तरकश, 12 जनवरी 2025
संजय के. दीक्षित
एक झटके में 36 करोड़
5 जनवरी के तरकश स्तंभ में पुलिस में किराये की गाड़ियों के खेला को एक्सपोज किया गया था। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने इस खबर का स्क्रीनशॉट सिकरेट्री फायनेंस को भेजा और उसके बाद सिस्टम हरकत में आ गया। पीएचक्यू के शीर्ष अफसरों ने बकायदा वीसी कर पुलिस अधीक्षकों को आईना दिखाया।
बताते हैं, पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी बकायदा लिस्ट लेकर वीसी में पहुंचे थे कि किस जिले में कितनी गाड़ियां मिसयूज हो रही हैं। पीएचक्यू ने सारे एसपी को आदेश दिया है कि अब जिलों में किराये पर चलने वाली गाड़ियों को वे खुद जस्टिफाई करेंगे। पता चला है कि चार-पांच दिन के भीतर 33 जिलों में पुलिस विभाग ने 400 इनोवा और स्कार्पियो का हटा दिया है।
सबसे अधिक बिलासपुर पुलिस ने टाईट किया है। वहां गाड़ियों की संख्या 110 से 53 पर आ गई है। दूसरे जिलों में भी गाड़ियों की संख्या कम की जा रही है। बहरहाल, अगर एक हफ्ते के भीतर 400 इनोवा और स्कार्पियो को हटाया गया है तो महीने का करीब 3 करोड़ रुपए की बचत हुई और साल का 36 करोड़ रुपए।
सिस्टम के एक्शन मोड को देखते माना जा रहा कि जनवरी खतम होते-होते पुलिस विभाग की करीब एक हजार गाड़ियां कम हो जाएंगी। याने छत्तीसगढ़ के खजाने का करीब 200 करोड़ बचेगा। ये राशि पुलिस अधिकारियों की जेब में जा रही थी।
अफसरों की ट्रेवल एजेंसी
नक्सलवाद के नाम पर बस्तर में किराये की गाड़ियों का खेला शुरू हुआ था, वह अब पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गया। खासकर, पिछले दशक में यह संगठित भ्रष्टाचार का रुप ले लिया है। जाहिर है, एसपी जिले का सबसे बड़ा पुलिस अफसर होता है और इस खेल को उसी की नजरे इनायत मिल जाए, तो फिर इसको कौन रोेकता।
आलम यह कि छोटे से राजनांदगांव जिले में किराये की 100 गाड़ियां...जरूरत जबकि, पांच-सात की। कवर्धा जैसा छोटा जिला किराये की गाड़ियों में सबसे टॉप पर। एसपी की मीटिंग में कवर्धा की संख्या जानकर डीजीपी अशोक जुनेजा आवाक रह गए।
तरकश में यह खबर छपने के बाद कुछ पुलिस अधीक्षकों ने बताया कि छुटभैया नेताओं से लेकर अधिकारियों तक का काफी प्रेशर रहता है...आरआई सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में चला देता है। याने बिना गाड़ी चले, हर महीने उनके एकाउंट में पैसा पहुंचने की स्थायी व्यवस्था।
कई आरआई अपने परिजनों के नाम पर ट्रेवल एजेंसी खोल डाले हैं। जाहिर है, 100 में से 20 गाड़ी नेताओं और अधिकारियों की होती है...आरआई उपर से 80 गाड़ियों की बिलिंग कर लेते हैं। और, जब मिली जुली कुश्ती है तो फिर बात बाहर कैसे आएगी? आप समझ सकते हैं।
कमरा और अपशकुन!
महानदी भवन के पांचवे सबसे ताकतवर फ्लोर पर मुख्यमंत्री और उनका सचिवालय है। इसमें एक बड़ा कमरा मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के लिए बनवाया गया था। मगर वास्तुविदों की सलाह पर अग्नेय कोण के कमरे को छोड़कर दूसरे नंबर के बड़े कमरे को उन्होंने अपना चेम्बर बनाया। और मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित कमरे में बैजेंद्र कुमार बैठे।
इसके छह साल बाद दिसंबर 2018 में सरकार बदली तो काफी अरसा तक बैजेंद्र वाला कमरा खाली रहा। भूपेश बघेल के सचिव गौरव द्विवेदी और सुब्रत साहू ने अमन सिंह वाले कमरे को तवज्जो दिया। मगर बाद में सिकरेट्री टू सीएम बने टामन सिंह सोनवानी ने सीएम वाले कमरे को चुना।
अब सिकरेट्री टू सीएम राहुल भगत उसमें बैठ रहे हैं। उस कमरे के बारे में धारणा बना दी गई है कि जो भी उसमें बैठा, उसका अच्छा नहीं हुआ। बैजेंद्र कुमार चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाए। और टामन सिंह सोनवानी इस समय जेल में हैं। अलबत्ता, राहुल भगत आईपीएस हैं। वर्दी वाले का वास्तु भला क्या बिगाड़ लेगा। वैसे भी, बैजेंद्र कुमार जैसे न वे खरी-खरी बात करते और न ही टामन सिंह वाला कोई गुण उनमें है।
बहरहाल, इस समय अमन सिंह वाले चेम्बर में पीएस टू सीएम सुबोध सिंह बैठ रहे हैं और सुबोध सिंह के रमन सिंह के टाईम वाले कमरे में दयानंद। मुकेश बंसल मिनिस्ट्रियल ब्लॉक में फर्स्ट फ्लोर पर और बसव राजू शुरू से सीएम सचिवालय की बजाए सेक्रेटेरियेट ब्लॉक में बैठते हैं।
सीएम सचिवालय भी छोटा
12 साल पहले बने मंत्रालय और सचिवालय का हाल यह है कि सचिवों के बैठने के लिए कमरे नहीं हैं तो मुख्यमंत्री सचिवालय भी इस संकट से जुदा नहीं। सीएम के पांच सिकरेट्री हैं। इनमें से तीन ही सचिवालय में बैठ पा रहे हैं। बाकी दो अलग-अलग। मंत्रालय का जब तक एक्सटेंशन नहीं होगा, सीएम का कोई दूसरा सचिव अब वहां नहीं बैठ सकता। कायदे से सीएम के सचिवों का सीएम सचिवालय में चेंबर होना चाहिए।
नया प्रशासनिक निजाम?
मुख्य सचिव अमिताभ जैन के अवकाश पर जाने के बाद दूसरे नंबर के सीनियर आईएएस अधिकारी रेणु जी0 पिल्ले को सरकार ने प्रभार सौंपा है। रेणु पिल्ले का आदेश निकलते ही ब्यूरोक्रेसी में सीएस बदलने की अटकलें तेज हो गईं। लोग इसे पी0 जॉय उम्मेन की छुट्टी से लगे जोड़कर देखने।
2012 में उम्मेन जब अपने गृह राज्य केरल गए थे तो रमन सरकार ने उनका विकेट उड़ाकर सुनिल कुमार को सीएस की कुर्सी पर बिठा दिया था। शुरू में सुनिल कुमार को भी प्रभारी मुख्य सचिव बनाया गया था। पर वो केस दूसरा था। सवा तीन साल सीएस रह चुके उम्मेन से सरकार नाखुश थी।
मगर अमिताभ के साथ ऐसा कुछ नहीं है। वे पिछली सरकार में भी सीएस रहे और अभी भी कंटिन्यू कर रहे हैं। मगर मिलियन डॉलर का सवाल है कि रेणु पिल्ले को सरकार ने अचानक बुलाकर कुछ दिनों के लिए ही सही, सबसे बड़ी कुर्सी क्यों सौंप दी? जबकि, प्रभारी सीएस बनाने की चर्चा दूसरे अफसरों की थी।
विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि सरकार के अंदरखाने में बड़ा फैसला हो चुका है। तभी प्रशासन अकादमी से बुलाकर उन्हें अमिताभ का प्रभारी बनाया गया। बात को समझिएगा...अमिताभ का टेन्योर चार साल क्रॉस कर चुका है। उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त के लिए अप्लाई भी कर दिया है।
ऐसे समय में चीफ सिकरेट्री जैसे जिम्मेदार अफसर अगर छुट्टी पर जाता है तो चार्ज उसको दिया जाता है, जिसे आगे बिठाना हो। और रेणु के साथ यही हुआ है। दस दिन में उनका ट्रॉयल भी हो जाएगा। इसके बाद सरकार बड़ा डिसिजन ले सकती है। संभव है कि रेणु पिल्ले छत्तीसगढ़ की नई प्रशासनिक निजाम बन जाएं।
प्रशासनिक भर्राशाही
रेणु पिल्ले के चीफ सिकरेट्री बनने से नेताओं की दिक्कतें बढ़ेगी...नियम-कायदों को ओवरलुक करने वाले कामों को भूलना पड़ेगा। मगर छत्तीसगढ़ के हित में सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि प्रशासनिक अराजकता दूर हो जाएगी। मंत्रालय के अफसर 10 बजे की बजाए पांच मिनट पहले ऑफिस पहुंचने लगेंगे।
आईएएस की एक पी़ढ़ी तो पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है, नई पीढ़ी कम-से-कम दुरूस्त हो जाएगी। मोदी सरकार भी चाहेगी कि ठीकठाक ही मुख्य सचिव बनाया जाए। हालांकि, रेणु पिल्ले जैसी सीएस लंबा नहीं चलती। मगर ऐसे मौके पर मुझे पूर्व डीजीपी अमरनाथ उपध्याय की बेबाकी से कही गई बात याद आ गई...उन्होंने एक बार शेयर किया था कि सरकार को मुझसे पहले गिरधारी नायक को डीजीपी बना देना चाहिए था...नायक साब मुझसे पहले अगर डीजीपी बन गए होते तो पुलिस की भर्राशाही को मुझे नहीं झेलना पड़ता।
माथे पर लिक्खा...
मुख्यमंत्री, चीफ सिकरेट्री और डीजीपी सबको बनने का मौका नहीं मिलता। टीएस सिंहदेव प्रेशर बिल्डअप करने इस्तीफा दिया, इसके बाद भी भूपेश बघेल ने पांच साल कंटिन्यू किया। जबकि, लिखा-पढ़ी ढाई साल की थी। इस सरकार में भी नाम कइयों के चले मगर कुर्सी हासिल हुई विष्णुदेव साय को।
इसी तरह सीएस और डीजीपी में भी हुआ। अशोक विजयवर्गीय और सुनील कुजूर को चीफ सिकरेट्री बनने का मौका मिल गया तो सीधे-साधे भोले-भंडारी मिजाज के अमरनाथ उपध्याय ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वे कभी डीजीपी बनेंगे...मगर वे पूरे चार साल पुलिस महकमे के मुखिया रहे।
डीजीपी को एक्सटेंशन?
डीजीपी अशोक जुनेजा का छह महीने का एक्सटेंशन समाप्त होने में अब 23 दिन बच गए हैं। राज्य सरकार ने नए डीजीपी के लिए यूपीएससी को तीन आईपीएस अधिकारियों के नामों का पेनल भेज दिया है। इनमें पवनदेव, अरुण देव गौतम और हिमांशु गुप्ता शामिल हैं।
मगर जुनेजा को दूसरे एक्सटेंशन देने की चर्चाएं भी बड़ी तेज है। बीजापुर नक्सली हमले में आठ जवानों के शहीद होने के बाद तो अब नहीं लगता कि नक्सलियों से आरपार के युद्ध की इस स्थिति में डीजीपी बदलना चाहेगी। अब किसी के माथे पर 4 फरवरी को डीजीपी बनना लिखा होगा तो फिर बात अलग है।
तीसरा मंत्री कौन?
बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने मंत्रियों की सूची में कोई अचानक कोई बदलाव नहीं किया तो दो नाम तय हैं। एक पूर्व मंत्री हैं तो दूसरा नया। अब सवाल है तीसरा मंत्री कौन होगा? पता चला है, किरण सिंहदेव के मसले पर अभी उहापोह की स्थिति है।
बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष पर पेंच उलझा हुआ है। पार्टी में ये भी साफ नहीं है कि हरियाणा की तरह क्या छत्तीसगढ़ में भी 13 मंत्री होंगे? ये अवश्य तय है कि 17 या 18 जनवरी को नगरीय और पंचायत चुनाव का ऐलान होगा, इससे पहले मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा। तब तक खड़मास भी खतम हो जाएगा।
अजय चंद्राकर का क्या?
विधानसभा में बीजेपी के स्टार प्लेयर अजय चंद्राकर को विधानसभा का उपाध्यक्ष बनाए जाने की चर्चाएं हैं। और ये भी कि इसके लिए वे तैयार नहीं हैं। जाहिर सी बात है कि विधानसभा उपाध्यक्ष का पद झुनझुना से ज्यादा कुछ होता नहीं। और इसके लिए भला वे कैसे तैयार हो जाएंगे।
बीजेपी उलझन में है कि अगर अजय चंद्राकर को कुछ नहीं मिला तो चार साल तक विधानसभा में मंत्रियों का क्या होगा? कुछ दिन पहले खतम हुए शीतकालीन सत्र में चंद्राकर ने वरिष्ठ मंत्रियों को पानी-पानी कर दिया था। जाहिर है, सदन में 90 परसेंट मोर्चा वे अकेले संभालते हैं। संसदीय ज्ञान तो उनके पास है ही, विषय-वस्तुओं का इतना गहन अध्ययन कर सदन में पहुंचते हैं कि जिस दिन अजय चंद्राकर का सवाल या ध्यानाकर्षण रहता है, मानकर चला जाता है, उस मंत्री की खैर नहीं।
कांग्रेस के मंत्रियों को वे अकेले छकाते रहे और इस समय भी वे हर सत्र में कुछ-न-कुछ बड़ा निकालकर मंत्रियों को बैकफुट पर जाने विवश कर देते हैं। देखना होगा, अजय चंद्राकर जैसे नेता के लिए बीजेपी क्या रास्ता निकालती है।
मंत्रालय पटरी पर, मगर जिले...?
प्रशासनिक क्षेत्र में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी कि मंत्रालय के अफसर 24 साल में पहली बार टाईम पर पहुंचने लगे हैं। दोपहर तक जिन सचिवों के गलियारे विरान रहते थे, वहां अब रौनक आ गई है। अफसर दस बजे पहुंच जा रहे, लिहाजा उनका स्टाफ उससे पहले हाजिर रहता है। अफसरों की उपस्थिति को सीएम सचिवालय से मॉनिटरिंग की जा रही है।
सरकार को इसे एक संदेश की तरह जिलों में पहुंचाना चाहिए। जिलों में इसकी आवश्यकता ज्यादा है। कलेक्ट्रेट से लेकर एसडीएम, तहसील समेत अन्य आफिसों में आम आदमी का काम पड़ता है। मगर कौन कब मिलेगा, इसका भरोसा नहीं। गुरूजी लोग पढ़ाना-लिखाना छोड़ मोटा-पतला होने की दवाइयां बेच रहे हैं।
डीईओ, बीईओ को कमीशन के अलावा किसी चीज से मतलब नहीं। स्कूलों में अगर मंत्रालय सिस्टम लागू हो जाएगा कि गुरूजी दीगर धंधे छोड़ अपना मूल काम शुरू कर देंगे। सो, सरकार को जल्द ही इसके लिए कलेक्टरों को टाईट करना होगा। बिना टाईट किए संभव नहीं क्योंकि कलेक्टरों के पास डीएमएफ के धंधे से फुरसत नहीं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. बीजापुर के किस पुलिस अधीक्षक ने पत्रकार मुकेश हत्याकांड के मास्टरमाइंड सुरेश चंद्रकार को अपने बावर्ची से 500 करोड़ का ठेकेदार बना दिया?
2. बीजापुर सड़क घोटाले में लिप्त पीडब्लूडी के अधिकारियों पर कार्रवाई करने को लेकर सरकार असमंजस में क्यों दिख रही है?
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