शनिवार, 13 सितंबर 2014

तरकश, 14 सितंबर

तरकश, 14 सितंबर

तरकश

सजा के बदले इनाम

जांजगीर के चर्चित मनरेगा घोटाले में एक ब्यूरोके्रट्स की संलिप्तता से आला अधिकारी इंकार नहीं कर रहे हैं। नौकरशाह ने रिलीव होने के दिन पांच करोड़ से अधिक के काम स्वीकृत कर दिए। यही नहीं, उन्होंने एक से बढ़कर एक कारनामेे किए। तेरहवें वित आयोग के पैसे से, बिना पंचायत के प्रस्ताव के करोड़ों रुपए का सीसी रोड बनवा दिया। महानदी के बांध पर 9 लाख रुपए की नाली बन गई। मालखरौदा के देवगांव ग्राम पंचायत में तीन महीने के भीतर एक करोड़ के काम हो गए। झिर्रा पंचायत में तीन महीने में 75 लाख के। जांच हुए तो दो करोड़ के काम 12 लाख के पाए गए। याने एक करोड़ 88 लाख भीतर। यह सिर्फ दो ग्राम पंचायत की बात है। बाकी का आप अंदाजा लगा सकते हैं। इस केस में हुआ क्या? आधा दर्जन संविदा कर्मियों की छुट्टी हो गई। और नौकरशाह को अच्छी जगह पोस्टिंग। याने सजा की बजाए इनाम मिल गया।

लंदन से सतना

नाम जंगल विभाग तो काम भी आखिर कुछ ऐसा ही होगा न। न्यू रायपुर में वल्र्ड लेवल का जंगल सफारी बनाने के लिए आपको याद होगा, वन मंत्री, पीसीसीएफ समेत सात आईएफएस अफसरों का दल 2012 में साउथ आफ्रिका, केन्या और लंदन का जू देखने गया था। ताकि, यहां उसी तरह का जंगल सफारी बनाया जा सकें। दो सप्ताह के सरकारी दौरे पर 25 लाख रुपए से अधिक खर्च आया था। 230 करोड़ रुपए के इस प्रोेजेक्ट का अक्टूबर 12 में शिलान्यास किया गया। तब दावा किया गया था कि एशिया का सबसे बड़ा जंगल सफारी न्यू रायपुर में बनेगा। मगर दो साल में आधी-अधूरी बाउंड्री के अलावा वहां एर्क इंट नहीं रखी गई। ताजा अपडेट यह है कि हाल में डीएफओ आफिस के कुछ अधिकारी मध्यप्रदेश का सतना जू देखने गए थे। सवाल मौजूं है, क्या लंदन और आफ्रिका के बजाए अब सतना माडल का यहां जू बनेगा। अगर ऐसा है तो आफ्रिका और लंदन में लाखों रुपए फूंकने का मतलब क्या था?

आत्ममुग्ध

अंतागढ़ उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी के ऐन मौके पर मैदान छोड़ने को लेकर कांग्रेस ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया। प्रदर्शन के बाद पार्टी के दोनों खेमों के नेता गदगद हैं। संगठन खेमा मुग्ध है कि उसने विरोधी गुट के नेता को प्रदर्शन में शरीक होने दिल्ली जाने बाध्य कर दिया। तो विरोधी गुट के नेता की खुशी का पारावार नहीं है कि उनकी वजह से धरने का एजेंडा चेंज हो गया। पहले, चुनाव आयोग के घेराव का कार्यक्रम था। बाद में वह चेंज होकर रमन सरकार के खिलाफ हो गया। चलिये, इसी तरह कांग्रेसी खुश होते रहे, तो रमन सरकार को कोई दिक्कत नहीं आने वाली।

पहला आईएफएस

एडिशनल पीसीसीएफ एवं हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर संजय शुक्ला छत्तीसगढ़ क्लब के नए सिकरेट्री बनाए गए हैं। शुक्ला पहले आईएफएस सिकरेट्री हैं। वरना, राज्य बनने के बाद अभी तक आईएएस ही इस क्लब के सिकरेट्री बनते आए थे। उनके पहले विकास शील, मनोज पिंगुआ, केडीपी राव और सीके खेतान सिकरेट्री रहे। सिविल इंजीनियरिंग बैकग्राउंड वाले शुक्ला को छत्तीसगढ़ क्लब का सूरत बदलने के साथ क्लब की गतिविधियां बढ़ाने का जिम्मा दिया गया है।

आईआईटी में पेंच?

भिलाई में आईआईटी खुलने में पेंच आ गया है। इसके लिए 600 एकड़ लैंड मांगा जा रहा है। और, भिलाई में एक साथ इतनी जमीन संभव ही नहीं है। सरकार के सामने असमंजस यह है कि वह भिलाई में आईआईटी खोलने के लिए विधानसभा में संकल्प पारित करवा चुकी है। और, तकनीकी शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी सूरत में उनके इलाके में यह प्रतिष्ठित संस्थान खुल जाए, जिससे अगला चुनाव उनके लिए आसान हो जाए। मगर, पर्याप्त लैंड और समीप में एयरपोर्ट होने के चलते एचआरडी के अफसर न्यू रायपुर को तवज्जो दे रहे हैं। ऐसे में आईआईटी कहां बनेगा, इसका ऐलान नहीं हो पा रहा है।

लीडरशीप इंस्टिट्यूट

उच्च शिक्षा विभाग न्यू रायपुर में एक लीडरशीप इंस्टिट्यूट खोलने जा रहा है। इसमें राजनीतिज्ञों के साथ ही विभिन्न सेक्टर के लोग इस संस्थान में दाखिला लेकर सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इस संस्थान में व्यक्तित्व विकास के साथ ही एक लीडर में क्या-क्या गुण होने चाहिए, बताए जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह भाषण देने के कौशल सिखाएं जाएंगे। देश का यह पहला इंस्टिट्यूट होगा। इसमें दीगर राज्यों के लोगों से फीस ली जाएगी मगर छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए यह फ्री रहेगा।

पुरा अब होगा पूरा

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम का ड्रीम प्रोजेक्ट को छत्तीसगढ़ के अफसरों ने भले ही कूड़ा करके दफन कर दिया मगर एनडीए सरकार अब इस योजना को फिर से शुरू करने जा रही है। मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार से इस योजना की जानकारी मांगी है ताकि, उसे शीघ्र लांच किया जा सकें। हालंाकि, योजना का नाम बदलकर अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुरबन योजना किया गया है। रुरबन मतलब रुरल और अरबन। कलाम की योजना थी कि शहरों के आसपास के गांवों में अरबन फैसिलीटी मुहैया कराई जा सकें। जिससे गांवों के लोग शहरों में माइग्रेट ना करें। इससे शहरों पर बोझ कम होगा। लेकिन, कलाम के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद अफसरों का ध्यान भी इस योजना से हट गया। कारण, पीडब्लूडी, पीएचई तरह इसका बजट नहीं था। और, जाहिर है, जिसमें ठीक-ठाक बजट नहीं, उसकी फाइलों को सरकारी मशीनरी कूड़ा में ही डाल देती है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. अजीत जोगी का मंच टूटने पर उनके समर्थकों ने किसकी धुनाई कर दी?
2. मंत्रालय में होने वाली उच्च स्तरीय बैठकों के सीटिंग अरेंजमेंट में इन दिनों सीनियर आईपीएस अफसरों की उपेक्षा क्यों की जा रही है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें