शनिवार, 15 सितंबर 2012

टीम अन्ना

भाजपा के बागी ब्राम्हण नेता और रिटायर आईपीएस अधिकारी के बीच जो रिश्ते डेवलप हुए हैं, उस पर इंटेलिजेंस की पैनी नजर है। दोनों के साथ एक रिटायर आईएएस अफसर के भी जुड़ने की खबर है। राजधानी में तीनों की नियमित बैठकी हो रही है। चर्चा ये भी है, सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए आईबी के पुराने नेटवर्क का उपयोग किया जा रहा है। दरअसल, तीनों में एक चीज कामन है, सरकार से नाराजगी। ब्राम्हण नेता सरकार के खिलाफ पहले से, चुटैया बांध रखे हैं। और जिस तरह किरण बेदी दिल्ली पुलिस कमिश्नर न बनने से सिस्टम से खफा थीं और टीम अन्ना ज्वाईन कर लिया था, उसी तरह अपने यहां के आईपीएस भी सम्मानजनक बिदाई न होने के चलते लोकल अन्ना के साथ हो लिए हैं। उनके, एक वरिष्ठ मंत्री से करीबी रिश्ते भी किसी से छिपे नहीं हैं। ऐसे में सरकार बेपरवाह कैसे हो सकती है, इसलिए उनकी एक्टिविटी पर नजर रखना लाजिमी है।

धक्का

पर्यटन विभाग के बोर्ड आफ डायरेक्टर की बैठक विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के लिए अबकी ठीक नहीं रहा। 9 साल के कार्यकाल में पहली बार हुआ, नौकरशाहों ने उनकी एक न सूनी। मंत्रीजी की कोशिश थी, पर्यटन बोर्ड में काम कर रहे 150 से अधिक ठेका कर्मचारियों को फिर एक्सटेंशन मिल जाए। इसके लिए, सदस्य ना होने के बाद भी वे बोर्ड की मीटिंग में पहुंच गए थे......शायद उन्हें देखकर अफसर आब्जेक्शन ना करें। बाकी आईएएस पर हालांकि, इसका प्रभाव पड़ा और चुप रहे, मगर फायनेंस सिकरेट्री और बोर्ड के पदेन सदस्य डीएस मिश्रा अड़ गए। थक-हार कर मंत्रीजी ने बोर्ड के एमडी संतोष मिश्रा को निर्देश दिया.....मिनिट्स में लिख दो, मिश्रा असहमत हैं, बाकी सदस्य सहमत हैं, इसलिए एक्सटेंशन दिया जाए। किन्तु डीएस मिश्रा अभी फुल रोल में हैं। सो, बोर्ड के आईएएस, आईपीएस सदस्य सहम गए, कहीं नुकसान न हो जाए, सो धीमी आवाज में कहना शुरू कर दिया....हम भी असहमत हैं। लिहाजा, एक्सटेंशन का प्रस्ताव पेंडिंग में डाल दिया गया। बताते हैं, नेताओं के नाते-रिश्तेदारों को उपकृत करने या फिर मुद्रा लेकर रखे गए ठेका श्रमिकों की वजह से बोर्ड की माली हालत खराब होती जा रही है। हर महीने इन कर्मचारियों के वेतन पर ही 10 से 15 लाख रुपए जा रहा है। अधिकांश को ऐसी जगह तैनात किया गया है, जहां उनकी कोई उपयोगिता नहीं है।

कोल्ड वार

राज्य सरकार ने फायनेंस सिकरेट्री डीएस मिश्रा पर मेहरबानियों की बरसात करते हुए समय से पहले एसीएस बनाने खातिर डीपीसी तो कर दी मगर डीओपीटी में उनकी गाड़ी अटक गई है। और जब तक केद्र से हरी झंडी नहीं मिलेगी, तय मानिये, मिश्रा का प्रमोशन नहीं होगा। अब फाइल अटकी है, तो इस पर चर्चा तो होगी ही। मंत्रालय में भांति-भांति की बातें हो रही हंै। एक ये भी.......अपने यहां के एक सीनियर आईएएस के बैचमेट डीओपीटी में तैनात हैं और आगे आप समझ जाइये। अब, क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया तो होती है ना, फायनेंस में इन दिनों पंचायत विभाग की फाइलें क्लियर नहीं हो रही है। हो भी रही है तो दस ठो पेंच लगाने के बाद। इसे दो आला नौकरशाहों के बीच कोल्ड वार मानिये। और ये थमने वाला नहीं है। मार्च 2014 तक चलता रहेगा, जब तक सुनील कुमार के बाद चीफ सिकरेट्री कौन होगा, इसका फैसला नहीं हो जाता।

झटका-1

छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश भर के आईएएस अफसरों के लिए गुरूवार का दिन झटका भरा रहा। रिटायरमेंट के बाद आईएएस के सबसे अहम रिहैबिलिटेशन सेंटर, सूचना आयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने अंकुश लगा दिया। अब हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस ही मुख्य सूचना आयुक्त बन पाएंगे। सूचना आयुक्त के लिए भी विधि का जानकार होना अनिवार्य है। सो, आईएएस के लिए अब नो इंट्री समझिए। और जो हैं, उनकी छुट्टी। फैसले की खबर मिलते ही, राज्य के आरटीआई एसोसियेशन ने उसकी कापी शुक्रवार को सुबह सूचना आयोग में दे आई। तब रिटायर आईएएस और वर्तमान सूचना आयुक्त एसके तिवारी किसी मामले की सुनवाई शुरू कर चुके थे। उन्होंने इसे तत्काल रोक दिया। सुप्रीम कोर्ट का भय जो था। बहरहाल, अहम सवाल यह है, सूचना आयोग में जस्टिस के बैठ जाने के बाद सूचना छुपाने वाले अफसरों का क्या होगा।

झटका-2

सड़क से लेकर कोर्ट तक सरकार को घेरने के लिए आक्रमक हो रही कांग्रेस को भी एक झटका लगा है। याद होगा, पीसीसी प्रमुख नंदकुमार पटेल के जन्मदिन पर कविताओं के जरिये तीर छोड़े गए थे, उसमें कांग्रस का आरोप था, सरकारी एजंेसी संवाद के जरिये अखबार में जवाबी कविताएं छपवाई गई थी। और इसके लिए हाईकोर्ट में एक पीआईएल लगी थी। सरकार को इसमें राहत मिल गई है। कोर्ट ने इसे सुनवाई लायक नहंी माना है।

अफसरशाही

संवेदनहीनता देखिए.....बिलासपुर जिले के लोरमी ब्लाक का कोतरी गांव। बेहद गरीब कश्यप परिवार के सात भाइयों में से चार विभिन्न बीमारियों में काल के शिकार हो गए। बचे तीन हैंडीकैप्ड हैं। मां बीमार। बैसाखियों के सहारे बड़ा भाई परमेश्वर, भाई के इलाज के लिए मई में जनदर्शन में सीएम से दो लाख रुपए मांगा। डाक्टर साब ने कागज पर राशि लिखकर नीचे मार्क कर दिया। सीएम हाउस से कोई गरीब खाली हाथ तो आता नहीं। मगर नीचे से कागज गायब हो गया। जनदर्शन में दोबारा गया तो सीएम ने 5 हजार और स्वीकृत किया। यह राशि वेबसाइट पर तो बता रहा है मगर परमेश्वर को आज तक नहीं मिला। मदद के लिए कई बार बिलासपुर कलेक्टर के चैखट पर गया। शुक्रवार को भी साब से मिला। लेकिन हासिल शून्य ही आया। रोते हुए उसने इस स्तंभकार को आपबीती बताई। कोतरी, राज्य के तेज एवं उत्कृष्ट विधायक धर्मजीत सिंह का इलाके में आता है। गुरूवार को उनके जन्मदिन के प्रचार-प्रसार पर लाखों रुपए फूंके गए। मगर परमेश्वर की ओर किसी के हाथ नहीं बढे़। सवाल बड़ा है, आखिर, गरीब आदमी कहां जाएं। वह सुनील कुमार, बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह और सुबोध सिंह के पास तो पहुंच नहीं सकता। और फील्ड के अफसरों में संवेदनाएं बची नहीं है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पिछले हफ्ते वीसी, जोगी और महंत ने कोल ब्लाक पर नवीन जिंदल पर तीखे तीर छोड़े। यह अटैक जिंदल पर था या अपनी ही पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता पर?
2. किस सीनियर आईएएस अफसर पर विभागीय जांच की तलवार लटक रही है?

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