मंगलवार, 12 मार्च 2019

एक इलेक्शन, तीन कलेक्टर

10 मार्च 2019
लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में एक बार ऐसा भी हुआ था, जब चुनाव आयोग ने एक ही जिले के दो कलेक्टरों का विकेट उड़ा दिया था। बात है 2004 के लोकसभा चुनाव का है। और, जिला है महासमुंद। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कांग्रेस से तथा विद्याचरण शुक्ल बीजेपी से मैदान में थे। कलेक्टर थे मनोहर पाण्डेय। जोगी के नामंकन दाखिल करने के दौरान कलेक्ट्रेट में इतनी अफरा-तफरी मच गई कि आब्जर्बर ने आयोग में रिपोर्ट कर दी….जो कलेक्टर अपने कलेक्ट्रेट की व्यवस्था मुकम्मल नहीं रख सकता, वो चुनाव क्या कराएगा। इस पर आयोग ने मनोहर की छुट्टी कर दी। इसके बाद शैलेष पाठक कलेक्टर बनाकर महासमुंद भेजे गए। शैलेष ने चुनाव तो बिना किसी बिघ्न के संपन्न करा ली। मगर चुनाव के बाद वोट के ट्रेंड पर सवाल पूछ अपना विकेट गवां डाले। दरअसल, वोटिंग के बाद कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं से उन्होंने वोटिंग ट्रेंड के बारे में पूछ डाला। इस पर आयोग को शिकायत हुई कि कलेक्टर सर्वे करा रहे हैं…महासमुंद से कौन जीतेगा। आयोग ने शैलेष का विकेट उडा दिया। शैलेष के बाद फिर गौरव द्विवेदी को महासमुंद भेजा गया। उन्होंने काउंटिंग कराई। इस तरह से महासमुंद संभवतः देश का फर्स्ट डिस्ट्रिक्ट होगा, जहां एक कलेक्टर ने नामंकन दाखिल कराया, दूसरे ने वोटिंग कराई और तीसरे ने काउंटिंग कराकर जीत का सर्टिफिकेट दिया।

आयोग से पंगा

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार का चुनाव आयोग से विवाद हो गया था। उसकी कीमत तीन जिलों के कलेक्टर और एक एसी को चुकानी पड़ी। आयोग ने बिलासपुर, अंबिकापुर और जशपुर के कलेक्टरों को हटा दिया था। बिलासपुर के एसपी को भी। जशपुर के कलेक्टर बीएस अनंत इसलिए हटा दिए गए कि उन्होंने आचार संहिता लगने के बाद मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ हेलीकाप्टर पर उड़ लिए थे। बताते हैं, जशपुर के बाद पत्थलगांव में सीएम की सभा थी। कलेक्टर को भी एक मीटिंग के सिलसिले में पत्थलगांव जाना था। उन्होंने सीएम से पूछा, मैं भी चलूं क्या। सीएम बोले, चलो। हेलीकाप्टर जैसे ही उड़ा अनंत को ध्यान आया….बड़ी चूक हो गई। घंटे भर बाद आयोग ने उन्हें हटाने का आदेश दे दिया।

जय महाकाल!

डीएम अवस्थी प्रभारी डीजीपी से पूर्णकालिक डीजीपी बन गए। हालांकि, यूपीएसी से नाम तीन आए थे। सरकार की इच्छा पर था, जिस पर चाहे टिक लगा दे। याने डीएम के समक्ष खतरे तो थे। लेकिन, महाकाल की कृपा बरसी….सरकार ने उन पर भरोसा करते हुए आदेश जारी कर दिया। डीएम महाकाल के अनन्य भक्त हैं। आफिस में महाकाल की फोटो जरूर होती है। उज्जैन के वे एसपी रह चुके हैं। उज्जैन और उससे लगे इंदौर के एडिशनल एसपी रहते उन्होंने न्यूसेंस वाले इलाके में ऐसी लाठी बरसाई थी कि उनका नाम डंडा मार अवस्थी पड़ गया था। हालांकि, डीजीपी तक पहुंचने की उनकी राह आसान नहीं रही। लेकिन, काल उसका क्या, जो भक्त हो…..।

हनीमून पीरियड

सीएम भूपेश बघेल भले ही अठारह घंटे काम कर रहे हों। मगर उनके मंत्रियों का हनीमून पीरियड खतम नहीं हो पा रहा है। दो-एक मंत्रियों को छोड़ दे ंतो किसी की मौजूदगी दिखाई नहीं पड़ रही। अधिकांश मंत्री स्वागत-समारोह की खुमारी में डूबे हुए हैं। जबकि, लोकसभा चुनाव सिर पर आ गया है। 70 दिन का रिपोर्ट कार्ड पूछें तो जुबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। अलबत्ता, कुछ अभी से ट्रांसफर उद्योग को सींचने में जुट गए हैं। रेट भी अनाप-शनाप। मानो, 15 साल का का कसर दो महीने में पूरा कर लेंगे। सीएम को मंत्रियों से 70 दिन का रिपोर्ट कार्ड मांगना चाहिए।

रमन की पैठ

विधानसभा चुनाव में भाजपा का पारफारमेंस भले ही ठीक नहीं रहा लेकिन, कुछ फैसलों से यह प्रूव हो गया है, पूर्व मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह की दिल्ली में पैठ अभी भी मजबूत है। पहले नेता प्रतिपक्ष उनके पसंद का बना तो अब प्रदेश अध्यक्ष भी। नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के समय भी कई दावेदार थे। बृजमोहन अग्रवाल से लेकर ननकीराम कंवर, पुन्नूलाल मोहले, नारायण चंदेल तक मैदान में डटे थे। मगर डाक्टर साब ने धरमलाल कौशिक के नाम पर मुहर लगवा लिया। प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी अनेक नाम थे। मगर आश्चर्यजनक ढंग से पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह ने विक्रम उसेंडी का नाम फायनल कर एक तरह से संदेश दिया कि भाजपा के शीर्ष नेताओं का भरोसा रमन सिंह पर कायम है। जाहिर है, इससे पार्टी में रमन विरोधियों का हौसला पस्त होगा।

वनवास खतम?

आईएएस चंद्रकांत उईके को हटाकर सरकार ने आईएफएस अफसर अनिल साहू को संस्कृति का नया डायरेक्टर अपाइंट कर दिया। इस फैसले से आईएफएस बिरादरी में उम्मीद की किरण जगी है। जाहिर है, सरकार ने आते ही दो-एक को छोड़कर सारे आईएफएस अफसरों को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। आलम यह हुआ कि वन मुख्यालय में अफसरों के बैठने की जगह कम पड़ गई थी। लेकिन, अब लगता है आईएफएस का वनवास खतम हो गया है।

दामाद बाबू

पिछली सरकार में कई दामाद प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आए थे। नीना सिंह के दामाद विजयेंद्र सिंह और रमेश बैस के कजिन दामाद नंदकुमार। विजयेंद्र असम कैडर के आईएएस थे तो नंदकुमार महाराष्ट्र कैडर के। पिछली सरकार की खूबसूरती यह थी कि कांग्रेस नेताओं के भी काम नहीं रुकते थे….सिर्फ एक का छोड़कर, जो अब सबसे बड़े ओहदे पर बैठे हैं। सो, एक कांग्रेस नेता के आईआरएस दामाद को भी पिछली सरकार ने डेपुटेशन पर पोस्टिंग दे दी थी। अब, अपनी सरकार आई तो जमाई बाबू को जमाई के हिसाब से पोस्टिंग तो बनती ही है न। उन्हें एक अहम बोर्ड का एमडी बना दिया गया है। आईएएस हेमंत पहाड़े को हटाकर। यानी, आईएएस एसोसियेशन का डिनर डिप्लोमेसी काम नहीं आ पाई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस सरकार के बृजमोहन अग्रवाल कौन हैं?
2. राजस्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल के बंगले के सामने से गुजरने पर नौकरशाहों के सीने पर सांप क्यों लोट जाता है?

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