Chhattisgarh Tarkas 2025: 22 सितंबर, 2025
संजय के. दीक्षित
कलेक्टर-एसडीएम टैक्स
छत्तीसगढ़ में एक महिला विधायक के वायरल ऑडियो ने लोगों को हिला दिया है। पब्लिक को यह बखूबी पता है कि सूबे में करप्शन का कोई लेवल नहीं रह गया है। मगर माफियाओं की तरह कलेक्टर, एसडीएम इस तरह रंगदारी टैक्स वसूलने लगे, ये तो शर्मनाक है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि पैसे के लिए कलेक्टर, एसडीएम इतना नीचे गिर जाएं कि विपक्षी विधायक से गठजोड़ करने लगें। ऑडियो में विधायक रेत माफिया से किस बेफिक्री से बोल रही कि कलेक्टर इतना से कम में मानेगा नहीं, फिर भी मैं बात कर लूंगी...एसडीएम को इतना देना पड़ेगा। हालांकि, विधायक ने ऑडियो को साजिश बताया है मगर सिस्टम को इसकी जांच करानी चाहिए, क्योंकि इस ऑडियो से विधायिका और कार्यपालिका की बची-खुची साख कटघरे में आ गई है।
मलाईदार पोस्टिंग और जेल
वक्त का गजबे चक्कर है...कभी आसमान पर पहुंचा देता है तो कभी धड़ाम से जमीन पर पटक देता है। विषय है गिरफ्तार आईएएस निरंजन दास का। राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने निरंजन दास का जलवा लोगों ने बीजेपी में भी देखा तो कांग्रेस में भी। बीजेपी के दौरान नॉन आईएएस होते भी तीन साल तक भिलाई जैसे निगम के कमिश्नर रहे तो तीन साल नगरीय प्रशासन के डायरेक्टर। गरियाबंद में दो साल कलेक्टर की। हालांकि, कांग्रेस शासनकाल में उन्हें गजब का पोर्टफोलिया मिला। वे नगरीय प्रशासन के सिकरेट्री भी बनें। 31 जनवरी 2023 को रिटायर हुए तो 24 घंटे के भीतर संविदा पोस्टिंग मिल गई थी। और, विभाग ऐसे कि उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी। आबकारी सचिव, आबकारी कमिश्नर, पंजीयन सचिव, नॉन के एमडी, ब्रेवरेज कॉरपोरेशन के एमडी। एक साथ पांच पोस्टिंग और पांचों उंगली घी वाली। संविदा में ऐसी पोस्टिंग किसी सचिव को आज तक नसीब नहीं हुई होगी। मगर निरंजन की ये हैसियत छह-सात महीने ही रह पाई। ईडी ने छापा मारकर उनकी हवाई रफ्तार पर ऐसा ब्रेक लगाया कि एक साल की संविदा नियुक्ति में तीन-चार महीना इधर-उधर भागते बीता। और अब...? सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक की अर्जी खारिज होने के बाद वे बोरिया-बिस्तर समेटकर भागने के फेर में थे कि ईओडब्लू ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
दुहराएगा इतिहास?
कहते हैं इतिहास दुहराता है...छत्तीसगढ़ में यह सही उतरता दिख रहा है। मुख्य सूचना आयुक्त सरजियस मिंज 2017 में रिटायर हुए तो करीब डेढ साल तक यह पद खाली रहा। तब तत्कालीन चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड का सीआईसी बनना लगभग तय माना जा रहा था। मगर जैसे ही रेरा अस्तित्व में आया, उन्होंने सीआईसी की कुर्सी पर से अपना रुमाल उठा लिया और फिर सूबे की सबसे बड़ी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग उन्हें मिल गई। वे रेरा के चेयरमैन बन गए। इसके बाद एमके राउत को सीआईसी बनाया गया। राउत को रिटायर हुए तीन साल हो गए हैं। मगर अभी तक इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है। मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने सीआईसी के लिए इंटरव्यू दिया है, लेकिन मामला गोल-गोल रानी की तरह घूम रहा है। ताजा अपडेट यह है कि अमिताभ जैन बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन बनेंगे। 19 सितंबर को हेमंत वर्मा रिलीव होकर त्रिपुरा चले गए और अब इस पद पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। अमिताभ अगर बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन बन गए तो फिर इतिहास दुहराएगा।
41 साल का सर्विस क्लब
मुख्य सचिव अमिताभ जैन अगर बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन बनें तो वे छत्तीसगढ़ के 42 साल वाले सर्विस क्लब में शामिल हो जाएंगे। अमिताभ आईएएस में 36 साल की सर्विस पूरी कर चुके हैं। और पांच साल उन्हें बिजली विनियामक आयोग में मिल जाएगा। याने 41 साल की सरकारी सर्विस हो जाएगी। उनसे पहले विवेक ढांड और अजय सिंह इस क्लब के मेंबर हैं। विवेक आईएएस में करीब 37 साल रहे। उसके बाद पांच साल रेरा में। फिर डेढ़ साल योग आयोग में। अजय सिंह करीब 37 साल आईएएस में रहने के बाद प्लानिंग कमीशन में रहे और इस समय राज्य निर्वाचन कमिश्नर हैं। हालांकि, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के मामले में अजय सिंह विवेक और अमिताभ के सामने थोड़ा कमजोर पड़ेंगे। राज्य निर्वाचन की पोस्टिंग सम्मानजनक है मगर रेरा और बिजली विनियामक जैसा ग्लेमर नहीं।
मुकद्दर का कमाल!
जब तक आईएएस बीएल अग्रवाल क्रीज पर रहे, तब तक यही समझा जाता था कि अमिताभ जैन को सीएस की कुर्सी तक पहुंचना आसान नहीं। बीएल, अमिताभ से जस्ट एक बैच उपर 88 बैच के आईएएस थे। और 22 साल में आईएएस बन जाने से सर्विस भी लंबी थी। जाहिर है, अमिताभ के सपने में कोई आता होगा तो वो बीएल ही होंगे। अलबत्ता, अमिताभ गजबे किस्मती हैं। कौन सी ऐसी अच्छी पोस्टिंग रही, जो उन्होंने नहीं की। रायपुर कलेक्टर से लेकर डीपीआर तक। दो बार पीडब्लूडी सिकरेट्री। वित्त, वाणिज्यिक कर से लेकर राजभवन सचिव तक। अमिताभ प्रमुख सचिव थे, इसी दौरान बीएल अग्रवाल सर्विस से बाहर हो गए। इसके बाद तो फिर...अमिताभ जैन ने पौने पांच साल की कीर्तिमानी पारी खेल डाली। और अब उनका भाग्य देखिए...सीएस से रिटायरमेंट से 11 दिन पहले बिजली विनियामक आयोग चेयरमैन की कुर्सी खाली हो गई। ऐसा भी नहीं कि हेमंत वर्मा को प्रेशर डालकर हटाया गया हो। उनका त्रिपुरा में सलेक्शन हो गया और फायदे को देखते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसे अब किस्मत नहीं कहेंगे तो फिर क्या कहेंगे।
समय का चक्र
नॉन घोटाले में प्रिंसिपल सिकरेट्री डॉ. आलोक शुक्ला के यहां एसीबी ने छापा मारा तो ऐसा नहीं कि किसी बात को लेकर सरकार उनसे खफा हो गई थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में आलोक शुक्ला के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहने के दौरान राज्य सरकार के साथ उनके संबंध जरूर बेहद खराब हो गए थे। मगर समय के साथ खाई पट गई और 2016 में आलोक जब सेंट्रल डेपुटेशन से रायपुर लौटे तो उनका रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत किया गया था। रेड कार्पेट का मतलब यह कि पहली बार किसी आईएएस को डेपुटेशन से लौटने से पहले पोस्टिंग दे दी गई, वो भी दो अहम विभागों की वाली। आलोक के रायपुर लौटने से करीब हफ्ता भर पहले सरकार ने प्रमुख सचिव खाद्य और स्वास्थ्य बनाने का आदेश जारी कर दिया था। तब ब्यूरोक्रेसी में भी काफी लोगों को ये खटका था कि आखिर क्या कारण है कि सरकार उन पर इतना प्रेम बरसाने लगी। मगर करीब सालेक भर बाद ही एसीबी का छापा पड़ा तो लोग हैरान रह गए। कुल मिलाकर इसे ग्रह-नक्षत्र का खेल कह सकते हैं। जाहिर है, आलोक रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते थे। पुराने मंत्रालय भवन में उस समय कंप्यूटर और लेपटॉप के कीबोर्ड खटखटाने वाले गिने-चुने अफसर थे, उनमें एक आलोक थे। छत्तीसगढ़ के पीडीएस की सुप्रीम कोर्ट से लेकर पूरे देश में तारीफ हुई, उसे बनाने वाले भी आलोक थे। मगर वही आलोक नॉन घोटाले के अभियुक्त बन गए...ईडी कोर्ट में पहुंच सरेंडर कर रहे तो ये समय का चक्र ही है।
फिलीपींस से मुख्य सचिव
छत्तीसगढ़ के अगले मुख्य सचिव विकास शील मनीला से दिल्ली लौट चुके हैं। वे छत्तीसगढ़ कब आएंगे, यह अभी क्लियर नहीं। मगर लोग इस बात से बेचैन हैं कि उनका मोबाइल स्वीच ऑफ आ रहा। फोन लगाने वालों में कुछ रीयल चाहने वाले हैं, तो कुछ बधाई देकर अपना नंबर बढ़वाने वाले। बहरहाल, बात मुख्य सचिव की तो अभी तक राज्यों में दिल्ली से मुख्य सचिव आते थे। मगर छत्तीसगढ़ का कद इस मामले में बढ़ गया है, यहां सीधे फिलीपींस से मुख्य सचिव आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के लिए ये खास तो है ही।
कलेक्टर और मुख्य सचिव
छत्तीसगढ़ में अभी तक 11 मुख्य सचिव हुए हैं, विकास शील 12वें होंगे। इन 12 में से चार मुख्य सचिव ऐसे हैं, जो रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। इनमें सुनिल कुमार पहले नंबर पर हैं। उनके बाद आरपी मंडल, अमिताभ जैन और अब विकास शील। मंडल के बाद रायपुरिया कलेक्टर के चीफ सिकरेट्री बनने का हैट्रिक बन जाएगा। और लगता है रायपुरिया कलेक्टर के चीफ सिकरेट्री बनने का सफर आगे भी जारी रहेगा। विकास शील 2029 में रिटायर होंगे तो उनकी कुर्सी के दो ही दावेदार होंगे। सुबोध कुमार सिंह और सोनमणि बोरा। दोनों रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। सुबोध 2027 में सीएस बनने के एलिजिबल हो जाएंगे तो सोनमणि जनवरी 2029 में। अगर सुबोध सिंह मुख्य सचिव बन गए तो भी सोनमणि दुखी नहीं होंगे क्योंकि उनके पास पर्याप्त टाईम रहेगा। सुबोध अगस्त 2033 में रिटायर होंगे। उसके बाद सोनमणि के पास सीएस रहने के लिए ढाई साल बचेगा। सोनमणि का रिटायरमेंट मार्च 2036 में हैं। हालांकि, 2002 बैच के आईएएस रोहित यादव बोरा के कंपीटिशिन में रहेंगे। रोहित 2032 में एसीएस हो जाएंगे। यदि सोनमणि की जगह रोहित का ग्रह-नक्षत्र काम कर गया तो वे भी रायपुर कलेक्टर रह चुके हैं। सोनमणि और रोहित का रिटायरमेंट ईयर 2036 है। जाहिर है, सुबोध के बाद यकीनन सोनमणि और रोहित में से कोई एक मुख्य सचिव बनेगा। और दिलचस्प यह है कि इन दोनों के बाद मुख्य सचिव के तगड़े दावेदार सिद्धार्थ कोमल परदेशी भी रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। हालांकि, 2003 बैच में सिद्धार्थ समेत चार आईएएस अधिकारी हैं। मगर इनमें से सिर्फ सिद्धार्थ रायपुर के कलेक्टर रहे हैं। कहने का आशय यह है रायपुर कलेक्टर के मुख्य सचिव बनने का क्रम आगे भी जारी रहेगा।
बजट 15 करोड़, पहुंचा डाला 50 करोड़
नवा रायपुर के सेक्टर-24 में ट्राईबल म्यूजियम बन रहा है। भारत सरकार के पइसे से बन रहे म्यूजियम के लिए 2018 में 15 करोड़ का टेंडर हुआ था। इसके बाद टेंडर का अमाउंट 25 करोड़ हुआ फिर 45 करोड़। साढ़े पांच करोड़ रुपए डिजिटल वर्क के लिए सेंक्शन हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी का ये ड्रीम प्रोजेक्ट है। 2014 में पहली बार पीएम बनने के बाद उन्होंने आदिवासी बहुल राज्यों में ट्राईबल म्यूजियम बनाने का ऐलान किया था। 45 करोड़ के टेंडर में 17 करोड़ की सिर्फ मूर्तियां लगाई जा रही हैं। बिलिंग के फेर में मूर्तियों का इस कदर जाल बिछा दिया गया कि मुआयना करने आए केंद्रीय प्रतिनिधियों को कहना पड़ा कि मूर्तियों का म्यूजियम मत बना दीजिए...ट्राईबल टच रखिए। ताकि, म्यूजियम ही रहे, लग्जरी होटल न दिखे। असल में, मूर्तियों का खेल लाजवाब होता है। 172 नगरीय निकायों में अटलजी की प्रतिमाओं का मामला अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ है। बाद में कोई बखेड़ा खड़ा हो, इससे बचने सिस्टम को इसकी सतत् मानिटरिंग करनी चाहिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या पीएम आवास योजना में छत्तीसगढ़ कोई बड़ा धमाका करने वाला है?
2. विकास शील के मुख्य सचिव बनने के बाद एसीएस ऋचा शर्मा और मनोज पिगुआ क्या सेंट्रल डेपुटेशन का अब रास्ता तलाशेंगे?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें