रविवार, 6 सितंबर 2020

मंत्रियों पर परिवार हाॅवी

 तरकश, 6 सितंबर 2020

संजय के दीक्षित
छत्तीसगढ़ के कुछ मंत्रियों का जवाब नहीं है…दो साल होने को है मगर अभी तक वे सरकारी और गैर सरकारी बैठकों का मतलब नहीं समझ पाए हैं या यूं कहें कि वे समझना नहीं चाह रहे। ऐसे मंत्रियों से उनके विभाग के अफसर असहज महसूस कर रहे हैं। हालांकि, ये सबके साथ नहीं है। मगर दो-तीन मंत्रियों की मीटिंग या दौरे में तो इंतेहा हो जा रहा। बेटे, भांजे, भतीजे, साले….नहीं तो फिर कार्यकर्ता। मंत्रियों के कुछ रिलेटिव तो बकायदा अधिकारियों को आदेश देते हैं और उनसे सवाल-जवाब भी। वाकई ये सेमफुल है। समझा जा सकता है कि ऐसे में अधिकारियों की स्थिति क्या होती होगी। ठीक है…अफसरों को कोई मैसेज देना है तो मंत्रीजी हौले से इशारा कर सकते हैं…किन्हें वेट देना है…अफसर ऐसे इशारे बखूबी समझते भी हैं। लेकिन, ये तो ठीक नहीं कि रिश्तेदारों और कार्यकर्ताओं को साथ में बिठाकर मीटिंग के डेकोरम का मजाक उड़ाया जाए। सामान्य प्रशासन विभाग को इसके लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।

हिसाब का चक्कर?

एक मंत्री ने अपने पीएस याने निज सचिव की छुट्टी कर दी। मंत्री के आदेश के बाद पीएस को तुरंत उनके मूल विभाग जीएडी में वापिस भेज दिया गया। मंत्री के इस फैसले से सवाल तो उठते ही हैं कि दो साल से इतना बढ़ियां केमेस्ट्री के बाद आखिर क्या हुआ कि मंत्रीजी को इतना कड़ा निर्णय लेना पड़ गया। कोई कह रहा, हिसाब-किताब का चक्कर था तो कोई कुछ और…। बह

फिफ्टी-फिफ्टी

छत्तीसगढ़ से डेपुटेशन पर जाने वाली महिला आईएएस की संख्या भी ठीक-ठाक होती जा रही हंै। जेन्स में बीवीआर सुब्रमण्यिम, अमित अग्रवाल, सुबोध सिंह, डाॅ0 रोहित यादव, अमित कटारिया, मुकेश बंसल और रजत कुमार। और लेडिज में, निधि छिब्बर, रीचा शर्मा, रीतू सेन, श्रुति सिंह, संगीता पी।

आईपीएस आ रहीं

महिला आईएएस छत्तीसगढ़ छोड़कर जा रही है। और महिला आईपीएस छत्तीसगढ़ आ रही हैं। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल कैडर की आईपीएस भावना गुप्ता इंटर कैडर चेंज कराकर छत्तीसगढ़ आईं हैं। वे जिला पंचायत सीईओ राहुल देव गुप्ता की पत्नी हैं। इस महीने हिमानी खन्ना इंटर कैडर डेपुटेशन पर मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ आ रही हैं। हिमानी के पति विनीत खन्ना भी मध्यप्रदेश में डीआईजी हैं। समझा जाता है, वे भी कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ आ जाएं। विनीत मूलतः राजनांदगांव के रहने वाले हैं। उनके पिताजी वहां दिग्विजय काॅलेज के प्रिंसिपल रहे। दोनों दंपति अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान रायपुर में सीएसपी रह चुके हैं।

हिम्मती कलेक्टर

भारत सरकार ने लाॅकडाउन पर प्रतिबंध लगा दिया है…दिल्ली के परमिशन के बिना बंद नहीं किया जा सकता। इसलिए, राजनांदगांव कलेक्टर टीपी वर्मा ने जब हफ्ते भर का लाॅकडाउन किया तो मंत्रालय के अफसर भी चैंक गए। दरअसल, भारत सरकार के गाइडलाईन में है कि कंटेनमेंट जोन में लाॅकडाउन किया जा सकता है। और, राजनांदगांव के सभी वार्ड कंटेनमेंट जोन हो गए हैं। कोरोना के संक्रमण को रोकने कलेक्टर ने हिम्मत दिखाते हुए कंटेनमेंट जोन के नियम के तहत बंद करा दिया। ये होता है कलेक्टरों का पावर। और हिम्मत भी।

मंत्री बड़े या सिकरेट्री

अफसर कितने भी बैकफुट पर हों, उन्हें काम को अंजाम तक पहंुुचाना बखूबी आता है। यहां बात कर रहे हैं, रजिस्ट्री विभाग की। रजिस्ट्री विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारी पिछले महीने रिटायर हुए। दोनों बड़े प्लानिंग के साथ संविदा नियुक्ति के लिए प्रयासरत थे। रणनीति के तहत एक ने मंत्री को पकड़ा और दूसरे ने सिकरेट्री को। सिकरेट्री ने जिस अफसर की फाइल बढ़ाई थी, डेपुटेशन के लिए रिलीव होते-होते जीएडी से रिमार्क कराकर उसे उपर तक पहुंचवा दी। और मंत्री के रिकमांडेशन वाली फाइल अभी मंत्रालय में घूम रही है। अब दोनों में से किसको संविदा नियुक्ति मिलती है या हो सकता है किसी को ना मिले…ये सीएम पर डिपेंड करेगा। मगर ये सही है कि अफसरों को काम कराने का तरीका तो आता है।

ब्यूरोक्रेसी को राहत

15 बरस तक एकतरफा राज करने वाली छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी भले ही इस समय बैकफुट पर है मगर डेपुटेशन और छुट्टियों के मामले में पहले से ज्यादा कंफर्टेबल पोजिशन है। अभी कोई बंदिशें नहीं है और ना ही कोई बीच में रोड़ा। वरना, पहले डेपुटेशन और लीव तो बड़ा कष्टप्रद माना जाता था। सोनमणि बोरा ने पिछली सरकार में कितना प्रयास किया था। उन्हें तो एजुकेशन लीव के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े थे। बस, एक लाईन में बात खतम कर दी जाती थी…अधिकारियों का बड़ा टोटा है। मनोज पिंगुआ बाल-बाल बचे थे। उनका भी दिल्ली जाना गड़बड़ा ही रहा था। निधि छिब्बर को तो सरकार ने एनओसी देकर पोस्टिंग के बाद रिलीव करने से मना कर दिया। इस चलते भारत सरकार ने उन्हें सेंट्रल डेपुटेशन के लिए पांच साल के लिए डिबार कर दिया था। निधि को कैट की शरण लेनी पड़ी थी। तब जाकर वे दिल्ली जा पाईं। तब डेपुटेशन के लिए एनओसी मिलना किस्मत की बात मानी जाती थी। तभी तो जितने 15 साल में आईएएस डेपुटेशन पर गए, उस फिगर के आसपास इन दो सालों में चले गए। इस सरकार में डेपुटेशन पर जाने वालों में रजत कुमार, मुकेश बंसल, रीचा शर्मा, सुबोध सिंह और संगीता पी शामिल हैं। सोनमणि बोरा को सरकार ने एनओसी दे दिया है। दरअसल, अभी सीएम भूपेश बघेल खुद फैसला ले रहे हैं। इसमें जीएडी का कोई रोल नहीं है। इस सरकार ने जीएडी का ब्रेकर खतम कर दिया है।

सीएस का एक्सटेंशन

चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल की सेवावृद्धि की फाइल डीओपीटी पहुंच गई है। वहां से होकर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जाएगी। प्रधानमंत्री इस पर क्या निर्णय लेते हैं, फिलहाल इसका पता नहीं चलेगा। क्योंकि, ऐसे केसेज में भारत सरकार आखिरी दिनों में फैसला लेती है। अगर एक्सटेंश्न देना होगा तो 29 नवंबर की शाम तक लेटर आ जाएगा और यदि नहीं तो फिर फाइल चुपचाप क्लोज कर दी जाती है। राज्य सरकारें भी एक दिन पहले तक वेट करती है। आदेश नहीं आने पर समझा जाता है कि एक्सटेंशन की अनुमति नहीं मिली। पिछले साल सुनील कुजूर के समय भी ऐसा ही हुआ था। कुजूर को सीएस के पद से 31 अक्टूबर को रिटायर होना था। सरकार ने 30 अक्टूबर तक इंतजार किया। एक्सटेंशन का आदेश नहीं आया तो फिर आरपी मंडल को सीएस बनाने का आर्डर जारी कर दिया गया। इस बार चूकि कोरोना है, इसलिए भारत सरकार से हरी झंडी मिलने की संभावना से जानकार इंकार नहीं कर रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किन दो मंत्रियों के बारे में कहा जा रहा है कि वे सरकार और पार्टी के एजेंडा पर नहीं, अपने समाज के एजेेंडा पर काम कर रहे हैं?

2. बस्तर के एक कलेक्टर का नाम बताइये, जो गलत-शलत की बिना परवाह किए एक मंत्री के आगे बिछ गए हैं?रहाल, इसकी एथेंटिक वजह क्या है, ये तो मंत्री और पीएस ही बता पाएंगे।



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