शनिवार, 28 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: आईएएस अफसरों को प्रमोशन गिफ्ट

 तरकश, 29 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

आईएएस अफसरों को प्रमोशन का गिफ्ट

यूपी में 2009 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों के प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में भी इस बैच को सिकरेट्री बनाने की अटकलें तेज हो गई है। 2009 बैच के छत्तीसगढ़ में 11 आईएएस हैं। छह आरआर और पांच प्रमोटी।

आरआर के छह में से समीर विश्नोई कोयला घोटाले में जेल में हैं, और तंबोली अय्याज फकीरभाई सेंट्रल डेपुटेशन पर। बची डॉ. प्रियंका शुक्ला, किरण कौशल, अवनीश शरण, सौरव कुमार, सुनील जैन, कुमार चौहान, विपिन मांझी, डोमन सिंह और केडी कुंजाम। ये सभी नए साल में सचिव प्रमोट हो जाएंगे। इनमें चौहान और मांझी छह महीने ही सचिव रह पाएंगे। मई में दोनों एक साथ रिटायर हो जाएंगे।

विभाग नो चेंज!

प्रमोशन के बाद 2009 बैच के आईएएस अधिकारियों का विभाग बदलेगा, ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा। क्योंकि, सिकरेट्री में पहले से ही ओवरफ्लो हो रहा है। लिहाजा, प्रियंका शुक्ला हेल्थ में डायरेक्टर से कमिश्नर हो जाएंगी। किरण कौशल कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन पहले से हैं। सौरव कुमार एनआरडी और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में हैं, उनकी भी पोस्टिंग यथावत रहने वाली।

इस बैच के एकमात्र कलेक्टर अवनीश शरण इस समय बिलासपुर में हैं। अवनीश को पिछली सरकार में पूरे पांच साल हांसिये पर रखा गया। इसलिए लगता है वे बिलासपुर में शायद कंटीन्यू कर जाएं।

सचिव बनने के बाद कलेक्टर रहने के छत्तीसगढ़ में कई दृष्टांत रहे हैं। आरपी मंडल सात महीने राजस्व सिकरेट्री रहने के बाद रायपुर के कमिश्नर बनाए गए थे।

बहरहाल, विष्णुदेव सरकार सूबे के 50 से अधिक आईएएस अधिकारियों को प्रमोशन का गिफ्ट देगी, जिनमें 2012 बैच के 11 आईएएस स्पेशल सिकरेट्री और 2016 बैच के 18 आईएएस अफसर ज्वाइंट सिकरेट्री बनेंगे।

95 बैच के दोनों आईएएस डेपुटेशन पर हैं और 2000 बैच जीरो है, इसलिए एसीएस और प्रिंसिपल सिकरेट्री में कोई प्रमोशन नहीं होगा।

छत्तीसगढ़ के 3 जिलों में डीआईजी

छत्तीसगढ़ में 17 आईपीएस अधिकारियों को न्यू ईयर में प्रमोशन का गिफ्ट मिलेगा। इनमें दीपक झा और रामगोपाल गर्ग आईजी बनेंगे। वहीं 2011 बैच के सात आईपीएस संतोष सिंह, इंदिरा कल्याण ऐलेसेला, लाल उमेद सिंह, अजात बहादुर सिंह, जीआर ठाकुर, टीआर कोशिमा, प्रशांत ठाकुर डीआईजी प्रमोट होंगे।

इनके अलावा 2012 बैच के आशुतोष सिंह, विवेक शुक्ला, शशिमोहन सिंह, राजेश कुकरेजा, श्वेता राजमणि, राजेश अग्रवाल, विजय अग्रवाल और रामकृष्ण साहू को सलेक्शन ग्रेड मिलेगा। याने इन सभी का ओहदा बढ़कर एसपी से अब एसएसपी हो जाएगा

आईपीएस प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में तीन डीआईजी पुलिस अधीक्षक होंगे तो पांच सलेक्शन ग्रेड वाले। याने अब पांच जिलों में एसएसपी और तीन जिलों में सुपर एसएसपी होंगे।

हालांकि, छत्तीसगढ़ में यह पहली बार नहीं हो रहा...डीआईजी प्रमोट होने के बाद कप्तान रहने वालों की लिस्ट बड़ी लंबी है। बहरहाल, 33 में से आठ जिलों में अब सीनियर एसपी होंगे...ऐसे में लॉ एंड आर्डर की स्थिति सुधरने की उम्मीद की जा सकती है।

प्रशासन का कबाड़ा

अंग्रेजों के समय से सिस्टम बनाया गया था...कलेक्टरों को गाइड करने के लिए संभागों में कमिश्नर बिठाए जाते थे। इससे कलेक्टरों को फायदा यह होता था कि प्रशासन की गाड़ी अटकने पर वे कमिश्नरों से मार्गदर्शन ले लेते थे। मध्यप्रदेश के दौर में छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक धाकड कमिश्नर रहे। बीएस बासवान से लेकर हर्षमंदर तक।

मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह सिस्टम ध्वस्त हो गया। अजीत जोगी सरकार ने इसे औचित्यहीन मानते हुए कमिश्नर सिस्टम खतम कर दिया था। बीजेपी की सरकार ने 2005 में इसे फिर से चालू किया मगर दो-एक मौकों को छोड़ कभी आरआर वालों को कमिश्नर नहीं बनाया।

अंदर की बात यह है कि अधिकांश कलेक्टर नहीं चाहते कि कोई डायरेक्ट आईएएस उनके उपर कमिश्नर बनकर बैठ जाए। इसलिए, शुरू से कुतर्क देते हुए लाबिंग की गई...डायरेक्ट आईएएस कमिश्नर बनने पर समानांतर दुकान खोल देगा...कलेक्टरों से टकराव होगा।

समझने की बात है कि उपर में जब सरकार बैठी है...चीफ सिकरेट्री हैं...जीएडी सिकरेट्री हैं, तब कमिश्नर अपनी मनमानी कैसे चलाएंगे। और कमिश्नर अगर दुकानदारी किए तो सरकार के पास स्कू कसने के लिए पेंचिस तो है।

मगर कमिश्नर-कलेक्टर में तालमेल बिगड़ने का परसेप्शन फैलाकर अधिकांश संभागों में डमी कमिश्नर बिठा दिया गया। ताकि, कलेक्टर डीएमएफ से लेकर जिसमें मन चाहे अपनी चला सकें।

अभी सरगुजा कमिश्नर की पोस्टिंग होनी है। 31 दिसंबर को जी0 चुरेंद्र रिटायर होने जा रहे हैं। सरगुजा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का खुद का संभागीय मुख्यालय है। ऐसे में, सरकार को सरगुजा से इसकी शुरूआत करनी चाहिए।

बड़ा जिला, सीनियर कलेक्टर-एसपी

एक दशक पहले तक प्रशासन का थंब रुल था कि बड़े जिलों में सबसे सीनियर अफसरों को कलेक्टर, एसपी बनाया जाता था। मध्यप्रदेश के समय में इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और रायपुर के कलेक्टर-एसपी छांट के बनाए जाते थे। इन पांचों के कलेक्टर और कप्तान बनना गर्व की बात होती थी।

छत्तीसगढ़ बनने के बाद एक दशक तक ये परंपरा चलती रही। मगर उसके बाद ऐसे-ऐसे पठरु लोगों को कलेक्टर-एसपी बना दिया जा रहा है कि लोगों को उनका नाम तक पता नहीं होता। जाहिर है, पहले के कलेक्टर, एसपी का नाम लोगों  की जुबां पर होता था।

पिंक महल, DMF और प्रशासन का शीर्षासन

छत्तीसगढ़ में भी कम-से-कम संभागीय मुख्यालयों में तो सीनियर अफसरों को बिठाना चाहिए। प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी इसका फायदा होता है। आसपास के जिलों के कलेक्टर भी उसके अच्छे कामों को फॉलो करते हैं। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के डिवीजनल कमिश्नर और पुलिस रेंज के आईजी की पोस्टिंग में भी सरकार को ऐसा सोचना चाहिए। तब जाकर रिजल्ट दिखाई देगा।

लक्ष्मीजी के बल पर या जोर-जुगाड़ लगाकर कलेक्टर, एसपी, कमिश्नर, आईजी अपनी पोस्टिंग करा लेते हैं, उसका परिणाम छत्तीसगढ़ में दिख ही रहा है। सिस्टम रहा नहीं। न प्रशासन बचा है और न पुलिस। विकास हुआ है तो सिफ कलेक्टर और एसपी के बंगले का। डीएमएफ के पैसे से छत्तीसगढ़ के कलेक्टर, एसपी के बंगले पिंक महल बन गए हैं। ये हम नहीं कह रहे सरकार के पास रिपोर्ट आई है कि कलेक्टरों ने सरकारी बंगलों पर कैसे डीएमएफ का करोड़ों रुपए फूंक दिया।

हालांकि, राहत की बात यह है कि पुलिस अधीक्षकों ने बंगलों और गार्डन को सजाने में सरकारी खजाने का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने कोयला, कबाड़ी और जुआरियो-सटोरियो का इस्तेमाल किया। पुलिस अधीक्षकों को उतना कसूर नहीं।

कलेक्टरों से कंपीटिशन में एसपी डिरेल्ड हुए और कलेक्टरों की वर्किंग डिरेल्ड हुई करोड़ों रुपए के डीएमएफ से। रिजल्ट ये निकला कि छत्तीसग़ढ़ में प्रशासन से लेकर कानून-व्यवस्था सिर के बल है। और आम आदमी? इसका जवाब है...छत्तीसगढ़ियां, सबले बढ़ियां।

ऐसे भी अफसर

ऐसा भी नहीं कि छत्तीसगढ़ के सारे अफसर डिरेल्ड हो गए हैं। कुछ पहले भी ट्रेक पर थे और आज भी रास्ता नहीं बदले हैं। डेपुटेशन से रायपुर लौटे एक सीनियर आईपीएस अफसर सोफा लेने फर्नीचर दुकान पहुंचे।

अफसर के कद के हिसाब से दुकान वाला रेट बताना शुरू किया...। 12 लाख से लेकर जब वह डेढ़ लाख पर आया तो आईपीएस ने कोने में रखे सोफे का रेट पूछा। दुकान वाला बोला...23 हजार। अफसर बोले, इसी को दे दो।

दुकानदार हैरान...छोटे-मोटे डीएसपी, एडिशनल एसपी इतने लो लेवल पर नहीं आते और इतने बड़े साब....? कलेक्टरों में कुछ इतना बढ़ियां काम कर रहे हैं कि आप जानकर हैरान रह जाएंगे। लेकिन, दुकान में सरेआम रेट लिस्ट लगाने वालों की तुलना में अच्छे कलेक्टरों की संख्या मामूली है। इसलिए उनकी कोई चर्चा नहीं।

डेट ऑफ बर्थ का लोचा

पंजीयन सचिव शारदा वर्मा 31 दिसंबर को आईएएस से रिटायर हो जाएंगी। हालांकि, उनका डेट ऑफ बर्थ 1 जनवरी है। मगर रिटायमेंट का नियम है कि दो तारीख तक अगर कोई पैदा हुआ है तो उसका रिटायरमेंट लास्ट मंथ के लास्ट डेट को होगा। और दो के बाद...तो फिर वह पूरा महीना कंप्लीट करेगा।

मसलन, शारदा वर्मा की जन्मतिथि अगर 3 जनवरी होती तो फिर वह 31 जनवरी को रिटायर होतीं। ऐसे में, जो लोग बच्चों को स्कूल में दाखिले के टाईम जन्मतिथि एक लिखवा देते हैं, उन्हें इस बात को सनद रखना चाहिए।

अफसरों के लिए सबक

सरगुजा के डिवीजनल कमिश्नर जी0 चुरेंद्र आज से तीन दिन बाद 31 दिसम्बर को रिटायर हो जाएंगे। आईएएस के कैरियर में उन्होंने कमिश्नर पोस्टिंग का रिकार्ड बनाया है। बिलासपुर को छोड़ वे सभी संभागों में आयुक्त रह लिए। सबसे बड़े रायपुर संभाग में भी।

मगर उन्हें ताउम्र यह मलाल रहेगा कि स्पेशल सिकरेट्री से रिटायर होना पड़ा। चुरेंद्र के खिलाफ एसडीएम रहने के दौरान राजस्व के कुछ केस बने थे और उसमें उन्हें क्लीन चिट नहीं मिल पाई। इससे उनका सिकरेट्री प्रमोशन नहीं हो पाया। ब्यूरोक्रेसी के लिए यह सबक है।

ठीक है...पूर्व जन्मां के कुछ अच्छे कर्मों की वजह से सभी पकड़े नहीं जाते। मगर छत्तीसगढ़ में दो आईएएस, दो आईटीएस अफसर, दो एसडीएम समेत कई ज्वाइंट डायरेक्टर, एसई, ईडी जैसे अफसर जेल में हैं। तीर्थराज अग्रवाल और आरती वासनिक आईएएस अवार्ड से वंचित हो गए। ये घटनाएं आंखें खोलने के लिए होती हैं। मगर खुले तब तो।

मनमोहन की विनम्रता

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह कितने विनम्र थे, छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी इस छोटे से वाकये से आप समझ जाइयेगा। बात 14-15 साल पुरानी होगी। यही कोई 2009-10 के आसपास की। तब छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम प्रधानमंत्री कार्यालय में पोस्टेड थे। डेपुटेशन की निर्धारित अवधि सात वर्ष से दो बरस क्रॉस कर चुकी थी।

चूकि उस दौरान छत्तीसगढ़ में अफसरों की भारी कमी थी, लिहाजा सरकार चाह रही थी केंद्र उन्हें वापिस भेज दे। इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ सरकार से जब बार-बार रिमाइंडर जाने लगा तो डीओपीटी सिकरेट्री ने मनमोहन सिंह से बात की। बताते हैं, उन्होंने विनम्रता से कहा, क्या प्रधानमंत्री अपने कार्यालय में अपनी पसंद का एक आईएएस नहीं रख सकता?

प्रधानमंत्री की भावना का सम्मान करते हुए सीजी सरकार ने फिर इस चेप्टर को क्लोज कर दिया। यद्यपि, सुब्रमणियम छत्तीसगढ़ लौटे, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार के एक मंत्री का नाम बताइये, जिन्होंने अपने विभाग के वसूली का काम जिलेवार प्रायवेट लोगों को सौंप दिया है?

2. छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के लास्ट और छत्तीसगढ़ कैडर के फर्स्ट आईएएस, आईपीएस कौन-कौन हैं?


शनिवार, 14 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash: अज्ञानी कलेक्टर, दुःसाहसिक कार्य

 तरकश, 15 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अज्ञानी कलेक्टर-1

सक्ती जिले में ट्राईबल लैंड केस में जो हुआ, वह तो एक बानगी है। छत्तीसगढ़ के अधिकांश कलेक्टर सालों से ये चूक कर रहे हैं। फर्क इतना ही है कि कोई पैसा लेकर आंखें मूंद ले रहा तो कुछ को रीडर घूमा दे रहे हैं। जबकि, भू-राजस्व संहिता 165 में यह क्लियर है कि आदिवासी की कोई भी जमीन कलेक्टर की अनुमति के बगैर नहीं बेची जा सकती। मगर छत्तीसगढ़ में डायवर्टेड आदिवासी जमीन को कलेक्टर लिख कर दे दे रहे हैं...इसमें कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं है। सक्ती कलेक्टर ने भी ऐसा ही किया। दरअसल, सिस्टम की विडंबना यह है कि सम्मानजनक चढ़ावा न चढ़ाने पर कलेक्टर की अनुमति पाने चप्पल घिस जाएंगे। और पैसे दे दिए तो...।

अज्ञानी कलेक्टर-2

जाहिर है, आदिवासी जमीन को बेचने की अनुमति का प्रोसेस, महीनो की पेशी, बयान, साक्ष्य के बाद पूरा होता है। इसलिए इसमें डायवर्टेड लैंड का रास्ता निकाला गया। असल में, कलेक्टरों को आजकल नियम-कायदों की स्टडी होती नहीं। उनका रीडर जो बताता है, उसे वे ओके कर देते हैं। वही कलेक्टर एक जिले में पोस्टिंग के दौरान डायवर्टेड लैंड के मामले में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं लिखकर देते हैं और दूसरे जिले में जाते हैं तो अनुमति अनिवार्य बताते हैं।

दरअसल, 2008 में जब राधाकृष्णन राजस्व बोर्ड के चेयरमैन थे, तब भूमाफियाओं ने उनसे आर्डर करा लिया था कि डायवर्टेड लैंड में कलेक्टर की अनुमति की जरूरत नहीं। हालांकि, डीएस मिश्रा ने चेयरमैन बनते ही उसे समाप्त का दिया था। मगर कलेक्टरों के कई खटराल रीडर राधाकृष्णन के उसी फैसले के आधार पर भूमाफियाओं को उपकृत कर रहे हैं। बहती गंगा में हाथ धोने में रजिस्ट्री अधिकारी भी पीछे नहीं। कई मामले तो रजिस्ट्री अधिकारी सलटा दे रहे...पुराने केस का हवाला देकर वे कलेक्टर के पास केस जाने ही नहीं देते। आदिवासी स्टेट, आदिवासी मुख्यमंत्री के बाद भी अगर ऐसा हो रहा तो ये कलेक्टरों की दुःसाहस कही जाएगी।

पूत सपूत तो का धन संचय

छत्तीसगढ़ की हाल की दो घटनाएं हिला देने वाली है। पहली घटना राजधानी रायपुर की है...एक रिटायर इंजीनियर इन चीफ अपनी संपत्ति बेटे के नाम कर पछता रहे हैं। वे रजिस्ट्री अधिकारियों से संपर्क में हैं कि क्या बेटे के नाम की गई रजिस्ट्री शून्य हो सकती है। दरअसल, सूबे में जब ईडी के छापे पड़ने शुरू हुए तो ईएनसी डरकर अपनी कई संपत्तियों को परिजनों के नाम कर दिया था।

मगर अब रिटायर होने के बाद बेटे-बहू यह कहते हुए उन्हें आंख दिखाना शुरू कर दिया है कि कौन सा आप मेहनत करके कमाए हो। बहू तंज कसती है...ईडी नहीं आती तो प्रॉपर्टी मेरे नाम करते क्या?

दूसरी घटना छत्तीसगढ़ की न्यायधानी से है। बिलासपुर के एक नामी सर्जन ने अकूत संपत्ति अर्जित की। देखते-देखते उन्होंने बिलासपुर शहर के मध्य 200 बेड का अस्पताल खड़ा कर दिया। रायपुर के वीआईपी क्लब के पास एकड़ में प्लाट। दोनों बेटों को तगड़ा डोनेशन दे, डॉक्टर बनाया। मगर उन्होंने एक काम नहीं किया...बेटों को संस्कारित करना। वैसे, दीन-दुखियों की जेब से पैसा निकालना फलता भी नहीं। नतीजा यह हुआ कि उनके स्वर्गवास होते ही करोड़ों की संपत्ति के लिए बेटे सरेआम जुतमपैजार कर रहे हैं।

अलबत्ता, सर्जन दो-ढाई दशक पुराने युग के थे, इसलिए कुछ तो नेक काम किए ही होंगे। कोविड युग के डॉक्टरों और अस्पताल मालिकों को सोचना चाहिए...कोविड में बिना इलाज किए...सिर्फ बीमारी की खौफ में इतनी दौलत अर्जित कर लिए कि सिरदर्द हो गया है...बोरियों में रखे कैश को 'अब' किधर लगाएं। रायपुर, बिलासपुर शहर के आसपास की जमीनें डॉक्टरों से बची नहीं। बिल्डरों के पास पैसा लगाने पहले से ही राजनेताओं और नौकरशाहों की लाइन लगी है।

कहने का आशय यह है कि पुरानी कहावतें गलत नहीं होती...पूत सपूत तो का...। पैसे कमाइये...सारे शौक पूरे कीजिए...दुनिया की सैर कीजिए। बट एक सेल्फ लिमिट तय कीजिए। इसके तीन फायदे होंगे। गरीब लुटने से बच जाएगा। भ्रष्ट लोग जेल जाने से बच जाएंगे। और तीसरा संपत्ति विवाद में सड़क पर इज्जत की नीलामी नहीं होगी। बहरहाल, उपर की दोनों घटनाएं आंखें आंखें खोलने के लिए काफी है। तय करना आपका काम है।

सिस्टम जिम्मेदार

करप्शन के लिए राजनीतिक सिस्टम भी कम जिम्मेदार नहीं है। 50 करोड़ के मनरेगा घोटाले में अगर आईएएस टामन सिंह सोनवानी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई होती तो उसे पीएससी में बच्चों का भविष्य खराब करने की हिम्मत नहीं पड़ती। उसी तरह 2005 पीएससी में अगर सिस्टम कड़ा स्टैंड लिया होता तो आरती वासनिक को न आईएएस अवार्ड से मरहूम होना पड़ता और न वो जेल जाती।

ठीक है, जब तक किसी केस में फैसला नहीं हो जाता, प्रमोशन नहीं रोका जाता। मगर ये नियम बनाया कौन है? अफसरशाही ने अपनी सुविधा के लिए बनाई है। अलबत्ता, सरकार को अधिकार है कि जिनकी नीयत और निष्ठा सही नहीं है, उसे प्रमोशन से वंचित कर दें।

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पीएससी 2005 की भर्ती को निरस्त कर दिया था। इससे गंभीर केस क्या हो सकता है। इसके बाद भी सरकारें उन्हेंं धड़ाधड़ प्रमोशन ही नहीं दी बल्कि महत्वपूर्ण पोस्टिंग भी देती रही। इंतेहा तो तब हो गई जब, राज्य सरकार ने 2005 के सभी राप्रसे अधिकारियों को डीओपीटी से आईएएस अवार्ड करवा डाला।

सिस्टम जब तक कौवा मारकर नहीं टांगेगा, तब तक भ्रष्ट तंत्र इसी तरह पुष्पित-पल्लवित होता रहेगा। राज्य सरकार ने इस बार दो अफसरों का आईएएस अवार्ड रोका है...यह अच्छा संकेत है।

मगर यह भी सही है कि 2005 बैच वाले चार-पांच अधिकारियों को सरकार ने कलेक्टर बना डाला है, इसके संदेश अच्छे नहीं जाते...शुचिता कायम करने सिस्टम को इस पर विचार किया जाना चाहिए।

एसपी का आदेश

रायपुर के एसएसपी संतोष सिंह को हटने-हटाने को लेकर लंबे समय से चर्चाएं चल रही थी। मगर जब यह परसेप्शन बन गया कि अब नगरीय निकाय चुनाव तक कोई ट्रांसफर नहीं होंगे। सरकार ने बुधवार को देर संतोष सिंह को हटाकर पीएचक्यू भेज दिया। कोरिया के एसपी का हटना अपेक्षित था। पिछले तरकश में यह सवाल भी पूछा गया था कि सरगुजा पुलिस रेंज के किस एसपी को सरकार हटाने वाली है।

इसलिए, कोरिया के एसपी हटने पर कोई हैरानी नहीं हुई। मगर ट्रांसफर लिस्ट में संतोष सिंह का नाम देखकर लोग चौंक गए। पता नहीं, ऐसा क्या हुआ कि सीएम विष्णुदेव साय ने अफसरों से कहा कि दोनों एसपी के आदेश आज ही जारी किए जाएं।

संतोष का अनूठा रिकार्ड

रायपुर एसएसपी संतोष सिंह को भले ही रातोरात बदल दिया गया। मगर उन्हें यह संतोष होगा कि कप्तानी का उनका बनाया हुआ रिकार्ड निकट भविष्य में कोई तोड़ नहीं पाएगा। एसपी के तौर पर संतोष ने बिना ब्रेक लगातार नौ जिला किया। कोंडागांव से शुरू हुई उनकी कप्तानी का सफर नारायणपुर, महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, राजनांदगांव, कोरबा, बिलासपुर होते हुए रायपुर में खतम हुआ।

हालांकि, छत्तीसगढ़ के आईपीएस बद्री नारायण मीणा ने भी एसपी के तौर पर नौ जिला किया है। मगर दो अलग-अलग दौर में। आईबी में डेपुटेशन पर जाने से पहले उनका सात जिला हुआ था और फिर लौटकर जांजगीर और दुर्ग जिला किया। बहरहाल, संतोष के नौ जिले में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि लगातार तीन सरकारों में बिना ब्रेक वे एसपी रहे। सरकारें बदलती रहीं मगर उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आया।

रमन सरकार में कोंडागांव और नारायणपुर के एसपी रहे। भूपेश सरकार में महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, कोरबा और बिलासपुर। इसके बाद दिसंबर 2023 में बीजेपी की सरकार बनी तो उन्हें बिलासपुर में कंटिन्यू किया गया। इसके बाद फिर रायपुर के एसएसपी बनें। याने विष्णुदेव सरकार में दो जिला उन्होंने किया। बेशक, तीन-तीन सरकारों में बिना ब्रेक एसपी रहने का देश में एक नया रिकार्ड होगा।

डीजीपी के दावेदार

सुप्रीम कोर्ट के तेवर के बाद भारत सरकार ने जीपी सिंह को आईपीएस की सर्विस बहाल कर दिया है। इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें पोस्टिंग देगी। हालांकि, जीपी की मशक्कतें अभी भी जारी रहेगी। उनके सामने अब विभागीय जांच खतम करा डीजी प्रमोशन कराना बड़ा टास्क रहेगा। चूकि कैट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दिया है इसलिए अब विभागीय जांच में भी कुछ होना नहीं है।

सिर्फ बाइंडिंग की औपचारिकता बची है। उसके बाद फिर डीजी प्रमोशन के लिए डीपीसी होगी। जीपी के पास अगर एकाध महीने का भी वक्त होता तो वे डीपीसी कराने के बाद डीजीपी के पेनल में नाम जुड़वाने के लिए यूपीएससी को प्रेजेंटेशन दे सकते थे। तब डीजीपी के चार दावेदार हो जाते। मगर अब उन्हें वेट करना होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. निलंबन में पैसा मिलेगा, मगर काम नहीं...अंग्रेजों के समय की इस व्यवस्था को टाईट क्यों नहीं की जा रही, ताकि गलत कार्य करने से लोग बचे?

2. छत्तीसगढ़ में कौन-कौन मंत्रियों ने प्रायवेट वसूली एजेंट नियुक्त कर डाला हैं?

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष

 तरकश, 8 दिसंबर 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ का भाग्यदोष

मध्यप्रदेश के बंटवारे के दौरान वहां के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कैडर आबंटन में ऐसी चकरी चलाई कि अधिकांश छंटे हुए आईएएस छत्तीसगढ़ आ गए। उसके बाद रही-सही कसर छत्तीसगढ़ पीएससी ने पूरी कर दी। डिप्टी कलेक्टर प्रशासन के रीढ़ माने जाते हैं। मगर पीएससी ने भर्ती में ऐसा खेला किया कि छत्तीसगढ़ में प्रशासन की रीढ़ ही टूट गई। जो नायब तहसीलदार बनने लायक नहीं थे, वे दरबारी और टामन युग में डिप्टी कलेक्टर बन गए उसके बाद आईएएस भी। ऐसे अफसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।

अभी राज्य प्रशासनिक सेवा के 14 अधिकारियों को आईएएस अवार्ड हुआ है, उनमें दो-तीन को छोड़ दें तो बाकी कर्मकांडियों के आईएएस बनने पर भगवान भी हैरान होंगे। इनमें से दो अफसरों ने रायपुर और दुर्ग में पोस्टिंग के दौरान अवैध प्लाटिंग की धूम मचा दी थी। पहले अवैध प्लाटिंग के लिए नोटिस दो और लिफाफा मिलने पर केस क्लियर। ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों से छत्तीसगढ़ को क्या उम्मीद होगी। दिल को तसल्ली देने के लिए यही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ का भाग्य ही खराब है।

जीरो टॉलरेंस का मैसेज

सरकार ने आईएएस अवार्ड में अपनी तरफ से जीरो टॉलरेंस की भरपूर कोशिश की। जीएडी को इंस्ट्रक्शन था कि किसी दागी को आईएएस अवार्ड नहीं करना है। पीएससी की परीक्षा नियंत्रक रही आरती वासनिक के खिलाफ सीबीआई ने इंटरव्यू के दो दिन पहले ही एफआईआर की रिपोर्ट भेजी थी। वरना, आरती वासनिक को ड्रॉप करने का कोई आधार नहीं था।

बाकी लोग सीनियरिटी में आ गए तो डीपीसी के मेम्बर रेणु पिल्ले और मुकेश बंसल भी कुछ नहीं कर सकते थे। आरती वासनिक का नाम कट गया इसलिए नायब तहसीलदार से भर्ती हुए वीरेंद्र बहादुर पंच भाई तक की किस्मत का पिटारा खुल गया। वे भी आईएएस अफसर बन गए। कह सकते हैं, छत्तीसगढ़ में चना-मुर्रा वाला हाल हो गया है आईएएस का।

नए चीफ सिकरेट्री कौन?

हालांकि, चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अभी छह महीने से अधिक समय बाकी है। मगर उनकी गद्दी संभालने वाले की चर्चाएं ब्यूरोक्रेसी में अभी से शुरू हो गई हैं। अमिताभ के बाद सीनियरिटी में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू हैं। 93 बैच में फिर अमित अग्रवाल हैं।

अमित इस समय भारत सरकार में पोस्टेड हैं और सबसे अधिक संभावनाएं उनकी बताई जा रही है। अमित की संभावनाएं इसलिए कि उनके बाद 94 बैच में मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा हैं। इनमें से अगर किसी को सीएस बनाया जाएगा तो एक को फिर मंत्रालय से बाहर पोस्टिंग देनी होगी। चूकि दोनों अच्छे अफसर हैं, इसलिए सरकार ऐसा चाहेगी नहीं।

ऐसे में, एक ही रास्ता है कि अमित अग्रवाल छत्तीसगढ़ लौटें। यद्यपि, अमित दिल्ली में अच्छे पोजिशन में हैं, खुद भी छत्तीसगढ़ लौटने के इच्छुक नहीं दिख रहे। मगर जैसे कि कई राज्यों में दिल्ली से चीफ सिकरेट्री भेजा गया है, वैसा कुछ हुआ तो फिर अमित को लौटना पड़ेगा। उच्च स्तर की लोगों की इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात होने की चर्चाएं भी हैं। बहरहाल, अमित आएं या न आएं, उनके नाम से ही ब्यूरोक्रेसी में धकधकी शुरू हो गई है...अफसरों का आखिर रामराज खतम हो जाएगा।

चेंबर में कैमरा

घर-परिवार से असंतुष्ट या आदत से लाचार छत्तीसगढ़ के कुछ अफसरों के इधर-उधर बहकते कदम की चर्चाएं अब पब्लिक डोमेन में होने लगी हैं। अलबत्ता, ये भी सही है कि ऐसे मामलो को चटपटा बनाने उसमें मिर्च-मसाले भी मिला दिए जाते हैं। फिर भी...बिना आग के धुंआ निकलता नहीं। जीएडी सिकरेट्री को इसके लिए काउंसलिंग करनी चाहिए। आखिर, इससे राज्य का नाम ही खराब होगा। बरसते नोटो की गड्डियां, गोल्ड-डायमंड की ज्वेलरी और महंगे उपहारों की चकाचौंध में घरवालियां व्यस्त हो जाती हैं, और अफसर लगते हैं गुल खिलाने।

कायदे से जितने बड़े अफसर, उनके लंगोट उतने ही टाईट होनी चाहिए। मगर कलयुग ये है। दरअसल, कुछ फर्म और कंपनियां सुनियोजित ढंग से अफसरों को ट्रेप करने के लिए हनी गर्ल याने खूबसूरत लड़कियों को अपाइंट कर लिया है। उनका काम ही है चिकनी-चुपड़े बात कर अफसरों को फंसाना और उसके बाद मनमाफिक फाइलों को ओके कराना। हनी गर्ल के जाल में अफसर ट्रेप होते जा रहे हैं और हिट विकेट भी।

हालांकि, चरित्र को लेकर चौकस कुछ अफसर विषकन्याओं से बचने अपने चेंबर में कैमरा लगाने लगे हैं। पारदर्शिता की दिशा में ये अच्छा कदम है। सरकार को इसे एप्रीसियेट करनी चाहिए।

पसंद अपनी-अपनी

विषकन्याओं की बात आई तो एक पुराना वाकया याद हो आया। पुराने मंत्रालय की बात है। दोपहर का वक्त था...सिकरेट्री होम एएन उपध्याय के पास मैं बैठा था। तभी भृत्य एक विजिटिंग कार्ड लाकर उन्हें दिया। मुझे वहां बैठे करीब घंटा भर हो गया था, फिर किसी आगंतुक का कार्ड भी आ गया था, सो मैं उठने लगा। मगर उपध्यायजी ने मुझे बिठा लिया। बोले...बैठो अभी। दिल्ली की हथियार सप्लाई करने वाली कंपनी की महिला आई है...इन लोगों से मैं डरता हूं...आप थोड़ी देर और बैठ जाओ। उनका आग्रह था, मैं बैठ गया। उन्होंने घंटी बजाई और भृत्य से कहा, भेजो।

दरवाजा खुला तो एक लंबी-चौड़ी कद काया की गौर वर्ण की बेहद आकर्षक युवती भीतर दाखिल हुई। नजाकत और नफासत के साथ वह अपनी कंपनी के गोला-बारूद, रायफल की बारे में बताती रही और उपध्याय जी आदतन हूं...हां करते रहे। उपध्याय जी तरफ से रिस्पांस काफी ठंडा था। इसलिए वह ज्यादा देर बैठ नहीं सकी। करीब 10 मिनट में ही थैंक्स बोलकर खड़ा हो गई।

उसी दिन शाम करीब छह बजे पुलिस मुख्यालय के एक बहुते बड़े अफसर से मेरा अपाइंटमेंट था। मैं नियत समय पर उनके पास पहुंच गया। अभी उनके पास बैठे दो-से-तीन मिनट हुआ होगा कि हथियार सप्लाई कंपनी की वही युवती बेधड़क दरवाजा खोलकर दाखिल हुई। युवती को देखते ही अफसर के चेहरे पर चमक आ गई...उन्होंने बड़ा वार्म वेलकम किया। इतना वार्म कि मुझे दो-चार पल बैठना असहज लगने लगा। चूकि चाय आ गई थी, सो जैसे-तैसे दो-चार चुस्की लेकर निकल गया। कहने का आशय यह है...पसंद अपनी-अपनी। लंगोट के पक्के लोग सुंदरियों को देखकर भी अपना धैर्य नहीं खोते और लंगोट के ढिले लोग जीभ लपलपाने लगते हैं।

सरकार नाराज?

भारत सरकार से सात वर्ष के डेपुटेशन से लौटे अमित कटारिया को अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है। अंदेशा व्यक्त किया जा रहा कि कहीं अमित की लंबी छुट्टी से सरकार खफा तो नहीं है। जाहिर है, भारत सरकार से रिलीव होने के बाद अमित दो महीने की छुट्टी पर चले गए थे। छुट्टी पूरी होने पर वे रायपुर आए और ज्वाईन करने के साथ ही दो महीने की छुट्टी ले ली। फिर छुट्टी खतम होने पर पिछले महीने रायपुर आए मगर ज्वाईनिंग के बाद फिर दिल्ली चले गए।

इससे पहले की बीजेपी सरकार में अघोषित नियम बन गया था दिल्ली से लौटने वाले अफसरों को पोस्टिंग के लिए महीने भर तक वेट करना पड़ता था। अमिताभ जैन, अमित कुमार और गौरव द्विवेदी को भी इस परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मगर ये तीनों रायपुर में डटे रहे। अमित और गौरव आफिसर्स क्लब में महीना भर तक पोस्टिंग की बाट जोहते रहे। बहरहाल, सरकार को समझना चाहिए दिल्ली की चकाचौंध में सात साल तक नौकरी करने के बाद रायपुर में रहना मुश्किल तो होगा ही।

संयोग ऐसा भी

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जब केंद्र में इस्पात राज्य मंत्री थे तो विशाखापटनम के सांसद किंजरामू राममोहन नायडू उनसे मिलने आया करते थे। दरअसल, भारत सरकार का स्टील प्लांट विशाखापटनम में है और नायडू वहीं से पहली बार के सांसद थे तो किसी-न-किसी इश्यू को लेकर वे विष्णुदेव से मिलते रहते थे। नायडू अब केंद्र में एवियेशन मिनिस्टर बन गए हैं। वो भी स्वतंत्र प्रभार।

इस बार संयोग ऐसा रहा कि छत्तीसगढ़ की एयर कनेक्टिविटी को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्वयं उनसे मिलने पहुंचे। विष्णुदेव को देख नायडू को खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सीएम उन्हें मुद्दे गिनाते गए और वे यस बोलते गए। टूटी-फूटी हिंदी में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए जो भी बन पड़ेगा...हम जरूर करेगा। चलिये, अच्छा है। छत्तीसगढ़ में एयरकनेक्टिविटी दुरूरूत होने की संभावनाएं अब काफी प्रबल हो गई हैं।

सीएम सिक्यूरिटी में चूक क्यों?

पिछले दो महीने में तीन से चार बार सीएम सिक्यूरिटी में चूक हुई है। पहली बार दुर्ग में काफिले की गाड़ियां आपस में टकरा गईं। फिर रायगढ़ में ट्रेफिक जाम हुआ। और अब कवर्धा में कुछ पल के अंतराल में दो घटनाएं। पहले में सीएम का काफिला जहां से गुजरना था, वहां एक लावारिस कार खड़ी थी और दूसरा...सीएम को ट्रैफिक जाम की वजह से पीछे लौटना पड़ा।

कवर्धा में मुख्यमंत्री का जनवासय में जाने का कार्यक्रम अचानक बना। मगर वहां के पुलिस अधिकारियों को 10 मिनट टाईम लेकर रोड क्लियरेंस करा लेना था। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। इसमें पुलिस अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है। गृह विभाग को कम-से-कम अपने विभागीय मंत्री के जिले में ठीकठाक अफसर को पोस्ट करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि सरगुजा पुलिस रेंज के किसी एसपी की छुट्टी होने वाली है?

2. मंत्रियों के पीए और अघोषित सलाहकारों की धुंआधार बैटिंग को रोका क्यों नहीं जा रहा है?