शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

आईएएस और अपराध

20 अक्टूबर 2019
सूबे के दो आईएएस अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती है। सरकार की नोटिस में इनके खिलाफ गंभीर टाईप के फीडबैक आएं हैं। घटना अपराधिक है। तब एक कलेक्टर थे और दूसरा एसडीएम। एसडीएम फिलहाल एक बड़े जिला पंचायत के सीईओ बन गए हैं। मौत की मिस्ट्री दबाने में पुलिस की भूमिका भी कटघरे में है। हालांकि, तब आईएएस लॉबी का भारी प्रेशर था। तभी ऐसे एसडीओपी और थानेदारों से केस का खात्मा कराया गया, जिन्हें एकाध महीने में रिटायर होना था। सरकार बदलने के बाद अब मिस्ट्री के शिकार घरवाले अब सक्रिय हुए हैं। घरवालों ने उस समय भी तीन पेज में सिलसिलेवार शिकायत की थी। लेकिन, उसे कूड़ेदान में डाल दिया गया। फिलहाल, उपर में शिकायत हुई है कि योजनाबद्ध तरीके से उस घटना को अंजाम दिया गया। केस डायरी अभी भी चुगली कर रही है कि जिला अस्पताल में डेथ घोषित होने के बाद मृतक को सिर्फ इसलिए प्रायवेट अस्पताल में ले जाया गया ताकि, लगे के बचाने का हरसंभव प्रयास किया गया। पुलिस ने फिर से फाईल ओपन कर दी तो निश्चित तौर पर दो आईएएस अफसरों की शामत आ जाएगी।
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अफसर, नेता और दिवाली

अफसरों और नेताओं को प्रभाव आंकने के लिए किसी पंडित से ग्रह-नक्षत्र और कुंडली दिखाने की जरूरत नहीं! दिवाली काफी होती है। दरअसल, दिवाली को अफसरों एवं नेताओं को हैसियत का अहसास कराने वाला पर्व भी माना जाता है। सिर्फ राजधानी में मोटे तौर पर दिवाली में करीब 15 करोड़ के गिफ्ट बंटते हैं। इसमें महंगे गिफ्ट बॉक्स से लेकर सोने के सिक्के और वजनी लिफाफे शामिल हैं। असल में, साल में एक मौका मिलता है….ठेकेदार हो या सप्लायर, व्यवसायिक रिश्तों को रिनीवल करने से कोई चूकना नहीं चाहता। इसमें चतुर टाईप के लोग अफसरों की घरवालियों के पसंद, नापासंद का पूरा ध्यान रखते हैं। कुछ को लिफाफा पसंद होता तो कुछ गोल्ड को देखकर खिल उठती हैं। दिवाली गिफ्ट के लिए कुछ मापदंड भी हैं। सिर्फ बड़ा पद नही चलेगा। पद के साथ लक्ष्मीवाला विभाग भी होना चाहिए। मंत्रालय के तीन-चार विभाग ऐसे हैं कि वहां लिफाफा और गोल्ड क्वाइन की पूछिए मत! कारोबारियों की लाइन लगी रहती है। सेकेंड में आते हैं निर्माण विभाग वाले। लूप लाईन वालों की दिवाली जरूर कुछ फीकी होती है। हालांकि, होशियार ठेकेदार, सप्लायर, बिल्डर लूप लाईन वालों पर भी इंवेस्ट करना बिजनेस ट्रिक मानते हैं। उनको अच्छे से पता होता है, डायरेक्ट आईएएस, आईपीएस है…कुछ दिन बाद फिर ठीक पोजिशन में आएगा ही। हां, जिन अधिकारियों का रिटायरमेंट नजदीक होता है, उनके यहां संख्या कम हो जाती है। कुल मिलाकर गिफ्टों की संख्या और लिफाफों की संख्या प्रभाव का पैमाना होता है।

चारों लोकल, चारों ब्राम्हण

यह एक संयोग है, और बेहद दिलचस्प। फॉरेस्ट में टॉप लेवल पर चार आईएफएस हैं। टॉप लेवल याने पीसीसीएफ, पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ, लघुवनोपज विकास संघ और वन विकास निगम। राकेश चतुर्वेदी पीसीसीएफ हैं। अतुल शुक्ला पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ, संजय शुक्ला लघुवनोपज संघ प्रमुख और राजेश गोवर्द्धन वन विकास निगम के एमडी। चारों माटी पुत्र हैं। कास्ट ब्राम्हण। सभी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के पास आउट। इसमें एक संयोग ये भी….वन विभाग के एडिशनल चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल भी रायपुर इंजीनियरिंग कालेज वाले हैं। है न इंटरेस्टिंग!

आईपीएस की लिस्ट

चित्रकोट उपचुनाव होने के बाद किसी भी दिन आईपीएस की लिस्ट निकल सकती है। हालांकि, लिस्ट पहले से तैयार हैं। चित्रकोट के लिए आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सरकार इसे स्थगित कर दिया था। लिस्ट में आधा दर्जन एसपी और आईजी शामिल बताए जाते हैं। एक-दो बड़े जिलों के नाम अभी और जुड़ने वाले हैं। चूकि बस्तर आईजी विवेकानंद के कारण लिस्ट अटक गई। ढाई साल से बस्तर में काम कर रहे विवेकानंद को सरकार वहां से निकालना चाहती है। उन्हें दुर्ग का आईजी बनाने के संकेत हैं। अगर विवेकानंद दुर्ग आईजी बनें तो एडीजी हिमांशु गुप्ता रायपुर लौटेंगे। फिर, दो-एक एडीजी की भी नई पोस्टिंग हो सकती है। अब देखना है, सरकार दिवाली बाद लिस्ट निकालती है या फिर पहले। पहले निकालने पर कुछ अफसरों की दिवाली जरूर खराब होगी।

हार्ड लक

डीआईजी एएम जुरी की किस्मत केसी अग्रवाल की तरह साथ नहीं दिया। जुरी को 2017 में भारत सरकार ने फोर्सली रिटायर किया था। वे कैट से अपने पक्ष में जब तक आर्डर लाए, तब रिटायरमेंट में दो दिन बचा था। उसमें भी एक दिन छुट्टी पड़ गई। आखिरी दिन जुरी पुलिस मुख्यालय में काफी प्रयास किए कि ज्वाईनिंग हो जाए। लेकिन, अफसरों ने उन्हें ज्वाईन कराने से हाथ खड़ा कर दिया। चूकि, जुरी को भारत सरकार ने रिटायर किया था, लिहाजा ज्वाईनिंग के लिए वहां से हरी झंडी जरूरी थी। भारत सरकार का प्रॉसेज काफी लंबा होता है। सो, जुरी की आखिरी दि नही सही वर्दी पहनने की आस अधूरी रह गई। हालांकि, उनके साथ डीआईजी केसी अग्रवाल भी फोर्सली रिटायर किए गए थे। मगर एक तो कैट से काफी पहले उन्हें राहत मिल गई। और, उनके रिटायरमेंट में समय भी था। लिहाजा, कैट के बाद जब उनकी ज्वाईनिंग नहीं हुई तो वे हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भारत सरकार ने क्लियरेंस दिया। तब जाकर वे न केवल ज्वाईन किए बल्कि आज सरगुजा के आईजी हैं।

अमिताभ को जल्दी नहीं

नए चीफ सिकरेट्री का रिटायरमेंट डेट जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, दावेदारों के रेस में और नाम जुड़ते जा रहे हैं। कुछ लोग अब एसीएस अमिताभ जैन को भी सीएस के रेस में बता रहे हैं। जबकि, अमिताभ के लिए जल्दी करने के कोई कारण नहीं है। उनके पास पर्याप्त समय है। पूरे छह साल। उन्हें तो ऐसे भी अवसर मिलेगा। और, लंबा मिलेगा। फिर, क्यों दौड़ में शामिल होकर वे अपनी एनर्जी नष्ट करें।

डिप्रेशन में आईएएस

एक युवा आईएएस बेहद डिप्रेशन में है। हालांकि, इसमें अफसर के कलेक्टरों की भूमिका भी कम नहीं रही है। प्रोबेशन या एसडीएम रहने के दौरान अधिकांश कलेक्टरों ने इस अफसर का यूज किया। किसी ने बेजा कब्जा तोड़वाने में तो किसी ने स्टाफ का चमकवाने में। आईएएस जिस जिले में एडिशनल कलेक्टर हैं, वहां के कलेक्टर का ये हाल है कि उन्होंने उन्हें कोई विभाग नहीं दिया है। वजह, काम नहीं करता। अब ये कोई जवाब हुआ। यूपीएससी सलेक्ट होकर आईएएस बना अफसर भला काम कैसे नहीं करेगा। कुछ तो उसकी परेशानी होगी। आईएएस बिरादरी में आजकल एक बुरी बात यह हो गई है कि करप्शन के इश्यू में एक-दूसरे को बचाने के लिए तो सब एक हो जाते हैं मगर व्यक्तिगत मामलों में कोई रुचि नहीं। एमके राउत जब सिकरेट्री पंचायत थे, तब उन्होंने अपने इस अफसर को पटरी पर लाने का काफी प्रयास किया था। अफसर की स्थिति सुधरने लगी थी, तब तक वे रिटायर हो गए। कायदे से यंग आईएएस अगर किसी दिक्कत में है तो उसे मोटिवेट करने का काम संबंधित जिले के कलेक्टर का होता है। पहले ऐसा होता भी था। लेकिन, अब आईएएस लोग ही माटी पुत्र अफसर का मजाक उड़ा रहे हैं। ये भी एक विडंबना है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या सीनियर आईएएस एन बैजेंद्र कुमार एनएमडीसी डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?
2. किस कलेक्टर पर छुट्टी की तलवार लटक रही है?

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