शनिवार, 13 दिसंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: पुलिस और कल्पनाएं

 तरकश, 14 दिसंबर

संजय के. दीक्षित

पुलिस और कल्पनाएं

पुलिस की कल्पना के बारे में जानकर छत्तीसगढ़ ही नहीं, दूसरे राज्यों के लोग भी हतप्रभ हैं। आईपीएस अधिकारियों के दीगर राज्यों में पोस्टेड बैचमेटों के दो दिन तक लगातार फोन घनघनाते रहे...भाई क्या हो रहा तुम्हारे राज्य में। हालांकि, छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए ये कोई नई बात नहीं है...पुलिस की अनेक कल्पनाएं हैं। पुलिस के कई लोगों ने इस स्तंभ के लेखक को फोन कर सरगुजा और दुर्ग पुलिस रेंज में तैनाती के दौरान दो कल्पनाओं के खेल के बारे में बताया, तो विश्वास नहीं हुआ...आखिर अपनी पुलिस इस किस्म के घोर कलयुग का शिकार कैसे हो सकती है? दोनों कल्पनाएं गजटेड रैंक की। एक अपने पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों को ही ट्रेप कर जेबें ढिली कर देती थीं। दूसरी, गिरोह चलाकर नामदार लोगों को शिकार बनाती थीं। ये बातें पहले की हैं, पता नहीं अब वे जहां पोस्टेड हैं, वहां क्या हो रहा होगा। बहरहाल, अंबिकापुर में एक राजपत्रित रैंक के साहब और थे। सेक्सटॉर्शन गिरोह के जरिये उन्होंने सरगुजा संभाग के कई संभ्रांत लोगों को निशाना बना अच्छा खासा पैसा बनाया। मगर तत्कालीन डीजीपी एएन उपध्याय उनके घृणित कारनामे से इतने खफा हुए कि जब तक कुर्सी पर रहे, प्रमोशन नहीं होने दिया। ये साब अभी जहां पोस्टेड हैं, आप सुनेंगे हैरान रह जाएंगे। मगर जाने दीजिए।

उछलती टोपी!

पता चला है, सेक्सटॉर्शन केस में पुलिस ने कोई कार्रवाई करने से मना कर दिया है। क्योंकि, रिपोर्ट दोनों तरफ से हुई है। हो सकता है, आम सहमति के केस को पुलिस तूल नहीं देना चाहती। मगर सोशल मीडिया में कई दिनों से पुलिस की टोपी उछल रही है। फिर सवाल यह है कि क्या इस तरह के मामलों को नजरअंदाज करने से उच्छृंखलताएं और नहीं बढ़ेंगी? और अगर पुलिस को लगता है कि सामने वाला गुनाहगार है तो उसके खिलाफ कार्रवाई से पुलिस सरेंडर क्यों कर रही? छोटे-छोटे मामलों में पुलिस आईटी एक्ट लगाकर घर से उठा लेती है और सोशल मीडिया में सरेआम टोपी उछलने पर आंख मूंद लेना...ये तो गृह और पुलिस विभाग में गजबे हो रहा है। जाहिर है, पुलिस में सभी कल्पना नहीं हैं, अच्छे और संभ्रांत घरों के अनेक अफसर कर्मठता और ईमानदारी से सेवा दे रहे हैं। मगर एक मछली, तालाब को गंदा कर देती है....इससे अच्छे लोग भी कटघरे में होंगे। इतने बड़े केस में पुलिस को कुछ तो मैसेज देना था, कम-से-कम एक जांच कमेटी ही बना देती, ताकि आगे से इस तरह की चीजां के पहले लोग दस बार सोचते। बता दें, छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग के डिरेल्ड होने की सबसे बड़ी वजह है कार्रवाई का अभाव। बड़ी-से-बड़ी घटनाओं में पुलिस मैसेज नहीं दे पा रही। पुलिस में अनुशासन बिगड़ने का बड़ा कारण सिस्टम भी है। इंस्पेक्टरों के ट्रांसफर करने का अधिकार डीजीपी को जरूर दिया गया है मगर कुछ सालों से हालत यह है कि अपने मन से वे एक दरोगा का ट्रांसफर नहीं कर सकते। एसपी और आईजी को हटाने की तो दूर की बात। एसपी की पोस्टिंग में डीजीपी का सम्मान सिर्फ एएन उपध्याय के कुर्सी पर रहने तक रहा। उपध्याय भले ही भोले-भंडारी थे मगर एसपी की पोस्टिंग उनकी जानकारी में होती थी। पुलिस का अगर औरा कायम करना है तो कड़े फैसले लेने होगे...पहले जैसे अधिकार देने होंगे। मंत्री, विधायक और नेता अपने हिसाब से थानेदारों की नियुक्ति कराते रहेंगे तो फिर छत्तीसगढ़ का अपराधगढ़ बनना तय है। मिलियन डॉलर का प्रश्न है...बरसों से बदनाम रही यूपी और बिहार की पोलिसिंग अब वंदे भारत ट्रेन की तरह पटरी पर दौड़ रही है और छत्तीसगढ़ पुलिस?

अफसरशाही की गति

सरकार के मंत्रियों ने दो साल में अपना कितना इकबाल बनाया, ये नहीं पता मगर अफसरशाही में जिस तरह कड़ाई शुरू हुई है, उससे लगता है कि सिस्टम की गाड़ी अब गति पकड़ लेगी। 9 दिसंबर को मुख्य सचिव विकास शील ने जिस अंदाज में सिकेट्री और डायरेक्टरों की मीटिंग ली, उससे अधिकारी तबका सकते में है। विधानसभा में जिस तरह मंत्री 10 में से नौ प्रश्न के जवाब में कहते हैं, दिखवा लेंगे और फिर उसे कभी देखा नहीं जाता, उसी तरह कई अधिकारियों ने जब कहा दिखवा लूंगा तो सीएस ने कहा, दिखवा नहीं कीजिए। कई सीनियर सिकेट्री मानते हैं कि इस अंदाज में किसी चीफ सिकरेट्री ने कभी मीटिंग नहीं ली। उन्होंने बजट खर्च करने को लेकर सचिवों से ही 31 दिसंबर तक का सेल्फ टारगेट घोषित करवा लिया। 31 में अब 17 दिन बच गया है। टारगेट के चक्कर में अफसर क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियों को भूल गए हैं। चीफ सिकेट्री की नियुक्ति के समय मंत्रालय के एक वरिष्ठ अफसर ने कहा था, अमित अग्रवाल अगर सीएस बने तो ऐसी स्थिति आएगी कि कई आईएएस पांचवे फ्लोर से कूद जाएंगे। इस समय मंत्रालय के पांचवे फ्लोर से कूदने जैसी स्थिति तो नहीं है, मगर अफसरों की रात की नींद जरूर उड़ी हुई है। क्योंकि, आजकल बंद कमरे में नहीं, ऑडिटोरियम में हंड्रेड के करीब अफसरों के बीच इज्जत का सवाल है।

जुगाड़ के आईएएस

छत्तीसगढ़ में अलायड सर्विस से रिक्त आईएएस के दो पदों के लिए 10 नामों का पेनल यूपीएससी को भेज दिया गया है। जल्द ही इसके लिए डीपीसी होगी। डीपीसी में यूपीएससी चेयरमैन, डीओपीटी के सिकरेट्री या उनके नॉमिनी, छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री, सीनियर एसीएस और जीएडी सिकरेट्री शामिल होंगे। अब सवाल उठता है, 10 में से आईएएस बनने का अवसर किन दो अफसरों को मिलेगा। तो इसका जवाब है छत्तीसगढ़ में एलायड कोटे से आईएएस बनाने में कभी भी योग्यता को मापदंड नहीं बनाया गया...सिर्फ आलोक अवस्थी को छोड़कर। मध्यप्रदेश में आरएस विश्वकर्मा और सुशील त्रिवेदी जैसे नियम-कायदों के जानकार अधिकारियों को आईएएस बनाया गया था, जिन्होंने राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ आकर अपना कौशल दिखाया भी। मगर उसके बाद? विष्णुदेव सरकार सुशासन पर काम कर रही है, ऐसे में लोगों में जिज्ञासा है कि इस बार आईएएस के दो पद किसी कोटे, सिफारिश और जोर-जुगाड़ से भरे जाएंगे या काबिलियत के आधार पर। जाहिर है, सरकार के गुड गवर्नेंस की मुहिम को देखते अच्छे कंडिडेट इस बार ज्यादा आशान्वित हैं।

एक मंत्री, एक सचिव

सीएम सचिवालय की कमान संभालने के बाद सुबोध सिंह ने कामकाज को स्मूथली संचालित करने के लिए एक मंत्री, एक सचिव का प्रयोग किए थे। इस समय 90 परसेंट से अधिक सचिवों के एक मंत्री हैं। यही प्रयोग अब मंत्रालय में पोस्टेड राज्य प्रशासनिक सेवा के डिप्टी सिकरेट्री में भी किया गया है। इस हफ्ते राप्रसे अधिकारियों की लंबी-चौडी लिस्ट निकली, उसमें अधिकांश को उनके अतिरिक्त विभाग से मुक्त किया गया। अभी तक एक-एक डिप्टी सिकरेट्री के पास दो-दो, तीन-तीन विभाग थे। एक विभाग की मीटिंग के लिए उप सचिव को बुलाओ तो पता चलता था दूसरे विभाग की मीटिंग में बैठे हुए हैं। इससे फाइलों के डिस्पोजल में भी विलंब हो रहा था। अफसरों के पास बहाने भी थे, क्या बताएं...हमारे पास कई विभाग हैं। अब अधिकांश डिप्टी सिकरेट्री को डबल प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। ये दिक्कतें सचिवों के साथ होती थीं। अलग-अलग विभाग होने से अलग-अलग मंत्री होते थे। विधानसभा सत्र के दौरान कई बार एक ही टाईम में मंत्री की ब्रीफिंग हो जाती थी। अब एक सचिव के पास एक मंत्री हैं। सुशासन की दिशा में इसे अहम कदम माना जा रहा है।

ब्लैक मनी और घर से विरोध

बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली के पत्र लिखने के आठ साल बाद राज्य सरकार ने जमीनों के गाइडलाइन रेट का युक्तियुक्तकरण कर ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने का प्रयास किया। मगर इसका विरोध इस स्तर पर हुआ कि सरकार हिल गई। सरकार ने कुछ रियायतें देते हुए कुछ कंडिकाओं को बदला। अब मसला यह नहीं कि विरोध इतना संगठित और बड़े स्तर पर कैसे हुआ...यह बताने की आवश्यकता भी नहीं कि जमीन-धंधे के कारोबार में कैसे-कैसे ताकतवर और रसूखदार लोग जुड़े हैं। फिर धंधे पर चोट पड़ेगी तो कैसे कोई बर्दाश्त करेगा। सो, हंगामा तो खड़ा होना ही था। अफसरों से ये जरूर चूक हुई कि वे जमीन दलालों और भूमाफियाओं की रसूख का अंदाजा नहीं लगा पाए। दूसरा, आश्चर्य इस बात का कि गाइडलाइन रेट बढ़ने का सबसे अधिक विरोध बीजेपी के भीतर से हुआ। इतने बड़े रिफार्म का पार्टी के लीगल सेल से जुड़े नरेश गुप्ता का बयान आया, बाकी किसी एक नेता और मंत्री इसके पक्ष में सामने नहीं आए। अलबत्ता, कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों ने हंगामा कर दिया...गाइडलाइन रेट नहीं बदला तो हम चुनाव हार जाएंगे। बता दें, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री को डीओ लेटर लिख बताया था कि देश में सबसे कम गाइडलाइन रेट छत्तीसगढ़ में ब्लैकमनी का इंवेस्टमेंट तेजी से बढ़ रहा है। इससे इंकम टैक्स का काफी नुकसान हो रहा है। दूसरा छत्तीसगढ़ मनी लॉडिं्रग का हब बनते जा रहा है।

था बुखार, दवा दे दी दस्त की

गाइडलाइन रेट में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली शीर्ष अफसरों की कमेटी ने कुछ ऐसा किया कि पूरे प्रदेश में रायता फैल गया। दरअसल, केंद्रीय भूतल परिवहन मिनिस्टर नितिन गडकरी इस बात से काफी नाराज थे कि छत्तीसगढ़ में जमीनों के वर्ग मीटर दर और हेक्टेयर दर में चार गुना से 20 गुना तक अंतर होने के कारण भू-अर्जन से पहले लोग जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े कर लेते हैं, ताकि मुआवजा बढ़ सके। इससे केंद्रीय परियोजनाओं की लागत काफी बढ़ जा रही थी। मसलन, अरपा भैंसाझार परियोजना एक उदाहरण है, जिसकी लागत 300 करोड़ थी जो भू अर्जन मुआवजे के कारण बढ़कर 860 करोड रुपए हो गई थी। नीतीन गडकरी की नाराजगी को देखते सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में शीर्ष सचिवों की एक कमेटी बनाई। कमेटी ने बिना सोचे-समझे रिपोर्ट दे दी और कैबिनेट ने उसे लागू कर गांव से वर्ग मीटर दर को समाप्त करने का फैसला ले लिया। 29 जुलाई 2025 को राज्य कैबिनेट द्वारा गांव से वर्ग मीटर दर समाप्त करने के निर्णय लिए जाने के फलस्वरुप ग्रामीण इलाकों में 500 वर्ग मीटर तक के जमीन का मूल्यांकन कई कई गुना कम हो गया। शहर से लगे अर्बन क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव हुआ, जहां 1500 वर्ग मीटर तक जमीन का मूल्यांकन नगर निगम क्षेत्र की तरह होता था, वहां 1500 वर्ग मीटर तक जमीन का मूल्यांकन कई गुना कम हेक्टेयर दर पर होने लगा। जाहिर है, इससे लोगों का नुकसान तो होना ही था। कायदे से सिस्टम को वर्ग मीटर रेट समाप्त करने की बजाए राजस्व विभाग को टाईट कर जमीन को टुकड़े करने पर रोक लगाना था। अभनपुर के चर्चित भारतमाला समेत कई जगहों पर ऐसा ही हुआ, खरीदी-बिक्री पर रोक का ऐलान होने के बाद भी भूमाफियाओं ने जमीनों को टुकड़े कर आठ गुना मुआवजा प्राप्त कर लिया। बहरहाल, सीएस की अध्यक्षता वाली कमेटी ने बुखार में दस्त की दवा दी...इससे केस बिगड़ना ही था।

एक व्यक्ति, 7 सलेक्शन, किसकी चूक?

सात साल बाद पुलिस महकमे में सिपाहियों की भर्ती हुई। मगर वह भी मुकम्मल नहीं हो पाई। करीब छह हजार पदों पर भर्ती में यह प्रयास नहीं किया गया कि एक आदमी अनेक जिलों में अप्लाई नहीं कर सके। इसका खामियाजा यह हुआ कि एक-एक का कई जिलों में सलेक्शन हो गया। रायपुर के एक युवक का सात जिलों में चयन हुआ है। यही वजह है कि जिलों में अभी तक 50 परसेंट के आसपास ही आरक्षकों ने आमद दी है। 6000 में से मुश्किल से चार हजार के आसपास ही कांस्टेबल मिलेंगे। बड़ी संख्या में आवेदकों ने सेफ रहने के लिए कई जिलों में आवेदन कर दिया। कायदे से व्यापम से बात कर ऐसा इंतजाम करना था कि जो जिस जिले का है, उसी जिले में आवेदन करें। पुलिस मुख्यालय के सीनियर अफसर व्यापम के सीनियर अफसरों से तार्किक ढंग से बात कर लेते तो वे भी इससे सहमत हो जाते। जाहिर है, वेटिंग क्लीयर करने के बाद भी अब स्वीकृत पद नहीं भर सकेंगे और फिर से भर्ती निकालनी होगी। बे-रोजगार युवाओं में इसको लेकर बड़ा असंतोष है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. दो बरस का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी अधिकांश मंत्री कामकाज के मामले में अपनी छाप छोड़ने में नाकाम क्यों रहे?

2. छत्तीसगढ़ की पूरी अफसरशाही इन दिनों बेहद परेशान चल रही है, इसकी वजह क्या होगी?

Chhattisgarh Tarkash 2025: रोवर युग में कड़ी और चांदा

 

तरकश | 7 दिसंबर | संजय के. दीक्षित

रोवर युग में कड़ी और चांदा

आंध्रप्रदेश जैसे कई राज्यों में जमीनों के सीमांकन के लिए रोवर सिस्टम चालू हो गया है। मगर छत्तीसगढ़ में जमीनों के नापजोख के लिए सिस्टम अभी भी वही कड़ी और चांदा के भरोसे है। वैसे बार-बार जमीनों के सीमांकन की जरूरत पड़नी भी नहीं चाहिए। मगर दिक्कत यह है कि कोई सुधार के लफड़े में पड़ना नहीं चाहता। ब्यूरोक्रेसी लकीर की फकीर बनी रहना चाहती है। हालांकि, ब्यूरोक्रेसी के कई यंग अफसर मानते हैं कि बार-बार सीमांकन की कोई जरूरत नहीं। सीमांकन की कोई वैद्यता भी नहीं है। उपर से एक पार्टी सीमांकन कराता है, सामने वाला उसे मानने से इंकार कर देता है। उसके बाद सीमांकन पर सीमांकन चलता रहता है। राजस्व विभाग को कायदे से एक बार सीमाकंन कराकर छोड़ देना चाहिए। जिसे अपील करना हो, कोर्ट में करे। जाहिर है, सीमांकन के फेर में तहसीलों में जेब काटने का काम किया जाता है। आम आदमी को अनावश्यक तहसीलों का चक्कर लगाना पड़ता हैं।

एमपी जैसा सिस्टम क्यों नहीं?

जमीनों के नामंतरण में हालांकि, छत्तीसगढ़ अब अपने बड़े भाई मध्यप्रदेश से आगे निकल गया है। अपने यहां अब जमीनों की रजिस्ट्री होते ही आटोमेटिक नामंकन हो जा रहा। मगर बाकी राजस्व मामलों में अभी काफी पीछे है। जमीन या संपत्ति के मामलों को लेकर अभी भी सूबे के तहसीलों में लोग महीनों, सालों भटकते रहते हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने रेवेन्यू में बड़ा रिफार्म करते हुए तहसीलों में न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को अलग कर दिया है। वहां सिविल केसेज के लिए अलग तहसीलदार हैं और प्रशासनिक के लिए अलग। इससे प्रकरणों का निबटारा बेहद फास्ट हो गया है। इससे पहले तहसील ऑफिसों का चक्कर लगाते आम आदमी के चप्पल घिस जाते थे। तहसीलदार कभी दौरे में होते थे, तो कभी प्रशासनिक काम के सिलसिले में फील्ड या कलेक्ट्रेट में। एमपी गवर्नमेंट ने इस दिक्कत को समझते हुए दोनों व्यवस्थाओं को अलग कर दिया। छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो एमपी से एक कदम आगे बढ़ते हुए तहसीलदारों के साथ एसडीएम में भी न्यायिक और एडमिनिस्ट्रेशन को अलग किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों की वैसे भी कमी नहीं है। चीफ सिकरेट्री विकास शील को इस बड़े रिफार्म पर फोकस करना चाहिए। इससे लोगों को काफी राहत मिलेगी। वैसे भी मुख्य सचिव डिजिटलाइजेशन पर जोर दे रहे हैं। तहसीलों का करप्शन कम करने के लिए सुनवाई को भी ऑनलाइन किया जा सकता है। जब हाई कोर्ट में ऑनलाइन सुनवाई हो सकती तो फिर तहसीलों में क्यों नहीं। इससे आम आदमी को तहसीलों के झंझटों से छुटकारा मिलेगा ही, जेब कटने से भी बचेगा।

पति-पत्नी और दो घर

रायपुर एयरपोर्ट के पास नकटी में विधायकों को और सेरीखेड़ी में नौकरशाहों को भले ही कुछ समय के लिए सरकारी जमीन आबंटन का मामला स्थगित कर दिया गया है, मगर जैसे ही सूबे की न्यायिक स्थिति अनुकूल होगी, फिर से आबंटन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसमें विधायकों, सांसदों और नौकरशाहों के लिए गुड न्यूज यह है कि अब पति-पत्नी दोनों को सरकारी जमीन का सुख मिलेगा। पिछली सरकार ने पति-पत्नी के केस में एक को जमीन का नियम बदलकर दोनों को सरकारी जमीन के लिए पात्र कर दिया था। याने पति-पत्नी विधायक हैं या आईएएस-आईपीएस, आईएफएस तो उन्हें अलग-अलग प्लॉट मिलेगा। एक पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी को इसी नियम के तहत प्लॉट दिया गया। अब, इसे आप ये मत समझिएगा कि पिछली सरकार पति-पत्नी को अलग प्लॉट देकर उनके घर को बांटना चाहती थी। ऐसा भी हो सकता है कि जितने बड़े नेता या आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, उतने अधिक स्ट्रेस, तनाव और लफड़े होते हैं। उनसे सहानुभूति रखते हुए पिछली सरकार ने फैसला किया कि सभी को फ्रीडम चाहिए, सबको अपने अंदाज में लाइफ जीने के लिए छूट देना चाहिए। वैसे भी सेपेरेट घर के अभाव में कई अफसर और नेता वीकेंड में मुंबई, गोवा चले जाते हैं...अलग घर रहने पर वे अपने हिसाब से रह सकेंगे। सो, आइडिया अच्छा है।

पोस्टिंग ठंडे बस्ते में

बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन को इस्तीफा दिए लगभग दो महीने हो गए मगर अभी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। इस पोस्ट के लिए बकायदा विज्ञापन जारी करने का प्रावधान है। आवेदन जमा करने के महीने भर बाद भर्ती प्रॉसेज प्रारंभ होगा। मगर अभी इस बारे में उर्जा विभाग में कोई सुगबुगाहट नहीं है। नियामक आयोग के गठन के बाद दो बार इंजीनियरिंग साइट से चेयरमैन रहे हैं और तीन बार रिटायर आईएएस। इस बार प्रतीत होता है कि इंजीनियरिंग साइट से कोई चेयरमैन बनें। क्योंकि, रिटायर आईएएस में अभी अमिताभ जैन के अलावा कोई है नहीं। और अमिताभ को मुख्य सूचना आयुक्त बनेंगे।

गुड न्यूज

मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के दावेदारों के लिए गुड न्यूज है। हाई कोर्ट से केस क्लियर होने के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने सलेक्शन कमेटी की बैठक बुलाने के संदर्भ में लेटर भेज दिया है। मुख्यमंत्री सचिवालय जल्द ही चयन कमेटी की बैठक आहूत करेगा। कमेटी में मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल मेंबर हैं। मुख्यमंत्री की व्यस्तता की वजह से बैठक हो नहीं पा रही। मगर विधानसभा सत्र से पहले किसी भी दिन मुख्य सूचना आयुक्त और दो सूचना आयुक्तों की नियुक्ति का आदेश निकल सकता है।

मंत्रालय में मजमा

छत्तीसगढ़ के मंत्रालय महानदी भवन में एक दिसंबर को सुबह पौने दस बजे से दस बजे के बीच 15 मिनट ऐसा नजारा रहा, वैसा 25 साल में कभी नहीं हुआ। पोर्च से गेट तक करीब 300 मीटर का फासला है। आलम यह था कि अफसरों की गाड़ियों की कतार गेट से बाहर सड़क तक पहुंच गई। उससे पहले पोर्च में गाड़ियों की कभी लाइन नहीं लगी। दफ्तर के टाईम में पांच-सात मिनट के अंतराल में एकाध गाड़ी आ गई तो बड़ी बात। मगर एक दिसंबर को मजमा जैसी स्थिति थी। दरअसल, एक दिसंबर से मंत्रालय में सचिवों के लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस शुरू हुआ। हालांकि, मोबाइल में भी उसका एक्सेज दिया गया है। मगर पहले दिन कई सारे अधिकारियों ने ऐप्प डाउनलोड किया नहीं था। और, 10 बजे के पहले मंत्रालय पहुंचना भी था। इसलिए, एक साथ गाड़ियां का रेला मंत्रालय पहुंच गया। हालांकि, दिल्ली में भारत सरकार के ऑफिसों में ऐसा ही होता है। वहां 10 मिनट के अंतराल में सारे अधिकारी ऑफिस पहुंच जाते हैं, सो गाड़ियों की लाइन लग जाती है। बहरहाल, रायपुर मंत्रालय में सीएस खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं। उनके कंप्यूटर में 11 बजे पूरा अटेंडेंस डाउनलोड हो जाता है। 10 बजे तक मंत्रालय गुलजार हो जाने का यह भी एक बड़ा कारण है।

टूरिस्ट एंड ट्रेकिंग डेस्टिनेशन

दंतेवाड़ा के ढोलकल पहाड़ पर विराजित गणेशजी लोगों के आस्था के केंद्र तो हैं ही, ढोलकल पहाड़ अब टूरिज्म और ट्रेकिंग डेस्टिनेशन बनने जा रहा। दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने ट्रेकिंग के लिए रास्ता बना दिया है। वीकेंड में 500 से अधिक लोग ढोलकल पहुंच रहे हैं। पहाड़ी के नीचे आंध्र की एक कंपनी पीपीपी मोड में करीब साढ़े तीन एकड़ में रिसॉर्ट बना रही है। जाहिर है, चित्रकोट के बाद ढोलकल बस्तर का दूसरे नम्बर का टूरिस्ट सेंटर बन जाएगा। हालांकि, अध्यात्म के मामले में ढोलकल प्लस ही होगा।

मोदी और रमन की फ़ोटो

छत्तीसगढ़ में पीएम नरेंद्र मोदी और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की एक फोटो की बड़ी चर्चा है। डीजीपी कांफ्रेंस के दौरान रमन अपने परिवार संग मोदी से मिलने पहुंचे थे। उसकी फोटो जारी हुई, उसमें एक छोटे से सोफे में मोदी और रमन एक साथ बैठे हैं। फ़ोटो चर्चा का विषय इसलिए भी बन गई कि मोदी के 11 साल पीएम रहने के दौरान ऐसी फ़ोटो देश में किसी देखी नहीं। प्रधानमंत्री कार्यालय फ़ोटो को लेकर काफी संजीदा रहता है। इस समय बिना PMO की इजाजत कोई फ़ोटो जारी नहीं होती। इससे इस बात पर मुहर लगी कि डॉ रमन को पीएम मोदी खास वेटेज देते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. किस मंत्री ने पैसों के हिसाब के लिए एक अकाउंटेंट रख लिया है?

2. गाइड लाइन रेट बढ़ने से आम आदमी को नुकसान होगा या भूमाफियाओं और जमीन दलालों का?

शनिवार, 29 नवंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्रमोटी आईएएस और भरोसा

 तरकश, 30 नवंबर 2025

संजय के. दीक्षित

प्रमोटी आईएएस और भरोसा

27 नवंबर की आईएएस की लिस्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने यह जतलाने का प्रयास किया है कि उसके पास विकल्प की कोई कमी नहीं है। जाहिर है, दो दिन पहले जिन 13 आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर किए गए, उनमें सात प्रमोटी आईएएस हैं। उसमें भी ऐन धान खरीदी के सीजन में जीतेंद्र शुक्ला को मार्कफेड एमडी का चुनौतीपूर्ण दायित्व सौंपा गया। उनके पास जलजीवन मिशन भी रहेगा। इसके अलावा पीएस एल्मा को शराब खरीदी करने वाली स्टेट मार्केटिंग कंपनी के साथ ब्रेवरेज कारपोरेशन का एमडी का बनाया गया है। इफ़्फ़त आरा स्पेशल सिकरेट्री रेवेन्यू के साथ नागरिक आपूर्ति निगम की एमडी होंगी। संतनदेवी जांगड़े संचालक आयुष, रेणुका श्रीवास्तव को डायरेक्टर महिला बाल विकास, रीता यादव प्रबंध संचालक खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड तथा लोकेश कुमार को डायरेक्टर हार्टिकल्चर की जिम्मेदारी दी गई है। कह सकते हैं, इस लिस्ट में प्रमोटी अफसरों का दबदबा रहा।


नारी शक्ति कमजोर?

छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक हलको में एक समय नारी शक्ति बहुत मजबूत हो गई थी। मगर वक्त के पहिये के साथ पराभाव होता चला गया। जूनियर अफसर के चीफ सिकरेट्री बनने की वजह से रेणु पिल्ले मंत्रालय से बाहर हो गईं। ऋचा शर्मा को चीफ सिकरेट्री बनने का मौका नहीं मिला, उपर से खाद्य विभाग भी हाथ से निकल गया। उधर, 27 नवंबर को 13 आईएएस अधिकारियों की लिस्ट निकली, उसमें भी माताजी लोगों को बड़ा झटका लगा...कोई इधर गिरा, कोई...। आर शंगीता का शराब से जुड़ी कंपनी और बोर्ड के एमडी का प्रभार भी पीएस एल्मा के पास चला गया। कुल मिलाकर लग रहा...ब्यूरोक्रेसी की नारी शक्ति जरा कमजोर हुई हैं।

बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई

जमीनों के गाइडलाइन रेट में वृद्धि को लेकर छत्तीसगढ़ में तूफान मचा है, उसमें बीजेपी और कांग्रेस नेताओं का भाईचारा भी परिलक्षित हो रहा है। बात ऐसी है कि जोर का झटका दोनों को लगा है। गाइडलाइन रेट बढ़ने से भूमाफियाओं और बिल्डरों को नुकसान होगा तो नेताओं का भी जमीन में इंवेस्टमेंट का धंधा मार खाएगा। ब्यूरोक्रेट्स की अपनी अलग बेचैनी है...काली कमाई को अब कहां खपाएंगे? यही वजह है कि चौतरफा प्रेशर बनाए जा रहे। सेल्फ गोल का खेल भी चल रहा। बीजेपी नेताओं के घेराव में किसका हाथ है, इंटेलिजेंस वालों से ये छिपा नहीं है। भ्रम ऐसा फैला दिया गया है कि गाइडलाइन रेट बढ़ने से सूबे का रियल इस्टेट बैठ जाएगा। जबकि, सच्चाई यह है कि जब हर साल 10 परसेंट बढ़ता था, तब रियल इस्टेट ज्यादा ग्रो किया। बता दें, गाइडलाइन रेट बढ़ने से आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आखिर 2017 तक हर साल 10 परसेंट रेट बढ़ता ही था। बाकी राज्यों में भी ऐसा ही होता है। 2018 के बाद रेट बढ़ना बंद हो गया। इसमें जमीनों का धंधा खूब फला-फूला। अब आप इससे समझ सकते हैं कि कचना, विधानसभा रोड पर बिल्डरों का रेट है छह हजार से सात हजार रुपए फुट और सरकारी दर था हजार-बारह सौ। इसका सिर्फ युक्तियुक्तकरण किया गया है। आम आदमी को इसलिए भी इससे फर्क नहीं पड़ने वाला कि बाजार दर से पेमेंट पहले भी करना पड़ता था और अभी भी वैसा ही होगा। जिनके पास दो नंबर का पैसा था उन्हें उस व्यवस्था में काफी लाभ था। मगर मीडिल और लोवर क्लास के पास काली कमाई होती नहीं, सो गाइडलाइन रेट बढ़ने से खरीदी जाने वाली जमीन या मकान का रेट बढ़ेगा, तो उस हिसाब से उन्हें बैंकों से लोन मिल जाएगा। बहरहाल, बात बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई से तो यह बात छिपी नहीं कि छत्तीसगढ़ में इन दोनों पार्टियों के नेताओं का छत्तीसगढ़ की माटी से कितना प्रेम है। बल्कि, अब यह प्रेम भूख में बदल गया है।

गोल्ड में इंवेस्ट

छत्तीसगढ़ में अभी तक काली कमाई खपाने के दो ही प्रमुख माध्यम थे। जमीन और सोना। सोना चूकि एक लिमिट से अधिक नहीं खरीदा जा सकता। उसे सुरक्षित रखने का लफड़ा होता है, इसलिए इंवेस्टरों को जमीन में निवेश आकर्षित करता था। सरकारी रेट कौड़ियों के मोल होने से जमीन में 60 से 70 परसेंट रकम कैश में देना होता है और 30 से 40 परसेंट एक नंबर में। इससे इंकम टैक्स की भी काफी बचत होती थी। एक करोड़ रुपए की कोई जमीन खरीदी गई तो कागज में वो 30 से 40 लाख शो होता था। याने 60 से 70 लाख रुपए ब्लैक से व्हाइट हो गया। मगर गाइडलाइन रेट बढ़ने से अब जमीनों में काली कमाई का इंवेस्टमेंट नहीं होगा। जमीनों का सरकारी रेट बढ़ने के बाद छत्तीसगढ़ में मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगेगा मगर गोल्ड में निवेश बढ़ेगा। इससे सराफा व्यापारियों के चेहरे खिल गए हैं।

ब्यूरोक्रेसी को फ्री हैंड

पिछले दो महीनों में गुजरात, तेलांगना, बिहार और यूपी जाने का मौका लगा। वहां तेज गति से चल रहे डेवलपमेंट वर्क देखकर हैरानी हुई। खासकर यूपी, बिहार...जहां विकास की बातें बेमानी थी, अपराधों के नाम से इन दोनों प्रदेशों को जाना जाता था, ऐसे राज्य अब विकास के कार्यों में होड़ कर रहे हैं। इसका लाभ भी वहां के नेतृत्व को मिल रहा। इस सवाल पर कि 20 साल के शासन के बाद नीतीश कुमार लोकप्रिय क्यों? इसका जवाब आश्चर्यजनक आया। लोगों ने कहा...नीतीश कुमार ने नेताओं के लिए लक्ष्मण रेखा खींच दिया है। प्रशासन और पुलिस में नेताओं का हस्तक्षेप नहीं के बराबर रह गया है। जिस बिहार में कलेक्टर्स, एसपी के साथ बदसलूकी आम बात थी, वहां की अफसरशाही अब फ्री होकर डेवलपमेंट को अंजाम दे रही है।

छत्तीसगढ़ और अफसरशाही

अब बात छत्तीसगढ़ की करें, तो राज्य बनने के बाद सबसे खराब दौर में यहां की ब्यूरोक्रेसी गुजर रही है। बीजेपी के कई नेताओं को भी ये बात अच्छी नहीं लगेगी कि रमन सिंह सरकार अगर 15 साल चली तो उसके पीछे ब्यूरोक्रेसी और उसकी कर्मठ टीम की बड़ी भूमिका रही। कांग्रेस की सरकार पांच साल में विदा हो गई तो इसके पीछे एक बड़ा कारण सशक्त टीम का अभाव रहा। मध्यप्रदेश के समय डीपी मिश्रा, पीसी सेठी, अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह के दौर मे ंहमेशा इस हाईट के अफसर उनके पास रहे, जो गलत तो गलत कहने की हिम्मत रखते थे। इससे उन नेताओं को बड़ा फायदा मिला। बहरहाल बात छत्तीसगढ़ की तो...पहली बात, नए राज्य में पैसों के आए फ्लो ने अफसरशाही का बड़ा नुकसान किया। छत्तीसगढ़ अच्छा काम करने वाला कैडर नहीं रहा बल्कि देश की ब्यूरोक्रेसी में मलाईदार कैडर में केटेराइज्ड हो गया। कई आईएएस, आईपीएस ने इतना पैसा बना लिया कि बिल्डरों और कारोबारियों के साथ मिलकर व्यापार शुरू कर दिया। दूसरा कारण है राजनीतिक हस्तक्षेप। रिजल्ट देने वाले अच्छे अफसर भी आगे बढ़़कर काम करना नहीं चाहते। नौकरशाही की स्थिति इस समय ये हो गई है कि कोई भी बुरा भला बोल के चल दे रहा। यूपी में अपराधी द्वारा सोशल मीडिया में जिले के एसपी को गाली देने पर एनकाउंटर करके अरेस्ट कर लिया गया। मगर छत्तीसगढ़ के एक बड़े जिले के पुलिस कप्तान को फेसबुक पर एक छंटे बदमाश द्वारा क्या-क्या लांछन नहीं लगाया गया, मगर पुलिस दोनों हाथ बांधे बैठी रही। और जब एसपी साहब लोगों का ये स्थिति है तो एएसपी, डीएसपी और टीआई बेचारे क्या करेंगे? जाहिर है, इन सब चीजों से राज्य का बड़ा नुकसान हो रहा।

रिफार्म की ऐसी चोट

छत्तीसगढ़ में ये गजबे हो रहा है। रिफार्म हो रहा किसी और विभाग में और उसका इफेक्ट दिख रहा दूसरे विभाग में। हम बात कर रहे पंजीयन और राजस्व महकमे की। पंजीयन विभाग ने सबसे पहले रजिस्ट्री के साथ ऑटोमेटिक नामंतरण प्रारंभ किया। फिर पंजीयन में ऋण पुस्तिका की अनिवार्यता खतम की और अब रजिस्ट्री के 70 बिंदु वाले नियमों का सरलीकरण कर 15 कर दिया। पंजीयन विभाग में किए गए इन ऐतिहासिक सुधारों ने राजस्व विभाग के मुलाजिमों का बड़ा नुकसान कर डाला। तहसीलदारों से लेकर पटवारियों का इन्हीं तीनों कामों के लिए लोगों को चक्कर लगाना पड़ता था। मगर सरकार ने सुधार करके बड़ा गड़बड़ कर डाला। इस विभाग के लोगों की 70 परसेंट आमदनी इन्हीं तीनों चीजों से होती थी। रोड की जमीन को पटवारी कागजों में भीतर बता देते थे तो ऋण पुस्तिका बनवा लेना आसान काम नहीं था। मगर अब आलम यह हो गया कि छत्तीसगढ़ में नायब तहसीलदार और पटवारी की नौकरी का जादुई आकर्षण खतम हो जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. फर्जी ईडी अफसर ने छत्तीसगढ़ के किन-किन आईएएस अधिकारियों से लाखों रुपए वसूल डाला?

2. क्या ये सही है कि डीजीपी कांफ्रेंस की कल समाप्ति के बाद कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकलेगी?

शनिवार, 15 नवंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: नारी शक्ति और कलेक्टरों की परीक्षा

 तरकश, 16 नवंबर

संजय के. दीक्षित

नारी शक्ति और कलेक्टरों की परीक्षा

छत्तीसगढ़ सरकार ने खजाने का करीब 10 हजार करोड़ रुपए बिचैलिये और भ्रष्ट तंत्र की जेब में जाने के खिलाफ कमर कस लिया है। इसके लिए फूड सिकरेट्री रीना बाबा कंगाले और मार्कफेड एमडी किरण कौशल की जोड़ी इस बार मुस्तैद हैं। कलेक्टरों को भी बार-बार फरमान जा रहा है। चीफ सिकरेट्री विकास शील खुद सिकरेट्री फूड रह चुके हैं, वे लगातार माॅनटरिंग कर रहे। जाहिर है, धान खरीदी अगर अबकी 120 लाख मीट्रिक टन पर रुक गया तो भ्रष्टाचार पर बड़ी चोट होगी ही, आर्थिक मोर्चे पर इस सरकार की सबसे बड़ी कामयाबी होगी। क्योंकि, सरकारी खजाने की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। आज की तारीख में मार्कफेड पर 38 हजार करोड़ का लोन है और पिछले सीजन में ओवर परचेजिंग से 8 हजार करोड़ की चपत लग चुकी है। दरअसल, दिक्कत किसान और धान से नहीं, दिक्कत धान की रिसाइकिलिंग और राईस माफियाओं के खेल से है। छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का ग्राफ इस तेजी से बढ़ रहा कि अच्छे-अच्छे कृषि वैज्ञानिक हैरान हैं। 2002-03 में मात्र 18 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई थी। 20 साल में यह नौ गुना बढ़ गई। जबकि, खेती का रकबा तेजी से कम हो रहा है। ये कहना भी कुतर्क होगा कि रेट बढ़ने से धान ज्यादा बोए जा रहे हैं। आखिर पहले भी सिर्फ धान बोए जाते थे...और कोई फसल लगाए नहीं जाते थे कि उसे बंद कर अब धान बोया जा रहा। जाहिर है, 2024-25 में सारे रिकार्ड तोड़ते हुए धान खरीदी 149 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गई। जबकि, जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वास्तविक धान 100 से 110 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। याने बिचैलियों और अधिकारियों की मिलीभगत से की जाने वाली रिसाइकिलिंग, पटवारियों की कृपा से कागजों में पैदावार लेना और दूसरे प्रदेशों से आने वाले अवैध धानों को रोक दिया जाए तो सीधे-सीधे 30 से 35 लाख मीट्रिक टन की फर्जी खरीदी रुक जाएगी। यह करीब 10 हजार करोड़ रुपए का होता है, जिसे राईस माफिया, राईस मिलर्स, अफसर और पाॅलिटिशियन हजम कर जाते हैं। निश्चित तौर पर फर्जी धान खरीदी रोकने में दोनों महिला अधिकारियों के साथ कलेक्टरों की परीक्षा होगी। जो कलेक्टर जितना ज्यादा सक्रिय होकर कार्रवाई करेगा, उस जिले में कम फर्जी खरीदी होगी।

नितिन डिप्टी सीएम!

छत्तीसगढ़ के प्रभारी नितिन नबीन बिहार के बांकीपुर सीट से रिकार्ड मतों से चुनाव जीत गए हैं। 50 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीतने वाले आठ नेताओं के क्लब में उनका भी नाम है। पटना जिले के इस सीट से वे लगातार पांचवी बार चुने गए हैं। उससे पहले उनके पिता नवीन किशोर सिनहा 1995 से विधायक थे। उनके निधन के बाद उपचुनाव में पार्टी ने 2006 में नितिन को टिकिट दिया और उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2020 के चुनाव में उन्होंने फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिनहा के बेटे को बड़े मतों के अंतर से पराजित किया था। बहरहाल, नितिन की लोकप्रियता बिहार में तो है ही, अपने राजनीतिक कौशल से शीर्ष नेतृत्व का ध्यान भी खींचा है। छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान लोगों ने उनका काम देखा। सूबे का शायद ही कोई ब्लाॅक होगा, जहां वे नहीं गए। चुनाव का कंप्लीट मैदानी कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली थी, और पूरा छत्तीसगढ़ छान मारा। इसका उन्हें ईनाम भी मिला। ओम माथुर की जगह उन्हें प्रमोट कर सह प्रभारी से प्रभारी बनाया गया। पिछले साल नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई तो उसमें उन्हें कैबिनेट मंत्री का दायित्व मिला। और अब...बिहार में एनडीए की सुनामी के बाद उन्हें डिप्टी सीएम बनाने की अटकलें तेज हो गई है। फार्मूला यह है कि नीतीश मुख्यमंत्री बनेंगे तो जनरल और एससी से दो उप मुख्यमंत्री बन सकते हैं। सामान्य वर्ग में नितिन नबीन से बेहतर कोई नाम नहीं हो सकता, वहीं अनुसूचित जाति से लोक जनशक्ति पार्टी से कोई एक डिप्टी सीएम बनेगा। नितिन नबीन अगर बिहार के उप मुख्यमंत्री बने तो फिर उनके पास छत्तीसगढ़ के लिए टाईम नहीं बचेगा। ऐसे में, हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में किसी और नेता को प्रभारी नियुक्त किया जाए।

बांकीपुर में छत्तीसगढ़

चूकि नितिन नबीन छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं, सो स्वाभाविक तौर पर उनके प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में नेताओं, मंत्रियों, विधायकों की फौज बांकीपुर पहुंची थी। बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला 10 दिन तक लगातार वहां कैंप किए तो पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट किरण सिंहदेव, डिप्टी सीएमद्वय अरुण साव, विजय शर्मा, वित्त मंत्री ओपी चैधरी, विधायक गोमती साय, मोतीलाल साहू, राम गर्ग, राजीव अग्रवाल, राजा पाण्डेय, नीलू शर्मा समेत दो दर्जन से अधिक नेताओं ने वहां प्रचार किया। खासकर, कलेक्टर-टू-मंत्री के नाम से ओपी ने वहां खूब शमां बांधा।

पवन साय को अहम जिम्मेदारी

छत्तीसगढ़ बीजेपी के प्रदेश संगठन मंत्री पवन साय को पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि, यह टेम्पोरेरी दायित्व है मगर सुनने में आ रहा...पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए उन्हें वहां की पूर्णकालिक जिम्मेदारी दी जा सकती है। पवन साय संघ के काफी कर्मठ चेहरा रहे हैं। इसीलिए उन्हें छत्तीसगढ़ बीजेपी का संगठन मंत्री बनाया गया था। उन्होंने अपना काम भी दिखाया। उधर, वेस्ट बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में काफी पसीना बहाने के बाद बीजेपी सत्ता तक नहीं पहुंच पाई। किन्तु इस बार बीजेपी और संघ की कोर टीम दो साल पहले से काम प्रारंभ कर दिया है। आरएसएस के टाॅप फाइव में शामिल रामदत्त चक्रधर के पास इस समय पश्चिम बंगाल का प्रभार है। रामदत्त भी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। और अगर पवन साय गए तो वे छत्तीसगढ़ के दूसरे शख्सियत होंगे, जिन्हें पश्चिम बंगाल में अहम जिम्मेदारी मिलेगी।

ब्यूरोक्रेसी और वक्त

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में एक वक्त वो भी था, जब मुख्यमंत्री ने एक जनवरी 2025 को मंत्रालय में मीटिंग लेकर अफसरों की टाईमिंग ठीक न होने को लेकर स्पष्ट रूप से इशारा किया था। उसके बाद कुछ हद तक मंत्रालय आने-जाने का टाईम सुधरा। लेकिन बायोमेट्रिक अटेंडेंस के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। अलबत्ता, सवाल उठाया गया...आईएएस लाईन लगाकर थंब इंप्रेशन कैसे लगाएगा। तत्पश्चात जीएडी ने मोबाइल में ऐप्प अपलोड करने का विकल्प दिया, उसमें मंत्रालय के भीतर आते ही अपने आप अटेंडेंस लग जाता। मगर इसके लिए भी कोई टस-से-मस नहीं हुआ। मगर अब एक दिसंबर से सचिवालय का एक नंबर गेट, जहां से अफसर प्रवेश करते हैं, वहां के लिए बायोमेट्रिक मंगा लिया गया है। दो-चार दिन में उसका ट्राॅयल प्रारंभ हो जाएगा। दरअसल, चीफ सिकरेट्री विकास शील ने ज्वाईन करते ही साफ कह दिया था कि दिल्ली की तरह मंत्रालय में भी बायोमेट्रिक लगाया जाए। दिल्ली में मुख्य सचिव के समकक्ष भारत सरकार के सचिव से लेकर सेक्शन आॅफिसर और बाबू तक थंब लगाते हैं, फिर भीतर जाते हैं। खैर, छत्तीसगढ़ के नौकरशाहों ने वक्त को भांप लिया है। वैसे भी ब्यूरोक्रेट वक्त को भांपने और उसके हिसाब से आस्था और निष्ठा बदलने में माहिर होते हैं।

अफसरशाही को संरक्षण

जाहिर सी बात है, सरकार पाॅलिसी और प्लान बनाती है और उसका क्रियान्वयन अफसरशाही करती है। यह भी सत्य है कि अफसरशाही तभी अपना सर्वस्व दांव पर लगाती है, जब उसे सत्ता प्रतिष्ठान से संरक्षण मिले। मध्यप्रदेश के दौर में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह के दौर में ये देखा गया और छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजीत जोगी तथा रमन सिंह के समय भी ऐसा हुआ। अफसरशाही में ऐसा नहीं कि सभी भ्रष्ट और निकम्मा हो। सभी कैडर में 10 से 15 परसेंट अफसर साफ-सुथरी छबि के होते हैं तो 25 से 30 परसेंट बैलेंस। यही अफसर किसी भी सरकार के बैक बोन्स होते हैं। 10 से 15 परसेंट वाले आक्रमक बैटिंग करते हैं और 25 से 30 परसेंट पिच पर टिके होते हैं। कई बार अच्छा करने के बावजूद मानवीय चूक हो जाती है। ऐसे में, उनका इंटेंशन अगर गलत नहीं हो तो सरकारों आंख मूंदना पड़ता है। हालांकि, एक कलेक्टर के मामले में राज्य सरकार ने भी ये किया है। मगर इसका वैसा मैसेज नहीं गया, जैसा कि होना चाहिए...ब्यूरोक्रेसी के फारवर्ड प्लेयर अभी भी उस तरह के अश्वस्त नहीं हैं, जैसा कि होना चाहिए। वरना, रिजल्ट कम-से-कम 30 परसेंट और ज्यादा दिखता। दरअसल, परसेप्शन बन गया है, कुछ हुआ तो कौन बचाएगा, इसलिए उतना ही खेलो, जिसमें विकेट बचा रहे। पिछली कांग्रेस सरकार में यही हुआ, जिसका उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। और अभी भी हालत बहुत ज्यादा नहीं बदला है। याद होगा, सरकार बनने के कुछ महीने बाद एक नेत्री के पति के अवैध रेत परिवहन पर शिकंजा कसने पर एक आईएएस एसडीएम लक्ष्मण तिवारी को सूरजपुर से हटाकर 900 किलोमीटर दूर सुकमा भेज दिया गया था। इससे आहत होकर वे अपना कैडर ट्रांसफर करा बिहार चले गए। इससे नौकरशाही अभी उबरी नहीं है। उपर से सोशल मीडिया पर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोग लगातार हमलावर हैं। यहां तक कि सीएम सचिवालय को भी नहीं बख्शा जा रहा और सत्ता, संगठन में बैठे लोग मौन हैं। ऐसे में, कोई अफसर जोखिम लेकर कैसे काम करेगा? सवाल गंभीर है। सत्ता और संगठन को इसे नोटिस में लेना चाहिए।

प्रभारी मंत्री, सचिव का औचित्य

मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में चार-पांच साल प्रभारी मंत्री और प्रभारी सचिवों का सिस्टम चला मगर उसके बाद अब यह नाम के लिए बच गया है। न किसी मंत्री को अपने प्रभार वाले जिले से मतलब होता, और न ही प्रभारी सचिवों को अपने जिले का जायजा से कोई वास्ता। मध्यप्रदेश के दौर में दो-तीन महीने में एक बार प्रभारी मंत्री अपने जिलों का दौरा कर लेते थे। दिग्विजय सिंह ने जिला सरकार बनाया था, उसमें प्रभारी मंत्रियों की मौजूदगी अनिवार्य होती थी। तब फ्लाइट भी नहीं थी। मंत्री अमरकंटक, महानदी या फिर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से रातभर का सफर कर छत्तीसगढ़ आते थे। और अब...? छत्तीसगढ़ में अनेक ऐसे जिले हैं, जहां कई-कई महीने से प्रभारी मंत्रियों ने झांकने की जरूरत नहीं समझी। मंत्री या तो रायपुर में रहते हैं या फिर सीधे अपने विधानसभा भागते हैं...मानो प्रदेश के मंत्री नहीं, अपने विधानसभा क्षेत्र के मंत्री हो गए हों। प्रभारी सचिवों का हाल तो और खराब है। पिछले दो दशक से हर सरकार और मुख्यमंत्री के तरफ से फरमान जारी होता है...प्रभारी सचिव अपने जिलों में रात्रि विश्राम करेंगे, मीटिंग लेंगे। मगर इसमें खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं होता। मुख्यमंत्री या किसी वीआईपी का दौरा हुआ तो सचिव की इच्छा हुई तो जाएंगे वरना वो भी नहीं।

प्रभारी सचिवों का जुगाड़

सरकार सचिवों की उपलब्धता की दृष्टि से प्रभारी सचिवों की नियुक्ति करती है मगर इसमें भी बड़ा जुगाड़ चलता है। अधिकांश सीनियर या जोर-जुगाड़ वाले आईएएस रायपुर के आसपास के जिले ले लेते हैं, ताकि रात रुकने की जरूरत ना पड़े...साल में घूमने-घामने का मन हुआ तो एकाध बार चक्कर लगाकर शाम तक रायपुर लौट जाएं। मगर प्रशासनिक रिफार्म के क्रम में राज्य सरकार प्रभारी सचिवों की लिस्ट बनाने में थोड़ी सख्त हुई है। इस बार जो लिस्ट जारी होगी, वह शायद जुगाड़ वाली न हो। सरकार चाहती है कि जनता से सीधे जुड़े विभागों के सचिवों को सरगुजा और बस्तर जैसे जिलों का दायित्व दिया जाए, ताकि आने-जाने के दौरान रास्ते में पड़ने वाले जिलों पर भी उनकी नजर रहे। चलिये, ये अच्छा प्रयास है।

मोदी ड्रेस

छत्तीसगढ़ के पाॅलिटिशियन के लिए खुशी की बात है कि मोदीजी का ड्रेस डिजाइन करने वाली टेक्सटाइल कंपनी जेड ब्लू छत्तीसगढ़ में इंवेस्ट करने के इच्छुक है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के गुजरात दौरे में कंपनी के प्रोप्राइटर ने उनसे मुलाकात की। चलिये, अच्छी बात है पीएम नरेंद्र मोदी के स्टाईल का कुर्ता, पायजामा और जैकेट अब छत्तीसगढ़ में बनेगा और यहां के नेताओं के लिए सुलभ होगा।

सीआईसी की ऐसी नियुक्ति

बिलासपुर हाई कोर्ट ने मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के खिलाफ लगी याचिका को खारिज कर इस रास्ते की बड़ी बाधा दूर कर दी है। याने किसी भी दिन अब सलेक्शन कमेटी की मीटिंग होगी और सीआईसी, आईसी की नियुक्ति हो जाएगी। बहरहाल, इस घटना से 2017 में हुए सीआईसी की नियुक्ति का प्रसंग याद आ गया। रिटायर आईएएस एमके राउत को सीआईसी बनाना था। सरकार ने फैसला ले लिया था मगर राज्यपाल बलरामदास टंडन इलाज के सिलसिले में दिल्ली में थे। उनसे नोटिफाई कराने फ्लाइट से एक मुलाजिम को दिल्ली भेजा गया और उनके हस्ताक्षर होने के अगले दिन रविवार का दिन था। कोई जोर-जुगाड़ या सिफारिश लगाए, उससे पहले सरकार ने 11 बजे नियुक्ति का आदेश निकाल दिया था। राज्यपाल दिल्ली से लौटे तो बात शपथ की आई। राजभवन ने कहा, इतना जल्दी कैसे संभव होगा। सबको सूचित करना होगा। इस दौरान राउत तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ0 रमन सिंह को थैंक्स बोलने पहुंचे। उन्होंने पूछा...ज्वाईन कर लिए। राउत बोले...सर अभी शपथ नहीं हुआ है। क्यों? राउत ने वास्तविकता बताई। इस पर रमन सिंह पास में खड़े ओएसडी से बोले, राजभवन फोन लगाओ। और अगले दिन का टाईम शपथ के लिए मुकर्रर हो गया। बहरहाल, सब कुछ ठीक रहा तो अमिताभ जैन अगले हफ्ते किसी दिन शपथ ग्रहण कर लेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन अपाइंटमेंट की प्रक्रिया शुरू होने में सिस्टम कोई हड़बड़ी क्यों नहीं दिखा रहा?

2. क्या ये सही है कि महिला मित्र को तीन करोड़ का बंगला गिफ्ट करने वाले मंत्रीजी पार्टी के हिट लिस्ट में सबसे उपर हैं?


शनिवार, 1 नवंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: भड़के सीजे...सहमे अफसर

 तरकश, 2 नवंबर 2025

संजय के. दीक्षित

भड़के सीजे...सहमे अफसर

31 अक्टूबर 2000 की रात छत्तीसगढ़ का रायपुर कई सियासी और ब्यूरोक्रेटिक घटनाओं का साक्षी बना। इनमें से एक था बिलासपुर हाई कोर्ट के एक्टिव चीफ जस्टिस बनाए गए आरएस गर्ग की नाराजगी। दरअसल, 31 अक्टूबर की आधी रात रायपुर के पुलिस ग्राउंड में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया था। मंच पर पहले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गर्ग ने शपथ ग्रहण की। चूकि उस समय राज्यपाल ने शपथ नहीं लिया था, इसलिए नवगठित प्रदेशों की परंपरा के अनुसार मुख्य न्यायाधीश ने मंच पर खुद से शपथ लिया। इसके पांच मिनट बाद चीफ जस्टिस ने प्रथम राज्यपाल दिनेशनंदन सहाय को शपथ दिलाई और फिर उसके बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री अजीत जोगी को। बहरहाल, अब शीर्षक पर आते हैं। चीफ जस्टिस नियुक्त होने के बाद जस्टिस गर्ग 31 अक्टूबर की शाम रायपुर पहुंचे। रात 12 बजे उन्हें शपथ लेना था। शाम करीब सात बजे प्रथम मुख्य सचिव अरुण कुमार वीआईपी रोड स्थित उस जमाने के एक ठीकठाक होटल में उनसे मिलने पहुंचे। मुलाकात के बाद चीफ सिकरेट्री बोले, सर... मैं निकलता हूं...प्रिंसिपल सिकरेट्री लॉ आपको पुलिस ग्राउंड लेकर जाएंगे। इस पर जस्टिस गर्ग भड़क गए। बोले, मैं चपरासी के साथ जाउंगा मगर इनके साथ नहीं। बताते हैं, चीफ जस्टिस किसी मसले को लेकर पीएस लॉ से काफी नाराज थे। सीजे के तेवर देख वहां मौजूद अफसर सहम गए। फिर राजधानी परियोजना के प्रशासक एमके राउत से कहा गया...आप सीजे साहब को लेकर शपथ स्थल पर जाओगे। बता दें, ज्यूडिशिरी में जस्टिस गर्ग की अपनी अलग पहचान रही। सूबे का सिस्टम उनके नाम से थर्राता था...तो वकीलों को भी वे टोकने से गुरेज नहीं करते थे।

रात 10 बजे कैडर बंटवारा

हालांकि, 31 अक्टूबर से दो दिन पहले मध्यप्रदेश के चीफ सिकरेट्री कृपाशंकर शर्मा ने दो-तीन सीनियर अफसरों को बुलाकर बता दिया था कि आपको छत्तीसगढ़ जाना है। उनके निर्देश पर फर्स्ट सीएस अरुण कुमार रायपुर पहुंच चुके थे। 31 की आधी रात शपथ ग्रहण समारोह हुआ, उसमें सचिवालय के ब्यूरोक्रेट्स के तौर पर अकेले अरुण कुमार मौजूद थे। बहरहाल, कैडर बंटवारे में एमपी गवर्नमेंट द्वारा काफी चतुराई बरती गई। वहां के सीएम दिग्विजय सिंह ने कैडर बंटवारे का ऐसा फार्मूला तैयार कराया, उसमें चार-पांच ही ठीक-ठाक आईएएस छत्तीसगढ़ को मिल पाए, अधिकांश रिजेक्टेड को छत्तीसगढ़ को टिका दिया गया। कोई कोर्ट न जा पाए, इसलिए उसके लिए टाईम नहीं दिया गया। 31 अक्टूबर को आधी रात नई सरकार का गठन होना था, और उसके दो घंटे पहले रात 10 बजे डीओपीटी से कैडर बंटवारे का आदेश आया। और, अगले दिन 1 नवंबर को सभी अफसरों को भोपाल से एकतरफा रिलीव कर दिया गया।

आधी रात पोस्टिंग लिस्ट

मध्यप्रदेश सरकार ने सीनियरिटी के हिसाब से मुख्य सचिव, डीजीपी और पीसीसीएफ की नियुक्ति दो दिन पहले कर दी थी, मगर बाकी सचिवों के विभागों का बंटवारा 31 अक्टूबर की आधी रात को तब किया गया, जब डीओपीटी से कैडर बंटवारे की लिस्ट जारी हो गई। आलम यह था कि एक तरफ रायपुर में नई सरकार के शपथ समारोह चल रहा था, दूसरी तरफ भोपाल में नए सचिवों के विभाग वितरण का आदेश टाईप हो रहा था। नए राज्यों में यही नियम है, इसलिए 18 विभागों के सचिवों की पोस्टिंग की पहली लिस्ट भोपाल से जारी हुई। करीब चारेक महीने बाद फिर जोगीजी ने कुछ सचिवों के विभाग बदले थे।

रात 2 बजे सिंगल मेंबर कैबिनेट

छत्तीसगढ़ के 25 साल के इतिहास में सिंगल मेंबर वाला कैबिनेट सिर्फ एक बार हुआ है। 31 अक्टूबर की रात 12 बजे अजीत जोगी ने अकेले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उसके दो दिन बाद उनके 24 कैबिनेट और राज्य मंत्रियों की शपथ हुई। बहरहाल, शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री को एक मैसेज देना था। सो, शपथ समारोह के बाद जोगी ने अतिथियों को विदा किया। इसके बाद सीएस अरुण कुमार से कहा, कैबिनेट की बैठक अभी करनी है, चलिये मंत्रालय। चूकि मंत्रिमंडल बना नहीं था। सो, सिंगल मेंबर से कैबिनेट की बैठक हो गई। उसमें सूबे में पड़े सूखे को लेकर कई अहम फैसले किए गए।

एकतरफा रिलीव

31 अक्टूबर की रात कैडर बंटवारे का आदेश आने के बाद जिन आईएएस अधिकारियों को एमपी जाने का आदेश हुआ था, वे काम में दिलचस्पी लेना बंद कर दिए थे। उनमें रायपुर कलेक्टर अजय तिर्की समेत कई अफसर शामिल थे। मुख्यमंत्री अजीत जोगी को जब यह पता चला तो उन्होंने तुरंत आदेश निकाल एकतरफा रिलीव करवा दिया। एमपी कैडर के सिर्फ एकमात्र आईसीपी केसरी बच गए थे, जो राज्य बंटवारे के करीब पांच साल बाद 2005 में भोपाल लौटे।

ब्यूरोक्र्रेसी के लिए लॉटरी?

अलग राज्य बनने की खुशी छत्तीसगढ़ में सबको थी। मगर एक वर्ग ऐसा था, जो लंबे समय तक बेहद दुखी रहा। वह थी नौकरशाही। असल में, इक्का-दुक्का को छोड़ दें 99 परसेंट आईएएस, आईपीएस भोपाल जैसा शहर छोड़ रायपुर आना चाहते नहीं थे। उन्हें जबरिया वहां से ढकेला गया। लिहाजा, नाराज होकर दर्जन भर आईपीएस अधिकारी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गए। मगर यह भी सच हैं कि जो लोग अपना च्वाइस देकर छत्तीसगढ़ आए, उनमें से एक भी चीफ सिकरेट्री या डीजीपी नहीं बन पाए। राज्य बनने के 25 साल में अभी तक जितने भी मुख्य सचिव और डीजीपी बने हैं, सभी छत्तीसगढ़ आने के पक्ष में नहीं थे। पिछड़ा, नक्सल प्रभावित परसेप्शन वाला वही छत्तीसगढ़ 2003 के बाद ब्यूरोक्रेसी के लिए टॉप के चमकदार राज्यों में शामिल हो गया। स्थिति यह है कि अब अफसर च्वाइस देकर छत्तीसगढ़ आ रहे हैं।

मुख्यमंत्री का फैसला

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के फैसले के बाद प्रथम मुख्यमंत्री के नामों को लेकर अटकलें तेज हो गई थी। इनमें पहला नाम विद्या भैया याने वीसी शुक्ला का था। जाहिर है, राज्य बनने से पहले विद्या भैया ने छत्तीसगढ़ संघर्ष समिति बनाकर रायपुर से लेकर दिल्ली तक लंबा आंदोलन चलाया था। विद्या भैया की सियासी उंचाइयों को राजनीतिक प्रेक्षक भी मानकर चल रहे थे कि इंदिरा गांधी कैबिनेट में रहे वीसी भैया को कांग्रेस पार्टी प्रथम मुख्यमंत्री बना देगी। मगर 31 अक्टूबर 2000 को दिल्ली फ्लाइट से पार्टी महासचिव प्रभा राव, मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पार्टी के सचिव गुलाम नबी आजाद रायपुर पहुंचे तो एयरपोर्ट पर इनमें से किसी ने अपने परिचित को अजीत जोगी का नाम लीक कर दिया। इससे वीसी खेमे में खलबली मच गई। हालांकि, तब भी उनके समर्थकों में चमत्कार की उम्मीद बची हुई थीं। मगर दोपहर में मुख्यमंत्री चयन के लिए बैठक हुई और दिग्विजय सिंह ने जेब से निकाल अजीत जोगी के नाम का पुड़िया खोला, तो वीसी खेमा का गुस्सा फट पड़ा। चूकि वीसी को भनक लग गई थी कि उनका नाम कट गया, इसलिए वे बैठक में नहीं पहुंचे। सीएम बनाने आए कांग्रेस पार्टी के प्रेक्षकों ने मीटिंग के बाद प्रेस को ब्रीफ किया। इसके बाद प्रभा राव, दिग्विजय सिंह और गुलाम नबी आजाद वीसी की नाराजगी दूर करने उनके फार्म हाउस पहुंचे। तब न नेताओं को अंदाज था और न पुलिस को कि फार्म हाउस की सुरक्षित उंची चाहरदिवारी के भीतर कोई बड़ी घटना हो सकती है। तीनों नेता कार से उतरकर पैदल चलते हुए जैसे ही बरामदे में प्रवेश करते, उससे पहले वीसी समर्थकों ने नारेबाजी करते हुए धक्कामुक्की कर दी। दिग्विजय सिंह से शुरू से ही वीसी से सियासी रिश्ते अच्छे नहीं रहे, उपर से सोनिया गांधी के दूत बनकर वे रायपुर पहुंचे थे, इसलिए वीसी समर्थकों का गुस्सा उन पर फट गया। धक्कामुक्की में प्रभा राव गिर पड़ी, मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ क्या हुआ, यहां लिखना वाजिब नहीं, मगर उनका कुर्ता फट गया था। तब तक विद्या भैया भीतर से दौड़ते हुए आए, समर्थकों को हटाया और फिर तीनों नेताओं को भीतर ले गए। हालांकि, आपको आश्चर्य होगा कि मुख्यमंत्री के साथ ऐसी घटना कैसे हो सकती है? तो इसकी वजह सुरक्षाकर्मियों का ओवर कांफिडेंस रहा। असल में, किसी हाई प्रोफाइल पॉलीटिशियन के घर कोई बड़ा नेता जाता है तो मानकर चला जाता है कि वहां वैसी चौकसी की जरूरत नहीं होती। सुरक्षा कर्मियों को तनिक भी अहसास नहीं हुआ कि वीसी समर्थक तीनों को देखते इस तरह आपा खो देंगे। विद्या भैया का औरा ऐसा था कि न ही किसी ने इस घटना को तूल दिया और न ही किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई।

कमाल के मुख्यमंत्री

मध्यप्रदेश के लगातार 10 बरस मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह का गजब व्यक्तित्व रहा। उनका छत्तीसगढ़ से सीधा कोई कनेक्शन नहीं था, मगर यहां की सियासत में उनकी गहरी रुचि रही। मुख्यमंत्री के तौर पर शायद ही कोई महीना गुजरा होगा, जब दिग्गी राजा छत्तीसगढ न आए हों। बहरहाल, बात 31 अक्टूबर के वीसी शुक्ला फार्म हाउस की घटना की। एरिया में सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के साथ इतनी बड़ी घटना होने के बाद तो दूसरा कोई होता तो उसी समय गुस्से में वापिस लौट गया होता। मगर दिग्गी राजा ने होटल में जाकर कुर्ता बदला और तैयार होकर बिलासपुर हाई कोर्ट का मुआयना करने चले गए। चकरभाटा हवाई पट्टी से जब से हाई कोर्ट पहुंचे तो फार्म हाउस की घटना का उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं था। पत्रकारों ने जब उनसे इस संबंध में सवाल पूछा तो चिरपरिचित ठहाका लगाते हुए बात बदल दिया।

स्पीकर हाउस और संयोग

पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में बदलाव होने से नवा रायपुर के नवनिर्मित विधानसभा अध्यक्ष बंगले को एक बड़े संयोग से वंचित होना पड़ गया। दरअसल, मोदी का जब प्रोग्राम तय हुआ, उस समय बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलान नहीं हुआ था। सो, पीएम का 31 अक्टूबर की शाम रायपुर आकर एक नवंबर को शाम वापिस लौटना था। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आमतौर पर राजभवन में रुकते हैं। मगर रायपुर शहर से नवा रायपुर के डिस्टेंस को देखते अफसरों ने तय किया था कि नवनिर्मित स्पीकार हाउस को एक दिन के लिए पीएम हाउस बनाया जाए। इस दृष्टि से पीडब्लूडी ने युद्ध स्तर पर बंगले की साज-सज्जा शुरू कर दी थी। पीएमओ और एसपीजी से भी प्रधानमंत्री को स्पीकर हाउस में रुकने के संदर्भ में औपचारिक सहमति मिल गई थी। मगर बिहार इलेक्शन के चलते पीएम मोदी का प्रोग्राम चेंज हो गया। वे एक नवंबर को सुबह आएं। उनका शेड्यूल इतना टाईट था कि टी या लंच के लिए भी फुरसत नहीं था। ऐसे में, फिर रेस्ट करने स्पीकर हाउस जाने का प्रश्न नहीं था।

आईएएस बनने इंटरव्यू

एलॉयड सर्विस कोटे से आईएएस के दो पदों के लिए 30 अक्टूबर को मंत्रालय में इंटरव्यू हुआ। चीफ सिकरेट्री विकासशील की अध्यक्षता में हुए साक्षात्कार में एसीएस मनोज पिंगुआ, सिकरेट्री रोहित यादव और रजत कुमार शामिल थे। इसमें विभिन्न विभागों के राजपत्रित कैडर के 16 अफसरों ने इंटरव्यू दिया। लोकल स्तर पर स्क्रूटनी कर एक पद के खिलाफ पांच नामों का पेनल बना यूपीएससी को भेजा जाएगा। यूपीएससी में फायनल मीटिंग के बाद फिर दो आईएएस अधिकारियों का नोटिफिकेशन जारी होगा। बता दें, अनुराग पाण्डेय और शारदा वर्मा के रिटायर होने के बाद एलॉयड कोटे से आईएएस के दो पद खाली हुए हैं। छत्तीसगढ़ में इस समय तीन का कोटा है। एक पर गोपाल वर्मा कवर्धा के कलेक्टर हैं, दो पर सलेक्शन होना है।

ऐतिहासिक आयोजन

पीएम नरेंद्र मोदी का रायपुर का आज का कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा। राज्य बनने के बाद पिछले 25 साल में किसी प्रधानमंत्री का इतना टाईट शेड्यूल और स्मूथली प्रोग्राम नहीं हुआ। छत्तीसगढ़ क्या, किसी और राज्य में विरले ही कभी होता होगा, जहां छह घंटे में पीएम के पांच कार्यक्रम होते होंगे। उसमें भी तीन में भाषण। एक रोड शो। हॉस्पिटल में बच्चों से संवाद। 50 हजार से उपर भीड़। वो भी बिना किसी बाधा और बवाल के। पीएम का भाषण का अंदाज भी आज अलग रहा। अपने उद्बोधन में उन्होंने डेवलपमेंट से लेकर सेवा, बौद्धिक और अध्यात्म को टच किया।

जिला प्रशासन का रिर्हसल

पीएम नरेंद्र मोदी के दिन भर के सफल कार्यक्रम से रायपुर जिला प्रशासन का बड़ा रिहर्सल हो गया। दरअसल, इसी महीने 28, 29 और 30 को डीजीपी कांफ्रेंस होनी है। उसमें पीएम मोदी करीब पौने तीन दिन रायपुर में रहेंगे। पूरे दो रात। 28 नवंबर की शाम रायपुर पहुंचेंगे और 30 नवंबर को शाम यहां से रवाना होंगे। जाहिर है, आज के पीएम विजिट से रायपुर जिला और पुलिस प्रशासन के लिए अगले पीएम विजिट के लिए कांफिडेंस बढ़ गया होगा।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टर्स और डीएसपी की संख्या जिस कदर बढ़ गई है, उसमें क्या यह वाजिब होगा कि पीएससी परीक्षा में इन दोनों सर्विसों में कुछ ब्रेक दिया जाए?

2. बिलासपुर गोली कांड में कांग्रेस नेता के करीबी मुख्य आरोपी को रायपुर के किस राजनेता के बंगले से गिरफ्तार किया गया?


शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मंत्रियों का बढ़ा ब्लडप्रेशर

 तरकश, 27 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

मंत्रियों का बढ़ा ब्लडप्रेशर

बीजेपी के गुजरात प्रयोग ने छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का ब्लडप्रेशर ऐसा बढ़ा दिया है कि उनकी रात की नींद उड़ गई है। कुछ को बीपी की दवाई का डोज बढ़ाना पड़ गया है। रात में डरावने सपने आ रहे...खासकर बड़े धूमधाम से नवा रायपुर के आलीशान बंगले में प्रवेश करने वाले मंत्रियों को भय सताने लगा है...कुछ दिन बाद कहीं अपने घर न लौटना पड़ जाए। जाहिर है, गुजरात में मंत्रियों का सामूहिक इस्तीफा लेकर कई को घर बिठा दिया गया। छत्तीसगढ़ की स्थिति भी गुजरात अच्छी नहीं बल्कि और गड़बड़ है। बीजेपी के लोग ही दावा करते घूम रहे कि राज्योत्सव या अधिक-से-अधिक अगले साल होली से पहले मंत्रियों से सामूहिक इस्तीफा ले लिया जाएगा। सरकार, पार्टी और संघ के लोग भी दबी जुबां से स्वीकार कर रहे कि कुछ मंत्रियों का प्रयोग बहुत अच्छा नहीं रहा। अलबत्ता, बीजेपी गुजरात मॉडल उन सभी राज्यों में लागू करने वाली है, जहां मंत्रियों का परफर्मेंस ठीक नहीं। अब इसमें छत्तीसगढ़ शामिल है या नहीं, पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मगर इससे छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की हालत पतली हुई जा रही है।

मंत्रियों की चिंता

छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे से हैं। महीने भर के भीतर पीएम मोदी चार दिन रायपुर में रुकेंगे। राज्योत्सव में वे आएंगे ही, डीजीपी कांफ्रेंस में ढाई दिन रायपुर में रहेंगे। इस दौरान 28 नवंबर की शाम वे बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। पिछले साल गुजरात में भी उन्होंने ऐसा किया था। डीजीपी कांफ्रेंस में पीएम एक दिन पहले शाम को डेस्टिनेशन पर पहुंच जाते हैं। उसके बाद वे पार्टी कार्यालय जाते हैं। और दिक्कत यह है कि अधिकांश मंत्रियों से कार्यकर्ता नाखुश है। असल में, मंत्रियों का लगा कि पांच साल के लिए गद्दी मिल गई है...2028 में विधानसभा चुनाव के समय देखा जाएगा। इस ओवरकांफिडेंस में कार्यकर्ताओं का अनादर होने लगा। मगर इस बीच गुजरात की घटना हो गई। और फिर पीएम मोदी का छत्तीसगढ़ का लंबा दौरा। उपर से अमित शाह महीने में दो बार छत्तीसगढ़ आ ही रहे हैं। मंत्रियों को यही डर खाए जा रहा है...सामूहिक इस्तीफे में कहीं उनका नंबर न लग जाए।

ACS का दिल्ली प्रस्थान

बैचमेट के मुख्य सचिव बनने के बाद छत्तीसगढ़ के 94 बैच के एक आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली जा रहे हैं। राज्य सरकार ने इसके लिए डीओपीटी को पत्र लिख दिया है। दिल्ली में जैसे ही वैकेंसी क्रियेट होगी, उनकी पोस्टिंग निकल जाएगी। आईएएस वहां सिकरेट्री रैंक में इंपेनल्ड हैं। सो, पोस्टिंग मिलने में दिक्कत नहीं होगी। इस लेवल पर अप्लाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। हर तीन-चार महीने में रोलिंग लिस्ट निकलती रहती है। बता दें, 94 बैच के दो आईएएस यहां हैं। बैचमेट विकास शील के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद स्वाभाविक तौर पर दोनों अनकंफर्ट फील कर रहे हैं। इनमें से एक को अभी कुछ काम है, इसलिए यहां रुकेंगे, मगर दूसरे का आदेश किसी भी दिन आ सकता है। ऐसे में, सरकार को उच्च स्तर पर अफसर की जरूरत होगी, और उसमें बड़ा टोटा है। दो में से एक एसीएस चले जाएंगे। प्रमुख सचिव भी तीन ही हैं। उनमें से एक सुबोध सिंह सीएम सचिवालय में हैं। बचे निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। लगता है, सोनमणि का ट्राईबल डिपार्टमेंट किसी सिकरेट्री रैंक के अफसर को देकर उन्हें दिल्ली जाने वाले अफसर का विभाग सौंपा जाएगा।

दिवाली, शराब और लाठी

अभी तक होली में शराब दुकानों पर मेला लगता था, मगर अब आलम यह हो गया कि दिवाली के दिन भिलाई में शराब दुकान पर अनियंत्रित भीड़ को काबू करने पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ गया। दरअसल, शराब दुकान पर लोग ऐसे उमड़े कि मुख्य मार्ग जाम होने लगा। इससे त्यौहारी खरीदी करने निकले लोगों की गाड़ियां फंसने लगी। ऐसे में, रोड से भीड़ हटाने पुलिस के पास लाठी भांजने के अलावा कोई चारा नहीं था। लक्ष्मी पूजा जैसे पवित्र और शुचिता के पर्व पर अगर शराब की इस रुप में इंट्री हो जाए, तो यह चिंता की बात है...आत्ममंथन की आवश्यकता भी...हम और हमारी पीढी किस दिशा में जा रही है।

अफसर एक, भूमिका अनेक

छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अधिकारी के कंधे पर सिस्टम ने इतनी जिम्मेदारियां डाल दी है कि वे हैरान होंगे...अकेला आदमी...किधर-किधर जाउं...क्या-क्या करूं। बात कुछ महीने पहले आईपीएस अवार्ड हुए पंकज चंद्रा की हो रही है। पंकज की मूल पोस्टिंग कमांडेंट 13वीं सशस्त्र बटालियन बांगो है। गृह विभाग ने उन्हें 12वीं बटालियन बलरामपुर का अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप रखी है। पुलिस मुख्यालय ने बिहार चुनाव के लिए फोर्स लेकर उन्हें बिहार जाने का आदेश निकाल दिया है। इधर, 22 अक्टूबर को गृह विभाग से एक आदेश निकला...बलरामपुर के प्रभारी पुलिस अधीक्षक बनाने का। वहां के एसपी बैंकर वैभव रमनलाल फाउंडेशन कोर्स करने दो महीने के लिए हैदराबाद जा रहे हैं। पंकज प्रभारी पुलिस अधीक्षक बनकर पता नहीं बलरामपुर पहुंचे या रास्ते में होंगे...दो दिन बाद 24 अक्टूबर को उन्हें कोंडागांव का एसपी अपाइंट किया गया। हालांकि, एसपी की फर्स्ट पोस्टिंग के हिसाब से पंकज को जिला तो अच्छा मिला है। मगर वे हैरान होंगे कि उपर वाले अचानक इतना प्रसन्न कैसे हो गया, आए दिन एक पोस्टिंग टपक जा रही।

IPS की एक और लिस्ट

राज्य सरकार ने चार जिलों के पुलिस अधीक्षकों का ट्रांसफर किया। जिन जिलों के कप्तानों को बदला गया, उनमें राजनांदगांव, मनेंद्रगढ़, सक्ती और कोंडागांव शामिल है। इनमें से एक जिले के एसपी को हटाकर पुलिस मुख्यालय राहत की सांस ले रहा है। क्योंकि, पिछले करीब छह महीने से पीएचक्यू इस कोशिश में रहा कि एसपी को हटाया जाए। मगर फेविकोल इतना तगड़ा था कि कोई हिला नहीं पा रहा था। अब जाकर कामयाबी मिली। बहरहाल, एसपी स्तर पर एक छोटी लिस्ट और आएगी। महासमुंद के एसपी आशुतोष सिंह को सीबीआई में एसपी की पोस्टिंग मिल गई है। चूकि भारत सरकार ने आदेश जारी कर दिया है, इसलिए राज्य सरकार को उन्हें रिलीव कर वहां नया पुलिस अधीक्षक भेजना होगा। उधर, चौथी बटालियन के कमांडेंट प्रफुल्ल ठाकुर को सक्ती का पुलिस अधीक्षक बनाया गया है मगर बटालियन में किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है। हो सकता है, राज्योत्सव के बाद एक आदेश और निकले।

छत्तीसगढ़, CBI और IPS

महासमुंद के एसपी आशुतोष सिंह डेपुटेशन पर सीबीआई में एसपी बनकर जा रहे हैं। जाहिर है, सीबीआई देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी है। खास बात यह है कि सीबीआई में छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस अधिकारियों को हमेशा अहम जिम्मेदारियां मिलती रहीं है। सबसे पहले एडीजी अमित कुमार की बात करें। अमित पूरे 12 साल सीबीआई में रहे और ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी जैसी पोस्टिंग की। सीबीआई में जेडी पॉलिसी का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सीबीआई डायरेक्टर के बिहाफ में जेडी पॉलिसी पीएमओ से सीधे कनेक्ट रहते हैं। अमित कुमार के बाद आईपीएस अभिषेक शांडिल्य और रामगोपाल गर्ग भी सीबीआई में डेपुटेशन किया। जीतेंद्र मीणा और नीतू कमल अभी भी वहीं हैं, और अब आशुतोष सिंह जा रहे। यह पहला मौका होगा, जब सीबीआई में छत्तीसगढ़ काडर के एक साथ तीन आईपीएस पोस्ट होंगे। जीतेंद्र मीणा, नीतू कमल और आशुतोष सिंह।

IPS, ट्रेनिंग और डंपिंग यार्ड!

छत्तीसगढ़ बनने के बाद पुलिस की ट्रेनिंग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। नक्सलियों के चलते कांकेर में जंगल वार कॉलेज जरूर बना। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में इस ट्रेनिंग कॉलेज का योगदान भी काफी अहम रहा। लेकिन, चंदखुरी पुलिस एकेडमी, जो पुलिस का रेगुलर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट है, उसे कभी फोकस नहीं मिला। इस एकेडमी में डायरेक्टर के तौर पर एक एसपी स्तर का अधिकारी होता था और पीएचक्यू में आईजी या एडीजी लेवल का अधिकारी। उसमें भी प्रमोटी ज्यादा होते थे। मगर इस समय ट्रेनिंग में अफसरों की भरमार हो गई है। एक एडीजी, दो आईजी, दो डीआईजी और एक एसपी। एडीजी दीपांशु काबरा, आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा, आईजी रतनलाल डांगी, डीआईजी सदानंद, डीआईजी सुजीत कुमार और एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव। इनमें सिर्फ सुजीत कुमार प्रमोटी आईपीएस हैं, बाकी सभी आरआर। सदानंद सशस्त्र बल की ट्रेनिंग में हैं, वह भी आखिर पुलिस का ही पार्ट है। चलिये, ठीक है...शायद पुलिस की ट्रेनिंग अब कुछ दुरूस्त हो जाएगी।

कलेक्टर्स अब रिपीट नहीं?

प्रशासनिक सुधार की दिशा में सरकार कई स्तर पर कार्य कर रही है। कलेक्टरी से पहले आईएएस अफसरों से मिनिस्ट्री और डायरेक्ट्रट की पोस्टिंग कराकर अफसरों को इस रुप में तैयार करना चाह रही कि जिले में कलेक्टर बनकर जाए या फिर रायपुर में एचओडी बनें...कांफिडेंस से काम कर सकें। उधर, कलेक्टरी के लिए एक नार्म तैयार किया जा रहा। इसमें कलेक्टर बनने का टाईम थोड़ा बढ़ाया जाएगा। छत्तीसगढ़ में 2019 बैच के आईएएस कलेक्टर बनना शुरू हो गए हैं। याने आईएएस में सलेक्शन के छह साल के भीतर जिला मिलने लगा है। बाकी राज्यों में यह पीरियड सात से नौ साल है। इससे भी वर्किंग प्रभावित हो रही। जो अफसर एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी हैं, उन्हें तो दिक्कत नहीं, मगर एवरेज लेवल के कलेक्टरों का परफर्मेंस इससे गड़बड़ा रहा। दूसरा विचार इस पर भी किया जा रहा कि लगातार कलेक्टरी की बजाए एक या दो जिले के बाद कुछ ब्रेक दिया जाए, फिर दूसरा जिला मिले। मगर टेन्योर अच्छा मिलेगा। कुछ साल से छह महीने साल भर में कलेक्टर बदल दिए जाते थे, अब दो, पौने दो साल का वक्त दिया जाएगा। अब खुद ही हिट विकेट हो जाए, तो फिर बात अलग है।

IFS को इम्पॉर्टेंस

छत्तीसगढ़ में आईएफएस अफसरों का एक ऐसा दौर था, जब पीडब्लूडी, आवास पर्यावरण और एनर्जी में आईएफएस सचिव होते थे। रमन सिंह के दौर में ढाई दर्जन से अधिक आईएफएस अधिकारियों को सरकार के विभागों में विभिन्न जिम्मेदारिया मिली हुई थी। मगर इसके बाद कैडर का डाउनफॉल होता गया। इसकी एक बड़ी वजह आईएएस अधिकारियों की बढ़ती संख्या भी रही। मगर कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में डीएफओ को बुलाकर सरकार ने फिर से इस कैडर को अहमियत देनी शुरू की है। सुशासन संवाद में तीन कलेक्टरों के साथ एक डीएफओ से भी प्रेजेंटेशन का मौका दिया गया। डिवीजन में भी अब अच्छे अफसरों को बिठाया जा रहा है। कुछ दिन पहले तक 33 में से 18 प्रमोटी आईएफएस डीएफओ थे। इनमें से 12 को हटा दिया गया है। याने अब सिर्फ छह प्रमोटी डीएफओ बच गए हैं। हालांकि, डायरेक्ट वाले ही अच्छा काम करते हैं...यह जरूरी नहीं। मगर यह सही है कि प्रमोटी वाले ज्यादा फ्लेक्सिबल होते हैं। और सिस्टम यही तो चाहता है। मगर हालात अब बदल रहे हैं।

पूर्व सीएस को पोस्टिंग?

मुख्य सचिव के लंबे कार्यकाल का रिकार्ड बना रिटायर हुए अमिताभ जैन को पोस्ट रिटायमेंट पोस्टिंग क्या मिलेगी, इस पर सस्पेंस बना हुआ है। अभी तक जितने भी मुख्य सचिवों को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग मिली, उसमें इतना विलंब नहीं हुआ। आरपी मंडल को रिटायरमेंट के 20 मिनट के भीतर एनआरडीए चेयरमैन बनाने का आदेश आ गया था। मगर अमिताभ को रिटायर हुए 25 दिन निकल गए, अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। अलबत्ता, रिटायरमेंट के आखिरी दिनों में जब वे मुख्यमंत्री विष्णुदेव के साथ जापान और साउथ कोरिया गए थे, तब अटकलें तेज हुई थी कि प्रदेश के मुखिया के साथ विदेश गए हैं, यकीनन उनका कुछ अच्छा ही होगा। उसी समय बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन का पद खाली हुआ था। ऐसे में, लोगों ने अंदाजा लगाया कि अमिताभ अब बिजली आयोग के ही चेयरमैन बनेंगे। मगर अभी तक बिजली आयोग का पद विज्ञापित हुआ और न ही मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति केस से हाई कोर्ट का स्टे हटा। असल में, सरकार में बैठा एक वर्ग मानता है कि पिछले सरकार में सीएस बने अमिताभ जैन को सरकार ने नहीं हटाया, फिर पौने पांच साल से अधिक समय तक ब्यूरोक्रेसी की सबसे उंची कुर्सी पर बैठने का मौका दिया गया। इसके बाद और क्या? यही परसेप्शन अमिताभ जैन के रास्ते में रोड़ा अटका रहा। हालांकि, मुख्य सूचना आयुक्त के लिए अमिताभ ने इंटरव्यू दिया है। और खबरें भी इसी तरह की है कि हाई कोर्ट से स्टे क्लियर होते ही उनकी नियुक्ति हो जाएगी। मगर सवाल उठता है कब तक? महाधिवक्ता ऑफिस में भी इसको लेकर कोई सक्रियता नहीं महसूस की जा रही। तो फिर मजरा क्या है...ये उपर बैठे लोग ही बता पाएंगे। वैसे ये सत्य है कि राज्योत्सव और पीएम विजिट की व्यस्तता काफी है, ऐसे में किसी को उपकृत करने वाली पोस्टिंग की बात सूझेगी नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. जिस राज्य में नक्सल मोर्चे पर ऐतिहासिक कामयाबी मिलने जा रही, वहां प्रभारी पुलिस प्रमुख...क्या ये आदर्श स्थिति है?

2. सत्ताधारी पार्टी के भीतर से ब्यूरोक्रेसी पर हमले क्यों हो रहे हैं?