शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

तरकश feb 5


बड़ा दांव
मंगलवार को चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन के अचानक छुट्टी पर जाने और सुनील कुमार के प्रभारी सीएस बनने से सत्ताधारी पार्टी के नेताओं से लेकर नौकरशाही तक सन्न रह गई। किसी को यकीं नहीं हो रहा था.....सख्त और ईमानदार अधिकारी सुनील कुमार को नौकरशाही की कमान सौंपने का सरकार भला रिस्क कैसे ले सकती है। नौकरशाही में ही 90 फीसदी से अधिक अफसरों का मानना था कि बनेंगे तो नारायण सिंह ही। आईएएस ही नहीं, मंत्री स्तर पर भी लामबंदी चल रही थी, किसी भी सूरत में सुनील कुमार को सीएस नहीं बनना चाहिए। अलबत्ता, पिछले साल जब सुनील कुमार दिल्ली से यहां आएंगे या नहीं अटकलें लगाई जा रही थी, तो मैंने इसी कालम में लिखा था कि सुनील कुमार आएंगे तथा सीएस बनेंगे। और ऐसा ही हुआ। प्रशासनिक आतंकवाद, अधिकारियों के निकम्मापन, नौकरशाही हावी, सुस्त कामकाज, मंत्रियों के भ्रष्टाचार के जैसे आरोपों से परेशान रमन ने सुनील कुमार को आगे बढ़ाकर बड़ा दांव खेल दिया। चुनाव में अभी डेढ़ बरस है। और सुनील कुमार के प्रभारी सीएस बनने के अगले दिन मंत्रालय का जरा हाल सुनिये, अक्सर गायब रहने वाले सिकरेट्री भी अपने कमरे में थे, लंच से चार बजे लौटने वाले अफसर ढाई बजे मंत्रालय आ गए थे। और हर जगह यही चर्चा....शार्प है......छोड़ेगा नहीं। बैठक की पूरी तैयारी करके जाना होगा। आईएएस ही नहीं, आईपीएस और आईएफएस भी आठ साल में पहली बार सहमे लगे। और सोचिए, अभी डेढ़ बरस है। जनता तो यही चाहती है, अधिकारी निरंकुश न हो और उनकी सुनवाई हो। इसलिए, रमन का यह दांव कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है।
उम्मेन की बिदाई?
राजधानी में उड़ाई गई, उम्मेन नाराज होकर छुट्टी की अर्जी दे दी। मगर यह किसी के गले नहीं उतर रहा। उम्मेन का न तो ऐसा नेचर हैं और न ही नाराज होने का उनका कोई हक बनता है। आखिर साढ़े तीन साल तक सीएस रहे। असल में, उम्मेन कामकाज में ढीले हैं मगर आदमी सीधे हैं। इसलिए पीसीसीएफ आरके शर्मा और डीजीपी विश्वरंजन की तरह सरकार उन्हें नहीं हटाना चाहती थी। और सुनील कुमार के लिए रास्ता साफ करना भी जरूरी था। 15 दिन की माथापच्ची के बाद बीच का रास्ता निकाला गया। बताते हैं, उम्मेन को इशारा हुआ और उन्होंने तुरंत अवकाश की अर्जी भेज दी। उम्मेन की छुट्टी मार्च तक बढ़ सकती है। इसके बाद किसी दिन उनका एनआरडीए के चेयरमैन का आर्डर निकल जाएं तो चैंकिएगा मत। 
शो पीस
छत्तीसगढ़ बनने के बाद यहां आधा दर्जन चीफ सिकरेट्री हुए मगर इसे राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाए कि इनमें से कोई भी अपना छाप नहीं छोड़ पाया। पीजाय उम्मेन तो इनमें सबसे कमजोर साबित हुए। अशोक विजयवर्गीय से भी अधिक। साढ़े तीन साल में तो छह महीने से अधिक छुट्टी पर रहे या फिर दिल्ली और विदेश प्रवास पर। कामकाज की न तो मानिटरिंग की और न ही किसी अधिकारी से पूछा, वे क्या कर रहे हैे। नए जिले के कलेक्टर माथा पकड़कर बैठे हैं मगर उन्होंने उनकी मीटिंग बुलाकर समस्याओं को जानने की भी कोशिश नहीं की। मंत्रालय का आलम मत पूछिए, सिकरेट्री ही अपने-अपने विभाग के सीएस हो गए थे। जिलों का दौरा भी नहीं। उनके दिल्ली दौरे की वजह से कई अहम फाइलें लटक जाती थी। इससे सरकार की नाराजगी भी बढ़ती जा रही थी। एक तो वे बैचमेट का धर्म निभाते हुए नारायण सिंह को लगातार प्रमोट कर रहे थे। हाईप्रोफाइल सरकारी बैठकों एवं डिनरों में जहां नारायण सिंह की जरूरत न होती थी, वहां भी उम्मेन उन्हें बुला लेते थे। सीएम सचिवालय को यह नागवार गुजरता था। सीएम सचिवालय पर लोड भी बढ़ता जा रहा था। रुटीन के जिन कामों के लिए सीएस को सिकरेट्री को बोलना चाहिए, उसके लिए भी सीएम सचिवालय के अधिकारियों को फोन लगाना पड़ता था। पिछले महीने सीएस की गैर मौजूदगी में दो दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारियों की सर्जरी करके सरकार ने मैसेज दे दिया था कि उम्मेन शो पीस ही रह गए हैं।  
सुनील बाबू
अविभाजित मध्यप्रदेश में सुनील कुमार की गिनती तेज और काबिल अधिकारी के रूप में होती थी। अर्जुन सिंह ने उन्हें डायरेक्ट, पब्लिक रिलेशंस बनाया। इसके बाद वे रायपुर के कलेक्टर बनें। एमपी के समय कलेक्टरी के लिए इंदौर के बाद रायपुर जिले के लिए मारामारी होती थी......राज्य में पोस्टेड सुनील कुमार और एमके राउत ही दो आईएएस हैं, जिन्हें रायपुर की कलेक्टरी करने का चांस मिला। ़इससे पहले दो-एक सीएस ऐसे हुए, जिनमें विजन तो था मगर डेसिंग नहीं रहा। पर्सनल एजेंडा की वजह से वे प्रशासन पर पकड़ नहीं बना पाए। उनके साथी आईएएस ही कहते हैं, प्लानर, एक्जीक्यूटर के साथ सुनील कुमार डेसिंग वाले अधिकारी माने जाते हंै। सबसे बड़ा प्लस यह है कि उनका अपना कोई एजेंडा नहीं रहा। हार्ड वर्क, सुबह 10 बजे मंत्रालय के अपने कक्ष में होते हैं और रात आठ के बाद ही लौटना। दफ्तर में ही 15 मिनट का लांच, शार्प एवं फंडा क्लियर। सही तो सही, गलत तो गलत। काम होने वाला होगा तो होगा, नहीं तो एकदम नहीं। समय मिला तो यायावरी में भी कमी नहीं।
फिर वहीं
नंदकुमार पटेल ने पिछले छह महीने में मिहनत करके कांग्रेस को जहां पहुंचाया, महीने भर में वह फिर वहीं पहुंच गई। अलबत्ता, स्थिति और विकट परिलक्षित हो रही है। पार्टी में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से एक साथ कई मोर्चे खुल गए हैं। इंगे्रड मैक्लाउड को आगे करके जोगी खेमा ने विरोध का बिगूल फूंक दिया है। रमन के खिलाफ अजीत जोगी को लड़ाने के मसले पर पटेल को कटघरे में खड़ा करने की कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। चरणदास महंत भी संगठन से बहुत खुश नहीं हैं। याद होगा, विधानसभा में कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव के दो दिन पहले मुख्यमंत्री से सौजन्य भेंट करने महंतजी सीएम हाउस पहंुच गए थे। और अभी, वे भाजपा नेताओं के साथ लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं या फिर सौजन्य मुलाकात। पिछले हफ्ते उन्होंने स्पीकर धरमलाल कौशिक और सीएसआईडीसी के चेयरमैन बद्रीधर दीवान से मिलने उनके बंगले गए। चांपा में उन्होंने नारायण चंदेल के साथ जाज्वल्य समारोह और रायपुर में मत्स्य विभाग के कार्यक्रम में बृजमोहन अग्रवाल और चंद्रशेखर साहू के साथ शामिल हुए। शनिवार को राज्य सरकार द्वारा आयोजित फूड प्रोसेसिंग प्रदर्शनी में महंत सक्रिय थे। अंदरखाने से निकल कर आ रहा है, कांग्रेस के कार्यक्रमों में अहमियत न मिलने से महंतजी खफा हैं। और यहां तक कहा जा रहा है, संगठन को झटका देने के लिए ही वे सरकारी कार्यक्रमों में शरीक हो रहे हैं। ऐसे में रमन सिंह की हैट्रिक भला कौन रोक पाएगा।
चाय की चुस्कियां
रमन सरकार के वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत के बीच सोमवार को हुई गुफ्तगू की राजधानी में बड़ी चर्चा है। रायपुर के बीआईटी मैदान के एक कार्यक्रम में दोनों मंत्री गर्मजोशी से मिले। इसके बाद दोनों को इंडोर स्टेडियम में बास्केट बाल प्रतियोगिता में शिरकत करनी थी। बीआईटी मैदान से निकलते समय महंत ने बृजमोहन से गलबहियां होकर कुछ बात की और फिर उन्हें अपनी गाड़ी में बिठा लिया। शंकर नगर रोड पर एजाज ढेबर के होटल के सामने वीआईपी गाड़ियों के ब्रेक की जोरदार आवाज के साथ काफिला यकबयक रुका तो लोग चैंक गए। दोनों मंत्री गाड़ी से उतरे और होटल के केबिन में जाकर गर्म चाय की चुस्कियां ली। अब सत्ताधारी और विरोधी पार्टी के नेता केबिन में बैठकर चाय की चुस्कियां लें तो जाहिर है, उनके बीच घर-परिवार की बात तो नहीं होंगी। सो, चर्चा लाजिमी है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्रिमंडल की सर्जरी पहले होगी या फिर प्रशासनिक अफसरों की?
2. राहुल शर्मा बिलासपुर के एसपी बनकर क्यों अफसोस कर रहे हैं?

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