शनिवार, 8 मार्च 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: सड़क पर अफसर, बंगले में मंत्री

 तरकश, 9 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

सड़क पर अफसर, बंगले में मंत्री

पिछली कांग्रेस सरकार में चीफ सेक्रेटरी का इयरमार्क बंगला एक मंत्री को दिया गया तो ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध रह गई थी. चीफ सेक्रेटरी सिर्फ प्रशासनिक मुखिया नहीं नौकरशाही का गुरुर होता है, उसका आवास छीन जाने पर ब्यूरोक्रेसी पर क़्या गुजरी, उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इसी तरह का एक वाक्या रायपुर से सटे जिले में हुआ है. मंत्री जी के लिए जिला पंचायत के सीईओ को बंगले से रुख़सत होना पड़ गया. चीफ सेक्रेटरी एपिसोड में राहत की बात ये थी कि अजय सिंह पद से हट चुके थे. इसी बीच बंगले का बोर्ड बदल दिया गया. यह मामला ज्यादा संजीदा है. जिला पंचायत सीईओ हाल ही में ट्रांसफर होकर आए थे. सरकारी बंगले में जैसे ही सामान जमाकर उसका सुख लेते, तब तक बेदखली का फरमान आ गया. दूसरा कोई कलेक्टर होता तो अपने सीईओ के सम्मान के लिए कुछ प्रयास करता, मगर उन्होंने तगादा कर और जल्दी मकान खाली करा दिया. ऐसे में सीईओ बेचारे क़्या करते. गृहस्थी का सामान क्लब में रखवा सर्किट हाउस में शरण लिए हैं.

सस्पेंशन...सजा या मजा

सरकारी मुलाजिमों के कदाचरण के केस में सस्पेंशन उस दौर में कार्रवाई मानी जाती थी, जिस समय सामाजिक प्रतिष्ठा नाम की कोई चीज होती थी। अब तो सस्पेंशन में अधिकारियों, कर्मचारियों को आधा वेतन मिल जाता है और जो पैसे कमाए हैं, उसे ठिकाने लगाने के लिए समय भी।

छत्तीसगढ़ में पिछले 24 साल से यही देखने में आ रहा...किसी बड़े स्कैम में अगर कोई अफसर 25-50 करोड़ कमा लिया तो इसमें से दो करोड़ खर्च करके रिस्टेट हो जाएगा और फिर अच्छी पोस्टिंग भी मिल जाएगी। राज्य प्रशासनिक सेवा का अफसर अगर सस्पेंड हुआ तो आगे चलकर आईएएस भी बन जाता है।

अभनपुर के चर्चित भारतमाला परियोजना मुआवजा स्कैम में सस्पेंड हुए एसडीएम जोर-जुगाड़ लगाकर जगदलपुर जैसे नगर निगम कमिश्नर की पोस्टिंग पा गए थे। आगे चलकर वे आईएएस भी बन जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं। रायगढ़ के एनटीपीसी के लारा मुआजवा स्कैम में तत्कालीन एसडीएम सस्पेंड हुए, फरारी काट कर आए। बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गया। अब वे आईएएस भी बन जाएंगे। क्योंकि, उसी क्लीन चिट के आधार पर यूपीएससी ने उनका आईएएस अवार्ड रोका नहीं, बल्कि उनकी सीट रिजर्व रख दिया है।

बहरहाल, ये स्थिति पूरे देश की अफसरशाही की है। करप्शन उजागर होता है, मीडिया में खबरें छपती है...अच्छी सेटिंग नहीं तो अफसर सस्पेंड होता है। उसके बाद बहाल होकर फिर वही काम। छत्तीसगढ़ में कौवा मारकर टांगने का मुहावरा भी फेल हो गया है। दो आईएएस समेत दर्जन भर अफसर इस समय जेल में हैं, उसके बाद कौन सा करप्शन रुक गया। सरकार में बैठे लोगों को अब कुछ नया सोचना पड़ेगा.

राडार पर मंत्रियों के पीएस

10 में से करीब आधे मंत्रियों के यहां ई-ऑफिस पर काम होने लगा है। याने नोटशीट से लेकर आदेश अब ऑनलाईन हो गए हैं। मगर अभी भी कुछ मंत्री इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। कुछ मंत्रियों के पीए नहीं चाहते कि सिस्टम ऑनलाइन हो। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ई-ऑफिस के बाद मंत्रियों के यहां फाइलें रोकी नहीं जा सकेंगी।

इस समय सबसे तेज काम सीएम सचिवालय में हो रहा है। सीएम के यहां फाइलें इतनी फास्ट हो रहीं कि एक से डेढ़ दिन में उसे डिस्पोज कर दिया जा रहा। पीएस टू सीएम सुबोध सिंह खुद देख रहे हैं कि फाइलों में अनावश्यक विलंब न हो। मगर कई मंत्रियों के यहां अभी भी फाइलें डंप हो रही हैं। मंत्रियों के पीए की कारस्तानियां सीएम सचिवालय की नोटिस में है। पता चला है, विधानसभा सत्र के बाद इस पर कार्रवाई होगी। पहले मंत्रियों की नोटिस में इसे लाया जाएगा। यदि इसमें सुधार नहीं हुआ तो जीएडी उनकी छुट्टी करेगा। जाहिर है, शिकायत मिलने पर सरकार इससे पहले दो मंत्रियों के पीएस को हटा चुकी है।

मंत्रियों का प्रदर्शन

पिछले हफ्ते तरकश में एक सवाल था...10 में से आठ मंत्री सरकार के लिए लायबिलिटी हो गए हैं। खैर इस पर चर्चा कभी बाद में। अभी हम विधानसभा में मंत्रियों के प्रदर्शन की बात कर रहे हैं। सदन में जो हाल भूपेश बघेल के मंत्रियों का था, वही हाल विष्णुदेव मंत्रिमंडल का है। खासकर, तीन मंत्रियों का परफार्मेंस इतना खराब है कि प्रश्नकाल में उनकी निरीह हालत देखकर दया आ जाएगी। तीनों हर सवाल में घिरते हैं। इस सत्र में मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल का प्रदर्शन काफी सुधरा है। उनका हेल्थ विभाग जैसा भी हो मगर सदन में कंफिडेंस के साथ जवाब देने में वे निपुण हो गए हैं।

यही वजह है कि मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियांं की गैर मौजूदगी में श्यामबिहारी को प्रश्नकाल में जवाब देने का दायित्व सौंपा जा रहा है। 7 मार्च के प्रश्नकाल पर सबकी नजर थी। सवाल सबसे चर्चित स्कैम सीजीएमएससी के रीएजेंट खरीदी से जुड़ा था। इस पर वे अजय चंद्राकर जैसे विधानसभा के सबसे फास्ट बॉलर को झेल गए।

विपक्ष के विधायकों की बात करें तो बजट सत्र में उमेश पटेल का आश्चर्यजनक ढंग से प्रादुर्भाव हुआ है। उमेश बिना उत्तेजित या धैर्य खोते हुए टू द प्वाइंट प्रश्न पूछ रहे हैं, बल्कि दूसरे के प्रश्नों में पूरक प्रश्न भी कर रहे। बुजुर्ग महिलाओं को महतारी वंदन में 500 रुपए काटकर भुगतान करने का उन्होने प्रश्न उठाया और महिला विकास मंत्री ने कहा कि वे इसे ठीक कराएंगी। इसी तरह सत्ता पक्ष के सुशांत शुक्ला ने भी सर्पदंश की आड़ में करोड़ों के मुआवजा बांटने का मुद्दा उठाकर ध्यान खींचा।

मई के बाद बड़ी सर्जरी?

जैसी खबरें थीं, सरकार ने दो कलेक्टरों ही की पोस्टिंग की। वो भी दोनों जिलों के कलेक्टरों के डेपुटेशन पर जाने की वजह से। बहरहाल, 21 मार्च तक विधानसभा का बजट सत्र चलेगा। 24 को राष्ट्रपति आ रही हैं। 30 मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी आएंगे। इसके बाद अप्रैल में सरकार गांवों में विकास कार्यों की मानिटरिंग से संबंधित योजना पर विचार कर रही है। इसमें मुख्यमंत्री के साथ ही अफसरों की चौपाल लगाई जा सकती है। चौपाल योजना यदि शुरू हुई तो फिर कलेक्टर लेवल पर बड़ी सर्जरी फिर मई के बाद ही होगा। तब तक इक्का-दुक्का, या कोई हिट विकेट हो जाए, तो बात अलग है।

आईजी पोस्टिंग

ब्यूरोक्रेसी के संदर्भ में विष्णुदेव साय सरकार की खास बात यह रही कि भारत सरकार से डेपुटेशन से जो भी आईएएस, आईपीएस अफसर लौटे, उन्हें महत्वपूर्ण पोस्टिंग से नवाजा गया। अमित कुमार से लेकर सोनमणि बोरा, रोहित यादव, मुकेश बंसल, रजत कुमार, अमरेश मिश्रा, अविनाश चंपावत सभी को अच्छी पोस्टिंग मिली। सीबीआई से लौटे आईपीएस अमित कुमार को खुफिया चीफ बनाया गया तो एनआईएस से आए अमरेश मिश्रा को रायपुर रेंज आईजी के साथ खुफिया चीफ की जिम्मेदारी दी गई। मगर सीबीआई से लौटे अभिषेक शांडिल्य को अभी इंटेलिजेंस में बिठाकर रखा गया है। इंटेलिजेंस में जबकि आईजी का कोई पद नहीं है। अभी तक आईजी या एडीजी लेवल के इंटेलिजेंस चीफ होते थे, जिनके नीचे एकाध डीआईजी, एआईजी का सेटअप था। मगर पांच साल सीबीआई में काम कर के लौटे अभिषेक की तरह गृह विभाग का ध्यान कैसे नहीं जा रहा, आश्चर्य की बात है। वैसे संभावना है, विधानसभा सत्र तथा प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर विजिट के बाद आईजी लेवल पर कुछ तब्दिलियां की जाए, उसमें अभिषेक शांडिल्य को किसी रेंज में पोस्टिंग मिल जाए।

लाल बत्ती और अटैची

विधानसभा सत्र के बाद निगम, मंडलों में नियुक्तियां होंगी. अब कोई ब्रेकर भी नहीं है. पंचायत चुनाव तक निबट गया है. नगरीय और पंचायत दोनों मे रिजल्ट भी अच्छे आएं हैं, सो अब इसे और टालने की गुंजाईश नहीं हैं. बीजेपी के भीतर भी लाल बत्ती को लेकर सरगर्मिया बढ़ गई है. पार्टी के लिए पसीना बहाने वाले लोग तो लाइन में हैं ही, कुछ ठेकेदार और कारोबारी नेता अटैची लेकर नेताओं के चौखटो पर दस्तक दे रहे हैं. इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें पैसा नहीं कमाना. उन्हें स्टेटस सिम्बल के लिए लाल बत्ती चाहिए.

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूखाग्रस्त माना जाने वाले सरकारी प्रेस की रेटिंग किस आईएएस अफसर ने बढ़ा दी?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि सरकार आईएएस रेणु पिल्ले को मुख्य सचिव बनाने जा रही है?

शनिवार, 1 मार्च 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: तरकश से खुलासा

 तरकश, 2 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

तरकश से खुलासा

पिछले हफ्ते के तरकश (Tarkash) स्तंभ में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग में स्टेट इलेक्शन कमिश्नर बनने का जिक्र था। उसका लब्बोलुआब ये था कि फरवरी 2026 में अजय सिंह के रिटायर होने के बाद अमिताभ के सामने राज्य निर्वाचन आयुक्त का बेहतर विकल्प रहेगा।

तरकश की इस पोस्ट के बाद ब्यूरोक्रेसी से एक बड़ी जानकारी निकलकर सामने आई कि राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद अब छह साल या 66 वर्ष वाला नहीं रहा। पिछली सरकार में पता नहीं कब, इसे एक साल बढ़ाकर 67 कर दिया गया। अगर 66 साल की एज लिमिट होती तो अजय सिंह फरवरी 2026 में रिटायर हो जाते।

मगर अब 67 करने के साथ ही छह महीने अतिरिक्त का भी प्रावधान कर दिया गया है। अतिरिक्त इसलिए कि उस पद के काबिल कोई नहीं मिला तो छह महीने तक उन्हें कंटीन्यू किया जा सके। तभी ठाकुर राम सिंह साढ़े सात साल तक इस पद पर रह लिए। वैसे ठाकुर राम सिंह पोस्टिंग के मामले में पूरे कैरियर में बेहद किस्मती रहे।

रमन सिंह सरकार में रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और रायगढ़ जिले की कलेक्टरी की। बिना ब्रेक इन चारों बड़े जिलों में वे 9 साल कलेक्टर रहे। इस रिकार्ड को कोई डायरेक्ट आईएएस न तोड़ पाया और न आगे कोई ब्रेक कर पाएगा। आईएएस से रिटायर होने के बाद रमन सरकार ने उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया। बाद में भूपेश बघेल सरकार आई तो उन्हें दुर्ग के कलेक्टर रहने का लाभ मिल गया।

डीडी सिंह सीएम सचिवालय में रहने के बाद भी हाथ मलते रह गए। और ठाकुर राम सिंह के लिए जीएडी से एक साल के लिए इस पद का कार्यकाल बढ़ाने का आदेश निकल गया। फिर छह महीने का बोनस भी। ऐसे में, अमिताभ जैन के लिए अब मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा कोई और विकल्प नहीं।

नए माफिया की इंट्री

छत्तीसगढ़ मेडिकल कारपोरेशन के एक एमडी ने बस्तर में बांस की ट्रांसपोर्टिंग करने वाले छोटे व्यवसायी को जमीन से उठाकर एक हजार करोड़ का आसामी बना दिया था। हालांकि, वक्त ने उसे अब सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। मगर अफसर भी कम थोड़े हैं। अब दूसरा चोपड़ा बनाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है।

नए मेडिकल माफिया का भोपाल से ताल्लुकात है। दो-एक साल पहले तक मध्यप्रदेश के हेल्थ विभाग में उसकी तूंती बोलती थी। मगर मोहन यादव की नई सरकार ने उसके खिलाफ मुकदमा कायम कर खेल खतम कर दिया। चूकि छत्तीसगढ़ में पुराने माफिया के रहते उसकी इंट्री नहीं हो सकती थी, सो उसके जेल जाने के बाद नए माफिया के रास्ते खुल गए।

सीजीएमएससी के अफसरों ने उसके लिए जगह तैयार करनी शुरू कर दी है। 44 लाख लोगों की सिकलसेल जांच के लिए न केवल पॉलिसी बदल दिया बल्कि टेंडर में ऐसे क्लॉज डाल दिए हैं कि भोपाल वाले के अलावा किसी और को नहीं मिल सकता।

सवाल यह है कि जब 80 लाख लोगों की इन हाउस सिकलसेल जांच हो चुकी थी तो उसका पैटर्न बदलकर पीपीपी मोड क्यों किया गया? फिर अजीबोगरीब शर्त...ज्वाइंट वेंचर वाली पार्टी ही इसमें अप्लाई कर सकती है। भोपाल वाली पार्टी ने ज्वाइंट वेंचर बनाकर रखा है। टेंडर में ऐसे कई शर्त रख दिए गए हैं, जो इस बात की चुगली कर रही कि किसी नए माफिया को छत्तीसगढ़ में स्थापित करने की तैयारी है।

हेल्थ में त्राहि माम

हेल्थ विभाग के डिरेल्ड सिस्टम को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने भले ही अमित कटारिया को स्वास्थ्य सचिव बना दिया। बावजूद इसके विभाग की भर्राशाही कम नहीं हो रही। जिलों के सीएमओ और सिविल सर्जन त्राहि माम कर रहे हैं। नेताओं के लोगों ने रैकेट बनाकर लूट मचा दी है...हर जिले में वसूली एजेंट। हर किसी को महीना चाहिए या फिर सप्लाई का आर्डर। दोनों में से कोई एक नहीं हुआ तो फिर सीएमओ, सिविल सर्जन को अगली लिस्ट में हटाने की चेतावनी।

ताज्जुब इस बात का है कि सीजीएमएससी या हेल्थ डायरेक्ट्रेट से उन्हें अ्रस्पतालों के रिक्वायरमेंट की लिस्ट कैसे मिल जा रही? वे लिस्ट लेकर पहुंच जा रहे...आप सीजीएमएससी को पैसा ट्रांसफर कीजिए, बाकी जेम पोर्टल को वे देख लेंगे।

सुबोध की चुनौती

पीएस टू सीएम सुबोध सिंह करप्शन रोकने के लिए ऑनलाइन वर्किंग पर जोर देते रहे हैं। माइनिंग और बिजली विभाग को उन्होंने ही ऑनलाइन किया था। राजस्व को भी उन्होंने पटरी पर लाने का प्रयास किया था मगर तब तक उनके डेपुटेशन को हरी झंडी मिल गई।

बहरहाल, उनके लिए बड़ी चुनौती होगी कि छत्तीसगढ़़ में ऑनलाइन सिस्टम भी करप्शन से अछूता नहीं रह गया है। जेम और भुईया पोर्टल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। भुईया पोर्टल लाया ही इसलिए गया था कि पटवारियों की कारगुजारी रुक जाए। मगर इसमें क्या हुआ...विधानसभा में सबने देखा। विधानसभा अध्यक्ष डॉ0 रमन सिंह को तल्ख नसीहत देनी पड़ गई...मंत्रीजी सिस्टम को वेंटिलेटर पर जाने से पहले ठीक कर लीजिए।

दरअसल, भुईया के जरिये पटवारी और तहसीलदार मालामाला हो रहे हैं। दस्तावेजों में कृत्रिम त्रुटि कर आम आदमी का जेब काटो। इसी तरह खटराल सप्लायरों के आगे बेचारा जेम पोर्टल असहाय नजर आ रहा। जेम की तोड़ के लिए सप्लायरों ने तीन-चार कंपनियां बना लिया है। इसमें होता ऐसा है कि टेंडर निकालने से पहले ही विभागों में सेटिंग हो जा रही...ये क्लॉज डाल दीजिएगा, बाकी हम देख लेंगे।

फिर अपनी ही तीनों कंपनियों से टेंडर डलवा काम हथिया लिया जा रहा। हेल्थ, सीजीएमएससी से लेकर सभी विभागों की खरीदी में ऐसा ही हो रहा। सरकार जेम से सरकारी खरीदी का ढिढोरा पिटती है, उधर जेम अवैध को वैध करने का पोर्टल बनकर रह गया है। सुबोध को इसे नोटिस में लेनी चाहिए।

सीएम के तेवर और संदेश

विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर सीएम विष्णुदेव साय के घंटे भर के भाषण की सत्ता के गलियारों में बड़ी चर्चा है। असल में, मुख्यमंत्री ने जिन कठोर शब्दों का प्रयोग किया, वह उनकी स्थापित छबि से मेल नहीं खाता।

पीएससी स्कैम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सिविल सेवा के अफसर शासन में सरिया की तरह होते हैं। पिछली सरकार ने सिविल सर्विस में भ्रष्टाचार का नकली सरिया लगा दिया गया। इशारे में उन्होंने महाभारत के पात्रों की तुलना करते हुए प्रोटेक्शन मनी और महादेव ऐप्प की भी बात कर डाली। जाहिर है, सीएम के इस बदले अंदाज में विरोधियों और भ्रष्ट सिस्टम के लिए बड़ा संदेश छिपा है।

राजा की दंड व्यवस्था

मनु स्मृति के मुताबिक राजा को दंड का रुप माना गया है...दंड से राजा प्रजा का शासन करता है...दंड से प्रजा का रक्षा होती है...दंड से प्रजा खुश रहती है। मगर छत्तीसगढ़ के साथ दुर्भाग्य यह रहा कि राज्य बनने के बाद दंड की बजाए भ्रष्टचारियों, धतकरमियों के साथ अतिशय उदारता बरती गई।

स्थिति यह है कि हर शाख पर उल्लू बैठा है...जिस विभाग में हाथ डालिये, 50-100 करोड़ का भ्रष्टाचार निकल आएगा। न मंत्री पर कोई कंट्रोल है और न अफसरों पर। जाहिर है, पीएससी 2003 में अगर चेयरमैन और एग्जाम कंट्रोलर के साथ कठोर कार्रवाई की गई होती तो पीएससी 2021 में सैकड़ों युवाओं का भविष्य खराब करने की टामन सोनवानी की हिम्मत नहीं होती।

पीएमटी परीक्षा का फर्जी टॉपर डॉक्टर बन मजे में नौकरी कर रहा है तो 12वीं बोर्ड की फर्जी टॉपर स्कूल में मास्टरनी बन गई। 2010 के रायगढ़ एनटीपीसी लैंड मुआवजा स्कैम में तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल ने एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के खिलाफ 2700 पेज की जांच रिपोर्ट सरकार को भेज सस्पेंड करवाया था। तत्कालीन एसपी राहुल भगत ने एफआईआर दर्ज कराया था। इस मामले में तीर्थराज को क्लीन चिट मिल गई।

इसका नतीजा यह हुआ कि अभनपुर के एसडीएम ने केंद्र के भारतमाला प्रोजेक्ट में 35 करोड़ की जगह 326 करोड़ का मुआवजा घोटाला कर दिया। राज्य बनने के बाद अनियमितता और भ्रष्टाचार के 500 से अधिक केसेज होंगे, जिनमें आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। कार्रवाई हुई भी तो दिखावे वाली। सरकारों को प्रजा को सुखी रहने और अपना औरा स्थापित करने के लिए मनु स्मृति को फॉलो करना चाहिए।

रमन का रिकार्ड

वित्त मंत्री ओपी चौधरी 3 मार्च को दूसरी बार राज्य का बजट पेश करेंगे। बता दें, 24 साल में सबसे अधिक बजट पेश करने का रिकार्ड पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के नाम दर्ज है। अमर अग्रवाल की एक सियासी चूक की वजह से वित्त विभाग रमन िंसंह के पास गया और उसके बाद 2018 तक उन्हीं के पास रह गया। उन्होंने लगातार 12 बजट पेश किया।

अमर ने अगर इस्तीफा नहीं दिया होता तो 15 बजट पेश करने का रिकार्ड उनके नाम होता। अमर के इस्तीफे के बाद वित्त विभाग 17 साल के लिए मुख्यमंत्री के पास चला गया। जाहिर है, 12 साल रमन सिंह और उसके बाद पांच साल भूपेश बघेल ने वित्त संभाला। बहरहाल, रमन के बाद दूसरे नंबर पर भूपेश बघेल हैं। उन्होंने पांच बजट पेश किया। उनके बाद स्व0 रामचंद्र सिंहदेव और अमर अग्रवाल ने तीन-तीन बजट पेश किए।

पीसीसीएफ, वन मंत्री और धोखा

वन मंत्री केदार कश्यप 15 साल मंत्री रहे हैं, इसके बाद भी खुलकर सामने नहीं आ रहे तो इसकी वजह पीसीसीएफ का मैटर तो नहीं है? जाहिर है, सरकार बदलने के बाद तय हो गया था कि नया पीसीसीएफ अपाइंट किया जाएगा। बताते हैं, पीसीसीएफ श्रीनिवास राव ने खुद ही पेशकश की थी कि उन्हें हटाकर वाईल्डलाइफ में पोस्ट कर दिया जाए।

इसके बाद वन मंत्री केदार कश्यप ने सरकार से चर्चा कर अनिल राय को पीसीसीएफ बनाने की नोटशीट चलाई। मुख्यमंत्री से अनुमोदन भी हो गया। मगर दो दिन के लिए एसीएस फॉरेस्ट छुट्टी पर गए और खेला हो गया। दिल्ली से किसी अदृश्य शक्ति का फोन आया, उसके बाद अनिल राय की नोटशीट आसमान खा गया या जमीं निगल गई...कोई पता नहीं चला। उपर से अनिल राय के खिलाफ खबरें भी प्लांट होने लगी।

बताते हैं, इस विश्वासघात से केदार कश्यप का मन टूट गया। हालांकि, अरण्य के विरोध और एसीएस फॉरेस्ट से भिड़-भाड़कर वन मंत्री ने कैबिनेट से पीसीसीएफ के लिए पांच नए पदों का सृजन करा लिया है। मगर जिनको वे नए पीसीसीएफ बनाना चाहते हैं, उनसे भी उनसे वफादारी की उम्मीद नही करनी चाहिए।

वन विभाग के लिए दुर्भाग्य रहा कि पीसीसीएफ की कुर्सी पर मिलनसार और अच्छे व्यक्ति तो कई रहे, मगर विभाग को ताड़ने वाला कोई नहीं मिला। संजय शुक्ला की धमक जरूर थी, अगर वे दो साल पीसीसीएफ रह गए होते तो आज तस्वीर अलग होती। सुनील मिश्रा एक अच्छा नाम हो सकता है मगर वे इंटरेस्टेड नहीं, इसी साल अक्टूबर में उनका रिटायरमेंट है।

ये बनेंगे पीसीसीएफ

कैबिनेट से पीसीसीएफ के पांच अतिरिक्त पदों की मंजूरी मिली है। इसके बाद 93 बैच के कौशलेंद्र कुमार, आलोक कटियार, 94 बैच के अरुण पाण्डेय सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार और ओपी यादव पीसीसीएफ प्रमोट हो जाएंगे। ओपी यादव को वेटिंग प्रमोशन दिया जाएगा। अक्टूबर में सुनील मिश्रा के रिटायरमेंट से खाली पद पर ओपी को प्रमोट किया जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा में अगर अजय चंद्राकर और राजेश मूणत नहीं होते तो फिर विपक्ष का क्या होता?

2. छत्तीसगढ़ के 10 में से आठ मंत्री सरकार के लिए लायबिलिटी क्यों बन गए हैं?