शनिवार, 18 जनवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: सिंहदेव दो, हाथ की लकीरें एक

 तरकश, 19 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

सिंहदेव दो, हाथ की लकीरें एक

छत्तीसगढ़ की सियासत में सिंहदेवों का बहुत अच्छा नहीं चल रहा है। ज्योतिषियों का कहना है कि उनकी कुंडली के राजयोग वाले घर में राहू का वास हो गया है। जाहिर है, उत्तर छत्तीसगढ़ वाले सिंहदेव मुख्यमंत्री की कुर्सी के निकट पहुंचकर उस पर बैठने से वंचित हो गए। हाईकमान के सामने उनके जिह्वा पर राहू आकर बैठ गया और कुर्सी की डिलिंग के दौरान विनम्रतापूर्वक जी बोल बैठे।

नतीजा यह हुआ कि कुर्सी उनके सामने से खिसक गई। यदि थोड़ा सा टाईट होकर इतना भर बोल गए होते...उम्र मेरी ढलान पर है, पहले मैं ढाई साल...फिर दाउजी। तो वे आज मुख्यमंत्री होते या फिर पूर्व मुख्यमंत्री तो कहलाते ही।

अब बात दक्षिण वाले सिंहदेव की। ये भी नाम के सिंहदेव निकले। वे समझ नहीं पाए और संगठन के कुछ नेताओं ने उन्हें मोहरा बनाते हुए मंत्री के लिए प्रोजेक्ट कर दिया। 15 दिन से उनके घर बधाइयों का तांता लगा रहा...। मगर राहू-केतु की प्रभाव कहें कि सिंहदेव के सामने से मंत्री का सजा थाल निकल गया। वे फिर से प्रदेश अध्यक्ष बना दिए गए...जो उन्हें गवारा नहीं था। दोनों सिंहदेवों को डॉ0 रमन सिंह और विष्णुदेव साय के पंडितों का पता लगाकर कुछ पूजा-पाठ करा लेना चाहिए।

अय्याशी का ट्रांजिट हॉस्टल

ट्रांजिट हॉस्टल इसलिए बनवाया जाता है कि कामकाज के सिलसिले में कोई सरकारी अधिकारी जिला मुख्यालय में आए तो उसे होटल में न रहना पड़े। मगर छत्तीसगढ़ के मुंगेली का ट्रांजिट हॉस्टल अफसरशाही की बदनामी का कारण बनता जा रहा है। वहां के ट्रांजिट हॉस्टल की रातें इतनी रंगीन होने लगी है कि उसकी चर्चाएं अब मुंगेली से चलकर राजधानी रायपुर तक पहुंचने लगी हैं।

दरअसल, मुंगेली छोटी जगह है। वहां अगर बाहर से हनी गर्ल बुलाई जाए या फिर सिस्टम की कोई तलाकशुदा युवती रोज वहां पहुंच जाए, तो ये बात भला कैसे छुपेगी। वैसे भी इस तरह की बातों को पंख लगने में देरी नहीं होती। सिस्टम को इसे नोटिस में लेनी चाहिए। क्योंकि, कोई उंच-नीच हुआ तो बात सरकार पर आएगी।

हेल्थ सिकरेट्री की मेजर सर्जरी

मेडिकल कारपोरेशन बोलें तो छत्तीसगढ़ का इकलौता सरकारी कारपोरेशन...जिसे सिस्टम नहीं, सप्लायर चलाते हैं। रेणु पिल्ले के सिकरेट्री हेल्थ और कार्तिकेय गोयल के सीजीएमससी एमडी रहने के दौरान एक पावरफुल महतारी की वहां से छुट्टी कर दी गई थी। मगर जैसे ही रेणु और कार्तिकेय हेल्थ से हटे, उसके अगले महीने एक बड़े सप्लायर ने महतारी की फिर से सीजीएमससी में पोस्टिंग करा दी। यह 2022 की बात रही होगी।

बहरहाल, सीएम सचिवालय ने नए हेल्थ सिकरेट्री अमित कटारिया को इशारा किया। इसके बाद अमित ने सीजीएमससी की एमआरआई कराई। जांच में एक महतारी की अदम्य साहस और पावर का पता चला। इतना पावर कि बड़ी वाली महतारी छोटी वाली को दीदी बोलती थी, ताकि कुर्सी सुरक्षित रहे। पता चला है, हेल्थ सिकरेट्री ने फायनेंस सिकरेट्री के संज्ञान में यह बात लाई और अगले दिन महतारी का आदेश निकल गया। जाहिर है, अमित की एक सर्जरी से सीजीएमससी की 60 परसेंट बीमारी का निदान हो गया।

पढ़ने-लिखने वाले आईएएस, But

अमित कटारिया को सीजीएमससी में एक और सर्जरी करनी होगी...इसके बाद दावा है कि सीजीएमससी 80 परसेंट भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा। दरअसल, टेक्निकल विंग सीजीएमससी में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा जरिया़ है। मेडिकल उपकरणों की खरीदी में टेक्निल अधिकारियों द्वारा टेंडर में ऐसे क्लाज जोड़ दिए जाते हैं, जिससे दूसरा कोई सिर पटक ले, मिलेगा उसे ही जिसे अफसर चाहते हैं। और ये टेक्निल चीजें अधिकांश आईएएस समझ नहीं पाते।

ब्यूरोक्रेट्स के साथ दिक्कत यह है कि हार्ड परिश्रम से यूपीएससी में उनका सलेक्शन तो हो जाता है मगर आईएएस बनने के बाद पढ़ना-लिखना एकदम बंद। पीए या विभाग के खटराल कर्मचारी, अधिकारी जो बता दिया, उसे ही नियम समझ बैठते हैं। सीजीएमससी में यही हुआ। कार्तिकेय गोयल के अलावा कोई भी एमडी सिस्टम में घुस नहीं पाया।

उसका खामियाजा यह हुआ कि अफसरों ने सप्लायरों के साथ गठजोड़ कर पिछले एक दशक में 10 हजार करोड़ से ज्यादा का खेला कर डाला। गनीमत है, सरकार ने अब सीजीएमससी की सर्जरी शुरू कर दी है। लेकिन, इसके साथ सिस्टम पर भी ध्यान देना चाहिए। छत्तीसगढ़ के दो करोड़ गरीबों के लिए दवा और उपकरणों की सप्लाई करने वाले इस विभाग का आलम यह है कि 14 साल में एक भी निगम का अपना कोई अधिकारी, कर्मचारी नहीं है। आउटसोर्सिंग के भरोसे इसे खींचा जा रहा।

ईओडब्लू जांच पर ब्रेक?

सीजीएमससी के संगठित भ्रष्टाचार की खबरें मीडिया में सुर्खिया बनने पर सिस्टम ने ईओडब्लू जांच की बात कही थी। इसके लिए फाइल भी आगे बढ़ गई थी। मगर छह महीने हो गए...कहीं से प्रेशर आया और फाइल ठहर गई। उधर, मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबरें वायरल होने के दौरान विधानसभा में सीजीएमससी पर ध्यानाकर्षण आया तो स्वास्थ्य मंत्री को ईओडब्लू जांच की घोषणा करनी पड़ी। मगर अभी भी इसका कोई अता-पता नहीं है।

सवाल उठता है कि 10 हजार करोड़ के करप्शन की जांच को कौन रोक रहा है। लोग भी जानना चाह रहे कि 10 साल पहले 50 लाख का धंधा करने वाले दवा और उपकरण सप्लायर का 500 करोड़ टर्न ओवर कैसे हो गया? कौन से वे भ्रष्ट हाथ हैं, जिन्होंने सप्लायर को आर्थिक मोक्ष प्राप्त करवाते हुए 50 लाख से 500 करोड़ का आसामी बना दिया?

एक मंत्री, एक सचिव बट...

सरकार एक मंत्री, एक सिकरेट्री के नाम पर कुंदन कुमार को डायरेक्टर अरबन एडमिनिस्ट्रेशन से हटाकर हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर और आरडीए का सीईओ बना दिया। याने ओपी चौधरी अब उनके मंत्री होंगे। नगरीय निकाय में होने के नाते अभी तक वे दो मंत्रियों में बंटे हुए थे। ओपी चौधरी के साथ अरुण साव के बीच। सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि दो-तीन महीने में बाकी सचिवों का भी इसी तरह युक्तियुक्तकरण किया जाएगा।

याने एक मंत्री, एक सिकरेट्री। असल में, दो-दो, तीन-तीन मंत्री होने पर अफसरों को समन्वय बिठाने में कई बार दिक्कत होती है। मसलन, एक मंत्री की मीटिंग है और दूसरे ने कहीं बुला लिया तो फिर मामला गड़बड़ाता है। मगर इस खबर में महत्वपूर्ण यह है कि डायरेक्ट आईएएस को हटाकर प्रमोटी आईएएस रिमुजियेस एक्का को डायरेक्टर बनाया गया है।

इस विभाग में पहले निरंजन दास कमाल कर चुके हैं और अब उस अधिकारी को कमान सौंपी गई है, जो 35 परसेंट वाले युग में लंबे समय तक स्पेशल सिकरेट्री अरबन एडमिनिस्ट्रेशन रहे। हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे, जो हुआ, उसकी बात कर रहे...बाकी सरकार समझें।

5 को पीएम अवार्ड

छत्तीसगढ़ के पांच कलेक्टरों को अभी तक पीएम अवार्ड मिल चुका है। सबसे पहला अवार्ड सरगुजा कलेक्टर आर. प्रसन्ना को मिला था। उनके बाद फिर सरगुजा जिले की ही कलेक्टर रीतू सेन को। 2015 में दंतेवाड़ा कलेक्टर ओपी चौधरी को यह अवार्ड मिला। उनके बाद फिर दंतेवाड़ा के ही कलेक्टर सौरव कुमार को...और अब धमतरी कलेक्टर नम्रता गांधी को। पीएम अवार्ड ब्यूरोक्रेसी का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है। प्रधानमंत्री यह पुरस्कार प्रदान करते हैं।

कलेक्टर और भूमाफिया

जिस तरह कहा जाता है कि दरोगा और एसपी अगर चाह ले तो जिला अपराध मुक्त हो सकता है, उसी तरह सच्चाई यह है कि कलेक्टर अगर चाह ले तो भूमाफिया अवैध प्लाटिंग का खेल नहीं कर सकते। दरअसल, कलेक्टर ही रेवेन्यू का मुखिया होता है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने पहले ही कलेक्टर कांफ्रेंस में कलेक्टरों से भूमाफियाओं के खिलाफ कड़ा से कड़ा एक्शन लेने कहा था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कुछ कलेक्टरों ने जांच-पडताल आगे बढ़ाई। जमीनों की जब्ती की कार्रवाई के साथ ही पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया गया।

मगर मुश्किल से दो-तीन जिले में ही...बाकी जिलों के हाल नहीं बदले। सीधी सी बात है कि कलेक्टर जब तक हिम्मत नहीं दिखाएंगे, तब तक भूमाफियाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। गूगल में सर्च करने पर पता चला कि सिर्फ जांजगीर में एक बार कलेक्टर तारनप्रकाश सिनहा ने सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले पांच भूमाफियाओं को एसपी विजय अग्रवाल से गिरफ्तारी करा जेल भेज दिया था।

दरअसल, अधिकांश कलेक्टरों के साथ दिक्कत यह है कि उनमें सबसे प्रतिष्ठित सर्विस के साथ ईमानदारी से न्याय करने का अब माद्दा नहीं बचा। वे गुडी-गुडी बन चाहते हैं कि दो-चार जिले की कलेक्टरी कर लें। इसलिए, अबके कलेक्टर जोखिम वाले कामों में हाथ नहीं डालना चाहते। पोस्टिंग उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। जाहिर तौर पर भूमाफियाओं को ठिकाने लगाने का काम वही कलेक्टर कर सकता है, जो ट्रांसफर आदेश जेब में लेकर घूमता हो।

हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह भी है कि छोटे राज्य में पॉलीटिकल हस्तक्षेप काफी बढ़ गया है। दमदारी से काम करने वाले कलेक्टरों को प्रोटेक्शन नहीं मिल रहा। 70 परसेंट कलेक्टर सिर्फ नौकरी कर रहे हैं...30 फीसदी जो अच्छे वाले हैं, वे भी ज्यादा उत्साह नहीं दिखाना चाहते। वजह...? यह कि छोटी-मोटी चूक में अब कोई बचाने वाला नहीं।

बेमेतरा की आईएएस एसडीएम की पिछले सरकार में इसलिए छुट्टी कर दी गई थी कि उन्होंने भूमाफियाओं के खिलाफ वहां मुहिम छेड़ दी थी। तो इस सरकार में भी सूरजपुर के एसडीएम लक्ष्मण तिवारी को रेत माफियाओं के खिलाफ कड़ाई से पेश आने की कीमत यह चुकानी पड़ी कि एक मंत्री ने उन्हें सूरजपुर से 700 किलोमीटर दूर सुकमा भिजवा दिया। लक्ष्मण छत्तीसगढ़ कैडर छोड़कर बिहार चले गए। छत्तीसगढ़ में जरूरत है कि एक अच्छे प्रशासनिक वातावरण तैयार करने की। क्योंकि, सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन अफसर करते हैं और वही अगर भ्रष्ट सिस्टम के पार्ट बन जाएंगे या फिर असुरक्षित महसूस करेंगे, तो यह छत्तीसगढ़ के हित में नहीं है।

रोमांचक मुकाबला

छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचना आयुक्त के एक पद के लिए इस बार भारत-पाकिस्तान जैसे मुकाबले की स्थिति निर्मित हो सकती है। इस पद के लिए 58 आवेदन आए हैं, उनमें वर्तमान मुख्य सचिव अमिताभ जैन, वर्तमान डीजीपी अशोक जुनेजा, पूर्व मुख्य सचिव आरपी मंडल और पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी जैसे प्रतिभागी हैं। अलबत्ता, रिसेंट सीएस के नाते अमिताभ जैन का पलड़ा इनमें भारी रहेगा। मगर सवाल यह है कि अशोक जुनेजा, आरपी मंडल और डीएम अवस्थी को कम कैसे आंका जा सकता है।

मंडल क्रिकेट के बड़े शौकीन हैं। उन्हें मालूम है कि किस बॉल को कैसे प्लेस करने पर बाउंड्री पार हो जाती है। वे जोगी सरकार में प्रभावशाली रहे। रमन सरकार में सिकरेट्री होने के बाद भी उन्हें रायपुर का कलेक्टर बनाया गया था। और भूपेश सरकार में मुख्य सचिव। फिर जुनेजा का तो आउटस्टैंडिंग पोस्टिंग का रिकार्ड रहा है। वे जो चाहते हैं, उनके हाथों में वैसी लकीरें बन जाती हैं।

डीएम अवस्थी महाकाल के पक्के भक्त हैं। दिसंबर 2018 में बीजेपी की सरकार पलटने पर गिरधारी नायक को भूपेश बघेल डीजी बनाना चाहते थे मगर महाकाल की ऐसी चकरी चली कि डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाना पड़ा बल्कि ना-ना करके उन्हें पौने तीन साल तक इस पद पर रखना पड़ा। अब ऐसे-ऐसे हाई प्रोफाइल प्लेयरों ने इस पद के लिए दावेदारी की है तो फिर मुकाबला दिलचस्प रहेगा ही। लोगों की निगाहें अब सीएम विष्णुदेव साय पर टिकी है कि वे इन चारों हरफनमौला खिलाड़ियों से किसे चैंपियन घोषित करते हैं।

तड़फड़ रिलीविंग

ट्रांसफर के बाद अब उसे रुकवाने की धंधेबाजी नहीं चलेगी। जीएडी इसको लेकर सख्त हो चुका है। 17 जनवरी की देर शाम सरकार ने 60 राप्रसे अधिकारियों के ट्रांसफर किए और अगले दिन शाम तक सभी को रिलीव कर दिया गया। जीएडी अपने यहां के लोगों को रिलीव किया ही, कलेक्टरों को रात में ही जीएडी सिकरेट्री ने मैसेज कर दिया था...एनी हाउ कल तक रिलीव कर देना है। 18 शनिवार अवकाश का दिन होने के बाद भी कलेक्टरों ने शाम तक धड़ाधड़ रिलीविंग आर्डर मुख्यमंत्री सचिवालय को भेज दिया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऐसा क्यों हो रहा कि अमर अग्रवाल के मंत्री बनाने के नाम से बीजेपी के अंदरखाने का टेम्परेचर बढ़ जा रहा और क्या सिर्फ इसी वजह से मंत्रिमंडल का विस्तार टल जा रहा?

2. 4 फरवरी के दोपहर तक अशोक जुनेजा का अगर एक्सटेंशन नहीं हुआ तो फिर सरकार किस आईपीएस को प्रभारी डीजीपी अपाइंट करेगी?

Chhattisgarh Tarkash 2025: एक झटके में 36 करोड़

 तरकश, 12 जनवरी 2025

संजय के. दीक्षित

एक झटके में 36 करोड़

5 जनवरी के तरकश स्तंभ में पुलिस में किराये की गाड़ियों के खेला को एक्सपोज किया गया था। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने इस खबर का स्क्रीनशॉट सिकरेट्री फायनेंस को भेजा और उसके बाद सिस्टम हरकत में आ गया। पीएचक्यू के शीर्ष अफसरों ने बकायदा वीसी कर पुलिस अधीक्षकों को आईना दिखाया।

बताते हैं, पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी बकायदा लिस्ट लेकर वीसी में पहुंचे थे कि किस जिले में कितनी गाड़ियां मिसयूज हो रही हैं। पीएचक्यू ने सारे एसपी को आदेश दिया है कि अब जिलों में किराये पर चलने वाली गाड़ियों को वे खुद जस्टिफाई करेंगे। पता चला है कि चार-पांच दिन के भीतर 33 जिलों में पुलिस विभाग ने 400 इनोवा और स्कार्पियो का हटा दिया है।

सबसे अधिक बिलासपुर पुलिस ने टाईट किया है। वहां गाड़ियों की संख्या 110 से 53 पर आ गई है। दूसरे जिलों में भी गाड़ियों की संख्या कम की जा रही है। बहरहाल, अगर एक हफ्ते के भीतर 400 इनोवा और स्कार्पियो को हटाया गया है तो महीने का करीब 3 करोड़ रुपए की बचत हुई और साल का 36 करोड़ रुपए।

सिस्टम के एक्शन मोड को देखते माना जा रहा कि जनवरी खतम होते-होते पुलिस विभाग की करीब एक हजार गाड़ियां कम हो जाएंगी। याने छत्तीसगढ़ के खजाने का करीब 200 करोड़ बचेगा। ये राशि पुलिस अधिकारियों की जेब में जा रही थी।

अफसरों की ट्रेवल एजेंसी

नक्सलवाद के नाम पर बस्तर में किराये की गाड़ियों का खेला शुरू हुआ था, वह अब पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गया। खासकर, पिछले दशक में यह संगठित भ्रष्टाचार का रुप ले लिया है। जाहिर है, एसपी जिले का सबसे बड़ा पुलिस अफसर होता है और इस खेल को उसी की नजरे इनायत मिल जाए, तो फिर इसको कौन रोेकता।

आलम यह कि छोटे से राजनांदगांव जिले में किराये की 100 गाड़ियां...जरूरत जबकि, पांच-सात की। कवर्धा जैसा छोटा जिला किराये की गाड़ियों में सबसे टॉप पर। एसपी की मीटिंग में कवर्धा की संख्या जानकर डीजीपी अशोक जुनेजा आवाक रह गए।

तरकश में यह खबर छपने के बाद कुछ पुलिस अधीक्षकों ने बताया कि छुटभैया नेताओं से लेकर अधिकारियों तक का काफी प्रेशर रहता है...आरआई सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में चला देता है। याने बिना गाड़ी चले, हर महीने उनके एकाउंट में पैसा पहुंचने की स्थायी व्यवस्था।

कई आरआई अपने परिजनों के नाम पर ट्रेवल एजेंसी खोल डाले हैं। जाहिर है, 100 में से 20 गाड़ी नेताओं और अधिकारियों की होती है...आरआई उपर से 80 गाड़ियों की बिलिंग कर लेते हैं। और, जब मिली जुली कुश्ती है तो फिर बात बाहर कैसे आएगी? आप समझ सकते हैं।

कमरा और अपशकुन!

महानदी भवन के पांचवे सबसे ताकतवर फ्लोर पर मुख्यमंत्री और उनका सचिवालय है। इसमें एक बड़ा कमरा मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के लिए बनवाया गया था। मगर वास्तुविदों की सलाह पर अग्नेय कोण के कमरे को छोड़कर दूसरे नंबर के बड़े कमरे को उन्होंने अपना चेम्बर बनाया। और मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित कमरे में बैजेंद्र कुमार बैठे।

इसके छह साल बाद दिसंबर 2018 में सरकार बदली तो काफी अरसा तक बैजेंद्र वाला कमरा खाली रहा। भूपेश बघेल के सचिव गौरव द्विवेदी और सुब्रत साहू ने अमन सिंह वाले कमरे को तवज्जो दिया। मगर बाद में सिकरेट्री टू सीएम बने टामन सिंह सोनवानी ने सीएम वाले कमरे को चुना।

अब सिकरेट्री टू सीएम राहुल भगत उसमें बैठ रहे हैं। उस कमरे के बारे में धारणा बना दी गई है कि जो भी उसमें बैठा, उसका अच्छा नहीं हुआ। बैजेंद्र कुमार चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाए। और टामन सिंह सोनवानी इस समय जेल में हैं। अलबत्ता, राहुल भगत आईपीएस हैं। वर्दी वाले का वास्तु भला क्या बिगाड़ लेगा। वैसे भी, बैजेंद्र कुमार जैसे न वे खरी-खरी बात करते और न ही टामन सिंह वाला कोई गुण उनमें है।

बहरहाल, इस समय अमन सिंह वाले चेम्बर में पीएस टू सीएम सुबोध सिंह बैठ रहे हैं और सुबोध सिंह के रमन सिंह के टाईम वाले कमरे में दयानंद। मुकेश बंसल मिनिस्ट्रियल ब्लॉक में फर्स्ट फ्लोर पर और बसव राजू शुरू से सीएम सचिवालय की बजाए सेक्रेटेरियेट ब्लॉक में बैठते हैं।

सीएम सचिवालय भी छोटा

12 साल पहले बने मंत्रालय और सचिवालय का हाल यह है कि सचिवों के बैठने के लिए कमरे नहीं हैं तो मुख्यमंत्री सचिवालय भी इस संकट से जुदा नहीं। सीएम के पांच सिकरेट्री हैं। इनमें से तीन ही सचिवालय में बैठ पा रहे हैं। बाकी दो अलग-अलग। मंत्रालय का जब तक एक्सटेंशन नहीं होगा, सीएम का कोई दूसरा सचिव अब वहां नहीं बैठ सकता। कायदे से सीएम के सचिवों का सीएम सचिवालय में चेंबर होना चाहिए।

नया प्रशासनिक निजाम?

मुख्य सचिव अमिताभ जैन के अवकाश पर जाने के बाद दूसरे नंबर के सीनियर आईएएस अधिकारी रेणु जी0 पिल्ले को सरकार ने प्रभार सौंपा है। रेणु पिल्ले का आदेश निकलते ही ब्यूरोक्रेसी में सीएस बदलने की अटकलें तेज हो गईं। लोग इसे पी0 जॉय उम्मेन की छुट्टी से लगे जोड़कर देखने।

2012 में उम्मेन जब अपने गृह राज्य केरल गए थे तो रमन सरकार ने उनका विकेट उड़ाकर सुनिल कुमार को सीएस की कुर्सी पर बिठा दिया था। शुरू में सुनिल कुमार को भी प्रभारी मुख्य सचिव बनाया गया था। पर वो केस दूसरा था। सवा तीन साल सीएस रह चुके उम्मेन से सरकार नाखुश थी।

मगर अमिताभ के साथ ऐसा कुछ नहीं है। वे पिछली सरकार में भी सीएस रहे और अभी भी कंटिन्यू कर रहे हैं। मगर मिलियन डॉलर का सवाल है कि रेणु पिल्ले को सरकार ने अचानक बुलाकर कुछ दिनों के लिए ही सही, सबसे बड़ी कुर्सी क्यों सौंप दी? जबकि, प्रभारी सीएस बनाने की चर्चा दूसरे अफसरों की थी।

विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि सरकार के अंदरखाने में बड़ा फैसला हो चुका है। तभी प्रशासन अकादमी से बुलाकर उन्हें अमिताभ का प्रभारी बनाया गया। बात को समझिएगा...अमिताभ का टेन्योर चार साल क्रॉस कर चुका है। उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त के लिए अप्लाई भी कर दिया है।

ऐसे समय में चीफ सिकरेट्री जैसे जिम्मेदार अफसर अगर छुट्टी पर जाता है तो चार्ज उसको दिया जाता है, जिसे आगे बिठाना हो। और रेणु के साथ यही हुआ है। दस दिन में उनका ट्रॉयल भी हो जाएगा। इसके बाद सरकार बड़ा डिसिजन ले सकती है। संभव है कि रेणु पिल्ले छत्तीसगढ़ की नई प्रशासनिक निजाम बन जाएं।

प्रशासनिक भर्राशाही

रेणु पिल्ले के चीफ सिकरेट्री बनने से नेताओं की दिक्कतें बढ़ेगी...नियम-कायदों को ओवरलुक करने वाले कामों को भूलना पड़ेगा। मगर छत्तीसगढ़ के हित में सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि प्रशासनिक अराजकता दूर हो जाएगी। मंत्रालय के अफसर 10 बजे की बजाए पांच मिनट पहले ऑफिस पहुंचने लगेंगे।

आईएएस की एक पी़ढ़ी तो पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है, नई पीढ़ी कम-से-कम दुरूस्त हो जाएगी। मोदी सरकार भी चाहेगी कि ठीकठाक ही मुख्य सचिव बनाया जाए। हालांकि, रेणु पिल्ले जैसी सीएस लंबा नहीं चलती। मगर ऐसे मौके पर मुझे पूर्व डीजीपी अमरनाथ उपध्याय की बेबाकी से कही गई बात याद आ गई...उन्होंने एक बार शेयर किया था कि सरकार को मुझसे पहले गिरधारी नायक को डीजीपी बना देना चाहिए था...नायक साब मुझसे पहले अगर डीजीपी बन गए होते तो पुलिस की भर्राशाही को मुझे नहीं झेलना पड़ता।

माथे पर लिक्खा...

मुख्यमंत्री, चीफ सिकरेट्री और डीजीपी सबको बनने का मौका नहीं मिलता। टीएस सिंहदेव प्रेशर बिल्डअप करने इस्तीफा दिया, इसके बाद भी भूपेश बघेल ने पांच साल कंटिन्यू किया। जबकि, लिखा-पढ़ी ढाई साल की थी। इस सरकार में भी नाम कइयों के चले मगर कुर्सी हासिल हुई विष्णुदेव साय को।

इसी तरह सीएस और डीजीपी में भी हुआ। अशोक विजयवर्गीय और सुनील कुजूर को चीफ सिकरेट्री बनने का मौका मिल गया तो सीधे-साधे भोले-भंडारी मिजाज के अमरनाथ उपध्याय ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वे कभी डीजीपी बनेंगे...मगर वे पूरे चार साल पुलिस महकमे के मुखिया रहे।

डीजीपी को एक्सटेंशन?

डीजीपी अशोक जुनेजा का छह महीने का एक्सटेंशन समाप्त होने में अब 23 दिन बच गए हैं। राज्य सरकार ने नए डीजीपी के लिए यूपीएससी को तीन आईपीएस अधिकारियों के नामों का पेनल भेज दिया है। इनमें पवनदेव, अरुण देव गौतम और हिमांशु गुप्ता शामिल हैं।

मगर जुनेजा को दूसरे एक्सटेंशन देने की चर्चाएं भी बड़ी तेज है। बीजापुर नक्सली हमले में आठ जवानों के शहीद होने के बाद तो अब नहीं लगता कि नक्सलियों से आरपार के युद्ध की इस स्थिति में डीजीपी बदलना चाहेगी। अब किसी के माथे पर 4 फरवरी को डीजीपी बनना लिखा होगा तो फिर बात अलग है।

तीसरा मंत्री कौन?

बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने मंत्रियों की सूची में कोई अचानक कोई बदलाव नहीं किया तो दो नाम तय हैं। एक पूर्व मंत्री हैं तो दूसरा नया। अब सवाल है तीसरा मंत्री कौन होगा? पता चला है, किरण सिंहदेव के मसले पर अभी उहापोह की स्थिति है।

बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष पर पेंच उलझा हुआ है। पार्टी में ये भी साफ नहीं है कि हरियाणा की तरह क्या छत्तीसगढ़ में भी 13 मंत्री होंगे? ये अवश्य तय है कि 17 या 18 जनवरी को नगरीय और पंचायत चुनाव का ऐलान होगा, इससे पहले मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा। तब तक खड़मास भी खतम हो जाएगा।

अजय चंद्राकर का क्या?

विधानसभा में बीजेपी के स्टार प्लेयर अजय चंद्राकर को विधानसभा का उपाध्यक्ष बनाए जाने की चर्चाएं हैं। और ये भी कि इसके लिए वे तैयार नहीं हैं। जाहिर सी बात है कि विधानसभा उपाध्यक्ष का पद झुनझुना से ज्यादा कुछ होता नहीं। और इसके लिए भला वे कैसे तैयार हो जाएंगे।

बीजेपी उलझन में है कि अगर अजय चंद्राकर को कुछ नहीं मिला तो चार साल तक विधानसभा में मंत्रियों का क्या होगा? कुछ दिन पहले खतम हुए शीतकालीन सत्र में चंद्राकर ने वरिष्ठ मंत्रियों को पानी-पानी कर दिया था। जाहिर है, सदन में 90 परसेंट मोर्चा वे अकेले संभालते हैं। संसदीय ज्ञान तो उनके पास है ही, विषय-वस्तुओं का इतना गहन अध्ययन कर सदन में पहुंचते हैं कि जिस दिन अजय चंद्राकर का सवाल या ध्यानाकर्षण रहता है, मानकर चला जाता है, उस मंत्री की खैर नहीं।

कांग्रेस के मंत्रियों को वे अकेले छकाते रहे और इस समय भी वे हर सत्र में कुछ-न-कुछ बड़ा निकालकर मंत्रियों को बैकफुट पर जाने विवश कर देते हैं। देखना होगा, अजय चंद्राकर जैसे नेता के लिए बीजेपी क्या रास्ता निकालती है।

मंत्रालय पटरी पर, मगर जिले...?

प्रशासनिक क्षेत्र में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी कि मंत्रालय के अफसर 24 साल में पहली बार टाईम पर पहुंचने लगे हैं। दोपहर तक जिन सचिवों के गलियारे विरान रहते थे, वहां अब रौनक आ गई है। अफसर दस बजे पहुंच जा रहे, लिहाजा उनका स्टाफ उससे पहले हाजिर रहता है। अफसरों की उपस्थिति को सीएम सचिवालय से मॉनिटरिंग की जा रही है।

सरकार को इसे एक संदेश की तरह जिलों में पहुंचाना चाहिए। जिलों में इसकी आवश्यकता ज्यादा है। कलेक्ट्रेट से लेकर एसडीएम, तहसील समेत अन्य आफिसों में आम आदमी का काम पड़ता है। मगर कौन कब मिलेगा, इसका भरोसा नहीं। गुरूजी लोग पढ़ाना-लिखाना छोड़ मोटा-पतला होने की दवाइयां बेच रहे हैं।

डीईओ, बीईओ को कमीशन के अलावा किसी चीज से मतलब नहीं। स्कूलों में अगर मंत्रालय सिस्टम लागू हो जाएगा कि गुरूजी दीगर धंधे छोड़ अपना मूल काम शुरू कर देंगे। सो, सरकार को जल्द ही इसके लिए कलेक्टरों को टाईट करना होगा। बिना टाईट किए संभव नहीं क्योंकि कलेक्टरों के पास डीएमएफ के धंधे से फुरसत नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बीजापुर के किस पुलिस अधीक्षक ने पत्रकार मुकेश हत्याकांड के मास्टरमाइंड सुरेश चंद्रकार को अपने बावर्ची से 500 करोड़ का ठेकेदार बना दिया?

2. बीजापुर सड़क घोटाले में लिप्त पीडब्लूडी के अधिकारियों पर कार्रवाई करने को लेकर सरकार असमंजस में क्यों दिख रही है?

शनिवार, 4 जनवरी 2025

Chhattisgarh Tarkash 2024: डिप्टी सीएम, सड़क और बवाल

 तरकश, 5 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

डिप्टी सीएम, सड़क और बवाल

छत्तीसगढ़ के विधानसभा में कुछ दिन पहले ही दंतेवाड़ा में आरईएस द्वारा बिना सड़क बनाए पैसे भुगतान पर बवाल मचा था। इस पर पंचायत मिनिस्टर विजय शर्मा ने चार अफसरों को सस्पेंड करने का ऐलान किया। इधर, पत्रकार मुकेश चंद्राकार हत्याकांड में पीडब्लूडी के अफसर निशाने पर हैं। 56 करोड़ की सड़क का 112 करोड़ पेमेंट कर दिया गया।

जब तक ऐसे ठेकेदार और अफसर रहेंगे, अमित शाह लाख कोशिश कर लें, बस्तर नक्सलियों से मुक्त नहीं हो सकता। आखिर, यह शाश्वत सत्य है कि नक्सलियों को टैक्स देने के बाद ही ठेकेदारों को काम करने की हरी झंडी मिलती है। नेताओं से लेकर अफसरों और नक्सलियों को मालूम होता है कि काम कागजों पर होना है।

तभी एक दशक पहले तक एसपीओ की मामूली नौकरी करने वाला सुरेश चंद्राकार 500 करोड़ का ठेकेदार बन जाता है। बहरहाल, संयोग यह है कि दोनो विभाग डिप्टी सीएम का है। अरुण साव के पास पीडब्लूडी है और विजय शर्मा के पास पंचायत और ग्रामीण विकास।

दोनों उप मुख्यमंत्रियों को अपने अधिकारियों को टाईट करना चाहिए। क्योंकि, बिना इसके अमित शाह का ड्रीम प्रोजेक्ट कामयाब नहीं हो सकता। फिर महत्वपूर्ण यह भी है कि दोनों सरकार के वरिष्ठतम मंत्री हैं...वे एक्शन मोड में आएंगे तो देखादेखी नए मंत्री भी उनका अनुसरण करेंगे। सिर्फ ये बोलकर वे जिम्मेदारी से मुक्त नहीं काट सकते कि हमारी चल नहीं रही है।

मोदी बड़े या राहुल?

पुलिस में किराये की गाड़ियों में हो रहे खेला पर डीजीपी अशोक जुनेजा ने सवाल-जवाब किया तो एक दिलचस्प खुलासा हुआ। डीजीपी की मीटिंग से लौटने के बाद एक जिले के पुलिस अधीक्षक ने किराये की गाड़ियों की जांच कराई तो पता चला कि विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने 85 इनोवा और स्कार्पियो किराये पर लिया था और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए 140। याने पीएम मोदी से अधिक राहुल की सुरक्षा?

200 करोड़ का खेला

सालां से चला आ रहा पुलिस विभाग का किराये की गाड़ियों का खेला पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाता अगर डीजीपी अशोक जुनेजा ने भृकुटी टेढ़ी नहीं की होती। पिछले महीने एसपी की मीटिंग में उन्होंने सबको खरी-खरी सुनाई। दरअसल, छत्तीसगढ़ पुलिस जितना पैसा हर साल किराये की गाड़ी में फूंक रही है, उतने में हर साल एक हजार इनोवा गाड़ी खरीदी जा सकती है।

मोटे आंकलन के तौर पर हर जिले में साल में सात-से-दस करोड़ रुपए किराये गाड़ियों पर खर्च किए जाते हैं। इस हिसाब से 33 जिलों में हर साल करीब 250 करोड़ रुपए गाड़ियों के किराये के नाम पर बहाया जा रहा। इस 250 करोड़ में से मुश्किल से पूरे प्रदेश में 50 करोड़ वास्तविक खर्च होता होगा। बाकी 200 करोड़ रुपए आरआई से लेकर पुलिस अफसरों की जेब में।

सबसे अधिक बुरी स्थिति है राजनांदगांव और रायपुर रेंज की। तीन टुकड़ों में बंट गए राजनांदगांव जैसे छोटे जिले में 100 इनोवा और स्कार्पियो किराये की चल रही है...इसे एसपी कांफ्रेंस में सार्वजनिक रूप से बताया गया। असल में, किराये की गाड़ियों के नाम पर बरसों से जिलों में बड़े स्तर पर संगठित भ्रष्टाचार चल रहा है।

वस्तुस्थिति यह है कि गाड़ियां कागजों में चल रही है। क्योंकि, इतनी गाड़ियों की जरूरत नहीं होती। पीएचक्यू में प्रदीप गुप्ता जैसे साफ-सुथरी छबि के एडीजी वित्त और योजना के बैठे होने के बाद भी आश्चर्य है कि उन्होंने इसे संज्ञान कैसे नहीं लिया? अलबत्ता, कड़वी सच्चाई यह भी है कि इनमें से आधी गाड़ियां खुद पुलिस अधिकारियों की है, जो अपने परिजनों और रिश्तेदारों या फिर टैक्सी वालों के जरिये चलवा रहे हैं।

वित्त मंत्री को संज्ञान

वीआईपी के फॉलोगार्ड में चार गाड़ी और तीन जवान...आपको विश्वास नहीं होगा कि ये भला कैसे संभव होगा। तीन जवान चार गाड़ी में कैसे बैठेंगे? डीजीपी की मीटिंग के बाद एक एसपी ने रैंडम जांच की तो पता चला कि हड़बड़ी में बिल बनाने के चक्कर में आरआई ने तीन जवानों को चार गाड़ियों में बिठाने का कारनामा कर डाला। बहरहाल, जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल ने अक्टूबर में एक आदेश निकाला था कि बिना अनुमति गाड़ियां हायर नहीं की जाएगी। मगर पता नहीं किधर से प्रेशर आया, उन्होंने अपना आदेश खुद ही निरस्त कर दिया।

वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसे संज्ञान लेना चाहिए। पुलिस विभाग भले ही उनका नहीं मगर खजाने का चाबी सरकार ने उन्हें सौंपी है तो साल का 200 करोड़ रुपए पुलिस अधीक्षकों और आरआई लोगों की जेब में क्यों जाए। इस 200 करोड़ से हर साल पुलिस जवानों के लिए सुविधायुक्त आवास बनाए जा सकते हैं...पुलिस को संसाधनों से लैस किया जा सकता है।

सुबोध सिंह और कठिन टास्क

पीएस टू सीएम सुबोध सिंह ने कार्यभार संभालने के बाद प्रशासन में सुधार के काम तेज कर दिए हैं। सीएम के सचिवों को भी अब संभागों का दायित्व सौंप दिया है। याने कलेक्टर, एसपी पावर देखकर मुख्यमंत्री के सचिवों की चापलूसी नहीं करेंगे, उन्हें अपने संभाग के प्रभारी सचिवों से ही बात करनी होगी। यह सुशासन की दिशा में अच्छा कदम है।

मगर सुबोध सिंह के समक्ष चुनौतियां कहीं अधिक है। असल में, छत्तीसगढ़ के लिए सुबोध नए नहीं है, इसलिए सभी की यही उम्मीद है कि सुबोध सिंह कुछ करेंगे। सुबोध सामने सबसे तगड़ा टास्क होगा, प्रशासनिक करप्शन को रोकना। एक तरह से कहें तो प्रशासनिक अराजकता की स्थिति है।

आम आदमी बोल रहे, सरकार बदल गई...मगर अफसर और अफसरों की करतूतें नहीं बदली। हाल यह है कि सरकार के साल भर हो गए मगर किधर से कौन बॉल फेंक रहा...किसी को समझ नहीं आ रहा। खटराल अफसर सरकार और संगठन के कई चौखटों का फायदा उठा रहे, इस पर भी स्वच्छ प्रशासन के लिए अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।

अफसरों को इसका अहसास होना चाहिए कि गड़बड़ करने पर अब कोई भाई साब नहीं बचाएंगे, तभी सूबे में प्रशासनिक शुचिता और कसावट आ पाएगी। वरना, अफसर मासूमियत भरी सफाई देकर एनजीओ को करोड़ों का टेंडर देते रहेंगे।

इसी हफ्ते की घटना है...सीजीएमससी के प्रमुख ने कहा कि उन्हें मालूम नहीं कि अस्पतालों के फायर ऑडिट का काम जिसे दिया गया है, वह एनजीओ है। जबकि, टेंडर के आदेश में उन्होंने ही स्पष्ट तौर पर डायरेक्टर को लिखा...फलां समिति को आप लोग काम दें। अब उन्हें प्रायवेट लिमिटेड और समिति का अंतर नहीं मालूम को क्या कहा जा सकता है। यकीनन...सुबोध सिंह के सामने कठिन टास्क है।

अनलिमिटेड आईजी

कभी एक समय था कि आईजी बनाने के लिए अफसर नहीं होते थे। कई साल तक स्थिति यह रही कि पांच रेंज, पांच आईजी स्तर के आईपीएस रहे। विकल्प न होने पर डॉ. रमन सिंह को कई बार किसी आईपीएस को नहीं चाहते हुए भी आईजी बनाना पड़ा। मगर इस समय छत्तीसगढ़ में पूरे 18 आईजी हो गए हैं। पीएचक्यू में ही आधा दर्जन से ज्यादा होंगे।

संख्या बढ़ने से 2007 बैच के आईपीएस अधिकारियों के आईजी प्रमोशन में लोचा आ गया था। इस बैच में तीन आईपीएस हैं रामगोपाल गर्ग, दीपक झा और अभिषेक शांडिल्य। डीपीसी के बाद सरकार को इनके प्रमोशन के लिए इसे आधार बनाकर रास्ता निकालना पड़ा कि तीन अफसर डेपुटेशन पर है। इस चक्कर में बाकी आईपीएस का प्रमोशन का आदेश रुक गया है।

16 को आचार संहिता?

नगरीय और पंचायत चुनाव में आगे-पीछे होने की एक वजह यह भी रही कि सिस्टम दो महीने से काफी व्यस्त रहा। दिवाली, राज्योत्सव, सरकार का एक साल, अमित शाह का 15 दिन में दो बार दौरा, विधानसभा का शीतकालीन सत्र। ऐसे में, महापौर, अध्यक्ष और पार्षद प्रत्याशियों के लेवल पर कोई काम ही नहीं हुआ। राज्य निर्वाचन आयोग ने जब चुनाव ऐलान करने की तैयारी तेज की तो लगा कि कुछ गड़बड़ हो रहा है। फिर आरक्षण आगे बढ़ाया गया। बहरहाल, 15 जनवरी को मतदाता पुनरीक्षण का काम कंप्पलीट हो जाएगा। इसके अगले दिन 16 जनवरी को चुनाव का ऐलान हो जाएगा।

बीजेपी के नए अध्यक्ष OBC से?

बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश की मौजूदगी में 3 जनवरी को रायपुर में पार्टी की एक अहम बैठक हुई। पार्टी कार्यालय के बाद सभी छत्रप सीएम हाउस गए। वहां क्या हुआ, ये तो नहीं पता मगर ये जरूर है कि बैठक छत्तीसगढ़ के नए अध्यक्ष के लिए मंथन हुआ। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव को मंत्रिमंडल में शामिल करने पार्टी गंभीर है। रही बात नए प्रदेश अध्यक्ष की तो इसके लिए पार्टी किसी ओबीसी नेता पर दांव लगाने विचार कर रही है। इसमें नारायण चंदेल के लिए जबर्दस्त लॉबिंग चल रही है। हालांकि, ओबीसी से इस समय छह मंत्री हैं। गजेंद्र यादव को कहीं मौका मिल गया तो फिर सात हो जाएंगे। आदिवासी वर्ग से सीएम हैं तो इसमें अब कोई स्कोप नहीं। सामान्य से अमर अग्रवाल, किरण सिंहदेव और ओबीसी से गजेंद्र यादव...मंत्री के लिए ये तीन नाम इस समय सबसे अधिक चर्चाओं में है। अब देखना है पार्टी किस पर मुहर लगाती है। 

उल्टी गंगा

छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी इस कदर कभी बैकफुट पर नजर नहीं आई। हालत यह है कि बीएड धारी 2855 सहायक शिक्षकों की बर्खास्तगी पर विपक्ष हमलावर है और बिना किसी चूक के बीजेपी बगले झांक रही है। न मंत्री दमदारी से कुछ बोल रहे और न उसके प्रवक्ता। ऐसा ही कुछ पत्रकार मुकेश चंद्राकार हत्याकांड में भी हुआ। कांग्रेस ने राष्ट्रीय पदाधिकारी ने दिल्ली से सरकार को आड़े हाथ लेकर ट्वीट कर दिया और आरोपी का कांग्रेस कनेक्शन की फोटुएं सोशल मीडिया पर भरी होने के बाद भी बीजेपी के न मीडिया सेल से कुछ ट्वीट हुआ और न पार्टी के किसी पदाधिकारी ने बयान दिया। कांग्रेस के ट्वीट के बाद बीजेपी हरकत में आई...फिर उसकी काट के तौर पर आधी रात के बाद ट्वीट हुआ। सरकार बने अब साल भर हो गए हैं...बीजेपी नेताओं को आत्ममुग्धता से बाहर आना होगा। वरना, अगले महीने नगरीय और पंचायत चुनाव में परेशानी आ सकती है। सत्ताधारी पार्टी को कम-से-कम सरकार के पक्ष को दमदारी से रखनी चाहिए। इसके लिए मोदीजी, अमित शाह या मनसुख मांडविया थोड़े आएंगे।

आईएएस की वैकेंसी

छत्तीसगढ़ में एलायड सर्विस कोटे से आईएएस का दो पद खाली हो गया है। पहला अनुराग पाण्डेय के रिटायर होने के बाद अगस्त में खाली हुआ और दूसरा शारदा वर्मा की 31 दिसंबर को विदाई के बाद। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक इस कोटे से चार अफसरों को आईएएस अवार्ड हुआ है। जनसंपर्क, इंडस्ट्री, जीएसटी और ट्राईबल से एक-एक। मगर काम से अपनी पहचान बनाने वालों में आज भी एमपी के समय आईएएस बने आरएस विश्वकर्मा और डॉ0 सुशील त्रिवेदी ही याद आते हैं। सरकार को इस बार ठोक बजाकर काबिल अफसरों को ही मौका देना चाहिए। तभी आईएएस पदनाम के साथ न्याय हो पाएगा। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा ने मंत्री पद के दावेदारों की धड़कनें क्यों बढ़ाकर रखा है?

2. हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी बस्तर के आदिवासियों की सूरत नहीं बदली मगर वहां के नेता, ठेकेदार, सप्लायर, अफसर और माओवादी कैसे मालामाल हो गए?