तरकश, 25 मई 2025
संजय के. दीक्षित
500 करोड़ का स्कैम, कलेक्टर की कुर्सी
छत्तीसगढ़ में जगह-जगह से मुआवजा घोटाले की खबरें आ रही...कहीं भारतमाला सड़क का मामला है तो कहीं नहर और बिजली प्लांट के लिए भूअर्जन का। दरअसल, इस स्कैम की नींव आज से 11 साल पहले 2014 में डल गई थी। तब रायगढ़ के लारा में एनटीपीसी का प्लांट लग रहा था। धारा 3ए के प्रकाशन के बाद लारा इलाके में जमीनों के बटांकन, खरीदी-बिक्री पर रोक लग गई थी। मगर एक एसडीएम ने चार्ज लेते ही कुछ दिन के लिए रोक हटाई और फिर 300 प्लाटों को 2000 से अधिक जमीनों के ऐसे टुकड़े कर दिए गए कि एनटीपीसी का दिल्ली मुख्यालय भी हिल गया। छोटे टुकड़े करने से एनटीपीसी को 500 करोड़ की चपत लग गई। एनटीपीसी के अफसरों ने रायगढ़ के तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल से बात की। मुकेश ने इसकी जांच कराई और 1300 पेज की रिपोर्ट सरकार को भेज एसडीएम के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की। कलेक्टर की रिपोर्ट पर सरकार ने एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल को सस्पेंड कर दिया। कलेक्टर के कहने पर रायगढ़ के तत्कालीन एसपी राहुल भगत ने एसडीएम के खिलाफ अपराध दर्ज कराया। एसडीएम गिरफ्तारी के डर से लंबे समय तक फरार रहे। कई महीने बाद उन्हें हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिली। फिर अफसरशाही का कमाल देखिए कि फरारी काटने वाले तीर्थराज राजाबाबू बन लगे मलाईदार पोस्टिंग काटने। इस सरकार में वे एक मंत्री के पीए बन गए। फिर चमत्कारिक रूप से राजस्व विभाग ने उन पर ऐसी मेहरबानी बरसाई कि विभागीय जांच समाप्त करने के साथ ही तीर्थराज को क्लीन चिट दे डाला। असल में, सब प्लानिंग के साथ हुआ। बिना विभाग से बिना डीई खतम किए हाई कोर्ट से केस खतम नहीं होता। और वैसा ही हुआ। बिलासपुर हाई कोर्ट ने तीर्थराज को कल बरी कर दिया। इसमें विभाग द्वारा विभागीय जांच समाप्त कर क्लीन चिट देने को भी आधार बनाया गया है। बहरहाल, हाई कोर्ट में केस होने की वजह से इस साल तीर्थराज को आईएएस अवार्ड नहीं हो पाया...उनके नाम का लिफाफा बंद कर दिया गया है। अगले साल सुब्रत साहू या मनोज पिंगुआ के साथ जीएडी सिकरेट्री रजत कुमार डीपीसी के लिए यूपीएससी जाएंगे...तब तीर्थराज को आईएएस बनने से कोई रोक नहीं पाएगा। मुकेश बंसल और राहुल भगत की आंखों के सामने वे फिर किसी जिले के कलेक्टर बन जाएंगे। तुलसीदासजी ने ठीक ही लिखा है...समरथ को नहीं दोष गोसाई।
ईओडब्लू जांच, अदृश्य आत्माएं
जाहिर है, लारा कांड के बाद सरकार यदि कौवा मारकर टांग दी होती, एसडीएम को फरार और जमानत लेने का टाईम नहीं मिला होता तो अभनपुर, बजरमुंडा, अरपा-भैंसाझाड़ जैसे मुआवजा कांड नहीं होता। अलबत्ता, इनमें से कई की ईओडब्लू जांच का ऐलान हो गया है। मगर सिस्टम अगर लारा मुआवजा कांड की तरह आरोपी अधिकारियों को क्लीन चिट देकर केस खतम कराने में मदद करता रहा तो फिर ईओडब्लू जांच का क्या मतलब? इससे अमरेश मिश्रा एंड उनकी टीम का टाईम ही खराब होगा। जाहिर है, सीजीएमएससी के कई खटराल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में अदृश्य आत्माएं बाधक बन रही हैं। आरआई भर्ती घोटाले की ईओडब्लू जांच भी किधर दबी है, पता नहीं चल रहा। सरकार चाहती हैं कि जीरो टॉलरेंस का नमूना पेश किया जाए मगर भांति-भांति की आत्माएं ऐसा होने नहीं दे रहीं।
भ्रष्टाचार का लायसेंस!
छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने सुधार की ऐतिहासिक पहल करते हुए कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार कोर्ट को समाप्त कर दिया है। क्योंकि, कोर्ट का फायदा उठा राजस्व अधिकारी वहां भ्रष्टाचार का रायता फैला रहे थे। छत्तीसगढ़ में भी अनेक बार ऐसा हुआ कि राजस्व अधिकारी कोर्ट की आड़ में बच गए। रायगढ़ एसडीएम के केस में भी हाई कोर्ट में इसी केस का हवाला दिया गया। इससे पहले एक और एसडीएम जेल से छूटने के बाद हाई कोर्ट से इसी कोर्ट का हवाला देकर बरी हो गए कि उनकी कोर्ट ने फैसला दिया है, और कोर्ट पर कोई सवाल कैसे खड़ा कर सकता है? मगर सवाल यह है कि अंग्रेजों ने अफसरों का कोर्ट इसलिए बनाया था कि राजस्व वसूली कड़ाई से हो सके। उस समय राजस्व वसूली ही सरकारों को राजस्व प्राप्ति का मुख्य जरिया होता था। अब आप बताइये, लोगों की जमीन लेकर मुआवजा बांटना प्रशासनिक काम है या न्यायिक? ये विशुद्ध रूप से प्रशासनिक काम है। मुआवजे को लेकर भारत सरकार ने एक मॉडल बनाया है। इसके लिए कोर्ट की तरह न कोई गवाही होती, न पक्ष-प्रतिपक्ष का वकील खड़े होते। सरकार और कानूनविदों को इस पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि ज्यूडिशरी में हर साल गलत फैसलों की वजह से दर्जनों जज बर्खास्त किए जाते हैं। हाई कोर्ट ही उनका आर्डर निकालता है। मगर गलत फैसलों के लिए कितने कमिश्नर, कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदारों पर कार्रवाई होती है। इसका मतलब यह हुआ कि जिम्मेदारी कुछ नहीं, मगर करप्शन में कार्रवाई की तलवार लटके तो कोर्ट को ढाल बनाकर बच जाओ। ऐसा ही रहा तो फिर अभनपुर मुआवजा कांड में सस्पेंड राप्रसे अधिकारी निर्भय साहू और शशिकांत कुर्रे बच जाएंगे, तो अरपा-भैंसाझाड़ कांड में किसानों का मुआवजा फर्जी लोगों को बांट देने वाले एसडीएम भी बख्श दिए जाएंगे।
जीरो टॉलरेंस को पलीता
अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा कांड का जिक्र हुआ तो फिर जीरो टॉलरसें पर भी प्रश्न उठेगा। 1131 करोड़ की इस नहर में अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए कागजों में नहर की डिजाइन बदल दी गई। किसानों का मुआवजा फर्जी लोगों को बांट दिया गया। करीब 400 करोड़ के मुआवजा कांड की जांच के लिए सिंचाई विभाग ने ईओडब्ल्ू को लिखा है। मगर यह भी सही है कि बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण द्वारा कराई गई जांच में दो एसडीएम समेत राजस्व और सिंचाई विभाग के 11 लोग दोषी पाए गए। कलेक्टर ने सरकार को इनके खिलाफ कार्रवाई करने लेटर लिखा। मगर इससे पहले दिसंबर 2023 में सरकार बदलने के दौरान आपाधापी में किधर से कैसी चकरी चली कि दोषी अधिकारियों की लिस्ट में जिस एसडीएम का नाम सबसे उपर लिखा गया है, उसे एक बड़े जिले में आरटीओ की कुर्सी सौंप दी गई। एक तरफ निर्भय साहू और शशिकांत कुर्रे निलंबित हो रहे मगर आरटीओ को पता नहीं किस अदृश्य शक्ति का बरदहस्त प्राप्त है कि उनकी कुर्सी कोई हिला नहीं पा रहा। ऐसी शक्तियां ही सरकार के जीरो टॉलरेंस को पलीता लगा रही हैं।
ई-ऑफिस का खौफ
कामकाज में पारदर्शिता लाने छत्तीसगढ़ सरकार ने फाइलों के लिए ऑनलाईन सिस्टम बना दिया है...मंत्रालय में नोटशीट अब ऑनलाइन दौड़ रहीं हैं। आलम यह है कि सचिवों ने सख्ती बरतते हुए विभाग प्रमुखों से हार्ड पेपर में नोटशीट लेना बंद कर दिया है। बहरहाल, ई-ऑफिस का खौफ इंद्रावती भवन समेत राज्य स्तर के ऑफिसों के मुलाजिमों पर सिर चढ़कर बोल रहा है। असल में, वहां ये बात फैला दी गई है कि सारी नोटशीट दिल्ली स्थित डीओपीटी के सर्वर में जा रही है...डीओपीटी ने छत्तीसगढ़ के खटराल अधिकारियों पर नजर रखने यह सिस्टम शुरू कराया है...नोटशीट में कोई गल्ती हुई कि ईडी, सीबीआई या सीवीसी जांच की तलवार लटक जाएगी। इसका नतीजा यह हुआ कि जब से ई-ऑफिस चालू हुआ है, विभागाध्यक्ष कार्यालयों के अधिकारियों, कर्मचारियों की रात की नींद उड़ गई है....नोटशीट पर अब फूंक-फूंककर टिप्स लिखे जा रहे। हालांकि, अफसरों ने एक रास्ता निकाला है...मंत्रालय भेजी जाने वाली फाइलों में ई-ऑफिस का इस्तेमाल कर रहे मगर अपने नीचे या जिलों को हार्ड पेपर में। मगर जब जिलों में भी ई-ऑफिस चालू हो जाएगा तो फिर अधिकारियों, कर्मचारियों की मुसीबतें और बढ़ जाएगी। जाहिर है, सिस्टम जितना ऑनलाईन होगा, गड़बड़ियां उतनी की कम होगी। पहले बड़ी संख्या में फाइलें गुम जाती थी या दबा दी जाती थीं। ई-ऑफिस में अब ये संभव नहीं है। इससे करप्शन पर भी अंकुश लगेगा। ऐसे में, बरसों से अपने ढर्रे पर काम करने वाले सरकारी मुलाजिमों को तकलीफ तो होगी ही।
ई-टेंडरिंग की तोड़
छत्तीसगढ़ में ई-ऑफिस अभी शुरू हुआ है मगर ऑनलाइन टेंडर 2015 से चल रहा है। तब इसकी जरूरत इसलिए महसूस की गई कि खासकर, बड़े टेंडरों में मसल पावर वाले ठेकेदार धमकी, रंगदारी दिखा दूसरों को टेंडर भरने नहीं देते थे। इसलिए रास्ता निकाला गया कि ठेकेदार घर बैठे टेंडर प्रॉसेज में हिस्सा ले सके। इसके बाद सरकारी खरीदी के लिए जेम पोर्टल प्रारंभ किया गया। मगर अब इसकी भी तोड़ ढ़ूंढ ली गई है। सप्लायरों का इंटेलिजेंस इतना तगड़ा है कि स्टेट ऑफिस से उन्हें मालूम चल जाता है कि किस जिले या विभाग के लिए किस चीज की खरीदी के लिए कितना बजट स्वीकृत हुआ है। इसके बाद संबंधित ऑफिस से संपर्क कर टेंडर में ऐसा खास क्लॉज ऐड कर दिया जाता है, जो औरों के पास नहीं हो। फिर अधिकांश सप्लायरों ने दो-दो, तीन-तीन फर्जी कंपनी बना रखी है। योजनाबद्ध तरीके से एक ही सप्लायर अलग-अलग नाम से बनी अपनी तीनों कंपनियों से टेंडर भरता है, और एल1 के आधार पर उसे काम मिल जाता है। सीजीएमएससी में बहुचर्चित स्कैम में मोक्षित कारपोरेशन ने भी यही किया और बाकी विभागों मेंं भी यही चल रहा है। कई बार जिलों के ऑफिसों को पता नहीं होता कि उनके लिए कितना बजट मिला है और सप्लायर लिस्ट लेकर उनके पास पहुंच जाते हैं। सरकार इसे अगर संज्ञान लेकर इस सिस्टम के पोल को अगर ठीक कर लें तो खजाने का करोड़ों रुपए बचेगा, जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा।
जिले का भगवान मालिक
जीपीएम कलेक्टर के लिए वह शर्मनाक दिन रहा...जब विष्णुदेव साय जैसे विनम्र मुख्यमंत्री को समाधान शिविर में तल्खी के साथ यह कहना पड़ गया कि तीन थाने का जिला भी नहीं संभल पा रहा, तो क्या मतलब। जीपीएम की तरह का छत्तीसगढ़ का एक मॉडल जिला है गरियाबंद। वहां के कलेक्टर भी सुप्रीम कोर्ट से स्टे वाले हैं...पीएससी 2003 बैच वाले। और उनके राम मिलाए जोड़ी जिला पंचायत के गैर आईएएस सीईओ...नायब तहसीलदार कैडर वाले। बड़ा सवाल है...ऐसे अफसरों से सरकार की नैया कैसे पार हो पाएगी?
बस्तर पोस्टिंग का क्रेज?
बस्तर कभी अकेला जिला होता था। बाद में कांकेर बना। फिर दंतेवाड़ा। नक्सलवाद चरम पर पहुंचा तो कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा और बीजापुर जिला अस्तित्व में आया। याने एक से बढ़कर सात जिला। जबकि, आबादी और काम की दृष्टि से देखें तो बस्तर चार जिले लायक भी नहीं। मगर संवेदनशीलता की वजह से सातों जिले के अपनी अहमियत थी और बस्तर पोस्टिंग का अपना क्रेज भी। मगर अब जब नक्सलवाद आखिरी सांस गिन रहा तब यह सवाल मौजूं है कि छोटे जिलों का क्या? बस्तर के ग्रामीण थानों में महीने में एकाध रिपोर्ट दर्ज नहीं हो पाती। क्योंकि, आदिवासी बड़े सरल और सहज होते हैं, वहां क्राइम के नाम पर सिर्फ नक्सली हिंसा की रिपोर्ट ही दर्ज हो पाती थीं। जाहिर है, बस्तर की पोस्टिंग का क्रेज अब कम होगा। अभी तक नक्सलवाद के नाम पर कलेक्टर, एसपी को बेहिसाब पावर और पैसे मिलते थे। कलेक्टरों को बड़ी राशि केंद्र से आती थी। तो निर्माण कार्यों का मोटा कमीशन कलेक्टर, एसपी को जाता था। आईजी को महीने का सात लाख और एसपी को हर महीने पांच लाख नगद...जिसका कोई हिसाब नहीं। नेशनल मीडिया में एक्सपोजर मिलता था, सो अलग। मगर अब सरकार ने अगर टूरिस्ट डेस्निशन बना दिया तब भी बस्तर पोस्टिंग का वैसा क्रेज नहीं रहेगा, जैसा अभी तक था। हालांकि, विष्णुदेव सरकार ने पत्रकार हत्याकांड के बाद कलेक्टर और एसपी का टेंडर करने का अधिकार समाप्त कर ऑनलाइन कर दिया है। फिर बस्तर पोस्टिंग की बात कुछ और थी।
निशाने पर अफसर या मंत्री?
छत्तीसगढ़ बीजेपी के एक पुराने नेता ने एक आईएएस अधिकारी के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकल लेवल पर सोशल मीडिया में चलवाया ही, लेटर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भेज दिया है। ब्यूरोक्रेसी इससे हतप्रभ है और उस अफसर को जानने वाले लोग भी। इसलिए, क्योंकि आईएएस अफसर की ऐसी छबि नहीं। दरअसल, यह सीनियर नेता के कंधे पर बंदूक रखकर किसी और को निशाना बनाने जैसा मामला है। निशाने पर अफसर नहीं, मंत्री बताए जा रहे हैं। मंत्री को घेरने की चौतरफा कोशिशें हो रही हैं। चारों तरफ आदमी लगा दिए गए हैं कि कोई पोल मिले और मंत्री को निबटाया जाए। ठीक है...सियासत में एक-दूसरे को घेरना, कमजोर करना कोई नई बात नहीं, मगर इसमें अफसरों को नहीं लपेटना चाहिए।
रुमाल प्रबल की, पोस्टिंग राव की
राज्य सरकार ने लाल बत्ती की एक दूसरी लिस्ट और जारी कर दी। इसके बाद अब मार्कफेड छोड़ लगभग सारे बड़े बोर्ड और निगमों के चेयरमैन के पद भर गए हैं। इसमें सबसे मलाईदार कारपोशन ब्रेवरेज में श्रीनिवास राव मद्दी की पोस्टिंग लोगों को चौंकाई। इस पद के लिए प्रबल प्रताप सिंह जूदेव की चर्चा चल रही थी। मगर आश्चर्यजनक तौर पर उनका नाम कट गया। श्रीनिवास राव बस्तर से ताल्लुकात रखते हैं। सुभाष राव के बाद वे दूसरे दक्षिण भारतीय नेता होंगे, जिन्हें मलाईदार पद से नवाजा गया है। रमन सिंह की पहली पारी में सुभाष राव को हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। श्रीनिवास की पोस्टिंग को सियासी पंडित किरण सिंहदेव को मंत्री न बनाए जाने से जोड़कर देख रहे हैं। बीजेपी के लोग भी यह मान रहे कि श्रीनिवास को सिंहदेव के कोटे से ब्रेवरेज की कुर्सी सौंपी गई है।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. राज्य सरकार ने केदार गुप्ता की दुग्ध संघ चेयरमैन की पोस्टिंग बदलकर अपेक्स बैंक की कैसे कर दी?
2. यूपीएससी से डीजीपी का पेनल आ जाने के बाद भी पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश न निकाल सरकार अरुणदेव गौतम का बीपी क्यों बढ़ा रही है?
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