तरकश, 9 मार्च 2025
संजय के. दीक्षित
सड़क पर अफसर, बंगले में मंत्री
पिछली कांग्रेस सरकार में चीफ सेक्रेटरी का इयरमार्क बंगला एक मंत्री को दिया गया तो ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध रह गई थी. चीफ सेक्रेटरी सिर्फ प्रशासनिक मुखिया नहीं नौकरशाही का गुरुर होता है, उसका आवास छीन जाने पर ब्यूरोक्रेसी पर क़्या गुजरी, उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इसी तरह का एक वाक्या रायपुर से सटे जिले में हुआ है. मंत्री जी के लिए जिला पंचायत के सीईओ को बंगले से रुख़सत होना पड़ गया. चीफ सेक्रेटरी एपिसोड में राहत की बात ये थी कि अजय सिंह पद से हट चुके थे. इसी बीच बंगले का बोर्ड बदल दिया गया. यह मामला ज्यादा संजीदा है. जिला पंचायत सीईओ हाल ही में ट्रांसफर होकर आए थे. सरकारी बंगले में जैसे ही सामान जमाकर उसका सुख लेते, तब तक बेदखली का फरमान आ गया. दूसरा कोई कलेक्टर होता तो अपने सीईओ के सम्मान के लिए कुछ प्रयास करता, मगर उन्होंने तगादा कर और जल्दी मकान खाली करा दिया. ऐसे में सीईओ बेचारे क़्या करते. गृहस्थी का सामान क्लब में रखवा सर्किट हाउस में शरण लिए हैं.
सस्पेंशन...सजा या मजा
सरकारी मुलाजिमों के कदाचरण के केस में सस्पेंशन उस दौर में कार्रवाई मानी जाती थी, जिस समय सामाजिक प्रतिष्ठा नाम की कोई चीज होती थी। अब तो सस्पेंशन में अधिकारियों, कर्मचारियों को आधा वेतन मिल जाता है और जो पैसे कमाए हैं, उसे ठिकाने लगाने के लिए समय भी।
छत्तीसगढ़ में पिछले 24 साल से यही देखने में आ रहा...किसी बड़े स्कैम में अगर कोई अफसर 25-50 करोड़ कमा लिया तो इसमें से दो करोड़ खर्च करके रिस्टेट हो जाएगा और फिर अच्छी पोस्टिंग भी मिल जाएगी। राज्य प्रशासनिक सेवा का अफसर अगर सस्पेंड हुआ तो आगे चलकर आईएएस भी बन जाता है।
अभनपुर के चर्चित भारतमाला परियोजना मुआवजा स्कैम में सस्पेंड हुए एसडीएम जोर-जुगाड़ लगाकर जगदलपुर जैसे नगर निगम कमिश्नर की पोस्टिंग पा गए थे। आगे चलकर वे आईएएस भी बन जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं। रायगढ़ के एनटीपीसी के लारा मुआजवा स्कैम में तत्कालीन एसडीएम सस्पेंड हुए, फरारी काट कर आए। बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गया। अब वे आईएएस भी बन जाएंगे। क्योंकि, उसी क्लीन चिट के आधार पर यूपीएससी ने उनका आईएएस अवार्ड रोका नहीं, बल्कि उनकी सीट रिजर्व रख दिया है।
बहरहाल, ये स्थिति पूरे देश की अफसरशाही की है। करप्शन उजागर होता है, मीडिया में खबरें छपती है...अच्छी सेटिंग नहीं तो अफसर सस्पेंड होता है। उसके बाद बहाल होकर फिर वही काम। छत्तीसगढ़ में कौवा मारकर टांगने का मुहावरा भी फेल हो गया है। दो आईएएस समेत दर्जन भर अफसर इस समय जेल में हैं, उसके बाद कौन सा करप्शन रुक गया। सरकार में बैठे लोगों को अब कुछ नया सोचना पड़ेगा.
राडार पर मंत्रियों के पीएस
10 में से करीब आधे मंत्रियों के यहां ई-ऑफिस पर काम होने लगा है। याने नोटशीट से लेकर आदेश अब ऑनलाईन हो गए हैं। मगर अभी भी कुछ मंत्री इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। कुछ मंत्रियों के पीए नहीं चाहते कि सिस्टम ऑनलाइन हो। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ई-ऑफिस के बाद मंत्रियों के यहां फाइलें रोकी नहीं जा सकेंगी।
इस समय सबसे तेज काम सीएम सचिवालय में हो रहा है। सीएम के यहां फाइलें इतनी फास्ट हो रहीं कि एक से डेढ़ दिन में उसे डिस्पोज कर दिया जा रहा। पीएस टू सीएम सुबोध सिंह खुद देख रहे हैं कि फाइलों में अनावश्यक विलंब न हो। मगर कई मंत्रियों के यहां अभी भी फाइलें डंप हो रही हैं। मंत्रियों के पीए की कारस्तानियां सीएम सचिवालय की नोटिस में है। पता चला है, विधानसभा सत्र के बाद इस पर कार्रवाई होगी। पहले मंत्रियों की नोटिस में इसे लाया जाएगा। यदि इसमें सुधार नहीं हुआ तो जीएडी उनकी छुट्टी करेगा। जाहिर है, शिकायत मिलने पर सरकार इससे पहले दो मंत्रियों के पीएस को हटा चुकी है।
मंत्रियों का प्रदर्शन
पिछले हफ्ते तरकश में एक सवाल था...10 में से आठ मंत्री सरकार के लिए लायबिलिटी हो गए हैं। खैर इस पर चर्चा कभी बाद में। अभी हम विधानसभा में मंत्रियों के प्रदर्शन की बात कर रहे हैं। सदन में जो हाल भूपेश बघेल के मंत्रियों का था, वही हाल विष्णुदेव मंत्रिमंडल का है। खासकर, तीन मंत्रियों का परफार्मेंस इतना खराब है कि प्रश्नकाल में उनकी निरीह हालत देखकर दया आ जाएगी। तीनों हर सवाल में घिरते हैं। इस सत्र में मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल का प्रदर्शन काफी सुधरा है। उनका हेल्थ विभाग जैसा भी हो मगर सदन में कंफिडेंस के साथ जवाब देने में वे निपुण हो गए हैं।
यही वजह है कि मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियांं की गैर मौजूदगी में श्यामबिहारी को प्रश्नकाल में जवाब देने का दायित्व सौंपा जा रहा है। 7 मार्च के प्रश्नकाल पर सबकी नजर थी। सवाल सबसे चर्चित स्कैम सीजीएमएससी के रीएजेंट खरीदी से जुड़ा था। इस पर वे अजय चंद्राकर जैसे विधानसभा के सबसे फास्ट बॉलर को झेल गए।
विपक्ष के विधायकों की बात करें तो बजट सत्र में उमेश पटेल का आश्चर्यजनक ढंग से प्रादुर्भाव हुआ है। उमेश बिना उत्तेजित या धैर्य खोते हुए टू द प्वाइंट प्रश्न पूछ रहे हैं, बल्कि दूसरे के प्रश्नों में पूरक प्रश्न भी कर रहे। बुजुर्ग महिलाओं को महतारी वंदन में 500 रुपए काटकर भुगतान करने का उन्होने प्रश्न उठाया और महिला विकास मंत्री ने कहा कि वे इसे ठीक कराएंगी। इसी तरह सत्ता पक्ष के सुशांत शुक्ला ने भी सर्पदंश की आड़ में करोड़ों के मुआवजा बांटने का मुद्दा उठाकर ध्यान खींचा।
मई के बाद बड़ी सर्जरी?
जैसी खबरें थीं, सरकार ने दो कलेक्टरों ही की पोस्टिंग की। वो भी दोनों जिलों के कलेक्टरों के डेपुटेशन पर जाने की वजह से। बहरहाल, 21 मार्च तक विधानसभा का बजट सत्र चलेगा। 24 को राष्ट्रपति आ रही हैं। 30 मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी आएंगे। इसके बाद अप्रैल में सरकार गांवों में विकास कार्यों की मानिटरिंग से संबंधित योजना पर विचार कर रही है। इसमें मुख्यमंत्री के साथ ही अफसरों की चौपाल लगाई जा सकती है। चौपाल योजना यदि शुरू हुई तो फिर कलेक्टर लेवल पर बड़ी सर्जरी फिर मई के बाद ही होगा। तब तक इक्का-दुक्का, या कोई हिट विकेट हो जाए, तो बात अलग है।
आईजी पोस्टिंग
ब्यूरोक्रेसी के संदर्भ में विष्णुदेव साय सरकार की खास बात यह रही कि भारत सरकार से डेपुटेशन से जो भी आईएएस, आईपीएस अफसर लौटे, उन्हें महत्वपूर्ण पोस्टिंग से नवाजा गया। अमित कुमार से लेकर सोनमणि बोरा, रोहित यादव, मुकेश बंसल, रजत कुमार, अमरेश मिश्रा, अविनाश चंपावत सभी को अच्छी पोस्टिंग मिली। सीबीआई से लौटे आईपीएस अमित कुमार को खुफिया चीफ बनाया गया तो एनआईएस से आए अमरेश मिश्रा को रायपुर रेंज आईजी के साथ खुफिया चीफ की जिम्मेदारी दी गई। मगर सीबीआई से लौटे अभिषेक शांडिल्य को अभी इंटेलिजेंस में बिठाकर रखा गया है। इंटेलिजेंस में जबकि आईजी का कोई पद नहीं है। अभी तक आईजी या एडीजी लेवल के इंटेलिजेंस चीफ होते थे, जिनके नीचे एकाध डीआईजी, एआईजी का सेटअप था। मगर पांच साल सीबीआई में काम कर के लौटे अभिषेक की तरह गृह विभाग का ध्यान कैसे नहीं जा रहा, आश्चर्य की बात है। वैसे संभावना है, विधानसभा सत्र तथा प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर विजिट के बाद आईजी लेवल पर कुछ तब्दिलियां की जाए, उसमें अभिषेक शांडिल्य को किसी रेंज में पोस्टिंग मिल जाए।
लाल बत्ती और अटैची
विधानसभा सत्र के बाद निगम, मंडलों में नियुक्तियां होंगी. अब कोई ब्रेकर भी नहीं है. पंचायत चुनाव तक निबट गया है. नगरीय और पंचायत दोनों मे रिजल्ट भी अच्छे आएं हैं, सो अब इसे और टालने की गुंजाईश नहीं हैं. बीजेपी के भीतर भी लाल बत्ती को लेकर सरगर्मिया बढ़ गई है. पार्टी के लिए पसीना बहाने वाले लोग तो लाइन में हैं ही, कुछ ठेकेदार और कारोबारी नेता अटैची लेकर नेताओं के चौखटो पर दस्तक दे रहे हैं. इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें पैसा नहीं कमाना. उन्हें स्टेटस सिम्बल के लिए लाल बत्ती चाहिए.
अंत में दो सवाल आपसे
1. सूखाग्रस्त माना जाने वाले सरकारी प्रेस की रेटिंग किस आईएएस अफसर ने बढ़ा दी?
2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि सरकार आईएएस रेणु पिल्ले को मुख्य सचिव बनाने जा रही है?