शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

सीएम-सीएम का खेल!

21 अक्टूबर
बसपा के साथ गठबंधन करने से चूकी कांग्रेस पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी तालमेल करने में नाकाम हो गई। गोंगपा ने समाजवादी पार्टी से समझौता कर लिया। इससे कम-से-कम चार सीटों पर कांग्रेस के समीकरण गड़बड़ाएंगे। उधर, सीपीआई ने भी बस्तर खास कर कोंटा में प्रत्याशी का ऐलान कर वहां के कांग्रेस के विनिंग कंडिडेट कवासी लखमा की मुश्किलें बढ़ा दी है। कांग्रेस के एक और विनिंग कंडिडेट रामदयाल उईके को पार्टी पहले ही गंवा चुकी है। सूबे के सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं, कांग्रेस डे-टू-डे राजनीतिक चूक कर रही है। बसपा को लेकर पार्टी कोई भी तर्क या आरोप लगा लें, ये तो सभी को मालूम है कि पार्टी नेता उसे पांच से अधिक सीटें देने सहमत नहीं थे। आखिर, कांग्रेस 90 की 90 सीट तो जीतेगी नहीं। बसपा को अगर 10 सीट दे दी होती तो कांग्रेस की आज स्थिति कुछ और होती। आज से एक महीने पहिले याने 19 सितंबर तक बीजेपी और कांग्रेस में नेक-टू-नेक फाइट की स्थिति थी। दोनों पार्टियों के सर्वे में 19-20 का फर्क था। लेकिन, 20 सितंबर को जोगी कांग्रेस से बसपा का गठबंधन होने के बाद से कांग्रेस के सामने चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। इसकी मुख्य वजह सीएम की कुर्सी मानी जा रही। सीएम-सीएम के खेल में कांग्रेस के बड़े लीडर इतने लीन हो गए हैं कि बसपा, गोंगपा कब उनके हाथ से निकल गई, पता ही नहीं चला। चुनाव की बेला में पीसीसी चीफ भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव पिछले एक महीने से साथ नजर नहीं आए हैं। जनघोषणा पत्र को लेकर सिंहदेव राजधानी के एक होटल में प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे तो बघेल भाजपा कार्यालय में अटलजी की अस्थि कलश को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। इसी हफ्ते कांग्रेस के सिंहदेव समेत कई नेता जब राजनांदगांव में थे तो भूपेश रायपुर में पत्रकार से नेता बने रुचिर गर्ग को प्रेस से इंट्रोड्यूज करा रहे थे। चरणदास महंत ताम्रध्वज साहू को रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से लड़ाने के लिए अलग प्रेशर बनाने में जुटे हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इसके अच्छे संदेश नहीं जा रहे। कांग्रेस नेताओं को इसे समझना चाहिए….छोटी-छोटी चूक उन्हें कहीं भारी न पड़ जाए।

इंटेलिजेंस फेल्योरनेस

विधानसभा चुनाव के दौरान खुफिया पुलिस की भूमिका अहम हो जाती है। लेकिन, पीसीसी चीफ भूपेश बघेल और महिला नेत्री करुणा शुक्ला के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता जिस तरह बीजेपी मुख्यालय के गेट तक पहुंच गए, उससे राज्य की इस खुफिया एजेंसी की पोल खुल गई। खुफिया पुलिस को पता ही नहीं चला कि कांग्रेस इस तरह प्रदर्शन की कोई योजना बना रही है। जबकि, एनएसजी सुरक्षा प्राप्त मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य मुख्यालय में मौजूद थें। चीफ मिनिस्टर आफिस ने इसे बेहद गंभीरता से लिया है। चुनाव के दौरान सीएम को राज्य भर में दौरे करने होते हैं। इंटेलिजेंस के इस पारफारमेंस को देखते सीएमओ की चिंता लाजिमी है। ये तो कांग्र्रेस नेता थे, कहीं नक्सली या आतंकवादी पहुंच जाएं तो….? इंटेलिजेंस का ये हाल तब है, जब मुख्यमंत्री ने खुफिया तंत्र को मजबूत करने के लिए सिक्रेट मनी को 45 लाख से बढ़ाकर नौ करोड़ रुपए कर दिया है। वास्तव में स्थिति चिंताजनक है।

ब्यूरोक्रेसी का खाता

कांग्रेस ने आखिरकार पूर्व आईएएस एसएस सोरी को कांकेर से मैदान में उतार दिया। सोरी ने 2013 के विधानसभा चुनाव से पहिले टिकिट की आस में आईएएस से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन, तब उन्हें मौका नहीं मिल पाया। लेकिन, इस बार कांग्र्रेस ने सोरी के साथ दरियादिली दिखाकर राजनीति में आए रिटायर नौकरशाहों की उम्मीदें जवां कर दी है। जाहिर है, अबकी बड़ी संख्या में रिटायर ब्यूरोक्रेट्स ने भाजपा और कांग्रेस ज्वाईन किया है। लेकिन, पहला खाता सोरी का खुला है। हालांकि, बीजेपी ने भी देर रात ओपी चौधरी की टिकिट दे दिया। लेकिन पहला खाता खुलने का क्रेडिट तो सोरी को मिलेगा ही।

एक परिवार, तीन पार्टी

एक घर में तीन पार्टी….तीनों की अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ने की तैयारी…..ऐसा आपने पहले नहीं सुना होगा। ग्वालियर में विजय राजे सिंधिया जरूर बीजेपी से चुनाव लड़ती थीं और उनके बेटे माधव राव सिंधिया कांग्रेस से। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी कुछ साल तक बीजेपी में रहे। साउथ में भी कुछ वाकये ऐसे मिलते हैं। लेकिन, देश के किसी राजनीतिक परिवार में तीन अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ने का दृष्टांत नहीं मिलता। लेकिन, छत्तीसगढ़ में अबकी ऐसा होने जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बहू ़ऋचा जोगी बसपा से प्रत्याशी घोषित हो गई हैं। अमित जोगी अपनी पार्टी से किस्मत आजमाएंगे तो उनकी मां रेणु जोगी कोटा से कांग्रेस टिकिट की प्रबल दावेदार हैं। हालांकि, ये सर्वविदित है, इसके पीछे कोई पारिवारिक विवाद नहीं है। विशुद्ध तौर पर सियासी नफा-नुकसान वाला यह मामला है।

बसपा में विलय?

अजीत जोगी की बहू ऋचा जोगी और जोगी कांग्रेस की गीतांजलि पटेल को बसपा से चुनाव लड़ाने की सियासी कलाबाजी के बीच सूबे में ये अटकलें तेज हो गई है कि विधानसभा चुनाव के बाद जोगी कांग्रेस का बसपा में विलय हो जाएगा। इसके पीछे तर्क यह दिए जा रहे कि जोगी कांग्रेस को अभी सियासी वजूद बनाने में वक्त लगेगा। इस पार्टी का फिलवक्त जो भी वजन है, वह सिर्फ और सिर्फ अजीत जोगी के कारण है। आपने देखा ही, जोगीजी की तबियत बिगड़ने पर किस तरह उनके लोग लगे थे छोड़-छोड़कर भागने। जबकि, बसपा सालों पहले से अपनी सियासी जमीन बना चुकी है। उसके सिम्बॉल पर वोट मिलते हैं। बिना किसी मशक्कत के उसके हमेशा दो-एक विधायक जीतते आए हैं। अब, जोगीजी का साथ मिल जाएगा तो जाहिर है, उसकी स्थिति और सुदृढ़ होगी। ऐसे में, इन अटकलों को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता। जोगीजी और मायावती की राहें भी जुदा हैं। लिहाजा, टकराव की आशंका भी नहीं होगी। मायावती को यूपी की राजनीति करनी है या फिर केंद्र की। छत्तीसगढ़ से उन्हें क्या मतलब?

शराब लॉबी एक

शराब ठेके का सरकारीकरण करके शराब ठेकेदारों को बेरोजगार कर देने वाले आबकारी मंत्री अमर अग्र्रवाल की मुश्किलें इस बार बढ़ सकती है। पता चला है, बिलासपुर से उन्हें पराजित करने के लिए शराब ठेकेदारों ने हाथ मिला लिया है। अमर बिलासपुर से लगातार चार बार विधायक हैं। पांचवी बार वे मैदान में होंगे। शराब ठेकेदारों ने उन्हें निबटाने के लिए पिटारा खोल दिया है।

राजनांदगांव पेंडिंग

कांग्रेस ने पहले चरण की 18 में से बस्तर की 12 सीटों के प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया। लेकिन, राजनांदगांव की छह सीटों को पेंडिंग कर दिया। राजनांदगांव की छह में से चार सीटें अभी कांग्रेस के पास है। इन चार में से दो सीटों पर वह चेहरा बदलने वाली है। जिन दो विधायकों की टिकिट कटेगी उस पर जाहिर है, विरोधी पार्टियां डोरे डालेंगी। इसी वजह से कांग्रेस ने राजनांदगांव की सूची को पेंडिंग रखने में ही भलाई समझी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बस्तर के विधायक दीपक बैज को फिर टिकिट देकर कांग्रेस अपने को धन्य क्यों समझ रही है?
2. चुनाव से पहिले किस जिले के कलेक्टर को बदलने पर आयोग विचार कर रहा है?

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