तरकश, 22 सितंबर 2024
संजय के. दीक्षित
मंत्री को फटकार!
ट्रांसफर केस में अपना भद पिटवा बैठे एक मंत्रीजी की क्लास लिए जाने की चर्चा इन दिनों बड़ी सरगर्म है। मंत्रीजी ट्रांसफर करके कहीं घूमने-फिरने चले गए थे। बिल्कुल बेफिकर होकर। मगर ट्रांसफर की परतें जब खुलने लगी तो साब का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया। नाराजगी इतनी तीव्र थी कि मंत्री की गैर मौजूदगी में उनके लोगों को इतला कर दिया गया था कि वे जैसे ही लौटे, हाउस भेजा जाए। रायपुर लौटने पर मंत्रीजी कृ़त्रम मुंह लटकाए दरबार में पहुंचे। उनके सामने पड़ते ही साब भड़क गए। पूछे...ऐसा क्यों कर रहे हो? मंत्रीजी ने सर, सर...कर सफाई देने की कोशिश की मगर साब कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। साब का यद्यपि ऐसा स्वभाव नहीं मगर मंत्रीजी ने काम ही ऐसा किया था। किसी को नहीं छोड़ा। बोली लगा दी। उपर से नियम-कायदों की अनदेखी भी। नियमानुसार विभागीय सचिव और मुख्य सचिव से होते हुए समन्वय में ट्रांसफर की फाइलें भेजी जाती हैं। मगर मंत्रीजी ने बिना प्रक्रिया का पालन किए सब कुछ करा लिया। अगर प्रॉपर चैनल से फाइल चली होती तो हो सकता था कि किरकिरी कराने वाले ट्रांसफर नहीं होते।
2000 ट्रांसफर और सिकरेट्री
लोकसभा चुनाव से पहले एक मंत्रीजी ने 2000 ट्रांसफर की फाइलें विभाग को भेजी थी। मगर विभागीय सचिव ने स्व-विवेक से फाइलें उपर नहीं भेजी कि इस स्तर पर समन्वय में तबादले नहीं होते। कहने का आशय यह है अंडर सिकरेट्री से लेकर सिकरट्री, चीफ सिकरेट्री का चैनल इसीलिए बनाया गया है कि कोई त्रुटि हो तो पकड़ी जा सकें। मगर इसे ओवरलुक किया जाएगा तो फिर ब्लंडर होगा ही। आखिर, नए मंत्री को इतना कहां पता होता है कि सस्पेंशन में ट्रांसफर होता है नहीं। अभी तो कुछ मंत्रियों की भूख की ये स्थिति है कि पैसा देने पर रिटायर आदमी की पोस्टिंग की फाइल चला दें।
पीए डूबो रहे मंत्रियों को
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत सरकार में मंत्रियों के पीए और पीएस अपाइंट करने में काफी सावधानी बरती जाती है। एक तो वहां मंत्रियों की पसंद के पीए नहीं मिलते, उपर से 360 डिग्री सिस्टम से उनकी मानिटरिंग की जाती है। छत्तीसगढ़ में जीएडी को इस तरह का कुछ करना चाहिए। क्योंकि, मंत्रियों को बदनाम करने वाले कृत्यों में उनके स्टाफ का बड़ी भूमिका है। काम-धाम छोड़कर पीए सिर्फ ट्रांसफर-पोस्टिंग और कमीशन के धंधे में लिप्त हो गए हैं। 24 घंटे सिर्फ सिर्फ एक ही काम...कुर्सी पर टिके रहना है तो इतनी पेटी पहुंचा दो। अब लक्ष्मीजी किसे नहीं भाती...मंत्रीजी लोग मुग्ध हैं। लेकिन ये मुग्धता कहीं उन्हें ले न डूबे ।
बड़ा मैसेज, मगर...
राज्य सरकार ने कवर्धा हिंसा में पुलिस पिटाई से आरोपी की मौत के बाद बड़ी कार्रवाई करते हुए कलेक्टर जन्मजय मोहबे और एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव को हटा दिया। इस घटना के तूल पकड़ने के बाद इस बात का अंदेशा था कि एसपी को बदला जाएगा। मगर कलेक्टर के बारे में किसी ने सोचा नहीं था। सरकार ने कलेक्टर को भी हटा दिया। आपको याद होगा कलेक्टरों की जिम्मेदारी तय करते हुए सरकार कई मौकों पर कह चुकी था कि जिलों में अगर हिंसा होगी तो उसके लिए कलेक्टर भी जिम्मेदार होंगे। ये बात पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने पहले कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में कही थी और वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भी। मगर इस पर अमल हो जाएगा, ब्यूरोक्रेसी में इसका किसी को अंदाजा नहीं था। हालांकि, कवर्धा कलेक्टर को नागरिक आपूर्ति निगम का एमडी बनाया गया है। ये पांचों उंगली घी में...वाली पोस्टिंग है। जन्मजय पिछली सरकार में पहले बालोद का कलेक्टर बनाए गए थे और फिर कवर्धा के। दिसंबर 2023 में सरकार बदलने पर कई कलेक्टर गुमनामी में चले गए थे। किन्तु जन्मजय बीजेपी की सरकार आने के बाद भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। और इस बार हटाए जाने के बाद बढ़ियां पोस्टिंग पाने में। यकीनन, जन्मजय किस्मत के धनी तो हैं।
दामाद बाबू कलेक्टर
डिप्टी सीएम के जिले में जन्मजय मोहबे की जगह गोपाल वर्मा को कलेक्टर बनाया गया है। वाणिज्यिक कर विभाग के अफसर गोपाल वर्मा एलायड कोटे से 2021 में आईएएस बने हैं। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें खैरागढ़ का कलेक्टर बनाया गया था। मगर सरकार बदलने के बाद स्वाभाविक तौर पर पहली ही लिस्ट में उनका विकेट उड़ गया था। लेकिन, अभी कुछ अस्वाभाविक हो गया। कवर्धा हिंसा के बाद जन्मजय को हटाकर गोपाल को जिले की कमान सौंपी गई है। गोपाल एक एक्स सीएम के भांजी दामाद हैं। डिप्टी सीएम ने किस रणनीति के तहत पूर्व मुख्यमंत्री के रिश्तेदार को अपने जिले में कलेक्टर बनवाया है, ब्यूरोक्रेसी का दिमाग काम नहीं कर रहा है। खुद गोपाल का भी दिमाग चकरा रहा होगा...अच्छे दिनों में खैरागढ़ जैसे नए जिले से संतोष करना पड़ा था और इस सरकार में कवर्धा जैसा पूर्व सीएम और वर्तमान डिप्टी सीएम का जिला मिल गया।
पुलिस के खराब योग
छत्तीसगढ़ पुलिस में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। तीन महीने में दो डायरेक्ट आईपीएस सस्पेंड हो गए। पहला, एसएसपी। और दूसरा आईपीएस की पिच पर उतरते ही एडिशनल एसपी। जाहिर है, एडिशनल एसपी लेवल पर आईपीएस विरले ही सस्पेंड होते हैं। इस कार्रवाई से नए और तेज-तर्रार अफसर के कैरियर पर बड़ा धब्बा लग गया। इसके बाद कवर्धा के एसपी अभिषेक पल्लव यकबयक हटा दिए गए। ये तीनों आईपीएस एक ही प्रदेश के रहने वाले हैं। ग्रह-नक्षत्र का खेल देखिए...तीनों ऐसे समय में वक्त का शिकार हुए हैं, जब उसी प्रदेश के लोग उपर में बेहद मजबूत स्थिति में हैं।
कुछ पूजा-पाठ
डीजीपी अशोक जुनेजा और एसीएस होम मनोज पिंगुआ को पुलिस मुख्यालय में कुछ पूजा-पाठ कराना चाहिए। क्योंकि, पुलिस के योग अच्छे नहीं चल रहे हैं। इस समय प्रदेश के अधिकांश पुलिस अधीक्षक ज्ञात-अज्ञात वजहों से दुखी चल रहे हैं। और जब कप्तान खुश नहीं तो फिर अच्छी पोलिसिंग की उम्मीद कैसे की जा सकती है। एसीएस और डीजीपी को अच्छे पुलिस अधिकारियों को हौसला बढ़ाने की जरूरत है।
आईएएस और ओड़िया लॉबी
चूकि प्रदेश विशेष और आईएएस लॉबी की बात निकली तो बता दें कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में एक दौर ओड़िसा के अफसरों का था। एसके मिश्रा चीफ सिकरेट्री थे। उनकी पत्नी इंदिरा मिश्रा एडिशनल चीफ सिकरेट्री। उसके बाद डीएस मिश्रा प्रमुख सचिव, एमके राउत सिकरेट्री। इनके बाद सुब्रत साहू। तब छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में ओड़िसा के नौकरशाहों की तूती बोलती थी।
लाल बत्ती, भाजपा और कांग्रेस
सत्ताधारी पार्टी के नेता लाल बत्ती के लिए बेचैन हैं। इतने व्यग्र उन्हें कभी नहीं देखा गया। रमन सिंह की 15 साल वाली सरकारों में भी नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही सियासी नियुक्तियां हुई थी। मगर इस बार भाजपाइयों को धैर्य नहीं। कांग्रेसियों की तरह अपने ही पोस्ट में गोल मारने जैसी भ्रांतियां फैला रहे हैं...सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मौका नहीं छोड़ रहे। 2018 की जीत के बाद कांग्रेसी भी कहते थे...हमने सरकार बनवाई। और बीजेपी वाले भी यही दावे कर रहे..। सवाल यह है कि कांग्रेसियों ने सरकार बनाई तो फिर 15 साल सत्ता से बाहर क्यों रहे। और प्रश्न भाजपाइयों से भी कि महतारी वंदन योजना के साथ अगर पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अगर झांकी नहीं बनाई होती तो सरकार बनती क्या? अब आप बताइये...कांग्रेस और बीजेपी में फर्क क्या है?
अंत में दो सवाल आपसे
1. कवर्धा हिंसा में जब एसपी को हटाना था तो उससे पहले एडिशनल एसपी के निलंबन को आप कितना जायज मानते हैं?
2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद दो नहीं, बल्कि पांच मंत्री शपथ लेंगे?
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