सोमवार, 6 जुलाई 2020

आईएएस की गिरफ्तारी?

तरकश, 5 जुलाई 2020
संजय के दीक्षित
छत्तीसगढ़ के एक आईएएस के खिलाफ अपराध दर्ज हो गया…सरकार ने बड़ी कार्रवाई भी कर दी। लेकिन, उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। पता चला है, पुलिस जांच के बाद कोर्ट में चालान पेश कर देगी। अब कोर्ट पर निर्भर करेगा कि अफसर को बेल दे या जेल भेज दे। पुलिस के हाथ पीछे करने की एक वजह यह भी है कि मामला आम सहमति का था। व्हाट्सएप पर देर रात तक हुई वार्तालाप और स्माईली का आदान-प्रदान इसकी चुगली कर रहे हैं। दोनों ओर से खतरनाक टाईप की फोटुओं का आदान-प्रदान किया गया है कि जांच में शामिल महिला अधिकारी भी झेंप गईं। बहरहाल, केस अब इस स्थिति में पहुंच गया है कि अफसर का ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

पीसीसीएफ की मुसीबत

सूबे के अधिकारियों में पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी का पलड़ा सबसे भारी माना जाता है। दरअसल, वे माटीपुत्र हैं….प्रैक्टिकल भी। रिजल्ट भी देते हैं। लेकिन, लोग चैंके तब, जब उनके सबसे विश्वसनीय रायपुर के सीसीएफ एसएसडी बड़गैया का कांकेर ट्रांसफर हो गया। हालांकि, कांकेर भी वन विभाग का अहम सर्किल है। लेकिन, राजधानी रायपुर की बात अलग है। बड़गैया का कांकेर जाना निश्चित तौर पर पीसीसीएफ को अखड़ा होगा। क्योंकि, अब प्रोटोकाॅल समेत अन्य सारा लोड अब पीसीसीएफ पर आ जाएगा। दरअसल, पीसीसीएफ सहज उपलब्ध होते हैं…और लोग छोटे से काम के लिए उन्हें फोन खड़का डालते हैं।

एडीजी का लकी बंगला

एक एडीजी का जीई रोड से लगा शांति नगर का बंगला बेहद लकी था। इसी बंगले से वे बिलासपुर का आईजी बनकर गए। और, भी कई गुड न्यूज इस बंगले से उन्हें मिले थे। उनके बिलासपुर जाने के बाद समीर विश्नोई और उनके बाद शिखा राजपूत को यह मकान आबंटित हो गया। शिखा पिछले साल बेमेतरा की कलेक्टर बनकर गई तो एडीजी ने फिर भिड़-भाड़कर यह बंगला अपने नाम एलाॅट कराया। मकान खाली कराने के लिए उन्हें कम पापड़ नहीं बेलने पड़े। एक शीर्ष ब्यूरोक्रेट्स ने इसमें उनकी मदद की। एडीजी ने बंगले का कंप्लीट जीर्णोद्धार कराया। 2028 तक उनकी सर्विस है। इस दृष्टि से उनकी पूरी तैयारी थी कि डीजीपी बनते तक इस बंगले में रहना होगा। मगर चैत्र नवरात्रि में वे गृह प्रवेश करने वाले थे कि कोरोना आ गया। और, पिछले हफ्ते एक दूसरा ही कोरोना आ गया। उपर से पैगाम आया, घर लौटा दीजिए….राजधानी के शांति नगर को दिल्ली का कनाॅट प्लेस बनाना है। सिर्फ पुलिस अधिकारी का ही नहीं, उस इलाके में रहने वाले अफसरों को एडीएम का फोन जा रहा, 24 घंटे में घर खाली कर दीजिए। जाहिर है, एडीजी को पीड़ा तो होगी ही, गृह प्रवेश से पहले ही लकी बंगला टूट जाएगा। ध्यान रहे, यह बंगला समीर और शिखा के लिए भी लकी रहा। दोनों, यहां से कलेक्टर बनकर गए थे।

एसपी का मोरल डाउन न हो

कोंडागांव एसपी से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम बेहद नाराज थे। इतने कि सरकार से शिकायत करने की बजाए मीडिया में फूट पड़े। हिन्दुस्तान मेें ऐसा दृष्टांत शायद ही मिलेगा कि रुलिंग पार्टी का प्रेसिडेंट कैमरे पर एसपी के खिलाफ रिश्वत मांगने का आरोप लगाया हो। आमतौर पर अपनी पार्टी की सरकार के अफसरों पर इस तरह के आरोप इसलिए नहीं लगाए जाते क्योंकि कलेक्टर और एसपी सरकार के नुमाइंदे होते हैं। बहरहाल, सरकार ने कोंडागांव एसपी को हटाकर जशपुर भेज दिया है। समझा जाता है कि एसपी का मोरल डाउन न हो, इसलिए एकदम से छुट्टी करने की जगह उन्हें दूसरे जिले में भेज दिया गया।

टाॅप फाइव मंडल

सूबे में राजनीतिक नियुक्तियों वाले बोर्ड और कारपोरेशनों की संख्या भले ही दो दर्जन से अधिक होगी मगर माल-मसाला वाला तो पांच ही मान सकते हैं। सीएसआईडीसी, माईनिंग कारपोरेशन, कर्मकार मंडल, हाउसिंग बोर्ड, पर्यटन मंडल। इनमें खोखा की कल्पना किया जा सकता है। बाकी दर्जन भर निगम-मंडल ऐसे हैं, जिनमें लेवल से नीचे उतरेंगे तो पेटी का इंतजाम हो पाएगा। इनके अलावा बाकी में गाड़ी, आफिस मिल जाए, तो बहुत है। पिछली सरकार में एक बोर्ड के प्रमुख ने गाड़ी खरीदकर किराये में अपने लिए लगवा ली थी। तीन साल में उनकी गाड़ी फ्री हो गई। बस यही, इससे अधिक कुछ नहीं।

एडीजी का लकी बंगला

एक एडीजी का जीई रोड से लगा शांति नगर का बंगला बेहद लकी था। इसी बंगले से वे बिलासपुर का आईजी बनकर गए। और, भी कई गुड न्यूज इस बंगले से उन्हें मिले थे। उनके बिलासपुर जाने के बाद समीर विश्नोई और उनके बाद शिखा राजपूत को यह मकान आबंटित हो गया। शिखा पिछले साल बेमेतरा की कलेक्टर बनकर गई तो एडीजी ने फिर भिड़-भाड़कर यह बंगला अपने नाम एलाॅट कराया। मकान खाली कराने के लिए उन्हें कम पापड़ नहीं बेलने पड़े। एक शीर्ष ब्यूरोक्रेट्स ने इसमें उनकी मदद की। एडीजी ने बंगले का कंप्लीट जीर्णोद्धार कराया। 2028 तक उनकी सर्विस है। इस दृष्टि से उनकी पूरी तैयारी थी कि डीजीपी बनते तक इस बंगले में रहना होगा। मगर चैत्र नवरात्रि में वे गृह प्रवेश करने वाले थे कि कोरोना आ गया। और, पिछले हफ्ते एक दूसरा ही कोरोना आ गया। उपर से पैगाम आया, घर लौटा दीजिए….राजधानी के शांति नगर को दिल्ली का कनाॅट प्लेस बनाना है। सिर्फ पुलिस अधिकारी का ही नहीं, उस इलाके में रहने वाले अफसरों को एडीएम का फोन जा रहा, 24 घंटे में घर खाली कर दीजिए। जाहिर है, एडीजी को पीड़ा तो होगी ही, गृह प्रवेश से पहले ही लकी बंगला टूट जाएगा। ध्यान रहे, यह बंगला समीर और शिखा के लिए भी लकी रहा। दोनों, यहां से कलेक्टर बनकर गए थे।

एसपी का मोरल डाउन न हो

कोंडागांव एसपी से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम बेहद नाराज थे। इतने कि सरकार से शिकायत करने की बजाए मीडिया में फूट पड़े। हिन्दुस्तान मेें ऐसा दृष्टांत शायद ही मिलेगा कि रुलिंग पार्टी का प्रेसिडेंट कैमरे पर एसपी के खिलाफ रिश्वत मांगने का आरोप लगाया हो। आमतौर पर अपनी पार्टी की सरकार के अफसरों पर इस तरह के आरोप इसलिए नहीं लगाए जाते क्योंकि कलेक्टर और एसपी सरकार के नुमाइंदे होते हैं। बहरहाल, सरकार ने कोंडागांव एसपी को हटाकर जशपुर भेज दिया है। समझा जाता है कि एसपी का मोरल डाउन न हो, इसलिए एकदम से छुट्टी करने की जगह उन्हें दूसरे जिले में भेज दिया गया।

टाॅप फाइव मंडल

सूबे में राजनीतिक नियुक्तियों वाले बोर्ड और कारपोरेशनों की संख्या भले ही दो दर्जन से अधिक होगी मगर माल-मसाला वाला तो पांच ही मान सकते हैं। सीएसआईडीसी, माईनिंग कारपोरेशन, कर्मकार मंडल, हाउसिंग बोर्ड, पर्यटन मंडल। इनमें खोखा की कल्पना किया जा सकता है। बाकी दर्जन भर निगम-मंडल ऐसे हैं, जिनमें लेवल से नीचे उतरेंगे तो पेटी का इंतजाम हो पाएगा। इनके अलावा बाकी में गाड़ी, आफिस मिल जाए, तो बहुत है। पिछली सरकार में एक बोर्ड के प्रमुख ने गाड़ी खरीदकर किराये में अपने लिए लगवा ली थी। तीन साल में उनकी गाड़ी फ्री हो गई। बस यही, इससे अधिक कुछ नहीं।

संसदीय सचिव का झुनझुना

विधायकों की तुष्टिकरण के लिए संसदीय सचिव बनाने की चर्चा चल रही है। मगर संसदीय सचिव का फार्मूला झुनझुना से ज्यादा नहीं है। संसदीय सचिवों को एक गाड़ी मिल जाएगी, पीए और बंगला। इसके अलावा और कुछ नहीं। कहने के लिए सरकार मंत्रियों के साथ उन्हें अटैच कर देती है मगर कागजों में कोई अधिकार नहीं। अधिकारी उन्हीं की सुनते हैं, जिनके पास फाइल जाती है। विभागीय कामकाजों में मंत्री संसदीय सचिवों को फटकने नहीं देते। कुल मिलाकर झुनझुना ही है संसदीय सचिव।

सुप्रीम कोर्ट में केस

रमन सरकार द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ वन और आवास, पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने हाईकोर्ट में रिट दायर की थी। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश चैबे ने भी। हिमाचल हाईकोर्ट द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति निरस्त करने का हवाला देते हुए राकेश चैबे की एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया था। याने संसदीय सचिवों की नियुक्ति अगर होती भी है तो उन पर हमेशा तलवार लटकी रहेगी।

आईपीएस, पपीता और कोरोना

पुराने पुलिस मुख्यालय में नौ लोग कोरोना पाॅजिटिव निकले हैं, उनमें इंटरेस्टिंग यह है कि एसआईबी बिल्डिंग में एक आईपीएस को भृत्य पपीता काटकर खिला रहा था, उसी दौरान एम्स से फोन आया कि फलां बोल रहे हो….भृत्य ने कहा, हां। उधर से जवाब मिला, आपका सेम्पल पाॅजिटिव आया है। भृत्य ने अफसर को कुछ नहीं बताया, धीरे से मोबाइल को जेब में रख लिया। बाहर जाकर उसने अपने साथियों को इस बारे में बताया तो हड़कंप मच गया। एसआईबी बिल्डिंग में तीन सीनियर आईपीएस बैठते हैं। अब इनमें से कितने क्वारंटाईन हुए हैं, इसकी जानकारी नहीं है।

पुनिया से प्रेरणा

कोरोना के बावजूद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया दिल्ली से रायपुर आए। उनसे कई कांग्रेस नेताओं को प्रेरणा मिली…जब 70 प्लस के पुनिया जी कोरोना में बहादुरी के साथ दौरे कर रहे हैं तो फिर हम क्यों डरें। लाल बत्ती की दौड़ में शामिल नेता कोरोना के चलते मन-मसोसकर दिल्ली नहीं जा पा रहे थे, वे अब दिल्ली की टिकिट कटाने लगे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक ऐसे मंत्रीजी का नाम बताइये, जो सिर्फ कैबिनेट की बैठक में नजर आते हैं, उसके अलावा और कहीं नहीं?
2. किस मंत्री की नाराजगी का खामियाजा एक अहम जिले के एसपी को उठाना पड़ सकता है?

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