आखिर मंशा क्या है। आईपीएस लाबी समझ नहीं पा रही है कि पांच साल तक किनारे रखने के बाद डीएम को लेकर सरकार यकबयक हरकत में क्यों आ गई?

भाई-भाई

जशपुर में हुए एक केस में आरोपियों को छुड़ाने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने इस तरह भाई-भाई का रवैया अपनाया कि एक महिला पुलिस अधिकारी को भी न्याय नहीं मिल सका। मामला है, वहां की एडिशनल एसपी नेहा पाण्डेय के डाक्टर पति के साथ दुव्र्यवहार का। पुलिस ने चार लड़कों को गिरफ्तार किया। इनमे से दो बीजेपी के थे और दो कांग्रेस के। कांग्रेस वाले को छोड़ने के लिए कांग्रेस के एक हाईप्रोफाइल नेता ने फोन की झड़ी लगा दी तो बीजेपी के मंत्री ने भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। यही नहीं, बीजेपी और कांग्रेस, मिलकर जशपुर बंद कराने की भी तैयारी कर ली थी। ऐसे में, कोई बवाल मच हो जाए। जिला और पुलिस प्रशासन को झूकना पड़ गया। फिर, जहां-जहां हो सकता है, मान-मनुहार की गई। अगले दिन चारों जेल से बाहर आ गए।

हफ्ते का एसएमएस

शादी शुदा लोगों के लिए मुफ्त की एक सलाह है। एक तो बीवी की ज्यादा सुनो मत। और, सुन भी लिया तो चार लोगों के बीच बोलो मत। देख रहे हो ना, आमिर का हाल…!!

अंत में दो सवाल आपसे

1. ब्यूरोक्रेसी के संदर्भ में ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि सरकार जानबूझकर मक्खी निगल रही है?
2. आखिर क्या वजह है कि सरकार ने डीएम अवस्थी को डीजी बनाने के लिए आनन-फानन में एक पोस्ट के लिए प्रस्ताव पारित कर दिया?

शनिवार, 21 नवंबर 2015

छत्तीसगढ़ के गडकरी

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22 नवंबर
संजय दीक्षित
कांग्रेस के एक हाईप्रोफाइल नेता के चिरंजीव एवं युवा विधायक ने मोटापे से छुटकारा पाने के लिए आपरेशन करा लिया है। इसी महीने उनका मुंबई में आपरेशन हुआ। बिल्कुल बीजेपी के नीतिन गडकरी टाईप। आपरेशन के बाद वे अभी रायपुर के बंगले में लिक्विड डाईट पर चल रहे हैं। लोगों से मिलने-जुलने की अभी मनाही है। उन्हें पूर्णताः स्वस्थ्य होने में अभी 15 से 20 दिन लगेंगें। सो, स्वास्थ्य लाभ के बाद जब वे बाहर आएंगे तो उन्हें स्लिम और स्मार्ट देखकर चैंकिएगा मत। दरअसल, युवा नेता कांग्रेस की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए अपने आपको तैयार कर रहे हैं। इसलिए, फिट रखना जरूरी भी था। और, फिर खुद को चुस्त रखना गलत कहां है।

रायपुर माडल

रायपुर माडल एडाप्ट कर बीजेपी ने बिरगांव जीत लिया। रायपुर माडल बोले तो तुम हमें जीताओ, हम तुम्हें। आप देख ही रहे हैं, रायपुर में कुछ साल से ऐसा ही चल रहा है। तुम पार्षद बन जाओ…..महापौर बन जाओ। मगर हमें विधायक बनवा दो। बिरगांव में भी ऐसा ही हुआ। कांग्रेस नेता इस खेल को समझ नहीं पाए। हवा का रुख देखकर वे निश्चिंत थे। और, सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने अपना करिश्मा दिखा दिया। लिहाजा, कांग्रेस के 21 पार्षद जीत गए और बीजेपी का मेयर। फायदे में दोनों रहे। दर्जन भर से अधिक कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों का घर से एक ढेला खर्च नहीं हुआ। और, कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी को जीतने का अवसर मिल गया। वरना, नए-नवेले नगर निगम में पूरी ताकत झोंककर बीजेपी ने बिहार जैसे रिस्क ले लिया था।

प्रमोशन के साथ बिदाई

संस्कृति विभाग के वेबसाइट घोटाले में जिस रिटायर आईएएस की गर्दन फंस रही है, उसे सरकार ने प्रमोशन के साथ इस जुलाई में भावभिनी बिदाई दी। हम आरसी सिनहा की बात कर रहे हैं। 81 बैच के सीनियर के सिकरेट्री कल्चर रहने के दौरान ही वेबसाइट कांड हुआ। वेबसाइट का जो काम दो-चार लाख में होना था, उसे उन्होंने 90 लाख में उन्होंने कराया। चिप्स की कड़ी आपत्ति के बाद भी। चिप्स ने लेटर लिखकर कहा था, प्रायवेट पार्टी सरकारी वेबसाइट को हैंडिल नहीं कर सकती। बावजूद इसके, नियम कायदों को ताक पर रख कर पहले 43 और पद से हटने के एक रोज पहले 10 लाख का भुगतान कर दिया गया। 32 लाख के तीसरे बिल को नए डायरेक्टर राकेश चतुर्वेदी ने रोक कर जांच के लिए सरकार को लिखा था। इसके बाद भी रिटायर होने से चंद दिनों पहले आनन-फानन में डीपीसी कराकर सिनहा को सिकरेट्री से प्रिंसिपल सिकरेट्री बना दिया गया। सिनहा वही आईएएस हैं, जिन्हें फुड पार्क घोटाले में दोषी पाए जाने पर उन्हें भारत सरकार ने प्रमोशन देने से रोक दिया था। रिटायरमेंट से 15-20 दिन पहले ही उनकी सजा की अवधि खतम हुई थी। लेकिन, तब तक वेबसाइट घोटाले की फाइल मूव हो गई थीं। मगर सामान्य प्रशासन विभाग ने इस फाइल को ही दबा दी।

अतिउत्साह

आईपीएस के कैडर रिव्यू में अतिउत्साह दिखाना पुलिस मुख्यालय को लगता है, भारी पड़ रहा है। आमतौर पर बाकी स्टेट भारत सरकार से 15 से 20 फीसदी पोस्ट वृद्धि की डिमांड करते हैं। लेकिन, अपना पीएचक्यू ने पिछले सारे रिकार्ड ध्वस्त करते हुए 60 परसेंट ज्यादा पोस्ट मांगा है। फिलहाल, छत्तीसगढ़ के लिए 103 आईपीएस का कैडर स्वीकृत है। पीएचक्यू ने 163 का प्रपोजल भेज डाला। ऐसे में, इसे भारत सरकार में जाकर डंप होना ही था। जरा गौर कीजिए। अप्रैल में पीएचक्यू ने कैडर रिव्यू के लिए भेजा था। अभी इसका कोई अता-पता नहीं है। जबकि, मध्यप्रदेश का कब का हो चुका है। हालांकि, मार्केट मेें तरह-तरह की बातें हो रही है। मसलन, डीएम अवस्थी को डीजी बनने से लटकाने के लिए जंबो प्रपोजल भेजा गया। ताकि, फाइल लटक जाए। लेकिन, इससे इतेफाक नहीं किया जा सकता। क्योंकि, जब तक एएन उपध्याय डीजीपी हैं, इस तरह की बातों की कोई गंुजाइश दिखती नहीं। लेकिन….., अतिउत्साह ही मानें, चूक तो हुई है।

हाईप्रोफाइल शादी

सात दिसंबर को पीसीसी चीफ भूपेश बघेल की बिटिया की शादी है। जाहिर है, वर-वधु को आर्शीवाद देने के लिए राजधानी में कांग्रेस नेताओं का जमावड़ा लगेगा। निमंत्रण तो सोनिया और राहुल गांधी को भी दिए गए हैं। मोतीलाल वोरा, दिग्विजय, बीके हरिप्रसाद के साथ ही कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का आना तय है। राजधानी में शादी की जोर-शोर से तैयारी चल रही है। 20 हजार कार्ड छपवाए गए हैं। भूपेश खुद ही सब जगह जाकर कार्ड बांट रहे हैं। चाहे वो पार्टी का निचले स्तर का कार्यकर्ता ही क्यांें ना हो। वे एक-एक जिले में जा रहे हैं।

बर्थडे ब्वाय

प्रिंसिपल सिकरेट्री राजेंद्र प्रसाद मंडल का 19 नवंबर को जन्मदिन था। यार, दोस्त से लेकर उनके विभाग के सप्लायर, ठेकेदार उन्हें बुके देने के लिए सुबह से ढूंढते रहे। वे न घर पर थे औ ना ही मंत्रालय में मिले। डिप्टी सिकरेट्री ने व्हाट्सअप पर पुकार लगाई, सर! आप कहां हैं….आपका नम्बर भी नहीं लग रहा है। कोई जवाब नहीं मिला। रायपुर की पूर्व मेयर किरणमयी नायक ने कमेंट्स किया, बर्थड ब्वाय गायब है। मंडल का शाम को लोकेशन मिला। वे पटना में थे। नीतिश के शपथग्रहण को आप इससे मत जोडि़एगा। मंडल बिहार से हैं और पटना में उनके कई रिलेटिव रहते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बिरगांव में पार्टी उम्मीदवार को जीताने के लिए बीजेपी के किस विधायक ने जान लगा दी थी और क्यों?
2. एक बड़े सरकारी बोर्ड का नाम बताइये, जो कुप्रबंधन के चलते सफेद हाथी बनने की स्थिति मंे आ गया है?

मंत्री की गाली

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15 नवंबर
संजय दीक्षित
गाली बकने एवं हड़काने में एक्सपर्ट माने जाने वाले एक मंत्रीजी का व्हाट्सअप इन दिनों चर्चा में है। बताते हैं, मंत्रीजी अपने बंगले में किसी नेता को गरिया रहे थे। उनका वायस किसी ने मोबाइल में रिकार्ड कर लिया। इसके बाद उसे वायरल होने में देर नहीं लगी। मंत्री विरोधियों ने ढूंढ-ढूंढकर व्हाट्सअप ग्रुपों में आडियो को सेंड कर दिया। अब, मंत्री के समर्थक सफाई दे रहे हैं, मंत्रीजी रोड बनाने के लिए पेड़ उखाड़ने की बात कह रहे हैं। लोग, नाहक इसका गलत अर्थ ना निकालें।

48 करोड़ का चूना

राजधानी का वीआईपी रोड बोले तो एयरपोर्ट रोड। इस रोड का एक बार फिर चैड़ीकरण की कवायद शुरू हो गई है। इसके लिए 76 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार किया है। 106 फुट में से 60 फुट का फोर लेन सिर्फ एयरपोर्ट के लिए होगा। जीई रोड से आप इंटर किए तो सीधे एयरपोर्ट के पास निकलेंगे। बीच में कोई कट नहीं। बाकियों के लिए इस रोड के दोनों ओर 23-23 फुट की सड़क होगी। मगर प्रश्न यह है कि जब वीआईपी रोड को चैड़ा करना ही था, तो दो साल पहले व्हाया धरमपुरा नया एयरपोर्ट रोड बनाया ही क्यों गया। आप जरा याद कीजिए। 2013 में वीआईपी रोड के चैड़ीकरण का जमकर विरोध हुआ था। तब पीडब्लूडी ने पैंतरा बदलते हुए सरकार के सामने धरमपुरा होकर एयरपोर्ट रोड बनाने का प्रस्ताव रख दिया था। हालांकि, इसमें एयरपोर्ट का डिस्टेंस तीन किलोमीटर अधिक था। मगर वीआईपी रोड के विवाद को देखते सरकार ने इसे मंजूरी देने में देर नहीं लगाई। नई फोरलेन सड़क बनाने में करीब 48 करोड़ खर्च आया। मगर इस रोड की युटीलिटी देखिए। एक आदमी इस रोड से एयरपोर्ट नहीं जाता। अलबत्ता, जो अफसर नया एयरपोर्ट बनाए, वे भी वीआईपी रोड से ही एयरपोर्ट आना-जाना करते हैं। फायदा हुआ तो सिर्फ दो को। एक, आसपास के गावों के मवेशियों को धूमने, फिरने और आराम से पगुराने के लिए साफ-सुथरी जगह मिल गई। और दूसरा, धरमपुरा में रहने वाले नौकरशाहों की कालोनी को। हाउसिंग बोर्ड ने तीन साल पहले 100 रुपए में उन्हें जमीनें दी थी, रोड बनने के बाद अब वह 800 रुपए पर पहुंच गया है। हाउसिंग बोर्ड ने इसलिए सस्ते में जमीनें दी थी कि वहां रोड नहीं है। और, पीडब्लूडी ने वहां दो साल के भीतर चकाचक फोर लेन बना दिया। अब, हम ये नहीं कहेंगे कि पीडब्लूडी ने एयरपोर्ट की आड़ में धरमपुरा कालोनी के लिए रोड बना दिया। मगर सरकार को देखना चाहिए। और, इसके पीछे के खेल को समझना भी चाहिए। कि ठीक उसकी नाक के नीचे क्या हो रहा है।

नामों में क्या

वीआईपी रोड का नया नाम अब एयरपोर्ट हाइवे होगा। सरकार ने इस पर मुहर लगा दिया है। हालांकि, नामों में कुछ रखा नहीं है। मगर इसका विरोध होना तय है। कारण कि वीआईपी रोड का नाम राजीव गांधी रोड पहले ही रखा जा चुका है। और, इसे और कोई नहीं, बल्कि सरकार ने ही बताया था। दिवंगत सीएम श्यामाचरण शुक्ल की बेटी ने जब दो साल पहले वीआईपी रोड का नामकरण उनके पिता के नाम पर करने की मांग की थी, तो सरकार ने उसे यह कहते हुए विनम्रता से ठुकरा दिया था कि इस रोड का नामकरण तो राजीव गांधी के नाम पर पहले ही हो चुका है। ऐसे में, नगरीय प्रशासन विभाग ने अगर वीआईपी रोड का नाम बदल दिया है, तो जाहिर है कांग्रेस इस पर सवाल खड़ा करेगी।

सीएम का नेटवर्क

लंबे समय तक सीएम होने का अपना मतलब होता है। इसे पिछले हफ्ते आईपीएस अफसरों ने महसूस किया। दरअसल, बस्तर में तीन नक्सलियों का एनकाउंटर हुआ था। पीएचक्यू में खुफिया चीफ अशोक जुनेजा, बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लुरी, सीआरपीएफ आईजी समेत कई आला अधिकारी अगले दिन ठीक-ठाक तरीके से प्रेस कांफे्रंस कर एनकाउंटर का खुलासा करने की रणनीति बना रहे थे। इसी दौरान सीएम का दिल्ली से फोन आ गया। वे दो दिन के दिल्ली विजिट पर थे। उन्होंने पूछा, बस्तर में एनकाउंटर हुआ है? पुलिस अफसर इस सवाल पर हैरान रह गए, सीएम दिल्ली में हैं, उन्हें कैसे पता चल गया। इसके बाद आनन-फानन में पुलिस को प्रेस कांफें्रस करना पड़ा।

आईजी के नम्बर

सूबे के सबसे बड़े दो जिलों में कांग्रेस ने दो मेगा शो किया। दोनों ही अमित जोगी का था। अमित जोगी के होने का मतलब आप समझ सकते हैं। शक्ति प्रदर्शन। रायपुर के आक्रोश रैली में यूथ कांग्रेस के प्रेसिडेंट राजा बराड़ आए। बराड़ जिस प्रदर्शन में शामिल होते हैं, वहां लाठी चार्ज से कम में बात बनती नहीं। रायपुर में उनके पोस्टर लगे ही थे, जिनमें उनके हाथ से लहू निकलते दिखाया गया था। गड़बड़ी की आशंका के इंटेलिजेंस नोट भी थे। मगर पुलिस ने ऐसी मुकम्मल इंतजामात किए कि लाठी पटकने की भी जरूरत नहीं पड़ी। इसके ठीक अगले रोज बिल्हा में युकां नेता की लाश रखकर चक्का जाम किया जाना था। इलेक्ट्रानिक मीडिया में जिस तरह से ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी, लगा मानों बिलासपुर में आग लग जाएगी। मगर बिलासपुर पुलिस और प्रशासन ने पानी फेर दिया। बिल्हा विधायक के कान में पुलिस वालों ने कुछ कह दिया। इसके बाद नेताजी सामने ही नहीं आए। बिना किसी अप्रिय स्थिति के दोनों मेगा शो निबट गए। ऐसे में, दोनों रेंज के आईजी का नम्बर बढ़ना लाजिमी है। सीएम ने भी दोनों को एप्रीसियेट किया है।

बीरगांव के मायने

बीरगांव नगर निगम चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के ताकत झोंक देने के अपने मतलब हंै। पिछले साल ही हुए लोकल इलेक्शन में कांग्रेस ने सत्ताधारी पार्टी को जोर का झटका दिया था। जाहिर है, इस चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को जोश से लबरेज कर दिया। कांग्रेस आलाकमान का भी संगठन के नेताओं के प्रति विश्वास बढ़ा। लिहाजा, भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस और आक्रमक हो गई। अब, बीरगांव के नतीजे भी अगर कांग्रेस के खाते में जाते हैं तो सताधारी पार्टी की मुश्किलें और बढ़ेगी। कांग्रेस पार्टी मैसेज देने की कोशिश करेगी कि बीजेपी का अब डाउनफाल शुरू हो गया है। और, सत्ताधारी पार्टी अगर बीरगांव को फतह करने में कामयाब हुई तो कांग्रेस का कांफिडेंस लड़खड़ाएगा। इसके ठीक उलट बीजेपी का आत्मविश्वास बढ़ेगा। दूसरा, कांग्रेस पार्टी में विरोध के स्वर और मुखर होंगे। वजह? बीरगांव नगरपालिका में कांग्रेस कभी हारी नहीं है। सो, विरोधी खेमा हार का ठीकरा संगठन के नेताओं पर फोडने की कोशिश करेगा। ऐसे में, दोनों ही पार्टियों के लिए इस चुनाव की अहमियत आप समझ सकते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक एसपी का नाम बताइये, जो अपने अधीनस्थों को रेंज आईजी से मिलने से मना करते हैं?
2. सरकार के इर्द-गिर्द दो आईएएस और एक आईपीएस की तिकड़ी मजबूत होने की कोशिश कर रही है। उनके नाम बताइये?

शनिवार, 7 नवंबर 2015

बैड दिवाली


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8 नवंबर
संजय दीक्षित
नान घोटाले के बाद सूबे के ब्यूरोक्रेट्स छांछ को भी फूंक-फूंककर पी रहे हैं। दिवाली में तो और सहमे हुए हैं। पहले साब के घर पर ना रहने पर बिल्डर, ठेकेदार, सप्लायर चपरासी या गार्ड को डब्बा थमाकर चल देते थे। बाद में पत्नी बता देती थी, डिब्बा और डिब्बे का सामान कितना वजनदार था। अबकी स्थिति उल्टी है। अधिकांश नौकरशाहों ने चपरासी एवं गार्ड को हिदायत दे दिए हैं, अनचिन्हार का डिब्बा बिल्कुल मत लेना। छोटे ठेकेदार एवं सप्लायर का तो बिल्कुल नहीं। क्या पता, घर जाकर डायरी में लिख दें, फलां साब को फलां चीज दिया। जाहिर है, ब्यूरोके्रट्स की पत्नियों की ये दिवाली बैड रहेगी।

टाटा और टोयटा

वित्त विभाग के अफसरों का टाटा और टोयटा के प्रति प्रेम से मंत्रालय के अफसर परेशान हैं। आला अधिकारी तक कोस रहे हैं….हम अपने लिए गाड़ी लेने जाते हैं, तो सबसे पहले उसका एवरेज देखते हैं और फायनेंस को टाटा और टोयटा के अलावा कुछ सूझता नहीं। जबकि, इन गाडि़यों का एवरेज सबसे कम है। वित्त विभाग 85 फीसदी से अधिक गाडि़यां इन्हीं कंपनियों का परचेज करता है। यद्यपि, नए रायपुर में मंत्रालय शिफ्थ होने के बाद सरकार ने फ्यूल का कोटा 40 लीटर से बढ़ा कर 240 लीटर प्रति महीने कर दिया है। इसके बाद भी पुर नहीं पा रहा है। कहीं इधर-उधर जाना पड़ जाए, तो अपने जेब से तेल भराओ या फिर उसक बिल किसी ठेकेदार या सप्लायर को टिकाओ। ऐसे में, सरकार कोे इस पर सोचना चाहिए।
पांचवे कलेक्टर
रायपुर के कलेक्टर ठाकुर राम सिंह सिकरेट्री बनने के बाद भी कलेक्टरी करने वाले सूबे के पांचवे आईएएस हो गए हैं। उनके सिकरेट्री प्रमोट होने के बाद सरकार ने रायपुर कलेक्टर के पोस्ट को सिकरेट्री लेवल में अपग्रेड कर दिया है। इससे पहले, चितरंजन कुमार खेतान, राजेंद्र प्रसाद मंडल रायपुर और सुब्रत साहू तथा जवाहर श्रीवास्तव दुर्ग के कलेक्टर रह चुके हैं। इनमें से मंडल तो सिकरेट्री रहने के बाद कलेक्टर पोस्ट किए गए थे। 2004 में जब वे रायपुर के कलेक्टर बनें, तब वे मंत्रालय में राजस्व सचिव थे।

सीईओ की क्लास

हर तीन महीने में होने वाली जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की राजधानी में हुई क्लास अबकी कुछ हट के रही। सरकार ने उनसे खरी-खरी बातें की। जिनका काम मार्केबल रहा, उनकी पीठ थपथपाई गई। जिनके पारफारमेंस पुअर रहा, उनकी क्लास भी ली गई। स्वच्छता अभियान और टायलेट बनाने में राजनांदगांव, रायगढ, धमतरी और कोरबा जिले के सीईओ की मंत्री और एसीएस ने मंच से सराहना की। चलिए, प्रतिस्पर्धा बढ़ने से सीईओज कुछ बढियां का करें।

एक अनार….

राज्य मानवाधिकार आयोग में मेम्बर के दो पोस्ट खाली हैं। इनमें से एक रिटायर आईपीएस शामिल है। मगर दावेदार इतने हो गए हैं कि सरकार अपाइंटमेंट नहीं कर पा रही है। चार तो तगड़े दावेदार हैं। संघ से लेकर संगठन तक एप्रोच लगा रखे हैं। लेकिन, किसे खुश करें, किसे नाखुश। सो, सरकार इसे अभी टाल रही है।

जय हो

भिलाई में आईआईटी खुलने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास विभाग याने एचआरडी इस पर सहमत हो गया है। पहले, वह न्यू रायपुर का डेवलपमेंट देखकर वहीं पर आईआईटी बनाने के लिए अड़ा था। न्यू रायपुर के बगल में एयरपोर्ट भी है। किन्तु सरकार ने भिलाई में आईआईटी खोलने के लिए विधानसभा में संकल्प पारित कर रखा है। सीएम ने दिल्ली लेवल पर कोशिशें की। सूबे के तकनीकी शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय लगे ही थे। असल में, फायदा तो पाण्डेयजी को ही होना है। भिलाई में आईआईटी खुल गया तो 2018 का चुनाव तो उसी के सहारे निकल जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस के कैडर रिव्यू को भारत सरकार से मंजूरी मिलने में देरी क्यों हो रही है?
2. आईएएस लाबी ने किस यंग आईएएस को बाल-बाल बचा लिया?

रविवार, 1 नवंबर 2015

लाल सलाम

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1 नवंबर
संजय दीक्षित
रणबीर शर्मा रिश्वत कांड में आईएएस लाबी ने ट्रेड यूनियन की तरह सीएम को जा घेरा था। और, चाहे जैसे भी हो, अपना लोहा मनवा भी लिया…जो हमसे टकराएगा….। लेकिन इसका मैसेज कैसा गया, आप समझ सकते हैं। दुर्ग की महिला तहसीलदार को एसीबी ने पकड़ा तो पूरे प्रदेश के तहसीलदार, नायब तहसीलदार हड़ताल पर चले गए। इससे पहिले, एडीएम संतोष देवांगन को एक मंत्री ने सरेआम थप्पड़ मार दिया था। उस अक्षम्य मामले में भी कुछ नहीं हुआ। और, इस करप्शन के केस में….। चोरी और सीनाजोरी भी। वाह! असल में, आदर्श तो बड़े अफसरों को ही माना जाता है न। उपर वालों ने लाल सलाम बोल दिया तो नीचे वालों का भला क्या कसूर।

पहुना में पहुना

राज्योत्सव के चीफ गेस्ट केंद्रीय वित्त और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली राजधानी के विशिष्ट अतिथि गृह पहुना मे रात्रि विश्राम करेंगे। गेस्ट हाउस को फाइव स्टार लुक देने के बाद जेटली पहुना के पहले पहुना होंगे। इसके लिए पहुना को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। राज्योत्सव तो है ही, पहला पहुना जो आ रहा है। वो भी भारत सरकार का रुपया-पैसा देने वाला पहुना। पहुना में दो वीआईपी और दो वीवीआईपी सूट हैं। सुविधाओं के मामले में पहुना फाइव स्टार होटल से कम नहीं है। सुरक्षा के भी चाक-चैबंद इंतजामात किए गए हैं। राज्धानी में सुविधायुक्त गेस्ट हाउस न होने के चलते बड़े केंद्रीय मंत्री राजभवन में रुकते थे। अब इसकी कमी पूरी हो गई है।

कौशिक, लेकिन….

धरमलाल कौशिक को दोबारा पार्टी की कमान सौंपने पर लोकल लेवल पर सहमति बन गई है। सीएम कैंप के वे स्वाभाविक दावेदार तो हैं ही, उनके नाम पर बाकियो को भी कोई आपत्ति नहीं है। संघ भी लगभग सहमत है। लेकिन, अब मोदी युग है। सब कुछ दिल्ली के रुख पर निर्भर करेगा। बिहार चुनाव में बीजेपी को अगर फतह मिल गई तो कौशिक के लिए दिक्कत नहीं होगी। वरना, पार्टी फिर ठोक-बजाकर फैसला लेगी।

माफ कीजिए

बिना किसी ठोस कारण के हाथ जला चुके एक सीनियर मिनिस्टर मीडिया को देखते ही आजकल हाथ जोड़ लेते हैं। हाल ही में मंत्रालय में कुछ प्रिंट एन इलेक्ट्रानिक मीडिया के कुछ पत्रकारों ने उनसे बात करनी चाही तो मंत्रीजी हाथ जोड़ लिए। बोले, अभी मुझे अपना कैरेक्टर ठीक कर लेने दीजिए। फिर आपलोगों से बात करूंगा। वैसे भी, मंत्रीजी के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। उनके पास तीन विभाग हैं। दो तो बहुत बड़े। दोनों के कर्मचारी बेमुद्दत हड़ताल पर हैं। ऐसे में, मंत्रीजी की परेशानी समझी जा सकती है।

दो पोस्ट और

भारत सरकार ने पीसीसीएफ के दो पोस्ट स्वीकृत कर दिए हैं। इसके फैक्स भी कल पहुंच गए। अब जल्द ही इसके लिए डीपीसी होगी। सीनियरिटी में प्रदीप पंत और दिवाकर मिश्रा नम्बर एक और नम्बर दो पर हैं। जाहिर है, इनकी दावेदारी तो रहेगी ही। मगर तीसरे नम्बर पर बीके सिनहा भी हैं। दिवाकर मिश्रा चूकि एसईसीएल में डेपुटेशन पर हैं, इसलिए सरकार चाहे तो दिवाकर को प्रोफार्मा प्रमोशन देकर पंत और सिनहा को पीसीसीएफ बना सकती है। मगर ये सिनहा की क्षमता पर निर्भर करेगा कि वे सरकार और आला नौकरशाहों को कितना साध पाते हैं। क्योंकि, बिना साधे सरकार में कुछ मिलता नहीं। आईपीएस ओपी पाल भले ही इसके अपवाद हो सकते हैं। सरकार ने उन्हें नोट उगलने वाले विभाग ट्रांसपोर्ट में भेज दिया।

खलबली

पीसीसीएफ के दो पोस्ट मिलने के बाद वन विभाग में खलबली मच गई है। पहले शीर्ष पद के लिए विकल्प सीमित थे। अनूप भल्ला पहले से तनखैया घोषित कर दिए गए थे। उपर से कांग्रेस के एक बड़े नेता ने वीटो लगा दिया। इसलिए, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी हो गया। मगर वन विभाग के हालात सरकार से छिपे नहीं हैं। आईएफएस अफसर त्राहि माम कर रहे हैं। अरण्यक में बगावत के हालात निर्मित होेते जा रहे हैं। सो, पीसीसीएफ की डीपीसी के बाद सरकार प्रदीप पंत या बीके सिनहा में से किसी एक को आगे कर दे ंतो आश्चर्य नहीं।

अमित युग

ये आप मान सकते हैं, जोगी खेमे में अब अमित युग शुरू हो गया है। अमित के जन्मदिन से ही इसका आगाज कहा जा सकता है। याद होगा, अजीत जोगी ने कविता लिखी थी, अब उसे नहीं है कोई मार्गदर्शन की दकरार….खुद ही स़क्षम है….। इसके बाद छोटे जोगी निकल पड़े हैं। जोगी खेमे के नेता अब अमित से ही टिप्स ले रहे हैं। अमित इस कोशिश में हैं कि जोगी खेमे से जिन नेताओं को परहेज था, उन्हें भी अपने साथ जोड़ा जाए। बिलासपुर के दो एक्स मेयर जोगी के पाले में आ गए हैं। कोरबा जिले के एक एमएलए पर भी डोरे डाले जा रहे हैं। रविंद्र चैबे भी जोगी खेमे के साथ आ गए हैं। आउटसोर्सिंग के प्रदर्शन में जिस अंदाज में उनका भाषण दिया, उसके बाद कुछ बच नहीं गया है। नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव से जोगी खेमे के कैसे रिश्ते थे, छिपे नहीं है। मगर अमित की उनसे भी निकटता बढ़ी है। आखिर, छोटे जोगी के एक एसएमएस पर वे उनके यहां चाय पर पहंुच गए। आउटसोर्सिंग के इश्यू पर भाषण के दौरान टीएस ने ही लोगों को याद दिलाया कि आज रेणू जोगी का जन्मदिन है। असल में, अमित जानते हैं कि भूपेश और चरणदास महंत के साथ रिश्ते सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है। सो, रणनीति के तहत भूपेश, महंत वर्सेज आल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। अमित के स्टार भी साथ दे रहे हैं। उन्हांेने आउटसोर्सिंग का इश्यू उठाया, उसे कांग्रेस ने पहले मजाक उड़ाया। पीसीसी चीफ ने तो पल्ला ही झाड़ लिया था। बाद मंे इश्यू की गंभीरता समझ में आने पर सारे नेता उसमें कूद पड़े। सोने में सुहागा कहिए, सरकार ने उसे विड्रो भी कर लिया। पहली गेंद पर छक्का…..विरोधी भी धराशायी। उधर, बिल्हा एसडीएम को भी सस्पेंड करा लिया। छोटे जोगी को और क्या चाहिए।

पते की बात

ताजा शोध से पता चला है कि अगर पत्नी करवा चैथ की जगह मौन व्रत रखे तो पति 25 साल ज्यादा जिंदा रह सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आउटसोर्सिंग के खिलाफ प्रदर्शन में अजीत जोगी बार-बार बोल रहे थे, सफेद बाल वाले पार्टी नहीं चला सकते। उनका इशारा किसकी ओर था?
2. रायगढ़ जिला पंचायत के आईएएस सीईओ को यकबयक क्यों हटाया गया? वो भी डिप्टी कलेक्टर से रिप्लेसमेंट करके?

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

वाह सेनापतिजी!

वाह सेनापतिजी!

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18 अक्टूबर

संजय दीक्षित
लाइवलीहूड कालेज और एजुकेशन सिटी की सफलतापूर्वक लांचिंग के बाद दंतेवाड़ा के तत्कालीन सेनापति ओपी चैधरी ने बस्तर के आदिवासी बच्चों में खेल प्रतिभा तलाशने के लिए स्पोट्र्स कांप्लेक्स का ब्लू प्रिंट बनाया था। मकसद था धुर नक्सल प्रभावित इलाके के बच्चों को पढ़ाई के साथ खेल से जोड़ा जाए। ताकि, रांची जैसे नेशनल, इंटरनेशनल लेवल के प्लेयर बस्तर में भी तैयार हो सकें। इसके लिए एस्सार ने सीएसआर फंड से छह करोड़ 10 लाख रुपए सेंक्शन कर दिया था। प्रोजेक्ट का भूमिपूजन भी हो गया था। मगर ओपी के बाद आए दंतेवाड़ा के नए सेनापति ने एरोगेंसी की पराकाष्ठा कर दी। उन्होंने स्पोट्र्स कांप्लेक्स की योजना बदलकर पांच सितारा ट्रांजिट हास्टल बनवा डाला। और, सीएम को डार्क में रखकर इस हफ्ते उनसे लोर्कापण भी करवा लिया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन है कि सीएसआर के पैसे से सिर्फ आम आदमी से जुड़े काम ही होने चाहिए। जरा सोचिए, बस्तर में नेशनल लेवल का स्पोट्र्स कांप्लेक्स बनता….एकाध बड़े खिलाड़ी निकल जाते तो कितनी बड़ी बात होती। उस बस्तर में जहां, नक्सली हिंसा में 2 हजार से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। राज्य के लोगों का भी इससे सीना चैैड़ा होता। क्योंकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोे बस्तर विजिट में सरकार की अगर किसी स्कीम ने सर्वाधिक प्रभावित किया तो वह एजुकेशन सिटी ने। हो सकता था, अगले बार स्पोट्र्स कांप्लेक्स का नम्बर आता। मगर दंतेवाड़ा के सेनापति ने गुड़-गोबर कर दिया। ये वही सेनापति हैं, जो संवैधानिक संस्था राज्य निर्वाचन अधिकारी को ठेंगा दिखाते हुए पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली चले गए थे। बिना सरकार से इजाजत लिए। इसके बाद भी बाल बांका नहीं हुआ। ऐसे सेनापतियों को बढ़ावा देने से सरकार को और क्या हासिल होगा? देश भर में बदनामी। हाईकोर्ट में पीआईएल लगने वाला है कि छत्तीसगढ़ में सीएसआर के पैसे का बेजा उपयोग हो रहा है।

राम-राम

दुर्ग, रायगढ़ और बिलासपुर जैसे जिलों को सफलतापूर्वक चलाकर राजधानी रायपुर आने वाले कलेक्ट्रेट के एक बड़े साब इन दिनों रायपुर के नाम पर राम-राम कर रहे हैं। शायद ही उनका कोई दिन गुजरता होगा, जब वे उपर वाले से शिकायत नहीं करते, भगवान तूने कहां फंसा दिया। उन्हें दिक्कत सरकार से नहीं है और ना ही कामकाज से। आजिज आ गए हैं तो राजधानी के आला नौकरशाहों के जमीनों के मामले से। मंत्रालय से लगभग हर दिन फोन, फलां लैंड का सीमांकन करा दो, फलां की नापी। फलां जमीन के सामने से रोड निकालना है। फलां एरिया का फलां पटवारी तुमसे मिलेगा। साब भी हैरान! कलेक्ट्रेट का इतना बड़ा अफसर होकर पटवारी को मैं नहंी जानता और मंत्रालय के साब लोग पटवारी को जानते हैं। ऐसे में, पटवारी भी रुआब झाड़ता है…..फलां साब ने भेजा है। दरअसल, मंत्रालय के कुछ आफिसर, अफसरी के साथ जमीन का पैरेलेल बिजनेस भी करते हैं। सस्ते में खरीदते हैं और महंगे में बेचते हैं। ये काम बिना कलेक्ट्रेट और पटवारी के संभव नहीं है। खैर, इसमें कोई गलत भी नहीं है। आखिर, सबसे बड़ा रुपैया। कुर्सी से हटने के बाद कोई काम नहीं आने वाला।

दोस्त, दोस्त ना रहा

कांग्रेस के जय-बीरु के संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे। कांग्रेस के लोग भी दबी जुबां से मान रहे हैं कि दोनों के रिश्तों में दरार आनी शुरू हो गई है। पहले गजब की ट्यूनिंग थी। आंदोलन हो या प्रदर्शन, दोनों साथ दिखते। दौरे भी साथ में होते। प्रेस कांफे्रेस भी साथ-साथ। दोनों एक साथ दिल्ली जाते थे और साथ ही आते। मगर अब दोनों अलग-अलग ही दिल्ली जा रहे हैं और अकेले ही लौट रहे हैं। याद नहीं आता कि पिछले एक महीने में दोनों ने साथ में कोई दौरा किया हो। एक बस्तर जा रहा है, तो दूसरा कोरिया। हाल में, कांग्रेस भवन में हुई एक प्रेस कांफे्रेंस मंे दोनों दिखे भी, मगर बाडी लैंग्वेज बता रहा था कि समथिंग इज रांग। कांग्रेस नेताओं की मानें तो राहुल गांधी के दौरे के बाद यह फर्क आया है। बताते हैं, राहुल के दौरे के रुट को लेकर दोनों में मतभेद उभरे और अब यह दरार का शक्ल ले लिया है। फिर, बीरु ने दिल्ली में अपनी फील्डिंग तेज कर दी है। जय को यह नागवार गुजर रहा है। सो, जय के लोग अब बीरु पर नजर रखने लगे हैं। याने दोस्त, दोस्त ना रहा……। नवरात्रि में सरकार और बीजेपी के लिए इससे गुड न्यूज और क्या हो सकता है।

या देवी….

नवरात्रि के प्रथम दिन ही सरकार ने दो महिला आईपीएस को जिले का कप्तान अपाइंट कर दिया। नेहा चंपावत को महासमुंद और नीतू कमल को मुंगेली। दोनों का यह दूसरा जिला है। नेहा धमतरी कर चुकी हैं और नीतू महासमुंद। फिलहाल, छत्तीसगढ़ के एक भी जिले में महिला कप्तान नहीं थीं। पारुल माथुर को सरकार ने हाल ही में एसपी बनाया है मगर रेलवे की। जबकि, छह जिलों में महिला कलेक्टर हैं। इनमें से तीन के काम तो आउटस्टैंडिंग है। अलबत्ता, एसपी के काम से सरकार खुश नहीं है। और ना ही डीजीपी। सूबे में अच्छे एसपी की गिनती करें तो तीन से चार पहुंचने में दिक्कत होगी। कहीं कोई जुआ खिला रहा है तो कहीं आरगेनाइज ढंग से वसूली। चोर, बदमाश से लेकर कबाड़ी तक एसपी साहबों की जय जयकार कर रहे हैं। ऐसे में, दो देवियों को कप्तान बनाने से सरकार ने सोचा होगा, इससे दोहरा लाभ होगा। नवरात में मां प्रसन्न होगी और दूसरा, महिला कप्तानों का भी ट्रायल हो जाएगा।

सीनियरिटी या प्रेशर?

सरकार ने आखिरकार बोर्ड, आयोगों के चेयरमैनों को लाल बत्ती की हसरत पूरी कर दी। हसरत इसलिए, क्योंकि चेयरमैन बनने के बाद बाकी चीजें पूरी हो जा रही थीं। घर-द्वार की चिंता तो उन्हें पहले भी नहीं थी। इनमें से शायद ही कोई होगा, जिसके पास राजधानी में दो-एक मकान नहीं होंगे। 12 साल से सत्ताधारी पार्टी में हैं, तो जाहिर है, रुपए पैसे का भी कोई टेंशन नहीं होगा। शान में बस, लाल बत्ती की कमी थी। वो भी पूरी हो गई। इस एपीसोड में लोगों को सिर्फ एक बात खटक रही है, कैबिनेट और राज्य मंत्री के दर्जे के लिए मापदंड क्या था। सीनियरिटी या प्रेशर? युद्धवीर सिंह जुदेव और शिवरतन शर्मा को कैबिनेट मिनिस्टर का रैंक मिला है। मंत्री न बनाने पर इन दोनों के इलाके में सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुए थे।

मंत्री से पंगा

रायपुर के तीन इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई के पीछे की जो बात निकल कर आ रही है, उसमें लब्बोलुआब यह है कि इंजीनियरों ने यंग्रीमैन मिनिस्टर से पंगा ले लिया। दरअसल, विभागीय मंत्री ने इंजीनियरों को अपने करीबी आदमी से डीपीआर याने डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने के लिए कहा था। काम बड़ा छोटा था। मगर मंत्रीजी के आदमी को दो पैसा बच जाता। दो फीसदी के हिसाब से यही कोई दो करोड़। मगर इंजीनियरों ने गलती कर दी। तो इसके अंजाम तो भुगतने पड़ेंगे ना।

अपनी मां

नवरात्रि में मां का व्रत रखने से पहले एक बार अपनी मां से पूछ लेना, मां क्या हाल है…..मां कुछ चाहिए तो नहीं…..?

हफ्ते का व्हाट्सएप

शिष्टाचार कहता है कि किसी स्त्री से कभी उसकी उम्र नहीं पूछनी चाहिए और पुरुष से उसकी आय। शायद इसके पीछे खूबसूरत अंर्तदृष्टि छुपी है कि कोई भी स्त्री कभी अपने लिए नहीं जीती और कोई पुरुष कभी अपने लिए नहीं कमाता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले में एसपी द्वारा जुआ खिलाने की शिकायत पुलिस मुख्यालय पहुंची है?
2. अमित जोगी के आउटसोर्सिंग से पल्ला झाड़ने वाली कांग्रेसी पार्टी ने बाद में उसे हाथोंहाथ क्यों ले लिया ?

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

भविष्य के संकेत

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11 अक्टूबर

संजय दीक्षित
कांग्रेस के कद्दावर नेता अजीत जोगी साल में दो-एक पार्टी अवश्य देते हैं। मगर 8 अक्टूबर की शादी की सालगिरह की पार्टी कुछ अलग रही। इसलिए नहीं कि 40वीं सालगिरह थी। खास इसलिए कि पहली बार पूरी सरकार सार्वजनिक तौर पर उनके साथ खड़ी दिखी। उनके अपनी पार्टी के पीसीसी चीफ, लीडर अपोजिशन जैसे कई बड़े नेता पार्टी में भले ही नहीं दिखे। मगर सीएम डा0 रमन सिंह के साथ आधा दर्जन से अधिक उनके मिनिस्टरों ने जोगी की पार्टी में अपनी हाजिरी दर्ज कराई। सीएम तो आधा घंटा से अधिक रहे। मंच पर जोगी के साथ उनकी गुफ्तगूं भी चर्चा में रही। दोनों के बीच जब वार्तालाप हो रही थी, सुरक्षाकर्मियों को वहां से हटा लिया गया था। राजधानी में विरोधी दल के किसी नेता की पर्सनल पार्टी में पहली बार नौकरशाहों का जमावड़ा दिखा। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी से लेकर खुफिया चीफ तक। आमतौर से पार्टियों से परहेज करने वाले डीजीपी एएन उपध्याय भी पूरे समय रहे। जाहिर है, सरकार की मौन स्वीकृति के बिना थोक की तादात में अफसर पार्टी में गए नहीं हांेगे। और जाते तो नजर चुराकर भागते। मगर पार्टी का नजारा कुछ और था। अफसरों ने स्टार्टर से लेकर सभी व्यंजनों का लुत्फ उठाया। सियासी प्रेक्षक रिश्तों की इस नुमाइश को 2018 के विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं। रिश्तों की गरमी अगर बरकरार रही तो जाहिर है, सूबे की सियासी स्थिति भी बरकरार रह सकती है।

जश्न के पीछे

अजीत जोगी 2014 के महासमुंद लोकसभा चुनाव में भले ही जीतते-जीतते हार गए। मगर परिस्थितियां जिस तरह उनके फेवर में होती जा रही है, उनके सांसद बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाए, तो हैरान मत होइयेगा। क्योंकि, 13 चंदुओं में से छह चंदुओ ने एक ही टाईम में पर्चा भरा है। बीजेपी के निर्वाचित चंदू भी। इन सभी का नामंकन और शपथ का टाईम एक है। जो कि निर्वाचन शून्य करने के लिए काफी है। जोगी ने इसके साक्ष्य हाईकोर्ट में जमा करा दिए हैं। किसी भी दिन इसका फैसला आ जाएगा। निर्वाचन के जानकारों का कहना है, साक्ष्य के आधार पर महासमुंद के चुनावी नतीजे निरस्त हो सकते हैं। इसमें एक तो दूसरे नम्बर के उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जा सकता है या फिर से चुनाव होंगे। ऐसे में, जोगी खेमे को उत्साहित होना स्वाभाविक है।

कद का सम्मान

हाईप्रोफाइल आईएफएस आलोक कटियार के आगे सरकार आखिर झुक गई। उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का सीईओ बना दिया। यही नहीं वे एमडी हैंडलुम बोर्ड भी रहेंगे। याने डबल पोस्टिंग। गवर्नमेंट ने पहले उन्हें एमडी हैंडलूम बोर्ड की पोस्टिंग दी थी। मगर आर्डर के महीने भर बाद भी उन्होंने ज्वाईन नहीं किया। तब जाकर सरकार को चूक का अहसास हुआ। फिर, उनके कद का सम्मान करते हुए पीएमजीएवाय की कुर्सी सौंप दी गई। पीएमजीएसवाय बोले तो मलाईदार विभाग। ऐसा विभाग, जिसमें ठेकेदारों की टाईम लिमिट बढ़ाने के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे हो जाते हैं। कटियार सूबे के वरिष्ठतम सांसद के दामाद के बड़े भाई हैं। तभी तो सरकार ने फौरन अपनी गलती सुधार ली।

अपमान का बदला अपमान

आईएएस वर्सेज आईपीएस के पंगे में अब आईपीएस को कीमत चुकानी पड़ रही है। कमिश्नर स्पोटर्स की पोस्ट उनसे छीन ही गई। अशोक जुनेजा के बाद सरकार ने आईएफएस अनिल राय को वहां पोस्ट कर दिया। जबकि, स्पोटर्स पुराने मध्यप्रदेश के समय से ही आईपीएस के लिए रिजर्व रहा है। राज्य बनने के बाद सिर्फ एक बार एडिशनल कलेक्टर रैंक के जितेंद्र शुक्ला डायरेक्टर रहे। वो भी तत्कालीन खेल आयुक्त आरपी मंडल के स्पेशल डिमांड पर। वरना, छत्तीसगढ़ बनने पर राजीव श्रीवास्तव, अशोक जुनेजा, संजय पिल्ले, राजेश मिश्रा, जीपी सिंह, राजकुमार देवांगन, दोबारा फिर अशोक जुनेजा कमिश्नर स्पोट्र्स रहे। मगर सुनते हैं, इस बार आईएएस लाबी अड़ गई…..आईपीएस वाले बहुत जख्म दिए हैं…..नान, फिर भानुप्रतापपुर में रिश्वत लेते हुए ट्रेप….. देश भर में हमारे कैडर की फजीहत करा दी। छोड़ेंगे नही! सरकार ने समझाया….आईएएस में डायरेक्टर लेवल के अफसरों की फौज है, इनमें से किसी को अपाइंट कर देते हैं। इसके बाद भी आईएएस लाबी टस-से-मस नहीं हुई तो सरकार ने तथास्तु कह दिया। असल में, आईपीएस में ढंग का कोई प्लेयर बचा नहीं। पुलिस महकमे के असली नायक गिरधारी नायक को खलनायक बनाकर जेल भेज दिया गया है। मुकेश गुप्ता ऐतिहासिक पारी खेलकर अभी-अभी आउट हुए हैंैै। डीएम अवस्थी को सरकार ने पांच साल पहले आउट आफ फार्म करार देकर बाहर कर दिया। ऐसे में, मानकर चलिये आईपीएस को सिचुएशन ठीक होने तक सरेंडर होकर ही काम करना होगा।

जै-जै आसाराम

सूबे में स्कूल एजुकेशन के हालात को लेकर रोना मचा है। सभी आंसू बहा रहे हैं। नेता से लेकर अधिकारी तक। शुक्र है…..15 साल बाद ही सही, चिंता तो झलकी। वरना, अभी तक तो एजुकेशन में प्रयोग ही होते रहे हैं। आपको याद होगा, 2012 में तो साल में चार सिकरेट्री बदल गए थे। आरपी मंडल, एमके राउत, सुनिल कुमार और इसके बाद केआर पिस्दा। पिस्दा तब स्पेशल सिकरेट्री थे। उनके प्रभार में एक साल निकल गया। अब तो अफसरों ने भी मान लिया है कि कोई चमत्कार ही शिक्षा विभाग की नैया पार लगा सकता है। भले ही वो आसाराम का चमत्कार ही क्यों ना हो। तभी तो एजुकेशन के सारे अफसर जै-जै आसाराम कर रहे हैं। मंत्रालय के एक अफसर तो अपने ब्रीफकेस में आसाराम की फोटू रखना नही भूलते।

रिश्तों की तल्खी

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक लखीराम अग्रवाल स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं। लखीराम ने ही उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाया बल्कि, पहली बार टिकिट दिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। तभी, लखी पुत्र अमर के साथ धरम के 2007 तक रिश्ते बेहद मधुर रहे। एकदम सहोदर भाई सरीखा। मगर राजनीति ऐसी चीज है, जिसमें पोस्ट और पावर के आगे रिश्तों के मायने बदल जाते हैं। वक्त ने अमर और धरम के बीच ऐसी दरारें पैदा कर दी है कि अब पटने की कोई गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। दोनों के कामन वेलविशर मानते हैं, कुछ अदृश्य शक्तियां भी दोनों के बीच की खाई को चैड़ी कर रही है। वे बिलासपुर के प्रशिक्षण शिविर की ओर इशारा करते हैं। उसमें अमर अग्रवाल के एक समर्थक भाषण दे रहे थे। घंटे भर सेे अधिक खींच देने पर धरम ने टोका, कोई भी कार्यकर्ता लंबा भाषण न दें। इस पर तमतमाते हुए अमर समर्थक ने बीच में भाषण रोक दिया। हालांकि, धरम का टोकना और अमर समर्थक का गुस्साना एक संयोग हो सकता है। मगर संदेश क्या गया, इसे आप समझ सकते हैं। ऐसे में, बेहतर रिश्ते की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री को उनके एमडी ने फारचुनर गाड़ी गिफ्ट किया है?
2. किस एडिशनल चीफ सिकरेट्री का फोन टेप हो रहा है और क्यों?