रविवार, 12 जून 2022

काली कमाई वाली आईएएस!

संजय के. दीक्षित

तरकश, 15 मई 2022

झारखंड की आईएएस पूजा सिंघल आखिरकार सीखचों के पीछे चली गईं। उन पर मनी लॉड्रिंग से लेकर करप्शन के कई चार्जेस हैं। सियासी दलों में पूजा इतनी गहरी थी कि कोई भी सरकार बनती थी, पाला बदलकर उसमें अच्छी पोस्टिंग का जुगाड़ हो जाता था। रघुवर दयाल की बीजेपी सरकार में भी पूजा उतने ही प्रभावशील रही। और, हेमंत सोरेन सरकार में भी। एटक नेता ने पूजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी। कोर्ट ने याचिका खारिज करने के साथ ही 50 हजार रुपए जुर्माना कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने भी क्लीन चिट दे दिया। लेकिन, एटक नेता ने हार नहीं मानी...पहुंच गए सुप्रीम कोर्ट। और वहां उन्हें न्याय मिला। कहने का मतलब यह है कि जब तक स्टार अच्छा है, तब तक सब ठीक है। बहरहाल, पूजा सिंघल के नस्ल वाले नौकरशाहों को इस वाकये से सबक लेनी चाहिए...क्योंकि लिमिट क्रॉस करेंगे तो ये होगा ही। अफसर अपने पैसे से मोबाइल तक रिचार्ज नहीं कराते...बाकी एयर टिकिट से लेकर घर के राशन-पानी की बात तो अलग है...सर्वोच्च सर्विस की गरिमा का लिहाज तो करना चाहिए न।

पोस्टिंग का रिकार्ड

क्रेडा के सीईओ आलोक कटियार के नाम एक रिकार्ड दर्ज होने जा रहा है...रिकार्ड पोस्टिंग का। आलोक बीजेपी सरकार में अंकित आनंद के बाद मई 2018 में क्रेडा के सीईओ बनाए गए थे। इसके बाद दिसंबर 2018 में सरकार बदली लेकिन, आलोक की कुर्सी सलामत रही। बाद में, उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का भी दायित्व मिल गया। उधर, अंकित आनंद दुर्ग की कलेक्टरी करके रायपुर लौट आए। यहां वे मार्कफेड के एमडी के बाद तीसरी पोस्टिंग बिजली विभाग की कर रहे हैं। मगर आलोक क्रेडा में कंटिन्यू हैं। आईएफएस के लिए गर्व की बात इसलिए कि किसी भी राज्य में दो साल, ढाई साल वाली पोस्टिंग अब रही नहीं। यूपी, पंजाब जैसे राज्यों में एक-एक साल में ट्रांसफर हो जा रहा। छत्तीसगढ़ में भी अब टेन्योर कम हुआ है। आधा दर्जन से अधिक कलेक्टर, एसपी एक साल कंप्लीट नहीं कर पाए। अपवाद के तौर पर दंतेवाड़ा एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव जरूर पिछले शासनकाल से पोस्टेड रहे। मगर कुछ महीने पहले उनका भी ट्रांसफर हो गया। अब सिर्फ आलोक बचे हैं पिछले सरकार से पोस्टेड वालों में...तो अफसरों के लिए गर्व की बात हुई न।

विरोधियों को झटका

बीजेपी ने मणिपुर में विप्लव देव को यकबयक हटाकार माणिक साहा को मुख्यमंत्री बना दिया। माणिक 69 के हैं। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि उम्रगर नेताओं से भाजपा परहेज कर रही है। और जब माणिक को त्रिपुरा की कमान मिल सकती है तो फिर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के समर्थकों को इससे बल क्यों नहीं मिलेगा। रमन भी लगभग 69 के ही हैं। त्रिपुरा में अगले साल चुनाव है और छत्तीसगढ़ में। छत्तीसगढ़ में अटकलें और कयासों को छोड़ दें तो पार्टी के नेता भी मानते हैं कि सूबे में फिलहाल सबसे बड़े छत्रप रमन सिंह ही हैं। जाहिर है, त्रिपुरा में नए सीएम की नियुक्ति से रमन कैंप में खुशी तो होगी।

रायपुर सम्मानित

रायपुर के दो कलेक्टरों को देश की राजधानी दिल्ली में एजीआई अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इनमें एक हैं डॉ0 अजय तिर्की और दूसरे सोनमणि बोरा। तिर्की अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर के कलेक्टर रहे और राज्य बंटवारे के बाद तिर्की मध्यप्रदेश चले गए। बोरा को छत्तीसगढ़ कैडर मिला और बाद में वे रायपुर के कलेक्टर बनें। दोनों अफसर इन दिनों सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। वो भी एक ही विभाग में। तिर्की भारत सरकार के लैंड मैनेजमेंट में सिकरेट्री हैं तो बोरा ज्वाइंट सिकरेट्री। लैंड मैनेजमेंट में आउटस्टैंडिंग काम के लिए दोनों को एजीआइ्र्र अवार्ड मिला है। दोनों आईएएस रायपुर के कलेक्टर रहे हैं, तभी चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने आईएएस के ग्रुप में खास तौर पर इसका जिक्र किया।

कलेक्टर से पहले कलेक्टरी

ये सही है कि आईएएस को सबसे बड़ा आकर्षण कलेक्टर बनने का होता है। मगर ऐसा भी नहीं कि कलेक्टरी मिलने से पहले ही कलेक्टरी करने लगे। दरअसल, सरकार के पांच नए जिलों में ओएसडी प्रशासन अपाइंट किया है, उनमें से कुछ आईएएस अभी से फरमान जारी करने लगे हैं। जबकि, ओएसडी की नियुक्ति जिले के लिए व्यवस्था करने के लिए होती है, कलेक्टरी करने के लिए नहीं। मगर एक ओएसडी को वहां के पटवारियों ने मिसगाइड कर दिया। पटवारियों ने अपना जेब गरम करने के लिए ओएसडी से मौखिक आदेश करवा लिया कि जमीन या घर की रजिस्ट्री से पहले चौहदी पटवारी से लिखवाया जाए। ओएसडी साब पटवारी की बात में आकर पंजीयन अधिकारी को सीधे निर्देश दे दिए। अब पटवारियों की निकल पड़ी। अब जमीन खरीदने के बाद नामंतरण के लिए पटवारी का चक्कर लगाना पड़ेगा। और, उससे पहले विक्रेता को चौहदी के लिए। एक चौहदी स्तंभकार के हाथ लगी। उसमें पटवारी पक्षकार से पूछ कर न केवल चौहदी लिखा है बल्कि नीचे में अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए लिखा है पक्षकार के बताए अनुसार। अब सवाल उठता है, जब पक्षकार के बताए अनुसार ही चौहदी लिखना है तो फिर पटवारी की जरूरत क्या। तो जवाब ये है कि नए प्रशासनिक अधिकारियों के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था पटवारी करते हैं, इसलिए उनके झांसे में आकर अफसर ने तुगलकी फरमान जारी कर दिया। सीनियर कलेक्टर को ये भी ध्यान रखना चाहिए उनके प्रस्तावित जिले के ओएसडी क्या कर रहे हैं।

पटवारी राज

डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ आए संजय गर्ग एक बार रायपुर कलेक्टर रहे। उन्होंने भी पटवारियों की बातों में आकर ये आदेश जारी कर दिया था कि जमीन बेचने से पहले पटवारी से चौहदी लिखवाया जाए। उस समय एक वकील हाईकोर्ट गए और वहां से कड़ा आदेश हुआ कि ये गलत है। छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश में ऐसा कहीं नहीं है कि पटवारी चौहदी सत्यापित करें। ऐसे में तो आम आदमी लूट जाएगा। नामंतरण के लिए भी पटवारी को पैसा दें और उससे पहले जमीन की रजिस्ट्री से पहले चौहदी के लिए। सरकार को इसे संज्ञान में लेना चाहिए। बहरहाल, प्रस्तावित नए जिले में पटवारियों ने ओएसडी से जो मौखिक आदेश कराया है, जाहिर है उसकी देखादेखी दूसरे जिलों में भी यह वायरस पहुंच जाएगा।

ओएसडी के पावर

सवाल ये है कि नए जिले के ओएसडी क्या कोई आदेश दे सकते हैं क्या? बिल्कुल नहीं। जब तक जिला बन नहीं जाता और उनका कलेक्टर का आदेश नहीं निकलता, तब तक उनकी हैसियत पदनाम के अनुसार सिर्फ विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी की है। वे जिले के वर्तमान कलेक्टर के अधीन नए जिले का फ्रेम तैयार कराएंगे। लेकिन, चूकि ऐसा होता है कि ओएसडी ही आगे चलकर कलेक्टर कंटिन्यू करते हैं इसलिए स्वाभाविक तौर पर नीचे के लोग उन्हें कलेक्टर मान लेते हैं। यही वजह है कि पंजीयन अधिकारी ने पटवारी राज वाला मौखिक आदेश मानते हुए उस पर अमल शुरू कर दिया। एक नए जिले के ओएसडी बकायदा आदेश मार्क करने लगे हैं। तो एक जिले में और क्लास हुआ...सीएम के दौरे के सिलसिले में कलेक्टर ने डिप्टी कलेक्टरों को गांवों का दौरा करने का आदेश दिया। इस पर ओएसडी ने अकड़ में दो टूक कह दिया...मैं सब देख लूंगा, आने की कोई जरूरत नहीं।

30 जून से पहले

पांच नए जिलों का गठन 30 जून से पहले करना होगा, वरना जनगणना की पेंच आड़े आ जाएगी। अभी पुरानी जनगणना के आधार पर नए जिले बनाए गए हैं। 30 जून तक पुरानी जनगणना की मियाद है। इसके बाद नई जनगणना प्रारंभ हो जाएगी। ऐसे में, सरकार को हर हाल में 30 जून से पहले नए जिले बनाने होंगे। खैरागढ़ जिला सबसे बाद में बना है। उसकी 60 दिन की अधिसूचना की मियाद 20 जून को खतम होगी। उससे पहले जिला बन नहीं सकता। बाकी चार जिलों के 60 दिन पहले ही पूरे हो चके हैं। अब सरकार के उपर है कि या तो 21 जून से लेकर 30 जून तक या तो पांचों जिले अस्तित्व में ला दें या फिर खैरागढ़ का 20 जून के बाद करें और बाकी चार को उससे पहले। कुल मिलाकर 30 जून तक छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या 33 हो जाएंगी।

विधायक पति

अभी तक सरपंच पति, पार्षद पति सुनते थे मगर अब नया आ गया है...विधायक पति। दरअसल, एक महिला विधायक का पति, पत्नी जहां जाती है, फेविकोल की तरह चिपके रहते हैं। अधिकारी से मिलने जाएं तब भी पति साथ में और बड़े नेताओं से मिलने रायपुर आएं, तब भी। दुर्ग संभाग से वास्ता रखने वाली इस नेत्री को कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने समझाया भी है, मगर कोई फर्क नहीं पड़ा। अब कांग्रेस के नेता ही चुटकी ले रहे हैं, खतरा आखिर किस बात का?

पत्नी का प्रमोशन और...

सूरजपुर एसपी भावना गुप्ता को हाल ही में प्रमोशन देते हुए अंबिकापुर का कप्तान बनाया गया। इससे पहले वे सूरजपुर एसपी थीं। दूसरे जिले के रूप में भावना को बढियां जिला मिला। लेकिन, उनके पति राहुल देव ग्रह-नक्षत्र के शिकार हो गए। सीएम भूपेश बघेल के चौपाल में जिला पंचायत में कमीशनखोरी की शिकायत हुई और सरकार ने राहुल को हटा दिया। हालांकि, राहुल अच्छे अफसर हैं, मगर पता नहीं विभाग में वे कंट्रोल क्यों नहीं कर सके।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या साहू समाज के किसी युवा नेता को कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा भेजे जाएगा?

2. आखिरी पारी समझकर कौन-कौन कलेक्टरों ने जिले में धुंआधार बैटिंग शुरू कर दिया है।


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