शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अफसरों की दिवाली खराब

 तरकश, 27 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों की दिवाली खराब

छत्तीसगढ़ के 19 आईएएस अधिकारियों की दिवाली खराब हो गई। चुनाव आयोग ने उन्हें आब्जर्बर बना दिया है। पहली बार छत्तीसगढ़ की लिस्ट में महिला आईएएस के भी नाम हैं। विदित है, महाराष्ट्र और झारखंड में दो चरणों में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी अधिकारियों को 28 अक्टूबर को संबंधित जिलों में रिपोटिंग करने कहा गया है।

इसके तीसरे दिन ही दिवाली है, सो उन्हें अब घर आने का मौका मिलेगा नहीं। लक्ष्मीपूजा के त्यौहार में ऐन समय अफसरों के बाहर रहने से क्या-क्या नुकसान होगा....उनकी पीड़ा को यहां कुरेदना ठीक नहीं। चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार को कम-से-कम दिवाली का खयाल तो करना था।

भरोसे की पिटाई

बलरामपुर बवाल का वीडियो देखकर छत्तीसगढ़ का आम आदमी हिल गया। बड़ा भयावह दृश्य था....छत्तीसगढ़िया, सबले बढ़ियां...कहे जाने वाले प्रदेश की महिलाओं ने पुलिस पार्टी पर हमला बोल दिया। थाने के सामने एक महिला बत्ती लगी पुलिस की गाड़ी के शीशे को पत्थर बरसा रही थी तो दूसरी महिला जूती निकालकर महिला एडिशनल एसपी की पिटाई करती दिखी।

वीडियो देख सरगुजा रेंज पुलिस, पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग के मुख्तारों को पता नहीं कैसा लगा....मगर अकल्पनीय हालात देख छत्तीसगढ़ का आम आदमी हतप्रभ है। भयभीत भी। दरअसल, पुलिस आम आदमी के भरोसे की प्रतीक होती है।

रसूखदार आदमी रसूख के बल पर और पैसे वाले पैसे के बल पर अपना काम करा लेता है। मगर समाज के 95 परसेंट लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर पुलिस पर निर्भर होते हैं। इस 95 परसेंट पर जब भी कोई संकट आता है तो सीधे थाने दौड़ता है। मगर उसका विश्वास इस तरह जूती से पिटेगा तो घबराना वाजिब है।

हनुमानजी प्रसन्न नहीं!

छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा शपथ लेने के बाद पहली बार पुलिस मुख्यालय पहुंचे थे, तो उन्होंने वहां बजरंगबली की पूजा की थी, नारियल फोड़ने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ हुआ था। मगर पुलिस पर संकट देखकर लगता है, पूजा से हनुमानजी प्रसन्न नहीं हुए। वरना ऐसा थोड़े होता है...डंडे बरसाने वाली पुलिस पर ही डंडे बरस रहे...।

कवर्धा में गृह मंत्री के दो करीबी लोगों को हिंसा में जान गंवानी पड़ गई। एसपी, एडिशनल एसपी का लगातार निलंबन और छुट्टी की कार्रवाई भी प्रभावी नहीं हो पा रही। गृह विभाग को काशी के किसी अच्छे पंडित से अनुष्ठान करा पुलिस की ग्रह-दशा को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।

सवाल 73 विधानसभा सीटों का

बस्तर में नक्सल मोर्चे पर फोर्स को बड़ी कामयाबी मिल रही है। गृह विभाग और पुलिस महकमा इसके लिए सराहना का पात्र है। मगर बस्तर की सफलता मैदानी इलाकों में पुलिस की अ-क्षमता से धुल जा रही है। सिस्टम को यह भी ध्यान रखना होगा कि बस्तर में विधानसभा की केवल 17 सीटें हैं। 73 सीटें मैदानी इलाकों में हैं।

बिहार में लालू यादव और यूपी में मुलायम सिंह यादव के परिवार की सत्ता का अंत हुआ तो इसकी एक बड़ी वजह लॉ एंड आर्डर रही। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बदली तो उसके पीछे कानून-व्यवस्था भी एक कारण रहा। याद होगा, डेढ़ साल पहले रायपुर शहर में नशे में युवती ने एक युवक की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। इसलिए, पीएचक्यू को लॉ एंड आर्डर को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।

सस्पेंशन या जूते

छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग के ध्वस्त होने के पीछे बड़ी वजह है पुलिस का लोकलाइजेशन। मध्यप्रदेश में आज भी सिपाहियों को गृह जिले में पोस्टिंग नहीं मिलती। मगर छत्तीसगढ़ में ये वर्जनाएं ऐसी टूटी कि अब नेताजी लोगों की कृपा से पुलिसकर्मियों को उनके गांव के नजदीकी थाने में पोस्टिंग मिल जा रही। कई जिलों की स्थिति ये हो गई है कि लोकल पुलिस का परसेंटेज 70 से 80 पहुंच गया है।

बलौदा बाजार की हिंसा में भी इसे महसूस किया गया, जब भीड़ को देखकर पुलिस मौके से गायब हो गई। असल में, वर्दी वालों से तिमारदारी कराना नेताओं को गर्व की अनुभूति कराता है और जाहिर है, पुलिस वाले नेताओं के जब लटर-पटर वाले काम करेंगे, तो उसकी कीमत भी वसूलेंगे ही।

सूबे में इससे सबसे बड़ा नुकसान पोलिसिंग का हुआ है। पुलिस का पूरा सिस्टम काम धाम छोड़ उगाही में जुट गया। दूसरी बड़ी वजह है...लॉ एंड आर्डर का अनुभव नहीं होना है। पुलिस में गिने-चुने अफसर भी नहीं हैं, जिन्हें विषम परिस्थितियों को संभालने का अनुभव हो। बलरामपुर बवाल में सबको पता था कि मृतक बंगलादेशी रिफ्यूजी परिवार से है। बंगाल और बंग्लादेश में प्रतिरोध का एक अलग तरीका होता है।

ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री डॉक्टरों से नहीं निबट पा रही तो बंग्लादेश में लोगों ने ऐसी लड़ाई लड़ी कि पीएम शेख हसीना को राजपाट छोड़ इंडिया भागना पड़ा। ऐसे में, सवाल उठता है...सरगुजा और बलरामपुर के पुलिस अधिकारियों ने अंडरस्टीमेट कैसे कर लिया। जो चूक सूरजपुर पुलिस ने की, उसी की पुनरावृत्ति बलरामपुर में भी हुई। बाहर से फोर्स बुलाकर अगर तुरंत तैनाती कर दी गई होती तो भीड़ को थाने में घुसने का मौका नहीं मिलता।

तीसरा, पुलिस को उग्र भीड़ से निबटने के लिए फ्री हैंड चाहिए। पुलिस के सामने दोहरा संकट है। बल प्रयोग किया तो सस्पेंड और बल प्रयोग नहीं तो बलरामपुर की तरह पीठ पर जूते खाओ। कवर्धा के लोहारीडीह कांड में अगर एसपी को हटाना ही था तो फिर एडिशनल एसपी को सस्पेंड करने का क्या तुक?

पुलिस को अगर टाईट करनी है तो आपको उसे संरक्षण भी देना होगा। छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग को अगर जिंदा रखनी है तो गृह और पुलिस महकमे को इस पर चिंतन करनी चाहिए।

कड़े और अलोकप्रिय फैसले

सरकार ने तेज-तर्रार नेता विजय शर्मा को गृह मंत्रालय की कमान सौंपी हैं तो उन्हें डिरेल्ड हो चुकी पोलिसिंग को पटरी पर लाने कुछ कड़े और अलोकप्रिय फैसले लेने पड़ेंगे। इसके लिए सबसे पहले पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करना होगा। ट्रांसफर, पोस्टिंग में कुछ साल नो सिफारिश। स्टेट लेवल पर भर्ती नहीं कर सकते तो जिला लेवल पर तो ना ही हो।

पुलिस की भर्ती रेंज स्तर हो और उसमें जिले का विकल्प न दिया जाए। याने संबंधित रेंज के किसी भी जिले में सिपाहियों की पोस्टिंग की जा सकती है। इससे खटराल सिपाहियों को अपराधियों से गठजोड़ टूटेगा। पहले पुलिस के इंफर्मर होते थे, आजकल अपराधियों के इंफर्मर पुलिस हो गई है। ऐसे में, पुलिस का भगवान मालिक है।

कप्तानी का रिकार्ड

आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईपीएस में कप्तानी का रिकार्ड बद्री नारायण मीणा और संतोष सिंह के नाम दर्ज है तो स्टेट सर्विस वाले आईपीएस में प्रशांत ठाकुर सबसे आगे हैं। प्रशांत जशपुर, जांजगीर, बेमेतरा, बलौदा बाजार, दुर्ग, धमतरी जिले के एसपी रह चुके हैं। सूरजपुर में हेड कांस्टेबल की पत्नी और बेटी की हत्या के बाद सरकार ने उन्हें वहां का एसपी अपाइंट किया है। सूरजपुर उनका सातवां जिला हुआ। बद्री और संतोष को छोड़ दें तो सात जिला किसी आरआर वाले आईपीएस ने भी नहीं किया होगा।

वीवीआईपी कलेक्टर

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने गृह जिले जशपुर के कलेक्टर के लिए रोहित व्यास को चुना है। सत्ता से नजदीकी दिखाने वाला जशपुर का एक बड़ा वर्ग कलेक्टर के रूप में जिपं के पूर्व सीईओ को देखना चाहता था। मगर सीएम ने रोहित का नाम ओके कर दिया।

दरअसल, कोरोना के समय बगीचा के एसडीएम रहे रोहित की वर्किंग को सीएम भलीभांति जानते थे। 2017 बैच के आईएएस रोहित के बारे में आम धारणा है कि वे अनावश्यक राजनीतिक प्रेशर में नहीं आते।

कलेक्टर से सीपीआर

छत्तीसगढ़ में यह दूसरा मौका है, जब सरकार ने कलेक्टर को जिले से बुलाकर सीपीआर याने जनसंपर्क प्रमुख बनाया है। इससे पहले 2014 में ओपी चौधरी को दंतेवाड़ा कलेक्टर से रायपुर बुलाकर डीपीआर बनाया गया था। बाद में ओपी यहीं से जांजगीर कलेक्टर बनकर गए और वहां से फिर रायपुर कलेक्टर बनें। उनके बाद जशपुर कलेक्टर डॉ0 रवि मित्तल को कलेक्टर से जनसंपर्क प्रमुख बनाया गया है।

हालांकि, राज्य बनने से पहले सुनिल कुमार रायपुर कलेक्टर से डीपीआर बने थे। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। वे एक दिन के दौरे पर रायपुर आए थे। और लौटे तो दूसरे दिन सुनिल कुमार को डीपीआर बनाने का आदेश हो गया। बहरहाल, खास बात यह है कि जशपुर दौरे में सीएम ने तीन कलेक्टरों समेत 10 आईएएस अधिकारियों को बदलने के आदेश पर साइन किया तो कलेक्टर के रूप में रवि वहीं थे। सोशल मीडिया में आदेश वायरल होते ही रवि को बधाइयां मिलने लगी।

ऐसा ही कुछ 2016 में हुआ था...जब मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने मंच से ऐलान किया किया था कि आपके कलेक्टर मुकेश बंसल को मैं बड़ा काम कराने के लिए रायपुर ले जा रहा हूं...तो सभा स्थल पर मुकेश को बधाइयों का तांता लग गया था। बता दें, रवि मित्तल की सहायक कलेक्टर के रूप में पहली पोस्टिंग राजनांदगांव रही और मुकेश से ही उन्हें प्रशासन का प्रारंभिक गुरूज्ञान मिला।

दिलफेंक प्रोफेसर

राजधानी रायपुर के एक दिलफेंक प्रोफेसर की चर्चा इन दिनों बड़ी सरगर्म है। वे कपड़े की भांति अपना दिल बदलते हैं। उनके खिलंदरपन से परेशान होकर पत्नी ने संबंध विच्छेद कर लिया, इसके बाद भी प्रोफेसर साब का दिल समझने को तैयार नहीं हैं। अलबत्ता, सिक्सटी प्लस उम्र भी उनके हौसले पर कोई असर नहीं डाल पा रहा। रामविचार जी को देखना चाहिए, कहीं कुछ उंच-नीच हो गया तो खामोख्वाह बदनामी होगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सांसद बृजमोहन के खासमखास सुनील सोनी को रायपुर दक्षिण से टिकिट मिलने के बाद कांग्रेस क्या दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी?

2. राज्य मानवाधिकार आयोग में किस रिटायर अफसर की पोस्टिंग हो रही है?

रविवार, 20 अक्टूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस

 तरकश, 20 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस

सूरजपुर घटना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बंद कमरे में पुलिस अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उनका प्वाइंटेड प्रश्न था...आरोपी जब एक दिन पहले थाने में आकर धमका गया था तो पुलिस एक्शन में क्यों नहीं आई? अपराधियों के खिलाफ पुलिस सख्ती क्यों नहीं बरत रही? सीएम का गुस्सा जायज था। वैसे गुस्से में आम पब्लिक भी है और सूबे के 70 हजार पुलिस परिवार भी। पुलिस ने बलरामपुर बस स्टैंड में नाटकीय ढंग से मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी की, उससे पुलिस परिवारों का खून खौल गया। आरोपी हाफ पैंट में ठसन के साथ चल रहा था और पुलिस उसके साथ फोटो और वीडियो बनवा रही थी। पुलिस अधिकारियों के मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा तब हो गई, जब हाफ पैंट में ही आरोपी को प्रेस के सामने पेश कर दिया। जिस समय पुलिस बलरामपुर में अपराधी के साथ फोटो सेशन करवा रही थी, उसी दौरान टीवी पर यूपी के बहराइच कांड के जख्मी आरोपी का वीडियो चल रहे थे, जिसमें वह कराह रहा था...साब गल्ती हो गई, अब कभी ऐसा नहीं होगा। एनकाउंटर में दोनों के पैर में गोली लगी थी। और हमारी छत्तीसगढ़ की पुलिस...? बताते हैं, मुख्य आरोपी को बचाने उसके पुलिसिया खैरख्वाह एक्टिव हो गए थे। योजनाबद्ध ढंग से उसे गढ़वा से बुलाया गया, यह गारंटी देकर कि कुछ नहीं होगा, आ जाओ। फिर स्टोरी प्लांट की गई...गढ़वा से अंबिकापुर आ रहा था। तभी पुलिस को इनपुट मिले और उसे बलरामपुर बस स्टैंड में दबोच लिया गया। पता नहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस में पानी बचा है या नहीं। हेड कांस्टेबल के घर में घुसकर पत्नी और बेटी की हत्या हो जाती है, उसके बाद भी लहू गरम नहीं होता। मुख्य आरोपी के अहसान से दबे सूरजपुर पुलिस का एक धड़ा उसे बचाने में जुट गया है। जाहिर है, सीजी पुलिस के लिए आजकल सबसे बड़ा रुपैया हो गया है...ईमान-धरम सब पीछे।

पुलिस अफसर और जुआ

राजधानी रायपुर से लगे अमलेश्वर में कुछ सीनियर राजपत्रित पुलिस अधिकारी हाई प्रोफाइल जुआ खिलवा रहे थे। खुफिया चीफ अमित कुमार को इसकी भनक लग गई। उन्होंने अधिकारियों को बुलवाकर जमकर हड़काया। दिल्ली से 12 साल बाद छत्तीसगढ़ लौटे अमित हैरान थे कि छत्तीसगढ़ पुलिस को आखिर क्या हो गया है...पैसे के लिए पुलिस इतनी नीचे गिर जाएगी! दरअसल, अतीत में जो हुआ, वह पोलिसिंग को चौपट कर दिया। वर्दी वालों को पैसे की ऐसी लत लग गई कि छत्तीसगढ़ में कौन अफसर काबिल और कौन नाकाबिल...इसका भेद खतम हो गया है। सट्टा और जुआ ने कई उर्जावान अफसरों का कैरियर चौपट कर डाला। हालत यह है कि सरकार एक आईजी लॉ एंड आर्डर बनाना चाहती है मगर इसके लायक कोई अफसर नहीं दिखाई पड़ रहा।

महिला पुलिस और उपयोगिता

छत्तीसगढ़ पुलिस की ट्रेनिंग चौपट हो गई है, उपर से लाखों रुपए खर्च कर ट्रेनिंग हो रही, उसका भी उपयोग नहीं किया जा रहा। सूबे में ढाई-तीन दर्जन महिला डीएसपी, एडि. एसपी होंगी। इनमें से अधिकांश बटालियन या फिर चिटफंड और आईयूसीएडब्लू में पोस्टेड हैं। सवाल उठता है कि पीएससी में सलेक्ट होकर सीट अकुपाई करने वाली महिला पुलिस अधिकारी फील्ड में काम क्यों नहीं करना चाहतीं और पुलिस मुख्यालय पोस्टिंग के समय इस पर गौर क्यों नहीं करता? महिला पुलिस अधिकारी एसी चेंबर, गाड़ी, बंगला और अर्दली से ही संतुष्ट क्यों हो जा रही...पीएचक्यू को इसकी स्टडी करानी चाहिए। हालांकि, इससे इंकार नहीं कि महिला अधिकारियों के लिए व्यवस्थागत खामियां भी है। छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक गृह मंत्री और डीजीपी हुए मगर आज तक किसी ने ये नहीं सोचा कि महिला सिपाही या अधिकारी को फील्ड में ड्यूटी लगाई जाएगी तो वे वॉशरुम कहां जाएंगी। वीआईपी के लिए चलित शौचालय का बंदोबस्त हो जाता है मगर किराये की गाड़ी के नाम पर हर साल कई करोड़ रुपए बहाने वाली पुलिस अपने महिला स्टाफ के लिए एक मोबाइल टॉयलेट नहीं खरीद सकती। दूसरा, पीएचक्यू को ये भी देखना चाहिए कि पुरूष प्रभुत्व सिस्टम में महिला अफसरों के साथ कोई नाइंसाफी तो नहीं हो रही। बहरहाल, समाज में डे-टू-डे महिला अपराध बढ़ रहे, तब महिला पुलिस अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग और जरूरी हो जाती है।

ब्यूरोक्रेसी और रिफार्म

जब देश में अंग्रेजों के टाईम के कानून बदले जा रहे हैं...तब छत्तीसगढ़ का राजस्व विभाग ने तहसीलदारों के आगे घूटने टेकते हुए उन्हें अंग्रेजों की बनाई न्यायालयीन संरक्षण उपलब्ध करा दिया। याने अब बिना विभागीय अनुमति के तहसीलदारों, नायब तहसीदारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। असल में, नौकरशाही के साथ दिक्कत यह है कि सिस्टम के सुधार में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। चूकि, इसमें रिस्क होता है, इसलिए ब्यूरोक्रेसी की सिंगल लाईन होती है...जैसा चल रहा, चलने दो। खैर...छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने राजस्व न्यायालय को समाप्त कर दिया है। मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश जैसे कई राज्यों में ़ऋण पुस्तिका की भी अब आवश्यता नहीं। अनेक ऐसे स्टेट हैं, जहां रजिस्ट्री होते ही आटोमेटिक नामंतरण हो जाता है। और इधर छत्तीसगढ़ में....। राजस्व महकमे के मुलाजिमों से वैसे भी पब्लिक त्राहि माम कर रही है। खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी एकाधिक बार स्वीकार कर चुके हैं कि सबसे अधिक उनके पास राजस्व विभाग की शिकायतें आती है। कलेक्टर कांफ्रेंस में पहली बार अबकी राजस्व, बंटवारा और नामंतरण का एजेंडा सबसे उपर रखा गया था। बावजूद इसके राजस्व विभाग ने राजस्व अधिकारियों के आगे नतमस्तक हो गया, तो फिर क्या कहा जा सकता है।

फिर बर्खास्त क्यों नहीं?

जाहिर है, राजस्व अधिकारी आएं-बाएं फैसला पारित करते हैं और न्यायालय की आड़ में बच जाते हैं। उनके गलत फैसलों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। राजस्व विभाग में कोई विजिलेंस सेल नहीं है। जबकि, ज्यूडिशरी में निगरानी का अपना एक सिस्टम है। जजों को विशेष संरक्षण मिला है मगर वो अगर गलत फैसला देते हैं, तो हाई कोर्ट के राडार पर आते हैं और साल में 10-12 जजों की बर्खास्तगी भी होती है। किन्तु गलत फैसले के लिए आपने कभी एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार को बर्खास्त होते देखा है? जब दोषपूर्ण फैसलों पर राजस्व अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं तो फिर उन्हें विशेष संरक्षण क्यों? सिस्टम को इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि, सबसे अधिक अगर किसी विभाग में करप्शन है तो वह राजस्व विभाग है। पिछले हफ्ते एक महिला आईएएस ने किसी रिश्तेदार के नाम पर एक जमीन का नामंतरण कराया। उन्हें नामंतरण और सीमांकन के लिए दो लाख रुपए देने पड़े, तब जाकर काम हो पाया। दरअसल, अंग्रेजी शासन के प्रारंभ में कलेक्टरों को फांसी देने का अधिकार होता था। बाद में ये पावर ले लिया गया। मगर सिविल मामलों का अधिकार इसलिए उनके पास यथावत रखा क्योंकि, उस समय लगान से ही सरकार को मुख्य राजस्व प्राप्त होता था। उस समय सरकार के पास पैसे होते नहीं थे। इसीलिए कलेक्टर नाम पड़ा...रेवेन्यू कलेक्ट करने वाला। राजस्व अमलों को न्यायालयीन अधिकार करप्शन को ढकने का एक बड़ा प्रोटेक्शन बन गया है।

आईएएस की पोस्टिंग

2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया अगले महीने छुट्टी से लौट आएंगे। वे एक सितंबर को सात साल का डेपुटेशन कंप्लीट कर दिल्ली से लौटे थे। ज्वाईन करने के बाद वे दो महीने के अवकाश पर चले गए थे। अगले महीने वे लौटेंगे तो सचिव स्तर पर एक सर्जरी होगी। कटारिया चूकि भारत सरकार से लौट रहे हैं, इसलिए उन्हें ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। कटारिया कवर्धा, रायगढ़ और बस्तर के कलेक्टर के साथ ही नगर निगम कमिश्नर रह चुके हैं। निगम कमिश्नर के तौर पर रायपुर में मंत्रालय, मोतीबाग, बस स्टैंड के आसपास के बेजा कब्जा हटाने में अमित की अहम भूमिका रही।

पिंगुआ को वेट

एसीएस मनोज पिंगुआ के पास इस समय चार विभाग हैं। गृह, जेल, हेल्थ और मेडिकल एजुकेशन। छत्तीसगढ़ लेवल के अन्य राज्यों में इन चारों विभाग के लिए चार अलग-अलग सिकरेट्री होते हैं। रजत और रोहित यादव के दिल्ली से लौटने पर हुई सर्जरी में हेल्थ से पिंगुआ से हेल्थ हटने की चर्चाएं थी मगर ऐसा हुआ नहीं। अब अमित कटारिया छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं तो फिर कहा जा रहा कि उन्हें हेल्थ दिया जाएगा। मगर अंदर से जो खबरें आ रही, उसके मुताबिक पिंगुआ को विभागों के लोड से हल्का होने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। क्योंकि, अमित को एक डिप्टी सीएम का विभाग मिलने वाला है।

बिफोर प्रमोशन

छत्तीसगढ़ में सचिवों की भरमार हो गई है मगर प्रमुख सचिव स्तर पर अधिकारियों की भारी कमी है। इसको देखते चर्चा है 2000 बैच के साथ ही 2002 बैच का पिं्रसिपल सिकरेट्री पद प्रमोशन दे दिया जाएगा। मंत्रालय में सिस्टम का बैकबोन होता है। याने क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो मध्यक्रम के बल्लेबाज। छत्तीसगढ़ में सिर्फ दो ही पीएस हैं। निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। गौरव द्विवेदी, मनिंदर कौर द्विवेदी और सुबोध सिंह पीएस हैं मगर वे इस समय सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। 99 बैच के बोरा पिछले साल प्रमुख सचिव बने थे। उनके बाद 2000 बैच में शहला निगार हैं। जनवरी में शहला भी पीएस बन जाएंगी। उनके बाद 2001 बैच खाली है। 2002 में डॉ0 रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह हैं। प्रमुख सचिव के पोस्ट भी काफी हैं। सो, समझा जाता है शहला के साथ रोहित और कमलप्रीत भी प्रमुख सचिव बन जाएंगे। इससे पहले कई बार ऐसा हो चुका है जब समय से पहले अफसरों को प्रमोशन दिया गया। सीके खेतान और आरपी मंडल को छह महीने पहले प्रमुख सचिव बना दिया गया था। तो पिछली सरकार में रेणु पिल्ले को छह महीने पहले एसीएस बनाया गया तो सुब्रत साहू डेढ़ साल पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे। प्रमुख सचिव की संख्या बढने पर सरकार के पास विकल्प रहेगा कि वह कुछ महत्वपूर्ण विभागों में सचिव के उपर प्रमुख सचिव पोस्ट कर दें। मध्यप्रदेश में चूकि अधिकारियों की संख्या काफी है, इसलिए वहां लगभग सारे विभागों में प्रमुख सचिव रहते हैं। कई में सिकरेट्री, प्रिंसिपल सिकरेट्री के उपर एडिशनल चीफ सिकरेट्री भी होते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऋता शांडिल्य पीएससी की कार्यकारी अध्यक्ष बनी रहेंगी या किसी शिक्षाविद को पूर्णकालिक चेयरमैन बनाया जाएगा?

2. मुख्यमंत्री के बाद क्या अब मंत्री और अधिकारी भी नया रायपुर जाएंगे रहने?


शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सीएम विष्णु देव ने बदली जांच कमेटी

 तरकश, 6 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

सीएम विष्णु देव ने बदली जांच कमेटी

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 24 सालों से भ्रष्टाचार का गढ़ बना पाठ्य पुस्तक निगम के किताब घोटाले में सरकार इतने गुस्से में है कि दो जांच कमेटी बन गई। दरअसल, स्कूल शिक्षा विभाग इस समय मुख्यमंत्री संभाल रहे हैं। सो, मीडिया में जैसे ही खबर आई...अफसरों ने आनन-फानन में पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी। मगर कमेटी में अफसरों के नाम देखकर सीएम नाराज हो गए। कमेटी में निगम के आईएएस एमडी ही प्रमुख बन गए थे। पापुनि के राप्रसे अधिकारी कैडर के जीएम मेम्बर। मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे एक-एक किताब का हिसाब चाहिए...कि किन परिस्थितियों में लाखों किताबें ज्यादा छप गई। उन्होंने अफसरों से पूछा...कौन आईएएस निःपक्ष जांच कर सकता है। इस पर उन्हें एसीएस रेणु पिल्ले का नाम सुझाया गया। अफसरों ने तुरंत पिल्ले जांच कमेटी का आर्डर निकाल दिया। रेणु पिल्ले का नाम सामने आने के बाद अब अफसरों से लेकर पेपर सप्लायरों तक की नीदें उड़ गई है। क्योंकि, अभी तक पाठ्य पुस्तक निगम में पोस्टिंग ही कमाने के लिए होती थी। एक मोटे अनुमान के तहत निगम के चेयरमैन से लेकर एमडी और जीएम को साल में गिरे हालत में दो खोखा की आवक बन जाती है। अब रेणु पिल्ले की जांच के बाद सबका पोल खुल जाएगा। क्योंकि, वे अपनी नहीं सुनती।

मंत्रियों, अधिकारियों की मुसीबत

नया रायपुर में तीन साल से अफसरों के बंगले बनकर तैयार हैं मगर कोई यहां से जाना चाह नहीं रहा। मंत्रियों में सिर्फ रामविचार नेताम शिफ्थ हुए हैं। मगर अब खुद सीएम विष्णुदेव ने पहल कर आज गृह प्रवेश कर लिया है। आज रात में वे नए रायपुर के नए घर में ही रुक रहे। इस खबर के बाद मंत्रियों और अधिकारियों के चेहरे पर तनाव बढेगा। क्योंकि, जब मुख्यमंत्री चले गए नया रायपुर तो उन्हें भी एक दिन जाना पड़ेगा ही। वैसे भी नई सरकार नए रायपुर की बसाहट को लेकर काफी संवेदनशील है।

अफसरों को प्रोटेक्शन

अच्छे अफसरों को जब सिस्टम से प्रोटेक्शन मिलता है तो वे अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं। मगर जब लगता है कि हालात फेवरेबल नहीं तो फिर उनका हौसला कमजोर पड़ने लगता है। रायपुर जेल प्रकरण में कुछ ऐसा ही हुआ। विपक्ष के दिग्गज नेता इस इश्यू को तीन दिन खेल गए। पहले दिन जेल में आरोपी से मुलाकात...अगले दिन प्रेस कांफ्रेंस और तीसरे दिन सीजेआई को लेटर। मगर सरकार से न किसी मंत्री का बयान आया और न ही सत्ताधारी पार्टी के किसी नेता ने मुंह खोला। यहां तक कि हर बॉल को आगे बढ़कर खेलने वाले विभागीय मंत्री विजय शर्मा भी खामोश रहे। ऐसे में, अफसरों से अच्छा करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। क्योंकि, यह सच्चाई है कि कई बार अच्छा और फास्ट करने के चक्कर में कई बार थोड़ा इधर-उधर हो जाता है। वैसे, अच्छे अधिकारियों को संरक्षण न मिलने वाला मामला पिछली सरकार में भी रहा। वक्त को देखते रीढ़ वाले अधिकारियों ने खुद को समेट लिया था...मालूम था कि जरा सा इधर-से-उधर हुआ तो छुट्टी होने में देर नहीं। अलबत्ता, खोटे सिक्कों ने खूब मौज काटा...सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती से लेकर सप्लाई तक का पैसा कई कलेक्टर खा गए। बहरहाल, पते की बात यह है कि ब्यूरोक्रेट्स तभी जोखिम लेकर काम करते हैं, जब उन्हें ये भरोसा रहे कि उंच-नीच होने पर उसे समझने वाला आदमी है। वरना, फिर बैकफुट पर रहना मुनासिब समझता है। आखिर, काम करें या न करें...गाड़ी-घोड़ा, बंगला, नौकर-चाकर तो 60 बरस तक मिलेगा ही।

कमाल के गडकरी

केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नीतीन गडकरी के कामकाज के स्टाईल के अनेक किस्से वैसे तो सुनने को मिलते हैं मगर 30 सितंबर को दिल्ली में हुई हाई प्रोफाइल मीटिंग को छत्तीसगढ़ के जिन अफसरों ने अटैंड किया, उसे लाइव देखा। गडकरी का छत्तीसगढ़ की सड़क परियोजनों के होम वर्क को देखकर लोग हैरान थे। जितनी जानकारियां छत्तीसगढ़ के लोगों को नहीं थी, उसके ज्यादा गडकरी बिना कोई कागज देखे जुबानी बोल गए। गडकरी को यहां तक पता था कि किन छह जिलों में सड़कों का निर्माण कार्य स्लो चल रहा है। उन्होंने उन जिलों का बकायदा नाम लेकर कहा कि इन जिलों के कलेक्टरों के साथ नियमित रिव्यू कर प्राब्लम को शार्ट आउट किया जाए। ये अलग बात है कि हफ्ता भर बीत गया, अभी तक किसी रिव्यू की खबर नहीं दिखाई पड़ी है।

उल्टा-पुल्टा

गडकरीजी कुछ भी कह लें, छत्तीसगढ़ में सिस्टम अपने हिसाब से ही चलता है। उसका नमूना है, रायपुर-विशाखापत्तनम सिक्स लेन रोड। छत्तीसगढ़ की यह पहली क्लोज डोर सड़क होगी। इसके बन जाने से रायपुर से वाइजेक की 14 घंटे की दूरी सात घंटे में सिमट जाएगी। मगर दो-तीन साल पहले अभनपुर के एसडीएम ने भूखंडों को टुकड़ों में बेचने का ऐसा गुल खिलाया कि नेशनल हाईवे पर 78 करोड़ की चोट बैठ जा रही। एनएच वाले 2022 में रायपुर कलेक्टर से जांच की गुहार लगाई मगर कलेक्टर क्या कर लेंगे, उसमें कई बड़े नेताओं के भी क्लेम हैं। सो, कलेक्टर्स उस फाइल में हाथ नहीं डाल पा रहे। ताजा अपडेट यह है कि जिस दिन गडकरीजी दिल्ली में काम प्रभावित न होने की टिप्स दे रहे थे, उसी दिन किसानों ने एक्सप्रेसवे का काम रोक दिया। बताते हैं, संगठन के एक नेताजी ने अभनपुर के राजस्व अधिकार को फोन कर दिया कि बिना 78 करोड़ मुआवजा मिले बगैर काम प्रारंभ नहीं होना चाहिए। अब आप बताइये...ऐसा उल्टा-पुल्टा काम होगा तो दिल्ली में बैठे गडकरी जी क्या कर लेंगे?

पोस्टिंग के लिए नो वेट

पीएमओ में डेपुटेशन कर छत्तीसगढ़ लौटे आईएएस डॉ0 रोहित यादव को उर्जा विभाग का सिकरेट्री बनाने के साथ उन्हें बिजली कंपनियों के चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है। रोहित ने पीएमओ में पांच साल इंफ्रास्ट्रक्चर डिपार्टमेंट संभाला है, जिसमें 13 विभाग आते हैं। इनमें उर्जा महत्वपूर्ण है। हो सकता है कि इसी को देखते सरकार ने रोहित को बिजली की पूरी कमान सौंप दी। मगर उनकी पोस्टिंग में एक खबर और है कि डेपुटेशन से लौटने के तीसरे दिन विभाग पाने वाले वे पहले आईएएस बन गए हैं। पिछले 20 साल में अपवादस्वरूप सुनिल कुमार को छोड़ दें तो ऐसा याद नहीं कि दिल्ली से लौटने वाले आईएएस को किसी सरकार ने तीन दिन के भीतर पोस्टिंग दे दी हो। अमिताभ जैन, अमित अग्रवाल, गौरव द्विवेदी, सोनमणि बोरा जैसे अनेक नौकरशाहों को महीना भर तक वेट करना पड़ गया था। हालांकि, इस सरकार में मुकेश बंसल और रजत कुमार को भी हफ्ते भर के भीतर पदास्थपना मिल गई थी। चलिए ये अच्छी बात है। सरकारों को डेपुटेशन से लौटने वाले अधिकारियों के प्रति धारणा बदलनी चाहिए। आखिर, वे स्टेट से एनओसी मिलने के बाद ही तो प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं।

मंत्रिमंडल का विस्तार!

तरकश के पिछले स्तंभ में इस बात का जिक्र किया गया था कि सत्ताधारी पार्टी का एक खेमा निगम चुनाव से पहले कुछ आयोगों में नियुक्तियों के साथ ही दो नए मंत्रियों को शपथ दिलाने के पक्ष में है। इस खेमे के नेताओं का मानना है कि सरकार का कामकाज और अच्छा होने के साथ ही कार्यकर्ताओं में एक पॉजीटिव संदेश जाएगा। इसके बाद आयोगों में नियुक्तियां प्रारंभ हो गई है। युवा आयोग के बाद छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग आयोग चेयरमैन का भी आदेश निकल गया है। इसको देखते बीजेपी के विधायकों में मंत्रिमंडल के शपथ को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। मंत्री पद के दर्जन भर से अधिक दावेदार पता लगाने में जुटे हैं कि अंदरखाने में क्या चल रहा है? क्या नए मंत्रियों का शपथ होगा और होगा तो उसका नंबर लगेगा या नहीं?

पार्टी पीछे, लाल बत्ती आगे

जब से सीएम विष्णुदेव ने बोर्ड, आयोगों में पॉलीटिकल नियुक्तियां शुरू की है, बीजेपी नेताओं को रोज रात में लाल बत्ती के सपने आ रहे हैं। नवरात्रि में विशेष पूजापाठ के साथ दिल्ली के भी चक्कर लगाए जा रहे...शायद यहां से नहीं तो कुछ उधर से जुगाड़ निकल जाए। बता दें बीजेपी के नेताओं का इस समय एक सूत्रीय एजेंडा है...किसी तरह किसी बोर्ड या निगम में अध्यक्ष बन जाएं और ये नहीं हुआ तो किसी ठीकठाक बोर्ड-निगम मेम्बर ही सही। यही वजह है, बीजेपी मुख्यालय में देर रात तक पार्टी नेताओं का जमघट लग रहा है। बीजेपी के कई नेता प्रदेश मुख्यालय में ही निवास करते हैं, इसलिए होटलों से तैयार होकर लोग सुबह-सुबह पार्टी मुख्यालय धमक जा रहे। लिहाजा, इस समय बीजेपी पीछे है...लाल बत्ती आगे हो गई है।

अंत में एक सवाल आपसे

1. किस मंत्री का एक गुप्त स्थान में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान चल रहा है?