शनिवार, 30 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 2500 करोड़ सैलरी और काम 15 दिन

 तरकश, 31 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

2500 करोड़ सैलरी और काम 15 दिन

छत्तीसगढ़ में जब से फाइव डे वीक शुरू हुआ है, छुट्टियों का बहार है। पिछले नौ दिन में सिर्फ दो दिन वर्क हुआ, सात दिन छुट्टी रही। 31 के इस अगस्त महीने में पांच-पांच सटर्डे और संडे पड़ गया। उसके बाद 15 अगस्त, तीज, गणेश चतुर्थी, नवा खाई जैसी कई सरकारी छुटियां। इसके आगे भी कोई महीना नहीं है, जिसमें 12 दिन से ज्यादा छुट्टी न पड़ रही हो। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां इतनी छुट्टियां...साउथ के राज्यों को छोड़ दें, बिहार, यूपी और ओड़िसा जैसे राज्यों में इतने सरकारी अवकाश नहीं होते। अब जरा सोचिए...कर्मचारियों और अधिकारियों की तनख्वाह पर हर महीने 2500 करोड़ खर्च हो रहा और काम आधा महीना भी नहीं। ऐसे में, छत्तीसगढ़ विकसित राज्य कैसे बन पाएगा। सिस्टम को इस विडंबना को दूर करने साहसिक फैसले लेने पड़ेंगे...तभी 2035 तक छत्तीसगढ़ विकसित राज्य बन पाएगा। वरना, विजन डाक्यूमेंट बनाने का फिर क्या मतलब?

ब्यूरोक्रेट्स और बाबू एक बराबर

छत्तीसगढ़ में स्थिति यह है कि अर्थहीन छुट्टियों में भी मंत्रालय और विभागाध्यक्ष भवन में कामकाज ठप्प पड़ जाता है। अर्थहीन का मतलब ये कि जिससे सभी वर्गों का ताल्लुकात न हो। अब भला हरेली और तीज से मंत्रालय के अधिकारियों का क्या वास्ता। वैसे भी बड़े लोगों के यहां तीज कोई करता नहीं...अब करवा चौथ का दौर है। बावजूद इसके तीज, हरेली, चेट्री चंड जैसी छुट्टियों में मंत्रालय बंद हो जाए तो सिस्टम को इसे देखना चाहिए...आखिर बाबू और ब्यूरोक्रेट्स में फर्क होता है कि नहीं! ब्यूरोक्रेट्स देश चलाते हैं...मगर ऐसे में राज्य कैसे चलेगा। आखिर, इसी छत्तीसगढ़ में 2018 तक छुट्टियों में भी बड़े अफसर मंत्रालय और ऑफिस पहुंचते थे...प्लानिंग से लेकर इंपार्टेंट काम छुट्टी के दिन होते थे। अलबत्ता, इस साल एक जनवरी की सीएम विष्णुदेव साय की बैठक के बाद मंत्रालय की वर्किंग सुधरी है। 70 परसेंट से अधिक अफसर अब टाईम पर आ रहे हैं। फिर भी यह ध्यान रखना होगा कि ब्यूरोक्रेट्स और बाबू में अंतर होता है।

हर्बल लाइफ, चेन और शेयर

छत्तीसगढ़ में छुट्टियों का साइड इफेक्ट ये हो रहा कि सरकारी मुलाजिम काम छोड़ आजकल शेयर, हर्बल लाइफ और चेन के बिजनेस में घुस गए हैं। नवा रायपुर के महानदी, इंद्रावती भवन समेत अधिकांश ऑफिसों में ऐसे अफसर मिल जाएंगे, जो 3 बजे तक इसलिए सीट पर बैठते हैं कि उसके बाद शेयर मार्केट खुला होता है। कुछ अधिकारियों की पूरी फेमिली चेन के कारोबार में लगी है तो ये बात छिपी नहीं कि पुलिस मुख्यालय के आईजी लेवल का एक अफसर इस बिजनेस में इंवाल्व रहे हैं। शिक्षकों में ऐसी बड़ी तादात है, जो स्कूलों में पढ़ाने-लिखाने से तोबा कर हर्बल लाइफ का चेन बना लोगों को मोटा-पतला बनाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में, वर्किंग कल्चर की आप कल्पना कैसे कर सकते हैं।

कलेक्टर, एसपी की मौज-मस्ती

एक जमाना था, जब कलेक्टर, एसपी 24 घंटे काम करते थे। मगर छत्तीसगढ़ में छुट्टियों के बहार के दौर में छुट्टी से काफी पहले आजकल कलेक्टर, एसपी सैर-सपाटे का प्लान कर ले रहे हैं। फिर जीएडी में अर्जी के साथ बार-बार फोन...सर! फ्लाइट की टिकिट हो गई...। हालांकि, कलेक्टर-एसपी पहले से इस समय काफी ठीक है। फिर भी कसावट का मामला जरा ढीला है। जीएडी सिकरेट्री ने जनवरी में इन दोनों को कड़ा मैसेज भेजकर कई सारे प्वाइंट पर काम करने कहा था। मगर सब किसी-न-किसी से जुड़े हैं, तो फिर क्या किया जा सकता है। हाल में एक वीआईपी जिले में कलेक्टर, एसपी की कड़वाहट सतह पर आ गई। इसमें क्या हुआ? न होना था और न होगा। ऐसे में प्रशासन कैसे चलेगा? हाई लेवल पर देखना होगा कि प्रशासनिक कार्य में किसी तरह की दखलांदाजी नहीं होनी चाहिए। कलेक्टर, एसपी को भी छुट्टी मांगने से पहले सोचना चाहिए...कभी-कभी देवदूत की तरह जिले में काम करने का अवसर मिलता है। इसे सिर्फ मौज-मस्ती और पैसा कमाने में न गंवा दें।

विष्णुदेव को पॉलिटिकल माइलेज

सीएम विष्णुदेव का पहला विदेश दौरा कितना सफल रहा, जमीनी तौर पर इसे दिखने में थोड़ा वक्त लगेगा। मगर राजनीतिक दृष्टि से इससे उन्हें बड़ा माइलेज मिला है। छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी मुख्यमंत्री का विदेश यात्रा से लौटने पर एयरपोर्ट पर ऐसा स्वागत हुआ। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव से लेकर सारे मंत्री, निगम-मंडल के अध्यक्ष और पार्टी के बड़े नेता विमानतल पर मौजूद रहे। मुख्यमंत्री के स्वागत के शो को देखकर सियासी पंडित भी चकित रह गए। जाहिर है, राजनीति में स्वागत और भीड़ से भी अपने संदेश निकलते हैं...एयरपोर्ट पर आतिशि स्वागत का मतलब यही होगा न...सीएम ने अपनी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत कर ली है!

प्रमोटी आईएएस PSC चेयरमैन क्यों?

छत्तीसगढ़ सरकार ने पीएससी की मेंबर रीता शांडिल्य को अपग्रेड करते हुए चेयरमैन बना दिया है। मगर उनका कार्यकाल साल भर ही रहेगा। वे पिछले साल सितंबर में आईएएस से रिटायर हुईं थीं। और पीएससी में 62 वर्ष रिटायरमेंट है। इस लिहाज से उनका एक साल निकल गया है। अगले साल 30 सितंबर को वे रिटायर हो जाएंगी। याने नेक्स्ट ईयर जून-जुलाई से नए चेयरमैन की तलाश शुरू हो जाएगी। बता दें, 60 में रिटायर होने के बाद आईएएस अधिकारियों को पीएससी में सिर्फ दो साल मिलता है इसलिए कोई डायरेक्ट आईएएस अधिकारी पीएससी चेयरमैन नहीं बनना चाहते। उनकी नजर पांच साल वाली पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग पर रहती है। छत्तीसगढ़ में अभी तक कोई डायरेक्ट आईएएस पीएससी चेयरमैन नहीं बना है। डायरेक्ट आईपीएस श्रीमोहन शुक्ला और अशोक दरबारी जरूर चेयरमैन रहे। उनके अलावे आईएएस में स्टेट सर्विस से आईएएस वाले ही चेयरमैन बनें हैं। मसलन, बीएल ठाकुर, केआर पिस्दा, आरएस विश्वकर्मा, टामन सिंह सोनवानी और अब रीता शांडिल्य।

पोस्टिंग और भाग्य-1

दिसंबर 2023 में जब बीजेपी की नई सरकार बनी थी, तब एसीएस होम मनोज पिंगुआ का नाम सीएम सचिवालय के लिए खूब चला था। मगर बाद में ऐसा हो नहीं सका। इसके बाद नए चीफ सिकरेट्री के लिए के लिए उनका नाम लगभग फायनल हो गया था, सिर्फ आदेश की रस्मअदायगी बच गई थी। 30 जून को कैबिनेट की बैठक के बाद उनके नाम का आदेश निकलना था कि दिल्ली के हाई पावर जोन से फोन आ गया। फोन ऐसा था कि सरकार में बैठे लोग चाहकर भी कुछ नहीं कर सके और अमिताभ जैन को तीन महीने का एक्सटेंशन देने का रास्ता निकालना पड़ा। अब 30 सितंबर को अमिताभ जैन को फिर से तीन महीने का एक्सटेंशन मिलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है। निहितार्थ है कि सबसे बड़ी किस्मत होती है।

पोस्टिंग और भाग्य-2

सचिव स्तर के पिछले फेरबदल में सरकार ने सिकरेट्री अविनाश चंपावत से राजस्व लेकर रीना बाबा कंगाले को दे दिया। इसके बाद अविनाश के पास सिर्फ जीएडी बचा है, जो आज तक किसी सिकरेट्री के पास सिंगल चार्ज के तौर पर नहीं रहा। जीएडी हमेशा दूसरे विभागों के साथ पुछल्ला होता था। ब्यूरोक्रेसी में ये किसी को समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा हुआ कैसे। दागी राप्रसे अधिकारी को आईएएस बनाने के लिए क्लीन चीट देने से अंबलगन ने मना किया तो उनसे जीएडी लिया गया था। मगर चंपावत ने वो सब कुछ कर दिया, फिर ऐसी बेदर्दी उनके साथ क्यों? अफसरों की संख्या बढ़ गई है, ये रीजन है या कोई और?

लोकप्रिय सीएम, संयोग और खतरे

एक नामी मीडिया समूह के सर्वे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को देश का दूसरे सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री चुना गया है। पहले नंबर पर असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा हैं। बात छत्तीसगढ़ के सीएम की तो लगता है...पिछले छह-आठ महीने में ई-ऑफिस से लेकर गवर्नेंस के फील्ड में रिफार्म किए गए, उसके संदेश अच्छे गए, तभी 41 परसेंट से अधिक लोग उन्हें पसंद किए। सर्वे के मुताबिक सुशासन तिहार का आम जनमानस पर बडा प्रभाव पड़ा। इसमें सीएम सचिवालय के निर्विवाद अधिकारियों की भूमिका भी अहम रही। खासकर, छत्तीसगढ़ जैसे स्टेट में कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी कि यहां ऑनलाइन फाइलें चलेंगी। गुड गवर्नेंस की दिशा में यह प्रयास मील का पत्थर जैसा है। हालांकि, बीजेपी में इस बात पर चुटकी ली जा रही कि इससे पहले 2005 में भी इसी इंडिया टुडे-सी वोटर सर्वे में डॉ. रमन सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद रमन ऐसे मजबूत होते चले गए कि 15 साल उन्हें कोई हिला नहीं पाया। कहीं वही संयोग दुहरा गया तो फिर कांग्रेस का लंबा वनवास होगा ही, बीजेपी के दीगर दावेदारों का स्कोप विष्णुदेव खतम कर देंगे।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. मंत्री बनने में पुरंदर मिश्रा का कोई रिसोर्स काम नहीं आ पाया तो क्या चीफ सिकेरट्री में सुब्रत साहू की दावेदारी अब प्रबल हो जाएगी?

2. क्या ये सही है कि करप्शन पर काबू पाने सिस्टम को एक बार आंख मूंदकर तलवार भांजने की जरूरत है?

शनिवार, 23 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

तरकश, 24 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

सियासत में आपने सोशल इंजीनियरिंग शब्द सुना होगा, मगर इससे आगे बढ़कर अब पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का दौर आ गया है। हाल में विष्णुदेव कैबिनेट का विस्तार हुआ, उसमें इसी तरह का एक नमूना दिखा। कैबिनेट में जिन तीन नए मंत्रियों को शामिल किया गया, उसमें सोशल इंजीनियरिंग के साथ पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया गया। तभी इसमें दोनों का संमिश्रण नजर आया। बहरहाल, गजेंद्र यादव के नाम पर काफी पहले से सहमति बन गई थी, मगर खुशवंत साहेब और राजेश अग्रवाल को लेकर बीजेपी में पर्दे के पीछे शह-मात का खेल चला, उससे पार्टी के दिग्गज नेता भी भौंचक रह गए....किसने किधर से बॉल फेंकी और खुरदुरी पिच पर वो इतनी स्पिन कैसे हो गई? जाहिर है, बॉल को समझने में राजनीति के बड़े-बड़े सूरमा भी चूक गए। इस गेम में क्रिकेट और शतरंज दोनों खेलों का जौहर दिखा। खेल को अपने पक्ष में करने दांव चलने में कोई कमी नहीं की गई। दिसंबर 2024 में किरण सिंहदेव को मंत्री बनाने के लिए हाथी को आगे बढ़ाया। मगर सामने वाले ने प्यादे से हाथी को मार डाला। और यह दावं उल्टा बैठ गया। फिर, दूसरी बार कैबिनेट विस्तार के समय उंट की चाल भी पिट गई। थक हारकर इस बार घोड़े को आगे बढ़ाया गया। जाहिर है, शतरंज के खेल में किसी भी दिशा में ढाई घर चलने की वजह से घोड़ा बेहद खतरनाक होता है। इस बार ऐसा ही हुआ...घोड़ा से घोड़ा को मारा गया। इस खेल का दिलचस्प पहलू यह रहा कि सोशल और पॉलिटिकल इंजीनियरिंग एक साथ साधी गई।

एक तीर, डबल निशाना?

बीजेपी की राजनीति को समझने वाले सियासी पंडितों की मानें तो कैबिनेट विस्तार में जिन लोगों ने सरगुजा में कमल खिलाया, उन्हीं के तरफ से खुशवंत साहेब का नाम भी आगे बढ़ाया गया। खैर, बीजेपी के नफे-नुकसान की दृष्टि से देखें तो खुशवंत का फैसला सही माना जा रहा है। भूपेश बघेल सरकार में मंत्री शिव डहरिया और रुद्र गुरू भले ही अपनी सीट नहीं बचा सकें, मगर ये जरूर हुआ कि 2023 के विधानसभा चुनाव में अजा के लिए रिजर्व 10 में से छह सीटें झटकने में कांग्रेस पार्टी कामयाब हो गई। बीजेपी को सिर्फ चार सीटों से संतोष करना पड़ा। इसी का हवाला देकर कैबिनेट में अजा का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का फर्मूला रखा गया। ऐसा करके एक तीर से दो निशाना किया गया। दूसरा निशाना था, लता उसेंडी को रोकना। लता उसेंडी का नाम लगभग फायनल समझा जा रहा था। मगर दूरगामी रणनीति के तहत कि अगले विस चुनाव से पहले सरगुजा का प्रतिनिधित्व कम होगा, तब बस्तर से किसी को मंत्री बनाया जा सके...इस दृष्टि से गुंजाइश बनाकर रखी गई है...ऐसा राजनीतिक समीक्षकों का दावा है।

विभाग वितरण में डंडी

पॉलिटिकल इंजीनियरिंग करते हुए बीजेपी ने तीन नए मंत्री बना दिए मगर विभाग बांटने के मामले में टाईप डंडी मार दी। गजेंद्र यादव को स्कूल शिक्षा तो कुछ ठीक भी है, बाकी दो की स्थिति ऐसी रही कि मंत्री बनने की खुशी मनाएं या फिर मालदार विभाग न मिलने का गम। तीन में से एक मंत्री इस प्रोफाइल के हैं कि उन्हें जो पोर्टफोलियो मिला है, उसके बजट से कई गुना ज्यादा उनका खुद का कारोबार है। हालांकि, विभाग के नाम पर झुनझुना थमाना कहना सही नहीं होगा मगर यह कड़वा सत्य तो है कि ये विभाग कभी भी किसी मंत्री का मेन विभाग नहीं रहा, पुछल्ला की तरह हमेशा टिकाया जाता था। ऐसा समझा जाता है कि दोनों मंत्रियों को अपेक्षित विभाग न देकर बीजेपी के उन वर्गों को जले पर बरनाल लगाने का काम किया गया है, जिनका मानना था कि कांग्रेस से आए नेताओं को पार्टी दोनों हाथों से उपकृत कर रही है।

मंत्रियों पर लटकी तलवार!

डेढ़ साल बाद ही सही विष्णुदेव कैबिनेट अब कंप्लीट हो गया है। ऐसे शुभ अवसर पर दुखी करने जैसी बातें नहीं होनी चाहिए। मगर कुछ मंत्री खुद ही घबराए दिख रहे हैं तो उसका क्या? असल में, अंबिकापुर से राजेश अग्रवाल को मंत्रिमंडल में शामिल करने से सरगुजा के मंत्रियों का रक्तचाप बढ़ गया है। सरगुजा से इस समय रामविचार नेताम, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े और अब राजेश अग्रवाल मंत्री हैं। जाहिर है, बस्तर और सरगुजा में ऐसा असंतुलन है कि लगभग सभी मानकर चल रहे हैं कि आगे चलकर सरगुजा से दो-एक मंत्रियों का विकेट गिरेगा। सरगुजा से बीजेपी को अगर 14 में 14 सीटें मिलीं तो बस्तर की 12 में से आठ सीटें आईं। सरगुजा को अगर 14 में पांच का प्रतिनिधित्व मिल रहा तो बस्तर को आठ में ढाई का तो मिलना ही चाहिए। ऐसे में, विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में निश्चित तौर पर बस्तर को एक मंत्री मिलेगा ही। और, यह तय है कि अब मंत्रियों की संख्या 13 से अधिक होनी नहीं। ऐसे में, कटौती सरगुजा से ही होगी। लिहाजा, सरगुजा के मंत्रियों को घबराना जायज ही कहा जाएगा।

बीजेपी का असंतुलन

पॉलिटिकल इंजीनियरिंग करने में बीजेपी कामयाब हो गई मगर पार्टी के भीतर ही इस पर असंतोष है कि क्षेत्रवार संतुलन बनाने का प्रयास नहीं किया गया। पहली बात यह कि बस्तर से एक की तुलना में मंत्रिपरिषद में सरगुजा से पांच-पांच लोग हो गए हैं। अंबिकापुर से अखिलेश सोनी को बीजेपी कार्यकारिणी में महामंत्री बनाया गया, और वहीं से राजेश अग्रवाल को कैबिनेट मंत्री भी। इसी तरह आरंग से नवीन मार्केंडेय को महामंत्री और वहीं से खुशवंत साहेब को सरकार के मंत्री। जांजगीर में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया, मगर वहां से किसी को कार्यकारिणी में पदाधिकारी बनाने की जरूरत नहीं समझी गई। बिलासपुर जैसे सूबे के दूसरे बड़े जिले से न तो किसी को कार्यकारिणी में पद मिला और न मंत्रिमंडल में। अब देखना है कि बीजेपी के रणनीतिकार इस असंतुलन को दूर करने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

सीएम हुए मजबूत

कैबिनेट विस्तार पर 16 अगस्त से 19 अगस्त तक करीब 80 घंटे तक उहापोह की स्थिति बनी रहने के बाद आखिरकार 20 अगस्त को तीन नए मंत्रियों ने शपथ ग्रहण कर ली। अगर इस बार शपथ टलता तो फिर पार्टी के साथ सरकार की स्थिति बड़ी खराब होती। मगर जो नाम 16 अगस्त को पब्लिक डोमेन में आए, उन्हीं तीनों ने 20 को शपथ ली। इस एपिसोड में राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय मजबूत हुए हैं।

चेंबर 12, बंगले भी 12

हरियाणा मॉडल पर छत्तीसगढ़ में 13 मंत्री तो हो गए मगर अब दिक्कत यह है कि मंत्रालय में मंत्री स्तर के 12 कमरे बनाए गए हैं, उसी तरह नवा रायपुर में भव्य हवेलियां भी 12 ही बनी हैं। दरअसल, मंत्रालय बनाते समय रमन सरकार ने नहीं सोचा होगा कि छत्तीसगढ़ में 13 मंत्री हो सकते हैं, उसी तरह पिछली कांग्रेस सरकार ने भी 12 से अधिक बंगले बनाना मुनासिब नहीं समझा। रमन सिंह सरकार ने 15 साल 12 मंत्रियों में गुजार दिए और कांग्रेस ने पांच साल। 2004 में ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ ने 13 मंत्री कर लिया होता तो नए मंत्रियों को न मंत्रालय में बैठने की दिक्कत होती और न ही बंगले की। एक-एक विधायकों को और मंत्री बन जाने का चांस मिलता, वो अलग बात। चलिये, जो बीत गई, वो बात गई।

आईएएस का 2005 बैच

आईएएस का 2005 बैच यूनिटी के मामले में हमेशा एग्जाम्पल सेट करता रहा है। पोस्टिंग का मामला हो या सुख-दुख का, हमेशा एक-दूसरे के लिए खड़े रहते हैं...पोस्टिंग के लिए रास्ता क्रियेट कर देते हैं। इस बैच के छह में से एक ओपी चौधरी अब मंत्री बन चुके हैं। बाकी पांच में मुकेश बंसल सिकरेट्री टू सीएम हैं। रजत कुमार उद्योग के साथ जीएडी सिकरेट्री। जीएडी सीएम के पास है, यानी वे भी सीएम से कनेक्टेड हुए। एस0 प्रकाश ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ ट्रांसपोर्ट सिकरेट्री। श्याम धावड़े को ग्रामोद्योग में शिफ्थ करने के बाद शंगीता अब आबकारी विभाग की होल सोल हो गई हैं। अब नया अपडेट यह है कि कैबिनेट विस्तार में इरीगेशन मुख्यमंत्री के पास आ गया है। इसके सचिव 2005 बैच के राजेश टोप्पो हैं। याने राजेश भी अब सीएम के विभाग वाले हो गए। इस तरह 05 बैच के तीन अफसर सीधे सीएम से कनेक्टेड रहेंगे। एक तो अधिकारिक तौर पर सीएम के सिकरेट्री हैं ही और दो विभागीय सचिव के नाते उनसे जुड़ गए हैं। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में आईएएस का 2005 बैच प्रारंभ से प्रभावशाली रहा है। रमन सिंह सरकार के दौरान भी इस बैच को हमेशा वेटेज मिला। मुकेश जब एमआईटी में पढ़ने यूएस गए तो उनकी जगह रजत कुमार सीएम सचिवालय में आए थे। कांग्रेस सरकार में ये बैच पांच बरस पूरी तरह हांसिये पर रहा। मुकेश और रजत सेंट्रल डेपुटेशन का रास्ता तलाश लिए थे तो आर0 शंगिता किस्मती रहीं कि कोई विभाग नहीं मिला तो कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। राजेश टोप्पो का भी यही हाल रहा। मगर यह बैच अब फिर पुराने रौं में आ गया है।

बीजेपी के लिए अलर्ट

71 सीट वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई थी। मगर वह फिर से खड़े होने की कोशिशों में जुट गई है। रायपुर में जून में बड़ा शो करने के बाद अब पार्टी ग्रासरुट लेवल पर जाकर समुदायों में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास कर रही। विश्व आदिवासी दिवस पर कोटा में आदिवासियों पर एक बड़ा जलसा किया गया। एक्स सीएम से लेकर आधा दर्जन से अधिक विधायक इस मौके पर मौजूद रहे। आदिवासियों को इमोशनल तौर पर पार्टी से जोड़ने के लिए कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव में मां महामाया माई से प्रार्थना कर डाली कि कोटा की पहाड़ियों में कोई खनिज संपदा न निकल जाए, जिससे हमारे आदिवासी इलाके खुदाई के शिकार हो जाएं। कहने का आशय यह है कि बीजेपी के लिए अलर्ट होने का समय आ रहा है। पार्टी के नेता इस समय सरकार होने के स्वाभाविक नफे-नुकसान के चक्कर में उलझे हुए हैं, कांग्रेस अपना घर दुरूस्त करने में भिड़ गई है।

नशे के खिलाफ मुहिम?

नशे के चलते छत्तीसगढ़ में बढ़ी अपराधिक घटनाओं को लेकर समाज कल्याण विभाग आगे आया है। सरकार के निर्देश पर समाज कल्याण विभाग के सचिव भूवनेश यादव कैम्पेन चलाने का ड्राफ्ट तैयार कर रहे हैं। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि नशाजनित अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस के साथ समाज कल्याण विभाग को भी आगे आना चाहिए। हालांकि, सच्चाई यह है कि पुलिस अगर मन से चाह लें तो नशे के चेन पर 24 घंटे के भीतर अंकुश लगाया जा सकता है।

एसपी का जोखिम

धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील कहे जाने वाले रायपुर के एक नजदीकी जिले में दुष्कर्म की शिकार एक महिला महीनों से पुलिस थाने और एसपी ऑफिस का चक्कर लगा रही है। मगर कानून के पेशे वाला मुजरिम ऐसी उंची पहुंच वाला है कि पुलिस के हाथ-पांव कांप जा रहे। हालांकि, अपनी गर्दन बचाने पुलिस ने महिला की शिकायत को रोजनामचा में दर्ज कर लिया है मगर एफआईआर नहीं कर रही। जबकि, सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट रूलिंग है कि कोई महिला अगर दुष्कर्म की शिकायत लेकर आती है तो सबसे पहले एफआईआर करना है। ऐसे में, मामला अगर कोर्ट पहुंच गया तो एसपी साब क्या जवाब देंगे? खैर, चरणवंदना पोलिसिंग की दौर में इस तरह का प्रेशर और रिस्क रहता ही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डिप्टी सीएम अरुण साव से विधि-विधायी लेकर उन्हें उससे कहीं बड़ा और एक्सपोजर वाला खेल और युवा कल्याण विभाग दिया गया है, इससे वे खुश होंगे या मायूस?

2. मंत्री केदार कश्यप से इरीगेशन लेकर उन्हें ट्रांसपोर्ट दिया गया, इसके क्या मायने हैं?

शनिवार, 16 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: नए मंत्रीः लिफाफे में किसका नाम?

 तरकश, 17 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

नए मंत्रीः लिफाफे में किसका नाम?

अब जबकि यह साफ हो चुका है कि दो-एक दिन में विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा, नए मंत्रियों के नामों पर सरगर्मियां बढ़ गईं हैं। शपथ लेने वाले मंत्रियों में गजेंद्र यादव का नाम सबसे उपर बताया जा रहा है मगर उनके बाद दो मंत्रियों का नाम क्लियर नहीं है। सत्ता के गलियारों में पांच नाम अवश्य तैर रहे हैं। मगर वो भी ’इफ’ और ’बट’ के साथ। इन पांच में अमर अग्रवाल, संपत अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, लता उसेंडी और खुशवंत साहेब हैं। चर्चाएं ये भी हैं कि दो नाम यहां से दिल्ली भेजे गए, उनमें खुशवंत साहेब और संपत अग्रवाल शामिल थे। जातीय समीकरण के हिसाब से खुशवंत साहेब का नाम महत्वपूर्ण है तो पार्टी के कोष प्रबंधन की दृष्टि से संपत अग्रवाल का। अलबत्ता, खुशवंत पर अगर मुहर लग गई तो फिर संपत अग्रवाल का दावा कमजोर हो जाएगा। बहरहाल, इन दोनों के अलावे शपथ लेने वाले संभावितों में अमर अग्रवाल, लता उसेंडी और राजेश अग्रवाल का नाम भी प्रमुख है। राजेश अग्रवाल को मंत्री बनाने में एक पेंच ये आएगा कि सरगुजा संभाग से चार मंत्री हो जाएंगे। रामविचार नेताम, श्याम बिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े इस समय सरगुजा से मंत्री हैं। राजनीतिक दृष्टि से अगर इसे समझने की कोशिश करें तो खुशवंत साहेब अगर मंत्री बनते हैं तो फिर लता उसेंडी और संपत अग्रवाल की दावेदारी कमजोर पड़ेगी। फिर सरगुजा से चार मंत्री का इश्यू है ही। ऐसे में, अमर अग्रवाल का पलड़ा भारी होगा। वैसे भी एक बड़ा वर्ग मानता है कि नाम चाहे कोई भी हो...मंत्रिमंडल में एक अनुभवी मंत्री होना चाहिए। मगर होगा वहीं, जो पार्टी और मुख्यमंत्री चाहेंगे। इसके लिए लिफाफा खुलने की प्रतीक्षा करनी होगी। बहरहाल, ये तो एक विश्लेषण हुआ...इस समय चर्चाएं गजेंद्र, खुशवंत और राजेश अग्रवाल की तेज है।

देर आए, दुरूस्त आए

छत्तीसगढ़ में भी अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ हो जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाषण देते हुए इसका ऐलान किया। जाहिर है, देश में बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे गिने-चुने राज्य बचे हैं, जहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हुआ है। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश और ओड़िसा तक में इसकी शुरूआत हो चुकी है। यूपी, पश्चिम बंगाल में पहले से लागू है और साउथ के स्टेट में तो 20 साल से ज्यादा हो गया। अब बात करें छत्तीसगढ़ की, तो यहां पुलिस जिस तरह डिरेल्ड हुई है, उसमें कमिश्नर सिस्टम बहुत पहले लागू हो जाना चाहिए था। हालांकि, रमन सरकार के आखिरी टाईम में भी इसकी बात चली थी। पिछली कांग्रेस सरकार में भी सुगबुगाहट हुई थी, मगर कुछ हुआ नहीं। चलिये देर आए, दुरूस्त आए। छत्तीसगढ़ भी अब कमिश्नर सिस्टम वाले राज्य में शामिल हो गया है। बीजेपी सरकार ने पुलिस में रिफार्म की शुरूआत कर दी है। मगर यह भी सही है कि सिर्फ पुलिस कमिश्नर बिठाने से नहीं होगा। रायपुर में जिस तरह क्राईम बढ़ा है, उससे कोई भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा। इसके लिए पुलिस कमिश्नर को फ्री हैंड देना होगा। रायपुर में इस समय सबसे बड़ी जरूरत लॉ एंड आर्डर को ठीक करने का है। और यह कड़वा सत्य है कि जब तक राजनीतिक हस्तक्षेप रहेगा, ये हो नहीं पाएगा। पिछली सरकार में पेड और रिचार्ज पोस्टिंगों ने पुलिस का कबाड़ा किया और इस सरकार में पेड के साथ भाई साहब वाली पोस्टिंगें पोलिसिंग को खराब कर कर रही है। कई जिलों में ऐसा हो रहा कि सिफारिशी अफसर एसपी आईजी की सुनना पसंद नहीं कर रहे। पुलिस के इस रिफार्म को सफल बनाने के लिए सिस्टम को कठोर फैसला लेना होगा।

खतरे का अलार्म

राजधानी रायपुर में कानून-व्यवस्था को लेकर खतरे का अलार्म तब बज गया था, जब 2022 में एक लड़की ने नशे में एक युवक को चाकुओं से गोदकर मार डाला था। उसके तुरंत बाद हुए कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने इस घटना का जिक्र करते हुए पोलिसिंग पर सवाल उठाया था। कांफ्रेंस के बाद पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू करने पर सरकार गंभीर भी दिखी थी...फर्स्ट कमिश्नर कौन होगा, इस पर मंथन भी प्रारंभ हो गया था। मगर परदे के पीछे पता नहीं क्या हुआ कि सरकार ने उसे ड्रॉप कर दिया। बहरहाल, रायपुर में जिस तरह की घटनाएं बढ़ी है, उससे हर छोटा-बड़ा हर आदमी असुरक्षित महसूस कर रहा है। रायपुर में तीन युवाओं की अकारण बेरहमी से की गई हत्या और आरोपियों द्वारा विक्ट्री साइन दिखाने के बाद तो बड़े लोग भी सहम गए हैं। एक आईएएस अफसर ने कहा, हमारे पास गन मैन भी नहीं। न गाड़ी में बत्ती। राह चलते किसी की बाइक कार से टकरा जाए और नशे में चाकू चला दे, कोई भरोसा नहीं। सही है...2022 में लड़की की चाकूबाजी के बाद ही सिस्टम की आखें अगर खुल गई होती तो राजधानी की पोलिसिंग आज शीर्षासन नहीं कर रही होती।

कौन होगा फर्स्ट कमिश्नर?

दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में डीजी लेवल के आईपीएस अधिकारी पुलिस कमिश्नर होते हैं। रायपुर में किस स्तर के अफसर को कमिश्नर बनाया जाएगा, सरकार के तरफ से अभी कोई संकेत नहीं है। मगर यह तय है कि यहां आईजी या एडीजी लेवल का ही कोई कमिश्नर होगा। एडीजी में प्रदीप गुप्ता, विवेकानंद, अमित कुमार और दीपांशु काबरा में से कोई नाम हो सकता है। वैसे सबसे बेस्ट स्थिति यह होगी कि इन एडीजी, आईजी में से किसी को कमिश्नर बना उनके नीचे एक तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी को एडिशनल कमिश्नर बिठा दिया जाए। रायपुर के एक पड़ोसी जिले में एक कप्तान से आजकल अपराधी से लेकर पुलिस महकमा त्रस्त महसूस कर रहा है। अपराधियों से गलबहियां करने वाली उस जिले की पुलिस को एसपी की अतिसक्रियता रास नहीं आ रही। रायपुर को इस वक्त इसी तरह के अधिकारियों की दरकार है। कमिश्नर के लिए अमरेश बढ़ियां च्वाइस हो सकते थे मगर ईओडब्लू और एसीबी में उनके पास ऐसे दायित्व हैं कि सरकार वहां से छोड़ना नहीं चाहेगी। जाहिर है, पुलिस कमिश्नर का सलेक्शन सरकार के लिए कठिन टास्क होगा।

रिफार्म पर करप्शन भारी!

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का 35 साल का राजनीतिक जीवन साफ-सुथरा रहा है, मुख्यमंत्री के तौर पर डेढ़ साल का उनके टेन्योर पर भी कोई उंगलियां नहीं उठी है। मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों की छबि भी ऑनेस्ट और निर्विवाद है। फिर सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि सूबे में करप्शन कम नहीं हो पा रहा बल्कि लेवल और बढ़ता जा रहा। सप्लाई, खरीदी, ठेका का कमीशन 35 परसेंट तक पहुंच गया है। मंत्री खुलेआम अपना 20 परसेंट मांग रहे। वो भी एडवांस। अगर एडवांस पेमेंट नहीं हुआ तो टेंडर या सप्लाई की फाइल आगे नहीं बढ़ेगी। विभागों को अगर रायपुर से परचेजिंग का आदेश जारी कराना है तो पहले कमीशन एडवांस में पे करना होगा। छत्तीसगढ़ के अधिकांश विभागों की यही स्थिति है। इसके बाद विधायकों का अपना परसेंटेज। उस इलाके में सत्ताधारी पार्टी का कोई बड़ा नेता है, तो उसे भी चाहिए। ऐसे में, क्वालिटी की उम्मीद कैसे की जा सकती है। फिर तो 32 हजार में जग खरीदने का टेंडर भरना ही होगा। यह सही है कि करप्शन कभी कम नहीं हो सकता। लेकिन, वह शिष्टाचार तक सीमित रहे तो ठीक है...लूटमारी में बदल जाए तो मामला गड़बड़ समझा जाएगा। सिस्टम के रणनीतिकारों को यह ध्यान रखना होगा कि 72 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी पांच साल में ही क्यों सत्ता से बाहर हो गई? ऐसा नहीं है कि विष्णुदेव सरकार काम नहीं कर रही। रिफार्म पर कई दूरगामी परिणाम वाले बड़े काम हुए हैं। राजस्व, पंजीयन के बाद पुलिस कमिश्नर सिस्टम भी शुरू होने जा रहा है। नगरीय प्रशासन में भी कई फैसले हुए हैं। मगर हाई रेट के करप्शन के चलते सरकार के रिफार्म के काम कमजोर पड़ जा रहे हैं।

प्रभारी डीजीपी का साइड इफेक्ट

छत्तीसगढ़ में यह पहली दफा हुआ कि राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों के आईपीएस अवार्ड के लिए यूपीएससी की डीपीसी में डीजीपी अरुणदेव गौतम शामिल नहीं हो पाए। जबकि, डीपीसी में संबंधित राज्य के चीफ सिकरेट्री, एसीएस होम और डीजीपी मेंबर होते हैं। इससे पहले सभी डीपीसी में डीजीपी दिल्ली जाते रहे हैं। दरअसल, यूपीएससी का नियम है कि प्रभारी डीजीपी को वह डीपीसी का मेंबर नहीं बनाता। सीधे तौर पर कहें तो यूपीएससी प्रभारी अफसर को मान्यता नहीं देता। हालांकि, अशोक जुनेजा भी 11 महीने तक प्रभारी डीजीपी रहे। मगर उस दौरान कोई डीपीसी नहीं हुई। इसलिए चल गया। मगर इस बार डीपीसी में सिर्फ चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और एसीएस होम मनोज पिंगुआ शिरकत कर पाए।

मंत्री का भतीजा

एक मिनिस्टर के भतीजे ने टुच्चई करते हुए पेट्रोल पंप के कर्मचारियों से मारपीट कर दी। उपर से धौंस भी जमाया...जानते नहीं, चचा हमारे मंत्री हैं। मगर पुलिस प्रेशर में नहीं आई। महिला कप्तान ने दबंगई दिखाते हुए न केवल गैर जमानती धाराओं में केस दर्ज कराया बल्कि गिरफ्तार कर जेल भी भिजवा दिया। पुलिस की छबि ऐसी कार्रवाइयों से दुरूस्त होगी। और अपराधियों का हौसला पस्त भी।

सीएम का फर्स्ट विदेश प्रवास

सीएम विष्णुदेव साय 21 अगस्त को प्रथम विदेश प्रवास पर रवाना हो रहे हैं। वे जापान में ओसाका वर्ल्ड एक्सपो में हिस्सा लेंगे। इसमें उन्हें आमंत्रित किया गया है। उनके साथ उनके प्रमुख सचिव सुबोध सिंह, उद्योग सचिव रजत कुमार, सीएसआईडीसी एमडी विश्वेष कुमार रहेंगे। कुल मिलाकर टीम काफी छोटी होगी। इंडस्ट्रीज फ्रेंडली नई उद्योग नीति लांच करने के बाद इस एक्सपो से छत्तीसगढ़ में इंवेस्टमेंट की काफी उम्मीदें रहेंगी।

छुट्टी के दिन एक्शन में PHQ

15 अगस्त की थकाउ कार्यक्रम और आज जन्माष्टमी की छुट्टी के बाद आज पुलिस मुख्यालय के एक कॉल से आईजी साहब लोग घबरा गए। एक लाइन का मैसेज था, 12 बजे पूरी तैयारी के साथ वीसी में कनेक्ट होइये। डीजीपी अरुणदेव गौतम के साथ वीसी में खुफिया चीफ अमित कुमार भी मौजूद थे। डीजीपी ने सभी आईजी की क्लास ली। विषय था बढ़ती चाकूबाजी। मीटिंग के तुरंत बाद आईजी ने सभी एसपी को निर्देश जारी कर दिए। आज रात से ही चौक-चौराहों पर पुलिस तैनात होनी शुरू हो गई है। कल से वाहनों की चेकिंग और बढ़ जाएगी। मगर इसके साथ जरूरी यह भी झुग्गी-झोपड़ी बहुल इलाकों में जाकर सघन चेकिंग करना, पता करना कि कौन-कौन नशा कर रहा है। यह काम कोई कठिन नहीं। बस्तियों में लोगों को पता रहता है कि कौन क्या कर रहा है...थानों की पुलिस भी इससे भिज्ञ होती है। मगर जब थानेदारों के संरक्षण में ही नशे का धंधा फल-फूल रहा तो फिर चौराहों पर चेंकिंग से क्या होगा। पुलिस महकमे में आखिर किसको नहीं पता कि स्पा की आड़ में क्या हो रहा और पान दुकानों में क्या बिक रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक महिला डीएसपी ने पत्र के जरिये गृह विभाग की ट्रांसफर पॉलिसी को खूला चैलेंज कर दिया है, इसे किस अर्थ में लेना चाहिए?

2. छत्तीसगढ़ के पांचों आईजी जब निर्विवाद और साफ-सुथरी छबि के हैं, फिर भी पोलिसिंग पटरी पर क्यों नहीं आ पा रही?


शनिवार, 2 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 25 सालः बिना करप्शन एकमात्र काम

 तरकश, 3 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

25 सालः बिना करप्शन एकमात्र काम

छत्तीसगढ़ में 25 गुना, 30 गुना अधिक दर पर सरकारी खरीदी एपिसोड के बाद सरकार ने अफसरों को टाईट करना शुरू किया है। मगर यह शाश्वत सत्य है कि सरकारी खरीदी या निर्माण कार्य युगों से ऐसी ही होता आ रहा है। सिर्फ एक मौके को छोड़....जब 33 करोड़ का काम 29 करोड़ में हो गया था। बात 2013 की है। रायपुर के क्रिकेट स्टेडियम में पहला आईपीएल होना था। समय कम था और स्टेडियम का सिर्फ सिविल वर्क हुआ था। सीटिंग अरेंजमेंट से लेकर तमाम काम बचे हुए थे। उस समय सुनिल कुमार चीफ सिकरेट्री थे। तत्कालीन सीएम रमन सिंह ने उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंपी। सुनिल ने तब के स्पोर्ट्स कमिश्नर आईपीएस राजकुमार देवांगन से एस्टीमेट मंगाया। उन्होंने खर्च बताया 65 करोड़। तब तक रायपुर के कुछ सप्लायर माफिया भी एक्टिव हो गए थे। वे 2200 में कुर्सी खरीदने का लगे प्रेशर बनाने। सीएस ने सबसे पहले देवांगन को हटाकर जीतेंद्र शुक्ला को कमिश्नर बनाया। आरपी मंडल पहले से सिकरेट्री स्पोर्ट्स थे। सुनिल कुमार ने दोनों को बुलाकर अपनी मंशा बता दी। कम खर्च में कैसे काम ज्यादा हो जाए, इसके लिए कई दौर की मंथन हुई। सीएस ने कहा कि बिचौलियों से 2200 की कुर्सी खरीदने की बजाए क्यों न मैन्युफैक्चरर्स से बात की जाए। और यही हुआ। मैन्युफैक्चरर से 800 में कुर्सी मिल गई। उपर से कंपनी पर प्रेशर डाल 500 से अधिक कुर्सी ले ली गई कि कही ट्रांसपोर्टिंग में टूट हुई तो कौन क्लेम करने आएगा, उससे अच्छा है कि पहले ही 500 चेयर अधिक दे दो। आईपीएल शुरू होने से हफ्ता भर पहले मंडल और जीतेंद्र न जब सुनिल कुमार को खर्च की रिपोर्ट सौंपी तो पता चला 33 करोड़ की जगह 29 करोड़ में कुर्सी से लेकर सारी गैलरीज बनकर तैयार हो गईं। याने बजट से चार करोड़ कम में काम हो गया। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद 25 साल में निर्माण और सप्लाई का पहला काम होगा, जो बजट से कम में हो गया।

भावी मंत्रियों को गुड न्यूज!

मुख्यमंत्री जैसे राज्यों के प्रमुखों को भी प्रधानमंत्री से मिलना आसान नहीं होता। वो भी मोदी जैसे पीएम से तो और मुश्किल। तभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को साल में दो-एक बार ही पीएम से मिलने का अवसर मिल पाता है। मगर छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय शपथ लेने के बाद डेढ़ साल में पांच बार पीएम मोदी से वन-टू-वन मिल चुके हैं। हर दो-तीन महीने में उनकी पीएम और गृह मंत्री से मुलाकात हो जाती है। जाहिर है, उनके समकक्षों को यह जानने की उत्सुकता होगी कि विष्णुदेव को पीएमओ से टाईम कैसे मिल जाता है...आखिर वो चैनल कौन-सा है? बहरहाल, पिछले छह महीने में जितने बार विष्णुदेव पीएम मोदी और अमित शाह से मिले हैं, हर बार मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें तेज हुई है। हर बार लगता है...सीएम ने जरूर इस पर बात की होगी। इस बार भी लोगों को लग रहा कि कुछ होगा। हालांकि, दिल्ली से लौटने पर सीएम ने मीडिया से कहा, इंतजार कीजिए, मगर उनके बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि इस बार कुछ खास होगा...भावी मंत्रियों को जल्द गुड न्यूज मिल सकता है।

चीफ सिकरेट्री का गुस्सा

शीर्षक आपको अटपटा लगेगा...सोचेंगे मुख्य सचिव अमिताभ जैन कभी गुस्सा भी करते हैं? मगर बुधवार को रायपुर-बिलासपुर हाईवे पर 18 गायों की दर्दनाक मौत पर अमिताभ ने कलेक्टर, और एसपी के व्हाट्सएप ग्रुप में जो लिखा, वह हैरान करने वाला था। दो मिनट के भीतर धड़ाधड़ भेजे चार मैसेज से सूबे के कलेक्टर, एसपी हिल गए। कई कलेक्टर, एसपी ऑफिस और घरों से निकलकर शहरों में गायों को देखने चले गए। एक जिले की पुलिस ने घंटे भर के भीतर दो मवेशी मालिकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बता दें, छत्तीसगढ़ की गोठान बनी सड़कें हाई कोर्ट के संज्ञान में है। हर महीने चीफ सिकरेट्री को होई कोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट देनी होती है। बावजूद इसके हफ्ते भर में 90 से अधिक गायों की मौत हो गई, तो सीएस को गुस्सा तो आएगा ही।

छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य

छत्तीसगढ़ में 95 परसेंट से अधिक हिन्दू हैं। अब हिन्दू धर्म में गायों का क्या स्थान है, इसे बताने की जरूरत नहीं। मगर दुर्भाग्य यह है कि सड़क हादसों में गायें अगर सबसे अधिक जान गंवा रही है तो वह छत्तीसगढ़ है। पिछले एक हफ्ते में चार अलग-अलग दुर्घटनाओं में 90 गायों की मौत हो चुकी हैं। इन गायों को ट्रकों और हाईवा ने बेरहमी से कुचल दिया। यही नहीं, गायों से टकराकर वाहन चालक भी हादसे का शिकार हो रहे हैं...जान गंवा रहे हैं। दरअसल, सूबे में गोवंश को लेकर गांवों से लेकर शहरों तक हालत बेहद खराब है। देश के किसी भी राज्य में आप गो माता के प्रति इतनी निर्दयता नहीं देखेंगे कि दूध देना बंद कर दिया तो उन्हें सड़कों पर अवारा घूमने के लिए छोड़ दिया। राजधानी रायपुर के चकाचौंध वाले इलाकों में भी आपको सड़कें घेर कर बैठी गायें मिल जाएंगी...कवर करके बनाया गया केनाल और वीआईपी रोड तक इससे अछूता नहीं है। जरा सोचिए, बाहर से आने वाले लोग छत्तीसगढ़ की क्या छबि लेकर जाते होंगे। दरअसल, मवेशियों को अवारा छोड़ना छत्तीसगढ़ में यह सामाजिक समस्या बनता जा रहा है। छत्तीसगढ़ का नाम खराब होने से बचाने प्रशासन के साथ हिन्दू संगठनों को भी आगे आना होगा।

ये तीन उपाय

छत्तीसगढ़ में सिस्टम इतना बेपटरी हो चुका है कि जिस काम में पैसा नहीं, उधर सरकारी मुलाजिमों को देखना गवारा नहीं। अब गायों की रोकथाम करने से क्या मिलने वाला। उपर से कार्रवाई कर दिए तो फिर धरना, प्रदर्शन, घेराव की सियासत झेलो। पिछली सरकार ने गोठान जैसी अच्छी योजना शुरू की थी मगर सही क्रियान्वयन के अभाव में इसने दम तोड़ दिया। सिस्टम अगर वाकई ईमानदारी से इस सामाजिक समस्या का निराकरण चाहता है तो उसे कांजीहाउस की व्यवस्था फिर से दुरूस्त करनी होगी। ढाई-तीन दशक पहले नगरीय निकायों से लेकर ग्राम पंचायतों में कांजी हाउस इतना सक्रिया होता था कि लोग अपने मवेशियों को खुला छोड़ने में घबराते थे। दूसरा, जुर्माना के प्रावधान को कड़ा किया जाए, और तीसरा...ग्राम पंचायतों के सचिव जी लोगों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाए। जनपद पंचायतों के सीईओ की मॉनिटरिंग में ग्राम पंचायतों के सचिव मवेशियों पर नजर रखें। ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए का बजट आता है, सरपंच, सचिव दिन भर वन टू के फोर...खेल में लगे रहते हैं। लगभग सभी जिलों में वेटनरी की टीम है। उनकी भी एकाउंटबिलिटी बनती है। रही बात शहरी इलाकों की तो कलेक्टरों को रिर्चाज किया जाए...दो-चार बार वे खुद फोटो खिंचकर निगम कमिश्नर और नगरपालिका के सीएमओ को भेज देंगे, उतने में काम हो जाएगा। लेकिन, उसके लिए कलेक्टरों को अवेयर होना पड़ेगा। उसके बाद सड़कों पर न तो गाय मरेंगी, न वाहन चालक हादसों के शिकार होंगे...न कोर्ट का समय खराब होगा।

मंत्री को एक और डिप्टी कलेक्टर

राज्य सरकार ने स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के स्टाफ में एक और डिप्टी कलेक्टर दिया है। श्यामबिहारी के पास पहले से राप्रसे अधिकारी हिमांचल साहू विशेष सहायक थे। अब 2021 बैच के राप्रसे अफसर कमल किशोर को उनका ओएसडी बनाया गया है। आमतौर पर मंत्रियों के निजी स्टाफ में एकाध डिप्टी कलेक्टर होते हैं। राप्रसे अधिकारियों को विशेष सहायक बनाने की परंपरा पिछली सरकार में चालू हुई। रमन सरकार में भी सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल के पास राप्रसे अधिकारी विशेष सहायक थीं। मगर अब तो सभी मंत्रियों के स्टाफ में राप्रसे अधिकारी हैं तो किसी के पास दो-दो। असल में, छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों की स्थिति चना-मुर्रा की तरह हो गई है। इतने छोटे स्टेट में संख्या 500 को क्रॉस कर गया है। 2013 बैच के बाद वालों की तादात इतनी है कि बेचारों को आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। बहरहाल, मंत्री के स्टाफ में काम करने का अपना अलग आकर्षण होता है। मंत्रियों के पीएस लोगों का जलवा देख ही रहे हैं...कई पीएस मंत्री को चला रहे हैं।

सीईओ पोस्टिंग का मापदंड

'तरकश' में हमने गरियाबंद और जीपीएम जिले में पीएम आवास योजना की बदहाली का जिक्र किया था। यह भी बताया था कि बालोद में संजय कन्नौजे के कलेक्टर बनकर जाने के बाद तीन महीने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली है। राज्य सरकार ने राप्रसे अधिकारियों के 75 लोगों का लिस्ट निकाला, उसमें गरियाबंद और जीपीएम के सीईओ को हटा दिया, वहीं बालोद में नए सीईओ की तैनाती कर दी। मगर इससे के सिस्टम को चिंतन करना चाहिए कि सिर्फ उपकृत करने के लिए जिला पंचायत जैसे महत्वपूर्ण संस्था में किसी की भी नियुक्ति न कर दें। जाहिर है, सरकार की सारी जमीनी योजनाएं जिला पंचायतों के जरिये संचालित होती है। मध्यप्रदेश के जमाने में जब डीआरडीए होता था, उस समय भी डायरेक्ट आईएएस की पोस्टिंग होती थी। छत्तीसगढ़ में स्थिति यह है कि नायब तहसीलदार से प्रमोट होकर डिप्टी कलेक्टर बने अधिकारियों को जिला पंचायतों का सीईओ बना दिया जा रहा। पोस्टिंग का लेवल इतना गिर जाएगा, कोई सोचा नहीं होगा। गनीमत है, सरकार ने अब इस विसंगति को दूर कर दिया है। मगर पीएम आवास जैसी योजनाओं को बदहाली से बचाने आगे इसे ध्यान रखना होगा।

ऐसे भी अफसरः 172 करोड़ का MOU

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी देश में बदनाम जरूर हो गई है मगर इसका मतलब यह नहीं कि सारे-के-सारे अफसर पथभ्रष्ट हो चुके हैं। आखिर, 25 साल में राज्य ने तरक्की किया है तो उसमें अच्छे अधिकारियों का योगदान रहा। इस समय भी कई ब्यूरोक्रेट्स साइलेंटली ऐसा काम कर रहे, जो पब्लिक डोमेन में नहीं आ रहा। रायपुर से लगे पड़ोसी जिले के एक आईआईटीयन कलेक्टर ने रायपुर में निगम कमिश्नर रहते ऐसी पहल करी कि अगले हफ्ते एक बड़ा एमओयू होने जा रहा है। आईएएस ने नेट पर सर्च कर पता किया कि छत्तीसगढ़ का कौन सा उद्योगपति राज्य के लिए कुछ कर सकता है। देश के टॉप की इंवेस्टमेंट कंपनी मोतीलाल फाउंडेशन के मालिक रामदेव आरंग के रहने वाले हैं। इस समय वे 1.7 बिलियन डॉलर की कंपनी के वे मालिक हैं। आईएएस की पहल पर रामदेव अग्रवाल रायपुर आईआईएम को 101 करोड़ और एनआईटी को 71 करोड़ रुपए देने जा रहे हैं। कुल 172 करोड़। प्रवासी भारतीय सम्मेलन की तरह छत्तीसगढ़ सरकार को रायपुर में एक प्रवासी छत्तीसगढ़ियां का एक सम्मेलन कराना चाहिए। बीएसपी की वजह से भिलाई में पले-बढ़े कई लोग देश-विदेश में बडा काम कर रहे हैं। उन्हें यदि बुलाकर उनके काम को सम्मान दिया जाएगा तो उससे राज्य को काफी लाभ होगा। ब्रांडिंग होगी, सो अलग।

बाढ़े पूत पिता के धरमे

पुरानी कहावत है, बाढ़े पूत पिता के धरमे...याने पिता के पुण्य का लाभ उसके संतान को मिलता है। मगर वर्तमान दौर में यह कहावत निरर्थक हो चली है। जमाना अब वृद्धाश्रम का आ रहा है। पिता अगर घर में हैं भी तो पुराने सामान की तरह कमरे में उपेक्षित पड़े होते हैं। बेटों का लगता है, वे पिता को साथ रखकर परिवार पर अहसान कर रहे हैं। ऐसे समय में बिलासपुर नगर निगम के एक रिटायर चीफ इंजीनियर द्वारा हाल ही में अपने पिता का 95वें जन्मदिन पर भव्य आयोजन करना युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन सकता है। वक्त की जरूरत है कि ऐसे आयोजनों की संख्या बढ़नी चाहिए...पिता की लंबी आयु के चलते अगर बेटों को ऐसा मौका मिलता है, तो उसे इनकैश कर समाज को एक मैसेज देना चाहिए, कम-से-कम इससे कुछ बुजुर्गो को सम्मान तो मिलेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के एक प्रभावशाली मंत्री 30 जुलाई की रात नौ बजे हाई कोर्ट परिसर क्यों पहुंचे थे?

2. आईएएस की ट्रांसफर लिस्ट निकलते-निकलते क्यों और कहां रुक गई?