सोमवार, 31 मई 2021

चीफ सिकरेट्री…बिल्कुल नहीं

संजय के दीक्षित

चीफ सिकरेट्री…बिल्कुल नहीं


बीवीआर सुब्रमनियम भारत सरकार में सचिव बनने वाले छत्तीसगढ़ के पहले आईएएस बन गए। उन्हें कामर्स विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि, उनसे पहिले बीएस बासवान भी केंद्र में सिकरेट्री रहे और तीन-तीन विभाग संभाले। मगर उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर का इसलिए नहीं समझा जाता कि वे मध्यप्रदेश के समय डेपुटेशन पर चले गए थे। नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ कैडर मिलने के बाद बासवान कभी यहां आए नहीं। केंद्र से ही वे रीटायर हो गए। बासवान का छत्तीसगढ़ से इतना ही जुड़ाव रहा कि वे 90 के दशक में बिलासपुर के संभाग आयुक्त रहे। यद्यपि, सुब्रमनियम भी छत्तीसगढ़ में तीन साल ही रहे हैं। ज्यादातर समय वे डेपुटेशन पर रहे। फिर भी यहां होम सिकरेट्री रहने के कारण उन्हें जाना जाता है। बासवान के बारे में बहुत लोगों को मालूम नहीं होगा…मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही अजीत जोगी ने फर्स्ट चीफ सिकरेट्री के लिए बासवान से बात की थी। लेकिन, वे छत्तीसगढ़ आने तैयार नहीं हुए। बेहद ईमानदार आईएएस बासवान के बारे ये भी कहा जाता है, चीफ सिकरेट्री के ऑफर पर उन्होंने कभी मजाक में कहा था…छत्तीसगढ़ के ऐसे अफसरों का लीड करने से अच्छा है, दिल्ली में रहा जाए। तब ये चर्चा आम थी कि दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश के 98 फीसदी रिजेक्टेड अफसरों को छत्तीसगढ़ भेज दिया।

सीनियर पर जूनियर

सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के नाते आईएएस हिमशेखर गुप्ता 20 हजार करोड़ का सालाना बिजनेस करने वाले मार्कफेड के प्राधिकृत अधिकारी हैं। जबकि, उनसे सीनियर आईएएस अंकित आनंद प्रबंध निदेशक। अंकित 2006 बैच के आईएएस हैं और हिमशिखर 2007 के। मार्कफेड के एमडी को प्राधिकृत अधिकारी से अनुमोदन के लिए फ़ाइल हिमशिखर के पास भेजनी पड़ती है। जबकि, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। मार्कफेड भंग होने की स्थिति में एडिशनल चीफ सिकरेट्री लेवल के अफसर मार्कफेड के प्राधिकृत होते थे। बीकेएस रे, पी राघवन, आरपी बगाई लंबे समय तक प्राधिकृत अधिकारी रहे। एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू खुद 2004-05 के दौरान रजिस्ट्रार रहे औऱ प्रदत्त अधिकारों से उन्होंने बगाई और राघवन को प्राधिकृत अधिकारी अपॉइंट किया था। वरिष्ठतम ब्यूरोक्रेट्स को प्राधिकृत अधिकारी बनाने के पीछे मंशा यह होती थी कि प्रदेश की सबसे बड़ी कृषि और सहकारिता से जुड़ी इस संस्था की ठीक-ठाक मॉनिटरिंग हो सके। लेकिन, इस समय एमडी से जूनियर प्राधिकृत अधिकारी हो गए हैं। बता दें, चेयरमैन से भी ज्यादा पावरफुल प्राधिकृत अधिकारी होते हैं। क्योंकि चेयरमैन के साथ बोर्ड होता है। किसी फैसले पर सहमति के लिए पूरे बोर्ड की सहमति जरूरी होती है। लेकिन, बोर्ड जब भंग हो जाता है तो प्राधिकृत अधिकारी वन मैन आर्मी हो जाता है। यही वजह है, पहले प्राधिकृत अधिकारी बनने बड़ी खींचतान होती थी। बीकेएस रे और राघवन का विवाद पुराने लोगों को याद होगा। फिलहाल, अभी के सीनियर अफसरों को लगता है, प्राधिकृत अधिकारी का मतलब मालूम ही नहीं।

कलेक्टरों की लिस्ट व्हाट्सएप में

सूबे में यह पहली मर्तबा हुआ कि व्हाट्सएप में कलेक्टरों की लिस्ट ही वायरल नहीं हुई बल्कि सोशल मीडिया पर भावी कलेक्टरों का स्वागत और बधाइयों का दौर शुरू हो गया। जाहिर है, सरकार को यह नागवार गुजरा। और कुछ समय के लिए लिस्ट पर ब्रेक लगा दिया गया। मगर लाख टके का सवाल यह है कि लिस्ट के कुछ नाम लीक हुए कैसे? और अब लिस्ट कब निकलेगी? पहले सवाल का जवाब जरा कठिन टाइप है और दूसरे का जवाब सिर्फ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दे सकते हैं। कुछ दिनों के लिए लिस्ट रुकी जरूर है लेकिन, सूबे के मुखिया पर सब निर्भर करेगा…सीएम चाहेंगे तो दो दिन बाद लिस्ट निकल जायेगी और नहीं तो दो हफ्ते भी जा सकता है। ये जरूर है, भावी कलेक्टरों की नेताओं जैसी बधाइयां सरकार को अच्छा नहीं लगा।

प्रशासनिक चक्रवात

अरब सागर में ताउते और बंगाल की खाड़ी में यास के बाद अब छत्तीसगढ़ में एक चक्रवात आने की चर्चा है…वह है प्रशासनिक चक्रवात। अंदेशा है, इस चक्रवात का प्रभाव इतना व्यापक होगा कि मंत्रालय से लेकर जिलों तक में स्थिति काफी बदल जाएगी। बड़ी संख्या में कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ हटेंगे और इधर-से-उधर होंगे….मंत्रालय में भी महत्वपूर्ण उलटफेर होगी। वैसे भी, भूपेश सरकार छोटी सर्जरी की बजाए मेजर सर्जरी में ज्यादा विश्वास करती है। सरकार संभालते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 20 कलेक्टरों को बदल दिया था। और, पिछले साल 27 मई को 23 कलेक्टर समेत 28 आईएएस। इस बार भी संख्या इसके आसपास ही होगी। मगर इस बार का चेंजेस अहम इसलिए है क्योंकि, अगले महीने सरकार के ढाई बरस पूरे होने जा रहे हैं। अब काम करने के लिए डेढ़ साल बचे हैं। आखिरी साल को काउंट नहीं किया जाता क्योंकि वो इलेक्शन ईयर होता है। इस दृष्टि से भूपेश सरकार की कोशिश होगी कि फील्ड में ऐसे अफसरों की तैनाती की जाए, जो रिजल्ट दें और अगले विधानसभा चुनाव तक क्रीज पर टिक सके। इसमें दोमत नहीं कि इनमें से कुछ कलेक्टर अगला विधानसभा चुनाव कराएं। बहरहाल, कलेक्टरों, जिला पंचायत सीईओ, मंत्रालय, डायरेक्ट्रेट और बोर्ड, निगमों को मिलाकर 35 से 40 आईएएस अधिकारियों की नई पदास्थापनाएं होंगी। भले ही ये दो, तीन फेज में होगा मगर चक्रवात निश्चित तौर पर ब्यूरोक्रेसी को झाँकझोरेगा।

सीनियर को तरजीह

सरकारें किसी भी पार्टी की हो…चुनाव जीतने के बाद और चुनाव के समय राजनीतिक दृष्टि से प्रशासनिक अफसरों को फील्ड में बिठाती है लेकिन, इसके बीच की अवधि में जब सरकार को रिजल्ट देने का समय होता है, उसमें अनुभवी अफसरों को प्राथमिकता दी जाती है। मध्यप्रदेश मे दिग्विजय सिंह ने इसी फार्मूले पर दस साल प्रशासन को चलाया । बहरहाल, यहां बात छत्तीसगढ़ की हो रही है और मौका सरकार के मध्यकाल का है तो लोगों की नजरें उन अफसरों पर हैं, जो राजधानी के ज्यादा फील्ड में रिजल्ट दे पाने की क्षमता रखते हैं। पता चला है, सरकार भी इस आप्सन को बंद नहीं किया है…2007, 08, 09 बैच भी फोकस में है। दरअसल, बड़े और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिलों में सीनियर अफसरों को कलेक्टर बनाकर बिठाने से लाभ यह होता है कि डेवलपमेंट के साथ ही राजनीतिक चीजें स्मूथली चलती है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी होता है, आसपास जिलों के जूनियर कलेक्टर उनका अनुसरण कर अपना पारफारमेंस सुधारते हैं। सरकार को इस बार यह भी ध्यान देना चाहिए कि दाल-भात में नमक चलता है मगर आफिस को दुकान बना दें, ऐसे कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों को कड़ा मैसेज देना चाहिए। क्योंकि, अब जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का समय है।

मंत्रालय में परिवर्तन

कलेक्टरों के साथ मंत्रालय में भी कुछ सिकरेट्री बदलेंगे। रायपुर कलेक्टर मंत्रालय जाएंगे तो वहां भी उन्हें कोई ठीक-ठाक विभाग मिलेगा। हालांकि, उनका बैच अभी सिकरेट्री नहीं हुआ है। मगर अंकित आनंद की तरह लगता है भारतीदासन को भी स्पेशल सिकरेट्री के तौर पर कोई स्वतंत्र प्रभार मिलेगा। राजनांदागांव कलेक्टर टीपी वर्मा सिकरेट्री हो गए हैं। वे अगर वहां से हटे तो उन्हें भी मंत्रालय में सचिव की पोस्टिंग मिलेगी। टीपी कोंडागांव, दंतेवाड़ा के बाद राजनांदगांव के कलेक्टर हैं। इसलिए, उन्हें विभाग ठीक-ठाक ही मिलेगा। मंत्रालय में कई आईएएस अफसरों के पास दो-दो, तीन-तीन विभाग हैं। इनमें से कई सिकरेट्री के विभाग भी चेंज किए जाएंगे।

नसीब के धनी

टूलकिट विवाद से राष्ट्रीय स्तर पर किसे कितना लाभ हुआ, किसको नुकसान, ये तो नहीं पता मगर छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ0 रमन सिंह को बेशक इसका बड़ा राजनीतिक माइलेज मिला। रमन सिंह को लेकर बीजेपी के भीतर ही कई तरह की बतकही, भविष्वाणियां की जा रही थी। बीजेपी के लोग भी दावा कर रहे थे कि छत्तीसगढ़ के बीजेपी में काफी कुछ चीजें बदल जाएगी। मगर गजब का नसीब…आलम यह हुआ, पूरी पार्टी रमन के नीचे आकर खड़ी हो गई। रमन के खिलाफ एफआईआर पर सारे नेता थाने में धरना पर बैठ गए। पूर्व मंत्रियों को नाक-भौं सिकोड़कर भी मई की गरमी में थाने में प्रदर्शन करना पड़ा। वाकई किस्मत के बेहद धनी हैं रमन। 17 साल पूर्व फ्लैशबैक में जाएं, तो 2004 में कोई भी आदमी मानने के लिए तैयार नहीं था कि रमन सिंह मुख्यमंत्री के रूप में कंटिन्यू करेंगे। सबकी दलील यही थी कि प्रदेश अध्यक्ष थे, इसलिए अटलजी ने उन्हें सीएम बना दिए…छह महीने, साल भर में रमेश बैस उस कुर्सी पर काबिज हो जाएंगे। मगर रमन ने एक के बाद एक करके तीन कार्यकाल निकाल डाले।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार को अमित अग्रवाल जैसे आईएएस को अब दिल्ली डेपुटेशन से बुलाकर मंत्रालय में सीनियर लेवल के वैक्यूम को दूर नहीं करना चाहिए?

2.शिवप्रकाश की सख्ती और सक्रियता से भाजपा में क्या बदलाव आएगा?

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