शनिवार, 14 अप्रैल 2012

तरकश, 15 अप्रैल



सब पर भारी


नियम-कायदे खुद पर लागू नहीं होते, प्रधानमंत्री कार्यालय के फैसले से तो यही जाहिर हुआ है। 87 बैच के आईएएस अफसर बीबीआर सुब्रमण्यिम पिछले 13 साल से डेपुटेशन पर हैं। और अब पीएमओ में ज्वाइंट सिकरेट्री बन गए हैं। सुब्रमण्यिम छत्तीसगढ़ बनने के पहले याने मध्यप्रदेश के समय ही दिल्ली निकल लिए थे। 2000 में उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर अलाट हुआ, मगर 11 साल में एक बार भी, छत्तीसगढ़ झांकने नहीं आए। जबकि, भारत सरकार ने ही अखिल भारतीय सेवाओं के लिए पांच साल के डेपुटेशन का नियम बना रखा है। इसमें अधिकतम दो साल का एक्सटेंशन हो सकता है। वो भी उन्हीं को, जो केंद्र में ज्वाइंट सिकरेट्री से नीचे के अफसर हैं। इससे पहले, राज्य के कई अफसरों को पीएमओ में लाख कोशिशों के बाद भी डेपुटेशन नहीं बढ़ा। इसी वजह से आंध्रप्रदेश के चीफ सिकरेट्री पंकज द्विवेदी को 2006 में छत्तीसगढ़ से लौटना पड़ा था। सुब्रमण्यिम का छत्तीसगढ़ लौटने की संभावना उसी दिन खतम हो गई थी, जिस रोज पुलक चटर्जी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रींसिपल सिकरेट्री बनें। देश के सबसे ताकतवर नौकरशाह चटर्जी से सुब्रमण्यिम के करीबी रिश्ते हैं। दोनों वाशिंगटन में भी एक साथ रहे हैं। ऐसे में राज्य के आईएएस अफसरों को दुखी नहंी होना चाहिए। रसूख तो आखिर भारी पड़ता ही है।

झटका

कोर गु्रप की बैठक से पहले सरकार को झटका देने वाले भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को कतई यह भान नहीं होगा कि संगठन इतना कड़ा रुख अपना सकता है। सर्किट हाउस की असंतुष्टों की बैठक की बाद एकात्म परिसर में कोर गु्रप की मीटिंग में सौदान सिंह बेहद गुस्से में थे। उनकी भाव-भंगिमा को भांपकर सीएजी की रिपोर्ट उठाने की किसी ने हिम्मत नहीं जुटाई। उल्टे इशारे-इशारे में उन्हें बता दिया गया, पार्टी में ब्लैकमेल की राजनीति बर्दाश्त नहीं की जाएगी........उन्हें आगे कोई जिम्मेदारी देने के बारे में भी सोचना पडे़गा। जाहिर है, इशारा टिकिट की ओर था। खास रणनीति के तहत अगले दिन प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जगतप्रकाश नड्डा ने लगभग चेतावनी के लहजे में कहा, जिन्हें पार्टी की चिंता नहंी हैं, पार्टी भी उनकी चिंता नहीं करेगी। असल में, असंतुष्टों को सार्वजनिक तौर पर नसीहत देकर संदेश दिया गया कि पार्टी के अनुशासन का डंडा अभी कमजोर नहीं हुआ है। तभी तो दो दिन पहले तक सरकार के क्रियाकलापों पर खम ठोकने वाले नेता कोर गु्रप की बैठक के बाद मीडिया से नजर बचाते दिखे।

बाबा की कृपा-1

थर्ड आई के जरिये लोगों पर कृपा बरसाने वाले बाबा निर्मलजीत सिंह नरुला के सामने मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उन्होंने जितने अनुयायी बनाएं हैं, अब उससे कहीं ज्यादा विरोधी खड़े हो गए हैं। थानों में केस दर्ज किए जा रहे हैं तो वेबसाइटों पर सामग्री पटी है.....उनके खिलाफ लगातार खुलासे किए जा रहे हैं। मसलन, झारखंड के कांग्रेस नेता इंदर सिंह नामधारी के साले निर्मलजीत सिंह नरुला ने व्यापार में असफल होने पर अध्यात्म का शार्टकट रास्ता अपनाया और देखते ही देखते करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया......प्रायोजित कार्यक्रमों की सीडी को मोटे पैकेज के साथ वे किस तरह टीवी चैनलों को भिजवाते हैं.....और भी बहुत कुछ। बताते हैं, नरुला के पिता नहंीं थे। सो, नामधारी की सास ने बेटे को अपने यहां ले जाकर काम में लगाने का आग्रह किया था। नामधारी ने गढ़वा रोड र्में इंटा भठ्ठा खोलवाया। भठ्ठा बैठ जाने के बाद नरुला ने कपड़े की दुकान खोली। मगर उनकी किस्मत नहीं बदली। बिजनेस में असफल हो जाने पर बाबा ने खुद ही कृपा बरसाने और लोगों की किस्मत बदलने का काम प्रारंभ कर दिया। और यह चल निकला। वैसे भी कहा जाता है, अपने देश में जब तक मुर्ख रहेंगें, तब तक होशियार भूखे नहीं मर सकता।

बाबा की कृपा-2

धन कमाने का अत्यधिक लोभ और समस्याओं का शार्टकट रास्ता तलाशने का सबसे बड़ा उदाहरण है, निर्मल दरबार। हैरत होती है, जिस देश में गीता को जीवन का आधार माना गया है.....पांच हजार साल पहले कहा गया, कर्म प्रधान हैं, उस देश में अंधविश्वास का ये आलम है कि भजिया, समोसे, जलेबी खाकर और खिलाकर अपनी हथेली की रेखाएं बदलवाने के लिए लोग टूट पड़े हैं। बैंक में पैसा जमा कराकर कृपा पाने के लिए लाइन लगाई जा रही है़। बेटे को कैंसर से निजात दिलाने के लिए बताते हैं, क्रिकेटर युवराज सिंह की मां भी निर्मल दरबार में गई थीं। बाबा ने पूछा कितने दिन पहले सांप देखी हों, समोसा कब खाई। युवराज की मां शबनम समोसा खरीदकर लोगों में बांटती रही और बेटे का मर्ज बढ़ता गया। आखिर में अमेरिका जाना पड़ा। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे अंधविश्वास में आस्था रखने वालों की कमी नहीं है। बुद्धि-विवेक ताक पर रखकर घरों में लोग फोटो टांगे जा रहे हैं। रायपुर में कई रिक्शे वाले भी निर्मल दरबार के लिए काम कर रहे हैं। सवारी बिठाते ही शुरू हो जाते हैं, साब, बाबा की फोटो जब से रखना शुरू किया हूं, रोज 300 रुपए लेकर घर जाता हूं।

बाबा की कृपा-3

बाबा की कृपा भक्तों पर कितनी बरसी पता नहीं, मगर मंदिरों की दान पेटियांें की तो मत पूछिए। भिखारियों को मेहनत करने की नसीहत देने वाले लोग दान पेटियों में जमकर लाल-हरे नोट डाल रहे हैं। खबर आई, रामनवमी को शिरडी के साईं बाबा मंदिर की दान पेटी से रिकार्ड तीन करोड़ रुपए निकले। तो इधर नवरात्रि में, रतनपुर महामाया मंदिर की दान पेटी में भक्तों ने हर रोज एक लाख से अधिक रुपए डाले। इसमें सर्वाधिक पांच सौ के नोट थे। मंदिरों में प्रसाद भी खूब चढ़ाएं जा रहे हैं। एक पाव लड्डू चढ़ाने वाले दो-दो किलो का डिब्बा लेकर जा रहे हैं। बाबा जो कहते हैं, मंदिरों में खूब दान करों और भरपूर प्रसाद चढ़ाओं। बाबा की कृपा ठंडा पेय और लेदर की पर्स बनाने वाली कंपनियों पर खूब बरस रही है। बाबा पूछते हैं, कोका कोला पिए हो। इसके बाद कोका कोला की बिक्री बढ़ गई। लोग लेदर के महंगे पर्स रख रहे हैं। महंगा पर्स रखने पर ज्यादा धन आएगा। आरोप है, ये कंपनियां बाबा के निर्मल दरबार पर कृपा बरपा रही हंै।

और अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा के वरिष्ठ सांसद रमेश बैस सरकार से खफा होते हैं और चंद घंटे बाद फिर मान कैसे जाते हैं?
2. करुणा शुक्ला को भूषणलाल जांगड़े की जगह अगर राज्य सभा में भेज दिया होता तो सीएजी की रिपोर्ट को वे काल्पनिक बताती या वास्तविक?

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