शनिवार, 31 अगस्त 2013

जवाहर को एक्टेंशन

जवाहर श्रीवास्तव को राजभवन में एक साल का एक्सटेंशन मिल गया है। उनका एक साल का संविदा आज खतम हो रहा था। हालांकि, उन्हें सूचना आयुक्त बनाने के लिए कैबिनेट ने 20 अगस्त को आयोग में पोस्ट स्वीकृत किया था। मगर आरटीआई वालों ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सरकार को पत्र लिखकर इसे अवैधानिक करार दिया था। चीफ सिकरेट्री को लिखे पत्र में कहा गया था कि जवाहर की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना होगी। सुप्रीम कोर्ट ने ज्यूडिशरी या विधि विशेषज्ञ को ही सूचना आयुक्त बनाने कहा है। इसके बाद उनका एपीसोड खतम हो गया।

नौकरशाहों का खेल

सूबे के आला नौकरशाहों ने हाउसिंग बोर्ड के साथ मिलकर भूखंड का बड़ा गोलमाल कर डाला। उन्होंने नए रायपुर में मंत्रालय के जस्ट बगल में अवैधानिक ढंग से बड़े-बड़़े प्लाट खरीद डाले। जबकि, हाउसिंग बोर्ड जमीन नहीं बेच सकता। और ना ही एनआरडीए ने नए रायपुर में किसी को जमीन बेचने की इजाजत दी है। मगर समरथ को नहीं दोष गोसाई, वाला मामला है। बताते हैं, सब सुनियोजित तौर पर हुआ। ठेकेदारों को इशारा किया गया, उनके मकान नहीं बनाना है। और बाद में अफसरों ने लिखा कि बोर्ड मकान नहीं बना रहा है, तो जिस स्थिति में है, उसे हमे रजिस्ट्री कर दें। इनमें एक चीफ सिकरेट्री के दावेदार हैं तो एक जल्द ही दावेदार बन जाएंगे। पता चला है, अफसरों ने बोर्ड के एक पूर्व कमिश्नर पर दबाव बनाकर अपना मकसद पूरा कर लिया। दिग्गज नौकरशाहों के आगे आखिर नान आईएएस कमिश्नर क्या करता। मगर राजधानी के कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं को इसकी भनक लग गई है और उन्होंने पीआईएल लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। सो, आने वाले समय में अफसरों की मुसीबतें बढ़ सकती है।

राजतंत्र वर्सेज बलीराम तंत्र?

बस्तर के राजा कमलचंद भंजदेव के भाजपा में शामिल होने से सत्ताधारी पार्टी भले ही बस्तर में अपने को प्लस मानकर चल रही है। मगर इसके खतरे भी कम नहीं है। गौर करने वाली बात है कि राजा के पार्टी में शामिल होने से बस्तर के भाजपाई खुश नहीं हैं। राजा के आभामंडल के सामने बौने पड़ने की आशंकाएं जो है। जगदलपुर में संतोष बाफना की टिकिट पर खतरा मंडराने ही लगा है। सबसे बड़ा खतरा राजतंत्र और बलीराम तंत्र में द्वंद्व छिड़ने का है। जाहिर है, बस्तर में बलीराम कश्यप की एकछत्र सत्ता थी। एक बेटा मंत्री, दूसरा सांसद। विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, सब उन्हीं के थे। हालांकि, बलीराम के निधन के बाद बस्तर में उनके परिवार का प्रभुत्व कम हो रहा था। अब, राजा के भाजपा में आने से नए समीकरण बनने के कयास लगाए जाने लगे हैं। बलीराम कश्यप के लोग अब फिर से एक होने लगे हैं। एक-दूसरे को कमतर साबित करने का प्रयास हुआ तो बस्तर में भाजपा की गणित गड़बड़ा भी सकती है।

ओपनिंग बैट्समैन

राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बनें एआर टोप्पो अपने बैच के ओपनिंग बैट्समैन बन गए हैं। सरकार ने उन्हें सुकमा का कलेक्टर बनाया है। इस बैच में अनिल टुटेजा, एनके शुक्ला और उमेश अग्रवाल जैसे अफसर हैं। मगर टोप्पों पहले नम्बर पर थे और लगता है, सरकार ने वरिष्ठता क्रम के हिसाब से उन्हें मैदान पर उतारा है। दूसरे नम्बर पर टुटेजा और तीसरे पर शुक्ला हैं। अगर कोई कलेक्टर हिट विकेट हो गया तो ठीक, वरना अब चुनाव के बाद ही दोनों के नम्बर लग पाएंगे। यद्यपि, दोनों को 2004 बैच अलाट हुआ है और उनके नीचे के बैच के कई अफसर जिला संभाल रहे हैं।

धमाकेदार वापसी

पिछले छह महीने से वनवास काट रहे राजकुमार देवांगन ने आखिरकार धमाकेदार वापसी की। दो रोज पहले हुए आईपीएस के फेरबदल में उन्हें पीएचक्यू में आईजी ला एंड आर्डर बनाया गया है। पुलिस महकमे में इसे प्रतिष्ठापूर्ण पोस्टिंग मानी जाती है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक यह पद राज्य के शक्तिशाली आईपीएस मुकेश गुप्ता के पास था। इसी साल फरवरी में आईपीएल के समय देवांगन को डायरेक्टर स्पोट्र्स से हटाकर लोक अभियोजन में भेज दिया गया था। ़जाहिर है, जब किसी आईपीएस से नाराजगी की सारी सीमाएं पार हो जाती है, तब उसे लोक अभियोजन में भेजा जाता है। जैसे अभी पवनदेव को भेजा गया है।

वीआईपी जिला

सीएम के गृह जिला कवर्धा में सोनमणि बोरा, सिद्धार्थ कोमल परदेशी और मुकेश बंसल जैसे कलेक्टर रहे हैं। मगर बंसल को अपग्रेड कर रायगढ़ भेजने के बाद कवर्धा में कोई भी कलेक्टर टिक नहीं पा रहा है। एमएस परस्ते बिना खाता खोले आउट हो गए थे। वे ज्वाइनिंग के चैथे दिन ही बदल दिए गए थे। इसके बाद एस प्रकाश को वीआईपी जिले की कमान सौंपी गई। मगर उनका भी वहां जमा नहीं। भाषाई दिक्कतों की वजह से लोगो ने उनकी शिकायतें शुरू कर दी। और हुआ यह कि रायपुर से ट्रक में सामान लेकर कवर्धा जाने के हफ्ते भर के भीतर उनका नम्बर आ गया। प्रकाश के हाथ से राजधानी का आवास भी चला गया और साथ में कलेक्टरी भी। अब पी दयानंद को उनकी जगह पर भेजा गया है। खैर, दयानंद ऐसे आईएएस नहीं हैंै। वे चुनाव के दो महीने पहले सामान लेकर कवर्धा नहीं जाने वाले। चुनाव के बाद क्या होगा, किसने देखा है।

दो के झगड़े में

दो के झगड़े में अक्सर तीसरे को लाभ होता है। मगर अबकी कुछ नया टाईप का हो गया.....दो के  झगड़े में दोनों को लाभ हो गया। मसला है पीसीसीएफ पोस्ट के लिए डीपीसी का। एक पोस्ट के लिए दो दावेदार थे और दोनों में छत्तीस के संबंध थे। शुक्रवार को हुई डीपीसी में दोनों को पदोन्नति के लिए हरी झंडी मिल गई। पहले को एक खाली पोस्ट के लिए और दूसरे को एडवांस में। याने जनवरी में धीरेंद्र शर्मा के रिटायर होने के बाद के लिए। बताते हैं, एक के लिए सरकार भारी दवाब था। मगर एक का होता तो दूसरा शांत नहीं बैठता। इसलिए, दोनों का रास्ता निकाला गया। मगर अब आईएफएस अफसरों को आईएएस के बारे में धारणा बदलना चाहिए। अरसे तक वन विभाग में आईएफएस सिकरेट्री रहे हैं। सीएम सचिवालय में भी आईएफएस पावरफुल रहे हैं। इसके बाद भी डीपीसी सालों से लटकी हुई थी। और अब बैजेंद्र कुमार को प्रींिसपल सिकरेट्री और अमिताभ जैन को सिकरेट्री बनते ही सबके बल्ले-बल्ले हो गए।
अंत में दो सवाल आपसे
1.    पवनदेव को डायरेक्टर लोक अभियोजन बनाने के पीछे वजह क्या है?
2.    रतनलाल डांगी को बिलासपुर से कोरबा का एसपी बनाकर एक तीर से कितने निशाने लगाए गए हैं?

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