शनिवार, 21 जुलाई 2018

बेटियां, मंत्री और मीडिया

8 जुलाई 2018
यौन प्रताड़ना को लेकर पूरे देश में एक माहौल बना हुआ है। प्रधानमंत्री भी अमूमन हर पब्लिक मीटिंगों में बेटियों की रक्षा का एश्योरेंस दे रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ के कुछ मंत्रियों द्वारा यौन हिंसा के आरोपियों के पक्ष में खड़े होने से लोग विस्मित हैं। पहला मामला एआईजी का था। महिला सब इंस्पेक्टर से लिफ्ट में छेड़छाड़ की जांच के बाद एआईजी को सरकार ने बर्खास्त कर दिया था। लेकिन, रमन कैबिनेट के चार-पांच मंत्रियों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। पिछले एक साल में कैबिनेट की जितनी बैठकें हुई, अमूमन सभी में वे जोर लगाते रहे कि किसी तरह भी अफसर की सर्विस बहाल हो जाए। और, पिछले कैबिनेट से उसकी बर्खास्तगी केंसिल करवा कर ही दम लिए। जरा सोचिए! उस महिला सब इंस्पेक्टर पर क्या गुजर रहा होगा। दूसरा, ताजा मामला महासमुंद का है। जिस प्रकरण में विधायक और एसपी के बीच विवाद हुआ, उसमें मूल घटना ही गौण हो गई। मामला था गरीब बच्चियों के साथ छेड़खानी का। विधायकजी छेड़खानी करने वालों के पक्ष में थाने पहुंच गए। उनके लिए पुलिस की लाठियां भी खाई। लेकिन, वास्तव में कलयुग आ गया है.....कांग्रेस ने भी विपक्ष का धर्म नहीं निभाया। उल्टे विधायक की पिटाई को ही इश्यू बना दिया। उपर से रही-सही कसर डा0 रमन सिंह के विद्वान मंत्रियों ने पूरी कर दी। कैबिनेट में यौन हिंसा को साथ देने वालों के लिए एक बार फिर खड़े हो गए। सरकार ने भी चुनावी वर्ष में उन्हीं का साथ दिया। मंत्रियों के आगे हथियार डाल दिया। दरअसल, जिन बच्चियों के साथ छेड़खानी हुई, वे गरीबों की बेटियां थीं। लिहाजा, मीडिया के लिए उसमें टीआरपी नहीं दिखा। टीआरपी आईपीएस की दबंगई और विधायक की पिटाई में थी। ये तो हाल है, लोकतंत्र को सुरक्षित रखने का दावा करने वाले इन कथित स्तंभों का। बाकी आप समझ सकते हैं। 

केंद्र में मंत्री


छत्तीसगढ़ के एक मंत्री के केंद्र में जाने की अटकलें बड़ी तेज है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि केंद्र में रिजल्ट देने वाले मंत्रियों की कमी की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरुप काम नहीं हो रहा है। असल में, जिन मंत्रियों पर मोदी ने भरोसा किया, वे नतीजा नहीं दे पा रहे हैं। इसको देखते पीएम मोदी बीजेपी शासन वाले राज्यों से आउटस्टैंडिंग पारफारमेंस वाले करीब आधा दर्जन मंत्रियों को केंद्र में लेने पर विचार कर रहे है। इनमें अपने प्रदेश के भी एक वरिष्ठ मंत्री का नाम चर्चा में बताया जा रहा है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि चर्चा सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रहेगी या किसी अंजाम तक पहुंचती है।

नो इंट्री?


जोगी कांग्रेस के एक नेता की इन दिनों बीजेपी प्रवेश की चर्चा बड़ी जोर है। कहने वालों का दावा है, नेताजी का नई पार्टी में मन नहीं लग रहा है...भविष्य को लेकर आशंकित हैं। उन्हें इस बात का इल्म हो गया है कि बिना सिंबल वाली पार्टी से उनका विधायक बनना नामुमकिन है। लेकिन, लाख टके का सवाल है, बीजेपी भला क्यों चाहेगी कि जोगी कांग्रेस कमजोर पड़े। सो, नेताजी का बीजेपी में नो इंट्री ही समझिए।

तकरार के बाद मिठास


विधायक अमित जोगी विधानसभा में साढ़े चार साल तक निशाने पर रहे। उनके साथ टोका-टोकी होती रही। स्पीकर ने तो एक बार छोटे जोगी के ड्रेस पर भी गंभीर टिप्पणी कर दी थी। दोनों के रिश्ते में इस कदर तल्खी बढ़ गई थी कि अजीत जोगी को आस्तिन चढ़ानी पड गई....उन्होंने ऐलान किया था कि वे गौरीशंकर के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। लेकिन, मानसून सत्र के दौरान तकरार मिठास में बदलती दिखी। सत्र शुरू होने से दो रोज पहिले ही स्पीकर दिल्ली में अजीत जोगी से मिलकर आ गए थे। सत्र में भी अमित जोगी को अबकी बोलने के खूब मौके मिले। वो भी पुचकारने के अंदाज में। संबंधों में लाई जा रही इस मिठास के पीछे कसडोल को सुरक्षित करने की कवायद तो नहीं है।     

निबटाने की ट्रेनिंग


पुलिस अफसरों के इकलौते ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में लगता है, इन दिनों एक-दूसरे को निबटाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। दो गुटों में बंट चुके चंद्रखुरी पुलिस एकेडमी में एक सूत्रीय एजेंडा पर काम हो रहा है। पिछले महीने एक एडिशनल एसपी के खिलाफ कई प्रशिक्षु महिला डीएसपी ने भांति-भांति की शिकायतें कीं। तो पिछले हफ्ते लिखित परीक्षा में नकल करते तीन महिला डीएसपी समेत चार प्रशिक्षु अफसर पकड़ लिए गए। स्कूल, कालेजो ंकी तरह उनका बकायदा नकल प्रकरण बनाया गया। पुलिस अकादमी में नकल आज से नहीं हो रहा। जब से यह खुला है, तब से वहां बहुत कुछ चल रहा है। लेकिन, सवाल यह है कि नकल पकड़ने का ध्यान अफसरों को इस समय क्यों आया? कहीं निबटने, निबटाने की कार्रवाई तो नहीं? 


कार्यवाहक डीजीपी


सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद किसी भी स्टेट में अब कार्यवाहक डीजीपी अपाइंट नहीं किए जाएंगे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद दो बार ऐसा हुआ, जब सरकार को कार्यवाहक डीजीपी बनाना पड़ा। एक बार ओपी राठौर के आकस्मिक देहावसान के बाद संतकुमार पासवान को जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन, उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया। करीब तीन महीने डीजीपी का काम देखने के बाद भी वे कंटीन्यू नहीं कर सकें। राज्य सरकार ने आईबी से विश्वरंजन को बुलाने के लिए लाल जाजम बिछा दिया था। विश्वरंजन आए और पासवान को साइडलाइन होना पड़ा। इसके बाद एक फरवरी 2014 को एएन उपध्याय को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया, जब रामनिवास यादव रिटायर हुए थे। तकदीर के धनी उपध्यायजी को सुनिल कुमार के रूप में एक उद्धार करने वाला चीफ सिकरेट्री मिल गया। कुमार रिटायर होने के दिन 28 फरवरी 2014 को डीपीसी करके डीजीपी का रास्ता प्रशस्त कर दिया। उन्होंने लेटर की ऐसी ड्राफ्टिंग की, कि दो साल सीनियर होने के बाद भी बेचारे गिरधारी नायक उसे चैलेंज नहीं कर सकें।   

किसकी दावेदारी


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकारों के हाथ से डीजीपी की नियुक्ति निकल गई है। ऐसे में, पुलिस महकमे में यह चर्चा शुरू हो गई है कि अगले साल उपध्याय के रिटायर होने के बाद नए हालात में किसकी दावेदारी मजबूत होगी। सीनियरिटी में उपध्याय के बाद 86 बैच के डीएम अवस्थी दूसरे और 88 बैच के संजय पिल्ले तीसरे नम्बर पर हैं। दोनों के रिटायरमेंट में अभी पांच साल है। 2023 में चार महीने के अंतर से दोनों की पारी खतम होगी। 88 बैच के ही आरके विज और मुकेश गुप्ता का भी अभी तीन से चार साल बचा है। विज 21 में और मुकेश 22 में रिटायर होंगे। डीजी प्रमोट होने के बाद ये भी डीजीपी की कुर्सी के मजबूत दावेदार होंगे। अलबत्ता, विधानसभा के नतीजे के बाद ही तस्वीर पूरी तरह साफ हो पाएगी। 


अंत में दो सवाल आपसे


1. रमन सरकार की तीसरी पारी के अंतिम लिस्ट में कितने कलेक्टर, एसपी बदले जाएंगे?
2. एसीबी चीफ मुकेश गुप्ता को सरकार चुनाव को देखते कोई और जिम्मेदारी दे सकती है?

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