तरकश, 16 फरवरी
संजय के. दीक्षित
हिन्दुत्व की इंट्री!
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के नतीजों ने चौंकाया ही था, नगरीय निकाय के परिणाम ने लोगों को स्तब्ध कर दिया है। बात महज सीटों की नहीं, जीतने वाली पार्टी का वोट शेयर और मार्जिन कभी ऐसा नहीं रहा।
रायपुर में मुस्लिम बहुत इलाके से एजाज ढेबर जैसे नेता को पराजय का सामना करना पड़ा। तो मीनल चौबे को 1.53 लाख की ऐतिहासिक लीड मिली।
बिलासपुर में ओबीसी को छोड़ दें तो भी मुस्लिम, क्रिश्चियन और दलितों के 40 हजार वोट निर्णायक हैं। कांग्रेस के प्रमोद नायक का चेहरा अपेक्षाकृत ज्यादा वजनदार और सौम्य था। उसके बाद भी पूजा विधानी 66 हजार मतों से जीत गई।
अंबिकापुर में डॉ0 अजय तिर्की की लोकप्रियता ऐसी कि कांग्रेस को छोड़िये, बीजेपी भी मान रही थी कि उन्हें 10 में से नौ सीटें मिल रही हैं। याने डॉ0 तिर्की की हैट्रिक में भाजपा को भी कोई संशय नहीं दिख रहा था। मगर तिर्की को भी हार का मुंह देखना पड़ा।
रायगढ़ में चाय बेचने वाले जीवर्द्धन चौहान 61 परसेंट वोट शेयर के साथ चमकदार जीत दर्ज करने में कामयाब हुए। कांकेर में 50 साल और आरंग में 25 साल से बीजेपी जीत के लिए तरस रही थी, इस चुनाव में ये दोनों नगरपालिका भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई। हालांकि, इससे कोई इंकार नहीं कि लोकल इलेक्शन में रुलिंग पार्टी को फायदा मिलता है।
बीजेपी का टिकिट वितरण और मैनेजमेंट भी बहुत बढ़िया रहा। नेताओं ने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। फिर भी....बिना किसी करंट के ऐसे नतीजे नहीं आते। और आज के दौर में ऐसे करंट जाति और धर्म के बिना मुमकिन नहीं। छत्तीसगढ़ में जाति की राजनीति कभी परवान नहीं चढ़ सकी। लोगों ने इसे 2003 के विधानसभा चुनाव में भी देखा और 2023 में। मगर विधानसभा के बाद लोकसभा और नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से लगता है छत्तीसगढ़ में दबें पांव हिन्दुत्व की इंट्री हो गई है।
मंत्रिमंडल का विस्तार?
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव निबटने के साथ ही विष्णुदेव कैबिनेट विस्तार का जिन्न फिर बाहर आने लगा है। चुनाव के दौरान भी बीजेपी के अंदर इस पर बातें हो रही थी कि विधानसभा के बजट सत्र से पहले या उस दौरान भी नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। वैसे कोई ऐसा नियम भी नहीं है कि सत्र के दौरान कोई बडा काम नहीं हो सकता।
बहरहाल, कैबिनेट विस्तार सत्र से पहले हो या बाद में, इतना जरूर है कि नगरीय निकाय चुनाव के ऐतिहासिक नतीजों से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राजनीतिक तौर पर काफी स्ट्रांग हो गए हैं। याने अब उनके पंसदीदा मंत्रियों के शपथ लेने में कोई संशय नहीं।
दो एक्स एमएलए
नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बीजेपी ने एक और कांग्रेस ने दो डॉक्टरों को चुनाव मैदान में उतारा था। इनमें दो पूर्व विधायक थे। बीजेपी ने पूर्व विधायक और महासमुंद नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष डॉ0 विमल चोपड़ा को खडा किया था। वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल को चिरमिरी से और डॉ. अजय तिर्की को अंबिकापुर से टिकिट दिया था। तीनों डॉक्टर चुनाव हार गए। चिरमिरी और अंबिकापुर में अपने प्रत्याशी को जीताने के लिए चरणदास महंत का यह बयान भी काम नहीं आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगला विधानसभा चुनाव महराज याने टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में होगा।
कांग्रेस का प्रत्याशी चयन
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस पार्टी को शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा तो इसकी एक अहम वजह प्रत्याशी चयन भी रही। एक तो टिकिट फायनल करने में पार्टी ने काफी देर लगा दी, उपर से गुटीय लड़ाई आखिरी दौर तक जारी रही। 27 जनवरी को नामंकन का आखिरी दिन था और 26 जनवरी की शाम तक कांग्रेस में शह-मात का खेल चल रहा था। कांग्रेस के लोग भी स्वीकार करते हैं कि बिलासपुर और अंबिकापुर जैसे दो-एक नगर निगमों को छोड़ दें कांग्रेस ने ठीकठाक चेहरों को मैदान में उतारा नहीं।
रायपुर में पांच साल महापौर और पांच साल सभापति रहे प्रमोद दुबे की पत्नी को टिकिट दे डाला, वहीं चिरमिरी में डॉ. विनय जायसवाल को। पांच साल विधायक रहने के कारण उनकी एंटीइम्बेंसी थी ही, उनकी पत्नी चिरमिरी की महापौर रहीं। याने एक और एक ग्यारह हो गया। अपने लोगों को टिकिट देने के चक्कर में कांग्रेस नेताओं ने ऐसी गल्तियां कई जगहों पर की।
हर शाख पे उल्लू बैठे हैं...
शौक बहराइच का शेर...हर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा...छत्तीसगढ़ के संदर्भ में एकदम सटीक बैठता है। छत्तीसगढ़ के जिस विभाग में हाथ डाल दीजिए, कोई-न-कोई स्कैम निकल आएगा। पीएससी परीक्षा से लेकर सीजीएमससी, आरआई परीक्षा, आयुष्मान योजना, पाठ्य पुस्तक निगम, पुलिस भर्ती, फॉॅरेस्ट गार्ड भर्ती, कालोनाईजर स्कैम...याने जिधर नजर डालिये, उधर स्कैम। सरकार भी परेशान और एसीबी भी हलाकान। लोग भी हैरान...हमर छत्तीसगढ़ को किसकी नजर लग गई, जिसको मौका मिला, वो लूटने से चूक नहीं रहा। सूरजपुर के डीईओ को देखिए रिटायरमेंट से 14 दिन पहले एक लाख रिश्वत लेते ट्रेप हो गया।
साल में 40 खोखा
पाठ्य पुस्तक निगम का कबाड़ घोटाला इस समय खूब चर्चा में है। दरअसल, यह निगम शुरू से बदनाम रहा है। इसमें सब कुछ फिक्स रहता है। साल में दो बार खेल होगा और इतना बड़ा कि उसके बाद कुछ करने की जरूरत नहीं। पहला कागजों के टेंडर में। 12 लाख मीट्रिक टन कागज खरीदी में कागजों के जीएसएम और ब्राइटनेंस का बड़ा रोल होता है। दो परसेंट जीएसएम और ब्राइटनेस कम हो गया तो 10 करोड़ का खेल हो गया।
इसी तरह बाजार से चार गुने रेट पर किताबों को छापने का टेंडर किया जाता है। उसमें 15 से 20 खोखा का जुगाड़। फिर हर साल 10 से 15 लाख किताबों कागजों में छपवाई जाती है। कुल मिलाकर पापुनि में 40 खोखा का काम हो जाता है। तभी तो वहां का एक जीएम सरकार से लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
कलेक्टरों का ट्रांसफर
पंचायत चुनाव की आचार संहिता खतम होने से एक रोज पहले इस बार विधानसभा का बजट सत्र प्रारंभ हो जाएगा। उधर, कलेक्टरों को बदला जाना भी अपरिहार्य हो गया है। धमतरी और दुर्ग की दोनों महतारी कलेक्टर दिल्ली डेपुटेशन पर जा रही हैं। जाहिर है, पंचायत चुनाव के बाद उन्हें रिलीव किया जाएगा। यद्यपि, एक मिथक बना हुआ है कि विधानसभा सत्र के दौरान अफसरों के ट्रांसफर नहीं किए जाते। मगर रमन सिंह की सरकार ने तीसरी पारी में दो बार इस मिथक को तोड़ लोगों को चौंका दिया था।
वैसे, विधानसभा की सत्र से कलेक्टरों को कोई वास्ता भी नहीं होता। प्रश्नों के जवाब नीचे का स्टाफ बनाता है...वह कलेक्टर कोई भी रहे सिस्टम अपना काम करता है। ऐसे में, इस बार विधानसभा सत्र के दौरान ही कलेक्टरों की लिस्ट निकलेगी, इसमें कोई संशय नहीं है।
हाजिरी 90 परसेंट, बट...
सरकार अगर चाह ले तो कुछ भी संभव है। मंत्रालय में सरकार ने टाईमिंग को लेकर मजबूत इच्छा शक्ति दिखाई, उसकी नतीजा यह हुआ कि उपर से लेकर नीचे के 80 परसेंट अफसर टाईम पर आने लगे हैं। अलबत्ता, कई तो 10 बजे से पहले महानदी भवन पहुंच जा रहे। दरअसल, सिस्टम मैसेज से चलता है। मुख्यमंत्री ने एक जनवरी को अफसरों की टाईमिंग को लेकर खरी-खरी बात की। उसके बाद सीएम सचिवालय हरकत में आया। पीएस टू सीएम ने आईएएस ग्रुपों में मैसेज किया...अनौपचारिक मैसेज यह भी हुआ कि सीएम सचिवालय अफसरों के अटेंडेंस की मानिटरिंग कर रहा है।
हालांकि, मानिटरिंग हो भी रही है। रोज दोपहर दो बजे हाजिरी चार्ट सीएम सचिवालय के एक अफसर के पास पहुंच जाता है। चार्ट में कोई बड़ा-छोटा नहीं...चीफ सिकरेट्री से लेकर सीएम सचिवालय तक के अफसरों का टाईम दर्ज किया जाता है। मगर बता दें, यह सुधार अभी नया रायपुर तक सीमित है। जिलों में वही पुराना ढर्रा चल रहा है। सीएम सचिवालय और जीएड को कलेक्टरों को टाईट करना पड़ेगा, तभी जिलों का वर्किंग कल्चर बदलेगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या ये सही है कि सीजीएमएससी की गंगा में डूबकी लगाने के लिए एक ब्यूरोक्रेट्स ने पार्टनरशीप में रायपुर से 50 किलोमीटर दूर दवाई की फैक्ट्री खोल ली है?
2. क्या टीएस सिंहदेव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का आदेश जल्द निकलने वाला है?
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